कविता साहित्य ताज महोत्सव February 26, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment भावांजलि डा. राधेश्याम द्विवेदी’’ नवीन’’ दस दिन का संगीत रहा । मीत यहां पर झूम रहा । ताज महल की साया है। ताज महोत्सव आया है रंग रंगीला ताज महोत्सव। सुर संजीला ताज महोत्सव । जित देखो तित अच्छा है। यहां दिल होता बच्चा है। शिल्पी व्यंजन झूले हैं। अफसर लगते दूल्हे हैं। आर्ट क्राफट […] Read more » ताज महोत्सव
कविता साहित्य वह गोद मेरी लेट कर ! February 25, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment वह गोद मेरी लेट कर, ताके सकल सृष्टि गया; मेरी कला-कृति तक गया, झाँके प्रकृति की कृति गया ! देखा कभी मुझको किया, लख दूसरों को भी वह गया; मन की कभी कुछ कह गया, वह सुने सब उर सुर गया ! प्राय: पलट सहसा उलट, वह अनेकों लीला किया; मन माधुरी से भर दिया, […] Read more » वह गोद मेरी लेट कर !
कविता साहित्य वह समझता मुझको रहा ! February 25, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment वह समझता मुझको रहा, मैं झाँकता उसको रहा; वह नहीं कुछ है कह रहा, मैं बोलता उससे रहा ! अद्भुत छवि आलोक रवि, अन्दर समेटे वह हुआ; नयनों से लख वह सब रहा, स्मित वदन बस कह रहा ! हाथों पुलक पद प्रसारण, भौंहों से करता निवारण; भृकुटी पलट ग्रीवा उलट, वह द्रश्य हर जाता […] Read more » वह समझता मुझको रहा !
कविता अस्मिता February 15, 2016 by शकुन्तला बहादुर | 6 Comments on अस्मिता अप्रिय सदा अभिमान मुझे,पर प्राणों से भी प्रिय स्वाभिमान। मुझे मिले सम्मान नहीं,पर रक्षित रहे आत्मसम्मान ।। * मिथ्या-गौरव नहीं चाहिये, मुझे हो जीने का अधिकार । चाहे मुझे मिले न आदर, क्यों दे कोई तिरस्कार।। * चाहे सुयश कभी न पाऊँ, अपयश रहे सदा ही दूर। नहीं प्रशंसा की इच्छा,पर निन्दा मन को करे […] Read more » अस्मिता
कविता साहित्य आज कोई याद मुझको ! February 13, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment आज कोई याद मुझको, स्वप्न में आया किया; प्रीति में हर्षा रुला कर, प्राण को परशा किया ! प्रणव की हल्की फुहारें, छोड़ वह गाया किया; प्रवाहों की प्रगढ़ता में, प्रवाहित मुझको किया ! दूर से आयाम आ, आरोह का स्वर दे गया; रूह हर हरकत विचरता, रोशनी मुझको दिया ! जागरण की चौखटों पर, […] Read more » आज कोई याद मुझको !
कविता साहित्य माँ शारदे, वर दे February 13, 2016 by हिमकर श्याम | Leave a Comment वरदायिनी माँ शारदे, वर दे मैं अल्पज्ञानी शरण में ले मुझे चरण में स्थान दे हे वागीश्वरी गहन है अँधेरा अज्ञान हर शब्दाक्षर दान दे विद्या, बुद्धि ज्ञान दे वीणा वादिनी वसंत की रागिनी विनती करूँ सुमधुर तान दे कलम को धार दे -हिमकर श्याम Read more » मां शारदे वर दे
कविता साहित्य नयन विच निहारिका ! February 13, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment नयन विच निहारिका, दिखाती अपनी छटा; अधर अमृत की वर्षा, हर्ष ज्योतिर्मय घटा ! छिटकती छवि की आभा, नज़र की विपुल विधा; रिझाती ऋतम्भरा, हुए शिशु स्वयम्वरा ! पिंगला इड़ा क्रीड़ा, सुषुम्ना स्मित मना; झाँकती विश्व लहरियाँ, झूल कर माँ की बहियाँ ! श्वाँस हर आहट पा के, प्राण की चाहत ताके; खोल नैनन वो […] Read more » नयन विच निहारिका !
कविता साहित्य आज कोई याद मुझको ! February 13, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment आज कोई याद मुझको, स्वप्न में आया किया; प्रीति में हर्षा रुला कर, प्राण को परशा किया ! प्रणव की हल्की फुहारें, छोड़ वह गाया किया; प्रवाहों की प्रगढ़ता में, प्रवाहित मुझको किया ! दूर से आयाम आ, आरोह का स्वर दे गया; रूह हर हरकत विचरता, रोशनी मुझको दिया ! जागरण की चौखटों पर, […] Read more » आज कोई याद मुझको !
कविता साहित्य यूँ खुद को उदास करो February 5, 2016 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment सारी कोशिशें जब दर दीवार होने लगे बेवजह जब कोई दरकिनार होने लगे फलसफाँ रहगुजर का नया आयाम तलाश करो….. घुट घुट कर जी कर ना खुद को उदास करों…. उम्मीदें सारी जब गम ए रूखसार होने लगे उन्मादमयी सपने सारे यातनाओं मे सोने लगे करवटे बदल कर नया रास्ता इजाद करो.. अतीत से मुखातिब […] Read more » यूँ खुद को उदास करो
कविता साहित्य तुहिन के तीर बिफर ! February 4, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment तुहिन* के तीर बिफर, धरा पर जाते बिखर; भूमि तल जाता निखर, प्राण मन होते भास्वर ! पुष्प वत आते कभी, गगन में छा के कभी; मोहते नयना जभी, मोह छुड़वाते तभी ! धवल छवि धर के ज़मीं, ध्यान में लेती गुणी; कणी को करती मणि, ऋणी हो जाते धनी ! सहजता उर में भरे, […] Read more » तुहिन के तीर बिफर !
कविता साहित्य तरंगों में फिरा सिहरा ! February 4, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment तरंगों में फिरा सिहरा, तैरता जो रहा विहरा; विश्व में पैठ कर गहरा, पार आ देता वह पहरा ! परस्पर राग रंगों में, रगों में रक्त दे जाता; मनों में मुक्ति भर जाता, भुक्त कर तृप्त कर जाता ! कभी निर्गुण में गुण भरता, सगुण बन कभी नच जाता; किए चैतन्य सब सत्ता, वही मूर्द्धन्य […] Read more » तरंगों में फिरा सिहरा !
कविता आकांक्षा February 3, 2016 / February 3, 2016 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment मातृभूमि भारतमाता की , एक राष्ट्रभाषा हिन्दी हो । बँधें सभी हम एक सूत्र में, हिन्दी तेरी सदा विजय हो ।। जग में और संयुक्तराष्ट्र में , स्वाभिमान भारत का जागे । गौरव से गूँजे हिन्दी स्वर, भारत की संस्कृति की जय हो ।। हों स्वदेश में या विदेश में, दृढ़ संकल्प सदा हो मन […] Read more » आकांक्षा