Home Blog Page 15

जब ट्रेनें बन जाएँ डर की सवारी: राप्तीसागर एक्सप्रेस पर पथराव, व्यवस्था पर बड़ा तमाचा


अशोक कुमार झा


18 मई 2025 की रात देश की प्रतिष्ठित लंबी दूरी की राप्तीसागर एक्सप्रेस पर जब सीवान-छपरा रेलखंड के बीच पत्थरों की बरसात हुई तो एक बार फिर देश की रेल सुरक्षा व्यवस्था, सामाजिक तंत्र और प्रशासनिक संवेदनशीलता कठघरे में खड़ी हो गई।
मुजफ्फरपुर के युवा यात्री विशाल कुमार के सिर पर पत्थर लगने से बहता लहू केवल उनकी देह से नहीं बल्कि व्यवस्था के माथे से भी बह रहा था।
यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि समाज के भीतर पनपते एक नंगे सच की अभिव्यक्ति थी—रेल की खिड़की पर बैठे 28 वर्षीय यात्री विशाल कुमार के सिर पर पड़ा पत्थर उसी अराजकता का प्रतीक था जो दिनों-दिन हमारी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर भारी पड़ती जा रही है।
यह घटना कोई नई नहीं, कोई अपवाद नहीं। इससे पहले 12 अप्रैल को एकमा के पास सीताराम एक्सप्रेस पर हुए पथराव में एक यात्री की भुजा टूट गई थी। देश के विभिन्न रेलखंडों में समय-समय पर इस तरह की घटनाएं होती रही हैं परंतु चिंता की बात यह है कि अब ये वारदातें न केवल बढ़ रही हैं बल्कि संगठित, उद्दंड और बेलगाम हो रही हैं।


दोनों घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि संगठित अपराध की ओर बढ़ता हुआ एक खतरनाक रुझान है, जो न केवल यात्रियों की जान को संकट में डाल रहा है, बल्कि पूरे रेलवे तंत्र की विश्वसनीयता को भी चोट पहुँचा रहा है।


घटना से उठते सवाल: क्या अब रेल सफर भी असुरक्षित है?
देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था—भारतीय रेलवे—हर दिन लगभग 2.3 करोड़ यात्रियों को ढोती है। यह केवल एक यातायात व्यवस्था नहीं, बल्कि हिंदुस्तान की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक धमनियों की जीवनरेखा है। ऐसे में अगर उसी व्यवस्था की ट्रेनें अब असुरक्षा, भय और हमलों की शिकार बनें, तो यह राष्ट्र के लिए चेतावनी की घंटी है।


राप्तीसागर एक्सप्रेस जैसी प्रतिष्ठित सुपरफास्ट ट्रेन में RPF की सशस्त्र स्कॉर्टिंग टीम मौजूद रहती है, फिर भी यदि कोच S-3 में बैठा यात्री पत्थरबाज़ी से घायल हो जाए तो यह प्रश्न उठता है कि सुरक्षा टीम की सीमा कहाँ तक है? क्या सुरक्षा केवल एसी डिब्बों तक सीमित रह गई है? क्या जनरल कोच के यात्री दोयम दर्जे के नागरिक बनकर यात्रा कर रहे हैं?


रेल पटरियों पर कौन फैला रहा दहशत?
यह सवाल अब महज़ एक सुरक्षा तकनीकी प्रश्न नहीं रहा। यह अब सामाजिक पतन, प्रशासनिक लापरवाही और सरकार की ज़िम्मेदारी पर भी प्रश्नचिन्ह बन चुका है। रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने स्वीकार किया है कि पथराव बड़हेरवा और डुमरी के बीच हुआ और आसपास की बस्तियों से असामाजिक तत्वों द्वारा ऐसी घटनाएं अंजाम दी जा रही हैं। सवाल यह है—क्या रेलवे को इस खतरे की पूर्व जानकारी नहीं थी? क्या अप्रैल की घटना के बाद पर्याप्त कार्रवाई हुई थी? अगर हाँ, तो फिर मई में वही दृश्य दोबारा क्यों दोहराया गया?
आज रेलवे ट्रैक के किनारे बसे गांवों में बेरोजगारी, नशाखोरी और शैक्षिक पिछड़ापन ऐसा विषैला माहौल बना रहे हैं जो बच्चों को खेल की जगह हिंसा और अपराध की ओर धकेल रहा है। जब ट्रेन गुजरती है तो कुछ युवा मस्ती के नाम पर जानलेवा पत्थर चलाते हैं और फिर अंधेरे में गायब हो जाते हैं। यह महज़ बचकानी शरारत नहीं, यह संगीन अपराध है। रेलवे एक्ट की धारा 153 के तहत ऐसे हमलों में पाँच साल तक की सजा का प्रावधान है—पर सवाल यह है कि इस कानून को लागू कितनी बार किया गया?


यह पत्थरबाज़ी नहीं, सामाजिक विद्रूपता है
रेलवे ने अपनी शुरुआती जांच में माना है कि यह हमला बड़हेरवा और डुमरी स्टेशनों के बीच हुआ। यह क्षेत्र ट्रैक किनारे बसी उन बस्तियों के समीप है जहाँ बार-बार ऐसे हमले होते रहे हैं। ऐसे क्षेत्रों में न तो सामाजिक चेतना है, न रोज़गार के अवसर, न बच्चों के लिए खेल-कूद की सुविधा, न शिक्षा का वातावरण। परिणामस्वरूप किशोर और युवा ‘मज़ाक’ के नाम पर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे बैठते हैं जो किसी की जान भी ले सकती हैं।


यह कोई बालपन की शरारत नहीं, बल्कि अपराध है और यह अपराध लगातार तब तक होता रहेगा, जब तक इस मानसिकता को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कोई दीर्घकालिक सामाजिक योजना नहीं बनाई जाती।


लंबी दूरी की गाड़ियाँ, लेकिन सुरक्षा में लंबी दूरी?
राप्तीसागर एक्सप्रेस जैसी सुपरफास्ट ट्रेनों में आमतौर पर RPF की स्कॉर्टिंग टीम मौजूद रहती है लेकिन यह टीम केवल एसी कोचों तक सीमित रहती है। जनरल बोगियों में तो मानो भगवान भरोसे ही यात्री यात्रा करते हैं। विशाल कुमार भी जनरल कोच S-3 में सफर कर रहे थे और हादसे के शिकार हो गए।
इस घटना ने साफ कर दिया है कि हिंदुस्तान की रेलवे सुरक्षा प्रणाली में एक वर्गीय असमानता भी पनप रही है—जहाँ ए सी कोच की निगरानी तो डिजिटल तकनीक से होती है, वहीं जनरल कोच को रामभरोसे छोड़ दिया गया है। यह असमानता भविष्य में और गहरा संकट खड़ा कर सकती है।


तकनीकी उपाय बनाम जमीनी सच
रेलवे ने आश्वासन दिया है कि घटना के बाद मोबाइल पेट्रोलिंग बढ़ाई गई है, CCTV फुटेज खंगाले जा रहे हैं और ड्रोन सर्वे की तैयारी की जा रही है। वरिष्ठ RPF अधिकारी आशीष कुमार ने कहा कि दोषियों पर रेलवे अधिनियम की धारा 153 के तहत कार्रवाई की जाएगी, जिसमें पांच वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है।
परंतु क्या केवल तकनीकी उपाय पर्याप्त हैं? क्या ड्रोन फुटेज देखकर अपराधी पकड़े जाएँगे? और यदि पकड़ लिए गए, तो क्या अगली पीढ़ी से पथराव बंद हो जाएगा ?


इस सवाल का उत्तर “नहीं” है।
जब तक सामाजिक परिवर्तन नहीं होगा, जब तक ट्रैक किनारे बसे लोगों को रेलवे की अहमियत और उसकी मारक क्षमता का बोध नहीं कराया जाएगा, तब तक ये हमले रुकने वाले नहीं हैं।


रेलवे ट्रैक के किनारे: सामाजिक पुनर्गठन की ज़रूरत
भारत में हज़ारों किलोमीटर रेल पटरियों के किनारे झुग्गी-बस्तियाँ बसी हुई हैं। अनेक लोग वर्षों से वहीं निवास करते आ रहे हैं। रेलवे की भूमि पर बसे इन निवासियों के पास न तो पहचान है, न अधिकार। वे कानून से बाहर और सरकार की निगाहों से दूर रहते हैं।
यह आवश्यक है कि रेलवे, राज्य सरकारें और सामाजिक संस्थाएँ मिलकर ऐसे क्षेत्रों के लिए विशेष पुनर्वास और सुधार योजनाएँ बनाएं, जिसमें—

·  प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना

·  व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र

·  सामुदायिक काउंसलिंग

·  मोबाइल पुलिस चौकियाँ

·  CCTV निगरानी टॉवर

·  और स्वयंसेवी संगठनों की सक्रिय भूमिका तय की जाए।

यही उपाय हैं जो पत्थर फेंकते हाथों को औजार थमाने और दिशाहीन युवाओं को सृजनात्मक जीवन की ओर मोड़ने का काम करेंगे।


कानून के डर की पुनर्स्थापना जरूरी
पिछले कुछ वर्षों में ऐसे हमलों में किसी बड़े दोषी को सज़ा मिलने की खबरें नगण्य रही हैं। रेलवे एक्ट की धारा 153, भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या की कोशिश) या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के कड़े प्रावधान तब तक काग़ज़ी हैं, जब तक उनका प्रभाव धरातल पर न दिखे।
यही कारण है कि अपराधियों में कानून का भय नहीं है। हमें ऐसी घटनाओं में तेज़ न्याय, मीडिया ट्रायल से आगे जाकर न्यायिक ट्रायल और दोषियों के विरुद्ध उदाहरण स्वरूप सज़ा दिलाने की ज़रूरत है।


राजनीतिक चुप्पी भी शर्मनाक
हैरानी की बात है कि ऐसी घटनाएँ होने के बावजूद न तो क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि सामने आए, न राज्य सरकार ने कोई विशेष बयान दिया। देश की संसद में भी इस विषय पर कोई गूंज नहीं हुई।


क्या हमारे जनप्रतिनिधियों की संवेदनशीलता अब सिर्फ चुनाव क्षेत्र और जातीय गणित तक सिमट गई है? क्या आम जनता की जान की कीमत अब वोट बैंक की प्राथमिकता से भी कम हो गई है?


