वर्तमान नेपाल के समक्ष चुनौतियां एवं समाधान
Updated: September 20, 2025
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सरकारी नौकरी: सुरक्षा या मानसिकता?
Updated: September 20, 2025
राजस्थान में चपरासी के 53 हजार 749 पदों पर भर्ती के लिए लाखों उच्च शिक्षित युवाओं के आवेदन करने से कई सवाल खड़े हो गए हैं अमरपाल सिंह वर्मा राजस्थान में हाल ही में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (चपरासी) के 53 हजार 749 पदों पर भर्ती के लिए जो आवेदन आए, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इन पदों के लिए कुल 24 लाख 75 हजार बेरोजगार युवाओं ने आवेदन किया है। इस भर्ती के लिए निर्धारित शैक्षणिक योग्यता दसवीं कक्षा पास है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि आवेदकों में से करीब 75 प्रतिशत अभ्यर्थी दसवीं पास से कहीं ज्यादा शिक्षित हैं, यानी इंजीनियरिंग, प्रबंधन, वाणिज्य, कम्प्यूटर विज्ञान में स्नातक से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई करने वाले युवा भी अब चपरासी बनने की कतार में खड़े हैं। यह तस्वीर केवल राजस्थान की नहीं है बल्कि पूरे देश में बेरोजगारी का यही स्वरूप दिखाई देता है। जब लाखों पढ़े-लिखे युवा एक मामूली चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था, रोजगार नीति और सामाजिक सोच युवाओं को किस दिशा में ले जा रही है? हमारे समाज में सरकारी नौकरी को अब भी सबसे सुरक्षित और सम्मानजनक कॅरियर माना जाता है। अब तो कन्या पक्ष विवाह के लिए भी सरकारी नौकरी वाले लडक़े को ही तरजीह देता है। स्थाई वेतन, पेंशन जैसी सुविधाएं और सामाजिक प्रतिष्ठा युवाओं को इस ओर आकर्षित करती है लेकिन आज चपरासी बनने के लिए भी जिस हद तक भीड़ उमड़ रही है, उसे जाहिर है कि सरकारी नौकरी के प्रति मोह एक जुनून बन चुका है। युवा वर्ग स्वरोजगार, निजी क्षेत्र या पैतृक व्यवसाय की बजाय सरकारी नौकरी पाने के लिए वर्षों तक परीक्षाओं की तैयारी में अपनी ऊर्जा खर्च कर रहा है। खेती की ओर तो अब किसान पुत्र भी नहीं झांक रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि लाखों युवा न तो समय पर रोजगार पा रहे हैं और न ही अपनी क्षमता का सही उपयोग कर पा रहे हैं। कई बार तो योग्यताओं के असंतुलन के कारण स्थिति और भी विकट हो जाती है। जब एक एमबीए या बीटेक छात्र चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करता है तो वह केवल खुद को ही नहीं बल्कि एक वास्तविक दसवीं पास बेरोजगार को भी प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देता है। राजस्थान में चपरासी भर्ती के लिए उच्च शिक्षित युवाओं की भीड़ उमडऩे से एक और गंभीर सवाल खड़ा हो गया है कि क्या हमारी शिक्षा युवाओं को वास्तव में रोजगार दिलाने लायक बना रही है? अगर लाखों स्नातक और स्नातकोत्तर केवल चपरासी बनने की चाह रखते हैं तो इसका सीधा मतलब है कि शिक्षा रोजगारोन्मुखी नहीं रही। शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री बांटना नहीं होना चाहिए बल्कि छात्रों को ऐसा कौशल और आत्म विश्वास देना चाहिए कि वे अपने दम पर रोजगार खड़ा कर सकें। दुर्भाग्य से आज अधिकांश युवा डिग्रीधारी तो हैं लेकिन कौशलहीन हैं। इसी वजह से वे निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते और अंतत: सरकारी नौकरी की दौड़ में लग जाते हैं। सरकार ने कौशल भारत मिशन और अन्य योजनाओं के जरिए कौशल विकास पर जोर तो दिया है लेकिन उसकी पहुंच और असर अब भी सीमित है। आईटी, कृषि, निर्माण, स्वास्थ्य और सेवा क्षेत्र में असीमित संभावनाएं हैं लेकिन वहां प्रशिक्षित और दक्ष लोगों की कमी बनी हुई है। आज स्टार्टअप संस्कृति पूरे देश में फैल रही है पर हमारे ग्रामीण और कस्बाई इलाकों के लाखों युवा इससे वंचित हैं। बड़ा सवाल है कि इस समस्या का समाधान क्या है? इसके लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। अगर उच्च शिक्षा के साथ युवाओं को कौशल आधारित प्रशिक्षण दिया जाए तो वे न केवल आत्म निर्भर बनेंगे बल्कि स्वरोजगार और उद्यमिता की राह भी चुन सकेंगे। सरकार की रोजगार नीतियों को व्यावहारिक बनाना होगा। समाज को भी सरकारी नौकरी की मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है। हर जिले में उच्च स्तरीय कौशल केंद्र विकसित कर आईटी, कृषि, निर्माण, मशीनरी और सेवा क्षेत्र की जरूरतों के अनुसार युवाओं को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। यदि सरकार युवाओं को छोटे उद्योग-व्यवसाय शुरू करने के लिए आसान ऋण, तकनीकी सहयोग और बाजार उपलब्ध कराए तो उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा। राजस्थान में चपरासी बनने के लिए लाखों युवाओं के उमडऩे से साफ है कि बेरोजगारी केवल आंकड़ों का खेल नहीं है बल्कि यह हमारी शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक सोच की विफलता का परिणाम है। स्वरोजगार भी सरकारी नौकरी जितना ही सम्मानजनक और सुरक्षित हो सकता है, युवाओं को यह भरोसा दिलाना होगा। परिवार और समाज को यह स्वीकार करना होगा कि रोजगार केवल सरकारी नौकरी तक सीमित नहीं है। स्वरोजगार, निजी क्षेत्र और पैतृक व्यवसाय भी उतने ही सम्मानजनक हैं। इनके जरिए न केवल आजीविका बल्कि समाज में मान-सम्मान भी हासिल किया जा सकता है। अमरपाल सिंह वर्मा
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Updated: September 19, 2025
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Updated: September 19, 2025
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Updated: September 19, 2025
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नेपाल-बांग्लादेश जैसी अराजकता की दुआ क्यों
Updated: September 19, 2025
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Updated: September 19, 2025
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Updated: September 19, 2025
(सहानुभूति से परे, कानून, शिक्षा, रोज़गार, मीडिया और तकनीक के माध्यम से बराबरी व सम्मान की ओर) भारत में करोड़ों दिव्यांगजन आज भी शिक्षा, रोज़गार,…
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युद्ध-आतंक के दौर में शांति के लिये भारत की पुकार
Updated: September 19, 2025
अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस- 21 सितम्बर, 2025
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मोदी-ट्रंप के सार्थक संवाद से क्या राह बदलेगी?
Updated: September 18, 2025
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Updated: September 18, 2025
विजय सहगल नेपाल की ओली सरकार द्वारा अपने देश में सोशल मीडिया पर लगाए प्रतिबंध के फलस्वरूप, 8 सितंबर 2025 को नेपाल के युवाओं मे उपजी क्रोधाग्नि से नेपाल…
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Updated: September 18, 2025
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