लेख हिंदी हैं, हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा!

हिंदी हैं, हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा!

(14 सितंबर हिंदी राजभाषा दिवस पर विशेष लेख) वेदव्यास    इस बार भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा और हिंदी भाषी राज्यों में…

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राजनीति अंतिम पंक्ति में मोदी, क्या इसे माना जाए कार्यकर्ता केंद्रित सियासत का नया सौपान!

अंतिम पंक्ति में मोदी, क्या इसे माना जाए कार्यकर्ता केंद्रित सियासत का नया सौपान!

पीएम ने लास्ट लाईन में बैठकर संदेश दिया कि कार्यकर्ता ही पार्टी के लिए होता है नींव का पत्थर . . .(लिमटी खरे)प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी…

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मनोरंजन नेपाल का ऑनलाइन लॉकडाउन: आज़ादी पर सवाल

नेपाल का ऑनलाइन लॉकडाउन: आज़ादी पर सवाल

सोशल मीडिया पर नेपाल का बड़ा ताला: लोगों की आवाज़ पर रोक या नियमों की ज़रूरत? नेपाल सरकार ने 26 बड़े सोशल मीडिया और संदेश…

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आर्थिकी नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि  राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक 

नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि  राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक 

कमलेश पांडेय मौजूदा नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थ…

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पर्यावरण अरब सागर और हिन्द महासागर के बादलों की भिड़ंत

अरब सागर और हिन्द महासागर के बादलों की भिड़ंत

जयसिंह रावतजलवायु परिवर्तन और ऋतुचक्र में गड़बड़ी के कितने भयावह परिणाम निकल सकते हैं, इसका उदाहरण इस साल का मानसून है जो सितम्बर में भी…

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राजनीति निराशा से आशा की ओरः आत्महत्या के खिलाफ जंग

निराशा से आशा की ओरः आत्महत्या के खिलाफ जंग

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस – 10 सितम्बर, 2025 – ललित गर्ग – दुनिया में आत्महत्या आज एक गहरी एवं विडम्बनापूर्ण वैश्विक चुनौती बन चुकी है।…

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लेख अकेलेपन से आत्महत्या तक: मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने का समय

अकेलेपन से आत्महत्या तक: मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने का समय

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) पर विशेषजीवन की रक्षा में संवाद ही सबसे बड़ा हथियार– योगेश कुमार गोयलविश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से…

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राजनीति राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान धर्म और राजनीति से ऊपर होना चाहिए

राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान धर्म और राजनीति से ऊपर होना चाहिए

अशोक चक्र और तिरंगा हमारी आत्मा के प्रतीक हैं, इन्हें राजनीति का मोहरा न बनाया जाए भारत की पहचान उसकी सांस्कृतिक विविधता, सहिष्णुता और राष्ट्रीय…

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लेख सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है पंजाब की बाढ़

सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है पंजाब की बाढ़

राजेश कुमार पासी इस समय हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, राजस्थान और पंजाब-हरियाणा विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहे हैं । देखा जाए तो भारी बारिश ने पूरे उत्तर-भारत में तबाही मचाई हुई है । टीवी मीडिया और सोशल मीडिया में आने वाले भयानक दृश्य देखकर पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है । हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में  कई बार बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं जिसके कारण सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है । इसके अलावा इन पहाड़ी प्रदेशों में सड़कों और पुलों की जबरदस्त तबाही हुई है । इन प्रदेशों में जो बुनियादी ढांचा बर्बाद हुआ है, उसे दोबारा बनाने में काफी समय लगने वाला है । हरियाणा में भी बाढ़ ने भयानक तबाही मचाई है लेकिन पंजाब की बर्बादी परेशान करने वाली है । पंजाब की लगभग तीन लाख एकड़ भूमि बाढ़ के पानी में डूब चुकी है जिसके कारण फसलों की पूरी बर्बादी हो गई है । इसके अलावा कृषि भूमि में नदियों की रेत इस तरह से भर गई है कि दोबारा खेती करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी । पंजाब के लगभग 2000 गांव बाढ़ में डूबने से भारी तबाही हुई है. मरे हुए मवेशियों की लाशें तैरती नजर आ रही हैं । इसके अलावा सैकड़ों मवेशी बाढ़ के पानी में बहकर पाकिस्तान जा चुके हैं । बाढ़ के कारण हजारों लोगों की अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है । हिमालय से निकलने वाली जीवनदायिनी नदियों ने अपनी ताकत का अहसास करवाया है । पंजाब को बाढ़ से बचाने के लिए जो बांध बनाए गए थे, वो अपना काम करने में नाकाम रहे हैं । इसके विपरीत इन बांधो ने भी इस समस्या को बढ़ाया है । इस पर विचार करने की जरूरत है कि जिन बांधों को बाढ़ से बचाव के लिए बनाया गया था, क्यों वो अपना काम नहीं कर पाए । पंजाब को पांच नदियों का प्रदेश कहा जाता है. इन नदियों के विकराल रूप ने न केवल भारतीय पंजाब बल्कि पाकिस्तान पंजाब को सहमा दिया है  । पंजाब में हुए विनाश को देखते हुए केंद्र सरकार से जनता दखल देने की मांग कर रही है । इस समय पंजाब के बाढ़ पीड़ितों को भोजन, दवाइयों और वित्तीय मदद की जरूरत है । पंजाब में क्रिकेटर, सिंगर, खिलाड़ी, अभिनेता और अन्य सेलिब्रिटी मदद के लिए आगे आए हैं जिससे राहत कार्य चल रहे हैं ।                    9 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी भी पंजाब का दौरा कर रहे हैं जबकि केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह पहले ही पंजाब का दौरा कर चुके हैं । उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के दौरे के बाद पंजाब के लिए केन्द्र सरकार द्वारा कोई राहत पैकेज घोषित किया जाए । केन्द्र सरकार की  समस्या यह है कि भारत के बड़े हिस्से में बाढ़ से तबाही हुई है और सभी उससे राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं । वैसे देखा जाए तो पंजाब की समस्या ज्यादा गंभीर दिखाई दे रही है इसलिए केन्द्र सरकार को इस पर ध्यान देना होगा । वैसे हमारे देश में हर मुद्दे पर राजनीति होती है, इसलिए ऐसे मामले सुलझाने में समस्या आती है । पंजाब में विपक्ष की सरकार है इसलिए केन्द्र सरकार से राहत पैकेज के नाम पर इतनी राशि मांगी जा रही है, जिससे राहत पैकेज के बाद राजनीति की जा सके । देखा जाए तो ऐसी विभीषिका से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना चाहिए लेकिन भारत में राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि देशहित से ऊपर दलहित हो गया है । इस विभीषिका के लिए केन्द्र और राज्य की सरकारों को दलगत हितों से ऊपर उठकर काम करने की जरूरत है ।  हमारे देश की विडम्बना है कि नौकरशाही और नेता बाढ़ जैसी आपदा को अपने लिए एक मौका मानते हैं । कौन नहीं जानता है कि भारत में ऐसी आपदाओं के राहत कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार होता है । राहत कार्यों का प्रचार तो जबरदस्त होता है लेकिन जनता का फायदा बहुत कम होता है । बाढ़ के समय जनता की शिकायत सामने आ रही है कि राज्य सरकार की मशीनरी दिखाई नहीं दे रही है । यही कारण है कि पंजाब की मदद के लिए सेलिब्रिटी सामने आए हैं । केन्द्र सरकार की आपदा एजेंसी एनडीआरएफ ने बहुत काम किया है और इसके अलावा सेना ने भी भारी मदद की है । वास्तविक समस्या बाढ़ का पानी उतरने के बाद सामने आने वाली है । पानी के जमाव के कारण बीमारियां फैलने का खतरा है । बाढ़ के कारण पंजाब के बुनियादी ढांचे को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना आसान होने वाला नहीं है । वास्तव में पंजाब की आर्थिक स्थिति पहले ही खराब चल रही है, ऐसे में बाढ़ के कारण किसानों और पशुपालकों को हुए नुकसान की भरपाई करना राज्य सरकार के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है । पहले ही पंजाब भारी कर्ज से दबा हुआ है, इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को और कर्ज लेना पड़ सकता है ।                 