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राहु-केतु बदलेंगे राशि , सभी राशियाँ  होगी प्रभावित।


ज्योतिर्विद मनीष भाटिया

          वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मायावी ग्रह राहु और केतु ने लगभग 18 महीने के बाद,18  मई 2025 से अपना स्थान परिवर्तन किया है । राहु ग्रह मीन राशि से निकलकर कुंभ राशि में गोचर करेंगे और केतु ग्रह कन्या राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे। राहु केतु की इस उल्टी चाल से लगभग सभी राशियां प्रभावित होंगीं। राहु केतु का यह राशि परिवर्तन कुछ राशियों के लिए तो बहुत ही शुभ रहेगा, औऱ कुछ  राशि वालों के लिए बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी। अलग-अलग राशियों पर राहु केतु के इस राशि परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा।
मेष राशि :-  मेष राशि वाले जातकों के लिए राहु का राशि परिवर्तन लाभ स्थान से होगा । राहु का लाभ स्थान में गोचर बहुत ही शुभ माना जाता है। राहु के इस अच्छी परिवर्तन से मेष राशि वाले जातकों को कई स्रोतों से धन लाभ होने का योग बनेगा। वही केतु का गोचर मेष राशि वालों के पंचम भाव से होगा जो पेट संबंधित समस्याएं दे सकता है तथा विद्या अध्ययन में बाधा उत्पन्न करेगा। मेष राशि वालों के लिए शनि की साडेसाती भी चल रही है और धन का काफी व्यय और नुकसान होने के योग बन रहे हैं। राहु के गोचर से लाभ और शनि के गोचर से नुकसान, व्यय का योग बन रहा है। क्योंकि मेष राशि वालों की धनी की साडेसाती भी लगी हुई है अतः इनका बहुत ही सावधानी से चलना चाहिए। नौकरी और पारिवारिक जीवन में भी विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। मेष राशि वालों को हनुमान चालीसा पढ़ते रहने से तथा हनुमान मंदिर में जाकर दर्शन करने से काफी राहत महसूस होगी।
वृष राशि :- वृषभ राशि वालों के लिए राहु का गोचर दसवें भाव से होगा तथा केतु का गोचर चौथे भाव से होगा।नौकरी में लाभ, स्थान परिवर्तन के योग तथा घरेलू सुख में बाधा उत्पन्न होने के योग हैं।माता की सेहत भी प्रभावित हो सकती है तथा माता के सुख में कुछ कमी आ सकती। वाहन सुख में भी कमी आएगी। वृषभ राशि वालों को अभी कोई भी जमीन ज्यादाद से संबंधित निवेश नहीं करना चाहिए। मां दुर्गा की पूजा करते रहने से लाभ के रास्ते खुलेंगे।
मिथुन राशि :- मिथुन राशि वालों के लिए राहु का गोचर भाग्य भाव से होगा तथा केतु का गोचर तीसरे भाव से होगा।भाग्य में वृद्धि किंतु भाई बहनों से तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है। मिथुन राशि वालों को जो घरेलू परेशानियों चल रही थी उनसे काफी रात महसूस होगी। नई जमीन ज्यादाद एवं वाहन खरीदने के योग बनेंगे। मिथुन राशि वालों को गणेश भगवान जी की पूजा करते रहना चाहिए ।
कर्क राशि :- राहु का गोचर अष्टम भाव तथा केतु का गोचर द्वितीय भाव में होगा। कर्क राशि वालों को आपकी चाहत का बहुत ध्यान रखना चाहिए तथा चोट चपेट से बचें, वाहन सावधानी से चलाएं। वाणी पर नियंत्रण रखें तथा पारिवारिक विवादों से बचें । कर्क राशि वालों को ससुराल पक्ष से तनाव होने के योग बनेंगे। विवादों से बचने का प्रयास करें। भगवान कृष्ण की शरण में रहे।
सिंह राशि :- सिंह राशि वालों के लग्न में केतु और सप्तम भाव में राहु का गोचर होगा।  बहुत ज्यादा गुस्सा आएगा। छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत तनाव हो जाएगा और गुस्सा आ जाएगा। जीवनसाथी से भी तनाव की स्थिति उत्पन्न होगी। अपने गुस्से पर काबू करें । जीवनसाथी की सेहत भी प्रभावित होगी। अभी पार्टनरशिप के किसी भी कार्य में हाथ ना डालें। आपका शनि का अष्टम भाव भी चल रहा है। वर्तमान समय में सूर्य का गोचर दसवां भाग से चल रहा है। सूर्य के इस गोचर के प्रभाव से आपकी नौकरी में पिछले कई महीनो से जो समस्याएं चली आ रही थी वह पिछले एक महीने से काफी कम हो गई है और आप काफी राहत महसूस कर रहा है। किंतु 14 अगस्त के बाद जब सूर्य का गोचर आपके 12 वें भाव से होगा तो नौकरी में फिर से समस्याएं उठने लगेंगी । आपके लिए राहु, केतु,  मंगल और शनि का गोचर अभी शुभ नहीं चल रहा और कर्क राशि के मंगल भी बारहवे भाव में चल रहा है। नौकरी में स्थानांतरण के योग बन रहे हैं। मंगल के गोचर से आपको नौकरी में कोई बड़ी समस्या आने के योग हैं किंतु सूर्य के गोचर राहत मिल  रही है। रविवार का व्रत रखें एवं  सूर्य भगवान को रोज जल देते रहे।मंगलवार को लाल मसूर की दाल का दान करें।
कन्या राशि :- राहु केतु के एक गोचर से कन्या राशि वालों को काफी राहत महसूस होगी क्योंकि केतु आप ही की राशि में चल रहे थे और अब आपकी राशि से निकलकर सिंह राशि में चले जाएंगे। राहु का गोचर आपकी छठे भाव में होगा। राहु केतु का या गोचर कन्या राशि वालों के लिए काफी शुभ साबित होगा। पिछले कई वर्षों से चली आ रही मानसिक समस्याएं खत्म होगी। आपके विरोधी परास्त होंगे। नौकरी व्यवसाय में लाभ की स्थिति बनेगी।धार्मिक यात्राओं के योग बनेंगे। देवी माता की पूजा करना आपके लिए बहुत शुभ रहेगा।
तुला राशि :- तुला राशि वालों के लिए राहु केतु का यह गोचर सामान्य रहेगा। पेट संबंधित कुछ परेशानियां बनी रहेगी। आय वृद्धि के योग बनेंगे।
वृश्चिक राशि :- वृश्चिक राशि वालों के लिए राहु केतु का गोचर, घरेलू सुख में कमी करेगा। नौकरी व्यवसाय में बहुत ही संभल कर चलने की आवश्यकता है, स्थानांतरण के योग बनेंगे। माता के सुख में कमी महसूस होगी एवं माता के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा। हनुमान जी की पूजा करना आपके लिए बहुत ही शुभ रहेगा।
धनु राशि :- धनु राशि वाले जातकों के लिए राहु केतु का यह गोचर शुभ रहेगा। अभी तक आपके चौथे भाव में राहु और शनि का पिशाच योग बना हुआ था,  अब राहु के वहां से निकल जाने से पिशाच योग भंग होगा। मानसिक तनाव में कमी आएगी परंतु मानसिक तनाव बना रहेगा क्योंकि आपका शनि का ढैया चल रहा है। घरेलू परेशानियों भी कुछ कम होगी। क्योंकि गुरु की दृष्टि आपकी लगन पर पड़ रही है इसलिए आपको मान सम्मान यश में वृद्धि होगी और गुरु के गोचर के प्रभाव से आपको काफी राहत मिलेगी।पीले चंदन का तिलक हर रोज अपने माथे पर लगाएं।
मकर राशि :- राहु का गोचर आपके परिवार भाव में होगा और केतु का गोचर आपकी अष्टम भाव में होगा। अपनी सेहत का ध्यान रखें।
अगर रीड की हड्डी से संबंधित कोई परेशानी है तो लापरवाही ना करें। पारिवारिक विवादों से बचने का प्रयास करें। अचानक से धन लाभ के योग भी बनेंगे। बिना कमाया हुआ धन मिलने का योग है। क्योंकि आपकी शनि की साडेसाती खत्म हो गई है और शनि का गोचर आपकी तृतीय भाव में है इसलिए शनि का लाभ आपको मिलता रहेगा। हनुमान जी की पूजा करते रहे एवं हनुमान चालीसा का जाप रोज करें।
कुंभ राशि :-  राहु का गोचर आप ही की राशि में होने जा रहा है। मानसिक तनाव से बचना होगा। छोटी-छोटी बातों को दिल से ना लगाएं। जीवनसाथी से विवाद बिल्कुल भी ना करें एवं उनकी चाहत का ध्यान रखें। अपने माथे पर रोज पीले चंदन का तिलक लगाए एवं भगवान विष्णु अथवा उनके किसी भी अवतार की पूजा करते रहें।
मीन राशि :- मीन राशि वालों का शनि की साडेसाती का दूसरा चरण चल रहा है। अभी वर्तमान समय में शनि और राहु का पिशाच योग आप ही की राशि में बना हुआ था। राहु के इस राशि परिवर्तन से शनि राहु का पिशाच योग खत्म हो जाएगा, जिससे आपकी मानसिक तनाव में काफी कमी आएगी परंतु राहु का गोचर आपका व्यय भाव में होने से आपके खर्चों में निरंतर वृद्धि होगी। अभी 14 जून तक सूर्य भगवान का गोचर आपकी तृतीय भाव में रहेगा जिससे आपका धन भाव और परिवार पाप कर्तवी योग में रहेगा।  राहु की पांचवी दृष्टि आपके घरेलू सुख पर पड़ेगी। अभी 15 जून तक कहीं भी किसी भी प्रकार का निवेश करने से बचे हैं क्योंकि आपका धन भाव पाप कर्तवी योग में चल रहा है। मीन राशि वाले जातकों की परेशानियां कुछ कम तो होगी लेकिन अभी खत्म नहीं होंगीं । हां गुरु बृहस्पति का गोचर आपके लिए शुभ रहेगा।
अपने माथे पर रोज हल्दी का या पीले चंदन का तिलक लगाए।।

ज्योतिर्विद मनीष भाटिया

भजन: ब्रज धाम की होली

तर्ज: ब्रज रसिया

मु: रंग्यौ ब्रज धाम होली के रंग में।
होली के रंग में, होली के रंग में। -२
रंग्यौ ब्रज धाम होली के रंग में।

अंत १:ब्रज में होली की धूम मची है।
सब जनता खेलन में लगी है।
अपने अपने -२ प्रियतम संग में।
रंग्यौ ब्रज धाम होली के रंग में।।

अंत २: गोकुल मथुरा दाऊजी वारे।
सब होली के हैं रसिया प्यारे।।
हाथरस के छैला झूमें -२
मि: पीकर भंग के रंग में,
( होली के हुरदंग में )
रंग्यौ ब्रज धाम होली के रंग में।

अंत ३: गोवर्धन और वृन्दावन में।
उमंग भरी सबके तन मन में।।
मि: बरसाने की सखियाँ नाचें उनके संग में
रंग्यौ ब्रज धाम होली के रंग में।

अंत ४: स्वर्ग से निहारें बांकें बिहारी।
साथ में इनके राधाजू प्यारी।
मुस्काय रहे हैं देख छवि को।
अब होली के ढंग में।।
रंग्यौ ब्रज धाम होली के रंग में।

