Category: विविधा

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समर्पित अभिनेता और राजनेता की तरह हमेशा याद किये जाएंगे विनोद खन्ना 

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विनोद खन्ना ने अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत भाजपा से की। विनोद खन्ना 1997 में पहली बार पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भाजपा की ओर से सांसद चुने गए। इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में गुरदासपुर लोकसभा से ही दूसरी बार जीतकर संसद पहुंचे। विनोद खन्ना को 2002 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार में संस्कृति और पर्यटन के केंद्रीय मंत्री बनाया गया। 6 महीने के बाद उनका विभाग बदलकर उनको अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया। 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने गुरदासपुर लोकसभा सीट से फिर से चुनाव जीता। हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में विनोद खन्ना को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन एक बार फिर 2014 लोकसभा चुनाव में विनोद खन्ना गुरदासपुर लोकसभा से चैथी बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।

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विविधा

निजी अनुभवों की सांझ-2

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बिजली की चोरी होती है-कर्मचारियों की कृपा से! सरकारी प्रयास होते हैं-मीटर लगाने के, जिससे इसे रोका जा सके। किंतु सारे प्रयास निरर्थक हो जाते हैं। कानून बनाये जाते हैं, मानव की दुष्प्रवृत्तियों को सद्प्रवृत्तियों में परिवर्तित करने के लिए। पर एक समय आता है कि कानून की तनी हुई चादर में से भी छिद्र कर दिये जाते हैं और कानून की ओजोन की परत को तोडक़र मानवीय स्वभाव की पराबैंगनी किरणें सीधे पडक़र मानव को ही तंग व परेशान करती हैं। यह सांप छछूंदर का खेल है, जिसमें कानून व्यक्ति को गलत कार्यों को करने से रोकना चाहता है और व्यक्ति उल्टे कानून के बढ़ते हाथों को (अपनी ओर बढऩे से) रोकना चाहता है।

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विविधा

महंगी होती चुनावी व्यवस्था

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हमें इस समय अपनी चुनावी प्रक्रिया में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। इसके लिए उचित होगा कि देश में लोकसभा और विधानसभाओं सहित अधिकतर चुनाव एक साथ कराने की व्यवस्था पर गंभीरता से विचार किया जाए। इससे हम चुनावों पर व्यय होने वाली बड़ी धनराशि को बचा सकते हैं। चुनाव आयोग को बार-बार सरकारी कर्मियों को उनके सरकारी कार्य रूकवाकर उन पर अपना डंडा चलाने का अधिकार अभी लगभग वर्ष भर कहीं न कहीं मिला रहता है। यदि चुनाव एक साथ होते हैं तो चुनाव आयोग सरकारी कर्मियों का कार्य रूकवाने से दूर रहेगा।

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विविधा

जीवित मनुष्य से बढ़कर हैं नदियाँ

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नदियों के संरक्षण के प्रति समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री दुनिया के सबसे बड़े नदी संरक्षण अभियान 'नमामि देवी नर्मदे : सेवा यात्रा' का संचालन कर रहे हैं। जनसहभागिता से प्रत्येक दिन नर्मदा के किनारे नदी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए बड़े-बड़े आयोजन किए जा रहे हैं। नर्मदा सेवा यात्रा के अंतर्गत इन आयोजनों में देश-दुनिया के अलग-अलग विधा के प्रख्यात लोग आ चुके हैं। इसी सिलसिले में मण्डला में आयोजित जन-संवाद कार्यक्रम में शामिल होने गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी पहुँचे।

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कला-संस्कृति विविधा

संस्कृति

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सलाद-बाउल प्रारुप में देश की विभिन्न संस्कृतियाँ सलाद के घटकों की तरह पास-पास में रहते हुए अपनी खासियतें बरकरार रखती हैं। अब यह प्रारूप राजनीतिक रूप से अधिक सही एवम् सम्माननीय माना जाता है, क्योंकि यह हर विशिष्ट संस्कृति को अभिव्यक्ति देता है। इस विचारधारा के हिमायतियों का दावा है कि परिपाचनवाद आप्रवासियों को उनकी संस्कृति से विच्छिन्न कर देता है, जब कि यह समझौतावादी विचारधारा उनके और उनकी बाद की पीढ़ियों के लिए अपने मेजबान राष्ट्र के प्रति निष्ठा को सर्वोपरि रखते हुए अपने वतन की संस्कृति के साथ जुड़े रहने की राह हमवार कर देती है। मेजबान और मूल राष्ट्र तथा निष्ठा और सुविधावाद के बीच इस किस्म का नाजुक सन्तुलन कायम रखा जा सकता है या नहीं, यह तो देखने की बात होगी।

