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युद्ध से युद्धविराम तक: भारत-पाक रिश्तों की बदलती तस्वीर

10 मई 2025 को, भारत और पाकिस्तान ने एक पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमति व्यक्त की, जो हाल के वर्षों में सबसे गंभीर संघर्ष के बाद हुआ। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद सैन्य तनाव बढ़ा था। अमेरिकी राष्ट्रपति की मध्यस्थता में हुई वार्ता के बाद, दोनों देशों ने इस संघर्ष को समाप्त करने का निर्णय लिया। हालांकि, सीमा पर स्थायी शांति अभी भी एक बड़ी चुनौती है। सच्ची शांति तब तक संभव नहीं है जब तक कि दोनों देश आपसी विश्वास, संवाद और सहयोग को प्राथमिकता न दें। युद्धविराम केवल एक कदम है, पर स्थायी शांति की दिशा में कई और कदम बढ़ाने की जरूरत है।

– प्रियंका सौरभ

भारत और पाकिस्तान के बीच के संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के बीच की सीमाएं न केवल भौगोलिक हैं, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक विभाजन भी हैं, जो 1947 में विभाजन के समय से आज तक खिंची हुई हैं। इस तनाव का सबसे बड़ा कारण जम्मू-कश्मीर का मुद्दा रहा है, जो आज भी विवाद का मुख्य बिंदु है। 

1947-48: पहला युद्ध और पहला युद्धविराम

भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध 1947-48 में हुआ, जिसे कश्मीर युद्ध के नाम से जाना जाता है। यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाकों ने कश्मीर पर हमला किया। भारतीय सेना ने महाराजा हरि सिंह की सहायता के लिए कश्मीर में प्रवेश किया, जिसके बाद संघर्ष बढ़ता गया। इस युद्ध का अंत 1 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद हुआ, जिसने युद्धविराम की घोषणा की और दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) स्थापित की। यह युद्धविराम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 47 के तहत हुआ था, जिसमें कश्मीर में जनमत संग्रह की बात कही गई थी, जो आज तक पूरा नहीं हो पाया। 

1965 का युद्ध और ताशकंद समझौता

1965 में, कश्मीर मुद्दे पर फिर से संघर्ष भड़क उठा। इस बार पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ शुरू किया, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में घुसपैठ की। भारत ने इसका कड़ा जवाब दिया और युद्ध पंजाब, राजस्थान और कश्मीर में फैल गया। इस युद्ध का अंत 23 सितंबर 1965 को हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र और सोवियत संघ के मध्यस्थता के बाद ताशकंद समझौता हुआ। इस समझौते पर 10 जनवरी 1966 को भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए। 

1971 का युद्ध और शिमला समझौता

1971 का युद्ध मुख्य रूप से बांग्लादेश की स्वतंत्रता के मुद्दे पर हुआ था। पाकिस्तान में पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों के बीच तनाव बढ़ता गया और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में स्वतंत्रता की मांग ने युद्ध का रूप ले लिया। भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान को निर्णायक हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध के बाद 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने सभी विवाद शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का वादा किया और नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना की गई। 

1999 का कारगिल युद्ध

कारगिल युद्ध 1999 में हुआ, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल-ड्रास सेक्टर में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की। इस संघर्ष में दोनों देशों के बीच भीषण लड़ाई हुई और कई सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। यह युद्धविराम 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ, जब भारत ने अपने क्षेत्र को पुनः प्राप्त कर लिया। 

2003 का स्थायी युद्धविराम

नवंबर 2003 में, दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर स्थायी युद्धविराम की घोषणा की, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। इस पहल ने सीमा पर हिंसा में कमी लाई और कश्मीर में सामान्य जनजीवन को स्थिर किया। हालांकि, इस युद्धविराम का पालन समय-समय पर उल्लंघन का शिकार होता रहा है। 

हालिया प्रयास और चुनौतियाँ

2021 में, भारत और पाकिस्तान ने फिर से युद्धविराम का पालन करने की सहमति जताई, जिसे 2003 के समझौते का नवीनीकरण कहा जा सकता है। यह निर्णय दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई एक गुप्त वार्ता का नतीजा था। 

हालांकि, सीमा पर होने वाली घटनाएं और कश्मीर में बढ़ता तनाव इन प्रयासों को कमजोर करते हैं। दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और आतंकवाद के मुद्दे पर मतभेद इन समझौतों को पूरी तरह से सफल नहीं होने देते। 

2025: नवीनतम युद्धविराम और वर्तमान स्थिति

10 मई 2025 को, भारत और पाकिस्तान ने एक पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमति व्यक्त की, जो हाल के वर्षों में सबसे गंभीर संघर्ष के बाद हुआ। यह संघर्ष 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकवादी हमले के बाद शुरू हुआ, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। इस हमले के बाद दोनों देशों के बीच सैन्य कार्रवाई तेज हो गई, जिसमें मिसाइल और ड्रोन हमले शामिल थे। 

संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में हुई वार्ता के बाद, दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति जताई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते की घोषणा करते हुए दोनों देशों की सराहना की।  

हालांकि, इस युद्धविराम के बावजूद, भारत और पाकिस्तान के बीच कई मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं, जैसे कि सिंधु जल संधि का निलंबन और सीमा पर तनाव। दोनों देशों ने आगे की वार्ता के लिए सहमति जताई है, लेकिन विश्वास की कमी और पिछले अनुभवों के कारण स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई है। 