अंत ५: नन्दो भैया हैं भजन बनावें
ब्रज होली की महिमा गावें
राकेश भैया भजन सुनाएं
नयी उमंग में, (कान्हा के संग में)
रंग्यौ ब्रज धाम होली के रंग में।

असीम मुनीर के फील्ड मार्शल बनने के निहित अर्थ

भारत के द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध किए गए ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ का सबसे अधिक लाभ यदि किसी को मिला है तो वह पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर को मिला है। जिन्हें पाकिस्तान की सरकार ने भारत से पिटने के उपरांत भी ‘ फील्ड मार्शल ‘ के पद पर नियुक्त कर दिया है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ बने रहने के उपरांत भी अब उन्हें कुछ अधिक शक्तियां प्राप्त हो जाएंगी। जिनके चलते वह भारत के खिलाफ कुछ और अधिक उग्र होकर बातें करने का लाइसेंस प्राप्त कर लेंगे। पाकिस्तान के इस नए फील्ड मार्शल के बारे में हमें ज्ञात होना चाहिए कि जब उन्होंने पहलगाम हमले के बाद भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई तो अपने मिशन पर निकलने से पहले उन्होंने नमाज अदा की और कुरान की उन आयतों को दोहराया जो काफिरों के विरुद्ध इस्लाम के प्रत्येक सच्चे सेवक को ‘गाजी’ बनने की प्रेरणा देती हैं या ‘ जिहाद’ करने को उकसाती हैं। पाकिस्तान के लोगों को भारत के ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ के सच से पाकिस्तान की सरकार और सेना दोनों ने मिलकर गुमराह करने का कार्य किया है। यह झूठ फैलाने का प्रयास किया है कि इस चार दिन के युद्ध में पाकिस्तान जीता है और उसने हिंदुस्तान जैसे बड़े देश की सेना को करारी पराजय दी है। इसीलिए मुनीर ने अपने आप को ‘ फील्ड मार्शल’ बनाने के लिए पाकिस्तान की सरकार को अपने दबाव में लिया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ यह भली प्रकार जानते हैं कि यदि युद्ध में पाकिस्तान जीत गया होता तो उनकी सरकार अब तक चली गई होती। इसलिए उन्होंने भी मुनीर को फील्ड मार्शल बनाकर अपनी आफत को कम करने का काम किया है। उन्हें इस बात की खुशी है कि पाकिस्तान के हारने पर उनकी अपनी कुर्सी नहीं जा रही है।
फील्ड मार्शल के बारे में हमें जानकारी होनी चाहिए कि यह युद्ध जैसी असाधारण परिस्थितियों में दिखाए गए विशेष शौर्य के पश्चात ही मिलता है। जब भारत ने ‘ ऑपरेशन सिंदूर ‘ के माध्यम से पाकिस्तान के एयरबेस ध्वस्त किये तो उस समय बार-बार यह समाचार आ रहे थे कि वहां के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर किसी बंकर में छुप गए हैं। भारत से युद्ध करने के लिए असीम मुनीर निकले तो काफिरों का अंत करने के लिए कुरान पाक की आयतों को दोहरा रहे थे और जब भारत के शूरवीरों से पाला पड़ा तो बंकरों में मुंह छुपा रहे थे। इसी ‘बहादुरी’ के लिए उन्हें अब फील्ड मार्शल बनाया गया है ? मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों से युद्ध लड़ने के लिए जा रहे थे तो बड़े जोश से गा रहे थे कि :-

गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की।
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।।

दोपहर होते-होते मुगल बादशाह को अपनी शक्ति और सामर्थ्य की जानकारी हो गई थी। सामने खड़ी मृत्यु को देखकर उनका सारा जोश दूर हो गया। तब उन्होंने अपनी थकी हुई मानसिकता का परिचय देते हुए कहा :-

दमदम में दम नहीं, अब खैर मांगू जान की।
बस जफर अब हो चुकी शमशीर हिंदुस्तान की।।

भारत के साथ दो – दो हाथ करने से पहले और फिर भारत के पराक्रम को देखकर असीम मुनीर की यही स्थिति बन चुकी थी। फिर भी उन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया है तो इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि भारत के विरुद्ध एक ‘ जिहादी सेनाध्यक्ष’ की आवश्यकता पाकिस्तान को है। वर्तमान परिस्थितियों में उसे असीम मुनीर से बड़ा जिहादी कोई नहीं मिल सकता। जो स्वयं यह कहते हैं कि हम अपनी सेना को इस्लाम की शिक्षा देते हैं । इस्लाम का फंडामेंटलिज्म पाकिस्तान के प्रत्येक सैनिक को समझाया और बताया जाता है। इसका अभिप्राय है कि पाकिस्तान की सेना और आतंकवाद का चोली दामन का साथ है।
फील्ड मार्शल जैसा रैंक भारत, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में ही है। यद्यपि इसका उपयोग सभी देश अपनी अपनी परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग करते हैं। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो इस देश के बारे में हमें पता होना चाहिए कि इसने अपना अतीत भारत के साथ न दिखाकर पिछले 1000 वर्ष के इतिहास को मिटाकर उसे इस्लाम के रंग में रंगने का काम किया है। जिससे वहां के नागरिकों को ऐसा आभास हो कि हमारे देश के वास्तविक निर्माता तो गजनी और गौरी थे। यही कारण है कि अपनी मिसाइलों या घातक हथियारों का नाम भी पाकिस्तान ‘ गजनी’ और ‘ गौरी’ रखता है। कहने का अभिप्राय है कि जो पाकिस्तान अपना मिथ्या इतिहास रच सकता है, वह एक झूठा फील्ड मार्शल भी बना सकता है।
भारत के बारे में हम सभी जानते हैं कि हमने भी फील्ड मार्शल मानेकशॉ को इस सम्मानित पद पर आसीन किया था। जिन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े करने का साहसिक कार्य किया था। जबकि जनरल अयूब खान के बाद पाकिस्तान के दूसरे फील्ड मार्शल असीम मुनीर अपने ही देश के दो टुकड़े कर सकते हैं। हमने सैम मानेकशॉ को 1973 में और 1986 में के0एम0 करियप्पा को फील्ड मार्शल बनाया था। इस पद के बारे में हमें यह भी जान लेना चाहिए कि यह केवल मुख्य रूप से औपचारिक पद है। इसका कोई प्रत्यक्ष प्रशासनिक कार्य नहीं है। फील्ड मार्शल के रहते भी एक चार सितारा जनरल ही सेना प्रमुख के पद पर नियुक्त किया जाता है। फील्ड मार्शल कभी सेवानिवृत्त नहीं होता। वह अपनी मृत्यु तक एक सक्रिय सैन्य अधिकारी के रूप में कार्य करता रहता है। इस प्रकार पाकिस्तान ने असीम मुनीर को इस पद पर नियुक्त कर यह संदेश दिया है कि असीम मुनीर चाहे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का सामना नहीं कर पाए हों, परन्तु वह एक ‘ जिहादी फील्ड मार्शल’ के रूप में अपने जीवन की अंतिम सांस तक भारत के विरुद्ध कार्य करते रहेंगे। इस दृष्टिकोण से मुनीर को भी अपनी इस नियुक्ति पर गर्व करने और अपने ‘मिशन’ को आगे बढ़ाने का पूरा-पूरा अवसर मिला है। ऐसी स्थिति में भारत को इस ‘ जिहादी फील्ड मार्शल’ के इरादों को भांपकर सावधान रहने की आवश्यकता रहेगी। इसका कुछ न बोलना इसकी कमजोरी नहीं है बल्कि भारत के विरुद्ध तैयारी करने की इस्लामिक आक्रमणकारियों की पुरानी परंपरा इसके जालिम चेहरे के पीछे झांकती हुई दिखाई दे रही है। भारत को किसी सीजफायर के फेर में नहीं पड़ना है अपितु ध्यान रखना है कि पड़ोसी देश ने अपने पराजित सेनाध्यक्ष को फील्ड मार्शल बनाकर भारत के विरुद्ध लंबी लड़ाई का संदेश दिया है। अतः भारत को भी लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य

बिकती वफ़ादारी, लहूलुहान वतन

किसने बेची थी, ये हवाओं की खुशबू,
किसने कांपती जड़ों में, जहर घोला था,
किसने गिरवी रखी थी, मिट्टी की सुगंध,
किसने अपने ही आंगन को, लहूलुहान बोला था।

तब तलवारें चुप रहीं,
घोड़ों ने रासें छोड़ दीं,
दरवाजों ने रोशनी से
नज़रें मोड़ लीं।

जब जयचंदों ने रिश्तों की ज़मीन बेच दी,
मीर जाफरों ने गंगा की लहरें गिरवी रख दीं,
तब मुठ्ठी भर परिंदों ने,
आसमान से परचम नोच लिए।

आज भी,
कहीं संसद में, कहीं गलियों में,
गद्दारी के फूल खिलते हैं,
तिरंगे की आड़ में,
कुछ लोग सौदागर बन जाते हैं।

मगर याद रखना,
खून से सने हाथ,
कभी साफ नहीं होते,
और मिट्टी की चीखें,
कभी खामोश नहीं होतीं।

क्योंकि ज़ख्म पर जमीं धूल,
कभी पन्ना बनकर चुप नहीं रहती,
वो लिख देती है,
हर गद्दार का नाम,
इतिहास के पत्थरों पर।

