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ओलिम्पिक 2021 में भारत के चमकने की उम्मीदें

ललित गर्ग-
खेलों में ही वह सामर्थ्य है कि वह देश एवं दुनिया के सोये स्वाभिमान को जगा देता है, क्योंकि जब भी कोई अर्जुन धनुष उठाता है, निशाना बांधता है तो करोड़ों के मन में एक संकल्प, एकाग्रता का भाव जाग उठता है और कई अर्जुन पैदा होते हैं। अनूठा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी माप बन जाते हैं और जो माप बन जाते हैं वे मनुष्य के उत्थान और प्रगति की श्रेष्ठ, सकारात्मक एवं कोरोना महामारी को परास्त करने की  स्थिति है। कोरोना महामारी के भय के माहौल के बीच टोक्यो में खेलों के महाकुम्भ ओलिम्पिक 2021 का आयोजन मनुष्य के मन और माहौल को बदलने का माध्यम बनेगा, ऐसा विश्वास है। भले ही सालभर की देरी से इसका आयोजन हो रहा है, लेकिन यह महामारी के मानवता पर असर एवं घावों को अपने तरीके से भूलाने का माध्यम बनेगा। ओलिम्पिक 2021 के उद्घाटन के वर्चुअल समारोह ने नए सवेरे का संदेश दिया है। इससे दुनिया में ऊर्जा का संचार होगा, विश्वास, उम्मीद एवं उमंग जागेगी। इस समारोह ने दिखाया कि मानव प्रजाति महामारी से जूझने का हौंसला रखने के साथ-साथ इससे उबरने में भी सक्षम है। जीवन के प्रति सकारात्मक रवैये को भी ये ओलिम्पिक खेल नया आयाम देंगे। कोरोना के खतरे के बीच इनके आयोजन ने दिखा दिया है कि मानव किसी भी मुसीबत से एकजुट होकर लड़ सकता है।
कोरोना काल के अंधकार के बीच ओलिम्पिक का आयोजन वास्तव में हमारी नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने का सशक्त माध्यम है। इस खेलों के महाकुम्भ से निश्चित ही अस्तित्व को पहचानने, दूसरे अस्तित्वों से जुड़ने, विश्वव्यापी पहचान बनाने और अपने अस्तित्व को दुनिया के लिये उपयोगी बनाने की भूमिका बनेगी। यद्यपि कोरोना काल में ओलिम्पिक के आयोजन के औचित्य पर सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। यह पहला ओलिम्पिक है, जिसे सिर्फ दस हजार लोग स्टेडियम में आकर देख सकेंगे, स्टेडियम में आम लोग नहीं बल्कि राजनयिक, आयोजन समिति से जुड़े सदस्य, अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति के सदस्य और कुछ प्रायोजक मौजूद रहेंगे।
जापान के टोक्यो शहर में यह दूसरा ओलिम्पिक है, इससे पहले 1964 में ओलिम्पिक का आयोजन कर चुका है। भले ही इस बार ओलिम्पिक में न दर्शक होंगे और न ही खिलाड़ियों में पहले जैसा उत्साह रहेगा, पर विश्वास है कि जो सपने कोरोना के कारण अधूरे थे, वे पूरे होंगे। देश एवं दुनिया की अस्मिता पर कोरोना महामारी के कारण छायी भय एवं निराशा की नित-नयी विपरीत स्थितियों की धुंध को चीरते हुए दुनिया के खिलाड़ी एवं खेल प्रतिभाओं के जज्बे से ऐसे उजालों का अवतरण होगा कि दुनिया के हर नागरिक का सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा। एक ऐसी रोशनी को अवतरित किया जायेगा जिससे दुनियावासियों को प्रसन्नता, अभय एवं आशा का प्रकाश मिलेगा जो कोरोना के दर्द को भुलाने का माध्यम बनेगा।
कोरोना के संकटकालीन दौर में इन खेलों का आयोजन साहस का काम है। ओलिम्पिक शुरू होने से पहले ओलिम्पिक से जुड़े 80 से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। यद्यपि टोक्यो प्रशासन ने ओलिम्पिक को सुरक्षित बनाए रखने के बहुत सारे उपाय किए हैं। टोक्यो में आपातकाल लागू है। लेकिन शहर में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। अब सबसे बड़ा सवाल है कि टोक्यो ओलिम्पिक में भारत की झोली में कितने पदक आएंगे। इस बार हमारे देश के खिलाड़िओ ने ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई किया है और उनकी तैयारी भी अच्छी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरन्तर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा रहे हैं, उन्हें एवं समूचे देश को उम्मीद है कि भारत लंदन ओलिम्पिक में लाए गए पदों की न केवल बराबरी करेगा बल्कि उससे ज्यादा भी हासिल कर लेगा। हमारे खिलाड़िओ ने कड़ी मेहनत की है लेकिन लॉकडाउन के कारण खिलाड़ियों का प्रशिक्षण काफी प्रभावित हुआ है।
राष्ट्र का एक भी व्यक्ति अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वह शिखर पर पहुंच सकता है। विश्व को बौना बना सकता है। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकता है, भले ही रास्ता कितना ही कांटों भरा हो, अवरोधक हो। देश में प्रतिभाओं और क्षमताओं की कमी नहीं है। चैंपियंस अलग होते हैं, वे भीड़ से अलग सोचते एवं करते हैं और यह सोच एवं कृत जब रंग लाती है तो बनता है इतिहास। हमारे खिलाड़ी कुछ इसी तरह चैंपियन बनकर उभरेगे, दुनिया को चौंकाएंगे, सबके प्रेरणा बनेंगे, ऐसा विश्वास है।
जिन एथलीटों से हम पदक लाने की उम्मीद कर रहंे हैं उनमें विनेश फौगाट, नीरज चोपड़ा, पीवी सिंधू, दीपिका कुमारी, मेरीकॉम, बजरंग पूनिया, अमित फंगाल, सौरभ चौधरी, मीरा बाई चानू और मनुभाकर आदि शामिल हैं। लेकिन हमें ऐसी सोच विकसित करनी होगी कि पदक जीतने के बाद नहीं बल्कि उन्हें हर तरफ से क्वालीफाई होने से चार-पांच साल पहले प्रोत्साहन और समर्थन मिलना चाहिए। वर्ष 2008 बीजिंग ओलिम्पिक में अभिनव बिन्द्रा व्यक्तिगत तौर पर गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बने थे। लंदन ओलिम्पिक में भारत की ओर से गगन नारंग और विजय कुमार ने मेडल जीता। अब तो भारत की ओर से निशानेबाजों की एक नई पौध तैयार है। सौरभ चौधरी और मनुभाकर के नेतृत्व में ये पौध झंडे गाड़ने एवं नया इतिहास बनाने के लिए तैयार हैं। तीरंदाज दीपिका कुमारी और अतानु राय जबर्दस्त फार्म में है। पीवी सिंधू और मेरीकॉम को नजरंदाज किया ही नहीं जा सकता। अगर हम लंदन ओलिम्पिक से आगे निकल गए तो यह भारत के लिए नई शुरूआत होगी। आमतौर पर ओलिम्पिक में खिलाडी सिर्फ अपने प्रदर्शन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं लेकिन इस बार खिलाड़िओ के मन में कोरोना संक्रमण का भी भय होगा। जाहिर है कि सही वक्त पर, सही प्रतिभा को प्रोत्साहन एवं प्राथमिकता मिल जाए तो खेलों की दुनिया में देश का नाम सोने की तरह चमकते अक्षरों में दिखेगा।
हमारे देश में यह विडंबना लंबे समय से बनी है कि दूरदराज के इलाकों में गरीब परिवारों के कई बच्चे अलग-अलग खेलों में अपनी बेहतरीन क्षमताओं के साथ स्थानीय स्तर पर तो किसी तरह उभर गए, लेकिन अवसरों और सुविधाओं के अभाव में उससे आगे नहीं बढ़ सके। लेकिन इसी बीच कई उदाहरण सामने आए, जिनमें जरा मौका हाथ आने पर उनमें से किसी ने दुनिया से अपना लोहा मनवा लिया। अनेक खिलाड़ी हैं, जिन्होंने बहुत कम वक्त के दौरान अपने दम से यह साबित कर दिया कि अगर वक्त पर प्रतिभाओं की पहचान हो, उन्हें मौका दिया जाए, थोड़ी सुविधा मिल जाए तो वे दुनिया भर में देश का नाम रोशन कर सकते हैं। हमारे पास ऐसे नामों का अभाव रहा है, कुछ ही नाम है जिनको दशकों से दोहराकर हम थोड़ा-बहुत संतोष करते रहे हैं, फिर चाहे वह फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह हों या पीटी उषा।
यूं तो भारतीय ओलिंपिक संघ की स्थापना 1923 में हुई, लेकिन मानव जाति की शारीरिक सीमाओं की कसौटी समझे जानेवाले इस क्षेत्र में पहली उल्लेखनीय उपलब्धि 1960 के रोम ओलिंपिक में मिली, जब मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहकर कीर्तिमान बनाया, जो इस स्पर्धा में 38 वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ भारतीय समय बना रहा। चार वर्ष बाद टोक्यो में गुरबचन सिंह रंधावा 110 मीटर बाधा दौड़ में पांचवें स्थान पर रहे। 1976 में मांट्रियल में श्रीराम सिंह 800 मीटर दौड़ के अंतिम दौर में पहुंचे, जबकि शिवनाथ सिंह मैराथन में 11वें स्थान पर रहे। 1980 में मॉस्को में पीटी उषा का आगमन हुआ जो 1984 के लॉस एंजिल्स ओलिंपिक में महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रहीं। एशियाई खेलों में कुछ ऐथलीटिक स्वर्ण जरूर हमारे हाथ लगे।
किसी अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स ट्रैक पर भारतीय एथलीट के हाथों में तिरंगा और चेहरे पर विजयी मुस्कान, इस तस्वीर को हर हिंदुस्तानी बार-बार देखना चाहता है। ऐथलेटिक्स को लेकर 2021 के टोक्यो ओलिंपिक से हमें बेहद उम्मीदें हैं। क्योंकि यहां तक पहुंचते-पहुंचते कईयों के घुटने घिस जाते हैं। एक बूंद अमृत पीने के लिए समुद्र पीना पड़ता है। पदक बहुतों को मिलते हैं पर सही खिलाड़ी को सही पदक मिलना खुशी देता है। ये देखने में कोरे पदक हैं पर इसकी नींव में लम्बा संघर्ष और दृढ़ संकल्प का मजबूत आधार छिपा है। राष्ट्रीयता की भावना एवं अपने देश के लिये कुछ अनूठा और विलक्षण करने के भाव ने ही अन्तर्राष्ट्रीय ऐथलेटिक्स में भारत की साख को बढ़ाया है। ओलंपिक खेलों में विजयगाथा लिखने को बेताब देश की बेटियां, अभूतपूर्व सफलता का इतिहास रचने को तत्पर है, उनकी आंखों में तैर रहे भारत को अव्वल बनाने के सपने को जीत का हार पहनते देखने का यह समय निश्चित ही रोमांचित एवं गौरवान्वित करने वाला होगा।

आज मजहब के नाम इंसानियत खो रहा इंसान

—विनय कुमार विनायक
आज मजहब के नाम इंसानियत खो रहा इंसान,
आज मजहब के नाम क्रूर कट्टर हो रहा इंसान!

