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वेब सीरीज क्या समाज के लिए मीठा ज़हर साबित होंगी?

वर्तमान युग सूचना क्रांति का युग है। सूचना और संचार ने हमारे जीवन को रफ्तार दी है। बिना सूचना के वर्तमान समय में जीवन के संचालन की कल्पना करना नामुमकिन सा है। आज न केवल सूचना का प्रारूप परिवर्तित हुआ है, बल्कि सूचना प्रसारण के स्वरूप भी पूरी तरह से बदल गए हैं। आज चंद पलों में ही सूचना विश्व के कोने-कोने तक पहुंच जाती है। सूचना को प्रसारित करने में इंटरनेट ने अपनी महती भूमिका निभाई है। आज इंटरनेट की पहुंच घर-घर तक हो गई है। ऐसे में यूँ कहें कि पूरी दुनिया एक हथेली में सिमटकर रह गई है, तो यह भी अतिशयोक्ति नहीं होगा। यह सच है कि सही सूचना जीवन को रफ्तार देती है, लेकिन अगर सूचना ही ग़लत परोसी जाएं या ग़लत ढंग से रचकर तथ्यों को सूचना और संवाद के रूप में परोसा जाएं। फ़िर यह सिर्फ़ व्यक्ति-विशेष को ही नहीं प्रभावित करेगी बल्कि पूरे समाज में ही वैमनस्यता फैलाने का काम करेगी। 
       बात करें तो आज इंटरनेट पर सूचनाओं को देखने का स्वरूप भी बदल गया है। साथ ही नए नए प्लेटफार्म उभरकर सामने आ रहे हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म (over-the-top) हॉटस्टार, अमेजॉन प्राइम, नेटफ्लिक्स, बूट, जी-5, सोनी लाइव जैसे प्लेटफार्म भी सामने आ गए हैं। कोरोनावायरस और लॉकडाउन के बाद इन प्लेटफार्म पर दर्शकों की संख्या मे भी तेजी से वृद्धि हुई है। ऐसे में सवाल यही क्या जिस हिसाब से ये सूचना और संवाद के प्लेटफॉर्म सामने आ रहें, उसी के अनुरूप बेहतर और एक सभ्य समाज का दृष्टिकोण इनकी विषय-वस्तु रखती या नहीं? एक अनुमान के मुताबिक भारत में ओटीटी मार्केट 2023 तक 3.60 लाख करोड़ रुपए पहुंच जायेगा। वोस्टन कंसल्टेंसी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में यह मार्केट 35 हजार करोड़ रुपए का था। इंटरनेट की बढ़ती रफ्तार से ओटीटी मार्केट 15 फीसदी की रफ्तार से तरक्की कर रहा है। 2025 तक वैश्विक मार्केट 17 फ़ीसदी से बढ़कर 240 लाख करोड़ तक पहुंच जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि जब यह मार्केट वैश्विक स्तर पर विकास के नित नए आयाम गढ़ रहा है, तो इस पर दिखाई जाने वाली सामग्री भी विश्वसनीय और सभ्य हो जिससे युवा वर्ग सही दिशा में तरक्की कर सके। वर्तमान दौर की सच्चाई पर नजर डाले तो ये ओटीटी प्लेटफॉर्म वही कंटेंट दिखाते हैं, जो विवादित हो जिससे लोगों की दिलचस्पी इन्हें देखने में बढ़े। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस कंटेंट का समाज के युवा वर्ग पर क्या असर होगा। आज के दौर की कड़वी सच्चाई को अगर देखें तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हिंदू धर्म विरोधी कंटेंट को ही प्रसारित किया जा रहा है। उनका उद्देश्य मात्र यही रह गया है कि किस तरह से धर्म विशेष की आलोचना करके अधिक से अधिक लोगों तक अपनी पहुंच को बढ़ाया जा सके।
    आज के दौर में वेब सीरीज का चलन बढ़ता जा रहा है और इन वेब सीरीज पर नजर डाले तो यह केवल एक धर्म विशेष के खिलाफ ही एजेंडे के तहत विवादित कंटेंट प्रसारित करते है। वजह शायद यही है कि हिंदुओं को टारगेट करने की ओछी राजनीति बरसों से ही हमारे देश में चली आ रही है। हमारी संस्कृति हमारी आस्था को पश्चिमी संस्कृति ने हमेशा से ही नीचा दिखाने का प्रयास किया है। हिंदू धर्म की व्याख्या को भी सभी धर्मावलंबियों ने अपने- अपने स्वार्थ के अनुसार परिभाषित करने का प्रयास किया है। यही वजह है कि सैकडों  साल पहले जब मुगल भारत आए तो उन्होंने हमारी आस्था पर ही चोट करने का काम किया। हमारे मंदिरों को तोड़ दिया यहां तक कि मूर्ति पूजा की भी निंदा की गई। वही जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने भी हिंदू धर्म को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और एकेश्वरवाद की परिभाषा गढ़ दी। 
             23 जुलाई 2018 को टाईम्स ऑफ इंडिया में छपे आर्टिकल “महाराष्ट्रा गुडमैन फोर्सेज़ मेन इनटू अन नेचुरल सेक्स, हेल्ड” में फकीर आसिफ नूरी के अपराध की कहानी को छापा गया था; लेकिन तस्वीर एक हिन्दू साधु की लगाई गई थी। इस स्टोरी को मोहम्मद आसिफ नाम के एक व्यक्ति ने लिखा था। जिससे साफ पता चलता है कि कैसे हिन्दूओ के विरोध में कुछ वामी मीडिया संस्थान भी काम करते है। वर्तमान दौर में इस प्रकार के मीडिया संस्थानों की भरमार है। आज टेलीविजन धारावाहिकों को ही देखे तो उनमें केवल और केवल धर्म विरोधी कन्टेंट ही प्रसारित किया जा रहा है। यहां तक कि रियलिटी शो को तो बनाया ही इस उद्देश्य से जाता है जो अश्लीलता फैला सकें। इन कार्यक्रमों को संचालित करने वालो के तर्क भी अजीब रहते हैं। उनका मत है कि जिन दर्शकों को कार्यक्रमों में अश्लीलता महसूस हो वे इन कार्यक्रमों को न देखे। वे देश की युवा पीढ़ी को अश्लील कार्यक्रमों को परोसने में कोई गुरेज नही करते है।
           नेटफ्लिक्स पर प्रसारित वेब सीरीज ने तो मर्यादा की सारी हदों को ही पार कर दिया है। नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज “ए सूटेबल बॉय” के एक दृश्य में नायक नायिका को भगवान के मंदिर में अश्लील हरकतें करते फिल्माया गया है। यहां सवाल ये उठता है कि क्या ऐसे दृश्य को मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर फिल्माना जरूरी है। वैसे देखा जाए तो इन मीडिया संस्थानों ने तो जैसे कसम ही खा रखी है कि कैसे हिंदुओं की आस्था पर चोट की जा सके। यह मनोरंजन कम्पनियां किसी और धर्म के खिलाफ कभी कोई विवादित कार्यक्रम प्रसारित नहीं करती। अब इनका दोहरा चरित्र ही कहे कि ये केवल और केवल हिन्दू विरोधी कंटेंट ही प्रसारित करती है। अब यह उनका डर कहे या फिर हिंदू विरोधी मानसिकता कहे यह तो इन कार्यक्रमों को बनाने वाले ही जाने लेकिन जिस तरह से हिंदुओं की आस्था पर चोट की जा रही है। उसे देखकर तो यही लगता है मानो यह संस्थान एजेंडे के तहत इस प्रकार के प्रोग्रामों का प्रसारण करते हैं।
 हमारे देश में सियासत भी अतरंगी है। राजनीति में नित नए आयाम जुड़ते जा रहे हैं। सियासत के ठेकेदारों ने धर्म को भी अपने राजनीतिक फायदे के अनुसार उपयोग करना सीख लिया है। यहां तक कि हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर भी राजनीतिक रोटियां सेकने में इन्हें कोई संकोच नही होता है। उन्हें तो बस अपना राजनीतिक लाभ दिखता है। फिर चाहे उसके बदले उन्हें अपने धर्म के खिलाफ ही क्यों ना बोलना पड़े। राजनीति में ईमान, धर्म, मान, मर्यादा और आस्था जैसे शब्द बेमानी से लगने लगे हैं। ऐसे में कैसे यह उम्मीद की जाए कि राजनीति के रणबांकुरे हमारी संस्कृति हमारी आस्था को बनाए रखने का, उसे सहेजकर रखने का प्रयास करेंगे। आज के वर्तमान दौर में यह हमें ही तय करना है कि तकनीकी के इस दौर में सकारात्मकता भी है और नकारात्मकता भी। ऐसे में हमें अपने मूल्यों को खुद समझना होगा और यह हमें ही तय करना होगा कि हम समाज को किस दिशा में लेकर जाए। समाज में फैली बुराई को किस प्रकार खत्म कर सके। इस दिशा में हमें और हमारे समाज को ही सोचना होगा।

स्वाध्याय तथा उपासना से ही जीवन की वास्तविक उन्नति होती है

मनमोहन कुमार आर्य

                मनुष्य एक चेतन प्राणी है। मनुष्य का आत्मा चेतन अनादि नित्य पदार्थ है। मनुष्य का शरीर जड़ प्राकृतिक तत्वों से बना हुआ नाश को प्राप्त होने वाला होता है। शरीर की उन्नति मनुष्य आसन, व्यायाम, सात्विक भोजन तथा संयम आदि गुणों को धारण कर करते हैं। आत्मा की उन्नति शरीर की उन्नति से अधिक महत्वपूर्ण होती है। मनुष्य का आत्मा विद्या तथा तप से शुद्ध, पवित्र उन्नत होता है। यदि आत्मा शुद्ध पवित्र नहीं है तो उसकी उन्नति सम्भव नहीं होती। आत्मा को उन्नति के लिये उसे आत्म परमात्म ज्ञान से शुद्ध पवित्र करना होता है। आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त होकर ही आत्मा की उन्नति होती है। मनुष्य जीवन में सभी मनुष्यों को सद्ज्ञान की आवश्यकता होती है। परमात्मा ही ज्ञान के अनादि व अक्षय स्रोत हैं। परमात्मा का ज्ञान वेदों में प्राप्त होता है। मनुष्य को जितने व जिस ज्ञान की आवश्यकता है वह वेदों से प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त समय की सामयिक आवश्यकताओं के अनुरुप मनुष्य ज्ञान व विज्ञान का विस्तार भी कर सकते हैं। वेदों की उत्पत्ति सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा से ही हुई है। वेद सब सत्य विद्याओं के पुस्तक हैं। वेदों में आध्यात्मिक एवं भौतिक सभी प्रकार का ज्ञान उपलब्ध होता है। वेदों का ज्ञान परमात्मा से प्राप्त होने के कारण पूर्णतया सत्य एवं निभ्र्रान्त है। इसी कारण वेदों को स्वतः प्रमाण तथा अन्य ग्रन्थों के ज्ञान को वेदोनुकूल होने पर ही परतः प्रमाण माना जाता है। जो बात वेदों के विपरीत व विरुद्ध होती है वह मानने योग्य नहीं होती। अतः आत्मा की उन्नति के लिए हमें वेद व वेदानुकूल सिद्धान्तों को जानना व मानना आवश्यक होता है। वेदों पर ऋषि दयानन्द व आर्य विद्वानों की संस्कृत व हिन्दी भाषाओं में प्रामाणिक टीकायें उपलब्ध हैं। इनके अध्ययन से हम वेदों के मर्म को समझ सकते हैं तथा इससे संसार को यथार्थ रूप में जान सकते हैं। ईश्वर तथा आत्मा सहित ईश्वर प्राप्ति में साधन रूप में सहायक सृष्टि का यथार्थ ज्ञान भी वेदों के अध्ययन से ही होता है। वैदिक साहित्य में वेदों का नित्य स्वाध्याय करने की प्रेरणा है। जो मनुष्य ऐसा करते हैं वह निर्भ्रम ज्ञान व विज्ञान को प्राप्त होते हैं।

