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प्रवक्ता न्यूज़

लीक से हटकर है अलका सिन्हा का उपन्यास – जी-मेल एक्सप्रेस

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‘जी–मेल एक्सप्रेस’ पुरुष वेश्यावृत्ति जैसे बेहद अछूते किन्तु जरूरी विषय को केंद्र में लाने की महत्त्वपूर्ण पहल है। अलका सिन्हा को इस उपन्यास के जरिये स्त्री विमर्श, बदलते पारिवारिक मूल्य और बदलते हुए समाज का स्पष्ट चित्रण करने में पर्याप्त सफलता मिली है और इसके लिए वह बधाई की पात्र हैं। उक्त बातें राजधानी दिल्ली के रूसी विज्ञान एवं संस्कृति केंद्र में अलका सिन्हा के उपन्यास ‘जी-मेल एक्सप्रेस’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए गोवा की राज्यपाल एवं वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला सिन्हा ने कही। उन्होंने कहा कि अलका ने इस उपन्यास में बहुत ही दृढ़ता के साथ एक ऐसे अछूते विषय को उठाया है जिस पर इससे पहले किसी और ने नहीं लिखा है। पुरुष वेश्यावृत्ति कोरी कल्पना नहीं है, यह वास्तविकता है। उसने लीक से हटकर नई बात की है और सबकी आँखें खोली है।

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कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख साहित्‍य

स्वास्तिक शास्वत और विश्वव्यापी सनातन प्रतीक

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अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध' अर्थात् 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।'

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आर्थिकी विविधा

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के नये संदर्भ

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लगभग सभी गैर कानूनी कार्यों में पैसों का लेनदेन बि‍ना कि‍सी तृतीय पक्ष (बैंक आदि‍ सरकारी यंत्रणा) के होता है, इससे गैर कानूनी धंदों में दि‍न दूगनी और रात चौगुणी प्रगती होती हैं। इन सभी गोरखधंदों को बंद करने का यह रामबाण उपाय हैं। इसमें भारतीय रि‍ज़र्व बैंक के अर्थशास्‍त्री और वि‍शेषज्ञों का योगदान है। नये नोटों को सैटेलाइट द्वारा ट्रैक करने की सुवि‍धा के कारण आगे आने वाले नोटों की ट्रैकिंग से नोटों का प्रयोग हो रहे स्‍थानों का पता लगाया जा सकेगा इससे भवि‍ष्‍य में नकली नोटों को बनाने में के खतरे को भी टाला जा सकेगा।

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जन-जागरण बच्चों का पन्ना समाज

बिना बाल शिक्षा के देश के उज्जवल भविष्य की कल्पना करना निरर्थक

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वर्तमान में भारत देश में कई जगहों पर आर्थिक तंगी के कारण माँ-बाप ही थोड़े पैसों के लिए अपने बच्चों को ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं, जो अपनी सुविधानुसारउनको होटलों, कोठियों तथा अन्य कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। और उन्हीं होटलों, कोठियों और कारखानों के मालिक बच्चों को थोड़ा बहुत खाना देकरमनमाना काम कराते हैं। और घंटों बच्चों की क्षमता के विपरीत या उससे भी अधिक काम कराना, भर पेट भोजन न देना और मन के अनुसार कार्य न होने पर पिटाईयही बाल मजदूरों का जीवन बन जाता है।

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आर्थिकी विविधा

आर्थिक उदारीकरण के दौर में कालेधन पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

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नाव सुधारों पर काम करने वाली संस्था एडीआर के आंकड़े वाकई आश्चर्यजनक हैं कि, 2004 से 2015 के बीच हुए 71 विधानसभा और 3 लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों को 2100 करोड़ रुपए का नकद चंदा मिला है। इससे भी आगे यह कि पिछले लोकसभा चुनाव में आयोग को 300 करोड़ रुपए बिना स्त्रोत का नकद मिला था। यानि कि यह कहने में कोई बुराई नहीं है कि राजनीतिक दलों के पास 80 पैसा ऐसे स्त्रोत से ही आता है,जिसका किसी को पता नहीं है। ऐसे में इसे भी कालेधन और नोट बदलने की मुहिम का हिस्सा बनाकर टैक्स लगाया जाना अच्छा क़दम साबित हो सकता है।

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