धर्म और मजहब अलग-अलग चीज है रे इंसान,
धर्म वो जो धारण हो,मजहब दिखाते झूठी शान!

धर्म वो जिसमें हिंसा नहीं, हो मानवता का ज्ञान,
मजहब की आज हो गई खून-खराबे की पहचान!

धर्म में दया ममता करुणा समानता व सम्मान,
मजहब में ईर्ष्या द्वेष जलन गुटबाजी की आन!

धर्म में तर्क वितर्क, खंडन मंडन का है प्रचलन,
मजहब में मनाही,दूसरे धर्म की अच्छाई ग्रहण!

मजहबी उन्मादी है आज पराकाष्ठा पर आसीन,
मजहबी होते हैं चरित्र निर्माण के प्रति उदासीन!

मजहब में है अंतरराष्ट्रीय दिखावा औ’ दुर्भिसंधी,
मजहब में है धार्मिक जाति भेदभाव की हदबंदी!

मजहबी अलग वेशभूषा,शान-शौकत में इतराते,
मजहबी परधर्म के सद्गुण ग्रहण में कतराते!

मजहबवालों ने गैरमजहब से रार लिए हैं ठान,
अच्छाई-बुराई को जानकर भी बने हुए अंजान!

कहा तो गया है मजहब नहीं सिखाता बैरभाव,
पर आज मजहब में अच्छे गुणों का है अभाव!

मजहब में सर्वधर्म समभाव से नहीं कुछ काम,
हमेशा जनसंख्या बढ़ाने के लिए रहते परेशान!

विदेशी मजहबवाले देश पर नहीं हैं आस्थावान,
विदेशी आक्रांताओं को ऐ लोग समझते महान!

विधर्मियों ने हमारे पूर्वज का लिया है बलिदान,
पर आज मजहबवाले गाते उनका ही गुणगान!
—विनय कुमार विनायक

महाराष्ट्र में प्रकृति के क्रूर मिजाज ने ढाया कहर

समूचे महाराष्ट्र में आई तेज बारिश ने कहर ढा दिया है। बाढ़ के साथ भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। नतीजतन 129 से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं। रायगढ़ में जमीन घंसने से 36 और सतारा में 27 मौतों की जानकारी मिली हैं। गोंदिया और चंद्रपुर में भी जनहानि की खबरें हैं। रत्नागिरी में वायुसेना के हेलिकाप्टरों को बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों को बचाने में लगाना पड़ा हैं। कोंकण क्षेत्र व पश्चिम महाराष्ट्र में भारी बारिश ने भीषण तबाही मचाई हुई है। कुछ दिन पहले मुंबई में बारिश के चलते हुए अलग-अलग हादसों में 31 लोगों की मौत हो चुकी है। कोल्हापुर, रत्नागिरी, पालघर, ठाणे, सिंधुदुर्ग, पुणे और सतारा में कई स्थलों पर बाढ़ का पानी भर जाने से जन-जीवन ठप हो गया है। अनेक लोग बाढ़ और भूस्खलन के चलते लपाता हैं। 

प्रकृति जब अपना रौद्र रूप दिखाती है, तब मनुष्य के सारे आधुनिक उपकरण व उपक्रम लाचारी का सबब बन जाते है। लिहाजा मनुष्य अपनी बर्बादी अपनी आंखों से देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर पाता। ऐसे में प्रत्येक संवेदनशील मनुष्य कुछ पल के लिए यह जरूर सोचता है कि इन प्राकृतिक आपदाओं के लिए उसके द्वारा ही किया गया आधुनिक व तकनीकी विकास जुम्मेबार है। तकनीकि रूप से स्मार्ट सिटी बनाने पर दिया जा रहा जोर भी इस तबाही के लिए जुम्मेबार है। मुंबई, नागपुर, सतारा, पुणे और कोल्हापुर इसके ताजा उदाहरण हैं। इन शहरों को स्मार्ट बनाते समय वर्षा जल के निकासी की कोई परवाह नहीं की जा रही है, जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी से अरब सागर तूफानों का गढ़ बनता जा रहा है। 2001 के बाद ऐसे तूफानों मे 52 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई है। हाल ही के अध्ययनों में पाया है कि ज्यादातर मामलों में हवा धीरे-धीरे तूफान का रूप लेती है और आखिर में चक्रवात बनकर किसी समुद्री किनारे से टकराती है। इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ ट्रापीकल मेटेरोलॉजी पुणे के वरिष्ट वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कॉल ने बताया कि अरब सागर में बंगाल की खाड़ी की तुलना में ज्यादा नमी पैदा हो रही है। इससे विक्षोभ पैदा हो रहे हैं जो तूफान की गति प्रदान करते हैं। पहले दक्षिण-पश्चिम अरब सागर ज्यादा ठंडा होता था, लेकिन अब इसकी गर्मी बढ़ रही है। जो बाढ़ और चक्रवाती तूफानों का कारण बन रही है। बाढ़ की यह त्रासती शहरों में ही नहीं, असम, झारखंड व बिहार जैसे वे राज्य भी झेल रहे हैं, जहां बाढ़ दशकों से आफत का पानी लाकर हजारों ग्रामों को डूबो देती है। इस लिहाज से शहरों और ग्रामों को कथित रूप से स्मार्ट व आदर्श बनाने से पहले इनमें ढांचागत सुधार के साथ ऐसे उपाय करने की जरूरत है, जिससे ग्रामों से पलायन रुके और शहरों पर आबादी का दबाव न बढ़े ?

शहरों की बुनियादी समस्याओं का हल शहरों में मुफ्त वाई-फाई देने या रात्रि में पर्यटन पर जोर देने से निकलने वाला नहीं है, इसके सामाधान शहर बसाते समय पानी निकासी के प्रबंध करने से ही निकलेंगे। यदि वास्तव में राज्यों को स्मार्ट शहरों की जरूरत हैं,तो यह भी जरूरी है कि शहरों की अधोसरंचना संभावित आपदाओं के अनुसार विकसित की जाए ? आफत की यह बारिश इस बात की चेतावनी है कि हमारे नीति-नियंता, देश और समाज के जागरूक प्रतिनिधि के रूप में दूरदृष्टि से काम नहीं ले रहे हैं। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मसलों के परिप्रेक्ष्य में चिंतित नहीं हैं। 2008 में जलवायु परिवर्तन के अंतरसकारी समूह ने रिपोर्ट दी थी कि घरती पर बढ़ रहे तापमान के चलते भारत ही नहीं दुनिया में वर्षाचक्र में बदलाव आने वाले हैं। इसका सबसे ज्यादा असर महानगरों पर पड़ेगा। इस लिहाज से शहरों में जल-प्रबंधन व निकासी के असरकारी उपायों की जरूरत है। इस रिपोर्ट के मिलने के तत्काल बाद केंद्र की तत्कालीन संप्रग सरकार ने राज्य स्तर पर पर्यावरण सरंक्षण परियोजनाएं तैयार करने की हिदायत दी थी। लेकिन देश के किसी भी राज्य ने इस अहम् सलाह पर गौर नहीं किया। इसी का नतीजा है कि हम जल त्रासदियां भुगतने को विवश हो रहे हैं। यही नहीं शहरीकरण पर अंकुश लगाने की बजाय,ऐसे उपायों को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे उत्तरोत्तर शहरों की आबादी बढ़ती रहे। यदि यह सिलसिला इन त्रासदियों को भुगतने के बावजूद जारी रहता है तो ध्यान रहे, 2031 तक भारत की शहरी आबादी 20 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो जाएगी। जो देश की कुल आबादी की 40 प्रतिशत होगी। ऐसे में शहरों की क्या नारकीय स्थिति बनेगी, इसकी कल्पना भी असंभव है ?  

वैसे, धरती के गर्म और ठंडी होते रहने का क्रम उसकी प्रकृति का हिस्सा है। इसका प्रभाव पूरे जैवमंडल पर पड़ता है,जिससे जैविक विविधता का आस्तित्व बना रहता है। लेकिन कुछ वर्षों से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि की रफ्तार बहुत तेज हुई है। इससे वायुमंडल का संतुलन बिगड़ रहा है। यह स्थिति प्रकृति में अतिरिक्त मानवीय दखल से पैदा हो रही है। इसलिए इस पर नियंत्रण संभव है। कुछ साल पहले चेन्नई, बैग्लुरू और गुरूग्राम की जल त्रासदियों को वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम माना था। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन समिति के वैज्ञानिकों ने तो यहां तक कहा था कि ‘तापमान में वृद्धि न केवल मौसम का मिजाज बदल रही है, बल्कि कीटनाशक दवाओं से निष्प्रभावी रहने वाले विषाणुओं-जीवाणुओं, गंभीर बीमारियों, सामाजिक संघर्षों और व्यक्तियों में मानसिक तनाव बढ़ाने का काम भी कर रही हैं।’

दरअसल,पर्यावरण के असंतुलन के कारण गर्मी, बारिश और ठंड का संतुलन भी बिगड़ता है। इसका सीधा असर मानव स्वास्थ्य और कृषि की पैदावर व फसल की पौष्टिकता पर पड़ता है। यदि मौसम में आ रहे बदलाव से बीते छह-सात साल के भीतर घटी प्राकृतिक आपदाओं और संक्रामक रोगों की पड़ताल की जाए तो वे हैरानी में डालने वाले हैं। तापमान में उतार-चढ़ाव से ‘हिट स्ट्रेस हाइपरथर्मिया’ जैसी समस्याएं दिल व सांस संबंधी रोगों से मृत्युदर में इजाफा हो सकता है। पश्चिमी यूरोप में 2003 में दर्ज रिकॉर्ड उच्च तापमान से 70 हजार से अधिक मौतों का संबंध था। बढ़ते तापमान के कारण प्रदूषण में वृद्धि दमा का कारण है। दुनिया में करीब 30 करोड़ लोग इसी वजह से दमा के शिकार हैं। पूरे भारत में 5 करोड़ और अकेली दिल्ली में 9 लाख लोग दमा के मरीज हैं। अब बाढ़ प्रभावित समूचे महाराष्ट्र में भी दमा के मरीजों की और संख्या बढ़ना तय है। बाढ़ के दूषित जल से डायरिया व आंख के संक्रमण का खतरा बढ़ता है। भारत में डायरिया से हर साल करीब 18 लाख लोगों की मौत हो रही है। बाढ़ के समय रुके दूषित जल से डेंगू और मलेरिया के मच्छर पनपकर कहर ढाते हैं। तय है,बाढ़ थमने के बाद, बाढ़ प्रभावित मुंबई को बहुआयामी संकटों का सामना करना होगा। बहरहाल जलवायु में आ रहे बदलाव के चलते यह तो तय है कि प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। इस लिहाज से जरूरी है कि मुंबई के बरसाती पानी का ऐसा प्रबंध किया जाए कि उसका जल भराव नदियों, नालों और बांधों में हो, जिससे आफत की बरसात के पानी का उपयोग जल की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में किया जा सके। साथ ही शहरों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए कृषि आधारित देशज ग्रामीण विकास पर ध्यान दिया जाए। दरअसल मनुष्येतर प्राणियों में बाढ़ और सूखे की दस्तक जान लेने की प्राकृतिक क्षमता होती है। इसीलिए बिलों से जीव-जंतु बाहर निकलने लगते हैं और खूंटे से बंधे पालतू मवेशी रंभाकर रस्सी तोड़कर भागने की कोशिश में लग जाते हैं। करीब तीन दशह पहले तक मनुष्य भी इन संकेतों को आपदा आने से पहले भांपकर सुरक्षा के उपायों में जुट जाता था। किंतु मौसम विभाग की कथित भविष्यवाणियों और मौसम मापक उपकरणों के आ जाने से उसकी ये क्षमताएं विलुप्त हो गईं। नतीजतन जनता को जानमाल के संकट कुछ ज्यादा ही झेलने पड़ रहे हैं। ये आपदाएं स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि अनियंत्रित शहरीकरण और कामचलाऊ तौर-तरीकों से समस्याएं घटने की बजाय बढ़ रही हैं।

