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पाक और चीन क्यों बिदक रहे हैं?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
यह खुशी की बात है कि अफगानिस्तान को लेकर हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोभाल ने अच्छी पहल की है। उन्होंने पाकिस्तान, चीन, ईरान, रूस और मध्य एशिया के पांचों गणतंत्रों के सुरक्षा सलाहकारों को भारत आमंत्रित किया है ताकि वे सब मिलकर अफगानिस्तान के संकट से निपटने की साझा नीति बना सकें। इन देशों की यह बैठक 10 से 13 नवंबर तक चलनी है। जाहिर है कि हर देश के अपने-अपने राष्ट्रहित होते हैं। इसीलिए सब मिलकर कोई एक-समान नीति पर सहमत हो जाएं, यह आसान नहीं है लेकिन पाकिस्तान और चीन का रवैया अजीबो-गरीब है। चीन ने तो अभी तक नहीं बताया है कि इस बैठक में वह अपना प्रतिनिधि भेज रहा है या नहीं? पाकिस्तान उससे भी आगे निकल गया है। उसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोइद युसूफ ने दिल्ली आने से तो मना कर ही दिया है लेकिन उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया है, जो समझ के बाहर है। युसूफ ने कह दिया है कि ‘‘भारत तो कामबिगाड़ू है। वह शांतिदूत कैसे बन सकता है।’’ युसूफ ज़रा बताएं कि भारत ने अफगानिस्तान में कौनसा काम बिगाड़ा है? पिछले 50-60 साल से तो मैं अफगानिस्तान के गांव-गांव और शहर-शहर में जाता रहा हूं। वहां के सारे सत्तारुढ़ और विरोधी नेताओं से मेरा संपर्क रहा है। आज तक किसी अफगान के मुंह से मैंने ऐसी बात नहीं सुनी जैसी युसूफ कह रहे हैं। भारत ने पिछले 5-6 दशकों और खासकर पिछले 20 साल में वहां इतना निर्माण-कार्य किया है, जितना किसी अन्य देश ने नहीं किया है। अब भी भारत 50 हजार टन गेहूं काबुल भेजना चाहता है लेकिन पाकिस्तान उसे काबुल तक ले जाने के लिए सड़क का रास्ता देने को तैयार नहीं है। भुखमरी के शिकार हो रहे अफगानों की नज़र में पाकिस्तान की छवि उठेगी या गिरेगी? पाकिस्तान अपना नुकसान खुद कर रहा है। वह लाखों अफगानों को मजबूर कर रहा है कि वे पाकिस्तान में आ धमकें। यह ऐसा दुर्लभ मौका था, जिसका लाभ उठाकर भारत से पाकिस्तान लंबी और गहरी बात शुरु कर सकता था। कश्मीर तथा सर्वाधिक अनुग्रहीत राष्ट्र जैसे मुद्दों पर भी बात शुरु हो सकती थी। भयंकर आर्थिक संकट से जूझता पाकिस्तान इस मौके को हाथ से क्यों फिसलने दे रहा है ?  जहां तक चीन का सवाल है, यदि वह इस बैठक में भाग नहीं लेगा तो वह पाकिस्तान का पिछलग्गू कहलाएगा। महाशक्ति कहलवाने की उसकी छवि भी विकृत होगी। जब उसके बड़े फौजी अफसर गलवान घाटी जैसे नाजुक मुद्दे पर भारतीय अफसरों से बात कर सकते हैं तो उसके सुरक्षा सलाहकार दिल्ली क्यों नहीं आ सकते? यदि वह दिल्ली नहीं आना चाहते हैं तो न आएं, वे ‘जूम’ पर ही बात कर लें। अफगानिस्तान के पड़ौसी देशेां की एकजुट मदद के बिना अफगान-संकट का हल होना असंभव है। 

दीपावली ने दिया है भारतीय अर्थव्यवस्था को सहारा

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है। दीपावली के त्यौहार को तो भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना गया है। देश में दीपावली पर्व के एक दो माह पूर्व ही सभी परिवारों द्वारा इसे मनाने की तैयारियां प्रारम्भ की जाती है। देश के सभी नागरिक मिलकर वस्तुओं की खूब खरीदारी करते हैं जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है।  इस वर्ष की दीपावली भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबर लाई है। तीव्र गति से संकलित किए गए आकड़ों के अनुसार इस वर्ष दीपावली के दौरान देश में 125,000 करोड़ रुपए से अधिक का खुदरा व्यापार सम्पन्न हुआ है जो पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान हुए खुदरा व्यापार में सबसे अधिक है।   

नौकरी जॉबस्पीक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार देश में अक्टोबर 2021 माह में रोजगार के अवसरों में 43 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सबसे अधिक मांग दृष्टिगोचर हुई है, इस क्षेत्र में अक्टोबर 2021 माह में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में रोजगार की मांग में 85 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। दीपावली के महान पर्व के दौरान खुदरा व्यापार में हुई अतुलनीय वृद्धि के चलते सूचना प्रौद्योगिकी के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों में बहुत अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है।

सबसे अच्छी खबर तो यह आई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में, तेजी से औपचारीकरण हो रहा है। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में गैर-औपचारीकृत लेनदेनों का योगदान वर्ष 2018 में 52 प्रतिशत था अर्थात देश में लगभग आधी अर्थव्यवस्था गैर-औपचारीकृत रूप से कार्यरत थी परंतु अब यह योगदान घटकर लगभग 20 प्रतिशत हो गया है। किसी भी अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होने के कारण कर संग्रहण में वृद्धि होती है, विकास दर बढ़ती है एवं श्रमिकों के शोषण में कमी आती है। औपचारीकरण की प्रक्रिया में दरअसल सबसे अधिक लाभ तो श्रमिकों का होता है क्योंकि इससे उद्योग जगत एवं रोजगार प्रदाता द्वारा, सरकार द्वारा घोषित किए गए सभी प्रकार के लाभ एवं प्रोत्साहन, श्रमिकों को  प्रदान किए जाने लगते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से हो रहे औपचारीकरण के पीछे डिजिटल लेनदेन का बहुत अधिक योगदान रहा है। दीपावली एवं अन्य त्यौहारों के कारण अक्टोबर 2021 माह के दौरान यूनिफाईड पेयमेंट इंटरफेस (UPI) पर 771,000 करोड़ रुपए के 421 करोड़ व्यवहार सम्पन्न हुए हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। UPI प्लेटफोर्म का प्रारम्भ वर्ष 2016 में हुआ था एवं अक्टोबर 2019 में 100 करोड़ व्यवहार के स्तर को छुआ गया था तथा अक्टोबर 2020 में 200 करोड़ व्यवहार के स्तर को छुआ गया था, उसके बाद तो लगातार तेज गति से वृद्धि आंकी गई है।     

देश में आर्थिक गतिविधियों में लगातार हो रहे सुधार के कारण जीएसटी संग्रहण में भी रिकार्ड वृद्धि दर्ज हो रही है। माह मार्च 2021 में जीएसटी संग्रहण रिकार्ड 140,000 करोड़ रुपए का रहा था जो माह अक्टोबर 2021 में 130,000 करोड़ रुपए से अधिक का रहा है। इस प्रकार माह जुलाई 2017 में जीएसटी प्रणाली के लागू किए जाने के बाद से यह रिकार्ड स्तर के मामले में दूसरे नम्बर पर है। अब तो औसत रूप से प्रत्येक माह जीएसटी संग्रहण एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का ही हो रहा है। इसके साथ ही अंतरराज्यीय व्यापार के मामले में जारी किए जा रहे ईवे बिलों के संख्या में भी लगातार बहुत अच्छी वृद्धि देखने में आ रही है।

प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की वसूली में हो रही वृद्धि के चलते केंद्र सरकार के वित्तीय संतुलन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान राजकोषीय घाटे के बारे में बजट में किए गए अनुमान के विरुद्ध केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा अप्रेल-सितम्बर 2021 की अवधि के दौरान केवल 35 प्रतिशत रहा है जो अप्रेल-सितम्बर 2020 की इसी अवधि के दौरान 115 प्रतिशत था। राजकोषीय घाटे का 526,000 करोड़ रुपए का स्तर पिछले 4 वर्ष के दौरान की इसी अवधि के स्तर से भी कम है। यह इसलिए सम्भव हो सका है क्योंकि देश में प्रत्यक्ष करों के संग्रहण में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।       

हर्ष का विषय यह भी है कि केंद्र सरकार द्वारा लगातार किए गए प्रयासों के कारण देश में खुदरा मुद्रा स्फीति की दर में भी कमी आई है। सितम्बर 2021 माह में खुदरा मुद्रा स्फीति की दर 4.35 प्रतिशत रही है, यह पिछले 5 माह के दौरान खुदरा मुद्रा स्फीति की दर में सबसे कम है। अगस्त 2021 माह में खुदरा मुद्रा स्फीति की दर 5.3 प्रतिशत एवं सितम्बर 2020 माह में 7.27 प्रतिशत थी। अभी हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल एवं डीजल पर एक्साइज कर की दरों की गई कमी एवं भाजपा एवं इसके सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्यों द्वारा पेट्रोल एवं डीजल पर लागू VAT की दरों में की गई कमी के कारण पेट्रोल एवं डीजल के प्रति लीटर विक्रय मूल्य में लगभग 10 रुपए से 15 रुपए तक की कमी हुई है जिसके कारण भी खुदरा मुद्रा स्फीति की दर और भी कम होने की सम्भावना आगे आने वाले समय के लिए बढ़ गई है।    

