Home Blog Page 672

जीवन में आशा निराशा

लाओ न निराशा जीवन में,
आशा का तुम संचार करो।
निराशा कर देती जीवन नष्ट,
इसका तुम बहिष्कार करो।।

आशा ही तो एक जीवन है,
निराशा तो अंधकार लाती है।
करो साकार स्वप्न आशा के तुम,
आशा ही निराशा को भगाती है।।

बनाओ आशा को जीवन संगनी,
निराशा तो जीवन की सौतन है।
उसके पास न जाना कभी तुम,
वह तो जीवन की एक खोतन है।।

निराशा मे ही तो आशा छिपी है,
इसका जरा संधि विच्छेद करो।
मालूम चल जाएगा तुमको भी,
इसका जरा सा तुम मनन करो।।

आशा निराशा जीवन के पहलू हैं,
उनका केवल तुम आभास करो।
कभी न जीवन में निराशा लाओ,
उसका न जीवन में सत्कार करो।।

फैल रहा है कोरोना सारे जग में,
उसका न तुम कभी विस्तार करो।
मुंह पर मास्क,दो गज की दूरी,
इसका तुम सदैव ध्यान करो।।

राजगृह का राजवैद्य जीवक

—विनय कुमार विनायक
मगधराज बिम्बिसार की अभिषिक्त,
शालवती थी नगर वधू राजगृह की!
राजतंत्र की देवदासी सी एक कुरीति,
वैशाली की गणिका आम्रपाली जैसी!
किन्तु गणिका नहीं राज नर्तकी थी,
गणिका तो गण की हुआ करती थी!

मगध गणराज्य नहीं महाजनपद था,
राजगृह का राजवैद्य जीवक पुत्र था
परित्यक्त, नगर वधू शालवती और
सम्राट बिम्बिसार की अवैध संतति!
जिसे उठाके कूड़े की ढेर से पाले थे
बिम्बिसार-नन्द श्री के युवराज ने!

अगर अजातशत्रु पितृहत्यारा ने मार
बिम्बिसार को मगधराज की गद्दी
ना हथियाई होती तो अभय ही पाते
मगध साम्राज्य का वैध उत्तराधिकार!

कहते हैं मारने वाले से सदा-सदा से
श्रेष्ठ होते हैं जीवन को बचाने वाले
जीवक के जीवरक्षक अभय ने भेजा
शिक्षा दीक्षा व मानवीय संस्कारार्थ!
जीवक को जीव रक्षा का वचन देके
जीव विज्ञान आयुर्वेद ज्ञानार्जन हेतु
विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र तक्षशिला!

वैद्याचार्य आत्रेय से पाके आयुर्ज्ञान
जीवक ने किया औषधि अनुसंधान
आयु वर्धक जीवन औषधि ‘जीवक’
ऋषियों का जीवन धारक ‘ऋषिभक’!

जीवक बन गया निपुण कौमारभृत्य
जीवक शिशुरोग विशेषज्ञ,ब्रेन सर्जन
बिम्बिसार से लेकर अवंतिराज चण्ड,
भगवान बुद्ध एवं बौद्ध भिक्षु गण
उनकी चिकित्सा सेवा के लाभुक थे!

बिम्बिसार और बुद्ध का अर्श रोग
प्रद्योत की पीलिया,श्रेष्ठी का आंत्र
शल्य चिकित्सा जीवक ने की थी,
जीते जी जीवक ने चिकित्सा की
बौद्ध भिक्षु, श्रमणों का निःशुल्क!

आदर्श जीवक का चिकित्सा कार्य,
प्रमाणित किया जीवक ने प्रतिभा
विरासत नहीं जन्म,जाति,वंश की
मानव अंतर्मन में प्रतिभा उपजती!

मांगलिक कार्य आरम्भ होने का दिन है ‘‘देवोत्थान एकादशी’’

देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। दीपावली के ग्यारह दिन बाद आने वाली एकादशी को ही प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी या देव-उठनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव चार मास के लिए शयन करते हैं। इस बीच हिन्दू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य शादी, विवाह आदि नहीं होते। देव चार महीने शयन करने के बाद कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। देवोत्थान एकादशी तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन लोग तुलसी और सालिग्राम का विवाह कराते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरुआत करते हैं। हिन्दू धर्म में प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी का अपना ही महत्त्व है। इस दिन जो व्यक्ति व्रत करता है उसको दिव्य फल प्राप्त होता है।

उत्तर भारत में कुंवारी और विवाहित स्त्रियां एक परम्परा के रूप में कार्तिक मास में स्नान करती हैं। ऐसा करने से भगवान् विष्णु उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। जब कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी आती है, तब कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। पूरे विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है। विवाह के समय स्त्रियाँ मंगल गीत तथा भजन गाती है। कहा जाता है कि ऐसा करने से भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं और कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। हिन्दू धर्म के शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात जिन लोगों के कन्या नहीं होती उनकी देहरी सूनी रह जाती है। क्योंकि देहरी पर कन्या का विवाह होना अत्यधिक शुभ होता है। इसलिए लोग तुलसी को बेटी मानकर उसका विवाह सालिगराम के साथ करते हैं और अपनी देहरी का सूनापन दूर करते हैं।

प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी के दिन भीष्म पंचक व्रत भी शुरू होता है, जो कि देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर पांचवें दिन पूर्णिमा तक चलता है। इसलिए इसे इसे भीष्म पंचक कहा जाता है। कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ या पुरूष बिना आहार के रहकर यह व्रत पूरे विधि विधान से करते हैं। इस व्रत के पीछे मान्यता है कि युधिष्ठर के कहने पर भीष्म पितामह ने पाँच दिनो तक (देवोत्थान एकादशी से लेकर पांचवें दिन पूर्णिमा तक)  राज धर्म, वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। इसकी स्मृति में भगवान् श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह के नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित किया था। मान्यता है कि जो लोग इस व्रत को करते हैं वो जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

देवोत्थान एकादशी की कथा

एक समय भगवान विष्णु से लक्ष्मी जी ने कहा- हे प्रभु ! अब आप दिन-रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक को सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। अत: आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा। ‘लक्ष्मी’ जी की बात सुनकर भगवान् विष्णु  मुस्काराए और बोले- ‘देवी’! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों को और खास कर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। इसलिए, तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों को परम मंगलकारी उत्सवप्रद तथा पुण्यवर्धक होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्पादन के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूँगा।

पूजन विधि

भगवान विष्णु को चार महीने की निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के बीच ये श्लोक पढकर जगाते हैं-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते। त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥

भगवान् विष्णु को जगाने के बाद उनकी षोडशोपचारविधि से पूजा करनी चाहिए। अनेक प्रकार के फलों के साथ भगवान् विष्णु को  नैवेद्य (भोग) लगाना चाहिए। अगर संभव हो तो उपवास रखना चाहिए अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करकर उपवास करना चाहिए । इस एकादशी में रातभर जागकर हरि नाम-संकीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार भगवान् विष्णु के चार महीने कि नींद से जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। और हिन्दू धर्म में विवाहों कि शुरुआत भी इसी दिन शुभ मुहूर्त से होती है जो कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलते हैं मान्यता के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी के दिन विवाह करने वाला जोड़ा जीवनभर सुखी रहता है।

–  ब्रह्मानंद राजपूत

भारतीय संविधान के 71 वर्ष

संविधान दिवस (26 नवम्बर) पर विशेष
– श्वेता गोयल

प्रतिवर्ष 26 नवम्बर को देश में संविधान दिवस मनाया जाता है। हालांकि वैसे तो भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था लेकिन इसे स्वीकृत 26 नवम्बर 1949 को ही कर लिया गया था। डा. भीमराव अम्बेडकर के अथक प्रयासों के कारण ही भारत का संविधान ऐसे रूप में सामने आया, जिसे दुनिया के कई अन्य देशों ने भी अपनाया। वर्ष 2015 में डा. अम्बेडकर के 125वें जयंती वर्ष में पहली बार देश में 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया था और इस साल हम 71वां संविधान दिवस मना रहे हैं। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।
संविधान प्रारूप समिति की बैठकें 114 दिनों तक चली थी और संविधान के निर्माण में करीब तीन वर्ष का समय लगा था। संविधान के निर्माण कार्य पर करीब 64 लाख रुपये खर्च हुए थे और इसके निर्माण कार्य में कुल 7635 सूचनाओं पर चर्चा की गई थी। मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे लेकिन 44वें संविधान संशोधन के जरिये सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर संविधान के अनुच्छेद 300 (ए) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया, जिसके बाद भारतीय नागरिकों को छह मूल अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28), संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) तथा संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) शामिल हैं। संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 के अंतर्गत मूल अधिकारों का वर्णन है और संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि इनमें संशोधन भी हो सकता है तथा राष्ट्रीय आपात के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।
भारतीय संविधान से जुड़े रोचक तथ्यों पर नजर डालें तो हमारे संविधान की सबसे बड़ी रोचक बात यही है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारत का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाया जाना चाहिए लेकिन भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग को ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था। 1922 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मांग की कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे लेकिन अंग्रेजों द्वारा संविधान सभा के गठन की लगातार उठती मांग को ठुकराया जाता रहा। आखिरकार 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाए जाने की मांग को स्वीकार कर लिया गया। 1942 में क्रिप्स कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जो भारत का संविधान तैयार करेगी।
सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा पहली बार समवेत हुई किन्तु अलग पाकिस्तान बनाने की मांग को लेकर मुस्लिम लीग द्वारा बैठक का बहिष्कार किया गया। दो दिन बाद संविधान सभा की बैठक में डा. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया और वे संविधान बनाने का कार्य पूरा होने तक इस पद पर आसीन रहे। 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ और संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त 1947 को संविधान का मसौदा तैयार करने वाली ‘संविधान निर्मात्री समिति’ का गठन किया गया, सर्वसम्मति से जिसके अध्यक्ष बने भारतीय संविधान के जनक डा. भीमराव अम्बेडकर। संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने के लिए संविधान में पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की गई है, जिससे भारतीय संविधान का सार, उसकी अपेक्षाएं, उसका उद्देश्य, उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना के अनुसार, ‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’’ संविधान की यह प्रस्तावना ही पूरे संविधान के मुख्य उद्देश्य को प्रदर्शित करती है।

