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‘आपरेशन सिंदूर’ एक सार्थक पहल और सख्त सन्देश

– ललित गर्ग-

पहलगाम आतंकी हमले में सुहागनों के सिन्दूर को उजाड़ने वालों पर कड़ा प्रहार करते हुए ‘आपरेशन सिंदूर’ की सफलतम कार्रवाई हर भारतीय के सीने को गर्व से भरने वाली है। बुधवार की सुबह पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकी शिविरों पर भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा की कई सटीक, संयमित एवं नपी-तूली कार्रवाई पाकिस्तान को करारा सबक एवं सख्त संदेश है। निश्चित ही अब भारत की आत्मा पर होने वाले हमलों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। ‘आपरेशन सिंदूर’ में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े नौ ठिकानों को निशाना बनाया गया। पाकिस्तान में मौजूद 90 आतंकी मारे गए। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का बदला लेने के लिए की गई, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। भारत भीतर घूस कर मारता है, इस बार भी उसने बिना पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश किये, आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करने का कार्य किया, जो बहुत सराहनीय कदम है, गौरवान्वित करने और जोश से भर देनेवाली साहसिक एवं अनूठी घटना है।
‘आपरेशन सिंदूर’ से आतंकवाद को समाप्त करने की दिशा में एक सार्थक पहल हुई है। शांति का आश्वासन, उजाले का भरोसा भारत से ही क्यों किया जाता है, कब तक हम अपनी मानवीयता एवं संवेदनशीलता को दर्शाते रहेंगे? इस बार समूचा देश एकजुट हुआ, उन्हें तो आतंक का माकूल जबाव चाहिए था, पाकिस्तान में पोषित हो रहे आतंकवाद के लिये कठोर कार्रवाई चाहिए थी। वायुसेना की इस कार्रवाई से न केवल भारत को बल्कि समूची दुनिया को राहत की सांसें मिली हैं। इस कार्रवाई से भारत ने पाकिस्तान को बेहद सख्त और निर्णायक संदेश दिया है कि अब आतंकवाद नहीं चलेगा। भारत ने किसी भी पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना नहीं बनाया गया है। भारत ने लक्ष्यों के चयन और निष्पादन के तरीके में काफी संयम बरता है। नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइलों से हवाई हमला किया गया। ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाया था, पहलगाम में 26 हिंदू पर्यटकों की नृशंस हत्या के बाद, यह जवाब भारतीय बहनों एवं सुहागिनों के लिए एक उचित प्रतिशोध है, जिन्होंने बर्बर आतंकी हमले में अपने पतियों को खो दिया।
भारत के बदले की कार्रवाई का समय भी महत्वपूर्ण है। एयर स्ट्राइक एक हिंदू परिवार में मौत के बाद शोक के 13 दिन (तेरहवीं) के बाद हुई और हमारी बहनों एवं पीड़ितों को उचित न्याय मिला है। भारतीय वायु सेना द्वारा अपनी सीमा के भीतर से दागी गई सटीक मिसाइलों के माध्यम से मुजफ्फराबाद, कोटली, गुलपुर, भिमबर, सियालकोट, चक अमरू, मुरीदके और बहावलपुर में केवल ज्ञात और पहचाने गए आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। भारत ने बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के कुख्यात आतंकी मुख्यालय को नष्ट कर स्पष्ट संदेश दिया है। जैश-ए-मोहम्मद चीफ हाफिज सैयद द्वारा बनाया गया यह स्थान आतंक का केंद्र, प्रयोगशाली एवं नर्सरी बन गया था। आगे भी भारतीय सेनाएं किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम और तैयार हैं। भारत आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने के अपने संकल्प पर दृढ़ है। पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान की बहानेबाजी एवं आतंकवाद को लगातार प्रोत्साहन एवं पल्लवन देने की स्थितियों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया था कि उसे न केवल सबक सिखाया जाए, बल्कि यह संदेश भी दिया जाए कि भारत अब उसकी चालबाजी में आने वाला नहीं है।
यदि भारत ने पाकिस्तान और वहां पल-पल पनप रहे आतंकवाद को सबक नहीं सिखाया तो वे पुलवामा, उरी, पहलगाम जैसी दुखद घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सच्चे राष्ट्रभक्त एवं राष्ट्रनायक की भांति आतंकवाद की अनिर्णायक स्थिति में निष्पक्षता एवं कठोरता का पार्ट अदा किया हैैं। अब तक हमने सदैव ”क्षमा करो और भूल जाओ“ को वरीयता दी है। यही कारण है कि आतंकवाद बढ़ता गया, आतंकवादी पनपते गये, निर्दोष लाशें बिछती रही। अब यह वक्त बताएगा कि पाकिस्तान कोई सही सबक सीखता है या नहीं, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि एयर स्ट्राइक से बिना उसकी सीमा में घुसे बड़े आतंकी अड्डे पर हमला करके यह बता दिया कि भारत के सहने की एक सीमा है, उसके धैर्य का बांध टूट गया है। पाकिस्तानी सेना की उन्मादी मानसिकता एवं विकृत सोच को हम जानते हैं कि वह अपनी गंदी चालों से बाज नहीं आयेगा। लेकिन भारतीय सैन्य बल के सामने वह टिक नहीं पाएंगे। इस बार भारत पाकिस्तान के किसी भी दुस्साहस से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। भारतीयों ने भी मोदी सरकार के नेतृत्व के पीछे अभूतपूर्व एकता दिखाई है। जाहिर है कि पाकिस्तान बड़े-बड़े दावे करेगा और दुनिया के सामने विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश करेगा। लेकिन पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश मिल गया है भारत के साथ खिलवाड़ न करें। फिलहाल पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों को न्याय मिल गया है। पाकिस्तान से आतंक की जड़ों को मिटाने का यह स्पष्ट और सार्थक कदम है।
पाकिस्तान ने संयम एवं इंसानियत को छोड़ दिया है, उसने मर्यादा और सिद्धान्तों के कपड़े उतार कर नंगापन को ओढ़ लिया है। पूर्वाग्रह एवं आतंकवादी अहंकार के कारण वह विवेकशून्य हो गया है। उसको एवं उसके द्वारा पोषित आतंकवाद को परास्त करना जरूरी हो गया था, उसको परास्त करने का अर्थ उसे काबू में कर सही रास्ते पर लाना नहीं बल्कि आतंकवाद नेस्तनाबूद करना है। अब भी यदि वह सबक नहीं सिखता है तो उसका संकट बढ़ सकता है। भारत युद्ध नहीं चाहता, लेकिन पाकिस्तान युद्ध की मानसिकता से ग्रस्त है। उसे यह भी समझ आना चाहिए कि परमाणु बम के इस्तेमाल की उसकी धमकियां अब काम आने वाली नहीं। हर आतंकवादी घटना मानवीयता को घायल करती है और हर ऐसी जलने वाली लाश का धुआं मानवता पर कालिख पोत देता है। लेकिन आतंकवाद के शमन का रास्ता खोल कर भारत ने दुनिया को भी आश्वस्त किया है कि अब आतंकवाद की दिन लद गये है। भारत की कार्रवाई इस दिशा में एक  सार्थक पहल है जिसने आतंकवाद के पैर ले लिये हैं, उसे पंगु बना दिया है। यह निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के लिये उजली सुबह की आहत है।
दरअसल, पाकिस्तान इसलिए अपनी आतंकी सोच बढ़ाता जा रहा था, क्योंकि उसे ठीक से कड़ा संदेश नहीं मिल रहा था। इस तरह उनकी हिम्मत बढ़ती गयी थी और उसने भारत में एक नहीं अनेक बार पहलगाम जैसी दर्दनाक घटनाओं को अंजाम दिया है। उनकी आतंकी योजनाओं को नाकाम करने की सख्त जरूरत पड़ी, ताकि आगे हम अपने और जवान न खोयें, निर्दोषों को मरते न देखें, अशांति को न झेले एवं भय को न जीये। भारत ने यह कर दिखाया है। तमाम आतंकी अड्डे को मटियामेट किया गया, वैसे तमाम अड्डे पाकिस्तानी सेना के संरक्षण और समर्थन से ही चलते रहे हैं। अभी तक पाकिस्तान ऐसे अड्डों को खत्म करने का दिखावा करने के साथ यह बहाना भी बनाता रहा है कि हम तो खुद ही आतंक के शिकार हैं। यह झूठ न जाने कितनी बार बेनकाब हो चुका है, किंतु पाकिस्तान बेशर्मी से बाज नहीं आता। सफल हवाई हमले को अंजाम देने के बाद भारत दुनिया को यह संदेश देने में भी कामयाब रहा कि उसने पाकिस्तान को निशाना बनाने के बजाय उसके यहां कायम आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। वायुसेना ने अपनी पराक्रम क्षमता और साहस का जो परिचय दिया, वह पाकिस्तान के साथ विश्व समुदाय को भी एक संदेश है। वह यह संदेश इसीलिए दे सकी, क्योंकि प्रधानमंत्री ने जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया। पाकिस्तान के मनोबल को तोड़कर ही आतंकवाद को परास्त किया जा सकेगा। अब पाकिस्तान को यह भय भी सताएगा कि उसकी ओर से भारत के खिलाफ कोई कदम उठाया गया तो उसे कहीं अधिक करारा जवाब मिलेगा। उस जबाव का अर्थ होगा पाकिस्तान के सम्मुख संकटों के पहाड़ खडे़ होना, वहां की अर्थ-व्यवस्था ध्वस्त होना, जनजीवन का परेशान होना, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ना। भारतीय सेना को अब और भी ज्यादा मुस्तैद-सतर्क रहना होगा और बेहतर रणनीति के साथ तैयारी भी मजबूत रखनी होगी, ताकि पाकिस्तान की तरफ से अगर कोई जवाबी कार्रवाई होती है, तो उसका हमारी सेना मुंहतोड़ जवाब दे सके। 

भारतीय रणबांकुरों की वीरता से पाक पस्त।

सिंदूर’ की जय

डॉ घनश्याम बादल 

22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा बहाए गए खून और मारे गए पर्यटकों के सगे संबंधियों के आंसुओं का जवाब सात मई  प्रातः 1:05 से 1:30 के बीच पाकिस्तान स्थित नौ आतंकवादी ठिकानों को जिस तरह भारतीय सेनाओं ने ध्वस्त करके दिया वह भारतीय सेवा के पराक्रम का एक अद्भुत उदाहरण बनकर सामने आया है।  इससे पहले भी भारतीय सेना ने उड़ी में हुए हमले का जवाब बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक करके दिया था तब ऐसा लगा था कि वहां आतंकवाद की कमर टूट चुकी है लेकिन जब उसे वहां से ऑक्सीजन, संरक्षण एवं संसाधन मिलते गए तो वह किसी दैत्य की तरह एक बार फिर से खड़ा हो गया मैं केवल खड़ा हो गया अपितु भेड़िए की तरह गुर्राने लगा, उसे अपनी ताकत का कुछ ज्यादा ही घमंड हो गया, और भारत की संपन्नता, ताकत, समृद्धि और विश्व भर में उसके रसूख और लगातार प्रगति के रास्ते पर बढ़ने से डाह का मारा आतंकवाद पहलगाम में एक बार फिर 26 लोगों की जान लेकर गया ।  जब ये निर्दोष लोग मारे गए सभी तय हो गया था कि आतंकवाद को मिट्टी में मिलाने वाला ऑपरेशन जरूरी है । उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने दो लाइन के वक्तव्य में साफ कर दिया था कि धरती के आखिरी छोर तक भी उसे नहीं छोड़ेंगे और यह घृणित कृत्य करने वाले तथा उनके आकाओं को मिट्टी में मिलाकर दम लेंगे। उन्हें ऐसी सजा मिलेगी जिसकी भी कल्पना भी नहीं कर पाएंगे।  तब इस वक्तव्य को एक बार बोला पान समझ गया था खासतौर पर मोदी एवं उनकी सरकार के आलोचकों का मानना था कि यह एक प्रकार का इज्जत फेस सेविंग स्टेटमेंट है और जल्दी ही लोग इसको भूल जाएंगे इस पर भी जब भी बजाएं सर्व दलीय बैठक में शामिल होने के बिहार गए और वहां से उन्होंने तब कड़ी आलोचना की गई और कहा गया कि यह केवल चुनाव के मद्दे नज़र किया गया  ड्रामा है। 

