कला-संस्कृति विविधा नर्मदा के संतानों की रूहें May 6, 2015 / May 6, 2015 by जावेद अनीस | Leave a Comment –जावेद अनीस- कई सालों से देश के किसान मुसलसल आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन किसानों के इस देश में यह एक मुद्दा तब बन पाया जब एक किसान का बेटा लुटियंस की दिल्ली में ठीक हुक्मरानों के सामने खुदकशी कर लेता है। इसके बाद देश भर में भूमि अधिग्रहण कानून और किसान आत्महत्या से जुड़े […] Read more » Featured नर्मदा नर्मदा के संतानों की रूहें नर्मदा नदी
कला-संस्कृति मनुवाद से मुक्ति, शुरूआत कैसे ? April 20, 2015 / April 20, 2015 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | Leave a Comment -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा- मनुवादी-धार्मिक-अंधविश्वासों के चलते हर दिन सैकड़ों लोग बेमौत मारे जा रहे हैं! सोशल मीडिया के मार्फ़त देशभर में मनुवाद के खिलाफ एक बौद्धिक मुहिम शुरू हो चुकी है। जिसका कुछ-कुछ असर जमीनी स्तर पर भी नजर आने लगा है! लेकिन हमारे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विचारणीय सवाल यह है कि यदि हमें […] Read more » Featured मनुवाद से मुक्ति शुरूआत कैसे ? मनुवाद सोशल मीडिया पर मनुवाद
कला-संस्कृति विविधा आर्य बनाम द्रविण April 3, 2015 / April 4, 2015 by वीरेंदर परिहार | 5 Comments on आर्य बनाम द्रविण बहुत दिनों तक निष्पक्ष यूरोपीय विद्वान संस्कृति को लैटिन, ग्रीक आदि सभी भाषाओं की जननी मानते थे। मैक्समूलर ने एक विशेष योजना के तहत कहा कि संस्कृत, लेैटिन ग्रीक आदि भाषाए बहनें हैं और इन भाषाओं की जननी प्राचीन भाषा थी, जिस उसने आर्य भाषा कहा। आगे रायल एशियाटिक सोसाइटी की अप्रैल 1866 को हुई […] Read more » arya vs dravin language aryan vs dravin civilisation Featured आर्य बनाम द्रविण वीरेन्द्र सिंह परिहार
कला-संस्कृति साहित्य नाटक पर मंडराता खतरा March 26, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on नाटक पर मंडराता खतरा रंगमंच की जब भी हम बात करते हैं तो हमारे जेहन में नाटक, संगीत, तमाशा आदि घूमने लगती है। वास्तव में रंगमंच ‘रंग’ और ‘मंच’ शब्द से मिलकर बना है यानि कि किसी मंच/फर्श से अपनी कला, साज-सज्जा, संगीत आदि को दृश्य के रूप में प्रस्तुत करना। जहां इसे नेपाल, भारत सहित पूरे एशिया में […] Read more » ओपेरा नाटक पर खतरा साहित्य
कला-संस्कृति ज्योतिष लुप्त होती राष्ट्रीय पंचांग की पहचान March 20, 2015 / March 20, 2015 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment संदर्भ-नवसंवत्सर 21 मार्च के अवसर पर लुप्त होती राष्ट्रीय पंचांग की पहचान कालमान एवं तिथिगणना किसी भी देश की ऐतिहासिकता की आधारशिला होती है। किंतु जिस तरह से हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओँ को विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व धूमिल रहा है, कमोवेश यही हश्र हमारे राष्ट्रीय पंचांग, मसलन कैलेण्डर का है। […] Read more » प्रमोद भार्गव राष्ट्रीय पंचांग राष्ट्रीय संवत विक्रम संवत शक संवत
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार महिला-जगत वर्त-त्यौहार साहित्य गणगौर: महिलाओं के सौभाग्य का लोकपर्व March 17, 2015 / March 18, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment राजस्थान अपने यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक एवं धार्मिक मेलांे एवं उत्सवों के लिये प्रसिद्ध है। गणगौर इसे और विशिष्ट रूप प्रदान करता है। गणगौर का त्यौहार सदियों पुराना हैं। हर युग में कुंआरी कन्याओं एवं नवविवाहिताओं का ही नहीं अपितु संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा संबंध इस पर्व से जुड़ा रहा है। यद्यपि इसे […] Read more » गणगौर गणगौर: महिलाओं के सौभाग्य का लोकपर्व महिलाओं का लोकपर्व लोकपर्व