स्वाभाविक रूप से आर्थिक गतिविधियों में हो रहे लगातार सुधार के चलते बैंकों द्वारा प्रदान की जा रही ऋणराशि में भी तेजी देखने में आ रही है। विशेष रूप से त्यौहारों के मौसम में व्यक्तिगत ऋणराशि एवं कृषि के क्षेत्र में प्रदान की जाने वाली ऋणराशि में तेजी कुछ अधिक ही दिखाई दे रही है। सितम्बर 2021 माह में गृह ऋण, वाहन ऋण, क्रेडिट कार्ड आदि व्यक्तिगत ऋण के क्षेत्र में 12.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो सितम्बर 2020 माह में हुई 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर से कहीं अधिक है। इसी प्रकार कृषि के क्षेत्र में प्रदान की जा रही ऋणराशि में भी सितम्बर 2021 माह में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है जो सितम्बर 2020 माह की वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत से कहीं अधिक है। मध्यम उद्योग को प्रदान की गई ऋणराशि में सितम्बर 2021 माह में 49 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि देखने में आई है जो सितम्बर 2020 माह में 17.5 प्रतिशत ही रही थी। सूक्ष्म एवं लघु उद्योग को प्रदान की गई ऋणराशि में सितम्बर 2021 माह में 9.7 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई है जबकि सितम्बर 2020 माह में 0.1 प्रतिशत की कमी आंकी गई थी।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विकास दर को गति प्रदान करने में विदेशी व्यापार का भी बहुत योगदान रहता है। दरअसल कई देशों यथा चीन जैसे देशों की विकास दर लगातार कुछ दशकों तक 10 प्रतिशत से अधिक इसी कारण से बनी रही है। अभी हाल ही के समय में भारत से होने वाले निर्यात में भी भारी वृद्धि देखने में आ रही है। अक्टोबर 2021 माह में भारत से वस्तुओं के निर्यात 42.33 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 3,547 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं। अक्टोबर 2020 माह में भारत से वस्तुओं के निर्यात 2,492 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे थे और अक्टोबर 2019 में 2,623 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे थे। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान भारत से वस्तुओं के निर्यात का स्तर 40,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से ऊपर रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।   

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग संस्थान मूडीज ने भारत की सार्वभौम (सोवरेन) रेटिंग दृष्टिकोण को ऋणात्मक (नेगेटिव) से स्थिर (स्टेबल) श्रेणी में ला दिया है। यह भी भारत में विशेष रूप से बैंकिंग एवं गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों में लगातार हो रहे सुधार के चलते सम्भव हो पाया है। केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लिए गए कई निर्णयों के चलते इन बैंकों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत लगातार कम हो रहा है।    

अब तो विदेशी वित्तीय संस्थान यथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक आदि भी भारतीय अर्थव्यवस्था के वित्तीय वर्ष 2021-22 में दहाई के आंकड़े से आगे बढ़ने के बारे में सोचने लगे हैं। हालांकि अभी तक वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 9.5 प्रतिशत के आसपास के विकास दर की भविष्यवाणी तो लगभग सभी वित्तीय संस्थानों ने की हुई है।

चीन में मुस्लिम, तिब्बती और ईसाइयों के अंगों का कारोबार

संदर्भ- चीन में जबरन निकाले जा रहे हैं उईगर मुस्लिमों के अंग

प्रमोद भार्गव

                चीन के शिनजियांग प्रांत में बंधक बनाकर रखे गए पन्द्रह लाख से ज्यादा उईगर मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक हैवानियत का शिकार हो रहे है। इस क्रूरतम रहस्य का पार्दाफाश संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में किया गया है। चीन में अल्पसंख्यक उईगर, तिब्बती और ईसाईयों के जबरदस्ती अंग निकालकर जरूरतमंद देशों को कालाबाजारी करके अरबों रुपए कमाए जा रहे हैं। यह रिपोर्ट आस्ट्रेलिया में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के अनुसार हिरासत में रखे गए अल्पसंख्यकों का यकृत 1 करोड़ 2 लाख रुपए में, गुर्दा 60 लाख, हृदय 80 लाख और आंख का नेत्रपटल (कॉर्निया) 20 लाख रुपए में मानव अंगों का अवैध व्यापार करने वालों को बेचे जा रहे हैं। इन हिरासत केंद्रों में अंग निकालने के आरोप पहले भी अनेक मर्तबा लगे हैं। यही नहीं इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उईगर और अन्य अल्पसंख्यकों की जबरन नसबंदी भी करा दी जाती है। जिन अस्पतलों में अंगों को निकाला जाता है, वे सभी अस्पताल हिरासत केंद्रों के निकट है। अस्पतलों में किए गए आॅपरेशनों की संख्या और प्रतिक्षा सूची से पता चला है कि यहां बड़े पैमाने पर जबरन अंग निकाले जा रहे हैं। रिपोर्ट में आॅस्ट्रेलियाई रणनीतिक नीति संस्थान (एएसपीआई) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि 2017 से 2019 के बीच देशभर के कारखानों में लगभग 80 हजार उईगरों की तस्करी की गई है। साथ ही इनकी 6.3 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की गई है। इन्हें धार्मिक अनुष्ठानों में बमुश्किल भागीदारी करने दी जाती है। बावजूद पाकिस्तान समेत दुनिया के अन्य मुस्लिम पैरोकार देश चीन के विरुद्ध ओंठ सिले हुए हैं।   

चीन में उईगरों पर जुल्म का सिलसिला नया नहीं है। वह नए-नए तरीकों से उईगरों को इतना सता रहा है कि हिरासत केंद्र, यातना घरों में बदल गए हैं। चीन मुस्लिमों के धार्मिक प्रतीकों पर भी लगातार पाबंदी लगा रहा है। यहां के पश्चिमी क्विनगाई प्रांत के शिनिंग शहर में मौजूद डोंगगुआंग मस्जिद के गुंबद और मीनारों को हटा दिया गया है। चीन में मौजूद मस्जिदों के इस्लामिक वास्तुशिल्प को वहां की वामपंथी सरकार चाइनीज स्थापत्य में ढालने का उपक्रम करने में लगी है। इस बदलाव के सिलसिले में सरकार का कहना है कि यह सब इसलिए जरूरी हो गया है, ताकि मस्जिदों पर मध्यपूर्व एशिया का कथित इस्लामीकरण न दिखे और ये स्मारक चाइनीज लगें। इस बदलाव की शुरूआत 1990 के दशक में जिनपिंग के कार्यकाल में शुरू हुई थी। तभी से गुंबद और मीनारों को हटाया जा रहा है। वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस परिवर्तन के अभियान को ‘सांस्कृतिक एकीकरण’ का नाम दिया हुआ है। इसके अंतर्गत ईसाई धर्म और संस्कृति को भिन्न पहचान देने वाले स्मारकों के प्रतीकों को भी हटाया जा रहा है।

दरअसल चीन को उईगर बहुल क्षेत्र में अनेक बार विरोध का सामना करना पड़ा है। इसलिए चीन सख्ती से इनके दमन में लगा हुआ है। यही हश्र चीन तिब्बतियों के साथ भी कर रहा है। चीन ने मंगोलिया प्रांत के जिन विद्यालयों में तिब्बती छात्र बहुसंख्यक हैं, वहां केवल मंदारिन भाषा में पढ़ाई अनिवार्य कर दी है। चीन के शिनिंग शहर में पिछले 1300 साल से हुई मुस्लिम रह रहे हैं। इनकी आबादी लगभग 1 करोड़ हैं। चीन ने इसे सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने जो मॉडल अपनाया है, उसे चीन में लागू करके धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को 54 वर्गों में बांटकर न्यूनतम धार्मिक आजादी दी हुई है, जिससे इनकी शक्ति विभाजित होकर बिखर जाए। हालांकि जब हुई मुस्लिम चीनी क्षेत्र में बसना शुरू हुए थे, तब उन्होंने आक्रामकता दिखाते हुए बौद्ध मंदिरों पर कब्जा किया और उन्हें इस्लामिक रूप देकर मस्जिदें बना दीं। चीनी इतिहास के अनुसार 616-618 के कालखंड में चीन में तांग राजवंश के शासक रहे थे। बौद्ध धर्मावलंबी होने के कारण ये हिंदूओं की तरह उदार थे। लिहाजा इस कालखंड में जब अरब और ईरानी व्यापारी चीन व्यापार के लिए आए तो उन्हें तांग राजाओं ने व्यापार के साथ-साथ अपने धर्म इस्लाम के प्रचार की छूट भी दे दी। एक तरह से यह वही गलती थी, जो भारतीय सामंतों ने मुस्लिम और अंग्रेजों के भारत आने पर की थी। इसका नतीजा निकला कि चीन में उईगर, हुई, उजबेक, ताजिक, कजाक, किरगीज और तुर्क आकार रहने लगे। ये सभी मध्य एशिया से आए थे। इन्होंने इस्लाम के प्रचार के बहाने चीनीयों का धर्म परिवर्तन भी किया और चीनी महिलाओं से शादियां भी कीं। नतीजतन चीन में मुसलमानों की संख्या दो करोड़ से भी ऊपर पहुंच गई और ये स्थानीय मूल निवासियों के लिए संकट बन गए। वर्तमान में चीन में करीब सवा करोड़ उईगर मुसलमान है। कालांतर में इन मुसलमानों ने अलग स्वतंत्र देश तुर्किस्तान की मांग शुरू कर दी। इस हिंसक आंदोलन को नेस्तनाबूद करने के लिए चीन की च्यांगकाई और माओ-त्से-तुंग की कम्युनिष्ठ सरकारों ने लाखों की संख्या में आंदोलनकारियों को मौत के घाट उतार दिया। चीन ने यही हश्र तिब्बतियों के साथ किया। तिब्बती और मुस्लिम औरतों को यहां बांझ बनाने का काम भी किया जा रहा है। हैरानी इस बात पर है कि पाकिस्तान समेत अन्य मुस्लिम देश चीन के इन धतकर्मों की निंदा करने से भी बचते है।         