लेकिन मोदी को जानने एवं समझने वाले लोग जानते हैं कि वह भले ही राजनीति करते हुए अतिशयोक्ति भरे भाषण देते हों मंचों पर दहाड़ते हों और विपक्षियों पर तीखे प्रहार करते हों यानी प्रधानमंत्री रहते हुए भी खुलकर खुलकर राजनीति करते हैं लेकिन जब बात देश की आती है तब वह ना चूकते हैं और न टूटते हैं इसका प्रमाण पिछले दो सर्जिकल स्ट्राइक एवं एयर स्ट्राइक से मिल भी चुका था मगर उनके इस वक्तव्य को पाकिस्तान ने हल्के से लिया । 

 जब उन्होंने पाकिस्तान पर सिंधु नदी संधि स्थगित की , व्यापार के सारे रास्ते बंद कर दिए, हवाई रास्ते बंद करके एवं वहां के दूतावास में रक्षा विशेषज्ञ सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भारत से विदा किए और बाघा बॉर्डर एवं दूसरी सीमाओं को सील करने के कदम उठाए तब उसकी बौखलाहट बढ़ गई और वहां के आतंकी सरगने तथा सेना के जनरल और शाहबाज शरीफ के प्यादे मंत्री परमाणु बम की धमकियां देने लगे बिना यह सोचे हुए कि यदि उन्होंने भूले से भी परमाणु बम का उपयोग कर लिया तो फिर दुनिया से उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। 

   मोदी सरकार यहीं पर नहीं रुकी और उसने ताबड़तोड़ एक के बाद एक उच्च स्तरीय बैठकें की और 7 मई को युद्ध की तैयारी के लिए देशभर के 300 जिलों में युद्ध की मॉक ड्रिल एवं ब्लैक आउट के अभ्यास के भी आदेश दे दिए तब शायद पाकिस्तान के फौजी और सरकार यह सोच रहे होंगे कि अभी तो हमले की कोई संभावना ही नहीं बनती । लेकिन ‘मोदी है तो  मुमकिन है’ के नारे को सिद्ध करते हुए 6 मई की रात और 7 मई की प्रातः पूर्व की बेला में 1:05 से 1:30 के बीच केवल 25 मिनट की स्ट्राइक में भारतीय जांबाजों ने वहां के आतंकी ठिकानों पर जो तांडव मचाया वह उसे वर्षों तक याद रहेगा। 

  इस हमले की सबसे खास बात यह रही कि इसमें किसी भी नागरिक ठिकाने को कोई क्षति नहीं पहुंचाई गई और जिस तरह कूटनीतिक व  रणनीतिक तरीके से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया वह उसकी काट पाकिस्तान के पास नहीं है । वह इसे न तो युद्ध घोषित कर सकता है और न ही कह सकता है कि बिना उकसावे व अवसर दिए भारत ने यह कार्यवाही की। 

    दुनिया भर के देशों का समर्थन भारत को ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी मिला है तो इसके निहितार्थ स्पष्ट हैं कि तुर्किया चीन और मलेशिया तथा एक अज़रबेजान जैसे गिने-चुने देशों को छोड़कर सारी दुनिया यह जानती और मानती है कि पाकिस्तान दहशतगर्दी का केवल अड्डा ही नहीं बल्कि उसकी प्राणवायु का स्रोत भी है। 

  पहले ही इस बात की संभावना थी कि भारत सीधे युद्ध में जाने की बजाय पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाएगा और उसने ऐसा किया भी । न केवल हाफिज सईद और मसूद अजहर के ठिकाने ध्वस्त किए गए बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर से कहीं आगे जाकर पंजाब के सियालकोट एवं  बहावलपुर तक तक बिना सीमा पार किए अपनी अचूक मिसाइलों से दुनिया को यह बताया कि यदि भारत को निरर्थक कोई चढ़ेगा तो फिर भारत भी उसे नहीं छोड़ेगा। 

   होना तो यह चाहिए था कि पाकिस्तान को इस प्रहार से सीख लेनी चाहिए थी और उसे खुद आगे बढ़कर आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था, आतंकवादियों को दंड देना था ताकि उसकी अपनी प्रतिष्ठा बच सके लेकिन बजाय इसके उसने कश्मीर और आसपास के इलाकों पर जिस तरीके से गोलीबारी एवं गोलाबारी की उससे लगता नहीं कि एक ऑपरेशन सिंदूर से यह देश मानने वाला है। 

हालांकि भारत एक शांति प्रिय देश है और परमाणु ताकत होने के बावजूद उसने कभी किसी देश पर न आक्रमण किया है और न ही कभी आतंकवाद को प्रश्रय दिया है लेकिन जब बात राष्ट्रीय संप्रभुता एवं आत्मसम्मान की आए तब आगे बढ़कर कदम उठाने से वह कभी पीछे हटा भी नहीं है और ऑपरेशन सिंदूर इसका ताज़ा नमूना है। 

अस्तु, ऑपरेशन सिंदूर सफल रहा । ऑपरेशन सिंदूर की जय ।  लेकिन अभी लापरवाह होने यह यह यह मानकर बैठने का वक्त नहीं है कि पाकिस्तान अपना चेहरा बचाने के लिए कुछ नहीं करेगा । यदि सामने से नहीं तो वह पीछे से वार ज़रूर करेगा । इसलिए पूरे देश को जागरुक एवं दृढ़ रहने की जरूरत है और इससे भी बढ़कर हमारे देश में जो सांप्रदायिक सौहार्द्र एवंं संकट के समय कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने की परंपरा रही है उसको बनाए रखने एवं आगे बढ़ाए जाने की ज़रूरत है। 

डॉ घनश्याम बादल 

भारत ने आर्थिक प्रगति के बल पर आतंकवादी ठिकानों को किया नेस्तनाबूद

भारत ने अंततः पाकिस्तान के कई आतंकवादी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर ही दिया। भारत के इस कठोर कदम से भारतीय नागरिकों को संतुष्टि मिली है, विशेष रूप से उन परिवारों को जिन्होंने हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों के हमले में अपने सगे सम्बन्धियों को खोया है। विश्व के लगभग समस्त देशों ने भारत के इस कदम का समर्थन ही किया है क्योंकि आतंकवादियों से अपने देश के नागरिकों की रक्षा करना किसी भी देश की सरकार का प्रथम कर्तव्य है। भारत को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों पर हमले करने का साहस कहां से मिलता है। यह मिलता है भारतीय नागरिकों की एकजुटता से, वर्तमान केंद्र सरकार पर देश के नागरिकों का भरपूर विश्वास है एवं वह यह सोचती है सही समय पर एवं सही स्थान पर भारतीय सेना आतंकवादियों पर हमला करके अपने नागरिकों के मारे जाने का बदला जरूर लेगी। दूसरे, संभवत: भारत की लगातार मजबूत हो रही आर्थिक स्थिति से भी केंद्र सरकार को कठोर निर्णय लेने का बल मिलता है। इस संदर्भ में, हाल ही में अच्छी खबर यह आई है कि भारत जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चोथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है एवं संभवत: वर्ष 2026 के अंत तक जर्मनी की अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ते हुए भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारतीय अर्थव्यवस्था आज भी विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है। विश्व के लगभग समस्त वित्तीय संस्थान भारत के संदर्भ में यह भविष्यवाणी करते हुए दिखाई दे रहे है कि आगे आने वाले कई दशकों तक भारत इसी प्रकार विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहेगा। 

भारत ने पिछले 10/11 वर्षों के दौरान वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रमों को लागू किया है। जिसका परिणाम स्पष्ट रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा है। माह अप्रेल 2025 में वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण नित नई ऊंचाईयां छूते हुए 2.37 लाख करोड़ रुपए के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गया है। यह सब देश के नागरिकों द्वारा अप्रत्यक्ष करों के नियमों का अनुपालन करने के चलते सम्भव हो पा रहा है। अप्रेल 2025 माह में ही फैक्ट्री उत्पादन के मामले में पिछले 10 माह के उच्चत्तम स्तर को पार किया गया है। आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत अमेरिकी डॉलर की तुलना में तेजी से बढ़ती जा रही है और यह अपने पिहले 7 माह के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई है। और तो और, सरकारी उपक्रमों एवं निजी कम्पनियों की लाभप्रदता में भी भारी सुधार देखने में आ रहा है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान भारतीय स्टेट बैंक ने 70,901 करोड़ रुपए का लाभ अर्जित किया है। इसी प्रकार, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 69,621 करोड़ रुपए, एचडीएफसी बैंक ने 64,062 करोड़ रुपए, ओएनजीसी ने 49,221 करोड़ रुपए, टाटा कंसल्टैसी सर्विसेज लिमिटेड ने 45,908 करोड़ रुपए, आईसीआईसीआई बैंक ने 44,256 करोड़ रुपए, इंडियन आइल कॉर्पोरेशन ने 41,729 करोड़ रुपए, लाइफ इन्शुरन्स कॉर्पोरेशन ने 40,915 करोड़ रुपए, कोल इंडिया लिमिटेड ने 37,402 करोड़ रुपए एवं टाटा मोटर्स लिमिटेड ने 31,399 करोड़ रुपए का लाभ अर्जित किया है। आपको ध्यान में होगा कि आज से कुछ वर्ष पर तक केंद्र सरकार को कई सरकारी उपक्रमों को चलायमान बनाए रखने के लिए लाखों करोड़ रुपए की सहायता केंद्रीय बजट के माध्यम से इन सरकारी उपक्रमों की करनी होती थी। आज स्थित एकदम बदल गई है एवं आज ये लगभग समस्त उपक्रम केंद्र सरकार के लिए कमाऊ पूत की भूमिका निभाते हुए नजर आ रहे हैं एवं करोड़ों रुपए का लाभांश केंद्र सरकार को उपलब्ध करा रहे हैं। यह सब केंद्र सरकार द्वारा इन उपक्रमों में सुधार कार्यक्रमों को लागू करने के चलते ही सम्भव हो सका है। 

वर्ष 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में भारत भयावह स्थिति में पहुंच गया था तथा उस समय भारत के पास केवल 15 दिवस के आयात के बराबर ही विदेशी मुद्रा भंडार बच गया था और भारत को अपने स्वर्ण भंडार को ब्रिटेन के बैंकों में गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा भंडार की व्यवस्था करनी पड़ी थी। आज स्थिति इस ठीक विपरीत है आज भारत के पास लगभग एक वर्ष के आयात के बराबर की राशि का विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है और यह 68,813 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर के ऊपर निकल गया है जो भारत के इतिहास में आज तक के उच्च्त्तम स्तर के बहुत करीब है। इसी प्रकार वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत से विभिन्न उत्पादों एवं सेवा क्षेत्र के निर्यात अपने उच्चत्तम स्तर 82,490 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं। जिसके चलते भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में अतुलनीय सुधार होता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत से विभिन्न देशों को निर्यात में अभी और सुधार होता हुआ दिखाई देगा क्योंकि भारत ने हाल ही में ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया है इससे भारत के सेवा क्षेत्र को अत्यधिक प्रोत्साहन मिलने जा रहा है और ब्रिटेन में भारतीय इंजिनीयर एवं डाक्टर के साथ ही अन्य क्षेत्रों में कार्य करने के लिए भारतीयों की मांग में वृद्धि दृष्टिगोचर होगी। अमेरिका के साथ भी भारत का द्विपक्षीय व्यापार समझौता अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है और यूरोपीयन यूनियन देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता दिसम्बर 2025 तक सम्पन्न होने की प्रबल सम्भावना है। इसके बाद भारत से विकसित देशों को निर्यात निश्चित रूप से बढ़ेंगे और इसके चलते बहुत सम्भव है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत के निर्यात अपने उच्चत्तम स्तर अर्थात एक लाख करोड़ अमेरिको डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएं। यदि ऐसा होता है तो भारत में विदेशी मुद्रा भंडार भी एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर सकते हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें भी कम होती हुई अर्थात लगभग 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर होती हुई दिखाई दे रही हैं जबकि भारत अपने उपयोग का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल का आयात विभिन्न देशों से करता है। साथ ही, भारत को स्वर्ण के आयात को भी नियंत्रण में रखना होगा। इससे, भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में और अधिक मजबूत होगी।                   

