समाज कब तक दाना मांझी बहरीन के शाह या कैमरे के लैन्सों की बाट जोहेंगे September 17, 2016 / September 17, 2016 by अशोक त्रिवेदी | Leave a Comment सामाजिकता कितनी उथली होती जा रही है। हमारा सामाजिक सरोकार कितना सीमित होता जा रहा है। यह असंवेदनशीलता की पराकाष्ठ नहीं तो क्या है। आज भी देश में कितने दाना मांझी व्यवस्था, गरीबी, तिरस्कार तथा असंवेदनशीलता की लाश अपने कन्धों पर उठाये घूम रहे होंगे, इस इन्तजार में कि कोई कैमरा उनके जीवन के इन […] Read more » Featured कैमरे के लैन्सों की बाट जोहेंगे दाना माझी बहरीन के शाह
समाज भगवान तो छोड़िये क्या इंसान भी कहलाने लायक है यह ! September 16, 2016 / September 17, 2016 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment “एक अच्छा चिकित्सक बीमारी का इलाज करता है , एक महान चिकित्सक बीमार का –विलियम ओसलर ।“ मध्यप्रदेश का एक शहर ग्वालियर , स्थान जे ए अस्पताल , एक गर्भवती महिला ज्योति 90% जली हुई हालत में रात 12 बजे अस्पताल में लाईं गईं , उनके साथ उनकी माँ और भाई भी जली हुई हालत में थे ।ज्योति और उसकी माँ को बर्न यूनिट में भर्ती कर लिया गया लेकिन उसके भाई सुनील को लगभग दो घंटे तक बाहर ही बैठा कर रखा ।उसके बाद जब सुनील का इलाज शुरू किया गया तब तक काफी देर हो चुकी थी और उन्होंने दम तोड़ दिया। जब घरवालों ने इस घटना के लिए समय पर इलाज न करने का आरोप डाक्टरों पर लगाया तो यह ‘ धरती के भगवान ‘ नाराज हो गए और 90% जली हुई गर्भवती ज्योति को बर्न यूनिट से बाहर निकाल दिया और वह इस स्थिति में करीब 5 घंटे खुले मैदान में पड़ रही। जब एक स्थानीय नेता बीच में आए तो इनका इलाज शुरू हुआ। इससे पहले डाक्टरों का कहना था कि ‘ तू ज्यादा जल गई है …..जिंदा नहीं बचेगी …..तेरा बच्चा भी पेट में मर गया है….. ‘ ( सौजन्य दैनिक भास्कर) क्या यही वह सपनों का भारत है जिसके लिए भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव हँसते हुए फाँसी पर झूल गए थे ? क्या इसी प्रकार के भारत का स्वप्न राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने देखा था ? क्या यह भारत विश्व गुरु बन पायेगा ? जिस डाँक्टर को हम ईश्वर का दर्जा देते हैं , जो डाँक्टर अपनी डिग्री लेने से पूर्व मानवता की सेवा करने की शपथ लेते हैं , जिनके पास न सिर्फ मरीज अपितु उनके परिजन भी एक विश्वास एक आस लेकर आते हैं उनका इस प्रकार का अमानवीय व्यवहार किस श्रेणी में आता है ? क्यों आज चिकित्सा क्षेत्र सेवा न होकर व्यवसाय बन गया है ? आबादी के हिसाब से दुनिया के दूसरे बड़े देश भारत में न सिर्फ स्वास्थ्य सेवाएं दयनीय स्थिति में हैं बल्कि जिन हाथों में देश के बीमार आम आदमी का स्वास्थ्य है उनकी स्थिति उससे भी अधिक चिंताजनक है । यह बात सही है कि कुछ डाँक्टरों के शर्मनाक व्यवहार के कारण सम्पूर्ण डाँक्टरी पेशे को कटघड़े में खड़ा नहीं किया जाना चाहिए किन्तु यह भी सत्य है कि मुट्ठीभर समर्पित डाँक्टरों के पीछे इन अनैतिक आचरण करने वाले डाँक्टरों को छिपाया भी नहीं जा सकता। बात अनैतिक एवं अमानवीय आचरण तक सीमित नहीं है । बात यह है कि आज मानवीय संवेदनाओं का किस हद तक ह्रास हो चुका है ! जिस डाँक्टर को मरीज की आखिरी सांस तक उसकी जीवन की जंग जीतने में मरीज का साथ देना चाहिए वही उसे मरने के लिए छोड़ देता है ! उसकी अन्तरात्मा उसे धिक्कारती नहीं है , किसी कार्यवाही का उसे डर नहीं है । एक इंसान की जान की कोई कीमत नहीं है ? क्यों आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी आज भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का एक मजबूत ढांचा तैयार नहीं हो पाया ? क्यों आज तक हम एक विकासशील देश हैं ? क्यों हमारे देश का आम आदमी आज तक मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों से मर रहा है और वो भी देश की राजधानी में ! जब श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों ने इन पर विजय प्राप्त कर ली है तो भारत क्यों आज तक एक मच्छर के आगे घुटने टेकने पर विवश है ? अगर प्रति हजार लोगों पर अस्पतालों में बेड की उपलब्धता की बात करें तो ब्राजील जैसे विकासशील देश में यह आंकड़ा 2.3 है , श्रीलंका में 3.6 है ,चीन में 3.8 है जबकि भारत में यह 0.7 है।सबसे अधिक त्रासदी यह है कि ग्रामीण आबादी को बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं के लिए न्यूनतम 8 कि . मी . की यात्रा करनी पड़ती है। भारत सकल राष्ट्रीय आय की दृष्टि से विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है लेकिन जब बात स्वास्थ्य सेवाओं की आती है इसका बुनियादी ढांचा कई विकासशील देशों से भी पीछे है।अमेरिका जहाँ अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी ) का 17% स्वास्थ्य पर खर्च करता है वहीं भारत में यह आंकड़ा महज 1% है ।अगर अन्य विकासशील देशों से तुलना की जाये तो बांग्लादेश 1.6% श्रीलंका 1.8% और नेपाल 1.5% खर्च करता है तो हम स्वयं अपनी चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता का अंदाजा लगा सकते हैं। भारत एक ऐसा देश है जिसने अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य का तेजी से निजिकरण किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति 1000 आबादी पर एक डाक्टर होना चाहिए लेकिन भारत इस अनुपात को हासिल करने की दिशा में भी बहुत पीछे है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सर्जरी , स्त्री रोग , और शिशु रोग जैसे चिकित्सा के बुनियादी क्षेत्रों में 50% डाक्टरों की कमी है। शायद इसीलिए केंद्र सरकार ने अगस्त 2015 में यह फैसला लिया था कि वह विदेशों में पढ़ाई करने वाले डाक्टरों को ‘ नो ओब्लिगेशन टू रिटर्न टू इंडिया ‘ अर्थात् एनओआरआई सर्टिफ़िकेट जारी नहीं करेगी जिससे वे हमेशा विदेशों में रह सकते थे। चिकित्सा और शिक्षा किसी भी देश की बुनियादी जरूरतें हैं और वह हमारे देश में सरकारी अस्पतालों एवं स्कूलों में मुफ्त भी हैं लेकिन दोनों की ही स्थिति दयनीय है। सरकारी अस्पतालों में डाक्टर मिलते नहीं हैं और मिल जांए तो भी ठीक से देखते नहीं हैं अगर आपको स्वयं को ठीक से दिखवाना है तो या तो किसी बड़े आदमी से पहचान निकलवाइए या फिर पैसा खर्च करके प्राइवेट में दिखवाइए । आज आए दिन अस्पतालों में कभी किडनी रैकेट तो कभी खून बेचने का रैकेट या फिर बच्चे चोरी करने का रैकेट अथवा भ्रूण लिंग परीक्षण और फिर कन्या भ्रूण हत्या इस प्रकार के कार्य किए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार ने कानून नहीं बनाए फिर ऐसी क्या बात है कि न तो उनका पालन होता है और न ही कोई डर है। क्यों सरकारी अस्पतालों की हालत आज ऐसी है कि बीमारी की स्थिति में एक मध्यम वर्गीय परिवार सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के बजाय प्राइवेट अस्पताल का महंगा इलाज कराने के लिए मजबूर है । एक आम भारतीय की कमाई का एक मोटा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है। आजादी के इतने सालों बाद भी हमारी सरकार अपने देश के हर नागरिक के स्वास्थ्य के प्रति असंवेदनशील है। जिस