इन सब अत्याचारों के बावजूद चीन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (यूएनएचआरसी) में चुन लिया जाता है। इससे संकेत मिला है कि संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों के शोषकों के आगे घुटने टेक दिए हैं। इसीलिए यह वैश्विक संगठन मानवाधिकारों की लड़ाई चीन जैसे देशों के खिलाफ सख्ती से नहीं लड़ पा रहा है। यही नहीं चीन ने अपनी समर्थन के बूते पाकिस्तान और नेपाल भी परिषद् के सदस्य चुन लिए गए। रूस और क्यूबा जैसे अधिनायकवादी देश भी इस परिषद् के सदस्य हैं। इस कारण यूएनएचआरसी की विश्वसनीयता लगातार घट रही है। इसीलिए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियों ने बयान दिया था कि ऐसे हालातों के चलते परिषद् से अमेरिका के अलग होने का फैसला उचित है। दरअसल जब अमेरिका ने परिषद् से बाहर आने का ऐलान  किया था, तब संयुक्त राष्ट्र ने सदस्य देशों से परिषद् में तत्काल सुधार का आग्रह किया था। परंतु किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। आज स्थिति यह है कि अधिकतम मानवाधिकारों का हनन करने वाले देश इसके सिरमौर बन बैठे हैं। पाकिस्तान में हिंदुओं और इसाइयों के साथ-साथ अहमदिया मुस्लिमों पर निरंतर अत्याचार हो रहे हैं। बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। उनके धार्मिक स्थल नष्ट करने की खबरें रोज-रोज आ रही हैं। वहीं चीन ने तिब्बत को तो लगभग निगल ही लिया है। म्यांमार की सेना ने करीब 15 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों को बंदूक की नोक पर अपने देश से रातोंरात बेदखल कर दिया। इस घटना को करीब पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन कहीं से कोई आवाज म्यांमार के विरुद्ध नहीं उठी। मानवाधिकार आयोग भी मौन हैं। चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों से वियतनाम चिंतित है। हांगकांग में वह इकतरफा कानूनों से दमन की राह पर चल रहा है। इधर चीन और कनाडा के बीच भी मानवाधिकारों के हनन को लेकर तनाव बढ़ना शुरू हो गया है। भारत से सीमाई विवाद तो सर्वविदित है ही। लोक-कल्याणकारी योजनाओं के बहाने चीन छोटे से देश नेपाल को भी तिब्बत और चैकोस्लोवाकिया की तरह निगलने की फिराक में है। चीन ने श्रीलंका के हंबन तोता बंदरगाह को विकसित करने के बहाने, उसे हड़पने की ही कुटिल चाल चल दी है। श्रीलंका चीन के इन दोगले मंसूबों को बहुत देर बाद समझ पाया। नतीजतन अब चीन के चंगुल से बाहर आने के लिए छटपटा रहा है। जाहिर है, चीन वामपंथी चोले में तानाशाही हथकंडे अपनाते हुए हड़प नीतियों को लगातार बढ़ावा दे रहा है।  

प्रमोद भार्गव

भाजपा अभी कुछ दशक तक जानेवाली नहीं

केयूर पाठक

“मोदी हार भी गए तो भाजपा अभी कुछ दशक तक जानेवाली नहीं”- अपने इस बयान से “चुनावी-रणनीतिकार” प्रशांत किशोर ने भले कांग्रेस के एक धरे को नाखुश कर दिया हो, लेकिन इस सच्चाई से मुंह मोड़ना कांग्रेस या किसी भी अन्य विपक्षी दल के लिए आत्मघाती सिद्ध हो सकता है. भाजपा को पराजित किया जा सकता है, उसके सीटों की संख्या को कम की जा सकती है, लेकिन भाजपा-मुक्त राजनीति की कोई सम्भावना अभी कुछ दशकों तक संभव होता नहीं दिखता. भारतीय राजनीति में भाजपा एक कडवे सत्य की तरह लम्बे समय तक रहने वाली है, इस तथ्य को स्वीकारते हुए ही किसी अन्य दल को अपनी रणनीति तय करनी चाहिए. उसे किसी भी प्रकार के भ्रम से बाहर निकल जाना चाहिए कि भाजपा अनगिनत मुद्दो पर ख़राब प्रदर्शन करने के बाद जनता द्वारा एक सिरे से खारिज कर दी जायेगी; जैसा कि प्रशांत किशोर ने भी बताया कि तीस प्रतिशत मतों से सत्ता में आया कोई राजनीतिक दल इतनी आसानी से बेदखल नहीं किया जा सकता. भाजपा के बनने और बने रहने के लिए कई ऐसी परिस्थितियां हैं जिसे अनदेखा करके इसे चुनौती देना आसान नहीं है. भाजपा का यह उभार अचानक से पैदा हुई स्थिति नहीं है और न ही यह मात्र कांग्रेस विरोध से उपजी एक सत्ता है, बल्कि यह कई स्तरों पर धीरे-धीरे विकसित हुई है जिसका राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों से गहरा सम्बन्ध है और उन घटनाक्रमों का अध्ययन करके ही इसके एकाधिकार पर अंकुश लगाया जा सकता है.

किसी अन्य दलों की तुलना में आप गौर करें तो इनके पास पारंपरिक “चमत्कारिक” नेतृत्व हैं जो बदलाव या सुधार के चमत्कारिक तरीकों की बात करते हैं; जैसे प्रधानमंत्री मोदी या उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को छोड भी दें तो इनके पास ऐसे नेताओं की एक लम्बी लिस्ट है जो इसी तरह की राजनीति करते हैं और जनता में यह विश्वास पैदा कर देने में सक्षम होते हैं कि इनके नेतृत्व में राष्ट्र में रातो-रात बदलाव लाये जा सकते हैं. ऐसे नेतृत्व व्यवस्था की कमियों को अपना एक मजबूत हथियार बना लेते हैं या यूँ कहें कि व्यवस्था से मोहभंग ने ऐसे नेतृत्व को जन्म दिया. ये अक्सर व्यवस्था से ऊपर अपना स्थान बनाते हैं, या फिर कभी-कभी व्यवस्था के पर्याय भी बन जाते हैं.

भाजपा के आर्थिक तंत्र को देखें तो पूंजी पर इनकी पकड़ किसी भी राजनीतिक दल से अधिक है. वर्तमान राजनीति जो पिछले कुछ दशकों से पूंजी केन्द्रित हो गई है उसमें भाजपा और इनके सहयोगी दलों की पूंजी पर सबसे अधिक पकड़ है जिसके द्वारा ये भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को निर्धारित कर देने में किसी भी अन्य दल से अधिक समर्थ हैं भाजपा का मतदाता आमतौर पर शहरी मध्य वर्ग है. उनका मानना है कि अन्य विपक्षी दलों के द्वारा मध्य वर्गों के हितों को पूरा नहीं किया जा सकता और ऐसा समझाने में भाजपा एक हद तक सफल रही है, उसने शहरी मध्यवर्ग की उपभोक्तावादी मानसिकता का ठीक तरीके से इस्तेमाल किया है.

सबसे अहम् बात जो भाजपा को अन्य मुख्य राजनीतिक दलों से अलग करती है वह है कि यह मात्र विकास की राजनीति नहीं करती है, बल्कि खुले तौर पर स्वीकारती है कि इसकी राजनीति की धुरी संस्कृति है और जिसे कई बार इसके वरिष्ठ राजनेता और आर्थिक चिन्तक सुब्रमन्यम स्वामी सार्वजनिक तौर पर स्वीकार भी चुके हैं. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीति ने विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय को भी इस दल से बड़े पैमाने पर जोड़ा है और ये अनेक रूपों में भाजपा की मदद करते हैं. उन्हें लगता है कि भाजपा के समर्थन से वे भारतीय परंपरा और संस्कृति की रक्षा कर रहें हैं. इनके मदद केवल आर्थिक नहीं होते, बल्कि वैश्विक राजनीतिक लामबंदी में भी ये निर्णायक भूमिका में होते हैं जिसे अमेरिका आदि देशों में मोदी के भव्य कार्यक्रमों के सन्दर्भ में देखा जा सकता है. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीति ने व्यापक जनसमुदाय को विकास से अधिक अपने सांस्कृतिक पक्षों की तरफ मोड़ा. लोग मोदी की आर्थिक मोर्चे पर भयंकर विफलता के बावजूद अपना समर्थन सांस्कृतिक सन्दर्भों का हवाला देकर देते हैं. इसने छोटे-बड़े सांस्कृतिक या धार्मिक मुद्दों को उठाकर हरेक प्रान्त या राज्य में अपना एक समर्थक वर्ग बना लिया. इनके समर्थक ये मानते हैं कि वोट तो मोदी को ही दिया जाएगा.

आधिकारिक रूप से भाजपा और आरएसएस के बीच तो कोई सम्बन्ध नहीं है, लेकिन सही अर्थों में देखें तो आरएसएस मुख्यतः भाजपा और इसके सहधर्मी दलों के वैचारिकी के श्रोत हैं. भाजपा के नेतृत्व पर संघ के प्रभाव को किसी भी सूरत में नहीं नकारा जा सकता. अगर संघ की सांगठनिकता को देखें तो साफ तौर पर दिखता है कि ये सांगठनिक रूप से किसी भी संगठन से अधिक मजबूत और अनुशासित हैं. इनके बारे में मशहूर है कि चीन युद्ध के बाद जब नेहरु ने संघ के कार्यकर्ताओं को स्वतंत्रता दिवस के परेड में शामिल होने का न्योता दिया तो केवल तीन दिनों के पूर्व नोटिस पर इनके तीन हजार प्रशिक्षित कार्यकर्त्ता पहुँच गए थे. एक दो बार मैंने व्यक्तिगत रूप से भी संघ के कार्यक्रमों में बनारस में भाग लिया था और अनुभव किया कि इतना अनुशासन और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण शायद ही किसी संगठन में हो. संघ प्रत्यक्ष राजनीति में न रहकर भी अपने संगठन के माध्यम से भाजपा और अन्य सहधर्मी दलों का पोषण करती रहती हैं. यह भाजपा के लिए एक अतिरिक्त शक्ति की तरह कार्य करता है जिसका किसी भी अन्य दलों के पास अभाव है.