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की यह यात्रा संघर्ष, रक्तपात और राजनैतिक बदलावों से भरी रही है। आज, इन दोनों परमाणु संपन्न देशों के बीच स्थायी शांति स्थापित करना न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्थायी समाधान के बिना, युद्धविराम केवल एक अस्थायी राहत बना रहेगा।  सच्ची शांति तब तक संभव नहीं है जब तक कि दोनों देश आपसी विश्वास, संवाद और सहयोग को प्राथमिकता न दें। युद्धविराम केवल एक कदम है, पर स्थायी शांति की दिशा में कई और कदम बढ़ाने की जरूरत है।

माँ का आँचल – प्रेम की छाँव, बलिदान का गीत”


माँ केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि जीवन की पहली गुरु, मार्गदर्शिका और सबसे करीबी मित्र है। उसकी ममता जीवनभर हमें सुरक्षा, सुकून और संस्कार देती है। माँ का आशीर्वाद किसी कवच से कम नहीं, जो हर मुश्किल में हमें संबल देता है। मदर्स डे पर उसे सम्मान देना मात्र एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उसके अनमोल त्याग और प्रेम की स्वीकारोक्ति है। माँ का प्रेम अनमोल है, जो हमें जीवन की हर कठिनाई में हिम्मत और सहारा देता है।

-प्रियंका सौरभ

माँ – यह छोटा सा शब्द अपने भीतर असीम गहराई और अपरिमित प्रेम समेटे हुए है। इसे शब्दों में समेट पाना शायद किसी के लिए भी संभव नहीं है। यह पहला सम्बोधन है जो हर बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले बोलता है। माँ केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि जीवन का पहला स्पर्श, पहली मुस्कान और पहली सीख होती है। नौ महीने तक अपनी कोख में पालने से लेकर जीवनभर की चिंता और देखभाल तक, माँ का प्रेम हर रूप में अमूल्य और निश्छल है।

माँ का प्यार अंधा होता है, इसे केवल महसूस किया जा सकता है। वह अपने बच्चों के लिए रात-रात भर जागती है, उनके हर दर्द को अपने दिल से महसूस करती है। हमारे भारतीय समाज में माँ को देवी का दर्जा दिया गया है, और शायद इसीलिए उसे ‘धरती पर भगवान’ कहा जाता है। फिर भी, इस असीम प्रेम और त्याग का मोल चुकाना शायद किसी के बस की बात नहीं।

माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान,
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान।
माँ कविता के बोल-सी, कहानी की जुबान,
दोहे के रस में घुली, लगे छंद की जान।

माँ का स्नेह, त्याग और सहनशीलता की कोई सीमा नहीं होती। वह हर मुश्किल घड़ी में ढाल बनकर खड़ी रहती है। कहते हैं, किसी भी चोट का पहला असर माँ पर होता है, फिर बच्चे पर। उसकी ममता किसी भी आंच को सहन करने का साहस रखती है। माँ का आँचल बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित स्थान होता है, चाहे वह बच्चा कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए।

मदर्स डे – यह दिन दुनिया भर में माँ के योगदान और प्रेम को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत अमेरिका की ऐना जार्विस ने की थी, जिन्होंने 1908 में अपनी माँ की याद में यह परंपरा शुरू की। आज यह दिन माताओं के प्रति आभार प्रकट करने का एक सुअवसर बन चुका है। दुनिया के अधिकांश देशों में यह मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है।

लेकिन क्या केवल एक दिन का सम्मान माँ के अनमोल योगदान के लिए पर्याप्त है? शायद नहीं। असल में, माँ का प्रेम तो उस निस्वार्थ भावना का प्रतीक है जो हर दिन, हर क्षण हमें संजीवनी की तरह जीवन देती है। माँ का यह समर्पण कभी छुट्टी नहीं लेता, न ही थकता है।

माँ वीणा की तार है, माँ है फूल बहार,
माँ ही लय, माँ ताल है, जीवन की झंकार।
माँ हरियाली दूब है, शीतल गंग अनूप,
मुझमें तुझमें बस रहा, माँ का ही तो रूप।

बुढ़ापा, जब माँ को सबसे ज्यादा प्यार और सम्मान की जरूरत होती है, वही वह समय है जब अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों में उलझ कर उसे अकेला छोड़ देते हैं। आज की व्यस्त जीवनशैली में बुजुर्ग माताएं उपेक्षित और असहाय महसूस करने लगती हैं। यह स्थिति समाज की उस संवेदनहीनता को दर्शाती है, जो अपनी ही जननी का मान रखना भूल चुकी है।

मां केवल जन्मदात्री ही नहीं, जीवन की मार्गदर्शिका और प्रेम की अनमोल मूर्ति है। मां धरती पर विधाता की प्रतिनिधि है, जो अपने बच्चों को जीवन की हर चुनौती से जूझने की शिक्षा देती है। मां ही वह पहली गुरु है, जिसने हमें चलना, बोलना और जीवन जीना सिखाया।

स्टीव वंडर ने सही कहा है – “मेरी माँ मेरी सबसे बड़ी अध्यापक थी, करुणा, प्रेम और निर्भयता की एक शिक्षिका।” सचमुच, अगर प्यार एक फूल के समान मधुर है, तो माँ उस फूल की सबसे मीठी सुगंध है।

अब हमारी बारी है कि हम अपनी माँ को सम्मान और प्यार दें, जिससे वह अपनी बची हुई जिंदगी खुशी और सुकून से जी सके। माँ का आशीर्वाद सदा कवच बनकर हमें हर कष्ट से बचाता रहेगा।

तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास,
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास।
माँ तेरे इस प्यार को, दूँ क्या कैसा नाम,
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम।

माँ केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण जीवन दर्शन है। उसकी ममता में प्रेम, करुणा और त्याग की वह मिठास है जो इस दुनिया की हर कड़वाहट को मीठा कर देती है। हर बच्चे के लिए उसकी माँ ही उसकी दुनिया होती है, और शायद यही वजह है कि माँ की गोद में सोने का सुख किसी भी स्वर्गिक सुख से अधिक माना जाता है।

माँ की छाँव में बचपन से लेकर जवानी तक का सफर बेहद खुशनुमा होता है। उसका आशीर्वाद जीवन की हर ठोकर को सहलाने का काम करता है। माँ का हाथ थामकर चलना सिखने वाला बच्चा जब बड़े होकर अपने रास्ते चलने लगता है, तब भी उसकी माँ उसकी हर खुशी और हर दर्द में उसके साथ रहती है।

माँ केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि जीवन का आधार, प्रेरणा और सच्ची मार्गदर्शक है। वह प्रेम, त्याग, और करुणा की साक्षात प्रतिमूर्ति है, जिसके बिना जीवन अधूरा है। माँ का हर स्पर्श, हर आशीर्वाद संतान के जीवन को संजीवनी की तरह सींचता है। जैसे धरती अपनी संतान को उगाती है, वैसे ही माँ अपने बच्चों को हर परिस्थिति में मजबूती से खड़ा करना सिखाती है।

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, जहां हम छोटी-छोटी बातों में उलझकर अपने रिश्तों को भूलने लगे हैं, वहां माँ का निस्वार्थ प्रेम हमें मानवीयता की असली पहचान दिलाता है। यह आवश्यक है कि हम केवल एक दिन नहीं, बल्कि हर दिन माँ के इस अविरल प्रेम का सम्मान करें और उसे वो खुशियाँ दें, जिनकी वह सच्ची हकदार है। माँ के आँचल में जो सुकून है, वह किसी और जगह नहीं मिल सकता। माँ की ममता, आशीर्वाद और शिक्षाएँ जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।

तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास,
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास।

-प्रियंका सौरभ

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को क्यों कहा ‘गीदड़’ ?

संदीप सृजन

पहलगाम हमले के बाद शुरु हुए भारत के ऑपरेशन सिंदूर से बोखलाये हुए पाकिस्तान की राजनीति में एक बार फिर से उथल-पुथल मची हुई है। हाल ही में पाकिस्तानी संसद में एक सांसद ने अपने ही देश के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को ‘गीदड़’ कहकर तीखा हमला बोला। यह बयान न केवल पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में अस्थिरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी प्रदर्शित करता है कि देश के शीर्ष नेतृत्व पर उनके अपने लोगों का भरोसा डगमगा रहा है। इस घटना ने न केवल पाकिस्तान में, बल्कि भारत और वैश्विक स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है।

शुक्रवार को पाकिस्तानी संसद में एक सांसद, शाहिद अहमद खट्टक, ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘गीदड़’ कहा। सांसद ने यह भी आरोप लगाया कि शहबाज शरीफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेने से डरते हैं। यह बयान उस समय आया जब पाकिस्तान और भारत के बीच तनावपूर्ण संबंधों की पृष्ठभूमि में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और ‘इंडिया-पाकिस्तान वॉर’ जैसे हैशटैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे है। सांसद ने अपने भाषण में कहा, “अगर सरदार गीदड़ हो तो जंग हारते हैं। बुजदिल सरदार सेना को क्या संदेश देगा?” इस बयान ने न केवल संसद में हंगामा मचाया, बल्कि पाकिस्तान की जनता और मीडिया में भी तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया।

यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तानी संसद में इस तरह का विवाद हुआ हो। इससे पहले भी, 2019 में बालाकोट हमले के बाद, एक सांसद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की कथित कमजोरी पर टिप्पणी की थी। उस समय भी सांसद ने दावा किया था कि पाकिस्तानी नेतृत्व भारत के सामने घुटने टेक रहा था। इस बार का विवाद इसलिए और महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शहबाज शरीफ के नेतृत्व और उनकी सरकार की विश्वसनीयता पर सीधा सवाल उठाता है।पाकिस्तान की राजनीति हमेशा से अस्थिरता और आंतरिक कलह का शिकार रही है।

पाकिस्तान के सांसद का अपनी ही सरकार के प्रति असंतोष है। जो कि पाकिस्तानी सेना और नागरिक सरकार के बीच बढ़ते तनाव का परिणाम  है, क्योंकि सेना लंबे समय से देश की विदेश नीति और रक्षा नीति पर नियंत्रण रखती है।शहबाज शरीफ को पहले से ही एक कमजोर और समझौतावादी नेता के रूप में देखा जाता रहा है। इस बयान ने उनकी छवि को और नुकसान पहुंचाया है। पाकिस्तान जैसे देश में, जहां राष्ट्रवाद और भारत विरोधी भावनाएं राजनीति का एक बड़ा हिस्सा हैं, ‘गीदड़’ जैसे शब्द का इस्तेमाल शहबाज की विश्वसनीयता पर गहरा आघात करता है। यह बयान न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि को प्रभावित करता है, बल्कि उनकी पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन), की स्थिति को भी कमजोर करता है।

