विविधा व्यंग्य प्याज का मारा इक दुखिया बेचारा August 24, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment जबसे मैंने अपने दोस्त का चेहरा देखा है, अपने सा बेरंग ही देखा है। हो सकता है कभी उनके चेहरे पर नूर रहा हो, जब वे अविवाहित रहे हों। असल में वे मेरे जिगरी दोस्त विवाह के बाद ही हुए हैं। जो मैं विवाहित न होता, वे विवाहित न होते शायद ही हम एक […] Read more »
पर्यावरण राजनीति व्यंग्य डिपेन्डेन्स वाया वल्र्ड वाटर लीग-2020 August 23, 2015 by अरुण तिवारी | 1 Comment on डिपेन्डेन्स वाया वल्र्ड वाटर लीग-2020 उल्लेखनीय है कि भारत के पानी के प्रति दुनिया के कर्जदाता देशों के नजरिये और नतीजे बता रहे हैं कि भारत का पानी उनके बिजनेस खेल का शिकार बन चुका है। इसे सहज ही समझाने की दृष्टि से सीधे संवाद शैली में लिखा एक व्यंग्य लेख डियर इंडि ! मैं, दुनिया के रेगुलेटर्स के प्रतिनिधि […] Read more »
विविधा व्यंग्य सर का शौर्य, साहब का शोक….!! August 20, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा आज का अखबार पढ़ा तो दो परस्पर विरोधाभासी खबरें मानों एक दूसरे को मुंह चिढ़ा रही थी। पहली खबर में एक बड़ा राजनेता अपनी बिरादरी का दुख – दर्द बयां कर रहा था। उसे दुख था कि जनता के लिए रात – दिन खटने वाले राजनेताओं को लोग धूर्त और बेईमान समझते […] Read more » सर का शौर्य साहब का शोक
कविता विविधा मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला August 19, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला जब हर कोई मेरा साथ छोड़ दे , दुनिया के भीड़ में तन्हा छोड़ दे तब ज़िन्दगी की तन्हाइयों में एक तेरा ही तो साया ; मेरे साथ होता है मेरे मौला मेरा सब कुछ अब तू […] Read more » मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
कविता विविधा स्वामी विवेकानंद August 19, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment आज भी परिभाषित है उसकी ओज भरी वाणी से निकले हुए वचन ; जिसका नाम था विवेकानंद ! उठो ,जागो , सिंहो ; यही कहा था कई सदियाँ पहले उस महान साधू ने , जिसका नाम था विवेकानंद ! तब तक न रुको , जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो … कहा था […] Read more » स्वामी विवेकानंद
कविता विविधा रूपांतरण August 17, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on रूपांतरण एक भारी वर्षा की शाम में अकेले भीगते हुए … .. और अंधेरे आकाश की ओर ऊपर देखते हुए .. जो की भयानक तूफ़ान के साथ गरज रहा था और .. आसपास कई काले बादल भी छाए हुए थे मैंने प्रभु से प्रार्थना करना शुरू कर दिया की ; अधिक से अधिक ,ऐसी भारी बारिश […] Read more » रूपांतरण
कविता प्रवक्ता न्यूज़ विविधा ||| आओ सजन ||| August 14, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन ! तेरे दर्शन को तरसे है ; मेरे भीगे नयन ! घर , दर सहित सजाया है ; अपने मन का आँगन !! आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!! तू नहीं तो जग , क्यों सूना सूना सा लगता है ! तू […] Read more » आओ सजन
विविधा व्यंग्य मान और अपमान August 7, 2015 by विजय कुमार | 1 Comment on मान और अपमान विद्वानों के अनुसार सृष्टि के जन्मकाल से ही मान और अपमान का अस्तित्व है। लक्ष्मण जी ने वनवास में शूर्पणखा की नाक काटी थी। उसने इस अपमान की रावण से शिकायत कर दी। अतः सीता का हरण हुआ और फिर रावण का कुलनाश। द्रौपदी के एक व्यंग्य ‘‘अंधे का पुत्र अंधा ही होता है’’ ने […] Read more » अपमान मान
कविता विविधा जोगन August 5, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे ! तेरे बिन कोई नहीं मेरा रे ; हे श्याम मेरे !! मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे ! तेरी बंसुरिया की तान बुलाये मोहे सब द्वारे छोड़कर चाहूं सिर्फ तोहे तू ही तो है सब कुछ रे , हे श्याम मेरे ! […] Read more »
कविता ||| एक नज़्म : सूफी फकीरों के नाम || August 3, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on ||| एक नज़्म : सूफी फकीरों के नाम || कोई पूछे की मैं हूँ कौन लोग कहते है की बावरा हूँ तेरी मोहब्बत में लोग कहते है की आवारा फिरता हूँ तेरी मोहब्बत में लोग कहते है की जुनूने साये में रहता हूँ तेरी मोहब्बत में ;सच कहता हूँ की क़यामत आये और मैं तुझसे मिल जाऊं तुझमे मिल जाऊं एक बार एक पर्वत […] Read more » सूफी फकीरों के नाम
गजल विविधा अपनों से भरी दुनियाँ August 3, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १५०८०१) अपनों से भरी दुनियाँ, मगर अपना यहाँ कोंन; सपनों में सभी फिरते, समझ हर किसी को गौण ! कितने रहे हैं कोंण, हरेक मन के द्रष्टिकोंण; ना पा सका है चैन, तके सृष्टि प्रलोभन ! अधरों पे धरा मौन, कभी निरख कर नयन; आया समझ में कोई कभी, जब थे सुने वैन ! […] Read more » अपनों से भरी दुनियाँ
कविता विविधा ||| आहट ईश्वर की ……!!! ||| August 3, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment ये कैसी अजनबी आहट है .. कौन है यहाँ , किसकी आहट है ये … जो मन में नए भाव जगा रही है . ये तो तुम हो मेरे प्रभु…. हे मेरे मनमंदिर के देवता कबसे तुझसे मिलने की प्यास थी मन में . आज एक पहचानी सी आहट आई तो देखा की तुम थे […] Read more » ||| आहट ईश्वर की ......!!! |||