प्रमोद भार्गव

भारत के विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में पुनः शामिल होने के संकेत

कोरोना महामारी की दूसरी लहर का असर हालांकि देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा तो है परंतु यह बहुत कम ही रहेगा। भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 में आर्थिक समीक्षा के अनुरूप भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 11 प्रतिशत ही रहने की सम्भावना है। इस प्रकार यह वृद्धि दर विश्व की समस्त बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में प्रथम स्थान पर रहेगी।

विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में भारत का पुनः शामिल हो जाना, महज एक इत्तेफाक नहीं है। बल्कि इसके लिए केंद्र सरकार ने व्यवस्थित तरीके से कई प्रयास किए हैं। विभिन क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि एवं श्रम कानूनों, में हाल ही में लागू किए गए संरचनात्मक सुधारों एवं आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के चलते यह सम्भव होता दिख रहा है। भारत में कोरोना महामारी के दौरान संरचनात्मक सुधारों के जरिए विभिन्न आपूर्ति पक्ष सम्बंधी परेशानियों को सफलतापूर्वक दूर किया गया है। इस प्रकार आगे आने वाले समय में आर्थिक वृद्धि दर पर मुद्रा स्फीति का प्रभाव भी कम ही रहने की सम्भावना है। माह जनवरी 2021 में जारी की गई आर्थिक समीक्षा में अनुमान लगाया गया था कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 11 प्रतिशत की रहेगी, जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में कोरोना महामारी के कारण यह ऋणात्मक 7.3 प्रतिशत की रही थी। इस प्रकार तो कोरोना महामारी की दूसरी लहर का प्रभाव देश की आर्थिक वृद्धि दर पर लगभग शून्य ही रहने वाला है। हालांकि उस समय पर आर्थिक समीक्षा में यह भी बताया गया था कि आर्थिक वृद्धि को आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करने एवं नियमों में ढील दिए जाने एवं आपूर्ति पक्ष को समर्थन देकर विकास दर को तेज करने में मदद मिलेगी।

अब आगे आने वाले समय में तो केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करने का बीड़ा ही उठा लिया है एवं बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निवेश को बढ़ाया जा रहा है। माननीया वित्त मंत्री महोदया ने विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों से अपनी पूंजीगत खर्च योजना का व्यय शीघ्रता से प्रारम्भ करने का आह्वान किया है। इस प्रकार, बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में पूंजीगत खर्च को बढ़ाया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च का प्रावधान किया गया है, जो वित्तीय वर्ष 2020-21 में किए गए पूंजीगत खर्च से 34.5 प्रतिशत अधिक है। बड़े आकार के केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए निर्धारित पूंजीगत ख़र्चे के बजट का 16 प्रतिशत भाग वित्तीय वर्ष की प्रथम तिमाही, अप्रेल- जून 2021 में, 93,000 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में मात्र 7 प्रतिशत राशि ही खर्च की जा सकी थी। विनिर्माण के क्षेत्र में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को तेजी के साथ लागू किया जा रहा है। कोरोना महामारी के कारण उत्पादों की दबी हुई मांग में पुनः संचार दिखाई दे रहा है। केंद्र सरकार द्वारा विवेकाधीन खर्च में बढ़ोतरी की जा रही है। साथ ही, देश में अब तेजी से चल रहे कोरोना के टीकाकरण से भी देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।

केंद्र सरकार द्वारा लगातार किए जा रहे प्रयासों के चलते बेरोजगारी की दर में भी अब कमी देखी गई है। सीएमआईई (CMIE) इंडिया बेरोजगारी दर जो कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बाद 9.4 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी वह अब नीचे गिरकर 8.7 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर 10.3 प्रतिशत की तुलना में अब यह 9 प्रतिशत पर नीचे आ गई है। जबकि, ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी की दर 8.9 प्रतिशत के उच्चतम स्तर से गिरकर अब 8.6 प्रतिशत पर आ गई है। साथ ही, ईपीएफओ (EPFO) में नए अभिदाताओं की संख्या भी मई 2021 माह के 11.20 लाख से बढ़कर जून 2021 माह में 12.8 लाख हो गई है जो कि जून 2021 माह में 14 प्रतिशत से बढ़ी है। इसी प्रकार बैंकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों में भी 4 जून 2021 को समाप्त अवधि के दौरान 9900 करोड़ रुपए की वृधि दृष्टिगोचर हुई है। इस वर्ष रोजगार के नए अवसरों के समावेशी रहने की भी प्रबल सम्भावना है क्योंकि कोरोना महामारी के दौरान गरीब तबके के रोजगार छिन गए थे।

तिरुपुर, जो देश का सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादन केंद्र है, में कुल श्रमिकों की क्षमता के मात्र 60 प्रतिशत श्रमिक ही उपलब्ध हो पा रहे हैं। इसी प्रकार सूरत में, जहां रत्न एवं आभूषण निर्माण की 6,000 इकाईयां कार्यरत हैं एवं जहां 400,000 से अधिक बाहरी श्रमिक कार्य करते हैं, में भी 40 प्रतिशत श्रमिक अभी भी काम पर नहीं लौटे हैं। चेन्नई के चमड़ा उद्योग में भी 20 प्रतिशत कम श्रमिकों से काम चलाया जा रहा है। देश में दरअसल उद्योगों में तो पूरे तौर पर उत्पादन कार्य प्रारम्भ हो चुका है परंतु श्रमिक अभी भी अपने गावों से वापिस इन उद्योगों में काम पर नहीं लौटें हैं। इस प्रकार रोजगार के अवसर तो उपलब्ध हैं परंतु श्रमिक उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।

भारत से उत्पादों के निर्यात में भी लगातार सुधार दृष्टिगोचर है एवं यह जून 2021 माह में लगातार चौथे माह 3,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का रहा है। देश से निर्यात किए जाने वाले 30 क्षेत्रों में से 25 क्षेत्रों में वृद्धि दृष्टिगोचर है। विशेष रूप से वस्त्र उद्योग, चमड़ा उद्योग, रत्न एवं आभूषण उद्योग तथा कृषि क्षेत्र से भी निर्यात लगातार बढ़ रहा है। यह सभी क्षेत्र रोजगार आधारित हैं। अतः देश में रोजगार के अधिक से अधिक नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। साथ ही, इंजीनीयरिंग उद्योग, पेट्रोलीयम उत्पाद, केमिकल आदि उद्योगों से भी निर्यात में आकर्षक वृद्धि देखने में आ रही है। इसके कारण देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी नित नए ऊँचे स्तर को छू रहा है। दिनांक 9 जुलाई 2021 को यह लगभग 61,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आंकडे को छू गया है।

माह जून 2021 में तो भारत से उत्पादों के निर्यात में 48 प्रतिशत की वृद्धि एवं आयात में 98 प्रतिशत की वृद्धि देखने में आई है इसका आश्य यह है कि देश में आर्थिक गतिविधियां पूर्णतः कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर को पार कर चुकी हैं। जून 2021 माह में देश से 3,250 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निर्यात दर्ज किए गए हैं जो माह जून 2019 से भी 30 प्रतिशत अधिक हैं।

जुलाई 2021 माह में वस्तुओं के एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजने के लिए जारी किए जाने वाले ई-वे बिल की मात्रा में भी तेज गति से वृद्धि देखने में आ रही है जो कि देश में आर्थिक गतिविधियों के शिखर पर आने का संकेत है। यह जुलाई 2021 माह के प्रथम 11 दिनों में औसत प्रतिदिन 19.24 लाख ई-वे बिल की संख्या तक पहुंच गया है तथा यह मई 2021 माह के प्रतिदिन औसत से 49 प्रतिशत अधिक एवं जून 2021 माह के प्रतिदिन औसत से 5.6 प्रतिशत अधिक है।

केंद्र सरकार के शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रहण में भी अब सुधार देखने में आ रहा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 की प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2021) में शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रहण 92 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 2,43,408 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया है। यह देश में आर्थिक गतिविधियों के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने, नियमों के व्यवस्थित अनुपालन एवं कम धन वापसी के कारण सम्भव हो सका है। प्रथम तिमाही में किया गया प्रत्यक्ष कर संग्रहण पूरे वर्ष के निर्धारित किए गए लक्ष्य 11.08 लाख करोड़ रुपए का 22 प्रतिशत है।

ग्रेट बैरियर रीफ़ ‘खतरे में’, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रहे परेशानी

बात दुनिया भर में प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की हो तो इस उत्सर्जन के उच्चतम स्तरों वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया एक प्रमुख नाम है। उत्सर्जन के इस स्तर का सीधा असर ऑस्ट्रेलिया की विश्वप्रसिद्ध धरोहर ग्रेट बैरियर रीफ़ पर भी पड़ रहा है।

हालात कितने खराब हैं, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, राज घरानों, पूर्व राष्ट्रपतियों और अभिनेताओं के एक समूह ने UNESCO से ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा ग्रेट बैरियर रीफ की रक्षा के लिए आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए कहा है। इन विश्व प्रसिद्ध हस्तियों ने एक खुले पत्र के माध्यम से, UNESCO से ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ‘खतरे में’ होने के चलते विश्व धरोहर स्थलों की सूची में दर्ज करने के लिए कहा है।

जैसा कि आप जानते होंगे, UNESCO की विश्व धरोहर समिति ने पिछले महीने के अंत के क़रीब सिफ़ारिश करी थी और इस सप्ताह इस प्रस्ताव पर मतदान करने के लिए बैठक होगी।

दुनिया भर के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के सबसे उच्चतम प्रति व्यक्ति स्तरों में से एक ऑस्ट्रेलिया में है, और यह कोयले और तरल गैस के दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक भी है। यह निर्णय में देरी करने के लिए सऊदी अरब और बहरीन के साथ एक ड्राफ्ट प्रस्ताव (मसौदा संकल्प) को सह-प्रायोजित करने सहित, मसौदा निर्णय के ख़िलाफ़ कड़ी पैरवी कर रहा है।

पत्र पर हस्ताक्षरकर्ताओं में फ़िलीप कोसटू (पत्रकार, एक्सप्लोरर और महासागर एडवोकेट), HSH प्रिंस अल्बर्ट II मोनाको के संप्रभु राजकुमार, क्रिस्टियाना फिगुएरेस, मोहम्मद नशीद GCSK (मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति), जोआना लुमले OBE FRGS (अभिनेता, निर्माता, कार्यकर्ता) और जेसन मोमोआ (अभिनेता-एक्वामैन) शामिल हैं।