अगर भाजपा की तुलना में अन्य दलों में राजनीतिक नेतृत्व को देखें तो शायद ही राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा सर्वमान्य नेता मिलेगा. और अगर हैं भी तो निहीत स्वार्थों के कारण उसके अपने संगठन के भीतर ही अनगिनत विरोधी हैं. क्षेत्रीय स्तर पर कुछ नेता हैं जो अपने-अपने राज्यों में अपनी शाख रखते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्वीकृति का अभी अभाव दिखता है. जहाँ तक गठबंधन की सरकार की बात है तो इसे जनता अब बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लेती, गठबंधन की सरकार उन्हें एक घनघोर अवसरवादी राजनीति की तरह लगती है, जैसा कि बिहार के महा-गठबंधन में देखा गया था.

साथ ही वैश्वीकरण के इस युग में देश के बाहर होने वाले राजनीतिक घटनाक्रमों का भी सीधा असर भारतीय राजनीति पर पड़ता है. जैसे बांग्लादेश में वहाँ के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर किये गए हमलों ने एक तरह से भाजपा को मजबूत ही किया. साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हाल के वर्षों में दुनिया की राजनीति से तेजी से सेक्युलर मूल्यों का पतन हुआ है. अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों में दक्षिणपंथी राजनीति अपने मुखर रूप में है. यह कैसे संभव हो सकता है कि मिडिल ईस्ट में इस्लामिक मूल्यों को केंद्र में रखकर राजनीति हो और उसका प्रभाव अन्य देशों पर नहीं पड़े. विपक्ष की सबसे बड़ी भूलों में से एक यह भी रही है कि उसने वैश्विक राजनीति के भारतीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों पर खुलकर बहश नहीं किया; वह एक संकोच या दुविधा की स्थिति में रही जिसने भाजपा को भरपूर मौका दिया अपने राजनीतिक विमर्शों को सेट करने का. राजनीति केवल पक्ष-विपक्ष के घोषित मेनिफेस्टों से तय नहीं होती. असली राजनीति मेनिफेस्टों के बाहर होती है जिसे विपक्ष अबतक समझ पाने में असमर्थ है. 

प्रशांत किशोर के कथन का अर्थ यह भी तो है ?

निर्मल रानी

चुनावी रणनीतिकार एवं राजनैतिक परामर्शदाता के रूप में अपनी पहचान बना चुके प्रशांत किशोर कुछ दिनों पहले ही तब चर्चा में आये थे जब इसी वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा  प्रियंका गांधी से मुलाक़ात की थी। उस समय यह क़यास लगाये जाने लगे थे कि कांग्रेस के इन सर्वोच्च नेताओं के साथ प्रशांत किशोर की मुलाक़ात किसी राज्य विशेष के लिए नहीं बल्क‍ि संभवतः किसी ”बड़ी रणनीति’ का हिस्सा भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त यह अटकलें भी लगाई जाने लगीं थीं कि प्रशांत किशोर किसी भी समय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो सकते हैं। यहां तक कि पार्टी  में उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद दिये जाने की भी ख़बर आने लगी थी। ख़बर यह भी थी कि राहुल और प्रियंका तो प्रशांत किशोर को ‘ख़ास’ पद देने के लिये राज़ी हैं परन्तु पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को इस बात पर आपत्ति है। इसलिये अंतिम निर्णय सोनिया गांधी पर छोड़ दिया गया है। इसी दौरान नवज्योत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। कैप्टन अमरेंद्र सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाया गया  इसके फ़ौरन बाद  कैप्टन ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया। उधर क्रन्तिकारी युवा नेता कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हुए। इसी के साथ ही लखीमपुर में किसानों पर भाजपाइयों द्वारा जीप चढ़ाये जाने के बाद गरमाई सियासत में प्रियंका गाँधी एक तेज़ तर्रार विपक्षी नेता के रूप में कूद पड़ीं। राजनैतिक विश्लेषक कांग्रेस में अचानक आई इस हलचल में कहीं न कहीं प्रशांत किशोर की ही भूमिका समझ रहे थे। हाँ,इन्हें विश्लेषकों के गले यह ज़रूर नहीं उतर पा रहा था कि बावजूद इसके कि प्रशांत किशोर, कैप्टन अमरेंद्र सिंह  के रणनीतिकार भी थे फिर भी कैप्टन कैसे कांग्रेस छोड़ गये ?                                                              अभी राजनैतिक फ़िज़ा में उपरोक्त चर्चायें हो ही रही थीं कि गत दिवस अचानक प्रशांत किशोर का एक नया वक्तव्य सामने आया जोकि कांग्रेस ही नहीं बल्कि पूरे विपक्ष को हतोत्साहित करने वाला भी है और आँखें खोलने का काम करने वाला भी। ग़ौरतलब है कि प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल के पिछले विधान सभा के चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के रणनीतिकार व सलाहकार थे। भाजपा ने बंगाल फ़तेह करने के  लिये अपने सभी हथकंडे इस्तेमाल किये और बेपनाह पैसे भी ख़र्च किये। उसके बावजूद प्रशांत किशोर की रणनीति व ममता बनर्जी की लोकप्रियता ने भाजपा को धूल चटा दी। ख़बर है कि इस विजय से प्रभावित होकर ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर की संस्था आई पैक से अपना क़रार 2026 तक बढ़ा लिया है। और चूँकि उनका हौसला बुलंद है और अब उनकी नज़र दिल्ली के सिंहासन पर है इसलिये वे  बंगाल से बाहर भी अपने संगठन का विस्तार कर रही हैं। गोवा में फ़रवरी 2022 में  विधान सभा चुनाव  हैं और तृणमूल कांग्रेस 40 सीटों वाली गोवा में चुनाव लड़ने जा रही है। इसी सिलसिले में गत दिनों ममता बनर्जी ने गोवा में सभायें कीं और प्रशांत किशोर ने भी तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ‘गुरु मन्त्र ‘ दिये। इसी दौरान उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बातें भी कहीं। प्रशांत ने कहा कि – ‘इस जाल में बिल्कुल  मत फंसिए कि लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज़ हैं और उन्हें सत्ता से बाहर कर देंगे। हो सकता है लोग मोदी को सत्ता से बाहर कर भी दें,  लेकिन भाजपा अभी कहीं नहीं जा रही है। आपको इससे अगले कई दशकों तक लड़ना होगा। इस बयान के बाद उन्होंने ‘  एक अंग्रेज़ी अख़बार को दिए साक्षात्कार में कहा कि भाजपा भारतीय राजनीति में दशकों तक सत्ता के केंद्र में बनी रहेगी। उन्होंने राहुल गांधी के बारे में कहा कि वह जैसा समझते हैं वैसा होने वाला नहीं है। शायद उन्हें (राहुल गांधी को ) लगता है कि बस कुछ समय में लोग नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटा देंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि जब तक आप मोदी की ताक़त का अंदाज़ा नहीं लगा लेते, आप उन्हें हराने के लिए कभी भी काउंटर नहीं कर पाएंगे । ज़्यादातर लोग उनकी ताक़त को समझने में समय नहीं लगा रहे हैं। जब तक आप यह ना समझ जाएं कि ऐसी कौन सी चीज़ है जो उन्हें लोकप्रिय बना रही है तब तक आप उनको काउंटर नहीं कर पाएंगे।                   
                    परन्तु प्रशांत किशोर के कथन को यदि मान भी लिया जाये तो क्या राहुल गाँधी या कांग्रेस ही अकेले इस स्थिति के लिये ज़िम्मेदार है ? प्रशांत किशोर जो कह रहे हैं वही  बातें अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा पहले कहते रहे हैं। कहने को तो ममता बनर्जी भी राष्ट्रीय विपक्षी एकता की बात करती रही हैं। परन्तु साथ  साथ कांग्रेस नेताओं को तोड़कर अपने साथ जोड़ने के अलावा गोवा के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश व पूर्वोत्तर के कई राज्यों में अपने दल का विस्तार भी कर रही हैं।ज़ाहिर है उनके इस क़दम से भी जहाँ कांग्रेस को नुक़सान होगा वहीँ इसका सीधा लाभ भाजपा को ही मिलेगा। इसी तरह धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले नितीश कुमार महज़ अपनी निजी महत्वाकांक्षा के लिये भाजपा की गोद में जा बैठे हैं। अखिलेश यादव को डर है कि कहीं कांग्रेस को साथ लेने से उनका जनाधार कम  न हो जाये और उनकी मुख्य मंत्री की कुर्सी खटाई में न पड़ जाये ,ओवैसी अपनी अलग डफ़ली बजा रहे हैं। लालू यादव को देश व लोकतंत्र बचाने से बड़ी चिंता अपनी राजनैतिक विरासत स्थापित करने की है। मायावती सिर्फ़ सत्ता के लिये कभी बहुजन तो कभी सर्वजन का राग अलापने लगती हैं।  भाजपा को मज़बूती प्रदान करने के यह सब कारण भी तो हैं ? इनके लिये अकेले राहुल गाँधी या कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराना क़तई मुनासिब नहीं। रशांत किशोर के कथन का अर्थ यह भी तो है कि लोकतंत्र,देश,संविधान तथा संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा करने लिये सभी धर्मनिरपेक्ष व तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को अपना व अपने दलों का निजी नफ़ा नुक़्सान सोचे बिना संगठित होने की ज़रुरत है।

महंगाई की मार से आम जनता त्रस्त, सिस्टम सत्ता के महलों में बैठकर राज का आनंद लेने में मस्त!

