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भीतर के दुश्मनों के खिलाफ सख्ती-चौंकसी बढ़ानी होगी

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– ललित गर्ग-

पाकिस्तान भारत के अनेक लालची, शानोशौकत के आकांक्षी, देशद्रोही एवं देश के दुश्मन लोगों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ प्रचार और जासूसी गतिविधियों के लिए कर रहा था। ऐसे ही कुछ देश विरोधी तत्वों का पर्दाफाश होना चौंकाता भी है एवं चिन्ता में भी डालता है। ऐसे ही तत्वों में एक नाम है ज्योति मल्होत्रा, उस पर आरोप है कि वह न केवल सोशल मीडिया पर पाकिस्तान की सकारात्मक छवि पेश कर रही थी, बल्कि उसने पाक खुफिया एजेंसी के एजेंटों से भारत से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां भी साझा कर रही थीं, जिनमें ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी गोपनीय जानकारियां भी थीं। वह एक खुफिया एजेंट के रूप में सीमा पार से चलाए जा रहे नेटवर्क का हिस्सा थी। देश की सुरक्षा एजेंसियों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भारत की मिट्टी पर छिपे गद्दार कितनी भी चालाकी से छिप जाएं, वे कानून की नजरों से नहीं बच सकते। उम्मीद है कि पूछताछ में ऐसे सबूत मिल सकते हैं जो भारत के खिलाफ बड़ी साजिशों का खुलासा कर सके। ‘ऑपरेशन ‘सिंदूर’ ने न सिर्फ सरहद पार बैठे दुश्मनों की नींद हराम कर दी है, बल्कि देश के भीतर बैठे गुप्त गद्दारों की भी कमर तोड़ दी है। हाल ही में लगातार ऐसे अनेक राष्ट्र-विरोधी जासूसों की गिरफ्तारी ने जता दिया कि भारत हर मोर्चें पर देश की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिये प्रतिबद्ध है। ये गिरफ्तारियां अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण एवं यह भी पाक की एक करारी हार ही है।
पाक के लिए जासूसी करने के आरोप में हरियाणा के हिसार की यूट्यूबर और ट्रैवल ब्लॉगर ज्योति मल्होत्रा समेत छह लोगों की खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी के आधार पर की गयी गिरफ्तारी भारत की सतर्कता एवं सावधानी को तो दर्शाती ही है, इससे यह भी स्पष्ट होता है कि इस चुनौती भरे समय में भीतर के दुश्मनों की शिनाख्त एवं उनकी धडपकड़ कितनी जरूरी है। ‘ट्रैवल विद जो’ नाम से यू-ट्यूब चैनल चलाने वाली ज्योति पर आरोप है कि वह पाक के कई उच्च अधिकारियों के संपर्क में थी और भारत से जुड़ी गुप्त सूचनाएं पाक तक पहुंचाती थी। पता यह भी चला है कि पाक यात्रा के दौरान उसकी मुलाकात पाक उच्चायोग के एक कर्मचारी दानिश से हुई, जिसके माध्यम से उसकी पहचान आइएसआइ के एजेंटों से हुई। ज्योति इन एजेंटों के साथ व्हाट्सएप, टेलीग्राम और स्नैपचौट के जरिये संपर्क में थी। कहते हैं कि उसने एक पाक खुफिया अधिकारी के साथ गहरे संबंध बनाये और उसके साथ बाली भी गयी थी। ज्योति एवं उसके सहयोगी बेखौफ भारत की अति-संवेदनशील एवं गोपनीय सूचनाओं को पाक से साझा करते हुए देश को नुकसान पहुंचा रहे थे। ये सभी आम नागरिकों की तरह जिंदगी जी रहे थे, लेकिन इनके इरादे राष्ट्रविरोधी थे। देश की कीमत पर सारे राष्ट्र-मूल्यों एवं निष्ठाओं को ताक पर रखकर धनार्जन की लालसा और मौज-मस्ती का लक्ष्य घिनौना एवं अक्षम्य अपराध है। राष्ट्र को इन विस्फोटक विसंगतियों से बचाना होगा।
भारत विरोधी शक्तियों के हाथ में खेलकर देश को मुश्किल में डालने का यह कृत्य परेशान एवं चिन्ता में डालने वाला है। बहुत संभव है कि जासूसी कांड में लिप्त ये भारतीय बड़े आर्थिक प्रलोभनों के लालच में पाक एजेंटों के जाल में फंसे हों। लेकिन बड़ा प्रश्न है कि कैसे कुछ लोग पैसे व शानोशौकत के लालच में देश की सुरक्षा व लोगों का जीवन भी दांव पर लगा सकते हैं? देश के भीतर के ये दुश्मन बाहरी दुश्मनों से ज्यादा घातक एवं नुकसानदेय हैं। पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई से ताल्लुक रखने पर पिछले दिनों हरियाणा, पंजाब व यूपी के इन लोगों की गिरफ्तारी ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। लेकिन इनकी गहन जांच से और भी गंभीर खुलासे होने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। ये एक गंभीर चुनौती है और हमारी कानून प्रवर्तन एजेंसियों और खुफिया संस्थाओं को अब इस चुनौती को गंभीरता से लेना होगा। इन लोगों के तार भीतर कहां-कहां जुड़े है, इसका पर्दाफाश होना ज्यादा जरूरी है। ये तत्व देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ ही सांप्रदायिक सद्भाव एवं आम-जनजीवन को भी खतरे में डाल सकते हैं।
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि हरियाणा की ज्योति कथित तौर पर हाल के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग के एक कर्मचारी के संपर्क में थी, जिसे हाल ही में भारत विरोधी गतिविधियों के लिये देश से निकाला गया। इस मामले में चल रही जांच से पता चला है कि 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले से पहले ज्योति कश्मीर गई और उससे पहले पाकिस्तान गई थी। एक से अधिक बार पाकिस्तान जा चुकी ज्योति पर खुफिया अधिकारियों की नजर तो थी ही, ज्योति के कई वीडियोज ने भी खुफिया एजेंसियों का ध्यान खींचा, चाहे वह नयी दिल्ली स्थित पाक दूतावास में इफ्तार की दावत का वीडियो हो, पिछले साल हुए विश्व कप में भारत-पाक मैच में दर्शकों की प्रतिक्रिया वाला वीडियो हो या कश्मीर घूमने आये लोगों पर बनाये गये वीडियो हों। विडंबना है कि पाकिस्तान भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत फायदा उठा रहा है। जांच एजेंसियों के मुताबिक, ज्योति को दुबई के एक कथित हैंडलर के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
यह खुलासा केवल ज्योति तक सीमित मामला नहीं है, बल्कि इसके जरिये एक बड़े नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है उस पर पाक के खुफिया अधिकारियों को संवेदनशील जानकारी देने के आरोप हैं। यूपी के रहने वाले शहजाद और नौमान इलाही पर भी इसी तरह के आरोप हैं। पंजाब में मालेरकोटला के दो लोगों को भी जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। जांच एजेंसियों को पता लगाना होगा कि क्या इन आरोपियों की सैन्य या रक्षा अभियानों से संबंधित जानकारी तक सीधी पहुंच थी या वे इसे उच्च पदस्थ स्रोतों से प्राप्त कर रहे थे? इन बातों का खुलासा होना सुरक्षा एवं सैन्य गोपनीयता की दृष्टि से ज्यादा जरूरी है। गिरफ्तार सभी अपराधियों को गंभीर पूछताछ के बाद कठोर सजा मिलनी चाहिए। दुश्मन चाहे देश के अंदर हो या बाहर उनके प्रति मोदी सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति निरंतर सख्ती के साथ कार्यरत रहनी ही चाहिए। सरकार और खुफिया एजेंसियां अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय संदिग्ध तत्वों की निगरानी और जांच को और तेज करने की दिशा में स्वाभाविक ही काम कर रही है। सरकार ने इन गिरफ्तारियों के बाद स्पष्ट संदेश दिया है कि राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। ऑपरेशन सिंदूर के तहत अब तक देशभर में दर्जनों संदिग्धों को निगरानी में लिया गया है और जांच तेज़ है।
निश्चय ही यह राष्ट्र-विरोधी जासूसों का खुलासा पाक रचित राष्ट्रघाती खेल का छोटा हिस्सा है, पाक सीधा युद्ध की सामर्थ्य एवं ताकत नहीं रखता, इसलिये कभी वह आतंक का सहारा लेता है तो कभी पैसों का प्रलोभन देकर देश के लोगों को खरीदने की कुचेष्ठा करता है। एक छलकपट वाले सूचना युद्ध के माध्यम से देश को नुकसान पहुंचाने की आईएसआई की साजिश को सख्ती से नाकाम किया जाए ताकि आने वाले समय में और बड़ी मछलियां इस दलदल में पकड़ी जा सकेंगी। पाक तो भारत का शत्रु है और वह सामने दिखाई दे रहा है, लेकिन देश के अंदर छिपे गद्दार भी भारत के शत्रु हैं। इस तरह के गद्दारों को चिन्हित करके उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। पाक का समर्थन करने वाले खालिस्तानी आतंकवादी हैं, कश्मीर में भी ऐसे लोग है जो पाक एवं उसके पोषित आतंवादियों का सहयोग एवं समर्थन करते हैं। ऐसे राष्ट्र-विरोधी लोगों एवं आतंकवादियों का सिर कुचलने का, यही सही समय है। केंद्र व राज्य सरकारों, मीडिया और जनता को मिलकर ऐसे तत्वों को बेनकाब करने में मदद करनी चाहिए। पुलिस को आधुनिक उपकरणों के साथ इस बाबत कुशल प्रशिक्षण देना चाहिए। बहरहाल, देश विरोधी तत्वों की निगरानी तेज करना वक्त की जरूरत है। ताकि देश मे छुपी इन काली भेड़ों एवं देश को दीमक की तरह खोखला कर रहे शत्रुताओं का नाश किया जा सके। प्रेषकः

ललित गर्ग

शस्त्र और शास्त्र, दोनों धरातलों पर ध्वस्त पाकिस्तान

जैसा कि ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म में सभी ने देखा कि पेशवाई के लिए साक्षात्कार के समय बाजीराव ने अपने तीर से मोरपंख का आकार कम कर अपनी ‘शस्त्र और शास्त्र’ के ज्ञान में पारंगता का प्रमाण दिया। उनका संदेश था कि मोर का पंख मुगल साम्राज्य है, इसकी जड़ पर प्रहार करो व अपने आप नष्ट हो जाएगा। अभी पाकिस्तान के साथ हुए टकराव के समय भी भारत ने ‘शस्त्र और शास्त्र’ दोनों धरातलों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की। शस्त्र के धरातल पर तो सभी जानते हैं कि कैसे भारत ने पाकिस्तान में स्थित आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया, वहां की वायु रक्षा कवच को तहस नहस करते हुए अपनी अचूक नभ सुरक्षा व्यवस्था का परिचय दिया लेकिन इसके साथ-साथ हमने पाकिस्तानी सेना अध्यक्ष जनरल मुनीर द्वारा अलापे गए धर्म के नाम पर दो राष्ट्र के सिद्धांत को भी धाराशाही कर दिया।