उन्होंने उस बयान का समर्थन किया है, जो कहता है कि ऑस्ट्रेलिया और दुनिया को अब और इसी वक़्त जलवायु पर कार्य करना चाहिए, जब रीफ को बचाने के लिए समय है। बयान में कहा गया है कि रीफ में जलवायु आपातकाल पहले से ही स्पष्ट है, जो केवल पांच वर्षों में तीन गंभीर कोरल ब्लीचिंग (प्रवाल विरंजन) घटनाओं की ओर इशारा करता है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर कोरल मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।

वे कहते हैं कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करना रीफ के लिए एक महत्वपूर्ण सीमा है और ऑस्ट्रेलिया से – रीफ के संरक्षक के रूप में – 1.5°C के साथ संगत राष्ट्रीय योजना को लागू करने का अनुरोध करते हैं।

विश्व धरोहर समिति को रीफ को खतरे में विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल करने की UNESCO की सिफ़ारिश का विश्व प्रसिद्ध और सम्मानित एंडोर्सर्स (सहमति व्यक्त करने वाले) समर्थन करते हैं।

बयान में कहा गया है: “हम दुनिया के प्रमुख उत्सर्जकों से पेरिस समझौते के तहत सबसे महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई करने का अनुरोध करते हैं। ग्रेट बैरियर रीफ को बचाने के लिए अभी भी समय है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया और दुनिया को अभी कार्रवाई करनी होगी।

“हम UNESCO की उसके नेतृत्व के लिए सराहना करते हैं। हम विश्व धरोहर समिति से UNESCO की सिफ़ारिश का समर्थन करने का अनुरोध करते हैं।”

यह बयान ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख समुद्री संरक्षण संगठन, ऑस्ट्रेलियन मरीन कंज़र्वेशन सोसाइटी द्वारा आयोजित किया गया था।

AMCS के CEO डैरेन किंडलेसाइड्स ने उन प्रमुख नामों को धन्यवाद दिया, जिन्होंने बयान का समर्थन करने के लिए सहमति व्यक्त की।

“इस बयान के प्रभावशाली हस्ताक्षरकर्ता दुनिया भर से हैं, यह दर्शाता है कि हमारे रीफ के लिए आराधना और अलार्म केवल ऑस्ट्रेलियाई लोगों के लिए चिंता का विषय नहीं है। रीफ पूरी दुनिया (के स्वामित्व में है) का है, और इसके संरक्षक के रूप में, ऑस्ट्रेलिया को अपने भविष्य को संरक्षित करने के लिए जलवायु कार्रवाई पर वैश्विक नेतृत्व दिखाना चाहिए।”

पांच विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख पर्यावरण गैर-सरकारी संगठनों और 50 से अधिक प्रभावशाली आस्ट्रेलियाई लोगों के सार्वजनिक पत्रों के बाद UNESCO की सिफारिशों को स्वीकार करने के लिए विश्व धरोहर समिति पर यह नवीनतम हाई प्रोफाइल कॉल है।

21-सदस्यीय विश्व धरोहर समिति इस सप्ताह के अंत में तय करेगी कि वो UNESCO की रीफ को विश्व धरोहर में ‘खतरे में’ सूची में जोड़ने की विज्ञान-आधारित सिफारिश की पुष्टि की जाएगी या नहीं।

जनसंख्या


बढ़ेगी जब जनसंख्या, अच्छे दिन कैसे आयेंगे।
होगे जब दस दस बच्चे,फिर बुरे दिन तो आयेंगे।।

बढ़ रही जनसंख्या कैसे नियंत्रण कर पाओगे।
हुआ न नियंत्रण,देश का विकास न कर पाओगे।।

पड़ी है बेड़ियां जनसंख्या की भारत मां के पैरो में।
चलता रहा देश ऐसा,रोड़ी चुभेगी मां के पैरो मे।।

बढ़ेगी जनसंख्या देश की,ये विकास रुक जाएगा।
रोकी नहीं आबादी,देश गड्ढे मे तुरंत गिर जाएगा।।

बच्चे ज्यादा होगे तो जरुरते कैसे होगी पूरी।
कम बच्चो वालो की भी जरुरते न होती पूरी।।

बहती थी जहां दूध की नदिया पानी के लिए तरस रहा है।
एक बोतल शुद्ध पानी के लिए बन्दा अब तरस रहा है।।

नर्मदा जल को अमृतजल योजना के नाम पर बेचने आई कंपनिया

आत्माराम यादव पीव
मध्यप्रदेश सरकार मानती है कि नर्मदा का जल अमृत है। धरती की कोख से शीतलजल देने वाले कुयें,बाबडिया,टयूबबेल सभी एक राजनैतिक षड़यंत्र के तहत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये। अब धरती के सारे जलस्त्रोतों को बंद कर प्रदेश में नर्मदा सहित सभी पवित्र नदियों के जल को घर-घर पहुॅचाने ंके लिये करोड़ों रूपये के पूर्व संसाधनों को बंद कर अरबों रूपये की यह योजना अमृत जल के नाम से चालू कर भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है। नये नल कनेक्शनों को बंद कर नये पाईप लाईन के रूप में घटिया पाईप लाईन बिछाकर घरों में मीटर देकर नाप-तौल कर पानी देने एवं वर्तमान जलकर राशि 50-100 रूप्ये प्रतिमाह की जगह अब 4-5 सौ रूपये प्रतिमाह लेने की तैयारी है। मजे की बात यह है कि यह राशि आपके नगरपालिकाओं-नगरनिगमों के खाते में नहीं जायेगी, यह सब बाहर से आने वाली कम्पनियों को लाभ पहुॅचाने के लिये की गयी है। ये कम्पनियाॅ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तर्ज पर होगी जो पहले नगरपालिकाओं में एक खिड़की से शुरूआत करेगी फिर एक कमरे में, फिर एक बडे आफिस में, फिर अलग जल विभाग के नाम पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेगी। हमने तीन साल पहले ही होशंगाबाद जिले के लोगों को आगाह किया था किन्तु यह नासमिटे पत्रकारों की खोपड़ी में नगर के लोगों के हित दिखते ही नहीं, विज्ञापनों के टुकड़ों के आगे ये लोग जनता के हितों का सौदा करने में अग्रणी हो गये है, वर्ना इन्हें चाहिये था कि जनता को वास्तविकता से अवगत कराते, लेकिन इस एक पक्षीय पत्रकारिता ने जनता को कब्र में पहुॅचाने का काम किया है। माॅ नर्मदे से ही हम प्रार्थना करते है कि वे अपने बच्चों का ध्यान रखे।
माॅ रेवा, आप पापनाशिनी हो, पतितपावन हो, वंदनीय हो,, पूजनीय हो, जगत के सभी तीर्थो का पुण्यलाभ आपके जल से प्राप्त होता है इसलिये जीवनदायिनी होने से इस प्रदेश की जीवनरेखा भी हो। आपका पवित्र जल देवों के शीष पर चढ़ता है और लाखों लोग पैदल काबड़यात्रा कर उस जल से महादेव का पावन अभिषेक कर पुण्यभागी बनते है। माॅ आपका ही पुण्यप्रताप है कि आपके तट के दोनों ओर 10-20 किलोमीटर दूर तक कुये-बाबड़ी और टयूबबेल का जल धरती की सतह के कुछ मीटर पर लबालब रहता है। आपकी गोद में पले-बढ़े शिवराज जी ने प्रदेश का भार संभाला तो कई जिलों में जलसंकट होने पर आपसे याचना कर आपके जल को भोपाल, इन्दौर सहित उज्जैन के लाखों लोगों की प्यास बुझाई और सूख चुकी छिप्रा-खान नदी को तृप्त कर अपनी सरकार का खजाना भी भरा है। होशंगाबाद नगर में नगरपालिका द्वारा नगर के विभिन्न वार्डो में अब तक 89 हैण्डपंपों, 76 टयूबबलों एवं 5 कुओं खोदकर पर्याप्त जल की सुविधा नगरजनों को उपलब्ध करायी गयी जिसमंें करोड़ों रूपये खर्च कर प्रत्येक स्थानपर मोटरें लगवायी,पूरे नगर में पाईपलाईन बिछायी और प्रत्येक दिन सुबह-शाम दो घन्टे जल की आपूर्ति बिना किसी जल संकट के अब तक की जाती रही है। अगर कहीं इन पुराने जलआपूर्ति संसाधनों में कमी बगैरह की स्थित रही तो पर्याप्त राशि खर्च कर उन कमियों को पूरा किया गया लेकिन कभी भी शहर में ऐसे हालात नहीं बने कि पुराने जलसंसाधनों के कारण जल की आपूर्ति प्रभावित हुई हो और नागरिक परेशान रहे हो।में जनता के करोड़ों रूपये की मोटर लगाकर, शहर में पाईपलाईन बिछाकर सुबह-शाम दो-दो घन्टे भरपूर जल आपूर्ति हो रही हो और नगर में जल संकट की स्थिति दूर तक न हो तब पुराने जलआपूर्ति संसाधनों का कायाकल्प करने की बजाय उसे बंद करके अब तक 60 रूपये प्रतिमाह जलकर की जगह अमृत परियोजना के तहत दुबारा नये कनेक्शन के नाम पर 2500 रूपये वसूलकर प्रतिमाह 300 रूपया जलकर वसूलने को तत्पर है इस प्रकार जनता से 800गुना जलकर की वसूली होगी और पुराने कनेक्शन के जमा पैसे की बात न कर उसे हजम कर जनता के पैसों की खुली लूट है। नलांें में पानी के मीटर लगाकर नापतौल के आपूर्ति करना, न चाहते हुये भी लोगों को घर-घर नर्मदा जल पहुॅचाना, क्या यह जबरिया दमदारीदिखाकर जनता से खुली लूट नहीं है। हे माॅ रेवा, नगर का हर नागरिक आपका बच्चा हैॅ और वह पूरी श्रद्धा और विश्वास से नर्मदा जी की पूजन-अर्चन करता है तब वह अमृतमयी नर्मदा जल को शौच-निवृत्त आदि के उपयोग में कैसे और क्यों लायेगा? क्या यह नर्मदाजल का अपमान नहीं है? अगर स्वयं के स्वार्थवश नर्मदा का अत्यधिक दोहन करने लग जाये तो स्वच्छ जल बनने की प्रक्रिया ध्वस्त नहीं होगी। जिले में पर्याप्त जल है,भरपूर खाद्यान्न उत्पादित हो रहा है,कलेक्टर सालाना कृषिकर्मण पुरूष्कार ला रहे हो तब इस जिले में कौन सी लाचारी आ गयी और कौन सा पहाड़ टूट पड़ा कि भरपूर जल व्यवस्था के संसाधनों को दुरूस्त करने की बजाय उसे बंद कर नई जलनीति के तहत अमृतयोजना से नर्मदा के पावन जल को घर-घर पहुॅचाये,क्या यह नगरपालिका परषिद सहित राज्य सरकार की गहरी असफलता नहीं, तो ओर क्या है।
हे माॅ नर्मदे, इतिहास गवाह है कि 17 मई 1867 को नगरपालिका होशंगाबाद की स्थापना हुई थी और 1869 में आपके सेठानीघाट स्थित तिलकभवन से इस परिषद के प्रथम अध्यक्ष के रूप में कर्नल जे.वी.डेनीज ने नगर की व्यवस्था का संचालन शुरू किया और आजादी मिलने तक 6 अग्रेज इस पद पर काबिज रहे। आजादी के बाद इस नगर के पं.सुखदेव, मुंशी बेनी प्रसाद, रायबहादुर कालीदास चोधरी, जगन्नाथ प्रसाद मिश्रा, लाला भगवती प्रसाद,जगन्नाथ प्रसाद मिश्रा, डी.एस.बी.पण्डित , जुगलकिशोर दीक्षित, सीताचरण दीवान बहादुर वकील, पं.वी.जी.हर्णे, उपेन्द्रशंकर प्रसाद द्विवेदी, नाथूराम भारद्धाज,रामकिशोर दीक्षित, बाबूलाल फौजदार, कैलाशचन्द्र दुबे, जिनवरराम फौजदार,श्रीराम राठौर,गिरिजाशंकर शर्मा,कैलाशचंद दुबे,श्रीमति सुशीला तिवारी,श्रीमति मीनावर्मा, अवधबिहारी गौर, डाक्टर नरेन्द्र पाण्डे नगरपालिका परिषद होशंगाबाद के अध्यक्ष रहे पर किसी ने कभी नर्मदाजल का कारोबार नगरजनों से नहीं किया और न उन्होंने नर्मदाजल को उत्पाद समझ कर उसकी कीमत लगायी और न नागरिकों को उपभोक्ता समझकर उन्हें नर्मदाजल बेचने की हिमाकत की। नगरपालिका परिषद होशंगाबाद के 150 साल पूरे होने के बाद इस परिषद की अध्यक्ष बनी श्रीमति माया नारोलिया ने नगरवासियों को विश्वास में लिये बिना मुम्बई की कम्पनी के हाथों नर्मदा जल का सौदा करके नर्मदा जल का व्यवसाय नगरजनों के साथ करके खुदका लाभ देखा और पूरे नगर का अहित किया। माया नारोलिया के कदमों पर आगे बढ़ते हुये वर्तमान नपाध्यक्ष अखिलेश खण्डेलवाल ताकत के साथ अमृत परियोजना को लागू करने पर अमादा है जबकि वे नर्मदापुत्र होने का दंभ रखते हुये नर्मदा को स्वच्छ,सुचिता,एवं गंदगीमुक्त करने हेतु मिलने वाले नालों-नालियों को नर्मदाजल में न मिलने की सौगन्ध उठाकर जूते-चप्पल का परित्याग किये है।
होशंगाबाद के नगरजनों को अगर अमृतयोजना के तहत नर्मदा जल थोप रहे है तो नगरजनों को भी यह जानने का हक है कि नर्मदापुत्र अखिलेश खण्डेलवाल जी नगरपालिका परिषद होशंगाबाद के अध्यक्ष रहे श्री बाबूलाल फौजदार के कार्यकाल से शुरू करते हुये उनके स्वयं के कार्यकाल तक तक नागरिकों को जल आपूर्ति हेतु खोदे गये टयुबबेलों-हैण्डपंपांें, जल प्रदाय हेतु खरीदी गयी मोटरों, मोटरों पर किये गये रिपेयरिंग खर्च, शहर में बिछायी गयी पाईपलाईन पर व्यय, सड़कों की खुदाई करके बिछायी गयी पाईप लाईन खर्च, पाईपलाईन बिछाने के बाद सड़क मरम्मत पर किये गये खर्च का प्रत्येक वर्ष का सम्पूर्ण ब्यौरा तथा इस पुरानी जल आपूर्ति व्यवस्था के बंद होने से होने वाले सम्पूर्ण नुकसान को नगरजनों के समक्ष सार्वजनिक करें तथा अमृतपरियोजना चालू करने पर क्या नर्मदा जल नगरजनांें को स्वीकार है या नहीं इस पर नगर के हर आम नागरिक से समर्थन प्राप्त करें। अमृत परियोजना के तहत 18 करोड़ की यह योजना समय पर पूरी न करने के कारण 46 करोड़ की हो गयी, समयावधि में कार्य पूरा न कराने के दोषी हर जिम्मेदारं से इसकी वसूली हो। यह भी स्पष्ट हो कि जिन घरों में खुदके टयूबबेल-हेण्डपंप लगे है क्या उन्हें बंद किया जाकर वहाॅ भी मीटर लगाकर उनके निजी संसाधन समाप्त किये जायेंगे। जिस मकान के मालिक आप हो,क्या उस मकान के नीचे जल के मालिक आप होंगे या कम्पनी को आपकी जमीन के नीचे के जल का मालिकाना हक होगा? नर्मदा जल किस सीमा तक बेचने की अनुमति दी गयी है, इसके लिये 18 करोड़ की योजना को 46 करोड़ करने के षड़यंत्र में भ्रष्टाचार करके किसने कितना पैसा बनाया/ है, क्या अमृतजल परियोजना का संचालन नगरपालिका करेगी या बाहर से आकर कोई कम्पनी इसके आफिस का संचालन कर वसूली करेंगी? उक्त कम्पनी से किये गये अनुबन्ध आदि को जनता के सामने सार्वजनिक कर नर्मदाजल के लिये बनायी गयी टंकियों-पाईपलाईन पर किये गये खर्च का पूर्ण ब्यौरा, सड़को को खोदकर पाईपलाईन डाले जाने और सड़कों की रिपोयरिंग का ब्यौरा भी नगरजनों को जानने का अधिकार है, नगरजनों को उपरोक्तानुसार प्रत्येक वर्ष का खर्च का मदबार ब्यौरा का एक श्वेतपत्र से जबाब मिलना चाहिये ताकि वे यह भी जान-समझ सके कि एक पूर्णरूपेण सक्षम,सुचारू जल आपूर्ति व्यवस्था को निजी स्वार्थो के रहते कैसे नष्ट कर नयी व्यवस्था चालू करने में,दोनों ही अवस्था में नगरजनों केे घर अन्धेरा कर स्वयं के घर को कैसे जगमन किया जाता है। माॅ आपकी कृपा होशंगाबाद के प्रत्येक नागरिक पर बनी रहे और उन्हें जबरिया अमृतपरियोजना के तहत नर्मदाजल खरीदना न पड़़े ,ऐसी कृपा इस नगर पर कर दो माॅ, ताकि नर्मदाजल का मान बना रहे और नर्मदाजल बेचकर कारोबार करने वालों को माॅ आप ही उचित दण्ड दे।

