कविता रोजगार December 4, 2023 / December 4, 2023 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment अंदाजा लगाता हुआ आया था वह अपने ही घर में, ऐसा लगता था जैसे आखिरी बचा हुआ बाशिंदा हो शहर में, घर का दरवाजा खोला था उसने बहुत आहिस्ता, किसी नजर से पड़े न इस वक्त उसका वास्ता, कोई बाहर वाला आ जाता तो होता बेहतर, उसी सवाल से उसका होता न सामना रह –रहकर, […] Read more » रोजगार
कविता कलिंग November 29, 2023 / November 29, 2023 by माधब चंद्र जेना | Leave a Comment वीर वह होते हैं जो सम्राट के बिना भी लड़ते हैं, लड़ते हैं बिना अस्त्र के लड़ते हैं बिना सस्त्र के। क्योंकि युद्ध अस्त्र सस्त्र से नहीं हाथी घोड़े से नहीं लड़ा जाता है अपनी स्वाभिमान से । उन्हें पूछो जो लड़ गए रक्त को सस्त्र बनाके और हरा दिए एक नदीकी पानी को अपनी […] Read more »
कविता खुद की खोज में November 29, 2023 / November 29, 2023 by माधब चंद्र जेना | Leave a Comment वहां जहां धरती और आसमान मिलते हुए दीखते हैं वहां मेरा गाओं है। एक मिट्टी के घर कोने में एक लकड़ी के बक्सा बक्से के अंदर मेरे दादाजी के भगबत गीता मेरे बचपन के कुछ किताबें और कुछ कोरा कागज़। में यही कहीं रहता हूँ और सपने देखते रहता हूँ कोई मुझे अँधेरा कोई तन्हाई […] Read more »
कविता सुख की चाह में November 27, 2023 / November 27, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment असीम समृद्धिशाली जागीरें मेरे जीवन की बियावान धरती से सॅटकर जगत पिता परमेश्वर ने अपनी अन्य संतानों में असमान वितरित की है? जीवन की इन सब जागीरों में चंद लोगों ने सुन्दरतम महल बनाकर सुख के फाटक लगाये हैं मेरे ये तथाकथित पड़ोसी अपने महल की खिड़कियों से रात गये बेईमान सुन्दरी को काले लिबास […] Read more »
कविता व्यभिचार November 21, 2023 / November 21, 2023 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment जीत करके देह किसी की, क्या तुमने जग को जीत लिया।नग्न मानसिकता है तुम्हारी, जो मानवता को तुमने रिक्त किया।।हो महान तुम सब भी, नारी नोच कर खाते हो।तन को मार पशु भी खाए, तुमने नीच को मीत किया।। दर्पण में कभी खुद को देखो, क्या कभी हंस भी पाओगे।जिस नारी को खेल समझते, उसके […] Read more » व्यभिचार
कविता कितना ओछा है आदमी November 17, 2023 / November 17, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment मेरे अवचेतन मन में दफन है शब्दों का सागर जब कभी चेतना आती है मेरा मन भर लाता है शब्दों की एक छोटी सी गागर। जब मैं गागर को उलीचता हूँ तो शब्दों के जल में मिलते है सांस्कृतिक मूल्य,परनिंदा ओर कल्पनाओं का सुनहरा संसार । सत्य धीरे-धीरे बन जाता है कल्पनाजीवी शब्दों का जाल […] Read more » कितना ओछा है आदमी
कविता संकल्प November 15, 2023 / November 14, 2023 by लोकेन्द्र सिंह राजपूत | Leave a Comment दीपों के इस महा उत्सव में एक दीप कर्म-ज्योति का हम भी जलाएं। धरा के गहन तिमिर को हर लें हम स्वमेव दीपक बन जाएं।। भारत के नवोत्थान के प्रयत्नों में एक अमर प्रयत्न हम भी कर जाएं। उत्कृष्ट भारत के निर्माण में काम आए हम नींव के पत्थर बन जाएं।। नवयुग के इन निर्माणों […] Read more » Resolution
कविता अगर ब्राह्मणवाद बुरा है तो बहुजनवाद भला कैसे? November 9, 2023 / November 9, 2023 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायक ये कैसी है दोयम दर्जे की घृणित मानसिक प्रवृत्ति कि एक तरफ सीता राम को मान रहे काल्पनिक मगर राम द्वारा शूद्र शंबूक हत्या को वास्तविक! ये कैसी समाज को विभाजित करने की है दुर्नीति कि वाल्मीकीय रामायण को मिथ्या कथा समझते मगर पेरियार के सीता चरित्र हनन को सच कहते! अगर […] Read more » If Brahminism is bad then how can Bahujanism be good?
कविता हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये November 9, 2023 / November 9, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये तेरी वंदना कर सकु मुझे दो क्षण तो दीजिये दो पुष्प चरणों में धरू इंतजाम ऐसा कीजिये अवशेष नही हो वंदना मेरी अर्चना पूरी कीजिये कभी दो पग चलकर,मैं मंदिर न तेरे आया दो नयनों की करुण व्यथा,मैं तुझे सुना न पाया अश्रु भरे इन नयनों की,लाज आज […] Read more » Hey Veenapani
कविता मनुष्य का ज्ञान हमेशा अपने माँ-पिता के ज्ञान से कम होता November 9, 2023 / November 9, 2023 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायक मनुष्य का ज्ञान हमेशा अपने माँ-पिता के ज्ञान से कम होता मनुष्य उम्र के साथ-साथ आवश्यकतानुसार ज्ञान अर्जन संवर्धन करता ज्ञान न तो शत प्रतिशत अर्जित होता और न पूर्णतः संचित संवर्धित होता बल्कि समय के साथ ज्ञान विस्मृत होते जाता किन्तु ज्ञान अनुभव रुप में आजीवन स्मृत रहता मनुष्य सदा ज्ञान […] Read more »
कविता एक टीस अंतरमन में November 6, 2023 / November 6, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment जब भी मेरे प्राणों में अवतरित होता है सत्यगीत देह वीणा बन जाती है, सत्य बन जाता है परमसंगीत। एक टीस सी उठती है हृदय में, किसी को मैं दिखला न सका जीवन सॉसों के बंधन पर, ह़दय के क्रंदन को मैं जान न सका। रिसता प्राणों से जो हरपल, जैसे टूट रहा सॉसों का […] Read more » एक टीस अंतरमन में
कविता प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता November 6, 2023 / November 6, 2023 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायक जीव जगत को चलानेवाला सातवें आसमान में बैठा कोई ईश्वर अल्लाह खुदा अवतार पैगम्बर नहीं होता, जो भी होता जन-जन कण-कण धरा-गगन में होता, प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता! ये धरा जल पवन अगन गगन के मिलन से जीवन, ये धरणी हमें धारण करती,धरा ही अन्न धन भोजन, […] Read more » प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता