Home Blog Page 538

उत्तर प्रदेश की सियासत के चाणक्य हैं भाजपा के ‘सुनील बंसल’

संदीप त्यागी
देश में भाजपा के चाणक्य नरेंद्र मोदी व अमित शाह के बाद उत्तर प्रदेश में सुनील बंसल को भाजपा का चाणक्य माना जाता है, बंसल अपने सरल स्वभाव मिलनसार व्यक्तित्व की वजह से देश भर में भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच बेहद लोकप्रिय हो गये हैं। राजस्थान के कोटपुतली गांव में 20 सितंबर 1969 में जन्मे सुनील बंसल ने सक्रिय राजनीति की शुरुआत राजस्थान यूनिवर्सिटी में महामंत्री का चुनाव में विजयी होकर की थी। मात्र 20 साल की उम्र में छात्र राजनीति की चुनावी जंग में उतरने वाले सुनील बंसल ने अपने जीवन के पहले ही चुनाव में अपने कुशल चुनावी मैनेजमेंट से जीत हासिल करके बड़े-बड़े राजनेताओं का ध्यान आकर्षित करने का कार्य किया था। छात्र जीवन में मिली इस एक जीत ने ही सुनील बंसल को संगठन एवं चुनावी प्रबंधन को सिखा दिया था। 1 साल बाद वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी जब राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा लेकर निकले थे तो उस समय तक सुनील बंसल आरएसएस के प्रचारक बन चुके थे। साल 1990 से संघ में काम करते हुए सुनील बंसल पूरी तरह से उसी में रम गए थे, बीच में उन्होंने बहुत सारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। वर्ष 2010 में उन्होंने ‘यूथ अगेंस्ट करप्शन’ के राष्ट्रीय संयोजक के तौर पर जिम्मेदारी का निर्वहन किया था। लेकिन बंसल उस वक्त देश की राजनीति में सुर्खियों में आये थे, जब वर्ष 2014 में भाजपा में उस समय के महासचिव व उत्तर प्रदेश के प्रभारी अमित शाह के सहयोगी के तौर पर उन्होंने उत्तर प्रदेश में संगठन का काम करना शुरू किया था। जिस वक्त तत्कालीन पार्टी नेतृत्व के द्वारा अमित शाह को यूपी का प्रभारी बनाया गया था, तो उन्होंने यूपी में बूथ मैनेजमेंट का जिम्मा सुनील बंसल को सौंपा था। उस वक्त सुनील बंसल ने अपनी नेतृत्‍व क्षमता राजनीतिक कौशल और एक बेहद कुशल संगठन शिल्‍पी होने का परिचय दिया था और यूपी में भाजपा को 80 में से 73 सीटों पर जीत दिलवाने का कार्य किया था। 
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचंड विजय मिलने के बाद उत्तर प्रदेश में आये परिणामों के आधार पर भारतीय राजनीति के चाणक्य अमित शाह ने सुनील बंसल की कुशल संगठनकर्ता वाली क्षमता को भांपकर उन्हें वर्ष 2014 में ही उत्तर प्रदेश का संगठन मंत्री बनाया था। उस समय नया दायित्व मिलते ही बंसल लोकसभा चुनावों के जीत के जश्न में आराम ना करके आगामी यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी करने व संगठन को चुस्तदुरुस्त करने में रातदिन एक करके जुट गए थे। बाद उन्होंने उत्‍तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सपा सरकार को चुनावों में हरा कर भाजपा की सरकार बनाने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया था। केंद्रीय स्तर पर अमित शाह रणनीति बनाते और उसे उत्तर प्रदेश में धरातल पर उतारने का काम बाखूबी सुनील बंसल संगठन के माध्यम से कुशलतापूर्वक करते थे। उस समय यूपी विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए सुनील बंसल ने यूपी में जातीय समीकरणों को नजदीक से समझकर और भाजपा के मुख्य वोटर स्वर्ण समाज को जोड़े रखते हुए ही, प्रदेश में बूथ लेवल तक दलित, ओबीसी और महिलाओं को सीधे पार्टी की गतिविधियों से जोड़ने का कार्य किया था। पूरे प्रदेश में सुनील बंसल ने विस्‍तारक नियुक्‍त किए और उनको बाकायदा प्रशिक्षण दिया था। इन सभी विस्‍तारकों का कार्य लोगों के बीच जाकर संगठन का विस्‍तार और प्रचार-प्रसार करना और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों को आम जनमानस को समझाना था। उनकी इसी रणनीति के चलते ही यूपी में भाजपा की 2 करोड़ से ज्यादा सदस्यता हुई थी और वर्ष 2017 में प्रचंड बहुमत से भाजपा की राज्य में सरकार बनी। सुनील बंसल की कार्यशैली पर अमित शाह को इतना अधिक भरोसा था कि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में उन्हें भेजा गया और उस रणनीति का नतीजा यह हुआ कि महाराष्ट्र में पहली बार भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हाल के माह में बंसल को बंगाल के विधानसभा चुनावों में बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी थी, वहां पर भी उन्होंने अपनी रणनीति व कार्यशैली से भाजपा को जबरदस्त सफलता दिलाने का कार्य किया था और एकबार फिर अपनी चुनावी रणनीति को सही साबित किया।
वैसे आपको बता दें कि सुनील बंसल का पूरा परिवार आरएसएस से जुड़ा रहा है, बंसल ने जयपुर में स्कूलिंग की है, उस दौरान वो हॉस्टल में रहा करते थे और तभी से उन्हें राजनीति से विशेष लगाव था, स्कूल के दिनों से ही आरएसएस की शाखाओं में जाने वाले बंसल बहुत जल्द ही शाखा के मुख्य शिक्षक बन गये थे। 51 साल के बंसल 1986 में एबीवीपी से जुड़े थे और फिर 1989 में घरबार छोड़कर आरएसएस में पूर्णकालिक तौर पर शामिल हो गए थे। बंसल संघ कार्यालय में रहकर 1993 से 1996 तक उदयपुर में संघ का काम देखा करते थे, इसके बाद वह 2007 में राजस्थान भाजपा के संगठन मंत्री बने, क्षेत्रीय संगठन मंत्री, राष्ट्र सह-संग़ठन मंत्री और राष्ट्रीय मंत्री जैसे पदों से होते हुए वर्ष 2014 में उन्हें भाजपा में भेजा गया था। उत्तर प्रदेश में जिम्मेदारी मिलते ही बंसल ने पार्टी के लिए कमज़ोर इलाकों और उनमें सुधार के लिए सुझाव की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी। सुनील बंसल ने चुनावों के मद्देनजर लखनऊ में वार रूम में एक कॉल सेंटर भी बनाया था जो कि 24 घंटे काम करता था और किसी भी विधानसभा में इलाके के बूथ कार्यकर्ता तक को सन्देश तुरंत इस कॉल सेंटर के माध्यम से पहुंचाया जाता था और काम पूरा होने तक कॉल सेंटर ही रिपोर्ट बना कर सुनील बंसल को देता था, सुनील बंसल ने अपने इसी माइक्रो मैनेजमेंट के जरिये यूपी में हर स्तर के चुनावों में भाजपा को बड़ी जीत दिलाने का कार्य लगातार किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वर्तमान में गृहमंत्री अमित शाह के निर्देशन में पहले वर्ष 2014 का लोकसभा फिर वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी कारगर रणनीति से जीत हासिल करने के बाद से सुनील बंसल को उत्तर प्रदेश की सियासत में चाणक्य कहा जाता है। उत्तर प्रदेश की सियासत के रग-रग से वाफिक हो चुके सुनील बंसल अब वर्ष 2022 के आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को जीत दिलाने के लिए रणनीति बनाने में व्यस्त हैं और आज सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समय भी विपक्ष के पास सुनील बंसल की चुनावी रणनीतियों का कोई तोड़ नहीं है।

हिमालय की विरासत पर प्रकृति का कहर

  • डॉ. ललित कुमार

         उत्तर भारत के हिमालय पर्वतों पर प्राकृतिक आपदाओं का कहर लगातार जारी है। बारिश के इस मौसम में प्राकृतिक आपदाओं का इतने बड़े पैमाने पर आना मौसम वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। लगातार एक के बाद के एक प्राकृतिक आपदाओं में भूस्खलन, बादल फटने, मूसलाधार बारिश और बाढ़ के खतरों ने हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड की जनता के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। लेकिन इन्हीं आपदाओं का रौद्र रूप मैदानी इलाकों में भारी तबाही लेकर आता है, जिस कारण ज्यादा से ज्यादा जानमाल का नुकसान होता है। हाल ही में हिमाचल के किन्नौर जिले में भूस्खलन के कारण चट्टान खिसकने से नीचे आते बड़े-बड़े पत्थरों की तेज रफ्तार ने जिस तरह से लोहे के ब्रिज को दो भागों में तोड़ा, उसे देखकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो गए। हिमालय के ऊपरी हिस्से में प्राकृतिक आपदा की बढ़ती हलचलें कहीं न कहीं सोचने को मजबूर कर देने वाली है कि आखिर एकाएक ऐसी घटनाओं का होना हमारी पृथ्वी के लिए कितना सही है और पर्यावरण को लेकर हम कितने सजग है? ये कुछ ऐसे सवाल है, जिन्हें आम आदमी से लेकर खास व्यक्ति को सोचने की जरूरत है। 

पूरी दुनिया प्राकृतिक आपदा से होने वाले खतरों को नजरअंदाज करके विकास के नाम पर जो कर रही है, वह किस हद तक सही है और कितना गलत यह सोचने वाली बात है। लेकिन क्या ये सब प्रकृति के अनुरूप है? इसलिए हमें पर्यावरण संरक्षण के बारे में गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है। लगभग पिछले दो सदी के प्राकृतिक आपदा के  ऐतिहासिक पन्नों को उलटने की कोशिश करें, तो पाएंगे कि यूरोप और एशिया सहित तमाम देश औद्योगिकरण के नाम पर विकसित और विकासशील देशों की सूची में शामिल होने की होड़ लगाए हुए है। वह प्रकृति का दोहन करने के साथ साथ जंगलों को काटकर ग्रामीण क्षेत्र को शहरीकरण के भट्टी की आग में झोंकने का काम कर रहें हैं। साथ ही बड़े पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाकर उनके बीचोंबीच रेल मार्ग और सुरंगों के जरिए हाईवे बनाये जा रहे हैं। इतना जरूर है कि पर्यावरण और विकास एक सिक्के के दो पहलू हैं, लेकिन पर्यावरण के पैमानों को नजरअंदाज करके विकास के नाम पर हमारी सरकारें पहाड़ों पर औद्योगीकरण को बढ़ावा देने का काम कर रही है, जोकि एक अच्छा संकेत नहीं है। हिमालय की प्राकृतिक सौंदर्यता पृथ्वी का दिल होती है। जहां किसी भी तरह की कोई हलचल नहीं होनी चाहिए, लेकिन हम आंखों पर पट्टी बांधे हिमालय के सीने पर वार करके प्राकृतिक आपदा को बुलावा दे रहे हैं। इसलिए हम आज ऐसी आपदाओं का सामना कर रहे हैं। पिछले महीने कनाडा में “हीट वेव” ने 10 हज़ार साल का रिकॉर्ड तोड़ा, जहां बेहताशा गर्मी के कारण लाखों लोग घर से बेघर हो गए। एक ओर चीन में भारी तबाही मचाने वाली बाढ़ आ रही है, तो कहीं यूरोप में बाढ़ का विकराल रूप देखने को मिल रहा है। साथ ही ऊपर से कोरोना का कहर और प्रकृतिक आपदा का बढ़ता प्रभाव आम जनमानस को खतरे में डाल रहा है। कंक्रीट के महलों में बैठे सत्ताधारी लोग और उद्योगपतियों को ये बातें समझ में क्यों नहीं आ रही है कि इन सबके लिए वे खुद जिम्मेवार है। इस तरह की घटनाएं पिछले 50 से 100 सालों में पहले कभी नहीं देखी गयी। अमेरिका के कई हिस्सों में सूखा पड़ रहा है और जंगलों में खुद-ब-खुद आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे पर्यावरण के साथ- साथ ओजोन परत को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है।

