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भारतीय टीम दुनिया में नंबर एक हैः एंडी मोल्स

indian_teamन्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम के कोच एंडी मोल्स और बल्लेबाज़ रॉस टेलर ने भारतीय क्रिकेट टीम को दुनिया की चोटी की टीम मानते हैं। इन दिनों धोनी के धुरंधर यानी भारतीय टीम न्यूज़ीलैंड के दौरे पर है। वहां टीम को दो ट्वेन्टी-20 मैच, पाँच एक दिवसीय और तीन टेस्ट मैच खेलने हैं।

पिछले कुछ समय से लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही भारतीय टीम को एंडी मोल्स और रॉस ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ़्रीका की टीम से ऊँचा दर्जा देते हैं। मोल्स ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए वे मानते हैं कि भारतीय टीम दुनिया में नंबर एक पर है। भारत ने पिछले 18 महीनों में पूरी दुनिया में और अपनी धरती पर बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया है।

भारत ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ टेस्ट मैचों की श्रृंखला में उसे मात दी थी। इसके बाद इंग्लैंड को टेस्ट मैच व एक दिवसीय मैचों की श्रृंखला में हराया। श्रीलंका दौरे पर मेजबान टीम को वनडे श्रृंखला में 4-1 हराया।

हालांकि न्यूज़ीलैंड में गत 41 वर्षों में भारत को जीत नहीं मिली है। पिछले दौरे पर भारत को टेस्ट और एकदिवसीय दोनों ही श्रृंखला में हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन मोल्स का मानना है कि धोनी की टीम न्यूज़ीलैंड में अपने रिकॉर्ड को बेहतर कर सकती है।
मोल्स का मानना है कि भारत के पास कुछ अनुभवी खिलाड़ी है। न्यूजीलैंड टीम के बल्लेबाज टेलर का कहना है कि भारत ने आस्ट्रेलिया को हराया और श्रीलंका को एक बड़े अंतर से मात दी। फिलहाल टीम में कुछ ऐसे खिलाड़ी है जो लगातार अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते रहे हैं।

कश्मीरी कालीन पर भी छाई मंदी

carpet1दुनिया भर में फैली आर्थिक मंदी का असर धीरे-धीरे भारत के कुटिर उद्योगों पर पड़ता दिख रहा है। कश्मीर के कालीन उद्योग पर दिख रहा मंदी का असर इसका प्रमाण है। दुनिया में छाई मंदी के बाद से यहां कालीन की बिक्री प्रभावित हुई है। जिससे इस उद्योग से जुड़े डेढ़ लाख से भी अधिक बुनकरों का भविष्य खतरे में है।

कालीन के व्यापार से जुड़े एक व्यापारी ने बताया कि गत वर्ष कालीन की कुल बिक्री पांच से छह अरब रुपये के बीच हुई थी। लेकिन, इस वर्ष डर है कि यह आकंड़ा दो अरब रुपये तक भी पहुंच पाएगा या नहीं। एक आंकड़े के मुताबिक घाटी में 30 हजार से भी अधिक कालीन बुनाई लुम्स हैं, जिसमें 150,000 से अधिक बुनकर जुड़े हैं।
इस उद्योग से जुड़े व्यापारियों के मुताबिक देश के विभिन्न शहरों में कश्मीरी कालीन के 300 से 400 शोरुम हैं, लेकिन आर्थिक मंदी का बिक्री पर बुरा असर पड़ा है। कालीन उद्योग से जुड़े व्यापारी सरकार से सहायता करने की मांग कर रहे हैं।

दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा… – ब्रजेश झा

slumdog416मजे की बात है कि स्लमडाग मिलिनेयर के संगीत व गीत के लिए ए. आर. रहमान को दो एकेडमी अवार्ड्स प्रदान किए गए। इससे हम हिन्दुस्तानी बड़े गदगद हैं। यह ठीक भी है। आखिर उन्हें भी समझ में आना चाहिए था कि यहां के संगीतकार भी ठोक-बजाकर काम करते हैं। यूं ही सिर का बाल बढ़ाकर रंग नहीं जमाते।

 

बहरहाल, मुंबई की झुग्गियों की जीवन-शैली पर बनी इस फिल्म ने लोस एंजल्स में खूब पुरस्कार बटोरे। एकबारगी ऐसा लगा कि गत 80-90 वर्षों के दौरान बालीवुड में जो बना वह तो कचरा ही रहा, जबकि डैनी बॉयल ने यहां की झुग्गियों में तफरीह कर जो देखा और बनाया मात्र वही बेहतरीन था।

 

लेकिन, मात्र एक उदाहरण इस धारणा को झुठलाने के लिए बहुत है। ठीक उसी तरह जैसे फिल्म इकबाल में इकबाल के लिए पांच मिनट ही काफी था। रहमान ने वर्ष 1992 में पहली बार बालीवुड में कदम रखा। उन्होंने फिल्म रोजा के

दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा…

चांद तारों को छू लेने की आशा

आसमानों में उड़ने की आशा।

जैसे बेहतरीन गीत को संगीतबद्ध किया। हालांकि रुचि और पसंद तो निजी है। पर व्यक्तिगत राय यही है कि ये गीत जय हो… से कहीं भी कमतर मालूम नहीं पड़ते। मामला कल्पना के नए दरवाजे खोलने का हो या फिर छोटे-छोटे शब्दों में बड़े-बड़े अर्थ घोलने का।

 

फिल्म रोजा आतंकवाद की मार झेल रहे राज्य (जम्मू कश्मीर) में आए एक आम आदमी की कहानी थी। तब अमेरकियों के वास्ते इस शब्द का कोई औचित्य नहीं था। तो भई काहे का अवार्ड! अब जब हालात बदलें हैं। तंगी छाई है तो बालीवुड याद आया है। यहां के आंचलिक संगीत उन्हें कर्णप्रिय लग रहे हैं। जब अपने रंग में थे साहब तो मदर इंडिया को नजरअंदाज करने में उन्हें जरा भी वक्त नहीं लगा था।

 

रही बात गुलजार साहब की तो भई, उनसा कोई दूसरा न हुआ, जो फिल्म निर्माण से लेकर त्रिवेणी लिखने तक समान पकड़ रखता हो। यकीन न हो तो देश-विदेश में नजर फिरा लें।

खैर, इसपर विस्तार से बात होगी।

शुक्रिया

शिक्षा का गोरखधंधा – हिमांशु शेखर

iim_indoreदेश में शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे गोरखधंधे को जानना और समझना हो तो इस दृष्टि से इंदौर के इंस्टीटयूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज यानी आईएमएस के एमबीए ई-कामर्स के किसी विद्यार्थी से बातचीत की जा सकती है। वैसे तो यह संस्थान देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है और इसकी ख्याति मध्य प्रदेश के अलावा देश भर में फैली हुई है। पर यहां छात्रों को उच्च शिक्षा के नाम पर जिस तरह बरगलाया जा रहा है, उससे उभरने वाले सवालों को समझने की जरूरत है। क्योंकि यह एक ऐसा मामला है जिससे देश के कई शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थी जूझ रहे हैं। सही मायने में कहा जाए तो यह पूरी शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त अराजकता का एक नमूना है।इस संस्थान के कुछ विद्यार्थी हाल ही में दिल्ली आए थे। वे अपने संस्थान में व्याप्त अनियमितता के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। पर उनके मन के अंदर बैठे भय और संस्थान के प्रशासन का खौफ ऐसा है कि वे सूचना के अधिकार के तहत जानकारी भी मांग रहे हैं तो किसी दूसरे व्यक्ति के जरिए और जब वे किसी पत्रकार से बात भी कर रहे तो हैं तो अपनी पहचान छुपाए रखने के शर्त पर। इस संस्थान में सेंटर फार ई-बिजनेस की स्थापना 2000 के दिसंबर में हुई थी। जिसके तहत मास्टर आफ ई-कामर्स कोर्स की शुरूआत हुई थी। इसमें दो तरह से प्रवेश दिया जाता था। एक पांच साल का इंटीग्रेटेड कोर्स था। जिसमें बारहवीं के बाद दाखिला दिया जाता था। वहीं स्नातक के बाद भी सीधे दो साल के मास्टर आफ ई-कामर्स में दाखिला मिलता था। अभी भी दाखिला के लिए ये दोनों रास्ते अपनाए जाते हैं लेकिन अब कोर्स का नाम बदल गया है। अब इस कोर्स का नाम हो गया है एमबीए इन ई-काॅमर्स।

जब मास्टर आफ ई-कामर्स कोर्स शुरु हुआ था तो इसे जमकर प्रचारित किया गया था और इसके प्रति छात्रों में भी एक खास तरह का आकर्षण था। संस्थान के द्वारा जारी प्रोस्पेक्टस में जो जानकारी दी गई है, अगर उसे सही माना जाए तो इस कोर्स के लिए संस्थान ने अमेरिका के ईस्टर्न मिशीगन विश्वविद्यालय के साथ एक समझौता किया था। जिसके तहत इस कोर्स के विद्यार्थियों को कई तरह की सुविधाएं मिलनी थी। पर यह सब थोड़े ही दिनों में छलावा साबित हुआ। नामांकन के वक्त जो प्रोस्पेक्टस दिया गया था उसमें साफ लिखा हुआ है कि संस्थान छात्रों को प्लेसमेंट में सहयोग करेगी और व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए इंटर्नशिप की व्यवस्था भी करेगी। यह भी कहा गया था कि प्लेसमेंट के काम में पारदर्शिता के लिए हर साल संस्थान प्लेसमेंट बुलेटिन प्रकाशित किया जाएगा। पर वहां के छात्र बताते हैं कि ये सारे दावे खोखले साबित हुए और अब उनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है।

एक छात्र ने बताया कि पहले तो इस कोर्स का नाम बदलकर मास्टर आॅफ ई-काॅमर्स से बदलकर 2006-07 में एमबीए इन ई-काॅमर्स कर दिया गया। जबकि नाम बदलने के बाद कोर्स में कोई बदलाव नहीं किया गया। पहले जो पढ़ाया जाता था वही कोर्स का नाम बदलने के बाद भी पढ़ाया जाता रहा। अब यहां सवाल ये उठता है कि जब पाठयक्रम वही रहना था तो फिर नाम क्यों बदला गया? संस्थान का प्रशासन इस बाबत कहता है कि ऐसा बाजार की जरूरतों को देखते हुए किया गया था। अगर संस्थान के इस तर्क को सही माना जाए तो कायदे से छात्रों का प्लेसमेंट होना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हुआ और बड़े अरमान के साथ इस कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों को दर-दर की ठोकर खानी पड़ रही है।
संस्थान में व्याप्त अराजकता और शिक्षा के नाम पर मची लूट का अंदाजा सहज ही इस बात से लगाया जा सकता है कि प्लेसमेंट नहीं करवाए जाने के बावजूद संस्थान की ओर से हर साल इस कोर्स के छात्रों से दो हजार रुपए वसूले जाते हैं। सूचना के अधिकार के तहत जब छात्रों ने किसी और के जरिए जानकारियां मंगाई तो उससे मिली जानकारी संस्थान के दावों की पोल खोलती हुई नजर आती है। एक तरफ संस्थान की ओर से जारी प्रोस्पेक्टस में कहा गया है कि व्यावहारिक प्रशिक्षण की व्यवस्था में संस्थान की ओर से मदद की जाएगी। पर संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी की ओर से लिखित सूचना में बताया गया कि सामान्यतः छात्र खुद ही इसकी व्यवस्था करते हैं। यह बात संस्थान के दोहरे चरित्र को उजागर करती है। साथ ही इसे अपनी जवाबदेही से बचने वाले कुतर्क के तौर पर भी लिया जाना चाहिए। प्लेसमेंट की बाबत भी लिखित तौर पर यह बताया गया कि कोर्स की शुरुआत से लेकर अब तक दो दर्जन से ज्यादा कंपनियां प्लेसमेंट के लिए आई हैं। जबकि छात्रों की मानें तो कभी भी इस कोर्स के छात्रों के प्लेसमेंट के लिए कोई कंपनियां आईं ही नहीं। छात्रों ने ही बताया कि जब-जब उन लोगों ने संस्थान में प्लेसमेंट की मांग को उठाया तो कहा गया कि इस कोर्स के विद्यार्थी अभी प्लेसमेंट में बैठने के काबिल नहीं है।

दरअसल, यह अकेला मामला नहीं है बल्कि देश के कई विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थाओं में शिक्षा के नाम पर इस तरह का गोरखधंधा चल रहा है। इसमें निजी शिक्षण संस्थान और सरकारी शिक्षण संस्थानों में कोई खास फर्क नहीं है। निजी क्षेत्र के ज्यादातर शैक्षणिक संस्थान का तो अहम मकसद ही ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना है। यहां जिस संस्थान की बात की जा रही है उसने तो प्लेसमेंट में सहयोग की बात कही थी लेकिन निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थान तो बाकायदा प्लेसमेंट की गारंटी देते हैं। ऐसे संस्थान इसी वायदे के बल पर छात्रों से फीस के नाम पर मोटी रकम वसूलने में कामयाब हो जाते हैं। बेरोजगारों के इस देश में ज्यादातर परिवार नौकरी मिलने का आश्वासन पाते ही अपनी गाढ़ी कमाई खर्च करने में नहीं हिचकिचाते। दाखिला लेते ही छात्र उनके चंगुल में फंस जाता है और संस्थान के द्वारा प्लेसमेंट नहीं देने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पाता है।
इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। क्योंकि इन समस्याओं से पार पाए बगैर यहां की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर नहीं लाया जा सकता। एक तरफ तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय का सपना देखते हैं वहीं दूसरी तरफ वित्त मंत्री का काम संभाल रहे प्रणब मुखर्जी अपने बजट भाषण में मौजूदा सरकार द्वारा शिक्षा के लिए किए गए वित्तिय प्रावधानों का उल्लेख करते हुए नहीं अघाते। पर जमीनी हालात से अनजान रहकर अगर ये घोषणाएं होंगी तो इसका सकारात्मक परिणाम तो आने से रहा।

हिमांशु शेखर

प्रेम कुमार धूमल ने पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान की नींव रखी

prem_kumar_dhumalहिमाचल प्रदेश में पंचायती राज कायम करने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने इस बाबत कांगड़ा जिले के बैजनाथ में 4.38 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से निर्मित होने वाले पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान की आधारशिला रखी।

इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2010 में निर्धारित पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण के लाभ मिलेंगे। प्रदेश सरकार ग्राम पंचायतों को साधन सृजन के लिए 10 करोड़ रुपये प्रदान करेगी। साथ ही विभिन्न अन्य प्रोत्साहनों के साथ-साथ पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों के मानदेय में 21 प्रतिशत की वृद्घि की गयी है।

उन्होंने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों को राज्य सरकार की शर्तों के मुताबिक दैनिक भत्ता, यात्रा भत्ता और विश्रामगृह में ठहरने की सुविधा प्रदान की जाएगी। इसके लिए 50 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है। प्रदेश भर में नए पंचायत भवनों के निर्माण पर करीब 12 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। पंचायत चौकीदारों के मानदेय में भी वृद्धि की गयी है।

प्रो. धूमल ने कहा कि सरकार आठ वर्ष के नियमित सेवाकाल पूरा करने वाले पंचायत सहायकों को पंचायत सचिव नियुक्त करने पर इन दिनों विचार कर रही है।

साथ ही उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार के गत एक वर्ष के निर्णयों से समाज का प्रत्येक वर्ग लाभान्वित हुआ है। समाज के किसी भी वर्ग को अपने अधिकार व मांगें मनवाने के लिए आंदोलन करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। बैजनाथ पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान कांगड़ा जिले में अपनी तरह का पहला संस्थान होगा तथा प्रशिक्षुओं को विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए शिमला जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि इस संस्थान को वर्ष 2010 तक पूरा करने के प्रयास किए जाएंगे।

रक्षा बजट का सच – हिमांशु शेखर

raksha-budgetयूपीए सरकार की ओर से अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्रालय का काम संभाल रहे प्रणब मुखर्जी ने यह घोषणा किया कि सरकार ने इस साल के रक्षा बजट में पैंतीस फीसद की बढ़ोतरी की है। प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा कि इस साल रक्षा के मद में 1,41,703 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। जबकि पिछले साल यह रकम एक लाख छप्पन हजार करोड़ थी। दादा ने सरकार के इस फैसले को सही ठहराते हुए अपने बजटिया भाषण में कहा कि रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला देश की मौजूदा सुरक्षा हालात को देखते हुए लिया गया है। उन्होंने कहा कि देश कठिन समय से गुजर रहा है और मुंबई हमलों ने सीमा पार के आतंकवाद को पूरी तरह से नया आयाम दे दिया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह ऐलान किया कि इस साल रक्षा क्षेत्र के लिए बढ़ा हुआ योजना खर्च 86,879 करोड़ रुपए होगा। जबकि पिछले साल यह रकम 73,600 करोड़ रुपए थी।
दरअसल, रक्षा बजट के बढ़ाए जाने के असली कारणों पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है। रक्षा बजट के बढ़ाए जाने को अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार से जोड़ कर देखने की जरूरत है। जब अमेरिका के साथ परमाणु करार को आगे बढ़ाया जा रहा था तो उस वक्त अमेरिका में हथियारों के उत्पादन से जुड़ी लाॅबी इस करार को अमली जामा पहनवाने में लगी हुई थी। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में हथियार उत्पादन का उद्योग बहुत बड़ा है। वहां का यह उद्योग इतना बड़ा हो गया है कि इसे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए नए-नए बाजार चाहिए। वहां का रक्षा उद्योग वहां के चुनावों में सियासी दलों को भी काफी मोटा चंदा देता है। पिछले साल दुनिया भर में गहराई आर्थिक मंदी से दुनिया का शायद ही कोई उद्योग बचा हो। आर्थिक मंदी की मार से वहां का यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है और उसका संकट और भी गहरा गया है। इसलिए इस उद्योग को नए बाजार की तलाश थी और भारत में यह संभावना उसे सबसे ज्यादा दिख रही थी। सारी दुनिया जानती है कि हथियार और पुनर्निर्माण का खेल अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापार है। इसके लिए वह अमेरिका ऐसी परिस्थितियां तैयार करता है कि उसके रक्षा उद्योग के उत्पादों की खपत बढ़े।
बहरहाल, परमाणु करार की प्रक्रिया जब आगे बढ़ रही थी तो उस वक्त अमेरिका के पूर्व रक्षा सचिव विलियम कोहेन ने जो बयान दिया था उससे रक्षा के खेल को आसानी से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि अमेरिकी रक्षा उद्योग ने कांग्रेस के कानून निर्माताओं के भारत को परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दिलाने के लिए यानी परमाणु करार कराने के लिए लाॅबिंग की है। अब इस उद्योग को मालदार ठके चाहिए। उन्होंने जब यह बयान दिया तो उस वक्त तक रक्षा ठेका पाने के लिए लाॅकहीड मार्टिन, बोईंग, राथेयन, नार्थरोप ग्रुमन और हानीवेल जैसी पचास से ज्यादा कंपनियां रक्षा ठेका पाने के लिए भारत में अपना कार्यालय चलाने लगी थीं। अमेरिकी रक्षा उद्योग की कोशिशें रंग लाईं और करार हो गया। इसके बाद इस साल के शुरुआत में ही भारत और अमेरिका के बीच अब तक का सबसे बड़ा रक्षा समझौता हुआ।
जनवरी के पहले सप्ताह में ही भारत में अमेरिका के साथ पचासी सौ करोड़ रुपए के रक्षा समझौते पर दस्तखत किया। इसके तहत भारत आठ बोईंग पी-81 खरीद रहा है। समझौते के तहत भारत को पहला पी-81 2012 के अंत तक या फिर 2013 के शुरूआत में मिलेगा और इस आपूर्ति को 2015-16 तक पूरा कर दिया जाएगा। इस समझौते को अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार में दोनों पक्षों के बीच सहमति का ही विस्तार माना जाना चाहिए। संभव है इस साल भी अमेरिका के साथ कुछ बड़े रक्षा सौदे देखने को मिल जाएं। क्योंकि आखिरकार रक्षा बजट बढ़ाकर तो यह सरकार अमेरिका से किया गया अपना वायदा ही निभा रही है। यह बात अलग है कि यह सब सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने की आड़ में हो रहा है।
रक्षा के मोर्चे पर बढे़ बजट को लेकर भी प्रणब दादा जो दावे कर रहे हैं, वे खोखले नजर आते हंै। कार्यवाहक वित्त मंत्री ने बदहाल सुरक्षा व्यवस्था को आधार बनाकर रक्षा बजट बढ़ाने का सही ठहराने की कोशिश की है। पहली बात तो यह कि अगर वे मानते हैं कि देश की सुरक्षा व्यवस्था बदहाल बनी हुई है तो इस बदहाली की जिम्मेवारी भी उनकी ही सरकार के माथे जाता है। पिछले पांच साल से देश पर राज करने के बावजूद अभी भी वे सुरक्षा व्यवस्था की बदहाली का रोना रो रहे हैं तो इसे उनके द्वारा जनता को भरमाने वाला एक शातिर चाल ही कहा जा सकता है।

हिमांशु शेखर
09891323387

ये हंगामा है क्यों बरपा … – आशीष कुमार ‘अंशु’

mangalore_attackआज से छह महीने पहले लोग जिस श्रीराम सेना को जानते भी नहीं थे, आज मीडिया की मेहरबानी से एक जाना पहचाना नाम बन गया है। जरा सोचिए श्रीराम सेना के दर्जन भर कार्यकर्ताओं ने अमनेसिया पब, मंगलौर (कर्नाटक) पर हमला करके अखबरों में जितनी खबर पाई और इलैक्ट्रानिक चैनलों की जितनी फूटेज खाई। इतना नाम कमाने के लिए ‘विज्ञापन’ कर उन्हें कितना खर्च करना पड़ता। पहली नजर में यही लगता है कि श्रीराम सेना वाले प्रमोद मुतालिक ने मीडिया को इस्तेमाल कर लिया।
इस मामले का एक दूसरा पहलू भी है। जिसकी वजह से मीडिया की रूचि लंबे समय तक इस विषय में बनी रही। वह है मामले का हाई प्रोफाईल होना। यदि इस तरह का हमला किसी झुग्गी झोपड़ी वाले इलाके में हुआ होता तो निश्चित मानिए मीडिया इतनी सक्रिय नहीं होती।
श्रीराम सेना ने जो किया उसके पक्ष में कोई खड़ा नहीं हो सकता चूंकि उनका विरोध प्रदर्शन का तरिका लोकतांत्रिक नहीं था। लेकिन इस सबके बावजूद आप इस पूरे कथानक में जो ‘नैनिकता के सवाल’ उठे हैं, उसे कम करके नहीं देख सकते। जिस भारतीय संस्कृति और परंपरा की बात की जा रही थी, वह श्रीराम सेना की अनैतिकता की वजह से दब सी गई। जबकि इस विषय में भी बात होनी ही चाहिए। क्या आप इसे ठीक मानेंगे कि इस बात की उपेक्षा सिर्फ इसलिए कर दी जाए क्योंकि श्रीराम सेना के कुछ उत्साहित नौजवानों ने गलत तरिके से इस विषय को उठाया है?
भले ही इस देश के दशमलव शून्य-शून्य-शून्य कुछ प्रतिशत लोग लाख उत्तार आधुनिकता का ढोल पीट लें, लेकिन आज भी भारतीय समाज में वह संस्कार कायम हैं, जिसे ‘भारतीयता’ कहते हैं। तमाम टीवी चैनलों पर लोग चिख-चिल्ला रहे थे, लेकिन हमले के बाद पीड़ित लड़कियां कहां गायब हो गई? कितने प्रतिशत अभिभावक देश में इस बात की इजाजत अपने लड़के-लड़कियों को देंगे कि वे पब में जाएं और शराब-सिगरेट पीएं। रेव पार्टियों में अपने पुरूष मित्रों के साथ कोकिन, स्मैक और हेरोईन के साथ कृत्रिम बारिस का आनन्द उठाएं।
दर्जनों ऐसे मामले हैं, जब रातों-रात झुग्गी-बस्तियों को तोड़कर वहां रहने वालों को बेघर कर दिया गया। यह मामला श्रीराम सेना के कर्म से कहीं बढ़कर भयावह और शर्मनाक है। लेकिन किसी चैनल वाले की आंख नहीं खुलती। अन्याय के खिलाफ आवाज बुलन्द करने का दावा करने वाली मीडिया ना जाने उस वक्त कहां सो जाती है। वजह साफ है कि चूंकि वह मामले ‘लो प्रोफाइल’ होते हैं। इसलिए दब जाते हैं। खबरिया चैनलों का उद्देश्य खबर देना बिल्कुल नहीं है। उनका उद्देश्य है, दर्शकों का मनोरंजन करना और पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करना। अब श्रीराम सेना वाली खबर में मामला हाई प्रोफाइल है और मामले से सबंधित विजुअल्स चैनल वालों के पास हैं, और इस खबर के साथ में ड्रामा है और मनोरंजन भी भरपूर है। और क्या चाहिए ‘खबर’ के लिए?
साप्ताहिक पत्रिका आउटलुक (अंग्रेजी) ने अपना 9 फरवरी 2009 के अंक को श्रीराम सेना के कारनामे को समर्पित किया है। इसी अंक के पृष्ठ 37 पर पीड़ित लड़कियों की तस्वीर प्रकाशीत की गई है। लेकिन इस तस्वीर में पीड़ितों के चेहरे को ढंक दिया गया है, आखिर ऐसा क्यों?
यदि पब में जाना बच्चों की आजादी से जुड़ा मसला है, तो उनकी आजादी की रक्षा के लिए उन बच्चों के मां-बाप को सामने आकर कहना चाहिए था- ‘हमारे बच्चे यदि पब-बीयर बार- नाइट क्लब में जाते हैं तो किसी को क्यों आपत्ताी है?’
अब सोचने वाली बात यह कि कौन है जो इस खबर को हवा दे रहा है। वही जो इस देश में पब-नाइट क्लब-बीयर बार की पश्चिमी संस्कृति को बढ़ाना चाहते हैं। जिसने भारत जैसे देश में ‘वेलेन्टाइन’ का इतना बड़ा बाजार खड़ा कर दिया। आज कोई इसके विरोध में बोले तो उसे ‘आउट डेटेड’ ही समझा जाएगा।
अच्छी बात यह है कि बाजार के तमाम हथकंडों के बाद भी भारतीय आम समाज के बीच ना वेलेन्टाइन कल्चर को स्वीकृति मिली है ना ही नाइट क्लब कल्चर को। बहरहाल मीडिया ने जिस हल्केपन के साथ इस संवेदनशील मामले को जनता के सामने रखा है, उससे पूरी बात स्पष्ट होकर सामने नहीं आई है। वहां से इए तरफा बात की गई है, जिसकी वजह से दूसरा भारतीय पक्ष लगभग अनसुना रह गया।