सन 1817 में पैदा हुए मुस्लिम विद्वान सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेज सरकार के सामने यह सिद्धांत दिया था कि मुसलमान एक अलग राष्ट्र हैं। उनका यही विचार आगे चल कर दो राष्ट्र सिद्धांत बना जिससे 1947 में धर्म के नाम पर देश का विभाजन हुआ। कट्टरपंथ, जनूनी हिंसा और हमारे नेतृत्व की कमजोरी के चलते चाहे भारत ने धर्म के नाम पर हुए इस बंटवारा स्वीकार कर लिया परन्तु वैचारिक धरातल पर यह कभी नहीं माना कि पूजा पद्धति अलग होने से किसी की राष्ट्रीयता अलग हो जाती है। भारत की युगों से अवधारणा रही है ‘एकम् सद् विप्रा बहुधा वदन्ति’ अर्थात ईश्वर एक है, पर विद्वान उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। इसी विश्वास के कारण ही हम 1947 में हुए विभाजन को अप्राकृतिक व ईश्वर की इच्छा के विपरीत मानते हुए पुन: अखण्ड भारत की बात करते हैं।

लेकिन पिछले महीने 17 अप्रैल को पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल सैयद असीम मुनीर ने सैयद अहमद खान के उस विषाक्त द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को एक बार फिर दोहराया। उन्होंने कहा कि ‘इसके पीछे मूल विचार यह है कि मुस्लिम और हिन्दू दो अलग-अलग राष्ट्र हैं।’ मुनीर ने ऐबटाबाद के काकुल में पाक सैन्य अकादमी में पासिंग आउट परेड को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत इस मौलिक विश्वास पर आधारित है कि मुसलमान और हिन्दू एक नहीं, बल्कि दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। मुसलमान जीवन के सभी पहलुओं जैसे धर्म, रीति-रिवाज, परम्परा, सोच और आकांक्षाओं में हिन्दुओं से अलग हैं।’ जनरल मुनीर सम्बोधित चाहे पाकिस्तानी रंगरूटों को कर रहे थे परन्तु उनकी चिट्ठी का पता भारतीय मुसलमान थे। याद करें कि यह लगभग वही समय था जब भारत में कुछ छद्मधर्मनिरपेक्ष दलों की तुष्टिकरण की नीति के चलते वक्फ बोर्ड अधिनियम में संसद द्वारा किए गए संशोधन के कारण यहां मुस्लिम भावनाएं भडक़ी हुई थीं। इस दौरान बंगाल में साम्प्रदायिक दंगे भी हुए जिसमें कई निर्दोष हिन्दुओं ने जानें भी गंवाई और अपमान भी झेले। जनरल मुनीर ने ऐसे संवेदनशील मौके पर आंच में भूसा झोंकने का काम करते हुए भारत के मुसलमानों में फिर से द्वि-राष्ट्र सिद्धांत स्थापित करने का कुत्सित प्रयास किया। यह वैचारिक विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया कि हिन्दुओं के चलते भारत के मुसलमान चैन से नहीं रह सकते। साम्प्रदायिक हिंसा भडक़ाने के लिए उसने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगांव पर आतंकी हमला करवाया जिसमें हिन्दुओं को छांट-छांट, उनका खतना जांच कर मौत के घाट उतारा गया। कहने का भाव कि पाकिस्तान ने आतंकी हमले के रूप में ‘शस्त्र’ और द्विराष्ट्र सिद्धांत के रूप में ‘शास्त्र’  दोनों धरातल पर हमले किये। लेकिन भारत ने ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ अर्थात जैसे को तैसा नीति पर चलते हुए दोनों हमलों की धार को पूरी तरह कुन्द कर दिया। भारत ने दुश्मन पर शस्त्र से आघात तो किया ही साथ में आपरेशन सिंदूर की जानकारी देने के लिए जिन दो महिला सैन्य अधिकारियों विंग कमाण्डर व्योमिका सिंह व कर्नल सोफिया कुरैशी को जिम्मेवारी सौंपी गई वो भारतीय सांस्कृतिक एकता की परिचायक बनीं। केवल इतना ही नहीं, आपरेशन सिंदूर की सफलता का दुनिया को संदेश देने के लिए जिस प्रतिनिधिमण्डलों का चयन किया गया है उसमें बहुदलीय व बहु-उपासना पद्धति से जुड़े नेता शामिल किए गए हैं। आपरेशन के दौरान पाकिस्तान के सामने पूरा देश एक साथ मुट्ठी तान कर खड़ा हो गया।

वैसे जनरल मुनीर की द्वि-राष्ट्र के विषाक्त सिद्धांत वाली वैचारिक जुगाली उस समय भी स्वत: ही खारिज हो जाती है जब मुसलमान होते हुए भी तालिबान पाकिस्तान को अपना दुश्मन घोषित कर देता है और बलोचिस्तान मुक्ति सेना हमधर्मी पाक सेना के खून से होली खेलती है। मुसलमान मजहब के नाम पर एक राष्ट्र होते तो पाकिस्तान से बंगलादेश अलग क्यों होता? इरान-इराक में युद्ध क्यों होते? 51 देशों में विभक्त इस्लामिक जगत अभी तक धर्म के नाम पर एक राष्ट्र क्यों नहीं बन पाया? इसी द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत के ताबूत पर अब भारत के आपरेशन सिन्दूर ने एक और मजबूत कील ठोक दी है।

भारतीय समाज की एकता समझाने के लिए पाकिस्तानी जनरल मुनीर को एक कथा सुनाना चाहूंगा। गंधर्वों द्वारा दुर्योधन को बंदी बनाए जाने पर अपनी पारिवारिक कटुता भुला कर युधिष्ठिर ने भीम को आदेश दिया कि वह जाए और युवराज दुर्योधन को गंधर्वों से मुक्त करवाए। भीम द्वारा प्रश्न किए जाने पर युधिष्ठिर कहते हैं कि हमारे परिवार में चाहे सौ मतभेद हों परन्तु दुनिया के लिए हम भरतवंशी ‘सौ और पांच’ नहीं ‘एक सौ पांच’ हैं। इसी तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था के चलते भारतीयों में सौ मतभेद हो सकते हैं परन्तु दुश्मन के लिए हम भी वही हैं ‘वयं पंचाधिकम् शतम्।’

– राकेश सैन

घर के भेदी

ये कौन लोग हैं जो मुल्क बेच आते हैं,
चंद सिक्कों में ज़मीर सरेआम ले जाते हैं।
न बम चले, न बारूद की ज़रूरत पड़ी,
अब तो दुश्मन को बस एक चैट भा जाती है।
जिसे पढ़ाया था कल देशभक्ति के पाठ,
वो ही फाइलें अब व्हाट्सऐप पे दिखा जाती है।
हमने ही अपने घर में दी थीं दीवारें,
अब उन्हीं से दरारें हर रोज़ बढ़ जाती हैं।
कभी मज़दूर, कभी छात्र, कभी गार्ड बना,
ये “भेदी” हर वेश बदलकर चला आता है।
हमें यक़ीन था अपनों पे, उसी ने तोड़ा,
अब हर पहचान, हर रिश्ता डर सा दिला जाता है।
देश की पीठ पे जो वार करते हैं छुपके,
वो फेसबुक पर ‘देशभक्त’ कहलाते हैं।
नए ज़माने की ये कैसी तालीम है साहब,
कि इम्तिहान में ईमान गिरवी रख आते हैं।
अब वर्दी भी सुरक्षित नहीं उस भीड़ से,
जो अपनी भूख में सरहद तक बेच आती है।
ज़रा पूछो उन माँओं से, जिनके बेटे नहीं लौटे,
जब जासूसी की ख़बर, गली में गूँज जाती है।

  • डॉ सत्यवान सौरभ

विलुप्त होती प्रजातियां: जीवन के अस्तित्व पर संकट की दस्तक

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अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई) पर विशेष

  • अतुल गोयल
    मनुष्यों की ही भांति जीव-जंतु और पेड़-पौधे भी इस धरती के अभिन्न अंग हैं लेकिन विडंबना यह है कि मनुष्य ने अपने स्वार्थों और तथाकथित विकास की दौड़ में इनके अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण, औद्योगीकरण और अनियंत्रित मानवीय गतिविधियों के चलते वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास उजड़ चुके हैं और वनस्पतियों की कई प्रजातियां लगभग समाप्ति की कगार पर हैं। पारिस्थितिकी तंत्र, जिसमें सभी जैविक और अजैविक तत्व एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, अब असंतुलित होता जा रहा है। यह असंतुलन न केवल जीव-जंतुओं के जीवन चक्र को प्रभावित कर रहा है बल्कि मनुष्य के अस्तित्व के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। दुनियाभर में हजारों वन्य प्रजातियां या तो पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। वनस्पतियों की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र से एक भी प्रजाति लुप्त होती है तो उससे जुड़ी कई अन्य प्रजातियों की कड़ी भी प्रभावित होती है, जिससे पूरी जैव श्रृंखला खतरे में पड़ जाती है। इस जैव विविधता की क्षति का असर सीधे-सीधे मानव जीवन पर भी पड़ रहा है, जिसे अब नजरअंदाज करना आत्मघाती सिद्ध हो सकता है।
    वन्य जीव-जंतु और उनकी विविधता धरती पर अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का आधार रहे हैं। वन्य जीवन में ऐसी वनस्पति और जीव-जंतु सम्मिलित होते हैं, जिनका पालन-पोषण मनुष्यों द्वारा नहीं किया जाता। आज मानवीय क्रियाकलापों तथा अतिक्रमण के अलावा प्रदूषिण वातावरण और प्रकृति के बदलते मिजाज के कारण भी दुनियाभर में जीव-जंतुओं तथा वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर दुनियाभर में संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक में विस्तार से यह उल्लेख है कि विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आने से समग्र पर्यावरण किस प्रकार असंतुलित होता है। दरअसल विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आने से समग्र पर्यावरण जिस प्रकार असंतुलित हो रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना है। पर्यावरण के इसी असंतुलन का परिणाम पूरी दुनिया पिछले कुछ दशकों से गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देख और भुगत भी रही है।
    लगभग हर देश में कुछ ऐसे जीव-जंतु और पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जो उस देश की जलवायु की विशेष पहचान होते हैं लेकिन जंगलों की अंधाधुंध कटाई तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते जीव-जंतुओं के आशियाने लगातार बड़े पैमाने पर उजड़ रहे हैं, वहीं वनस्पतियों की कई प्रजातियों का भी अस्तित्व मिट रहा है। हालांकि जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों की विविधता से ही पृथ्वी का प्राकृतिक सौन्दर्य है, इसलिए भी लुप्तप्रायः पौधों और जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों की उनके प्राकृतिक निवास स्थान के साथ रक्षा करना पर्यावरण संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है। इसीलिए पृथ्वी पर मौजूद जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए तथा जैव विविधता के मुद्दों के बारे में लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। 20 दिसम्बर 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रस्ताव पारित करके इसे मनाने की शुरूआत की गई थी। इस प्रस्ताव पर 193 देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। दरअसल 22 मई 1992 को नैरोबी एक्ट में जैव विविधता पर अभिसमय के पाठ को स्वीकार किया गया था, इसीलिए यह दिवस मनाने के लिए 22 मई का दिन ही निर्धारित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस इस वर्ष ‘प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास’ विषय के साथ मनाया जा रहा है।
    पेड़-पौधों की संख्या पृथ्वी पर जिस तेज गति के साथ घट रही है, उसने न केवल पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ रहा है बल्कि अनेक जीव-जंतुओं और पक्षियों को उनके प्राकृतिक घरों से भी वंचित होना पड़ रहा है। परिणामस्वरूप, अनेक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों की स्पष्ट चेतावनी है कि यदि अब भी इस संकट की अनदेखी की गई तो निकट भविष्य में ऐसी भयावह स्थिति उत्पन्न होगी कि न केवल पेड़-पौधों की दुर्लभ प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी बल्कि अनेक पशु-पक्षी भी धरती से सदा के लिए मिट जाएंगे। माना कि विकास आवश्यक है लेकिन वह ऐसा हो, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखे। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक में यह गंभीर चेतावनी दी गई है कि यदि विकास की दौड़ में जंगलों की कटाई और जीव-जंतुओं के आवासों का विनाश जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब मनुष्य स्वयं अपने अस्तित्व को खतरे में डाल देगा।
    तेजी से बढ़ती आबादी और शहरीकरण ने मनुष्य को इस हद तक स्वार्थी बना दिया है कि उसने यह तक भूलना शुरू कर दिया है कि उसका जीवन भी प्रकृति के सहारे ही संभव है। खेतों में कीटों को नियंत्रित करने वाले चिड़िया, तीतर, कौआ, गिद्ध, मोर जैसे पक्षी भी आज विलुप्ति के कगार पर हैं। ये पक्षी न केवल किसानों के मित्र माने जाते रहे हैं बल्कि जैव विविधता की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। धरती पर जीवन को सुचारु और संतुलित बनाए रखने में जैव विविधता की बहुत अहम भूमिका है, इसलिए यदि हम आज ही सजग नहीं हुए और इन दुर्लभ प्रजातियों तथा उनके प्राकृतिक निवास की रक्षा नहीं की तो आने वाले समय में न केवल पर्यावरणीय संकट और तेजी से गहराएगा बल्कि मानव जीवन भी संकट में पड़ जाएगा। अब समय आ गया है कि हम विकास और संरक्षण के बीच संतुलन साधें।

