तनवीर जाफरी
समाजसेवी अन्ना हज़ारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम तथा जनलोकपाल विधेयक संसद में पेश किए जाने की उनकी मांग को लेकर पिछले दिनों जिस प्रकार देश की जनता उनके साथ व उनके समर्थन में खड़ी दिखाई दे रही थी अब वही आम जनता उनके ‘राजनैतिक तेवर’ को देखकर उनके आंदोलन को संदेह की नज़रों से देखने लगी है। प्रश्र उठने लगा है कि आखिर अन्ना हज़ारे व उनके चंद सहयोगियों का राजनैतिक मकसद वास्तव में है क्या? जनलोकपाल विधेयक को संसद में पारित कराए जाने के लिए संघर्ष करना या कांग्रेस पार्टी का विरोध करना ? हालांकि अभी तक कांगे्रस पार्टी के कई वरिष्ठ व जि़म्मेदार नेताओं द्वारा अन्ना हज़ारे पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी की कठपुतली होने जैसे जो आरोप लगाए जा रहे थे उसे देश की जनता गंभीरता से नहीं ले रही थी। इन आरोपों के विषय में जनता यही समझ रही थी कि अन्ना हज़ारे व उनके साथियों को बदनाम करने के लिए तथा अन्ना के आंदोलन से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए कांग्रेस द्वारा अन्ना हज़ारे पर इस प्रकार के आरोप लगाए जा रहे हैं। परंतु गत् दिनों जिस प्रकार हिसार लोक सभा के उपचुनाव में अन्ना हज़ारे के प्रमुख सहयोगियों मनीष सिसोदिया व अरविंद केजरीवाल द्वारा कांगेस पार्टी के प्रत्याश्ी को हराए जाने की सार्वजनिक अपील एक जनसभा में की गई उसे देखकर अब तो यह स्पष्ट दिखाई देने लगा है कि टीम अन्ना का मकसद जनलोकपाल विधेयक के लिए संघर्ष करना कम तथा कांग्रेस पार्टी को हराना,उसे नुकसान पहुंचाना व कांगेस का विरोध करना अधिक है।
हिसार लोकसभा उपचुनाव में केवल अन्ना हज़ारे के सहयोगियों ने ही वहां जाकर कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध नहीं किया बल्कि स्वयं अन्ना हज़ारे ने भी मीडिया के माध्यम से हिसार के मतदाताओं से कांग्रेस पार्टी को हराने की अपील जारी की है। टीम अन्ना के इस राजनैतिक पैंतरे को देखकर उन पर तरह-तरह के संदेह पैदा होने लगे हैं। प्रश्र यह उठने लगा है कि यदि टीम अन्ना द्वारा हिसार लोक सभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को हराने की अपील की जा रही है ऐसे में आखिर अन्ना हज़ारे व उनके साथी दूसरे किस राजनैतिक दल को लाभ पहु़ंचाना चाह रहे हैं? ज़ाहिर है इस समय देश में कांग्रेस के समक्ष मुख्य विपक्षी दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी ही है। हिसार में भी भारतीय जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार के रूप में हरियाणा जनहित कांगेस के उम्मीदवार कुलदीप बिश्रोई चुनाव लड़ रहे हैं। ज़ाहिर है यदि अन्ना हज़ारे की अपील से हिसार के मतदाता प्रभावित होते हैं तो इसका लाभ भाजपा समर्थित उम्मीदवार कुलदीप बिश्रोई को मिल सकता है। या फिर इंडियन नेशनल लोकदल के प्रत्याशी अजय चौटाला क ो। अब यहां इस बात पर चर्चा करने की ज़रूरत नहीं कि भ्रष्टाचार को लेकर स्वयं चौटाला परिवार या स्वयं स्व० भजनलाल की अपनी छवि कैसी रही है।
हालांकि टीम अन्ना के प्रवक्ताओं द्वारा कांग्रेस की ओर से अन्ना पर आर एस एस व भाजपा समर्थित होने के आरोपों पर तरह-तरह की सफाई व तर्क दिए जा रहे हैं। अन्ना के समर्थन में खड़े होने वाले भूषण परिवार तथा मेधा पाटकर जैसे लोगों के नाम बताकर यह सफाई दी जा रही है कि मुहिम अन्ना पर संघ या भाजपा का न तो कोई प्रभाव है न ही इसे संचालित करने में संघ या भाजपा कोई भूमिका अदा कर रहा है। परंतु यदि अन्ना व उनके साथियों द्वारा अपने मुख्य लक्ष्य अर्थात् जनलोकपाल विधेयक को संसद में लाए जाने व इसे पारित कराए जाने के लक्ष्य से भटक कर अपने समर्थकों को या भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में अपने साथ जुड़े आम लोगों को कांग्रेस का विरोध करने के लिए प्रेरित किया गया और आगे चलकर इसका लाभ मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को मिला तो ऐसी सूरत में दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस पार्टी के उन सभी प्रवक्ताओं व नेताओं के अन्ना पर संघ व भाजपा समर्थित होने संबंधी लगाए जाने वाले आरोप सही साबित हो जाएंगे। और यदि ऐसा हुआ तो देश की मासूम व भोली-भाली वह जनता जो अपना $गैर राजनैतिक स्वभाव रखती है तथा बिना किसी छल-कपट या बिना किसी
राजनैतिक विद्वेष अथवा पूर्वाग्रह के केवल देश में एक भ्रष्टाचार मुक्त राजनैतिक व्यवस्था की आकांक्षा रखती है वह निश्चित रूप से स्वयं को बहुत ठगा हुआ महसूस करेगी।
हिसार लोकसभा उपचुनाव में टीम अन्ना सदस्यों द्वारा कांग्रेस पार्टी के विरोध में खुलकर आने से जहां अब उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा उजागर होती दिखाई देने लगी है वहीं अब यदि क्रांति अन्ना के पिछले पन्नों को पलटकर देखा जाए तो उनके भविष्य के इरादे निश्चित रूप से संदेहपूर्ण व राजनैतिक महत्वाकांक्षा से लबरेज़ दिखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर अन्ना हज़ारे द्वारा जिस समय जंतर-मंतर व उसके बाद रामलीला मैदान में अनशन किया गया उस दौरान देश में अधिकांश जगहों पर अन्ना के समर्थन में अनशन आयोजित करने वालों मे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनता पार्टंी से जुड़े लोग ही आगे-आगे चल रहे थे। यहां तक कि तमाम जगहों पर अनशन का पूरा का पूरा प्रबंध व $खर्च भी इन्हीं संगठनों के लोगों द्वारा उठाया गया। हालांकि आम लोगों को अन्ना हज़ारे के नाम पर अपने साथ जोडऩे के लिए तथा अनशन में अन्ना के नाम पर लोगों को बुलाने के लिए इन संगठनों ने अपने झंडे व पोस्टर आदि लगाने से गुरेज़ किया था। परंतु जिस प्रकार हिसार में अब टीम अन्ना बेनकाब हुई है उसे देखकर तो अब यही लगने लगा है कि कहीं कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में चल रही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार को कमज़ोर व अस्थिर करने की विपक्ष की साजि़श का ही तो क्रांति अन्ना एक हिस्सा नहीं?