सोशल मीडिया पर इस बयान ने आग में घी का काम किया। कई यूजर्स ने शहबाज शरीफ का मजाक उड़ाया और उनकी सरकार को ‘बुजदिल’ करार दिया। यह घटना पाकिस्तान की पहले से ही अस्थिर राजनीति को और जटिल बना सकती है। शहबाज शरीफ की सरकार पहले ही विपक्ष के लगातार हमलों का सामना कर रही है। इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई लगातार सरकार पर भ्रष्टाचार, अक्षमता और सेना के सामने घुटने टेकने का आरोप लगाती रही है। इस बयान ने विपक्ष को एक नया हथियार दे दिया है, जिसका इस्तेमाल वे शहबाज सरकार को और कमजोर करने के लिए कर सकते हैं। इसके अलावा, यह बयान सेना और नागरिक सरकार के बीच संबंधों पर भी सवाल उठाता है। पाकिस्तान में सेना का राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा है। सेना लंबे समय से भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाने की पक्षधर रही है, और अगर शहबाज सरकार इस दिशा में थोड़ी नर्म पड़ती है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे चल रहा है, दोनों देशों के बीच सैन्य या कूटनीतिक तनाव की स्थिति है। ऐसे में पाक सांसद के बयान ने इस धारणा को और मजबूत किया है कि पाकिस्तान का नेतृत्व भारत के सामने कमजोर पड़ रहा है।

भारत में इस बयान को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ भारतीय नेताओं और सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे भारत की कूटनीतिक और सैन्य ताकत का सबूत बताया, जबकि कुछ ने इसे पाकिस्तान की आंतरिक कमजोरी का प्रतीक माना है। वैश्विक स्तर पर, यह घटना पाकिस्तान की छवि को और कमजोर करती है। पहले से ही आर्थिक संकट और आतंकवाद जैसे मुद्दों से जूझ रहा पाकिस्तान अब आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता के कारण और चर्चा में है।पाकिस्तानी संसद में शहबाज शरीफ को ‘गीदड़’ कहे जाने की घटना केवल एक बयान नहीं, बल्कि पाकिस्तान की गहरी राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं का प्रतीक है। यह बयान शहबाज शरीफ की सरकार की कमजोरी, विपक्ष के आक्रामक रवैये, और सेना-नागरिक सरकार के बीच तनाव को उजागर करता है।

संदीप सृजन

भारत के हाथों “हार” का रहा है पाक का इतिहास

-प्रदीप कुमार वर्मा

कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले का बदला भारत ने ले लिया है। भारत की ओर से चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर अभियान के जरिए पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों पर हमला कर उन्हें तबाह कर दिया गया है। उधर, पाकिस्तान ने भी अपनी परंपरागत आदत के मुताबिक भारत के रिहायशी तथा सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है। भारत की सेना ने पाकिस्तान की इस नापाक हरकत का मुंह तोड़ जवाब दिया है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब भारत के हाथों पाक को मुंह की खानी पड़ी है। इससे पहले भी हुए युद्ध में भारत ने जंग के मैदा न में पाकिस्तान को कई बार धूल चटाई है।फिलहाल, हालात ऐसे हैं कि भारत में ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के घमंड को चूर-चूर कर दिया है। यही नहीं भारत और पाकिस्तान के बीच इस नए मोर्चे के बाद जहां भारत को कई देशों का समर्थन मिल रहा है। वहीं, पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया है।

            पहलगाम के आतंकी हमले का बदला लेने के लिए भारत में शुरुआत सिंधु जल समझौते के निरस्त करने से की। इसके बाद भारत ने चिनाब का पानी भी रोक दिया। यही नहीं भारत ने अटारी बॉर्डर को बंद करके पाकिस्तान के साथ सभी प्रकार के आयात और निर्यात पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी है। भारत ने एक कूटनीतिक कदम उठाते हुए पाकिस्तान के दूतावास में अधिकारियों की संख्या में कटौती कर दी। इसके साथ ही भारत में पाकिस्तान के जहाजों की आवाजाही पर पूर्ण पाबंदी के साथ-साथ पाकिस्तान के पोतों के लिए भारत के बंदरगाहों को पूरी तरह से बंद कर दिया है। इस आर्थिक मोर्चाबंदी के बाद पहले से ही गरीबों की मार झेल रहे पाकिस्तान में अब कंगाली के हालात है। यही नहीं भारत ने विश्व पटेल के अन्य देशों के साथ अपनी कार्रवाई को साझा करते हुए उनका विश्वास जीता है। यही वजह है कि अब विश्व का अनेक देश पाकिस्तान के विरुद्ध भारत की इस कार्रवाई में उसके साथ हैं।

                   यह कोई पहला मौका नहीं है जब आतंकवाद का पालन-पोषण वाले पाकिस्तान को भारत के साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष युद्ध में मुंह की खानी पड़ी है। लेकिन पाकिस्तान है कि तमाम नुकसान के बाद ना तो उसने आतंकवादियों को आश्रय देना बंद किया है और ना ही अपनी पुरानी हार से कोई सबक सीखा है। भारत और पाकिस्तान के बीच अगर युद्ध की बात करें तो वर्ष 1947 से 1948 के बीच में कश्मीर में 22 अक्टूबर 1947 से 1 जनवरी 1949 तक भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ। इस युद्ध में पाकिस्तान ने कबालियों के साथ कश्मीर पर आक्रमण किया। लेकिन उसे भारतीय सेना के हाथों मुंह की खानी पड़ी और 1 जनवरी 1949 को युद्ध विराम की घोषणा हुई। इसके बाद उसने कश्मीर के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया। जिसे आज भी पीओके नाम से जाना जाता है।  इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1965 में युद्ध हुआ।