                हमारा यह संसार एक अपौरुषेय सत्ता परमात्मा से बना है। परमात्मा ने यह संसार मनुष्य आत्माओं के कर्मों का भोग करने तथा उन्हें अपवर्ग अर्थात् दुःखों से मुक्त कराने के लिए सत्कर्मों को करने के लिए बनाया है। हमें संसार में शुभ कर्मों को करने से सुख प्राप्त होता है। इस सुख का दाता मुख्य कारण परमात्मा ही होता है। अतः अपने जन्म जन्मान्तरों में परमात्मा के किए उपकारों को स्मरण कर हमें उसका ध्यान करना होता है। परमात्मा सच्चिदानन्दस्वरूप होने से आनन्द से परिपूर्ण हैं। मनुष्य का आत्मा सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा का ध्यान उपासना कर ही सुखों को प्राप्त होता है। उपासना करने के मुख्य दो ही प्रयोजन विदित होते हैं। ईश्वर के उपकारों को स्मरण कर उसका ध्यान व धन्यवाद करना तथा उपासना द्वारा उसके आनन्दमय स्वरूप में मग्न होकर आनन्द व सुखों से युक्त होना। ईश्वर के प्रति यह दोनों ही कार्य करने प्रत्येक जीवात्मा वा मनुष्य के लिये आवश्यक होते हैं। यदि ऐसा न करेंगे तो हमारी आत्मा कृतघ्न होगी तथा हमें सुखों की प्राप्ति भी नहीं होगी। इसी कारण से सृष्टि के आरम्भ से सभी विद्वान व ऋषि मुनि इस रहस्य को जानकर ईश्वर प्रदत्त वेद ज्ञान का स्वाध्याय करने व वेदज्ञान के प्रचार को करते हुए उपासना द्वारा सुखों को प्राप्त करते आये हैं। ऐसा करते हुए वह योगाभ्यास, ध्यान व समाधि आदि द्वारा ईश्वर के साक्षात्कार को प्राप्त होकर मोक्ष के अधिकारी भी बनते थे। यही सब मनुष्य के लिये करणीय होता है। वर्तमान में मत-मतान्तरों की अविद्यायुक्त शिक्षा के कारण मनुष्य इस ज्ञान से दूर हो गये हैं। इसी कारण से समाज आपस में बंटा हुआ है तथा आत्मज्ञान व उपासना से होने वाले आनन्द व सुखों से वंचित है।

                स्वाध्याय से मनुष्य का आत्मा ज्ञान विज्ञान को प्राप्त होता है। ज्ञानी मनुष्य अपने उद्देश्य की प्राप्ति ज्ञान के अनुरूप कर्मों को करके कर सकते हैं। सभी प्रशंसनीय उत्तम कार्य ज्ञान पुरुषार्थ से ही सम्पन्न सफल होते हैं। अतः स्वाध्याय से प्राप्त ज्ञान से मनुष्य ईश्वर की उपासना संगति ही नहीं करता अपितु अन्य सांसारिक कार्यों को करने में भी सफलता प्राप्त करता है और इससे इच्छित सुखों वा धन एवं ऐश्वर्य को भी प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को वेदादि उत्तम ग्रन्थों का स्वाध्याय कर अपने जीवन को सफल करना चाहिये। स्वाध्याय में प्रमुख ग्रन्थ हैं वेद, दर्शन, उपनिषद, विशुद्ध मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय एवं आर्य विद्वानों के वेद विषयक अनेक ग्रन्थ। इन ग्रन्थों का अध्ययन कर मनुष्य की आत्मा की पूर्ण उन्नति सम्भव होती है। इनके अध्ययन से विद्या प्राप्त होती है जिसको हम अपने कर्मों व व्यवहार में लाकर सफल मनुष्य बनते हैं। वेदों व इतर ऋषिकृत ग्रंथों का अध्ययन कर मनुष्य को ईश्वर का जो सत्यस्वरूप प्राप्त होता है वह ऋषि दयानन्द के शब्दों में इस प्रकार है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी परमात्मा की उपासना करनी योग्य है। आत्मा भी एक चेतन, अल्प सामथ्र्य से युक्त, एकदेशी, अणु परिमाण, ससीम, जन्म व मरण धर्मा, कर्मों को करने व उनका फल भोगने वाला, वेदज्ञान को प्राप्त होकर उपासना, ध्यान व समाधि आदि कर्मानुष्ठानों से ईश्वर का साक्षात्कार कर मोक्ष को प्राप्त होने वाला है। जो मनुष्य वेद मार्ग से भिन्न अन्य अविद्यायुक्त मार्गों का अनुसरण करते हैं वह ईश्वर व सद्कर्माें से दूर बन्धनों को प्राप्त होकर सुख व दुःखों का भोग करते हैं। वह ईश्वर के आनन्द तथा मोक्ष सुख से वंचित रहते हैं। उनका वर्तमान जन्म सहित परजन्म भी दुःखों व हानियों को प्राप्त होता है। अतः मनुष्य को जीवन में सत्य व विद्या को प्राप्त होकर सत्य का ही आचरण करना चाहिये जिससे वह दुःखों से मुक्त तथा सुखों से युक्त रहें और साथ ही उनका परजन्म भी उन्नति, कल्याण व सुखों को प्राप्त हो। वेद एवं वैदिक शास्त्रों का अध्ययन करने से मनुष्य की आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों प्रकार की उन्नति होती है। स्वाध्याय व ईश्वर की उपासना करने से मनुष्य सात्विक गुणों से युक्त होता है। यह गुण भौतिक उन्नति में भी सहायक होते हैं। सात्विक गुणों से जीवन में ज्ञान विज्ञान सहित सभी विषयों को समझने व स्मरण करने की योग्यता में वृद्धि होती है। सात्विक विचारों वाले व्यक्तियों की शारीरिक श्रम करने की सामथ्र्य अधिक होती है। अतः भौतिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करने में भी स्वाध्याय एवं उपासना सहायक होती है। ऐसा करते हुए मनुष्य उन्नति के शिखर को प्राप्त हो सकते हैं। हम सभी वैदिक ऋषि-मुनियों, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, योगेश्वर कृष्ण, ऋषि दयानन्द तथा आचार्य चाणक्य आदि के जीवन की सफलता में स्वाध्याय, उपासना तथा पुरुषार्थ को ही युक्त पाते हैं। इन्हीं गुणों व प्रयत्नों से यह सब इतिहास में अमर व विख्यात हुए हैं। अतः सफलता व उन्नति की इच्छा रखने वाले सभी मनुष्यों को इन गुणों को धारण करना चाहिये और इनकी प्राप्ति व साधना करने में प्रमाद नहीं करना चाहिये। लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति में इन गुणों का महत्व निर्विवाद है। यदि हम ऐसा करेंगे तो हम जीवन के चार पुरुषार्थ वा उन्नतियों धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त हो सकते हैं।

क्या किसानों का आन्दोलन राजनीतिक षड़यंत्र है?

-ललित गर्ग –
कोरोना महामारी की अधिक खतरनाक होती जटिल स्थितियों के बीच किसानों के आंदोलन का जो उग्र स्वरूप दिल्ली की सीमाओं एवं दिल्ली में दिखा है, जो उन्हें दिल्ली में प्रवेश एवं बुराड़ी ग्राउंड में प्रदर्शन की अनुमति मिली है, वह दुखद ही नहीं, चिंताजनक भी है। यह आन्दोलन किसानों के हितों से अधिक राजनीतिक कुचेष्टाओं का षड़यंत्र है। किसानों के जीवन को संकट में डालना एवं उन्हें आन्दोलन के लिये उकसाना राजनीतिक विसंगति एवं षड़यंत्र को ही उजागर कर रहा है। बहुत सावधान रहने की जरूरत है, जब जीवन खतरे में हैं तब किसान आन्दोलन जैसी कोई भी गलत शुरुआत राष्ट्रहित में नहीं है, क्योंकि गणित के सवाल की गलत शुरुआत सही उत्तर नहीं दे पाती। गलत दिशा एवं गलत समय का चयन सही मंजिल तक नहीं पहुंचाता। यह किसान आन्दोलन सहानुभूति से अधिक घृणा का सबब बन रहा है, जिसे रोकना न केवल हरियाणा पुलिस, बल्कि दिल्ली पुलिस के लिए भी चुनौतीपूर्ण बन गया है। वर्तमान की स्वास्थ्य एवं जीवन-रक्षा जरूरतों को देखते हुए केंद्र सरकार यह नहीं चाहती कि किसी भी तरह का विरोध मार्च दिल्ली में आयोजित हो, इसलिए पंजाब से होते हुए हरियाणा के रास्ते दिल्ली में घुसने की कोशिश करने वाले किसानों के खिलाफ कुछ बल प्रयोग भी किया गया है। सीमा पर बैरिकेडिंग के चलते दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद और सिंघु बॉर्डरों पर वाहनों के लंबे जाम की समस्या देखी गई है। मेट्रो सेवाओं पर भी असर पड़ा है। बड़ी संख्या में आन्दोलन में शामिल किसानों ने कोरोना के लिये जारी निर्देशों की धज्जियां उडाते हुए न माॅस्क का प्रयोग किया हंै, न सामाजिक दूरी का।