सृष्टि बनाकर हमें मनुष्य जन्म एवं सुख आदि देने से ईश्वर उपासनीय है

मनमोहन कुमार आर्य

                हम मनुष्य हैं। हमें यह मनुष्य जन्म परमात्मा ने दिया है। जन्म मृत्यु के मध्य की हमारी अवस्था जीवात्मा वा जीव कहलाती है। इस सृष्टि में हमारे जैसे  जीव अनन्त संख्या में हैं। सभी जीव अणु परिमाण युक्त अल्पज्ञ चेतन सत्तायें हैं तथा सभी एकदेशी, ससीम, अनादि, नित्य, जन्ममरण धर्मा तथा कर्म फल में आबद्ध हैं। जीव में ज्ञान प्राप्ति कर्म करने की क्षमता होती है जिसे वह जन्म प्राप्त कर क्रियान्वित करते हैं। यदि यह सृष्टि न होती और जीवात्माओं को मनुष्य आदि नाना प्रकार की योनियों में से किसी एक योनि में जन्म न मिलता तो उन्हें वर्तमान जीवन में प्राप्त सुख व दुःखों की अनुभूति न होती। जीवों के गुणों व क्षमताओं को सार्थक करने के लिए सृष्टि में उपलब्ध चेतन सत्ता ईश्वर ने अपनी अतुल्य सामथ्र्य एवं ज्ञान से, जिसे सर्वशक्तिमान तथा सर्वज्ञ कहा जाता है, इस सृष्टि वा ब्रह्माण्ड को बनाया है।

                हमारा यह ब्रह्माण्ड ईश्वर जीव से भिन्न तीसरी जड़ सत्ता प्रकृति से बना है। प्रकृति सत्व, रज तम गुणों की साम्यावस्था को कहते हैं। तीन गुणों वाली प्रकृति से ही इस सृष्टि के सभी पदार्थ सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, अग्नि, जल, वायु और आकाश आदि बने हैं। इन सब भौतिक पदार्थों को ईश्वर ने अपने अनादि नित्य ज्ञान तथा सर्वशक्तिमान आदि नाना गुणों के आधार पर बनाया है। वही एक परमात्मा इस संसार का संचालन पालन कर रहा है। उसी के नियमों से सृष्टि में रात्रि, दिन, सप्ताह, माह, वर्ष आदि होते हैं तथा जीवात्माओं को जन्म, मरण, सुख, दुःख तथा मोक्ष आदि भी प्राप्त होते हैं जिनका आधार जीवों का ज्ञान कर्म हुआ करते हैं। हमने ईश्वर व सृष्टि विषयक यह जो बातें लिखी हैं वह वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन करने पर सार रूप में प्राप्त होती हैं। इस ज्ञान से हम संसार की सभी बातों व रहस्यों को यथार्थरूप में जान सकते हैं और निभ्र्रान्त ज्ञान को प्राप्त हो सकते हैं। वेदों का यही ज्ञान सृष्टि के आरम्भ से वर्तमान समय तक लगभग 1 अरब 96 करोड़ वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी उपलब्ध है जिसे कुछ अज्ञानी तथा अविद्या से युक्त मनुष्य स्वीकार नहीं करते। सत्य को जानना, उसे प्राप्त होना तथा सत्य को ही मानना और प्रचार करना सभी विज्ञ मनुष्यों का कर्तव्य होता है। इसी से संसार के सभी लोग भ्रान्ति रहित होकर सुखों को प्राप्त होते हैं। यदि ऐसा न किया जाये तो संसार में सुख कम व दुःखों की वृद्धि होती है। अतः सबको सत्य का अनुसंधान करते हुए वेद व वैदिक साहित्य का अध्ययन करना चाहिये। सृष्टि के आरम्भ से ही भारत सहित पूरे विश्व में वेदाध्ययन एवं वेदाचरण की परम्परा रही है।

                वेद संसार के साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन हैं। इसका कारण सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों को परमात्मा से वेदों का ज्ञान प्राप्त होना है। ऋषि दयानन्द ने इस तथ्य को अपने ग्रन्थ में तर्क एवं युक्ति के साथ समझाया है। वेदों में सृष्टि रचना विषयक जो तथ्य बताये हैं उस पर भी एक दृष्टि डाल लेते हैं। ऋग्वेद मन्त्र 10.129.7 में कहा गया है कि हे मनुष्य! जिस से यह विविध सृष्टि पकाशित हुई है, जो धारण और प्रलयकर्ता है, जो इस जगत् का स्वामी है, जिस व्यापक में यह सब जगत् उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय को प्राप्त होता है, सो परमात्मा है। उस को तू जान और दूसरे को सृष्टिकर्ता मत मान। ऋग्वेद के एक अन्य मन्त्र में बताया गया है कि यह सब जगत् सृष्टि से पहले अन्धकार से आवृत, रात्रिरूप में जानने के अयोग्य, आकाशरूप सब जगत् तथा तुच्छ अर्थात् अनन्त परमेश्वर के सम्मुख एकदेशी आच्छादित था। पश्चात् परमेश्वर ने अपने सामथ्र्य से कारणरूप से कार्यरूप कर दिया। ऋग्वेद मन्त्र 10.129.1 में परमात्मा उपदेश करते हैं हे मनुष्यों! जो सब सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का आधार और जो यह जगत् हुआ है और आगे अनन्त काल तक होगा उस का एक अद्वितीय पति परमात्मा इस जगत् की उत्पत्ति के पूर्व विद्यमान था और जिस ने पृथिवी से लेके सूर्यपर्यन्त जगत् को उत्पन्न किया है, उस परमात्म देव की प्रेम से भक्ति किया करें।

                यजुर्वेद के मन्त्र 31.2 में परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों! जो सब में पूर्ण पुरुष और जो नाश रहित कारण और जीव का स्वामी जो पृथिव्यादि जड़ और जीव से अतिरिक्त है, वही पुरुष इस सब भूत भविष्यत् और वर्तमानस्थ जगत् का बनाने वाला है। इस प्रकार वेदों में अनेक प्रकार से सृष्टि की उत्पत्ति के विषय को प्रस्तुत कर उसे ईश्वर से उत्पन्न संचालित बताया है। यह विवरण स्वतः प्रमाण कोटि का विवरण है। ऐसा वेदों के मर्मज्ञ एवं महान ऋषि दयानन्द सरस्वती ने अपने विशद ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर कहा है। सृष्टि के आरम्भ से ही वेदों को स्वतः प्रमाण मानने की परम्परा रही है जो सर्वथा उचित है। सृष्टि बनाने वाले ईश्वर का सत्यस्वरूप कैसा है, इस पर ऋषि दयानन्द ने प्रकाश डाला है। वह लिखते हैं कि ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। इस ईश्वर से ही यह सृष्टि जिसमें प्राणी जड़ चेतन समस्त जगत सम्मिलित है, उत्पन्न हुआ है।

                हमारा यह समस्त जगत संसार परमात्मा ने हम जीवात्माओं के भोग अर्थात् सुखदुःख अपवर्ग अर्थात् मोक्षानन्द की प्राप्ति के लिये बनाया है। हमें सुख दुःख अपने कर्मों के अनुसार मिलते हैं। दुःख मिलने का कारण हमें अपने कर्मों, व्यवहार आचरण में सुधार करना होता है। हम क्या करें, क्या करें इसका ज्ञान हमें वेद, मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश आदि वैदिक ग्रन्थों से होता है। यदि हम वेदों की सभी शिक्षाओं को धारण कर आचरण में ले आयें तो हम श्रेष्ठ सुखों से युक्त जीवन व्यतीत कर सकते हैं। ऐसा ही हमारे पूर्वज उच्च कोटि ज्ञानी विद्वान योगी जन किया करते थे। वेदों के अनुसार आचरण करने से हमारा यह जीवन सुखों से युक्त होता है। इसके साथ ही हमें परजन्मों में श्रेष्ठ योनि व उत्तम परिवेश में जन्म मिलता है जिससे हम सुखी व कल्याण को प्राप्त होते हैं। वेदों में ईश्वर के सत्यस्वरूप सहित उसके गुण, कर्म व स्वभाव का विस्तार से वर्णन है। वेदाध्ययन से ईश्वर हमारी अपेक्षा के अनुरूप यथार्थ रूप में जान लिया जाता है। परमात्मा के जीवों पर असंख्य उपकार हैं। हमारा जन्म उसी परमात्मा से हमें मिलता है। वह अनादि काल से हमारा पिता, माता व मित्र है और इन संबंधों के अनुरूप हमें सुख प्राप्ति करा रहा है। हमें उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हुए उसके गुणों का ध्यान कर स्तुति करनी होती है। हमें जो स्वास्थ्य, आरोग्यता, धन, ऐश्वर्य, सुख, कल्याण, पुत्र, पौत्र आदि आवश्यक होते हैं उसे हम ईश्वर से प्रार्थना कर मांगते हैं जिसे ईश्वर पूरा करते हैं। इस क्रिया का नाम ही ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना है। ऋषि दयानन्द ने ईश्वर की उपासना की विधि की पुस्तक लिखी है जिसे ‘सन्ध्या’ कहा जाता है। सभी मनुष्यों का परम धर्म व कर्तव्य है कि वह प्रतिदिन प्रातः व सायं ईश्वर के गुणों, उपकारों तथा सुख प्रदान करने के उसके स्वभाव का ध्यान कर उसका धन्यवाद करें। ऐसा करने से अहंकार का नाश होकर जीवन में सद्गुणों सहित ज्ञान वा विद्या की प्राप्ति होती है। ऐसा करके ही हम ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह कर सकते हैं। जो मनुष्य अपने इस कर्तव्य का पालन नहीं करते वह कृतघ्न व महामूर्ख होते हैं, ऐसा हमारे ऋषि कहते हैं।

                ईश्वर ने हम मनुष्यों वा जीवात्माओं के लिये ही इस सृष्टि को बनाया है। वही इसका पालन कर रहे हैं। हमें उसकी उपासना कर अपने कर्तव्य धर्म का पालन करना चाहिये। इसी में हमारा कल्याण व आत्मा की उन्नति निहित है।

