लेख शख्सियत क्षणजन्मा डॉक्टर हेनरी नॉर्मन बेथुन June 22, 2017 / June 22, 2017 by गंगानन्द झा | Leave a Comment किताब चलते रहने का हौसला पैदा करती है, रास्ता दिखाती है और कभी कभी हमारा रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है। — अनाम कभी कभार ही ऐसा होता है कि आपके हाथ ऐसी किताब लग जाए जो सालों बीत जाने पर भी आपकी चेतना को संस्कार-मण्डित करती रहती है और सदा के लिए महत्वपूर्ण […] Read more » Featured हेनरी नॉर्मन बेथुन
लेख साहित्य बटेश्वर के मंदिरों का खतरों से भरा जीर्णोद्धार कार्य June 12, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment चम्बल की घाटी में लगभग 10 एकड़ जगह में बने इन मंदिरों के बारे में जब पता चला कि एक मुस्लिम अधिकारी डॉ के. के. मुहम्मद ने इनके जीर्णोद्धार करने का बीड़ा उठाया है तो सबको बहुत ही आश्चर्य हुआ। उस समय मुश्किल यह थी कि वहां आसपास चम्बल के डकैतों का डर व्याप्त था। इसलिए न तो कोई अधिकारी आगे बढ़ रहा था और न काम करने वाले मजदूर। Read more » बटेश्वर
लेख साहित्य ब्रह्मा विष्णु और रुद्र के संयुक्त स्वरुपवाली विश्व की पहली स्मार्ट सिटी है अयोध्या June 10, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | 1 Comment on ब्रह्मा विष्णु और रुद्र के संयुक्त स्वरुपवाली विश्व की पहली स्मार्ट सिटी है अयोध्या डा. राधेश्याम द्विवेदी वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग 144कि.मी) लम्बाई तीन योजन (लगभग 36 कि.मी.) चौड़ाई में […] Read more » Featured अयोध्या
लेख साहित्य आजादी के महानायक बिरसा मुंडा June 9, 2017 by मृत्युंजय दीक्षित | Leave a Comment 9 जून विशेषः- मृत्युंजय दीक्षित आजादी के महानायक और मुंडा आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा । बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों से जबर्दस्त संघर्ष करते हुए 9 जून 1900 को अंतिम संास ली थी। ज्ञातव्य है कि तत्त्कालीन झारखंड राज्य अंग्रेजांे के आधीन हो चुका था और अंग्रेजों ने आदिवासियों के साथ काफी निर्ममतापूर्वक व्यवहार किया […] Read more » बिरसा मुंडा
लेख साहित्य भारत के राष्ट्रपुरुष शिवाजी महाराज June 8, 2017 by ललित कौशिक | Leave a Comment ललित कौशिक जब देश परतंत्र में जाता है तब शासनकर्ता की जमात का अनुकरण और अनुसरण लोग करने लगते हैं और समाज का नेतृत्व करने वाले विद्वतजन, सेनानी, राजधुरंधर परानुकरण में धन्यता मानने लगते हैं. जिससे समाज भी इन्हीं लोगों का अनुकरण करना शुरू कर देता है जिसके कारण धर्म की ग्लानि होती है, परधर्म […] Read more »
लेख साहित्य कौन कहता है कि हम एक हजार वर्ष गुलाम रहे June 7, 2017 by राकेश कुमार आर्य | 3 Comments on कौन कहता है कि हम एक हजार वर्ष गुलाम रहे झूठे चाटुकारों से और लेखनी को बेचकर व आत्मा को गिरवी रखकर लिखने वाले इतिहासकारों से स्वतंत्रता के अमर सैनानियों के ये पावन स्मारक यही प्रश्न कर रहे हैं। समय के साथ हम इन प्रश्नों को जितना उपेक्षित और अनदेखा करते जा रहे हैं-उतना ही बड़ा प्रश्नचिन्ह लगता जा रहा है। Read more » 712 ई. में मौहम्मद बिन कासिम Featured गुरू अर्जुन गुरू गोविंद सिंह गुरू तेगबहादुर गोरा और बादल जयमल और फत्ता दुर्गादास और शिवाजी पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी महाराणा सांगा और प्रताप राजा कर्ण हजार वर्ष गुलाम हरि सिंह नलवा
लेख साहित्य महाकवि रंगपालजी की लोक रचनाएं May 25, 2017 / May 25, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी (स्रोत : डा. मुनिलाल उपाध्याय कृत “बस्ती जनपद के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान” भाग 1) रंगपाल नाम से विख्यात महाकवि रंग नारायण पाल जूदेश वीरेश पाल का जन्म सन्तकबीर नगर (उत्तर प्रदेश) के नगर पंचायत हरिहरपुर में फागुन कृष्ण 10 संवत 1921 विक्रमी को हुआ था। ‘बस्ती जनपद के छन्दकारों का सहित्यिक […] Read more » महाकवि रंगपालजी