—- आशीष कुमार ‘अंशु’
09868419453

वाणिज्यिक बायोटेक फसल उगाई में भारत का चौथा स्थान

krishiअमेरिका जैसे विकसित देशों की तर्ज पर भारत में भी वाणिज्यिक बायोटेक फसल उगाई जा रही है। कृषि बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम कर रहे एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन का कहना है कि भारत वाणिज्यिक बायोटेक फसलों की खेती करने वाला दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है।इंटरनेशनल सर्विस फॉर द एक्वीजिशन ऑफ एग्री-बायोटेक अप्लाइंसेस (आईएसएएए) की ओर से जारी सालाना वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008 में देश में 76 लाख हेक्टेयर भूमि पर वाणिज्यिक बायोटेक फसल उगाई गई।

रिपोर्ट के मुताबिक गत वर्ष भारत के किसानों 50 लाख किसानों ने बायोटेक कपास (बीटी कॉटन) की फसल लगाई।

आईएसएएए के अध्यक्ष क्लाइव जेम्स के अनुसार आने वाले 50 वर्षो में दुनिया की खाद्य जरूरतें बहुत बढ़ने वाली है। इससे निपटने के लिए बायोटेक फसलें बेहतरीन विकल्प हैं। कीटनाशकों की कम आवश्यकता और अधिक उपज के कारण बायोटेक फसलें किसानों में तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

आईएसएएए की ओर से जारी रिपोर्ट में वाणिज्यिक बायोटेक फसल उगाई वाले देशों में अमेरिका का पहला स्थान है। वहां लगभग 6.25 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर बायोटेक फसलें उगाई जाती हैं। अर्जेटीना दूसरे स्थान पर है, ब्राजील का तीसरा स्थान है।

रिपोर्ट के मुताबिक इस समय दुनिया भर में 25 देशों के लगभग 1.33 करोड़ किसान बायोटेक फसलें उपजाते हैं।

संसद में बल्लेबाजी की तैयारी में जुटे अजहर

azharuddinभारतीय क्रिकेट टीम की लंबे समय तक कप्तानी कर चुके मोहम्मद अजहरुद्दीन राजनीति में आ गए हैं। गुरुवार को उनके औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी में शामिल होने की खबर आई। हालांकि, अभी उनके लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर स्थिति साफ नहीं हुई है।कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि अजहरुद्दीन ने कुछ दिन पहले कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा जाहिर की थी। इसके बाद पार्टी अध्यक्ष से चर्चा करने के बाद उन्हें पार्टी की सदस्यता का प्रस्ताव दिया गया है। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टी ने फिलहाल यह निर्णय नहीं लिया है वे आगामी लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे या नहीं।

भारतीय टीम में शामिल रहने के दौरान अजहरुद्दीन पर मैच फिक्सिंग जैसे गंभीर आरोप लगे थे, जिसके बाद उन्हें क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि कांग्रेस पार्टी की नजर में ऐसे मामलों की कोई अहमियत नहीं है। इस विवाद के बारे में मोइली ने कहा कि अजहरुद्दीन के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। उन्होंने तो खुद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के विरुद्ध एक मामला दर्ज करवाया है।