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में आई कमी और वर्ष 2025 के खरीफ मौसम के दौरान मौसम विभाग द्वारा की गई सामान्य से अधिक मानसून की भविष्यवाणी के कारण खुदरा कृषि क्षेत्र में मुद्रा स्फीति (महंगाई) की दर मार्च 2025 माह में कम होकर 3.73 प्रतिशत के निचले स्तर पर पहुंच गई है।  

वित्तीय वर्ष 2013-14 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना होकर 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी आगे निकल गया है। इससे भारतीय नागरिकों की आय भी लगभग दुगनी हो गई है एवं गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की संख्या में भी भारी कमी दर्ज हुई है। इससे देश के नागरिकों में उत्साह का माहौल जागा है तथा वे एकजुट होकर केंद्र सरकार के आतंकवाद के विरुद्ध लिए जा रहे निर्णयों का भारी समर्थन करते हुए दिखाई दे रहे है। इससे यह सिद्ध हो रहा है कि भारत की आर्थिक क्षेत्र में मजबूती के चलते केंद्र सरकार को भी आतंकवाद के विरुद्द कड़े निर्णय लेने में कोई हिचक नहीं हो रही है। साथ ही, भारत की लगातार मजबूत हो रही आर्थिक स्थिति के चलते विश्व के अन्य कई देश भी आतंकवाद की लड़ाई में भारत के साथ खड़े नजर आ रहे है। आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक स्थित जितनी अधिक सुदृद्ध होती जाएगी, वैश्विक पटल पर भारत के लिए अन्य देशों का समर्थन और अधिक मजबूत होता जाएगा। और फिर, उक्त वर्णित परिस्थितियों के बीच भारत को अपनी एवं भारतीय नागरिकों की सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक मजबूत करने का अधिकार भी तो है। भारत की आर्थिक स्थिति जितनी अधिक मजबूत होगी, केंद्र सरकार के सुरक्षा सम्बंधी निर्णय भी उतने ही मजबूत रहेंगे।       

प्रहलाद सबनानी 

भारत की पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्में 

भारत विश्व का एक बड़ा कृषि प्रधान देश है और यहां की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक कृषि पर निर्भर है। हाल ही में भारत ने अपनी पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्में ‘डीआरआर धान 100 (कमला)’ और ‘पूसा डीएसटी राइस 1’ जारी की हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि हमारे देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 4 मई 2025 के दिन आईसीएआर द्वारा विकसित देश की पहली जीनोम-संपादित धान की ये दोनों किस्में जारी की गईं हैं। वास्तव में ये वैज्ञानिक शोध की दिशा में नवाचार है। इन किस्मों की खास बात यह है कि इनमें विदेशी चावलों की किस्मों या विदेशी डीएनए को शामिल नहीं किया गया है। दरअसल विदेशी डीएनए शामिल नहीं होने के कारण भारतीय कृषि में इनकी पैदावार ठीक उसी प्रकार से की जा सकती है, जिस प्रकार से हमारे यहां पारंपरिक रूप से फसलें उगाई जाती रहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इन नयी किस्मों का विकास क्रिस्पर-कैस आधारित जीनोम-संपादित तकनीक का उपयोग करके किया गया, जो बिना विदेशी डीएनए को शामिल किए हुए जीव के आनुवंशिक सामग्री में सटीक परिवर्तन लाती है। धान की ये किस्में जहां एक ओर उपज में बढ़ोत्तरी करेंगी, वहीं दूसरी ओर संसाधनों की दक्षता को भी ये बढ़ाएंगी। इतना ही नहीं ये जलवायु की दृष्टि से भी लचीली बताईं जा रहीं हैं। और तो और ये किस्में जल-संरक्षण की दृष्टि से भी बहुत ही उपयोगी और लाभकारी सिद्ध होंगी।वैसे तो भारत विश्व का अनाज उत्पादन में एक आत्मनिर्भर देश बन चुका है लेकिन आज की वैश्विक परिस्थितियों में हमारे देश में भी अनेक प्रकार की खाद्य सुरक्षा चुनौतियां मौजूद हैं। मसलन आज भारत में विश्व की सर्वाधिक आबादी है। जलवायु परिवर्तन भी लगातार हो रहा है, ग्रीन हाउस गैसों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। कहना ग़लत नहीं होगा कि ऐसी परिस्थितियों के बीच आईसीएआर द्वारा विश्व की पहली जीनोम संपादित धान की दो किस्मों का विकास भारतीय कृषि के लिए जहां एक ओर एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं, वहीं दूसरी ओर यह खाद्य सुरक्षा की दिशा में भी उठाया गया एक बड़ा और महत्वपूर्ण क्रांतिकारी कदम है। एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में उपलब्ध जानकारी कै अनुसार डीआरआर धान 100 (कमला) लोकप्रिय साँबा महसूरी किस्म पर आधारित है। साइट डायरेक्टेड न्यूक्लिऐस 1 (एसडीएन1) तकनीक का उपयोग करके साइटोकाइनिन ऑक्सीडेज 2 (सीकेएक्स2) जीन (जीएन1ए) को लक्षित करके दानों की संख्या में सुधार किया गया। इसके परिणामस्वरूप शीघ्र परिपक्वता (15-20 दिन पहले कटाई), सूखा-सहिष्णुता, उच्च नाइट्रोजन-उपयोग दक्षता प्राप्त होती है।  उल्लेखनीय है कि इस किस्म को आईसीएआर-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अखिल भारतीय परीक्षण में डीआरआर धान 100 (कमला) की औसत उपज 5.3 टन प्रति हेक्टेयर पाई गयी जो साम्बा महसूरी (4.5 टन) से 19% अधिक है। वहीं दूसरी ओर पूसा डीएसटी चावल 1, मारुतेरु(एमटीयू) 1010 किस्म पर आधारित है और सूखे और लवण सहनशीलता को बढ़ाता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि एमटीयू 1010 किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि इसका दाना लम्बा-बारीक होता है, और दक्षिण भारत में रबी सीजन के चावल की खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त है। यह सूखे और लवणता सहित कई अजैविक तनावों के प्रति संवेदनशील है। पूसा डीएसटी चावल 1 लवणता और क्षारीयता युक्त मृदा में एमटीयू 1010 की तुलना में 20% अधिक उपज देती है। एसडीएन1 जीनोम-एडिटिंग के माध्यम से विकसित, यह शुष्क और लवणीय सहनशीलता (डीएसटी) जीन को लक्षित करता है । इसके परिणामस्वरूप तटीय लवणता वाले क्षेत्रों में 30.4% अधिक उपज, क्षारीय मृदाओं में 14.66% अधिक तथा अंतर्देशीय लवणता वाले क्षेत्रों में 9.67% अधिक उपज प्राप्त होती है।इसे आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि एसडीएन-1 विदेशी डीएनए  का उपयोग किये बिना छोटे सम्मिलन/विलोपन प्रस्तुत करता है, जबकि एसडीएन-2 विशिष्ट वांछित परिवर्तन प्रस्तुत करने के लिये टेम्पलेट डीएनए (मेज़बान के समान) का उपयोग करता है। पाठकों को बताता चलूं कि धान की नई उन्नत विकसित किस्में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लिए उपयुक्त हैं। इन क्षेत्रों में करीब 5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में इन क़िस्मों की खेती की जा सकेगी, जिससे धान के उत्पादन में 4.5 मिलियन टन की वृद्धि होगी। साथ ही ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत यानि 3200 टन की कमी आएगी। बहरहाल, यहां यह गौरतलब है कि हमारे देश में खाद्य सुरक्षा के लिए धान का पहले से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है और अब इन किस्मों की खेती से धान के उत्पादन में करीब 45 लाख टन का इजाफा होगा, तो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी करीब 20 फीसदी की कमी आएगी। आज ग्लोबल वार्मिंग के चलते जहां संपूर्ण विश्व में जल संकट गहराता चला जा रहा है, ऐसे में इन धान की किस्मों की खेती में कम पानी की खपत होगी और फसल पककर तैयार होने में भी कम समय लगेगा, जिसने किसानों को अगली फसल की बुआई के लिए भी पर्याप्त समय मिल सकेगा। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1965-1968 के बीच मानी जाती है और डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है।हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारत में खाद्यान्न उत्पादन( गेहूं और चावल के उत्पादन में) अभूतपूर्व वृद्धि हुई थी।गौरतलब है कि हरित क्रांति के दौरान उच्च उपज वाली किस्मों के बीज, आधुनिक सिंचाई तकनीक, उर्वरक और कीटनाशकों का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था। वास्तव में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना था, जिससे भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। हरित क्रांति का प्रभाव यह हुआ कि इसने भारतीय कृषि को पूरी तरह से बदल दिया और भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्तमान में यह उम्मीद जताई जा रही है कि धान की ये नई किस्में दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत में अग्रणी भूमिका निभाएंगी। धान की इन दोनों किस्मों की विशेषताओं की यदि हम यहां पर बात करें, तो इन दोनों किस्मों की खेती से उपज में 19 प्रतिशत की वृद्धि होगी तथा ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत की कमी आएगी। इतना ही नहीं, सिंचाई जल में 7,500 मिलियन घन मीटर की बचत होगी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सूखा, लवणता एवं जलवायु तनावों के प्रति यह दोनों ही किस्में उच्च सहिष्णु हैं। ग्रीन हाउस गैसों में कमी से पर्यावरण संरक्षण को भी बल मिल सकेगा। अंत में यही कहूंगा कि चावल भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और भारत में चावल का उत्पादन कृषि के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। चीन के बाद भारत विश्व में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, और चावल का सबसे बड़ा निर्यातक भी।इन दोनों किस्मों के आने से निश्चित ही भारत में चावल उत्पादन में कहीं और अधिक बढ़ोत्तरी सुनिश्चित होगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि आईसीएआर की यह उपलब्धि(चावल की किस्मों का विकास) नई उम्मीदों को जगाती है। इससे भारतीय कृषि और अधिक सुदृढ़ और मजबूत होगी।

सुनील कुमार महला

सिंदूर तो सिर्फ झांकी है, मेहंदी और हल्दी बाकी है

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सिर्फ सिंदूर से क्या होगा,
आग अभी सीने में बाकी है।
खून में जो लावा बहता है,
उसमें हल्दी की तासीर बाकी है।

फिर से हवाओं को रुख देना है,
इंकलाब की आंधी बाकी है।
धधकते शोलों में रंग भरना है,
अभी मेहंदी की सरगर्मी बाकी है।

रास्तों पर बिछी हैं दीवारें,
पर हमारे इरादों की ऊँचाई बाकी है।
सिर्फ झांकी दिखी है दुश्मन को,
हमारी असली अंगड़ाई बाकी है।

सिंदूर से कह दो धीरज रखे,
अभी हल्दी का रंग बाकी है।
हम जिंदा हैं तो यह दुनिया है,
हमारे खून में बगावत की रवानी बाकी है।