इस तरह की अराजकता, अस्थिरता एवं अनुशासनहीनता को रोकना सबसे बड़ी जरूरत है। इसी जरूरत को देखते हुए किसानों को किसी भी तरह से दिल्ली पहुंचने से रोका गया, रोका भी जाना चाहिए। जिन भी राजनीतिक दलों ने इस तरह के आन्दोलन को हवा दी है, वे अराष्ट्रीय है, विघटनकारी है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि किसान हित के नाम पर वे अपने-अपने अहं की चिन्ता एवं बिना विधेयकों की मूल भावना को समझे विरोध की राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस एवं अन्य दल इन कानूनों के खिलाफ आमजनता एवं किसानों को बरगलाने, भ्रमित एवं गुमराह करने के लिये छल-कपट एवं झूठ का जमकर सहारा ले रहा है।
पुलिस ने स्पष्ट कर दिया था कि किसान अगर कोरोना महामारी के समय में दिल्ली आने की कोेशिश करते हैं, तो वह कानूनों का उल्लंघन है। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। बहरहाल, आम लोगों या किसानों को हुई परेशानी के लिए राजनीति को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह समय ऐसे आन्दोलनों से राजनीतिक लाभ लेने का समय नहीं है। समूचा राष्ट्र कोरोना से जुड़ी अन्तहीन समस्याओं से घिरा है, दिल्ली के हालात तो अधिक बदतर है। ऐसे समय में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का किसानों को रोकने के लिये किये प्रयोगों पर राजनीति करना विडम्बनापूर्ण है। बात केवल केजरीवाल की ही नहीं है बल्कि पंजाब के मुख्यमंत्री भी इसके लिये जिम्मेदार है।
साफ तौर पर पंजाब के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि किसान दिल्ली में विरोध मार्च करके अपनी ताकत दिखाएं। यह बात छिपी हुई नहीं है, पिछले दिनों में पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी दिल्ली में विरोध जताया था, पर उनकी मांग नहीं मानी गई। आनन-फानन में वह किसानों को खुश करने के लिए अपनी ओर से ऐसे कानून बनाने की कोशिश कर चुके हैं, पर वह जानते हैं कि केंद्र सरकार की सहमति के बिना यह कानून मंजूर नहीं होगा। पंजाब में किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है, अतः प्रदर्शन का स्थान बदलने की राजनीति कतई अचरज का विषय नहीं है। पंजाब के बजाय अगर दिल्ली में किसान अपनी आवाज उठाएं, तो यह पंजाब के अनुकूल है, लेकिन यह दिल्ली के लिये कैसे अनुकूल हो सकती है? एक तरह से साबित हो गया, भारतीय राजनीति में परस्पर विरोध कितना जड़ एवं अव्यावहारिक है। हमारे राजनेता जब टकराव पर उतरते हैं, तो शायद नहीं सोचते कि देश में क्या संदेश जा रहा है। क्या भारतीय राजनीति आज इतनी अशालीन एवं असंवेदनशील हो गयी है कि असंख्य लोगों के जीवन को संकट में डालने से उन्हें कोई गुरेज नहीं रहा?
भारत में शांतिपूर्वक आंदोलन करने का अधिकार सभी को है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान किसान आंदोलन लम्बा न खिंचे, इसके लिए गम्भीर प्रयासों की जरूरत है। देश के अनेक किसान संगठनों जैसे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, राष्ट्रीय किसान महासंघ और भारतीय किसान संघ के विभिन्न धड़ों द्वारा किये जा रहे इन प्रदर्शनों का मुख्य उद्देश्य नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पारित तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार पर दबाव बनाना है। मोर्चा नेताओं का कहना है कि उन्हें प्रदर्शन की अनुमति मिले या नहीं लेकिन किसान संसद पहुंचेंगे और प्रदर्शन करेंगे। कोरोना काल में दिल्ली में मौतों का आंकड़ा पहले ही काफी खौफ पैदा कर चुका है। संक्रमण के नए केस कम होने का नाम नहीं ले रहे। ऐसी स्थिति में किसानों का आंदोलन मुसीबत ही पैदा करेगा। ऐसे में पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के किसानों का प्रदर्शन में शामिल होना उचित नहीं होगा। किसान प्रदर्शन से टकराव की स्थितियां पैदा हो सकती हैं। केन्द्र सरकार को अब किसानों से बातचीत की दिशा में गम्भीर पहल करनी होगी। यदि किसानों में नए सुधारों को लेकर कुछ आशंकाएं और असुरक्षा बोध है तो उन्हें दूर किया जाना चाहिए। दूसरी तरफ किसान संगठनों को भी संयम से काम लेना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी लगभग हर मंच से कृषि कानूनों के फायदे गिनवा रहे हैं। आंदोलन वही बेहतर होता है जो अनुशासित हो और जिससे न आंदोलनकारियों को नुकसान हो न दूसरे लोगों और न ही राज्यों का। जो भी शंकाएं हैं उनका निवारण हो सकता है। कानूनों में फेरबदल होते रहे हैं। बेहतर यही होगा कि किसान संगठन देश हित में अपने आन्दोलन को वापस लें।
किसानों के दिल्ली कूच के प्रयास को रोकने के लिए हरियाणा सरकार को जोर लगाना वाजिब है। पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच ट्विटर पर छिड़ी जंग केवल यही संकेत दे रही है कि किसान आंदोलन के पीछे राजनीति ज्यादा जिम्मेदार है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने दिल्ली की ओर मार्च कर रहे किसानों को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि किसानों के खिलाफ बल प्रयोग करना पूरी तरह अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक है। इसका हरियाणा के मुख्यमंत्री ने ट्वीट करते हुए जवाब दिया कि मैंने पहले ही कहा है और मैं इसे फिर दोहरा रहा हूं कि मैं राजनीति छोड़ दूंगा, अगर एमएसपी पर कोई परेशानी होगी, इसलिए कृपया निर्दोष किसानों को उकसाना बंद कीजिए। दो पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच इस तरह के अप्रिय संवाद से साफ है, राज्यों के बीच में स्वस्थ संवाद और समन्वय का अभाव होने लगा है। वैचारिक या राजनीतिक मतभेद के आधार पर संघर्ष चल रहा है, तो क्या इसका नुकसान राष्ट्रीय राजधानी को भुगतना पड़ेगा? ऐसे मतभेद के रहते क्या किसानों की समस्या का समाधान हो सकता है?
किसान तभी मजबूत होगा वह देश के किसी दूसरे कोने में जाकर अपना उत्पाद बेच सकेगा, पर इसके साथ ही, मंडी और एमएसपी की मौलिक भारतीय व्यवस्था को भी मजबूत रखने की जरूरत है। केंद्र सरकार इन्हीं बातों को बार-बार दोहरा चुकी है कि मंडी और समर्थन मूल्य की व्यवस्था बनी रहेगी। ऐसे में, अविश्वास एवं विरोध गैरभाजपा सरकारों या किसान समाज में क्यों पैदा हो रहा है? उसे दूर करने की जिम्मेदारी भले केन्द्र सरकार पर ज्यादा हो, लेकिन इस कार्य में विपक्ष को भी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। तमाम किसान संगठनों के साथ मिलकर देश को आश्वस्त करने का समय है, ताकि किसानों के नाम पर शुरू हुई राजनीति का संतोषजनक पटाक्षेप हो। समय रहते निर्णायक मंचों पर किसानों को सुनने और संतुष्ट करने के प्रयास तेज होने चाहिए।

गुरुनानक देव जी की सीखें हर काल में प्रासंगिक रहेंगी।

ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥

॥ ਜਪੁ ॥

ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥ ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ ॥1॥

एक ओंकार सतनाम, कर्तापुरख, निर्माह निर्वैर, अकाल मूरत, अजूनी सभं. गुरु परसाद ॥

॥ जप ॥

आद सच, जुगाद सच, है भी सच, नानक होसे भी सच ॥

ये गुरुनानक देव जी के मुख से निकले केवल कुछ शब्द नहीं हैं। ना ही इनकी ये पहचान है कि ये गुरुग्रंथ साहिब का पहला भजन है। ये तो वो मूल मंत्र है जो ना सिर्फ सिख संगत को उस सर्वशक्तिमान ईश्वर के गुणों से रूबरू कराता है बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज को ही दिशा दिखाता है। श्री गुरुनानक देव जी के मुख से निकले ये शब्द वो बीज हैं जो कालांतर में सिख धर्म की नींव बने।

विश्व के पांचवे सबसे बड़े धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी की सीखों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की बात करने से पहले हम सिख शब्द को समझ लें। दरअसल सिख का अर्थ होता है शिष्य। अर्थात जो गुरुनानक देव जी की सीखों को एक शिष्य की भांति अपने आचरण और जीवन में अपना ले, वो सिख है और हम सभी जानते हैं कि उनकी सीखों में सबसे बड़ा धर्म मानवता है इसलिए उनकी सीखें हर काल में प्रासंगिक हैं।

जब गुरुनानक देव जी कहते हैं कि “एक ओंकार, सतनाम”, तो उनके आध्यात्म की इस परिभाषा को केवल उनके अनुयायी ही नहीं बल्कि प्राचीन वेद विज्ञान से लेकर आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करने पर विवश हो जाता है। वे कहते हैं, एक ओंकार सतनाम यानी ओंकार ही एक अटल सत्य है। ओंकार यानी ॐष्। यह तो हम सभी जानते हैं कि हम जो भी कहते हैं, जिन भी शब्दों का उच्चारण करते हैं उनकी एक सीमा होती है लेकिन ओंकार असीमित है। प्राचीन ऋषियों ने भी ॐ को अजपा कहा है क्योंकि ॐ शब्दातीत है यानी शब्दों से परे है। और आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि ॐ कोई ध्वनि नहीं बल्कि एक अनाहत नाद है। क्योंकि ध्वनि तो दो वस्तुओं के टकराने से या कंपन से उत्पन्न होती है लेकिन ॐ किसी से टकराने से उत्पन्न नहीं हुआ। जहाँ टकराहट हो वहाँ भला ॐ कहाँ? जब भीतर बिल्कुल शांति हो, अंदर के सारे स्वर बंद हो जाएं, सभी द्वंद मिट जाएं तो एक अनाहत से हमारा संपर्क होता है और हम ॐ से जुड़ पाते हैं और एक अनोखी ऊर्जा को महसूस कर पाते हैं। ॐ का हमारे भीतर के सत्य और शुभ से लेना देना है। इसलिए जब वे कहते हैं एक ओंकार तो वे कहना चाहते हैं कि ईश्वर एक ही है जो हम सब के भीतर ही निवास करता है और यही सबसे बड़ा सत्य भी है।

जब 15 वीं सदी में गुरुनानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, तो यह धर्म के प्रति लोगों के नज़रिए पर एक क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत थी। यह उस विरोधाभासी सोच पर प्रहार था जो व्यक्ति के सांसारिक जीवन और उसके आध्यात्मिक जीवन को अलग करती थी। अपने विचारों से गुरुनानक देव जी ने उस काल के सामाजिक और धार्मिक मूल्यों की नींव ही हिला दी थी। उन्होंने पहली बार लोगों को यह विचार दिया कि मनुष्य का सामाजिक जीवन उसके आध्यात्मिक जीवन की बाधा नहीं है बल्कि उसका अविभाज्य हिस्सा है। सदियों की परंपरागत सोच के विपरीत गुरुनानक जी वो पहले ईश्वरीय दूत थे जिन्होंने जोर देकर कहा था कि ईश्वर पहाड़ों या जंगलों में भूखा रहकर खुद को कष्ट देने से नहीं मिलते बल्कि वो सामाजिक जीवन जीते हुए दूसरों के कष्टों को दूर करने से मिलते हैं। उनके अनुसार व्यक्तिगत मोक्ष का रास्ता सेवा कार्य द्वारा समाज के लोगों को दुखों से मोक्ष दिला कर निकलता था। इसके लिए उन्होंने अपने भक्तों को सेवा ते सिमरन का मंत्र दिया। उस दौर में जब लोगों को यकीन था कि ईश्वर से एकाकार के लिए सन्यास के मार्ग पर चलना आवश्यक है, उन्होंने अपने भक्तों को मध्यम मार्ग अपनाने पर बल दिया जिस पर चलकर गृहस्थ आश्रम का पालन भी हो सकता है और आध्यात्मिक जीवन भी अपनाया जा सकता है। आज के भौतिकवादी युग में गुरुनानक देव जी का यह नज़रिया आत्मकल्याण ही नहीं समाज कल्याण की दृष्टि से भी बेहद प्रासंगिक है। और उन्होंने अपने इस जीवन दर्शन को अपनी जीवन यात्रा से चरितार्थ करके भी दिखाया। अपने जीवन काल में उन्होंने खुद एक गृहस्थ जीवन जीते हुए आध्यात्म की ऊँचाइयों को छूने वाले एक संत का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण समाज के सामने प्रस्तुत किया। इस सोच के विपरीत कि संसार माया है, मिथ्या है, झूठ है, फरेब है, उन्होंने कहा कि संसार ना सिर्फ सत्य है बल्कि वो साधन है, वो कर्मभूमि है जहाँ हम ईश्वर की इच्छा से उनकी इच्छानुसार कर्म करने के लिए आए हैं। उनका मानना था, हुकम राजायी चलना नानक लिख्या नाल अर्थात सबकुछ परमात्मा की इच्छा के अनुसार होता है और हमें बिना कुछ कहे इसे स्वीकार करना चाहिए।

लेकिन परमात्मा के करीब जाने के लिए संसार से दूर होने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उस परमपिता के द्वारा दिए गए इस जीवन में हमारा नैतिकता पूर्ण आचरण ही हमारे जीवन को उसका आध्यात्मिक रूप और रंग देता है। उन्होंने ध्यान, तप योग से अधिक सतकर्म को और रीत रिवाज से अधिक महत्व मनुष्य के व्यक्तिगत नैतिक आचरण को दिया। इसलिए वे कहते थे कि सत्य बोलना श्रेष्ठ आचरण है लेकिन सच्चाई के साथ जीवन जीना सर्वश्रेष्ठ आचरण है। आज जब पूरी दुनिया में दोहरे चरित्र का होना ही सफलता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण गुण बन गया हो और नैतिक मूल्यों का लगातार ह््रास हो रहा हो, तो गुरुनानक जी की यह सीखें सम्पूर्ण विश्व के लिए पथप्रदर्शक का काम कर सकती हैं।

