कविता साहित्य नव संवत्सर पर इड़ा, मही, सरस्वती को नमन March 29, 2016 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment विमलेश बंसल ‘आर्या’ नमन तुम्हें हे नव संवत्सर, नमन तुम्हें हे आर्य समाज। नमन तुम्हें हे भारत माता, नमन तुम्हें हे प्रिय ऋषिराज।। नव संवत् की चैत्र पंचमी, आर्य समाज बनाया था। गहन नींद से जगाकर ॠषि ने, सत्य का बोध कराया था।। पीकर विष पत्थर खा खाकर, पुनः किया हमको आगाज़॥ नमन तुम्हें […] Read more » नव संवत्सर नव संवत्सर पर इड़ा सरस्वती को नमन
कविता साहित्य उलझन March 25, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment उलझी हुई सी ज़िन्दगी, बेचैन सी रातें, उलझे हुए तागों मे, पड़ती गईं गाँठे, ये गाँठे अब, खुलती नहीं मुझसे उलझी हुई गाँठों को बक्से बन्द करदूँ, या गाँठों से जुडी बातों को, जहन से अलग कर दूँ। अब कोई मक़सद, नया मै कहीं ढूँढू, ज़िन्दगी की यही चाल है तो, ऐसे ही न क्यो जी लूँ Read more » उलझन
कविता साहित्य केकरा संग खेलहूं फाग March 24, 2016 by विपिन किशोर सिन्हा | 3 Comments on केकरा संग खेलहूं फाग बुरा न मानें होली है — एक ठे स्पेसल फगुआ केकरा संग खेलहूं फाग इटली दूर बसत है इटली दूर बसत है केकरा संग खेलहूं फाग कि नैहर दूर बसत है। परणव से मोहे लाज लगत है मोदिया के मन बेईमान नैहर दूर बसत है केकरा संग खेलहूं फाग नैहर दूर बसत है। दिग्गी मगन […] Read more » Featured केकरा संग खेलहूं फाग
कविता साहित्य अब हम शिक्षक की बारी है March 19, 2016 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment कई दिनों के बाद आज यें स्वर्णीम अवसर आया है। बड़ी तपस्या करके हमने, शिक्षक रूप को पाया है।। मन में उठी तमन्ना है, पूरी कर ली तैयारी है। बहुत पढ़ाया लोगो ने, अब हम शिक्षक की बारी है।। विश्वविद्यायल की माटी में अब बीज शान के बोना है। कतर््ाव्यों से सींच के […] Read more » अब हम शिक्षक की बारी है
कविता साहित्य क्या मै लिख सकूँगा : पेड़ की संवेदनाओं को March 15, 2016 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on क्या मै लिख सकूँगा : पेड़ की संवेदनाओं को सुशील कुमार शर्मा कल एक पेड़ से मुलाकात हो गई। चलते चलते आँखों में कुछ बात हो गई। बोला पेड़ लिखते हो संवेदनाओं को। उकेरते हो रंग भरी भावनाओं को। क्या मेरी सूनी संवेदनाओं को छू सकोगे ? क्या मेरी कोरी भावनाओं को जी सकोगे ? मैंने कहा कोशिश करूँगा कि मैं तुम्हे पढ़ […] Read more » cutting of trees poem on cutting of trees poem on trees क्या मै लिख सकूँगा पेड़ की संवेदना
कविता साहित्य अभिशप्त March 15, 2016 / March 17, 2016 by डॉ. प्रतिभा सक्सेना | 3 Comments on अभिशप्त रात का था धुँधलका , सिर्फ़ तारों की छाँह । मैंने देखा – मन्दिर से निकल कर एक छायामूर्ति चली जा रही है विजन वन की ओर । आश्चर्यचकित मैंने पूछा, ” देवि ! आप कौन हैं ? रात्रि के इस सुनसान प्रहर में अकेली कहाँ जा रही हैं ? ” * वह चौंक गई, […] Read more » abhishapt poem by Dr. Pratibha saksena अभिशप्त अयोध्या अभिशप्त है