  • डॉ सत्यवान सौरभ

एक था पाकिस्तान: इतिहास के पन्नों में सिमटता सच

सिंदूर की सौगंध: ‘एक था पाकिस्तान’ की गूंज

“एक था पाकिस्तान” – ये केवल तीन शब्द नहीं, बल्कि इतिहास की एक गहरी दास्तां है। यह उस विभाजन का प्रतीक है, जिसने दिलों को तोड़ा और घरों को उजाड़ा। लेकिन क्या हमें हमेशा इस नफरत के जाल में फंसे रहना चाहिए? हमें न केवल बाहरी दुश्मनों से, बल्कि अपने भीतर की नफरत से भी लड़ना होगा। तभी एक दिन हम गर्व से कह सकेंगे – हाँ, ‘एक था पाकिस्तान’, और हम थे, हैं, और रहेंगे – एक, अखंड, अविनाशी भारत।

-प्रियंका सौरभ

‘एक था पाकिस्तान’ – यह केवल तीन शब्द नहीं हैं, बल्कि यह उन अनगिनत कुर्बानियों, टूटे सपनों और संघर्षों की कहानी है, जो भारतीय सभ्यता के दिल में गहरे तक समाई हुई हैं। जब हम यह वाक्य सुनते हैं, तो न केवल एक भूगोल का जिक्र होता है, बल्कि एक पूरी जड़ें, एक परिवार, एक संस्कृति, और एक सपना जो कभी हमारे अपने हिस्से में था। यह तीन शब्द उस दर्द, उस पीड़ा और उस उम्मीद का प्रतीक हैं जो विभाजन के समय के लाखों नागरिकों के दिलों में जीवित रहे।

विभाजन की पीड़ा और वर्तमान वास्तविकता

1947 का विभाजन महज एक भूगोल का बंटवारा नहीं था। यह दिलों का बिखराव था, यह जड़ों की टूटन थी, यह एक सभ्यता के विनाश का दौर था। उस समय लाखों परिवारों ने अपने घरों को खो दिया, अपने रिश्तों को खो दिया, और अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी खो दिया। विभाजन के समय जो नफरत और हिंसा फैली, उसने कई परिवारों को कभी न खत्म होने वाली कड़वाहट दे दी। एक तरफ़ हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे के दोस्त थे, और दूसरी ओर वे अचानक दुश्मन बन गए, सिर्फ़ एक रेखा, एक खींची हुई सीमा, के कारण।

अभी भी, विभाजन के समय की वह दर्दनाक यादें हमारे दिलों में कहीं न कहीं बसी रहती हैं। पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते कभी भी सामान्य नहीं हो पाए। लेकिन क्या हमें हमेशा के लिए इस विभाजन को अपनी सोच और जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए? क्या हम अपनी अगली पीढ़ियों को भी इसी घृणा और नफरत के जाल में फंसा कर रखें? यह विचार हमें बार-बार खुद से पूछने की जरूरत है। नफरत और भेदभाव की दीवारों को गिराना आसान नहीं होता, लेकिन क्या यह संभव नहीं है?

हमारा सपना: एकता और शांति

अगर हमें वास्तव में ‘एक था पाकिस्तान’ को एक साकार रूप देना है, तो हमे एकता की भावना को और भी मजबूत करना होगा। हमें यह समझना होगा कि शांति और स्थिरता की असली ताकत हमारी एकता में है, न कि हमारे भूतकाल में। हमें यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान केवल एक भूगोल का नाम नहीं है, बल्कि यह भी उन दर्दनाक घटनाओं का गवाह है, जो कभी हमारे देश के हिस्से हुआ करती थीं। लेकिन क्या हमें अपने वर्तमान और भविष्य को उसी पुराने दर्द के आधार पर जीते रहना चाहिए? क्या हम हर कदम पर नफरत के जाल में उलझ कर अपनी असली शक्ति को खो देंगे?

यदि हम चाहते हैं कि ‘एक था पाकिस्तान’ का सपना साकार हो, तो हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जहां हम न केवल अपने सैनिकों की हिफाजत करें, बल्कि अपने भीतर की नफरत को भी कम करें। हमें यह समझने की जरूरत है कि युद्ध और संघर्ष का समाधान नफरत से नहीं हो सकता। यह हमेशा शांतिपूर्ण संवाद और समझ के रास्ते से ही संभव है। क्या हम अपने दिलों में नफरत और द्वेष को जगह देने के बजाय, हर विवाद का हल एकजुटता और समझदारी से नहीं निकाल सकते?

धर्म, जाति और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दे

हमारे समाज में विभाजन के बाद भी कई सवाल उठते हैं, जिनका जवाब हमें खोजने की जरूरत है। धर्म, जाति और भाषा के नाम पर हमारी पहचान को कैसे बचाएं? भारत एक बहु-सांस्कृतिक देश है, जहां विभिन्न जातियाँ, धर्म, और भाषाएँ एक साथ रहती हैं। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हम सभी का समृद्ध इतिहास एक समान है, और विभाजन हमें केवल अलग करने का काम करता है। भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता ने हमेशा हमें अपनी शक्ति और पहचान दी है, और हमें इसे अपनी एकता की नींव के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

आंतरिक बंटवारा: हमारे अंदर का पाकिस्तान

यह अत्यंत दुखद है कि हम खुद भी आंतरिक बंटवारे का शिकार हो गए हैं। धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के नाम पर जिस तरह से हमारे समाज में घृणा और भेदभाव फैल रहा है, वह हमारे सपनों को कमजोर कर रहा है। अगर हमें ‘एक था पाकिस्तान’ का सपना साकार करना है, तो हमें खुद के भीतर की नफरत और अंधविश्वास को खत्म करना होगा। क्या हम अभी भी धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर एक दूसरे से नफरत करेंगे? क्या हम अपने समृद्ध इतिहास और संस्कृति को भूलकर केवल असहमति और घृणा की राजनीति करेंगे?

सैनिकों का बलिदान और उनकी भूमिका

हमारे सैनिक हर दिन अपनी जान की बाजी लगाते हैं ताकि हमारे घरों में शांति बनी रहे। जब वे सीमा पर खड़े होते हैं, तो वे केवल एक राष्ट्र की रक्षा नहीं कर रहे होते, बल्कि उनकी बीवी, उनकी माँ, और उनके बच्चे भी उनकी सुरक्षा की कामना करते हैं। हमें यह समझना होगा कि सैनिकों का बलिदान केवल उनका नहीं, बल्कि उनके परिवारों का भी होता है। इन परिवारों का दर्द वही समझ सकता है जो खुद इसे महसूस करता है। जब एक सैनिक अपने घर से निकलता है, तो उसका परिवार जानता है कि वह शायद कभी लौटकर न आए। उनकी वीरता और कड़ी मेहनत के बिना हमारा देश सुरक्षित नहीं रह सकता। हमें उनके बलिदान को सम्मान देना होगा, क्योंकि वे हमारे असली नायक हैं।

हमारी जिम्मेदारी और दायित्व

हमें अपनी अगली पीढ़ी को यह समझाना होगा कि वे नफरत की राजनीति से ऊपर उठकर एकजुट हो। शांति, सद्भाव और एकता में शक्ति है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चे एक ऐसे समाज में पले-बढ़ें, जो प्रेम, भाईचारे और समझ के सिद्धांतों पर चलता हो। इसके लिए हमें हर स्तर पर जागरूकता फैलानी होगी। सिर्फ सरकारें नहीं, बल्कि नागरिकों को भी इस दिशा में सक्रिय कदम उठाने होंगे। हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि वह सिर्फ अपने देश का नागरिक नहीं है, बल्कि वह पूरे समाज की जिम्मेदारी निभा रहा है।

नफरत की दीवारें तोड़ना

आखिरकार, ‘एक था पाकिस्तान’ का सपना तब पूरा होगा जब हम नफरत की दीवारों को गिरा पाएंगे और समझदारी, भाईचारे और सहयोग की नदियाँ बहा सकेंगे। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि कोई भी सरहद हमें अलग नहीं करती। हमारी जड़ें एक हैं, हमारी संस्कृति एक है, और हमारा इतिहास भी एक है। जब हम अपने भीतर के भेदभाव और नफरत को खत्म करेंगे, तभी हम अपने देश को एकजुट कर पाएंगे। हमें यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान एक देश नहीं, बल्कि एक भूतकाल है, जिसे हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए इतिहास के पन्नों में ही छोड़ सकते हैं।

सिंदूर की सौगंध

आखिर में, सिंदूर की सौगंध एक प्रतीक है – वह प्रतीक जो हमें यह याद दिलाता है कि हम अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार हैं। यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि एक वादा है कि हम अपने देश की रक्षा के लिए हर प्रकार का बलिदान देने को तैयार हैं। यही हमारे सैनिकों की वीरता का असली प्रतीक है। यह हमारे दिलों में वह प्रेरणा है, जो हमें कभी भी मुश्किलें आने पर अपने देश के लिए लड़ने की ताकत देती है। 

इस सपने को सच करने के लिए हमें न केवल बाहरी दुश्मनों से, बल्कि अपने भीतर की नफरत से भी लड़ना होगा। तभी एक दिन हम गर्व से कह सकेंगे – हाँ, ‘एक था पाकिस्तान’, और हम थे, हैं, और रहेंगे – एक, अखंड, अविनाशी भारत। हमारा भारत सदियों तक एकजुट और मजबूत रहेगा, जब हम हर मुश्किल के बावजूद अपनी एकता को बनाए रखेंगे। यह हमारा कर्तव्य है, यह हमारी जिम्मेदारी है, और यह हमारे वीर सैनिकों के प्रति हमारा सम्मान है।

आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिशोध और शौर्य का प्रतीक बना ‘ऑपरेशन सिंदूर’