बीसीसीआई के एक प्रमुख अधिकारी भी कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं और संप्रग सरकार के लोगों की बीसीसीआई में इन दिनों गहरी पैठ है। ऐसे में सही कौन है यह साफ नहीं हो पा रहा है।

मीडिया में अटकलें लगाई जा रही हैं कि अजहरुद्दीन हैदराबाद से चुनाव लड़ सकते हैं। यदि ऐसा होता है और वे चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें संसद में बल्लेबाजी का अवसर मिल जाएगा। वे मैच फिक्सिंग विवाद के कारण भारतीय टीम से बाहर हो गए थे। लेकिन अब भी उनके चाहने वालों की फेहरिस्त काफी लंबी है।

स्वात घाटी में पत्रकार ‘मूसा खान’ की हत्या

Pakistanपाकिस्तान की स्वात घाटी में मूसा खान नाम के एक खेल पत्रकार की हत्या कर दी गई। वे एक टेलीविजन चैनल के पत्रकार थे और सूफ़ी मोहम्मद के काफ़िले की रिपोर्टिंग के लिए वहाँ गए थे।मूसा की आयु 28 वर्ष थी और वे जियो टीवी चैनल के लिए काम करते थे। आ रही खबर के मुताबिक उनकी हत्या स्वात के मट्टा इलाक़े में की गई है। इस इलाके में तालिबान का काफ़ी प्रभाव है। चैनल पर समाचार वाचक ने ख़बर पढ़ते हुए बताया कि हमें ये बताते हुए खेद है कि जियो के संवाददाता मूसा खान की अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी है।

ऐसी खबर है कि वे मट्टा में रिपोर्टिंग के लिए गए थे। घटना के बाद मूसा के शव को स्थानीय पत्रकारों ने चौक पर रखकर काफ़ी देर तक धरना दिया। गत तीन वर्षों में यहाँ तीन पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है। पाकिस्तान की सूचना मंत्री शेरी रहमान ने भी हत्या की निंदा की है। साथ ही दोषियों को सजा दिए जाने की का भरोसा दिया है।

हाल ही में पाकिस्तान सरकार और स्वात घाटी में सक्रिय तालिबान ग्रुप के बीच शांति समझौता हुआ है। जिसके बाद अब स्वात घाटी में इस्लामी शरिया क़ानून लागू कर दिया गया है।

2011 क्रिकेट महाकुंभ का उद्घाटन समारोह बांग्लादेश में

cricketshotभारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश की सह-मेजबानी में वर्ष 2011 में होने वाले क्रिकेट महाकुंभ का उद्घाटन समारोह बांग्लादेश में होगा। इसकी घोषणा अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी ) ने की। बांग्लादेश के समाचार पत्र डेली स्टारके मुताबिक आईसीसी ने उद्घाटन समारोह के लिए 19 फरवरी, 2011 की तारीख तय की है। 

साथ ही 2011 विश्व का पहला मैच बांग्लादेश में ही खेला जाएगा। डेली स्टार पत्र ने आईसीसी के एक मुख्य अधिकारी के हवाले से लिखा है कि बांग्लादेश को 2011 विश्व कप के उद्घाटन समारोह और पहले मैच की मेजबानी देने का निर्णय लिया है।

पाकिस्तान में लादेन के छुपे होने की संभावना

osama_bin_ladenअमेरिका समेत दुनिया भर को जिस ओसामा बिन लादेन की लंबे समय से तलाश है, उसके पाकिस्तान के सीमा क्षेत्र में छुपे होने की संभावना जताई गई है। वह अल कायदा का प्रमुख है। उपग्रह की मदद से किए गए एक भू विश्लेषण में इस बात का खुलासा हुआ है।

एक अमेरिकी विश्वविद्यालय की शोध टीम ने भूविज्ञानी थॉमस गिलेस्पी के नेतृत्व में भू विश्लेषण तकनीक का इस्तेमाल किया, जिससे शहरी अपराधियों और विलुप्तप्राय प्रजाति की जानकारी प्राप्त करने में महत्वपूर्ण नतीजे हाथ आए हैं।
यूएसए टुडे की रिपोर्ट में बताया गया कि उपग्रह से प्राप्त छवियों और अन्य तकनीकों के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा कि ओसामा के पाराचिनार के तीन अहातों में छुपे होने की संभावना है। पाराचिनार अफगानिस्तान की सीमा से मात्र 15 किलोमीटर दूर है और इस्लामाबाद के 290 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है।