दीपक कुमार त्यागी

पिछले कुछ वर्षों में निरंतर जिस तेजी के साथ देश में महंगाई बढ़ी है, उससे गरीब तबका तो पहले से ही परेशान है, लेकिन अब तो एक मध्यमवर्गीय परिवार को भी अपनी आय और व्यय में सामंजस्य बैठाना  बेहद मुश्किल हो रहा है, चिंता की बात यह है कि महंगाई के प्रकोप के लंबें समय से चले आ रहे हालातों में सुधार होने की जगह परिस्थितियां दिनप्रतिदिन विकट होती जा रही हैं। कोरोना के चलते मंदी के इस दौर में हर क्षेत्र में कामकाज पहले से ही बेहद सुस्त चल रहा है, मंदी की वजह से लोगों को अपने व्यापार, रोजगार व नौकरियों को सुरक्षित रखना एक बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही है। मेहनतकश, नौकरी पेशा यहां तक की व्यापारियों के लिए भी बचत तो एक बहुत दूर की बात होती जा रही है, उनका दैनिक खर्चा भी पहले की भांति सही ढंग से पूरा नहीं हो पा रहा है। ऐसी विकट परिस्थितियों में लोगों को केंद्र व राज्य सरकारों के स्तर से महंगाई से राहत मिलने की बड़ी उम्मीद हैं, आम जनमानस चाहता हैं कि सरकार कम से कम दैनिक उपभोग की बेहद आवश्यक वस्तुओं के दामों में कमी करके जल्द से जल्द महंगाई से आम आदमी को राहत प्रदान करें। सरकार को समय रहते यह समझना होगा कि देश में कोरोना महामारी के प्रकोप को लंबें समय से झेल रही आम जनता महंगाई से अब बहुत ही ज्यादा परेशान हो गयी है, सभी को ध्यान होगा कि कोरोना काल में मोदी सरकार ने ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के अन्तर्गत 80 करोड़़ गरीब लोगों को अनाज उपलब्ध करवाने का दावा किया था, आज उन सभी लोगों के सामने महंगाई के चलते अपना व अपने परिजनों का पेट भरना एक बड़ी चुनौती है। कोरोना व महंगाई की दोहरी मार के चलते गरीब व मध्यमवर्गीय आम जनमानस के सामने अपने घर को चलाना एक बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। देश की जनता अब रोज-रोज तेजी से बढ़ती कमरतोड़ महंगाई से बेहद त्रस्त नज़र आने लगी है। 
“देश में धीरे-धीरे अब यह मानने वालें लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है कि हमारे देश के सत्ताधारी राजनेता, नीतिनिर्माता व सिस्टम महंगाई रोकने के नाम पर फाइलों में केवल खानापूर्ति करके सत्ता के महलों में बैठकर सत्तासुख का आनंद भोगने में मस्त हैं, उनकी नीतियां जनता को महंगाई के प्रकोप से राहत दिलाने में पूर्णतया विफल व प्रभावहीन साबित हो रही हैं।”
कोरोना काल के बाद देश में आर्थिक मंदी व सभी क्षेत्रों में बढ़ती महंगाई ने आम जनता के सामने ‘वह जीवनयापन कैसे करें’ की एक बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। महंगाई की मार के चलते इस बार त्योहारी सीजन में भी कोरोना काल की ही तरह बाजारों से रौनक गायब है, पिछ़ले कुछ वर्षों की तरह ही दीपावली त्योहार में भी इस बार व्यापार पिटता हुआ ही नज़र आ रहा है, जिससे व्यापारी बहुत चिंतित नज़र आ रहे हैं। अधिकांश लोगों की जेब खाली होने के चलते उनमें महत्वपूर्ण त्योहारों के प्रति भी उत्साह कम होता दिखाई दे रहा है। बेहद भयावह कोरोना महामारी की जबरदस्त मार से उभरने के लिए संघर्ष करते देश के आम जनमानस को डीजल-पेट्रोल की रोजाना तेजी से बढ़ती कीमतों के अन्य सभी वस्तुओं पर हो रहे प्रभाव ने महंगाई के चक्रव्यूह में जबरदस्त ढंग से फंसा दिया है। सीएनजी, पीएनजी व रसोई गैस सिलिंडर की बढ़ती कीमतों ने आम लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। उज्जवल योजना से घर-घर गैस सिलेंडर पहुंचाने का दावा करने वाली मोदी सरकार के सामने आज बड़ी चुनौती यह है कि वह किस प्रकार से 3 हजार से 10 हजार रुपये प्रतिमाह कमाने वालें परिवारों के गैस सिलेंडर भरवाएं, जिससे कि वह महंगाई के प्रकोप की वजह से पुनः लकड़ी के ईधन पर आश्रित ना हो पाये। खाद्य पदार्थ, खाद्य तेल की बढ़ती कीमतें सबके सामने हैं। खराब मौसम व अन्य विभिन्न प्रकार के कारकों के चलते फल-सब्जियों के दाम आसमान को छू रहे हैं, अपना घरेलू बजट ठीक रखने के चक्कर में फल, दाल व सब्जियां लोगों की थाली से तेजी से गायब होती जा रही हैं। महंगाई के चलते अब गरीब तबके की तो बात ही छोड़ दो, एक आम ठीक-ठाक मध्यमवर्गीय परिवार के सामने भी अपने घर को चलाना बेहद कठिन कार्य होता जा रहा है।
“जीवन जीने के लिए बेहद जरूरी दैनिक उपभोग की वस्तुओं व पेट भरने वाली रसोई के बढ़ते बजट ने आम व खास सभी वर्ग के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है, प्रत्येक व्यक्ति का घरेलू खर्चे का बजट पूरी तरह से गड़बड़ा गया है, लोग भविष्य में स्थित को नियंत्रित करने के लिए अब अपनी आय के स्रोत बढ़ाने के लिए चिंतित नज़र आने लगें हैं, लेकिन उनको सरकार के सहयोग के बिना इस गंभीर समस्या का कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा है।”
महंगाई के चलते आज यह स्थिति हो गयी है कि बेहद जोशोखरोश के साथ मनाये जाने वाला त्योहारी सीजन एकदम फीका जा रहा है। हर माह लाखों रुपये कमाने वालें परिवार भी सरकार की ओर से महंगाई से राहत मिलने की उम्मीद में आशा भरी दृष्टि से देख रहे हैं, क्योंकि अब उनके परिवार की सालाना बचत महंगाई के चलते दिनप्रतिदिन कम होती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ती हुई कमरतोड़ महंगाई ने बहुत सारे परिवारों का बजट बिगाड़कर रख दिया है, अब वह आय व व्यय में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं। आसमान छूती महंगाई को पर लगाने में रही-सही कसर पेट्रोल-डीजल के बढ़ती कीमतों ने पूरी कर दी है, जिसकी वजह से देश में माल भाड़े, रोजमर्रा के यात्री किराए में भारी बढ़ोत्तरी हो गयी है, लेकिन अब भी पेट्रोल शतक लगाने के बाद भी तेजी से सरपट दौड़ रहा है, डीजल चंद दिनों में शतक लगाने वाला है, सीएनजी के रेट भी निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं, इनके दामों में जिस तेजी के साथ आयेदिन बढ़ोतरी हो रही है, उससे हर सेक्टर की वस्तुओं का मूल्य बढ़ाने का भारी दवाब  बढ़ गया है। दाल चावल चीनी आटा तेल और फल-सब्जियों आदि रोजमर्रा की उपभोग की बेहद आवश्यक वस्तुओं के दामों पर निरंतर महंगाई का जबरदस्त साया मंडरा रहा है, पीएनजी का रेट प्रगति के पथ पर है, सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर भी तेजी के साथ हजार रुपये का होने को जल्द से जल्द बेताब है और सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि भविष्य में अभी महंगाई थमने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, हालात यह हैं कि घरेलू उपभोग की बेहद आवश्यक वस्तुओं के दाम भी अब कब बढ़ जाएं, इसका कोई व्यक्ति आकंलन नहीं लगा सकता है। जिसके चलते लोगों की रसोई का खर्चा भी हर माह तेजी के साथ बढ़ता ही जा रहा है और आय घटती जा रही है। सरकार को कमरतोड़ महंगाई की इस गंभीर समस्या के निदान के लिए अब जल्द से जल्द धरातल पर नज़र आने वाले ठोस प्रयास करने चाहिए, क्योंकि अब देश में वह समय आ गया है जब ‘अच्छे दिन आने वालें हैं’ का सपना देख रही आम जनता महंगाई से बेहद त्रस्त है, सत्ता पक्ष की आईटी सेल की मजबूत टीम के द्वारा अब महंगाई से ध्यान हटाने के लिए इसको देशभक्ति से जोड़ने से धरातल पर काम नहीं चल पा रहा है, सत्ता में काबिज हमारे सभी सम्मानित नेताओं को समय रहते यह ध्यान रखना होगा कि अब महंगाई के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने वाले लोगों को उनके व उनकी आईटीसेल की टीम के द्वारा देशद्रोही घोषित करवाना आसान नहीं रहा है, क्योंकि कमरतोड़ महंगाई से बेहद त्रस्त देश की आम जनता अब महंगाई पर बोलने वालें लोगों के साथ खड़ा होने लगी है, जो उनकी भविष्य की राजनीति के लिए एक अच्छा संकेत नहीं है। वहीं आम जनता का हितैषी बनने की बात करने वाले विपक्षी दलों को भी समय रहते यह आत्ममंथन करना चाहिए कि अगर उनकों भी आयेदिन के मोदी विरोध व जाति-धर्म की राजनीति करने से फुर्सत मिल गयी हो तो आखिर उनके राजनीतिक तरकश में जनहित व महंगाई के महत्वपूर्ण मुद्दे कभी शामिल हो पायेंगे या नहीं। खैर हमारे देश में राजनेताओं व राजनीति का काम निरंतर अपने दलों का स्वार्थ सिद्ध करते रहना है, लेकिन कम से कम अब तो सत्तापक्ष यानि हमारी सरकार को देश के आम जनमानस को कमरतोड़ महंगाई से जल्द से जल्द राहत देने के लिए प्रभावी कदम उठाकर ‘अच्छे दिन आने वालें हैं’ का सपना देख रही देश की भोलीभाली जनता को कुछ राहत प्रदान करनी चाहिए।।