आतंक के गढ़ में भारत का निर्णायक प्रहार

 योगेश कुमार गोयल
भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब 15 दिन बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से देकर एक बार फिर यह जता दिया है कि अब वह न तो चुप रहेगा और न ही आतंकी हमलों को बर्दाश्त करेगा। इस हमले में भारत के 26 निर्दोष लोगों की जान गई थी और यह हमला स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों से ही संचालित किया गया था। इसके सटीक जवाब में भारत ने 7 मई सुबह डेढ़ बजे पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकियों के 9 ठिकानों को ध्वस्त करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया। भारत की यह एक सुनियोजित, सीमित और सटीक सैन्य कार्रवाई थी, जिसका उद्देश्य स्पष्ट था, आतंकवाद को उसी की जमीन पर कुचलना। इस ऑपरेशन को ‘सिंदूर’ नाम देना भारत की सांस्कृतिक और भावनात्मक सोच को दर्शाता है। ‘सिंदूर’ एक ओर जहां भारतीय संस्कृति में शक्ति, सौभाग्य और सम्मान का प्रतीक है, वहीं इस संदर्भ में यह उन शहीदों के बलिदान की लालिमा भी है, जिनकी शहादत का बदला लेने के लिए यह कार्रवाई की गई।
ऑपरेशन सिंदूर के जरिये भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि यह ऑपरेशन केवल उन आतंकी ढ़ांचों के विरुद्ध था, जो लगातार भारत में घुसपैठ, आत्मघाती हमले और हथियारों की तस्करी को बढ़ावा दे रहे थे। बहावलपुर जैश-ए-मोहम्मद का गढ़ है, वहीं मुजफ्फराबाद और कोटली लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के लिए लांच पैड के रूप में काम आते हैं। इन स्थानों पर हुए हमलों के माध्यम से भारत ने उन आतंकी गुटों की कमर तोड़ने की कोशिश की है, जो वर्षों से भारत को अस्थिर करने की कोशिश में लगे हुए थे। इस ऑपरेशनके जरिये भारत ने अपने नागरिकों को यह भरोसा भी दिलाया है कि देश की सुरक्षा महज कागजों तक सीमित नहीं है बल्कि उसे धरातल पर भी लागू किया जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर यह विश्वास पैदा करता है कि अब भारत किसी भी आतंकी हरकत का जवाब उसी भाषा में देगा और अपने सैनिकों और नागरिकों की शहादत व्यर्थ नहीं जाने देगा। यह संदेश केवल पाकिस्तान के लिए ही नहीं बल्कि उन ताकतों के लिए भी है, जो सीमा पार से भारत के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं।
भारतीय वायुसेना ने इस ऑपरेशन के तहत अत्याधुनिक मिसाइलों का इस्तेमाल करते हुए बहावलपुर, मुजफ्फराबाद, कोटली, मुरीदके, बाघ और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की कुछ आतंक-प्रवण लोकेशनों पर हमलाकर पूरी दुनिया को यह दिखा दिया है कि आतंकवाद से निपटने के लिए उसे अब किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है और वह अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कदम उठाने को तैयार है। इस ऑपरेशन की योजना और क्रियान्वयन अत्यंत गोपनीय और तकनीकी रूप से उन्नत स्तर पर हुई। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने 22 अप्रैल के हमले के बाद जिस तेजी से पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों की पहचान की और सेना के साथ समन्वय किया, वह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की परिपक्वता का प्रमाण है। रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी बयान में स्पष्ट किया गया है कि इस कार्रवाई का उद्देश्य केवल आतंकवाद के अड्डों को निशाना बनाना था, न कि पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों या नागरिक आबादी को। इस ऑपरेशन के दौरान भारत ने कुल 24 मिसाइलें दागी, जिनमें से अधिकांश लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के ठिकानों पर सटीकता से गिरी।
बताया जा रहा है कि इन हमलों में कई आतंकियों के मारे जाने की खबर है, जिनमें लश्कर और जैश के कई शीर्ष कमांडर भी शामिल हैं, जो भारत में आतंकी हमलों की योजना बनाते रहे हैं। पाकिस्तान का स्थानीय मीडिया और प्रशासन पहले इस हमले को नकारते रहे, फिर अलग-अलग बयान देकर भ्रम फैलाने की कोशिश की। पाकिस्तानी सेना के आईएसपीआर प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने दावा किया कि भारत ने 6 अलग-अलग स्थानों पर मिसाइलें दागी, जिनमें 8 नागरिकों की मौत हुई। वहीं दूसरी ओर, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने जियो टीवी पर दावा किया कि भारत ने अपने ही हवाई क्षेत्र से हमला किया और मिसाइलें रिहायशी इलाकों पर गिरी। पाकिस्तान के दावे आपस में ही विरोधाभासी हैं, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वे न तो इस हमले के लिए तैयार थे और न ही उनके पास इसकी ठोस जानकारी है। वहीं, भारत ने इस ऑपरेशन के तुरंत बाद अमेरिका को इस कार्रवाई की जानकारी दी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अमेरिकी एनएसए और विदेश मंत्री मार्को रुबियो से बात कर उन्हें स्पष्ट रूप से बताया कि यह कार्रवाई पूरी तरह आतंकवाद के खिलाफ थी, न कि पाकिस्तान की संप्रभुता के विरुद्ध। भारतीय दूतावास ने अमेरिका में बयान जारी कर बताया कि भारत ने किसी भी पाकिस्तानी नागरिक, सैन्य या आर्थिक ठिकानों को निशाना नहीं बनाया, केवल उन्हीं आतंकी शिविरों पर हमला किया गया, जो भारत के खिलाफ साजिश रच रहे थे।
इस ऑपरेशन के पूरे समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी निगरानी कर रहे थे। उन्होंने सेना को पूर्ण स्वतंत्रता दी थी और इस ऑपरेशन की बारीकियों पर लगातार नजर बनाए रखी। ऑपरेशन पूरा होने के बाद भारतीय सेना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर ‘जस्टिस इज सर्व्ड’ यानी ‘न्याय हो गया’ लिखा जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘भारत माता की जय’ के नारे के साथ इस कार्रवाई को राष्ट्र के प्रति समर्पित किया। इस ऑपरेशन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ना स्वाभाविक था। पाकिस्तान की ओर से फायरिंग और जवाबी बयानबाजी जारी रही। पाकिस्तान के मीडिया ने प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए यह दावा किया कि पाकिस्तान ने भारत के 6 फाइटर जेट मार गिराए हैं, जिसमें 3 राफेल, 2 मिग-29 और 1 सुखोई शामिल हैं, साथ ही भारतीय सेना की 12वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड के मुख्यालय को नष्ट करने का झूठा दावा भी किया गया। हालांकि भारत द्वारा इन बेबुनियाद झूठे दावों को सिरे से खारिज कर दिया गया है।
भारत का अगला कदम अब इस कार्रवाई को कूटनीतिक और रणनीतिक स्तर पर वैश्विक समर्थन में बदलना होगा। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत आतंकवाद के खिलाफ अपने दृष्टिकोण को और मजबूत तरीके से प्रस्तुत करेगा। अमेरिका, फ्रांस, रूस और इजरायल जैसे देश पहले ही भारत के साथ खड़े नजर आ रहे हैं परंतु संयुक्त राष्ट्र और इस्लामी देशों के संगठन (आईओसी) में पाकिस्तान अपने झूठे प्रचार को हवा देने की कोशिश अवश्य करेगा, इसलिए भारत को अब इस कूटनीतिक लड़ाई में भी स्पष्टता और तथ्यों के साथ आगे बढ़ना होगा। बहरहाल, ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य और कूटनीतिक परिपक्वता का प्रतीक है। इसने साबित कर दिखाया है कि भारत अब संयम और जवाबदेही के साथ अपनी रक्षा नीति पर अमल कर रहा है। ‘सिंदूर’ का रंग भले ही सांस्कृतिक दृष्टि से सौभाग्य और शक्ति का प्रतीक हो परंतु इस सैन्य कार्रवाई में यह रंग आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिशोध और शौर्य का प्रतीक बन गया है। भारत ने दुनिया को यह बता दिया है कि वह न तो युद्ध चाहता है, न टकराव लेकिन यदि उसकी सीमाओं, नागरिकों और संप्रभुता को कोई चुनौती देगा तो उसका जवाब भी उतना ही सटीक, तीव्र और निर्णायक होगा। भारत का यह बदलता हुआ रवैया उसकी सुरक्षा नीति को नई दिशा दे रहा है और यह संकेत है कि आने वाले समय में कोई भी आतंकी घटना भारत को मूकदर्शक नहीं बनाएगी बल्कि तत्काल और निर्णायक प्रतिघात से दुश्मन की कमर तोड़ी जाएगी।

मां धरती पर विधाता की प्रतिनिधि यानी देवतुल्य है

विश्व मातृ दिवस- 11 मई, 2025
 -ललित गर्ग-

‘मदर्स डे’ या मातृ दिवस एक ऐसा महत्वपूर्ण एवं संवेदनात्मक दिन है जो हमें अपनी माताओं के प्यार और बलिदान के लिए धन्यवाद देने और उन्हें सम्मान देने का अवसर देता है। जननी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का तथा मातृशक्ति की अभिवंदना का यह एक स्वर्णिम अवसर है। माँ की महिमा को उजागर करने का ऐतिहासिक दिन है। सेवा और समर्पण की साक्षात् प्रतिमूर्ति मातृ-शक्ति ने केवल अपनी संतान को ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को सृजनात्मक एवं रचनात्मक दिशाएँ दी हैं। अपने त्याग और बलिदान से परिवार, समाज और राष्ट्र की अस्मिता को बचाने का हर संभव प्रयत्न किया है। यहाँ तक कि परिवार संस्था की आधारभित्ति भी मातृ-शक्ति के इर्द-गिर्द ही टिकी हुई है। माँ एक चलता-फिरता चमत्कार है। माँ के प्रभाव से अधिक शक्तिशाली कोई प्रभाव नहीं है।
मातृ दिवस मनाने की अनेक विचारधाराएं एवं मान्यताएं हैं। विश्व के विभिन्न भागों में यह अलग-अलग दिन मनाया जाता है। मदर्ड डे का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है। प्राचीन ग्रीक और रोमन इतिहास में मदर्स डे मनाने का उल्लेख है। 16वीं सदी में इंग्लैण्ड का ईसाई समुदाय ईशु की माँ मदर मेरी को सम्मानित करने के लिए यह त्योहार मनाने लगा। इस दिवस को आधिकारिक बनाने का निर्णय पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति वूडरो विलसन ने 8 मई, 1914 को लिया। कुछ लोगों का मानना है कि मदर्स डे कि शुरूआत एक अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस से होती है। एना जार्विस को अपनी माँ से खास लगाव था। माँ के गुजर जाने के बाद एना ने माँ से प्यार जताने के लिए मदर्स डे की शुरूआत की। तब से हर साल मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। माँ का प्रेम अपनी संतान के लिए इतना गहरा और अटूट होता है कि माँ अपने बच्चे की खुशी के लिए सारी दुनिया से लड़ लेती है। एक मां का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है, एक मां के बिना ये दुनियां अधूरी है। मदर्स डे सामान्य रूप से माताओं, मातृत्व और मातृ संबंधों को मान्यता देता है, साथ ही उनके परिवारों और समाज में उनके सकारात्मक योगदान को भी दर्शाता है।
मदर्स डे, उन उल्लेखनीय महिलाओं का सम्मान करने का एक हार्दिक उत्सव है जो हमारे जीवन को प्यार, ज्ञान और असीम शक्ति से भर देती हैं। माँ का प्यार किसी भी ताजे फूल से अधिक सुंदर है। एक माँ की खुशी एक प्रकाश स्तंभ की तरह होती है, एक प्रकाशगृह यानी लाइट हाउस, जो भविष्य को रोशन करती है लेकिन प्यारी यादों के रूप में अतीत पर भी प्रतिबिंबित होती है। एक माँ शक्ति और गरिमा से सुसज्जित होती है, भविष्य के बारे में बिना किसी डर के हँसती है। प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा है कि जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो मेरे जीवन का एकमात्र ऐसा दिन था जब मैं रो रहा था और मेरी मां के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान थी।’ एक माँ हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है, ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में सम्पूर्ण हैं। मां का त्याग, बलिदान, ममत्व एवं समर्पण अपनी संतान के लिये इतना विराट है कि पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाए तो मां के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। मां के साथ बिताये दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं। इसीलिये एच. डब्ल्यू. बीचर ने कहा कि मां का हृदय बच्चे की पाठशाला है।’
भारतीय संस्कृति में मां का स्थान सर्वोपरि माना गया है। मां को देवतुल्य माना गया है। इसीलिये ’मातृ देवो भवः’ यह सूक्त भारतीय संस्कृति का परिचय-पत्र है। ऋषि-महर्षियों की तपः पूत साधना से अभिसिंचित इस धरती के जर्रे-जर्रे में गुरु, अतिथि आदि की तरह माँ भी देवरूप में प्रतिष्ठित रही है। महर्षि वाल्मीकी की यह पंक्ति- ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ जन-जन के मुख से उच्चारित है। प्रारंभ से ही यहाँ ‘मातृशक्ति’ की पूजा होती आई है। वैदिक परंपरा दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में, बौद्ध अनुयायी चिरंतन शक्ति प्रज्ञा के रूप में और जैन धर्म में श्रुतदेवी और शासनदेवी के रूप में माँ की आराधना होती है। लोक मान्यता के अनुसार मातृ वंदना से व्यक्ति को आयु, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुण्य, बल, लक्ष्मी पशुधन, सुख, धन-धान्य आदि प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकता इसलिए उसने माँ को बनाया।
एक माँ हमारे जीवन की हर छोटी बड़ी जरूरतांे का ध्यान रखने वाली और उन्हें पूरा करने वाली देवदूत होती है। कहने को वह इंसान होती है, लेकिन भगवान से कम नहीं होती। वह ही मन्दिर है, वह ही पूजा है और वह ही तीर्थ है। तभी ई. लेगोव ने कहा है कि इस धरती पर मां ही ऐसी देवी है जिसका कोई नास्तिक नहीं। यही कारण है कि समूची दुनिया में मां से बढ़कर कोई इंसानी रिश्ता नहीं है। वह सम्पूर्ण गुणों से युक्त है, गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान है। उसका आशीर्वाद वरदान है। जरा कभी मां के पास बैठो, उसकी सुनो, उसको देखो, उसकी बात मानो। उसका आशीर्वाद लेकर, उसके दर्शन करके निकलो। फिर देखो, जो चाहोगे मिलेगा- सुख, शांति, शोहरत और कामयाबी। ध्यान रहे, मां का दिल दुखाने का मतलब ईश्वर का अपमान है। संसार महान् व्यक्तियों के बिना रह सकता है, लेकिन मां के बिना रहना एक अभिशाप की तरह है। इसलिये संसार मां का महिमामंडन करता है, उसके गुणगान करता है। मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किन्हीं शब्दों में नहीं होती। मां नाम है संवेदना, भावना और अहसास का। मां के आगे सभी रिश्ते बौने पड़ जाते हैं। समाज में मां के ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की जिम्मेदारी निभाई। मां रूपी सूरज चरेवैति-चरेवैति का आह्वान है। उसी से तेजस्विता एवं व्यक्तित्व की आभा निखरती है। उसका ताप मन की उम्मीदों को कभी जंग नहीं लगने देता। उसका हर संकल्प मुकाम का अन्तिम चरण होता है। मां को धरती पर विधाता की प्रतिनिधि कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
किंतु वर्तमान परिवेश को देखते हुए यह सवाल अवश्य खड़ा होता है कि क्या आज की माँ जननी की भूमिका का सम्यक् निर्वहन कर रही है? अथवा क्या वे समाजशास्त्रियों के इस अभिमत पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगा रही कि बच्चा नागरिकता का पहला पाठ माँ की वात्सल्यमयी गोद में सीखता है। जबकि वस्तुस्थिति तो यह है कि माँ की गोद उसे नसीब होती कहाँ है? कुक्षि से बाहर आते ही उसे अलग पालने में सुला दिया जाता है। सोता है तो दूध की बोतल उसके मुँह से लगा दी जाती है। उसका लालप-पालन या देखरेख नर्स या आया के द्वारा होती है अथवा डे केयर सेंटर, बेबी केयर सेंटर में भेजकर कर्तव्यपूर्णता का लेबल लगा दिया जाता है। दो-ढाई वर्ष का होते ही नर्सरी में कम्प्यूटर द्वारा उसे अक्षर-बोध प्राप्त होता है। कुछ बड़ा होते ही उसे होस्टल में प्रविष्टि दिला दी जाती है। कितनी आधुनिक माताएँ तो ऐसी हैं जिन्हें अपने बच्चों से संवाद स्थापित करने का क्षण भी उपलब्ध नहीं होता। करें भी कैसे ? उन्हें अपने निजी कार्यक्रमों से ही फुर्सत नहीं है। तब भला वह कैसे उन्हें बात-बात में तत्त्वबोध दें? कब मीठी-मीठी प्रेरक लोरियाँ सुनाकर संस्कारों की सौगात सौंपे? किस माध्यम से पारिवारिक, सामाजिक मान-मर्यादाओं की अवगति दें? कैसे जीवन में धर्म की उपयोगिता का अहसास करवाएँ? तब फिर शून्यता के सिवा शेष हाथ भी क्या आएगा? मातृ दिवस मां की अस्मिता के धुंधलाने के कारणों की पडताल करने का भी अवसर है। कन्याभू्रणों की हत्या एक ओर मनुष्य को नृशंस करार दे रही है, तो दूसरी ओर स्त्रियों की संख्या में भारी कमी मानविकी पर्यावरण में भारी असंतुलन उत्पन्न कर रही है।’’ अन्तर्राष्ट्रीय मातृ-दिवस को मनाते हुए मातृ-महिमा पर छा रहे ऐसे अनेक धुंधलों को मिटाना जरूरी है, तभी इस दिवस की सार्थकता है।