अगर रेल यात्री अब ट्रेनों में डर से सफर करने लगे, तो यह लोकतंत्र की हार है।
क्या यात्री भी बनें प्रहरी?
RPF ने यात्रियों से अपील की है कि किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना 182 हेल्पलाइन पर दें और वीडियो/फोटो भेजें। यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसके साथ यह विश्वास भी देना होगा कि—

·  आपकी पहचान गोपनीय रहेगी

·  सूचना देने वालों को प्रोत्साहन व सुरक्षा मिलेगी

·  कार्रवाई शीघ्र होगी

परंतु आम नागरिक को ‘सुरक्षा प्रहरी’ बनाना तभी संभव हो पायेगा, जब उसकी शिकायतों को गंभीरता से लिया जाए, उसका डेटा सुरक्षित रखा जाए और अपराधियों पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।


क्योंकि कोई यात्री अपने मोबाइल से वीडियो या फोटो तभी भेजेगा, जब उसे यह भरोसा होगा  कि वह सरकारी मशीनरी का हिस्सा बन रहा है—न कि महज़ एक ‘क्लिक’ जिसे फाइलों में दबा दिया जाएगा। जब तक यात्री का सरकार और प्रशासन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं हो पायेगा, तबतक वह ‘सुरक्षा भागीदार’ बनने से हिचकता रहेगा और इस कार्य से अपनी दूरी बनाये रखेगा।

यह केवल ट्रेन पर हमला नहीं, यह राष्ट्र की आत्मा पर चोट है
राप्तीसागर एक्सप्रेस पर हुआ पथराव यह दर्शाता है कि हमने तकनीकी प्रगति तो कर ली है, पर सामाजिक चेतना में हम अब भी पिछड़े हैं। यह हमला एक यात्री पर नहीं, पूरे राष्ट्र की आवाजाही, आत्मा और संवेदना पर है।


राप्तीसागर एक्सप्रेस पर हुआ यह हमला एक यात्री के सिर पर नहीं, हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था की गरिमा पर भी चोट है। यह हमला उस भरोसे पर है, जिससे करोड़ों लोग हर रोज़ भारतीय रेलवे की सेवाओं का उपयोग करते हैं। अगर रेल पटरियाँ असुरक्षित हो गईं, तो देश की अर्थव्यवस्था, एकता और सामाजिक संतुलन पर इसका असर तय है।


ट्रेनें सिर्फ लोहे की गाड़ियाँ नहीं होतीं। वे समाज के सपनों, आशाओं और विश्वासों की प्रतीक होती हैं। यदि उनकी खिड़कियों से अब खून बहने लगे तो समझ लीजिए, यह केवल रेल का मामला नहीं—यह राष्ट्र की चेतना पर हमला है।
अब वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार, रेलवे मंत्रालय, राज्य प्रशासन और समाज मिलकर ऐसी घटनाओं पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएं। साथ ही, रेलवे ट्रैक किनारे बसे क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा से जुड़े दीर्घकालिक कार्यक्रमों की शुरूआत की जाए।


हमें अब यह तय करना होगा कि क्या हम इस देश को ऐसी असामाजिक मानसिकता के हाथों सौंप देंगे? या फिर पूरी गंभीरता से व्यवस्था, समाज और नेतृत्व मिलकर इन घटनाओं को जड़ से खत्म करने की रणनीति बनाएँगे?
जब तक रेलवे केवल ‘लाल फीता’ और ‘फील्ड नोट्स’ तक सीमित रहेगी, तब तक राप्तीसागर एक्सप्रेस जैसे नाम सिर्फ भय के प्रतीक बनते रहेंगे। हमें पटरियों को सिर्फ लोहे की नहीं, भरोसे की भी ज़ंजीर बनाना होगा।

अशोक कुमार झा

 हंगामा है क्यों बरपा…

सर्व दलीय प्रतिनिधि मंडलों का गठन 

बाकी सब ठीक, पर देशहित प्रथम 

डॉ घनश्याम बादल

   पहलगाम की आतंकवादी घटना के बाद यह तय था कि भारत एक्शन लेगा और एक्शन लिया गया जिसकी परिणीति 6 व 7 मई की रात में पाकिस्तान के 9 आतंकवादी ठिकानों को तहस-नहस कर देने वाली कार्रवाई के रूप में हुई । चोट खाए पाकिस्तान ने भी अपने पाले हुए आतंकवादियों का पक्ष लेते हुए भारत पर पलट कर हमला करने की कोशिश की जो नाकाम रही । 

   बात-बात में परमाणु बम की धमकी  एवं गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान की हालत केवल चार दिन के जंग के बाद ही खस्ता हो गई और जब भारत में उसके तेरह में से ग्यारह एयरबेस क्षतिग्रस्त कर दिए और कम से कम छह पूरी तरह तबाह कर दिए व उसकी मिसाइलें एवं लड़ाकू विमान मार गिराए तथा ब्रह्मोस का प्रयोग करते हुए (यदि मीडिया की रिपोर्ट को सच माने तो)  उसे परमाणु बम के उपयोग करने की संभावना से भी वंचित कर दिया, तब आनन फानन में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ट्वीट करके दुनिया को इस संघर्ष विराम या सीज फायर की जानकारी दी तो एक तरह से दक्षिण एशिया एवं दुनिया ने राहत की सांस ली । 

     वहीं यदि डोनाल्ड ट्रंप के वक्तव्य को मानें तो लाखों लोग मरने से बचे लेकिन यहीं से देश में राजनीतिक उठा पटक शुरू हो गई । विपक्ष ने मुखर होकर पूछा कि ऐसे क्या कारण थे जिसकी वजह से अचानक ही संघर्ष विराम की घोषणा करनी पड़ी और विभिन्न कोणों से सरकार पर जब हमले हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को देश को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर समाप्त नहीं हुआ है. अभी तो उसे केवल स्थगित किया गया है। साथ ही साथ उन्होंने कड़े शब्दों में पाकिस्तान एवं आतंकवादियों सहित दूसरे देशों को भी चेतावनी दे दी की भारत के आंतरिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप सहन नहीं किया जाएगा तथा आतंकवाद  की किसी भी घटना को ‘एक्ट आफ वार’ समझा जाएगा जिसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। 

   भले ही सरकार एवं विभिन्न रक्षा विशेषज्ञों की दृष्टि में भारत का पलड़ा इस संघर्ष में भारी रहा तथा पाकिस्तान को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा लेकिन दुनिया में अपना पक्ष रखना भी बहुत ज़रूरी था, इसलिए भारत सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडलों का गठन किया जिनका नेतृत्व जाने माने नेताओं को सौंपा गया।  59 सदस्यों वाले इन साथ प्रतिनिधि मंडलों में लगभग सभी प्रमुख दलों के सदस्यों को शामिल किया गया लेकिन विवाद तब उठ खड़ा हुआ जब कांग्रेस ने अपनी ही पार्टी के नेता शशि थरूर को अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेता चुने जाने के बावजूद इस पर आपत्ति दर्ज कराई । कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि जिन चार नेताओं के नाम कांग्रेस ने दिए थे, उनमें से केवल आनंद शर्मा को ही प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया है और सरकार में अपनी मर्जी से ही शशि थरूर एवं सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं को कांग्रेस का प्रतिनिधि बनाकर भेजने का निर्णय लिया जो उसके लिए आपत्तिजनक है।

     एक तरह से देखे तो कांग्रेस का पक्ष अनुचित नहीं है क्योंकि हर दल को अपने उपयुक्त नेता को ऐसे प्रतिनिधि मंडलों में शामिल कराने का अधिकार है लेकिन सरकार का कहना है कि उसने ऐसी कोई सूची मांगी ही नहीं थी तथा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए जिन नेताओं को उसने योग्य पाया, उनका चयन इन प्रतिनिधि मंडलों में किया गया है । इस दृष्टि से सरकार का पक्ष भी सही है क्योंकि जब राष्ट्र की बात आती है तब दल नहीं, योग्यता प्रमुख हो जाती है और इसका उदाहरण स्वयं कांग्रेस की पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार ने उस समय दिया था जब 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का पक्ष रखने के लिए उसने अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में वहां प्रतिनिधिमंडल भेजा था तो कह सकते हैं कि ऐसी परंपरा की शुरुआत स्वयं कांग्रेस ने की थी। 

     वैसे ऐसा भी नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेशों में भेजे हैं. इससे पूर्व भी ऐसे प्रतिनिधिमंडल भेजे जाते रहे हैं. 2008, 1971 एवं 1965 में भी भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधि मंडलों को भेजा गया था। 

     जिस तरह भारत के सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर पाक की तरफ से खड़े किए गए इस संकट में साथ दिया, वह एक प्रशंसनीय कदम था लेकिन संघर्ष विराम के बाद से ही जिस तरह की राजनीति की जा रही है उससे इस बात का भी अंदेशा है कि सेना द्वारा लगभग जीते गए जंग की महत्ता को राजनीतिक प्रतिद्वंदिता कहीं महत्वहीन न कर दे । इसलिए सभी राजनीतिक दलों को चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, इस बात पर ध्यान देना होगा कि ऐसा परिदृश्य न प्रस्तुत करें कि दुनिया भर में भारत की जग हंसाई हो। 

