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कविता: आ भैया तुझे तिलक लगाऊ

भाई दूज का पावन पर्व मैं मनाऊं

सनेह भरी अभिव्यक्ति देकर

तेरी खुशहाली के मंगल गीत मैं गाऊ

आ भैया तुझे तिलक लगाऊं

कितना पावन दिन यह आया

जिसने भाई बहन को फिर से मिलाया

मनं मैं बहती स्नेह की गंगा

ख़ुशी के अश्रुँ को मैं कैसे छुपाऊं

आ भैया तुझे तिलक लगाऊ

भाई दूज का पावन पर्व मैं मनाऊ

सनेह भरी अभिव्यक्ति देकर

तेरी खुशहाली के मंगल गीत मैं गाऊ

आ भैया तुझे तिलक लगाऊं

खुशकिस्मत है मुझ जैसी बहना

जिसे दिया है ईश्वर ने भाई सा गहना

तुझे टीका लगाऊ , मुहं मीठा करवाऊ ,

तेरी लम्बी उम्र की शुभकामना कर

तुझ पे वारी मैं जाऊं

आ भैया तुझे तिलक लगाऊं

भाई दूज का पावन पर्व मैं मनाऊं

सनेह भरी अभिव्यक्ति देकर

तेरी खुशहाली के मंगल गीत मैं गाऊ

आ भैया तुझे तिलक लगाऊं

आरती की मैं थाली सजाऊं

रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक लगाऊं

कभी न तुझ पे आए संकट

तेरे उज्ज्वल भविष्य के कामना गीत मैं गाऊ

आ भैया तुझे तिलक लगाऊं

भाई दूज का पावन पर्व मैं मनाऊं

सनेह भरी अभिव्यक्ति देकर

तेरी खुशहाली के मंगल गीत मैं गाऊ

आ भैया तुझे तिलक लगाऊ

-संजय कुमार फरवाहा

सोनिया गांधी के सामने कबीरा रोया

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी पर इस देश को अमीर बनाने का जुनून सवार हो गया है। वे येन-केन प्रकारेण देश को अमीर बनाने पर तुले हैं। लेकिन अमीर बनाने के चक्कर में गरीबों की मुसीबतें बढ़ गयी हैं। वे मनरेगा-मनरेगा चिल्लाते रहते हैं। पहले सोनिया गांधी की सास गरीबी हटाओ-गरीबी हटाओ चिल्लाती रहती थी लेकिन गरीबी नहीं हटी, वे जरूर हटा दी गयीं।

बतर्ज सआदत हसन मंटो जो हो रहा है उस पर गौर फरमाएं-

‘‘ नगर-नगर ढ़िंढ़ोरा पीटा गया कि जो आदमी भीख माँगेगा, उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। गिरफ्तारियाँ शुरू हुईं। लोग खुशियाँ मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी लानत दूर हो गई।

कबीर ने यह देखा तो उसकी आंखों में आंसू आ गए।

लोगों ने पूछाः ‘‘ऐ जुलाहे, तू क्यों रोता है ?’’

कबीर ने रोकर कहाः ‘‘कपड़ा दो चीज़ों से बनता है-ताने और पेट से…गिरफ्तारियों का ताना तो शुरू हो गया, पर पेट भरने का पेटा कहाँ है ?’’

सफाई वाला

-संजय कुमार फरवाहा

मेरी नजर से देखिए। जरा सोचिए, हम जरा सा भी बीमार हो जाते हैं तो सीधे डॉक्टर के पास दोड़े दोड़े चले जाते हैं। डॉक्टर से इलाज करवाते हैं। ठीक होकर घर वापिस चले आते हैं, जब भी बीमारी के बारे में सोचते हैं तो कहते हैं मुझे तो डॉक्टर ने बचा लिया, वो तो भग्वान का रूप है। पर मैं सोचता हूँ की एक इंसान और है जो जो डॉक्टर से पहले हमें बिमारिओं से बचाता है। हम में से किसी ने उस के बारे में शायद सोचा भी नहीं होगा कभी भी उसे भगवान का का दर्जा नहीं दिया होगा। क्या आप जानते हैं वोह कौन है ? वोह है एक आम सा दीखने वाला सफाई करने वाला। सफाई वाला ही एक ऐसा इंसान है जो हमें डॉक्टर से पहले सफाई कर हजारों बीमारीओं से बचाता है। खुद को फैले गंद, गंदे पानी और बदबू का सामना करके अपनी सासों को भारी करके आप को साफ सांसे दिल्वाता है। फिर भी आपकी प्रशंसा के दो बोल सुन्ने को तरस जाता है। आप की ही उपेक्षा का शिकार बन कर रह जाता है, जरा मेरे नज़रिए से सोचिए वो आप के स्वास्थ्य को ठीक रखने में कितना मददगार साबित होता है ।

जागरूकता का प्रकाश ही दिवाली!

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

हमारे पूर्वजों द्वारा लम्बे समय से दिवाली के अवसर पर रोशनी हेतु दीपक जलाये जाते रहे हैं। एक समय वह था, जब दीपावली के दिन अमावस की रात्रि के अन्धकार को चीरने के लिये लोगों के मन में इतनी श्रद्धा थी कि अपने हाथों तैयार किये गये शुद्ध घी के दीपक जलाये जाते थे। समय बदला और साथ ही साथ श्रद्धा घटी या गरीबी बढी कि लोगों ने घी के बजाय तेल के दिये जलाने की परम्परा शुरू कर दी।

समय ने विज्ञान के साथ करवट बदली माटी का दीपक और कुम्हार भाईयों का सदियों पुराना परम्परागत रोजगार एक झटके में छिन गया। दिवाली पर एक-दो सांकेतिक दीपक ही मिट्टी के रह गये और मोमबत्ती जलने लगी। अब तो मोमबत्ती की उमंग एवं चाह भी पिघल चुकी है। विद्युत की तरंगों के साथ दीपावली की रोशनी का उजास और अन्धकार को मिटाने का सपना भी निर्जीव हो गया लगता है।