ऑपरेशन सिंदूर: आतंकवाद के खिलाफ भारत की निर्णायक कार्रवाई

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादियों के 9 ठिकानों को नष्ट किया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे प्रमुख आतंकवादी संगठनों के हेडक्वार्टर भी शामिल थे। भारतीय सेना ने 100 किलोमीटर तक पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादी अड्डों पर सटीक एयरस्ट्राइक की। साथ ही, भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराया। इस ऑपरेशन ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत अपनी सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। जय हिंद!

– डॉ सत्यवान सौरभ

भारत ने हाल ही में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकवादियों के खिलाफ एक ऐतिहासिक सैन्य ऑपरेशन “ऑपरेशन सिंदूर” को अंजाम दिया, जो केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारतीय सेना की ताकत, साहस और आत्म-निर्भरता का प्रतीक है। यह ऑपरेशन आतंकवाद के खिलाफ एक बड़े कदम के रूप में सामने आया और पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि जब बात अपनी सुरक्षा और सम्मान की होती है, तो भारत कभी भी पीछे नहीं हटेगा। ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके के अंदर आतंकवादियों के 9 ठिकानों को तबाह कर दिया। इन ठिकानों में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे प्रमुख आतंकवादी संगठनों के हेडक्वार्टर शामिल थे। इस सैन्य कार्रवाई को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तान और आतंकवादियों को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अपनी सुरक्षा को लेकर किसी भी प्रकार के समझौते के लिए तैयार नहीं है।

ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य और योजना

भारत के लिए आतंकवाद केवल एक सैन्य चुनौती नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकट बन चुका है। पाकिस्तान की ओर से निरंतर आतंकवादी हमलों और सीमा पार आतंकवाद के कारण भारत के नागरिकों और सैनिकों की जानों का नुकसान हो रहा था। इन हमलों में न सिर्फ भारतीय सेना के जवानों की शहादत हो रही थी, बल्कि निर्दोष नागरिकों की भी जानें जा रही थीं। भारत ने हमेशा आतंकवाद के खिलाफ कूटनीतिक और सैन्य तरीके से कदम उठाए हैं, लेकिन अब यह स्पष्ट हो चुका था कि आतंकवाद के ठिकानों को नष्ट करने के लिए एक निर्णायक सैन्य कार्रवाई की आवश्यकता है।

ऑपरेशन सिंदूर की योजना को गुप्त रखते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादी अड्डों पर हमले की रणनीति बनाई। इसके तहत भारतीय वायुसेना द्वारा भारी एयरस्ट्राइक की योजना बनाई गई, जिसमें 100 किलोमीटर तक पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट किया गया। इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के हेडक्वार्टर समेत 9 महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाया गया। भारतीय सेना ने यह सुनिश्चित किया कि ऑपरेशन को हर पहलू से सफल और प्रभावी बनाया जाए, ताकि आतंकवादियों को कोई मौका न मिले और भारत के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

ऑपरेशन सिंदूर की रणनीतिक सफलता

ऑपरेशन सिंदूर की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि भारतीय सेना ने बिना किसी बड़े युद्ध के पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट कर दिया। इस कार्रवाई में भारत ने यह सिद्ध कर दिया कि वह किसी भी आतंकवादी गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगा और अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा। भारतीय वायुसेना ने अपनी एयरस्ट्राइक के माध्यम से पाकिस्तान और पीओके के भीतर आतंकवादियों के ठिकानों को निशाना बनाया। यह हमला इतनी सटीकता से किया गया कि न केवल आतंकवादियों के शरणस्थलों को नष्ट किया गया, बल्कि पाकिस्तान और आतंकवादियों को यह भी संदेश दिया गया कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार है।

इस सैन्य कार्रवाई के दौरान भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान के एक एफ-16 विमान को मार गिराया, जो भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश कर रहा था। यह घटना यह साबित करती है कि भारत अपनी वायुसीमा की सुरक्षा को लेकर अत्यधिक सतर्क है और कोई भी घुसपैठ बर्दाश्त नहीं करेगा। भारतीय सेना और एयरफोर्स की त्वरित प्रतिक्रिया ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत किसी भी चुनौती का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है।

दुनिया पर असर और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति में कोई भी समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। भारत के इस साहसिक कदम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया। भारत ने यह साबित कर दिया कि वह किसी भी देश के आतंकवाद को अपने भीतर बर्दाश्त नहीं करेगा, चाहे वह देश पाकिस्तान हो या कोई और।

इस ऑपरेशन के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की सैन्य क्षमता और रणनीतिक सोच की सराहना की गई। पाकिस्तान के कई सहयोगी देशों ने भारत की सैन्य कार्रवाई को लेकर बयान दिए, लेकिन इन बयानों से यह स्पष्ट हो गया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की कार्रवाई को लेकर दुनिया के देशों का रुख सकारात्मक था। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत के इस कदम को आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के रूप में देखा।

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है, लेकिन भारत का यह कदम पूरी तरह से आत्म-रक्षा और आतंकवाद के खिलाफ था। पाकिस्तान हमेशा से भारत को आतंकवाद के प्रति अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए दबाव डालता रहा है, लेकिन भारत ने यह साबित कर दिया कि वह अपनी सुरक्षा के लिए कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा। पाकिस्तान की तरफ से भारतीय कार्रवाई की आलोचना की गई, लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसकी कार्रवाई का उद्देश्य केवल आतंकवाद को खत्म करना है और पाकिस्तान से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी भूमि पर आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए कदम उठाए।

भारत के इस कदम ने पाकिस्तान को यह सिखा दिया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ युद्ध और सैन्य कार्यवाहियों से नहीं, बल्कि कूटनीति और आंतरिक सुरक्षा से भी लड़ी जाती है। पाकिस्तान को यह समझने की आवश्यकता है कि यदि वह आतंकवाद को बढ़ावा देता रहेगा, तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे।

आतंकवाद के खिलाफ भारत का स्थायी कदम

ऑपरेशन सिंदूर एक सैन्य अभियान के रूप में तो सफल रहा ही, साथ ही यह भारत की आत्म-निर्भरता और आतंकवाद के खिलाफ उसकी नीति की भी पुष्टि है। यह कार्रवाई यह साबित करती है कि भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को और निर्णायक बना दिया है। इस ऑपरेशन से भारत ने यह भी संदेश दिया कि वह आतंकवाद को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए हर संभव कदम उठाएगा और पाकिस्तान को अपनी आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने का कोई अवसर नहीं देगा।

आगे बढ़ते हुए, यह देखना होगा कि भारत अपनी सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने के लिए किस तरह से मजबूर करेगा। आतंकवाद का खात्मा तभी संभव है जब पूरी दुनिया इसके खिलाफ एकजुट हो और आतंकवादियों को शरण देने वाले देशों को जिम्मेदार ठहराया जाए। भारत की सेना और सरकार के संयोजन से यह उम्मीद की जाती है कि आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई को पूरी दुनिया में और प्रभावी तरीके से लड़ा जाएगा।

ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह भारत के साहस, संकल्प और आतंकवाद के खिलाफ उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक है। भारत ने साबित कर दिया कि वह अपनी सुरक्षा और सम्मान के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादियों के खिलाफ यह कार्रवाई एक ठोस कदम है, जो दुनिया भर में आतंकवाद के खिलाफ संदेश देता है। भारतीय सेना को इस अभियान की सफलता पर गर्व है और भारत की सरकार को भी बधाई, जिन्होंने इस साहसिक कदम को उठाया।

ऑपरेशन सिंदूर के परिणामस्वरूप, यह सवाल उठता है कि पाकिस्तान और दुनिया के अन्य देश आतंकवाद के खिलाफ क्या कदम उठाएंगे। भारत की यह कार्रवाई केवल शुरुआत है, और उम्मीद है कि भविष्य में भारत और भी निर्णायक कदम उठाएगा ताकि आतंकवाद का पूरी तरह से खात्मा हो सके। जय हिंद!

