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मशरूम की खेती से रोजगार सृजन करती ग्रामीण महिलाएं

जूही स्मिता 

पटना, बिहार

केंद्र और राज्य सरकार की ओर से सभी लोकल को वोकल बनाने पर बल दिया जा रहा है। साथ ही हर तरफ आत्मनिर्भर भारत अभियान की चर्चा हो रही है ताकि लोग न केवल स्वयं रोजगार सृजन कर सकें बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकें। इसके लिए महिलाओं को भी अधिक से अधिक जोड़ने पर बल दिया जा रहा है। ताकि देश की आधी आबादी भी रोजगार से जुड़ कर देश के विकास में अपना योगदान दे सके। दरअसल समय-समय पर परिस्थिति ऐसे कई अवसर भी देती है, जिससे लोग जिंदगी को संवारने का काम कर सकते हैं। महिलाओं के लिए एक बेहतरीन परिस्थिति का मिलना भी एक बहुत बड़ी बात होती है क्योंकि महिलाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। हालांकि कुछ महिलाओं ने अवसर मिलने पर उसे रोजगार में बदलकर अपनी जीविका चलाने का काम भी किया है और अब लाखों कमाने के साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी रोजगार प्रदान कर रही हैं।

सामान्य रुप से खेती-बाड़ी में लोग आलू, टमाटर, गेंहू और अन्य मौसमी फलों और सब्जियों को उगाने का काम करते हैं, मगर मशरूम की खेती एक ऐसा निवेश है, जहां पहले खुद की पूंजी लगती है लेकिन इसका लाभ पूरे साल मिलता रहता है। बिहार के अलग-अलग जिलों में मशरूम की खेती कर महिलाओं ने न सिर्फ खुद को सशक्त बनाने का काम किया है, बल्कि अन्य महिलाओं को प्रोत्साहित भी किया है कि वह भी अपने कदम घरों से बाहर निकालें और अपने हिस्से का आसमान अपने कदमों में भर सकें। ऐसे भी आमतौर पर खेती को लेकर जब बात होती है, तब सबसे पहले एक पुरुष का चेहरा ही सामने आता है मगर बदलते समय के साथ अब महिलाएं भी खेती द्वारा अपनी पहचान बना रही हैं।


इसकी सशक्त मिसाल बिहार की कुछ महिलाएं हैं। जिन्होंने मशरूम की खेती के माध्यम से न केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी उदाहरण बन रही हैं। बिहार की राजधानी पटना स्थित बोरिंग रोड के पास आनंदपुरी की रहने वाली जनक किशोरी पिछले साल हुए लॉकडाउन में डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय से मशरूम की खेती करना सीखा था। उनका मानना है कि मशरूम में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है। इसलिए लोगों के बीच इसकी मांग भी बहुत है। यही सोचकर उन्होंने मशरुम की खेती करने का फैसला किया। उन्होंने वैशाली स्थित अपने ससुराल में इसकी खेती करने का मन बनाया और पटना के विभिन्न होटलों, सप्लायर और जान-पहचान लोगों के बीच इसे उपलब्ध कराने का काम शुरु किया। मशरूम की खेती का सेटअप तैयार करने में पहले उन्होंने खुद की पुंजी का निवेश किया, मगर अब महीने के 70 हज़ार रुपयों की आमदनी हो रही है। जनक किशोरी के अनुसार चुंकि बटन मशरूम की बाजार में बहुत ज्यादा मांग है इसलिए वह अभी अपनी जमीन पर ओएटस्टर और बटन मशरूम दोनों को तैयार कर रही हैं। ओएस्टर मशरूम के लिए पीपी बैग तैयार किया जाता है ताकि इसकी मदद से ओएस्टर मशरूम को बढ़ने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल जाता है। जनक किशोरी जल्द ही अपने आस-पास रहने वाली महिलाओं को भी इसका प्रशिक्षण देंगी ताकि वह भी अपने पैरों पर खड़ी हो सकें।


वहीं पटना से करीब 62 किमी दूर नालंदा जिले के चंडीपुर प्रखंड स्थित अनंतपुर गांव की रहने वाली अनीता कुमारी मशरूम लेडी के नाम से मशहूर हैं। अनीता गृह विज्ञान विषय से स्नातक हैं। वह हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थीं, जिससे वह अपने परिवार की मदद करने के साथ-साथ अन्य महिलाओं को रोजगार से जोड़ सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अनीता ने 11 साल पहले मशरूम की ट्रेनिंग समस्तीपुर स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और उत्तराखंड के जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी से ली। उनके पति संजय की कपड़े की दुकान थी, जिसमें काफी नुकसान हुआ था। वह समय बहुत कठिन था क्योंकि पैसों की तंगी का पहाड़ सिर पर टूट चुका था। उस वक्त तीन बच्चों की परवरिश और पढ़ाई को लेकर काफी चिंता थी, इसलिए अनीता ने नालंदा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में जाकर वहां के अफसरों से सलाह मांगी, जहां उन्हें मशरूम की खेती शुरू करने की सलाह मिली। इसके बाद उसने कभी पलट कर नहीं देखा। आज अनीता हजार से ज्यादा महिलाओं को रोजगार से जोड़ चुकी हैं। वह ओएस्टर मशरूम की खेती कर सालाना तीन से चार लाख कमा रही हैं। साथ ही उन्होंने अपने इस हुनर की मदद से माधोपुर फॉर्मर्स प्रोड्यूसर्स नाम से कंपनी की शुरुआत भी की है। साल 2012 में उन्हें मशरूम लेडी की उपाधि भी मिली। वर्तमान समय में रोजाना उनके सेंटर से 20-25 किलो ओएस्टर मशरूम का उत्पादन हो रहा है, जिसे वह होल सेलर और रिटेलर्स को मुहैय्या करा रही हैं। उनके इस काम के लिए उन्हें विभिन्न कैटेगरी में 19 अवार्ड मिल चुके हैं, जिसमें साल 2014 में जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार, जोनल का सम्मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था। वहीं साल 2020 में धनुका इनोवेटिव एग्रीकल्चर अवार्ड भी मिला है।


इसके अतिरिक्त सारण जिले के बरेजा गांव की रहने वाली सुनीता प्रसाद भी पिछले पांच सालों में हजार से ज्यादा महिलाओं को मशरूम उपजाने की ट्रेनिंग देकर रोजगार से जोड़ चुकी हैं। सुनीता ने मांझी स्थित किसान विज्ञान केंद्र से मशरूम खेती का प्रशिक्षण लिया था। अब वह सालाना दो लाख रुपये कमा रही हैं। सितंबर से मार्च के महीने तक ओएस्टर मशरूम की खेती होती है। वहीं दुधिया मशरूम की खेती ओएस्टर मशरूम के बाद होती है। लोगों के बीच मशरुम की मांग काफी बढ़ गई है, मगर जब कभी-कभी कम बिक्री होने के कारण मशरूम बच जाता है, तब उसे ड्राइंग मशीन से सुखाकर ऑफ सीजन बेचा जाता है।


गया जिले के मोहनपुर की रहने वाली सुषमा देवी के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, मगर वक्त उनके साथ था। जब सुषमा देवी के घर आर्थिक तंगी का माहौल था, उसी वक्त जीविका की ओर से मशरूम की खेती के लिए दस दिवसीय ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जा रहे थे, जिसमें सुषमा ने भाग लिया था। वह प्रोग्राम सुषमा के लिए वरदान साबित हुआ और अब वह महीने के बीस हजार तक कमा रही हैं। सुषमा ने पिछले साल ही ओएस्टर मशरूम की खेती की थी और इस साल वह बटन मशरूम की खेती कर रही हैं। मशरुम की खेती के बदौलत ही घर की हालात में सुधार हुआ है। सुषमा के अनुसार बाजार में मशरूम की काफी मांग है। साथ ही गांव में होने वाले आयोजनों और आस-पास मौजूद होटलों में भी उनकी ओर से मशरूम डिलीवर किये जाते हैं।


इस संबंध में डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के प्रधान वैज्ञानिक (मशरूम) डॉ दायाराम बताते हैं कि पिछले 20 सालों से जिला और राज्य स्तर पर पुरुषों और महिलाओं को मशरूम की खेती से संबंधित ट्रेनिंग दी जा रही है। अभी कोरोना को देखते हुए ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जा रही है लेकिन जल्द ऑफलाइन ट्रेनिंग की शुरुआत भी होगी। हर महीने दो ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें लगभग 80 से ज्यादा ट्रेनी भाग लेते हैं। सालाना 600 से ज्यादा पुरुष और महिलाएं ट्रेनिंग लेते हैं। ट्रेनिंग के दौरान मशरूम को किस वातावरण और कैसे उपजाया जाता है, इसके बारे में बताया जाता है। ट्रेनिंग के बाद सभी को सर्टिफिकेट दिया जाता है। साथ ही ट्रेनिंग 3,7,15 दिनों के अलावा एक महीने की भी होती है। बिहार सरकार की ओर से मशरूम की खेती करने के लिए लोगों को 50 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है। साथ ही मशरूम का उत्पादन विभिन्न तापमान पर पूरे साल भी किया जा रहा है। इनमें 20-30 डिग्री पर ओएस्टर, 15-20 डिग्री टेंप्रेचर पर बटन और 30-38 डिग्री टेंप्रेचर पर मिल्की मशरूम का उत्पादन होता है। डॉ दायाराम के अनुसार साल 2050 तक मशरूम का युग होगा क्योंकि फिलहाल मशरुम का पूरक कोई नहीं है।

महिलाओं का खेती की ओर बढ़ते कदम वास्तव में समाज के लिए प्रेरणादायक है, क्योंकि उन्होंने अपने रोज़गार के साथ-साथ न केवल अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है, बल्कि अन्य महिलाओं को हिम्मत के साथ खड़े होना भी सिखाया है। ग्रामीण महिलाओं के कदम जब आगे की ओर अग्रसर होते हैं, तब बदलाव का माहौल विकसित होता, जिसे इन महिलाओं ने अपने श्रम से सिद्ध करके दिखाया है।