आज जब मशीनीकरण के इस युग में हम उस मोड़ पर पहुंच गए हों जहाँ समय के अभाव में मनुष्य खुद भी कुछ कुछ रोबोटिक सा होता जा रहा हो और उसका सुकून भी छिनता जा रहा हो, तो गुरुनानक देव जी की दिखाई राह उसे वापस ईश्वर से जोड़कर दैवीय सुकून का एहसास करा कर असीम मानसिक शांति दे सकती है। ईश्वर से जुड़ने के लिए वो वैराग्य त्याग तप या फिर सांसारिक सुखों से दूर होने के बजाए संसार को प्रेम से गले लगाने की सीख देते थे, दूसरों के दुखों को दूर करने की सीख देते थे जिसके लिए उन्होंने जीवन जीने की बहुत ही व्यवहारिक राह दिखाई थी जो आज भी प्रासंगिक है। आज के दौर में जब मनुष्य अपने खुद के लिए भी समय न निकाल पा रहा हो ऐसे समय में गुरुनानक देव जी के द्वारा जीवन जीने के लिए दिए गए बेहद सरल तीन सूत्र निस्संदेह मनुष्य को न सिर्फ खुद से बल्कि अपने परिवार और समाज दोनों से जोड़कर असीम शांति का अनुभव करा कर उसके तन मन और जीवन तीनों में एक नई ऊर्जा भर सकते हैं। ये तीन सूत्र हैं, जपना, कीर्त करना और वंड के छकना।

1,जपना, यानी सबसे पहले जप करना अर्थात उस परम पिता का नाम जपना जब भी समय मिले जहाँ भी जगह मिले पूरी श्रद्धा से उस सर्वशक्तिमान को याद करना उसका शुक्रिया अदा करना। उनका कहना था कि इसके लिए मंदिर या माजिद जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि ईश्वर तो हमारे भीतर है। वो खुद भी कहीं भी कभी भी ईश्वर के ध्यान में बैठ जाते थे। कभी बकरियाँ चराते समय तो कभी खेतों में, कभी किसी पेड़ के नीचे तो कभी समुद्र में।

2, दूसरा कीर्त मतलब कमाई करना, क्योंकि प्रभु ने हमें जो परिवार दिया है उसका पालन करने के लिए हमें कर्म करना चाहिए। वे कहते थे, किसी से मांग कर नहीं खाना और ना किसी का हक मार कर खाना। अपनी मेहनत पर ही हमारा हक है और मेहनत करना हमारा फ़र्ज़ है।

3, तीसरा वंड के छकना मतलब बांट कर खाना। वे कहते थे कि हर मनुष्य को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा परोपकार में लगाना चाहिए। वो स्पष्ट कहते थे कि धन को केवल जेब तक ही सीमित रखना चाहिए उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए वो क्योंकि मानव की मुक्ति का मार्ग समाज के दुखों की मुक्ति से होकर निकलता है धन दौलत इकट्ठा करने से नहीं।

दरअसल वो जानते थे कि कोई भी समाज तब तक तरक्की नहीं कर सकता और ना ही स्वस्थ रह सकता है जब तक कि उस समाज में कर्म के महत्व को एक गौरव नहीं प्रदान किया जाता। इसलिए उन्होंने कर्म को मानव जीवन का ना सिर्फ एक महत्त्वपूर्ण गुण बताया अपितु उसे मनुष्य की सामाजिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी भी बताया। यही कारण है कि आज भी देश या विदेश के किसी भी संकट के समय चाहे वो युद्ध हो या कोई प्राकृतिक आपदा, सिख संगत मदद के लिए सबसे आगे रहती है। सिख समाज ना सिर्फ गुरुद्वारे में लंगर बल्कि जरूरत के वक्त जरूरतमंदों को निःशुल्क स्वच्छ भोजन पानी और अन्य बुनियादी सुविधाएं देने के लिए आगे आता है।

इसके अलावा गुरुनानक देव जी का कहना था कि इस धरती पर सभी मनुष्य समान हैं वे ऊंच नीच को नहीं मानते थे और ना ही जात पात के भेदभाव को। उनका कहना था कि न कोई हिन्दू है ना मुसलमान। सभी लोग एक ही ईश्वर की संतानें हैं। आज जब पूरे विश्व में धर्म के नाम पर आतंकवाद और हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही हैं तो गुरुनानक जी के ये शब्द बहुत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो जाते हैं। उनका स्पष्ट मानना था कि दुनिया में दुख क्लेश और असंतोष का मूल कारण जाति और धर्म के नाम पर किया जाने वाला भेदभाव है। और इस भेदभाव को मिटाने के लिए भी उन्होंने बहुत ही सीधा और सरल उपाय बताया था, संगत ते पंगत। अर्थात बिना किसी धर्म जाति नस्ल या रंग के भेदभाव के बिना एक पंगत यानी पंक्ति में बैठकर एक साथ भोजन यानी लंगर की शुरुआत की। इसके पीछे गुरुनानक जी का स्पष्ट संदेश था कि जितने भी संघर्ष हैं, युद्ध हैं, असुरक्षा और निराशा की भावना, गरीबी और अन्य सामाजिक बीमारियाँ हैं, इंसान इन पर तब तक विजय नहीं प्राप्त कर सकता जब तक कि वो अपने अहम का त्याग ना कर दे। उनका मानना था कि यह स्वयं मनुष्य के हाथ में है कि उसके हृदय में ईश्वर का वास हो या फिर उसके अहम का। इसलिए वे समझाते थे कि किस बात का घमंड? तुम्हारा कुछ नहीं है, खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाओगे। कुछ करके जाओगे तो लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहोगे। आज जब हम अपने आसपास समाज में भौतिकवाद में जकड़े लोंगो में वी आई पी संस्कृति और स्वार्थपूर्ण आचरण का बोलबाला देखते हैं तो गुरुनानक देव जी की यह बातें और उनकी एहमियत सहसा स्मरण हो उठती हैं।

लेकिन अपनी सीखों से विश्व इतिहास में पहली बार मानवता और सत्कर्मों को ही सबसे बड़ा धर्म बताकर सिख धर्म की नींव रखने वाले गुरुनानक देव जी ने समाज में एक और जो सबसे बड़े क्रांतिकारी बदलाव का आगाज़ किया, वो था स्त्रियों को बराबरी का दर्जा देना। 15 वीं शताब्दी वो दौर था जब चाहे इस्लाम हो चाहे ईसाईयत स्त्री को अपवित्र माना जाता था और हिन्दू धर्म में भले ही स्त्री को देवी का दर्जा प्राप्त था लेकिन ईश्वर की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को साधु का जीवन व्यतीत करना पड़ता था, विवाहित जीवन और स्त्री से दूर रहना पड़ता था, गुरुनानक देव जी ने ना सिर्फ स्त्री को पुरूष के साथ समानता का दर्जा दिया बल्कि वैवाहिक जीवन को भी पवित्रता प्रदान की। अगर हमने गुरुनानक जी के संदेशों को गहराई से समझा होता और एक समाज के रूप में अपने आचरण में उतारा होता तो आज हमें महिला सशक्तिकरण और स्त्री मुक्ति जैसे शब्दों की बातें ही नहीं करनी पड़ती।

दरअसल गुरुनानक देव जी का आध्यात्म आडंबर युक्त नहीं आडंबर मुक्त है। इसलिए जब वे नौ वर्ष के थे और उनका जनेऊ संस्कार होना था, तो उन्होंने जनेऊ पहनने से साफ इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि मनुष्य जब इस संसार को छोड़ कर जाएगा तो कपास से बना जनेऊ का यह धागा तो यहीं रह जाता है। मुझे जनेऊ पहनाना ही है तो वो जनेऊ पहनाओ जो मेरे साथ परलोक में भी जाए। जब उनसे पूछा गया कि ऐसा जनेऊ किस प्रकार का होता है, तो उन्होंने कहा,

“दया कपाह संतोख सूत जत गंदी सत बट

ऐह जनेऊ जीअ का हई तां पाडें घत” अर्थात

इस जनेऊ को बनाने के लिए जब दया रूपी कपास, संतोष रूपी सूत, जत रूपी गांठ और सत रूपी बल का प्रयोग किया गया हो तो यह आत्मा का जनेऊ बन जाता है। यह जनेऊ पहन कर मनुष्य जब अच्छे काम करता है, सच्ची नेक कमाई करता है तो वह नीच जाति का होकर भी स्वर्ण जाति का बन जाता है।

ऐसे गुरुनानक देव जी की सीखें हर काल में प्रासंगिक रहेंगी।

डॉ नीलम महेंद्र

जलवायु परिवर्तन घातक कर सकता है निवार का वार?

कल रात पुडुचेरी के तटों से टकराता हुआ चक्रवाती तूफान निवार (Cyclone Nivar) आज उत्तर-पश्चिम की ओर फ़िलहाल रुख कर चुका है। लेकिन पुडुचेरी और तमिलनाडु में कई हिस्सों में लगातार बारिश का दौर जारी है और इस तूफ़ान ने इस क्षेत्र में काफी नुकसान पहुंचाया है। तमिलनाडु के एडिशनल चीफ सेक्रेट्री अतुल्य मिश्रा के मीडिया को दिए बयान के मुताबिक़, इस तूफान की वजह से राज्य में अब तक 3 लोगों की मौत हो गई है और 3 और लोगों के घायल होने की फ़िलहाल सूचना है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े हैं निवार के तार, और इसकी वजह से घातक हो रहा है इसका वार।

समुद्र की सतह का तापमान और तूफान की ताकत। मानव ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग द्वारा लाया गया महासागर का गर्म तापमान, ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) चक्रवातों के गठन और तेज़ तीव्रता का समर्थन करते हैं। हाल के दशकों में सबसे मज़बूत तूफानों की तीव्रता में वैश्विक वृद्धि हुई है: जून में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि सबसे ताक़तवर तूफानों का अनुपात एक दशक में लगभग 8% बढ़ रहा है।

हाल ही में एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि “समुद्र की सतह और उपसतह परिस्थितियों ने चक्रवात ओखी (Ockhi) के उत्पत्ति और गहनता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई”, एक बहुत ही समान चक्रवात जो लगभग तीन साल पहले उसी क्षेत्र में पड़ा था, जिससे 844 मौतें हुई थीं। दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह, बंगाल की खाड़ी में समुद्री सतह का तापमान पिछले दशकों में लगातार बढ़ रहा है।

रैपिड इंटेंसीफिकेशन (तेज़ तीव्रता)। कई अध्ययनों के अनुसार, ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) चक्रवातों का बढ़ता अनुपात तेज़ी से विकसित हो रहा है, जिसे रैपिड इंटेंसीफिकेशन (तेज़ तीव्रता) के रूप में जाना जाता है – ये बदलाव जलवायु परिवर्तन से जुड़े हैं। गर्म समुद्र का पानी एक कारक है जो रैपिड इंटेंसीफिकेशन (तेज़ तीव्रता) गति को बढ़ाता है, तो मानव ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण समुद्र के उच्च तापमान इसकी अधिक संभावना बनाता है। रैपिड इंटेंसीफिकेशन (तेज़ तीव्रता) एक खतरा है क्योंकि यह पूर्वानुमान लगाना मुश्किल बना देता है कि एक तूफान कैसे व्यवहार करेगा और इसलिए तूफान की लैंडफॉल से पहले तैयार होना भी मुश्किल कर देता है।

गर्म वातावरण और अधिक तीव्र वर्षा। कार्बन उत्सर्जन की वजह से धरती का वातावरण गर्म हो रहा है। गर्म माहौल अधिक पानी पकड़ सकता है, जो चक्रवातों के दौरान अत्यधिक वर्षा का कारण बनता है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों ने वायुमंडलीय नमी में वृद्धि को सीधे मानव जनित जलवायु परिवर्तन के साथ जोड़ा है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से वैश्विक स्तर पर हाल के दशकों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है, और वैज्ञानिकों का अनुमान है कि निरंतर जलवायु परिवर्तन के साथ चक्रवातों से वर्षा बढ़ेगी।