    खैर, एक बार फिर से लौट कर चिंतन करते हैं कि इन प्रतिनिधि मंडलों के गठन का लक्ष्य क्या है तथा यह भारत के किस-किस पक्ष को दुनिया के सामने रखेंगे और पाकिस्तान षड्यंत्रों एवं आतंकवादी मानसिकता को बेनकाब करेंगे । भारत सरकार के एजेंडे के अनुसार यह प्रतिनिधिमंडल विभिन्न देशों में जाकर उन परिस्थितियों के बारे में अवगत कराएंगे जिनके चलते भारत को पलटकर वार करना पड़ा तथा किस तरह पाकिस्तान अपने पाले हुए आतंकवादियों के माध्यम से भारत को निरंतर संकट में डालता रहा है । साथ ही साथ उनका एक बिंदु यह भी होगा कि यदि पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या अन्य देशों द्वारा अनावश्यक रूप से आर्थिक सहायता दी जाती है तो यह देश इसका इस्तेमाल सभी शर्तों एवं नियमों का को अनदेखा करके एक बार फिर से हथियार खरीदने एवं आतंकवादियों को शहर देने के लिए करेगा। 

  यह तो सभी जानते हैं कि राजनीति में मुद्दों के साथ-साथ भावनाओं का भी दोहन किया जाता है और उनसे राजनीतिक लाभ लेने की भरसक कोशिश होती है। ऐसा करने में न सत्ता पक्ष गुरेज करता है न ही विपक्ष । अभी हम उस कठिन दौर से गुजर रहे हैं जहां एक तरफ देश के हित की बात है, वहीं साथ ही साथ अपने दल के हितों की रक्षा करने की भी घड़ी है। हर दल एवं नेता को अधिकार है कि वह अपनी हितों की रक्षा करें तथा प्रतिपक्षी पर पलटकर वार करें । 

  विपक्ष का काम है सरकार की कमियों को उजागर करना एवं उसे किसी भी तरह सत्ता से हटाने की कोशिश करना जबकि सरकार या सत्ता में बैठे हुए दल का प्रयास रहता है कि वह अपनी मठाधीशी बरकरार रखें और विपक्ष को सांसत में डाले रखें जिससे उसकी कुर्सी बची रहे । 

   यह सब ठीक है पर सबसे मुख्य बात तो वही है कि यदि देश सुरक्षित रहेगा तभी आपकी सत्ता तथा सत्ता में आने की संभावना भी सुरक्षित रहेगी इसलिए क्षणिक आवेश या निहित स्वार्थ के चलते यह उचित नहीं होगा कि भारत के हितों की अनदेखी की जाए।

डॉ घनश्याम बादल 

और कितने गद्दार?

संजय सिन्हा

भारत के गद्दारों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है।हर रोज नए गद्दारों के चेहरे बेनकाब हो रहे हैं। दअरसल ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को धूल चटा देने के बाद अब भारत में ऐसे लोगों की तलाश तेज हो गई है जो दुश्मन पड़ोसी देश के साथ गद्दारी कर रहे थे। हरियाणा से एक और ऐसे ही शख्स को गिरफ्तार किया गया है जिस पर पाकिस्तान के लिए जासूसी का आरोप है। यह हरियाणा से पांचवीं और नूंह जिले से दूसरी गिरफ्तारी है। इससे पहले यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा को हिसार और अरमान को नूंह से पकड़ा गया था। हरियाणा पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियों ने नूंह के तावड़ू सब डिवीजन के कंगारका गांव से तारिफ नाम के आरोपी को गिरफ्तार किया है। इस मामले में तावड़ू सदर पुलिस थाने में तारिफ के अलावा पाकिस्तानी हाई कमीशन के दो स्टाफ सदस्यों पर भी केस दर्ज किया गया है।पुलिस जांच में सामने आया है कि तारीफ वॉट्सऐप के जरिए दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में काम कर रहे दो पाकिस्तानी नागरिकों आसिफ बलोच और जाफर को भारत की सैन्य गतिविधियों की गुप्त जानकारी भेज रहा था। इस काम के बदले उसे पैसों की भी मदद मिलती थी।

गुप्त सूचना के आधार पर चंडीगढ़ पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने तावडू सीआईए और सदर थाना पुलिस के साथ मिलकर  उसे गांव बावला के पास से पकड़ा। पुलिस को देखते ही तारीफ ने अपने मोबाइल से कुछ चैट डिलीट करने की कोशिश की, लेकिन टीम ने मोबाइल जब्त कर जांच शुरू कर दी।जांच में उसके मोबाइल में पाकिस्तानी नंबरों से की गई चैटिंग, फोटो, वीडियो और सैन्य गतिविधियों से जुड़ी तस्वीरें मिलीं। तारीफ दो अलग-अलग सिम कार्ड से लगातार पाकिस्तान के संपर्क में था। पुलिस का कहना है कि तारीफ ने पाकिस्तान उच्चायोग में तैनात आसिफ बलोच और जाफर को भारत की खुफिया जानकारियां देकर देश की सुरक्षा को खतरे में डाला। इस मामले में नूंह जिले के तावडू सदर थाने में भारतीय दंड संहिता, ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट 1923 और देशद्रोह की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। पुलिस मामले की गहराई से जांच कर रही है।बेटे की गिरफ्तारी के बाद तारिफ के पिता हनीफ ने कहा कि पुलिस उसे उठाकर ले गई है। उन्हें कुछ बताया नहीं गया है। जासूसी के आरोपों को लेकर हनीफ ने बेटे का बचाव किया। पीटीआई से बातचीत में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में उनकी रिश्तेदारी है। हनीफ ने कहा, ‘पाकिस्तान में मेरे ताऊ रहते हैं। हम वहां जाते हैं। मैं, मेरा बेटा और बहू डेढ़ साल पहले गए थे लेकिन जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वो गलत हैं।’

नूंह जिले के राजाका गांव में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में दो दिन पहले ही 26 साल के अरमान को गिरफ्तार किया गया था। आरोपी अरमान को दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में तैनात एक कर्मचारी के जरिए भारतीय सेना और अन्य सैन्य गतिविधियों से संबंधित सूचनाएं पाकिस्तान को देने के आरोप में पकड़ा गया। अरमान वॉट्सऐप और सोशल मीडिया के जरिए खुफिया जानकारी शेयर कर रहा ता। पुलिस ने बताया कि जब उसके मोबाइल फोन की तलाशी ली गई तो उसमें पाकिस्तानी नंबरों से की गई बातचीत, फोटो और वीडियो मिले। आरोप है कि वह पाकिस्तानी ऑपरेटिव्स को सिम भी मुहैया कराता था।

आपको बताता चलूं कि भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अब एक हैरान कर देने वाली रिपोर्ट सामने आयी है जिसमें यह खुलासा किया गया है कि भारत और पाकिस्तान तनाव के बीच चीन ने पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारत की जासूसी की थी।चीन ने भारत की जासूसी ही नहीं की बल्कि सेटेलाइट डेटा भी पाकिस्तान को भेजा। रक्षा मंत्रालय से संबद्ध  एक रिपोर्ट में किये गये दो बड़े खुलासों ने सभी को चौंका दिया है। इस रिपोर्ट की सबसे अहम बात यह है कि यह खुलासा ऐसे समय पर हुआ है जब दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच संघर्ष पर विराम लग चुका है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद चीन की भूमिका सवालों में घेरे में आ गयी है। सरकार और खुफिया एजेंसियां अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय संदिग्ध तत्वों की निगरानी और जांच को और तेज करने की दिशा में स्वाभाविक ही काम कर रही है।इस दिशा में तेज और सख्त कदम उठाने की जरूरत है क्योंकि गद्दारों की फेहरिस्त में और भी कई कई नाम जुड़ सकते हैं।

संजय सिन्हा

ऑपरेशन सिंदूर से भारत ने क्या हासिल किया

राजेश कुमार पासी

पाकिस्तान के आतंकियों द्वारा कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में 26 भारतीयों की बड़ी बेरहमी से हत्या की गई थी। आतंकियो ने पर्यटकों का धर्म पूछ-पूछ कर हिन्दू पुरुषों को अपना शिकार बनाया । हिंदुओं की धार्मिक पहचान जानने के लिए उनकी पैंट उतारकर देखा गया कि वो हिन्दू ही हैं । इस घटना के बाद पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई थी और देश चाहता था कि सरकार इस दुर्दांत हमले का जवाब दे । 2014 से पहले जब भी देश पर आतंकी हमला होता था तो जनता कभी बदले की बात नहीं करती थी। इसके लिए कुछ दिन आतंकवादियों और उनके आका पाकिस्तान को कोसा जाता था फिर इसके बाद देश अपने रास्ते पर चल पड़ता था। सरकार हर आतंकी हमले के बाद उसका एक डॉजियर बनाकर पाकिस्तान को आतंकी संगठनों पर कार्यवाही करने के लिए भेज देती थी। भारत ऐसे हमलों के बाद दुनिया के प्रभावशाली देशों को भी पाकिस्तान पर दबाव डालने को कहता था लेकिन कहीं कुछ नहीं होता था। 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में आतंकियों ने सैन्य ठिकाने पर बड़ा हमला करके 18 सैनिकों को शहीद कर दिया।

इसके बाद पहली बार मोदी सरकार ने पाकिस्तान को कीमत चुकाने की चेतावनी दी और कुछ दिन बाद भारतीय सेना ने पीओके में घुसकर आतंकवादी कैम्प पर हमला करके कई दर्जन आतंकवादियो को मौत के घाट उतार दिया। पहली बार भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पाकिस्तान में घुसने की हिम्मत की थी । इसके बाद कश्मीर के पुलवामा में एक बड़ा आत्मघाती हमला करके आतंकवादियो ने 40 सीआरपीएफ जवानों को शहीद कर दिया। जनता ने फिर एक बार मोदी की ओर देखा तो मोदी जी ने बयान दिया कि इस हमले का जवाब दिया जाएगा । दो हफ्ते बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में बड़े आतंकवादी शिविर पर हमला करके सेकड़ो आतंकवादियों को ठिकाने लगा दिया। इस बार जब 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने 26 निर्दोष भारतीय नागरिकों की हत्या कर दी तो जनता ने फिर मोदी की ओर देखा कि क्या इस बार भी पाकिस्तान को सबक सिखाया जायेगा । प्रधानमंत्री मोदी और उनके कई नेताओं ने बयान दिया कि इस हमले की पाकिस्तान के आतंकियों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी । मोदी जी ने कहा कि इस बार भारत ऐसी कार्यवाही करेगा जिसकी आतंकवादियों और उनके पीछे बैठे उनके आकाओं ने कल्पना भी नहीं की होगी ।