विश्व में ईश्वरीय ज्ञान वेद का धारक, रक्षक एवं प्रचारक आर्यसमाज है

-मनमोहन कुमार आर्य
प्रश्न क्या परमात्मा है? क्या वह ज्ञान से युक्त सत्ता है? क्या उसने सृष्टि की आदि में मनुष्यों को ज्ञान दिया है? यदि वह ज्ञान देता है तो वह ज्ञान उसने कब किस प्रकार से मुनष्यों को दिया था? इन प्रश्नों पर विचार करने पर उत्तर मिलता है कि परमात्मा का अस्तित्व सत्य एवं निर्विवाद है। परमात्मा की सत्ता का प्रमाण यह सृष्टि है और इसमें मनुष्यरूप व अन्य प्राणियों के रूप में हमारे अस्तित्व का होना है। किसी वैज्ञानिक व बुद्धिमान के पास इस बात का उत्तर नहीं है कि यह संसार कब, कैसे, क्यों व किस सत्ता से अस्तित्व में आया? उनके पास विचार करने के लिये कोई मार्गदर्शक ग्रन्थ व आचार्य आदि भी नहीं है। भारतियों व उनमें भी केवल आर्यसमाज के अनुयायियों के पास ही ऋषियों के उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों सहित सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर प्रदत्त ज्ञान के रूप में चार वेद विद्यमान हैं जिनकी अन्तःसाक्षी से वेद ईश्वरीय ज्ञान सिद्ध होते हैं। परमात्मा है तो उसकी बनाई कृति यह सृष्टि भी है। यदि वह न होता तो इसकी यह कृति सृष्टि न होती। यदि कोई यह प्रश्न करे कि यदि यह संसार परमात्मा की कृति है, तो इसे सिद्ध कैसे किया जा सकता है? इसका उत्तर है कि संसार में ऐसी कोई सत्ता नहीं है, जो सृष्टि का निर्माण कर सकती है। सृष्टि की रचना अपौरुषेय रचना है। इसे मनुष्य अकेला व सभी सभी मनुष्य व प्राणी मिलकर भी बना नहीं सकते। यदि बना भी सकते तो प्रश्न होता है कि मनुष्य को बनाने वाली भी एक सत्ता होनी चाहिये थी। सृष्टि व मनुष्य आदि सभी प्राणियों को बनाने वाली एक ही सत्ता है और वह ईश्वर वा परमात्मा है। यदि किसी को ईश्वर का साक्षात् करना है तो उसे वेदाध्ययन वा स्वाध्याय सहित योगाभ्यास, ध्यान व समाधि को प्राप्त कर किया जा सकता है। हमारे सभी ऋषि व योगी ईश्वर का साक्षात् करते थे। ईश्वर का साक्षात् कर ही वह कहते थे ‘शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्यमा। शन्नऽइन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः।। नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि, त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि, ऋतं वदिष्यामि, सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु। अवतु माम् अवतु वक्तारम्।’ कोई भी मनुष्य यदि योगाभ्यास करता है और योग के लिये आवश्यक नियमों का पालन करता है, तो वह ईश्वर का प्रत्यक्ष कर सकता है।

हम यह भी अनुभव करते हैं कि संसार में कोई भी मनुष्य यदि निष्पक्ष रूप से वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन करता है तो उसकी आत्मा ईश्वर के अस्तित्व को स्वतः स्वीकार कर लेती है। इसका एक कारण यह है कि ईश्वर हमारी आत्मा में व्यापक है। हमारा ईश्वर से व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध है। ईश्वर हमारी आत्माओं में निरन्तर सत्यासत्य की प्रेरणा करता रहता है। ईश्वर की प्रेरणा के लिये आवश्यक यह है कि हम शुद्ध व पवित्र अन्तःकरण वाले हों। इसका मुख्य कारण यह है कि ईश्वर स्वमेव परम शुद्ध एवं परम पवित्र चेतन एवं ज्ञानवान सत्ता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये हमें अपने जीवन को सत्य विचारों एवं सत्य आचरण से विभूषित करने के साथ शुद्ध अन्न, जल एवं वायु का सेवन कर शुद्ध एवं पवित्र बनना होगा। इसी विधि से हमारे वेद एवं योग के अभ्यासी मनीषी ईश्वर का ध्यान, चिन्तन व मनन करते हुए ईश्वर का प्रत्यक्ष किया करते थे। 