-डॉ सत्यवान सौरभ

आतंक को हर हाल में करना होगा परास्त

– योगेश कुमार गोयल
जम्मू-कश्मीर दशकों से आतंक के खौफनाक साये में जी रहा है। बीते कुछ दशकों में आतंकियों ने देश के अन्य हिस्सों में भी कभी किसी भरे बाजार में तो कभी किसी बस या ट्रेन में आतंकियों ने निर्दोषों के लहू से होली खेली है। यह एक ऐसी विकराल समस्या है, जिसने न केवल हजारों लोगों की जान ली है बल्कि अनगिनत परिवारों को तबाह किया है। बच्चे अनाथ हुए, माताएं-बेटियां विधवा हुईं और बुजुर्गों की जीवन-संध्या से सहारा छीन गया। आतंकवादी ऐसे नृशंस कृत्यों के जरिए लोगों के मन में भय भरते हैं, उनका उद्देश्य हिंसा, अस्थिरता और अव्यवस्था फैलाकर समाज को तोड़ना होता है। इन विभीषिकाओं के खिलाफ देश ने जो संघर्ष किया है, उसी के सम्मान में हर साल 21 मई को ‘राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में शहीद हुए जवानों और नागरिकों को श्रद्धांजलि देने का अवसर है। इस दिन देशभर में लोगों को यह शपथ दिलाई जाती है कि वे हर प्रकार की हिंसा और आतंकवाद का विरोध करेंगे, शांति, अहिंसा और सहिष्णुता के सिद्धांतों में विश्वास रखेंगे और देश की एकता, अखंडता व सामाजिक सद्भाव की रक्षा करेंगे।
यह दिन इसलिए भी स्मरणीय है क्योंकि 21 मई 1991 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक महिला आत्मघाती हमलावर द्वारा हत्या कर दी गई थी। यह हमला लिट्टे जैसे आतंकी संगठन की सोची-समझी साजिश का परिणाम था, जिसने केवल एक नेता की जान ही नहीं ली बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को हिला कर रख दिया था। उसी दिन की स्मृति में राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की शुरुआत हुई ताकि देशवासियों को यह अहसास कराया जा सके कि आतंकवाद किसी व्यक्ति, धर्म या समुदाय का दुश्मन नहीं बल्कि समूची मानवता का शत्रु है। हाल के वर्षों में भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध जो नीति अपनाई है, वह पहले से कहीं अधिक कठोर, रणनीतिक और सशक्त हो चुकी है। विशेषकर जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने जिस बहादुरी से अभियान चलाए हैं, उन्होंने आतंकी नेटवर्क को बड़ा झटका दिया है। धारा 370 हटाए जाने के बाद घाटी में हालात में धीरे-धीरे सुधार आने लगा है। सैकड़ों आतंकी मुठभेड़ों में मारे गए हैं और सुरक्षाबलों ने सीमाओं पर घुसपैठ की अनेक कोशिशें विफल की हैं।
हालांकि पूरी तरह से आतंक का खात्मा अब भी शेष है। इसकी ताजा मिसाल 22 अप्रैल को अनंतनाग जिले के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले में देखी जा सकती है। बैसरन घाटी में हुए इस हमले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद की जड़ें अभी भी पाकिस्तान में मौजूद हैं और वहां से संचालित आतंकी संगठन भारत की शांति व्यवस्था को चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई थी। यह हमला ऐसे समय में हुआ, जब घाटी में आतंकी घटनाओं में गिरावट दर्ज की जा रही थी, जो भारत की कूटनीतिक और सुरक्षा नीति की सफलता का संकेत थी। इस नृशंस कृत्य के बाद भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक सैन्य अभियान चलाकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की। रिपोर्टों के अनुसार, इसमें लगभग 100 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया और उनके अनेक अड्डों को नष्ट किया गया। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अब भारत केवल रक्षात्मक रवैया नहीं अपनाएगा बल्कि आतंक के स्रोत पर आक्रमण करेगा।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव बनाना शुरू किया और साथ ही सिंधु जल संधि को रद्द करने का भी बेहद निर्णायक फैसला लिया गया। यह समझौता 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था, जिसके अंतर्गत भारत ने पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का जल उपयोग करने का अधिकार दिया था। अब यह विचार प्रबल हो गया है कि जब पाकिस्तान बार-बार आतंकियों को शरण देता है और भारत की नागरिक आबादी को निशाना बनाता है तो ऐसे में इस ऐतिहासिक संधि को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। भारत के सैन्य अभियानों ने न केवल प्रत्यक्ष रूप से आतंकियों को नुकसान पहुंचाया है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफलता प्राप्त की है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने उसे ग्रे लिस्ट में डालकर उसकी अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त दबाव बनाया है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थानों के सामने भारत ने बार-बार पाकिस्तान के दोहरे रवैये को उजागर किया है, जहां एक ओर वह शांति की बातें करता है, वहीं दूसरी ओर अपनी धरती पर आतंकियों को संरक्षण देता है।
घाटी में हो रहे सकारात्मक बदलावों की जड़ में सुरक्षा बलों की बहादुरी के साथ-साथ स्थानीय जनता की बदली मानसिकता भी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब घाटी में स्थानीय युवाओं की आतंकी संगठनों में भर्ती में काफी गिरावट आई है। पहले जहां एक साल में दर्जनों युवाओं के लापता होने की खबरें आती थी, अब वह संख्या इक्का-दुक्का रह गई है। भारत की वर्तमान नीति ‘आतंक के प्रति शून्य सहनशीलता’ की है और इस नीति के हर पहलू में क्रियान्वयन दिख भी रहा है। अब आतंकी हमलों का जवाब केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहता बल्कि पाकिस्तान की सीमा में घुसकर उनके ठिकानों को नेस्तनाबूद किया जाता है। यह बदलाव केवल सैन्य शक्ति के उपयोग का नहीं बल्कि जन-मन के दृढ़ संकल्प का परिचायक है।
बहरहाल, बेशक आतंकवाद की कमर तोड़ी जा रही है लेकिन अब भी इसकी ‘अंतिम परछाई’ को मिटाना बाकी है। जब तक देश का कोई भी कोना आतंक से मुक्त नहीं होता, तब तक यह संघर्ष जारी रहना चाहिए। आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई केवल हथियारों से नहीं बल्कि समाज की एकजुटता, सूझबूझ और जागरूकता से ही जीती जा सकती है। हर नागरिक को यह समझना होगा कि आतंकवाद केवल सीमाओं की समस्या नहीं बल्कि मानवता का साझा दुश्मन है। आज यह आवश्यक है कि हम राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस के मौके पर न केवल शपथ लें बल्कि उसे व्यवहार में भी उतारें। हममें से हर व्यक्ति आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में सैनिक बने, चाहे वह सूचनाएं देकर सुरक्षा एजेंसियों की मदद करने की बात हो या बच्चों को कट्टरपंथ से दूर रखने की दिशा में पहल करने की। तभी हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकेंगे, जहां शांति, सद्भाव, एकता और विकास के मूल्यों की बुनियाद पर भविष्य की इमारत खड़ी होगी।

तमस से ज्योति की ओर एक सुधारवादी यात्रा

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राजा राममोहन राय जन्म जयन्ती- 22 मई, 2025
– ललित गर्ग

यह वह समय था जब हिन्दुस्तान एक तरफ विदेशी दासता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था वहीं दूसरी तरफ रूढ़िवाद, धार्मिक संकीर्णता, सामाजिक कुरीतियों और दमघोंटू प्रथाओं के बोझ तले दबा हुआ था। तभी एक मसीहा, समाज-सुधारक एवं क्रांतिकारी महामानव अवतरित हुआ जिसने तमाम बुराइयों को चुनौती दी और आखिरी सांस तक बदलाव के लिये क्रांतिकारी योद्धा की तरह लड़ा। ये मसीहा था राजा राममोहन राय। इन्हें देश एवं दुनिया आज भारत में सामाजिक सुधारों के अग्रदूत के तौर पर याद करती है। अपने दौर में वे ‘भारतीय पुनर्जागरण के पितामह’ बनकर सच्चे जीवन की लौ बनें और इस लौ का आह्वान था नये भारत का निर्माण। वे तमस से ज्योति की ओर एक बहुआयामी सुधारवादी यात्रा का उजाला थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी राय के द्वारा स्थापित ‘ब्रह्म समाज’, जो आधुनिक पश्चिमी विचारों से प्रभावित था, सबसे शुरुआती सुधार आंदोलन था। एक सुधारवादी विचारक के रूप में राय आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीय गरिमा तथा सामाजिक समानता के सिद्धांतों में विश्वास करते थे। राय के प्रयासों से ही भारत में आधुनिक धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों की नींव पड़ी। राय के बाद, देवेंद्रनाथ ठाकुर और केशव चंद्र सेन जैसे सुधारकों ने ब्रह्म समाज के विचारों को आगे बढ़ाया और इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन बनाया। उन्नीसवीं सदी के भाल पर अपने कर्तृत्व की जो अमिट रेखाएं उन्होंने खींची, वे इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगी। वे साहित्यस्रष्टा के साथ-साथ धर्मक्रांति एवं समाजक्रांति के सूत्रधार विराट व्यक्तित्व थे।
राजा राम मोहन राय का जन्म पश्चिम बंगाल स्थित हुगली जिले के राधानगर गांव में 22 मई 1772 को हुआ। पिता रमाकांत राय शुद्ध वैष्णव परंपरा को मानने वाले थे, वहीं माता तारिणी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। पूरा परिवार कट्टर हिन्दु परंपराओं का हिमायती था लेकिन राममोहन राय को बिना तर्क किसी भी बात को स्वीकार नहीं करते थे, इसलिए जब केवल 15 साल के थे तो उन्होंने मूर्ति पूजा को लेकर सवाल खड़े कर दिये। साथ ही अन्य प्रथाओं की भी आलोचना करनी आरंभ कर दी। हिन्दू परंपराओं का विरोध करना शुद्ध वैष्णव परंपरा को मानने वाले पिता रमाकांत को नागवार गुजरी। पिता-पुत्र में गहरा मतभेद हो गया। राय को पढ़ने के लिए पटना भेज दिया गया। यहां उन्होंने बांग्ला, पारसी, अरबी, संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। यहां भी वो हिन्दू परंपराओं और प्रथाओं को तर्क की कसौटी पर परखते रहे और सवाल उठाते रहे। पढ़ाई पूरी करने के बाद राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में नौकरी कर ली, यहां वे कई अंग्रेजों के संपर्क में आये। उनकी सभ्यता, सोच और तौर-तरीकों को करीब से महसूस किया। उन्होंने समझ लिया कि पश्चिमी सभ्यता विकास की प्रक्रिया में काफी आगे निकल गयी है जबकि हिन्दुस्तान इसके मुकाबले सदियों पीछे जी रहा है।
राय ने हिन्दू ग्रंथों के साथ इस्लाम एवं ईसाई धर्मों एवं ग्रंथों का भी गहराई से अध्ययन किया। उन्हें एक बात समझ आयी कि हिन्दू धर्म ग्रंथों में वो कतई नहीं लिखा है जो पोंगा पंडित, लोगों को बता रहे हैं। उन्होंने महसूस किया कि भारतीय जनमानस अपने ग्रंथों की मूलभावना से काफी अनजान है। ऐसा इसलिए था क्योंकि धर्मग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गये थे और लोगों की पहुंच से दूर थे। इसलिए उन्होंने धर्मग्रंथों का हिन्दी, बांग्ला, अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया। उन्होंने अपने अखबारों ‘संवाद कौमुदी’ और ‘मिरात-उल-अखबार’ में लेखों के जरिये आम जनमानस को जागरूक करने का प्रयास किया। राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का जनक माना जाता है। वे एक महान समाज सुधारक, विचारक एवं क्रांतिपुरुष थे, जिन्होंने 19वीं सदी में भारत में सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक सुधारों के लिए अनूठे एवं विलक्षण उपक्रम किये। उन्होंने व्यक्ति-क्रांति के साथ समाज-क्रांति करते हुए सती प्रथा, बाल विवाह और जाति व्यवस्था जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया और महिलाओं के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया।
राय का मानना था कि धार्मिक रूढ़िवादिताएं समाज की स्थिति को सुधारने के बजाय क्षति का कारण, परेशानी का स्रोत, सामाजिक जीवन के लिए हानिकारक और लोगों को भ्रमित करने वाली बन गई हैं। उनका यह भी मानना था कि बलिदान और अनुष्ठान लोगों के पापों की भरपाई नहीं कर सकते; यह आत्म-शुद्धि और पश्चाताप के माध्यम से किया जा सकता है। उन्होंने धार्मिक सुधार से सामाजिक सुधार और राजनीतिक आधुनिकीकरण दोनों का सूत्रपात किया। राय अपने समय से बहुत आगे चलने एवं सोचने वाले दूरदर्शी व्यक्तित्व थे। स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों के अंतर्राष्ट्रीय चरित्र के बारे में उनकी समझ ने आधुनिक युग के महत्त्व को बखूबी समझा। ये सिद्धांत वर्तमान ‘न्यू इंडिया’ के विचार को प्रेरित करते हैं। राय ने वर्ष 1803 मंे अपनी पहली पुस्तक ‘तुहफ़त-उल-मुवाहिदीन’ या ‘गिफ्ट टू मोनोथिस्ट’ प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने एकेश्वरवाद यानी एकल ईश्वर की अवधारणा के पक्ष में तर्क दिया है। उन्होंने अपने इस तर्क में प्राचीन हिंदू ग्रंथों के एकेश्वरवाद का समर्थन करने के लिये वेदों और पाँच उपनिषदों का बंगाली में अनुवाद किया।
वर्ष 1814 में उन्होंने मूर्तिपूजा, जातिगत रूढ़िवादिता, निरर्थक अनुष्ठानों और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाने के लिये कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की। जब उनके बड़े भाई का देहांत हो गया तो परंपरा के मुताबिक गांव वालों ने पंडितों के साथ मिलकर उनकी भाभी को सती हो जाने के लिए मजबूर किया। उन्हें मृतक के साथ उसी चिता में जिंदा जला दिया गया। इस घटना से राय बहुत दुखी हुए। उन्होंने पूरे हिन्दुस्तान में ऐसी क्रूर प्रथा को धर्म के नाम पर खुलेआम होते देखा। उन्होंने वर्ष 1818 में सती-विरोधी संघर्ष शुरू किया और पवित्र ग्रंथों का हवाला देते हुए यह साबित करने का प्रयास किया कि सभी धर्म मानवता, तर्क और करुणा की बात करते है; कोई भी धर्म विधवाओं को जिंदा जलाने का समर्थन नहीं करता है। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 1829 में सरकारी विनियमन द्वारा सती प्रथा को अपराध घोषित कर दिया गया। राय सती प्रथा के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ एक धार्मिक योद्धा थे। इससे पहले जब उनके पिता का देहांत हुआ था तब उन्होंने देखा था कि समाज विधवाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है। विधवाओें का सिर मुंडवा दिया जाता था। उन्हें रंगहीन सफेद कपड़ा पहनना पड़ता था। उन्हें बेस्वाद खाना खाने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्हें परिवार या समाज के सार्वजनिक आयोजनों से दूर रखा जाता था। इन दोनों बातों ने राममोहन राय को अंदर तक व्यथित किया।
राय ने ठान लिया कि वे भारतीय समाज के इन बुराइयों को दूर कर के रहेंगे। इसलिए उन्होंने सती प्रथा उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह कानून बनाने की मुहिम छेड़ दी। इसमें उन्हें तात्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक से खूब सहायता मिली। उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआ-छूत, अंधविश्वास और मादक द्रव्यों के इस्तेमाल के खिलाफ भी अभियान चलाया। उनके विचारों और गतिविधियों का उद्देश्य सामाजिक सुधार के माध्यम से जनता का राजनीतिक उत्थान करना था। राजा राम मोहन राय ने महसूस किया कि भारतीय युवाओं को आधुनिक शिक्षा पाने के लिए विदेशों में शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। उन्होंने इंग्लैंड भेजे जाने वाले भारतीय छात्रों का समर्थन किया और यह कहा कि पश्चिमी शिक्षा ही भारतीय समाज को आधुनिकता और प्रगति की ओर ले जा सकती है। तत्कालीन मुगल बादशाह ने उन्हें आर्थिक सहायता संबंधी किसी काम के लिए ब्रिटेन भेजा। इसी मुगल बादशाह ने उनको राजा की उपाधि भी दी।
राजा राम मोहन राय का आधुनिक शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण और उनके प्रयास भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांति लेकर आया। उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारतीय समाज को अंग्रेजी और आधुनिक विज्ञान की शिक्षा से जोड़ा और भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की। राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में आधुनिकता, तर्कशीलता और समानता की नींव रखी। उनके कार्यों ने भारतीय समाज को प्राचीन रूढ़ियों से बाहर निकालकर आधुनिक युग की ओर अग्रसर किया। वे न केवल धार्मिक सुधारक थे, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक सुधारों के भी पथप्रदर्शक थे। उनके जीवन का हर पहलू समाज सुधार, धार्मिक सहिष्णुता और समानता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