भारत में अल्टरनेट एसओजीआई समुदाय और मानसिक स्वास्थ्य

अमरपाल सिंह वर्मा

भारत में मानसिक स्वास्थ्य आज भी एक उपेक्षित और कलंकित विषय बना हुआ है। आम समाज में भी इसके बारे में खुलकर बात करना दुर्लभ है, लेकिन यह चुप्पी तब और भयावह रूप ले लेती है जब हम उन व्यक्तियों की बात करते हैं जो पारंपरिक यौन और लैंगिक पहचान से अलग हैं जैसे कि ट्रांसजेंडर, गे, लेस्बियन, बाइसेक्शुअल, क्वीर और नॉन-बाइनरी लोग। इन सभी को मिलाकर अल्टरनेट एसओजीआई (सेक्सुअल ओरिएंटेशन एंड जेंडर आइडेंटिटी) समुदाय कहा जाता है। यह समुदाय न केवल सामाजिक अस्वीकार्यता का शिकार है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित भी है।

एसओजीआई समुदाय के सदस्य अक्सर बचपन से ही भेदभाव, तिरस्कार और हिंसा का सामना करते हैं. कभी स्कूलों में मजाक बनकर, कभी घर से निकाले जाने पर, तो कभी कार्यस्थलों पर अस्वीकार किए जाने के रूप में। यह बहिष्कार धीरे-धीरे मानसिक पीड़ा, अकेलेपन और आत्म-संदेह को जन्म देता है। कई अध्ययन बताते हैं कि एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के लोग डिप्रेशन, एंग्जायटी और आत्महत्या की प्रवृत्ति के शिकार आम लोगों की तुलना में कई गुना अधिक होते हैं।

ट्रांसजेंडर समुदाय के भीतर आत्महत्या का जोखिम बेहद चिंताजनक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 31 प्रतिशत ट्रांसजेंडर लोगों ने आत्महत्या का प्रयास किया है। इसके पीछे सामाजिक तिरस्कार, रोजगार का अभाव, हिंसा, और हेल्थकेयर सिस्टम द्वारा उपेक्षा प्रमुख कारण हैं।

भारत का स्वास्थ्य ढांचा वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद कमज़ोर है। 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर औसतन 0.3 मनोचिकित्सक हैं। जब सामान्य नागरिकों तक ही सेवाएं नहीं पहुँच रही हैं, तो एसओजीआई समुदाय की स्थिति और भी बदतर हो जाती है। बहुत से डॉक्टर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एलजीबीटीआईक्यू+ पहचान को ‘बीमारी’ मानते हैं या इसे ‘सुधारने’ की कोशिश करते हैं। इससे व्यक्ति इलाज के बजाय और अधिक मानसिक उत्पीड़न का शिकार होता है।

इसके अलावा, एसओजीआई  समुदाय को स्वास्थ्य संस्थानों में भेदभाव, उपहास और असंवेदनशील व्यवहार का सामना करना पड़ता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग टॉयलेट या वार्ड की व्यवस्था तक नहीं है, जिससे वे स्वास्थ्य सेवाओं से दूर भागने को मजबूर होते हैं।

भारत के शहरी इलाकों जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु में जहां कुछ गैर सरकारी संगठन और काउंसलिंग सेवाएं एलजीबीटीआईक्यू+ फ्रेंडली बन रही हैं, वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में स्थिति काफी चिंताजनक है। यहाँ न तो संवेदनशील डॉक्टर हैं और न ही एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के लिए कोई विशेष मानसिक स्वास्थ्य नीति या योजना।

हाल के वर्षों में भारत में  कुछ महत्वपूर्ण कानूनी धारा 377 की समाप्ति, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम आदि जैसे कदम उठाए हैं लेकिन एसओजीआई समुदाय  के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों का कहना है कि ज़मीनी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सुधारों का अभाव है।  

एसओजीआई समुदाय के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों का कहना है कि डॉक्टरों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए ट्रेनिंग अनिवार्य होनी चाहिए। क्षेत्रीय भाषाओं में काम करने वाले काउंसलिंग केंद्रों और टोल-फ्री हेल्पलाइनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।स्कूल स्तर से ही यौन विविधता और मानसिक स्वास्थ्य को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा ताकि अगली पीढ़ी में समावेशी दृष्टिकोण विकसित हो।एलजीबीटीआईक्यू+ संगठनों और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी हो, जिससे स्थानीय स्तर पर सहायता और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें।  सरकार को एलजीबीटीआईक्यू+ समुदाय की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति पर राज्यवार आंकड़े एकत्र करने चाहिए ताकि नीतियाँ ज़मीनी जरूरतों पर आधारित बन सकें।

भारत में एसओजीआई समुदाय का मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर, मगर अदृश्य संकट बना हुआ है।  संगठनों का कहना है कि जब तक समाज इस चुप्पी को नहीं तोड़ेगा और सरकार अपने नीतिगत ढांचे में सुधार नहीं लाएगी, तब तक यह समुदाय अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई में अकेला पड़ता रहेगा। मानसिक स्वास्थ्य केवल इलाज की नहीं, बल्कि गरिमा, स्वीकृति और आत्मसम्मान की भी लड़ाई है।

आखिर क्यों घट रही है गंगा डॉल्फिन की आबादी ?