परमात्मा ज्ञानयुक्त सत्ता है। इसका ज्ञान उसकी अपौरुषेय विशिष्टि रचनाओं को देखकर होता है। परमात्मा ने सृष्टि सहित सभी प्राणियों की रचना की है। हम किसी व्यक्ति के ज्ञान का आंकलन उससे बात-चीत करके व उसके पत्रों व पुस्तक आदि को पढ़कर लगाते हैं। ऋषि दयानन्द के ज्ञान का अनुमान भी हमें उनकी रचनाओं व ग्रन्थों को पढ़कर ही होता है। इसी प्रकार से ईश्वर की पुस्तक यह सृष्टिरूपी रचना है। सृष्टि में परमात्मा ने जिस ज्ञान व शक्ति का प्रयोग किया है उसका तो हम व हमारे वैज्ञानिक सहस्रांश भी नहीं जानते। आज सृष्टि के 1.96 अरब वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी हम व हमारे वैज्ञानिक सृष्टि को पूरी तरह से नहीं जान सके हैं। आज भी ऐसे अनेक रोग है जिनके विषय में वैज्ञानिक व चिकित्सक जानते ही नहीं हैं। बिहार में कुछ वर्ष पहले 150 लोग बुखार से मर गये थे। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में इसका कहीं उल्लेख नहीं है। अतः चिकित्सकों को इस बीमारी का ज्ञान नहीं था। उपचार तो वह रोग व उसकी ओषधि के ज्ञान के बाद ही कर सकते थे। अतः हमारी सृष्टि ईश्वर के ज्ञानवान होने का संकेत करती व पता देती है। ईश्वर ज्ञानवान अर्थात् सर्वज्ञ सत्ता है। वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म, रंगरूप रहित, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक एवं पवित्र सत्ता है। सर्वव्यापक का अर्थ है कि वह संसार में सब जगह तथा सब पदार्थों यथा जीवात्मा आदि के भी भीतर व बाहर सर्वत्र है। जीवात्मा एक चेतन सत्ता होने से ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता रखती है। सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि के मनुष्यों को ज्ञान देने वाला ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं होता। बिना ज्ञान के मनुष्य अपना कोई भी कार्य नहीं कर सकता। ज्ञान व भाषा साथ-साथ रहती हैं। अतः सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि के मनुष्यों को ज्ञान केवल ईश्वर से ही मिल सकता है। वह ज्ञान ईश्वर प्रदत्त होने से अलौकिक व दैवीय भाषा से युक्त शब्दों व व्याकरण आदि से संयुक्त होता है जो मनुष्यों की रचना की सामथ्र्य से होना सम्भव नहीं होता। ऐसा ज्ञान चार वेदों का ज्ञान है। वेदों में ईश्वर, जीवात्मा सहित सभी सत्य विद्याओं का सत्य ज्ञान है। हमारा विचार है कि यदि ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान न दिया होता तो मनुष्य भाषा सहित ज्ञान की उत्पत्ति नहीं कर सकते थे। वेदों की भाषा एवं ज्ञान को देख कर इसका ईश्वर प्रदत्त होना सिद्ध होता है। सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा ऋषियों को दिया गया वेदज्ञान ही परम्परा व गुरु-शिष्य परम्परा से लोगों को मिलता रहा है और वही वर्तमान में भी हमें सुलभ है। हमने वेदों का ज्ञान सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों को पढ़कर प्राप्त किया है, इस कारण से सत्यार्थप्रकाश व इसके रचयिता ऋषि दयानन्द हमारे गुरु व आचार्य हैं तथा वह हमारे लिए परमादरणीय हैं।

परमात्मा का अस्तित्व है, वह ज्ञानवान सर्वज्ञ सत्ता है और उसके द्वारा सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों को दिया गया ज्ञान वेद है। वेदों का यह ज्ञान कहां व किसके पास है? इसका उत्तर है यह ज्ञान ऋषि दयानन्द के समय में विलुप्त हो गया था। उसे उन्होंने अपने अथक पुरुषार्थ से प्राप्त किया था और उसके बाद अपने वेदांगों के ज्ञान से वेदों के मर्म को जानकर न केवल सत्यार्थप्रकाश एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थ ही लिखे थे अपितु वेदों के सत्यार्थयुक्त वेदभाष्य करने का कार्य भी किया था। यद्यपि ऋषि दयानन्द के अनुसार वेदों के अध्ययन, अध्यापन व वैदिक सिद्धान्तों के अनुसार जीवनयापन करने का मनुष्यमात्र को अधिकार है परन्तु हमारे देश की अज्ञान व स्वार्थों में फंसी जनता ने वेदों से लाभ नहीं उठाया। वह वर्तमान समय तक अविद्यायुक्त मत-मतान्तरों के अन्धकार में फंसे हुए हैं। हमारे सनातन पौराणिक बन्धु वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते तो हैं परन्तु उसका वह लाभ नहीं लेते जो उनके लिये उचित है। वह अविद्यायुक्त पुराणों व ऐसे ही अन्य ग्रन्थों को अपना धर्म व कर्तव्य मान बैठे हैं। ऋषि दयानन्द ने इनकी यह अविद्या दूर करने के अनेकानेक प्रयत्न किये परन्तु इन्होंने उससे लाभ नहीं उठाया। ईसाई एवं मुसलमान तथा बौद्ध, जैन व सिख समुदाय के लोग भी वेदों को वह महत्व नहीं देते जो ईश्वरीय ज्ञान होने के कारण उन्हें दिया जाना चाहिये। 

वर्तमान समय में केवल आर्यसमाज जी वेदों का सच्चा वाहक, धारक, रक्षक एवं प्रचारक है। सभी आर्यों द्वारा जीवनयापन एवं अन्य कार्य वेदों की आज्ञा अनुसार ही किये जाते हैं। वह वेद एवं वेदानुकूल ग्रन्थों सत्यार्थप्रकाश, उपनिषद एवं दर्शन आदि का अध्ययन करते हैं। चारों वेदों पर ऋषि एवं अन्य विद्वानों के वेदभाष्य का अध्ययन भी आर्यसमाज के अनुयायी नियमित रूप से करते हैं। सभी आर्यसमाजी शाकाहारी एवं वेदधर्म पारायण होते हैं। देशभक्ति एवं समाजहित इनके लिये सबसे अधिक महत्व रखता है। वेदों की भाषा संस्कृत है। वेदों एवं संस्कृत का सबसे अधिक सम्मान यदि संसार में कोई करता है तो वह आर्यसमाज व उसके अनुयायी ही हैं। आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य ही इसके संस्थापक ऋषि दयानन्द ने वेद प्रचार निर्धारित किया है। आर्यसमाज संगठन की यदि एक वाक्य में परिभाषा की जाये तो यह विश्व में वेदों का प्रचार व प्रसार करने वाला संगठन वा आन्दोलन है। आज संसार में वेदों का जो सम्मान व प्रचार है, उसका समस्त श्रेय ऋषि दयानन्द एवं उनके अनुयायी वैदिक विद्वानों सहित आर्यसमाज के संगठन को है। आर्यसमाज के सभी लोग वेदों पर आधारित प्रातः व सायं ईश्वर का ध्यान करने के लिये संन्ध्या करते हैं। प्रतिदिन प्रातः सायं अग्निहोत्र यज्ञ भी करते हैं। आर्यसमाज जाकर प्रति रविवार को यज्ञ करने के साथ भजन एवं वेद प्रवचनों द्वारा सत्संग करते हैं। 

आर्यसमाज द्वारा अनेक प्रकार के सामाजिक कार्य किये जा रहे हैं। आर्यसमाज अनाथालय, विद्यालय, चिकित्सालय व क्लिनिक सहित वेद और संस्कृत प्रचार आदि के अनेक कार्य करता है। अतः इस संसार के रचयिता एवं पालक ईश्वर द्वारा प्रदत्त ज्ञान का एकमात्र वाहक, धारक, पोषक एवं प्रचारक संसार में केवल आर्यसमाज ही है। आज संसार में वेद विद्यमान हैं तो इसका श्रेय ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज को ही है। अतः आर्यसमाज संगठन विश्व का सबसे पवित्र, प्राणी मात्र का हितकारी, अज्ञान, अन्धविश्वासों एवं सामजिक असमानताओं को दूर करने वाला श्रेष्ठ एवं महान संगठन है। हम आर्यसमाज के संस्थापक ऋषि दयानन्द एवं इस आन्दोलन को अपने प्राणों व तन-मन-धन से सींचने वाले सभी विद्वानों व महापुरुषों सहित दिव्य भावनाओं से युक्त इसके कार्यकर्ताओं को सादर नमन करने सहित उनका अभिनन्दन करते हैं। 

धन्य-धन्य हैं शहीदों के माता-पिता

—विनय कुमार विनायक
धन्य! धन्य! है वह पिता,
जिसके बेटे ने देश के हित में सीना को तान दिया!

धन्य! धन्य! है वह माता,
जिसके लाल ने देश हित में अपने प्राण दान दिया!

ऐसे पिता का जोड़ कहां,
जिसके खूने जिगर ने स्वदेश को अपना खून दिया!

ऐसी माता का तोड़ कहां,
जिसके लख्ते जिगर ने मां की कोख को सून किया!

वह पिता ईश्वर से ऊपर,
जिसने शहीद पुत्र की लाश को ढ़ोया अपने कंधों पर!

वह माता धरा से भारी,
जिसने अपने हाथों से तिरंगा लपेटा बेटे की अर्थी पर!

उस पिता का क्या कहना,
जिसने माटी का कर्ज चुकाया जवां बेटे को मुखाग्नि देकर!

उस माता का क्या कहना,
जिसने माता का फर्ज निभाया अपने सपूत की बलि देकर!

ऐसे माता-पिता के ऋणी हैं,
देश का हर एक मानव, दानव, देवता, दुश्मन और ईश्वर!

ऐसे माता-पिता के होते,हम चैन सुकून से सोते,
देश की सुरक्षा टिकी है ऐसे माता-पिता के चिर रुदन पर!

संप्रभुता, अर्थ व्यवस्था,धार्मिक आस्था,
सबका अस्तित्व टिका होता है ऐसे माता-पिता के त्याग पर!

ऐसे माता-पिता सर्वदा परम पूजनीय हैं,
ईश्वर को किसने देखा, ऐसे माता-पिता के बूते सुरक्षित बार्डर!

अगर पूजने/नवाजने की चाहत है तो
पूजो/नमाजो/सिमरन-दर्शन कर लो ऐसे माता-पिता का एकबार!