भीषण गर्मी में स्वयं के साथ बेजुबानों का भी रखें ध्यान !

हाल ही में मौसम विभाग ने 21 मई तक 24 मई तक पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में कुछ जगहों पर लू चलने की संभावना जताई है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार 21 मई तक हरियाणा और राजस्थान में कुछ इलाकों में रात में भी लू चलने की संभावना है। इन दिनों राजस्थान और हरियाणा ही नहीं पूरे उत्तर भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है। यूपी और बिहार भी लू की चपेट में हैं।इधर दिल्ली में भी गर्मी से बुरा हाल है। गर्मी को देखते हुए मौसम विभाग समय-समय पर हाई अलर्ट जारी करता रहता है। हमें इन अलर्ट्स को लेकर विशेष ध्यान बरतना चाहिए और मौसम विभाग के दिशा निर्देशों के अनुरूप कार्य करना चाहिए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार(जैसा कि भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने बताया है) पंजाब से हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के उत्तरी गंगीय क्षेत्र से होते हुए उत्तरी बांग्लादेश तक एक कम दबाव का क्षेत्र बना हुआ है तथा दक्षिण गुजरात से सटे उत्तर-पूर्व अरब सागर पर ऊपरी हवा का चक्रवाती परिसंचरण भी बना हुआ है। मौसम संबंधी इन प्रणालियों के चलते आज जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश में और 24 मई तक उत्तराखंड और उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में गरज, बिजली और 30-50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलने की संभावना है। सच तो यह है कि उत्तर-पश्चिम भारत से लेकर पूर्व, मध्य और दक्षिण भारत तक में बदलते मौसम का कहर देखने को मिल रहा है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ों और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में जहां एक ओर आंधी-तूफान, हिमपात, ओलावृष्टि, गरज और बिजली की चमक के साथ बारिश हो रही है वहीं दूसरी ओर कुछ क्षेत्रों में प्रचंड गर्मी का प्रकोप भी बना हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों में आंधी-तूफान और वर्षा जनित घटनाओं में 11 लोगों की मौत भी हो गई और कई घायल हुए हैं। हाल फिलहाल कहना ग़लत नहीं होगा कि गर्मी इन दिनों लगभग लगभग पूरे उत्तर भारत में कहर ढा रही है। अतः हमें गर्मी से बचने के लिए पर्याप्त पानी पीना (हाइड्रेटेड रहना)चाहिए, हल्के रंग के ढ़ीले और सूती कपड़े पहनने चाहिए, धूप से बचना चाहिए, खाली पेट घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए और घर और आफिस में ठंडे स्थान पर रहना चाहिए । घर से बाहर निकलना भी पड़े तो टोपी, छाता या सनस्क्रीन का उपयोग करना चाहिए। यदि संभव हो तो एयर कंडीशनिंग का उपयोग करना चाहिए और दिन के सबसे गर्म समय में(दोपहर 2 बजे से चार बजे तक) बाहर जाने से बचना चाहिए, क्यों कि इस समय धरती भीषण गर्मी से पूरी तरह से तपने लगती है। गर्मी के मौसम में हमें मसालेदार भोजन या गर्म भोजन खाने से बचना चाहिए, क्यों कि ये हमारे शरीर को गर्म कर सकते हैं। हमें यह चाहिए कि हम इस भीषण गर्मी में ठंडे पेय पदार्थों मसलन ठंडा पानी, नारियल पानी, या नींबू पानी, छाछ, लस्सी ,ठंडाई आदि का सेवन करें और अपनी सेहत का ध्यान रखें। वास्तव में गर्मी से संबंधित बीमारियों से बचने के लिए, हमें किसी भी असामान्य लक्षण पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कि सिरदर्द, चक्कर आना, थकान, या उल्टी।यदि हमें गर्मी से संबंधित बीमारी के लक्षण दिखाई दें, तो हमें यह चाहिए कि हम तुरंत किसी डॉक्टर या नजदीकी हास्पीटल या डिस्पेंसरी में संपर्क करें। भीषण गर्मी के इस मौसम में हम अपना और अपने परिवार का ही नहीं अपितु जीव-जंतुओं का भी पूरा ध्यान रखें। वास्तव में जहां पक्षियों की आवाजाही अधिक रहती है, वहां पेड़ों पर हम पानी के परिंडे लगाएं, उनके लिए पानी के सकोरों की व्यवस्था करें। इतना ही नहीं हम पक्षियों के लिए दाने के लिए पात्र रखवाएं तथा पशुओं के लिए पानी की खेलियां रखवाकर उनमें प्रतिदिन पानी की व्यवस्था रखें, क्यों कि बेजुबान पशु-पक्षी मनुष्य की तरह बोलकर अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर सकते हैं। हमें ही पशु-पक्षियों की व्यथा, उनके दुःख-दर्द(भोजन-पानी आदि) को समझना होगा, महसूस करना होगा। पशु, पक्षी और मनुष्य तीनों सचेतन जीव हैं, जिनके अपने-अपने जीवन के उद्देश्य होते हैं। मनुष्य तर्क कर सकता है, अपनी बुद्धि और तर्क शक्ति से प्रेरित होता है, जबकि पशु सहज प्रवृत्ति से प्रेरित होते हैं। पक्षी भी सहज प्रवृत्ति से जीवन जीते हैं, लेकिन उनमें भी अपनी तरह की बुद्धि होती है। इसलिए पशु-पक्षियों का संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य बन जाता है। बहरहाल, आज धरती का तापमान निरंतर बढ़ता चला जा रहा है और भीषण गर्मी के कारण मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों का जीवन भी असहनीय हो चला है। 20 मई से 2 जून तक  सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक कोई भी व्यक्ति बाहर (खुले आसमान के नीचे) नहीं निकले, अथवा बहुत कम किसी ज़रूरत विशेष पड़ने पर ही घर से बाहर निकले क्योंकि यह संभावनाएं जताई जा रहीं हैं कि  तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। ऐसे मौसम में (भीषण गर्मी में) किसी भी व्यक्ति को घुटन महसूस हो सकती है या अचानक तबियत खराब हो सकती है तो ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क स्थापित करना चाहिए और अपना इलाज कराना चाहिए अथवा मेडिकल परामर्श लेना चाहिए। भीषण गर्मी के मौसम में हमें कुछ एहतियात बरतने की आवश्यकता है। मसलन, हमें यह चाहिए कि हम घर और आफिस में वेंटीलेशन (वायु-संचार) पर पर्याप्त ध्यान दें। गर्मी के इस मौसम में मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर का प्रयोग कम करें, जैसा कि भीषण गर्मी में मोबाइल फटने की संभावनाएं बनीं रहतीं हैं। अतः हमें इससे सावधान रहने की जरूरत है। भीषण गर्मी के मौसम में हमें दही ,मट्ठा, बेल का जूस आदि ठंडे पेय पदार्थों का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। पाठकों को बताता चलूं कि नागरिक सुरक्षा महानिदेशालय नागरिकों और निवासियों को कुछ चीजों के प्रति सदैव सचेत और जागरूक करता है। पाठकों को बताता चलूं कि आने वाले दिनों में 47 से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ते तापमान और क्यूम्यलस बादलों की उपस्थिति के कारण अधिकांश क्षेत्रों में दमघोंटू माहौल होने के कारण, कुछ चेतावनियां और सावधानियां जारी की गईं हैं। पाठकों को बताता चलूं कि नागरिक सुरक्षा महानिदेशालय द्वारा बताया गया है कि भीषण गर्मी में कारों में से गैस सामग्री, लाइटर, कार्बोनेटेड पेय पदार्थ, सामान्यतः इत्र और उपकरण बैटरियाँ आदि को हटा दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, कार की खिड़कियाँ थोड़ी खुली (वेंटिलेशन) होनी चाहिए तथा कार के फ्यूल टैंक को पूरा नहीं भरा जाना चाहिए। जानकारी दी गई है कि कार आदि में शाम के समय ईंधन भरा जाना चाहिए। साथ ही  कार के टायरों को ज़्यादा नहीं भरा जाना चाहिए, ख़ासकर यात्रा के दौरान। गर्मी के इस मौसम में हमें बिच्छुओं और सांपों से सावधान रहने की भी जरूरत है,क्योंकि भीषण गर्मी में वे अपने बिलों से बाहर निकलकर, ठंडी जगहों की तलाश में पार्क और घरों में प्रवेश कर सकते हैं। इस मौसम में (जून जुलाई में) हमें खूब पानी और तरल पदार्थ पीने चाहिए, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम गैस सिलेंडर को धूप में न रखें। साथ ही साथ हम यह भी सुनिश्चित करें कि बिजली मीटरों पर अधिक भार न बढ़ने पाए और एयर कंडीशनर का उपयोग केवल घर के व्यस्त क्षेत्रों में करें, विशेषकर अत्यधिक गर्मी के समय में। साथ ही दो तीन घंटे के बाद इन इलैक्ट्रोनिक उपकरणों को कम से कम 30 मिनिट्स का रेस्ट ज़रूर दें। बाहर 45-47° तथा घर पर एसी 24-25° पर ही चलाएँ। गर्मी के इस मौसम में हमें सूरज की रोशनी के सीधे संपर्क में आने से बचना चाहिए, खासकर सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच। तो आइए भीषण गर्मी के इस मौसम में हम स्वयं भी गर्मी से बचें और पशु-पक्षियों को भी गर्मी से बचाने के लिए कृत संकल्पित हों। हमारे छोटे छोटे प्रयासों और जागरूकता से बहुत कुछ संभव हो सकता है।