लेख साहित्य 1857 की क्रांति की 160वीं जयंती May 25, 2017 / May 25, 2017 by डॉ शैलेन्द्र कुमार | Leave a Comment कई इतिहासकारों ने यह भी कहा है कि इस युद्ध में पूरा देश शामिल नहीं था। इसलिए इसे राष्ट्रीय युद्ध की संज्ञा देना अनुचित होगा। तो प्रश्न उठता है कि किसी स्थान विशेष में किया गया युद्ध राष्ट्रीय क्यों नहीं हो सकता। इस पर यदि गहराई से विचार करें तो बीसवीं शताब्दी के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी ऐसे अनेक आंदोलन हुए जो किसी स्थान विशेष तक ही सीमित रह गए। यहां तक कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की तीव्रता भी सारे देश में एक समान नहीं थी। Read more » 1857 की क्रांति Featured the revolution of 1857
लेख साहित्य अपदीपो भव …………. May 11, 2017 by वीरेंदर परिहार | Leave a Comment भगवान बुद्ध ने कहा कि वही सुखी है जो जय-पराजय की भावना का त्याग करता है। वजह यह कि जय की भावना से बैर उत्पन्न होता है, पराजय से दुःख उत्पन्न होता है। उनका मानना था - अक्रोध के द्वारा क्रोध को, साधुता के द्वारा असाधु भाव को, दान के द्वारा कदर्प और सत्य के द्वारा मृषावाद या झूंठ को जीतना चाहिए। उनके अनुसार जिसका किसी से बैर नही है और जो सभी प्राणियों से मैत्री करता है वही सुखी होता है। Read more » बुद्ध पूर्णिमा
लेख साहित्य आदि पत्रकार देवर्षि नारद May 11, 2017 by मृत्युंजय दीक्षित | Leave a Comment 12 मई पर विशेष:- मृत्युंजय दीक्षित सृष्टिकर्ता प्रजापति ब्रहमा के मापस पुत्र पारद। महान तपस्वी तेजस्वी सम्पूर्ण वेदान्त शास़्त्र के ज्ञाता तथा समस्त विद्वाओं में पारंगत नारद। ब्रहमतेज से संपन्न हैं। नारद जी क महान कृतित्व व व्यक्तित्व पर जितनी भी उपमाएं लिखी जायें बेहद कम हैं। देवर्षि नारद ने अपने धर्मबल से परमात्मा का […] Read more » Featured आदि पत्रकार देवर्षि नारद देवर्षि नारद
लेख साहित्य 1857 की क्रान्ति का नायक धनसिंह गुर्जर कोतवाल May 10, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment कोतवाल धनसिंह ने इन आजादी के दीवानों की सेना का रामराम करके स्वागत किया और उनसे पूछा कि क्या चाहते हो? उसने अपनी ओर से लोगों से कहा कि-'मारो फिरंगी को और देश को आजाद कराओ।' हनुमान की जय बोलकर इन सिरफिरे देशभक्तों की सेना कोतवाल धनसिंह के घोड़े के पीछे-2 चल दी, वह पुलिस जो इनके विशाल दल को रोकने के लिए तैनात थी, वह भी अपने कोतवाल के पीछे पीछे चल पड़ी। इन्होंने पहला धावा मेरठ की नई जेल पर बोल दिया। इन्होंने जेल से 839 कैदियों को मुक्त कराया और वे भी मुक्त होकर स्वतंत्रता सेनानियों के इस दल के साथ मिल गए और अंग्रेेजों की मेरठ जेल तोड़ दी । वहां से यह भीड़ मेरठ शहर और सिविल लाइन में घुस गई और अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों को आग लगाना और उन्हें मारना शुरू कर दिया। Read more » 1857 की क्रान्ति का नायक Featured धनसिंह गुर्जर धनसिंह गुर्जर कोतवाल
लेख साहित्य माहिष्मती के समृद्ध इतिहास को कौन नहीं बूझना चाहता May 8, 2017 by अलकनंदा सिंह | Leave a Comment उस समय मुस्लिम थे ही कहां? और जब मुस्लिम थे ही नहीं तो फिल्म में मुस्लिम किरदार कैसे घुसाया जाता? घुसा भी दिया जाता तो शायद वामपंथी इस बात पर सिर पीटते कि मुस्लिमों को बदनाम करने के लिए इतिहास से छेड़छाड़ की गई है क्योंकि मुस्लिम शासकों का किरदार प्रशंसा के योग्य सिर्फ अपवाद स्वरूप ही मिलता है। Read more » Featured माहिष्मती माहिष्मती के समृद्ध इतिहास