दीपक जलाने से पूर्व हमारे लिये विचारणीय विषय कुछ तो होना चाहिये। आज के समय में मानवीय अन्धकार के साये के नीचे दबे और सशक्त लोगों के अत्याचार से दमित लोगों के जीवन में उजाला कितनी दूर है? क्या दिवाली की अमावस को ऐसे लोगों के घरों में उजाला होगा? क्या जरूरतमन्दों को न्याय मिलने की आशा की जा सकती है? क्या दवाई के अभाव में लोग मरेंगे नहीं? क्या बिना रिश्वत दिये अदालतों से न्याय मिलेगा? दर्द से कराहती प्रसूता को बिना विलम्ब डॉक्टर एवं नर्सों के द्वारा संभाला जायेगा? यदि यह सब नहीं हो सकता तो दिवाली मनाने या दीपक जलाने का औचित्य क्या है?

हमें उन दिशाओं में भी दृष्टिपात करना होगा, जिधर केवल और अन्धकार है! क्योंकि अव्यवस्था एवं कुछेक दुष्ट, बल्कि महादुष्ट एवं असंवेदनशील लोगों की नाइंसाफी का अन्धकार न केवल लोगों के वर्तमान एवं भविष्य को ही बर्बाद करता रहा है, बल्कि नाइंसाफी की चीत्कार नक्सलवाद को भी जन्म दे रही है। जिसकी जिनगारी हजारों लोगों के जीवन को लील चुकी है और जिसका भष्टि अमावश की रात्री की भांति केवल अन्धकारमय ही नजर आ रहा है। आज नाइंसाफी की चीत्कार नक्सलवाद के समक्ष ताकतवर राज्य व्यवस्था भी पंगु नजर आ रही है। आज देश के अनेक प्रान्तों में नक्सलवाद के कहर से कोई नहीं बच पा रहा है!

अन्धकार के विरुद्ध प्रकाश या नाइंसाफी के विरुद्ध इंसाफ के लिये घी, तेल, मोम या बिजली के दीपक या उजाले तो मात्र हमें प्रेरणा देने के संकेतभर हैं। सच्चा दीपक है, अपने अन्दर के अन्धकार को मिटाकर उजाला करना! जब तक हमारे अन्दर अज्ञानता या कुछेक लोगों के मोहपाश का अन्धकार छाया रहेगा, हम दूसरों के जीवन में उजाला कैसे बिखेर सकते हैं।

अत: बहुत जरूरी है कि हम अपने-आपको अन्धेरे की खाई से निकालें और उजाले से साक्षात्कार करें। अत: दिवाली के पावन और पवित्र माने जाने वाले त्यौहार पर हमें कम से कम समाज में व्याप्त अन्धकार को मिटाने के लिये नाइंसाफी के विरुद्ध जागरूकता का एक दीपक जलाना होगा, क्योंकि जब जागरूक इंसान करवट बदलता है तो पहा‹डों और समुद्रों से मार्ग बना लेता है। इसलिये इस बात को भी नहीं माना जा सकता कि मानवता के लिये कुछ असम्भव है। सब कुछ सम्भव है। जरूरत है, केवल सही मार्ग की, सही दिशा की और सही नेतृत्व की। आज हमारे देश में सही, सशक्त एवं अनुकरणीय नेतृत्व का सर्वाधिक अभाव है।

किसी भी राष्ट्रीय दल, संगठन या समूह के पास निर्विवाद एवं सर्वस्वीकार्य नेतृत्व नहीं है। सब काम चलाऊ व्यवस्था से संचालित है। पवित्रा के प्रतीक एवं धार्मिक कहे जाने वाले लोगों पर उंगलियाँ उठती रहती हैं। ऐसे में आमजन को अपने बीच से ही मार्ग तलाशना होगा। आमजन ही, आमजन की पीडा को समझकर समाधान की सम्भावनाओं पर विचार कर सकता है। अन्यथा हजारों सालों की भांति और आगे हजारों सालों तक अनेकानेक प्रकार के दीपक जलाते जायें, यह अन्धकार घटने के बजाय बढता ही जायेगा।

‘दिवाली तो दिवाला निकाल देगी’

-हिमांशु डबराल

‘दीपावली’ अर्थात दिपों की पंक्ति, एक पावन त्यौहार जिसे दिपोत्सव नाम से भी जाना जाता है। इस मौके पर दीप जलाकर अंधेरे को दूर किया जाता हैं, खुशियां मनायी जाती हैं, तरह-तरह की मिठाईयां, पकवान, पटाखे और नये कपड़े खरीदे जाते हैं, घरों की सफाई की जाती है। लेकिन इस बार दिवाली के मौके पर आम लोगों के चेहरे उतरे नजर आ रहे हैं। लोगों के चेहरे से त्योहार की रौनक की चमक दूर होने का कारण है महंगाई। महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोडी है।

महंगाई की वजह से त्योहारों की खुशी भी कहीं खो गई है। सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। दिवाली आते ही घर का बजट गडबडाने का डर सताने लगता है। लेकिन करें भी तो क्या करें। बढ़ती मंहगाई ने अमीर व गरीब के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। आज अमीर और अमीर हो रहा है, ऐसे में वो तो महंगी से महंगी चीज बड़ी आसानी से खरीद सकते हैं लेकिन इस महंगाई के दौर में गरीब आदमी की तो मन गई दिवाली…वो तो सिर पकड़कर बैठ जाता है कि दिवाली कैसे मनाए। और अगर किसी तरह गरीब इंसान मंहगाई से बच भी जाये तो नकली मिठाई, नकली पटाखे आदि आपका दीवाला निकाल देंगे और रही-सही कसर प्रदूषण और शराबी लोग पूरी कर देंगे।