सुनील कुमार महला

जब ट्रेनें बन जाएँ डर की सवारी: राप्तीसागर एक्सप्रेस पर पथराव, व्यवस्था पर बड़ा तमाचा


अशोक कुमार झा


18 मई 2025 की रात देश की प्रतिष्ठित लंबी दूरी की राप्तीसागर एक्सप्रेस पर जब सीवान-छपरा रेलखंड के बीच पत्थरों की बरसात हुई तो एक बार फिर देश की रेल सुरक्षा व्यवस्था, सामाजिक तंत्र और प्रशासनिक संवेदनशीलता कठघरे में खड़ी हो गई।
मुजफ्फरपुर के युवा यात्री विशाल कुमार के सिर पर पत्थर लगने से बहता लहू केवल उनकी देह से नहीं बल्कि व्यवस्था के माथे से भी बह रहा था।
यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि समाज के भीतर पनपते एक नंगे सच की अभिव्यक्ति थी—रेल की खिड़की पर बैठे 28 वर्षीय यात्री विशाल कुमार के सिर पर पड़ा पत्थर उसी अराजकता का प्रतीक था जो दिनों-दिन हमारी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर भारी पड़ती जा रही है।
यह घटना कोई नई नहीं, कोई अपवाद नहीं। इससे पहले 12 अप्रैल को एकमा के पास सीताराम एक्सप्रेस पर हुए पथराव में एक यात्री की भुजा टूट गई थी। देश के विभिन्न रेलखंडों में समय-समय पर इस तरह की घटनाएं होती रही हैं परंतु चिंता की बात यह है कि अब ये वारदातें न केवल बढ़ रही हैं बल्कि संगठित, उद्दंड और बेलगाम हो रही हैं।


दोनों घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि संगठित अपराध की ओर बढ़ता हुआ एक खतरनाक रुझान है, जो न केवल यात्रियों की जान को संकट में डाल रहा है, बल्कि पूरे रेलवे तंत्र की विश्वसनीयता को भी चोट पहुँचा रहा है।


घटना से उठते सवाल: क्या अब रेल सफर भी असुरक्षित है?
देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था—भारतीय रेलवे—हर दिन लगभग 2.3 करोड़ यात्रियों को ढोती है। यह केवल एक यातायात व्यवस्था नहीं, बल्कि हिंदुस्तान की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक धमनियों की जीवनरेखा है। ऐसे में अगर उसी व्यवस्था की ट्रेनें अब असुरक्षा, भय और हमलों की शिकार बनें, तो यह राष्ट्र के लिए चेतावनी की घंटी है।


राप्तीसागर एक्सप्रेस जैसी प्रतिष्ठित सुपरफास्ट ट्रेन में RPF की सशस्त्र स्कॉर्टिंग टीम मौजूद रहती है, फिर भी यदि कोच S-3 में बैठा यात्री पत्थरबाज़ी से घायल हो जाए तो यह प्रश्न उठता है कि सुरक्षा टीम की सीमा कहाँ तक है? क्या सुरक्षा केवल एसी डिब्बों तक सीमित रह गई है? क्या जनरल कोच के यात्री दोयम दर्जे के नागरिक बनकर यात्रा कर रहे हैं?


रेल पटरियों पर कौन फैला रहा दहशत?
यह सवाल अब महज़ एक सुरक्षा तकनीकी प्रश्न नहीं रहा। यह अब सामाजिक पतन, प्रशासनिक लापरवाही और सरकार की ज़िम्मेदारी पर भी प्रश्नचिन्ह बन चुका है। रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने स्वीकार किया है कि पथराव बड़हेरवा और डुमरी के बीच हुआ और आसपास की बस्तियों से असामाजिक तत्वों द्वारा ऐसी घटनाएं अंजाम दी जा रही हैं। सवाल यह है—क्या रेलवे को इस खतरे की पूर्व जानकारी नहीं थी? क्या अप्रैल की घटना के बाद पर्याप्त कार्रवाई हुई थी? अगर हाँ, तो फिर मई में वही दृश्य दोबारा क्यों दोहराया गया?
आज रेलवे ट्रैक के किनारे बसे गांवों में बेरोजगारी, नशाखोरी और शैक्षिक पिछड़ापन ऐसा विषैला माहौल बना रहे हैं जो बच्चों को खेल की जगह हिंसा और अपराध की ओर धकेल रहा है। जब ट्रेन गुजरती है तो कुछ युवा मस्ती के नाम पर जानलेवा पत्थर चलाते हैं और फिर अंधेरे में गायब हो जाते हैं। यह महज़ बचकानी शरारत नहीं, यह संगीन अपराध है। रेलवे एक्ट की धारा 153 के तहत ऐसे हमलों में पाँच साल तक की सजा का प्रावधान है—पर सवाल यह है कि इस कानून को लागू कितनी बार किया गया?


यह पत्थरबाज़ी नहीं, सामाजिक विद्रूपता है
रेलवे ने अपनी शुरुआती जांच में माना है कि यह हमला बड़हेरवा और डुमरी स्टेशनों के बीच हुआ। यह क्षेत्र ट्रैक किनारे बसी उन बस्तियों के समीप है जहाँ बार-बार ऐसे हमले होते रहे हैं। ऐसे क्षेत्रों में न तो सामाजिक चेतना है, न रोज़गार के अवसर, न बच्चों के लिए खेल-कूद की सुविधा, न शिक्षा का वातावरण। परिणामस्वरूप किशोर और युवा ‘मज़ाक’ के नाम पर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे बैठते हैं जो किसी की जान भी ले सकती हैं।


यह कोई बालपन की शरारत नहीं, बल्कि अपराध है और यह अपराध लगातार तब तक होता रहेगा, जब तक इस मानसिकता को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कोई दीर्घकालिक सामाजिक योजना नहीं बनाई जाती।


लंबी दूरी की गाड़ियाँ, लेकिन सुरक्षा में लंबी दूरी?
राप्तीसागर एक्सप्रेस जैसी सुपरफास्ट ट्रेनों में आमतौर पर RPF की स्कॉर्टिंग टीम मौजूद रहती है लेकिन यह टीम केवल एसी कोचों तक सीमित रहती है। जनरल बोगियों में तो मानो भगवान भरोसे ही यात्री यात्रा करते हैं। विशाल कुमार भी जनरल कोच S-3 में सफर कर रहे थे और हादसे के शिकार हो गए।
इस घटना ने साफ कर दिया है कि हिंदुस्तान की रेलवे सुरक्षा प्रणाली में एक वर्गीय असमानता भी पनप रही है—जहाँ ए सी कोच की निगरानी तो डिजिटल तकनीक से होती है, वहीं जनरल कोच को रामभरोसे छोड़ दिया गया है। यह असमानता भविष्य में और गहरा संकट खड़ा कर सकती है।


तकनीकी उपाय बनाम जमीनी सच
रेलवे ने आश्वासन दिया है कि घटना के बाद मोबाइल पेट्रोलिंग बढ़ाई गई है, CCTV फुटेज खंगाले जा रहे हैं और ड्रोन सर्वे की तैयारी की जा रही है। वरिष्ठ RPF अधिकारी आशीष कुमार ने कहा कि दोषियों पर रेलवे अधिनियम की धारा 153 के तहत कार्रवाई की जाएगी, जिसमें पांच वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है।
परंतु क्या केवल तकनीकी उपाय पर्याप्त हैं? क्या ड्रोन फुटेज देखकर अपराधी पकड़े जाएँगे? और यदि पकड़ लिए गए, तो क्या अगली पीढ़ी से पथराव बंद हो जाएगा ?


इस सवाल का उत्तर “नहीं” है।
जब तक सामाजिक परिवर्तन नहीं होगा, जब तक ट्रैक किनारे बसे लोगों को रेलवे की अहमियत और उसकी मारक क्षमता का बोध नहीं कराया जाएगा, तब तक ये हमले रुकने वाले नहीं हैं।


रेलवे ट्रैक के किनारे: सामाजिक पुनर्गठन की ज़रूरत
भारत में हज़ारों किलोमीटर रेल पटरियों के किनारे झुग्गी-बस्तियाँ बसी हुई हैं। अनेक लोग वर्षों से वहीं निवास करते आ रहे हैं। रेलवे की भूमि पर बसे इन निवासियों के पास न तो पहचान है, न अधिकार। वे कानून से बाहर और सरकार की निगाहों से दूर रहते हैं।
यह आवश्यक है कि रेलवे, राज्य सरकारें और सामाजिक संस्थाएँ मिलकर ऐसे क्षेत्रों के लिए विशेष पुनर्वास और सुधार योजनाएँ बनाएं, जिसमें—

·  प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना

·  व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र

·  सामुदायिक काउंसलिंग

·  मोबाइल पुलिस चौकियाँ

·  CCTV निगरानी टॉवर

·  और स्वयंसेवी संगठनों की सक्रिय भूमिका तय की जाए।

यही उपाय हैं जो पत्थर फेंकते हाथों को औजार थमाने और दिशाहीन युवाओं को सृजनात्मक जीवन की ओर मोड़ने का काम करेंगे।


कानून के डर की पुनर्स्थापना जरूरी
पिछले कुछ वर्षों में ऐसे हमलों में किसी बड़े दोषी को सज़ा मिलने की खबरें नगण्य रही हैं। रेलवे एक्ट की धारा 153, भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या की कोशिश) या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के कड़े प्रावधान तब तक काग़ज़ी हैं, जब तक उनका प्रभाव धरातल पर न दिखे।
यही कारण है कि अपराधियों में कानून का भय नहीं है। हमें ऐसी घटनाओं में तेज़ न्याय, मीडिया ट्रायल से आगे जाकर न्यायिक ट्रायल और दोषियों के विरुद्ध उदाहरण स्वरूप सज़ा दिलाने की ज़रूरत है।


राजनीतिक चुप्पी भी शर्मनाक
हैरानी की बात है कि ऐसी घटनाएँ होने के बावजूद न तो क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि सामने आए, न राज्य सरकार ने कोई विशेष बयान दिया। देश की संसद में भी इस विषय पर कोई गूंज नहीं हुई।


क्या हमारे जनप्रतिनिधियों की संवेदनशीलता अब सिर्फ चुनाव क्षेत्र और जातीय गणित तक सिमट गई है? क्या आम जनता की जान की कीमत अब वोट बैंक की प्राथमिकता से भी कम हो गई है?