शिवत्व की प्रतिष्ठा में ही विश्व मानव का कल्याण संभव है


समाज में शिव की प्रतिष्ठा और पूजा-परंपरा देवता के रूप में प्राचीन काल से ही प्रचलित है किंतु हमारे शास्त्रों में वर्णित शिव का स्वरूप उनके देवत्व की पृष्ठभूमि में मनुष्य कल्याण के अनेक नए प्रतीकार्थ भी प्रस्तुत करता है। शिव का एक अर्थ कल्याण भी है। इसलिए शिव कल्याण के प्रतीक हैं और शिव की उपासना का अर्थ मनुष्य की कल्याणकारी कामना की  चिरसाधना है।
    कल्याण सब चाहते हैं- अच्छे लोग भी अपने कल्याण के लिए प्रयत्न करते हैं और बुरे लोग भी अपने लिए जो कुछ अच्छा समझते हैं, कल्याणकारी मानते हैं उसकी प्राप्ति हेतु हर संभव प्रयत्न करते हैं। यही ‘शिव’ की सर्वप्रियता है। शिव देवताओं के भी आराध्य हैं और दैत्य भी उनकी भक्ति में लीन दर्शाए गए हैं। श्रीराम ने सागर तट पर रामेश्वरम की स्थापना पूजा कर शिव से अपने कल्याण की कामना की और रावण ने भी जीवन भर शिव की अर्चना करके उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयत्न किया।                                
     शिव का श्मशान-वास उनकी वैराग्य-वृत्ति का प्रतीक है। कल्याण की प्राप्ति उसी के लिए संभव है जो सर्वसमर्थ होकर भी उपलब्धियों के उपभोग के प्रति अनासक्त है। मानसिक शांति उसी को मिल सकती है जो वैभव-विलास से दूर एकांत में शांतचित्त से ईश्वर का भजन करने में रुचि लेता है। जिसकी आवश्यकताएं न्यूनतम हैं वही शिव हो सकता है। लौकिक इच्छाओं और भौतिक संपत्तियों से घिर कर शिव नहीं बना जा सकता। लोक का कल्याण नहीं किया जा सकता। अतः शिवत्व की प्राप्ति के लिए वीतरागी बनना अनिवार्यता है।
     सदा शांत रहने वाले शिव में रूद्रतत्व का प्रतिष्ठापन मनुष्य के मन में सन्निहित शांति और क्रोध की प्रतीकात्मक प्रस्तुति है। मनुष्य स्वभाव से शांत है किंतु जब उसकी शांति भंग होती है तब वह क्रोधित होकर शांति भंग करने वाली शक्ति को नष्ट कर देता है। भगवान शंकर द्वारा कामदेव को भस्म करने की कथा इस प्रतीकात्मकता को संकेतित करती है।
   शिव मानसिक शांति के प्रतीक हैं। वे अपनी तपस्या में रत अवस्था में उस मनुष्य का प्रतीकार्थ प्रकट करते हैं जिसे किसी और से कुछ लेना-देना नहीं रहता। जो अपने में ही मस्त और व्यस्त है; शांत है। ऐसी सच्ची शांति उसी के मन में होती है जो कामनाओं से शून्य होता है । कामनाओं का जागरण शांति भंग का कारण बनता है क्योंकि जब मन में कामनाएं जागती हैं तब शांति शेष नहीं रह जाती। शिव शांति चाहते हैं अतः कामनाओं के प्रतीक कामदेव को तत्काल भस्म कर देते हैं। इस कथा से स्पष्ट है कि यदि हमें शांति चाहिए तो अपनी अतिरिक्त और अनावश्यक अभिलाषाओं को त्यागना होगा।
       शिव द्वारा रति को वरदान देकर कामदेव को पुनः जीवित किए जाने की कथा भी गहरा अर्थ व्यक्त करती है। ‘रति’ सहज जीवन के प्रति असक्ति की प्रतीक है। सब शिव के समान बीतरागी संन्यासी नहीं हो सकते। सृष्टि के क्रम और सांसारिक जीवन की स्थितियों को स्थिर रखने के लिए शुभकामनाओं, मनुष्य के मन में सदिच्छाओं का होना आवश्यक है। संन्यासी शिव समस्त कामनाओं का नाश कर देते हैं इस कारण संसार का सामाजिक जीवन-प्रवाह बाधित होता है। अतः उसे पुनः सुसंचालित करने और सुव्यवस्थित बनाने के लिए शिव कामदेव की भस्म से पुनः काम को जीवन प्रदान करते हैं। अभिप्राय यह है कि जीवन में लोककल्याणकारी स्वस्थ कामनाओं का होना भी आवश्यक है। साधारण मनुष्य की जीवन यात्रा कामनाओं- सहज इच्छाओं का पाथेय ग्रहण किए बिना पूर्ण नहीं हो सकती। अतः विषय वासनाओं को भस्म कर अर्थात त्याग कर स्वस्थ कामनाओं और जीवन को रचनात्मक दिशा देने वाली सद् इच्छाओं की ओर गतिशील किया जाना आवश्यक है।
     शिव का विषपान सामाजिक जीवन में व्याप्त विषमताओं और विकृतियों को पचाकर भी लोककल्याण के अमृत को प्राप्त करने की प्रक्रिया का जारी रखना है। समाज में सब अपने लिए शुभ की कामना करते हैं। अशुभ और अनिष्टकारी स्थितियों को कोई स्वीकार करना नहीं चाहता। सुविधा सब को चाहिए पर असुविधाओं में जीने को कोई तैयार नहीं। यश, पद और लाभ के अमृत का पान करने के लिए सब आतुर मिलते हैं किंतु संघर्ष का हलाहल पीने को कोई आगे आना नहीं चाहता। वर्गों और समूहों में बटे समाज के मध्य उत्पन्न संघर्ष के हलाहल का पान लोककल्याण के लिए समर्पित शिव अर्थात वही व्यक्ति कर सकता है जो लोकहित के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने को तैयार हो और जिसमें अपयश, असुविधा जैसी समस्त अवांछित स्थितियों का सामना करके भी स्वयं को सुरक्षित बचा ले जाने की अद्भुत क्षमता हो। समाज सागर से उत्पन्न हलाहल को पीना और पचाना शिव जैसे समर्पित व्यक्तित्व के लिए ही संभव है।
        शिव समन्वयकारी शक्ति हैं। शिव परिवार में सिंह और नन्दी, मयूर और नाग, नाग और मूषक सब साथ-साथ हैं। सबकी अपनी सामथर््य और मर्यादा है। कोई किसी पर झपटता नहीं, कोई किसी को आतंकित नहीं करता, कोई किसी से नहीं डरता। अपनी-अपनी सीमाओं में सुरक्षित रहते हुए अपने अस्तित्व को बनाए रखने की यह स्थिति आदर्श समाज के लिए आवश्यक है। आज जब भारतीय-समाज जाति, वर्ण, धर्म, संप्रदाय, भाषा वर्ग आदि के असंख्य समूहों में बंटकर परस्पर भीषण संघर्ष करता हुआ सामाजिक जीवन को अशांत कर रहा है तब शिव-परिवार के इन विरोधी जीवों की सहअस्तित्व पूर्ण स्थिति समाज के लिए अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करती है। शिव परिवार की उपर्युक्त समन्वयकारी प्रतीकात्मक स्थिति इस तथ्य की भी साक्षी है कि कल्याण चाहने वाले समाज में समन्वय होना अत्यंत आवश्यक है। पारस्परिक अंतर्विरोधों शत्रुताओं को त्यागे बिना समाज के लिए शिवत्व की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती।
        शिव की संतानों में कार्तिकेय पहले हैं और गणेश बाद में। इनका क्रम इस प्रतीकार्थ की प्रतीति कराता है कि शारीरिक शक्ति शिशु को प्रथमतः प्राप्त होती है और बौद्धिक शक्ति का विकास बाद में होता है। शिव के ये दोनों पुत्र कल्याण-विहग के दो सशक्त पंख हैं। दोनों की समन्वित शक्ति से ही शिवत्व की प्राप्ति संभव हो सकती है। कार्तिकेय सामरिक शक्ति और कौशल का चरम उत्कर्ष हैं तो गणेश बौद्धिक बल, सूझबूझ से लिए जाने वाले शुभ-फल प्रदायी निर्णयों की क्षमता की पराकाष्ठा हैं। दोनों का समन्वय समाज कल्याण के कठिन पथ को निरापद बनाता है।
            ‘शिव’ शब्द में सन्निहित इकार ‘शक्ति’ का प्रतीकार्थ व्यक्त करती है। शक्तिरुप ‘इ’ के अभाव में ‘शिव’ शब्द ‘शव’ में परिणत हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि शक्तिहीन अवस्था में शिव अर्थात कल्याण की स्थिति संभव नहीं होती। यदि सत्य शिव की देह है तो शक्ति उनका प्राणतत्व है। शक्तिरहित शिव की संकल्पना निराधार है। पार्वती के रूप में शक्ति का प्रतीकार्थ स्वतः सिद्ध है।
       शक्ति के अनेक रूप हैं जबकि कल्याण सर्वदा एक रुप ही होता है। कल्याण की दिशाएं अनेक हो सकती हैं किंतु उसकी आनंद रूप में परिणिति सदा एकरूपा है। इसीलिए शिव का स्वरूप सर्वदा एक सा है। उसमें एकत्व की निरंतरता सदा विद्यमान है जबकि विविध-रूपा शक्ति अर्थात पार्वती बार-बार जन्म लेती हंै, अपना स्वरूप परिवर्तित करती हैं । सामान्य जीवन प्रवाह में बौद्धिक, आर्थिक, सामरिक शक्तियां भी युग के अनुरूप अपना स्वरूप बदलती रही हैं। यही शिव की अर्धांगिनी भवानी के पुनर्जन्म का प्रतीकार्थ है। 
     शक्ति सदा शिव का ही वरण करती है। शिव के सानिध्य में ही उसकी सार्थकता है। अत्याचारी आसुरी प्रवृत्तियां जब शक्ति पर अधिकार प्राप्त करने का दुस्साहस करती हैं तब शक्ति उनका नाश कर देती है। देवी के द्वारा असुरों के वध की कथा इसी प्रतीकात्मकता की अभिव्यक्ति है। सामान्य जीवन में भी अपराधियों का दुखद अंत सुनिश्चित होता है क्योंकि लोककल्याणकारिणि शक्ति पार्वती को तो कल्याण मूर्ति शिव की सेवा में ही समर्पित रहने का अभ्यास है। इसीलिए शक्ति का लोकोपकारी स्वरूप ही समाज में सदा सम्मानित हुआ है।
      भगवान शिव के शीश पर संस्थित गंगा जीवन में जल के महत्व का प्रतीक हैं। कल्याण चाहने वाले को जल स्रोतों का संरक्षण-संवर्धन करना होगा। जलशक्ति की प्रतीक गंगा को महत्व दिए बिना, नदियों जलाशयों कूपों आदि जल स्त्रोतों की पवित्रता का संरक्षण किए बिना जीवन की सामान्य आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो सकतीं। प्रदूषित जल जीवन के लिए अभिशाप ही सिद्ध होगा। अतः उसकी पवित्रता बनाए रखना मनुष्य का दायित्व है। गंगा को शिव ने सिर पर धारण किया है। सिर पर वही वस्तु-पदार्थ धारण किया जाता है जो पवित्र हो, महत्वपूर्ण हो और सम्मान के योग्य हो। इस प्रकार शिव द्वारा सिर पर गंगा का धारण किया जाना जीवन में जल के महत्व का स्पष्ट संदेश है।
       नाग भयानक और विषैले जीव हैं। उनके विष का प्रभाव क्षण भर में मनुष्य की जीवन-लीला समाप्त कर देता है। यही स्थिति सामाजिक जीवन में दुष्टों और अत्याचारी अपराधियों की भी होती है। वे अपने संपर्क में आने वाले व्यक्ति का जीवन अभिशप्त कर देते हैं। शिव के गले में पड़े नाग ऐसे ही समाजविरोधी तत्वों के प्रतीक हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि कल्याणमूर्ति शिव आपराधिक तत्वों का आश्रय हैं। इसका आशय यह है कि कल्याण करने वाले व्यक्ति को इतना शक्तिमान होना चाहिए कि वह अपराधी-तत्वों को भी नियंत्रित कर सके। लोककल्याण की बाधक शक्तियां उसके नियंत्रण में उसके आसपास रहें ताकि शेष समाज उनके कारण आतंकित और पीड़ित ना हो। शिव के शरीर पर नागों की प्रस्तुति इसी अर्थ की प्रतीति कराती है।
    शिव के अशन-बसन नितांत सामान्य हैं । वे बेलपत्र आदि सहज-सुलभ आहार ग्रहण करते हैं और बाघम्बर धारण करते हैं। शिव वैभव और विलास से परे हैं। राजसी ठाठ बाट से महलों में रहने वाला और जगत में उपलब्ध विभिन्न सुविधाओं का अबाध उपभोग करने वाला शिव नहीं हो सकता। ना उससे समाज का कल्याण संभव है और ना ही वह समाज में सर्वमान्य बन सकता है। पर्वत के एकांत में वास, वन उपज का भोजन, बाघम्बर का वस्त्र और नंदी की सवारी शिव के सहज सामान्य जीवन के प्रतीक हैं। समाज का कल्याण ऐसे ही साधारण जीवन यापन करने वाले लोगों के नेतृत्व से संभव है । समग्रतः शिव से संबंधित प्रत्येक वस्तु, जीव आदि मानव-कल्याण से जुड़े किसी ना किसी पक्ष से संबंधित प्रतीकार्थ अवश्य देते हैं।
      शिवत्व की प्रतिष्ठा में ही विश्व मानव का कल्याण संभव है। शिव की उपासना के अन्य आध्यात्मिक-पौराणिक विवरण आस्था और विश्वास के विषय हैं। उन पर पूर्ण श्रद्धा रखते हुए यदि हम बौद्धिक धरातल पर शिव से संबंधित इन प्रतिकार्थों  को समझने का भी प्रयत्न करें तो अनेक व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं के समाधान सहज संभव हैं। शिव-तत्व की यह प्रतीकात्मकता सबके लिए समान रूप से कल्याणकारी है। अतः सर्वथा विचारणीय भी है। 

तुम पूछते हो मैं कौन हूं….

मैं अर्पण हूं,समर्पण हूं,

श्रद्धा हूं,विश्वास हूं।

जीवन का आधार,

प्रीत का पारावार,

प्रेम की पराकाष्ठा,

वात्सल्य की बहार हूं।

तुम पूछते हो मैं कौन हूं?

मैं ही मंदिर, देवप्रतिमा।

मैं ही अरुण, अरुणिमा।

मैं ही रक्त, रक्तिमा।

मैं ही गर्व ,गरिमा।

मैं ही सरस्वती, ज्ञानवती

मैं ही बलवती, भगवती

मैं ही गौरी, मैं ही काली

मैं ही उपवन,मैं ही माली।

मैं ही उदय, मैं ही अस्त,

मैं ही अवनि ,मैं ही अम्बर।

मैं अन्नपूर्णा, सर्वजन अभिलाषा

करुणा, धैर्य, शौर्य की परिभाषा।

मैं ही मान, मैं ही अभिमान

मैं ही उपमेय, मैं ही उपमान।

मैं ही संक्षेप, मैं ही विस्तार

मैं ही जीवन, जीवन का सार।

मैं भूत, भविष्य, वर्तमान हूं,

हर तीज- त्योहार की आन हूं

सुनी कलाई का अभिमान हूं।

और..तुम पूछते हो मैं कौन हूं”?

तो सुनो, अब ध्यान लगाकर..

मैं पापा की परी, मां की गुड़िया,

दादा की लाडो,दादी की मुनिया।

काका की गुड्डो, काकी की लाली,

भैया की छुटकी, दीदी की आली।

मैं ही रौनक, मैं ही सबकी शान हूं।

मैं ही दानी, मैं ही सबसे बड़ा दान हूं।

मैं ही सबसे बड़ा दान हूं………….।

अब तो समझ गए कि मैं कौन हूं….?