पिछले एक दशक में भारत में भी ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का लगातार बढ़ता प्रकोप सोचनीय विषय हो सकता है, जहां भारत के उत्तरी भाग हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड से भूस्खलन और बाढ़ की खबरें लगातार आती रहती है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा का कहर अभी भी लोगों के जेहन में जिंदा है, जिन्होंने प्राकृतिक आपदा को मीडिया के जरिए देखा होगा, वे आज भी बेचैन हो उठते होंगे। उत्तराखंड के चमोली, पिथौरागढ़ और जोशीमठ जिलों सहित अन्य पहाड़ी क्षेत्रों से बादल फटने की घटनाएं सामने आती है, जो हमारे लिए एक चेतावनी भर है, ताकि हम जल्दी से संभल जाए और पहाड़ी जंगलों का दोहन न  करें। अगर हम आज भी नहीं संंभले, तो हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य जरूर संकट में पड़ेगा। जिस तरह से जलवायु परिवर्तन में एकाएक बदलाव हो रहे हैं, उससे साफ है कि आने वाला समय प्राकृतिक आपदाओं से भरा होगा। इसलिए हमारे पास एक ही पृथ्वी है, जिसे हमें रहने योग्य बनाना है। सत्ता में बैठी सरकारें हिमालय की विरासत पर जिस तरह से प्रहार कर रही हैं। आने वाले समय में हमारी पीढ़ी को ही उसका भुगतान करना पड़ेगा। हमारी सरकारें चाहे वह केंद्र या राज्य सरकार ही क्यों न हो। वे अभी भी इसी भ्रम में जी रही है कि जीडीपी ग्रोथ के जरिए ही देश का विकास तय होता है। विदेशी निवेश के कारण जितने बड़े-बड़े प्रोजेक्ट हमारे देश में आएंगे। हम उतना ही विकास करेंगे और सरकार विकास के नाम पर जंगली वनों और खेती की जमीन का अधिग्रहण करके विकास की दौड़ में आगे निकल जाएगी। यह सरकार की एक बड़ी भूल होगी। सरकार उपजाऊ भूमि के बीचोंबीच हाईवे मार्ग निकालकर सीधे उद्योगपतियों को फायदा पहुंचा रही है, जिन लाखों पेड़ों को काटकर खेतों के बीच से हाईवे बनाए जा रहे हैं क्या कभी सरकार ने सोचा है कि जिन पेड़ों को काटा जाता है, उनसे कितना ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है। अगर सरकार उसी तरह के पेड़ों को हाईवे के दोनों तरफ लगवा 

दें ताकि मिट्टी का कटान भी कम हो और सड़क धंसने का खतरा भी कम हो जाए। जिससे चलते राहगीरों को शुद्ध हवा और छांव भी मिले, लेकिन सरकार ऐसा नहीं करती। हाईवे के मध्य भाग में पेड़ पौधों के नाम पर जो फुलवारी लगाई जाती है, उससे लोग खुश तो होते हैं। लेकिन इन फुलवारी से ऑक्सीजन का उत्सर्जन न के बराबर होता है। देश में जितने भी बड़े हाईवे मार्ग अभी तक बने हैं या बनाये जा रहे है। कहीं भी उसी तरह के पेड़ पौधों का वृक्षारोपण आज तक नहीं किया गया ताकि पेड़ों की अच्छी छांव और उत्सर्जित ऑक्सीजन का लाभ आसपास के ग्रामीणों और राहगीरों को मिल सके। मैंने अब तक देशभर के जितने भी नेशनल हाईवे पर यात्राएं की है, वहां कहीं भी बड़े पेड़ पौधे मुझे नहीं दिखे। सरकार को इस ओर ध्यान देने की भी बहुत जरूरत है तभी पर्यावरण संरक्षण को बचाया जा सकता है। साथ ही हमें वन्यजीवों और वनस्पतियों के संरक्षण की दिशा में भी कदम उठाने की जरूरत है। चाहे वह कोई भी प्रजाति, प्राणी या वनस्पति ही क्यों ना हो?

हिमालय: छोटी हलचल से बड़ी बर्बादी

इसी साल फरवरी 2021 के पहले सप्ताह में उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के कारण ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट पर काम करने वाले कई लोग इस हादसे की चपेट में आए। प्राकृतिक व मानव निर्मित आपदाओं को लेकर यह इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है। इसके बाद भी यहां बड़े स्तर पर पावर प्रोजेक्ट निर्माण कार्य बदस्तूर जारी है, जो लगातार पहाड़ों को कमजोर कर रहे है।भूगर्भशास्त्री और फिजिकल रिसर्च लैब अहमदाबाद के रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल का कहना है कि हिमालय सबसे नया पर्वत होने के नाते, यहां जो कुछ भी छोटी बड़ी हलचलें होती हैं, उसका परिणाम हमें तुरंत देखने को मिलता है। यहां की नदियों पर बनने वाले पावर प्रोजेक्ट और सड़क निर्माण कार्य जिस तेजी से किए जा रहे है, उससे पहाड़ों की स्थितियां और भी नाजुक होती जा रही है। जिसके कारण प्राकृतिक हलचलें एक बड़ी तबाही का न्योता देती है। वर्ष 2020 में काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) ने पर्वतीय क्षेत्र की करीब 800 किलोमीटर लंबी सीमा पर एक रिपोर्ट तैयार की। जिसमें बताया गया कि भारत-पाकिस्तान-अफगानिस्तान और तजाकिस्तान तक फैली हिमालय क्षेत्र को दुनिया भर में बढ़ रहे तापमान से एक बड़ा खतरा होने वाला है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया की 1970 से लेकर अभी तक हिमालय के 15 फ़ीसदी ग्लेशियर पिघल चुके हैं। जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के खतरे लगातार बढ़ रहे हैं उससे आने वाले कुछ सालों में ग्लेशियर का 70 से 90 फ़ीसदी हिस्सा पिघल चुका होगा। पिघले ग्लेशियर गंगाा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी 10 प्रमुख नदियों को अपनी चपेट में लेंगे और नदियोंं के किनारे बसे करोड़ोंं लोग इससे प्रभावित होंगे। ग्लेशियर टूटने, बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगी। दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जिन स्तरों पर काम किया जा रहा है। उनमें हमें कामयाबी नहीं मिल पा रही है। इन्हीं कारणों को सरकारें और अधिकारिक एजेंसियां भी समझने को यह तैयार नहीं है कि हम इस समय कितनी भीषण प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे हैं। सरकार अभी भी इस गलतफहमी में है कि हम पहले विकास कर ले, उसके बाद प्रकृति संरक्षण, जैव विविधता, नदियों, समुद्र और जल-जंगल पर काम करेंगे। यह भ्रम जब तक नहीं टूटेगा तब तक यह अंधेरे में तीर मारने जैसा होगा। इसलिए हम यह स्वीकार नहींं कर पा रहे है और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में हमारी जो भी कोशिशें है वह अभी तक नाकाफ़ी है। 

मुंशी प्रेम चंद और उनके उपन्यास व कहानियाँ

      ,आज महान उपन्यासकर व कहानीकार मुंशी प्रेम चंद जी का जन्म दिन है। वे अपने समय के महान उपन्यास कार थे। उन्होंने उस समय जो देखा वह लिखा। महान कथाकार और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने  अपने समय के अनेक विषयों पर अपनी बेबाक लेखनी चलायी. कालजयी पात्रों, चरित्रों, कहानियों और उपन्यासों का सृजन किया. भारत की गुलामी, सामंती शोषण, गैरबराबरी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, बेमेल विवाह, छूआछात, कृषि समस्या,, किसान संकट, मजदूरों की समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किये और एक बेहतर इंसान और बेहतर समाज बनाने का आह्वान किया और सपना देखा और जीवन पर्यंत इसके लिए पुरजोर संघर्ष किया. उन्होंने 300 कहानियां और 15 से ज्यादा उपन्यास लिखे, नाटक लिखे, कविताएं लिखी और यह सब उन्होंने समाज को और मनुष्य को जगाने के लिए किया।     प्रेमचंद “कलम का सिपाही” बने, हमारे मनुष्यत्व को जगाने और जाग्रित करने के लिए ऐसे सकारात्मक चरित्रों का निर्माण करने पर जोर दिया जो वासनाओं के पंजों में न फंसे, बल्कि उनका दमन करें, और विजयी सेनापतियों की तरह दुश्मनों का संहार करते हुए विजयनाद करते हुऐ निकलें. ऐसे ही चरित्रों का हमारे ऊपर सबसे अधिक प्रभाव पडता है.       साहित्यकारों के बारे में वे लिखते हैं कि” साहित्यकार का लक्ष्य केवल मेहफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नही है,,,, उसका दर्जा इतना न गिराइये, वह देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई भी नही है, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाते हुए चलने वाली सच्चाई है.” वे कहते हैं कि साहित्य उस रचना को कहते हैं जिसमें कोई सच्चाई प्रकट की गई हो.      प्रेमचंद हर प्रकार की लूट खसोट, शोषण अन्याय भेदभाव और गैरबराबरी, जुल्मोसितम का खात्मा यानि समाज में आमूलचूल परिवर्तन चाहते थे. कर्मभूमि में वे कहते हैं कि” इंकलाब की जरूरत है पूरे इंकलाब की. ” उन्होंने अपनी रचनाओं में गरीबों, महिलाओं और शोषण के शिकार लोगों को जबान दी, वाणी दी, बोलना सिखाया, जुल्म का विरोध करने का हौंसला प्रदान किया.      अपनी रचनाओं में उन्होंने औरतों और मजदूरों को विद्रोही बनाया, उन्हें विद्रोही चरित्र प्रदान किया. उन्हें दब्बू नही लडाकू बनाया, उन्हें संघर्ष करना सिखाया. उनके अनुसार औरत की समस्या समाज की समस्याओं से निकली है, अतः जब तक समाज व्यवस्था नही सुधरेगी, औरतों की समस्याऐं भी नही सुलझ सकती हैं .     प्रेमचंद कहते हैं कि पक्षपाती लोग कभी स्वराज्य नही ला सकते, वे स्वराज के योग्य नही हैं. हिंदू मुस्लिम एकता और एकजुटता व सौहार्द के बारे में वे कहते हैं कि भारत में हिंदू और मुसलमान एक ही नाव में सवार हैं, डूबेंगे तो दोनों साथ डूबेंगे और पार लगेंगे तो दोनों पार लगेंगे. देश और समाज को बांटने वाली साम्प्रदायिक ताकतें भारतीय नही ,विदेशी हैं.        साम्प्रदायिकता के बारे में वे कहते हैं कि हम तो साम्प्रदायिकता को एक कोढ समझते हैं. हिंदू मुस्लिम एकता को वे स्वराज्य का दर्जा देते हैं .वे कहते हैं कि हम पूंजीपतियों का नही, गरीबों, कास्तकारों और मजदूरों का स्वराज्य चाहते हैं. वे कहते हैं कि स्वराज की लडाई और कोई नही ,स्वयं जनता को खुद लडनी पडेगी.         लेखक के बारे में वे लिखते हैं कि लेखक चारदीवारियों का बंदी नही, पूरी दुनिया उसकी वर्कशाप है, अपनी समस्त रचनाओं में वे लगातार समता और मानवतावाद की वकालत करते हैं, वे कहते हैं कि कला जगाने का माध्यम है, सिर्फ सजाने का नही. वे कहते हैं कि साहित्य का महान लक्ष्य है कि वह उत्थान करे, उदय के लिए प्रेरित करे. जो व्यक्ति अपने को जनता के संघर्षों से जोडता है, वही श्रेष्ठ साहित्य की रचना कर सकता है.     प्रेमचंद शोषण, अन्याय भेदभाव और गैरबराबरी तथा तमाम तरह के अत्याचारों ,बुराईयों और जुल्मोसितम से घृणा करने की बात करते हैं और कहते हैं कि इन से जितनी नफरत होगी, उतने ही उत्कृष्ट साहित्य का सृजन होगा. वे लिखते हैं कि अछूतों की असली समस्या आर्थिक है और उसे सुलझाये बिना अछूत समस्या का समाधान नही हो सकता. आज भी उनके तर्कों में वही दमखम दिखाई देता है.        वे किसानों और मजदूरों का साम्राज्य चाहते थे. यह तथ्य आज भी उतना ही सत्य है क्योंकि किसानों और मजदूरों के राज्य और सरकार व सत्ता के बिना उनका कल्याण संभव नही दिख रहा है, इसी कारण वे तमाम तरह की समस्याओं,,,,, लाभकारी मूल्य न मिलना, किसानों की बदहाली और आत्महत्या का कोई समाधान आजादी के सत्तर सालों में नही निकल पाया है.           आज यदि प्रेमचंद होते तो वे साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार,, समाज में बढती जा रही मक्कारियों पर करारी चोट करते. समाज में फैलायी जा रही धर्मांधताओं और अविवेकशीलता व अवैग्यानिकता और श्रध्दांधताओं के परखचे उडाते. गुमराह बुध्दिजीवियों को लताडते, गौ-रक्षकों, लवजिहाद, पलायन, और जुमलेबाजियों पर करारा प्रहार करते और समता, समानता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, आजादी, सच्चे गणतंत्र समाजवाद, किसानों मजदूरों के राज्य, वैज्ञानिक संस्कृति, साम्प्रदायिक सौहार्द और तार्किकता और विवेक के साम्राज्य के चैम्पियन लेखक और ध्वजवाहक होते.