हम श्रेष्ठ वैदिक धर्म एवं संस्कृति के अनुयायी होने से भाग्यशाली हैं

मनमोहन कुमार आर्य

                हमारा जन्म भारत में हुआ है। भारत ही वह देश है जो धर्म एवं संस्कृति के सृजन का केन्द्र वा उत्पत्ति स्थान है। सृष्टि के आरम्भ में वेदों का आविर्भाव इसी प्राचीन देश आर्यावर्त के तिब्बत में परमात्मा से हुआ था। समस्त वेद ही धर्म का मूल एवं आधार है। वेद की भाषा वैदिक संस्कृत है जो संसार की सभी भाषाओं में सर्वोत्कृष्ट है। इसी भाषा में वेद की शिक्षायें सिद्धान्त भी सर्वथा सत्य हैं। वैदिक शिक्षायें अज्ञान अविद्या से रहित हैं जिससे मनुष्य आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति की दृष्टि से शिखर को प्राप्त होता है। वैदिक धर्माचरण से मनुष्य मोक्ष प्राप्ति के द्वार पर पहुंचते उसे प्राप्त करते हैं। अनेक संगठनों व मत-मतान्तरों को यह भी ज्ञात नहीं है कि ईश्वर अनादि व नित्य तथा अजर व अमर सत्ता है। उसी परमात्मा से यह सृष्टि बनी है। सृष्टि की उत्पत्ति और मनुष्य जन्म मनुष्य को भोग व अपवर्ग अर्थात् मोक्ष प्राप्त कराने के लिए परमात्मा द्वारा उत्पन्न किये गये हैं। किन कर्मों से आत्मा की उन्नति होकर उन्नति व किन कर्मों से बन्धन होता है, इसका भी ठीक ठीक ज्ञान अनेक मतों व उनके आचार्यों को नहीं हैं। मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है? उस उद्देश्य को कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इसका युक्ति संगत स्वरूप वेद व वैदिक धर्म में ही उपलब्ध होता है। पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के बाद संसार में विद्या का प्रचार व प्रसार अवरुद्ध हो जाने के कारण लोग इन वैदिक शिक्षाओं व सिद्धान्तों को भूल गये थे और अविद्या में फंसकर नाना प्रकार से दुःख उठा रहे थे। ऐसे समय में ऋषि दयानन्द का आगमन हुआ जिन्होंने सब दुःखों व समस्याओं का कारण अविद्या को जानकर उसे दूर करने के उपाय खोजे और वेद प्रचार द्वारा मनुष्यों को वेदामृत का पान कराकर वेदाध्ययन व आचरण को ही सब समस्याओं और दुःखों को दूर करने का उपाय बताया। ऋषि दयानन्द ने मुख्यतः वेद प्रचार का कार्य किया जिससे मृत प्रायः आर्य हिन्दू जाति में नया जीवन आया और आज यह जाति धर्म व संस्कृति की दृष्टि से विश्व की सबसे उन्नत जाति जानी जाती है।

                हमारा धर्म संस्कृति क्या है? इसका उत्तर है कि हमारा धर्म एवं संस्कृति वेदों से उत्पन्न उस पर आधारित वैदिक धर्म एवं संस्कृति है। वेद सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर की प्रेरणा से ऋषियों के हृदय में उत्पन्न हुए थे। सभी चार वेद ज्ञान विज्ञान के ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों में मनुष्य जीवन को उन्नत उत्कृष्ट बनाने के सभी उपाय बतायें गये हैं। मनुष्य जीवन की उन्नति वेदाध्ययन कर ज्ञान प्राप्ति से होती है। सद्ज्ञान की प्राप्ति से आत्मा और शारीरिक उन्नति सहित सामाजिक उन्नति भी होती है। वेदाध्ययन से ईश्वर के सत्यस्वरूप का ज्ञान होता है। सत्यार्थप्रकाश के अध्ययन से वेदों का महत्व व उसका स्वरूप समझ में आता है। इसे पढ़कर हम वेद के सभी सिद्धान्तों व मान्यताओं को जान सकते हैं। ईश्वर तथा आत्मा सहित प्रकृति का सत्यस्वरूप वेद व ऋषिप्रोक्त वैदिक साहित्य से ही जाना जाता है। ईश्वर तथा आत्मा अनादि, नित्य, अविनाशी तथा चेतन पदार्थ हैं। प्रकृति अनादि व नित्य है तथा जड़ सत्ता है। ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सृष्टिकर्ता तथा जीवों के पाप-पुण्य कर्मों का फल प्रदाता है। मनुष्य व सभी प्राणियों का आत्मा एकदेशी, ससीम, कर्मों के फलों का भोक्ता होने सहित वेदज्ञान को प्राप्त होने वाला तथा सदाचार से भक्ति व उपासना कर ईश्वर को प्राप्त होकर आनन्दमय मोक्ष को प्राप्त होता है। मनुष्य के लिये प्राप्तव्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष रूपी पदार्थ ही हैं। इनके विपरीत जीवनयापन करने से मनुष्य का जीवन आयु के उत्तरकाल तथा परजन्म में अनेकानेक दुःखों को प्राप्त होता है जबकि वैदिक धर्म का पालन करने से मनुष्य का जन्म व युवावस्था का समय, उत्तरकाल की आयु के जीवन की अवधि तथा परजन्म में वह सुख एवं आनन्द से युक्त होता है। वैदिक धर्म के सिद्धान्तों को ऋषि दयानन्द वेद, दर्शन एवं उपनिषद आदि सभी शास्त्रों के विचारों द्वारा सिद्ध करते हैं। हम वेद तथा दर्शन आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर भी ऋषि दयानन्द के सिद्धान्तों का प्रत्यक्ष कर उनकी सत्यता का अनुभव कर सकते हैं। धर्माचार सहित स्वाध्याय, ईश्वरोपासना, यज्ञीय जीवन, परोपकार एवं दान आदि द्वारा मनुष्य का जीवन सन्मार्ग पर चलते हुए ईश्वर की कृपा से उन्नति व सुखों को प्राप्त होता है। ईश्वर से ही धर्म परायण आत्माओं को सुख, शान्ति व सन्तोष प्राप्त होता है। वेदानुयायी मनुष्य अधिक धन व ऐश्वर्य की कामना न कर ईश्वर को जानने व उसका प्रत्यक्ष करने की ही अभिलाषा करते हैं तथा इसी को अपना सबसे मूल्यवान धन व सम्पत्ति मानते हैं।

                सत्य सनातन वैदिक धर्म का अध्ययन कर हम संसार में विद्यमान चेतन अचेतन पदार्थों को भली प्रकार से जानने में समर्थ होते हैं। हमें मनुष्यों के सत्कर्तव्यों का भी बोध होता है। हम अहिंसा तथा सत्य आचरण का महत्व समझ सकते हैं। वेदों के अनुयायी आंखे बन्द कर धर्म विषयक बातों को स्वीकार नहीं करते। वह अविद्यायुक्त मत पुस्तकों पर विश्वास कर धर्म विषयक सभी मान्यताओं के सत्यासत्य की परीक्षा कर ही उन्हें स्वीकार करते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धान्त चिन्तन एवं विचार करने पर सत्य सिद्ध होता है। इस कारण हम इस सिद्धान्त पर विश्वास करते व इसका प्रचार करते हैं। अग्निहोत्र यज्ञ हम इसलिये करते हैं कि इससे प्राण-वायु वा हवा युद्ध होती है। वायु की दुर्गन्ध का अग्निहोत्र से नाश होता है। रोग दूर होते हैं तथा मनुष्य स्वस्थ रहता है। यज्ञ करने से शारीरिक क्षमतायें बढ़ती हैं और हमें शुभ व पुण्य कर्मों को करने की प्रेरणा मिलती है। यज्ञ से आत्मा की उन्नति भी होती है। ज्ञान व विज्ञान की उन्नति में भी यज्ञ सहायक होता है। इसका कारण देवपूजा, संगतिकरण एवं शुभ गुणों का दूसरों को दान करना व दूसरों से दान लेना होता है। इसी विधि से देश व समाज की उन्नति होती है। समाज व देश की उन्नति सहित मनुष्य जीवन की उन्नति के लिये देव अर्थात् विद्वानों की पूजा, उनका आदर सत्कार तथा उनके ज्ञान व अनुभवों से लाभ उठाना आवश्यक होता है। यह कार्य यज्ञ से होता है। इसी प्रकार विद्वानों के साथ संगति होने से भी लाभ होता है। सभी दानों में विद्या का दान श्रेष्ठ होता है। सुपात्रों को अर्थ दान भी अनेक प्रकार से लाभ देता है। अतः सभी को यज्ञ को वायु शुद्धि, आत्म शुद्धि सहित इससे अन्य सम्भावित लाभों को भी प्राप्त करना चाहिये।