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। मनुष्य तो मनुष्य पशु-पक्षियों और जलीय जीवों को पर्यावरण प्रदूषण से बहुत नुक्सान पहुंच रहा है, लेकिन इनका कोई धणी-धोरी नजर नहीं आता। यह बहुत ही दुखद है कि आज हमारे देश में पर्यावरण प्रदूषण से जीव-जंतुओं की जान पर बन आई है।जल में होने वाले रासायनिक प्रदूषण से आज जलीय जीवों की अनेक प्रजातियां ख़तरे में हैं।जल में पालीथीन युक्त कचरा भी जलीय जीवों के लिए एक प्रमुख खतरा बनकर उभरा है। पाठकों को बताता चलूं कि आज इंसानी दरियादिली के लिए दुनियाभर में मशहूर गंगा नदी डॉल्फिन लगातार खतरे में है।जल में रासायनिक तत्वों की अधिकता के साथ ही यह( गंगा नदी डॉल्फिन कई बार मछली पकड़ने वालों के जाल में उलझ जाती हैं, और इन्हीं चीजों ने इन्हें खतरे में डाल दिया है। उल्लेखनीय है कि गंगा और गंगे डॉल्फिन का गहरा रिश्ता है। गंगा को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता रहा है, लेकिन देश में राष्ट्रीय जलीय जीव के रूप में जानी जाने वाली गंगे डॉल्फिन(गंगेटिक डॉल्फिन) अब गंगा की कम होती निर्मलता-स्वच्छता की ही तरह खत्म हो रही है। पाठकों को बताता चलूं कि आज से चार-पांच साल पहले एक टीवी चैनल के हवाले से यह खबरें आईं थीं कि गंगा में सिर्फ 3500 गंगे डॉल्फिन ही बचीं हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अंतिम गणना में उत्तर प्रदेश व असम की नदियों में इनकी संख्या क्रमश: 1,275 व 962 पाई गई थी।एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार गंगा डॉल्फिन की गणना असम सरकार ने 2018 में जनवरी से मार्च माह के बीच की थी। वहीं, उत्तर प्रदेश में 2015 में इनकी संख्या 1,272 थी, जबकि 2012 में इनकी गणना 671 की गई थी।एक अन्य उपलब्ध जानकारी के अनुसार असम में गंगा डॉल्फिन की गणना तीन नदियों में की गई थी तथा ब्रह्मपुत्र नद में इनकी संख्या 877 पाई गई थी। वहीं, राज्य में इनकी कुल संख्या 962 थी। इसके संरक्षण के लिए असम सरकार ने भी इसे राज्य जलीय जीव घोषित किया है। राज्य में इनकी आबादी को कम होने से बचाने के लिए नदियों से सिल्टिंग और रेत उठाने से रोक लगाई गई। यहां पाठकों को बताता चलूं कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने गंगा डॉल्फिन को भारत में एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया है। यह हालात तब हैं, जब देश में नमामि गंगे अभियान (वर्ष 2014 में) और जल जीवन मिशन के तहत पहाड़ से लेकर मैदान तक गंगा को साफ करने का काम तेज गति से चलाया गया। पाठकों को बताता चलूं कि कुछ साल पहले वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने यह चिंताएं जताईं थी कि गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन का अस्तित्व गंगा से जुड़ा हुआ है और अगर गंगा दूषित होती रही, तो डॉल्फिन भी विलुप्त हो जाएगी। तीव्र औधोगिकीकरण, शहरीकरण, तेज विकास गतिविधियों, मानवीय गतिविधियों के कारण जैसे-जैसे गंगा मैली होती जा रही है, उससे न सिर्फ डॉल्फिन बल्कि गंगा का अस्तित्व भी खतरे में है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि डॉल्फिन के अलावा गंगा में पाए जाने वाले कछुए और घड़ियाल जैसे कई जलीय जीव भी अब खतरे की जद में आ गए हैं। गौरतलब यह भी है कि भारत में डॉल्फिन गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी में पाई जाती है और यह मीठे पानी का जीव है।गंगा डॉल्फिन भोजन के माध्यम से रसायनों के खतरनाक मिश्रण के संपर्क में आ रही है । इस संदर्भ में एक्सपर्ट्स यह कहना है कि डॉल्फिन जिन छोटी मछलियों को अपने खाने के रूप में लेती है, उनमें 39 किस्म के खतरनाक केमिकल्स मौजूद हैं। दरअसल, हेलियन में प्रकाशित भारतीय वन्यजीव संस्था के सर्वे में दावा किया गया है कि मीठे पानी में रहने वाले जलीय जीवों के फूड से खतरनाक किस्म के केमिकल्स का पता चला है। गौरतलब है कि हेलियन मैगज़ीन में प्रकाशित रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि गंगा में रहने वाली गंगा डाल्फिन की आबादी 1957 से 2025 में यानी मात्र 68 सालों में आधी हो गई है, जो कि एक बहुत बड़े खतरे का संकेत है।अगर यही स्थितियां रहीं तो शायद आने वाली पीढ़ियां गंगा डाल्फिन का दीदार ही न कर पाएं और यह कहीं किताबों का हिस्सा बनकर ही न रह जाएं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि दुनियाभर में डॉल्फिन की केवल पांच प्रजातियां ही बची हैं और वे भी गंभीर खतरों का सामना कर रहीं हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज हमारे देश में खेती में अंधाधुंध रूप से विभिन्न कीटनाशकों, उर्वरकों और रासायनों का प्रयोग किया जाता है ताकि उत्पादन अच्छा हो सके, लेकिन यह कहीं न कहीं जलीय जीवों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही घातक सिद्ध हो रहा है। विभिन्न अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट ,नदियों में घरेलू अपशिष्टों का बेरोकटोक बहाव, लगातार बढ़ता प्रदूषण ,प्लास्टिक प्रदूषण , विभिन्न भारी धातुओं के प्रदूषण के कारण डॉल्फिन की सेहत और प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं, अवैध खनन और नदियों में तेज वाइब्रेशन पैदा करने वाले जहाजों के कारण, तथा विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण से भी डॉल्फिन को नुकसान पहुंचता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार नदियों में लगातार जलस्तर में कमी ,अवैध फिशिंग(शिकार), बांधों का निर्माण और जलवायु परिवर्तन भी कहीं न कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से डॉल्फिन अस्तित्व के लिए बड़ी व गंभीर मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। डॉल्फिन जलीय इकोसिस्टम के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण जलीय जीव है। यदि हम यहां पर गंगा डॉल्फिन की खासियतों के बारे में बात करें तो गंगा डॉल्फिन एक नेत्रहीन(जैसा कि इसकी आंखों में लैंस नहीं होता है) जलीय जीव है, जिसके सूंघने की शक्ति अत्यंत तीव्र होती है। इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका है।गंगा डॉल्फिन विश्व भर की नदियों में पाई जाने वाली डॉल्फिन की पाँच प्रजातियों में से एक है। इस प्रकार की डॉल्फिन मुख्य तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप खासतौर पर गंगा-ब्रह्मपुत्र-सिंधु-मेघना और कर्णाफुली-सांगू  नदी तंत्र में पाई जाती हैं। ये अल्ट्रासोनिक ध्वनियाँ उत्सर्जित करके शिकार करतीं हैं, जो मछलियों और अन्य शिकार से टकराती हैं, जिससे उन्हें एक छवि ‘देखने’ में मदद मिलती है। गौरतलब है कि यह इकोलोकेशन (प्रतिध्वनि निर्धारण) और सूंघने की अपार क्षमताओं से अपना शिकार और भोजन तलाशती है। यह मांसाहारी प्राचीन जलीय जीव जो करीब 10 करोड़ साल से भारत में मौजूद है। विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार  मादा की औसत लम्बाई नर डोल्फिन से अधिक होती है। एक वयस्क गंगा डॉल्फिन का वजन 70 किलोग्राम से 90 किलोग्राम के बीच हो सकता है।इसकी औसत आयु 28 वर्ष रिकार्ड की गयी है। भारत में ये असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में पाई जाती है। पाठकों को बताता चलूं कि ‘सन ऑफ़ रिवर’ कहने वाले डोल्फिन के संरक्षण के लिए सम्राट अशोक ने कई सदी पूर्व कदम उठाये थे। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने 1972 के भारतीय वन्य जीव संरक्षण कानून के दायरे में भी गंगा डोल्फिन को शामिल किया था तथा 1996 में ही इंटर्नेशनल यूनियन ऑफ़ कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर भी डॉल्फिन को विलुप्त प्राय जीव घोषित कर चुका है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इसकी प्रजाति पर खतरे का एक बड़ा कारण इसका शिकार किया जाना है। दरअसल, इसका शिकार मुख्यत: तेल के लिए किया जाता है, जिसे अन्य मछलियों को पकड़ने के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह एक स्तनपायी जीव है और इसलिए पानी में सांस नहीं ले सकता है, इसलिए इसे हर 30-120 सेकंड में पानी की सतह पर आना पड़ता है। बिहार व उत्तर प्रदेश में इसे ‘सोंस’, जबकि असमी भाषा में इसे ‘शिहू’ के नाम से जाना जाता है। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि ऐसा नहीं है कि सरकार ने इनके संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। सच तो यह है कि इसकी घटती आबादी को लेकर सरकार ने न सिर्फ चिंता जताई है बल्कि इसको ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण और ठोस कदम भी उठाए हैं। भारत सरकार ने डॉल्फिनों के संरक्षण के लिए 5 अक्टूबर 2009 में इस जलीय जीव को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया। इतना ही नहीं, हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2020 में डॉल्फिन संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट डॉल्फिन भी लांच किया, जिसका उद्देश्य मीठे पानी और गंगा डॉल्फिन दोनों के संरक्षण के साथ साथ इनके प्राकृतिक आवास को भी संरक्षित करना था। डॉल्फिन मित्र कार्यक्रम, माई गंगा माई डॉल्फिन कार्यक्रम डॉल्फिन संरक्षण के अन्य प्रमुख कार्यक्रम हैं।यह विडंबना ही है कि आज दुनियाभर में नदियों में पाई जाने वाली डॉल्फिन की केवल पांच प्रजातियां ही बचीं हैं और ये सभी खतरे में हैं। यदि हमें इस जीव का संरक्षण करना है तो हमें इसके लिए कृत संकल्पित होकर आगे आना होगा और गंगा बेसिन में पर्यावरण नियमों को सख्ती से और ईमानदारी से लागू करना होगा। आज हमारे देश में बहुत से पर्यटक आते हैं, स्थानीय व दूर-दराज के क्षेत्रों से भी लोग गंगा नदी के दर्शन हेतु पधारते हैं, लेकिन जरूरत इस बात की है कि नदियों के पर्यावरण पर व आसपास के वातावरण की स्वच्छता पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए। नदियों में अपशिष्टों के बहाव पर प्रभावी व ठोस नियंत्रण किया जाना चाहिए। आज नदियों में बड़ी मात्रा में गाद जमा हो जाती है, इसलिए नदियों की नियमित साफ-सफाई बहुत ही जरूरी है। नदियों पर बने बांध भी इनकी इनकी वृद्धि को प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि ये संरचनाएँ पानी के प्रवाह को बाधित करती हैं।

कहना ग़लत नहीं होगा कि गंगा डॉल्फिन (गंगा नदी डॉल्फिन) का संरक्षण आज कई तरीकों से किया जा सकता है। मसलन, उनके आवासों को हम सुरक्षित करें, जल प्रदूषण को कम करें, और अवैध शिकार और मछली पकड़ने को रोकें, और इसके संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल करने की ओर ध्यान केंद्रित करें। अनुसंधान और निगरानी बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी है। सच तो यह है कि हम डॉल्फिनों की आबादी, उनके व्यवहार और आवासों की सतत् निगरानी करें, ताकि उनके संरक्षण के लिए बेहतर रणनीतियां बनाईं जा सकें। अंत में यही कहूंगा कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी गंगा डॉल्फिन अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की लुप्त प्रायः सूची में शामिल है। सरकार द्वारा शुरू किया जा रहा प्रोजेक्ट डॉल्फिन इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। हमें इसे बचाने के लिए कृत संकल्पित होकर अपने यथेष्ठ प्रयासों को अंजाम देना होगा।

सुनील कुमार महला

पाक-ड्रैगन की एक चाल: भारत का सतर्कता बरतना आवश्यक !