भारत का ब्रह्मास्त्र है ध्रुवास्त्र मिसाइल

  • योगेश कुमार गोयल
    दुश्मन के टैंकों को नेस्तनाबूद करने में सबसे कारगर मानी जाने वाली स्वदेश निर्मित टैंक रोधी मिसाइल हेलिना के नवीनतम संस्करण ‘ध्रुवास्त्र’ का राजस्थान में पोखरण फायरिंग रेंज में भारतीय वायुसेना द्वारा गत दिनों सफल परीक्षण किया गया। मिसाइल की न्यूनतम और अधिकतम क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए पांच परीक्षण किए गए और स्थिर तथा गतिशील लक्ष्यों पर मिसाइल से निशाना साधा गया, कुछ परीक्षणों में युद्धक हथियारों को भी शामिल किया गया। एक परीक्षण में उड़ते हेलीकॉप्टर से गतिशील लक्ष्य पर निशाना साधा गया। हेलीकॉप्टर ध्रुव से दागी गई देश में ही विकसित ध्रुवास्त्र मिसाइल ने अपने लक्ष्य पर सटीक प्रहार कर उसे नष्ट कर दिया। वायुसेना और डीआरडीओ की टीम पोखरण में तीन दिन से इस मिसाइल के परीक्षण की तैयारियों में जुटी थी। इन सफल परीक्षणों के बाद डीआरडीओ द्वारा भारतीय सेना के लिए ध्रुवास्त्र जैसी एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों को तैयार किया जाना डीआरडीओ और सेना के लिए बड़ी उपलब्धि इसलिए माना जा रहा है क्योंकि अब ऐसी आधुनिक एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों के लिए भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता कम होती जाएगी।
    मौजूदा परिस्थितियों में देश को ऐसे हथियारों की जरूरत है, जो सटीक और सस्ते हों और इसके लिए जरूरी है कि देश में ही इन हथियारों का निर्माण हो। मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए ही डीआरडीओ स्वदेशी मिसाइलें बना रहा है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक पड़ोसी दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई में क्विक रिस्पांस वाली स्वदेशी मिसाइल ‘ध्रुवास्त्र’ गेमचेंजर साबित हो सकती है। यह मिसाइल न केवल चीन के टैंकों को चंद पलों में ही खाक में मिलाने में सक्षम है बल्कि एलएसी पर चीन के हल्के टैंकों को तो खिलौनों की भांति नेस्तनाबूद कर सकती है। स्वदेशी हेलीकॉप्टर ध्रुव तथा अन्य हल्के हेलीकॉप्टरों में फिट होने के बाद यह मिसाइल दुश्मन के टैंकों के लिए काल बन जाएगी और इस तरह जमीनी लड़ाई का रूख बदलने में अहम भूमिका निभाने के कारण यह भारतीय सेना के लिए बेहद कारगर साबित होगी।
    दुनिया में सबसे आधुनिक टैंक रोधी हथियारों में शामिल इस मिसाइल को सेना और वायुसेना में शामिल किया जाएगा। ध्रुवास्त्र नाम की हेलिना हथियार प्रणाली के एक संस्करण को भारतीय वायुसेना में शामिल किया जा रहा है, जिसका इस्तेमाल ध्रुव हेलिकॉप्टर के साथ किया जाएगा। अपने लक्ष्य को बेहद सटीकता से नष्ट करने के बाद अब इसे बहुत जल्द सेना के हेलिकॉप्टरों में लगाया जा सकेगा, साथ ही इसका उपयोग एचएएल रूद्र तथा एचएएल लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर्स में भी होगा। यह मिसाइल दुनिया के किसी भी टैंक को उड़ा सकती है और रणक्षेत्र में आगे बढ़ते दुश्मन के टैंकों को बारी-बारी से ध्वस्त करने में पूर्ण रूप से सक्षम है। तीसरी पीढ़ी की ‘दागो और भूल जाओ’ तकनीक पर काम करने वाली देश में ही विकसित इस मिसाइल को ध्रुवास्त्र नाम दिया गया है। नाग पीढ़ी की इस मिसाइल को हेलिकॉप्टर से दागे जाने के कारण इसे हेलिना नाम दिया गया था।
    ध्रुवास्त्र को आसमान से सीधे दागकर दुश्मन के बंकर, बख्तरबंद गाडि़यों और टैंकों को पलभर में ही नष्ट किया जा सकता है। यह मिसाइल दुनिया के सबसे आधुनिक एंटी-टैंक हथियारों में से एक है और इसे हेलीकॉप्टर से लांच किया जा सकता है। डीआरडीओ के मुताबिक ध्रुवास्त्र तीसरी पीढ़ी की ‘दागो और भूल जाओ’ किस्म की टैंक रोधी मिसाइल प्रणाली है, जिसे आधुनिक हल्के हेलीकॉप्टर पर स्थापित किया गया है। हल्के हेलीकॉप्टर पर स्थापित करने से इसकी मारक क्षमता काफी बढ़ जाएगी। स्वदेश निर्मित इस मिसाइल का नाम पहले ‘नाग’ था, जिसे अब ध्रुवास्त्र कर दिया गया है। वास्तव में यह सेना के बेड़े में पहले से शामिल नाग मिसाइल का उन्नत संस्करण है। इसका इस्तेमाल भारतीय सेना के स्वदेश निर्मित अटैक हेलीकॉप्टर ‘ध्रुव’ के साथ किया जाएगा, इसीलिए इसका नाम ‘ध्रुवास्त्र’ रखा गया है। इस मिसाइल से लैस होने के बाद ध्रुव हेलिकॉप्टर ‘ध्रुव मिसाइल अटैक हेलीकॉप्टर’ बन जाएगा। दरअसल सेना की इस नई मिसाइल का मूलमंत्र ही है ‘सिर्फ दागो और भूल जाओ’।
    ध्रुवास्त्र मिसाइल पलक झपकते ही दुश्मन के टैंकों के परखच्चे उड़ा सकती है। पूर्ण रूप से स्वदेशी ध्रुवास्त्र मिसाइल 230 मीटर प्रति सैकेंड अर्थात् 828 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती है और मिसाइल की यह गति इतनी है कि पलक झपकते ही दुश्मन के भारी से भारी टैंक को बर्बाद कर सकती है। ‘फायर एंड फॉरगेट’ सिस्टम पर कार्य करने वाली यह मिसाइल भारत की पुरानी मिसाइल ‘नाग हेलीना’ का हेलीकॉप्टर संस्करण है, जिसमें कई नई तकनीकों का समावेश करते हुए इसे आज की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया गया है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस मिसाइल प्रणाली में डीआरडीओ द्वारा एक से बढ़कर एक आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है। मिसाइल में हीट सेंसर, इंफ्रारेड होमिंग इमेजिंग प्रणाली तथा मिलीमीटर वेव एक्टिव रडार लगा हुआ है। हीट सेंसर किसी भी टैंक की गर्मी पकड़कर अपनी दिशा निर्धारित कर उसे तबाह कर देता है। इंफ्रारेड इमेजिंग का फायदा रात और खराब मौसम में मिलता है।
    रक्षा विशेषज्ञ ध्रुवास्त्र की विशेषताओं को देखते हुए इसे ‘भारत के ब्रह्मास्त्र’ की संज्ञा भी दे रहे हैं। भारतीय सेना में इसके शामिल होने के बाद उम्मीद की जा रही है कि इससे न केवल सीमा पर दुश्मन देश की सेना के मुकाबले हमारी सेना की क्षमताओं में बढ़ोतरी होगी बल्कि मेक इन इंडिया मुहिम के तहत निर्मित ऐसे खतरनाक और अत्याधुनिक हथियारों के बलबूते भारतीय सेना का हौंसला भी काफी बढ़ेगा। 500 मीटर से 7 किलोमीटर के बीच मारक क्षमता वाली यह बेहद शक्तिशाली स्वदेशी मिसाइल दुश्मन के किसी भी टैंक को देखते ही देखते खत्म करने की ताकत रखती है। हालांकि सात किलोमीटर तक की इस क्षमता को ज्यादा बड़ा नहीं माना जाता लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि धीरे-धीरे इस क्षमता को भी बढ़ाया जाएगा। 230 मीटर प्रति सैकेंड की रफ्तार से लक्ष्य पर निशाना साधने में सक्षम इस मिसाइल की लम्बाई 1.9 मीटर, व्यास 0.16 मीटर और वजन 45 किलोग्राम है। इसमें 8 किलोग्राम विस्फोटक लगाकर इसे बेहतरीन मारक मिसाइल बनाया जा सकता है।
    ध्रुवास्त्र मिसाइल दोनों तरह से अपने टारगेट पर हमला करने के अलावा टॉप अटैक मोड में भी कार्य करने में सक्षम है। इस मिसाइल की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह दुर्गम स्थानों पर भी दुश्मनों के टैंकों के आसानी से परखच्चे उड़ा सकती है। इस टैंक रोधी मिसाइल प्रणाली में एक तीसरी पीढ़ी की एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल ‘नाग’ के साथ मिसाइल कैरियर व्हीकल भी है। यह टैंक रोधी मिसाइल प्रणाली हर प्रकार के मौसम में दिन-रात यानी किसी भी समय अपना पराक्रम दिखाने में सक्षम है और न केवल पारम्परिक रक्षा कवच वाले युद्धक टैकों को बल्कि विस्फोटकों से बचाव के लिए कवच वाले टैंकों को भी नेस्तनाबूद कर सकती है।

संघ को समझने के लिए भारत की चिरंतन सांस्कृतिक धारा की समझ आवश्यक

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्ता के लिए पूर्व में असदुद्दीन ओवैसी (2012 तक), असम में मौलाना बदरुद्दीन अजमल और हाल ही में पश्चिम बंगाल में पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी जैसे कट्टर सांप्रदायिक-इस्लामिक सोच वाले दलों से हाथ मिलाने को लेकर जब कांग्रेस-नेतृत्व पार्टी के भीतर-बाहर सवालों एवं आलोचनाओं से घिरने लगा, तब वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर उल्टे-सीधे, अनर्गल वक्तव्य देकर देशवासियों को भटकाने एवं भ्रमित करने की (कु) चेष्टा कर रहा है। अच्छा तो यह होता कि संघ को लेकर पूर्वाग्रह-दुराग्रह रखने वाले सभी दलों एवं नेताओं को उदार मन से आकलित करना चाहिए था कि क्या कारण हैं कि तीन-तीन प्रतिबंधों और विरोधियों के तमाम अनर्गल आरोपों को झेलकर भी संघ विचार-परिवार विशाल वटवृक्ष की भाँति संपूर्ण भारतवर्ष में फैलता गया, उसकी जड़ें और मज़बूत एवं गहरी होती चली गईं, वहीं लगभग छह दशकों तक सत्ता पर काबिज़ रहने, तमाम अंतर्बाह्य आर्थिक-संस्थानिक-व्यवस्थागत सहयोगी-अनुकूल तंत्र विकसित करने के बावजूद क्यों काँग्रेस और उसके सभी वैचारिक साझेदारों-सहयोगियों का प्रभाव निरंतर घटता-सिकुड़ता चला गया? उसे बौद्धिक-वैचारिक पोषण देने वाला वामपंथ तो आज केवल एक राज्य में सिमटकर रह गया है।

संघ के इस विस्तार एवं व्याप्ति के पीछे भारत एवं भारतीयता को पोषित करने वाले उसके राष्ट्रीय, समाजोन्मुखी, युगानुकूल विचार, तपोव्रती प्रचारकों एवं लक्षावधि स्वयंसेवकों का ध्येयनिष्ठ-निःस्वार्थ-अनुशासित जीवन, अभिनव दैनिक शाखा-पद्धत्ति और व्यक्ति निर्माण की अनूठी कार्ययोजना कारणरूप में उपस्थित रही है। प्रश्न यह भी कि क्या साधना के बिना सिद्धि, साहस-संघर्ष के बिना संकल्प और प्रत्यक्ष आचरण के बिना प्रभाव की प्रप्ति संभव है? कदापि नहीं। संघ ने सेवा-साधना-संघर्ष-साहस-संकल्प के बल पर यह भरोसा और सम्मान अर्जित किया है। उसके बढ़ते प्रभाव से कुढ़ने-चिढ़ने की बजाय कांग्रेस-नेतृत्व एवं संघ के तमाम विरोधियों को ईमानदार आत्ममूल्यांकन करना चाहिए कि क्यों सर्वसाधारण समाज आज संघ पर अटूट विश्वास करता है और उन पर कदाचित किंचित मात्र या वह भी नहीं? क्यों वह संघ-विरोधियों के आरोपों को गंभीरता से नहीं लेता? कथनी और करनी के अंतर एवं दोहरे मापदंडों को समाज कभी सहन और स्वीकार नहीं करता। संघ की रीति-नीति-कार्य पद्धत्ति में उसे यह भेद या दुहरापन नहीं दिखता। उसे संघ में भारत के मूलभूत सोच-संस्कारों-सरोकारों का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है।

प्रायः संघ के विरोधी यह कहकर उस पर हमला करते हैं कि स्वतंत्रता-आंदोलन में उसकी क्या और कैसी भूमिका थी? उल्लेखनीय है कि मातृभूमि के लिए किए जा रहे कार्यों का श्रेय न लेना संघ के प्रमुख संस्कारों में से एक है। स्वाभाविक है कि स्वतंत्रता-पूर्व के दिनों में कांग्रेस की तमाम गतिविधियों में उसके प्रमुख पदाधिकारी और स्वयंसेवक हिस्सा लेते रहे, मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले क्रांतिकारियों से भी उनकी निकटता रही, भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी अग्रणी भूमिका रही, बावजूद इसके संघ के स्वयंसेवकों एवं कार्यकर्त्ताओं ने कभी इनका श्रेय नहीं लिया। देश का विभाजन न हो, इसके लिए संघ प्राणार्पण से प्रयासरत रहा। पर जब विभाजन और उससे उपजी भयावह त्रासदी के कारण लाखों लोगों को अपनी जड़-ज़मीन-ज़ायदाद-जन्मस्थली को छोड़कर विस्थापन को विवश होना पड़ा, जब एक ओर सामूहिक नरसंहार जैसी सांप्रदायिक हिंसा की भयावह-अमानुषिक घटनाएँ तो दूसरी ओर सब कुछ लुटा शरणार्थी शिविरों में जीवन बिताने की नारकीय यातनाएँ ही जीवन की असहनीय-अकल्पनीय-कटु वास्तविकता बनकर महान मानवीय मूल्यों एवं विश्वासों की चूलें हिलाने लगीं, ऐसे घोर अंधेरे कालखंड और प्रतिकूलतम परिस्थितियों के मध्य संघ ने अकारण शरणार्थी बना दिए गए उन लाखों हिंदू विस्थापितों-शरणार्थियों की जान-माल की रक्षा के लिए अभूतपूर्व-ऐतिहासिक कार्य किया। महाराजा हरिसिंह को समझा-बुझाकर जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करवाने में संघ का निर्णायक योगदान रहा और जब पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों के वेश में जम्मू-कश्मीर पर हमला किया तब स्वयंसेवकों ने राष्ट्र के जागरूक प्रहरी की भूमिका निभाते हुए भारतीय सेना की यथासंभव सहायता की। उसके स्वयंसेवकों ने राष्ट्र-रक्षा में सजग-सन्नद्ध प्रहरी की इस भूमिका का निर्वाह 1962 और 1965 के युद्ध में भी किया। उल्लेखनीय है कि युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों का अपना महत्त्व तो होता ही होता है, पर उसका मनोबल बढ़ाने वालों, उसकी जय बोलनेवालों का भी कोई कम महत्त्व नहीं होता। आपातकाल की क़ैद से लोकतंत्र को मुक्त कराने के लिए भी सबसे अधिक संघर्ष-त्याग स्वयंसेवकों ने ही किए। सर्वाधिक संख्या में जेल की यातनाएँ भी स्वयंसेवकों ने ही भोगीं। गाँधी जी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद, आपातकाल के दौरान तथा विवादित गुंबद के विध्वंस के पश्चात संघ को अकारण प्रतिबंधित किया गया, सत्ता की हनक और धमक के बल पर उसे दबाने की सायास चेष्टा की गई, नक्सली-कट्टरपंथी-हिंसक वामपंथी प्रवृत्तियों का वह सर्वाधिक ग्रास बना, पर उसके स्वयंसेवक-कार्यकर्त्ता-पदाधिकारी न डरे, न झुके, न विचलित हुए, न ही कोई समझौता किया। संघर्षों की इन अगन-भट्ठियों में तपने के पश्चात संघ कुंदन की तरह और निखरा-दमका तथा चहुँ ओर उसकी कीर्त्ति-रश्मियाँ फैलती चली गईं।