          तब 5 अगस्त 1965 को पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू कश्मीर की नियंत्रण रेखा के पर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की।  इसके जवाब में भारतीय सेना ने कई स्थानों पर अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर लाहौर पर हमला कर दिया तथा भारतीय सैनिकों ने 8 अगस्त 1965 को हाजी पीर दर्रे पर भारतीय तिरंगा फहरा दिया। इसके बाद तत्कालीन सोवियत संघ और अमेरिका की मध्यस्थता से युद्ध विराम पर सहमत हुए दोनों देशों के बीच ताशकंद समझौता हुआ और भारत की सेना एक बार फिर नियंत्रण रेखा पर से वापस लौट आई। इसके करीब 6 साल बाद वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच फिर से युद्ध हुआ। इस युद्ध को “बांग्लादेश मुक्ति संग्राम” के नाम से जाना जाता है।  यह युद्ध 3 दिसंबर 1971 से लेकर 16 दिसंबर 1971 तक चला तथा इसके बाद पाकिस्तान दो भागों में पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्व पाकिस्तान बन के रूप में बंट गया।

      इस युद्ध में लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने 16 दिसंबर 1970 को ढाका में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की उपस्थिति में करीब 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के साथ सरेंडर कर दिया। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ। वर्ष 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ। इस साल पाकिस्तान ने आतंकवादी घुसपैठियों के साथ कश्मीर की पहाड़ियों पर आक्रमण कर दिया तथा टाइगर हिल सहित सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई अन्य चोटियों पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद 10 में 1999 को भारत ने “ऑपरेशन विजय” की शुरुआत की और भारतीय सेवा के वीर सपूतों ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए 26 जुलाई को भारतीय सेना ने पूरे क्षेत्र को पाकिस्तानी आतंकवादियों के कब्जे  से मुक्त करा लिया। इस दिन को “कारगिल विजय दिवस” के रूप में मनाया जाता है। 

           बताते चलें कि पहलगाम में आतंकी हमले का बदला लेने के लिए भारतीय सेना ने सधी हुई रणनीति अपनाते हुए “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया। इस विशेष ऑपरेशन में भारत की सेना ने पीओके तथा पाकिस्तान के अन्य इलाकों में आतंकवादियों के नों ठिकानों को मिसाइल और ड्रोन हमले में तबाह कर दिया। यही नहीं भारत में ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी अपने मित्र देशों के साथ-साथ अन्य देशों तथा यूएन को दी और बताया कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए केवल आतंकियों को निशाना बनाया है। भारत की सेना ने इस अभियान में पाकिस्तानी सैनिक ठिकानों और नागरिकों को निशाना नहीं बनाया है। अमेरिका तथा रूस समेत अन्य देशों ने भारत की इस कार्रवाई को उचित बताते हुए आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई में भारत का साथ देने का ऐलान किया है। यही नहीं रूस ने अपने जंगी बेड़े को भारत भेजा है। वहीं, इजराइल ने भी भारत को विशेष ड्रोन उपलब्ध कराए हैं जिसकी वजह से आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत मजबूती से पाकिस्तान को सबक सिखा रहा है।

प्रदीप कुमार वर्मा

पाकिस्तान न्यौत रहा अपनी तबाही

युद्ध विराम समझौता तोड़ा 

डॉ घनश्याम बादल

अभी युद्ध विराम की घोषणा की स्याही सूखी भी नहीं थी की बेगैरत पाकिस्तान ने अपने वचन  से मुकरते हुए भारत पर एक बार फिर ड्रोन हमला किया और एलओसी पर भी भारी गोलीबारी की । हालांकि मुस्तैद भारतीय सेना ने न केवल मुंह तोड़ जवाब दिया है अपितु पाकिस्तान को भारी नुकसान भी झेलना पड़ा है । अब दुनिया को सोचना पड़ेगा कि ऐसे देश का क्या किया जाए जिसके वचन और ज़बान का कोई भरोसा ही न हो । 

अभी कल रात तक देशभर में जोश, गुस्सा, चिंता और दुश्मन को सबक  सिखाने का जज्बा पूरी तरह हावी था । देश के सारे मीडिया चैनल और अखबार अपने-अपने तरीके से युद्ध की खबरों को टीआरपी के मसाले में लपेटकर पेश कर रहे थे । एंकर चीख – चीख कर पाकिस्तान के नेस्तनाबूद होने, वहां के एयर डिफेंस सिस्टम के तबाह होने और कितने ही आतंकवादियों के मरने, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी द्वारा सेना के खिलाफ शस्त्र उठाने के साथ-साथ युद्ध का जोश परोस रहे थे । 

6 एवं 7 मई की रात को जब भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला करके उन्हें भारी क्षति पहुंचाई तब देश की सेना एवं राजनीतिक नेतृत्व की प्रशंसा के कसीदे सारे देश में काढ़े गए । वास्तव में यह एक बड़ा निर्णय भी था और साहसिक कदम भी।  साथ ही साथ कहा जाए तो 26 पर्यटकों की मौत के बदले कए लिए ऐसा होना जरूरी भी था । 