                यज्ञ के अतिरिक्त हम वेदों ऋषियों के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, दर्शन एवं उपनिषदों का अध्ययन कर ईश्वर, आत्मा तथा प्रकृति से उत्पन्न जड़ पदार्थों के सत्यस्वरूप वा ज्ञान को भी प्राप्त होते हैं। ईश्वर आत्मा का ज्ञान ही मनुष्य के लिए जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। हमें लगता है कि मात्र सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का अध्ययन करने से ही ईश्वर, आत्मा, प्रकृति सृष्टि तथा मनुष्य के धर्म वा कर्तव्याकर्तव्यों का जो ज्ञान प्राप्त होता है वह मतमतान्तरों के ग्रन्थों से प्राप्त नहीं होता। सत्यार्थप्रकाश सत्य के ग्रहण तथा असत्य के त्याग की प्रेरणा करता है। सत्यार्थप्रकाश जैसा संसार में मनुष्य रचित अन्य कोई ग्रन्थ नहीं है। यह भी बता दें कि संसार में केवल वेद ही ईश्वर से उत्पन्न व प्रेरित ग्रन्थ हैं तथा अन्य सभी ग्रन्थ व साहित्य मनुष्यों द्वारा रचित है। ईश्वर द्वारा रचित होने से वेद स्वतः प्रमाण ग्रन्थों की कोटि में हैं और अन्य सभी ग्रन्थ परतः प्रमाण कोटि में आते हैं। जो बातें किसी भी ग्रन्थ में वेदों की मान्यताओं व आशयों के विपरीत हैं वह अप्रमाण होती हैं। यह सिद्धान्त भी हमें ऋषि दयानन्द जी ने ही उपलब्ध कराया है। हमारा सौभाग्य है कि हम इस सिद्धान्त को जानते हैं और इसका पालन भी करते हैं। इस कारण भी हम संसार के भाग्यशाली मनुष्य हैं। इससे हम अज्ञान व अन्धविश्वासों को मानने से बचते हैं। वेद व वैदिक साहित्य अज्ञान, अविद्या, अन्धविश्वासों, पाखण्डों, कुरीतियों तथा सामाजिक असमानता विषयक मान्यताओं से सर्वथा रहित हैं। इसका लाभ भी हमें प्राप्त होता है और हम भी सभी दोषों व अवगुणों से रहित होते हैं। चारों वेद मनुष्य जीवन की ज्ञान विषयक सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। यह हमारे जीवन को सुधारते व संवारते हैं तथा इससे हमारा परजन्म भी उन्नत व श्रेष्ठ होता है। वैदिक धर्म का पालन करने से हम आनन्दमय मोक्ष व जन्म व मरण के दुःख देने वाले बन्धनों से छूटते हैं। यह मनुष्य जीवन के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जीवन में धन व सम्पत्ति अर्जित कर सुख भोगने की इच्छा करने से उत्तम ईश्वर व आत्मा को जानकर ईश्वर की उपासना करना, ईश्वर के उपकारों को जानना व मानना तथा सत्कर्मों को करके पुण्य अर्जित करके दूसरों की उन्नति में सहायक होना अधिक महत्वपूर्ण है। वैदिक धर्म का पालन करने से मनुष्य जीवन की सभी आवश्यकतायें पूर्ण होती हैं। अतः मनुष्य जीवन में वेद धर्म का पालन ही उचित व आवश्यक है। हम इस वेद मत को जानते, मानते व पालन करते हैं अतः हम अन्य बन्धुओं से अधिक सौभाग्यशाली हैं। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह सभी मनुष्यों की आत्मा में सत्य को अपनाने तथा असत्य को छोड़ने की प्रेरणा करें जिससे सभी मनुष्य दुःखों से छूट कर विद्या एवं सुखों को प्राप्त हो सकें।

भगतसिंह : तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें या न रहें!

—विनय कुमार विनायक
विद्यावती व किशन सिंह के बेटे भगत ये कह गए,
तेरा वैभव अमर रहे मां,हम दिन चार रहें या न रहें!

भगत, राजगुरु, सुखदेव ने मां, तेरी शान में प्राण देके,
गुलाम वतन में जन्म ले करके, वो गुमनाम ना रहे!

सत्ताईस सितंबर उन्नीस सौ सात में भगतसिंह आए,
अमर कथा इस वीर की, तेईस वर्ष में शहीद हो गए!

बंगा, लायलपुर, पाकिस्तानी पंजाब की पुण्यभूमि में,
एक क्रांतिकारी सिख घर में भगतसिंह अवतार लिए!

सरदार अर्जुनसिंह सौंधूँ के पुत्र क्रांतिकारी अजीतसिंह,
स्वर्णसिंह, किशनसिंह पुत्र जन्म से कैद से रिहा हुए!

दादी ने खुश होके नाम दिया पौत्र को ‘भागां वाला’,
सच में भगतसिंह थे भारत का भाग्य जगाने वाला!

भगतसिंह का परिवार सिख आर्यसमाजी संस्कारी थे,
वैदिकयज्ञ से नामकरण हुआ भगत उपनयनधारी थे!

डायर के जलियांवालाबाग के भयानक नर संहार से,
उन्नीस सौ उन्नीस में बारह वर्षीय भगत क्षुब्ध हुए!

पढ़ाई छोड़ गांधीजी की असहयोग अहिंसा राह अपनाई,
पर बाईस के चौरीचौरा कांड से गांधी ने बदली नीति!

गांधीजी किए थे एकतरफा असहयोग आंदोलन वापसी,
भगतसिंह थे सर्वहारा के पक्षधर, कृषकों के हिमायती!

खाई कसम भगतसिंह ने गेहूं खेत में बंदूक उगाने की,
जान हतके अंग्रेज भगाने, शहीदे आजम बन जाने की!

बिस्मिल,सान्याल औ’ योगेश के उनतीस सौ चौबीस में
गठित हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ में भगत जा मिले!

असलाह खरीदने और क्रांतिकारी गतिविधि अंजाम हेतु,
नौ अगस्त पच्चीस में काकोरी में रेलवे की लूटी संपत्ति!

भगतसिंह को छोड़ बांकी काकोरी के आरोपी पकड़े गए,
लाहिड़ी, बिस्मिल,असफाक, रोशन को सजा हुई फांसी!

भगतसिंह मामूली नहीं,थे संत,शायर, साहित्यकार, कवि,
काकोरी काण्ड के सभी वीरों की ‘कीरत’ में लिखे कृति!

सत्तरह दिसंबर को लाहिड़ी गोंडा में, उन्नीस दिसंबर को
बिस्मिल गोरखपुर,असफाक फैजाबाद,रोशनसिंह प्रयाग में,

हंसते-हंसते फांसी में झूल गए, बिस्मिल ने वंदेमातरम
कहके शेर पढ़ा;’मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे!

बांकी न मैं रहूं,न मेरी आरजू रहे,जबतक की तन में
जान रगों में लहू रहे,तेरीहीं जिक्रेयार,तेरी जुस्तजू रहे!’

फिर फांसी के तख्ते पे शेरेहिन्द ने आखिरी शेर पढ़ा;
‘अब न अहले वलवले हैं और न अरमानों की है भीड़!

एक मिट जाने की हसरत अब दिले बिस्मिल में है!’
अब सपूतएहिंद असफाक का अंतिम अल्फाज़ सुनिए

‘तंग आकर हम उनके जुल्म से,बेदाद से चल दिए
सूए अदम जिन्दाने फैजाबाद से—फैजाबाद से——’

अक्तूबर उन्नीस सौ अठाईस में साइमन कमीशन के
विरोध में लाला लाजपत राय शहीद हुए लाठीचार्ज से!

भगतसिंह राजगुरु सुखदेव आजाद ने दोषी सैंडर्स की,
सत्तरह दिसंबर अठाईस ई. में गोली मार हत्याकर दी!

फिर आजाद के नेतृत्व में उन्नीस सौ उनतीस ई. में,
भगतसिंह औ’ बटुकेश्वर दत्त ने बम फोड़ा एसेंब्ली में!

किन्तु भाग जाना बुजदिली समझके खुद ही खुद को
दोनों भारत के लाड़ले ने बलिदान में जां हाजिर किए!

किन्तु गोरों की सरकार बुजदिल और कायर निकली,
तय समय से पहले तेईस मार्च इकतीस में फांसी दी!

एकसाथ शहीद हुए तीनों राजगुरु, भगतसिंह,सुखदेवजी,
शहीदों की लाश को बोटी-बोटी कर अंग्रेजों ने जला दी!

मुट्ठी भर अंग्रेज किन्तु हर शाख पे देशी उल्लू बैठे थे,
जेल,जेलर, जल्लाद, जमींदार, सबके सब अपने देश के!

भगतसिंह का संदेश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद,देशी शोषक
कम नहीं विदेशियों से,इंकलाब जिंदाबाद पैगाम उनके!