पाकिस्तान को हराना भी है और मिटाना भी है

वर्तमान में भारत-पाकिस्तान की सीमा पर जिस प्रकार के हालात बने हुए हैं ,उनके दृष्टिगत सारे देश की मांग यही है कि पाकिस्तान को इस बार पाठ पढ़ा ही देना चाहिए। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत की सेना ही यह तय करेगी कि उसे पाकिस्तान को किस प्रकार, कब , कहां और कैसे पाठ पढ़ाना है ? इस समय दोनों ओर ही सोशल मीडिया पर वाक युद्ध छिड़ा हुआ है। कागजी शेर कागजी बम फोड़ने में लगे हुए हैं। इस समय युद्ध को लेकर सोशल मीडिया पर गंभीर चिंतन नहीं आ रहा है। भावुकता के बयान सोशल मीडिया पर दिखाई दे रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री को क्या करना चाहिए या सेना को क्या करना चाहिए और किस प्रकार हम अपने देश की कम से कम हानि करके भी शत्रु को सही रास्ते पर ला सकते हैं ?- ऐसा चिंतन निकलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा।
ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि हमारे देश के रणनीतिकारों ने कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया होगा। निश्चित रूप से लक्ष्य निर्धारण का कार्य किया जा चुका है- ऐसा माना जा सकता है। क्योंकि बिना लक्ष्य के कभी भी कोई भारत जैसा गंभीर देश किसी दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय नहीं कर सकता। फिर भी मीडिया में इस प्रकार के लेख स्पष्ट रूप से आने चाहिए कि यदि हम इस समय पाकिस्तान के साथ युद्ध करते हैं तो वह किस लक्ष्य को लेकर किया जाएगा ? क्या हमारा लक्ष्य आतंकी ठिकानों को समाप्त करना मात्र होगा या पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को जितना होगा या पाकिस्तान के टुकड़े करना हमारा लक्ष्य होगा या पाकिस्तान में घुसकर पाकिस्तान को पाकिस्तान की औकात दिखाना हमारा उद्देश्य होगा ?
सर्वप्रथम पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के संदर्भ में हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि यह आतंकवाद कल परसों की बात नहीं है। जिस समय पाकिस्तान का जन्म भी नहीं हुआ था, उस समय से ही भारत इस प्रकार के इस्लामिक आतंकवाद को झेलता आ रहा है। पाकिस्तान का जन्म ही इस बात को लेकर हुआ था कि उसे भारत को समाप्त करने के लिए एक शिविर के रूप में प्रयोग किया जाएगा। आज पाकिस्तान के बड़े अधिकारी या कोई नेता जब यह कहता है कि हम पिछले 30 वर्ष से आतंकवाद का गंदा काम करते आ रहे हैं तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि पाकिस्तान के नेताओं का हृदय परिवर्तन हो गया है और उन्होंने सच को स्वीकार कर लिया है। वास्तव में ऐसा कहना केवल समस्या की वास्तविकता से ध्यान बंटाना माना जाना चाहिए । ऐसा कहकर वे यह दिखाना चाहते हैं कि हम गलती स्वीकार कर रहे हैं और आगे से ठीक रहेंगे। जबकि भारत को पाकिस्तान के पिछले इतिहास पर चिंतन करना चाहिए। जिस समय पाकिस्तान के साथ लाल बहादुर शास्त्री जी युद्ध कर रहे थे तो युद्ध हारने के बाद रूस द्वारा आहूत की गई ताशकंद बैठक में हुए ताशकंद समझौता के समय पाकिस्तान की तब भी यही भाषा थी कि अब कभी हम भारत के साथ युद्ध नहीं करेंगे। ऐसा कहकर पाकिस्तान तब हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी से भारत द्वारा जीते गए क्षेत्र को वापस लेने में सफल हो गया था। हमारे प्रधानमंत्री ने बड़े भारी दिल से रूस के दबाव में आकर उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
6 वर्ष पश्चात ही 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ फिर युद्ध करने की हिमाकत की। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने हमारे देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के सामने नाक रगड़ते हुए यह कहा था कि “मैडम ! इस बार छोड़ दो। अब हम कभी भारत की ओर पैर करके भी नहीं सोएंगे ।” यह कहकर ही वह चालाक भुट्टो भारत से अपनी 93 हजार की गिरफ्तार सेना छुड़वा कर ले गया था। जबकि यह सही समय था, जब हम 93 हजार सेना के बदले में पाकिस्तान से अपना कश्मीर वापस ले सकते थे। यह वही भुट्टो था जो युद्ध से पहले कहा करता था कि भारत से हम 1000 वर्ष तक युद्ध लड़ेंगे। युद्ध के बाद अपनी औकात मालूम होते ही उसने रंग बदल दिया था, और हमारे देश की प्रधानमंत्री के सामने गिड़गिड़ाकर अपना उल्लू सीधा कर गया था। इतना ही नहीं, 1999 में कारगिल के समय में भी इसी पाकिस्तान ने अमेरिका के तलवे चाटकर युद्ध विराम के लिए भारत को मनवा लिया था । तब भी इसने लगभग यही भाषा बोली थी कि गलती हो गई और आगे से अब और नहीं करेंगे।
कुल मिलाकर पहली बात तो यह है कि हम पाकिस्तान की किसी भी प्रकार की गिड़गिड़ाहट पर ध्यान न दें। इसकी गिड़गिड़ाहट में भी धोखा होता है। हम सब एकता का परिचय दें और एक ही लक्ष्य को निर्धारित कर अपने देश की सरकार व सेना के पीछे आकर खड़े हो जाएं। दूसरे, इस बार हम सबका मनोयोग केवल एक होना चाहिए कि पाकिस्तान को हराना भी है और मिटाना भी है। उसके जितने टुकड़े हो सकते हैं कर दिए जाने चाहिए। तीसरे,अपना पीओके वापस लेना है।
हमारा ऐसा मानने का एक ही कारण है कि पाकिस्तान और उसके नेता भली प्रकार जानते हैं कि इतिहास हमेशा विजेता का होता है । यदि वह भारत को मिटाने की योजना पर यदि कुछ काम कर रहा है तो बहुत सोच समझकर कर रहा है। वह जानता है कि जो जीतेगा वही मुकद्दर का सिकंदर कहलाएगा। उनकी सोच बड़ी साफ है कि काम करते रहो, जिस दिन लक्ष्य प्राप्त कर लोगे अर्थात जिस दिन हिंदुस्तान का इस्लामीकरण करने में सफल हो जाओगे, उस दिन इतिहास भी अपना होगा और भूगोल भी अपना होगा। वह जानते हैं कि किस प्रकार भारत का मूर्ख बनाकर उन्होंने अपना देश प्राप्त कर लिया था ! उन्हें यह भी पता है कि जब एक बार कोई क्षेत्र देश के रूप में अपने पास आ जाता है तो फिर उसे भारत उल्टा नहीं ले पाता। यहां तक कि कश्मीर से आजादी के बाद भी मुसलमानों ने यदि हिंदुओं को भगा दिया था तो आज तक भारत की सरकारें वहां पर पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास नहीं करा पाई हैं।
इधर हम हैं कि विदेशियों से भरपूर ताकत के साथ लड़ने के उपरांत भी मनोवांछित फल प्राप्त नहीं कर पाए। हमने पुरुषार्थ भी किया, पराक्रम भी दिखाया। परंतु मनोवांछित फल प्राप्त नहीं कर पाए। इसका कारण है कि हमारा अभियान हम सबका अभियान बनकर आगे नहीं बढ़ा । हम भूल गए कि कभी महाराणा कुंभा ने जातिवाद को मिटाने के लिए चित्तौड़ में एक सभा आयोजित कर सभी क्षत्रिय जातियों को अपने नाम के सामने लिखने के लिए ‘राजपूत’ शब्द दिया था ।उनका यह चिंतन भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बांधने के लिए आया था, जातिवाद और गोत्रवाद को मिटाने के लिए आया था, परंतु हमने क्या किया ? हमने ‘ राजपूत’ भी एक जाति बना दी और आज हम सभी क्षत्रिय जाति के होकर भी आपस में लड़ रहे हैं। कोई किसी को गद्दार बता रहा है तो कोई किसी को गद्दार बता रहा है ? हम कल भी अपने सांझा शत्रु को सब का शत्रु नहीं मान रहे थे और आज भी हम वही भूल कर रहे हैं। जातियों की जूतियों में हमने दाल बांटनी छोड़ी नहीं है।
इसी प्रकार कभी संभाजी ने भी संगमेश्वर में एक बैठक आहूत कर वहां पर यह निर्णय लिया था कि सब मिलकर मुगल विहीन भारत बनाएंगे। 28 मार्च 1737 को मुगलों से भारत को छीनकर शिवाजी के वंशज अपने संकल्प में सफल भी हो गए, परंतु हमारे ही लोगों ने उन्हें मराठा समझकर निपटाने का काम करना आरंभ कर दिया। अपने ही लोगों ने संभाजी महाराज की औरंगजेब से दर्दनाक हत्या करवा दी। इस प्रकार मुगल विहीन भारत बनाने का सपना संभाजी के साथ ही विदा हो गया। आज भी यदि किसी नेता के द्वारा ऐसा कहीं संकल्प व्यक्त किया जाता है कि हम मुगलों के वंशज अर्थात उस विचारधारा के लोगों का सफाया करेंगे जो भारत को तोड़ना चाहते हैं या भारत का इस्लामीकरण करना चाहते हैं तो उसे दबाने वाले अधिकांश वे चेहरे होते हैं, जिन्हें हम अपना मानते हैं । कदाचित यही वह स्थिति है जो भारत के लिए सर्वथा प्रतिकूल कही जा सकती है। इस सबके उपरांत भी हमें आज एकजुट होने की आवश्यकता है। भारत के पराक्रमी इतिहास को स्मरण कर आज उस सोच से भारत को मुक्त करना है जो मुगलिया सोच कहलाती है। आतंकवाद भारत की जमीन पर विदेशी मानसिकता और विदेशी सोच की देन है। जिसे मिटाना समय की आवश्यकता है। सनातन तभी फूलफल सकता है जब प्रत्येक प्रकार का आतंकवाद और जिहाद समाप्त होगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य

भारत ने मिसाइल नहीं ‘मिसाल’ दागी है

भारत ने पहलगाम आतंकी हमले का प्रतिशोध लेकर न केवल पाकिस्तान को बल्कि सारे संसार को यह दिखा दिया है कि वह विकल्पविहीन संकल्प का धनी राष्ट्र है। उसका एक ही संकल्प है – पौरुष। उसका एक ही विकल्प है – पराक्रम। उसके लिए एक ही लक्ष्य है – राष्ट्रीय एकता। भारत के राजनीतिक दलों ने देश की सरकार के पीछे खड़े होकर भी संसार को यह दिखा दिया है कि उन सबके लिए राष्ट्र प्रथम है। अब राजनीति नहीं राष्ट्र नीति का समय है और जब राष्ट्रनीति की बात आ रही हो तो ‘ हम सब एक हैं।’
भारत ने अपने पौरुष और पराक्रम का परिचय देते हुए पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों पर एक साथ मिसाइलें दागी और आतंकी पाकिस्तान को यह दिखा दिया कि यदि वह भारत के नागरिकों पर भविष्य में फिर हमला कराएगा तो भारत पाकिस्तान को जहन्नुम की आग में धकेल देगा। आज का भारत वह भारत है जो अपने किसी भी नागरिक की आतंकी हमले में की गई हत्या की तेरहवीं होने से पहले प्रतिशोध लेने की क्षमता रखता है। नई संकल्प शक्ति और ऊर्जा से भरा हुआ राष्ट्र आज अपनी सशस्त्र सेनाओं पर गर्व और गौरव की अनुभूति कर रहा है। साथ ही अपने देश के यशस्वी – तेजस्वी प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व पर भी अपने आप को गौरवान्वित अनुभव करता है। कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने सारी राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रनीति के प्रति भारत के अटूट राजनीतिक और सांस्कृतिक मूल्य में आस्था व्यक्त करते हुए ठीक ही कहा है कि “समय एकता और एकजुटता का है।” इसी प्रकार असदुद्दीन ओवैसी ने भी हमारी राष्ट्रीय एकता के प्रति अपनी निष्ठा को अच्छे शब्द प्रदान किए हैं।
आज हम सबको यह समझना होगा कि भारत ने पहलगाम के आतंकी हमले का प्रतिशोध लेते हुए पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर मिसाइल नहीं दागी हैं बल्कि भारत ने लंबे भविष्य के लिए एक मिसाल दागी है । आने वाली पीढ़ियां इस मिसाल को अपने लिए मिसाइल के रूप में काम में लेंगी। भारत ने यह भी सिद्ध किया है कि वह “सत्यमेव जयते ” की परंपरा में विश्वास रखने के उपरांत भी “शस्त्रमेव जयते ” में भी विश्वास रखता है। वह बुद्ध का देश होकर भी युद्ध को भी आवश्यक मानता है और जब यह युद्ध आतंकियों ,देश के शत्रुओं तथा देश की एकता और अखंडता को तार-तार करने वाली शक्तियों के विरुद्ध हो रहा हो तो सारा राष्ट्र ‘एक’ होकर खड़ा होता है । इसी को खूबसूरत शब्दों में भारत के लोग “अनेकता में एकता” के रूप में प्रस्तुत करते हैं और समय आने पर यह भी दिखा देते हैं कि हमारी अनेकताएं किस प्रकार किसी एक विशेष मोड़ पर आकर एकता में परिवर्तित हो जाती हैं ?
सारे राष्ट्र ने अपनी एकता और एकजुटता का परिचय देते हुए अपने सभी शत्रुओं को यह दिखा दिया है कि हम वीर महाराणा प्रताप, शिवाजी, शेखर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की क्रांतिकारी विचारधारा में विश्वास रखने वाले उनके समर्पित सिपाही हैं। अबसे 54 वर्ष पहले जब 1971 में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में देश ने पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश का निर्माण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी तो उस समय मेरे अग्रज स्वर्गीय प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य जी ने एक कविता लिखी थी। उसकी ये पंक्तियां आज के संदर्भ में बहुत ही सार्थक हैं :-