कविता साहित्य कबहू उझकि कबहू उलटि ! March 15, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment कबहू उझकि कबहू उलटि ! कबहू उझकि कबहू उलटि, ग्रीवा घुमा जग कूँ निरखि; रोकर विहँसि तुतला कभी, जिह्वा कछुक बोलन चही ! पहचानना आया अभी, है द्रष्टि अब जमने लगी; हर चित्र वह देखा किया, ग्रह घूम कर जाना किया ! लोरी सुने बतियाँ सुने, गुनगुनाने उर में लगे; कीर्तन भजन मन भावने, लागा […] Read more » poem by gopal baghel कबहू उझकि कबहू उलटि ! चहकित चकित चेतन चलत
कविता साहित्य कलयुगी कन्हैया March 14, 2016 by शकुन्तला बहादुर | 3 Comments on कलयुगी कन्हैया नाम “कन्हैया” पाकर समझा, मैं हूँ कृष्णकन्हैया । नहीं समझ पाया ले डूबेगा , निज जीवन-नैया ।। ” कान्हा ने जब उठा लिया था, गोवर्धन पर्वत को । मैं भी अब उखाड़ फेकूँगा ,इस मोदी शासन को ।।” जैसे क्षमा किये कान्हा ने , दुष्ट वचन शिशुपाल के । मोदी भी हैं क्षमा कर रहे, […] Read more » Poem by Shakuntala Bahadur poem on kanhaiya kumar JNU कन्हैया कलयुगी कन्हैया
कविता साहित्य एक हो जावें – पर्व होली का मनावें March 14, 2016 / March 14, 2016 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment एक हो जावें, पर्व होली का मनावें, कुहुक रही हैं कोयल डालियाँ। फ़ाग गवावें, कृपा ईश्वर की पावें, झूम रही हैं जौ की बालियाँ।। एक हो जावें….. मासों में अंतिम मास फाल्गुन विदाई का। देने संदेशा आया, प्रेम और भलाई का। जगें जगावें, भेद हर दिल के मिटावें, पावन बनावें हृदय प्यालियाँ।। एक हो जावें […] Read more » Holi festival Poem on Holi होली होली पर्व
कविता साहित्य कैलिफ़ोर्निया में हिमपात March 11, 2016 by शकुन्तला बहादुर | 8 Comments on कैलिफ़ोर्निया में हिमपात टाहो झील पर – ************* हिमाच्छादित पर्वत-श्रेणी , शैलशिखर संग शोभित थी । ओढ़ रुपहली चूनर मानो , वधू सदृश वह गर्वित थी ं।। ऊपर नभ का था वितान और, पवन झकोरे मंगल गाते । खड़े संतरी से थे तरुवर , मानो थे पहरा देते ।। उत्सव सा था सजा हुआ , जो देख प्रकृति […] Read more » Poem by Shakuntala Bahadur कैलिफ़ोर्निया में हिमपात
कविता साहित्य स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य-स्मृति मे – श्रद्धांजलि March 8, 2016 by शकुन्तला बहादुर | 2 Comments on स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य-स्मृति मे – श्रद्धांजलि भारत-भू पर हुए अवतरित, एक महा अवतार थे । थी विशेष प्रतिभा उनमें, वे ज्ञानरूप साकार थे ।। तेजस्वी थे, वर्चस्वी थे , महापुरुष थे परम मनस्वी । था व्यक्तित्व अलौकिक उनका, कर्मयोग से हुए यशस्वी ।। भारत के प्रतिनिधि बनकर वे, अमेरिका में आए थे । जगा गए वे जन जन को , युग-धर्म […] Read more » स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य-स्मृति मे
कविता साहित्य नारी March 6, 2016 by शकुन्तला बहादुर | 3 Comments on नारी हरिश्चन्द्र से पति के हाथों,बिकी शैव्या थी सतयुग में । निर्वासित हुई श्री राम के द्वारा , सीता त्रेता युग में ।। छला इन्द्र ने और अहिल्या,शापित हुई निज पति के द्वारा । दमयन्ती भी त्यक्त हुई थी , द्यूतपराजित नल के द्वारा ।। पंचपती न बचा सके थे, लाज द्रौपदी की द्वापर में । […] Read more » नारी