जन-जागरण हिंदी की मिट्टी पीटते ये लोग January 12, 2013 by राकेश कुमार आर्य | 4 Comments on हिंदी की मिट्टी पीटते ये लोग हिंदी को पंडित नेहरू ने हिंदुस्तानी कहकर संबोधित किया था। उन्होंने राष्ट्रभाषा को उपहास की दृष्टि से देखा और उपहास के रूप में ही इसे स्थापित करने का प्रयास किया। हिंदुस्तानी से अभिप्राय नेहरू एण्ड कंपनी का एक ऐसी भाषा से था जिसमें सभी भाषाओं के शब्द सम्मिलित कर लिए जाऐं और एक खिचड़ी भाषा को सारा देश बोलने […] Read more » हिंदी
महत्वपूर्ण लेख तमिल-हिंदी के बीच सेतु है संस्कृत–डॉ. मधुसूदन October 18, 2012 / October 25, 2012 by डॉ. मधुसूदन | 11 Comments on तमिल-हिंदी के बीच सेतु है संस्कृत–डॉ. मधुसूदन (१) विषय प्रवेश। सभी प्रबुद्ध टिप्पणीकार पाठकों की उत्साह-जनक टिप्पणियों के कारण ही, इस विषय को और आगे बढाने का विचार दृढ हुआ। पर यह मैं भी अनुभव करता रहता था, कि, अनेक भारतीय़, तमिल भाषा की ओर, कोई परदेशी भाषा की दृष्टि से, जैसे कि वह कोई हवाईयन भाषा ना हो, देखा करते हैं। […] Read more » hindi and sanskrit tamil तमिल हिंदी
महत्वपूर्ण लेख विविधा तमिल की संस्कृत कड़ी – डॉ. मधुसूदन October 11, 2012 by डॉ. मधुसूदन | 14 Comments on तमिल की संस्कृत कड़ी – डॉ. मधुसूदन ॐ तमिल भाषा में ४०% से ५० % तक शब्द तत्सम और तद्भव रूप में पाए जाते हैं। (१) संस्कृत के शब्द भारतीय भाषाओं में दो रूप में, फैले हैं; कुछ तत्सम रूप में और कुछ तद्भव रूप में। सही आकलन के लिए, पहले तत्सम और तद्भव संज्ञाएं समझ लेनी होंगी। वे शब्द ’तत्सम’ (तत्+ […] Read more » तमिल संस्कृत हिंदी
विविधा हिन्दी के 12 कटु सत्य September 19, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on हिन्दी के 12 कटु सत्य जगदीश्वर चतुर्वेदी 1.हिन्दीभाषी अभिजन की हिन्दी से दूरी बढ़ी है । 2.राजभाषा हिन्दी के नाम पर केन्द्र सरकार करोड़ों रूपये खर्च करती है लेकिन उसका भाषायी, सांस्कृतिक,अकादमिक और प्रशासनिक रिटर्न बहुत कम है। 3.इस दिन केन्द्र सरकार के ऑफिसों में मेले-ठेले होते हैं और उनमें यह देखा जाता है कि कर्मचारियों ने साल में कितनी […] Read more » हिंदी
विविधा हिंदी का सफ़र: अर्श से फर्श तक …. September 14, 2012 / September 14, 2012 by प्रशांत राय | 1 Comment on हिंदी का सफ़र: अर्श से फर्श तक …. प्रशांत राय हिंदी हमारी राज भाषा होने के साथ साथ विश्व की चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है | यह विश्व के लगभग ३० करोड़ (४.४६ %) लोगो द्वारा बोली जाती है; जिसके ऊपर सिर्फ मंदारिन (१४.१ %), स्पेनिश (५.८ %) और अंग्रेजी (५.५२ %) भाषा ही आती हैं | इसकी प्रसारता भारत के […] Read more » हिंदी
महत्वपूर्ण लेख विविधा हिंदी हितैषियों के चिन्तनार्थ-भाग एक / डॉ. मधुसूदन July 30, 2012 by डॉ. मधुसूदन | 10 Comments on हिंदी हितैषियों के चिन्तनार्थ-भाग एक / डॉ. मधुसूदन ~~ केल्टिक भाषा का ह्रास क्यों हुआ? ~~ अपने हाथों, अपने पैरों में शृंखलाएं डालिए । ~~ ६५ वर्षों से पिंजरा खुला, पर पंछी उड़ता नहीं है। ~~ माई-बाप सरकार वापस बुलाओ ! ~~ जब तक अंग्रेज़ी रहेगी, भारत पिछड़ा रहेगा। ~~ संस्कृति और भाषा: फूल और सुगंध ~~भाषा विज्ञानी शेल्डन पॉलॉक का, पाणिनि अनुकरण […] Read more » हिंदी