उच्च समुद्र का स्तर और बढ़े तूफान महोर्मि। चक्रवात से संभावित तूफान महोर्मि अक्सर तूफान से सबसे खतरनाक जोखिम होते हैं। जलवायु परिवर्तन से संबंधित तूफान महोर्मि में वृद्धि ,समुद्र के बढ़ते स्तर, बढ़ते आकार और बढ़ती तूफानी हवा की गति की वजह से हो सकती है। वैश्विक समुद्र का स्तर पहले से ही मानव कार्बन उत्सर्जन के परिणामस्वरूप लगभग 23 cm बढ़ गया है – गंभीर रूप से उस दूरी को बढ़ाते हुए जिस तक तूफान पहुच सकता है।

इसके अलावा, बंगाल की खाड़ी में ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) चक्रवात एल नीनो-दक्षिणी दोलन (El Niño–Southern Oscillation) (ENSO) से प्रभावित होते हैं, एक मौसम संबंधी घटना जो पेसिफ़िक (प्रशांत) महासागर के कुछ क्षेत्रों में हवा के पैटर्न और समुद्र की सतह के तापमान को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में परिणाम के साथ प्रभावित करता है।

वैज्ञानिकों ने ENSO के शीतक (कूलर) चरण, जो ला नीना (La Niña) के नाम से जाना जाता है, और बंगाल की खाड़ी में बढ़ती ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) चक्रवात गतिविधि के बीच संबंध पाया है। क्योंकि हम वर्तमान में ला नीना (La Niña) अवधि का अनुभव कर रहे हैं, यह चक्रवात निवार की रचना के अंतर्निहित कारणों में से एक हो सकता है।

इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिरोलॉजी में साइंटिस्ट और IPCC (आईपीसीसी) ओशन्स एंड क्रायोस्फीयर रिपोर्ट के प्रमुख लेखक, कहते हैं “अभी पेसिफ़िक (प्रशांत) क्षेत्र में ला नीना (La Niña) है, जो कि पेसिफ़िक (प्रशांत) की शीतक (कूलर) स्थिति है जो बंगाल की खाड़ी में स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितियों को साइक्लोजेनेसिस के लिए योग्य बनाती है।“ वो आगे कहते हैं, “पिछले 40 वर्षों के दौरान, छह चक्रवात – गंभीर चक्रवात श्रेणी में – नवंबर में तमिलनाडु तट से टकराये। इन छह में से पांच पेसिफ़िक (प्रशांत) में ला नीना (La Niña) जैसी स्तिथियों के दौरान घटित हुए। तो इसका मतलब है कि कुछ हद तक हम इस समय के दौरान बंगाल की खाड़ी में एक चक्रवात के मौसम की अपेक्षा कर रहे थे – और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

अब अगर स्थानीय परिस्थितियों को देखें तो जलवायु परिवर्तन की भूमिका दिखाई दे रही है। चक्रवात निवार का मामला कई तरह से चक्रवात ओखी (Ockhi) के समान है। नवंबर 2017 में, चक्रवात ओखी (Ockhi) ने मध्यम चक्रवात से 24 घंटों में बहुत ही गंभीर-चक्रवात में तेजी से वृद्धि की, जिसके परिणामस्वरूप भारत और श्रीलंका में 844 लोगों की मौत हो गई। हमने पाया कि असामान्य रूप से गर्म समुद्र के तापमान ने 9 घंटे में एक अवसाद से लेकर चक्रवात तक इसके विकास का समर्थन किया और फिर 24 घंटे में इस को एक बहुत गंभीर-चक्रवात तक पौहचाया।

“बंगाल की खाड़ी गर्म पूल क्षेत्र का हिस्सा है, जहां तापमान नवंबर में लगभग 28-29 डिग्री सेल्सियस और कभी-कभी 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। ये उच्च तापमान आमतौर पर साइक्लोजेनेसिस के लिए सहायक होते हैं। इसके शीर्ष पर ग्लोबल वार्मिंग तत्व है – इस समय तापमान विसंगतियाँ लगभग 0.5-1 ° C होती हैं और कुछ क्षेत्रों में बॉय (buoy) और सैटेलाइट अनुमानों के आधार पर 1.2 ° C तक पहुँच जाती हैं। हर 0.1 ° C का मतलब चक्रवात को बनाए रखने और विकसित करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा है। हम पाते हैं कि चक्रवात ओखी (Ockhi) के मामले की तरह इस तरह की गर्म स्थिति चक्रवात निवार के रैपिड इंटेंसीफिकेशन (तेज़ तीव्रता) का समर्थन कर सकती है।

“स्थानीय रूप से, हवाएँ भी चक्रवात गठन के पक्ष में हैं। मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (MJO) – जो कि पूर्व की ओर बढ़ते हुए बादलों का एक बैंड है – वर्तमान में बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में सक्रिय है। इसलिए समुद्र के अनुकूल वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण साइक्लोजेनेसिस और जलवायु परिवर्तन से रैपिड इंटेंसीफिकेशन (तेज़ तीव्रता) लाने में मददगार है, नतीजतन हमारे पास अधिल तीव्र चक्रवात निवार है।”

भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में अनुसंधान निदेशक और सहायक एसोसिएट प्रोफेसर और महासागरों के IPCC (आईपीसीसी) और क्रायोस्फीयर पर विशेष रिपोर्ट के कोऑर्डिनेटिंग लीड लेखक , डॉ. अंजल प्रकाश, कहते हैं, “जैसा कि हम चक्रवात निवार के विकास का अनुसरण कर रहे हैं, तटीय और उत्तर आंतरिक तमिलनाडु, पुदुचेरी, दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश और रायलासीमा जैसे स्थानों को लाल श्रेणी में डाला दिया गया है, जिसका अर्थ है कि ये क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित होने की अपेक्षा है।

“2020 की शुरुआत के बाद से, यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में इस तरह की 8-वीं घटना है। चक्रवातों के इन आठ रिकॉर्डेड घटनाओं में से, अम्फान और निसर्ग सुपर साइक्लोन थे, जबकि गति और निवार को बहुत गंभीर चक्रवाती घटनाएँ माना जाता है। इस साल चार अपेक्षाकृत छोटे अवसाद थे जिन्होंने भी भारी बारिश और हवा को बढ़ाया।

“IPCC (आईपीसीसी) के वैज्ञानिक इस तरह की घटनाओं के बारे में चेतावनी देते रहे हैं। सबसे हालिया रिपोर्ट जिसमें ओशन्स और क्रायोस्फीयर को कवर किया गया था, ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी थी कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया, तो इन घटनाओं की संख्या और चक्रवातों की गंभीरता में वृद्धि होगी।

“2019 में, इस तरह के 12 घटनाएं दर्ज की गईं , जबकि 2020 में चक्रवात निवार 8-वीं ऐसी घटना है जो प्रमुख तरीकों से जीवन को प्रभावित करने वाली है।

चक्रवात निवार के वास्तविक प्रभाव को तभी बाद में मापा जा सकता है जब यह 25 नवंबर को लैंडफॉल बनाएगा, पिछले अनुभवों से पता चलता है कि शहरों और बस्तियों में अत्यधिक बारिश से बाढ़ आ जाएगी। इस तरह की गंभीर जलवायु घटनाओं से निपटने की दिशा में हमारा बुनियादी ढांचा नहीं बना है। निचले क्षेत्रों और डेंजर जोन से लोगों को निकालने के किये प्राथमिकता दी जाएगी ताकि उनकी जान बच सके। इससे भी बड़ी बात यह है कि हमें इस तरह की जलवायु संबंधी घटनाओं की ओर अपना बुनियादी ढाँचा सहमत बनाना चाहिए और भविष्य की घटनाओं के लिए एडाप्ट करने के लिए योजना बनानी चाहिए।

“बदलती जलवायु परिस्थितियां हर साल अधिक चक्रवाती घटनाओं को जोड़ रहीं है और इसलिए इन घटनाओं के प्रति एडाप्टेशन से हम लाखों लोगों के जीवन को बचा सकते हैं, विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग।”

विघ्नहरण गणपति


अड़चन को विघ्न हम कहते हैं ,
सदा उनसे डरते हैं , सदा उनसे बचते हैं ।
विघ्नहरण गणपति की वन्दना हम करते हैं,
विघ्नों को हरने की कामना हम करते हैं ,
निर्विघ्न करने की प्रार्थना हम करते हैं ।
सोचती हूँ, संघर्ष ही तो जीवन है,
फिर विघ्नों से क्या अनबन है ?
जब विघ्नों से टकराते हैं,
तभी सामर्थ्य जाने जाते हैं।
विघ्नों का अभाव यदि हो जाता,
तो बहुत कुछ खो जाता ।
विघ्न अगर नहीं होते,
तो जग में फिर हम क्या करते ?
पराजय-अपराजय का प्रश्न नहीं उठता,
सफलता-असफलता से कौन गुज़रता ?
विजयश्री तब किसे मिली होती ?
सुख और दु:ख की अनुभूति कहाँ होती?
कुछ करने का उत्साह नहीं जगता ,
आगे बढ़ने का साहस कौन करता ?
जीवन की एकरसता ये किसे भाती?
ये उदासी तब सही नहीं जाती ।
इसलिये — विघ्नों को आने दो ,पथ में बिछ जाने दो ।
पार हम कर जाएँगे और आगे बढ़ जाएँगे ।
चलना ही जीवन है,रुकना तो मरण है ।
मेरे प्रभु ! निर्विघ्न हमें मत करो ,
विघ्नों से लड़ने की शक्ति दो।
विजयी हम सदा रहें ,
निष्काम तुम्हें भजा करें

  • शकुन्तला बहादुर

सभ्य समाज का नासूर है नारी हिंसा और उत्पीड़न

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस  ( 25 नवम्बर, 2020 ) पर
ललित गर्ग