अपने उद्भव काल से लेकर आज तक संघ ने तमाम प्रताड़नाएँ झेलकर भी राजनीतिक नहीं, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन की भूमिका ही स्वीकारी। क्योंकि यह सत्य है कि व्यापक मानवीय संस्कृति का एक प्रमुख आयाम होते हुए भी राजनीति प्रायः तोड़ती है, संस्कृति जोड़ती है, राजनीति की सीमाएँ हैं, संस्कृति की अपार-अनंत संभावनाएँ हैं। संघ समाज में एक संगठन नहीं, अपितु समस्त समाज का संगठन है। देश-धर्म-संस्कृति की रक्षा हेतु प्रतिरोधी स्वर को बुलंद करने के बावजूद संघ का मूल चरित्र और स्वर सकारात्मक एवं रचनात्मक है। वह अपने मूल गुण-धर्म-प्रकृति में प्रतिक्रियावादी नहीं, सृजनात्मक है। सेवा, साधना, सृजन, त्याग, तपस्या ही उसकी स्वाभाविक गति है। यह अकारण नहीं है कि राष्ट्र के सम्मुख चाहे कोई संकट उपस्थित हुआ हो या कोई आपदा-विपदा आई हो, संघ के स्वयंसेवक स्वयंप्रेरणा से सेवा-सहयोग हेतु प्रस्तुत एवं तत्पर रहते हैं। प्राणों की परवाह किए बिना कोविड-काल में किए गए सेवा-कार्य उसके ताज़ा उदाहरण हैं। संघ के स्वयंसेवकों ने यदि सदैव एक सजग-सन्नद्ध-सचेष्ट प्रहरी की भूमिका निभाई है तो उसके पीछे राष्ट्र को एक जीवंत भावसत्ता मानकर उसके साथ तदनुरूप एकाकार होने का दिव्य भाव ही उनमें जागृत-आप्लावित रहा है। यह कम बड़ी बात नहीं है कि एक ऐसे दौर में जबकि चारों ओर बटोरने-समेटने-लेने की प्रवृत्ति प्रबल-प्रधान हो, संघ के स्वयंसेवक देने के भाव से प्रेरित-संचालित-अनुप्राणित हो राष्ट्रीय-सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों में योगदान देकर जीवन की धन्यता-सार्थकता की अनुभूति करते हैं।

संघ का पूरा दर्शन ही ‘मैं नहीं तू ही’, ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’, ‘याची देही याची डोला’ के भाव पर अवलंबित है। संघ समाज के विभिन्न वर्गों-खाँचों-पंथों-क्षेत्रों-जातियों को बाँटने में नहीं, जोड़ने में विश्वास रखता है। वह बिना किसी नारे, मुहावरे, तुष्टिकरण और आंदोलन के अपने स्वयंसेवकों के मध्य एकत्व एवं राष्ट्रीय भाव विकसित करने में सफल रहा है। गाँधीजी और बाबा साहेब आंबेडकर तक ने यों ही नहीं स्वयंसेवकों के मध्य स्थापित भेदभाव मुक्त व्यवहार की सार्वजनिक सराहना की थी। संघ संघर्ष नहीं, सहयोग और समन्वय को परम सत्य मानकर कार्य करता है। उसकी यह सहयोग-भावना व्यष्टि से परमेष्टि तथा राष्ट्र से संपूर्ण चराचर विश्व और मानवता तक फैली हुई है। छोटी-छोटी अस्मिताओं को उभारकर अपना स्वार्थ साधने की कला में सिद्धहस्त लोग, दल और विचारधाराएँ संघ द्वारा प्रस्तुत व्यापक राष्ट्रीय-सांस्कृतिक अस्मिता को न समझ सकते, न उसका अनुसरण ही कर सकते। वैसे भी बाहर, दूर या किनारे बैठकर संघ को नहीं समझा जा सकता, उसके लिए गहरे उतरना होगा, उसके लिए राजनीति के दलदल से मुक्त होकर शुद्ध-उदार- सहज-सनातन सांस्कृतिक धारा का हिस्सा बनना पड़ेगा, उसके लिए सस्ती एवं सतही राजनीति का परित्याग कर सेवा-तप-त्याग-संघर्ष का दुरूह एवं दुर्गम संघ-पथ अपनाना और विरोध एवं कुप्रचार का सरल एवं सुगम पथ छोड़ना पड़ेगा। स्वाभाविक है कि उन्हें सुर्खियाँ दिलाने एवं संवेग पैदा करने वाला मार्ग अधिक सरल जान पड़ता है। संघ जिस हिंदुत्व और राष्ट्रीयता की पैरवी करता है, उसमें संकीर्णता नहीं, उदारता है। उसमें विश्व-बंधुत्व की भावना समाहित है। उसमें यह भाव समाविष्ट है कि पुरखे बदलने से संस्कृति नहीं बदलती।

प्रणय कुमार

महिला दिवस


महिला दिवस आज है,सुनो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या ये देवे,हरे क्लेश विकार।।

महिलाओं ने किया है,तीनों लोको मे नाम उजागर।
इन्हीं के कारण से पार होता सब का ये भवसागर।।

महिलाओं ने बनाए हैं विश्व में अनेकों कीर्तिमान।
उनको मिलते रहते है,विश्व में अनेकों ही सम्मान।।

महिलाए नहीं होती ये पुरुष भी कभी न होता।
इस सृष्टि मे आज इतना जीवन आदि न होता।।

महिलाओं के कारण ही सब रिश्ते नाते बनते।
चाची मामी ताई भाभी इन्हीं से ही सब बनते।।

महिलाओं के बिना न चले गृहस्थ की गाड़ी।
पुरुष अकेला चला नहीं सकता है ये गाड़ी।।

महिला हर क्षेत्र में,पुरुषों से रही हैं बहुत आगे।
शिक्षा के क्षेत्र में रही हैं, हमेशा आगे ही आगे।

लक्ष्मी पार्वती सरस्वती सभी महिलाओं के नाम।
ब्रह्मा विष्णु महेश संग करती सृष्टि का ये निर्माण।।

महिलाओं ने बनाई है अनेकों इस जग में पहचान।
बहन बेटी मां सास बहु आदि है इनके सब नाम।।

महिला शक्ति की दाता है,करती सबका उपकार।
प्रभु कैसे वयक्त करे ,इनका हम सब ये आभार।।

आर के रस्तोगी

जनादेश तय करेगा किसान आंदोलन की दशा-दिशा !

                                    संजय सक्सेना

नया कृषि कानून वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली बार्डर पर डेरा डाले किसानों के आंदोलन में अजीब तरह का ठहराव नजर आ रहा है। न आंदोलन खत्म हो रहा है, न ही आगे बढ़ता नजर आ रहा है। ऐसा लग रहा है कि सरकार और किसान दोनों ही एक-दूसरे की बात सुनने समझने को तैयार नहीं हैं। इसकी जड़ में जाया जाए तो यही नजर आता है कि जब से किसान आंदोलन ने सियासी चोला ओढ़ा है तब से मोदी सरकार ने आंदोलन को लेकर अपना रूख भी सियासी कर लिया है। अब उसे इस बात की चिंता कम ही नजर आ रही है कि कथित किसान आंदोलन के चलते उसे(भाजपा और मोदी सरकार)सियासी तौर पर नुकसान उठाना पड़ सकता है बीजेपी आलाकमान इस बात की परख पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के नतीजों से कर लेना चाहता है। यदि यहां बीजेपी की उम्मीद के अनुसार नतीजे आए तो किसान आंदोलन की आगे की राह मुश्किल हो सकती है। तब तमाम राजनैतिक दल जो इस समय किसानों के साथ नजर आ रहे हैं,वह भी इससे पल्ला झाड़ लेंगे। इस तरह यह आंदोलन भी पूर्व के कई किसान अंदोलन की तरह अपना मकसद हासिल किए बिना इतिहास में सिमट जाएगा। यदि नतीजे बीजेपी के आशानुरूप नहीं रहे तो आंदोलनकारी किसानों को नई उर्जा मिलना भी तय है। तब किसानों को भड़काने वाली ‘शक्तियां’ और भी तीव्र गति से मोदी सरकार पर ‘आक्रमक’ हो सकती हैं। वैसे भी इतिहास गवाह है कि हमेशा ही आंदोलन कामयाब नहीं रहते है।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में 2017 में हुए किसान आंदोलन को लोग अभी भूले नहीं होंगे, जहां पुलिस की गोली से 7 किसानों की मौत हो गई थी। इस आंदोलन की वजह से ही 15 वर्षो के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे। यह और बात है कि यह सरकार ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई और आज शिवराज सिंह पुनः मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं। इसी तरह कर्ज माफी और फसलों के डेढ़ गुना ज्यादा समर्थन मूल्य की मांग को लेकर तमिलनाडु के किसानों ने 2017 एवं 2018 में राजधानी दिल्ली में अर्धनग्न होकर एवं हाथों में मानव खोपड़ियां और हड्डियां लेकर प्रदर्शन किया था।
नये कृषि कानून को लेकर चल रहे मौजूदा आंदोलन की बात करें तो पंजाब से उठी इस आंदोलन की चिंगारी से पंजाब और हरियाणा सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों के किसान सड़कों पर उतरे हुए हैं। दिल्ली को चारों ओर से आंदोलनकारी किसानों ने घेर लिया है।

आज भले ही भारतीय किसान यूनियन के नेता नेता चैधरी राकेश टिकैत मोदी सरकार को झुकनें को मजबूर नहीं कर पाए हों लेकिन उसके पिता महेन्द्र सिंह टिकैत जो अब इस दुनिया में नहीं हैं,उनकी तो पहचान ही किसान आंदोलन के कारण बनी थी। एक समय वे पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह, चैधरी देवी लाल की टक्कर के किसान नेता माने जाते थे। बस फर्क इतना था जहां, चैधरी चरणसिंह और चैधरी देवीलाल किसान नेता के साथ-साथ सियासतदार भी थे, वहीं महेन्द्र सिंह टिकैत विशुद्ध किसान नेता थे। टिकैत कई सरकारों को घुटनों के बल खड़ा होने को मजबूर कर चुके थे। सबसे खास बात यह थी कि टिकैत अराजनीतिक किसान नेता थे, उन्होंने कभी कोई राजनीतिक दल नहीं बनाया।

वर्ष 1987 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के कर्नूखेड़ी गांव में बिजलीघर जलने के कारण किसान बिजली संकट का सामना कर रहे थे। एक अप्रैल, 1987 को इन्हीं किसानों में से एक महेंद्र सिंह टिकैत ने सभी किसानों से बिजली घर के घेराव का आह्वान किया। यह वह दौर था जब गांवों में मुश्किल से बिजली मिल पाती थी। ऐसे में देखते ही देखते लाखों किसान जमा हो गए। तब स्वयं टिकैत को भी इसका अंदाजा नहीं था कि उनके एक आहवान पर इतनी भीड़ जुट जाएगी। इसी आंदोलन के साथ पश्चिमी यूपी के किसानों को टिकैत के रूप में बड़ा किसान नेता भी मिल गया। इसी आंदोलन के बाद महेन्द्र सिेंह टिकैत को इस बात का अहसास हुआ कि वे बड़ा आंदोलन भी कर सकते हैं। इसी के पश्चात जनवरी 1988 में किसानों ने अपने नए संगठन भारतीय किसान यूनियन के झंडे तले मेरठ में 25 दिनों का धरना आयोजित किया। इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा मिली। इसमें पूरे भारत के किसान संगठन और नेता शामिल हुए। किसानों की मांग थी कि सरकार उनकी उपज का दाम वर्ष 1967 से तय करे।
बहरहाल, चर्चा आज पर की जाए तो ऐसा लगता है कि किसान आंदोलन दिशा भटक चुका है। अगर ऐसा न होता तो लाल किले पर उपद्रव, खालिस्तान की मांग, उमर खालिद जैसे देशद्रोहियों के पक्ष में किसान नेता खड़ नजर नहीं आते। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के सौ से अधिक दिन बीत जाने के बाद भी यदि सरकार और किसान नेताओं के बीच गतिरोध खत्म नहीं हो रहा है तो इसके लिए कहीं न कहीं किसान नेताओं का अड़ियल रवैया अधिक जिम्मेदार है। आंदोलनकारी किसान राजनैतिक दलों के हाथ का खिलौना तो बन ही गया है। इसके अलावा आंदोलनकारी किसानों ने जिस तरह से आंदोलन के नाम पर आम जनता की परेशानियों से मुंह मोड़ रखा है,उससे किसान आंदोलन को जनसमर्थन मिलना बंद हो गया है। आंदोलनकारी किसान नेताओं द्वारा अपने आंदोलन की ओर सरकार ओर जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए चक्का जाम जैसे आयोजन किए जा रहे हैं, उसका उलटा असर पड़ रहा है।क्योंकि आंदोलनकारी किसानों का मकसद आम जनता को परेशान करके सरकार पर बेजा दबाव बनाना है। किसान नेताओं के रवैये से यह भी साफ है कि उनकी दिलचस्पी समस्या का समाधान खोजने में नहीं, बल्कि सरकार को कटघरे में खड़ा करने की ज्यादा है। इसी कारण वे उन तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हैं,जिस पर सुप्रीम अदालत ने पहले ही रोक ला रखी है। इतना ही नहीं मोदी सरकार भी नये कानून को डेढ़ वर्ष तक स्थगित करने पर सहमत हो गई है ताकि किसान नेताओं के सभी भ्रम दूर किए जा सकें।
मोदी सरकार धरना-प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों से लगातार यह समझा रही है कि वे इन कानूनों में खामियां बताएं तो वह उन्हें दूर करे, लेकिन किसान एक ही रट लगाए हुए है कि तीनों कानून खत्म किए जाएं। किसान नेता ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे संसद और सुप्रीम कोर्ट से वह ऊपर हों। किसान नेता सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई उस कमेटी से भी दूरी बनाए हुए हैं,जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि किसान आंदोलन कितना सार्थक है। आखिर, किसान नेताओं द्वारा तीनों कृषि कानूनों को रद्द करके उनकी जगह नया कृषि कानून लाए जाने की वकालत करने का क्या औचित्य हो सकता है। क्या यह उचित नहीं कि कानून रद करने की जिद पकड़ने के बजाय मौजूदा कानूनों में संशोधन-परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ा जाए,लेकिन यह तब तक नहीं होगा जब तक आंदोलनकारी किसान नेता सरकार से अधिक विरोधी दलों के नेताओं को महत्व देंगे,जो शुरू से ही किसानों की समस्याओं का समाधान न हो इसको लेकर रोड़े अटका रहे हैं। आज किसान नेताओं को उस कांगे्रस पर क्यों ज्यादा भरोसा है जिसके चलते 70 वर्षो से किसान भूखों मरने को मजबूर हो रहा था।