               भारतीय सैन्य बलों ने 6-7 मई की रात को 1 बजे के बाद करीब आधे घंटे में पाकिस्तान में स्थापित 9 आतंकवादी शिविरों पर बड़ा हमला करके उन्हें मिट्टी में मिला दिया । देखा जाए तो इस बार भी भारत ने आतंकियों और उनके आका पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सिर्फ आतंकवादी अड्डों पर हमला किया था और पाकिस्तान को बता दिया गया कि हमने जो कार्यवाही करनी थी कर दी गई है। पाकिस्तान को कहा गया कि भारत ने सिर्फ आतंकवादी शिविरों पर हमला किया है, किसी भी सैन्य और नागरिक ठिकाने को निशाना नहीं बनाया गया है। अगर पाकिस्तान ने भारत के ऊपर हमला किया तो उसे बड़ा जवाब दिया जाएगा । इससे साबित होता है कि आतंकवादी शिविरों पर हमला करने के बाद भारत का लक्ष्य पूरा हो गया था, अगर पाकिस्तान भारत पर हमला नहीं करता तो मामला खत्म हो जाता । पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए ये असहनीय था कि भारत इतना बड़ा हमला करे और उन्हें चुप रहना पड़े, इसलिए 8 और 9 मई की रात में पाकिस्तान ने भारत पर बड़े हमले किये । वास्तव में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद जब मोदी सरकार को यह उलाहना दिया जा रहा था कि वो पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है तो बार-बार कहा जा रहा था कि जल्दी कार्यवाही की जाएगी। मोदी विरोधियों ने यह जानते हुए भी कि मोदी दो बार पाकिस्तान पर कार्यवाही कर चुके हैं और इस बार भी करेंगे, यह शोर मचाना शुरू कर दिया कि मोदी कुछ नहीं करने वाले हैं, जो करना था वो कर दिया है। सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के फैसले को लेकर मोदी जी का खूब मजाक बनाया गया कि जब नलका ही बंद करना था तो राफेल क्यों खरीदे गए थे। मोदी सरकार के लिए कार्यवाही करना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि उनके समर्थकों में कुछ न होने पर भारी निराशा और नाराजगी पैदा हो जाती। देखा जाए तो मोदी जी के लिए आतंकवाद के खिलाफ अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति के कारण कार्यवाही करना जरूरी था। 7 मई की कार्यवाही के मोदी जी का ये लक्ष्य पूरा हो चुका था।

अब सवाल उठता है कि मोदी सरकार ने कार्यवाही करने में इतना समय क्यों लिया । वास्तव में 8 और 9 मई को पाकिस्तान ने भारत पर जो हमला किया था उसकी मोदी सरकार को पूरी आशंका थी । मोदी सरकार चाहती तो तीन चार दिन में पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर कार्यवाही कर सकती थी लेकिन पाकिस्तान के जवाबी हमले की तैयारी करने के लिए इतना समय लिया गया था। कोई नहीं कह सकता कि भारत और पाकिस्तान के बीच छोटी सी झड़प कब बड़े युद्ध का रूप ले सकती है इसलिए युद्ध की तैयारी के बाद ही सरकार ने कार्यवाही की थी। 

             देखा जाए तो भारत और पाकिस्तान के बीच पूरा युद्ध नहीं हुआ है बल्कि एक बड़ा संघर्ष हुआ है। हो सकता था कि पाकिस्तान भारत के साथ युद्ध में चला जाता लेकिन सिर्फ तीन दिन की कार्यवाही में भारत ने पाकिस्तान की ऐसी हालत कर दी कि युद्ध के आगे बढ़ने में पाकिस्तान को अपनी सम्पूर्ण बर्बादी नजर आने लगी । यही कारण है कि वो कई देशों के आगे जाकर गिड़गिड़ाया और बाद में भारत के साथ संघर्ष को विराम लग गया। वैसे देखा जाए तो युद्ध में दोनों पक्षों का नुकसान होता है, किसी का कम होता है और किसी का ज्यादा होता है लेकिन फायदा सिर्फ एक पक्ष का होता है जो जीतता है। भारत को इस संघर्ष में बड़ी जीत मिली है तो उसके फायदे भी बड़े हैं। भारत का आतंकी शिविरों पर कार्यवाही करने का उद्देश्य यह था कि आतंकवादियों को संदेश दिया जाए कि वो भारतीय नागरिकों की हत्या करके कहीं छुप नहीं सकते । वो हमला करके पाकिस्तान में जाकर कार्यवाही से बच नहीं सकते । पाकिस्तान और उसके गुर्गे आतंकियो को भारत ने संदेश दे दिया कि वो उन्हें पाकिस्तान में घुसकर तबाह कर सकता है। भारत ने अपना लक्ष्य पूर्ण रूप से प्राप्त किया कि वो आतंकी और उनके सरगनाओं को उनके ठिकानों में ही दफन कर सकता है और पाकिस्तान उन्हें बचा नहीं सकता । इसके अलावा मोदी जी ने अपने देशवासियों को भी संदेश दे दिया कि उनकी हत्या करके कोई आतंकी पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं रह सकता और मोदी सरकार उन्हें उनके पापों का दंड देने के लिए कुछ भी कर सकती है, यहां तक कि पाकिस्तान से युद्ध करने से भी पीछे नहीं हटेगी । भारत की कार्यवाही के बाद उसका उद्देश्य पूरा हो गया था लेकिन जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया और भारत ने उसका बड़ा घातक जवाब दिया तो भारत को वो हासिल हुआ जिसके बारे में सोचा नहीं गया था।

           भारत ने दिखा दिया है कि वो बिना किसी की मदद के पाकिस्तान को जवाब दे सकता है. उसे किसी की जरूरत नहीं है ।   तुर्की और चीन  दोनों देश भारत विरोधी है , इसलिए पाकिस्तान के साथ खड़े थे। वैसे इससे भारत को बड़ा फायदा हुआ है क्योंकि इस संघर्ष में पाकिस्तान ने तुर्की और चीन के हथियारों का इस्तेमाल किया लेकिन भारत के सामने वो बेकार साबित हुए । इस युद्ध में साबित हो गया कि तुर्की के वो ड्रोन भारत के सामने बेकार हैं जिनका पूरी दुनिया में डंका बज रहा है। चीन के हथियार किसी काम के नहीं हैं, इस संघर्ष में साबित हो गया। भारत ने इस संघर्ष से अनजाने में इतना बड़ा लक्ष्य हासिल कर लिया जिसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था । भारत ने साबित कर दिया कि मेक इन इंडिया के हथियार कितने घातक और असरदार हैं । आने वाले समय में भारत के लिए हथियारों का बड़ा बाजार खुलता दिखाई दे रहा है और चीन की दुकान बन्द होती नजर आ रही है। इसके अलावा भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया कि आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही करने से उसे कोई नहीं रोक सकता और भारत के लिए आतंकी कार्यवाही युद्ध है और भारत आतंकी हमले का जवाब युद्ध से दे सकता है। भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया है कि पाकिस्तान जैसा देश उसके मुकाबले बहुत कमजोर है और भारत चीन से मुकाबला कर सकता है।

चीन की बढ़ती दादागिरी के खिलाफ भारत को कई देशों का साथ मिल सकता है क्योंकि भारत अब  कमजोर देश नहीं रहा । भारत ने सिर्फ कुछ मिनटों की कार्यवाही में पाकिस्तान के 11 एयरबेस बर्बाद करके दिखा दिया कि पाकिस्तान को वो कभी भी बर्बाद कर सकता है और पाकिस्तान के पास भारत से लड़ने की शक्ति नहीं है। जो देश पाकिस्तान के जरिये भारत को बर्बाद करने की मंशा रखते हैं उन्हें भारत ने बड़ा संदेश दे दिया है। भारत अपने मेक इन इंडिया के उन्नत और भरोसेमंद हथियारों के दम पर कई देशों का सुरक्षा प्रदाता बनकर उभर सकता है। भारत ने अपने हथियारों से दिखा दिया है कि वो अपनी मारक क्षमता में किसी भी देश से कम नहीं है और सबसे सस्ते हैं । भारत अब विदेशी हथियारों के बिना भी अपनी सुरक्षा कर सकता है। भारत ने इस युद्ध से जो हासिल किया है उसका फायदा धीरे-धीरे महसूस होने लगेगा । सबसे बड़ी बात भारत ने इस युद्ध के बाद पाकिस्तान की परमाणु बम वाली धमकी को हमेशा के लिए दफन कर दिया है । भारत ने सिंधु जल समझौता निलंबित करके पाकिस्तान के लिए हाथ जोड़कर गुहार लगाने का रास्ता तैयार कर दिया है ।

राजेश कुमार पासी

‘रेस4’ में नहीं होगे हर्षवर्धन राणे

सुभाष शिरढोनकर

‘रेस’ के चौथे सीक्वल ‘रेस 4’ का दर्शक लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। इसकी स्टार कास्ट को लेकर अलग-अलग नाम सामने आ रहे हैं। फिल्म में एक्‍टर हर्षवर्धन राणे के के साथ-साथ एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह के होने की खबरें एक लंबे वक्‍त से सुर्खियों में बनी हुई हैं।  

लेकिल फिल्‍म के प्रोड्यूसर रमेश तौरानी ने इस बारे में सारी अफवाहों पर विराम लगाते हुए हाल ही में बताया कि ‘रेस 4’ के लिए उन्होंने दो बॉलीवुड सितारों सैफ अली खान और सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ चर्चा की हैं, जो अभी अपने स्क्रिप्टिंग फे़ज में है।  

रमेश तौरानी ने आगे कहा- ‘इस लेवल पर किसी दूसरे मेल या फीमेल एक्टर से कॉन्टैक्ट नहीं किया गया है। हम मीडिया और सोशल मीडिया पेजों से रिक्वेस्ट करते हैं कि वे झूठी खबरों से बचें और हमारी पीआर टीम से ऑफिशियल कंफर्मेशन का इंतजार करें।’