भारत ही नहीं, दुुनियाभर की महिलाओं पर बढ़ती हिंसा, शोषण, असुरक्षा एवं उत्पीड़न की घटनाएं एक गंभीर समस्या है। संयुक्त राष्ट्र संघ महिलाओं पर की जा रही इस तरह हिंसा के उन्मूलन के लिए 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा एवं उन्मूलन दिवस के रूप में विश्वभर में मनाता जा रहा है। इस दिन महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने के और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता को रेखांकित करने वाले अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। महिलाओं के समूह व संगठन महिलाओं की समाज में चिंताजनक स्थिति और इसके परिणामस्वरूप, महिलाओं के शारीरिक, मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को सामने लाने के लिए विविध उपक्रम किये जाते हैं।
25 नवम्बर, 1960, को राजनैतिक कार्यकर्ता डोमिनिकन शासक राफेल ट्रुजिलो (1930-1961) के आदेश पर तीन बहनों, पैट्रिया मर्सिडीज मिराबैल, मारिया अर्जेंटीना मिनेर्वा मिराबैल तथा एंटोनिया मारिया टेरेसा मिराबैल की 1960 में क्रूरता से हत्या कर दी थी। इन तीनों बहनों ने ट्रुजिलो की तानाशाही का कड़ा विरोध किया था। महिला अधिकारों के समर्थक व कार्यकर्ता वर्ष 1981 से इस दिन को इन तीनों बहनों की मृत्यु की स्मृति के रूप में मनाते हैं। 17 दिसंबर 1999 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एकमत से यह निर्णय लिया गया कि 25 नवम्बर को महिलाओं के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हिंसा उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
देश एवं दुनिया में विकास के साथ-साथ महिलाओं के प्रति हिंसक सोच थमने की बजाय नये-नये रूपों में सामने आती रही है। इसी हिंसक सामाजिक सोच एवं विचारधारा पर काबू पाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा-उन्मूलन दिवस महिलाओं के अस्तित्व एवं अस्मिता से जुड़ा एक ऐसा दिवस है जो दायित्वबोध की चेतना का संदेश देता है, महिलाओं के प्रति एक नयी सभ्य एवं शालीन सोच विकसित करने का आह्वान करता है। यह दिवस उन चैराहों पर पहरा देता है जहां से जीवन आदर्शों के भटकाव एवं नारी-हिंसा की संभावनाएं हैं, यह उन आकांक्षाओं को थामता है जिनकी हिंसक गति तो बहुत तेज होती है पर जो बिना उद्देश्य समाज की बेतहाशा दौड़ को दर्शाती है। इस दिवस को मनाने के उद्देश्यों में महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा को नियंत्रित करने का संकल्प भी है। यह दिवस नारी को शक्तिशाली, प्रगतिशील और संस्कारी बनाने का अनूठा माध्यम है।
अनुमान है कि दुनिया भर में 35 प्रतिशत महिलाओं ने शारीरिक और यौन हिंसा का अनुभव किसी नॉन-पार्टनर द्वारा अपने जीवन में किसी बिंदु पर किया है। हालांकि, कुछ राष्ट्रीय अध्ययनों से पता चलता है कि 70 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जीवनकाल में एक अंतरंग साथी से शारीरिक और यौन हिंसा का अनुभव किया है। दुनियाभर में पाए गए सभी मानव तस्करी के पीड़ितों में से 51 प्रतिशत वयस्क महिलाओं का खाता है। यूरोपीय संघ की रिपोर्ट में 10 महिलाओं में से एक ने 15 साल की उम्र से साइबर-उत्पीड़न का अनुभव किया है। 18 से 29 वर्ष की आयु के बीच युवा महिलाओं में जोखिम सबसे अधिक है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक वैश्विक महामारी है। 70 प्रतिशत महिलाओं की संख्या अपने जीवनकाल में हिंसा का अनुभव करती है। भारत के राजस्थान प्रांत में तो कन्या-शिशुओं को जन्म लेते ही मान देने की भयावह मानसिकता रही है। कुछ चिंतन और मनन करने से हमें पता चलता है कि महिलाओं के विरुद्ध यौन उत्पीड़न, फब्तियां कसने, छेड़खानी, वैश्यावृत्ति, गर्भाधारण के लिए विवश करना, महिलाओं और लड़कियों को खरीदना और बेचना, युद्ध से उत्पन्न हिंसक व्यवहार और जेलों में भीषण यातनाओं का क्रम अभी भी महिलाओं के विरुद्ध जारी है और इसमें कमी होने के बजाए वृद्धि हो रही है।
आज  हिंसा एवं उत्पीड़न से ग्रस्त समाज की महिलाओं पर विमर्श जरूरी है। विकसित एवं विकासशील देशों में महिलाओं पर अत्याचार, शोषण, भेदभाव एवं उत्पीड़न का साया छाया रहता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत सहित दुनियाभर में अल्पसंख्यक और संबंधित देशों के मूल समुदाय की महिलाएं अपनी जाति, धर्म और मूल पहचान के कारण बलात्कार, छेड़छाड़, उत्पीड़न और हत्या का शिकार होती हैं। माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप इंटरनेशनल ने ‘दुनिया के अल्पसंख्यकों और मूल लोगों की दशा’ नामक अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे दुनियाभर में अल्पसंख्यक और मूल समुदाय की महिलाएं हिंसा का शिकार ज्यादा होती हैं, चाहे वह संघर्ष का दौर हो या शांति का दौर। इस संगठन के कार्यकारी निदेशक मार्क लैटिमर ने कहा कि दुनियाभर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव के तहत महिलाओं को शारीरिक हिंसा का दंश झेलना पड़ता है। यह स्थिति भारत के सन्दर्भ में भी भयावह है।
भले ही भारत सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान में महिला सशक्तिकरण के लिए सराहनीय कार्य कर रही है बावजूद इसके आधुनिक युग में हजारों अल्पसंख्यक ही नहीं आम महिलाएं अपने अधिकारों से कोसों दूर हैं। सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए भले ही सैकड़ों योजनाएं तैयार की हों, परंतु महिला वर्ग में शिक्षा व जागरूकता की कमी आज भी खल रही है। अपने कत्र्तव्यों तथा अधिकारों से बेखबर महिलाओं की दुनिया को चूल्हे चैके तक ही सीमित रखा है। भारत में आदिवासी समुदाय की महिलाएं अपने अधिकारों से बेखबर हैं और उनका जीवन आज भी एक त्रासदी की तरह है।
आम महिलाओं और युवतियों की ही भांति अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं पर भी कहीं एसिड अटैक हो रहे हैं, तो कहीं निरंतर हत्याएं-बलात्कार हो रहे और कहीं तलाश-दहेज उत्पीड़न की घटनाएं हो रही हैं। इन घटनाओं पर कभी- कभार शोर भी होता है, लोग विरोध प्रकट करते हैं, मीडिया सक्रिय होता है पर अपराध कम होने का नाम नहीं लेते क्यों। हम देख रहे हैं कि एक ओर भारतीय नेतृत्व में इच्छाशक्ति बढ़ी है लेकिन विडम्बना तो यह है कि आम नागरिकों में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर कोई बहुत आक्रोश या इस स्थिति में बदलाव की चाहत भी नहीं है। वे स्वाभाव से ही पुरुष वर्चस्व के पक्षधर और सामंती मनःस्थिति के कायल हैं। तब इस समस्या का समाधान कैसे सम्भव है?
हमारे देश-समाज में स्त्रियों का यौन उत्पीड़न लगातार जारी है लेकिन यह बिडम्बना ही कही जायेगी कि सरकार, प्रशासन, न्यायालय, समाज और सामाजिक संस्थाओं के साथ मीडिया एवं सख्त कानून बन जाने पर भी इस कुकृत्य में कमी लाने में सफल नहीं हो पाये हैं। देश के हर कोने से महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन प्रताड़ना, दहेज के लिये जलाया जाना, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना और स्त्रियों की खरीद-फरोख्त के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। महिलाओं को अल्पसंख्यक दायरे में लाने मात्र से उन पर हो रहे अत्याचारों पर नियंत्रण नहीं हो सकता। क्योंकि नारी उत्पीड़न, नारी तिरस्कार तथा नारी को निचले व निम्न दर्जे का समझने की जड़ हमारे प्राचीन धर्मशास्त्रों, हमारे रीति-रिवाजों, संस्कारों तथा धार्मिक ग्रंथों व धर्म सम्बंधी कथाओं में पायी जाती हैं।
नारी को छोटा व दोयम दर्जा का समझने की मानसिकता भारतीय समाज की रग-रग में समा चुकी है। असल प्रश्न इसी मानसिकता को बदलने का है। इन वर्षों में अपराध को छुपाने और अपराधी से डरने की प्रवृत्ति खत्म होने लगी है। वे चाहे मीटू जैसे आन्दोलनों से हो या निर्भया कांड के बाद बने कानूनों से। इसलिए ऐसे अपराध पूरे न सही लेकिन फिर भी काफी सामने आने लगे हैं। अन्यायी तब तक अन्याय करता है, जब तक कि उसे सहा जाये। महिलाओं में इस धारणा को पैदा करने के लिये न्याय प्रणाली और मानसिकता में मौलिक बदलाव की भी जरूरत है। देश में लोगों को महिलाओं के अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है और इसका पालन पूरी गंभीरता और इच्छाशक्ति से नहीं होता है। महिला सशक्तीकरण के तमाम दावों के बाद भी महिलाएँ अपने असल अधिकार से कोसों दूर हैं। उन्हें इस बात को समझना होगा कि दुर्घटना व्यक्ति और वक्त का चुनाव नहीं करती है और यह सब कुछ होने में उनका कोई दोष नहीं है।
पुरुष-समाज के प्रदूषित एवं विकृत हो चुके तौर-तरीके ही नहीं बदलने हैं बल्कि उन कारणों की जड़ों को भी उखाड़ फेंकना है जिनके कारण से बार-बार नारी को जहर के घूंट पीने को विवश होना पड़ता है। विश्व महिला हिंसा-उन्मूलन दिवस गैर-सरकारी संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सरकारों के लिए महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के प्रति जन-जागरूकता फैलाने का अवसर होता है। दुनिया को महिलाओं की मानवीय प्रतिष्ठा के वास्तविक सम्मान के लिए भूमिका प्रशस्त करना चाहिए ताकि उनके वास्तविक अधिकारों को दिलाने का काम व्यावहारिक हो सके। ताकि इस सृष्टि में बलात्कार, गैंगरेप, नारी उत्पीड़न, नारी-हिंसा जैसे शब्दों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।

मनुष्य को सुख ईश्वर की भक्ति व सत्कर्मों से ही मिलता है

मनमोहन कुमार आर्य

                हमें जो सुख दुःख की अनुभूति होती है वह शरीर इन्द्रियों के द्वारा हमारी आत्मा को होती है। आत्मा चेतन पदार्थ होने से ही सुख दुःख की अनुभूति करता है। प्रकृति सृष्टि जड़ सत्तायें हैं। इनको किसी प्रकार की अनुभूतियां वा सुख दुःख नहीं होते। आत्मा से इतर परमात्मा की सत्ता है। परमात्मा सत्य, चेतन एवं आनन्दस्वरूप है। परमात्मा अनादि, नित्य एवं सर्वज्ञ भी है। इसके विपरीत हमारी आत्मा सत्य, चेतन, अनादि नित्य होने सहित अल्पज्ञ, एकदेशी ससीम सत्ता है। सुख का आधार ज्ञान उसके अनुरूप कर्म भी होते हैं।  परमात्मा सर्वज्ञ अर्थात् सर्वज्ञानमय होने सहित शरीर से रहित होने के कारण सभी प्रकार के सुख व दुःखों से मुक्त है। मनुष्य को शरीर में रहकर शरीर द्वारा जो सुख व दुःख होते हैं वैसे परमात्मा में नहीं होते। वेदों में ईश्वर को नस, नाड़ी तथा शरीर आदि के बन्धनों से रहित अजन्मा बताया गया है। वेद ईश्वर का ही दिया हुआ ज्ञान है। इस कारण वेदों से ईश्वर सहित सभी पदार्थों का यथार्थ, निर्भ्रांत व सत्य-सत्य ज्ञान प्राप्त होता है। सच्चिदानन्द, सर्वज्ञ एवं शरीर रहित होने से ईश्वर सब सुखों, ज्ञान तथा आनन्द का भण्डार है। हमें ज्ञान प्राप्ति सहित सुखों की प्राप्ति के लिये भी ईश्वर की शरण को प्राप्त होना होता है। ईश्वर को प्राप्त होकर हम उसकी शिक्षा के अनुसार धर्म पालन करते हुए ज्ञान व सुखों को प्राप्त होते हैं। ज्ञान व सुख प्राप्ति को ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य कहा जा सकता है। ज्ञान से ही हम दुःखों सहित आवागमन के दुःखों से मुक्त होकर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होकर ईश्वर के परमानन्दस्वरूप में स्थित होकर आनन्द का भोग करते हैं। ज्ञान व ज्ञानानुरूप कर्मों से मनुष्य को मुक्ति व मोक्ष प्राप्त होता है जो मनुष्य को सर्वोत्तम सुख व सभी प्रकार के दुःखों से सर्वथा रहित आनन्द को प्राप्त कराता है। इसी बात को तर्क एवं युक्ति से दर्शन आदि ग्रन्थों में हमारे तत्वेत्ता विद्वान ऋषियों ने प्रामाणित व सिद्ध किया है। अतः सुख के अभिलाषी सभी मनुष्यों को जन्म व मरण के बन्धन व दुःखों से मुक्त होने के लिये स्वाध्याय सहित ईश्वर की भक्ति व उपासना करनी चाहिये। यही मनुष्य जीवन की सफलता सहित उन्नति व सुख के आधार हैं। इसको गहनता से जानने के लिये हमें सत्यार्थप्रकाश सहित दर्शन व उपनिषद आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिये।