देश का प्रत्येक व्यक्ति इस समय निश्चित रूप से भ्रष्टाचार से बेहद त्रस्त व दु:खी है। इसमें भी कोई शक नहीं कि भ्रष्टाचार के जितने मामले वर्तमान यूपीए सरकार के शासनकाल में उजागर हुए हैं उतने बड़े घोटाले देश के लोगों ने पहले कभी नहीं सुने। परंतु इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि देश में इस समय शायद ही कोई ऐसा राजनैतिक दल हो जो स्वयं को शत-प्रतिशत भ्रष्टाचार से मुक्त होने का दावा कर सके। हां इतना ज़रूर है कि किसी पर भ्रष्टाचार के कम छींटे पड़े हैं तो किसी पर ज़्यादा। यानी किसी को चोर की संज्ञा दी जा सकती है तो किसी को डाकू की और किसी को महाडाकू की। कांग्रेस पार्टी में यदि केंद्रीय मंत्री स्तर के कई लोग भ्रष्टाचार में संलिप्त नज़र आ रहे हैं या संदेह के घेरे में हैं तो भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर उनके भी कई केंद्रीय मंत्री,सांसद व कई-कई मुख्यमंत्री भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यदि अन्ना हज़ारे की कांग्रेस के विरोध की अपील का प्रभाव कांग्रेस पर पड़ा तथा विपक्ष ने इसका लाभ उठाया तो उनकी कथित भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को क्या कहा जाएगा?
इसके अतिरिक्त हालांकि अन्ना हज़ारे स्वयं भी संघ या भाजपा द्वारा निर्देशित होने के कांग्रेस के आरोपों का खंडन कर चुके हैं । परंतु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ,विश्व हिंदू परिषद् तथा भाजपा के नेताओं द्वारा कई बार यह कहा जा चुका है कि वे तथा उनके कार्यकर्ता पूरी तरह से अन्ना हज़ारे की मुहिम व उनके आंदोलन के साथ रहे हैं। देश में तमाम जगहों पर स्थानीय स्तर पर इन कार्यकर्ताओं को अन्ना मुहिम से जुड़े हुए देखा भी गया है। अब यदि राजनैतिक हल्कों में छिड़ी इस चर्चा पर ध्यान दें तो टीम अन्ना द्वारा कांग्रेस का हिसार से विरोध किए जाने का कारण कुछ न कुछ ज़रूर समझ में आने लगेगा। $फौज में मामूली पद पर रहने वाले तथा मुंबई में $फुटपाथ पर फूल बेचने वाले साधारण व्यक्तित्व के स्वामी अन्ना हज़ारे ने जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध देश की केंद्र सरकार की चूलें हिलाकर रख दीं तो देश की जनता एक बार तो यही महसूस करने लगी थी कि देश को दूसरा ‘गांधी’ मिल गया है।
जो कि साधारण व गरीब लोगों के ज़मीनी हालात को समझते हुए भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध इतनी बड़ी मुहिम छेड़ रहा है। परंतु अब राजनैतिक हल्क़ों में इस बात की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि विपक्षी दल अन्ना हज़ारे के कंधे पर बंदूक़ रखकर चला रहे हैं। और कांग्रेस पार्टी को निशाना बना रहे हैं। और यदि भविष्य में सबकुछ इन सब की योजनाओं के अनुरूप चलता रहा तो अन्ना हज़ारे को विपक्ष देश के राष्ट्रपति के रूप में अपना उम्मीदवार प्रस्तावित कर एक तीर से कई शिकार खेल सकता है। यानी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के इस नायक को सडक़ों से उठाकर राष्ट्रपति भवन में सम्मान $खामोशी से रहने की राह हमवार कर सकता है तथा स्वयं अन्ना हज़ारे भी संभवत: देश के इस सबसे बड़े संवैधानिक पद को अस्वीकार करने का साहस भी नहीं जुटा सकते। कुल मिलाकर देश का राजनैतिक समीकरण क्या होगा यह तो आने वाले दो-तीन वर्षों में ही पता चल सकेगा। परंतु अन्ना हज़ारे के राजनैतिक दांव-पेंच में उलझने के बाद उनके साथ लगे गैर राजनैतिक मिज़ाज के लोग स्वयं को एक बार फिर ठगा सा ज़रूर महसूस कर रहे हैं।