   जिस तरह पहले दिन की रिपोर्ट आई और मीडिया के अनुसार कहा गया कि पाक बदहवास है, वहां घबराहट और भय का माहौल है तो पाकिस्तान की हिम्मत नहीं होनी चाहिए थी भारत पर प्रतिघात करने की ।  लेकिन गीदड़ भभकियों के साथ-साथ पाकिस्तान 8 मई की रात को अपने एयर स्ट्राइक और जम्मू कश्मीर सीमा पर भारी गोलाबारी के साथ अकड़ भरी बेहूदगी दिखाने पर उतर आया।  जिस तरह उसने करीब एक घंटा लगातार हमले किए वह चिंता का सबब था लेकिन हमारे एस 400 के के सुरक्षा चक्र ने उनकी मिसाइलों एवं ड्रोनों को हवा में ही मार गिराया तो एक बार फिर से भारतीयों का सीना गर्व से फूल उठा । उधर पुंछ जम्मू, राजौरी, श्रीनगर, अवंतीपोर जैसे इलाकों में भारी गोलाबारी करके उसने आम नागरिकों के जीवन एवं घरों तथा खेतों को क्षति पहुंचाई और तब तक उसे चैन नहीं पड़ा जब तक भारतीय सेवा ने एक बार फिर से अपने अचूक निशाने के साथ उसके सैन्य ठिकानों पर हमला नहीं बोला। 

 यदि सूत्रों की मानें तो उसी दिन उसका कराची पोर्ट लगभग तबाह हो गया, लाहौर तक में हमारी मिसाइल गिरी और हमले की फ़िराक में आए उसके दो एफ 16 एवं दो जेट फाइटर 17 नष्ट किए गए, 8 मिसाइल और बड़ी संख्या में उसके ड्रोन भी नष्ट हुए जो उसने आतंक का समर्थन कर रहे तुर्कीए से ले रखे थे । खैर न उसके काम अमेरिकी एफ 16 आए, न चीन के जेट फाइटर 17 उसे सफलता दिला सके साफ़ सी बात है कि सफलताएं साधनों से नहीं साधना एवं प्रशिक्षण से मिलती है  और उस देश में प्रशिक्षण केवल आतंकवादियों को दिया जाता है जो कायरों की तरह छुपकर हमला करते हैं और निर्दोषों की जान ले लेते हैं । नुकसान आतंकवादियों का भी कम नहीं हुआ उनके नौ ठिकाने पहले ही दिन नष्ट हुए और अगले दिन भी 12 ठिकानों को भारी नुकसान हुआ।  5 बड़े आतंकवादी मारे गए,मारे तो बहुत गए होंगे मगर पांच तो बड़े कुख्यात रहे। 

  इस बीच पाकिस्तान ने भारत के एयर बेस ठिकानों को भी निशाना बनाने की कोशिश की।  पठानकोट, जालंधर व जैसलमेर जैसे सैन्य ठिकानों पर उसने हमले करने की कोशिश की पर मुंह की खाई । कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस संघर्ष में पाकिस्तान के हाथ कुछ नहीं आया । सारी हेकड़ी भी निकल गई बदनामी तो ख़ैर उसकी पहले से ही दुनिया भर में है । 

  बहुत सारे संसाधनों का नष्ट होना इस देश के लिए ऐसा ही है जैसे कंगाली में आटा गीला होना जिस अनाड़ीपन से पाकिस्तान ने हमले किए वह भी वहां की सेना के तकनीकी प्रशिक्षण एवं क्षमता पर बड़े सवाल खड़े कर गया। 

ख़ैर युद्ध विराम की घोषणा हो गई है और इस सारे प्रकरण में सबसे ज्यादा भद्द पिटी है शहबाज शरीफ सरकार की, जो इस स्थिति में भी वहां नहीं रही कि वह अपनी सेना को युद्ध विराम के लिए भी मना सके आशंकाएं तो यह भी है कि 1999 की तरह ही इस बार भी वहां के जनरल ने अपनी मनमर्जी चलाते हुए यह संघर्ष शुरू किया । 

ख़ैर यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है वहां लोकतंत्र और सेना के बीच हमेशा से कुश्ती होती रही है जो आगे भी चलेगी और यदि वहां की सरकार ने सेवा की लगाम नहीं कसी तो  हो सकता है आने वाले कुछ महीनो में ही शाहबाज शरीफ भी इमरान खान की तरह ही या तो किसी जेल में दिन काट रहे हों या अपने बड़े भाई नवाज शरीफ की तरह विदेश जाने को मजबूर हो जाएं। 

  भले ही बयान वीर लोग इस युद्ध विराम की आलोचना करें लेकिन सच यही है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं होता बल्कि समस्याओं की वजह से युद्ध होते हैं और युद्ध के बाद समस्याएं मुंह बाए  लड़ने वालों के सामने खड़ी होती हैं।  

   अभी इस युद्ध विराम पर बहुत अधिक कुछ कहना ठीक नहीं होगा । अब भारत अपनी कितनी शर्तें मनवा पाया और पाकिस्तान अपनी नाक कितनी बचा पाया इसका पता तो 12 मई को दोनों देशों के बीच होने वाले वाली बैठकों के बाद ही पता चल पाएगा। 

इस सीज फायर के पीछे जिस तरह अमेरिका एवं ईरान तथा सऊदी अरब सक्रिय होकर लगे इसके लिए इन देशों की भी प्रशंसा करनी होगी अन्यथा यह भी बहुत संभव था कि दक्षिण एशिया भी रूस एवं यूक्रेन की तरह युद्ध की लपटों से लंबे समय तक झुलस सकता था। 