पंजाब में जो तबाही हुई है, उसे प्राकृतिक आपदा कहा जा सकता है लेकिन यह पूरा सच नहीं है । इस आपदा के लिए नौकरशाही, प्रशासन और जनता जिम्मेदार हैं । पिछले कई वर्षों से जीवन पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखाई दे रहा है । अत्याधिक गर्मी, वर्षा और ठंड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं । ग्लोबल तापमान बढ़ता जा रहा है । कई दिनों तक होने वाली बारिश कुछ ही घंटो में हो जाती है जिसके कारण पानी निकलना मुश्किल हो जाता है । पहाड़ो में बादल फटना आम बात हो गई है । बेशक पंजाब को पांच नदियों का प्रदेश कहा जाता है लेकिन ऐसी बाढ़ का इतिहास बहुत कम है । पंजाब को बाढ़ से बचाने के लिए बांधों का निर्माण किया गया था लेकिन उनके प्रबंधन में हुई गलती का परिणाम भी पंजाब को भुगतना पड़ रहा है । इसके लिए पंजाब की राजनीति भी जिम्मेदार है । मानसून से पहले बांधों को खाली किया जाता है ताकि बारिश के अतिरिक्त पानी को रोककर उन्हें दोबारा भरा जा सके । इसके लिए बांध प्रबंधन भारतीय मौसम विभाग, यूरोपीय मौसम विभाग और ग्लोबल वेदर एजेंसी से डाटा लेता है जिसके अनुसार वो यह तय करता है कि कितना पानी बांध से निकालना है । इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश की संभावना जताई गई थी लेकिन बांध इतने खाली नहीं किए गए कि पंजाब को बाढ़ से बचाया जा सके ।  बांध से पानी छोड़ने के मामले में राजनीति भी देखने को मिली थी । यह जांच विषय है कि समय पर बांध से ज्यादा पानी नहीं छोड़ा गया जिसके कारण उसमें पानी धारण करने की क्षमता कम हो गई । बाढ़ के प्राकृतिक कारणों पर हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन मानवीय कारणों से निपटने की कोशिश होनी चाहिए । नदियों, नालों, और तालाबों पर अतिक्रमण आम बात हो गई है । नदियों के किनारे  बड़ी-बड़ी कलोनियां बन गई हैं और नालों को पाटकर उनपर मकान बना दिए गए हैं । गुड़गांव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां नालों को पाटकर पूरा शहर बसा दिया गया है । यही कारण है कि हर बार गुड़गांव पानी में डूब जाता है क्योंकि पानी के रास्ते में भवन, सड़के और फ्लाईओवर खड़े हुए हैं । पंजाब में भी रियल स्टेट सेक्टर ने नालों और तालाबों को पाटकर पानी निकलने के रास्ते बंद कर दिए हैं । इसके अलावा तालाबों को पाटकर खेती शुरू कर दी गई है जिसके कारण जल संग्रहण की क्षमता खत्म हो गई है और कृषि भूमि पानी से डूब रही है ।                 थोड़ी सी बरसात के बाद ही जलजमाव बड़ी समस्या बनती जा रही है जिसके कारण सड़कों पर जाम लग जाता है । सीवरेज की गंदगी नालों के जरिये नदियों में जा रही है, जिसके कारण नदियों में गाद जमा हो रही है । गाद के कारण नदियों की जल संग्रहण क्षमता बहुत कम होती जा रही है । सतलुज नदी की जल ग्रहण क्षमता तीन लाख क्यूसेक की है लेकिन गाद के कारण यह क्षमता घटकर सत्तर हजार रह गई है । अब यह तय होना चाहिए कि नदियों से गाद निकालना किसकी जिम्मेदारी थी । अगर यह जिम्मेदारी सही तरह से निभाई गई होती तो नदियां इस तरह नहीं उफनती और पंजाब इस तरह नहीं डूबता । क्या देश की जनता नहीं जानती कि गाद हटाने का काम सिर्फ एक खानापूरी बन गया है । कुछ दिनों बाद जनता फिर अपनी जिंदगी में मस्त हो जाएगी और व्यवस्था अपनी चाल से चलती रहेगी । बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने के लिए राजनीति से ऊपर उठकर केन्द्र और राज्य की सरकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है । बाढ़ आने पर अल्पकालिक उपायों से कुछ होने वाला नहीं है बल्कि भविष्य को देखकर दीर्घकालिक योजनाएं बनाने की जरूरत है । बांधो के प्रबंधन में राजनीति का दखल नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे इंजीनियर अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें क्या करना है । वास्तव में राजनीति के कारण ही बांधों को इतना खाली नहीं किया गया कि वो सही तरीके से अपना काम नहीं कर सके । नदियों से गाद निकालना प्रशासन का काम है और इसके लिए उचित धनराशि उपलब्ध करवाई जानी चाहिए । सरकार और समाज को तालाबों को जीवित करने की जरूरत है ताकि वो अतिरिक्त पानी को जमा करके ऐसी समस्या से बचा सके । नालों की सफाई का ध्यान रखने की जरूरत है ताकि वो समय पर शहरों से पानी को बाहर निकाल सके । जलवायु परिवर्तन एक सच्चाई है और हमें इसकी कीमत चुकानी है । जनता को अपनी जिम्मेदारी समझने की भी जरूरत है ।  राजेश कुमार पासी

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सिनेमा ‘यशराज’ की अगली फिल्‍म में एक्‍ट्रेस अनीत पड्डा

‘यशराज’ की अगली फिल्‍म में एक्‍ट्रेस अनीत पड्डा

सुभाष शिरढोनकर फिल्‍म ‘सैयारा’ (2025) की कामयाबी से रातों रात स्‍टार बनी एक्‍ट्रेस अनीत पड्डा अब ‘बैंड बाजा बारात’ (2010) फेम डायरेक्टर मनीष शर्मा की…

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लेख जनसंख्या असंतुलन : खतरनाक स्थिति

जनसंख्या असंतुलन : खतरनाक स्थिति

डॉ. बालमुकुंद पांडे  जनसंख्या देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं क्योंकि यही राज्य का तत्व श्रम शक्ति, प्रतिभा एवं विकास की नींव होती है। जब…

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लेख प्लास्टिक किसी को न भाये – उसका कचरा सबका दर्द भगाये

प्लास्टिक किसी को न भाये – उसका कचरा सबका दर्द भगाये

चंद्र मोहन बाजार से खरीदारी करके घर लौटते सभी के हाथों मे छोटे बड़े प्लास्टिक के थैलों को हर कोई आसानी से देखता है. प्यास…

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