मानवता व शिक्षा के प्रति समर्पित महान व्यक्तित्व के स्वामी थे डा० क्लब-ए-सादिक़

   निर्मल रानी          

 प्रायः लगभग सभी धर्मों,जातियों व समुदायों में अनेकानेक ऐसे धर्म गुरुओं का वर्चस्व देखा जा सकता है जो अपने ही समुदाय विशेष के मध्य अपने प्रवचनों ,सामुदायिक व धार्मिक कार्यकलापों के द्वारा लोकप्रियता हासिल करते रहे हैं।आमतौर पर धर्म गुरुओं की लोकप्रियता का पैमाना इस बात पर भी निर्धारित होता है कि कोई धर्मगुरु अपने समाज के लोगों को ख़ुश करने या उन्हें ऐसा सन्देश देने में कितना सफल होता है जोकि समाज विशेष सुनना चाहता है। मिसाल के तौर पर वर्तमान राजनैतिक व सामाजिक संदर्भ में ही यदि देखें तो दुर्भाग्यवश यदि कोई अतिवादी हिंदूवादी, इस्लाम या मुस्लिम विरोधी बातें करता है या कोई कट्टरपंथी मुस्लिम वक्ता ग़ैर मुस्लिमों के विरुद्ध अपना राग अलापता है अथवा शिया-सुन्नी समाज के धर्मगुरु एक दूसरे समुदाय के विरुद्ध तक़रीरें करते हैं अथवा उनकी मान्यताओं या विश्वास के विरुद्ध अपनी भड़ास निकलते हैं,ऐसे लोग अपने अपने समाज में कुछ ज़्यादा ही पसंद किये जाते हैं। गोया कहा जा सकता है कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में अतिवादी सोच-विचार  रखने वाले नेताओं या तथा कथित धर्म गुरुओं का ही बोलबाला है।
                                            परन्तु यदि इसी संकटकालीन व अंधकारमय वातावरण में कोई ऐसा धर्मगुरु नज़र आ जाए जो स्वयं को हिन्दू-मुस्लिम-शिया-सुन्नी-सिख-या ईसाई कहलवाने के बजाए केवल एक अच्छे इंसान के रूप में अपनी पहचान को प्राथमिकता दे,तो निश्चित रूप से उस व्यक्तित्व का नाम था डाक्टर क्लब-ए-सादिक़ ही हो सकता है । 81 वर्षीय डाक्टर क्लब-ए-सादिक़ साहब के निधन से देश ने सर्वधर्म संभाव तथा राष्ट्रीय एकता का अलंबरदार खो दिया है। यह एक ऐसा नुक़सान है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। बेशक डाक्टर क्लब-ए-सादिक़ साहब का जन्म उत्तर प्रदेश में जायस से संबंध रखने वाले एक उच्च कोटि के शिया घराने में हुआ था। परन्तु स्वयं डॉक्टरेट की डिग्री धारण करने वाले डॉ सादिक़ साहब ने अपनी युवा अवस्था में ही धर्म व समाज दोनों ही तरफ़ से यह ज्ञान हासिल कर लिया था कि मानवता,सर्वधर्म सद्भाव तथा शिक्षा से बढ़कर समाज व संसार में कुछ भी नहीं। धार्मिक व जातीय विवादों को तो वे हमेशा से ही निरर्थक विवाद मानते रहे।
                                             पूरा देश जानता है कि लखनऊ, शिया-सुन्नी विवाद का एक ऐसा केंद्र रहा है जहाँ प्रायः दोनों समुदायों में ख़ूनी खेल खेले जाते रहे हैं। दोनों पक्षों के सैकड़ों लोग इसी फ़साद की भेंट चढ़ चुके और सैकड़ों घर व दुकानें इन्हीं दंगों में आग के हवाले हो चुकीं। परन्तु इसी शिया सुन्नी तनाव वाले शहर में शिया-सुन्नी की संयुक्त नमाज़ का सिलसिला शुरू करवाने जैसा असंभव कार्य कर दिखाने वाले शख़्स डाक्टर क्लब-ए-सादिक़ साहब ही थे। वे केवल शिया सुन्नी एकता के ही नहीं बल्कि सभी धर्मों में परस्पर एकता के बहुत बड़े पक्षधर थे। लखनऊ में डाक्टर साहब कभी किसी हिन्दू समुदाय के भंडारों में शरीक होते,लंगर खाते व अपने हाथों से लंगर बांटते देखे जाते तो कभी किसी गुरद्वारे की अरदास व शब्द कीर्तन में हाज़िर होते नज़र आते। कभी किसी चर्च में हाज़िरी देते तो कभी किसी हिन्दू या जैन मंदिर के कार्यक्रमों में पूरी श्रद्धा व सम्मान के साथ शरीक होते।
                                              डाक्टर क्लब-ए-सादिक़ साहब के जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य यही था कि समाज का हर व्यक्ति शिक्षित बने। विशेषकर ग़रीब बच्चों व कन्याओं की शिक्षा पर वे अधिक ज़ोर देते थे। लखनऊ में इनके संरक्षण में स्थापित व संचालित हो रहे यूनिटी कॉलेज व एरा मेडिकल कॉलेज स्व डाक्टर साहब के सपनों को साकार करने वाले संस्थान हैं।वे अपने लेक्चर्स में हमेशा सर्वसमाज को जोड़ने व उनके उनके परस्पर हितों की बात करते थे। यू ट्यूब पर उनके अनेक ऐसे प्रवचन सुने जा सकते हैं जिसमें वे बेलाग लपेट के अपनी बातें कह रहे हैं। वे इस बात को भी शिद्दत से स्वीकार करते थे कि अज्ञानी व स्वार्थी पंडितों व मौलवियों ने ही केवल अपने स्वार्थ वश धर्म को कलंकित करने का कार्य किया है। वे समाज को ऐसे स्वार्थी व अर्धज्ञानी तत्वों से सचेत रहने की हिदायत देते रहते थे। उनका मानना था कि केवल शिक्षा ही किसी भी मनुष्य के जीवन को सफल व आत्मनिर्भर बना सकती है। मानवता को धार्मिक कारगुज़ारियों से भी बड़ा बताने वाला उनका एक उद्धरण बहुत ही मशहूर है। इसमें उन्होंने बताया कि यदि कोई मुसलमान व्यक्ति अपने घर से नहा धोकर, पवित्र होकर हज के लिए जा रहा है और रास्ते  कोई व्यक्ति नदी में डूब रहा है और डूबते समय वह व्यक्ति हे राम हे राम भी कह रहा है,इससे यह तो स्पष्ट है कि डूब रहा व्यक्ति हिन्दू है। और उसके डूबने का दृश्य देखने वाला यानी हज पर जाने वाला व्यक्ति मुसलमान। स्व डाक्टर साहब के अनुसार,ऐसे में इस्लाम धर्म का भी यही तक़ाज़ा है कि उस मुसलमान व्यक्ति का कर्तव्य व उसका धर्म यही है कि हज को छोड़ कर पहले डूबते व्यक्ति की जान बचाई जाए भले ही डूबने वाला व्यक्ति हिन्दू ही क्यों न हो और भले ही बचाने वाले मुसलमान व्यक्ति का हज छूट ही क्यों न जाए। इस प्रकार के उद्धरण प्रस्तुत कर वे हमेशा समाज से धर्म आधारित नफ़रत दूर करने व धार्मिक सद्भाव पैदा करने तथा मानवता को सर्वोपरि बताने की कोशिशें करते थे।                                             सभी धर्मों को सामान रूप से सम्मान देना,सब में समान रूप से शिक्षा की अलख जगाना,ग़रीबों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना,विवादित विषयों व सन्दर्भों से किनारा रखना उनकी विशेषताएं थीं। शिया समाज के मध्य पढ़ी जाने वाली उनकी मजलिसें भी ज्ञान वर्धक,तार्किक व वैज्ञानिक विचार प्रस्तुत करने तथा समाज के सभी वर्गों के लिए सुनने व समझने वाली होती थीं। उनके लेक्चर्स पूरी दुनिया में पसंद किये जाते थे। उन्होंने दर्जनों देशों की यात्राएं कीं तथा हर जगह एकता व सद्भाव का सन्देश दिया। शिया सुन्नी के विषय में वे कहते थे कि शिया सुन्नी आपस में भाई नहीं बल्कि एक दूसरे की ‘जान’ हैं। ऐसे शब्दों के प्रयोग से वे समाज में सद्भाव पैदा करने व नफ़रत दूर करने की कोशिश करते थे। हिन्दू समाज में भी संत मुरारी बापू,आचार्य प्रमोद कृष्णन व स्वामी नारंग जैसे कई धर्मगुरु हैं जो निरंतर समाज को जोड़ने के प्रयास में लगे रहते हैं। परन्तु महान धर्मगुरु डा० क्लब-ए-सादिक़ के साकेत वास के बाद निश्चित रूप से इस्लाम धर्म में भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में ऐसे महान शिक्षावादी,शिक्षाविद,मानवतावादी,राष्ट्रीय एकता तथा सर्वधर्म संभाव के ध्वजावाहक की कमी हमेशा महसूस की जाएगी।

साजिश है ‘लव जेहाद’ को प्यार का नाम देना

                           संजय सक्सेना
      जो लोग गोलमोल शब्दों में साजिशन ‘लव जेहाद’ के खिलाफ योगी सरकार द्वारा लाए गए ‘उत्तर प्रदेश विघि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020’ कानून का विरोध करते हुए यह कह रहे हैं कि प्यार का कोई धर्म-महजब नहीं होता है, वह सिर्फ और सिर्फ समाज की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। लव जेहाद को प्यार जैसे पवित्र शब्द के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। भला कोई अपना धर्म-नाम छिपाकर किसी से कैसे सच्चा प्यार कर सकता है। बात यहींे तक सीमित नहीं है। यह भी समझ से परे है कि ऐसे कथित प्यार में हमेशा लड़की हिन्दू और लड़का मुसलमान ही क्यों होता है और यदि कहीं किसी एक-दो मामलों में लड़की मुस्लिम और लड़का हिन्दू होता है तो वहां खून-खराबे तक की नौबत जा जाती है। मुस्लिम लड़कियों से प्यार करने वाले कई हिन्दू लड़कांे को इसकी कीमत जान तक देकर चुकानी पड़ी है। इसी के चलते समाज में वैमस्य बढ़ रहा था।
       आसान शब्दों में कहें तो ‘लव जिहाद’ मुस्लिम लड़कों द्वारा गैर-मुस्लिम लड़कियों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित कराने के लिए प्रेम का ढोंग रचना है। देश में अक्सर लव जिहाद के किस्से सुनने को मिल जाते हैं, लेकिन इसकी ओर सबका ध्यान तब गया जब सुप्रीम कोर्ट ने लव जिहाद को लेकर टिप्पणी की, तभी ये शब्द चर्चा और बहस का ज्वलंत मुद्दा बन गया। लव जिहाद दो शब्दों से मिलकर बना है। अंग्रेजी भाषा का शब्द लव यानि प्यार, मोहब्बत या इश्क और अरबी भाषा का शब्द ‘जिहाद’। जिसका मतलब होता है किसी मकसद को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देना। जब एक धर्म विशेष को मानने वाले दूसरे धर्म की लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उस लड़की का धर्म परिवर्तन करवा देते हैं तो इस पूरी प्रक्रिया को ‘लव जिहाद’ का नाम दिया जाता है।
     इस मुद्दे ने तूल तब पकड़ा जब केरल हाईकोर्ट ने 25 मई को हिंदू महिला अखिला अशोकन की शादी को रद्द कर दिया था। निकाह से पहले अखिला ने धर्म परिवर्तन करके अपना नाम हादिया रख लिया था, जिसके खिलाफ अखिला उर्फ हादिया के माता-पिता ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। आरोप लगाया गया कि उनकी बेटी को आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में फिदायीन बनाने के लिए लव जिहाद का सहारा लिया गया है। जिसके बाद केरल हाईकोर्ट ने अखिला उर्फ हादिया और शफीन के निकाह को रद्द कर दिया था। उसके बाद अखिला उर्फ हादिया के पति शफीन ने केरल हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसी मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की एनआईए जांच के आदेश दिए थे।
       बहरहाल, योगी सरकार जो कानून लाई हैं उसकी आवश्यकता काफी समय से महसूस की जा रही थी,लेकिन हिन्दुओं के आपस में बंटे होने और एकजुट मुस्लिम वोट बैंक की खातिर गैर भाजपाई सरकारों ने कभी इसके लिए कोशिश नहीं की। इसी लिए जो ‘ताकतें-शक्तियां’ मोदी सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन एक्ट का विरोध कर रही थीं,वह ही आज भी हो-हल्ला मचा रही हैं। इसमें अपने आप को आधुनिक और उदारवादी विचारधारा का शायर बताने वाले मुनव्वर राणा से लेकर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी तक तमाम लोग शामिल हैं। यहां तक की इस्लाम को जानने वालें भी, जिनको पता है कि निकाह के लिए किसी गैर मुस्लिम युवती को मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए मजबूर करना गैर इस्लामी है। वह भी चुपी साधे बैठे हैं।
        शायर मुनव्वर राणा जो कांगे्रस के काफी करीबी माने जाते हैं, लव जेहाद के खिलाफ योगी सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण कानून की हिमायत करने की बात कह रहे हैं। राणा ने ट्वीट कर कहा कि लव जिहाद सिर्फ एक जुमला है, जो समाज में नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान तो मुस्लिम लड़कियों का ही होता है, क्योंकि लड़के कहीं और शादी कर लेते हैं। इसी आधार पर राणा ने कहा, इस कानून की हिमायत हम इस शर्त पर करते हैं कि सबसे पहले केंद्र सरकार में बैठे दो बड़े नेताओं से इसकी शुरुआत की जाए ताकि दो मुस्लिम लड़कियों का निकाह उनसे हो सके। उन्होंने मांग की है कि जिन भाजपा नेता या उनके परिवार के लोगों ने गैर धर्म में शादियां की है उन पर कार्रवाई हो। मुन्नवर के ऐसे ही बोल पिछले वर्ष मोदी सरकार द्वारा पास किए गए नागरिकता संशोधन एक्ट के समय भी सामने आए थे। मुन्नवर की बेटियां भी इसी तरह की साम्प्रदायिकता फैलाती हैं। राणा की तरह ही ओवैसी को भी लगता है कि धर्मांतरण कानून संविधान की भावनाओं के खिलाफ है।एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने लव जिहाद पर कानून लाने वाले राज्यों को संविधान पढ़ने की नसीहत दी है। ओवैसी का कहना है कि ऐसा कोई भी कानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। खैर, मुनव्वर राणा और ओवैसी जैसे लोगों को मुसलमानों का ठेकेदार नहीं कहा जा सकता है।यह बात इस लिए कही जा रही है क्योंकि कई मुस्लिम धर्मविद्ध योगी सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण कानून के पक्ष में भी खड़े हैं, इसमें लखनऊ ईदगाह इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली,आॅल इंडिया महिला मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड  की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर जैसी हस्तियां भी शामिल हैं।
       दरअसल, योगी सरकार धर्मांतरण के संबंध में जो कानून लाई है उससे लव जेहाद चलाने वालों की मंसूबों पर पानी फिरता दिख रहा है। नये कानून के अनुसार अब छल-कपट व जबरन धर्मांतरण के मामलों में एक से दस वर्ष तक की सजा हो सकती है। खासकर किसी नाबालिग लड़की या अनुसूचित जाति-जनजाति की महिला का छल से या जबरन धर्मांतरण कराने के मामले में दोषी को तीन से दस वर्ष तक की सजा भुगतनी होगी। जबरन धर्मांतरण को लेकर तैयार किए गए मसौदे में इन मामलों में दो से सात साल तक की सजा का प्रस्ताव किया गया था, जिसे सरकार ने और कठोर करने का निर्णय किया है। इसके अलावा सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में भी तीन से 10 वर्ष तक की सजा होगी। जबरन या कोई प्रलोभन देकर किसी का धर्म परिवर्तन कराया जाना अपराध माना जाएगा।
        गौरतलब हो पिछले कुछ दिनों में 100 से ज्यादा ऐसी घटनाएं सामने आई थी, जिनमें जबरदस्ती धर्म परिवर्तित किया गया था। इसके अंदर छल-कपट, बल से धर्म परिवर्तित की बात सामने आई थी। नये अध्यादेश में धर्म परिवर्तन के लिए 15,000 रुपये के जुर्माने के साथ एक से पांट साल की जेल की सजा का प्रावधान है। एससी/एसटी समुदाय की महिलाओं और नाबालिगों के धर्मांतरण पर 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से दस साल की जेल की सजा होगी। देश के कई राज्यों की तर्ज पर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भी लव जिहाद पर अंकुश लगाने के लिए कड़ा कानून लाई है। उत्तर प्रदेश में अब लव जिहाद के नाम पर लड़कियों तथा महिला से धर्म परिवर्तन कराने के बाद अत्याचार करने वालों से सख्ती से निपटने की तैयारी है। अब दूसरे धर्म में शादी से दो माह पहले नोटिस देना अनिवार्य हो गया है। इसके साथ ही डीएम की अनुमति भी जरूरी हो गई है। नाम छिपाकर शादी करने पर 10 साल की सजा हो सकती है।

