कविता विविधा उड़ान June 19, 2015 / June 19, 2015 by श्रद्धा सुमन | Leave a Comment कोई बता दे मुझे मेरी पहचान क्या है हूँ दीया कि बाती, या फिर उसकी पेंदी का अंधकार, हूँ तिलक उनकी ललाट पर या बस म्यान में औंधी तलवार… है आज द्वंद उठी, आंधी सवालों की एक हूक थी दबी जो अब मार रही चित्कार… हूँ कलश पल्लव से ढ़की, या बस चरणोदक या फिर […] Read more » Featured उड़ान
विविधा व्यंग्य आलेख : एंग्लो इंडियन को विशेष सुविधाएं क्यों ? June 17, 2015 / June 17, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment भारत में एंग्लो इंडियन (आंग्ल भारतीय/आ.भा.) कितने हैं, इसके ठीक आंकड़े उपलब्ध नहीं है। देश में कई स्थानों पर ये रहते हैं; पर इन्हें संविधान द्वारा कई विशेष सुविधाएं दी जाती हैं। भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान अधिकांश अंग्रेज अधिकारी अकेले ही रहते थे। ऐसे में उनके कई भारतीय महिलाओं से वैध/अवैध सम्बन्ध बन […] Read more » Featured एंग्लो इंडियन
व्यंग्य मौसम अपना – अपना …! June 16, 2015 / June 16, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- इस गलतफहमी में आप कतई न पड़ें कि मैं किसी समाजवादी आंदोलन का सिपाही हूं। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे अपनी खटारा साइकिल से मोह बचपन से ही है। उम्र गुजर गई लेकिन आज न तो साइकिल से एक पायदान ऊपर उठ कर बाइक तक पहुंचने की अपनी हैसियत बना पाया और […] Read more » Featured मौसम मौसम अपना – अपना व्यंग्य
कविता आज भी न बरसे कारे कारे बदरा June 13, 2015 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment -श्रीराम तिवारी- आज भी न बरसे कारे कारे बदरा, आषाढ़ के दिन सब सूखे बीते जावे हैं । अरब की खाड़ी से न आगे बढ़ा मानसून , बनिया बक्काल दाम दुगने बढ़ावे है। वक्त पै बरस जाएँ कारे–कारे बदरा , दादुरों की धुनि पै धरनि हरषावे है।। कारी घटा घिर आये ,खेतों में बरस जाए , सारंग की धुनि संग सारंग भी गावै है। बोनी की बेला में जो देर करे […] Read more » Featured आज भी न बरसे कारे कारे बदरा कविता बारिश कविता
व्यंग्य व्यंग्य बाण : मिलावट के लिए खेद है June 13, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment –विजय कुमार- गरमी में इन्सान तो क्या, पेड़–पौधे और पशु–पक्षियों का भी बुरा हाल हो जाता है। शर्मा जी भी इसके अपवाद नहीं हैं। कल सुबह पार्क में आये, तो हाथ के अखबार को हिलाते हुए जोर–जोर से चिल्ला रहे थे, ‘‘देखो…देखो…। क्या जमाना आ गया है ?’’ इतना कहकर वे जोर–जोर से हांफने लगे। […] Read more » Featured मिलावट मिलावट के लिए खेद है व्यंग्य
कविता परिंदे June 10, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनोज चौहान- 1) कविता / परिंदे मैं करता रहा, हर बार वफा, दिल के कहने पर, मुद्रतों के बाद, ये हुआ महसूस कि नादां था मैं भी, और मेरा दिल भी, परखता रहा, हर बार जमाना, हम दोनों को, दिमाग की कसौटी पर । ता उम्र जो चलते रहे, थाम कर उंगली, वो ही […] Read more » Featured कविता परिंदे
कविता मौत एक गरीब की June 10, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 3 Comments on मौत एक गरीब की -मीना गोयल ‘प्रकाश’- कुछ वर्ष पहले हुई थी एक मौत… नसीब में थी धरती माँ की गोद … माँ का आँचल हुआ था रक्त-रंजित… मिली थी आत्मा को मुक्ति… सुना है आज अदालत में भी… हुई हैं कुछ मौतें… है हैरत की बात… नहीं हुई कोई भी आत्मा मुक्त… होती है मुक्त आत्मा… मर […] Read more » Featured कविता मौत एक गरीब की
कहानी आंटी नहीं फांटी… June 10, 2015 / June 10, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -क़ैस जौनपुरी- “चार समोसे पैक कर देना.” जी, और कुछ? और…ये क्या है? ये साबुदाना वड़ा है. ये भी चार दे देना. नाश्ते की दुकान पर खड़ा लड़का ग्राहक के कहे मुताबिक चीजें पैक कर रहा है. ग्राहक नज़र घुमा के चीजों को देख रहा है. दुकान में बहुत कुछ है. जलेबी…लाल इमिरती…और वो क्या […] Read more » Featured आंटी नहीं फांटी कहानी
कविता मां June 8, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment -विजय कुमार सप्पाती- “माँ / तलाश” माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा; वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी .. ! लेकिन अपने गाँव/छोटे शहर की गलियों में , मैं अक्सर छुप जाया करता था ; और माँ ही हमेशा मुझे ढूंढ़ती थी ..! और मैं छुपता भी इसलिए था […] Read more » Featured कविता मां मां कविता मां पर कविता
कविता सबसे खूबसूरत हो तुम June 8, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनीष सिंह- बाहर से जितनी मासूम , मन से भी उतनी खूबसूरत हो तुम , एक कलाकार की पूरी मेहनत से तराशी गयी जैसे मूरत हो तुम। एक कवि की सबसे प्यारी कल्पना , चित्रकार की सबसे बड़ी रचना , कभी सबसे अच्छा ख़्वाब और कभी सबसे प्यारी हकीकत हो तुम। जैसे खिलता […] Read more » Featured कविता सबसे खूबसूरत हो तुम
साहित्य भाषा और समाज June 6, 2015 / June 6, 2015 by गंगानन्द झा | 1 Comment on भाषा और समाज -गंगानंद झा- बात सन् 1989 की है, ‘बाबरी मस्जिद-राम मन्दिर’ का हंगामा चल रहा था, तभी कुछ दोस्तों ने शहर की दीवालों पर जगह-जगह चिपके बहुत सारे पोस्टर्स की ओर ध्यान दिलाया । ये पोस्टर्स उर्दू में थे, इनके मज़मून के बारे में कहा जा रहा था कि मुसलमानों को बाबरी मस्जिद के नाम पर […] Read more » Featured उर्दू देश भाषा भाषा और समाज समाज हिन्दी
कविता बस, मैं और चाँद June 5, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- थोड़ी सी बूँदे गिरने से, धूल बूँदों मे घुलने से, हर नज़ारा ही साफ़ दिखता है। रात सोई थी मैं, करवटें बदल बदल कर, शरीर भी कुछ दुखा दुखा सा था, पैर भी थके थके से थे, मन अतीत मे कहीं उलझा था। खिड़की की ओर करवट लिये, रात सोई थी मैं। […] Read more » Featured कविता चांद कविता बस मैं और चाँद