उधम सिंह ने उठाई थी अत्याचारियों के खिलाफ आव़ाज, दुनियाँ को भारतीय वीरता और दृढ़ता का दिया संदेश

31 जुलाई को भारत मां के वीर सपूत उधम सिंह की पुण्यतिथि मनाई जाती है, जिन्होंने बड़े ही बहादुरी से दुश्मन को उसी के घर में घुसकर मारा और जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लिया।  सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आजादी के इतिहास में एक महान क्रांतिकारी के रूप में दर्ज किया गया है । उधम सिंह “ग़दर” पार्टी के थे और भारत में पंजाब के पूर्व उपराज्यपाल माइकल ओ डायर की हत्या को लेकर भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में उनका नाम दर्ज हैं । उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर में हुआ था, तब इनका नाम शेर सिंह रखा गया था । कहा जाता है कि साल 1933 में उन्होंने पासपोर्ट बनाने के लिए ‘उधम सिंह’ नाम रखा था । हालांकि कच्ची उम्र में ही उधम सिंह के सर से माँ-बाप का साया उठ गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण सेंट्रल खालसा अनाथालय, पुतलीघर में हुआ । कई इतिहासकार ऐसा भी मानते हैं कि अनाथालय में शामिल होने के बाद उनका नाम उधम सिंह रखा गया था ।  

उधम सिंह को सन् 1940 में फांसी की सजा सुनाई गयी थी, माना जाता है कि उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को ड्वायर की हत्या 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए की थी । जिसके बाद उधम सिंह पर मुकदमा चलाया गया और ड्वायर की हत्या के लिए उधम सिंह को 1940 में दोषी ठहराया गया और उन्हें फांसी दे दी गई। दरअसल 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था । उस दौरान उधम सिंह वहां मौजूद थे और उन्होंने अपनी आंखों से डायर की करतूत देखी थी, जिनमें हजारों लोगों (क्रांतिकारियों) की मौत हुई थी । वे उन हजारों भारतीयों की हत्या के गवाह थे, जो जनरल डायर के आदेश पर गोलियों से भुन दिए गये थे । उस क्रूर नज़ारे के बाद उधम सिंह पूर्ण रूप से आक्रोशित हो चुके थे और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली । इसके बाद वो देश के क्रांतिकारियों के साथ आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए ।

सरदार उधम सिंह जलियावाला बाग़ नरसंहार का बदला लेने के लिए तैयारी करने लगे थे, वे अपने सभी साथियों और क्रांतिकारियों से मदद लेते रहे और उनके मदद से कुछ पैसे इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए। इसके बाद उन्होंने विदेश यात्रा कर क्रांति के लिए पर्याप्त धन इकठ्ठा किया लेकिन इस दौरान आज़ादी की लड़ाई में उनके कई सारे क्रांतिकारी साथी शहीद हो चुके थे । ऐसे में उनके लिए आंदोलन चलाना दिन-प्रतिदिन मुश्किल हो रहा था लेकिन उधम सिंह ने हार नही मानी और अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहते हुए लगातार मेहनत करते रहे। एक लम्बे संघर्ष और समय के बाद उधम सिंह जनरल दायर का सामना करने के लिए तैयार थे लेकिन उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले जनरल डायर की बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी थी । जनरल डायर की मौत सन् 1927 में ब्रेन हेमरेज और कई अन्य बीमारियों से हुई थी।

 जनरल डायर की मौत के बाद उधम सिंह के अंदर धधकता हुआ आग शांत नही हुआ था, ऐसे में उधम सिंह के आक्रोश का निशाना जलियावाला बाग़ नरसंहार के वक़्त पंजाब के गवर्नर रहे माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर बने । दरअसल माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर ने जलियावाला बाग़ नरसंहार को उचित ठहराया था, वहीं सरदार उधम सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार से आक्रोशित थे, ऐसे में उधम सिंह का निशाना अब ड्वायर था ।

  13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी, वहां माइकल ओ’ ड्वायर भी स्पीकर्स में से एक था । ऐसे में उधम सिंह के पास एक अच्छा मौक़ा था जब वह अपने अन्दर उठ रही ज्वाला को शांत कर सकते थे और अपने साथियों के क्रूर ह्त्या का बदला ले सकें | उधम सिंह उस दिन काक्सटन हॉल पहुंच गए ।

उधम सिंह बहुत ही चालाकी से एक किताब में अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हॉल में पहुंचे थे और सही मौके का इंतज़ार करने लगे, क्योंकि वे आज किसी भी कीमत पर यह मौक़ा अपने हाथ से गवाना नहीं चाहते थे । बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ’ ड्वायर को निशाना बनाया । उधम सिंह के बन्दूक से निकली हुई दो गोलियां सीधे ड्वायर को जा लगी और मौके पर ही ड्वायर की मौत हो गई । उधम सिंह ने वहां से भागने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की और अरेस्ट हो गए । इस प्रकार उधम सिंह ने अपना प्रण पूरा किया और जलियावाला बाग़ नरसंहार का बदला लेते हुए दुनिया को भारतीय वीरता और दृढ़ता का संदेश दिया ।

माना जाता है कि अपने मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए, उधम सिंह 42 दिनों की भूख हड़ताल पर चले गए, फिर बाद में उन्हें जबरन खाना खिलाया गया । इसके बाद उधम सिंह पर मुकदमा चलाया गया और 4 जून 1940 को उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया । 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह उधम सिंह भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में अमर हो गए । अंग्रेजों को उनके घर में घुसकर मारने का जो काम सरदार उधम सिंह ने किया था, लोगों ने उसकी जमकर सराहना की और वह क्रांतिकारियों के लिए एक मिशाल बन गए । उस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उधम सिंह की तारीफ करते हुए कहा कि माइकल ओ’ ड्वायर की हत्या का अफसोस तो है, पर ये बेहद जरूरी भी था ।इस घटना ने देश के अंदर क्रांतिकारियों को एक नई ऊर्जा दी है और आन्दोलान में तेजी आई है । ब्रिटेन ने उधम सिंह के अवशेष 1974 में भारत को सौंपा । उधम सिंह के अवशेष अमृतसर के जलियांवाला बाग में संरक्षित हैं। उधम सिंह को शहीद-ए-आजम (महान शहीद) की उपाधि दी गई। वहीं उधम सिंह के हथियार, एक चाकू, एक डायरी और शूटिंग से एक गोली ब्लैक म्यूजियम, स्कॉटलैंड यार्ड में रखी गई है।

उधम सिंह, भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे, क्योंकि अधम सिंह क्रांतिकारी भगत सिंह के विचारों और उनके काम से बेहद प्रभावित थे । उधम सिंह को देशभक्ति गाने गाना बहुत अच्छा लगता था । साथ ही वे राम प्रसाद बिस्मिल के भी फैन थे ।  यदि इतिहास के पन्नों को खंगाले तो हमें इस बात का भी जिक्र मिलता है कि उधम सिंह ने जलियांवाला बाग नरसंहार के दिन ही वहां की मिट्टी को हाथ में लेते हुए ठान लिया था कि इस इस क्रूरता और अत्याचार का बदला लेना है। मिलते-जुलते नाम के कारण बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि उधम सिंह ने जनरल डायर को मारा। लेकिन ऐसा नहीं था इतिहासकारों का एक वर्ग यह भी मानता है कि ड्वायर की हत्या के पीछे उधम सिंह का मकसद जलियांवाला बाग का बदला लेना नहीं बल्कि ब्रिटिश सरकार को एक कड़ा संदेश देना और भारत में क्रांति भड़काना था। हालांकि उधम सिंह ने एक क्रांतिकारी के रूप में क्रूर शासकों को एक बड़ा सन्देश दिया था और दुनिया में भारतीय वीरता का परचम लहराया था । इस कारण आज भी वह इतिहास के पन्नो के साथ साथ लोगों के दिलों में क्रांति की आग बनकर ज़िंदा हैं ।

मेडिकल में पिछड़ों को आरक्षण

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
सरकार ने मेडिकल की पढ़ाई में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की है। यह आरक्षण एमबीबीएस, एमडी, एमएस, डिप्लोमा, बीडीएस और एमडीएस आदि सभी कक्षाओं में मिलेगा। आरक्षण का यह प्रावधान सरकारी मेडिकल काॅलेजों पर लागू होगा। इस आरक्षण के फलस्वरुप स्नातक सीटों पर 1500 और स्नात्तकोत्तर सीटों पर 2500 सीटों का लाभ अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलेगा। सरकार का कहना है कि इस नई व्यवस्था से सामान्य वर्ग के छात्रों का कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि एमबीबीएस की 2014 में 54 हजार सीटें थीं, वे 2020 में बढ़कर 84000 हो गई हैं और एमडी की सीटें 30 हजार से बढ़कर 54000 हो गई हैं। पिछले सात वर्षों में 179 नए मेडिकल काॅलेज खुले हैं। सरकार का यह कदम उसे राजनीतिक फायदा जरुर पहुंचाएगा, क्योंकि उत्तरप्रदेश के चुनाव सिर पर है और वहां पिछड़ों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये अलग बात है कि अनुसूचितों और पिछड़ों के लिए जितनी सीटें नौकरियों और शिक्षा-संस्थाओं में आरक्षित की जाती हैं, वे ही पूरी नहीं भर पाती हैं। नौकरियों में योग्यता के मानदंडों को शिथिल करके जाति या किसी भी बहाने से आरक्षण देना देश के लिए हानिकर है। वह तो तुरंत समाप्त होना ही चाहिए लेकिन शिक्षा और चिकित्सा में आरक्षण देना और ये दोनों चीजें आरक्षितों को मुफ्त उपलब्ध करना बेहद जरुरी है। आजकल स्कूलों और अस्पतालों में जैसी खुली लूटपाट मची हुई है, वह कैसे रुकेगी?  यह आरक्षण 70-80 प्रतिशत तक भी चला जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन इसका आधार जाति या मजहब बिल्कुल नहीं होना चाहिए। इसका एकमात्र आधार जरुरत याने गरीबी होना चाहिए। पिछड़ा तो पिछड़ा है, उसकी जाति चाहे जो भी हो।  मेडिकल की पढ़ाई में गरीबों को 10 प्रतिशत की जगह 70-80 प्रतिशत आरक्षण मिले तो हम सभी जातियों, सभी धर्मों और सभी भारतीय नागरिकों को उचित और विशेष अवसर दे सकेंगे। सैकड़ों वर्षों से अन्याय के शिकार हो रहे हर नागरिक को विशेष अवसर अवश्य मिलना चाहिए लेकिन विशेष का उचित होना भी अत्यंत जरुरी है। जो अनुसूचित और पिछड़े लोग करोड़पति हैं या मंत्री, मुख्यमंत्री, डाॅक्टर, प्रोफेसर या उद्योगपति रहे हैं, उनके बच्चों को विशेष अवसर देना तो इसका मजाक बनाना है। लेकिन देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी में इतना दम नहीं है कि वह इस कुप्रथा का विरोध करे। हर पार्टी थोक वोट के लालच में फंसी रहती है। इसीलिए जातिवाद का विरोध करेनवाली भाजपा और संघ के प्रधानमंत्री को भी अपने नए मंत्रिमंडल के सदस्यों का जातिवादी परिचय कराना पड़ गया। भारत की राजनीति के शुद्धिकरण का पहला कदम यही है कि जाति और मजहब के नाम पर चल रहा थोक वोटों का सिलसिला बंद हो। 

क्या आप तीन अनादि पदार्थों को जानते हैं?