विश्व को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करेगी ब्रिटेन और भारत की यह ग्रीन ग्रिड

यूके के प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन और भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त रूप सेCOP26 वर्ल्ड लीडर्स समिट में एक नई प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पहल की शुरुआत की, जिसे 80 से अधिक देशों द्वारा समर्थित किया गया था, और जिससे वैश्विक स्तर पर एनर्जी ट्रांज़िशन में नाटकीय रूप से परिवर्तन किया जा सके।
यूके और भारत के संयुक्त नेतृत्व में, “ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव – वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड” (GGI-OSOWOG) नामक नई पहल, महाद्वीपों, देशों और समुदायों में परस्पर बिजली ग्रिड के विकास और तैनाती में न सिर्फ़ तेजी लाएगी और सुधार करेगी, बल्कि मिनी-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड समाधानों के माध्यम से सबसे गरीब लोगों तक ऊर्जा भी सुनिश्चित करेगी।
यह ग्लासगो ब्रेकथ्रू नाम की एक साझेदारी के तहत अग्रणी पहलों में से एक है, जिसे क्लीन इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी इवेंट में भी लॉन्च किया गया है।यह साझेदारी एक नई संयुक्त योजना का हिस्सा है जो देशों और व्यवसायों को प्रदूषण वाले क्षेत्रों में हर साल नाटकीय रूप से पैमाने और गति के लिए अपने जलवायु कार्यों को समन्वय और मजबूत करेगा।  इसका उद्देश्य स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की तैनाती और वैश्विक स्तर पर लागत को कम करना भी है।

इस पहल की शुरुआत करते हुए, दोनों प्रधानमंत्रियों ने ‘वन सन डिक्लेरेशन’ का अनावरण किया, जिसमें मिनी-ग्रिड और ऑफ सहित महाद्वीपों, देशों और समुदायों में बिजली ग्रिड के अधिक से अधिक इंटरकनेक्शन के माध्यम से विश्व स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा की पूरी क्षमता का दोहन करने की एक साझा दृष्टि स्थापित की गई थी।  -ग्रिड समाधान यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी ऊर्जा तक पहुंच के बिना नहीं रह गया है।पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5C के भीतर सीमित करने के लिए, दुनिया को सौर और पवन ऊर्जा जैसी अक्षय ऊर्जा पर वैश्विक निर्भरता को बढ़ाते हुए, स्वच्छ ऊर्जा में संक्रमण की आवश्यकता होगी।  इस क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन वाले भविष्य के लिए संक्रमण के लिए एक बिजली के बुनियादी ढांचे को विकसित करने की आवश्यकता होगी जो परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा के अधिक से अधिक शेयरों का मुकाबला करने में सक्षम हो, जबकि बढ़ती बिजली मांगों को सुरक्षित, भरोसेमंद और किफायती रूप से पूरा कर सके।
GGI-OSOWOG सरकारों और व्यवसायों सहित ऊर्जा ग्रिड हितधारकों के वैश्विक गठबंधन को एक साथ लाकर, क्षेत्रों और महाद्वीपों में ऊर्जा ग्रिड के विस्तार में तेजी लाने और स्थायी ऊर्जा के लिए सार्वभौमिक पहुंच के लिए नींव बनाने के लिए ऐसा करने में मदद करेगा।  यह सुनिश्चित करेगा कि स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को साकार करने के लिए वैश्विक धक्का के हिस्से के रूप में, पूरी दुनिया के लिए नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित होने के लिए बुनियादी ढांचा मौजूद है।
1.5C को जीवित रखने का मतलब है कि 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को आधा करना होगा। इसे प्राप्त करने के लिए नवाचार और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों की तैनाती और वैश्विक स्तर पर एक नाटकीय तेज़ी की आवश्यकता होगी।  अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का हालिया विश्लेषण 2030 तक ग्रिड विस्तार और आधुनिकीकरण में निवेश को $260bn से $800bn सालाना करने के लिए तीन गुना करने का आह्वान करता है।
यह पहल ग्रिड विकास को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय और तकनीकी संसाधनों को जुटाने में मदद करेगी, और मौजूदा विशेषज्ञता और दुनिया भर में सर्वोत्तम अभ्यास को साझा करने को भी बढ़ावा देगी।  यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग सभी के लिए स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को तेज, सस्ता और आसान बनाने की कुंजी होगा।
भारत के प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने इस लॉन्च पर कहा:
“वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड एंड ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव एक ऐसा विचार है जिसका समय आ गया है।  अगर दुनिया को एक स्वच्छ और हरित भविष्य की ओर बढ़ना है, तो ये परस्पर जुड़े हुए अंतर्राष्ट्रीय ग्रिड महत्वपूर्ण समाधान होने जा रहे हैं।  मैं इसे लागू करने को यथार्थ के करीब लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और यूके सीओपी प्रेसीडेंसी को बधाई देता हूं।
वहीं ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने सन्दर्भ में कहा:
“ब्रिटेन बिजली क्षेत्र के भविष्य को बदलने और इस दशक के अंत तक हर जगह स्वच्छ और विश्वसनीय बिजली उपलब्ध कराने के लिए भारत में अपने दोस्तों के साथ हाथ से काम कर रहा है।
“यह शानदार है कि 80 से अधिक देशों ने हमारे नए लॉन्च किए गए ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव का समर्थन किया है, जिसके सहयोग से न केवल हमारे वैश्विक हरित भविष्य में अधिक वृद्धि, रोजगार और निवेश दिखाई देगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि कोई भी ऊर्जा तक पहुंच के बिना नहीं रह गया है।”
GGI-OSOWOG एक परिवर्तनकारी नया कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य अक्षय ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच को एक वास्तविकता बनाना है, यह सुनिश्चित करके कि सभी देशों के लिए 2030 तक अपनी ऊर्जा जरूरतों को कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिए स्वच्छ बिजली सबसे किफायती और विश्वसनीय विकल्प है। इससे मदद मिलेगी  हम सभी को पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लक्ष्य को जीवित रखने के साथ-साथ हरित निवेश को प्रोत्साहित करने और दुनिया भर में लाखों नौकरियों का समर्थन करने के लिए।

गाय सर्वोत्तम हितकारी पशु होने सहित मनुष्यों की पूजनीय देवता है

मनमोहन कुमार आर्य

      परमात्मा ने इस सृष्टि को जीवात्माओं को कर्म करने व सुखों के भोग के लिए बनाया है। जीवात्मा का लक्ष्य अपवर्ग होता है। अपवर्ग मोक्ष वा मुक्ति को कहते हैं। दुःखों की पूर्ण निवृत्ति ही मोक्ष कहलाती है। यह मोक्ष मनुष्य योनि में जीवात्मा द्वारा वेदाध्ययन द्वारा ज्ञान प्राप्त कर एवं उसके अनुरूप आचरण करने से प्राप्त होता है। सांख्य दर्शन में महर्षि कपिल ने मोक्ष का सूक्ष्मता से विवेचन किया है जिससे यह ज्ञात होता है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य वेद विहित सद्कर्मों अर्थात् ईश्वरोपासना द्वारा ईश्वर साक्षात्कार, अग्निहोत्र यज्ञ एवं परोपकार आदि को करके जन्म व मरण के बन्धन वा दुःखों से छूटना है, यही मोक्ष है। मनुष्य को जीवित रहने के लिए भूमि, अन्न व जल सहित गोदुग्ध व फलों आदि मुख्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। गोदुग्ध हमें गाय से मिलता है। दूध व घृत आदि वैसे तो अनेक पशु से प्राप्त होते है परन्तु देशी गाय के दूध के गुणों की तुलना अन्य किसी भी पशु से नहीं की जा सकती। गाय का दुग्ध मनुष्य के स्वास्थ्य, बल, बुद्धि, ज्ञान-प्राप्ति, दीर्घायु आदि के लिए सर्वोत्तम साधन व आहार है। मनुष्य का शिशु अपने जीवन के आरम्भ में अपनी माता के दुग्ध पर निर्भर रहता है। माता के बाद उसका आहार यदि अन्य कहीं से मिलता है तो वह गाय का दुग्ध ही होता है। गाय का दूध भी लगभग मां के दूध के समान गुणकारी व हितकर होता। भारत के ऋषि, मुनि, योगी व विद्वान गोपालन करते थे और गाय का दूध, दधि, छाछ व घृत आदि का सेवन करते थे। गोदुग्ध से घृत भी बनाते थे और उससे अग्निहोत्र यज्ञ कर वायु व जल आदि की शुद्धि करते थे। इन सब कार्यों से वह स्वस्थ, सुखी व दीर्घायु होते थे। ईश्वर प्रदत्त वेद के सूक्ष्म व सर्वोपयोगी ज्ञान को प्राप्त होकर सृष्टि के सभी रहस्यों यहां तक की ईश्वर का साक्षात्कार करने में भी सफल होते थे और मृत्यु होने पर मोक्ष या श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर सुखों से पूर्ण जीवन प्राप्त करते थे।