संकट के दौर में संकटमोचक का जाना!

किसी भी राजनीतिक दल की सबसे बड़ी ताकत उसके संकटमोचक होते हैं। अहमद पटेल कांग्रेस की ताकत थे। लेकिन कांग्रेस को लिए सबसे बड़ा संकट यही है कि संकट के इस सबसे कठिन दौर में ही उसका संकटमोचक संसार से चला गया।

-निरंजन परिहार

अहमद पटेल चले गए। जाना एक दिन सबको है। आपको, हमको, सबको। लेकिन अहमद भाई को अभी नहीं जाना चाहिए था। इसे नियती की निर्दयता कहें या देश की सबसे पुरानी पार्टी का दुर्भाग्य, कि कांग्रेस जब अपने सबसे बड़े संकटकाल से जूझ रही है, तभी उसका संकटमोचक संसार सागर को सलाम करते हुए स्वर्ग सिधार गया। बात एक बड़े नेता के दुनिया को अलविदा कहने की नहीं है, और इस बात यह भी नहीं है कि कांग्रेस में अब उनकी जगह कौन भरेगा। असल बात यह है कि जब कांग्रेस को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तभी वे क्यूं चले गए। कोई नहीं जाता इस तरह। अहमद भाई फिर भी चले गए। गुजरात के भरूच जिले अंकलेश्वर कस्बे में 21 अगस्त 1949 को वे दुनिया में आए थे और गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में 24 नवंबर 2020 का रात, यानी 25 नवंबर को तड़के साढ़े 3 बजे वे हमारे बीच से उठकर चल दिए। अहमद पटेल 8 बार सांसद रहे, 3 बार लोकसभा में और पांच बार राज्यसभा के। सन 1980 के इंदिरा गांधी ने अहमद भाई को अपनी सरकार में मंत्री बनाना चाहा, फिर 1984 में राजीव गांधी ने भी अपनी कैबिनेट में आने को कहा, पर दोनों ही बार अहमद भाई ने संगठन में काम करने को प्राथमिकता दी। यहीं से गांधी परिवार के प्रति उनके समर्पण का रास्ता बना। फिर तो वे संसदीय सचिव रहे और पार्टी में महामंत्री से लेकर कोषाध्यक्ष भी बने और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार तो वे शुरू से ही रहे। लेकिन असल में वे संकटमोचक ही रहे। दरअसल, सत्ता में न रहकर भी सत्ता में बने रहना अहमद भाई को आता था, इसीलिए वे अंतक तक कांग्रेस में गांधियों के बाद सबसे बड़े नेता बने रहे।

दिखने में अहमद भाई छोटी कद काठी के थे, लेकिन असल में वे आदमकद आदमी थे। कांग्रेस के ही नहीं देश के बड़े बड़े नेताओं से भी बड़े आदमी, बहुत बड़े। इसीलिए असाधारण प्रतिभा के धनी अहमद भाई के बारे में उनके जाने पर देश ने माना कि साधारण दिखनेवाला असाधारण आदमी चला गया। वे साधारण से कार्यकर्ता को भी अदब से मिलते और सुनते। सन 1986 में अपन कोई अठारह साल के थे, लेकिन तब के केंद्रीय मंत्री अशोक गहलोत की सिफारिश पर अपन कई यात्राओं में अहमद भाई के साथ रहे, और तब से लेकर वे हमेशा हर मौके पर अपने को याद करते थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि वे टीवी लगभग नहीं जितना ही देखते थे, लेकिन अखबार जरूर पढ़ते थे। वे मानते थे कि अखबारों में विश्लेषण अच्छे होते हैं। नई दिल्ली में लंबे समय तक कांग्रेस को बहुत नजदीक से देखते रहे राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर बताते है कि मीडिया के अजीब और जाल फैंककर फांसनेवाले सवाल सुनकर अहमद भाई जवाब देने के बजाय केवल मुस्कान बिखेर देते थे। उनकी इसी मुस्कान पर फिदा लोगों की कमी नहीं है।

नेता के रूप में वे बहुत ताकतवर थे, लेकिन दिखावा उनकी जिंदगी में बिल्कुल नहीं था। कांग्रेस में जहां भी रहे, तो उन्होंने अपने होने को साबित किया। वैसे, अपने लिखे इस तथ्य पर कांग्रेस के कई नेताओं को रंज हो सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि सोनिया गांधी के आज ताकतवर होने के पीछे अकेले अहमद भाई का सबसे बड़ा हाथ रहा है। वरना, उस दौर में सोनिया गांधी की हिम्मत तोड़नेवालों की भी कोई कमी नहीं थी। यह कहना मुश्किल है कि अहमद भाई नहीं होते, तो सोनिया भारतीय राजनीति में आज कहां होती और यह कहना तो और भी मुश्किल है कि कांग्रेस किस हाल में होती। वैसे, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि अपने प्रधानमंत्री पति राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी अगर भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को कायदे से संभाल पाईं, तो उसके पीछे अहमद भाई ही थे। अहमद भाई की आखरी सांस तक सोनिया गांधी पूरी कांग्रेस में राहुल गांधी या दूसरे किसी भी नेता से कई गुना ज्यादा पटेल पर ही पर निर्भर रहीं। लंबे समय से वे सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार तो थे ही और सबसे बड़े सहयोगी भी, संकटमोचक और सारी भवबाधाओं को पार कराकर कांग्रेस की नाव को संकट से निकालनेवाले केवट भी वही थे। कांग्रेस में अपनी यह जगह उन्हीं ने बनाई, क्योंकि उनसे पहले वह जगह थी ही नहीं। सो, अब कोई और उस जगह पर आएगा भी, तो उसके लिए विश्वास के विकट संकट से पार पाना मुश्किल होगा और संकट क्षमता का भी रहेगा। क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 घंटे ही काम करते हैं, मगर अहमद भाई तो सुबह सात बजे से अगली सुबह चार बजे तक लगातार जूझते रहते थे। कांग्रेस में इतने समर्पण, इतनी निष्ठा और इतने मेहनती नेता दरअसल अहमद पटेल ही हो हो सकते थे।