हर्षवर्धन राणे पिछले दिनों अपनी डेब्यू फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ (2016) की री-रिलीज पर हिट होने को लेकर चर्चा में थे। पिछले साल फिल्‍म की री-रिलीज पर इसने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया।  

एक्टर हर्षवर्धन राणे ने एक्टिंग करियर की शुरुआत 2007-2008 के टीवी शो ‘लेफ्ट राइट लेफ्ट’ से की थी। इसके बाद वह हैदराबाद चले गए जहाँ उन्होंने तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखते हुए फिल्म ‘थकिता थकिता’ (2010) से बड़े पर्दे पर डेब्यू किया।

इसके बाद उन्होंने कई तेलुगु फिल्मों में काम किया जिनमें ‘नाइष्‍तम’ (2012), ‘अवुनू’ (2012), ‘प्रेमा इश्‍क काधाल’ (2013), ‘अनामिका’ (2014) और ‘माया’ (2014) के नाम शामिल हैं।

साल 2016 में उन्होंने रोमांटिक फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ के जरिए हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया। इस फिल्म में उन्होंने पाकिस्तानी एक्ट्रेस मावरा हॉकेन के अपोजिट इंदर लाल परिहार का किरदार निभाया।

फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर औसत प्रदर्शन ही किया लेकिन इस फिल्‍म ने न केवल हर्षवर्धन को पहचान दिलाई, बल्कि इसके लिए उन्हें स्टारडस्ट अवॉर्ड फॉर सुपरस्टार ऑफ टुमॉरो (पुरुष) के लिए नामांकन भी मिला।

इसके बाद उन्होंने फिल्‍म ‘तैश’ (2020) और ‘हसीन दिलरुबा’ (2021), जैसी फिल्मों में काम किया। पिछली बार वो दिव्या कुमार खोसला की फिल्‍म ‘सवी’ (2024) में नजर आए.

अब उनके पाइपलाइन में ‘सनम तेरी कसम 2’, ‘कुन फाया कुन’, ‘मिरांडा बॉयज’ और ‘दीवानियत’ जैसी फिल्में हैं। ‘दीवानियत’ में उनके साथ सोनम बाजवा नजर आएंगी।   

हर्षवर्धन राणे का जन्म 16 दिसंबर 1983 को आंध्र प्रदेश के राजमहेंद्रवरम में हुआ लेकिन उनका पालन-पोषण मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ।  उनके पिता विवेक राणे एक मराठी भाषी डॉक्टर थे और उनकी माँ तेलुगु मूल की एक गृहिणी हैं।

हर्षवर्धन ने दिल्ली के शहीद भगत सिंह कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। मुंबई आकर उन्होंने बैरी जॉन एक्टिंग स्टूडियो से अभिनय की औपचारिक ट्रेनिंग भी ली।  

हर्षवर्धन की जिंदगी संघर्षों से भरी रही। एक एक्‍टर के रूप में स्‍थापित होने के पहले उन्‍होंने कई छोटे-मोटे काम करते हुए काफी स्ट्रगल देखा है लेकिन आखिरकार वह बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड या गॉडफादर के अपनी मेहनत, लगन और प्रतिभा के दम पर इंडस्ट्री में अपनी एक खास पहचान बना पाने में कामयाब हुए।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने ‘मोस्ट डिजायरेबल मैन’ सूची में हर्षवर्धन राणे को 2016 से लगातार पाँच बार शामिल किया।

अपनी फिटनेस के लिए जाने जाने वाले हर्षवर्धन नियमित रूप से जिम में वर्कआउट करते हैं। पिछले कुछ समय से वह को-स्टार किम शर्मा के साथ डेटिंग की चर्चाओं की वजह से काफी सुर्खियों में हैं।   

सुभाष शिरढोनकर

बलूचिस्तान को सही इतिहास पढ़ना होगा

बलूचिस्तान

आजकल बलूचिस्तान बहुत चर्चा में है। इस समय जब बलूचिस्तान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और वह पाकिस्तान से स्वतंत्रता चाहता है तो उसके इतिहास को जानने की जिज्ञासा होना भी स्वाभाविक है। लोगों की इस बात में रुचि बढ़ती जा रही है कि अंततः बलूचिस्तान का अतीत क्या है ? सोशल मीडिया पर इस संबंध में जितनी भर भी पोस्टस देखी जा रही हैं, उन सभी में उन निराशाजनक तथ्यों को दोहराने का प्रयास किया जा रहा है जो हमारे देश के वैदिक अतीत के साथ विश्वासघात करने वाले इतिहासकारों या लेखकों द्वारा स्थापित कर दिए गए हैं। इसके उस गौरवशाली इतिहास को नहीं बताया जा रहा है, जब यह भारत के आर्यावर्त या जंबूद्वीप का एक भाग हुआ करता था।
हमें यह तथ्य ध्यान रखना चाहिए कि यदि बलूचिस्तान के इतिहास के साथ गद्दारी की गई है तो वह मुस्लिम इतिहास लेखकों द्वारा की गई है। बलूचिस्तान प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यह आर्य राजाओं या सम्राटों के अधीन रहा है और भारत के वैदिक दर्शन और चिंतन को प्रमुखता से प्रचारित प्रसारित करने का दीर्घकाल तक कार्य करता रहा है। हमारा आपका यदि थोड़ी सा भी भारतीय इतिहास और इतिहास की परंपराओं में विश्वास है तो वर्तमान काल में इतिहास संबंधी स्रोतों के माध्यम से जिस प्रकार भारतीय इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने का काम निरंतर जारी है, उस पर हमें नए दृष्टिकोण और नई सोच के साथ अपना मत स्थापित करना चाहिए।
हमें विकिपीडिया बताता है कि “प्रागैतिहासिक बलूचिस्तान का इतिहास पुरापाषाण काल से ही है।” इस संबंध में हमें ध्यान रखना चाहिए कि ‘ पुरापाषाण’ नाम का कोई काल नहीं है। वैदिक दृष्टिकोण से आप देखेंगे तो सृष्टि के प्रारंभ से आज तक कालों का विभाजन पुरापाषाण काल या उत्तर पाषाण काल आदि के नाम से कहीं नहीं किया गया है। हमारे यहां मन्वंतर, युग आदि की व्यवस्था है। उस पर हमको चिंतन मंथन करना चाहिए और उसके दृष्टिकोण से इतिहास और इतिहास की परंपराओं का समीक्षण करना चाहिए। मानव जाति के ज्ञात इतिहास के प्रत्येक युग में हमने ज्ञान विज्ञान के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस बात के दृष्टिगत इतिहासकारों की इन कपोल कल्पनाओं पर विश्वास नहीं करना चाहिए कि एक युग ऐसा था जब मनुष्य के पास अग्नि का ज्ञान नहीं था, या औजार बनाने का ज्ञान नहीं था या अमुक – अमुक कमियां उसके ज्ञान में थीं ?
इसके विपरीत हमें यह मानना चाहिए कि सृष्टि के प्रारंभ से ही मनुष्यों को ज्ञान – विज्ञान की गंभीरतम जानकारी थी । इसलिए किसी काल में मनुष्य के पास औजार नहीं थे या उसका अग्नि से परिचय नहीं था या उसके बौद्धिक विवेक की सीमाएं बहुत सीमित थीं आदि आदि पर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए। समझना चाहिए कि जिस मानव जाति को परमपिता परमेश्वर ने सृष्टि के प्रारंभ में वेद जैसा ग्रंथ दिया जो ज्ञान विज्ञान का भंडार है, उस मानव जाति को इस प्रकार की अवैज्ञानिक पद्धतियों में विभाजित करना मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
ऐसी परिस्थितियों में हमें बलूचिस्तान के बारे में समझना चाहिए कि यह कभी आर्यावर्त और जंबूदीप का ही एक भाग रहा है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र का कोई अन्य नाम हो सकता है। उस पर अनुसंधान होना चाहिए।
हमें बताया जाता है कि “बलूचिस्तान में लगभग 7000 ईसा पूर्व की प्राचीन मानव बस्तियों के प्रमाण मिले हैं।” इस तथ्य को हमें इस दृष्टिकोण से समझना चाहिए कि इस समय भारत का वैदिक सृष्टि संवत एक अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 126 वां चल रहा है। यदि मानव मानव जाति का इतिहास इतना पुराना है तो हम बलूचिस्तान के इतिहास को पिछले मात्र 7000 वर्ष के इतिहास में समेट कर नहीं देख सकते। विशेष रूप से तब जब यह मानव सृष्टि की निर्माण स्थली अर्थात भारत देश के सबसे अधिक निकट रहा हो या उसका एक भाग रहा हो। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि ऐसी परिस्थितियों में यहां पर भी मानव जाति के लोगों ने इतने दीर्घकाल में अनेक प्रकार के कीर्तिमान स्थापित किए होंगे। उनके उन सारे प्रयासों, कीर्तिमानों और इतिहास बनाने के महत्वपूर्ण कार्यों को उपेक्षित कर आप केवल पिछले 7000 वर्ष में इस क्षेत्र के इतिहास को समेट कर नहीं देख सकते। जिन मूर्खों ने मानव सृष्टि को पिछले 5000 से 10000 वर्ष के कालखंड में समेटने का अतार्किक कार्य किया है, उनकी दृष्टि से बलूचिस्तान का इतिहास पिछले 7000 वर्ष में समेटने का काम केवल इसलिए किया गया है कि इस पर भारत की दावेदारी किसी प्रकार की न बनने पाए।
भारत की सभ्यता संस्कृति के तथ्यों के साथ खिलवाड़ करने वाले मूर्ख इतिहासकारों ने ग्रीक को बहुत कुछ अधिक बढ़ा- चढ़ाकर प्रस्तुत करने का काम किया है। इसके पीछे केवल एक धारणा है कि प्राचीन काल में केवल एक भारत ही मानव जाति के ‘पिता’ के रूप में दिखाई नहीं देना चाहिए । इसके विपरीत सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए। इस मानसिकता के फलस्वरुप ग्रीक को भी एक प्राचीन सभ्यता के रूप में अर्थात मानव जाति के एक और पिता के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया गया है। ऐसे लोगों की मान्यता है कि “ग्रीक ऐतिहासिक अभिलेखों में इस क्षेत्र के अस्पष्ट संकेत लगभग 650 ईसा पूर्व में पाए गए थे।”
इस प्रकार के तथ्यों को समझने, पढ़ने और देखने से हमारी बुद्धि चकरा जाती है । विमर्श को कुछ इस प्रकार से स्थापित किया जाता है कि हम जो कुछ लिखा होता है उसी के साथ अपनी बुद्धि को समन्वित करते चले जाते हैं। हमारी बुद्धि धोखा खा जाती है। दृष्टि धोखा खा जाती है और हम वही सोचने व बोलने लगते हैं जो हमें सोचने व बोलने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस संदर्भ में हमें ध्यान रखना चाहिए कि ग्रीक से पहले भारत है न कि भारत से पहले ग्रीक। दोनों एक साथ फलने – फूलने वाली सभ्यताएं भी नहीं हैं । ग्रीक ने भारत से बहुत कुछ सीखकर यदि बाद में अपने आप को थोड़ा बहुत विकसित कर लिया तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वह भारत के बराबर की समृद्ध सभ्यता बन गई या वह भारत को टक्कर देने वाली सभ्यता में कभी सम्मिलित रही है?
बलूचिस्तान के बारे में हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह बलोच शब्द मुसलमानों द्वारा दिया गया शब्द है। इससे पहले के लोगों को बलोच नहीं कहा जाता था। स्पष्ट हुआ कि प्राचीन काल में जब यहां के लोग आर्य संस्कृति में विश्वास रखते थे, तब वह सिंध प्रांत के ही अधीन रहते थे।
हम भारतवासियों को उस समय के बारे में विचार करना चाहिए जब सिंध प्रान्त के लोग इस विस्तृत प्रांत में एक भारतीय के रूप में विचरण करते थे। उसके बाद के उस काल पर भी हमें विचार करना चाहिए जब यहां पर इस्लाम को मानने वाले लोगों के आक्रमण हुए और उन्होंने विभिन्न प्रकार के संकटों से जूझते हुए अपने धर्म और अपनी संस्कृति को बचाने का हर संभव प्रयास किया। परंतु काल के थपेड़े खाते-खाते वह अपने गौरवशाली वैदिक अतीत से काट दिए गए। आज के बलोच लोग इस बात के लिए धन्यवाद के पात्र हैं कि वह अपने वैदिक अतीत को जानने के प्रति उत्सुकता रखते हैं। भारत को भी उन्हें अपना समर्थन देना चाहिए और इस दृष्टिकोण से देना चाहिए कि हमारा आपका इतिहास सांझा है। इतिहास की परंपराएं सांझी हैं ।तभी एक स्वतंत्र बलूचिस्तान भारत समर्थक राष्ट्र के रूप में भारत के लिए हितकारी हो सकता है। अन्यथा वही गलती हम कर सकते हैं जो हमने बांग्लादेश को स्थापित करके की थी, जिसे कुछ देर पश्चात ही पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाकर भारत के विरोध में गाना बजाना आरंभ कर दिया। पाकिस्तान तो टूटना चाहिए परंतु उसके टूटने के बाद बलूचिस्तान सदा भारत के समर्थन में खड़ा रहे, इसके लिए उसके राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में भी व्यापक परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उसे यह बताना आवश्यक है कि वह पाकिस्तान का तो कभी भाग नहीं रहा, परंतु भारत का भाग इतनी गहराई से रहा है कि उसके भारत से संबंधों की अविच्छिन्न श्रृंखला पर यदि काम किया जाए तो वह दोनों देशों के लिए काम आ सकती है।
आज की परिस्थितियों में बलूचिस्तान को अपना सही इतिहास पढ़ना होगा, तभी वह और भारत मिलकर विश्व के लिए कुछ अच्छा कर पाएंगे।