                गाय से हमें केवल दूध ही नहीं मिलता अपितु गाय माता नाना प्रकार से हमारी सेवा करती है और साथ ही कुछ महीनों व वर्षों के अन्तराल पर हमें पुनः बछड़ी व बछड़े देकर प्रसन्न व सन्तुष्ट करती है। बछड़ी कुछ वर्ष में ही गाय बन जाती है और हम उसके भी दुग्ध, गोबर, गोमूत्र, गोचर्म (मरने के बाद) को प्राप्त कर अपने जीवन मे सुख प्राप्त करते हैं। गोबर न केवल ईधन है जिससे विद्युत उत्पादन, गुणकारी खाद, घर की लिपाई आदि में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी प्रकार से गोमूत्र भी एक महौषधि है। इससे कैंसर जैसे रोगों का सफल उपचार होता है। नेत्र ज्योति को बनाये रखने नेत्र रोगों को दूर करने में भी यह रामबाण के समान औषध है। त्वचा के रोगों में भी गोमूत्र से लाभ होता है। आजकल पंतजलि आयुर्वेद द्वारा गोमूत्र को सस्ते मूल्य व आकर्षक पैकिंग में उपलब्ध कराया जा रहा है जिसे लाखों लोग अमृत समान इस औषध-द्रव का प्रतिदिन सेवन करते हैं। गोमूत्र किटाणु  नाशक होता है। इससे उदरस्थ कीड़े भी समाप्त हो जाते हैं। ऐसे और भी अनेक लाभ गोमूत्र से होते हैं। गाय के मर जाने पर उसका चर्म भी हमारे पैरों आदि की रक्षा करता है। गोचर्म के भी अनेक उपयोग हैं अतः हम जो-जो लाभ गो माता से लेते जाते हैं उस उससे हम गोमाता के ऋणी होते जाते हैं। हमारा भी कर्तव्य होता है कि हम भी गोमाता को उससे हमें मिलने वाले लाभों का प्रत्युपकार करें, उसका ऋण उतारें, उसको अच्छा चारा दें, उसकी खूब सेवा करें और उसके दुग्ध व गोमूत्र का पान करें जिससे हम स्वस्थ, सुखी, आनन्दित व दीर्घायु होकर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कर सकंे।

                गाय से हमें सबसे अधिक लाभ गोदुग्ध से ही होता है। जो मनुष्य गोदुग्ध का सेवन अधिक करता है उसको अधिक अन्न की आवश्यकता नहीं होती। इससे अन्न की बचत होती है और देश के करोड़ो भूखे व निर्धन लोगों को अपनी भूख की निवृत्ति में सहायता मिल सकती है। यह रहस्य की बात है कि देश में जितनी अधिक गौंवे होंगी देश में गोदुग्ध, गोघृत व अन्न उतना ही अधिक सस्ता होगा जिससे निर्धन व देश के भूखे रहने वाले लोगों को लाभ होगा। अनुमान से ज्ञात होता है कि देश की लगभग 40 प्रतिशत से अधिक जनता निर्धन एवं अन्न संकट से ग्रसित है। हमने भी अपने जीवन में निर्धनता और परिवारों में अन्न संकट देखा है। ऐसी स्थिति में यदि किसी निर्धन व्यक्ति के पास एक गाय है और आस-पास से उसे चारा मिल जाता है तो वह परिवार अन्न संकट सहित गम्भीर रोगों व मृत्यु का ग्रास बनने से बचाया जा सकता है।

      ऋषि दयानन्द ने गाय के दूध और अन्न के उत्पादन से संबंधित गणित के अनुसार गणना कर बताया है कि एक गाय के जन्म भर के दूघ मात्र से 25,740 पच्चीस हजार सात सौ चालीस लोगों का एक समय का भोजन होता है अर्थात् इतनी संख्या में लोगों की भूख से तृप्ति होती है। स्वामी जी ने एक गाय की एक पीढ़ी अर्थात् उसके जीवन भर के कुल बछड़ी व बछड़ों से दूघ मात्र से एक बार के भोजन से कितने लोग तृप्त हो सकते हैं, इसकी गणना कर बताया है कि 1,54,440 लोग तृप्त व सन्तुष्ट होते हैं। वह बताते हैं कि एक गाय से जन्म में औसत 6 बछड़े होते हैं। उनके द्वारा खेतों की जुताई से लगभग 4800 मन अन्न उत्पन्न होता है। इससे कुल 2,56,000 हजार मनुष्य का भोजन से निर्वाह एक समय में हो सकता है। यदि एक गाय की एक पीढ़ी से कुल दूघ व अन्न से तृप्त होने वाले मनुष्यों को मिला कर देखें तो कुल 4,10,440 चार लाख दस हजार चार सौ चालीस मनुष्यों का पालन एक बार के भोजन से होता है। वह यह भी बताते हैं कि यदि एक गाय से उसके जीवन में उत्पन्न औसत 6 गायों वा बछड़ियों से उत्पन्न दूध व बछड़ों-बैलों से अन्न की गणना की जाये तो असंख्य मनुष्यों का पालन हो सकता है। इसके विपरीत यदि एक गाय को मार कर खाया जाये तो उसके मांस से एक समय में केवल अस्सी मनुष्य ही पेट भर कर सन्तुष्ट हो सकते है। निष्कर्ष में ऋषि दयानन्द जी कहते हैं कि ‘देखो! तुच्छ लाभ के लिए लाखों प्राणियों को मार कर असंख्य मनुष्यों की हानि करना महापाप क्यों नहीं?’ गायों से इतने लाभ मिलने पर भी यदि कोई व्यक्ति व समूह गाय की हत्या करता व करवाता है और मांस खाता है व उसे प्रचारित व समर्थन आदि करता है तो वह बुद्धिमान कदापि नहीं कहा जा सकता। गाय सही अर्थों में देवता है जो न केवल हमें अपितु सृष्टि के आरम्भ से हमारे पूर्वजों का पालन करती आ रही है और प्रलय काल तक हमारी सन्तानों का भी पालन करती रहेगी। गाय से होने वाले इन लाभों के कारण निश्चय ही वह एक साधारण नहीं अपितु सबसे महत्वपूर्ण वा प्रमुख देवता है। हम गोमाता को नमन करते हैं। हमें गोमाता पृथिवी माता व अपनी जन्मदात्री माता के समान महत्वपूर्ण अनुभव होती है। वेद ने तो भूमि, गाय और वेद को माता कह कर उसका स्तुतिगान किया है।                 गोकरूणानिधि लघु पुस्तक की भूमिका में ऋषि दयानन्द जी के गोपालन व गोरक्षा के समर्थन में लिखे कुछ शब्द लिख कर हम इस लेख को विराम देते हैं। वह कहते हैं ‘सृष्टि में ऐसा कौन मनुष्य होगा जो सुख और दुःख को स्वयं न मानता हो? क्या ऐसा कोई भी मनुष्य है कि जिसके गले को काटे वा रक्षा करे, वह दुःख और सुख को अनुभव न करे? जब सबको लाभ और सुख ही में प्रसन्नता है, तब विना अपराध किसी प्राणी का प्राण वियोग करके अपना पोषण करना सत्पुरुषों के सामने निन्द्य (निन्दित) कर्म क्यों न होवे? सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर इस सृष्टि में मनुष्यों की आत्माओं में अपनी दया और न्याय को प्रकाशित करे कि जिससे ये सब दया और न्याययुक्त होकर सर्वदा सर्वोपकारक काम करें और स्वार्थपन से पक्षपातयुक्त होकर कृपापात्र गाय आदि पशुओं का विनाश न करें कि जिससे दुग्ध आदि पदार्थों और खेती आदि क्रिया की सिद्धि से युक्त होकर सब मनुष्य आनन्द में रहें।’ हम अनुरोध करते हैं कि पाठकों को गोरक्षा का महत्व जानने के लिए ऋषि दयानन्द जी की ‘गोकरुणानिधि’ तथा पं. प्रकाशवीर शास्त्री लिखित ‘गोहत्या राष्ट्रहत्या’ पुस्तकें पढ़नी चाहिये। गोरक्षा से देश की अर्थव्यवस्था भी सुदृण होती है। गोरक्षा व गोपालन आदि कार्यों से हम अपने अगले जन्म को सृष्टिकर्ता ईश्वर से उत्तम परिवेश में मनुष्य जन्म प्राप्त करने के अधिकारी बनते हैं।

जिन घड़ियों में हंस सकते हैं, उनमें रोये क्यों?