विविधा बाजार और मीडिया के बीच भारतीय भाषाएं May 20, 2012 by संजय द्विवेदी | 3 Comments on बाजार और मीडिया के बीच भारतीय भाषाएं हिंदी और भारतीय भाषाओं को लेकर समाज में एक अजीब सा सन्नाटा है। संचार व मीडिया की भाषा पर कोई बात नहीं करना चाहता। उसके जायज-नाजायज इस्तेमाल और भाषा में दूसरी भाषाओं खासकर अंग्रेजी की मिलावट को लेकर भी कोई प्रतिरोध नजर नहीं आ रहा है। ठेठ हिंदी का ठाठ जैसे अंग्रेजी के आतंक के […] Read more » भारतीय भाषा हिंदी
महत्वपूर्ण लेख विविधा शब्द वृक्ष दो: डॉ.मधुसूदन May 10, 2012 / June 6, 2012 by डॉ. मधुसूदन | 6 Comments on शब्द वृक्ष दो: डॉ.मधुसूदन प्रवेश: जितनी “शब्द रचना प्रणाली” पढी जाएगी उतनी भारत की सारी भाषाएं सक्षम होंगी, और एकात्मता के लिए भी कारण होंगी। इस लिए, कुछ कठिन होते हुए भी इस विषय को पढने का अनुरोध करता हूँ। सूचना : जैसे छात्र पाठ्य पुस्तक का पाठ समझ, समझ कर पढते हैं; उसी प्रकार समय निकाल कर पढने […] Read more » हिंदी
हिंद स्वराज हमे हिंदी को, आम आदमी के और करीब लाना होगा! March 17, 2012 / March 17, 2012 by शादाब जाफर 'शादाब' | Leave a Comment शादाब जफर ‘‘शादाब’’ ‘‘मुझे ये कतई सहन नही होगा कि हिंदुस्तान का एक भी आदमी अपनी मातृभाषा को भूल जाए या इस की हंसी उड़ाए। इस से शरमाए या उसे ऐसा लगे कि वह अपने अच्छे से अच्छे विचार अपनी भाषा में प्रकट नही कर सकता है। कोई भी देश सच्चे अर्थों में तब तक […] Read more » hindi हिंदी
महत्वपूर्ण लेख विविधा हिंदी लेखन, विचारधारा और इतिहास बोध December 16, 2011 / February 27, 2012 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on हिंदी लेखन, विचारधारा और इतिहास बोध सत्यमित्र दुबे 1 पिछले दो तीन दशकों के हिंदी लेखन पर नजर दौड़ाने से यह बात स्पष्ट होती है कि इसमें पक्षधरता, विचारधारा, इतिहास बोध, कलावाद बनाम जनवाद, व्यक्ति बनाम वर्ग अथवा समाज का सवाल प्रचुर मात्रा में उठाया गया है। पश्चिम के कुछ लेखकों ने जब से इतिहास के अंत, विचारधारा के अंत और […] Read more » hindi history ideology इतिहास विचारधारा हिंदी
विविधा हिन्दी की प्रासंगिकता / गंगानन्द झा November 14, 2011 / December 3, 2011 by गंगानन्द झा | Leave a Comment कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए जनजीवन में हिन्दी की स्थिति की बात करते हुए दुष्यन्त कुमार की गजल की ये पंक्तियाँ मर्मान्तक रूप में प्रासंगिक हो जाती हैं। कितने रूपों में हिन्दी को देश और समाज की पहचान विकसित करने में भूमिका लेने […] Read more » Authencity of Hindi Language हिंदी
विविधा हिन्दी किसकी है October 9, 2011 / December 5, 2011 by बीनू भटनागर | 6 Comments on हिन्दी किसकी है बीनू भटनागर अजीब सा शीर्षक है,अजीब सा प्रश्न है कि हिन्दी किसकी है। पूरे भारत की,सभी हिन्दी भाषियों की या फिर हिन्दी के गिने चुने विद्वानों की। इसी प्रश्न का उत्तर सोचते सोचते मै अपने विचार लिखने का प्रयास कर रही हूँ। स्वतन्त्रता प्राप्त हुए 64 वर्ष हो चुके हैं,परन्तु हिन्दी को वह सम्मान नहीं […] Read more » hindi हिंदी