किसान नेता जिस तरह मोदी सरकार से छत्तीस का आंकड़ा रखे हुए हैं उससे तो यही लगता है कि किसान आंदोलन अहंकार का पर्याय बन गया है। इस आंदोलन के जरिये राजनीतिक हित साधने की कोशिश की जा रही है। चुनावी राज्यों में बीजेपी को हराने के लिए ताल ठोंक रहे किसान नेता कैसे अपने आप को निष्पक्ष बता सकते हैं। सच्चाई यही है कि किसान नेता विपक्ष का खिलौना बन गए हैं।

राष्ट्र के विकास की धरोहर हैं महिलाएं

प्रेम का प्रतीक है नारी। धैर्य,त्याग,सर्मपण और लज्जा का दूसरा नाम ही नारी है।नारी सम (अच्छी) परिस्थितियों में कोमल है तो वहीँ  विषम परिस्थितियों में शक्तिस्वरूपा भी हैं।नारी सीता,गायत्री,सरस्वती,लक्ष्मी,देवी स्वरूपा है तो वहीँ काली देवी और दुर्गा देवी स्वरूपा भी है। नारीत्व में तन,मन,धन तीनो का समावेश है|राष्ट्र का अभिमान है “नारी”। राष्ट्र की शान है नारी। भारतीय परिवेश व परिधान की शोभा है नारी। नर से नारायण की कहावत को चरितार्थ करती है नारी। मानवता की मिशाल है नारी। नारी से ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है। सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक रूप से महिलाओं को शक्ति प्रदान करना ही महिला सशक्तिकरण है। सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक रूप से सशक्त महिलाएं समाज को विकास की राह पर ले जाती हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार महिलाओं के विकास में निरंतर अग्रसर है। महिलाओं को दिए गए अधिकार जो प्रत्येक महिला को शक्तिशाली बनाते हैं,वे इस प्रकार है-समान वेतन का अधिकार – समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता। कार्य-स्थल में उत्पीड़न के खिलाफ कानून-यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत, महिलाओं को वर्किंग प्लेस पर हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा हक है। केंद्र सरकार ने भी महिला कर्मचारियों के लिए नियम लागू किए हैं,जिसके तहत वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण के शिकायत दर्ज होने पर महिलाओं को जांच लंबित रहने तक 90 दिन का पेड लीव दी जाएगी। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार-भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह एक महिला को उसके मूल अधिकार‘जीने के अधिकार’का अनुभव करने दें। गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पी सी पी एन डी टी) अधिनियम,1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए भारत की संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है।इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक ‘पीएनडीटी’एक्ट 1996,के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है।ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डाक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है। संपत्ति पर अधिकार – हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है।गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार-किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो उस पर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए।अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस,महिला सशक्तिकरण के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है।अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को, महिलाओं के आर्थिक,राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान,प्रशंसा और प्यार प्रकट किया जाता है।अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ,महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाने के मकसद से भी मनाया जाता है।दुनियाभर के हर कोने में इस दिन उन महिलाओं को और उनके योगदान को याद किया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में सफलता हासिल की हो। अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था। इसके बाद यह फरवरी महीने के आखिरी रविवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अंतर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख उद्देश्य महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिलाएं वोट नहीं दे सकती थीं। 1917 में रूस की महिलाओं ने,महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिए हड़ताल पर जाने का फैसला किया था। यह हड़ताल भी बिल्कुल ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी, अंतरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में थोड़ा अंतर था। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी रविवार 23 फरवरी को था जबकि ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च तारीख थी। इस समय पूरी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। यही कारण है कि 8 मार्च को ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है।

प्रत्येक वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक खास थीम पर आयोजित किया जाता है। वर्ष 1996 से लगातार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस किसी निश्चित थीम के साथ ही मनाया जाता है। सबसे पहले वर्ष 1996 में इसकी थीम “अतीत का जश्न और भविष्य के लिए योजना” रखी गई थी। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2021 की थीम है -‘वीमेन इन लीडरशिप:एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 वर्ल्ड'(‘महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना’)।

संस्कृत में एक श्लोक है-‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:।अर्थात्,जहां नारी की पूजा होती है,वहां देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। अधिकतर धर्मों में नारी सशक्तिकरण का उदाहरण देखने को मिलता है जैसे हिन्दू धर्म में वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण,गरिमामय,उच्च स्थान प्रदान करते हैं।वेदों में स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा, शील,गुण,कर्तव्य,अधिकार और सामाजिक भूमिका का सुन्दर वर्णन पाया जाता है।वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक,पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं।वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय।वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली,सुख–समृद्धि लाने वाली,विशेष तेज वाली,देवी, विदुषी,सरस्वती,इन्द्राणी,उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं।वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है–उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है। वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी। जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी। कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं।अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं–अपाला,घोषा,सरस्वती,सर्पराज्ञी,सूर्या,सावित्री, अदिति-दाक्षायनी,लोपामुद्रा,विश्ववारा,आत्रेयी आदि।वेदों में नारी के स्वरुप की झलक इन मंत्रों में देखें जा सकते हैं- यजुर्वेद 20:9 (स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है)। यजुर्वेद 17:45 (स्त्रियों की भी सेना हो। स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें)। यजुर्वेद 10:26 (शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें।जैसे राजा,लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों)। अथर्ववेद 11:5:18 (ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है। यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है) कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें। अथर्ववेद 14:1:6 (माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें। वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें)। जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर,भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने–कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे।ऋग्वेद 10.85.7 (माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें। माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो)। ऋग्वेद 3.31.1 (पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है)। देवी अहिल्याबाई होलकर,मदर टेरेसा,इला भट्ट,महादेवी वर्मा,राजकुमारी अमृत कौर,अरुणा आसफ अली,सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया था। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया था। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता,पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें ‘चतुर महिला’ तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं। कोरोना संकट का सबसे ज्यादा भार परिवार में महिलाओं पर आ पड़ा। कोरोना के भारी संकट में पूरे परिवार में यदि किसी पर सबसे ज्यादा संकट आया तो वह घर की महिला ही है जिसकी भूमिका अचानक बहुत बढ़ गई और घर में न केवल उसके काम बढ़े बल्कि उसके अधिकार क्षेत्र में दूसरे लोगों का अनधिकृत प्रवेश भी बढ़ गया। हर कोई उस पर हुक्म चलाया या फिर उससे काम करवाया। लॉकडाउन में बाहर सब कुछ बंद था  तो सबको घर पर ही रहने की मजबूरी थी। लॉकडाउन ने महिलाओं के काम के बोझ को बढ़ा दिया था। बच्चे स्कूल में जा नहीं रहे उन्हें या तो घर पर पढ़ाओ या नई−नई चीजें खिलाते रहो या मनोरंजन करो नहीं तो वे उधम मचायेंगे। जो बुर्जग हैं उन्हें कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा था,उनकी देखभाल अलग। बड़े आराम से घर में कोरोना से बचाव के लिए घर वालों ने तय कर दिया कि हाउस हैल्प और काम करने वाली बाई को मत आने दो। फिर खाना बनाने,बर्तन मांजने, झाडू चौका, कपड़े धोने का काम सब महिला पर ही आ गया। महिलायें पुरुषों की तुलना में किसी भी संकट में ज्यादा सतर्क और सक्रिय होती हैं। बेहतर प्रबंधक और बुरे हालात में भी बड़ी हिम्मत से परिवार और समाज को संभाले रहती हैं ये अलग बात है जब संकट नहीं रहता तब वे परिवार और समाज दोनों में ही फिर से उपेक्षित हो जाती हैं। कोरोना के इस संकट में उन्होंने कुछ अतिरिक्त जिम्मेवारियों का वहन किया|भारतीय संस्कृति में महिलाओं की अत्यंत गौरवशाली व महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत एकमात्र देश है जहां महिलाओं के नाम के साथ देवी शब्द का प्रयोग किया जाता है। यहां नारी को शक्ति स्वरूपा, भारतीय संस्कृति की संवाहक,जीवन मूल्यों की संरक्षक,त्याग,दया,क्षमा,प्रेम, वीरता और बलिदान के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया है। उसे गृहलक्ष्मी की मान्यता दी गई, परंतु कालांतर में इन धारणाओं में परिवर्तन परिलक्षित होने लगे और समाज में स्त्री की स्थिति कमजोर हो गई।वह अशिक्षा,लैंगिक भेदभाव, कुप्रथाओं और पुरुषवादी सोच के कारण घर की दहलीज तक सीमित होकर रह गई।अब स्थितियां बदल रही हैं। इक्कीसवीं सदी में भौतिकवादी परिवेश और बाजारवादी ताकतों के दबाव में नारी की छवि में तेजी से बदलाव हुआ। इक्कीसवीं सदी में जितनी बड़ी संख्या में महिलाएं शिक्षक,इंजीनियर,डॉक्टर और वैज्ञानिक बनकर उच्च पदों पर पहुंचीं और रोजगार के विविध क्षेत्रों में सक्रिय हुईं,वह अचंभित करने वाली है। महिलाओं ने आइटी,प्रशासन,शिक्षा और विज्ञान जैसे अनेक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाकर पहचान बनाई है|महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को समाज में स्थापित करने से महिलाएं मजबूत बनेंगी।मैं कुछ ऐसी महिलाओं का जिक्र करना चाहता हूँ जिन्होंने वर्ष 2020 ई. के हर गुज़रते दिन के साथ दुनिया पर कोई न कोई असर छोड़ा|वो महिलाएं इस प्रकार हैं –  क्रिस्टिना,’बाइट बैक’ नाम के अभियान के युवा बोर्ड की सह अध्यक्ष हैं।ये अभियान खान-पान के उद्योग में अन्याय के ख़िलाफ़ चलाया जा रहा था। क्रिस्टिना ने ख़ुद स्कूल में सरकार की ओर से मिलने वाले मुफ़्ते खाने का लाभ लिया। अब वो चाहती हैं कि ब्रिटेन में कोई भी बच्चा भूखा न रहे।

रीना अख्तर का जन्म स्थान बांगला देश है। कोविड-19 की महामारी के दौरान रीना अख्तर और उनकी टीम हर हफ़्ते चार सौ लोगों को खाना खिलाया करती थी। इसमें चावल,सब्ज़ियां,अंडे और मांस होता था। वो ढाका की उन सेक्स वर्कर्स को खाना खिलाती थीं,जिनके पास ग्राहक आने बंद हो गए थे। जिनके पास खाने का कोई और इंतज़ाम नहीं था|रीना अख्तर कहती हैं – मैं ये कोशिश कर रही हूं कि इस पेशे से जुड़ी औरतें भूखी न रहें,और उनके बच्चों को वेश्यावृत्ति का  काम न करना पड़े।

सारा अल अमीरी संयुक्त अरब अमीरात की आधुनिक तकनीक विभाग की मंत्री हैं ।वो यू. ए. ई.  की अंतरिक्ष एजेंसी की प्रमुख भी हैं। इससे पहले वो संयुक्त अरब अमीरात के मंगल मिशन की वैज्ञानिक प्रमुख और डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर रही थीं । संयुक्त अरब अमीरात का मंगल मिशन किसी अरब देश का दूसरे ग्रह के लिए पहला अभियान था। मंगल का चक्कर लगाने वाले ऑर्बिटर का नाम अमाल (अरबी भाषा में उम्मीद) रखा गया था। इस मिशन का मक़सद जलवायु और मौसम के अध्ययन के लिए आंकड़े जुटाना है। डॉ. अनास्तासिया वोलकोवा एक  उद्यमी हैं जिनका जन्म स्थान यूक्रेन है,जो कृषि के क्षेत्र में नए तौर तरीकों से काम कर रही हैं। वे खाद्य सुरक्षा के लिए विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। 2016 में उन्होंने फ्लूरोसैट कंपनी की स्थापना की|यह कंपनी किसानों का उत्पादन बढ़ाने के लिए ड्रोन और सैटेलाइट के ज़रिए आंकड़े एकत्रित करती है। आंकड़ों की गणना और विश्लेषण और दूसरे तौर तरीकों से कंपनी किसानों की मदद करती है। पौधों की वायरस विशेषज्ञ के तौर पर सीरिया में जन्मी  डॉक्टर सफा कुमारी उन महामारियों का समाधान खोजती हैं,जो फ़सलों को तबाह करती हैं। ऐसे बीजों की खोज करके जिनसे सीरिया में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके,सफा कुमारी ने उन बीजों को अलेप्पो से सुरक्षित निकालने के लिए अपनी ज़िंदगी तक दांव पर लगा दी थी। डॉक्टर सफा ने वायरस से लड़ने वाले पौधों की क़िस्मों की तलाश में कई बरस बिताए हैं। इनमें फाबा बीन नाम का पौधा भी है,जो फबा नेक्रोटिक यलो वायरस (ऍफ़ बी एन वाई  वी) प्रतिरोधी है। महिला सशक्तिकरण के सरकारी दावों को झुठलाती,अमेरिकी समाचार पत्रिका न्यूजवीक और महिला अधिकारों पर केन्द्रित द डेली बीस्ट की एक नई रिपोर्ट ने यह प्रमाणित कर दिया है कि हमारी सरकारें महिलाओं की दशा सुधारने और उन्हें सशक्त करने का जो दम भरती हैं, वह किस हद तक झूठे और भ्रम पैदा करने वाले होते हैं। द बेस्ट एंड द वर्स्ट प्लेस फॉर वूमेन नाम की इस रिपोर्ट में शामिल 165 देशों में भारत को 141वां स्थान दिया गया है। हैरानी की बात तो यह यह है कि म्यांमार, बांग्लादेश,भूटान आदि जैसे अल्प-विकसित देशों को भारत की अपेक्षा महिलाओं के लिए सुरक्षित दर्शाया गया है।