बहरहाल दिवाली आ तो गयी है, लेकिन वो दिवाली वाली बात कहीं नजर नहीं आ रही…कुछ साल पहले तक दिवाली की तैयारियां एक महीने पहले ही शुरु हो जाती थी…लगता था कोई बड़ा त्योहार आ रहा है, लेकिन हमारी परंपरायें और हमारे त्योहार आधुनिकता और बाजारवाद की भेट चढ रहे है…दिया जलाओं न जलाओं लेकिन कुछ मीठा हो जाये…पूजा करो न करो लेकिन दिवाली के जश्न में शराब जरुर पीयेंगे। बाजार भी दिवाली के साजो-समान से भरा तो हुआ है लेकिन ज्यादातर सामान चाईनीज है…मिट्टी के दियों कि जगह चाईनीज दिये और लाईटों ने ले ली है, यहां तक कि लक्ष्मी-गणेश भी चाईनीज है…वाह रे इंडिया…अब चाईनीज गणेश जी की पूजा भी चाईनीज में करेंगे शायद…

खैर ये चाईनीज चीजें भी गरीबों के लिये नहीं है, ऐसी स्थिति में आम आदमी बड़ी मुश्किल से दिवाली मना पाता है और दिवाली मनाने का खामियाजा 2-3 महिने तक खर्चों में कटोती करके भुगतता है…और गरीब आदमी की बात छोड़ ही दीजिये वो बेचारा दिवाली वाले दिन भर पेट खाना भी खा ले तो उसकी दिवाली तो मन गई समझो…गरीबों के लिये तो एक दिया तक जलाने के पैसे जुटाना भारी पड़ जाता है…सालभर अंधेरे में डूबी उनकी झोपड़ी दिवाली के दिन भी जगमागा नहीं पाती…उनके बच्चे भी दिवाली के दिन आसमान में रोशनी देखकर ही खुश हो जाते है या अमीरों के बच्चों की ओर टकटकी लगाये देखते रहते है…शायद कोई उन्हे भी पटाखे या फुलझड़ी दे दे। लाखों घरों में दिवाली खुशी नहीं बल्कि दुख और निराशा लेकर आती है… अब तो ये ही लगता है कि ‘दिवाली तो दिवाला निकाल देगी’

विश्‍व प्रसिद्ध त्योहार है दीपावली

पंडित आनन्द अवस्थी

दीपावली भारतवर्ष में ही नहीं कई देषों में अपना विशेष महत्व रखती है। कहा जाता है कि त्योहारों के माध्यम से सभी धर्मों की रक्षा भी होती है। सामाजिक सौहार्द्र, सामाजिक संरचना निर्माण कार्यों में यह त्योहार अपना विषिष्ट स्थान रखते हैं। धार्मिक परंपराओं में तमाम वैज्ञानिक कारण भी शामिल हैं। दीपावली मुख्यत: अधिदैविक, आध्यात्मिक, अधिभौतिक, तीनों रूपों का समागम करने वाला प्रमुख त्योहार है।

कार्तिक मास में दीपदान का अतिमहत्व शास्त्रों में स्वीकार किया गया है। पंचमहोत्सव, अर्थात धनतेरस, रूपचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, तथा यम द्वितीया को दीपदान करने से यज्ञों और तमाम तीर्थ स्थलों का पुण्य प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इन पांचों पर्वों की पूजा से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और स्थिर रूप से विराजती हैं इसीलिए इस पंच पर्व को कौमुदी महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है।

धनतेरस:- यह पर्व 3 नवम्बर बुधवार, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, वैधृति योग, तैतिलकरण के अंर्तगत है। शास्त्रों में कहा गया है कि यह पर्व दीपावली की प्रथम सूचना का संदेष देता है इसीलिए घर में लक्ष्मी जी का प्रवास माना जाता है इसीदिन धनवंतरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे। इसी वजह से धनतेरस को धनवंतरि जयंती भी कहते हैं।

पूरे वर्ष में यम का पूजन भी मात्र इसी दिन किया जाता है कहा गया है कि जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है तो यमराज से आशीर्वाद के रूप में अकाल मृत्यु से रक्षा का प्रसाद भी मिलता है।

सभी घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारंभ हो जाती है अत: इसी दिन से घरों की सफाई पुताई आदि भी की जाती है। रंगोली बनाने से लेकर चौक संवारने तक का कार्य तन्मयता के साथ किया जाता है और यह भी कहा जाता है कि इस दिन पुराने बर्तनों को बदल कर नये बर्तन खरीदना शुभ प्रद माना जाता है। इसी दिन चांदी के बर्तन खरीदने, चांदी का सिक्का आदि खरीदने से तो अधिकाधिक पुण्य मिलता है।

पूजन समय:- प्रदोष द्वादषी का पूजन प्रात: 4 बजकर 55 मिनट से 7 बजकर 12 मिनट के मध्य तुला लग्न में किया जा सकता है।

धनतेरस की पूजा सायंकाल 5 बजकर 57 मिनट से रात्रि में 7 बजकर 54 मिनट के मध्य वृष लग्न में की जा सकती है यदि किसी कारणवश वृष लग्न में पूजा संभव न हो तो रात्रि में 10 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 25 मिनट के मध्य कर्क लग्न में की जा सकती है।

नरक चतुर्दशी:- कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी का पर्व नरक चतुदर्षी का पर्व माना गया है। मुख्यत: इस पर्व का संबंध गंदगी से है इसी दिन नरक से मुक्ति पाने के लिए सूर्योदय से ही तेल डालकर अपामार्ग (चिचड़ी) का पौधा जल में डालकर स्नान करना चाहिए।

वैसे तो इस पर्व का संबंध स्वच्छता से है इसीलिए इस त्योहार को घर का कूड़ा साफ करने वाला त्योहार भी कहते हैं इसदिन शारीरिक स्वच्छता का भी विशेष महत्व है कहा जाता है कि सूर्योदय से पूर्व उठकर शरीर पर तेल उबटन आदि लगा कर स्नान करना चाहिए जो लोग सूर्योदय से पूर्व स्नान नहीं करते उन्हें वर्ष भर शुभ कार्यों में विनाष झेलना पडता है व दरिद्रता और संकट पूरे वर्ष उनका पीछा नहीं छोडते।

शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (धनतेरस) के दिन स्नान के बाद तीन अंजुल जल भरकर यमराज के निमित्त तर्पण करना चाहिए। जिनके पिता जीवित हैं उन्हें भी यह तर्पण करना चाहिए कि यमराज प्रसन्न रहें तथा उनके परिवार में न तो किसी को नरक में जाना पड़े और न ही किसी को मृत्यु का भय रहे।

इसदिन सायंकाल दीपक जलाते हैं इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं मुख्यत: दीपक जलाने का सिलसिला त्रयोदशी से ही प्रारंभ हो जाता है त्रयोदषी के दिन यमराज के लिए भी एक दीपक जलाते हैं अमावस्या को बड़ी दीपावली का पूजन होता है।

दीपक जलाने का मुख्य कारक:- त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या इन तीनों दिन में दीपक जलाने की मुख्य धारणा यह बतायी जाती है कि इन दिनों भगवान बामन ने राजा बलि की पृथ्वी को नापा था। भगावान बामन ने तीन पगों में पृथ्वी, पाताल, व बलि का शरीर नापा था।

छोटी दीपावली को ग्यारह, इक्कीस, इकतीस दीपक जलाने का प्रावधान है। इसमें पांच अथवा सात दीपक घी के जलाये जाते हैं शेष दीपक तेल के होते हैं।

त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या को यम के लिए दीपक जलाकर लक्ष्मी पूजन सहित दीपावली मनाते हैं। इसके पीछे धारणा यह है कि यमराज उन्हें कष्टित न करें व लक्ष्मी जी स्थिर भाव से विराजती रहें।

दीपावली

-पंडित आनन्द अवस्थी

कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली का विश्‍व प्रसिद्ध त्योहार मनाने की परंपरा है इस दिन मां भगवती महालक्ष्मी का उत्सव बडे धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो दीपावली मुख्यत: वैश्‍वों का त्योहार है लेकिन जहां जहां हिंदू हैं वहां वहां दीपावली की महक बिखरती रहती है इसदिन लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए घरों की सफाई विधिवत की जाती है घर को अच्छी तरह से सजाकर घी के दीपों से रोशनी की जाती है। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में भी दीपक, बल्ब, मोमबत्ती आदि के माध्यम से प्रकाशयुक्त रखा जाता है।

इसदिन लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष प्रविधान किया जाता है रात में सभी घरों में धन धान्य की अधिष्ठाती देवी महालक्ष्मी जी, गणेश जी, विद्या की मातेश्‍वरी सरस्वती जी का पूजन किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या की अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं पृथ्वी लोक में आती हैं और प्रत्येक साफ सुथरे गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर साफ सुथरा होता है वहां वह ठहर जाती हैं यही वजह है कि घरों को सफाई से और प्रकाश युक्त रखा जाता है। वास्तविकता यह है कि धनतेरस, नरकचतुर्दशी, तथा महालक्ष्मी पूजन आवाहन आदि पर्वों के मिश्रण को ही दीपावली मानते हैं।

श्री महालक्ष्मी पूजन और दीपावली का प्रमुख हिंदू पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या में प्रदोष काल और अर्धरात्रि व्यापिनी हो तो विशेष रूप से शुभसूचक प्रतीत होती है।

कातिकस्यासिते पक्षे लक्ष्मी निंदा विमुउचति!

सच दीपावली प्रोक्ता: सर्वकल्याण रूपिणी!!

अर्थात लक्ष्मी पूजन दीपदान आदि के लिए प्रदोष काल का विशेष महत्व दिया गया है।

कार्तिके प्रदोषे तु विषेषेण अमावस्या निषावर्धके!

तस्या सम्पूज्यते देवी भोग्यं मोक्षं प्रदायिनीम!!

कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या का संयोग शुक्रवार शनिवार दो दिन है 05 नवम्बर शुक्रवार को चतुर्दशी 17 घ0 7 प0 अर्थात दिन में 1 बजकर 23 मिनट तक है। उपरांत अमावस्या प्रारंभ हो जाती है। 6 नवंबर शनिवार को अमावस्या दिन में 11 बजकर 51 मिनट तक है उपरांत प्रतिपदा का आरंभ हो जाता है।

दीपावली को सायंकाल से ही प्रदोष का काल आरंभ है प्रदोष काल में ही स्नान आदि के पश्‍चात स्वच्छ वस्त्र आभूषण आदि धारण करके पूजा स्थल पर मंत्रों द्वारा आवाहन करके नियत स्थान पर महालक्ष्मी जी, विघ्न विनाशक गणेश जी, महाकाली, कुबेरजी का पूजन करके संक्षिप्त, सादगी पूर्ण आहार लेना चाहिए। शुभ मुहूर्त में रात्रि में मंत्रजप, यंत्रसिध्दि आदि कार्य करने चाहिए।

पूजन समय:-

कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को वृष लग्न, प्रदोष काल, स्वाती नक्षत्र, आयुष्मान योग, तुला राशि में सूर्य और तुला राशि में ही चंद्रमा विशेष रूप से सुखद और समृध्दि कारक हैं अत: सायंकाल 5 बजकर 49 मिनट से रात्रि 07 बजकर 46 मिनट के मध्य दीपावली पूजन का विशेष मुहूर्त प्रतीत होता है।