कला-संस्कृति चिंतन धर्म-अध्यात्म शख्सियत स्वामी विवेकानन्द जी के उद्बोधक प्रशंसनीय विचार March 14, 2015 / March 14, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on स्वामी विवेकानन्द जी के उद्बोधक प्रशंसनीय विचार मनमोहन कुमार आर्य स्वामी विवेकानन्द जी के हिन्दू जाति को जीवित जागृत करने वाले विचार इस लेख में प्रस्तुत किए जा रहे हैं। दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक आर्यजगत पत्र के 19 अक्तूबर, 1980 विशेषांक में लगभग 35 वर्ष पूर्व इन विचारों को “मोहभंग का स्वर” शीर्षक दिया गया था। हमें यह विचार हृदय को […] Read more » swami vivekanand Vivekanand vivekanand in new age vivekanand thoughts
कला-संस्कृति राष्ट्रीय एकता की संदेशवाहक : पूर्वोत्तर की लोक कला March 5, 2015 / March 6, 2015 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी साहित्य,गीत-संगीत,कला तथा लोककला आदि ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा क्षेत्रीय आधार पर देश में एकता व मज़बूती सुनिश्चित की जा सकती है। इतना ही नहीं बल्कि इनके आदान-प्रदान से वैश्विक स्तर पर भी सांसकृतिक दर्शन का आदान-प्रदान होता रहता है। विभिन्न अलग-अलग राज्यों,क्षेत्रों व देशों के लोग साहित्य,गीत-संगीत,कला तथा लोककला आदि के माध्यम […] Read more » पूर्वोत्तर की लोक कला
कला-संस्कृति हिन्दुत्व की रक्षा : भाग २ February 16, 2015 / February 17, 2015 by मानव गर्ग | 7 Comments on हिन्दुत्व की रक्षा : भाग २ ॐ श्रीगणेशाय नमः । हिन्दुत्व की रक्षा, भाग २ – ’भौतिक संसार’ में विजय के लिए भी अध्यात्म उपयोगी विशेष : यह त्रिभागीय शृङ्खला का द्वितीय भाग है । प्रथम भाग यहाँ पढ़ा जा सकता है – “https://www.pravakta.com/defend-the-hindutva-part-1-a-message” अभी तक हमने जाना कि हिन्दुत्व की रक्षा के लिए यह अनिवार्य है कि हम […] Read more » हिन्दुत्व की रक्षा
कला-संस्कृति भारत भवन : याद रह गयी तेरी कहानी February 11, 2015 / February 11, 2015 by मनोज कुमार | Leave a Comment मनोज कुमार 13 फरवरी 1982 का दिन और आज तैंतीस बरस बाद 13 फरवरी 2015 का दिन। यह तारीख बार बार और हर बार आयेगी लेकिन भारत भवन का वह गौरव कभी आयेगा, इस पर सवाल अनेक हैं। यह सवाल विमर्श मांगता है किन्तु विमर्श की तमाम संभावनायें पीछे छूट गयी हैं। इतनी पीछे कि […] Read more » भारत भवन
कला-संस्कृति मकर सक्रान्ति पर्व और हम January 14, 2015 / January 14, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मकर सक्रान्ति पर्व सूर्य के मकर राशि में संक्रान्त वा प्रवेश करने का दिवस है। इस दिन को उत्साह में भरकर मनाने के लिए इसे मकर संक्रान्ति, लोहड़ी व पोंगल आदि नाम दिए गये हैं। मकर संक्रान्ति क्या है? इसका उत्तर है कि पृथिवी एक सौर वर्ष में सूर्य की परिक्रमा पूरी करती है। पृथिवी […] Read more » मकर सक्रान्ति पर्व
कला-संस्कृति जन-जागरण धर्म प्रवतर्कों व प्रचारकों के लिए वेद-ज्ञानी होना अपरिहार्य’ January 14, 2015 / January 14, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on धर्म प्रवतर्कों व प्रचारकों के लिए वेद-ज्ञानी होना अपरिहार्य’ देश व विदेशों में नाना मत मतान्तर, जो स्वयं को धर्म कहते हैं, सम्प्रति प्रचलित हैं। इनमें से कोई भी वेदों को या तो जानता ही नहीं है और यदि वेदों का नाम आदि जानता भी है तो वेदों के यथार्थ महत्व से वह सर्वथा अपरिचित होने के कारण वेदों का उपयोग नहीं कर […] Read more » धर्म प्रवतर्कों प्रचारक वेद-ज्ञानी