अंत में हमे यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना,भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या,पुरुषों के मुकाबले कम बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी,दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है। अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए। अतएव हम कह सकते हैं कि नारी समाज के विकास की धरोहर है।

कोविड -19 की दुनिया में महिलाओं का नेतृत्व व भविष्य

महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य है समाज में महिलाओं के वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना अर्थात महिलाओं का शक्तिशाली होना। महिलाएं शक्तिशाली होंगी तो वह अपने जीवन से जुड़े प्रत्येक फैसले स्वयं ले सकती है। ऐसी महिलाएं परिवार और समाज को विकास की राह पर ले जाती हैं।महिलाओं को दिए गए अधिकार महिला सशक्तिकरण का आधार है। सत्र 2020 ई. में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने आगाह किया था कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के विनाशकारी सामाजिक और आर्थिक प्रभावों से दुनिया भर में महिलाएँ व लड़कियाँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं|उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में वर्षों व कई पीढ़ियों से हो रही प्रगति को कोरोना वायरस संकट की भेंट ना चढ़ने देने के लिये व्यापक प्रयास करने की आवश्यकता होगी|वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पहले ही लैंगिक समानता और महिला अधिकारों पर सीमित व नाज़ुक प्रगति को ठेस पहुँच चुकी है|महिला अधिकारों की सुरक्षा की को बनाए रखना के लिए इन अधिकारों पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है – महिलाओं को दिए गए अधिकार जो प्रत्येक महिला को शक्तिशाली बनाते हैं,वे इस प्रकार हैं – समान वेतन का अधिकार,कार्य-स्थल में उत्पीड़न के खिलाफ कानून,कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार,संपत्ति पर अधिकार,गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार|महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार महिलाओं के विकास में निरंतर अग्रसर है।दुनिया की हर महिला वो सब कुछ हासिल कर सकती है,जिसे पाने का वो ख्वाब देखती है|किसी महिला को मुश्किल हालातों का कितना भी सामना करना पड़े वो अपनी मंजिल तक पंहुच ही जाती है|महिलाओं को अपने अंदर की ताक़त का एहसास होना चाहिए|महिलाओं का आत्मबल सृष्टि की खूबसूरती का परिचायक है|तभी महिलाएं घर से लेकर राष्ट्र तक के निर्माण में अहम् भूमिका निभाती हैं|अन्याय के खिलाफ महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलें और अपनी आवाज़ बुलंद करें| अगर महिलाएं अपने घरों से बाहर नहीं निकलेंगी,तो वो अपनी ताक़त दुनिया को कैसे दिखा पाएंगी ? महिलाओं को संघर्ष जारी रखना चाहिए|महिलाओं को नया रचते रहना चाहिए|नारी होने का गुण या भाव ही नारीत्व कहलाता है|नारीत्व नवीनता (नए) का द्योतक है |नारी किसी भी समाज के भविष्य का निर्धारण करती है|महिलाओं को अन्याय का विरोध करते रहना चाहिए|महिलाओं को अन्याय के खिलाफ कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं करना चाहिए| भीड़ का हिस्सा होने वाली महिलाएँ कोई तब्दीली नहीं ला सकतीं|वर्ष 2020 में कोविड -19 की वजह से दुनिया बहुत बदल गई|लेकिन,महिलाओं के लिए दुनिया हर रोज़ बदलती रहती है|महिलाओं ने परिचर्चाओं को बदला है और अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाई है |ये सिलसिला आने वाली पीढ़ियों में भी जारी रहेगा|कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अचानक एकदम रोक दिया|इससे हमें अपने बारे में सोच-विचार करने और एक बेहतर इंसान बनने का मौक़ा मिला|महिलाओं को विकास करने के लिए लगातार कोशिश जारी रखनी होगी |महिलाओं के विकास से ही बेहद नाज़ुक दुनिया को स्थायी बनाया जा सकता है|हम तभी हारते हैं,जब हम उम्मीद का दामन छोड़ देते हैं| महिलाएं अपने विचारों के लिए लड़ाई जारी रखें|ख़्वाब देखने का साहस करें|उम्मीद का दामन न छोड़ें|सत्र 2020 महिलाओं के लिए कई मायनों में बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है|आप मुश्किलों को अपनी राह के आड़े मत आने दें|हर संभावना को तलाशते रहें|हर दिन कुछ समय अपने आपको भी दें| अगर कोई महिला कुछ हासिल करने की ठान लेती है,तो फिर उसे कोई नहीं रोक सकता| विश्व में प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है|अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस(इंटरनेशनल विमेंस डे) सत्र 2021 ई. का प्रसंग (थीम) है – “महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना” (“वीमेन इन लीडरशिप : अचीविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड -19 वर्ल्ड ”)। यह थीम कोविड -19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों, इनोवेटर आदि के रूप में दुनिया भर में लड़कियों और महिलाओं के योगदान को रेखांकित करती है|किसी ने क्या खूब कहा है – हर सफल इंसान के पीछे एक महिला का हाथ होता है, इसी प्रकार राष्ट्र निर्माण में एक नहीं बल्कि सैकड़ों महिलाओं का सहयोग होता है।महिलाएं सशक्त होंगी तभी देश बनेगा महाशक्ति।महिलाओं के लिए सफलता की सीमा आकाश तक सीमित नहीं,बल्कि उससे आगे का जहां इनका है। ये जोश से भरी हुईं सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाएं,हमारे आसपास दिखाई देने वालीं सामान्य महिलाओं की तरह ही हैं, लेकिन इन महिलाओं की गौरव गाथा इन्हें कुछ खास बनाती है।
कोरोना से बचाव और सुरक्षा के कार्य में जहां अधिकारी-कर्मचारी,स्वास्थ्य विभाग का अमला, पुलिसकर्मी,जन-प्रतिनिधि,स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि समर्पित भाव से जुटे रहे,वही इस लड़ाई में मध्य प्रदेश के नीमच जिले के ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ भी अपना योगदान देती रहीं ।नीमच जिले में एनआरएलएम द्वारा गठित 71 महिला स्व-सहायता समूहों की महिलाएं मॉस्क निर्माण कर जरुरतमंदों को वितरित कर रहीं। कोरोना संकट का सबसे ज्यादा भार परिवार में महिलाओं पर आ पड़ा|कोरोना के भारी संकट में पूरे परिवार में यदि किसी पर सबसे ज्यादा संकट आया तो वह घर की महिला ही है जिसकी भूमिका अचानक बहुत बढ़ गई और घर में न केवल उसके काम बढ़े बल्कि उसके अधिकार क्षेत्र में दूसरे लोगों का अनधिकृत प्रवेश भी बढ़ गया। लॉकडाउन में बाहर सब कुछ बंद था तो सबको घर पर ही रहने की मजबूरी थी। लॉकडाउन ने महिलाओं के काम के बोझ को बढ़ा दिया था। महिलायें पुरुषों की तुलना में किसी भी संकट में ज्यादा सतर्क और सक्रिय होती हैं। बेहतर प्रबंधक और बुरे हालात में भी बड़ी हिम्मत से परिवार और समाज को संभाले रहती हैं।कोरोना के इस संकट में उन्होंने कुछ अतिरिक्त जिम्मेवारियों का वहन किया |इक्कीसवीं सदी में भौतिकवादी परिवेश और बाजारवादी ताकतों के दबाव में नारी की छवि में तेजी से बदलाव हुआ। इक्कीसवीं सदी में जितनी बड़ी संख्या में महिलाएं शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक बनकर उच्च पदों पर पहुंचीं और रोजगार के विविध क्षेत्रों में सक्रिय हुईं,वह अचंभित करने वाली है। महिलाओं ने आइटी, प्रशासन,शिक्षा और विज्ञान जैसे अनेक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाकर पहचान बनाई है| महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को समाज में स्थापित करने से महिलाएं मजबूत बनेंगी। वर्ष 2020 महिला अधिकारों की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण वर्ष माना जा सकता है।गौरतलब है कि यह महिला अधिकारों और समाज के विभिन्न स्तरों पर महिलाओं की भूमिका से जुड़ी दो बड़ी घटनाओं की 25वीं वर्षगाँठ का वर्ष रहा। सत्र 2020 में‘भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति’(सी एस डब्लू आई) द्वारा संयुक्त राष्ट्र को‘समानता की ओर’या‘टुवर्डस इक्वालिटी’ (टुवर्ड्स इक्वलिटी) नामक रिपोर्ट को प्रस्तुत किये हुए लगभग 25 वर्ष पूरे हो गए थे। इस रिपोर्ट में भारत में महिलाओं के प्रति संवेदनशील नीति निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए लैंगिक समानता पर एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करने का प्रयास किया गया था। साथ ही वर्ष 2020 में ’बीजिंग प्लेटफार्म फॉर एक्शन’ की स्थापना की 25वीं वर्षगाँठ भी थी,जो समाज में महिलाओं की स्थिति और सरकारों के नेतृत्त्व में उनके सशक्तीकरण के प्रयासों के विश्लेषण का एक बेंचमार्क है। कोविड-19 के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई थी,साथ ही इस दौरान महिलाओं के लिये शिक्षा और रोज़गार की पहुँच बाधित हुई जो पिछले कई वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में हुए सुधार के प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव डाल गया।
भारत में विभिन्न सार्वजनिक (आशा कार्यकर्त्ता आदि) और निजी क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं को उनके कार्य के अनुरूप अपेक्षा के अनुरूप कम भुगतान दिया जाना एक बड़ी चुनौती रही। एक असाधारण वर्ष (2020) में जब पूरी दुनिया में अनगिनत महिलाओं ने दूसरों की मदद करने के लिए कुर्बानियां दी। ऐसी महिलाओं के बलिदान और काम के सम्मान में,जिन्होंने बदलाव लाने की कोशिश में अपनी जान गंवा दी, मेरी तरफ से उनको हृदयपूर्वक श्रद्धांजलि|ऐसी महिलाएं जिन्होंने वर्ष 2020 ई. के हर गुज़रते दिन के साथ दुनिया पर कोई न कोई असर छोड़ा|वो महिलाएं इस प्रकार हैं – हॉउदा अबोउज़ या खटेक, मोरक्को की एक रैपर हैं|जो अपने ख़ास अंदाज़ और सुरीले गानों के लिए मशहूर हैं|वो महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए आवाज़ उठाईं|मोरक्को का संगीत उद्योग पुरुषों के ज़बरदस्त दबदबे वाला है|ऐसे में हॉउदा अपने संगीत को बदलाव का ज़रिया मानती हैं| इसाइवानी भारत की एक मशहूर गायिका हैं|गाना संगीत,तमिलनाडु में उत्तरी चेन्नई के कामगारों के बीच से उभरी एक ख़ास संगीत विधा है|इसाइवानी ने मर्दों के दबदबे वाले इस क्षेत्र में गीत गाते हुए और शो करते हुए कई बरस बिताए हैं|अन्य लोकप्रिय पुरुष गायकों के साथ,एक महिला का उसी मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि रही|भारत की इसाइवानी ने सदियों पुरानी एक परंपरा को बड़ी कामयाबी के साथ तोड़ा है|आज इसाइवानी के कारण ही दूसरी युवा महिला गाना गायिकाएं आगे आकर अपने हुनर को पेश कर रही हैं|वाद अल कतीब सीरिया की एक कार्यकर्ता,पत्रकार और अवार्ड विजेता फिल्म निर्माता हैं|कतीब ने अलेप्पो शहर के बारे में अपनी न्यूज़ रिपोर्ट के लिए दुनिया में कई पुरस्कार जीते हैं|इनमें प्रतिष्ठित एमी अवार्ड भी शामिल हैं|वर्ष 2020 में उनकी पहली फीचर फिल्म’समा’के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का बाफ्टा (बाफ्टा) अवार्ड जीता था|उन्हें एकेडमी अवार्ड्स में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री फीचर के लिए भी नामांकित किया गया था|वर्ष 2016 में वाद अल-कतीब को गृह युद्ध के चलते अलेप्पो शहर छोड़ना पड़ा था| अब वाद अपने शौहर और दो बेटियों के साथ लंदन में रहती हैं|लंदन में वो चैनल-4 न्यूज़ के लिए काम करती हैं|इसके अलावा वो महिला अधिकारों के लिए एक्शन फॉर समा नाम से एक समूह भी चलाती हैं| मानसी जोशी एक भारतीय पैरा-एथलीट हैं|वो पैरा बैडमिंटन की मौजूदा विश्व चैंपियन हैं|जून 2020 में बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन ने उन्हें एस एल 3 सिंगल्स मुक़ाबलों में विश्व की नंबर 2 रैंकिंग पर रखा था|मानसी एक इंजीनियर भी हैं,और बदलाव के लिए काम करती हैं|मानसी चाहती हैं कि भारत में दिव्यांगता और पैरा स्पोर्ट्स के बारे में लोगों की राय बदले|टाइम पत्रिका ने हाल ही में उन्हें अगली पीढ़ी की नेता के तौर पर अपनी सूची में शामिल किया था|वो टाइम के एशिया एडिशन में भारत में दिव्यांग लोगों के अधिकारों की कार्यकर्ता के तौर पर शामिल की गई थीं| रिद्धिमा पांडे एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं,जिन्होंने नौ साल की उम्र में जलवायु परिवर्तन को लेकर क़दम न उठाने पर भारत सरकार के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया था|वर्ष 2019 में 15 अन्य बाल याचिकाकर्ताओं के साथ रिद्धिमा ने संयुक्त राष्ट्र में पांच देशों के ख़िलाफ़ केस दायर किया था|रिद्धिमा दूसरे छात्र-छात्रों को हर स्तर पर सशक्त बनाने में मदद कर रही हैं,जिससे कि वो अपने भविष्य और विश्व की जैव विविधता के लिए संघर्ष कर सकें| रिद्धिमा अपने और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं| नेपाल की रहने वाली सपना रोका मगर,काठमांडू पहुंचीं|वहां वो ऐसे संगठन के साथ जुड़ गईं, जो लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करता है|जिन लोगों की मौत कोविड-19 से हुई,उनके शवों का अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी,सख़्ती से नेपाल की सेना के हवाले कर दी गई| सपना का संगठन सड़कों,गलियों और मुर्दाघरों में पड़ी लावारिस लाशों को उठाता और उन्हें पोस्ट मॉर्टम के लिए अस्पताल ले जाता|अगर फिर भी लाश पर 35 दिनों तक कोई दावा नहीं करता,तो फिर उनका संगठन लाश को श्मशान ले जाता और दागबत्ती परंपरा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करता था|अफ़ग़ानिस्तान में एक महिला का नाम सार्वजनिक रूप से लेने पर नाक-भौं सिकोड़ी जाती है|किसी के जन्म प्रमाण पत्र में केवल पिता का नाम ही लिखा जाता था|जब कोई महिला शादी करती थी,तो शादी के आमंत्रण पत्र में महिला का नाम नहीं छापा जाता था|जब कोई महिला बीमार होती थी,तो दवा के पर्चों पर भी उसका नाम नहीं होता,और जब अफ़ग़ानिस्तान में किसी महिला की मौत हो जाती थी,तो न तो उसका नाम मृत्यु प्रमाण पत्र में दर्ज किया जाता और न ही उसकी क़ब्र के पत्थर पर नाम लिखा जाता| महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार से वंचित किए जाने से खीझ कर,लालेह ओस्मानी ने व्हेयर इज़ माय नेम अभियान की शुरुआत की थी| तीन साल के संघर्ष के बाद,वर्ष 2020 में जाकर अफ़ग़ान सरकार राष्ट्रीय पहचान पत्रों और बच्चों के जन्म प्रमाण पत्रों में महिलाओं का नाम भी लिखने को राज़ी हुई| हयात एक पत्रकार हैं,महिलावादी और मानववादी कार्यकर्ता भी हैं| वो लेबनान के पहले महिलावादी संगठन फी-मेल की सह-संस्थापक भी हैं|हयात एक ज़िद्दी और न झुकने वाली महिला हैं|उनका मिशन लड़कियों और महिलाओं की पहुंच न्याय,सूचना,संरक्षण और मानव अधिकारों तक बनाना है|हयात अपने संदेश को तमाम मंचों के माध्यम से लगातार दूसरों तक पहुंचाने में जुटी हुई हैं|वो देशव्यापी मार्च का आयोजन करती हैं,और भ्रष्ट व पुरुषवादी हुकूमत को चुनौती देने के लिए देश की जनता को एकजुट करते हुए परिवर्तन की मांग करती हैं| साना मैरिन, फिनलैंड की प्रधानमंत्री हैं|वो फिनलैंड की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हैं| वो जिस गठबंधन सरकार का नेतृत्व करती हैं,उसका गठन चार ऐसे दलों को मिलाकर किया गया है, जिन सबकी बागडोर महिलाओं के हाथ में है: मारिया ओहिसालो (ग्रीन लीग),ली एंडरसन (लेफ्ट गठबंधन),एना-माहा हेनरिक्सन (स्वीडिश पीपुल्स पार्टी) और एन्निका सारिक्को (सेंटर पार्टी)| फिनलैंड ने जिस तरह से अपने यहां कोविड-19 महामारी से निपटने की कोशिश की है|उसकी पूरी दुनिया में तारीफ़ हुई है|नवंबर 2020 तक,यूरोपीय देशों में फिनलैंड सबसे कम संक्रमण दर वाले देशों में से एक है| दक्षिण अफ्रीका में जन्मी,इश्तर लखानी एक महिलावादी कार्यकर्ता हैं और वो ख़ुद को परेशानी खड़ी करने वाली कहती हैं|दक्षिण अफ्रीका की रहने वाली इश्तर,पूरी दुनिया में सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले संगठनों,आंदोलनों और नेटवर्क के साथ मिलकर काम करती हैं|उन्हें समर्थन मुहैया कराती हैं जिससे कि मानव अधिकारों की वकालत के लिए उन्हें मज़बूती प्रदान कर सकें|इस साल उन्होंने वैक्सीन को मुक्त करो अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है|इस अभियान की शुरुआत सेंटर फॉर आर्टिस्टिक एक्टिविज़्म फ़ॉर एसेंशियल मेडिसिन (यू ए ई एम) ने की थी|अब वो दूसरे लोगों के साथ मिलकर सिर्फ़ एक लक्ष्य के लिए काम कर रही हैं|वो ये है कि दुनिया में हर इंसान को कोविड-19 की वैक्सीन उचित दर पर मिले और दुकानों तक जाकर इसे आसानी से ख़रीदा जा सके |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने महिला विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। भारत की महिलाएं राष्ट्र की प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और सरकार उनके योगदान और क्षमता को पहचानती है। सरकार ने महिला सशक्तिकरण को लेकर कई मजबूत कदम उठाए हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से लेकर बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं और उनके दैनिक जीवन और उनकी दीर्घकालिक संभावनाओं को सुधारने के लिए कई पहल की है। केंद्र सरकार ने अपने कामकाज की बदौलत एक तरह से महिलाओं को एक साथ जोड़ दिया है। अतएव हम कह सकते है की भारतीय महिलाओं की गौरव गाथा ने राष्ट्र को विश्व पटल पर चरितार्थ किया। इसलिए हम कह सकते हैं कि कोविड -19 की दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा राष्ट्र के विकास के लिए अति महत्वपूर्ण है ।