हाल ही में भारत के थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर जॉइंट वारफेयर स्टडीज’ ने एक खुलासा किया है कि चीन की सैटेलाइट मदद से पाकिस्तान को अपना एयर डिफेंस सिस्टम और रडार फिर से व्यवस्थित करने में मदद मिली। साथ ही चीन ने पाकिस्तान को एयर डिफेंस सिस्टम भी दिया था। वास्तव में, यह वाकई बहुत चिंताजनक बात है कि 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत पाकिस्तान के बीच हुए सीमा-संघर्ष में चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था।यह खुलासा हुआ है कि चीन ने पाकिस्तान को कूटनीतिक ही नहीं, बल्कि सैन्य समर्थन भी दिया था और चीन ने पाकिस्तानी सेना को सैटेलाइट सपोर्ट भी दिया था। पाठकों को बताता चलूं कि ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में एक भारतीय थिंक टैंक के हवाले से यह दावा किया है। इस रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि चीन ने पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम और रडार को सही जगह पर तैनात करने के लिए अपनी सैटेलाइट्स की मदद दी थी, ताकि भारत की जवाबी कार्रवाई से बचा जा सके। कहना ग़लत नहीं होगा कि पाकिस्तान तो भारत के लिए सामरिक और आतंकवादी समस्या है ही, चीन भी भारत के लिए सामरिक चुनौती है। हालांकि, यह बात अलग है कि भारत सरकार ने सार्वजनिक तौर पर भारत पाकिस्तान संघर्ष में चीन के शामिल होने की बात नहीं की है, लेकिन पाकिस्तान ने कहा है कि उसने लड़ाई में चीनी हथियारों का इस्तेमाल किया। वास्तव में यह दर्शाता है कि चीन ने कूटनीतिक समर्थन से आगे बढ़कर पाकिस्तान को लॉजिस्टिक और खुफिया मदद के अलावा सैन्य मदद भी मुहैया कराई। इस रिपोर्ट की गंभीरता का अंदाजा मात्र इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस सेंटर फॉर जॉइंट वारफेयर स्टडीज ने यह जानकारी दी है, उसके एडवाइजरी बोर्ड में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भारत की तीनों सेनाओं के शीर्ष कमांडर शामिल हैं। थिंक टैंक के अनुसार चीन ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान एक तरह से अपने हथियारों का परीक्षण करने की कोशिश की, लेकिन चीन के एयर डिफेंस सिस्टम का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। वहीं भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने काफी बेहतरीन और उल्लेखनीय काम किया और पाकिस्तान के लगभग हर हवाई हमले को असफल कर दिया। कहना ग़लत नहीं होगा कि यदि भविष्य में कभी भारत और चीन का संघर्ष होता है तो पाकिस्तान चीन के समर्थन में उतर सकता है। पाठक जानते हैं कि 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की हत्या के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था। भारत ने 6-7 मई की रात बदले की कार्रवाई के तहत आपरेशन ‘सिंदूर’ चलाकर पाकिस्तान स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिससे भारत और पाकिस्तान में संघर्ष शुरू हो गया। भारत पाकिस्तान संघर्ष के दौरान पाकिस्तान ने भारत के कई शहरों पर हवाई हमले किए, लेकिन भारत ने अपने एयर डिफेंस सिस्टम से पाकिस्तान के सभी हमलों को नेस्तनाबूद कर दिया। इसके बाद भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के कई सैन्य अड्डों और एयर बेस पर हवाई हमले किए। इसके बाद अमेरिका की मध्यस्थता के बाद 10 मई को दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम हो गया। हाल फिलहाल,बेश़क भारत और चीन अपने आपसी संबंधों को बेहतर बनाने में जुटे हैं। लद्दाख वास्तविक नियंत्रण रेखा वाले युद्ध-क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। अमरीकी टैरिफ दबाव के मद्देनजर चीन भारत के साथ व्यापार को बढ़ाने के पक्ष में है, लेकिन चीन चुपचाप पीठ में छुरा घोंपने वाला देश रहा है। चीन हमेशा हमेशा से हिंदी चीनी भाई-भाई का राग अलापता रहा है लेकिन ड्रैगन पर कभी भी भरोसा नहीं जताया जा सकता है। दरअसल चीन कभी भी यह नहीं चाहता है कि भारत वैश्विक स्तर पर एक बड़ी आर्थिक व सामरिक शक्ति के रूप में उभरे। इसलिए चीन पाकिस्तान को चोरी-छिपे हथियारों के साथ ही आर्थिक मदद भी मुहैया कराता आया है। हालिया भारत पाकिस्तान सैन्य संघर्ष में चीन ने पाकिस्तान को वायु रक्षा प्रणाली, मिसाइलें व ड्रोन भी उपलब्ध कराए। कहना ग़लत नहीं होगा कि पाकिस्तान सदियों से हमारे लिए एक शाश्वत चुनौती रहा है हालांकि, भारतीय सेनाओं ने अपनी डिफेंस तैयारियों से पाकिस्तान की सामरिक तैयारियों को ध्वस्त कर दिया है। भारत ने पाकिस्तान के प्रमुख एयरबेस तबाह कर दिए। मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान 250 किलोमीटर दूर पहुंचे और हवाई मिसाइलें दागीं और पाकिस्तान के 13 से ज्यादा एयरबेस, ड्रोन सेंटर, एविएशन और रडार स्टेशनों को निशाना बनाया। इन हमलों ने पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली को फेल कर दिया, जिससे पाकिस्तान को संघर्ष विराम(सीजफायर) के लिए मजबूर होना पड़ा। भारत की पाकिस्तान पर तगड़ी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान से किसी भी लड़ाकू विमान का उड़ान भरना नामुमकिन है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के विभिन्न एयरबेस को तबाह करने के बाद पाकिस्तान ने अब अपने तबाह एयरबेस के पुनर्निर्माण के लिए निविदाएं सार्वजनिक की हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ सामरिक तौर पर पूरी तरह से तैयार व मुस्तैद रहना चाहता है। हाल फिलहाल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जिस तरह से पाकिस्तान को लोन मंजूर करने के बाद 11 नई शर्तें लगाई हैं, उससे साफ है कि भारत का कूटनीतिक दबाव काम कर गया है क्योंकि, वह पहले की कई शर्तें पूरा नहीं कर पाया है। हालांकि,इन शर्तों में से एक भी शर्त ऐसी नहीं है, जो युद्ध और आतंकवाद को रोकने वाली हो। यहां पाठकों को बताता चलूं कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से कुल 2.4 अरब डॉलर का लोन मिलने का रास्ता साफ हुआ है। 9 मई को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस लोन को मंजूरी दी थी और भारत ने इसका बहुत ही सख्त विरोध किया था। लेकिन, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने फिर भी इसे मंजूरी दी, जिसको लेकर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप सरकार पर भी उंगली उठ रही है कि उसने इसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की। यहां यह भी गौरतलब है कि हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुनिया को यह दो टूक बताया कि पाकिस्तान को किसी भी तरह की वित्तीय सहायता देना ‘आतंकवाद की फंडिंग’ करने से जरा भी कम नहीं है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सीधे तौर पर कहा कि वह कम से कम पाकिस्तान को दी जाने वाली 1 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता पर फिर से विचार करे। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अचानक से पाकिस्तान पर कर्ज के बदले 11 नई शर्तें लगा दी हैं। बहरहाल, केंद्र सरकार ने भारतीय रक्षा बजट बढ़ाने की बात कही है, जिससे भारतीय सुरक्षा और मजबूत हो सकेगी। गौरतलब है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद यह फैसला लिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय रक्षा बजट बढ़कर 7 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा हो जाएगा। हाल फिलहाल भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए रक्षा बजट में 26 फीसदी अतिरिक्त पूंजी के आवंटन की घोषणा की गई है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ऑपरेशन सिंदूर के बाद रक्षा बजट लगभग 50,000 करोड़ रुपये बढ़ाने वाली है। जानकारी के अनुसार ये पैसा एक अलग बजट से दिया जाएगा। पाठकों को बताता चलूं कि 1 फरवरी, 2025 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025/26 के बजट में रक्षा के लिए 6.81 लाख करोड़ रुपये दिए थे। ये पिछले साल के 6.22 लाख करोड़ रुपये से 9.2% ज़्यादा था। उल्लेखनीय है कि अभी, रक्षा बजट भारत के कुल बजट का 13% है। ये सभी मंत्रालयों में सबसे ज़्यादा है। पाठकों को बताता चलूं कि भारतीय रक्षा बजट अब भी वह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र 1.9 फीसदी ही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार रक्षा बजट में जो बढ़ोतरी की गई है, उसका अधिकतम हिस्सा महंगे, विदेशी हथियार और उपकरण खरीदने पर ही खर्च हो सकता है, लेकिन भारत को स्वदेशी रक्षा-उत्पादन तुरंत बढ़ाने की आवश्यकता है। पाठकों को बताता चलूं कि भारत पाकिस्तान संघर्ष में हमारी ब्रह्मोस मिसाइल ने  रिकॉर्ड कायम किए। इसी क्रम में हमारे देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 11 मई 2025 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ब्रह्मोस मिसाइल की अत्याधुनिक उत्पादन इकाई का उद्घाटन भी किया। यह यूनिट उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लखनऊ नोड पर स्थापित की गई है। यह हमारे देश की एक बड़ी उपलब्धि है। हमारे देश के लिए यह किसी उपलब्धि से कम बात नहीं है कि आज दुनिया के करीब 20 देश हमसे ब्रह्मोस मिसाइल खरीदना चाहते हैं। एस-400, स्वदेशी प्लेटफॉर्म, विमान-रोधी समर और आकाश मिसाइल सिस्टम आदि का प्रदर्शन कमाल का रहा। हमने हमारी रक्षा तैयारियों से चीन और पाकिस्तान दोनों को कड़ा संदेश दिया। हमने दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलें नेस्तनाबूद कर दिए। ये हमारे देश के डिफेंस रिसर्च और डेवलपमेंट को दिखाते हैं, लेकिन हमें अभी भी रक्षा तैयारियों पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है। सच तो यह है कि हमें पाकिस्तान के साथ ही साथ चीन से भी विशेष सर्तक रहने की जरूरत है।

सिंधु जल समझौते पर क्या होगा भारत का रुख?

संजय सिन्हा

सिंधु जल समझौते को लेकर सुर्खियां बनी हुई हैं। हालांकि भारत और पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं लेकिन सिंधु जल समझौता सस्पेंड रहेगा। 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 पर्यटकों की पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों की ओर से हत्या के बाद भारत ने पड़ोसी देश के खिलाफ कई कदम उठाए थे। इन्हीं में से एक कदम के तहत सिंधु जल समझौते को सस्पेंड किया गया था। आपको बता दूं कि आजादी के बाद सिंधु जल के बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय तक विवाद चला। आखिरकार, 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल समझौता हुआ। उसके बाद से अब तक दोनों देशों के बीच जो भी युद्ध हुए, उसमें भी इस संधि पर आंच नहीं आई थी लेकिन यह भी सच है कि इस दौरान भारत ने कई बार पाकिस्तान को इस समझौते को रद्द करने की चेतावनी दी थी।


1960 में हुए सिंधु जल समझौते की अहमियत, इसे लेकर दोनों देशों के बीच चले विवाद, इस विवाद की जड़ और राजनीतिक-कानूनी पहलुओं को समझने में डॉक्टर एजाज हुसैन की लिखी किताब  काफी मददगार है। हिमालय से निकलने वाली यह नदी भारत में जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिल जाती है। 65 साल पहले हुए सिंधु जल समझौते को दुनिया की सबसे कामयाब ऐसी संधियों में शामिल किया जाता है। पाकिस्तान में करीब 80% खेती और एक तिहाई पनबिजली उत्पादन में सिंधु नदी का योगदान है। ऐसे में उसकी इकॉनमी के लिए इस नदी की काफी अहमियत है। भारत और पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं लेकिन सिंधु जल समझौता सस्पेंड रहेगा। 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 पर्यटकों की पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों की ओर से हत्या के बाद भारत ने पड़ोसी देश के खिलाफ कई कदम उठाए थे। इन्हीं में से एक कदम के तहत सिंधु जल समझौते को सस्पेंड किया गया था।आजादी के बाद सिंधु जल के बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय तक विवाद चला। आखिरकार, 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल समझौता हुआ। उसके बाद से अब तक दोनों देशों के बीच जो भी युद्ध हुए, उसमें भी इस संधि पर आंच नहीं आई थी लेकिन यह भी सच है कि इस दौरान भारत ने कई बार पाकिस्तान को इस समझौते को रद्द करने की चेतावनी दी थी।

हिमालय से निकलने वाली यह नदी भारत में जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिल जाती है। 65 साल पहले हुए सिंधु जल समझौते को दुनिया की सबसे कामयाब ऐसी संधियों में शामिल किया जाता है। पाकिस्तान में करीब 80% खेती और एक तिहाई पनबिजली उत्पादन में सिंधु नदी का योगदान है। ऐसे में उसकी इकॉनमी के लिए इस नदी की काफी अहमियत है। खैर, डॉक्टर हुसैन की किताब में 8 चैप्टर हैं। इसकी शुरुआत में सिंधु बेसिन सिस्टम के बारे में बताया गया है और यह भी कि क्यों इसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद था। इसे खत्म कराने के लिए जब सिंधु जल समझौता हुआ तो उसमें वर्ल्ड बैंक की क्या भूमिका रही। किताब में यह भी बताया गया है कि समझौते की शर्तें क्या हैं और इसे किस तरह से लागू किया गया।
इसमें और भी कई बातों का जवाब मिलता है। जैसे, 1960 में किस वजह से भारत ने विवाद को खत्म करने के लिए वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता स्वीकार की? यह भी कि वैश्विक वित्तीय संस्थान की मदद लेने को पाकिस्तान क्यों राजी हुआ? सवाल यह भी है कि वर्ल्ड बैंक के मध्यस्थता की प्रक्रिया में शामिल होने का कारण क्या था? डॉक्टर हुसैन लिखते हैं, डेविड  ने कॉलियर्स मैगजीन में लिखे एक लेख में सिंधु जल बेसिन के डिवेलपमेंट का प्रस्ताव रखा था। इसी वजह से वर्ल्ड बैंक ने इसमें भूमिका निभाई।


वह लिखते हैं कि भारत और पाकिस्तान ने राजनीतिक वजहों से वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता मंजूर की। डॉक्टर हुसैन का यह भी दावा है कि वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को इस समझौते को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। वह बताते हैं कि इस संधि के तहत सिंधु आयोग बनाया गया जिसका इसे लागू करने में बड़ा योगदान रहा है। संधि होने के बाद पांच विवाद हुए हैं, जिनका जिक्र किताब में किया गया है और जिसे सुलझाने में दोनों पक्ष कामयाब रहे। सिंधु आयोग की भी विवादों को सुलझाने में बड़ी भूमिका रही है, वहीं इन विवादों के कानूनी और राजनीतिक पहलुओं पर भी किताब में रोशनी डाली गई है।डॉक्टर हुसैन जिस सबसे बड़ी बात की ओर इशारा करते हैं, वह यह है कि जब समझौता हुआ था, तब दुनिया को जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली दुश्वारियों का ख्याल दूर-दूर तक नहीं था, जबकि आज यह बड़े संकट के रूप में उभरा है। भारत और पाकिस्तान में पिछले कुछ वर्षों में इसी वजह से एक्स्ट्रीम वेदर पैटर्न दिख रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान भी हुआ है। ऐसे में डॉक्टर हुसैन की किताब सिंधु नदी पर जलवायु परिवर्तन के असर को समझने में मददगार है।