आम आदमी की आधी से भी अधिक कमाई और उसकी पूरी जिंदगी अपनी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करते निकल जाती हो उससे आप क्या अपेक्षा कर सकते हैं। जिन सुविधाओं और सुरक्षा के नाम पर उससे टैक्स वसूला जाता है उसका उपयोग न तो उसके जीवन स्तर को सुधारने के लिए हो रहा हो और न ही देश की उन्नति में , जिस आम आदमी की इस देश से बुनियादी अपेक्षाएँ पूरी न हो रही हों वह आम आदमी इस देश की अपेक्षाएँ कैसे पूरी कर पाएगा? अगर इस देश और इसके आम आदमी की दशा को सुधारना है तो राष्ट्रीय इन्श्योरेन्स मिशन को लागू करने की दिशा में कड़े और ठोस कदम उठाने होंगे। डाँ नीलम महेंद्र Read more » Featured irresponsible behaviour of doctors अनैतिक एवं अमानवीय आचरण कुछ डाँक्टरों के चिकित्सक शर्मनाक व्यवहार
समाज सांप्रदायिक सद्भाव में ‘पलीता’ लगाने के प्रयास ? September 13, 2016 / September 13, 2016 by तनवीर जाफरी | 2 Comments on सांप्रदायिक सद्भाव में ‘पलीता’ लगाने के प्रयास ? तनवीर जाफ़री भारतवर्ष में जहां आए दिन अल्पसंख्यकों तथा दलितों के साथ होने वाले अन्याय की ख़बरें कहीं न कहीं से आती रहती हैं वहीं इसी देश में अनेक ख़बरें ऐसी भी प्राप्त होती रहती हैं जिन्हें सुनकर यह विश्वास होता है कि सांप्रदायिक शक्तियां चाहे कितनी भी कोशिशें क्यों न कर लें परंतु चूंकि […] Read more » Featured mosque to be rebuilt by hindu आलमगीरी मस्जिद की मरम्मत पलीता’ लगाने के प्रयास महंत ज्ञानदास सांप्रदायिक सद्भाव
समाज सभ्यता से बर्बरता की तरफ बढ़ने के आंसू September 9, 2016 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में चैंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं, जो नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों के घोर पतन को बयां करते हैं। इस रिपोर्ट में यह कहा जाना कि दिल्ली में दुष्कर्म के 90 फीसद से अधिक मामलों में आरोपी पीड़ित के परिचित या पारिवारिकजन ही होते […] Read more » Featured आंसू एनसीआरबी चारित्रिक मूल्यों के घोर पतन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो
समाज प्रवासियों का जमावड़ा नहीं होता राष्ट्र, इसका निर्धारण इसके प्रति अपनत्व रखने वालों से होता है – मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) जी डी बक्शी September 7, 2016 / September 7, 2016 by हरिहर शर्मा | 1 Comment on प्रवासियों का जमावड़ा नहीं होता राष्ट्र, इसका निर्धारण इसके प्रति अपनत्व रखने वालों से होता है – मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) जी डी बक्शी जबसे वामपंथियों को एक महानायक कामरेड कन्हैया मिला है, उन्होंने राष्ट्रवाद को लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक जबरदस्त अभियान शुरू कर दिया है, जो प्रकारांतर से भारत को खंड खंड देखने की उनकी चिर अभिलाषा का ही प्रगटीकरण है । कन्हैया गिरफ्तार हुआ और जल्द ही वामपंथी मीडिया के दबाव में छूट भी […] Read more » Featured प्रवासियों का जमावड़ा मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) जी डी बक्शी राष्ट्र
शख्सियत समाज आचार्य विनोबा भावे : रोशनी जिनके साथ चलती थी September 7, 2016 by ललित गर्ग | Leave a Comment आचार्य विनोबा भावे की जन्म जयन्ती- 11 सितम्बर -ललित गर्ग- महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोकहितकारी चिन्तन कालजयी होता है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। आचार्य विनोबा भावे हमारे ऐसे ही एक प्रकाश स्तंभ है, जिनकी जन्म जयन्ती 11 सितम्बर को मनाई जाती है। वे अपने […] Read more » Featured आचार्य विनोबा भावे
शख्सियत समाज चमत्कारों के बूते संत बनीं मदर टेरेसा September 5, 2016 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गव आखिरकार दो अलौकिक चमत्कारों के बूते मानव सेवा के लिए समर्पित और करुणा की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित कर दिया गया। रोमन कैथोलिक चर्च के वेटिकन सिटी स्थित सेंट पीटर्स में पोप फ्रांसिस ने टेरेसा को संत घोषित किया है। कोलकाता में 45 साल तक अनाथों, गरीबों और […] Read more » canonization of Mother Teresa Featured Mother Teresa became saint चमत्कारों के बूते संत बनीं मदर टेरेसा संत बनीं मदर टेरेसा
समाज सरकारी स्वास्थ्य विभाग को कौन सी दवा ठीक करेंगी ? September 5, 2016 by सुप्रिया सिंह | Leave a Comment आमतौर पर कहा जाता है कि व्यक्ति जीवन मे तीन चीजों से हमेशा बचना चाहता है – पहला पुलिस , दूसरा कोर्ट और तीसरा अस्पताल पर अब ऐसी परिस्थिति होती जा रही है कि ये तीनों ही व्यक्तियों से बचना चाहते है । कोर्ट एंव पुलिस मामलों की सुनवाई के लिए आती भीड़ से परेशान […] Read more » Featured सरकारी स्वास्थ्य विभाग
शख्सियत समाज मेजर तुझे सलाम September 5, 2016 by संजय चाणक्य | Leave a Comment संजय चाणक्य ‘‘ यादे अब यादे हो चली है ! जमाना तुम्हे भुलता जा रहा है!!’’ जब चैदह के उम्र में लोग अक्सर बचकाना हरकत करते है। उस समय घ्यानचंद ने अपने आत्म विश्वास का लोहा मनवाया था। वाक्या वर्ष 1919 का है जब […] Read more » Major Dhyanchand मेजर तुझे सलाम
शख्सियत समाज बापूराव ताजणे: मांझी जैसी एक और कहानी September 3, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी अपनी पत्नी के पैर फिसलकर पहाड़ से गिर जाने के बाद दशरथ मांझी द्वारा वर्षों की मेहनत से पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना देने की कहानी तो आपने सुनी ही होगी. मांझी की कहानी भले ही कई साल पुरानी हो लेकिन पति द्वारा अपनी पत्नी को मुश्किलों से बचाने की कहानियां […] Read more » बापूराव ताजणे
विधि-कानून समाज तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं को क्या न्याय मिलेगा ? September 3, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी अवैधानिक और महिलाओं के अधिकार का उल्लंघन:-मुस्लिम समाज में पति-पत्नी के बीच संबन्ध विच्छेद करने वाली परंपरा ‘तलाक-तलाक-तलाक’ को लेकर भले ही सुप्रीम कोर्ट संवैधानिकता को लेकर अध्ययन कर रहा हो, लेकिन देश की करीब 92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं इस मौखिक तलाक के खिलाफ है। केंद्र सरकार की धार्मिक समुदाय और सेक्स […] Read more » Featured ट्रिपल तलाक गैरकानूनी तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं को न्याय मौखिक तलाक के खिलाफ महिलाएं
शख्सियत समाज माउंटेन मैन दशरथ मांझी की कहानी September 1, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी मांझी की पृष्ठभूमि:- अपनी पत्नी के पैर फिसलकर पहाड़ से गिर जाने के बाद दशरथ मांझी द्वारा वर्षों की मेहनत से पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना देने की कहानी तो आपने सुनी ही होगी. बिहार में गया के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी के माउंटन मैन बनने का सफर उनकी […] Read more » Featured Mountain Man Story of Dashrath Manjhi दशरथ मांझी माउंटेन मैन