कविता: जब तिमिर बढ़ने लगे तो

जब तिमिर बढ़ने लगे तो दीप को जलना पड़ेगा

दैत्य हुंकारें अगर तो देव को हँसना पड़ेगा

दीप है मिट्टी का लेकिन हौसला इस्पात-सा

हमको भी इसके अनोखे रूप में ढलना पड़ेगा

रौशनी के गीत गायें हम सभी मिल कर यहाँ

प्यार की गंगा बहाने प्यार से बहना पड़ेगा

सूर्य-चन्दा हैं सभी के रौशनी सबके लिये

इनकी मुक्ति के लिये आकाश को उठना पड़ेगा

जिन घरों में कैद लक्ष्मी और बंधक रौशनी

उन घरों से वंचितों के वास्ते लड़ना पड़ेगा

लक्ष्य पाने के लिये आराधना के साथ ही

लक्ष्य के संधान हेतु पैर को चलना पड़ेगा

कब तलक पंकज रहेंगे इस अँधेरे में कहो

तोड़कर चुप्पी हमें अब कुछ न कुछ करना पड़ेगा

कविता : चलो अरुंधती राय बन जाएँ

-शिखा वार्ष्‍णेय

भूखे नंगों का देश है भारत, खोखली महाशक्ति है , कश्मीर से अलग हो जाना चाहिए उसे .और भी ना जाने क्या क्या विष वमन…पर क्या ये विष वमन अपने ही नागरिक द्वारा भारत के अलावा कोई और देश बर्दाश्त करता ? क्या भारत जैसे लोकतंत्र को गाली देने वाले कहीं भी किसी भी और लोकतंत्र में रहकर उसी को गालियाँ दे पाते?.वाह क्या खूब उपयोग किया जा रहा है अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों का……

हाँ हम काबिल हैं कितने

कुछ इस तरह दिखायें

उसी लोकतंत्र का ले सहारा

गाली उसी को दिए जायें

ले औजार भूखे नंगों का

अंग-अंग देश के चलो काटें

बैठ आलीशान कमरों में

सुलगता मुद्दा कोई उठाएं

अपनी ही व्यवस्था को कर नंगा

पुरस्कार कई फिर पा जायें

हो क्यों ना जाये टुकड़े देश के

अपनी झोली तो हम भर पाएं

उठा सोने की कलम हाथ में

चलो हम अरुंधती राय बन जायें

मैं ‘प्रवक्‍ता’ से स्वयं को निर्वासित करता हूँ: पंकज झा

आ. संजीव जी.

जैसा कि आप जानते हैं कि प्रवक्ता से अपना भी जुड़ाव इसके शुरुआती दौर से ही रहा है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो वेब पर नियमित लेखन अपना प्रवक्ता से ही शुरू हुआ था. तो मिळकियत ये भले ही आपका या भारत जी का रहा हो लेकिन मुझे भी यह हमेशा अपना ही लगा. जब कई बार आपने अपने उचित सरोकारों के कारण मेरा लेख पोस्ट करने से इनकार भी किया तो भी आपका संपादकीय विशेषाधिकार समझ, फैसले को शिरोधार्य किया. लेकिन इस बार आपसे चाहे गए फैसले को सीधे तौर पर आपने फासीवाद और सामंतवाद कह दिया. हम फ़िर इस बात को दुहरा रहे हैं कि अगर इस बहस का कुछ सार नहीं निकला तो लोग इसे ‘प्रोपगंडा’ ही समझेंगे, क्योंकि हमारे लिए विश्वसनीय ‘होने’ के अलावा ‘दिखना’ भी ज़रूरी है. तो आपसे उम्मीद खत्म हो जाने पर मैं अपनी तरफ से एक पहल कर रहा हूँ. यह मेरे और प्रवक्ता की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए शायद उपयोगी हो.

आज से मैं एक लेखक और टिप्पणीकार के रूप में इस साईट से स्वयं को निर्वासित करता हूँ. यह साबित करने के लिए कि यह बहस महज़ बुद्धिविलास या सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का उपक्रम नहीं था, मेरे लिए यह ज़रूरी है. निश्चित ही मुझे प्रवक्ता से काफी प्यार है, अपने आ. टिप्पणीकारों,पाठकों, मार्गदर्शकों के प्रति अत्यधिक अनुग्रहित भी महसूस करता हूँ. निश्चित ही मैं अपने रूटीन की तरह प्रावाका पर आता भी रहूँगा. अपने प्रिय लेखकों, आ. टिप्पणीकारों को पढता भी रहूँगा. लेकिन जब-तक आप इस बहस का कोई निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं करेंगे (हालांकि आप नहीं करेंगे यह आपने बता दिया है) तब-तक एक लेखक के रूप में अब इस साईट से खुद को निकाला दे रहा हूँ. सदा की तरह प्रवक्ता के लिए अनन्य-अशेश शुभकामना….आपको धन्यवाद.

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संजीव सिन्‍हा, संपादक, प्रवक्‍ता डॉट कॉम की टिप्‍पणी:

पंकजजी, असहमति के बगैर लोकतंत्र निष्‍प्राण हो जाएगा। इतना स्‍पेस तो आप देंगे ही कि मैं अपनी समझ मुताबिक आपकी आलोचना कर सकूं।

  1. गत 6 वर्षों से आपको जानता हूं। आप बड़े भावुक हैं। बताइए, ज़रा सी बात पर कोई अपना घर छोड़ कर जाता है क्या?प्रवक्‍ता के हमसफर, प्रवक्‍ता की नैया मझधार में छोड़कर नहीं जा सकते, यह हमारा अटूट विश्‍वास है।

अयोध्या और कॉमनवेल्थ के बीच मीडिया

-उमेश चतुर्वेदी

भारतीय और खासकर भाषाई मीडिया की भूमिका को लेकर इन दिनों राजनीति से लेकर समाज के प्रमुख वर्गों की ओर से सराहना के बोल सुनने को मिल रहे हैं। बीस साल पहले अयोध्या के मसले को लेकर भाषाई मीडिया पर उकसाने वाली रिपोर्टिंग के आरोप लगे थे। भूत-प्रेतों की ऐय्यारी दुनिया और एलियनों के जरिए गायों के गायब करने की हैरत अंगेज अविश्वसनीय रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया ने अयोध्या पर जिस संयम का परिचय दिया है, वह काबिल-ए- गौर है। इसके साथ ही मीडिया ने जिस तरह राष्ट्रमंडल खेलों मची लूट-खसोट पर सवाल उठाए हैं। उसने भी समाज के सचेत वर्गों को मीडिया के लिए प्रशंसा के सुर सुनाने के लिए मजबूर कर दिया।