आगे क्या होगा

भारत समय-समय पर इस जल संधि को लेकर नाराजगी का इजहार करता आया है। उसे लगता है कि समझौते में ज्यादातर पानी पाकिस्तान को दिया गया और उसके साथ इंसाफ नहीं हुआ। 2023 में उसने पाकिस्तान से इसमें संशोधन के लिए कहा था, लेकिन बात नहीं बनी। अब जबकि भारत ने संधि को सस्पेंड कर दिया है तो इस बारे में आने वाले वक्त में दोनों देशों के बीच जरूर बात होगी और तब यहां की सरकार इसमें तब्दीली का आग्रह करेगी क्योंकि वह समझौते के तहत मिलने वाले पानी से  असंतुष्ट है। संधि के मुताबिक़, सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां बताते हुए इनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया  जबकि रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया। इसके मुताबिक़, भारत पूर्वी नदियों के पानी का, कुछ अपवादों को छोड़कर, बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है। वहीं पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार भारत को भी दिया गया था. जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी। इस संधि में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत करने और साइट के मुआयना आदि का प्रावधान भी था।


इसी संधि में सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया. इस आयोग के तहत दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था। संधि में दोनों कमिश्नरों के बीच किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत का प्रावधान है। इसमें यह भी था कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है तो पहला देश उसका जवाब देगा. इसके लिए दोनों पक्षों की बैठकें होंगी। बैठकों में भी अगर कोई हल नहीं निकल पाया तो दोनों देशों की सरकारों को इसे मिलकर सुलझाना होगा। साथ ही ऐसे किसी भी विवादित मुद्दे पर तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन में जाने का प्रावधान भी रखा गया है।पाकिस्तान ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के साथ सिंधु जल संधि का मुद्दा उठाया। सिंधु जल संधि को पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद नई दिल्ली ने स्थगित कर दिया है।संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार अहमद ने भारत का सीधे तौर पर उल्लेख किए बिना हिंद महासागर रिम एसोसिएशन से अपने बहिष्कार पर भी अफसोस जताया और भारत की नौसैनिक श्रेष्ठता को आक्रामक नौसैनिक विस्तार बताया।

सिंधु जल संधि, जिसे कभी सीमा पार सहयोग का एक मॉडल माना जाता था, अब पतन के कगार पर है। अगर भारत संधि रद्द कर देता है और पश्चिमी नदियों के प्रवाह को रोक देता है, तो पाकिस्तान सूखे, अकाल और आर्थिक विनाश की धीमी गति वाली आपदा का सामना करता है। फिर भी, भारत की विशाल मात्रा में पानी संग्रहीत करने की अक्षमता बाढ़ की द्वितीयक आपदा को खोल सकती है जो पाकिस्तान की दुर्दशा को और बढ़ा देगी। दोनों परिदृश्य – भुखमरी या डूबना – पहले से ही कगार पर खड़े राष्ट्र के लिए एक भयावह तस्वीर पेश करते हैं।अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विश्व बैंक के नेतृत्व में, मध्यस्थता और वृद्धि को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। भारत के लिए, पानी को भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का प्रलोभन मानवीय और राजनयिक लागतों के खिलाफ तौला जाना चाहिए।

संजय सिन्हा

पाकिस्तान के नापाक इतिहास से सबक लेने का समय!

डॉ. बालमुकुंद पांडेय 

मूल प्रश्न यह है कि पाकिस्तान आखिर क्यों गलत नीतियों का चयन करता है?

पाकिस्तान क्यों सभ्य राष्ट्र – राज्यों  के मौलिक सिद्धांतों का पालन नहीं करता है? कौन से आधारभूत तत्व हैं जो पाकिस्तान द्वारा गलत नीतियों  एवं विकल्पों के चयन के लिए उत्तरदाई है ? किसी भी राष्ट्र – राज्य की राष्ट्रीय पहचान उसके राष्ट्रीय व्यवहार ,राष्ट्रीय प्राथमिकताओं ,सफल कूटनीति, स्थिर सरकार एवं उसे राष्ट्र – राज्य के वैश्विक दृष्टिकोण को आकार देने वाला महत्वपूर्ण कारक है। 1930 में मुस्लिम लीग ने अपने इलाहाबाद अधिवेशन में मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र का विचार रखा था लेकिन इस प्रत्यय को ठोस आकार देने का श्रेय रहमत अली चौधरी को जाता हैं जिन्होंने 1933 में लंदन में जारी एक ‘ पंपलेट’ में” पाकिस्तान” शब्द का प्रयोग करके उसकी स्थापना की अपील की थी ।”मैं भारत की पांच उत्तरी इकाइयों पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रदेश (अफगान), कश्मीर, सिंध  एवं बलूचिस्तान में निवास कर रहे पाकिस्तान के 30 मिलियन मुसलमानों की ओर से अपील  करता हूँ “। इसमें उनकी राष्ट्रीय मान्यता की मांग सम्मिलित है जो भारत में निवास कर रहे अन्य निवासियों से अलग हैं एवं उसको सामाजिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक आधार पर स्थापित करना चाहिए। कालांतर में  मोहम्मद अली जिन्ना ने इस विचार को ग्रहण कर लिया एवं अपने पाकिस्तान की मांग को एक राजनीतिक कार्यक्रम में बदल दिया ।

पाकिस्तान के लिए सेना  एवं धार्मिक कट्टरता जीवित संस्था हैं । तमाम नकारात्मक परिणामों के बावजूद इन दोनों की पाकिस्तान के परिदृश्य में उपयोगिता बनी हुई हैं । देश अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए सेना का गठन करते हैं लेकिन, पाकिस्तान की सेना  की भूमिका सीमाओं की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि आंतरिक विप्लव में भूमिका सराहनीय है । पाकिस्तान के आवाम में  सेना और सरकार से असंतोष का उत्पन होता हैं तो युद्ध,उन्माद , दहशतगर्दी और  सीमा पार उन्मादी कार्य प्रारंभ हो जाता हैं। पाकिस्तान की भौगोलिक सीमाओं के अंतर्गत आत्मपरीक्षण  एवं आत्ममूल्यांकन की क्षमता का लोप हो चुका है। इसका तात्पर्य है कि भविष्य में सुधार की संभावना नहीं है। राजनीतिक  विश्लेषकों  का मानना हैं कि पाकिस्तान एक असफल राज्य नहीं हैं बल्कि एक असुरक्षित राज्य है, जो गलत पड़ोसी की नीतियों का चयन करता है, आंतरिक स्तर पर अस्थिर तत्वों से प्रभावित रहता है। पाकिस्तान सभ्य  राष्ट्र – राज्यों के राजनीतिक एवं कूटनीतिक  शिष्टाचार को भूल चुका है।

23 अक्टूबर ,1947 को तत्कालीन आर्मी प्रमुख जनरल अकबर खान के नेतृत्व में पाकिस्तानी   कबायलियों (सेना के सहयोग से) ने कश्मीर पर बलात आक्रमण किए थे । ब्रिटिश कमांडरों ने कश्मीर के खिलाफ विद्रोह किया और ‘ गिलगित’ को पाकिस्तान को सौंप दिया गया था। इस युद्ध विराम समझौते का परिणाम यह हुआ कि जम्मू- कश्मीर रियासत भारत के साथ विलय हुआ था। तत्कालीन जम्मू – कश्मीर रियासत के विलय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंचालक गोलवलकर जी की महत्वपूर्ण भूमिका  थी। इस युद्ध का परिणाम अनिर्णायक था हालांकि सबसे तटस्थ मूल्यांकन इस बात से सहमति है कि भारत युद्ध का विजेता था क्योंकि यह कश्मीर घाटी, जम्मू एवं लद्दाख सहित कश्मीर के दो – तिहाई हिस्से का सफलतापूर्वक बचाव करने में सक्षम हुआ था।

1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध को “दूसरे भारत पाकिस्तान युद्ध ” के रूप में जाना जाता हैं । पाकिस्तान एवं भारत के बीच अगस्त, 1965 से सितंबर, 1965 तक सशस्त्र युद्ध हुआ था। युद्ध पाकिस्तान के असफल “ऑपरेशन जिब्राल्टर”  के पश्चात हुआ जिसे भारत सरकार  के विरुद्ध विद्रोह को तेज करने के लिए जम्मू और कश्मीर में  पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ करने के लिए खाका तैयार किया था। 17 दिवसीय भीषण युद्ध में भारत और पाकिस्तान के हजारों लोग हताहत हुए ।तत्कालीन सोवियत संघ (दूसरी दुनिया) एवं संयुक्त राज्य अमेरिका( प्रथम दुनिया) द्वारा ‘ कूटनीतिक वार्ता ‘ एवं ‘ ताशकंद घोषणा पत्र’ के पश्चात दोनों देशों के मध्य युद्ध समाप्त हुआ था।

1971 में भारत एवं पाकिस्तान के मध्य युद्ध का मुख्य कारण ‘ बांग्लादेश मुक्ति युद्ध’ था जो बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्र करने के लिए लड़ा जा रहा था। इस युद्ध ने भारत को दक्षिण एशिया एवं वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की भू – राजनीतिक प्रभाव में उन्नयन हुआ था।

 6 एवं 7 मई ,2025 की आधी रात्रि को भारत ने आतंकवाद के गढ़ ‘ पाकिस्तान ‘ में सटीक, संयमित,  और नैतिक प्रतिशोध का परिचय दिया था। “ऑपरेशन सिंदूर “एक सैन्य अभियान के साथ भारत की चेतना, राष्ट्रीयता, राष्ट्रभाव, और संस्कृति पर आघात का वैचारिक उत्तर था। भारत का राष्ट्रीयता की भावना सीमाओं के साथ ,मां की वंदना , स्त्रीत्व  का गौरव और सभ्यता की अस्मिता की रक्षा का भाव है। धर्म पूछ कर आतंकवादियों द्वारा आघात करना भारत की संस्कृति, सहिष्णुता एवं सामूहिक चेतना पर दुस्साहसी आघात था । सेना की कार्रवाई भारत के सम्मान को सर्वोपरि रखने वाली वैचारिक स्पष्टता है।

पाकिस्तान अधिकृत  ‘ POJK ‘ में मौजूद जैश – ए  – मोहम्मद एवं लश्कर- ए- तैयबा के आतंकी शिविर, पाकिस्तान पंजाब के आतंकी प्रशिक्षण केंद्र , मस्जिदों एवं मदरसों की आड़ में चल रही जिहादी प्रशिक्षण शिविर को भारत ने चिन्हित कर सटीकता से ध्वस्त किया था। 2016 में “उरी सर्जिकल स्ट्राइक” और 2019 में “बालाकोट एयर स्ट्राइक” के पश्चात यह  स्पष्ट हो गया है कि भारत के संयम एवं धैर्य को कमजोरी मानने वाले को सुधारने का तरीका समझ लिया है। 2025 में “ऑपरेशन सिंदूर “संयम  से शक्ति का अगला सोपान है। आतंकवाद के विरुद्ध ‘ संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता’ हों या ‘ जेनेवा कन्वेंशन ‘ के विभिन्न विषय, भारत ने सभी के अनुरूप इस  अभियान में पालन किया हैं । भारत ने अपनी सैनिक क्षमता का अनुप्रयोग मर्यादित एवं नैतिकता की सीमाओं में किया हैं।

मानवाधिकारों को संतुलित कर रखते हुए आतंकवाद के विरुद्ध जोरदार तरीके से बढ़ने की प्रक्रिया हैं जो वैश्विक स्तर पर भारत का नैतिक आधिपत्य की स्थापना करता है । यह  अभियान प्रमाणित करता हैं कि भारत में ‘ न्यायोचित शक्ति’ का प्रयोग किया है । समकालीन में भारत क्षेत्रीय शक्ति नहीं बल्कि इतिहास ,मानवता, संविधान एवं  संस्कृति का संरक्षक है। वैश्विक स्तर पर एवं सुरक्षा परिषद (चीन को छोड़कर) यह  युद्ध सभ्यता बनाम बर्बरता का संघर्ष हैं । पाकिस्तान  एक ऐसा कबीलाई जम्हूरियत हैं ,जहां पर बाल – विवाह, भीड़ द्वारा हत्या, अल्पसंख्यकों को प्रताड़ना एवं उत्पीड़ित करके एवं  स्त्रियों के अधिकारों को बलात तरीके से कुचलना ही धर्म है। यह  संघर्ष भारत बनाम पाकिस्तान नहीं बल्कि सभ्यता बनाम बर्बरता का युद्ध हैं । भारत ने यह स्पष्ट संदेश दिया हैं कि वह कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपने प्रत्येक नागरिक की अस्मिता एवं जीवन की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत एवं पाकिस्तान के संबंध जटिल एवं तनावपूर्ण हैं जो विभाजन के बाद से चले आ रहे हैं। दोनों के बीच जम्मू – कश्मीर, सीमा पार आतंकवाद, मानव तस्करी, जल बटवारा एवं अन्य क्षेत्रीय विवादों के मुद्दे संबंधों में तनाव पैदा करते हैं।

भारत एवं पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंध स्थापित करने के लिए कूटनीति, सफल राजनय, विश्वास निर्माण यांत्रिकी, आर्थिक सहयोग एवं क्षेत्रीय संबंधों में विश्वास बहाली के उपाय हैं.