अगर रेल यात्री अब ट्रेनों में डर से सफर करने लगे, तो यह लोकतंत्र की हार है।
क्या यात्री भी बनें प्रहरी?
RPF ने यात्रियों से अपील की है कि किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना 182 हेल्पलाइन पर दें और वीडियो/फोटो भेजें। यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसके साथ यह विश्वास भी देना होगा कि—

·  आपकी पहचान गोपनीय रहेगी

·  सूचना देने वालों को प्रोत्साहन व सुरक्षा मिलेगी

·  कार्रवाई शीघ्र होगी

परंतु आम नागरिक को ‘सुरक्षा प्रहरी’ बनाना तभी संभव हो पायेगा, जब उसकी शिकायतों को गंभीरता से लिया जाए, उसका डेटा सुरक्षित रखा जाए और अपराधियों पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।


क्योंकि कोई यात्री अपने मोबाइल से वीडियो या फोटो तभी भेजेगा, जब उसे यह भरोसा होगा  कि वह सरकारी मशीनरी का हिस्सा बन रहा है—न कि महज़ एक ‘क्लिक’ जिसे फाइलों में दबा दिया जाएगा। जब तक यात्री का सरकार और प्रशासन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं हो पायेगा, तबतक वह ‘सुरक्षा भागीदार’ बनने से हिचकता रहेगा और इस कार्य से अपनी दूरी बनाये रखेगा।

यह केवल ट्रेन पर हमला नहीं, यह राष्ट्र की आत्मा पर चोट है
राप्तीसागर एक्सप्रेस पर हुआ पथराव यह दर्शाता है कि हमने तकनीकी प्रगति तो कर ली है, पर सामाजिक चेतना में हम अब भी पिछड़े हैं। यह हमला एक यात्री पर नहीं, पूरे राष्ट्र की आवाजाही, आत्मा और संवेदना पर है।


राप्तीसागर एक्सप्रेस पर हुआ यह हमला एक यात्री के सिर पर नहीं, हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था की गरिमा पर भी चोट है। यह हमला उस भरोसे पर है, जिससे करोड़ों लोग हर रोज़ भारतीय रेलवे की सेवाओं का उपयोग करते हैं। अगर रेल पटरियाँ असुरक्षित हो गईं, तो देश की अर्थव्यवस्था, एकता और सामाजिक संतुलन पर इसका असर तय है।


ट्रेनें सिर्फ लोहे की गाड़ियाँ नहीं होतीं। वे समाज के सपनों, आशाओं और विश्वासों की प्रतीक होती हैं। यदि उनकी खिड़कियों से अब खून बहने लगे तो समझ लीजिए, यह केवल रेल का मामला नहीं—यह राष्ट्र की चेतना पर हमला है।
अब वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार, रेलवे मंत्रालय, राज्य प्रशासन और समाज मिलकर ऐसी घटनाओं पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएं। साथ ही, रेलवे ट्रैक किनारे बसे क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा से जुड़े दीर्घकालिक कार्यक्रमों की शुरूआत की जाए।


हमें अब यह तय करना होगा कि क्या हम इस देश को ऐसी असामाजिक मानसिकता के हाथों सौंप देंगे? या फिर पूरी गंभीरता से व्यवस्था, समाज और नेतृत्व मिलकर इन घटनाओं को जड़ से खत्म करने की रणनीति बनाएँगे?
जब तक रेलवे केवल ‘लाल फीता’ और ‘फील्ड नोट्स’ तक सीमित रहेगी, तब तक राप्तीसागर एक्सप्रेस जैसे नाम सिर्फ भय के प्रतीक बनते रहेंगे। हमें पटरियों को सिर्फ लोहे की नहीं, भरोसे की भी ज़ंजीर बनाना होगा।

अशोक कुमार झा

 हंगामा है क्यों बरपा…

सर्व दलीय प्रतिनिधि मंडलों का गठन 

बाकी सब ठीक, पर देशहित प्रथम 

डॉ घनश्याम बादल

   पहलगाम की आतंकवादी घटना के बाद यह तय था कि भारत एक्शन लेगा और एक्शन लिया गया जिसकी परिणीति 6 व 7 मई की रात में पाकिस्तान के 9 आतंकवादी ठिकानों को तहस-नहस कर देने वाली कार्रवाई के रूप में हुई । चोट खाए पाकिस्तान ने भी अपने पाले हुए आतंकवादियों का पक्ष लेते हुए भारत पर पलट कर हमला करने की कोशिश की जो नाकाम रही । 

   बात-बात में परमाणु बम की धमकी  एवं गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान की हालत केवल चार दिन के जंग के बाद ही खस्ता हो गई और जब भारत में उसके तेरह में से ग्यारह एयरबेस क्षतिग्रस्त कर दिए और कम से कम छह पूरी तरह तबाह कर दिए व उसकी मिसाइलें एवं लड़ाकू विमान मार गिराए तथा ब्रह्मोस का प्रयोग करते हुए (यदि मीडिया की रिपोर्ट को सच माने तो)  उसे परमाणु बम के उपयोग करने की संभावना से भी वंचित कर दिया, तब आनन फानन में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ट्वीट करके दुनिया को इस संघर्ष विराम या सीज फायर की जानकारी दी तो एक तरह से दक्षिण एशिया एवं दुनिया ने राहत की सांस ली । 

     वहीं यदि डोनाल्ड ट्रंप के वक्तव्य को मानें तो लाखों लोग मरने से बचे लेकिन यहीं से देश में राजनीतिक उठा पटक शुरू हो गई । विपक्ष ने मुखर होकर पूछा कि ऐसे क्या कारण थे जिसकी वजह से अचानक ही संघर्ष विराम की घोषणा करनी पड़ी और विभिन्न कोणों से सरकार पर जब हमले हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को देश को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर समाप्त नहीं हुआ है. अभी तो उसे केवल स्थगित किया गया है। साथ ही साथ उन्होंने कड़े शब्दों में पाकिस्तान एवं आतंकवादियों सहित दूसरे देशों को भी चेतावनी दे दी की भारत के आंतरिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप सहन नहीं किया जाएगा तथा आतंकवाद  की किसी भी घटना को ‘एक्ट आफ वार’ समझा जाएगा जिसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। 

   भले ही सरकार एवं विभिन्न रक्षा विशेषज्ञों की दृष्टि में भारत का पलड़ा इस संघर्ष में भारी रहा तथा पाकिस्तान को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा लेकिन दुनिया में अपना पक्ष रखना भी बहुत ज़रूरी था, इसलिए भारत सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडलों का गठन किया जिनका नेतृत्व जाने माने नेताओं को सौंपा गया।  59 सदस्यों वाले इन साथ प्रतिनिधि मंडलों में लगभग सभी प्रमुख दलों के सदस्यों को शामिल किया गया लेकिन विवाद तब उठ खड़ा हुआ जब कांग्रेस ने अपनी ही पार्टी के नेता शशि थरूर को अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेता चुने जाने के बावजूद इस पर आपत्ति दर्ज कराई । कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि जिन चार नेताओं के नाम कांग्रेस ने दिए थे, उनमें से केवल आनंद शर्मा को ही प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया है और सरकार में अपनी मर्जी से ही शशि थरूर एवं सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं को कांग्रेस का प्रतिनिधि बनाकर भेजने का निर्णय लिया जो उसके लिए आपत्तिजनक है।

     एक तरह से देखे तो कांग्रेस का पक्ष अनुचित नहीं है क्योंकि हर दल को अपने उपयुक्त नेता को ऐसे प्रतिनिधि मंडलों में शामिल कराने का अधिकार है लेकिन सरकार का कहना है कि उसने ऐसी कोई सूची मांगी ही नहीं थी तथा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए जिन नेताओं को उसने योग्य पाया, उनका चयन इन प्रतिनिधि मंडलों में किया गया है । इस दृष्टि से सरकार का पक्ष भी सही है क्योंकि जब राष्ट्र की बात आती है तब दल नहीं, योग्यता प्रमुख हो जाती है और इसका उदाहरण स्वयं कांग्रेस की पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार ने उस समय दिया था जब 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का पक्ष रखने के लिए उसने अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में वहां प्रतिनिधिमंडल भेजा था तो कह सकते हैं कि ऐसी परंपरा की शुरुआत स्वयं कांग्रेस ने की थी। 

     वैसे ऐसा भी नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेशों में भेजे हैं. इससे पूर्व भी ऐसे प्रतिनिधिमंडल भेजे जाते रहे हैं. 2008, 1971 एवं 1965 में भी भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधि मंडलों को भेजा गया था। 

     जिस तरह भारत के सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर पाक की तरफ से खड़े किए गए इस संकट में साथ दिया, वह एक प्रशंसनीय कदम था लेकिन संघर्ष विराम के बाद से ही जिस तरह की राजनीति की जा रही है उससे इस बात का भी अंदेशा है कि सेना द्वारा लगभग जीते गए जंग की महत्ता को राजनीतिक प्रतिद्वंदिता कहीं महत्वहीन न कर दे । इसलिए सभी राजनीतिक दलों को चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, इस बात पर ध्यान देना होगा कि ऐसा परिदृश्य न प्रस्तुत करें कि दुनिया भर में भारत की जग हंसाई हो। 

    खैर, एक बार फिर से लौट कर चिंतन करते हैं कि इन प्रतिनिधि मंडलों के गठन का लक्ष्य क्या है तथा यह भारत के किस-किस पक्ष को दुनिया के सामने रखेंगे और पाकिस्तान षड्यंत्रों एवं आतंकवादी मानसिकता को बेनकाब करेंगे । भारत सरकार के एजेंडे के अनुसार यह प्रतिनिधिमंडल विभिन्न देशों में जाकर उन परिस्थितियों के बारे में अवगत कराएंगे जिनके चलते भारत को पलटकर वार करना पड़ा तथा किस तरह पाकिस्तान अपने पाले हुए आतंकवादियों के माध्यम से भारत को निरंतर संकट में डालता रहा है । साथ ही साथ उनका एक बिंदु यह भी होगा कि यदि पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या अन्य देशों द्वारा अनावश्यक रूप से आर्थिक सहायता दी जाती है तो यह देश इसका इस्तेमाल सभी शर्तों एवं नियमों का को अनदेखा करके एक बार फिर से हथियार खरीदने एवं आतंकवादियों को शहर देने के लिए करेगा। 

  यह तो सभी जानते हैं कि राजनीति में मुद्दों के साथ-साथ भावनाओं का भी दोहन किया जाता है और उनसे राजनीतिक लाभ लेने की भरसक कोशिश होती है। ऐसा करने में न सत्ता पक्ष गुरेज करता है न ही विपक्ष । अभी हम उस कठिन दौर से गुजर रहे हैं जहां एक तरफ देश के हित की बात है, वहीं साथ ही साथ अपने दल के हितों की रक्षा करने की भी घड़ी है। हर दल एवं नेता को अधिकार है कि वह अपनी हितों की रक्षा करें तथा प्रतिपक्षी पर पलटकर वार करें । 

  विपक्ष का काम है सरकार की कमियों को उजागर करना एवं उसे किसी भी तरह सत्ता से हटाने की कोशिश करना जबकि सरकार या सत्ता में बैठे हुए दल का प्रयास रहता है कि वह अपनी मठाधीशी बरकरार रखें और विपक्ष को सांसत में डाले रखें जिससे उसकी कुर्सी बची रहे । 

   यह सब ठीक है पर सबसे मुख्य बात तो वही है कि यदि देश सुरक्षित रहेगा तभी आपकी सत्ता तथा सत्ता में आने की संभावना भी सुरक्षित रहेगी इसलिए क्षणिक आवेश या निहित स्वार्थ के चलते यह उचित नहीं होगा कि भारत के हितों की अनदेखी की जाए।

डॉ घनश्याम बादल 

और कितने गद्दार?