डॉ राकेश कुमार आर्य

भजन: गुरु का सहारा

ruguruतर्ज: एक तेरा साथ हमको दो जहाँ से _

दोहा: गुरु बिन भव निधि तरहिं न कोई,
जो विरंच शंकर सम होई।

मु: थाम लो गुरुवर हाथ, आसरा तुम्हारा है।
एक साधक ने पुकारा है, तेरा ही सहारा है।।
थाम लो गुरुवर हाथ __

अंत १: दे दिया है हाथ, अब तेरे हाथों में हमने अपना।
तुमने ही बतलाया हमको ये जग सब है सपना।।
मि : मिथ्या ही लगता -२ संसार पसारा है।
थाम लो गुरुवर हाथ_

अंत २: सत्संग सुनाया है तुमने हमको ऐसा।
प्यास नहीं भुजती है मन की, लागे अमृत सा।।
मि: सुनाने से मिटाता -२, सब अज्ञान हमारा है।
थाम लो गुरुवर हाथ_

अंत ३: मिल गया है ज्ञान उनको, जो सत्संग में जाते हैं।
वो न भूलें तुमको कभी और गुण तेरे गाते हैं।।
मि: तेरी प्यारी सूरत को -२, हुमन जबसे निहारा है।
थाम लो गुरुवर हाथ__

अंत ४: योग साधना अपनाकर वह तन मन शुद्ध करें।
गुरु मंत्र नित्य जप कर सब ध्यान धरें।
मि: तेरे द्वारा ही हमने -२ ,जीवन ये सुधारा है।।
तेरी आज्ञा में चल कर जीवन को सुधारा है
थाम लो गुरुवर हाथ,

अंत ५: नन्दो भैया पर गुरूवर, ऐसी कृपा करो।
हम सब साधकों के अवगुण साईं चित्त न धरो।
मि: हम सब को करना है -२, प्रभु का दीदार है
थाम लो गुरुवर हाथ_

भजन: बरसाने की लट्ठा होली

तर्ज: ब्रज लोक गीत

मु: होली खेलन आयौ श्याम,
आज बरसाने की गलियन में।।
होली खेलन आयो श्याम -२

अंत १:ग्वाल बालों के टोला संग आयौ।
पोटली भर के सब रंग है लायौ।।
सीधी सुरति लगायी है सबने।
मि: पहुंचे हैं बरसाने गाँव।
होली खेलन आयौ श्याम,

अंत २: बरसाने की सब सखियाँ आयीं
संग में राधाजू को हैं लायीं
मि: ज्यों ही देख्यो को कानुड़ा को -२
भूल गयीं सब काम।।
होली खेलन आयौ श्याम,

अंत २: भर पिचकारी राधा पर मारी
आएं गयीं यहाँ गोपियाँ सारी
मि: पकड़ लीयौ दाऊ कौ भैया -२
मुखड़ा रंग्यौ तमाम
होली खेलन आयौ श्याम,

अंत ३: ग्वाल बाल सब मिलकर धाये
सब गोपियों पर है रंग बरसाए
लट्ठा ले लियौ हाथ में सखियाँ -२
है रही लट्ठा होली ब्रज धाम
होली खेलन आयौ श्याम,

अंत ४: नन्दो बल्लो मिल होली को रसिया रहे हैं गाय
राकेश भैया बांके बिहारी को रहे हैं रिझाय
कृपा करो श्यामा के प्यारे
भक्ति दो अविराम, मेरे नन्द नंदन घनश्याम
होली खेलन आयौ श्याम,

देश की पीठ में खंजर

गद्दारों की बिसात बिछी, देश की मिट्टी रोती है,
सीमा के प्रहरी चीख उठे, जब अंदर से चोट होती है।
ननकाना की राहों में छुपा, विश्वास का बेईमान,
पैसों की खातिर बेच दिया, अपना पावन हिंदुस्तान।
मंदिर-मस्जिद की आड़ में, देशद्रोह का बीज पनपता,
सोने की चिड़िया का कंठ घुटा, जब अंदर से लहू बहता।

ज्योति ने छल की ज्वाला जलाई, यूट्यूब पर बिछाई चाल,
देवेंद्र ने पगड़ी की ओट में, गुप्तचरी का फैलाया जाल।
जमशेद ने सरकारी कागज़ों से, दुश्मनों को दिया अमृतपान,
नोमान ने नफरत की बंसी से, फूंका भारत का अभिमान।
पैसों के लिए बेच दिया ईमान, पतन की ऐसी कथा लिखी,
अपने ही घर में आग लगाई, मां भारती की छाती चीर दी।

गद्दारों की बस्ती उजाड़ो, चुप्पी की दीवार तोड़ो,
देश की माटी में सच्चाई का दीप जलाओ, अंधकार छोड़ो।
सजग रहो, सतर्क रहो, विश्वासघात न दोहरा पाएं,
मातृभूमि की रक्षा का संकल्प फिर से दुहराएं।
आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा, न झुकेंगे, न टूटेंगे,
गद्दारों को माफ न करेंगे, हर कदम पर देश के साथ खड़े रहेंगे।

-डॉ सत्यवान सौरभ

गद्दारी का जाल: देश की सुरक्षा पर मंडराता खतरा

भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद NIA ने देशभर में 25 ISI एजेंटों को गिरफ्तार किया है, जो देश की सुरक्षा पर मंडराते खतरे की गंभीरता को उजागर करता है। कैथल से देवेंद्र सिंह, हिसार से ज्योति मल्होत्रा, दिल्ली से जमशेद और कैराना से नोमान इलाही जैसे लोगों ने गद्दारी की सीमाएं लांघते हुए देश की संवेदनशील जानकारियाँ दुश्मनों तक पहुंचाईं। ये मामले केवल कानूनी अपराध नहीं हैं, बल्कि नैतिक पतन और राष्ट्रीय विश्वासघात के भी प्रतीक हैं। धार्मिक यात्राओं से लेकर सोशल मीडिया तक, इन एजेंटों ने देश में विभाजन और अराजकता फैलाने की साजिशें रचीं। ऐसे मामलों से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्र के भीतर छिपे गद्दारों का नेटवर्क न केवल बाहरी खतरों से बड़ा है, बल्कि आंतरिक सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर चुनौती है।