“मित्र को हैं हम फूल से कोमल,
शत्रु को फौलाद हैं हम।
वीर शिवा, शेखर, राणा की
वही वज्र औलाद हैं हम।।

आज हमने 26/ 11 का प्रतिशोध लेकर उस घटना में मारे गए लोगों की आत्मिक शांति के लिए समझो शांति यज्ञ संपन्न किया है । इसके साथ ही भारत की संसद पर हुए हमले में बलिदान हुए अपने सैनिकों को सारे राष्ट्र ने आज विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की है। पाकिस्तान को आज के भारत के संदर्भ में यह ध्यान रखना चाहिए कि :-

हम कर देते हैं सर्जिकल भी, इतिहास हमें बतलाता है।
‘सिंदूर’ की कीमत क्या होती है, खोल खोल समझाता है।।
नहीं मिसाइलें दागी हमने, सच में दागी एक मिसाल है।
सारी दुनिया देख रही है भारत कितना महान विशाल है।।

    प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस कार्यवाही को अपनी ओर से ' ऑपरेशन सिंदूर' का नाम दिया है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के माध्यम से नव ऊर्जा और राष्ट्रभक्ति की भावना से भरे भारत देश ने आज यह भी सिद्ध कर दिया है कि वह विजयदशमी का पर्व ऐसे ही नहीं मनाता है। उसकी परंपरा के वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक कारण और प्रभाव हैं । ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से हमने पाकिस्तान को बताया है कि एक चुटकी सिंदूर का मूल्य क्या है और इसके लिए उसे क्या भुगतान करना है ? 
 हमने आतंकवादियों के खात्मे के लिए श्रीराम और श्री कृष्ण जी के 'सफाई अभियान' को नई गति दी है। उनके प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया है कि हम सचमुच में आपके उत्तराधिकारी हैं । हम आतंकवादियों का, देश - धर्म और संस्कृति के शत्रुओं का और उन सभी शक्तियों का विनाश करके ही दम लेंगे जो हमारे वैदिक संस्कृति का विनाश करने पर तुली हुई हैं।
पहलगाम आक्रमण में हमने अपने जिन बहन भाइयों को खोया है, उनकी आत्मा की शांति के लिए आज सारे राष्ट्र ने मिलकर शांति यज्ञ संपन्न किया है। आज पहली बार लगा है कि जो लोग आतंकी हमले में मारे जाते हैं, उनके साथ देश कैसे खड़ा हो जाता है ? एक साथ सैकड़ों आतंकवादियों को जहन्नुम की आग में धकेलकर भारत के पराक्रम ने पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए अपने सभी देशबंधु - भगिनियों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। अब से पहले पाकिस्तान हमसे आतंकी घटनाओं के सबूत मांगा करता था। अब हमने अपने पराक्रम के सबूत पाकिस्तान को दे दिए हैं। वह चाहे तो इन सबूतों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को भी दिखा सकता है। यदि वह ऐसा करता है तो भी हमको गर्व होगा।

इस सब के उपरांत भी हम सबको अभी और भी अधिक सावधान रहना होगा। मानवता बनाम आतंकवाद के इस युद्ध में अभी हमें कई संभावित परिस्थितियों से गुजरना होगा। हम अपनी एकता का परिचय देते हुए अपनी सशस्त्र सेनाओं के साथ साथ अपने प्रधानमंत्री के हाथ मजबूत कर प्रत्येक समस्या और प्रत्येक स्थिति से पर विजय प्राप्त करेंगे । इस एक संकल्प के साथ हमको आगे बढ़ना होगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य

कालजयी सृजक रवींद्रनाथ टैगोर

डॉ घनश्याम बादल

‘गुरुदेव’ के नाम से विख्यात कवि लेखक संगीतकार एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी तथा राष्ट्रगान जन गण मन के रचयिता और भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा से वह स्थान प्राप्त किया है जो विरले ही प्राप्त कर पाते हैं । अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के चलते रविंद्र बाबू को विश्वकवि का दर्जा दिया गया है । 

पहले विश्व कवि 

 टैगोर सही मायनों में भारत से पहले विश्वकवि हैं । उनके काव्य के मानवतावाद ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई। दुनिया की अनेक भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ । टैगोर की रचनाएं बांग्ला साहित्य में एक नई शैली एवं चिंतन लेकर आई।

आठ साल के रवि बने कवि

7 मई 1861 को कोलकाता में जन्मे, माता पिता की तेरहवीं संतान  रवींद्रनाथ टैगोर ने बचपन में ही ‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए आठ वर्ष की उम्र  में पहली कविता लिखकर अपने कवि हृदय होने का परिचय दिया तो  मात्र 16 वर्ष की उम्र में उनकी पहली प्रथम रचना एक लघु कथा के रूप में प्रकाशित हुई । एक दर्जन से अधिक उपन्यासों में चोखेर बाली, घरे बाहिरे, गोरा आदि शामिल हैं। रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यासों में मध्यमवर्गीय समाज  का बहुत नज़दीकी से यथार्थपरक चित्रण किया गया है। टैगोर का कथा साहित्य  क्लासिक साहित्य में बहुत ऊंचा स्थान रखता है। समीक्षकों के अनुसार उनकी कृति ‘गोरा’ एक अद्भुत रचना है और आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। 

बहुमुखी प्रतिभा 

 रवींद्रनाथ टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा कविताओं एवं संगीत में सबसे ज्यादा मुखरित हुई । उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्म तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है तो उपनिषद जैसी भावनाएं भी  अभिव्यक्त हुई हैं। साहित्य की शायद ही कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचनाएं नहीं हों। उन्होंने कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, नाटक विधाओं में प्रमुख रूप से रचना की। टैगोर की कई कृतियों के अंग्रेजी अनुवाद के बाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ। उनके नाटक मुख्यतया सांकेतिक हैं ,डाकघर, राजा, विसर्जन आदि इसके प्रमाण हैं। 

पहले नोबेल पुरस्कार विजेता 

 भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ तथा बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ रविंद्र नाथ टैगोर की ही कलम से निकले हैं। रवींद्र ने दो हजार से अधिक गीतों की रचना की। उनका रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। टैगोर की  प्रमुख  रचनाओं में गीतांजलि, गोरा एवं घरे बाईरे प्रमुख हैं । ‘गुरुदेव’ की कविताओं  में  एक अनूठी लय है। वर्ष 1877 में उनकी रचना ‘भिखारिन’ खासी चर्चित रही। उन्हें बंगाल का सांस्कृतिक उपदेशक भी कहा जाता है।

यूं हुआ गीतांजलि का अनुवाद 

1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले रवींद्र आरंभिक दौर में कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रहे लेकिन ‘गीतांजलि’ पर नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद उनकी ख्याति विश्वव्यापी हो गई. उनको अपनी जिस पुस्तक गीतांजलि पर साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला, उसकी कहानी भी बड़ी रोचक है।  51 वर्ष की उम्र में रवींद्रनाथ टैगोर अपने बेटे के साथ इंग्लैंड गए और इस यात्रा ने रवींद्रनाथ टैगोर का आभामंडल ही बदल दिया। समुद्री मार्ग से जाते समय उन्होंने अपने कविता संग्रह ‘गीतांजलि’ का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था केवल समय काटने के लिए कुछ करने की गर्ज से उन्होंने गीतांजलि का अनुवाद एक नोटबुक में लिखना शुरू किया और यात्रा समाप्त होते-होते उन्होंने इस अनुवाद को पूरा भी कर दिया । अनुवाद करते समय टैगोर को किंचित भी आभास नहीं था कि वें एक महान कार्य करने जा रहे हैं ।

अगर खो जाता वह सूटकेस 

 लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र उस सूटकेस को जहाज में ही भूल गया जिसमें वह नोटबुक रखी थी। इस ऐतिहासिक कृति की नियति में किसी बंद सूटकेस में लुप्त होना नहीं लिखा था। वह सूटकेस जिस व्यक्ति को मिला, उसने स्वयं उस सूटकेस को रवींद्रनाथ टैगोर तक अगले ही दिन पहुंचा दिया।  लंदन में टैगोर के अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेंस्टिन को जब यह पता चला कि गीतांजलि को स्वयं रवींद्रनाथ टैगोर ने अनुवादित किया है तो उन्होंने उसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। गीतांजलि पढ़ने के बाद रोथेंस्टिन ने अपने मित्र डब्ल्यू.बी. यीट्स को गीतांजलि के बारे में बताया और नोटबुक उन्हें भी पढ़ने के लिए दी। इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है। यीट्स ने स्वयं गीतांजलि के अंग्रेजी के मूल संस्करण का प्रस्तावना लिखा। सितंबर सन् 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गई। लंदन में गीतांजलि की जमकर  सराहना हुई। जल्द ही गीतांजलि के शब्द माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को सम्मोहित कर लिया। पहली बार भारतीय मनीषा की झलक पश्चिमी जगत ने देखी। गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद सन् 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। टैगोर  पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्य सेतु बनने का कार्य किया था।

रवींद्र संगीत के सृजक 

 टैगोर केवल भारत के ही नहीं, समूचे विश्व के साहित्य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्तंभ हैं । 1901 में शांति निकेतन की स्थापना कर गुरु-शिष्य परंपरा को नया आयाम देने वाले ‘गुरुदेव’ ने 2,000 से अधिक गीत लिखे  जिनका संगीत संयोजन इतना अद्भुत है कि इन्हें ‘रवींद्र संगीत’ के नाम से जाना गया । उनका लिखा ‘एकला चालो रे’ गाना गांधीजी को विशेष पसंद था। 

देश के लिए लौटा दिया नाइटहुड 

 रवींद्रनाथ को 1915 में नाइटहुड की उपाधि दी गई लेकिन जलियांवाला बाग कांड की खिलाफत में उन्होंने उसे लौटा दिया। रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएं की थी। 7 अगस्त 1941 को देहावसान से पहले ही  उनके रचना संसार ने उन्हें एक कालजयी महान विभूति के रूप में अमर कर दिया था। 

7 मई को रवींद्र जयंती पर उन्हें शत-शत नमन। 

डॉ घनश्याम बादल