लेखिका
अमिता सिंह

ऋषि दयानन्द ने अविद्या दूर करने सहित संसार का महान उपकार किया

मनमोहन कुमार आर्य

                सृष्टि के आरम्भ से संसार में मनुष्य आदि प्राणियों का जन्म होता रहा है। मनुष्य बुद्धि से युक्त प्राणी है जो सोच विचार कर सत्य और  असत्य का निर्णय कर अपने सभी कार्य करता कर सकता है। सामान्य मनुष्य दूसरे शिक्षित मनुष्यों को देखकर अपने जीवन को भी अच्छा सुखी बनाने का प्रयत्न करते हैं। मनुष्य को माता, पिता आचार्यों द्वारा जो पढ़ाया बताया जाता है उसी से वह सन्तुष्ट होकर अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अपने जीवनकाल को सुखपूर्वक व्यतीत करने का प्रयत्न करते हैं। संसार में अनेक महापुरुष भी हुए हैं। महापुरुष उन मनुष्यों को कहते हैं जो साधारण मनुष्य से इतर देश समाज के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को करते हैं। मनुष्य को अपनी बुद्धि की उन्नति करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। ज्ञान के भी अनेक स्तर होते हैं। भौतिक ज्ञान में मनुष्य भौतिक पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। सामाजिक ज्ञान का अध्ययन कर वह समाज विषयक बातों का अध्ययन व उन्हें ग्रहण करते हैं।

                हम संसार में सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, ग्रह, उपग्रह नक्षत्रों से युक्त विशाल सृष्टि को देखते हैं। सृष्टि सहित प्राणी तथा वनस्पति जगत में विद्यमान आदर्श व्यवस्था को भी देखते हैं। इस सृष्टि का निर्माण एवं सृष्टि में सर्वत्र व्यवस्था के होने से विद्वान मनुष्य इसमें निहित क्रियारत एक अदृश्य सूक्ष्म सत्ता के दर्शन करते हैं। यदि वह सूक्ष्म सत्ता होती तो यह संसार किससे बनता कैसे चलता? यदि बन भी जाता तब भी यह उस व्यवस्थापक चेतन सत्ता के बिना कैसे चलता? हम अपने नगरों में वाहनों को देखते हैं। वह तभी चल सकते हैं जब वह यांत्रि़क दृष्टि से निर्दोष हों, उसमें ईधन हो तथा उसे कोई चेतन मनुष्य, जिसको वाहन चलाना आता है, वह चलाये। इसी प्रकार से इस जड़ जगत को भी चलाने के लिए इसका निर्दोष नियमों में आबद्ध होना तथा इसके नियन्ता संचालक द्वारा इसका चलाया जाना आवश्यक होता है। ऐसी ही सत्ता को ईश्वर कहा जाता है। इस सत्ता का ज्ञान व प्राप्ति निर्दोष रूप में केवल वेद और वैदिक साहित्य से ही होती है। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय आदि ग्रन्थ भी वेद व वैदिक साहित्य के अनुकूल व उसके पोषक ग्रन्थ हैं। सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थ हिन्दी में हैं जिन्हें हिन्दी भाषी लोग पढ़कर वेद व वैदिक साहित्य के प्रायः सभी सिद्धान्तों व रहस्यों को समझ सकते हैं और ईश्वर सहित अपनी आत्मा व अन्य प्राणियों मे विद्यमान आत्माओं का भी ज्ञान प्राप्त कर निःशंक हो सकते हैं। ईश्वर, जीव तथा प्रकृति के मूल स्वरूप का ज्ञान हो जाने पर मनुष्य की गूढ़ व सभी प्रकार की शंकाओं का समाधान हो जाता है। इससे मनुष्य अपने जीवन को जीवन के उद्देश्य व लक्ष्य के अनुसार व्यतीत कर आत्मा को ज्ञान से युक्त कर धर्म, अर्थ तथा काम आदि का धर्मपूर्वक संग्रह व सेवन करते हुए आत्मा को आवागमन के चक्र से मुक्त कर मोक्ष को प्राप्त हो सकते हंै। जीवात्मा का उद्देश्य व लक्ष्य तथा उसकी प्राप्ति के उपायों का तर्क एवं युक्ति संगत प्रामाणिक ज्ञान ऋषि दयानन्द के समय में विद्वानों व सर्वसुलभ पुस्तकों  में उपलब्ध नही होता था। ऋषि दयानन्द ने सन् 1839 की फाल्गुन मास की शिवरात्रि के दिन ईश्वर के सच्चे स्वरूप को प्राप्त करने का बोध प्राप्त कर कालान्तर में अपने पुरुषार्थ एवं तपस्वी जीवन से अपनी सभी आशंकाओं को दूर किया था और ऐसा करते हुए उन्हें जो अमृतमय ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसे उन्होंने अपने उपदेशों सहित अपने सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा ऋग्वेद आंशिक तथा सम्पूर्ण यजुर्वेद भाष्य के माध्यम से समस्त संसार को पिलाने व जिलाने का कार्य किया था।

                ऋषि दयानन्द सरस्वती जी (1825-1883) का जन्म गुजरात के टंकारा नामक एक ग्राम में हुआ था। उनके समय में संसार अविद्यान्धकार में डूबा हुआ था। लोगों को ईश्वर के सच्चे स्वरूप का ज्ञान नहीं था। मूर्तिपूजा, अवतारवाद, फलित ज्योतिष, मृतक श्राद्ध आदि अनेक अन्धविश्वास देश समाज में प्रचलित थे। समाज में अनेकानेक कुरितियां विद्यमान थी। समाज में अनेक प्रकार के भेदभाव भी थे। मनुष्य जाति जन्मना जाति व्यवस्था में बंटी हुई थी। स्त्री शूद्रों को वेद पढ़ने उसके मन्त्र बोलने का अधिकार भी नहीं था। समाज में बाल विवाह बेमेल विवाह होते थे। बाल विधवाओं की दशा अत्यन्त दुःखद चिन्ताजनक थी। मनुष्य कैसे सुखी रह सकता है तथा किस प्रकार से दुःखों सहित मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है, इसका प्रामाणिक ज्ञान कहीं भी सुलभ नहीं था। ईश्वर की कर्म फल व्यवस्था को भी भुला दिया गया था। शिक्षा की दृष्टि से भी देश व समाज अत्यन्त अवनत व पिछड़ी हुई अवस्था में था। हिन्दी भाषा का भी देश में समुचित प्रचार नहीं था। संस्कृत भाषा की स्थिति भी अत्यन्त संकीर्ण व संकुचित थी। यह भाषा व इसका व्यवहार कुछ थोड़े से लोगों तक ही सीमित हो गया था। शास्त्राध्ययन पर एक ही वर्ग का अधिकार था और वह सब भी वेद आदि प्रमुख प्रामाणिक शास्त्रों का अध्ययन नहीं करते थे। वेद विरुद्ध पुराण ग्रन्थों का महत्व समाज में गाया जाता था। तर्क व युक्ति विरुद्ध बातों को भी आंखे बन्द कर स्वीकार किया जाता था। देश छोटे छोटे राज्यों व रियासतों में बंटा हुआ था। देश पर विदेशी शासकों अंग्रेजों का अधिकार था। इससे पूर्व वर्षों तक मुस्लिम शासकों ने दूर देशों से आकर भारत में मन्दिरों आदि की लूटमार की थी और भारत को गुलाम बनाया था। उन्होंने मातृशक्ति का भी घोर अपमान किया था। हमारे स्वधर्मी बन्धुओं का अन्याय व अत्याचार द्वारा धर्म परिवर्तन किया था। आज भी यह कार्य देश के अनेक भागों में गुप्त रीति से किये जाते हैं। ऐसी अवस्था में ऋषि दयानन्द ने देश में उपलब्ध वेद आदि समस्त शास्त्रों का अपने अपूर्व पुरुषार्थ एवं तप से अध्ययन कर उनके सत्य अर्थों को प्राप्त किया। वह ज्ञान व अज्ञान तथा विद्या व अविद्या में अन्तर करना जानते थे। उन्होंने ईश्वर का सत्यस्वरूप भी वेदाध्ययन एवं उपनिषद तथा दर्शन ग्रन्थों के आधार पर निर्धारित किया था। महाभारत युद्ध के बाद ऋषि दयानन्द व उनके बाद के समय में यह पहला अवसर था कि जब देश में वेदों व वेदानुकूल ग्रन्थों उपनिषद तथा दर्शनों में सुलभ ईश्वर व जीवात्मा आदि के सत्यस्वरूप की चर्चा देश के सामान्य लोग कर रहे थे जिसकी प्रेरणा व प्रचार ऋषि दयानन्द जी ने ही किया था।