                ईश्वर की भक्ति उपासना करने से मनुष्य को सुख मिलता है। अतः इस कारण तो भक्ति करनी ही चाहिये। इसके अतिरिक्त हमें ईश्वर के अनादि काल से हम पर जो उपकार हैं उसका भी हमें ध्यान चिन्तन करना चाहिये। हमें यह मनुष्य जन्म परमात्मा ने ही दिया है। इस सृष्टि को भी परमात्मा ने हम जैसे जीवों के लिए उन्हें सुख प्रदान करने के लिये बनाया है। यदि परमात्मा सृष्टि बनाकर हमें सुख देने वाले अन्नादि पदार्थ बनाता और हमें जन्म देता तो हमें सुख प्राप्त होते। ईश्वर ने हम पर यह उपकार केवल इसी जन्म में नहीं किया है अपितु वह ऐसे उपकार इससे पूर्व हमारे हुए अनन्त जन्मों से करता रहा है। आगे भी करेगा। हमारा शरीर कितना मूल्यवान है उसका ज्ञान तब होता है जब हमारी ही किसी अज्ञानता के कारण किसी अंग में दोष आने पर हम चिकित्सकों के पास जाते हैं और अपना समस्त धन देकर भी उसे पूर्ण स्वस्थ करने में सफल नहीं होते। हमारे इस शरीर का हम मूल्य निश्चित नहीं कर सकते। किसी मनुष्य को एक आंख, गुर्दा या लीवर ट्रांसप्लान्ट वा स्थापित कराना हो तो वह लाखों रुपये में भी सरलता से सम्भव नहीं होता और यदि होता भी है तो इसकी क्षमता मूल अंग के समान हितकारी व सुखदायक नहीं होती। अतः ईश्वर के उपकारों का चिन्तन करके हमें उसकी स्तुति के स्तोत्र व गीत गाने चाहिये। वेदों में ऐसे मन्त्र विद्यमान हैं जिनसे जो उत्तम स्तुति होती है वह अन्यथा नहीं हो पाती। इसके लिये हम यजुर्वेद का एक मन्त्र 30.3 प्रस्तुत कर रहे हैं। मन्त्र हैः

                ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।

            यद् भद्रन्तन्न आसुव।।

                इस मन्त्र का ऋषि दयानन्द जी का किया हुआ अर्थ है कि हे सकल जगत् के उत्पत्तिकर्ता, समग्र ऐश्वर्ययुक्त, शुद्धस्वरूप, सब सुखों के दाता परमेश्वर! आप कृपा करके हमारे समस्त दुर्गुण, दुव्र्यसन और दुःखों को दूर कर दीजिए और जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव और पदार्थ हैं, वह सब हमको अर्थात् स्तोता को प्राप्त कीजिए। इस प्रकार के सहस्रों स्तुतिवचन प्राथनायें हमें वेदों से प्राप्त होती हैं। ऐसी स्तुतियां प्रार्थनायें संसार में मनुष्यकृत ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होती हैं। हमें सुख व ज्ञान की प्राप्ति सहित भौतिक पदार्थों के लिये भी ईश्वर के शरणागत होना चाहिये और ईश्वर की स्तुति करने सहित पुरुषार्थ से इन सभी को प्राप्त करना चाहिये।

                सुखों की प्राप्ति का एक साधन यम नियमों का पालन भी होता है। यम नियम योग दर्शन में अष्टांग योग के प्रथम दूसरे सोपान हैं। इनके पालन से ही योग में प्रवेश किया जा सकता है। जो मनुष्य यम नियमों का पालन नहीं करते वह योगी कदापि नहीं हो सकते। यम अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह को कहते हैं। नियम शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान को कहते हैं। इनका पालन करने से भी मनुष्य स्वस्थ एवं सुखी होते हैं। ऐसा करते हुए सत्याचरण, ब्रह्मचर्य पालन, ईश्वर प्रणिधान, तप तथा स्वाध्याय आदि से मनुष्य ज्ञान व सुखों को प्राप्त होते हैं। योग के आठ अंगों का पालन करने से मनुष्य को स्वास्थ्य, सुख व ज्ञान तथा सम्पन्नता आदि सभी आवश्यक पदार्थों की प्राप्ति होती है। आज देश व विश्व में लोग योग की ओर आकर्षित हैं तथा सभी आसनों व प्राणायामों सहित ईश्वर का ध्यान भी करते हैं। इससे सभी को लाभ प्राप्त हो रहे हैं। जिस प्रकार से योग वैश्विक आवश्यकता एवं लाभकारी वस्तु बन गया है उसी प्रकार से वेद व वैदिक ईश्वर भक्ति भी वैश्विक आवश्यकता है। लोगों को इसको समझना व इसका आचरण करना चाहिये। इससे सुखों व ज्ञान में वृद्धि होने से सबको मानसिक शान्ति आदि का लाभ हो सकता है।

                मनुष्यों को अपने माता, पिता, आचार्यों सहित वेद सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों के स्वाध्याय से ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानना चाहिये। ईश्वर आत्मा को जानकर सत्याचरण करते हुए ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना भक्ति करनी चाहिये। ऐसा करने से आत्मा ज्ञान से युक्त होकर निश्चय ही सुख का लाभ करेगा। हमने ऋषि दयानन्द सहित अनेक सद्धर्म पालक मनुष्यों के जीवन चरित पढ़े हैं। इन सबके जीवन में हमें सुख शान्ति के विशेष रुप से दर्शन होते हैं। अनेक विपरीत परिस्थितियों में भी इन्होंने अपने धैर्य मन की शान्ति को बनाये रखा। इन्हें जीवन में जो प्राप्त हुआ उससे यह सदैव सन्तुष्ट रहे। इन्होंने अपने जीवन को तो यशस्वी बनाया ही दूसरों को प्रेरणा कर उन्हें भी उन्नत व महान बनने की शिक्षा दी। इस दृष्टि व लाभ प्राप्ति के लिए हमें ऋषि दयानन्द का जीवन चरित पढ़ना चाहिये। उनके जीवन में हमें ईश्वर भक्ति, ज्ञान व पुरुषार्थ तथा देश व समाज हित के कार्यों की पराकाष्ठा सहित निर्भीकता देखने को मिलती है। उन्होंने अपने जीवन में जो कष्ट सहन किये वह आज के मनुष्य कदाचित नहीं कर सकते। उनके जीवन का अनुकरण हम भी अपने जीवन को उनके समान उपयोगी व श्रेष्ठ कर्मों से युक्त बना सकते हैं। ऐसा करते हुए हम अनेक बुराईयों से भी बचते हैं और हमारा सामाजिक जीवन विस्तार व उन्नति को प्राप्त होकर देश व समाज के लिये भी उपयोगी बनता है। इस पक्ष पर भी हमें ध्यान देना चाहिये। संसार में सभी मनुष्य सुख चाहते हैं परन्तु उन्हें यह ज्ञात नहीं होता कि सुख का आधार क्या है? ऐसा माना जाता है कि धन कमाने व सम्पत्तियों को अर्जित कर ही मनुष्य सुखी हो सकता है। ऐसा मानना अर्ध सत्य कहा जा सकता है। प्रत्येक भौतिक व इन्द्रिय सुख के साथ दुःख जुड़ा होता है। भौतिक सुख भोग का परिणाम उत्तर काल में दुःखों के रूप में सामने आता है। इसके विपरीत बिना भौतिक सुखों के ईश्वर उपासना तथा सत्कर्मों को करके जो सुख मिलता है, उसका महत्व कहीं अधिक होता है। दशरथनन्दन मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा देवकीनन्दन योगेश्वर कृष्ण ने ईश्वर भक्ति व सत्कर्म ही तो किए थे। इसी कारण से उनका पावन चरित्र आज भी जन जन में गाया व स्मरण किया जाता है। अतः हमें भी राम व कृष्ण के जीवन से शिक्षा लेकर उनके अनुसार ही वेद व सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों से वैदिक ज्ञान को प्राप्त होकर सत्कर्मों को करना है। इसी से हमारा जीवन सुखी व सुफल होगा तथा हम मोक्ष मार्ग के पथिक भी बनेंगे जिसे प्राप्त करना सभी मनुष्यों के जीवन का लक्ष्य है।

कोरोना : अभी ढिलाई ठीक नहीं

सुरेश हिन्दुस्थानी
कोरोना के प्रति शासन, प्रशासन और आम जनता की लापरवाही के परिणाम अत्यंत भयावह रूप लेते दिखाई दे रहे हैं। संक्रमितों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि के बाद भी हमारा समाज किसी प्रकार का सबक लेने की मानसिकता नहीं बना सका है। इससे पहले भी लॉकडाउन की अवधि के दौरान जनमानस अच्छे बुरे की पहचान कर चुका है। लेकिन ऐसा लगता है हम जानते हुए अनजान बन जाते हैं। इसके पीछे का कारण यह भी माना जा सकता है कि हमारा समाज लम्बे समय तक ऐसी राह का अनुसरण कर चुका है, जो पूरी तरह से पश्चिम के विकारों से ग्रसित है। प्रायः यही कहा जाता है कि जो व्यक्ति भारतीय संस्कृति की जीवन संहिताओं का पालन करता है, उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमताओं में आशातीत वृद्धि होती है। जबकि पश्चिमी अवधारणा पर आधारित जीवन जीने वाला व्यक्ति समस्याओं को खुद ही आमंत्रित करता है।
वर्तमान में देश के कुछ हिस्सों में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए धारा 144 और कर्फ्यू लगाने की आवश्यकता हुई है। केंद्र सरकार ने भी इस मामले में सक्रियता दिखाकर राज्यों से अंकुश लगाने को कहा है। इसका तात्पर्य यही है कि अब हालात पहले से भी ज्यादा घातक हैं। पहले की तुलना में जहां संक्रमण बढ़ा है, वहीं कोरोना के कारण मृत्यु दर भी निरंतर बढ़ती जा रही है। इस स्थिति को लापरवाही की पराकाष्ठा ही माना जा सकता है। विशेष बात यह है कि इस बार कोरोना संक्रमित व्यक्ति गंभीर अवस्था में उपचार करा रहे हैं। मतलब समस्या काफी गंभीर है। समस्या इसलिए भी ज्यादा घातक है, क्योंकि अभी तक यह बीमारी लाइलाज है। लगभग एक वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बाद भी यह पता नहीं है कि इसकी दवा कब तक आएगी। केंद्र सरकार ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वैक्सीन कब आएगी, यह वैज्ञानिकों के हाथ में है। तब तक किसी भी प्रकार की ढिलाई जीवन को खतरे में डाल सकती है।
चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले लिया है। दुनिया के देश इसके खतरों के प्रति पूरी तरह से अनजान होने के कारण पहले तो हल्के में लिया, लेकिन जैसे ही कोरोना का विकराल रूप सामने आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अमेरिका जैसे विकसित और चिकित्सा के क्षेत्र में बेहतर सेवा देने वाले इटली जैसे देश में भी इस वायरस ने तबाही जैसे हालात बना दिए थे। अभी खबर मिल रही है कि यूरोप और अमेरिका में कोरोना वायरस ने फिर पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। फ्रांस में भी कोरोना की दूसरी लहर ने स्वास्थ्य आपातकाल लगाने की स्थिति पैदा कर दी है। यही स्थिति भारत की है। हालांकि यह कहना तर्कसंगत ही होगा कि जब से कोरोना वायरस फैला है, तब से ही यह कहीं ज्यादा तो कहीं कम विस्तारित ही हो रहा है। सवाल यह आता है कोरोना के काल में ही कुछ लोंगों ने इसके प्रति उदासीन रवैया अपना लिया था। जिसका परिणाम आज सबके सामने है।
सवाल यह भी है जब कोरोना संक्रमण की बीमारी अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या के तौर पर उपस्थित हुई है, तब ऐसी स्थिति में मात्र भारत सरकार को निशाने पर लेने की राजनीति कहीं न कहीं हमारी उदासीनता को ही प्रकट कर रही है। यह समस्या हर राज्य की है और हर क्षेत्र की है। यहां तक कि हर नागरिक से जुड़ी है, इसलिए इसका समाधान केवल सरकारी स्तर पर नहीं निकाला जा सकता। इसके लिए हमको सभी स्तर पर जागरूक रहने की आवश्यकता है। इसमें सबसे पहले अपने आपको बचाकर रखने में ही अपनी और समाज की भलाई है। ऐसी अवस्था में और ज्यादा कठोरता होने की जरूरत है। नहीं तो देश में अकाल मौतें तो होंगी ही साथ ही कठोर लॉकडाउन का भी सामना करना पड़ सकता है।
जहां तक भारतीय परिवेश और खानपान की बात है तो यह कहना भी जरूरी है कि कोरोना संक्रमण के दौरान यह बात सबके ध्यान में भी आ चुकी है कि हाथ मिलाने के स्थान पर नमस्ते करने से भी संक्रमण से बचा जा सकता है। खानपान को व्यवस्थित करने से भी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। इतना ही नहीं विश्व के कई देशों ने खुलकर यह स्वीकार भी किया है कि भारत के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कहीं ज्यादा है, इसीलिए कई देशों की तुलना में भारत में इसका असर ज्यादा नहीं हुआ।
एक बात और भी
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए शासन और प्रशासन ने कई बार आम जन से यह अपील की कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि इस अपील का आम समाज पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। समाज का हर व्यक्ति भीड़ से परहेज नहीं, बल्कि उसका हिस्सा बनने की अग्रसर हो रहा है। भौतिक दूरी और चेहरे पर मास्क लगाने की भी जरूरत नहीं समझी जा रही। यह हमारे समाज की विसंगति ही कही जाएगी कि हम जीवन के प्रति बनाए गए नियमों में बंधना ही नहीं चाहते। हम नियमों की अवहेलना ही करने की ओर प्रवृत्त होते जा रहे हैं। यही सब कारण हैं कि हम समाधान के बजाय खुद ही समस्या बनते जा रहे हैं। भारत की जनता नियम पालन करने की मानसिकता बना ले तो स्वाभाविक रूप से बहुत सारी समस्याओं का समाधान निकल सकता है।