-मनमोहन कुमार आर्य
हम संसार में जन्म लेकर आंखों से अपने सम्मुख विचित्र संसार को देखते हैं तो इसकी सुन्दरता एवं विविध पदार्थों को देखकर उन पर मुग्ध हो जाते हैं। यह संसार किससे, कब व कैसे बना? ऐसे प्रश्न बुद्धिमान व कुछ ज्ञान रखने वाले मनुष्य के मन में उपस्थित होते हैं। इसका प्रायः यही उत्तर मिलता है कि इसकी रचना परमात्मा ने अपनी अनन्त शक्ति व सामथ्र्य से की है। फिर प्रश्न उठते हैं कि वह परमात्मा कहां है, कैसा है, उसने इस संसार को क्यों बनाया है? यह संसार किसके उपयोग एवं उपभोग के लिये बनाया गया है। बुद्धि से विचार करने पर यह विश्वास नहीं होता कि कोई ऐसी सत्ता भी हो सकती है जो इस विशाल संसार को बना सकती है जिसका न आरम्भ है और न अनन्त। परमात्मा ने इस विशाल संसार को बनाया है, हमारी स्थिति यह है कि हम इस संसार को न तो पूरा देख ही सकते हैं और न इसको जान ही सकते हैं। ऐसे विशाल व अनन्त परिमाण वाले संसार को ईश्वर ने कब व कैसे बनाया होगा? यह जानने की उत्सुकता और अधिक बढ़ जाती है। इन प्रश्नों के उत्तर मत-मतान्तरों के ग्रन्थों में सुलभ नहीं होते। इससे उन ग्रन्थों की अपूर्णता सिद्ध होती है। मत-मतान्तरों के ग्रन्थों में अनुमानित व अविद्यायुक्त बातें मिलती हैं जिससे ज्ञान व विज्ञान के अध्येता नास्तिक अर्थात् ईश्वर में विश्वास न रखने वाले बन जाते हैं। उन लोगों की पहुंच वेद एवं वैदिक साहित्य तक नहीं होती और न उन्हें उम्मीद होती है कि इस सृष्टि का सत्य-सत्य ज्ञान वेद और वैदिक साहित्य में हो भी सकता है। वेद एवं वैदिक साहित्य के संस्कृत में होने तथा अंग्रेजी व विदेशी भाषाओं में न होने के कारण भी विदेशियों का ध्यान वेदों व वैदिक साहित्य की ओर नहीं जाता। हम उसी साहित्य से लाभ उठा सकते जिस भाषा में रचित साहित्य की भाषा का हमें ज्ञान होता है। सृष्टि के रहस्यों से जुडे़ सभी प्रश्नों का युक्तियुक्त उत्तर हमें वेद एवं वैदिक साहित्य में प्राप्त होता है। ऋषि दयानन्द सरस्वती ने भी अपने वेदों के गम्भीर अध्ययन, योग एवं उपासना आदि की उपलब्धियों के द्वारा वेद में वर्णित ईश्वर, जीवात्मा व सृष्टि सहित इस संसार से जुड़े़ प्रायः सभी असम्भव से प्रश्नों के उत्तरों को जाना था। इससे सम्बन्धित विचार व युक्तिसंगत कुछ उत्तरों को हम इस लेख में प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं।

वैदिक सिद्धान्त है कि संसार में तीन पदार्थ ईश्वर, जीव तथा प्रकृति की अनादि सत्ता है। अनादि का अर्थ है जिसका आरम्भ नहीं है। आरम्भ उसका नहीं होता है जो आरम्भ से भी पहले से विद्यमान हो। इसे संस्कृत के अनादि शब्द में बहुत ही उत्तमता से कहा गया है। यह ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीनों सत्तायें स्वयंभू सत्तायें हैं। स्वयंभू सत्ता से हमारा अभिप्राय इतना है कि इनको उत्पन्न करने वाली अन्य कोई चेतन व जड़ सत्ता नहीं है। ईश्वर की ही बात करें तो यह एक अनादि अर्थात् जगत में अनादि काल से मौजूद सत्ता है। यह न तो अपने आप उत्पन्न कही जा सकती है और न ही इसको उत्पन्न करने वाला कोई अन्य ईश्वर व इसके माता-पिता आदि कोई हैं। ऐसी ही अन्य दो सत्तायें जीवात्मा एवं प्रकृति भी हैं। ईश्वर संख्या की दृष्टि से एक सत्ता है जबकि जीवात्मायें संख्या की दृष्टि से अनन्त हैं जिसे ज्ञानी से ज्ञानी मनुष्य भी जीवात्माओं की संख्या की गणना कर जान नहीं सकते। ईश्वर के ज्ञान में जीवात्माओं की संख्या गण्य हैं। उसे प्रत्येक जीवात्मा का ज्ञान है व वह सबके प्रति अपने स्वनिर्धारित कर्तव्यों का पालन करता है जैसा कि उसने हमारे प्रति किया व कर रहा है। प्रकृति के परिमाण पर विचार करें तो यह भी अनन्त परिणाम से युक्त सत्ता है। 

ईश्वर इस प्रकृति से ही इस सृष्टि वा कार्य जगत् की रचना करते हैं। प्रकृति को सृष्टि का उपादान कारण कहा जाता है। उपादान कारण वह होता है जिस पदार्थ से कोई वस्तु बनती है। यह उपादान कारण भौतिक व जड़ पदार्थ ही होता है। ईश्वर व आत्मा में प्रकृति के समान विकार नहीं होता। प्रकृति से ईश्वर महतत्व, अहंकार, पांच तन्मात्राओं, पंच स्थूल भूत, सूक्ष्म शरीर के अवयवों ज्ञान एवं कर्म इन्द्रियों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आादि को बनाता है। हमारा स्थूल शरीर हमारे सूक्ष्म शरीर का विकसित रूप कहा जा सकता है। हम जो संसार देखते हैं वह प्रकृति तत्व व सत्ता की विकृतियां हैं जिसमें अपौरुषेय विकृतियां वा रचनायें परमात्मा ने की हैं। अतः ईश्वर, जीव तथा प्रकृति अनादि, नित्य, अमर, अनन्त, नाशरहित सत्तायें हैं यह हमें ज्ञात होना चाहिये। 

अनादि तीन सत्ताओं के जानने के बाद, यह सृष्टि परमात्मा ने कब, क्यों, कैसे व किसके लिये रची, इसके वैदिक साहित्य वा सत्यार्थप्रकाश के समाधानों को प्रस्तुत करते हैं। परमात्मा एक सर्वज्ञ सत्ता है। उसे अनादि काल से प्रकृति से सृष्टि को बनाने, पालन करने व संहार करने का विज्ञान विदित है। यह सृष्टि प्रवाह से अनादि है। इसका अर्थ है कि इस सृष्टि से पूर्व प्रलय थी, उससे पूर्व सृष्टि और उससे पूर्व प्रलय व सृष्टियां थीं। किसी सृष्टि को प्रथम सृष्टि नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे पूर्व भी प्रलय व सृष्टि का अस्तित्व था। हमारी इस सृष्टि के अनुरूप ही ईश्वर इससे पूर्व अनन्त बार ऐसी सृष्टियां बना चुका है और आगे भी बनाता रहेगा। इस कार्य में कभी बाधा व अवरोध उत्पन्न नहीं हो सकता क्योंकि यह कार्य ईश्वरीय कार्य है जो सदैव ईश्वरीय नियमों पर आधारित होकर चलता रहता है। किसी जीवात्मा व जड़ प्रकृति में ईश्वर के किसी नियम का विरोध करने की शक्ति नहीं है। यह दोनों सत्तायें ईश्वर के वश व पूर्ण नियंत्रण में हैं। अतः ईश्वर ही इस सृष्टि का स्रष्टा एवं नियामक है। इसका अन्य कोई मान्य उत्तर सम्भव ही नहीं है। यह वैदिक मत व सिद्धान्त ही सत्य सिद्धान्त है जिसे देर सबेर विज्ञान को भी स्वीकार करना है। कुछ ऐसे वरिष्ठ व प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी हुए हैं जो ईश्वर की सत्ता की ओर इशारा कर गये हैं। इससे सम्बन्धित पं0 क्षितिज वेदालंकार की पुस्तक ‘ईश्वर: संसार के प्रसिद्ध वैज्ञनिकों की दृष्टि में’ पठनीय है। 

ईश्वर का स्वरूप कैसा है? इसका उत्तर हम ऋषि दयानन्द के शब्दों में देते हैं जिससे अच्छी ईश्वर की परिभाषा व स्वरूप का उल्लेख वैदिक साहित्य में कही उपलब्ध नहीं होता। ऋषि के शब्द हैं ‘‘ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।” इन शब्दों में यह भी जोड़ा जा सकता है कि ईश्वर सर्वज्ञ है, वह जीवों के कर्मानुसार उनको विभिन्न योनियों में जन्म देता, उनके कर्मों का साक्षी होता है, उनकी मृत्यु एवं पुनर्जन्म की व्यवस्था उसी के हाथों में है, वह परमात्मा ही सृष्टि के आरम्भ में जीवों के कल्याण के लिये चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद का ज्ञान चार ऋषियों के माध्यम से देता है। वेदों का ज्ञान सर्वव्यापक व सर्वान्तर्यामी ईश्वर चार ऋषियों की आत्माओं में देता व स्थापित करता है। इस प्रकार ज्ञान देना सम्भव कोटि में आता है। हम मानते हैं कि वैज्ञानिकों व विचारकों को चिन्तन व मनन करते हुए जो ज्ञान की नई प्रेरणायें प्राप्त हुआ करती हैं, वह भी परमात्मा के द्वारा ही उनकी आत्माओं में करने से होती हैं। मनुष्य व सभी प्राणियों का जीवात्मा एक समान वा एक जैसा है। जीवात्मा का स्वरूप कैसा है? जीवात्मा चेतन, अल्प ज्ञान तथा कर्म करने की शक्ति से युक्त है। यह सूक्ष्म, एकदेशी, ससीम, अनादि, नित्य, अमर, अविनाशी, जन्म-मरण धर्मा, शुभाशुभ कर्मों का कर्ता व उनके सुख व दुःखरूपी फलों का भोक्ता है। यह वेदानुसार कर्म करके धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त होता है। पूर्व कालों में अनेक जीवात्मायें वैदिक कर्म ईश्वरोपासना, अग्निहोत्र यज्ञ, माता-पिता-आचार्यों की सेवा व सत्कार, परोपकार, दान आदि कर्मों के द्वारा ईश्वर साक्षात्कार कर मोक्ष को प्राप्त हो चुकी हैं। अनादि काल से यह क्रम चल रहा है और अनन्त काल तक ऐसा ही चलता रहेगा। ईश्वर, जीव तथा प्रकृति क्योंकि अनादि व अमर है अतः सृष्टि की रचना, पालन व प्रलय का क्रम अनन्त काल तक निरन्तर चलता रहेगा, यह कभी अवरुद्ध नहीं होगा, यह सुनिश्चित है। 