डॉ. बालमुकुंद पांडेय

क्या कांग्रेस श्री राम के अस्तित्व को स्वीकार करने में हिचकिचाती है?

गजेंद्र सिंह

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस श्री राम के ऐतिहासिक अस्तित्व को स्वीकार करती है या नहीं, यह प्रश्न हाल ही में सार्वजनिक बहस में फिर से उभरा है जिससे राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में तीव्र चर्चाएं छिड़ गई हैं। यह मुद्दा विपक्ष के नेता राहुल गांधी के संयुक्त राज्य अमेरिका के ब्राउन विश्वविद्यालय में 21 अप्रैल, 2025 को एक सत्र के दौरान दिए गए बयानों के बाद सामने आया, और फिर 12 मई, 2025 को वाराणसी न्यायालय में दायर एक शिकायत के बाद प्रमुखता से उभरा । यह प्रश्न उठता है कि क्या यह विवाद केवल एक राजनीतिक चाल है, जिसका उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को भुनाना है, या इसके पीछे कोई गहरी साज़िश छिपी है? क्या राजनेता धर्म को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, या यह भारतीय सभ्यता की मूल अवधारणाओं पर चल रहा एक वैचारिक संघर्ष है?

इस प्रसंग में कई अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठते हैं: – क्या धर्म और आस्था जैसे संवेदनशील विषयों को सार्वजनिक मंचों पर राजनीतिक बहस का विषय बनाना उचित है? क्या किसी राजनेता की वैचारिक अभिव्यक्ति को धार्मिक असहमति या आस्था पर हमला मान लेना न्यायसंगत है? क्यों अक्सर केवल हिंदू धर्म से जुड़े मतों, रीति-रिवाजों और आदर्शों को ही बार-बार शंका और प्रश्नचिह्न की दृष्टि से देखा जाता है? क्या यह सिलसिला भारतीय समाज में धार्मिक असंतुलन और सांस्कृतिक पक्षपात को जन्म नहीं देता? इन प्रश्नों का उत्तर केवल राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में ही नहीं बल्कि सामाजिक समरसता, ऐतिहासिक विवेक और सांस्कृतिक सम्मान की दृष्टि से भी तलाशा जाना चाहिए।

ब्राउन विश्वविद्यालय में, राहुल गांधी ने पौराणिक चरित्रों, जिनमें श्री राम भी शामिल हैं, का उल्लेख इस तरह से किया जिसे कई लोगों ने उनके ऐतिहासिक होने पर संदेह जताने के रूप में देखा । उनके बयानों की विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक समूहों द्वारा कड़ी आलोचना की गई है जो इन्हें न केवल धार्मिक भावनाओं का अपमान मानते हैं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के इस मामले पर स्थापित रुख को भी चुनौती के रूप में देखते हैं। न्यायपालिका के अब संवेदनशील मुद्दों पर अधिक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने के साथ, सवाल उठे हैं: क्या सर्वोच्च न्यायालय इस बयान का संज्ञान लेगा? क्या भारतीय संविधान न्यायपालिका को कार्रवाई करने का अधिकार देता है जब कोई व्यक्ति एक ऐतिहासिक न्यायिक फैसले और एक संवैधानिक बहुमत के सामूहिक विश्वास को कमजोर करता प्रतीत होता है?

एक ऐतिहासिक फैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किए गए व्यापक शोध के आधार पर, प्राचीन भारतीय ग्रंथों और वैज्ञानिक विश्लेषण से प्राप्त आंकड़ों के साथ, श्री राम के अस्तित्व को स्वीकार किया। अदालत का फैसला श्री राम के ऐतिहासिक होने के बारे में वर्षों से चले आ रहे विवाद को सुलझाने और भारत के सबसे संवेदनशील सामाजिक-धार्मिक विवादों में से एक को कानूनी तौर पर समाप्त करने का लक्ष्य रखता था। हालांकि, वाराणसी में स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा दायर की गई शिकायत का दावा है कि राहुल गांधी के बयान इस सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनादर करते हैं और लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करते हैं जो श्री राम को एक देवता और एक ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में पूजते हैं।

 आलोचकों का तर्क है कि कांग्रेस पार्टी की कथित अनिच्छा श्री राम के ऐतिहासिक होने को स्पष्ट रूप से समर्थन देने में एक राजनीतिक चाल है जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक मतदाताओं को संतुष्ट करना या हिंदू राष्ट्रवाद की बढ़ती लहर से खुद को दूर रखना है। इस दृष्टिकोण से, राहुल गांधी के बयान एक व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं । इसके अलावा, 2007 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के दौरान, संस्कृति मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल किया जिसमें श्री राम के अस्तित्व पर सवाल उठाया गया और दावा किया गया कि यह साबित करने के लिए कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि राम सेतु (एडम्स ब्रिज) मानव निर्मित था।

दूसरी ओर, कांग्रेस के समर्थकों का सुझाव है कि पार्टी का रुख एक गहरे बौद्धिक और दार्शनिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। वे तर्क देते हैं कि श्री राम, भारतीय संस्कृति और धर्म में एक पूजनीय व्यक्ति होने के बावजूद पौराणिक कथा और इतिहास के बीच एक जटिल स्थान पर हैं। कई लोगों के लिए, जोर श्री राम के शाब्दिक ऐतिहासिक होने पर एक मात्र ध्यान केंद्रित करने की बजाय, श्री राम से जुड़े मूल्यों और शिक्षाओं पर होना चाहिए।

इस बहस के केंद्र में एक विविध लोकतंत्र में विश्वास, इतिहास और राजनीति के बीच संतुलन बनाने की चुनौती है। यह विवाद सिर्फ श्री राम के अस्तित्व के बारे में नहीं है बल्कि इस बारे में भी है कि राजनीतिक दल एक गहरे धार्मिक समाज में पहचान, विश्वास और चुनावी रणनीति को कैसे संभालते हैं। क्या कांग्रेस वास्तव में ऐतिहासिक सटीकता के बारे में गहरे विश्वासों के कारण हिचकिचाती है, या यह एक व्यापक समर्थन आधार बनाए रखने के लिए एक रणनीतिक चाल है? जवाब शायद इन दोनों के बीच कहीं है—जो भारतीय राजनीति की जटिल वास्तविकताओं को दर्शाता है जहां विचारधारा, धर्म और शक्ति का संगम होता है। जो आवश्यक है वह है सम्मानजनक संवाद। जैसे-जैसे भारत एक बहुलवादी राष्ट्र के रूप में विकसित होता जा रहा है, संवैधानिक मूल्यों और न्यायिक निर्णयों का सम्मान करते हुए विविध दृष्टिकोणों को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। श्री राम के अस्तित्व के आसपास की बहस राजनीतिक परिपक्वता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता की एक बड़ी आवश्यकता को रेखांकित करती है।

गजेंद्र सिंह 

संकटकाल में घिनौनी राजनीति

राजेश कुमार पासी 

राजनीति में टाइमिंग बहुत महत्वपूर्ण होती है, कब क्या करना है, ये बात अगर आपको पता है तो आप राजनीति में सफल हो सकते हैं लेकिन लगता है कि कांग्रेस की राजनीतिक समझदारी को ग्रहण लग गया है । जब देश युद्ध के दौर से गुजर रहा हो तो उस समय शासन से लड़ना देशद्रोह कहलाता है । बेशक कांग्रेस विपक्षी पार्टी है लेकिन उसे हर समय सरकार के विरोध में नजर नहीं आना चाहिए ।   कांग्रेस के नेता राहुल गांधी हर मुद्दे पर मोदी सरकार के विरोध में दिखना चाहते हैं और जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि वो ही ऐसे नेता हैं जो मोदी सरकार से लड़ रहे हैं । अब सवाल यह है कि उन्हें यह छोटी सी बात पता नहीं है कि जब देश दुश्मन से लड़ रहा हो तो देश के साथ खड़े होना पड़ता है । भाजपा और मोदी से लड़ाई चलती रहेगी लेकिन देश से ऊपर तो कुछ नहीं है ।

कांग्रेस और राहुल गांधी की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि वो मोदी का विरोध करते-करते देश विरोध तक पहुंच जाते हैं । सरकार और सेना ने कहा है कि अभी ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है, सिर्फ रोका गया है । इसको इससे भी समझ सकते हैं कि दोनों देशों के बीच कूटनीतिक मोर्चे पर जबरदस्त जंग चल रही है । भारत लगभग 40 देशों को अपने सात सर्वदलीय  प्रतिनिधिमंडल  भेज रहा है ताकि वो इन देशों में जाकर भारत सरकार की बात रख सकें । भारत सरकार इन देशों को यह बताना चाहती है कि उसने पाकिस्तान के खिलाफ क्यों और क्या कार्यवाही की है । क्या सामान्य हालातों में सरकार सर्वदलीय मंडलों को विदेशों में भेजती है । अगर सरकार ऐसा कर रही है तो उसे इसकी जरूरत महसूस हुई होगी । कांग्रेस भी इस प्रतिनिधि मंडल का हिस्सा है। इससे यह भी पता चलता है कि देश संकटकाल से गुजर रहा है । ऑपरेशन सिंदूर का सच विदेशों में पहुंचना चाहिए अन्यथा पाकिस्तान इसका फायदा उठा सकता है और खुद को पीड़ित बता सकता है । भारत की छवि के लिए यह जरूरी है । 