जलवायु परिवर्तन सम्बंधी लक्ष्यों को केवल भारत ही प्राप्त करता दिख रहा है

कोरोना वायरस महामारी इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में पूरे विश्व पर आई है लेकिन आगे आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के रूप में एक और महामारी पूरे विश्व को प्रभावित करने वाली है। जिस प्रकार भारत ने अभी तक कोरोना वायरस महामारी से नुक़सान को कम करने के सफल प्रयास किए हैं, उसी प्रकार अथवा उससे भी अधिक सफल प्रयास जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर करने होंगे।

जलवायु परिवर्तन पर हुए पेरिस समझौते के अन्तर्गत, संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश, इस बात पर राज़ी हुए थे कि इस सदी के दौरान वातावरण में तापमान में वृद्धि की दर को केवल 2 डिग्री सेल्सियस तक अथवा यदि सम्भव हो तो इससे भी कम अर्थात 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक रखने के प्रयास करेंगे। उक्त समझौते पर, समस्त सदस्य देशों ने, वर्ष 2015 में हस्ताक्षर किए थे। परंतु, सदस्य देश, इस समझौते को लागू करने की ओर कुछ कार्य करते दिखाई नहीं दे रहे हैं।

परंतु, भारत ने बहुत पहले ही इस सम्बंध में कई लक्ष्य अपने लिए तय कर लिए थे। इनमें शामिल हैं, वर्ष 2030 तक वातावरण में 30 से 35 प्रतिशत तक एमिशन के स्तर को कम करना, ग़ैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा के उत्पादन के स्तर को 40 प्रतिशत तक पहुंचाना, वातावरण में कार्बन उत्पादन को कम करना, आदि। इन संदर्भों में अन्य कई देशों द्वारा अभी तक किए गए काम को देखने के बाद यह पाया गया है कि जी-20 देशों में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए लक्ष्यों को प्राप्त करता दिख रहा है। जी-20 वो देश हैं जो पूरे विश्व में वातावरण में 70 से 80 प्रतिशत तक एमिशन फैलाते हैं। जबकि भारत आज इस क्षेत्र में काफ़ी आगे निकल आया है एवं इस संदर्भ में पूरे विश्व का नेतृत्व करने की स्थिति में आ गया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2022 तक 175 GW सौर ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य तय किया है जिसे वर्ष 2022 से पहिले ही हासिल कर लिया जाएगा। इस लक्ष्य को बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 550 GW कर दिया गया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को दोबारा खेती लायक उपजाऊ बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया है। साथ ही, भारत ने इस दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौर संधि करते हुए 88 देशों का एक समूह बनाया है ताकि इन देशों के बीच तकनीक का आदान प्रदान आसानी से किया जा सके।

आज इस बात को समझना भी बहुत ज़रूरी है कि सबसे ज़्यादा एमिशन किस क्षेत्र से हो  से रहा है। भारत जैसे देश में जीवाश्म ऊर्जा का योगदान 70 प्रतिशत से अधिक है, जीवाश्म ऊर्जा, कोयले, डीज़ल, पेट्रोल आदि पदार्थों का उपयोग कर उत्पादित की जाती है। अतः वातावरण में एमिशन भी जीवाश्म ऊर्जा के उत्पादन से होता है एवं इसका कुल एमिशन में 35 से 40 प्रतिशत तक हिस्सा रहता है, इसके बाद लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा परिवहन साधनों के उपयोग के कारण होता है क्योंकि इनमें डीज़ल एवं पेट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों क्षेत्रों में भारत में बहुत सुधार देखने में आ रहा है।  इस समय देश में सौर ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 83 GW के आसपास स्थापित हो चुकी है। देश अब क्लीन यातायात की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। बिजली से चालित वाहनों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है एवं मेट्रोपॉलिटन शहरों में मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा रहा है। LED बल्बों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा उज्जवला योजना के अंतर्गत ग्रामीण इलाक़ों में लगभग प्रत्येक परिवार में ईंधन के रूप में गैस के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है। इन सभी प्रयासों के चलते देश के वातावरण में एमिशन के फैलाव में सुधार हो रहा है। यह सब अतुलनीय प्रयास कहे जाने चाहिए एवं भारत ने पूरे विश्व को दिखा दिया है कि एमिशन के स्तर को कम करने के लिए किस प्रकार आगे बढ़ा जा  सकता है।

वर्ष 2015 में जब जलवायु परिवर्तन सम्बंधी लक्ष्य तय किए जा रहे थे तब यह कहा गया था कि विकासशील देशों को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में बहुत दिक्कत आएगी और केवल विकसित देश ही इसमें अधिक भागीदारी कर पाएंगे परंतु भारत ने उस समय के अनुमानों को गल्त सिद्ध कर दिया है और वर्ष 2020 में भारत का 66.2 अंकों के साथ विश्व में 9वां स्थान है जबकि वर्ष 2019 में 11वां स्थान था एवं कई विकसित देश भी आज भारत से पीछे खड़े हैं।

यहां विचार करने योग्य मुद्दा यह है कि केवल भारत द्वारा पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए सारे लक्ष्यों को हासिल करने से वैश्विक स्तर पर एमिशन के स्तर में बहुत कमी नहीं आएगी क्योंकि भारत का योगदान विश्व में एमिशन का स्तर बढ़ाने में पहिले से ही काफ़ी कम है। अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों, जिनका एमिशन के स्तर को बढ़ाने में योगदान ज़्यादा है, का साथ में चलना बहुत ज़रूरी है। जी-20 के माध्यम से अन्य देशों पर दबाव बनाया जाना चाहिए ताकि वे भी अपने लक्ष्यों को हासिल करने के भरपूर प्रयास करें। भारत ने चूंकि प्रवाह तय कर दिया है अतः भारत इस क्षेत्र में अब नेतृत्व कर सकता है। भारत ने ज़रूर बहुत अच्छा काम किया है लेकिन विकसित देशों, जिनकी हिस्सेदारी ज़्यादा है, उन्हें और अधिक अच्छा काम करने की ज़रूरत है। विकसित देशों के पास निवेश करने के लिए पर्याप्त पूंजी भी उपलब्ध है जबकि विकासशील देशों के पास पूंजी का अभाव है। जिस स्तर पर पर्यावरण की स्थिति पहुंच गई है वहां से कम तो नहीं हो सकता हैं परंतु अब आगे स्थिति ज़्यादा ख़राब न हो इस पर कार्य करने की आज सख़्त ज़रूरत है।

वैश्विक स्तर पर सभी देशों को आज साथ खड़ा होने की ज़रूरत हैं ताकि जलवायु परिवर्तन के दुषपरिणामों से पूरे विश्व को बचाया जा सके। कई विकसित देशों ने तो जीवाश्म ऊर्जा का उपयोग कर अपनी आर्थिक प्रगति कर ली है परंतु विकासशील देशों को तो अभी आर्थिक प्रगति करना है। कई विकसित देशों के पास तो आज जीवाश्म ऊर्जा का कम से कम उपयोग करने सम्बंधी आधुनिक तकनीकि उपलब्ध है, जिसे उन्होंने भारी राशि निवेश करने के बाद प्राप्त किया है। इस तकनीकि को विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि विकासशील देशों द्वारा इस सम्बंध में निवेश की जा रही राशि को बचाया जा सके। इस प्रकार, अब यह विकसित देशों की ज़िम्मेदारी बनती है कि विकासशील देशों का मार्गदर्शन करें कि किस प्रकार जीवाश्म ऊर्जा का कम से कम उपयोग कर आर्थिक प्रगति की जा सकती है।

जीवन है अनमोल

जीवन है बडा अनमोल,
इसका कोई नहीं है मोल।
इसको बचा कर तुम रखिए,
मास्क लगा कर तुम रखिए।।

घर छोड़कर नहीं जाओ,
कोरोना को नहीं बुलाओ।
भले ही कितनी हो मजबूरी,
दो गज की रक्खो तुम दूरी।।

कोरोना है बहुत घातक,
यह किसी को नहीं बख्शता।
चाहे वह हो राजा व रंक,
भर लेता है वह अपने अंक।।

बरतो न इसमें कभी ढिलाई,
चूकि अभी तक नहीं दवाई।
कोरोना का नहीं है उपचार,
मौतो का लगा है अंबार।।

करो अभी घर से ही काम,
घर में ही करो तुम विश्राम।
कोरोना है एक महामारी
इससे लडना है लाचारी।।

जो शहीद हुए हैं वतन पे

—विनय कुमार विनायक
जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसे वतन को रख छोड़ा है
जो अभिमान है सबके!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसे पिता से मुख मोड़ा है
जो पहचान थे उनके!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसी माता से नाता तोड़ी है
जो दिलोजान थी उनके!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसी पत्नी से विदा ले ली है
जिनसे थे जन्मों के रिश्ते!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसे पुत्र को त्याग दिया है
जो प्यारे थे प्राण से बढ़के!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसी बहन को अलविदा कही है
जिनके रक्षण के वादे थे!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसी बिटिया को बाय-बाय किया है
जिसे वे डोली में बिठाते!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसे वतन को संजोकर हमें दिया है
जो समग्र बलिदान उनके!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने ऐसे तिरंगे झंडे को सैल्यूट किया है
जैसे वे बने सिर्फ तिरंगे के!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने उस मिट्टी का कर्ज चुकता किया है
जो मिट्टी है हम सब के!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने इतना ऋण हम सबको दे डाला है
जिससे हम उऋण ना होंगे!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने बिनमांगे हमें इतना प्यार दिया है
जो अपनों से नहीं मिलते!

जो शहीद हुए हैं वतन पे
उन्होंने अपने जिन स्वजनों को छोड़ दिया है
वे स्वजन हैं हम सबके!