                ऋषि दयानन्द मथुरा के गुरु दण्डी स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी के सुयोग्य शिष्य एवं योग समाधि सिद्ध सन्यासी एवं विद्वान थे। गुरु जी ने उन्हें बताया था कि सारा संसार अविद्या अज्ञान से ग्रस्त है। अविद्या अज्ञान ही संसार की सभी समस्याओं की जड़ तथा सब मनुष्यों के दुःखों का कारण थी। इसको दूर करने के लिए विश्व में वेदों ज्ञान का प्रचार किया जाना अत्यन्त आवश्यक था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये ऋषि दयानन्द ने देश भर में घूम घूम कर वैदिक सत्य मान्यताओं का प्रचार किया था। विपक्षी विद्वानों की शंकाओं का समाधान किया था तथा सभी को सत्यासत्य का निर्णय करने के लिए संवाद तथा शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी। जो लोग संवाद व शास्त्रार्थ के लिए सामने आये थे उनका उन्होंने तर्क एवं युक्तिपूर्वक समाधान किया था। कुछ निष्पक्ष लोगों ने उनके विचारों व सिद्धान्तों को स्वीकार किया था और बहुतों ने अपने हित व अहितों का ध्यान कर स्वीकार नहीं किया था। उनका प्रचार निरन्तर बढ़ रहा था। पंजाब के लोगों पर उनका विशेष प्रभाव था। वर्तमान के पाकिस्तान देश जो पहले पंजाब कहा जाता था, उसके लाहौर, झेलम आदि अनेक स्थानों पर वेदों का प्रचार होकर आर्यसमाजें स्थापित हुईं थीं। पंजाब में ऋषि दयानन्द को स्वामी श्रद्धानन्द, पं. लेखराम, पं. गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज तथा लाला लाजपतराय जैसे महान देशभक्त एवं समाज सुधारक विद्वान प्राप्त हुए थे। वेदों के निरन्तर स्थाई रूप से प्रचार के लिए ऋषि दयानन्द जी ने 10 अप्रैल, 1875 को मुम्बई में आर्यसमाज संगठन वा वेद प्रचार आन्दोलन की स्थापना की थी। आर्यसमाज ने अपनी स्थापना से वर्तमान समय तक देश में अन्धविश्वासों को दूर करने तथा समाज सुधार के अनेकानेक व प्रायः सभी कार्य किये जिससे देश व समाज की तस्वीर सुधरी है। देश अज्ञान के कूप से बाहर निकला है। अभी इसे वेदों की सत्य मान्यताओं को स्वीकार करने का लक्ष्य भी प्राप्त करना है। जब तक ऐसा नहीं होता मनुष्यों में ज्ञान व शिक्षा अधूरी व अपूर्ण है व रहेगी। देश की आजादी का मूल मन्त्र भी आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने ही दिया था। सत्यार्थप्रकाश के आठवें समुल्लास में उनके अमर व स्वर्णिम शब्द जो उन्होंने विदेशी राज्य के विरोध में कह थे, अंकित हैं। आर्यसमाज की देश को आजाद कराने तथा आजादी के आन्दोलन को स्वतन्त्रता सेनानी देने में महत्वपूर्ण भूमिका है। आर्यसमाज ने ही देश में हिन्दुओं के धर्मान्तरण की प्रक्रिया को रोका व बदला। ऋषि दयानन्द के स्वामी श्रद्धानन्द एवं पं. लेखराम आदि ने अपने अनेक बिछुड़े भाईयों को शुद्ध कर पुनः स्वमत में दीक्षित किया। आर्यसमाज ऐसा संगठन है जिसमें मनुष्यों के प्रति परस्पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। सब शाकाहारी हैं। यहां सब बन्धु मिलकर ईश्वर की उपासना व देवयज्ञ अग्निहोत्र करते हैं। सत्संग का आनन्द लेते हैं। विद्वानों के प्रवचनों व भजनीकों के भजन सुनते हैं। आर्यसमाज सब मनुष्यों व प्राणियों को सर्वव्यापक तथा सच्चिदानन्दस्वरूप ईश्वर की सन्तान मानता है। आर्यसमाज पुनर्जन्म को मानता है तथा उसे युक्ति व तर्क से भी सिद्ध करता है। आर्यसमाज एक मानवतावादी सार्वभौमिक सामाजिक संगठन है जो विश्व से अविद्या दूर कर सभी मनुष्यों को ईश्वर की सत्य उपासना की शिक्षा देता है और सबको धर्म, अर्थ, कार्म तथा मोक्ष की प्राप्ति करने के लिए सद्कर्मों को करने की प्रेरणा करता है। ऋषि दयानन्द ने भारतीय समाज में समग्र क्रान्ति की थी। उनके जैसा महापुरुष महाभारत युद्ध के बाद दूसरा कोई नहीं हुआ। ऋषि दयानन्द देश के पितामह हैं। दिनांक 8 मार्च, 2021 को ऋषि दयानन्द सरस्वती का 196 वां जन्म दिवस है। हम इस अवसर पर उनको सादर नमन करते हैं। उनके द्वारा बताया वेदों का मार्ग ही मानवता तथा मनुष्यों के समग्र विकास वा उन्नति का मार्ग है। इसी से विश्व का कल्याण एवं विश्व शान्ति के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

रोज़गार की ख़ातिर फिर पलायन को मजबूर

लीलाधर निर्मलकर

भानुप्रतापपुर, छत्तीसगढ़

कोरोना संकट में पहले लाॅकडाउन और फिर हुए अनलाॅक के बाद से देश की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी है। शहरों के साथ-साथ देश के ग्रामीण इलाकों में भी लोग पुरानी दिनचर्या में वापस लौट आए हैं। लेकिन इन सब में सबसे अधिक मज़दूर तबका ही ऐसा प्रभावित हुआ है, जिसका जीवन अभी भी पूरी तरह से पटरी पर लौट नहीं सका है। दो वक्त की रोटी की जुगत में लाॅक डाउन में लौटे मजदूर अब फिर सुबह से शाम जद्दोजहद कर रहे हैं, फिर भी परिवार की ज़रूरतों को पूरी करना इनके लिए मुश्किल हो रहा। रोजाना हो रही दिक्कतों से अब इन मजदूरों को एक बार फिर से घर से हजारों किलोमीटर दूर जिस अंजान शहर में रहकर परिवार का पेट पाल रहे थे, उसकी याद आने लगी है। अपने गांव क्षेत्र के आस-पास रोजगार की समस्या और कम मेहनताना के चलते इनके कदम फिर दूसरे प्रदेशों की ओर बढ़ने लगे हैं।

लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूर बड़ी मुश्किल से कई प्रकार के जतन कर इस उम्मीद में अपने-अपने गांव लौटे थे कि यहां कुछ भी करके परिवार वालों के साथ जीवन-यापन कर लेंगे। अपेक्षा के अनुरूप मजदूरी का काम नहीं मिलने पर ज्यादातर गांवों से यह मजदूर काम की तलाश में फिर बड़े शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं। छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िला स्थित भानुप्रतापपुर ब्लॉक के बैजनपुरी गांव और उसके आसपास के क्षेत्रों के ज्यादातर मजदूरों ने दूसरे राज्यों की ओर पलायन करना शुरू कर दिया है। उन्हें उम्मीद है कि वहां वापस मजदूरी का काम मिलेगा जिससे वह अपने परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण कर सकेंगे।

लाॅक डाउन से पहले अपने गांव बैजनपुरी से 300 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के चंद्रपुर क्षेत्र में बिल्डिंग मिस्त्री का कार्य करने वाले गजेन्द्र रावटे ने बताया कि लाॅक डाउन से ठीक एक माह पहले ही काम पर गए थे। जिस उम्मीद से गए थे उतना नहीं कमा सके, और वहीं फंस गए। घर लौटने के लिए भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अब यहां छोटे-छोटे काम करके घर चला रहा हूं, लेकिन इससे भी मैं संतुष्ट नहीं हूं। इसी तरह गांव के ही डालेश्वर कोरेटिया, सुरेश यादव और माखन कोरेटिया ने भी बताया कि वह भी गजेन्द्र रावटे के साथ काम के लिए महाराष्ट्र गए थे। अब यहां लौटकर लोकल ठेकेदारों के पास काम तो कर रहे हैं पर यहां पैसा बहुत कम मिलता है जिसके कारण हम सब वापस महाराष्ट्र जाने की भी सोच रहे हैं। ग्राम पंचायत कनेचुर के आश्रित ग्राम जामपारा के सभी मजदूर काम की कमी के कारण फिर से पलायन कर चले गए हैं। इन्हीं मजदूरों के समूह से बैजनपुरी के मुकेश कुमार और सुरेश कुमार ने अपनी स्थिति पर बात करते हुए कहा कि हमारे गांव क्षेत्र में धान कटाई होने के बाद पर्याप्त काम नहीं मिलता है। इसलिए हम बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं। जब तक दूसरे फसल का समय नहीं आता तब तक वहां काम करते हैं और फिर अगले सीजन में खेतों में काम करने लौट आते हैं। कोरोना संकट से स्थिति जैसे-जैसे सामान्य होते जा रही है, वैसे ही कुछ मजदूर फिर लौट गए हैं या लौटने की तैयारी में हैं।

हालांकि कुछ ऐसे भी हैं जो अब तक जाने का नहीं सोचे हैं और अपने गांव क्षेत्र में ही परिवार के बीच रहकर छोटा काम करके गुजारा कर रहे हैं। ऐसे ही आंध्र प्रदेश की बोरवेल्स गाड़ियों में काम कर घर वापस आए मधु शोरी ने अपनी पत्नी अमेरिका बाई शोरी के साथ मिलकर चिकन बेचने का व्यवसाय शुरू किया है और वह अपने गांव के साथ-साथ क्षेत्र के आस-पास के अन्य गांवों में हाट-बाजारों में जाकर दुकान लगाते हैं। फिर भी उन्हें पर्याप्त कमाई नहीं हो रही है, वह कहते हैं कि वहां हमें एक दिन का 300 रूपए मिल जाता था, लेकिन यहां किसी दिन कमाई होती है तो किसी दिन नहीं होती। इसी प्रकार भैसाकन्हार गांव के युवक डोमन उईके राज्य सरकार के कौशल विकास योजना अन्तर्गत मिले प्लेसमेंट के माध्यम से आंध्रप्रदेश में काम करने गए थे। जहां लाॅक डाउन में खाने और रहने की दिक्कत होने के कारण गांव लौट आए। अब यहां आकर घर के खेतों में काम कर रहे हैं।

मजदूरों के एक बार फिर पलायन का एक अन्य पहलू यह भी है कि बड़ी संख्या में मजदूरों के अपने-अपने राज्य लौट जाने से दूसरे प्रदेशों में काम प्रभावित होने लगा है। बाहर जाकर मजदूरी करने पर मजदूरों को एक दिन की दिहाड़ी करीब 300 से 400 रुपए तक मिल जाता था। जो यहां मनरेगा में इसका आधा भी नहीं मिल रहा है। वर्तमान में मनरेगा में एक दिन के हिसाब से 190 रुपए मजदूरी मिलता है। बाहर जाकर मजदूरी करने पर यही राशि दोगुनी हो जाती है। वर्तमान में बैजनपुरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति मजदूरी दर 150 से 200 रुपये है। मजदूर बताते हैं कि बाहर 300 से 400 रुपये तक एक दिन में मिलते हैं। तो कुछ का कहना है कि बड़े शहरों में जाकर एकमुश्त पैसे लेकर आने से घर के कार्यों में बहुत सहुलियत हो जाता है। साथ ही अन्य राज्यों में काम पर बुलाने वाले कंपनी ठेकेदार मजदूरों को आने-जाने का किराया, रहने व खाने-पीने की सुविधाएं भी उपलब्ध करवा देते हैं, इससे भी उनका बहुत पैसा बच जाता है। मजदूर बताते हैं कि परिजन बाहर काम करने नहीं जाने देते लेकिन ज्यादातर लोग अधिक पैसे के लालच में चोरी-छिपे गांव से चले जाते हैं।

मज़दूरों के पलायन पर ज़िला श्रम अधिकारी पंकज बृजपुरिया कहते हैं कि लाॅकडाउन के दौरान जिले में करीब 3700 मजदूर लौटे थे। मजदूरों को मनरेगा के तहत् गांवों में रोजगार दिया जा रहा है, इसके बावजूद कुछ मजदूर अन्य जगह कार्य करने जा रहे हैं, इसे रोकना संभव नहीं है। हालांकि इसकी जानकारी स्थानीय स्तर पर पंचायत सचिव के माध्यम से रखी जाती है। सरकार रोज़गार के अवसर सृजित करने और प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोज़गार उपलब्ध कराने के दावे भी करती है, लेकिन हकीक़त इसके विपरीत है। मनरेगा कार्य कई जगहों पर शुरू हो चुके हैं तो कई जगहों पर नहीं। कुछ जगहों पर तो मशीनों से ही मजदूरों का काम करवा दिया गया है। यही कारण है कि मजदूरों को स्थानीय स्तर पर काम नहीं मिल रहा और पलायन ही एकमात्र उपाय दिख रहा है।

बहरहाल, लाॅक डाउन में मज़दूरों के घर लौटने की स्थिति को पूरे देश ने देखा है, शायद मजदूरों की जिंदगी का वह सबसे कठिन दौर रहा। बावजूद अब एक बार फिर श्रमिक उन्हीं राज्यों और शहरों की ओर लौटने लगे हैं जहां से वह लॉक डाउन के वक्त बुरा अनुभव लेकर लौटे थे। ऐसे में उनकी समस्या और पुनः पलायन की मजबूरी की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है। इस दिशा में सरकार को भी गंभीरता से विचार करके विशेष पहल करने की आवश्यकता है ताकि मज़दूरों को स्थानीय स्तर पर पर्याप्त रोज़गार मिले और उन्हें पलायन करने की जरूरत भी न हो।

शब्दों के बदलते अर्थ

–विनय कुमार विनायक
युग-युग से शब्दों के अर्थ
बदलते/उलटते/पलटते रहे हैं
प्रजातंत्र के युग में
याचक का अर्थ दानी होता
और दानी का अर्थ याचक
आज याचक प्रजा एकमुश्त
सर्वाधिकार/मताधिकार दानकर
किस्त-दर-किस्त कुछ पाने की
चाह में टकटकी लगाए रहती!
दानी सर्वस्व पाकर आंखें मूंद लेता!
आवर्ती दर पर आंखें खोलकर
पुनः टकटकी लगाता सर्वाधिकार पाने,
पुनः-पुनः अपना भाग्य आजमाने
एक की टकटकी लगी की लगी रह जाती
दूसरे की टकटकी टके में बदल जाती!
—विनय कुमार विनायक