1780 से शुरू आलोचना की पत्रकारीय परंपरा को जिस तरह किनारे किया जा रहा है, कई अर्थों में किया जा चुका है, उससे अब सही सवाल उठाना भी खतरे से खाली नहीं है। अगर गलतियां हैं, सार्वजनिक हितों की बलि चढ़ाई जा रही है तो मीडिया का काम ऐसे माहौल में स्वस्थ आलोचनात्मक रूख रखना ही होता है। जिंदगी के तमाम मोर्चों पर हमें आदर्श और विकासवादी पैमाने हमेशा विकसित देशों में ही नजर आते हैं। लेकिन जब पत्रकारीय परंपराएं और सामाजिक सुरक्षा जैसे शाश्वत सवालों की बात आती है, हमारे पैमाने बदल जाते हैं। उस वक्त हमें अमेरिका और ब्रिटेन की पत्रकारीय परंपराएं या सामाजिक सुरक्षा और सरकारी दायित्व याद नहीं आते। यही वजह है कि आज की मीडिया में स्वस्थ आलोचना की गुंजाइश कम रह गई है। अगर आलोचना होती भी है तो उसकी असल वजह भारतीय और भारतीय लोगों के हित कम होते हैं, बल्कि विकसित पश्चिमी समाज की चिंताएं कहीं ज्यादा होती हैं। कॉमनवेल्थ खेलों में मची लूट-खसोट पर अगर सवाल उठे तो इसकी असल वजह यही रही। 617 करोड़ की अनुमानित लागत से शुरू होने वाले कॉमनवेल्थ गेमों की तैयारी खर्च का बढ़ते-बढ़ते 70 हजार करोड़ हो जाना मीडिया के आक्रामक सवालों की वजह नहीं बन पाया। लेकिन खेल गांव के फर्श पर हल्का पीलापन या टॉयलेट का फ्लश ठीक नहीं होना बड़ी खबर बनता नजर आया। इसकी वजह यह नहीं रही कि भारतीय मीडिया को फर्श बनाने या फ्लश लगाने में गोलमाल नजर आया। वैसे भी करीब सत्तर फीसदी भारतीयों को आज भी टॉयलेट उपलब्ध नहीं है। साफ फर्श को छोड़िए, पीली फर्श वाले घर भी करोड़ों भारतीयों को मुहैया नहीं हो पाए हैं। अस्पतालों में बिस्तरों के नीचे कुत्ते सोते मिलते हैं, अस्पतालों के बाहर जाड़े और बरसात की रातें गुजारने के लिए लोग मजबूर रहते हैं। लेकिन आज के मीडिया की आक्रामक खबरों की परिधि में ये दृश्य नहीं हैं। लेकिन वही मीडिया अगर कॉमनवेल्थ के लिए बने खेल गांव की पीली फर्श के लिए आक्रामक खबर बनाता है तो दरअसल वह विदेशी लोगों की चिंताएं जता रहा होता है। उसे अपने लोगों से ज्यादा विदेशियों की चिंता सता रही होती है। उसे पता है कि भारतीय तो इसी तरह जीने-मरने के लिए बने हैं। लेकिन पश्चिमी दुनिया इसके लिए नहीं बनी है। लिहाजा उनके लोगों के सरोकार उसे परेशान करते हैं। इसीलिए कॉमनवेल्थ खेलों में लूट-खसोट की खबरें बड़ी खबरें बनती हैं। हालांकि उसके लिए जिम्मेदार लोगों पर मीडिया के सवाल उतने आक्रामक नहीं रहे, जैसे होने चाहिए।

जैसी बहे बयार तैसी पीठ कीजै की तर्ज पर चलने में ही सफलता का लक्ष्य साधने की जुगत में जुटे मीडिया ने अयोध्या मसले पर संयम दिखाया है। हालांकि फैसले को लेकर मीडिया के एक वर्ग से आरोप जरूर लगा। फैसले को लेकर मीडिया के रूख पर भी सवाल उठे। मीडिया में हिंदूवादी सांप्रदायिक सोच से ग्रसित लोगों की भीड़ होने का आरोप नया नहीं हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तीनों जजों ने विवादित जमीन पर रामलला के जन्म को माना है तो मीडिया इस पर कैसे सवाल उठा सकता है। अदालती फैसले को लेकर आग्रह-पूर्वाग्रह हो सकते हैं। लेकिन उसकी आलोचना क्या खबरों में की जा सकती हैं। आग्रहों-पूर्वाग्रहों के बावजूद मीडिया ने अगर अयोध्या मसले पर संयत सुर में रिपोर्टिंग की है तो उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मीडिया का सुर बदलने लगा है। एक चावल से पूरे भगोने में बनने वाले भात का अंदाजा तो लगाया जा सकता है। लेकिन महज एक घटना की रिपोर्टिंग को लेकर मीडिया में आ रहे हैरतअंगेज बदलाव को नहीं समझा जा सकता। मीडिया में आ रहे बदलावों को जांचने के लिए भविष्य के ट्रेंड को भी देखना-परखना होगा। तभी बदलावों को लेकर मुकम्मल विचार बनाया जा सकेगा। हम कैसे भूल सकते हैं कि कॉमनवेल्थ को लेकर मीडिया में उठे आलोचना के सुरों की वजह क्या रही है।

ओबामा यात्रा पर विशेष-गुलामों की टोली के लालच

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आ रहे हैं और हमारे देश की पूरी मशीनरी उनकी खिदमत के लिए तैयार की जा रही है। ओबामा की खूबी है उनका बड़बोलापन। उनके बड़बोलेपन से एक खास किस्म का विभ्रम पैदा होता है। टीवी भाषणकला में वे परम दक्ष हैं।

हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मामले में एकदम फिसड्डी हैं। वे नीति और दफ्तर के आदमी हैं, फाइलों का काम बढ़िया कर लेते हैं। पुराने प्रोफेसर हैं अच्छा सोच लेते हैं, समझाने और नीति बनाने में कुशल हैं, लेकिन वक्तृता में एकदम फिसड्डी हैं। सोनिया गांधी सोचने और बोलने दोनों में फिसड्डी हैं।

काश, ओबामा के आगमन के समय अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री होते। फिर हम देखते बोलने में कौन बाजी मारता है। वक्तृत्वकला में वाजपेयी के सामने ओबामा दुधमुँहे बच्चे हैं।

ओबामा से सार्वजनिक तौर पर बातों में कोई नहीं जीत सकता, वे अपनी बातों से भ्रमित और चकित करते हैं। वे अपना जादुई प्रभाव छोड़ते हैं। वे बोलकर ठगते हैं। वे नीति निपुण नहीं हैं। मनमोहन सिंह नीति निपुण हैं। हमें गर्व है हमारे पास मनमोहन सिंह हैं, लेकिन दुख है कि वे ओबामा की भाषणकला के कायल हैं।

मनमोहन सिंह और पूरी कांग्रेस पर खासकर राहुल गांधी पर ओबामा का जादू सवार है। वे नहीं जानते कि ओबामा को वकृत्व कला विकसित करने में उनके वकालत के पेशे ने मदद की है। वकालत की कला झूठ की कला है। सच को झूठ में और झूठ को अति वास्तविकता में बदलना इस पेशे की खूबी है। ओबामा को इस पेशे ने माहिर बनाया है, इस काम में उनकी मीडिया उस्तादों ने मदद की है।

इसे ओबामा का जादू ही कहा जाएगा कि वे सारी दुनिया को सादगी और खर्चे कम करने का वे उपदेश देते रहे हैं और अब जब भारत आ रहे हैं तो उनके ऊपर भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया जा रहा है। भारत आने वाले पहले के किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति पर इतना पैसा खर्च नहीं किया गया।

अमेरिका इन दिनों जिस बदहाल अवस्था में है वैसी अवस्था उसकी कभी रही। लाखों बेकार युवक सड़कों पर आवारागर्दी कर रहे हैं। हजारों लोग मकानों की बैंक किश्तें न चुकाए जाने के कारण बेघर हो चुके हैं। अमेरिका की आबादी में सामान्य जीवन बसर करने लायक आम आदमी के पास सुविधाएं नहीं हैं। इसके बाबजूद ओबामा अपनी यात्रा पर बेशुमार दौलत खर्च कर रहे हैं। उनकी इस खर्चीली मानसिकता का अमेरिका की उपभोक्तावादी संस्कृति से गहरा संबंध है।

कल की खबर है कि ओबामा जितने दिन भारत में रहेगे उनके ऊपर अमेरिकी प्रशासन 900 करोड़ रूपये प्रतिदिन खर्चा आएगा। इसके अलावा भारत सरकार का कितना खर्चा होगा इसे आसानी से जोड़ा जा सकता है। मौटे तौर पर ओबामा की यात्रा पर प्रतिदिन 1500-2000 करोड़ रूपये प्रतिदिन का खर्चा आएगा। क्या इतने बड़े खर्चे को आर्थिकमंदी के दौर में जायज ठहराया जा सकता है ? जब हम ओबामा की यात्रा पर इतने बड़े पैमाने पर अतार्किक ढ़ंग से खर्चा कर रहे हैं तो समझौते किस तरह के तर्क से भरे होंगे?

ओबामा की यात्रा और अमेरिकी नव्य उदारतावाद ने भारत के अंदर अमीर देश होने की हसरत पैदा की है और इस हसरत का ही दुष्परिणाम है कि कांग्रेस का नेतृत्व यह मोटी बात अभी समझने के लिए तैयार नहीं है कि अमेरिकी नव्य उदारतावाद और उससे जुड़ी सुरक्षा नीतियां अमेरिका को इराक-अफगानिस्तान युद्ध के मुँह में ले जा चुकी हैं। समूची अमेरिकी अर्थव्यवस्था टूट गयी है। भारत को नव्य उदार सुरक्षा नीतियों के कारण ही कश्मीर में आतंकी मार झेलनी पड़ रही है। बेशुमार पैसा खर्च करना पड़ रहा है।

नव्य उदार सुरक्षा पहलकदमी के गर्भ से ही अलकायदा, आईएसआई, हिजबुल मुजाहिदीन आदि जैसे आतंकी तंत्रों का जन्म हुआ था और इसके निर्माण में अमेरिका का सीधा पैसा लगा और दिमाग लगा है।

ओबामा को चुनाव जीतकर आए दो साल होने को आए किसी भी किस्म की राहत आम जनता के जीवन में नहीं आयी है। बेकारी, गरीबी, निरूद्योगीकरण की भयावह प्रक्रिया थमी नहीं है। 3 ट्रिलियन ड़ालर से ज्यादा के कारपोरेट घरानों को आर्थिक पैकेज दिए जाने के बावजूद अमेरिका में जनता का हाहाकार थमा नहीं है।

उल्लेखनीय है कारपोरेट घरानों ने अमेरिकी में विगत 10 सालों में जितनी मोटी कमाई की है उतनी विगत 50 सालों में नहीं की थी। दूसरी ओर जिस तरह की गरीबी, बेकारी और आर्थिक विपन्नता अमेरिका ने विगत तीन सालों में देखी है, वैसी पहले कभी नहीं देखी थी।

मनमोहन सिंह को पटाने के चक्कर में कई मर्तबा ओबामा विश्वमंचों पर कह चुके हैं कि मनमोहन सिंह इस युग के सबसे सुलझे अर्थशास्त्री हैं। वे उनकी तारीफों के कई बार पुल बांध चुके हैं और उन तारीफों के पुल के पीछे छिपी मंशा को कांग्रेस और उसके नेतृत्व को भांपने की कोशिश करनी चाहिए।