– डॉ सत्यवान सौरभ

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम (Ceasefire) के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने पूरे देश में एक बड़ी कार्रवाई करते हुए 25 ISI एजेंटों को गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी अभियान अभी भी जारी है और यह घटनाक्रम देश की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

कैथल से देवेंद्र सिंह, हिसार से ज्योति मल्होत्रा, दिल्ली से जमशेद, और कैराना से नोमान इलाही को देश के खिलाफ गद्दारी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इन चारों ने अपने-अपने तरीकों से देश की सुरक्षा में सेंध लगाने का प्रयास किया, जो न केवल कानूनी अपराध है बल्कि नैतिक पतन का प्रतीक भी है।

देवेंद्र सिंह: ऑपरेशन सिंदूर का विश्वासघात

कैथल से गिरफ्तार देवेंद्र सिंह पर आरोप है कि उसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कई संवेदनशील जानकारियाँ ISI को दीं। यह व्यक्ति दो साल पहले पाकिस्तान के सिख धार्मिक स्थल ‘ननकाना साहिब’ की यात्रा पर गया था, जहाँ इसकी मुलाकात ISI एजेंटों से हुई। इसके बाद से यह धार्मिक यात्रा की आड़ में बार-बार ननकाना साहिब जाकर गुप्त सूचनाएँ साझा करता रहा। हाल ही में, इसके पास से पंजाब के पठानकोट एयर बेस की खुफिया तस्वीरें भी बरामद की गई हैं, जो इसकी गहरी साजिश का प्रमाण हैं।

यह घटना केवल एक व्यक्ति की गद्दारी तक सीमित नहीं है। देवेंद्र सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर के समय कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ ISI तक पहुंचाई, जिनमें सैन्य ठिकानों की जानकारी और सामरिक योजनाओं के नक्शे शामिल हैं। यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय सैनिकों की जान खतरे में डालने वाला कदम भी है। ऐसे में सवाल उठता है कि धार्मिक यात्राओं की आड़ में किस हद तक गुप्तचरी संभव है और इसे कैसे रोका जाए।

ज्योति मल्होत्रा: यूट्यूब के पीछे छिपा विश्वासघात

हिसार से गिरफ्तार ज्योति मल्होत्रा ने तो गद्दारी की सभी हदें पार कर दीं। ISI इसके यूट्यूब पेज के सब्सक्राइबर्स बढ़ाने के लिए पैसे देती थी, ताकि इसे एक बड़ी यूट्यूबर बनाया जा सके। इसके जरिए यह देश में मानसिक युद्ध (Psychological Warfare) छेड़ने की योजना बना रही थी, ताकि भारत के युवाओं के दिमाग में जहर घोला जा सके।

ज्योति का यूट्यूब चैनल शुरू में सामान्य कंटेंट से भरा था, लेकिन जल्द ही यह ISI के हाथों में एक प्रोपेगेंडा टूल बन गया। इसके चैनल पर धीरे-धीरे भारत विरोधी और सांप्रदायिक कंटेंट बढ़ने लगा, जिससे इसे एक मानसिक युद्ध छेड़ने वाले एजेंट के रूप में तैयार किया गया। ISI इसे एक प्रभावशाली सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनाने का इरादा रखती थी, जो भविष्य में देश के युवाओं को बरगलाने का काम कर सके।

जमशेद: सरकारी सेवा में घुसपैठ

दिल्ली से गिरफ्तार जमशेद एक सरकारी कर्मचारी था, जिसने अपने पद का दुरुपयोग कर संवेदनशील जानकारी दुश्मनों तक पहुँचाई। यह मामला और भी गंभीर इसलिए हो जाता है क्योंकि इसने सरकारी पद का लाभ उठाकर देश की सुरक्षा से समझौता किया।

सरकारी सेवा में होने के बावजूद, जमशेद ने ISI से संपर्क बनाए रखा और नियमित रूप से महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा करता रहा। इसने कई बार संवेदनशील दस्तावेजों की तस्वीरें खींचकर ISI को भेजी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। सरकारी कर्मचारियों द्वारा ऐसी गद्दारी न केवल विश्वासघात है, बल्कि सरकारी तंत्र की सुरक्षा खामियों की ओर भी इशारा करता है।

नोमान इलाही: नफरत का सौदागर

कैराना से गिरफ्तार नोमान इलाही पर आरोप है कि वह फर्जी खातों के जरिए ISI से पैसे प्राप्त करता था। इन पैसों का उपयोग वह कैराना और आसपास के मुस्लिम युवाओं को भड़काने के लिए करता था, जिससे समाज में सांप्रदायिक नफरत का माहौल पैदा हो। इसके नेटवर्क में कुल 5 लोग शामिल थे, जो अब जेल में हैं।

नोमान इलाही ने सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स का उपयोग करके नफरत फैलाने का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया था। इसके जरिए वह युवाओं के बीच धार्मिक कट्टरता और भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दे रहा था। इसके फर्जी खातों के जरिए लाखों रुपये ISI से आते थे, जो इसे अपने नफरत के एजेंडे को बढ़ाने में मदद करते थे।

देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक संकेत

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि देश के भीतर गद्दारों का एक संगठित नेटवर्क सक्रिय है, जो बाहरी दुश्मनों को अंदर से समर्थन दे रहा है। ये वही लोग हैं जो आतंकियों को अंदर की खबरें मुहैया कराते हैं और देश में आतंक फैलाने में उनकी मदद करते हैं।

कड़ी सजा की जरूरत

इन घटनाओं से साफ है कि देश की सुरक्षा केवल सीमाओं पर तैनात सैनिकों से ही नहीं, बल्कि आंतरिक सुरक्षा और नागरिक निष्ठा पर भी निर्भर करती है। ऐसे गद्दारों का समय पर बेनकाब होना जरूरी है, ताकि भविष्य में कोई भी देश के साथ गद्दारी करने की हिम्मत न कर सके। इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि यह संदेश जाए कि राष्ट्र से विश्वासघात बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे अपराध न केवल देश की सुरक्षा को खतरे में डालते हैं, बल्कि समाज की एकता और अखंडता को भी कमजोर करते हैं। जागरूक नागरिक ही एक मजबूत राष्ट्र की नींव होते हैं, और गद्दारों को कुचलने का संकल्प ही सच्ची देशभक्ति है।

इस स्थिति से निपटने के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत है। ऐसे गद्दारों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाना चाहिए। इन पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी देश के साथ गद्दारी करने की हिम्मत न कर सके।

देश की सुरक्षा केवल सीमाओं पर तैनात सैनिकों से ही नहीं, बल्कि आंतरिक सुरक्षा और नागरिकों की निष्ठा पर भी निर्भर करती है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपने समाज को जागरूक करें और गद्दारों को समय रहते बेनकाब करें।

यह समय है कि देश की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए और किसी भी प्रकार की गद्दारी को सख्ती से कुचला जाए। एक जागरूक और सतर्क समाज ही एक मजबूत राष्ट्र की नींव है।

जय हिंद!

सिन्दूर: अब श्रृंगार ही नहीं, शौर्य का प्रतीक

सिन्दूर, जो कभी सिर्फ वैवाहिक प्रेम का प्रतीक था, आज ऑपरेशन सिंदूर की नायिकाओं वियोमिका और सोफिया की साहसिक कहानियों का प्रतीक बन गया है। ये महिलाएं सिर्फ सजी-धजी मूरतें नहीं, बल्कि अदम्य साहस, बलिदान और नारी शक्ति का जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने न केवल अपने हौसले से दुश्मनों को मात दी, बल्कि यह भी दिखाया कि सिन्दूर का यह लाल रंग नारी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान की ज्वाला है। यह सिन्दूर अब केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और शौर्य की अनूठी कहानी है।

-प्रियंका सौरभ

सिन्दूर, जो प्राचीन काल से भारतीय नारी के वैवाहिक जीवन का प्रतीक रहा है, आज एक नए अर्थ में उभर रहा है। यह केवल सुहाग का प्रतीक नहीं, बल्कि नारी शक्ति, साहस और स्वाभिमान का प्रतीक बनता जा रहा है। यह बदलाव केवल एक सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का संकेत है। भारतीय समाज में सिन्दूर का स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह न केवल पति की लंबी उम्र की कामना है, बल्कि पति-पत्नी के बीच के अटूट बंधन का प्रतीक भी है। लेकिन बदलते समय के साथ, सिन्दूर अब केवल एक पारंपरिक श्रृंगार का हिस्सा नहीं रह गया है। यह आज की नारी की स्वतंत्रता, स्वाभिमान और साहस का भी प्रतीक बन चुका है।

प्राचीन ग्रंथों में सिन्दूर को सौभाग्य, प्रेम और आस्था का प्रतीक माना गया है। लेकिन जब हम इतिहास के पन्नों में झांकते हैं, तो हमें ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां सिन्दूर केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि शौर्य और बलिदान का प्रतीक भी बना। रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, पद्मावती जैसी वीरांगनाओं ने अपने सिन्दूर की लाज के लिए तलवार उठाई, अपने प्राणों की आहुति दी। ये उदाहरण दिखाते हैं कि सिन्दूर केवल सौंदर्य का नहीं, बल्कि स्वाभिमान और आत्मबल का प्रतीक भी है। आज की नारी भी इसी भावना से ओतप्रोत है। वह केवल एक पत्नी, मां या बहू तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज की रीढ़ है। वह हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है – चाहे वह खेल का मैदान हो, युद्ध का मैदान हो, या फिर राजनीति की गूंज। मिताली राज, मेरी कॉम, नीरज चोपड़ा जैसी खिलाड़ियों ने सिन्दूर के प्रतीक को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। उनकी सफलता की कहानियां हमें यह सिखाती हैं कि सिन्दूर न केवल परिवार का सम्मान है, बल्कि आत्मसम्मान का प्रतीक भी है।