              प्रतिनिधि मंडल भेजने से ही पता चलता है कि अभी जंग जारी है, बेशक वो कूटनीतिक मोर्चे पर लड़ी जा रही हो । इन हालातों में कांग्रेस ने ऑपरेशन सिंदूर पर विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश करते हुए बेतुके सवाल खड़े कर दिये हैं । इन सवालों का नतीजा यह निकला है कि राहुल गांधी पाकिस्तान के पोस्टर ब्वाय बन गये हैं । पाकिस्तानी मीडिया के हर चैनल पर उनका बयान चलाया जा रहा है । विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को चेतावनी देने के सम्बन्ध में बयान दिया था कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को बता दिया था कि हमने सिर्फ आतंकवादी शिविरों पर हमला किया है । आपके नागरिक और सैन्य ठिकानों पर कोई हमला नहीं किया गया है। इसके बाद अगर आप कार्यवाही करते हैं तो इसका बड़ा जवाब दिया जायेगा । हैरानी की बात यह है कि सेना के डीजीएमओ ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी यह बयान दिया था कि हमले के तुरंत बाद पाकिस्तानी समकक्ष को उन्होंने बता दिया था कि भारत ने क्या किया है । राहुल गांधी विदेश मंत्री के बयान को अपने तरीके से परिभाषित करते हुए यह कह रहे हैं कि उन्होंने हमले से पहले ही पाकिस्तान को सूचना दे दी थी कि भारत हमला करने जा रहा है । विदेश मंत्रालय द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया कि विदेश मंत्री ने ऐसा कुछ नहीं कहा है लेकिन राहुल गांधी कहां किसी की सुनते हैं. वो इसके बावजूद अपना नैरेटिव चला रहे हैं ।

आतंकवादियों और उनके आकाओं को सजा देने की बात प्रधानमंत्री मोदी सहित कई नेता कर रहे थे लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि किस दिन और कहां हमला होने वाला है । राहुल गांधी विदेश मंत्री के बयान के आधार पर यह स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने हमले से पहले पाकिस्तान को सूचना दे दी जिसके कारण उसकी सेना अलर्ट हो गई और उसने भारतीय वायुसेना के कई विमान गिरा दिये । इसलिए वो पूछ रहे हैं कि सरकार बताये कि भारत के कितने विमान पाकिस्तान ने गिरा दिए हैं । कांग्रेस की बर्बादी का कारण उनकी इस सोच से ही पता चल जाता है । इस मानसिकता और समझ का इंसान अगर कांग्रेस को चलाएगा तो उसका यही हाल होगा जो हो रहा है । हैरानी है कि इतने समझदार नेता होने के बावजूद कांग्रेस अभी तक कैसे चल रही है । उनके नेता पवन खेड़ा तो राहुल गांधी से भी दो कदम आगे निकल गये हैं । उन्होंने कहा है कि विदेश मंत्री ने जो कुछ कहा है, वो चेतावनी देना नहीं है बल्कि मुखबिरी करना है । यही कांग्रेस की परेशानी है कि उसके नेता राहुल गांधी को समझाने की जगह उनके साथ खड़े हो जाते हैं । जयशंकर जी के बयान का ऐसा मतलब हल्की सी समझदारी वाला इंसान भी नहीं निकाल सकता । 

               जहां तक पाकिस्तान के अलर्ट होने का सवाल है तो दोनों देश पहलगाम हमले के बाद ही पूरे अलर्ट पर थे । पाकिस्तान को पीएम मोदी सहित कई मंत्री सबक सिखाने की धमकी दे रहे थे और पाकिस्तान को यह भी पता था कि भारत कुछ बड़ा करने वाला है । यही कारण है कि ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही पाकिस्तान कई देशों से भारत को रोकने की गुहार लगा रहा था । दूसरी बात यह है कि पाकिस्तान भारतीय हमले को रोकने की पूरी तैयारी करके बैठा हुआ था लेकिन हमारे सैन्य बलों की कुशलता और भारतीय हथियारों की ताकत ये हैं कि पाकिस्तान में बिना घुसे ही पाकिस्तान के 9 शहरों में  स्थित आतंकी शिविरों को बर्बाद कर दिया गया । इसके बाद जब पाकिस्तानी सेना ने भारत पर हमला किया तो भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने सारे हमलों को ध्वस्त कर दिया । इसके बाद जवाबी हमले में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 11 वायुसैनिक अड्डों सहित अन्य सैन्य ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचाया ।

भारतीय सेना के पास ऐसी क्षमता है कि उसके विमान पाकिस्तान की सीमा को पार करे बिना भी उस पर हमला कर सकते हैं और ऐसा ही किया गया है । एक तरफ भारतीय सेना  आतंकी ठिकानों को बर्बाद करने का दावा कर रही है तो कांग्रेस आरोप लगा रही है कि विदेश मंत्री ने पाकिस्तानी आतंकियों को बचा दिया । पाकिस्तान के मीडिया और सरकार ने राहुल गांधी और उनके पवन खेड़ा जैसे नेताओं के बयानों को आधार बनाकर अपने देश को बताना शुरू कर दिया है कि भारत झूठ बोल रहा है । पाकिस्तान यह साबित करने पर तुला है कि कांग्रेस के नेता सच बोल रहे हैं जबकि भारतीय सेना और मोदी सरकार झूठ बोल रही है । पाकिस्तान को अपनी करारी हार को छिपाने का मौका मिल गया है । सवाल यह है कि क्या इससे कांग्रेस ने भारतीय सेना का मनोबल नहीं गिराया है । जिस सेना ने सिर्फ तीन दिन की लड़ाई में दुश्मन देश को आगे लड़ने के काबिल नहीं छोड़ा, उस  सेना को देश का सबसे बड़ा विपक्षी दल झूठा साबित करने पर तुला है । 

              ऐसा लगता है कि कांग्रेस को भारतीय सेना और भारत की सरकार से ज्यादा भरोसा पाकिस्तानी सेना और सरकार पर है । मेरा मानना है कि कांग्रेस सेना के खिलाफ नहीं जाना चाहती लेकिन वो सेना और सरकार के अंतर को समझ नहीं पा रही है । देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए ये बेहद चिंता की बात है । जब पाकिस्तान पर पहलगाम हमले को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे हैं तो उसे भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सरकार की साजिश बताने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार को पता था कि वहां खतरा है तो सरकार ने सैलानियों को क्यों जाने दिया जबकि मोदी जी ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया था। सरकार सर्वदलीय बैठक में यह बता चुकी है कि पहलगाम हमला कैसे हुआ है और कहां चूक हुई है लेकिन कांग्रेस फिर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। अगर पाकिस्तान अपने मीडिया पर यह बोल रहा है कि पहलगाम हमले में उसका कोई हाथ नहीं था, ये तो मोदी सरकार की लापरवाही से हुआ है तो उसे गलत कैसे कहा जा सकता है।

कांग्रेस को अपना हर बयान सोच समझकर देना चाहिए क्योंकि उसके बयानों के आधार पर पाकिस्तान भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीचा दिखाने की कोशिश में लगा हुआ है। अगर कांग्रेस को यह सब दिखाई नहीं दे रहा है और कुछ समझ नहीं आ रहा है तो वो अपने नेताओं को कुछ समय के लिए चुप रहने के लिए भी बोल सकती है। कांग्रेस की राजनीति के कारण न केवल देश का नुकसान हो रहा है बल्कि कांग्रेस की भी छवि खराब हो रही है। कांग्रेस के लिए ये विचार का समय है कि उसे पाकिस्तान में चुनाव नहीं लड़ना है, उसे भारत में ही राजनीति करनी है और भारत की जनता से ही वोट लेना है। जिस व्यक्ति या दल के कारण भारतीय हितों को नुकसान पहुंचता है उसे जनता माफ करने वाली नहीं है।

राजेश कुमार पासी

‘बिग बॉस 18’ फेम एक्‍ट्रेस चुम दरंग

सुभाष शिरढोनकर

16 अक्टूबर 1991 को अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट के एक जनजाति परिवार में पैदा हुई मॉडल, एक्‍ट्रेस, सामाजिक कार्यकर्ता और उद्यमी, चुम दरंग अपनी असाधारण खूबसूरती, बहुमुखी प्रतिभा और मजबूत व्यक्तित्व के लिए जानी जाती हैं।  

चुम दरंग के पिता का नाम ताजीप दरंग और मॉ का नाम यामिक दुलोम दरंग है। चुम के एक बड़ी बहन मितु और दो छोटे भाई ताबित और निनोंग हैं।

चुम ने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए पिता की अनुमति लेकर अपने करियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में 2007 में ब्यूटी पेजेंट्स से की।

इसके बाद वह साल 2010 में ‘मिस AAPSU बनीं। यह उनकी पहली बड़ी जीत थी जिसके बाद मॉडलिंग में आने के लिए उनका मार्ग प्रशस्‍त हुआ। कई उत्‍पादों के लिए मॉडलिंग करते हुए  उन्हें  जबर्दस्‍त पहचान मिली। 2016 में उन्होंने ‘मिस अर्थ इंडिया वाटर’ का खिताब जीता।

साल 2017 की ‘मिस एशिया वर्ल्ड अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता’ में उन्होंने ‘मिस इंटरनेट’ सब-टाइटल जीता। उसी साल आयोजित ‘मिस तियारा इंडिया इंटरनेशनल’ प्रतियोगिता में उन्होंने मुख्य खिताब के साथ ‘मिस स्पोर्ट्स गियर’ और ‘मिस बेस्ट नेशनल कॉस्ट्यूम’ जैसे उप-खिताब भी अपने नाम किए।

अमेज़न प्राइम वीडियो की वेब सीरीज़ ‘पाताल लोक’ (2020) में चुम दरंग ने एक चीनी इन्फॉर्मर्शियल लड़की की छोटी भूमिका निभाई। इसके बाद वह एक्‍टर राजकुमार राव की मुख्य भूमिका वाली  फिल्म ‘बधाई दो’ (2022) में भूमि पेडनेकर की होमोजीनस प्रेमिका चेनाकी की भूमिका में नजर आईं।

इस किरदार के लिए चुम दरंग ने काफी सुर्खियां बटोरीं । यह उनकी अब तक की सबसे चर्चित भूमिका रही जिसने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई।  

आलिया भट्ट की मुख्य भूमिका वाली संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ (2022) में चुम दरंग ने एक छोटा लेकर मजबूत किरदार निभाया, जिसे काफी पसंद किया गया।

चुम दरंग ने पिछले साल ‘बिग बॉस 18’ (2024) में एक अंडरडॉग के रूप में हिस्सा लिया। इस रियलिटी शो में वह बिना किसी बड़े पीआर समर्थन या फैनबेस के, अपनी प्रामाणिकता, भावनात्मक गहराई और दृढ़ संकल्प से वह दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहीं। वह शो में चौथे रनर-अप बनी।  इस शो के बाद उन्हें  व्यापक प्रसिद्धि हासिल हुई।

इस शो के दौरान करण वीर मेहरा, शिल्पा शिरोडकर और श्रुतिका अर्जुन जैसे प्रतियोगियों के साथ चुम दरंग की गहरी दोस्ती बनी।  खासकर करण वीर मेहरा के साथ उनकी दोस्ती खासी चर्चाओं में रही। दोनों के बीच गजब की बॉंडिंग के बाद फैंस ने एक नया नाम ‘चुमवीर’ दिया।

इस साल वैलेंटाइन डे पर करण व्‍दारा बाकायदा चुम को प्रपोज करते हुए इस रिश्ते को आधिकारिक बना दिया हालांकि, चुम ने करण को साफ बता दिया कि वह एक लंबे समय से किसी और के साथ रिलेशनशिप में थीं और फिलहाल उनकी प्राथमिकता पर उनका करियर है।

बॉलीवुड के साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपनी जबर्दस्‍त छाप छोड़ने वाले चुम दरांग ने हाल ही में लैक्मे फैशन वीक में डेब्यू किया था।

चुम एक एक्‍ट्रेस होने के साथ ही साथ एक उद्यमी भी हैं. उनका पासीघाट में ‘कैफे चू’ नाम से एक कैफे है जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है।  

सुभाष शिरढोनकर