वैदिक गणना के अनुसार इस सृष्टि की उत्पत्ति एक अरब छियानवें करोड़ आठ लाख त्रेपन हजार एक सौ इक्कीस वर्ष पूर्व ईश्वर से हुई है। ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान तथा सर्वव्यापक है। सृष्टि की रचना व पालन करना उसका स्वाभाविक कर्म है। इस कार्य को करके उसे कोई कष्ट, पीड़ा अथवा थकान आदि विघ्न नहीं होते। जिस प्रकार से हमारे श्वांस चल रहे हैं और जिस प्रकार हम आंखों की पलक झपकते रहते हैं, हमें ऐसा करने से कोई पीड़ा व थकान नहीं होती, ऐसा ही हम ईश्वर के सृष्टि रचना और इसके पालन के कार्य को कुछ कुछ समझ सकते हैं। सृष्टि की रचना व पालन आदि कार्यों से ईश्वर को किंचित व किसी प्रकार का कष्ट आदि नहीं होता। ईश्वर ने यह सृष्टि अपनी शाश्वत प्रजा जीवों को उनके पूर्वकल्पों व जन्मों के कर्मों के फल देने के लिये बनाई है। ईश्वर सृष्टि का कर्ता है, भोक्ता नहीं है, परन्तु जीवात्मा इसका कर्ता नहीं अपितु केवल भोक्ता है। इसी कारण कर्म फल बन्धन जीवात्मा पर ही लगता है। जीवात्मा मनुष्य जन्म में ज्ञान प्राप्त कर ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना तथा अग्निहोत्र सहित माता-पिता-आचार्यों की सेवा-सत्कार, परोपकार, दान एवं देश व समाजोन्नति के कार्यों को करके अपने जीवन को मोक्ष प्राप्ति तक ले जा सकती हैं। इसके लिये सभी मनुष्यों को प्रयत्न करने चाहिये। इस उद्देश्य की प्राप्ति में वेदाध्ययन एवं वेदों का प्रचार मनुष्य का कर्तव्य निश्चित होता है। हमें अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहते हुए उनका पालन करना है। इसी में हमारे जीवन की सफलता है। 

मनुष्य कर्म-बन्धन में फंसा एक चेतन, अनादि व अविनाशी जीवात्मा है

मनमोहन कुमार आर्य

      हम परस्पर जब किसी से मिलते हैं तो परिचय रूप में अपना नाम अपनी शैक्षिक योग्यता सहित अपने कार्य व्यवसाय आदि के बारे में अपरिचित व्यक्ति को बताते हैं। हमारा यह परिचय होता तो ठीक है परन्तु इसके अलावा भी हम जो हैं वह एक दूसरे को पता नहीं चल पाता। वह कौन सी बात है जिससे हम प्रायः अनभिज्ञ बने रहते हैं? इस प्रश्न का ठीक उत्तर तो केवल वैदिक धर्म के साहित्य में ही प्राप्त होता है। इस प्रश्न के युक्तिसंगत एवं व्यवहारिक उत्तर वेद, दर्शन उपनिषद आदि गन्थों में प्राप्त होते हैं। वह उत्तर यह है कि मैं हम सब एक चेतन, ज्ञानयुक्त सत्ताजीवात्माहैं जो अपने आत्मिक शारीरिक बल की सहायता से कर्म कर सकते हैं वा करते हैं। चेतन पदार्थ उसे कहते हैं जो जड़ व निर्जीव न हो। जिस मानव व अन्य प्राणी के शरीर में जीवित अवस्था में संवेदनायें उत्पन्न होती हों, वह चेतन तत्व जीवत्मा की उपस्थिति के कारण होता है। जैसे किसी दुःखी व्यक्ति को देख कर उसके प्रति सहानुभूति होना और उसके दुःखों को दूर करने में सहयोग करने की भावना का होना चेतन जीवात्मायुक्त मनुष्य में ही होता है। चेतन पदार्थ वह होता है जिसको जन्म के बाद व शरीर के बने रहने तक पदार्थों के प्रिय-अप्रिय होने सहित सुख व दुःख की अनुभूति होती है।

                यह तो हम सभी अनुभव करते हैं कि हम चेतन हैं क्योंकि हमें सुख, दुख, सर्दी, गर्मी, अज्ञात वस्तुओं पदार्थों के प्रति जिज्ञासा, ज्ञान प्राप्ति की इच्छा इच्छित ज्ञान को प्राप्त कर सन्तोष का होना, सफलता में सुख असफलता में दुःख आदि का होना जैसी बातें अनुभव होती हैं जो कि इतर निर्जीव जड़ अर्थात् भौतिक पदार्थों में नहीं होतीं। मिट्टी, पत्थर, जल अग्नि आदि जड़ अचेतन पदार्थ हैं इन्हें सुख, दुःख, इच्छा, राग द्वेष आदि की भावना नहीं होती। ज्ञान का होना भी चेतन जीवात्मा ईश्वर में ही होता है, जड़ भौतिक पदार्थों में नहीं। इसी प्रकार से मनुष्य जो कर्म करता है वह सब आत्मा की प्रेरणा से मन द्वारा सम्बन्धित इन्द्रियों को प्रेरित करने पर ही सम्भव होते हैं। यदि किसी मनुष्य के शरीर से चेतन जीवात्मा निकल जाता है तो वह शरीर मिट्टी व पाषाण की भांति निष्क्रिय हो जाता है। फिर उसे सुख व दुःख का होना भी बन्द हो जाता है। अतः शरीर में होने वाली क्रियायें बिना जीवात्मा की उपस्थिति के सम्भव नहीं होती। इसी कारण यह कहा जाता है कि कर्मों का कर्ता शरीर नहीं अपितु शरीरस्थ जीवात्मा होता है।

                सभी प्राणियों के शरीरों में एकएक मुख्य जीवात्मा होता है। यह जीवात्मा की उत्पत्ति कब कैसे हुई? इसका उत्तर है जीवात्मा अनुत्पन्न अनादि पदार्थ है। यह कभी उत्पन्न नहीं हुआ अपितु इस सृष्टि ब्रह्माण्ड में सदासर्वदा से है। इसकी उत्पत्ति कैसे हुई, यह प्रश्न निरर्थक है। जीवात्मा संसार में अनादि काल से है इसलिए इसे शाश्वत सनातन भी कहते हैं। यह भी संसार में नियम है कि जिसकी उत्पत्ति होती है उसका अन्त भी अवश्य होता है। शरीर के जन्म के रूप में मनुष्य की उत्पत्ति होती है अतः इस शरीर का विनाश मृत्यु भी अवश्य होती है। आत्मा शरीर की भांति उत्पन्न नहीं होता, अतः यह शरीर में प्रवेश करता और उससे बाहर निकलता तो है परन्तु इसका अस्तित्व नष्ट नहीं होता। यह जन्म से पूर्व की ही तरह मृत्यु के बाद भी इस संसार में वायु व आकाश में सर्वव्यापक ईश्वर के साथ रहता है।

                आत्मा के अन्य गुण क्या हैं और मनुष्य का जन्म क्यों होता है? इस पर भी विचार करना समीचीन है। जीवात्मा के अन्य गुणों में यह सत्, अल्पज्ञ, एकदेशी, समीम, अणु परिमाण, सूक्ष्म, अपनी सूक्ष्मता के कारण आंखों से दीखने वाला, स्पर्श से अनुभव होने वाला, जन्ममरण धारण करने वाला, मनुष्य जन्म में स्वतन्त्रतापूर्वक कर्मों को करने वाला तथा ईश्वर की व्यवस्था से उन कर्मों के सुखदुःख रूपी फल भोगने वाला होता है। संसार में जितनी भी मनुष्य, देव, असुर, नाना पशु व पक्षी एवं कीट-पतंगों की योनियां हैं, उन सब  योनियों में सब प्राणियों का जीवात्मा एक जैसा व एक समान है। मनुष्य जीवन में किए हुए शुभ व अशुभ कर्मों के कारण यह भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म लेता है। जब जीवात्मा के पाप व पुण्य कर्म बराबर हो जाते हैं वा पुण्य कर्म अधिक होते हैं तो जीवात्मा का मनुष्य के रूप में जन्म होता है। पाप अधिक होते हैं तो मनुष्य जन्म न होकर नीच पशु, पक्षी, कीट, पतंग तथा स्थावर योनियों में जन्म होता है ऐसा हमारे ऋषि-मुनियों व शास्त्रकारों का मत है जो युक्ति व तर्क के आधार पर भी सिद्ध होता है।

                जीवात्मा का मनुष्य रूप में जन्म किन कारणों से, क्यों किसके द्वारा होता है? इस प्रश्न पर वैदिक मान्यताओं के अनुसारविचार करते हैं। हमने उपर्युक्त पंक्तियों में जीवात्मा के स्वरुप पर विचार करते हुए उसे एक एकदेशी, ससीम, अनादि नित्य अस्तित्व रखने वाला पाया है। यह जीवात्मा स्वयं कोई शरीर धारण नहीं कर सकता। शरीर धारण करने की एक व्यवस्था है जिसे जीवात्मा अपने ज्ञान सामर्थ्य के कारण कदापि नहीं कर सकता। संसार में दो चेतन सत्ताओं में एक चेतन सत्ता ईश्वर की भी है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरुप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वेश्वर और सृष्टिकर्ता आदि गुणों से युक्त है। यह आप्त काम होने से सदैव सुख व आनन्द की स्थिति में रहता है। ईश्वर में वह सामथ्र्य है कि वह जड़ त्रिगुणात्मक प्रकृति से इस जड़ स्थूल जगत का निर्माण कर सके और उससे मनुष्य आदि प्राणियों के शरीर आदि बनाकर उन्हें स्वभाविक व नैमित्तिक ज्ञान प्राप्त कराकर उनका पालन कर सके। यह समस्त ब्रह्माण्ड वा सूर्य, चन्द्र एवं पृथिवी आदि ईश्वर के द्वारा ही रचित है। यह सृष्टि ईश्वर ने अपने लिये नहीं अपितु अपनी शाश्वत् प्रजा ‘‘जीवों के लिए उनके पूर्वकल्प व जन्म के कर्मानुसार सुख-दुःख रुपी फलों को देने के लिए बनाई है। ईश्वर ने इस सृष्टि सहित प्राणियों को विभिन्न योनियों में इस लिए जन्म दिया है क्योंकि यह उसकी सामथ्र्य में है। सभी चेतन सत्तायें मुख्यतः मनुष्य दूसरों के हित के लिए अपनी सामथ्र्य का अधिकाधिक उपयोग करती ही हैं, इसी प्रकार से पूर्ण धर्मात्मा ईश्वर ने सृष्टि की रचना व जीवात्माओं को जन्म देकर परोपकार व जीवात्माओं के हित के कार्य करने का परिचय दिया है। ईश्वर ने सृष्टि क्यों बनाई तो इसका उत्तर है कि अपनी सामथ्र्य का प्रकटीकरण करने और जीवों को पूर्वकल्प वा जन्म के कर्मों के अनुसार सुख-दुःख रूपी फल देने के लिए इस सृष्टि को रचा है। इस प्रकार हमारे सभी प्रश्नों का समाधान हो जाता है। जीवात्मा, परमात्मा व प्रकृति विषयक सभी प्रश्नों व शंकाओं के उत्तर जानने के लिए संसार में सबसे सरलतम उपाय सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का अध्ययन करना है। इससे सभी प्रायः सभी व अधिकांश शंकाओं का निराकरण हो जाता है। संक्षेप में यह भी बता दें कि जीवात्मा का कर्तव्य ईश्वर के स्वरूप को जानकर उसकी स्तुति, प्रार्थना, उपासना करना व वैदिक कर्मों को करके धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति करना है। इसका भी विस्तार से वर्णन ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों का अध्ययन करने से मिल जाता है।                 हम समझते हैं कि इस लेख के द्वारा जीवात्मा के अस्तित्व व स्वरूप सहित उसके गुण-कर्मों व मनुष्य जन्म के उद्देश्य पर पर प्रकाश पड़ता है। वेद, उपनिषद, दर्शन आदि शास्त्रों का सम्यक् अध्ययन कर इस विषय में निभ्र्रान्त हुआ जा सकता है।

आ लौट के आजा भारत मां के खून

—विनय कुमार विनायक

आ लौट के आजा भारत मां के खून

कि तुम फैले हुए हो काबुल से रंगून,

तुम सगे भाई हो जैसे हिन्दू शक हूण!