हमें भारत की संप्रभुता के साथ प्रशंसा और सुरक्षा के मुहावरे और जादुई संसार में सौदा करने की मनमोहन सिंह को अनुमति नहीं देनी चाहिए। ओबामा चाहते हैं जिस तरह सोवियत रूस टूटा और वैसे ही भारत भी टूटे और उनकी नजर कश्मीर पर है। वे अफगानिस्तान में रहकर जो कर रहे हैं उससे इस इलाके में आतंकी और पृथकतावादी ताकतों को बल मिला है। ओबामा के सारे प्रयास भारतीय उपमहाद्वीप को अस्थिर करने वाले हैं, वे अमेरिका के सैन्यहितों का इस इलाके में स्थायी बंदोबस्त करने आ रहे हैं। वे चाहते हैं इस काम में भारत उनकी मदद करे।

आने वाले दिनों में ओबामा के भाषणों को देरिदियन ढ़ंग से विखंडित करके देखा जाना चाहिए। वे चाहते हैं कि भारत, अफगानिस्तान में उनका जूनियर पार्टनर बनकर काम करे, वे उस्ताद बने रहेंगे और भारत पट्ठे की तरह काम करे।

वे जानते हैं कि अफगानिस्तान की जनता में अमेरिका और उनके नाटो समूह के देशों की कोई साख नहीं है, वे यह भी जानते हैं कि नाटो की विशाल सेना के रहते हुए आज तक अफगानिस्तान के काबुल शहर के बाहर नाटो की सेनाएं निकल नहीं पायी हैं। नाटो की सेनाएं काबुल एयरपोर्ट से लेकर सैन्यशिविरों के आने-जाने वाले मार्ग तक ही सुरक्षित हैं, बाकी काबुल में तो उन पर अलकायदा के लोग कभी भी हमला कर जाते हैं औऱ नाटो की सेनाएं उनका बाल बांका नहीं कर पाती हैं।

अफगानिस्तान में नाटो की सेनाओं का आलम यह है कि वे अलकायदा को घूस दिए बिना अपने रसद से लदे ट्रकों को सुरक्षित सैन्य कैंपों तक नहीं ले जा सकते। प्रति ट्रक उन्हें 1500 ड़ालर से ज्यादा की अलकायदा के सैनिकों को घूस देनी पड़ती है। यह अमेरिकी सीनेट की आधिकारिक रिपोर्ट में वर्णित सत्य है।

अनेकों मर्तबा अलकायदा के सैनिक नाटो की सेनाओं की रसद लूट चुके हैं। ऐसी अवस्था में अमेरिका का जूनियर बनने का सपना भारत के लिए विपत्ति ला सकता है। अफगानिस्तान के अधिकांश इलाकों में स्थानीय दादाओं का कब्जा बरकरार है।

ओबामा यह भी जानते हैं कि भारत की अफगानिस्तान की जनता में साख है और भारत पर अफगानिस्तान की जनता भरोसा करती है। ओबामा की मंशा है अमेरिकी सैन्यहितों के विस्तार के लिए भारत की इसी छवि को भुनाया जाए और वे मूल रूप से इसी काम से आ रहे हैं।

अमेरिका इस इलाके में दोहरा गेम खेल रहा है। एक तरफ वह आतंकवाद के खिलाफ खोखला हल्ला कर रहा है, दूसरी ओर आतंकियों को शह और पाक को हथियारबंद कर रहा है। वह आतंकियों को परास्त करने के नाम पर पाक को अमेरिका खोखला कर चुका है।

अमेरिका का आतंकविरोधी विश्व अभियान राष्ट्रों को नष्ट करने वाला, खोखला करने वाला, संप्रभुता छीनने वाला अभियान है। इराक, अफगानिस्तान और पाकिस्तान उसके आतंकविरोधी अभियान में छिपी बर्बरता, साम्राज्यवादी लूट और वर्चस्व का आदर्श उदाहरण हैं। भारत को कभी भी अमेरिका के सैन्य और रणनीतिक सहयोगी की टोली में शामिल नहीं होना चाहिए। इस टोली का सदस्य बनने के बाद से ब्रिटेन की आर्थिक बर्बादी हमारे सामने है।

ओबामा साहब समानता और विशाल लोकतांत्रिक देश के नाम पर हमें कितना ही भ्रमित करने की कोशिश करें हमें अमेरिका की सैन्य-रणनीतिक टोली का हिस्सा नहीं बनना है। उनके पूर्ववर्ती राष्ट्राध्यक्ष, अफगानिस्तान को सोवियत सेनाओं से मुक्ति दिलाने के नाम पर अफगानिस्तान को बर्बाद कर चुके हैं। सोवियत संघ को सही विकास के मार्ग पर लाने के नाम पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष कंगाली के रास्ते पर फेंक चुके हैं।

अमेरिका के सैन्य-रणनीतिक खेल में शामिल होने के बाद सोवियत संघ जैसा शक्तिशाली देश टूट चुका है। मनमोहन सिंह सरकार ने यदि ओबामा की सैन्य-रणनीतिक टोली का सदस्य बनने के लिए समझौते किए तो भारत की जनता और राष्ट्रीय संप्रभुता के साथ उनकी यह सबसे बड़ी गद्दारी होगी और इसके लिए भारत की जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी।

हम मनमोहन सिंह और उनके सहयोगी नीति निर्माताओं को इस मौके पर बताना चाहते हैं अमेरिका की टोली में शामिल होकर कुछ लोग अमीर बन सकते हैं देश अमीर नहीं सकता। अमेरिका की टोली लुटेरों की टोली है। गुलामों की टोली है। नव्य उदारतावाद की तबाही से संभवतः हमारे शासक यह बात आसानी से समझ सकते हैं।