संजय सिन्हा

भारत के गद्दारों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है।हर रोज नए गद्दारों के चेहरे बेनकाब हो रहे हैं। दअरसल ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को धूल चटा देने के बाद अब भारत में ऐसे लोगों की तलाश तेज हो गई है जो दुश्मन पड़ोसी देश के साथ गद्दारी कर रहे थे। हरियाणा से एक और ऐसे ही शख्स को गिरफ्तार किया गया है जिस पर पाकिस्तान के लिए जासूसी का आरोप है। यह हरियाणा से पांचवीं और नूंह जिले से दूसरी गिरफ्तारी है। इससे पहले यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा को हिसार और अरमान को नूंह से पकड़ा गया था। हरियाणा पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियों ने नूंह के तावड़ू सब डिवीजन के कंगारका गांव से तारिफ नाम के आरोपी को गिरफ्तार किया है। इस मामले में तावड़ू सदर पुलिस थाने में तारिफ के अलावा पाकिस्तानी हाई कमीशन के दो स्टाफ सदस्यों पर भी केस दर्ज किया गया है।पुलिस जांच में सामने आया है कि तारीफ वॉट्सऐप के जरिए दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में काम कर रहे दो पाकिस्तानी नागरिकों आसिफ बलोच और जाफर को भारत की सैन्य गतिविधियों की गुप्त जानकारी भेज रहा था। इस काम के बदले उसे पैसों की भी मदद मिलती थी।

गुप्त सूचना के आधार पर चंडीगढ़ पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने तावडू सीआईए और सदर थाना पुलिस के साथ मिलकर  उसे गांव बावला के पास से पकड़ा। पुलिस को देखते ही तारीफ ने अपने मोबाइल से कुछ चैट डिलीट करने की कोशिश की, लेकिन टीम ने मोबाइल जब्त कर जांच शुरू कर दी।जांच में उसके मोबाइल में पाकिस्तानी नंबरों से की गई चैटिंग, फोटो, वीडियो और सैन्य गतिविधियों से जुड़ी तस्वीरें मिलीं। तारीफ दो अलग-अलग सिम कार्ड से लगातार पाकिस्तान के संपर्क में था। पुलिस का कहना है कि तारीफ ने पाकिस्तान उच्चायोग में तैनात आसिफ बलोच और जाफर को भारत की खुफिया जानकारियां देकर देश की सुरक्षा को खतरे में डाला। इस मामले में नूंह जिले के तावडू सदर थाने में भारतीय दंड संहिता, ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट 1923 और देशद्रोह की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। पुलिस मामले की गहराई से जांच कर रही है।बेटे की गिरफ्तारी के बाद तारिफ के पिता हनीफ ने कहा कि पुलिस उसे उठाकर ले गई है। उन्हें कुछ बताया नहीं गया है। जासूसी के आरोपों को लेकर हनीफ ने बेटे का बचाव किया। पीटीआई से बातचीत में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में उनकी रिश्तेदारी है। हनीफ ने कहा, ‘पाकिस्तान में मेरे ताऊ रहते हैं। हम वहां जाते हैं। मैं, मेरा बेटा और बहू डेढ़ साल पहले गए थे लेकिन जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वो गलत हैं।’

नूंह जिले के राजाका गांव में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में दो दिन पहले ही 26 साल के अरमान को गिरफ्तार किया गया था। आरोपी अरमान को दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में तैनात एक कर्मचारी के जरिए भारतीय सेना और अन्य सैन्य गतिविधियों से संबंधित सूचनाएं पाकिस्तान को देने के आरोप में पकड़ा गया। अरमान वॉट्सऐप और सोशल मीडिया के जरिए खुफिया जानकारी शेयर कर रहा ता। पुलिस ने बताया कि जब उसके मोबाइल फोन की तलाशी ली गई तो उसमें पाकिस्तानी नंबरों से की गई बातचीत, फोटो और वीडियो मिले। आरोप है कि वह पाकिस्तानी ऑपरेटिव्स को सिम भी मुहैया कराता था।

आपको बताता चलूं कि भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अब एक हैरान कर देने वाली रिपोर्ट सामने आयी है जिसमें यह खुलासा किया गया है कि भारत और पाकिस्तान तनाव के बीच चीन ने पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारत की जासूसी की थी।चीन ने भारत की जासूसी ही नहीं की बल्कि सेटेलाइट डेटा भी पाकिस्तान को भेजा। रक्षा मंत्रालय से संबद्ध  एक रिपोर्ट में किये गये दो बड़े खुलासों ने सभी को चौंका दिया है। इस रिपोर्ट की सबसे अहम बात यह है कि यह खुलासा ऐसे समय पर हुआ है जब दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच संघर्ष पर विराम लग चुका है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद चीन की भूमिका सवालों में घेरे में आ गयी है। सरकार और खुफिया एजेंसियां अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय संदिग्ध तत्वों की निगरानी और जांच को और तेज करने की दिशा में स्वाभाविक ही काम कर रही है।इस दिशा में तेज और सख्त कदम उठाने की जरूरत है क्योंकि गद्दारों की फेहरिस्त में और भी कई कई नाम जुड़ सकते हैं।

संजय सिन्हा

ऑपरेशन सिंदूर से भारत ने क्या हासिल किया

राजेश कुमार पासी

पाकिस्तान के आतंकियों द्वारा कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में 26 भारतीयों की बड़ी बेरहमी से हत्या की गई थी। आतंकियो ने पर्यटकों का धर्म पूछ-पूछ कर हिन्दू पुरुषों को अपना शिकार बनाया । हिंदुओं की धार्मिक पहचान जानने के लिए उनकी पैंट उतारकर देखा गया कि वो हिन्दू ही हैं । इस घटना के बाद पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई थी और देश चाहता था कि सरकार इस दुर्दांत हमले का जवाब दे । 2014 से पहले जब भी देश पर आतंकी हमला होता था तो जनता कभी बदले की बात नहीं करती थी। इसके लिए कुछ दिन आतंकवादियों और उनके आका पाकिस्तान को कोसा जाता था फिर इसके बाद देश अपने रास्ते पर चल पड़ता था। सरकार हर आतंकी हमले के बाद उसका एक डॉजियर बनाकर पाकिस्तान को आतंकी संगठनों पर कार्यवाही करने के लिए भेज देती थी। भारत ऐसे हमलों के बाद दुनिया के प्रभावशाली देशों को भी पाकिस्तान पर दबाव डालने को कहता था लेकिन कहीं कुछ नहीं होता था। 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में आतंकियों ने सैन्य ठिकाने पर बड़ा हमला करके 18 सैनिकों को शहीद कर दिया।

इसके बाद पहली बार मोदी सरकार ने पाकिस्तान को कीमत चुकाने की चेतावनी दी और कुछ दिन बाद भारतीय सेना ने पीओके में घुसकर आतंकवादी कैम्प पर हमला करके कई दर्जन आतंकवादियो को मौत के घाट उतार दिया। पहली बार भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पाकिस्तान में घुसने की हिम्मत की थी । इसके बाद कश्मीर के पुलवामा में एक बड़ा आत्मघाती हमला करके आतंकवादियो ने 40 सीआरपीएफ जवानों को शहीद कर दिया। जनता ने फिर एक बार मोदी की ओर देखा तो मोदी जी ने बयान दिया कि इस हमले का जवाब दिया जाएगा । दो हफ्ते बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में बड़े आतंकवादी शिविर पर हमला करके सेकड़ो आतंकवादियों को ठिकाने लगा दिया। इस बार जब 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने 26 निर्दोष भारतीय नागरिकों की हत्या कर दी तो जनता ने फिर मोदी की ओर देखा कि क्या इस बार भी पाकिस्तान को सबक सिखाया जायेगा । प्रधानमंत्री मोदी और उनके कई नेताओं ने बयान दिया कि इस हमले की पाकिस्तान के आतंकियों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी । मोदी जी ने कहा कि इस बार भारत ऐसी कार्यवाही करेगा जिसकी आतंकवादियों और उनके पीछे बैठे उनके आकाओं ने कल्पना भी नहीं की होगी ।

               भारतीय सैन्य बलों ने 6-7 मई की रात को 1 बजे के बाद करीब आधे घंटे में पाकिस्तान में स्थापित 9 आतंकवादी शिविरों पर बड़ा हमला करके उन्हें मिट्टी में मिला दिया । देखा जाए तो इस बार भी भारत ने आतंकियों और उनके आका पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सिर्फ आतंकवादी अड्डों पर हमला किया था और पाकिस्तान को बता दिया गया कि हमने जो कार्यवाही करनी थी कर दी गई है। पाकिस्तान को कहा गया कि भारत ने सिर्फ आतंकवादी शिविरों पर हमला किया है, किसी भी सैन्य और नागरिक ठिकाने को निशाना नहीं बनाया गया है। अगर पाकिस्तान ने भारत के ऊपर हमला किया तो उसे बड़ा जवाब दिया जाएगा । इससे साबित होता है कि आतंकवादी शिविरों पर हमला करने के बाद भारत का लक्ष्य पूरा हो गया था, अगर पाकिस्तान भारत पर हमला नहीं करता तो मामला खत्म हो जाता । पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए ये असहनीय था कि भारत इतना बड़ा हमला करे और उन्हें चुप रहना पड़े, इसलिए 8 और 9 मई की रात में पाकिस्तान ने भारत पर बड़े हमले किये । वास्तव में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद जब मोदी सरकार को यह उलाहना दिया जा रहा था कि वो पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है तो बार-बार कहा जा रहा था कि जल्दी कार्यवाही की जाएगी। मोदी विरोधियों ने यह जानते हुए भी कि मोदी दो बार पाकिस्तान पर कार्यवाही कर चुके हैं और इस बार भी करेंगे, यह शोर मचाना शुरू कर दिया कि मोदी कुछ नहीं करने वाले हैं, जो करना था वो कर दिया है। सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के फैसले को लेकर मोदी जी का खूब मजाक बनाया गया कि जब नलका ही बंद करना था तो राफेल क्यों खरीदे गए थे। मोदी सरकार के लिए कार्यवाही करना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि उनके समर्थकों में कुछ न होने पर भारी निराशा और नाराजगी पैदा हो जाती। देखा जाए तो मोदी जी के लिए आतंकवाद के खिलाफ अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति के कारण कार्यवाही करना जरूरी था। 7 मई की कार्यवाही के मोदी जी का ये लक्ष्य पूरा हो चुका था।