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‘अपने ही लोगों ‘ के सामने घुटने टेकने को मजबूर है सरकार

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केंद्र सरकार को चाहिए कि वो नक्सलवाद के उन्मूलन की दिशा में गंभीरता से सोचे, सिर्फ बैठकें कर लेने और मीडिया के सामने बयानबाजी कर देने से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला है । ठोस कार्रवाई वक्त की मांग है। देश के मंत्रीगण – राजनेता और आला – अधिकारी किसी बड़े नक्सली हमले के बाद शहीदों के शवों पर श्रद्धाञ्जलि के नाम पर फूलों का बोझ ही तो बढ़ाने जाते हैं ? और नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए लम्बी – चौड़ी मगर खोखली बातें करते हैं । लेकिन जब नक्सलवाद के खिलाफ ठोस रणनीति या कार्रवाई करने का समय आता है तो हमारे नेता ” गांधीवादी राग ” अलापने लगते हैं।

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 कठोर निर्णायक संकल्पों की प्रतीक्षा में है देश

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चिन्ता का विषय है कि अलगाववादियों-नक्सलवादियों के विरूद्ध की जा रही सैन्य कार्यवाहियों पर उँगली उठाने वाले तथाकथित सामाजिक कार्यकत्र्ता मानवाधिकारों की दुहाई देकर अपराधियों का संरक्षण कर रहे हैं। अपनी राजनीतिक महत्वाकाक्षाओं की पूर्ति के लिए वामपंथी दलों के नेता इन राष्ट्र विरोधी शक्तियों का खुला समर्थन करके इनका हौसला बढ़ा रहे हैं। नित नई दुर्घटनायें घट रही हैं। शासन-प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं, किन्तु इन दुर्दान्त हिंसक-शक्तियों के विरूद्ध प्रभावी कदम उठाने में समर्थ व्यवस्था में बैठे लोग सैनिकों के बलिदानों पर आँसू बहाकर, मुआबजा बाँटकर, ‘शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा’ जैसे जुमले उछालकर अपने दायित्व की पूर्ति मान लेते हैं। टी.वी. चैनलों पर उत्तेजक बहसें आयोजित हो जाती हैं और फिर नई दुर्घटना घट जाती है। सारा घटनाचक्र एक निश्चित रस्मअदायगी सा घटित होता है। प्रश्न यह है कि ऐसी बिडम्बनापूर्ण दुखद स्थितियों के विषदंश देश को कब तक झेलने होंगे ? आखिर कब तक हमारे देश में राष्ट्र विरोधी शक्तियाँ यूँ ही हिंसा का तांडव करती रहेंगी ? इन ज्वलन्त समस्याओं का समाधान क्या है और इन्हें सुलझाने की जबावदारी किनकी है?

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सुकमा की शहादत का मुंहतोड़ जबाव हो

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कब तक हम इन घटनाओं को होते हुए देखते रहेंगे। कब तक केन्द्र सरकार राज्य सरकार पर और राज्य सरकार केन्द्र सरकार पर बात टालती रहेगी। कब तक सुस्ती और नक्सली हिंसा से निपटने के मामले में कामचलाऊ रवैये अपनाया जाता रहेगा। न जाने कब से यह कहा जा रहा है कि सीआरपीएफ के जवान छापामार लड़ाई लड़ने का अनुभव नहीं रखते, फिर ऐसे जवानों को क्यों नहीं तैनात किया जाता जो इस तरह की छापामार लड़ाई में सक्षम हो, जो नक्सलियों को उनकी ही भाषा में सबक सिखा सके? इसके साथ ही नक्सलियों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर भी सशक्त जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। उनकी कमजोरियों को स्थानीय जनता के बीच लाया जाना चाहिए। नक्सली संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं के साथ पुरुषों द्वारा किये जाने वाले शारीरिक एवं मानसिक शोषण को उजागर किया जाना चाहिए।

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निजी अनुभवों की सांझ-1

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चिकित्सक के पास आप जाएं। जिस दुकान से दवाइयां आएंगी वहां चिकित्सक महोदय का कमीशन तय है। इसलिए दवाइयां आपको महंगी लिखी जाएंगी। यह जानते हुए भी कि महंगी दवाइयां शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। फिर भी भारी और महंगी दवाई क्रय करने के लिए आपको बाध्य किया जाएगा। जिससे आप उन्हें क्रय करें और चिकित्सक का कमीशन ठीक बन सके। रक्त परीक्षण, मधुमेह परीक्षण, सीटी स्कैन आदि के लिए आपको एक चिकित्सक महोदय दूसरे चिकित्सक के लिए संस्तुति प्रदान कर देंगे। इस मानवीय दृष्टिकोण के पीछे भी 'कमीशन' का भूत छिपा होता है।

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