तुम भ्रमित होकर अपने में देखते

गैर भारतीय, अरबी कबीले का गुण,

तुम नहीं हो अरब के कबिलाई मूल,

तुम हो बृहदतर भारत के हिन्दू कुल!

इस तथ्य को तुम क्यों नहीं कबूलते?

इन सच्चाइयों को तुम क्यों यूं भूलते?

तुम अफगानी, पाकी,बांग्लादेशी आज बने हो,

कल नहीं थे, कल भी शायद तुम नहीं रहोगे!

तुम्हारा पैतृक धर्म नहीं रहा है इस्लाम,

तुम अपने पूर्वजों का धर्म सनातन मान,

तुम्हारी मातृजाति नहीं अरबी फारसी इराकी,

तुम नहीं हो सहारा रेगिस्तान की बद्दूजाति!

तुम हमेशा गफलत में रहते रहे हो,

तुम अरबी इस्लाम की तलवार को लेकर

अपने वंशधर भाईयों को काटते रहे हो

कभी आक्रांता महमूद गजनवी बनकर

और कभी मुहम्मद गोरी,बाबर बनकर!

तुम जानते नहीं कि महमूद ने सत्रह बार

सोमनाथ मंदिर के क्षेत्र में कहर मचाकर

तुम्हारे पूर्वजों; माता बहन बेटी पत्नी को

मार-पीट बलात्कार कर मुस्लिम बनाया!

सुनो भारतीय पाकिस्तानी बंगाली मुसलमान,

तुम मत भूलो कि तुम हो उन्हीं बलात्कृत,

धर्मांतरित हिन्दुओं की निर्दोष अंजान संतान,

आज उन्हीं आक्रांताओं के गाते हो गुणगान,

गजनी गोरी की शान में रखते मिसाइलों के नाम!

तैमूरलंग, चंगेज खां, अलाउद्दीन, औरंगजेब ने

भारत की धरती को बार-बार अपवित्र किया था,

हमारे सम्मिलित पूर्वजों को जहर पिला दिया था,

उस जहर से उबरने की कोशिश तो करो भाईजान!

तुम पूर्वजों के देश से मुफ्त में शत्रुता पाले हो,

तुम अंजानवश खुद को अरबी फारसी में ढाले हो,

तुम अपने गफलत भरे इतिहास को सुधार लो,

अपने भविष्य की पीढ़ियों को कहर से उबार लो!

आखिर किस मकसद से अपने पूर्वधर्म भाईयों से

लगातार आतंकवाद के सहारे तुम लड़ रहे हो,

सच पूछो तो तुम सत्य मार्ग से बहक गए हो,

भूल जाओ गजवा ए हिन्द की आकाशीय बातें,

तुम्हें तो मालूम नहीं है अपने ही दीन की बातें!

—विनय कुमार विनायक

कृषकों के लिए उपयोगी होगा डिजिटल किसान सारथी मंच

-अशोक “प्रवृद्ध”

देश के कृषकों को उनकी ही भाषा में कृषि सम्बन्धी नवीन तकनीकी की सही जानकारी सही समय पर उपलब्ध कराने तथा अन्यान्य कृषि कार्यों में सहूलियत प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के द्वारा एक नई पहल करते हुए किसान सारथी मंच नामक डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रारम्भ किये जाने से कृषकों के बहुत सारी सामयिक समस्याओं के शीघ्र समाधान होने और इससे कृषकों के आय में वृद्धि होने की उम्मीद बढ़ गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 93वें स्थापना दिवस के अवसर पर 16 जुलाई को केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव और कृषि एवं कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा संयुक्त रूप से वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से देश के किसानों को समर्पित डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान सारथी एप्प के माध्यम से किसान वैज्ञानिकों से सीधे कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के समस्याओं पर व्यक्तिगत परामर्श का लाभ उठा सकते हैं, खेती से जुड़े हर मसले पर राय ले सकते हैं। किसान सारथी मंच अर्थात एप्प के माध्यम से किसानों को खाद्यान्न के साथ-साथ बागवानी उपज की भी खरीद-बिक्री से सम्बन्धित जानकारी, किसान विज्ञानं केंद्र के वैज्ञानिकों से इस प्लेटफार्म पर सीधे सवाल पूछे जा सकने, मौसम की जानकारी से लेकर किसानों को मिल सकने वाली हरसंभव सलाह उपलब्ध कराने, बोआई के उपयुक्त समय खाद व बीज के बारे में सलाह प्राप्त करने, मंडियों में खाद्यान्न व फल और सब्जियों के भाव की जानकारी मिल सकने की उम्मीद बढ़ गई है। हाल के वर्षों में तकनीकी के इस्तेमाल से आम जनों के जीवन में निःसंदेह बदलाव आया है और ऐसी उम्मीद है कि किसान भाई भी जरूर इससे जुड़कर फायदे उठा पाएंगे। सरकार के द्वारा भी यह उम्मीद व्यक्त की जा रही है कि हमारे वैज्ञानिक कृषकों को सही समय पर सही परामर्श देंगे। इससे किसानों को सीधे-सीधे खेती से जुड़ी हुई जानकारी मिल पाएगी और खेती करने के तरीके में भी बदलाव आएगा।जिससे कृषकों के आय में निःसंदेह वृद्धि होगी। आज के डिजिटल युग में इसके समुचित उपयोग से निःसंदेह यह कृषि के क्षेत्र में वरदान साबित होगा। किसान सारथी मंच के शुरुआत के अवसर पर केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उम्मीद जताते हुए कहा कि किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में किसान सारथी एप्प दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों तक पहुंचने के लिए तकनीकी हथियार साबित होगा। डिजिटल प्लेटफॉर्म से किसान सीधे तौर पर ही कृषि विज्ञान केंद्र अर्थात केवीके के संबंधित वैज्ञानिकों से कृषि और संबंधित क्षेत्रों पर व्यक्तिगत सलाह प्राप्त कर सकते हैं। वैष्णव ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों से कहा कि वह किसान की फसल को उनके खेत के गेट से गोदामों, बाजारों और उन जगहों पर ले जाने के क्षेत्र में नए तकनीकी सहयोग पर अनुसंधान करें, जहां वे कम से कम नुकसान के साथ बेचना चाहते हैं। वैष्णव ने आश्वासन देने के लहजे में कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय, संचार मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, मत्स्य पालन, पशु पालन और डेयरी मंत्रालय आदि कई मंत्रालय मिलकर किसानों को सशक्त बनाने में आवश्यक सहयोग सहायता प्रदान करने के लिए हमेशा तत्पर तैयार रहेंगे। रेल मंत्रालय भी फसलों के परिवहन के लिए लगने वाले समय को कम से कम करने की योजना बना रहा है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी सक्षम नेतृत्व और मार्गदर्शन में किसान सारथी पहल के किसानों की विशिष्ट सूचना आवश्यकता को पूरा करने, और भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद की कृषि विस्तार शिक्षा और अनुसंधान गतिविधियों में भी अत्यधिक मूल्यवान सिद्ध होने की उम्मीद जाहिर की।

उल्लेखनीय है कि 16 जुलाई को किसान सारथी मंच का शुभारम्भ करने वाली संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के तहत एक स्वायत्त संगठन है, जिसकी स्थापना ब्रिटिश काल में जुलाई 1929 में हुई थी और इसे पूर्व में इम्पीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के नाम से जाना जाता था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। यह पूरे देश में बागवानी, मत्स्य पालन और पशु विज्ञान सहित कृषि क्षेत्र में अनुसंधान एवं शिक्षा के समन्वय, मार्गदर्शन और प्रबंधन के लिये शीर्ष निकाय है। किसान सारथी नामक यह मंच अर्थात एप्प किसानों को उनकी वांछित भाषा में सही समय पर सही जानकारी प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करने हेतु एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है। कहा जा रहा है कि यह किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से प्रत्यक्ष तौर कृषि और संबद्ध विषयों पर वार्ता करने एवं व्यक्तिगत सलाह लेने में मदद करेगा। किसान इसका उपयोग कर खेती के नए तरीके भी सीख सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र भारत में एक कृषि विस्तार केंद्र के रूप में जाने जाते हैं। आमतौर पर व्यावहारिक कृषि अनुसंधान को लागू करने का लक्ष्य रखकर कृषि विज्ञान केंद्र एक स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद और किसानों के बीच अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली का अभिन्न अंग है। देश का पहला कृषि विज्ञान केंद्र वर्ष 1974 में पुद्दुचेरी में स्थापित किया गया था। इसका अधिदेश इसके अनुप्रयोग और क्षमता विकास के लिये प्रौद्योगिकी मूल्यांकन तथा प्रदर्शन है। ये केंद्र गुणवत्तापूर्ण तकनीकी उत्पादों जैसे- बीज, रोपण सामग्री, पशुधन आदि का उत्पादन करते हैं और इसे किसानों को उपलब्ध कराते हैं। भारत सरकार द्वारा शत- प्रतिशत वित्तपोषित कृषि विज्ञान केंद्र योजना कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसन्धान केन्द्र संस्थानों, संबंधित सरकारी विभागों तथा कृषि में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्वीकृत हैं। ये केंद्र प्रयोगशालाओं और खेत के बीच एक सेतु का काम करते हैं। सरकार के अनुसार, ये वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। अब इसके ही माध्यम से किसान सारथी मंच का संचालन किया जा रहा है, जिससे इस केंद्र पर बहुत सी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं।