अहमद भाई अब हमारे दिलों में और हमारी यादों में रहेंगे। क्या करें, विधि के विधान भी कुछ अलग ही होते हैं। विधि जब हमारी जिंदगी की किताब लिखती है, तो मौत का पन्ना भी साथ लिखती है। नियती ने कांग्रेस और अहमद भाई की जिंदगी की किताबों में दोनों के लिए कुछ पन्ने एक जैसे लिखे थे। लेकिन कांग्रेस की जिंदगी की किताब ज्यादा पन्नों वाली है तो अहमद भाई की किताब विधि ने थोड़े कम पन्नों की लिखी थी। मगर अहमद भाई ने इस सच्चाई को जान लिया था। मगर, जिंदगी के पन्नों की संख्या बढ़ाना तो संभव नहीं था, सो अहमद भाई ने उन पन्नों का आकार बड़ा कर लिया, इतना बड़ा कि हमारे देश चलानेवाले लोगों जिंदगी के पन्नों से कई गुना ज्यादा बड़ा। इसीलिए वे अंतिम सांस तक बड़े नेता बने रहे, बहुत बड़े। इतने बड़े कि उनके रहते तो कांग्रेस में कोई और उनसे बड़ा नहीं बन पाया। अब तक समूची कांग्रेस और गांधी परिवार के लोग अहमद पटेल नामक जिस विश्वास साथ जी रहे थे, अब वह दुनिया में नहीं है। इसलिए कांग्रेस, कांग्रेसियों और गांधी परिवार को अहमद भाई के बिना संकट सुलझाने की आदत डालनी होगी। क्योंकि संकट के दौर में ही संकटमोचक का चले जाना कांग्रेस के लिए सचमुच बहुत बड़ा संकट है।

काश्मीर में रोशनी एक्ट की कालिमा के दंश

-ललित गर्ग –
जम्मू-काश्मीर के आजादी के बाद के राजनीतिक जीवन एवं शासन-व्यवस्था में कितने ही भ्रष्टाचार, घोटाले, गैरकानूनी कृत्य एवं आर्थिक अपराध परिव्याप्त रहे हैं। अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद एवं वहां स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करने की प्रक्रिया को अग्रसर करते हुए अब इनकी परते उघड़ रही है। एक बड़ा घोटाला जम्मू-कश्मीर में रोशनी एक्ट की आड़ में 25 हजार करोड़ का सामने आया है। असल में नाम से यह एक विद्युत से जुड़ा घोटाला प्रतीत होता है, लेकिन यह जम्मू-कश्मीर की राजनीति एवं शासन-व्यवस्था की अंधेरगर्दी से जुड़ा सबसे बड़ा जमीन घोटाला है। आजादी के बाद से राजनैतिक एवं सामाजिक स्वार्थों ने काश्मीर के इतिहास एवं संस्कृति को एक विपरीत दिशा में मोड़ दिया है, भ्रष्ट, विघटनकारी एवं आतंकवादी संस्कृति को एक षडयंत्र के तहत पनपाया गया। लेकिन अपनी मूल संस्कृति को रौंदकर किसी भी अपसंस्कृति को बड़ा नहीं किया जा सकता। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में काश्मीर के जीवन के हर पक्ष पर हावी हो रही अराजकता, स्वार्थ की राजनीति, आतंक की कालिमा को हटाया जा रहा है ताकि इस प्रांत के चरित्र के लिए खतरा बने नासूरों को खत्म किया जा सके, आदर्श शासन व्यवस्था स्थापित हो सके।
जम्मू-कश्मीर के इस सबसे बड़े घोटालों में सीबीआई जांच के दौरान कई बड़े नेताओं, अफसरों और व्यापारियों के नाम सामने आए हैं। जिनमें पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू, पूर्व गृह मंत्री सज्जाद किचलू, पूर्व मंत्री अब्दुल मजीद वानी और असलम गोनी, नैशनल कांग्रेस के नेता सईद आखून और पूर्व बैंक चेयरमैन एमवाई खान के नाम प्रमुख हैं। जम्मू-कश्मीर की लगभग 21 लाख कनाल भूमि पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा था। तत्कालीन सरकारों ने अवैध कब्जे हटाने की बजाय लोगों को इन जमीनों का मालिकाना हक देने के लिए कानून बना दिया जिसे रोशनी एक्ट या रोशनी स्कीम का नाम दिया गया। मगर एक्ट का फायदा उठाकर राजनेताओं, नौकरशाहों और व्यावसायियों ने सरकारी और वन भूमि की बंदरबांट की। अब केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर में यह उम्मीद जगी है कि न्यायपालिका के दबाव में सरकारी जमीन पर हुए इन अवैध कब्जों को हटाया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। सीबीआई जांच में और परतें खुलेंगी और लाभार्थियों का कच्चा चिट्ठा सामने आएगा।
 जम्मू-काश्मीर की राजनीति का चरित्र कई प्रकार के अराष्ट्रीय दबावों से प्रभावित रहा है, जिसमें आर्थिक अपराधों की जमीन को मजबूती देने के साथ आतंकवाद को पोषण दिया जाता रहा है। विडम्बना तो यह है कि इस प्रांत एवं प्रांत की जनता को राजनेता अपने आर्थिक लाभों-स्वार्थों के लिये लगातार हिंसा, अराजकता एवं आतंकवाद की आग में झोंकते रहे हंै, जिसमें प्रांत की सरकार को केन्द्र की सरकार से संरक्षण एवं आर्थिक सहायता भी मिलती रही है। अब अगर जम्मू-काश्मीर में चरित्र निर्माण, विकास, शांति और अमन का कहीं कोई प्रयत्न हो रहा है, आवाज उठ रही है तो इन भ्रष्ट राजनेताओं को लगता है यह कोई विजातीय तत्व है जो हमारे जीवन में घुसाया जा रहा है। जिस मर्यादा, सद्चरित्र और सत्य आचरण पर हमारा राष्ट्रीय चरित्र एवं संस्कृति जीती रही है, सामाजिक व्यवस्था बनी रही है, जीवन व्यवहार चलता रहा है वे इस प्रांत में जानबूझकर लुप्त कियेे गये। उस वस्त्र को जो इस प्रांत के अस्तित्व एवं अस्मिता एवं शांतिपूर्ण जीवन को ढके हुए था, कुछ तथाकथित राजनेताओं एवं घृणित राजनीति ने उसको उतार कर खूंटी पर टांग दिया। मानो वह पुरखों की चीज थी, जो अब इस प्रांत के भ्रष्ट एवं अराष्ट्रीय नेताओं के लाभ एवं स्वार्थ की सबसे बड़ी बाधा बन गयी। इस बड़े घोटाले की परते खुलने से जम्मू-काश्मीर का भाग्यविधाता मानने वाले भ्रष्ट राजनेताओं की नींद उड़ गयी है। नींद तो उनकी अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद से ही उड़ी हुई है। तभी तो नेशनल कांफ्रैंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और अन्य नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाएं लगातार सामने आ रही हैं और उन्होंने कश्मीरियों के अधिकारों के लिए लड़ने और अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए गुपकर संगठन भी बना लिया है। इन राजनेताओं की बौखलाहट इतनी अधिक उग्र है कि फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए चीन की मदद लेने की बात करते हैं तो महबूबा तिरंगे का अपमान करती हैं। इस तरह की अराष्ट्रीय घटनाओं एवं विसंगतिपूर्ण बयानों से न केवल प्रांत बल्कि समूचे राष्ट्र का चिन्तीत होना स्वाभाविक है।
जम्मू-काश्मीर के फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, गुलाम नबी जैसे नेताओं ने प्रांत के धन को जितना अधिक अपने लिए निचोड़ा जा सके, निचोड़ लिया। भ्रष्ट आचरण और व्यवहार इन्हें पीड़ा नहीं देता था। सबने अपने-अपने निजी सिद्धांत बना रखे थे, भ्रष्टाचार की परिभाषा नई बना रखी थी। इस तरह की औछी एवं स्वार्थ की राजनीति करने वाले प्रांत एवं समाज के उत्थान के लिए काम नहीं करते बल्कि उनके सामने बहुत संकीर्ण मंजिल थी सत्ता पाने एवं धन कमाने की। ऐसी रणनीति अपनाना ही उनके लिये सर्वोपरि था, जो उन्हें बार-बार सत्ता दिलवा सके। नोट एवं वोट की राजनीति और सही रूप में सामाजिक उत्थान की नीति, दोनों विपरीत ध्रुव हैं। एक राष्ट्र को संगठित करती है, दूसरी विघटित। लेकिन इन नेताओं ने दूसरी नीति पर चलते हुए न केवल काश्मीर को लूटा, घोटाले किये, प्रांत को कंकाल किया, बल्कि हिंसा-आतंकवाद के दंश दिये।
अनुच्छेद 370 के चलते आज तक केन्द्र की सरकारों ने जम्मू-कश्मीर में इतना धन बहाया है कि उसका कोई हिसाब-किताब नहीं। प्रांत के तथाकथित नेताओं एवं अलगाववादियों ने सरकारी धन एवं पाकिस्तान और खाड़ी देशों से मिलेे धन से देश-विदेश में अकूत सम्पत्तियां बना लीं, जबकि कश्मीरी बच्चों के हाथों में पत्थर और हथियार पकड़वा दिए, उनकी मुस्कान छीन ली, विकास के रास्ते अवरूद्ध कर दिये। गरीबों के घर रोशन करने के नाम पर बनाए गए कानून की आड़ लेकर करोड़ों की सरकारी जमीन हड़प ली। शांति की वादी एवं उपजाऊ भूमि को बंजर एवं अशांत कर दिया। जबसे जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, इनकी दुकानें बंद होने से ये अराजकता एवं अलोकतांत्रिक घटनाओं पर उतर आये हैं, अभी तो एक रोशनी घोटाला उजागर होने पर इनकी यह बौखलाहट है, आगे अभी बहुत से कारनामें खुलेंगे।
जम्मू-कश्मीर देश का शायद एक मात्र ऐसा राज्य होगा जहां सरकारी जमीन पर धड़ल्ले से राजनीतिक संरक्षण में बड़े पैमाने पर कब्जे हुए है। सरकारों ने अवैध कब्जे हटाने की बजाय लोगों को इन जमीनों का मालिकाना हक देने के लिए जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि एक्ट 2001 बनाया। इसके तहत सरकारी जमीनों पर गैर कानूनी कब्जों को कानूनी तौर पर मालिकाना हक देने का षडयंत्र हुआ। यह स्कीम 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की सरकार ने लाते समय कहा कि जमीनों के कब्जों को कानूनी किए जाने से जो फंड जुटेगा, उससे राज्य में पावर प्रोजैक्टों का काम किया जाएगा, इसलिए इस कानून का नाम रोशनी रखा गया जो मार्च 2002 से लागू हुआ। एक एकड़ में 8 कनाल होते हैं और इस लिहाज से ढाई लाख एकड़ से ज्यादा अवैध कब्जे वाली जमीन हस्तांतरित करने की योजना बनाई गई। भ्रष्टता की चरम पराकाष्ठा एवं अंधेरगर्दी यह थी कि इस सरकारी भूमि को बाजार मूल्य के सिर्फ 20 प्रतिशत मूल्य पर सरकार ने कब्जेदारों को सौंपी।
अब्दुल्ला सरकार ने ही इस बड़े भूमि घोटाले की मलाई नहीं खाई बल्कि 2005 में सत्ता में आई मुफ्ती सरकार और उसके बाद गुलाम नबी आजाद सरकार ने खूब जमकर अपनी जेबें भरी। इन लोगों ने रोशनी एक्ट का फायदा उठाते हुए अपने खुद के नाम या रिश्तेदारों के नाम जमीन कब्जा ली। इस घोटाले की गहराई का अंदाजा इस बात से लगता है कि श्रीनगर शहर के बीचोंबीच खिदमत ट्रस्ट के नाम से कांग्रेस के पास कीमती जमीन का मालिकाना हक पहुंचा तो नेशनल कांफ्रैंस का भव्य मुख्यालय तक ऐसी ही जमीन पर बना हुआ है, जो इस भूमि घोटाले से तकरीबन मुफ्त के दाम हथियाई गई। जब सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बनाए गए तो उनकी अगुवाई वाली राज्य प्रशासनिक परिषद ने रोशनी एक्ट को रद्द कर दिया। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस एक्ट की आड़ में जम्मू-कश्मीर से पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों के खाली पड़े मकानों और दुकानों को भी हड़पा गया। इस घोटाले में जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों के लोग शामिल रहे है, अब इनसे मुक्ति ही काश्मीर की वास्तविक फिजाएं लौटा दिला पायेंगी।