फिर पूजो मंदिर-मस्जिद के ईश्वर को बार-बार,
कि मंदिर-मस्जिद सा शहीदों के माता-पिता होते नहीं चौराहे पर!
—विनय कुमार विनायक

रिन्यूएबल एनर्जी के लिए G20 का गंभीर होना ज़रूरी

वैश्विक पवन उद्योग के प्रमुख CEOs (सीईओ) ने एकजुट होकर G20 (जी20) सदस्यों से, राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाकर और जीवाश्म ईंधन की जगह लेना के लिए पवन ऊर्जा उत्पादन में इज़ाफ़ा करने के लिए तत्काल ठोस योजना बनाकर, जलवायु संकट में नेतृत्व दिखाने की माँग की है।

COP26 के लिए ग्लोबल विंड एनर्जी कोअलिशन (वैश्विक पवन ऊर्जा गठबंधन) के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए, 25 CEOs ने G20 के नेताओं को एक ओपन लेटर (खुला पत्र) भेजा है। इसमें पत्र में, यह स्वीकार करते हुए कि एनर्जी ट्रांजिशन में कुछ प्रगति हुई है, कहा गया है कि G20 देशों की वर्तमान नेट ज़ीरो प्रतिज्ञाओं ने दुनिया को अभी भी 2.4°C ग्लोबल वार्मिंग मार्ग पर रखा है जो जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए जो आवश्यक से कहीं अधिक है।

इस बीच, पवन ऊर्जा और रिन्यूएबल प्रतिष्ठान वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रक्षेपवक्र से काफ़ी कम पड़ते हैं, जिस कारण ऊर्जा नीतियों में सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

GWEC के CEO बेन बैकवेल ने कहा, “G20 सदस्य देश वैश्विक ऊर्जा से संबंधित कार्बन उत्सर्जन के 80% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं – इसलिए इन देशों के नेता दुनिया की ऊर्जा प्रणाली को बदलने के लिए शक्ति और सार्वजनिक कर्तव्य रखते हैं। इन देशों को रिन्यूएबल ऊर्जा के बारे में गंभीर होने की ज़रूरत है, और विशेष रूप से दुनिया को अपने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करने की सबसे अधिक संभावना वाले स्वच्छ ऊर्जा समाधान के रूप में पवन ऊर्जा के बारे में।“

पत्र पर सबसे बड़ी पवन ऊर्जा कंपनियों के नेताओं द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं – जिसमें Vestas Wind Systems (वेस्टास विंड सिस्टम्स), Siemens Gamesa Renewable Energy (सीमेंस गामेसा रिन्यूएबल एनर्जी), Ørsted (ओर्स्टेड), SSE(ससई), RWE(आरडब्लूई), और Mainstream Renewable Power (मेनस्ट्रीम रिन्यूएबल पावर), और यूके, यूरोप, ब्राजील, चीन, मैक्सिको, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों में उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले संघ शामिल हैं।

हस्ताक्षरकर्ता इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के हालिया रोडमैप से पता चलता है कि 2050 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य को पूरा करने के परिदृश्य के लिए वार्षिक पवन परिनियोजन को 2020 में 93 GW से चार गुना बढ़कर 2030 में 390 GW हो जाना चाहिए। IEA और IRENA, दोनों नेट ज़ीरो परिदृश्य के लिए आवश्यक कुल पवन ऊर्जा क्षमता में संरेखित हैं जो, 2050 तक क्रमशः 8,265 गीगावॉट और 8,100 गीगावॉट की आवश्यकता के पूर्वानुमान, 1.5°C वार्मिंग मार्ग के अनुकूल है।

यदि पवन ऊर्जा के लिए वर्तमान विकास दर बना रहता है, तो पत्र का तर्क है कि वैश्विक पवन क्षमता, 2050 तक स्थापना में 43% की कमी के साथ, 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए आवश्यक मात्रा में भीषण रूप से कम पड़ जाएगी।

G20 देशों में बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त पवन ऊर्जा क्षमता है जो राष्ट्रीय बिजली की मांग के एक महत्वपूर्ण हिस्से को पूरा कर सकती है, लेकिन जो वे अभिनियोजित कर सकते हैं उसका बमुश्किल उपयोग कर रहे हैं। दुनिया भर में पवन ऊर्जा प्रतिष्ठानों की वर्तमान गति के साथ, पूर्वानुमान बताते हैं कि हम 2050 तक नेट ज़ीरो तक पहुंचने के लिए आवश्यक पवन ऊर्जा क्षमता के आधे से भी कम को स्थापित करेंगे।

ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (GWEC) भारत के नीति निदेशक, मार्तंड शार्दुल कहते हैं, “भारत की वर्तमान स्थापित रिन्यूएबल ऊर्जा क्षमता का 40% शामिल करते हुए, पवन ऊर्जा भारत के स्वच्छ एनर्जी ट्रांजिशन और कम कार्बन विकास प्रक्षेपवक्र के केन्द्र में है और इसमें कई सकारात्मक बाहरीताएं हैं जैसे रोजगार सृजन और वायु प्रदूषण का मिटिगेशन। फिर भी, 140 GW स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता के 2030 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए नवीन संस्थानों, चुस्त व्यापार मॉडल्स और स्मार्ट वित्तपोषण की आवश्यकता होती है ताकि बिजली उत्पादन और विनिर्माण, दोनों का विस्तार किया जा सके, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय या सीमा पार की ज़रूरतों को पूरा करता है जिससे स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा उपकरणों के वैश्विक निर्यात में बढ़ोतरी होगी। यह नेट-ज़ीरो (लक्ष्य) के लिए वैश्विक प्रयासों को उत्प्रेरित करेगा।”

आज धर्म और मजहब में तीव्र उग्रता बढ़ी है

धर्मनिरपेक्षता

—विनय कुमार विनायक
आज धर्म और मजहब में तीव्र उग्रता बढ़ी है,
आज धर्म और मजहब उस चौराहे में खड़ी है,
जहां मजहबियों में लोगों के प्रति घृणा बड़ी है,
आज धार्मिक मजहब में दुर्भावना भरी पड़ी है!

आज तो सारे भगवान जाति में बांट लिए गए
परशुराम झा,रामसिंह राजपूत,कृष्णसिंह मंडल,
जिन वणिक सुरी, बुद्ध वृषल दास बनाए गए,
राम कृष्ण के बेटे बाबर व औरंगजेब हो गए!

जिस अरब देश में पैगम्बर का अवतरण हुआ,
वहां अफगानी महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी,
बाबर,औरंगजेब की कुछ भी शौकत शान नहीं
किन्तु भारत-पाक के मजहबियों के मान वही!

आज हिन्दुओं का मुस्लिम में धर्मांतरण होते ही,
नव धर्मांतरित मुस्लिम हिन्दुओं के शत्रु हो जाते,
और भारत के आक्रांता के खैर मक्दम बन जाते,
धर्मांतरण में बुराई है कि पूर्व भाई बुरे हो जाते!

अब धर्मांतरित वर्ग वो उदाहरण पेश नहीं करते
कि हम हैं वही जो तुम हो एक जैसे सताए हुए,
धर्म बदल गया तो क्या हम चलेंगे उस मार्ग पर
जो अपने सनातनी महाजन पूर्वजों के बताए हुए!

धर्मांतरित मुस्लिमों के सबसे बेहतरीन उदाहरण
इंडोनेशिया के संस्कृति वादी मुस्लिम धर्मावलंबी,
जिन्होंने धर्म बदला है पर वल्दियत नहीं बदली,
इंडो-पाक के लोग धर्म के साथ पिता बदल लेते!

पितृत्व बदलना सीधी गुलामी है आक्रांताजन की,
आक्रांताओं की राजनैतिक गुलामी से मुक्त होके,
धार्मिक, मानसिक गुलामी में फिर बंध जाने की,
एक भारतीय होके नाम अरबी यूरोपीय रख लेते!

आज विश्व भर में मुस्लिमों को सबसे अधिक
धार्मिक आजादी सिर्फ भारत देश में दी गई है,
चीन में दाढ़ी रखने, अजान पढ़ने से बाधित हैं,
हिन्द के मुस्लिम हिन्दुत्व को असहिष्णु कहते!

हिन्दूहित की बात करे जो उससे वे घृणा करते,
हिंदुवादी सरकार जहां उस राज्य को वे कोसते,
उनकी जहां भीड़ होती वहां पाक के नारे लगते,
धर्मांतरित जन अमन चैन की बात नहीं करते!
—विनय कुमार विनायक

वेदों ने विद्या प्राप्त मनुष्यों के लिये द्विज शब्द का प्रयोग किया है

-मनमोहन कुमार आर्य
संसार में दो प्रकार के लोग हंै जिन्हें हम शिक्षित एवं अशिक्षित तथा चरित्रवान एवं चारीत्रिक दृष्टि से दुर्बल कह सकते हैं। सृष्टि के आरम्भ में वेदोत्पत्ति से पूर्व न तो भाषा थी, न ज्ञान और न ही किसी प्रकार का शब्द भण्डार। यह सब वेदों की देन है। वेदों की रचना वा प्रादुर्भाव किससे हुआ, इसका तर्क एवं युक्तियुक्त उत्तर है कि वेदों का आविर्भाव परमात्मा से हुआ है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप एवं सर्वज्ञ सत्ता है। उसने सृष्टि को बनाया है जिसका प्रयोजन अनादि सत्ता जीवात्माओं को उनके पूर्व कल्प के भोग करने से बच गये कर्मों का फल देना रहा है। सृष्टि की रचना ज्ञानपूर्वक हुई है और सृष्टि के सभी पदार्थों सहित प्राणी एवं वनस्पति जगत की रचना भी परमात्मा ने मनुष्यों की उत्पत्ति से पूर्व ज्ञानपूर्वक ही की थी। वह परमात्मा ही सभी जीवधारी प्राणियों को स्वाभाविक ज्ञान देता है जिससे सब प्राणी अपना जीवन व्यतीत करते हैं। ज्ञान की आवश्यकता मनुष्य सहित सभी पशु एवं पक्षियों को होती है। मनुष्येतर योनियों के प्राणियों को परमात्मा ने स्वाभाविक ज्ञान दिया है जिसका उपयोग कर वह अपनी सभी क्रियाओं को करते हैं। उसी परमात्मा ने ही सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों को अमैथुनी अर्थात् बिना माता-पिता के संयोग के भूमि माता के गर्भ से उत्पन्न किया था। इसी कारण हम भूमि वा पृथिवी को माता कहकर सम्बोधित करते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि भूमि से ही अन्न प्राप्त होता है और हमारे जीवनयापन की सभी आवश्यक वस्तुयें हमें भूमि माता के द्वारा ही मिनती हैं। अतः इस कारण भी भूमि को माता कहते हैं।

सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा से चार ऋषियों को वेदों का ज्ञान मिला जिसे उन्होंने ब्रह्मा जी नाम के ऋषि को बोलकर वा सुनाकर प्रदान किया। ब्रह्मा जी ने और उन चार ऋषियों ने वेदों का ज्ञान अपने समय के अन्य सभी स्त्री व पुरुषों को प्रदान किया जिससे वेदों के अध्ययन व अध्यापन की परम्परा आरम्भ हुई और आज भी वर्तमान है। वेदों का एक प्रसिद्ध मन्त्र है ‘स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्तवा व्रजत ब्रह्मलोकं।।’ इस मन्त्र में परमात्मा ने बताया है कि हम अपने पूर्वज ऋषियों व उनके बाद के पूर्वजों को वरदान देने वाली व वेदों के ज्ञान से सब मनुष्यों को पवित्र करने वाली वेदमाता वा ईश्वर की स्तुति व प्रशंसा करें। वह वेदमाता हमारे हृदय में ज्ञान की प्रेरणा कर हमें पवित्र, विद्वान अर्थात् द्विज बनाती है। वह हमें आयु, प्राण, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस आदि धनों को प्रदान कर हमें ब्रह्मलोक अर्थात् ब्रह्म-साक्षात्कार कराकर मोक्ष प्रदान करती है। इस मन्त्र में वेदज्ञान को प्राप्त व उसका सदुपयोग करने वालों के लिये द्विज शब्द का प्रयोग किया गया है। इससे हम यह समझते हैं कि वेदों का अध्ययन करने व उसका आचरण करने वाला मनुष्य द्विज होता है। द्विज ही आर्य, मनु, विद्वान आदि नामों से भी कहा व जाना जाता है। द्विज शब्द पर विचार करते हैं तो इसका अर्थ दूसरा जन्म होता है। जिस मनुष्य का दूसरा जन्म अर्थात् विद्या प्राप्त कर जो स्नातक बनता है अथवा जिसका विद्या पूरी कर समावर्तन संस्कार हुआ होता है, वह द्विज कहलाता है। द्विज को दूसरा जन्म लेने वाला इसलिये भी कहा जाता है क्योंकि पहला जन्म तो सभी ज्ञानी व अज्ञानियों का माता के गर्भ से होता ही है। माता के गर्भ से जन्म लेना पहला जन्म होता है। जन्म के समय सभी बच्चे अज्ञानी होते हैं। बिना ज्ञान प्राप्ती के इनका जीवन कृतकार्य नहीं होता। इसलिये इन्हें विद्या की प्राप्ति के अर्थ आचार्यों की शरण में जाकर विद्या प्राप्त कर दूसरा जन्म लेना होता है। जो विद्या व वेद ज्ञान प्राप्त कर लेता है वह द्विज कहलाता है। गुरुकुलों में गुरुकुल का आचार्य ही सभी ब्रह्मचारियों का माता व पिता होता है और वही अपने ब्रह्मचारी व छात्र को दूसरा जन्म प्रदान करता है। अतः द्विज विद्या प्राप्त कर वेद-वेदांग का ज्ञान प्राप्त करने वाले ब्रह्मचारी को कहा जाता था। 