इस भावना को हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने भी बल दिया, जिसमें वियोमिका और सोफिया जैसी बहादुर महिलाओं ने अपने साहस और संघर्ष से यह साबित किया कि सिन्दूर केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि अदम्य साहस का प्रतीक है। इन वीरांगनाओं ने न केवल अपने कर्तव्य का निर्वाह किया, बल्कि समाज की धारणाओं को भी चुनौती दी। यह परिवर्तन केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज के हर कोने में महसूस किया जा रहा है। सिन्दूर अब केवल पवित्रता का नहीं, बल्कि प्रतिरोध का प्रतीक भी है। यह उन महिलाओं की आवाज है जो अन्याय के खिलाफ उठ खड़ी होती हैं, अपने हक के लिए लड़ती हैं, और समाज की बंधी-बंधाई धारणाओं को तोड़ती हैं।

यह बदलाव फिल्मों और साहित्य में भी साफ दिखाई देता है। जैसे कि फिल्म ‘मणिकर्णिका’ में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का सिन्दूर केवल श्रृंगार का नहीं, बल्कि स्वाभिमान और संघर्ष का प्रतीक है। इसी तरह, कई वेब सीरीज और कहानियां भी सिन्दूर को एक नई परिभाषा दे रही हैं। समाज का यह नया दृष्टिकोण नारी के प्रति उसकी बदलती सोच का प्रतीक है। अब सिन्दूर केवल विवाह का प्रतीक नहीं, बल्कि स्वतंत्रता, साहस और आत्मसम्मान का प्रतीक बन गया है। यह उस नारी का प्रतीक है जो किसी भी परिस्थिति में न झुकने का संकल्प लेती है, जो अपने आत्मसम्मान के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

संक्षेप में कहें तो, सिन्दूर अब केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि शौर्य का प्रतीक है। यह हर उस नारी का प्रतिनिधित्व करता है जो खुद को परिभाषित करने में सक्षम है, जो किसी भी बंधन को तोड़कर अपनी पहचान बना रही है। यह बदलाव हमारे समाज की सोच में आ रहे सकारात्मक परिवर्तन का सूचक है। यह केवल एक परंपरा का नहीं, बल्कि एक पूरे विचारधारा का पुनर्जागरण है। आज की नारी सिन्दूर को केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि अपने संघर्ष और स्वाभिमान का प्रतीक मानती है। यह उसकी शक्ति, संकल्प और आत्मसम्मान का प्रमाण है।

सिन्दूर, जो एक समय केवल वैवाहिक बंधन का प्रतीक था, आज नारी की आत्मशक्ति, संघर्ष और साहस का प्रतीक बन चुका है। यह उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है जिन्होंने अपने सपनों को पंख दिए और समाज की पुरानी धारणाओं को तोड़ा। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक संकल्प है – खुद को परिभाषित करने का, अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ने का, और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने का। यह उन वीरांगनाओं का प्रतीक है जिन्होंने इतिहास को अपने खून से लिखा और उन आधुनिक नारियों का प्रतीक है जो हर चुनौती को आत्मविश्वास से स्वीकारती हैं। सिन्दूर अब केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि नारीत्व का महाकाव्य है – संघर्ष, स्वाभिमान और शौर्य का प्रतीक।

बलूचिस्तान की आजादी की जंग

बलूचिस्तान


संजय सिन्हा

बलूचिस्तान में  पाकिस्तान से आजादी के लिए जंग ने जोर पकड़ ली है। बलूच नेताओं ने जगह जगह विरोध प्रदर्शनों को काफी तेज कर दिया है। पाकिस्तान की सेना की तरफ से जबरन गायब किए गये लोगों और मानवाधिकार का उल्लंघन करने का हवाला देते हुए कई बलूच नेताओं ने बलूचिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया है। जिसके बाद माना जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना एक बार फिर से बलूच के लोगों का कत्लेआम कर सकती है। बलूचिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों की तरफ से बलूचिस्तान के लिए अलग से राष्ट्रीय ध्वज और बलूचिस्तान का अलग नक्शा जारी किया गया है जिनमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग दिखाया गया है। सोशल मीडिया पर लगातार ‘बलूचिस्तान रिपब्लिक’ ट्रेंड कर रहा है।

ऑल इंडिया रेडियो की रिपोर्ट के मुताबिक बलूचिस्तान की प्रमुख बलूच कार्यकर्ता और लेखक मीर यार बलूच ने कहा है कि “पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में आजादी की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर आए हैं और राष्ट्रव्यापी आंदोलन किए जा रहे हैं।” उन्होंने कहा कि ‘बलूचों ने देशव्यापी प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है कि बलूचिस्तान, पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है।’ इसके अलावा मीर यार बलूच ने इंटरनेशनल कम्युनिटी और यूनाइटेड नेशंस से “बलूचिस्तान लोकतांत्रिक गणराज्य” को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने का भी आग्रह किया है।वहीं अफगानिस्तान की निर्वासित सांसद मरियम सोलायमानखिल ने पाकिस्तान की सेना की बलूचों का जबरन अपहरण करने और उनसे क्रूरता करने की आलोचना की है। पाकिस्तान की सेना बलूचों के साथ काफी खतरनाक व्यवहार कर रही है। उन्होंने पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई को “जबरन उपनिवेशीकरण, जबरन कब्जा” करार दिया है जबकि पाकिस्तान दावा करता है कि वो आतंकवाद विरोधी अभियान चला रहा है। उन्होंने  एक भारतीय समाचार एजेंसी  को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि “मुझे लगता है कि हर कोई उस सैन्य तानाशाही से तंग आ चुका है जिसके तहत वे रह रहे हैं।” इसके अलावा उन्होंने कहा, “बलूचिस्तान में हमारे पास डॉ. महंग बलूच जैसे शांतिपूर्ण अहिंसक कार्यकर्ता हैं जो जेल में हैं लेकिन ओसामा बिन लादेन और लश्कर ए तैयबा के नेताओं जैसे लोगों को देश में आजादी से घूमने की इजाजत है।”


आपको बता दें कि बलूचिस्तान, पाकिस्तान का दक्षिण-पश्चिमी प्रांत है जो सबसे ज्यादा खनिज संपन्न प्रांत होने के बाद भी सबसे ज्यादा गरीब है। पाकिस्तान इन इलाकों की खनिज संपदा को बेचती है और उसका इस्तेमाल पाकिस्तान की सेना का पेट भरने और पाकिस्तानी पंजाब के डेवलपमेंट में खर्च होता है। बलूचिस्तान में चलने वाले ज्यादातर चीनी प्रोजेक्ट्स में भी पाकिस्तानी पंजाब के लोग ही काम करते हैं। लिहादा बलूचिस्तान सालों से आजादी की मांग कर रहा है। बलूच विद्रोही अकसर पाकिस्तानी पंजाब के लोगों का कत्ल करते रहते हैं। इस प्रांत में चीनी प्रोजेक्ट्स पर भी हमले होते रहते हैं। बलूच विद्रोही बलूचिस्तान की खनिज संपदा में बलूच लोगों के हिस्से की मांग करते हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी भी एक स्वतंत्रता सेनानी संगठन है, जो बलूचिस्तान की आजादी की मांग कर रहा है। बलूच फ्रीडम फाइटर्स ने दो महीने पहले बलूचिस्तान में 450 से ज्यादा लोगों ले जारी ट्रेन को अगवा कर लिया था।
पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान आज़ादी की लड़ाई और भू-राजनीतिक खेल का केंद्र है। यहां एक ओर बलूच लोग दशकों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी ओर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी के ज़रिए चीन ने अरब सागर तक अपनी पहुँच बनाने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया है। हाल के भारतीय सैन्य अभियान, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (7 मई 2025), में चीन ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया जो सीपीईसी को बचाने और भारत के सामने नयी चुनौती पेश करने की कोशिश थी।


1947 में बँटवारे के समय बलूचिस्तान चार रियासतों – कलात, खरन, लास बेला, और मकरान – से बना था। 11 अगस्त 1947 को, भारत की आज़ादी से चार दिन पहले, कलात के खान मीर अहमद यार खान ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र घोषित किया लेकिन यह आजादी केवल 227 दिन चली। 28 मार्च 1948 को, जिन्ना के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने कलात पर कब्जा कर लिया और खान को जबरन विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने स्वयं ब्रिटिशों के सामने कलात की स्वतंत्रता का केस लड़ा था। बलूच इसे धोखा मानते हैं और तब से विद्रोह कर रहे हैं। बलूचिस्तान अब पाकिस्तान से ज़्यादा चीन का युद्धक्षेत्र बन गया है, क्योंकि यहाँ CPEC (चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर) का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। सीपीईसी  2015 में शुरू हुई 62 अरब डॉलर की परियोजना, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। इसका लक्ष्य चीन के शिनजियांग को ग्वादर पोर्ट (बलूचिस्तान) से जोड़ना है। यह 3,000 किमी का गलियारा सड़कों, रेलवे, पाइपलाइनों, और ऊर्जा परियोजनाओं का जाल है, जिसमें शामिल हैं: ग्वादर पोर्ट: अरब सागर में रणनीतिक बंदरगाह।,ऊर्जा परियोजनाएं,कोयला, हाइड्रो, और सौर संयंत्र।  सड़क-रेल नेटवर्क: कराची से पेशावर और खुनजराब तक,विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज): औद्योगिक विकास के लिए।
आपको बताता चलूं कि बलूचिस्तान सिर्फ पाकिस्तान का प्रांत नहीं, बल्कि चीन की रणनीति का केंद्र है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में चीन ने पाकिस्तान को सैन्य तकनीक और संसाधन देकर भारत को घेरने की कोशिश की लेकिन इस खेल में आम बलूच कुचले जा रहे हैं। उनकी आजादी की लड़ाई CPEC और पाकिस्तानी दमन के खिलाफ है। क्या वे स्वतंत्रता हासिल करेंगे? यह भविष्य बताएगा। लेकिन यह साफ है कि बलूचिस्तान दक्षिण एशिया की भू-राजनीति का अहम हिस्सा है, और इसका भारत पर गहरा असर होगा।

संजय सिन्हा