ललित गर्ग

जिन्दगी का एक लक्ष्य है- उद्देश्य के साथ जीना। सामाजिक स्वास्थ्य एवं आदर्श समाज व्यवस्था के लिए बहुत जरूरी होता है कत्र्तव्य-बोध और दायित्व-बोध। कत्र्तव्य और दायित्व की चेतना का जागरण जब होता है तभी व्यक्तिगत जीवन की आस्थाओं पर बेईमानी की परतें नहीं चढ़ पाती। सामाजिक, पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवनशैली के शुभ मुहूत्र्त पर हमारा मन उगती धूप ज्यूं ताजगीभरा होना चाहिए, क्योंकि अनुत्साही, भयाक्रांत, शंकालु, अधमरा मन संभावनाओं के नये क्षितिज उद्घाटित नहीं होने देता, समस्याओं से घिरा रहता है।
समस्याएं चाहे व्यक्तिगत जीवन से संबंधित हों, पारिवारिक जीवन से संबंधित हों या फिर आर्थिक हों या फिर सामाजिक जीवन की। इन प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष कर रहे व्यक्ति का यदि नकारात्मक चिंतन होगा तो वह भीतर ही भीतर टूटता रहेगा, नशे की लत का शिकार हो जाएगा और अपने जीवन को अपने ही हाथों बर्बाद कर देगा। जो व्यक्ति इन प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझ नहीं पाते वे आत्महत्या तक कर लेते हैं या परहत्या जैसा कृत्य भी कर बैठते हैं। कुछ व्यक्ति इन परिस्थितियों में असामान्य हो जाते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयं के जीवन को और अधिक जटिल बना देता है। लेखिका पैट होलिंगर पिकेट कहती हैं, ‘ये आपको तय करना है कि अपना समय कैसे बिताएंगे। वरना हम यूं ही व्यस्त बने रहते हैं और जीवन कहीं और घटता रह जाता है।
जीवन की बड़ी बाधा है खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने की होड़ एवं दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश। इससे हम कई बार खुद ही नीचे गिरते जाते हैं। वो करते हैं, जो असल में करना ही नहीं चाहते। नतीजा, सफलता मिलती भी है तो खुशी नहीं मिल पाती। खुद को बेहतर बनाना एक बात है, पर हर घड़ी खुद को साबित करने के लिए जूझते रहना खालीपन ही देता है। यह खालीपन का एहसास जीवन को बोझिल बना देता है। अकेलापन, उदासी और असंतुष्टि की भावनाएं कचोटती रहती हैं। मानो खुद के होने का एहसास, कोई इच्छा ही ना बची हो। तब छोटी-छोटी चीजों में छिपी खूबसूरती नजर ही नहीं आती। वियतनामी बौद्ध गुरु तिक न्यात हन्न् कहते हैं, ‘बहुत से लोग जिंदा हैं, पर जीवित होने के जादुई एहसास को कम ही छू पाते हैं।’ हम जितना भागते हैं, समस्याएं उतनी बड़ी होती जाती हैं। हम एक से भागते हैं, चार और पीछा करने लगती हैं। हम जितना समस्याओं से भागते हैं, उतना ही उनके सामने छोटे पड़ने लगते हैं। जबकि सच कुछ और ही होता है। लेखक बर्नार्ड विलियम्स कहते हैं, ‘ऐसी कोई रात या समस्या नहीं होती, जो सूरज को उगने से रोक दे या आशा को धूमिल कर दे।’
सामाजिक एवं व्यक्तिगत अनुशासन के लिये आखिर दंड और यंत्रणा से कब तक कार्य चलेगा? क्या पूरे जीवन-काल तक आदमी नियंत्रण में रहेगा? क्या यह भय निरंतर सबके सिर पर सवार ही रहेगा? भयभीत समाज सदा रोगग्रस्त रहता है, वह कभी स्वस्थ नहीं हो सकता। भय सबसे बड़ी बीमारी है। भय तब होता है जब दायित्व और कत्र्तव्य की चेतना नहीं जगती। जिस समाज में कत्र्तव्य और दायित्व की चेतना जाग जाती है उसे डरने की जरूरत नहीं होती।
यह मन का डर ही है कि हम प्रतिष्ठा एवं अपनी पहचान बनाने के लिये अनेक काम हाथ में ले लेते हैं, पर पूरा एक भी नहीं हो पाता। सारे काम आपस में ही उलझने लगते हैं। समझ नहीं आता कि क्या जरूरी है, क्या नहीं? और फिर काम करने की प्रेरणा ही नहीं बचती। लेखिका ए. एम. होम्स कहती हैं, ‘अपने कामों को आसान बनाएं। छोटे-छोटे कदम बढ़ाएं। एक छोटा काम पूरा करके, दूसरे काम को पूरा करें।’ जिन लोगों में सम्यक् दायित्व की चेतना एवं संतुलित सोच होती है, वे व्यक्ति अनेक अवरोधों के बावजूद ऊपर उठ जाते हैं। आज के साहित्य का एक शब्द है-‘भोगा हुआ यथार्थ’। हमें केवल कल्पना के जीवन में नहीं जीना। सामाजिक परिवेश में बहुत कल्पनाएं उभरती हैं। किन्तु, आप निश्चित मानिए कि कल्पना तब तक अर्थवान नहीं होती जब तक कि ‘भोगे हुए यथार्थ’ पर हम नहीं चल पाते। हमारा जीवन यथार्थ का होना चाहिए।
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी व्यक्ति सामान्य रूप से जीवनयापन कर सकता है। आवश्यकता है मानसिक संतुलन बनाए रखने की। सकारात्मक चिंतन वाला व्यक्ति इन्हीं परिस्थितियों में धैर्य, शांति और सद्भावना से समस्याओं को समाहित कर लेता है। समस्याओं के साथ संतुलन स्थापित करता हुआ ऐसा व्यक्ति जीवन को मधुरता से भर लेता है। सकारात्मक चिंतन के माध्यम से इच्छाशक्ति जागती है। तीव्र इच्छाशक्ति एवं संकल्प से ही व्यक्ति आगे बढ़ता है। रूमी कहते हैं, ‘अपने शब्दों को ऊंचा करें, आवाज को नहीं। फूल बारिश में खिलते हैं, तूफानों में नहीं।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच असंतुलन से हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर होता है। हम स्वभाव में आवेग, आवेश, क्रोध, ईष्र्या, द्वेष, घृणा और उदासीनता की वृद्धि होती है। एक के बाद एक कार्य बिगड़ सकते हैं और उस स्थिति में कोई सहायक भी नहीं होता। असहाय बना हुआ व्यक्ति बद से बदतर स्थिति में चला जाता है। आज की युवा पीढ़ी अपने कैरियर को संवारने के लिए संघर्षरत है। इस संघर्ष में जब उन्हें सफलता मिलती है तो वह अपने आपको आनंदित महसूस करती है। उसमें नई ऊर्जा, नई स्फूर्ति का संचार होने लगता है जबकि देखने में आता है कि असफल होने पर युवा मानस जल्दी ही संयम, धैर्य, अनुशासन और विवेक खो देता है। लाइफ कोच एंडी सेटोविट्ज कहती हैं, ‘अनुशासन का मतलब है खुद से पूछना कि मेरे इस समय का सबसे अच्छा इस्तेमाल क्या है? और फिर उसमें जुट जाना। हर दिन थोड़ा आगे बढ़ना ही हमें बड़ी सफलता की ओर ले जाता है।’
प्रतिकूलता और उदासीनता के क्षणों में इन पंक्तियों को बार-बार दोहराये-‘‘कल का दिन किसने देखा, आज के दिन को खोयें क्यों? जिन घड़ियों में हंस सकते हैं उन घड़ियों में रोये क्यों?’’ मुझे सफल होना है, मैं अपनी प्रतिकूलताओं को दूर करने का पुनः प्रयास करूंगा। प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में सोचते रहने से समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। इसे संभव बनाया जा सकता है -किंतु आवश्यकता है मानसिक संतुलन बनाए रखने की, तीव्र इच्छाशक्ति, सकारात्मक और स्वस्थ चिंतन को बनाएं रखने की। मानसिक संतुलन तभी संभव है जब विचारों की उलझन को कम किया जाए, निर्वैचारिकता की स्थिति विकसित की जाए। जब विचारों की निरंतरता कम होगी व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में समायोजन कर सकता है।

हे हिरण्यमयी मां लक्ष्मी

—विनय कुमार विनायक
हे हिरण्यमयी मां लक्ष्मी हिरण सरीखी
चपला चंचला चंचलता छोड़कर
स्वर्ण चांदी बनकर उतरो भारत भू पर!

कि गोधन रत्न आभूषण रुप धरो
विचरो भारत भूमि पर सत्वर निरंतर
इतनी सम्पत्ति संपदा दो विपदा हरो!

कि हर भारत जन हो सम्पन्न शुद्धाचरण
सबके लोभ मोह लालच मत्सर दुर्गुण हरो
भ्रष्टाचार का करो शमन श्री वृद्धि करो!

मां श्री लक्ष्मी नारायणी नमोस्तुते
अग्नि लौ सी कान्तिमयी मां लक्ष्मी
इस धरा पर उतरो शस्य श्यामला करो!

धन धान्य फसल बनकर
घर आंगन खेत खलिहान खमार भरो
काली अमावस्या की काल रात्रि को
कोटि कोटि प्रज्वलित दीप मालिका होकर
चिर उज्जवल निर्मल कंचन वरण करो!

हे मां स्वर्ग से उतरो पग धरो
अम्बर से धरती पर स्वर्ण किरण
औषधि बनकर उतरो हर्षित करो
समुद्र कन्या समुद्र की निधि लेकर
मेघ बनकर भारत भूमि पर बरसो!

हे मां वर दो भारत को धन्य धन्य कर दो

—विनय कुमार विनायक
हे हिरण्यमयी मां लक्ष्मी हिरण सरीखी
चपला चंचला मां चंचलता को छोड़कर
स्वर्ण-चांदी बनकर उतरो भारत भू पर!

कि गोधन रत्न आभूषण रुप धारण कर
विचरो मां भारत भूमि पर सत्वर निरंतर
मां इतनी सम्पत्ति संपदा दो विपदा हरो!

कि हर भारत जन हो सम्पन्न शुद्धाचरण
सबके लोभ मोह लालच मत्सर दुर्गुण हरो
मां भ्रष्टाचार का करो शमन श्रीवृद्धि करो!

मातुश्री महालक्ष्मी नारायणी नमोस्तुते
अग्नि शिखा सी कान्तिमयी सागरसुते
इस धरा पर उतरो शस्य श्यामला करो!

धन धान्य फल फूल फसल बनकर
घर आंगन खेत खलिहान कोठार भरो
काली अमावस की काल रात्रि को हरो!

कोटि कोटि प्रज्वलित दीप मालिका सी
उज्जवल निर्मल कंचन रुप वरण करो!
हे मां वैकुंठ से उतरो धरा पर पग धरो!

अम्बर से धरती पर स्वर्ण किरण बनकर
उतरो समृद्धि औषधि लेकर हर्षित करो
अन्न-धन-गोधन से मानव का घर भर दो!

समुद्र कन्या क्षीरसागर विहारिणी हरिप्रिया
रत्नाकर की निधि लेकर मेघ बनकर बरसो
हे मां वर दो भारत को धन्य धन्य कर दो!