हम वर्तमान समाज में भी दो प्रकार के लोगों को देखते हैं। एक शिक्षित होते हैं और दूसरे अशिक्षित। शिक्षित व्यक्ति न केवल ज्ञान के क्षेत्र में अपितु धनोपार्जन के क्षेत्र में भी अशिक्षित बन्धुओं से अधिक उन्नति करते हैं। जो जितना अधिक शिक्षित होता है उसको उतना ही सम्मान मिलता है और जो अल्प शिक्षित व अशिक्षित होता है उसे उसी के अनुसार कम सम्मान मिलता है। इससे हमें शिक्षित और अशिक्षित का भेद पता चलता है। वेदों का सन्देश देते हुए ऋषि दयानन्द ने आर्यसमाज का आठवां नियम बनाया है जिसमें कहा है ‘अविद्या का नाश एवं विद्या की वृद्धि करनी चाहिये।’ इसका एक अर्थ यह भी प्रतीत होता है कि सबका शूद्रत्व दूर कर उन्हें द्विज बनाना चाहिये। वेदों में यहां तक कहा गया है कि ‘विद्याऽमृतमश्नुते’ विद्या से अमृत वा मोक्ष की प्राप्ति होती है। अविद्या को ज्ञानानुरूप कर्म भी कहा जाता है। विद्वानों के संरक्षण एवं मार्गदर्शन में ही हमारे अल्पशिक्षित बन्धु विद्वानों द्व़ारा बताये गये कार्यों को करके ज्ञान से युक्त बड़े बड़े कार्यों को करते हैं। ज्ञानी मनुष्य निर्बल भी हो सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि ज्ञानी मनुष्य को जिस विषय का ज्ञान है, उसे सम्बन्धित समस्त कार्यों को वह स्वयं अकेला कार्य में परिणत कर सकता है। भवन निर्माण का कार्य इंजीनियर व श्रमिक दोनों मिलकर करते हैं। इंजीनियर ज्ञान से सम्बन्धित कामों को करता है। यदि उसे श्रमिकों का सहयोग न मिले तो वह अपनी योजना को कार्यरूप नहीं दे सकता। अतः अशिक्षित व अल्पशिक्षित होने पर भी श्रमिक वर्ग के लोग एक इंजीनियर के विचारों व ज्ञान को कार्यरूप में परिणम करते हैं। अतः ज्ञानी एवं अज्ञानी दोनों मनुष्यों का अपना अपना महत्व है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे होते हैं। जिस प्रकार से तराजू में दो पलड़े होते हैं उसी प्रकार से किसी कार्य की पूर्ति में ज्ञान व कर्म के समन्वित प्रयत्नों से सफलता व सिद्धि प्राप्त होती है। इंजीनियर ज्ञान से युक्त होने के कारण आज की भाषा में शिक्षित व सीमित अर्थों में द्विज कहा जा सकता है। शास्त्रों की मान्यता के अनुसार द्विज वह होता है जिसे वेदों का ज्ञान हो और जो उसके अनुसार आचरण करता हो, परन्तु समय के परिवर्तन के कारण वर्तमान समय में वेदों का ज्ञान नाम मात्र के लोगों को ही है। वर्तमान समय में ज्ञान व विज्ञान पढ़े शिक्षित लोगों को शूद्र व अज्ञानी भी नहीं कहा जा सकता। इस दृष्टि से इंजीनियर व अन्य शिक्षित लोगों को सीमित अर्थों में द्विज माना जा सकता है। 

वेदाध्ययन करते हुए द्विज सम्बन्धी ‘जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते’ वाक्य भी हमारे सम्मुख आता है। इस वाक्य में बताया गया है कि जन्म से सभी मनुष्य वा शिशु शूद्र अर्थात् ज्ञानहीन होते हैं। इसके बाद ब्रह्मचर्य आश्रम में आचार्य को प्राप्त होकर व उनसे संस्कार पाकर वह द्विज बनते हैं। हम जानते हैं कि बच्चों को माता-पिता से बहुत से संस्कार मिलते हैं परन्तु आचार्यों से विद्यार्थी की बौद्धिक क्षमता के अनुसार जो ज्ञान प्राप्त होता है वह माता-पिता व अन्य किसी साधन से नहीं होता। वर्तमान में भी हम विद्यालयों में अनेक विषयों के आचार्यों सहित पुस्तकों से बहुत प्रकार का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस ज्ञान में संस्कार अर्थात् यम व नियमों सहित चरित को श्रेष्ठ व महान बनाने वाले चारित्रिक गुण भी प्राप्त होते हैं। इन सभी गुणों को धारण करके ही मनुष्य द्विज बनता है। विद्यालयों में आजकल देखा जता है कि वहां अनेक धनाड्य व निर्धन परिवारों से बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के लिये आते हैं। ऐसा भी होता है कि कुछ परिस्थितियों में निर्धन परिवार के छात्र अपने मध्यम व उच्चवर्गीय परिवारों के छात्रों की अपेक्षा परीक्षा में वरीयता प्राप्त करते हैं। विद्यार्थी जीवन में हम भी एक अतीव निर्धन परिवार के विद्यार्थी थे। हाईस्कूल व इण्टर की परीक्षा में हमें लगभग लगभग 150-200 कुल विद्यार्थियों में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। इस आधार पर हमें लगता है कि कुछ परिस्थितियों में निर्धन व शूद्र परिवारों के बच्चें भी शिक्षा में अपने सहपाठी मध्यम व उच्च श्रेषी के परिवारों के बच्चों की तुलना में वरीयता प्राप्त करते हैं। अतः समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की प्राप्ति में समान सुविधायें मिलनी चाहिये। यह उनका अधिक है। ऋषि दयानन्द जी ने भी अपने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में सबके लिये समान, निःशुल्क एवं आनिवार्य शिक्षा का समर्थन व विधान किया है। धनवान व निर्धन परिवारों के बच्चों को समान आसन, भोजन, वस्त्र आदि का समर्थन भी वह करते हैं। यह सुविख्यात है श्री लाल बहादुर शास्त्री एवं श्री नरेन्द्र मोदी जी निर्धन परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं। इन्होंने धनवान एवं विदेशों में शिक्षित लोगों को अपने गुणों एवं कार्यों में पीछे छोड़ दिया है। चरित्र की दृष्टि से भी यह औरों से आगे हैं। अतः जन्म से कोई बच्चा द्विज पैदा नहीं होता। सभी बच्चों में भविष्य का एक महापुरुष छिपा हुआ होता है। अतः शिक्षा प्राप्त कर ही मनुष्य अपनी योग्यता, गुणों व सुच्चरितों के आधार पर ही द्विज बनता है। 

भारत में सृष्टि के आरम्भ से वेदों का ज्ञान था। ऋषियों का प्राय: सभी विषयों पर भी प्रचुर साहित्य उपलब्ध था। महाभारत काल तक भारत ज्ञान व विज्ञान में सम्पन्न था। इसके बाद पतन आरम्भ हुआ। तीन-चार सौ वर्ष पूर्व यूरोप आदि देशों में न तो वेदों का ज्ञान था और न ही वहां भारत जैसी समाज व्यवस्था थी। ऐसा होने पर भी भौतिक ज्ञान व विज्ञान के क्षेत्र में जितनी उन्नति यूरोप के लोगों ने की है, वह प्रशंसनीय है। वर्तमान का भारत भी यूरोप के पद्चिन्हों पर चल रहा है। यूरोप के लोग भारत के लोगों से अधिक अनुशासनप्रिय भी देखे जाते हैं। हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। ऐसा लगता है कि द्विज बनने का कुछ व अधिकांश भाग यूरोप के लोगों ने अपने विचार, चिन्तन, ज्ञान व विवेक से स्वयं प्राप्त कर लिया है। हमारे देश के लोगों ने अन्धविश्वासों व मिथ्या सामाजिक परम्पराओं सहित मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष, जन्मना जातिवाद आदि में फंसकर वेदों के ज्ञान की उपेक्षा की। यूरोप के वैज्ञानिकों ने मिथ्या मतों का त्याग कर भौतिक विषयों का अध्ययन किया और विज्ञान के क्षेत्र में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये। महर्षि दयानन्द (1825-1883) ने अपने जीवन में सभी धार्मिक एवं सामाजिक अन्धविश्वासों एवं मिथ्या परम्पराओं का खण्डन किया था और देश को सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करने की प्रेरणा की थी। उन दिनों यूरोप के लोग ज्ञान-विज्ञान को आगे बढ़ा रहे थे। ऋषि दयानन्द की मृत्यु के बाद ही वायुयान जैसी विज्ञान की अनेक खोजें विश्व में हुई। अतः हमारे देश को धार्मिक अज्ञान, अन्धविश्वासों एवं मिथ्या सामाजिक परम्पराओं का त्याग कर वेद और वैदिक साहित्य का अध्ययन करना चाहिये। ऐसा करके हम अध्यात्म एवं भौतिक विज्ञान में आगे बढ़ सकते हैं। यदि ऋषि दयानन्द को हमारा देश अपना आदर्श मान ले तो वह ज्ञानोन्नति में यूरोप से प्रतिस्पर्धा कर सकता है। हम भौतिक विषयों के ज्ञान सहित आध्यात्मिक उन्नति में आगे बढ़कर विश्व का मार्गदर्शन कर सकते हैं। वर्तमान समय में भारत के बहुत से लोग योग आदि के माध्यम से कुछ आध्यात्मिक मूल्यों का विश्व में प्रचार कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वह कुछ न कुछ अन्धविश्वासों एवं प्रलोभनों से ग्रस्त है। विश्व ने योग के अन्धविश्वासरहित रूप को ही अपनाया है। हमें ऋषि दयानन्द से प्रेरणा लेकर सन्ध्या एवं अग्निहोत्र-देवयज्ञ का भी विश्व व्यापी प्रचार करना चाहिये। द्विज बनने का अर्थ आध्यात्मिक एवं भौतिक ज्ञान विज्ञान में उन्नति करना होता है। हमने द्विजत्व एवं इससे सम्बन्धित कुछ विषयों की चर्चा की है। इस चर्चा को हम विराम देते हैं।