अब सवाल उठता है कि मोदी सरकार ने कार्यवाही करने में इतना समय क्यों लिया । वास्तव में 8 और 9 मई को पाकिस्तान ने भारत पर जो हमला किया था उसकी मोदी सरकार को पूरी आशंका थी । मोदी सरकार चाहती तो तीन चार दिन में पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर कार्यवाही कर सकती थी लेकिन पाकिस्तान के जवाबी हमले की तैयारी करने के लिए इतना समय लिया गया था। कोई नहीं कह सकता कि भारत और पाकिस्तान के बीच छोटी सी झड़प कब बड़े युद्ध का रूप ले सकती है इसलिए युद्ध की तैयारी के बाद ही सरकार ने कार्यवाही की थी। 

             देखा जाए तो भारत और पाकिस्तान के बीच पूरा युद्ध नहीं हुआ है बल्कि एक बड़ा संघर्ष हुआ है। हो सकता था कि पाकिस्तान भारत के साथ युद्ध में चला जाता लेकिन सिर्फ तीन दिन की कार्यवाही में भारत ने पाकिस्तान की ऐसी हालत कर दी कि युद्ध के आगे बढ़ने में पाकिस्तान को अपनी सम्पूर्ण बर्बादी नजर आने लगी । यही कारण है कि वो कई देशों के आगे जाकर गिड़गिड़ाया और बाद में भारत के साथ संघर्ष को विराम लग गया। वैसे देखा जाए तो युद्ध में दोनों पक्षों का नुकसान होता है, किसी का कम होता है और किसी का ज्यादा होता है लेकिन फायदा सिर्फ एक पक्ष का होता है जो जीतता है। भारत को इस संघर्ष में बड़ी जीत मिली है तो उसके फायदे भी बड़े हैं। भारत का आतंकी शिविरों पर कार्यवाही करने का उद्देश्य यह था कि आतंकवादियों को संदेश दिया जाए कि वो भारतीय नागरिकों की हत्या करके कहीं छुप नहीं सकते । वो हमला करके पाकिस्तान में जाकर कार्यवाही से बच नहीं सकते । पाकिस्तान और उसके गुर्गे आतंकियो को भारत ने संदेश दे दिया कि वो उन्हें पाकिस्तान में घुसकर तबाह कर सकता है। भारत ने अपना लक्ष्य पूर्ण रूप से प्राप्त किया कि वो आतंकी और उनके सरगनाओं को उनके ठिकानों में ही दफन कर सकता है और पाकिस्तान उन्हें बचा नहीं सकता । इसके अलावा मोदी जी ने अपने देशवासियों को भी संदेश दे दिया कि उनकी हत्या करके कोई आतंकी पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं रह सकता और मोदी सरकार उन्हें उनके पापों का दंड देने के लिए कुछ भी कर सकती है, यहां तक कि पाकिस्तान से युद्ध करने से भी पीछे नहीं हटेगी । भारत की कार्यवाही के बाद उसका उद्देश्य पूरा हो गया था लेकिन जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया और भारत ने उसका बड़ा घातक जवाब दिया तो भारत को वो हासिल हुआ जिसके बारे में सोचा नहीं गया था।

           भारत ने दिखा दिया है कि वो बिना किसी की मदद के पाकिस्तान को जवाब दे सकता है. उसे किसी की जरूरत नहीं है ।   तुर्की और चीन  दोनों देश भारत विरोधी है , इसलिए पाकिस्तान के साथ खड़े थे। वैसे इससे भारत को बड़ा फायदा हुआ है क्योंकि इस संघर्ष में पाकिस्तान ने तुर्की और चीन के हथियारों का इस्तेमाल किया लेकिन भारत के सामने वो बेकार साबित हुए । इस युद्ध में साबित हो गया कि तुर्की के वो ड्रोन भारत के सामने बेकार हैं जिनका पूरी दुनिया में डंका बज रहा है। चीन के हथियार किसी काम के नहीं हैं, इस संघर्ष में साबित हो गया। भारत ने इस संघर्ष से अनजाने में इतना बड़ा लक्ष्य हासिल कर लिया जिसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था । भारत ने साबित कर दिया कि मेक इन इंडिया के हथियार कितने घातक और असरदार हैं । आने वाले समय में भारत के लिए हथियारों का बड़ा बाजार खुलता दिखाई दे रहा है और चीन की दुकान बन्द होती नजर आ रही है। इसके अलावा भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया कि आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही करने से उसे कोई नहीं रोक सकता और भारत के लिए आतंकी कार्यवाही युद्ध है और भारत आतंकी हमले का जवाब युद्ध से दे सकता है। भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया है कि पाकिस्तान जैसा देश उसके मुकाबले बहुत कमजोर है और भारत चीन से मुकाबला कर सकता है।

चीन की बढ़ती दादागिरी के खिलाफ भारत को कई देशों का साथ मिल सकता है क्योंकि भारत अब  कमजोर देश नहीं रहा । भारत ने सिर्फ कुछ मिनटों की कार्यवाही में पाकिस्तान के 11 एयरबेस बर्बाद करके दिखा दिया कि पाकिस्तान को वो कभी भी बर्बाद कर सकता है और पाकिस्तान के पास भारत से लड़ने की शक्ति नहीं है। जो देश पाकिस्तान के जरिये भारत को बर्बाद करने की मंशा रखते हैं उन्हें भारत ने बड़ा संदेश दे दिया है। भारत अपने मेक इन इंडिया के उन्नत और भरोसेमंद हथियारों के दम पर कई देशों का सुरक्षा प्रदाता बनकर उभर सकता है। भारत ने अपने हथियारों से दिखा दिया है कि वो अपनी मारक क्षमता में किसी भी देश से कम नहीं है और सबसे सस्ते हैं । भारत अब विदेशी हथियारों के बिना भी अपनी सुरक्षा कर सकता है। भारत ने इस युद्ध से जो हासिल किया है उसका फायदा धीरे-धीरे महसूस होने लगेगा । सबसे बड़ी बात भारत ने इस युद्ध के बाद पाकिस्तान की परमाणु बम वाली धमकी को हमेशा के लिए दफन कर दिया है । भारत ने सिंधु जल समझौता निलंबित करके पाकिस्तान के लिए हाथ जोड़कर गुहार लगाने का रास्ता तैयार कर दिया है ।

राजेश कुमार पासी

‘रेस4’ में नहीं होगे हर्षवर्धन राणे

सुभाष शिरढोनकर

‘रेस’ के चौथे सीक्वल ‘रेस 4’ का दर्शक लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। इसकी स्टार कास्ट को लेकर अलग-अलग नाम सामने आ रहे हैं। फिल्म में एक्‍टर हर्षवर्धन राणे के के साथ-साथ एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह के होने की खबरें एक लंबे वक्‍त से सुर्खियों में बनी हुई हैं।  

लेकिल फिल्‍म के प्रोड्यूसर रमेश तौरानी ने इस बारे में सारी अफवाहों पर विराम लगाते हुए हाल ही में बताया कि ‘रेस 4’ के लिए उन्होंने दो बॉलीवुड सितारों सैफ अली खान और सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ चर्चा की हैं, जो अभी अपने स्क्रिप्टिंग फे़ज में है।  

रमेश तौरानी ने आगे कहा- ‘इस लेवल पर किसी दूसरे मेल या फीमेल एक्टर से कॉन्टैक्ट नहीं किया गया है। हम मीडिया और सोशल मीडिया पेजों से रिक्वेस्ट करते हैं कि वे झूठी खबरों से बचें और हमारी पीआर टीम से ऑफिशियल कंफर्मेशन का इंतजार करें।’

हर्षवर्धन राणे पिछले दिनों अपनी डेब्यू फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ (2016) की री-रिलीज पर हिट होने को लेकर चर्चा में थे। पिछले साल फिल्‍म की री-रिलीज पर इसने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया।  

एक्टर हर्षवर्धन राणे ने एक्टिंग करियर की शुरुआत 2007-2008 के टीवी शो ‘लेफ्ट राइट लेफ्ट’ से की थी। इसके बाद वह हैदराबाद चले गए जहाँ उन्होंने तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखते हुए फिल्म ‘थकिता थकिता’ (2010) से बड़े पर्दे पर डेब्यू किया।

इसके बाद उन्होंने कई तेलुगु फिल्मों में काम किया जिनमें ‘नाइष्‍तम’ (2012), ‘अवुनू’ (2012), ‘प्रेमा इश्‍क काधाल’ (2013), ‘अनामिका’ (2014) और ‘माया’ (2014) के नाम शामिल हैं।

साल 2016 में उन्होंने रोमांटिक फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ के जरिए हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया। इस फिल्म में उन्होंने पाकिस्तानी एक्ट्रेस मावरा हॉकेन के अपोजिट इंदर लाल परिहार का किरदार निभाया।

फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर औसत प्रदर्शन ही किया लेकिन इस फिल्‍म ने न केवल हर्षवर्धन को पहचान दिलाई, बल्कि इसके लिए उन्हें स्टारडस्ट अवॉर्ड फॉर सुपरस्टार ऑफ टुमॉरो (पुरुष) के लिए नामांकन भी मिला।

इसके बाद उन्होंने फिल्‍म ‘तैश’ (2020) और ‘हसीन दिलरुबा’ (2021), जैसी फिल्मों में काम किया। पिछली बार वो दिव्या कुमार खोसला की फिल्‍म ‘सवी’ (2024) में नजर आए.

अब उनके पाइपलाइन में ‘सनम तेरी कसम 2’, ‘कुन फाया कुन’, ‘मिरांडा बॉयज’ और ‘दीवानियत’ जैसी फिल्में हैं। ‘दीवानियत’ में उनके साथ सोनम बाजवा नजर आएंगी।   

हर्षवर्धन राणे का जन्म 16 दिसंबर 1983 को आंध्र प्रदेश के राजमहेंद्रवरम में हुआ लेकिन उनका पालन-पोषण मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ।  उनके पिता विवेक राणे एक मराठी भाषी डॉक्टर थे और उनकी माँ तेलुगु मूल की एक गृहिणी हैं।

हर्षवर्धन ने दिल्ली के शहीद भगत सिंह कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। मुंबई आकर उन्होंने बैरी जॉन एक्टिंग स्टूडियो से अभिनय की औपचारिक ट्रेनिंग भी ली।  

हर्षवर्धन की जिंदगी संघर्षों से भरी रही। एक एक्‍टर के रूप में स्‍थापित होने के पहले उन्‍होंने कई छोटे-मोटे काम करते हुए काफी स्ट्रगल देखा है लेकिन आखिरकार वह बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड या गॉडफादर के अपनी मेहनत, लगन और प्रतिभा के दम पर इंडस्ट्री में अपनी एक खास पहचान बना पाने में कामयाब हुए।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने ‘मोस्ट डिजायरेबल मैन’ सूची में हर्षवर्धन राणे को 2016 से लगातार पाँच बार शामिल किया।

अपनी फिटनेस के लिए जाने जाने वाले हर्षवर्धन नियमित रूप से जिम में वर्कआउट करते हैं। पिछले कुछ समय से वह को-स्टार किम शर्मा के साथ डेटिंग की चर्चाओं की वजह से काफी सुर्खियों में हैं।   

सुभाष शिरढोनकर