थार के संसाधनों पर मंडराता अस्तित्व का खतरा

दिलीप बीदावत
बीकानेर, राजस्थान   

राजस्थान का थार क्षेत्र केवल बालू की भूमि ही नहीं है, बल्कि कुदरत ने इसे भरपूर प्राकृतिक संसाधनों से भी नवाज़ा है। लेकिन धीरे धीरे अब इसके अस्तित्व पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। यह संकट मानव निर्मित हैं। जो अपने फायदे के लिए कुदरत के इस अनमोल ख़ज़ाने को छिन्न भिन्न करने पर आतुर है। यहां की शामलात भूमि (सामुदायिक भूमि) को अधिग्रहित कर उसे आर्थिक क्षेत्र में तब्दील किया जा रहा है। जिससे न केवल पशु पक्षियों बल्कि स्थानीय निवासियों को भी भूमि और जल के संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसका एक उदाहरण बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील का कोरणा गांव है। जहां वर्ष 2016 में विद्युत विभाग का सब ग्रीड स्टेशन बनाने के लिए तालाब के आसपास की भूमि प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायत से अनापत्ति प्रमाण-पत्र मांगा गया। 2800 बीघा इस शामलात भूमि पर छोटे-मोटे करीब 18 तालाब हैं, जिनसे इन्सान एवं मवेशी पानी पीते हैं। विद्युत विभाग की ओर से 765 के.वी. का ग्रीड सब स्टेशन बनाने के लिए गांव की कुल शामलात भूमि में से 400 बीघा जमीन अधिग्रहण के लिए चिन्हित की गई। भूमि चिन्हित करने से पूर्व ग्राम समुदाय और पंचायत से राय तक नहीं ली गई।

कोरणा के पूर्व सरपंच गुमान सिंह ने बताया कि एनओसी के लिए पत्र आया तब हमें पता चला कि हमारे गांव की शामलात भूमि में से तालाब के आगौर की भूमि का अधिगृहण किया जाना है। ग्राम पंचायत ने एनओसी देने से इन्कार किया। सरपंच ने जिला कलक्टर से मुलाकात की तथा उनको बताया कि गांव के लोग एनओसी देने के लिए तैयार नहीं है। कलक्टर बाड़मेर ने ग्राम पंचायत स्तर पर रात्रि चौपाल कार्यक्रम रखा तथा गांव के लोगों को भूमि अधिग्रहण का निर्णय सुनाया। ग्राम पंचायत व गांव के लोगों ने भी जिला कलक्टर को शामलात संसाधनों केे महत्व से अवगत कराते हुए अधिग्रहण निरस्त करने की मांग की। गांव के लोगों ने बताया कि यहां जल स्रोतों से आस-पास के 20 गांवों केे 30 से 35 हजार लोग पेयजल के लिए निर्भर हैं। गांव के चारागाह पर 10 हजार पशु चारागाह के लिए इसी पर निर्भर हैं। इन शामलात संसाधनों के कारण यहां की जैव विविधता संरक्षित व सुरक्षित है। प्रति वर्ष हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इनके कारण इस क्षेत्र का पारिस्थििक तंत्र बना हुआ। विद्युत सब ग्रीड स्टेशन बनने से यह सब नष्ट हो जाएगा। जिला प्रशासन ने ग्राम पंचायत व गांव के लोगों की बात नहीं सुनी। राज्य स्तरीय उच्च अधिकारियों, नेताओं व मंत्रियों से मिले, लेकिन सहयोग नहीं मिला। अंत में गांव के लोगों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल में केस दायर किया जहां से उन्हें राहत मिली। एनजीटी ने पूरे मामले की जांच की तथा ग्राम पंचायत व गांव के लोगों द्वारा पेयजल, चारागाह, जैव विविधता, पर्यावरण एवं इक्को तंत्र के सभी तर्कों को सही माना। एनजीटी ने सरकार के शामलात भूमि अधिग्रहण पर रोक लगा दी एवं भविष्य में भी इसके अन्य प्रयोजन में उपयोग पर रोक लगाई।

इतना ही नहीं इसी बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील में केंद्र सरकार द्वारा रिफाइनरी लगाने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है। विकास के इस दौड़ में प्रकृति और जन-जीवन हाशिये पर है। रिफाइनरी के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया है। अधिग्रहित भूमि की सीमा पर कई गांव आते हैं, उनमें से एक गांव सांभरा भी है। यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती और पशुपालन रहा है। पीने के पानी की किल्लत को ध्यान में रखते हुए स्थानीय समुदाय ने उचित स्थानों पर जल स्रोतों का निर्माण कर मीठे पानी के संग्रहण की व्यवस्था बनाई। लेकिन रिफाइनरी के लिए अधिग्रहित की गई भूमि में सांभरा का कुम्हारिया तालाब भी शामिल है। सैटलमेंट के दौरान राजस्व रिकाॅर्ड में तालाब की भूमि दर्ज नहीं होने के कारण यह रिफाइनरी की चारदीवारी में कैद हो गया। स्थानीय समुदाय ने प्रशासन से तालाब को बचाने की मांग की, लेकिन उनकी आवाज़ अनसुनी कर दी गयी। इसके बाद लोगों को सरला तालाब से उम्मीद थी। लेकिन रिफाइनरी एवं सड़कों के निर्माण के लिए उसे भी नष्ट कर दिया गया। गांव वालों ने स्थानीय प्रशासन से इसकी गुहार लगाई, तो प्रशासन ने नया तालाब बनवाने का आश्वासन देकर पल्ला झाड़ लिया। लेकिन कंपनी केे खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई। अब बरसात के दिनों में अवैध खान के गड्ढों में पानी भर जाने से जाने से बीमारियां और जानमाल का खतरा बढ़ गया है। गरीब लोगों की गुहार ना अफसर सुनते हैं, ना ही नेता। 

बाड़मेर जिले के ही खारड़ी गांव के चारागाह में बने जल स्रोत से गांव के लोग सदियों सेे पानी पीते आ रहे थे। लेकिन सड़क निर्माण के नाम पर इसे भी ख़त्म कर दिया गया। यहां की पत्थरिली चट्टानें और चारागाह का मैदान लोगों की आजीविका के साथ-साथ पारिस्थिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। खनन विभाग ने चट्टानों को तोड़कर पत्थर निकालने का लीज निजी कंपनी को दे दिया, तो नाडे से मिट्टी का अवैध खनन स्थानीय दबंगों ने चालू कर दिया। यह सारी मिट्टी ग्राम पंचायतों के विकास कार्यों के लिए खरीदी गयी। महात्मा गांधी नरेगा में ग्रेवल सड़क निर्माण के लिए उपयोग हुआ। आम लोगों केे विरोध के बावजूद खनन और राजस्व विभाग के लोकसेवक खनन माफिया के बचाव में खड़े दिखे। गांव की निगरानी पर अवैध खनन तो रूका, लेकिन प्रशासन ने खनन माफियाओं केे खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। इसी कारण से क्षेत्र के बहुत से तालाब और चारागाह अवैध खनन के शिकार हुए हैं।

यह घटनाएं केवल राजस्थान तक ही सीमित नहीं है बल्कि समूचे देश में जहां भी जल स्रोत, पशु चारागाह, वन, खलिहान जैसे प्राकृतिक संसाधन सदियों से समुदाय द्वारा सुरक्षित व संरक्षित हैं, उन्हें विकास की असंतुलित हवस का शिकार बनाया जा रहा है। मनुष्य यह भूल रहा है कि यह मात्र जमीन के टुकड़े नहीं हैं जिनको विकास के लिए बलि दे दी जाए बल्कि यह पृथ्वी के फेफड़े हैं। जो धरती को बर्बाद होने से बचाता है। सवाल उठता है कि इन संसाधनों को कैसे बचाया जाये? माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा शामलात संसाधनों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर दिए गये फैसले और राज्य सरकारों को दिए गये निर्देश के बावजूद इन संसाधनों की किस्म परिवर्तन कर अन्य प्रयोजन में उपयोग, अतिक्रमण और अवैध खनन का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ऐसा लगता है कि सतत विकास लक्ष्य सूचकांक केवल दिखावे भर के लिए प्रचारित किए जा रहे हैं, विकास योजनाओं से उनका कोई सरोकार नहीं है। ऐसे में गांव और शहर के लोगों को मिलकर इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए एकजुटता दिखाने की ज़रूरत है। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब रेगिस्तान के प्राकृतिक परिवेष को विकास के नाम पर बर्बाद कर दिया जाएगा, जिसकी भरपाई आने वाली सात पीढ़ियां भी नहीं कर पाएंगी।