दरअसल मध्यप्रदेश सरकार ने चार वर्ष पूर्व ही किसान सारथी नाम से ही इस प्रकार की एक डिजिटल योजना प्रारम्भ की थी, जिसके अनुसार वर्ष 2016- 2017 से ही वहां ई किसान सारथी एप्प और एक टोल फ्री नम्बर के माध्यम से कृषकों तक किराए पर फसलों की बुआई- कटाई के कृषि यंत्र पहुँचाने की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए कृषि यंत्रों का किराया प्रति घंटा और प्रति किलोमीटर पर परिवहन शुल्क किलोमीटर राज्य सरकार ने तय किया था। इसके लिए किसानों को सबसे पहले टोल फ्री नंबर पर अपना पंजीयन कराने की व्यवस्था की गई थी। संबंधित व्यक्ति को बुआई अथवा कटाई की जाने वाली फसल और अन्यान्य वांछित जानकारी दर्ज किये जाने के बाद किराए पर कृषि यंत्र पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर दिए जाने की व्यवस्था थी। मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा किसानों को किराए पर ट्रैक्टर, थ्रेसर, रोटावेटर, कल्टीवेटर (स्प्रिंग), कल्टीवेटर (प्लेन), पावर टिलर, पेडी ट्रांसप्लांटर, सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, डिस्क पलाऊ या डिस्क हेरो आदि कृषि यंत्र उपलब्ध कराने के लिए पाइलट प्रोजेक्ट के तहत प्रारम्भ की गई योजना की भांति ही केंद्र सरकार द्वारा किसान सारथी मंच के नाम से ही यह डिजिटल पहल सम्पूर्ण देश में लागू की गई है। उस समय खरीफ और रबी के लिए किसानों को यह सुविधा मुहैया कराये जाने से मध्यप्रदेश के कुछ भागों से इससे कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा मिलने अर्थात महंगे कृषि यंत्र किराए पर लेकर खेती में उपयोग करने की प्रवृत्ति किसानों में बढ़ने और कृषकों को लाभ प्राप्त होने की सूचनाएं मिली थी। इससे सम्बन्धित कस्टम हायरिंग सेंटर में कार्य करने वाले बेरोजगार कृषि इंजीनियर, कृषि स्नातकों, अन्य स्नातक और कृषि मशीनरी प्रशिक्षण प्राप्त बेरोजगारों को कार्य मिलने के साथ ही चिह्नित गांवों में कृषि यंत्रीकरण प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत किसानों के सहायता समूह, सहकारी समितियां, कृषक उत्पादन संगठन और इस प्रकार की अनेक संस्थाएं अनुदान प्राप्त करने से लाभान्वित हुई थी । अब कृषि से सम्बन्धित इस प्रकार की योजना किसान सारथी मंच अर्थात एप्प के सम्पूर्ण देश में लागू किये जाने से किसानों को फसलों की बुआई से लेकर कटाई और विपणन की सम्पूर्ण जानकारी समय पर मिलने की उम्मीद बढ़ने से किसानों के साथ ही इससे सम्बन्धित कार्यों में संलग्न होने वाले सम्भावित बेरोजगारों की आय में वृद्धि होने की सम्भावना बढ़ गई है। फिलहाल किसानों को उनके मोबाइल फोन नंबर पर मौसम की ताजा जानकारी पहुंचाई जा रही है। इस एप्प के माध्यम से कृषि संबंधी सारी जानकारियां स्थानीय जलवायु क्षेत्र के हिसाब से दी जाएगी। मौसम के अनुसार अर्थात सिजनली फसलों की बोआई के उपयुक्त समय और खेती में डाली जाने वाली खाद, बीज व फसलों में लगने वाली बीमारियों से बचाव और रोकथाम के उपाय के बारे में इस एप्प के माध्यम से वैज्ञानिक सलाह ली जा सकती है। मन में उठते सवाल भी पूछे जा सकते हैं। खाद्यान्न, सब्जी व बागवानी उपज की खरीद-बिक्री, मौसम की जानकारी से लेकर किसानों को प्राप्त हो सकने वाली हरसंभव सलाह इस प्लेटफार्म पर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था होने से किसान सीधे विषय विशेष के वैज्ञानिकों से सीधी बात भी कर सकते हैं। इस कार्य में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की भूमिका अहम रही है। इसके डिजिटल कारपोरेशन आफ इंडिया ने अपने राष्ट्रीय नेटवर्क के माध्यम से किसानों को जोड़ने में मदद की है। देश के 700 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्र इसके नेटवर्क से जुड़ गए हैं। इसके माध्यम से दूरदराज के किसानों को जोड़ना आसान हो जाएगा। अपने जिले के किसान विज्ञान केंद्र से जुड़े वैज्ञानिकों से इस प्लेटफार्म पर सवाल पूछे जा सकते हैं। फसलों के तैयार होने के बाद उसकी उपज की बाजार अथवा गोदामों तक ढुलाई करने और बाजार में बिक्री आदि में भी इस डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग फायदेमंद साबित होगा। मंडियों में खाद्यान्न व फल और सब्जियों के बाजार भाव की जानकारी भी उपलब्ध कराई जा सकेगी। किसान सारथी पर देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक उपज को पहुंचाने में भारतीय रेलवे की भी मदद ली जा सकेगी। किसान सारथी की सफलता में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के वैज्ञानिकों की भूमिका बेहद अहम होगी, जिनके माध्यम से ही किसानों को हर तरह की सलाह दी जा सकेगी। अब देखना है कि सरकार का यह नया डिजिटल पहल नया इंडिया में क्या नया रंग दिखलाता है?

मानसून की बेरुखी से खरीफ की बुआई में विलम्ब होने से कृषक चिंतित

-अशोक “प्रवृद्ध”

कृषि कार्य ही नहीं वरन देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए अहम मानी जाने वाली मानसूनी बारिश के बेरुखी के कारण खरीफ फसलों की बुआई में हो रही विलम्ब से देश के कृषक अभी से ही चिंतित, हतोत्साहित नजर आ रहे हैं। दक्षिणी -पश्चिमी मानसून के बिगड़े मिजाज से खरीफ की बुआई अर्थात बोआई के देर से होने की आशंका ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं, और वे सिर पर हाथ धर खेतों में बैठ सोचने को विवश हैं। जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह तक सूखे जैसे हालात के चलते देश के कई भागों में खरीफ फसलों की बुआई थम सी गई थी। मानसून काल में होने वाली वर्षा सिर्फ कृषि कर्म का आधार नहीं होती, वरन देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इस खरीफ मौसम में देश के 50 प्रतिशत हिस्से में सामान्य से कम बारिश हुई है, जिसका असर खरीफ मौसम की खेती पर पड़ने की आशंका उत्पन्न हो गई है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार एक से 18 जुलाई के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून से हुई बारिश सामान्य से 26 प्रतिशत कम हुई है। बीते सप्ताह मानसून कई राज्यों में सक्रिय हुआ है। इस सप्ताह देश के 694 जिलों में सामान्य से 35 प्रतिशत कम बरसात हुई है। जबकि इसके पहले वाले सप्ताह में 42 प्रतिशत की कमी थी। एक शोध एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 23 जून से 12 जुलाई के बीच मानसून से होने वाली बारिश 55 प्रतिशत कम हुई है। जबकि राजस्थान में 58 और गुजरात में 67 प्रतिशत की कमी रही है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार चालू खरीफ सीजन में पहली जून से 20 जुलाई तक उत्तर प्रदेश में 46 प्रतिशत कम, बिहार में 48 प्रतिशत और झारखण्ड में 42 प्रतिशत कम तथा पूर्वोतर के राज्यों में बारिश में भारी कमी आई है। चालू खरीफ सीजन में देश के कई राज्यों में इस प्रकार की मानसून की इस बेरुखी, अर्थात इस गड़बड़ चाल से खरीफ काल की खेती पर विपरीत असर पड़ा है।

उल्लेखनीय है कि समय पर देश में दस्तक देने के बावजूद मानसून धीमी, सुस्त हो चली है। देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसून की बारिश में देरी के कारण खरीफ फसलों की बुआई पिछड़ती दिख रही है। अभी तक धन रोपनी का कार्य भी समाप्त नहीं हुआ है, और सामान्य बारिश होने के बावजूद मूंग, उड़द और कपास की बुवाई के लिए अब बहुत कम समय शेष बचा है । इससे दलहनी व तिलहनी फसलों की उत्पादकता भी प्रभावित होने की आशंका उत्पन्न हो गई है । कई राज्यों में मानसून की बेरुखी से दलहनी और तिलहनी फसलों की बुआई पूरी तरह थम गई है। बुआई में होने वाली देरी का प्रतिकूल असर फसलों की उत्पादकता पर पड़ता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक आने वाले दो तीन सप्ताह खरीफ सीजन की खेती के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं। जुलाई में मानसून की बेरुखी का असर खेती पर पड़ा है। 23 जुलाई तक कुल फसलों का बोआई आंकड़ा 7.21 करोड़ हेक्टेयर तक ही पहुंच पाया है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि तक कुल 7.92 करोड़ हेक्टेयर में बोआई हो चुकी थी। कम बरसात के कारण बुआई लगभग नौ प्रतिशत पीछे चल रही है।
उड़द की बुआई पिछले साल के मुकाबले 23 प्रतिशत पीछे है। इसी तरह मूंग की बुआई 18 प्रतिशत पीछे है और बाजरा 29.16 प्रतिशत पीछे चल रहा है। तिलहनी फसलों की बोआई 17 लाख हेक्टेयर पीछे चल रही है। खरीफ की प्रमुख फसल धान, दलहन, तिलहन के साथ ही मोटे अनाज और कपास की बुआई पीछे चल रही है। कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 156.51 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले वर्ष इस समय तक इसकी रोपाई 178.73 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। चालू खरीफ सीजन में दलहन की बुआई घटकर 82.41 लाख हैक्टेयर में ही हुई है, जबकि गत वर्ष इस समय तक 100.04 लाख हैक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी। खरीफ दलहन की प्रमुख फसलों अरहर और उड़द की बुवाई पीछे चल रही है, जबकि मूंग की बुवाई पिछले साल की समान अवधि की तुलना में थोड़ी अधिक हुई है। मोटे अनाजों की बुआई भी पिछड़ कर चालू खरीफ में अभी तक 118.84 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक मोटे अनाजों की बुआई 132.88 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू सीजन में थोड़ी बढ़कर 61.35 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 61.32 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। बाजरा की बुआई चालू सीजन में घटकर अभी तक केवल 40.66 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 54.87 लाख हैक्टेयर में बाजरा की बुआई हो चुकी थी। खरीफ तिलहनों की बुआई भी चालू खरीफ में घटकर अभी तक केवल 123.58 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई 123.69 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। कपास की बुवाई भी चालू खरीफ सीजन में 11.09 फीसदी पिछे चल रही है। अभी तक देशभर में कपास की बुवाई केवल 92.70 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 104.27 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। गन्ने की बुवाई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 50.52 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक गन्ने की बुवाई 49.72 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार पिछले वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी मानसून सामान्य रहने की उम्मीद थी,जिससे किसानों में काफी उत्साह था। लेकिन जून माह में अच्छी बारिश एवं जुलाई माह में कम बारिश के चलते किसानों की फसलों को काफी नुकसान हुआ है। इस वर्ष कुछ राज्यों में सूखे की स्थिति बनी हुई है तो कुछ राज्यों में देर से ही सही लेकिन भारी बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। अभी तक मानसूनी बारिश के सामान्य से कम रहने का असर खरीफ फसलों की बुआई पर साफ़ देखा जा सकता है। कृषि विभाग द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करने से स्पष्ट होता है कि इस वर्ष 9 जुलाई 2021 तक खरीफ फसलों की बुआई 50 मिलियन हेक्टेयर तक हुई है, जो कुल खरीफ क्षेत्रफल का 46.6 प्रतिशत है, जबकि इस अवधि में पिछले वर्ष 55.6 मिलयन हेक्टेयर में बुवाई हुई थी, जो कुल खरीफ बुआई के क्षेत्रफल का 52.5 प्रतिशत है। इस प्रकार इस वर्ष 9 जुलाई 2021 तक पिछले वर्ष के मुकाबले 10.4 प्रतिशत कम खरीफ फसल की बुआई हुई है।

यद्यपि कृषि व कल्याण मंत्रालय के द्वारा खरीफ फसल बुआई का आंकड़ा प्रत्येक वर्ष 9 जुलाई को जारी किया जाता है, लेकिन इस वर्ष 4 दिन के विलम्ब से 13 जुलाई 2021 को खरीफ फसल की बुआई का आंकड़ा जारी किया गया है। इसी प्रकार खरीफ फसल की बुआई का पहला आंकड़ा 25 जून को जारी किया जाता है, जबकि इस वर्ष 5 दिन की देरी से 30 जून 2021 को जारी किया गया है। फसलों के अनुसार देश भर में बुवाई का रकबा सरकार ने जारी किया है। जारी आंकड़ों के अनुसार भी खरीफ की महत्वपूर्ण फसलों यथा, धान, ज्वार, बाजरादि खाद्यान, अरहर, उडद, मूंग आदि दलहन फसलों के साथ ही सोयाबिन, मूंगफली, कपास आदि सभी खरीफ फसलों की बुआई पर देश भर में मानसून का असर सीधा देखा जा सकता है। आंकड़ों के अनुसार गन्ना को छोड़कर शेष सभी फसलों की बुवाई पर असर हुआ है। मूंग, सोयाबीन, धान और कपास समेत लगभग सभी खरीफ फसलों की बुआई पिछड़ गई है। मौसम विभाग के संशोधित अनुमानों के अनुसार देश के सभी इलाकों में मानसून की बारिश को 8 जुलाई तक पहुंच जाना था, लेकिन 9 जुलाई तक सिर्फ 229.7 मिमी. बारिश हुई, जो 243.6 मिमी. की सामान्य बारिश से छह प्रतिशत कम है। 7 जुलाई तक देश भर में वर्षा 46.3 प्रतिशत की कमी थी, जो 14 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में 7 प्रतिशत की कमी रह गई थी। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में वर्षा में सुधार होने पर खरीफ फसल की बुआई में वृद्धि दर्ज की जाएगी। बहरहाल मानसूनी बेरुखी अर्थात बारिश की कमी के कारण किसान अब कम समय में पकने वाली फसल लगा रहे हैं। आदिकाल से कृषि पर आश्रित देश के किसानों को अब भी उम्मीद है कि मानसून की रफ्तार जोर पकड़ेगी, और मिट्टी में नमी बढ़ने से वे बुआई की रकबा बढ़ा सकेंगे, और इन्द्रदेव की मेहरबानी रही तो खरीफ की बेहतर फसलोपज से देश की अर्थव्यवस्था को एक नई गति देने में कदम से कदम मिलाकर चल भी सकेंगे ।

आम आदमी की आवाज बुलंद करते एंग्रीमैन पम्मा

  • योगेश कुमार गोयल
    तीखे तेवरों के साथ आम आदमी की आवाज को बुलंद करने के लिए विख्यात नेशनल अकाली दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष परमजीत ंिसह पम्मा वैसे तो विगत 25 वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रामलीला मैदान सहित अन्य प्रमुख स्थलों पर धरने-प्रदर्शन करते रहे हैं लेकिन ज्यादा चर्चा में वह उस समय आए थे, जब 2015 में एक प्रमुख सोशल मीडिया साइट ने देशभर में कराए एक व्यापक सर्वे के बाद उन्हें ‘देश का सबसे गुस्सैल आदमी’ का खिताब दिया था। उस समय बीबीसी सहित देश के तमाम बड़े मीडिया समूहों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। बीबीसी ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में लिखा था, ‘‘बीबीसी ने आखिरकार सबसे ग़ुस्सैल आदमी को खोज निकाला और यह व्यक्ति हैं परमजीत सिंह पम्मा, जो ‘दिल्ली की सड़कों पर विरोध की आवाज’ हैं और कुछ वर्षों से तमाम तरह के मुद्दों पर दिल्ली की सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन करते रहे हैं।’’
    महज पांच फुट के छोटे से कद के पम्मा पिछले 25 वर्षों से आतंकवाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने के अलावा देश के आम लोगों की आवाज बनकर भी उभरे हैं। पैट्रोल, डीजल, रसोई गैस की बढ़ती कीमतें हों या फल-सब्जियों के आसमान छूते दाम अथवा टीवी पर बढ़ती अश्लीलता या जन-सरोकारों से जुड़े ऐसे ही अन्य मुद्दे, वह सदैव हर राजनीतिक दल की सरकार के खिलाफ आम आदमी के हक में उनकी आवाज बनकर सामने आए। समाज से सामाजिक बुराईयों के निवारण के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहे हैं। बच्चों के भविष्य को खराब होने से बचाने के लिए उन्होंने पब्जी सहित अन्य ऑनलाइन खेलों को बंद करवाने के लिए भी आवाज बुलंद की। हालांकि 25 साल पूर्व वर्ष 1996 में उन्होंने सिख राजनीति में पैर जमाने के लिए ‘नेशनल अकाली दल’ का गठन किया था लेकिन भ्रष्टाचार में डूबी अकाली दल की राजनीति उन्हें रास नहीं आई, इसीलिए अपने पिता जत्थेदार त्रिलोचन सिंह के पदचिन्हों पर चलते हुए उन्होंने अपनी राह राजनीतिक दलों से अलग कर आम लोगों की आवाज बनने का फैसला किया।
    वर्ष 1995 में पम्मा ने 16 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ अपने पहले विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था और उसके बाद से वे निरन्तर जनता के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। समाज की भलाई के लिए उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की बदौलत अनेक सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने तो उन्हें सम्मानित कर उनका और उनके साथियों का समय-समय पर हौंसला बढ़ाया ही है, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सहित अनेक दिग्गज राजनीतिज्ञ भी उनके सामाजिक कार्यों की सराहना कर चुके हैं। कुछ वर्ष पूर्व ब्रिटेन में सिख समाज की पगड़ी के मुद्दे को लेेकर पम्मा और उनके संगठन ने महारानी एलिजाबेथ के भारत आगमन पर उन्हें काले झंडे दिखाए थे, जिसके बाद अंततः ब्रिटेन सरकार ने उनको पत्र लिखकर कहा था कि उनकी मांग को स्वीकार कर पगड़ी का सम्मान किया जाएगा। वह 2010 में भारतीयों पर हुए नस्ली हमलों के खिलाफ आस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रड का पुतला जलाते हुए बड़ा विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। इसके अलावा 2012 में उन्होंने अमेरिका के विस्कॉन्सिन में एक गुरुद्वारे में हुई गोलीबारी के खिलाफ प्रदर्शन करके भी अपने गुस्से को दुनिया के समक्ष अभिव्यक्त किया था। कुछ वर्ष पूर्व एक प्रमुख भारतीय टीवी न्यूज चैनल ने उनकी जीवन यात्रा पर एक वृत्तचित्र प्रसारित किया था और हाल ही में कुछ पंजाबी गीतकारों और गायकों ने उनके व्यक्तित्व पर कुछ गीत भी फिल्माए हैं।
    भारत के सबसे एंग्री मैन का खिताब दिए जाने के बारे में बात करने पर पम्मा बताते हैं कि उनके गुस्से की वजह सिस्टम है और उनके अंदर सिस्टम के खिलाफ गुस्सा है। दरअसल आज देश का किसान, जवान मर रहा है, आम आदमी परेशान है, बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा है, पैट्रोल, डीजल तथा सभी खाद्य पदार्थ महंगे हो रहे हैं, इन सब मामलों पर उन्हें गुस्सा आता है। वह एक आम आदमी हैं और जब कोई आम आदमी किसी भी वजह से परेशान होता है तो उन्हें ग़ुस्सा आता है। आम आदमी की ऐसी ही परेशानियों के विरोध में आक्रामक तरीके से किए जाने वाले विरोध प्रदर्शनों में उनका यही गुस्सा परिलक्षित होता रहा है और इसी गुस्से के साथ दिल्ली की सड़कों पर लगातार आम आदमी की आवाज बुलंद करने के कारण ही उन्हें देश के सबसे गुस्सैल व्यक्ति के खिताब से नवाजा गया। वह बताते हैं कि उनका गुस्सा लोगों पर निर्देशित नहीं है बल्कि यह सिस्टम पर, सरकार पर और मुद्दों पर निर्देशित होता है। वह कहते हैं कि अब सरकारों की आदत बन गई है कि जब तक कोई परेशान होकर आवाज नहीं उठाता, वह नहीं सुनती।
    सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी ईमानदारी और समर्पण को देखते हुए हालांकि उन्हें दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों सहित कई राजनीतिक दल अपनी पार्टी में शामिल होने का न्यौता कई अवसरों पर दे चुके हैं लेकिन पम्मा का कहना है कि उनका उद्देश्य सीधे तौर पर किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होकर अपने राजनीतिक हित साधना नहीं है बल्कि जनता के हित की आवाज सड़कों पर उठाकर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करके ही उन्हें मानसिक सुकून मिलता है। प्रत्येक नागरिक को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना, प्रत्येक छात्र के लिए महाविद्यालय में प्रवेश का प्रावधान करना, युवाओं के लिए सोशल मीडिया का दुरूपयोग बंद करना इत्यादि उनके एजेंडे में प्रमुख रूप से शामिल हैं। बातचीत के दौरान वह बताते हैं कि इन ढ़ाई दशकों में विरोध प्रदर्शनों के कारण उन्होंने कई बार पुलिस की लाठियां खाई हैं, वाटर केनन की मार झेली है, अपने साथियों के साथ अनेक बार गिरफ्तारियां दी हैं लेकिन वे अपने इरादों पर अडिग रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि उन्हें सबसे ज्यादा गुस्सा किस पर आता है, वह तपाक से कहते हैं ‘पाकिस्तान’। दरअसल उनके मुताबिक उन्हें दो चीजों पर सबसे ज्यादा गु्स्सा आता है, पहला, महंगाई और दूसरा, जब पाकिस्तान हमारे फौजियों को शहीद करता है। पम्मा कहते हैं कि वह पूरे दिल से विरोध-प्रदर्शन करते हैं और जब मामला पाकिस्तान का आता है तो उनकी आवाज सबसे तेज होती है और वह शब्दों में बयान नहीं कर सकते कि जब वह पाकिस्तान के खिलाफ या भारतीय सेना से जुड़े किसी मुद्दे पर प्रदर्शन करते हैं तो कितने ग़ुस्से में होते हैं।

संसदः पक्ष और विपक्ष का अतिवाद


डॉ. वेदप्रताप वैदिक

संसद का यह वर्षाकालीन सत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण होना था लेकिन वह प्रतिदिन निरर्थकता की ओर बढ़ता चला जा रहा है। कोरोना महामारी, बेरोजगारी, अफगान-संकट, भारत-चीन विवाद, जातीय जनगणना आदि कई मुद्दों पर सार्थक संसदीय बहस की उम्मीद थी लेकिन पेगासस जासूसी कांड इस सत्र को ही लील गया है। पिछले लगभग दो सप्ताह से दोनों सदनों का काम-काज ठप्प है। दोनों सदन अनवरत शोर-शराबे के बाद रोज ही स्थगित हो जाते हैं। संसद चलाने का एक दिन का खर्च 44 करोड़ रु. होता है। लगभग 500 करोड़ रु. पर तो पानी फिर चुका है। ये पैसा उन लोगों से वसूला जाता है जो दिन-रात अपना खून-पसीना एक करके कमाते हैं और सरकार का टैक्स भरते हैं। ऐसा लगता है कि संसद का सत्र चलाने की परवाह न तो सरकार को है और न ही विपक्ष को ! दोनों अपनी-अपनी टेक पर अड़े हुए हैं। ये शायद अड़ते नहीं लेकिन पेगासस जासूसी का मामला अचानक ऐसा उभरा कि पक्ष और विपक्ष दोनों एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें भांजने लगे। क्या विपक्ष के लोगों को पता नहीं कि जासूसी किए बिना कोई सरकार क्या, कोई परिवार भी नहीं चल सकता? वे खुद जब सत्ता में थे तो क्या वे जासूसी नहीं करते थे ? क्या कांग्रेसी शासन में उसके वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने अपने दफ्तर में ही जासूसी यंत्र लगे होने की शिकायत नहीं की थी? देश के प्रांतों में चल रही विरोधी दलों की सरकारें क्या जासूसी नहीं करतीं ? लेकिन जासूसी के मुद्दे पर संसद में बहस की मांग बिल्कुल जायज है और सरकार को यह बताना होगा कि फलां-फलां आदमी की जासूसी वह क्यों करती थी ? यदि उसने जानबूझकर या गलती से देश के कुछ निरापद और महत्वपूर्ण लोगों की जासूसी की है या उसके अफसरों ने उस सूची में कुछ मनमाने नाम जोड़ लिये हैं तो वह सार्वजनिक तौर पर क्षमा क्यों नहीं मांग लेती है ? जासूसी के मामले को वह जितना छिपाएगी, उसकी चादर उतनी ही उघड़ती चली जाएगी लेकिन विरोधी दलों को भी सोचना चाहिए कि यदि वे संसद को चलने ही नहीं देंगे तो जासूसी का यह मामला आया-गया-सा ही हो जाएगा। वे संसद का सत्र बाकायदा चलने क्यों नहीं देते ? वे प्रश्न पूछ सकते हैं, स्थगन-प्रस्ताव और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव ला सकते हैं। वे बीच में हस्तक्षेप भी कर सकते हैं। विरोधी दल इस मुद्दे पर एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने सांसदों से कह रहे हैं कि वे विरोधियों की पोल खोलें। इसका अर्थ क्या यह नहीं हुआ कि हमारे देश के सभी राजनीतिक दल सतही राजनीति में उलझ रहे हैं और संसद-जैसे लोकतंत्र के प्रकाश-स्तंभ की रोशनी को धुंधला करते चले जा रहे हैं ?