 हां, एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत इस युद्ध विराम से पैदा हुई शांति से भ्रांति या गफलत में न रहे।  हमारे पड़ोसी का इतिहास हम जानते हैं इसलिए 24 घंटे हमें उसकी सेना, आई एस आई,  वहां के दहशतगर्द और देशभर में फैली उनकी स्लीपिंग सेल्स पर न केवल निगाह रखनी होगी बल्कि उनका एक परमानेंट इलाज भी ढूंढना होगा अन्यथा स्थिति में तो संघर्ष होते रहेंगे सीज फायर भी होते रहेंगे और समस्या ज्यों कि त्यों बनी रहेगी । उम्मीद है हमारा वर्तमान मजबूत संकल्प वाला नेतृत्व और क्षमतावान सेना देश की उम्मीद पर खरा उतरते रहेंगे। 

सीजफायर : भारत की कूटनीतिक और राजनयिक जीत

संदीप सृजन

पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले में 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की जान चली गई। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। इस हमले के जवाब में भारत ने 7 मई 2025 को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसके तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए गए। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया, इसके बाद भारत की कूटनीतिक और राजनयिक पहल ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया । इसी कारण सीजफायर स्थिति बन गई और ऑपरेशन सिंदूर को स्थगित करने का निर्णय भी लिया गया। जिसे पूरा विश्व भारत की बड़ी राजनयिक जीत के रूप में देखा जा रहा है।

पहलगाम आतंकी हमले में आतंकियों ने तीर्थयात्रियों और स्थानीय नागरिकों को निशाना बनाया, जिसमें 26 लोग मारे गए। इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मदऔर लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों पर डाली गई, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था। इस घटना ने पूरे भारत में आक्रोश की लहर पैदा कर दी। विशेष रूप से, हमले में कई नवविवाहित जोड़ों के पतियों की हत्या ने भावनात्मक रूप से देश को झकझोर दिया। एक ऐसी तस्वीर, जिसमें एक नवविवाहिता अपने पति की लाश के पास बैठी थी, उसके माथे का सिंदूर मिट चुका था और हाथों में मेहंदी के साथ खून के छींटे थे, ने पूरे देश को भावुक कर दिया।

इस हमले के बाद भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि इस हमले के जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। रक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने तत्काल कार्रवाई की योजना बनानी शुरू की। भारत ने इस हमले को न केवल अपनी संप्रभुता पर हमला माना, बल्कि इसे मानवीय मूल्यों के खिलाफ एक कायराना कृत्य के रूप में देखा।

7 मई 2025 की मध्यरात्रि को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसका नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाया था। इस ऑपरेशन का नाम इसलिए चुना गया क्योंकि पहलगाम हमले में आतंकियों ने कई महिलाओं को विधवा किया था, और सिंदूर भारतीय संस्कृति में सुहाग का प्रतीक है। यह ऑपरेशन भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना के संयुक्त प्रयासों का परिणाम था, जिसमें पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया।

ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने सटीक और नियंत्रित हमले किये। भारतीय वायुसेना ने सुखोई-30, राफेल फाइटर जेट्स और ब्रह्मोस तथा स्कैल्प मिसाइलों का उपयोग कर बहावलपुर, कोटली, मुजफ्फराबाद, मुरीदके और अन्य स्थानों पर आतंकी ठिकानों को नष्ट किया। इन हमलों में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के ठिकाने शामिल थे। भारत ने अपनी कार्रवाई को गैर-उत्तेजक रखा और किसी भी पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना नहीं बनाया। यह सुनिश्चित किया गया कि हमले केवल आतंकी ढांचों तक सीमित रहें। ऑपरेशन केवल 23 मिनट में पूरा हुआ, जो भारतीय सेना की तकनीकी क्षमता और रणनीतिक योजना को दर्शाता है। 

रक्षा मंत्रालय ने इसे “केंद्रित, नपी-तुली और गैर-बढ़ावा देने वाली” कार्रवाई बताया। हमले में जैश-ए-मोहम्मद का बहावलपुर स्थित मरकज सुभान अल्लाह, लश्कर-ए-तैयबा का मुरीद के स्थित मरकज तैयबा और अन्य ठिकाने नष्ट किए गए। ये ठिकाने 2001 के संसद हमले, 2008 के मुंबई हमले और 2019 के पुलवामा हमले जैसे आतंकी कृत्यों से जुड़े थे। अनुमानित 80-100 आतंकी इसमें मारे गए, जिसमें जैश और लश्कर के कई वरिष्ठ कमांडर शामिल थे।जिससे पूरे पाकिस्तान में हड़कंप मच गया और पूरे देश में हाई-अलर्ट जारी किया गया। पाकिस्तानी सेना और सरकार में बौखलाहट देखी गई।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू की, जिसके परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर के पुंछ में 10 नागरिकों की मौत हो गई और 33 लोग घायल हुए। इसके अलावा, पाकिस्तान ने भारत के कई शहरों, जैसे श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, और चंडीगढ़ में ड्रोन और मिसाइल हमलों की कोशिश की, लेकिन भारत के S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने इन हमलों को नाकाम कर दिया। पाकिस्तान ने प्रचार युद्ध भी शुरू किया, जिसमें झूठे दावे किए गए, जैसे श्रीनगर एयरबेस पर हमला और भारतीय सैनिकों को बंदी बनाना। हालांकि, ये दावे बाद में झूठे साबित हुए। पाकिस्तानी सेना और ISI ने सोशल मीडिया के जरिए भ्रामक वीडियो और तस्वीरें फैलाईं, लेकिन भारत ने इनका तथ्य-जांच के साथ खंडन किया।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने तुरंत कूटनीतिक मोर्चे पर काम शुरू किया। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने 13 देशों के राजदूतों को ब्रीफिंग दी, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन की आवश्यकता और सटीकता को स्पष्ट किया। भारत ने यह सुनिश्चित किया कि वैश्विक समुदाय को यह संदेश जाए कि यह कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ थी, न कि पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की शुरुआत। NSA अजीत डोभाल ने अमेरिका, रूस और अन्य प्रमुख देशों को स्पष्ट किया कि हमले केवल आतंकी ठिकानों पर किए गए। भारत ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग में संयमित और तथ्य-आधारित भाषा का उपयोग किया। कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जैसी महिला अधिकारियों द्वारा ब्रीफिंग देना भारत की संवेदनशीलता और समावेशिता का प्रतीक था। 

पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को रद्द कर दिया, जिसने पाकिस्तान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बढ़ाया। भारत ने देशभर में 244 शहरों में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल आयोजित की, जिसने उसकी रक्षा तैयारियों को प्रदर्शित किया। कई देशों, विशेष रूप से अमेरिका और ब्रिटेन, ने भारत की कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ उचित कदम माना। चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया, लेकिन भारत की कूटनीतिक सक्रियता ने चीन को खुलकर सामने आने से रोका। तुर्की ने पाकिस्तान को नौसैनिक समर्थन देने की कोशिश की, लेकिन भारत की शक्तिशाली नौसेना के सामने यह प्रभावहीन रहा।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच, सीजफायर की पहल पाकिस्तान की ओर से की गई। 10 मई 2025 को, दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी रोकने के लिए एक समझौता हुआ। जिसे भारत ने इसे अपनी शर्तों पर स्वीकार किया। अमेरिका ने इस प्रक्रिया में मध्यस्थ की भूमिका निभाई। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सीजफायर के लिए कोई पूर्व या पश्चात शर्त नहीं रखी गई थी। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में होने वाला कोई भी आतंकी हमला युद्ध का कृत्य माना जाएगा। इसके साथ ही, भारत ने सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित रखा है। भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर को स्थगित करने का निर्णय लिया गया, जिसे कई विशेषज्ञों ने भारत की राजनयिक परिपक्वता और रणनीतिक संयम का उदाहरण माना। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक शक्तियों ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की।

भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ न्यायोचित ठहराया, जिससे पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया।भारत ने यह स्पष्ट किया कि ऑपरेशन का स्थगन स्थायी नहीं है और यदि आतंकी गतिविधियां दोबारा शुरू हुईं, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इस निर्णय ने भारत की छवि को एक जिम्मेदार और शांति-प्रिय राष्ट्र के रूप में मजबूत किया। ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद के घटनाक्रम ने भारत की कूटनीतिक और राजनयिक क्षमता को विश्व मंच पर प्रदर्शित किया। आतंकवाद के खिलाफ मजबूत संदेश देते हुए भारत ने स्पष्ट किया कि वह आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाएगा। भारत की इस सक्रिय कूटनीति ने उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन दिलाया, जबकि पाकिस्तान को झूठे प्रचार के लिए आलोचना झेलनी पड़ी। भारत ने सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया, लेकिन साथ ही कूटनीतिक संयम दिखाकर युद्ध की संभावना को टाला। ऑपरेशन सिंदूर और सिंधु जल संधि के रद्द होने से पाकिस्तान आर्थिक और कूटनीतिक रूप से कमजोर हुआ।

ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद भारत-पाकिस्तान सीजफायर भारत की रणनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक शक्ति का प्रतीक है। पहलगाम हमले का जवाब देने के लिए शुरू किया गया यह ऑपरेशन न केवल आतंकवाद के खिलाफ भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी राजनयिक परिपक्वता को भी उजागर करता है। सीजफायर और ऑपरेशन के स्थगन ने भारत को एक जिम्मेदार और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, जो न केवल अपनी सुरक्षा के लिए कठोर कदम उठा सकता है, बल्कि शांति और स्थिरता के लिए संयम भी बरत सकता है। यह घटनाक्रम भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, बशर्ते पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे और क्षेत्रीय शांति के लिए सकारात्मक कदम उठाए।

संदीप सृजन

क्या पाकिस्तानी हुकमरानों को भारत की ताकत पर अब भी कोई संशय रह गया है?

                    रामस्वरूप रावतसरे

रावलपिंडी सैन्य मुख्यालय के जनरल पाकिस्तान को एक खतरनाक रास्ते पर ले जा रहे हैं। जनरल असीम मुनीर की अगुवाई में पाकिस्तान ने जो रास्ता पकड़ा है, उसकी मंजिल सिर्फ तबाही है। भारत ने पाकिस्तान के अंदर आतंकी ठिकानों पर ऑपरेशन सिंदूर को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इसके बाद लगा कि पाकिस्तान की सरकार भी तनाव बढ़ाने को तैयार नहीं है लेकिन पिछले दो दिनों से जो कुछ हो रहा है, उससे लगता है कि पाकिस्तानी जनरलों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने आतंकी ठिकानों के सफाए का बदला लेने की ठान ली और पाकिस्तान सरकार को अपने इशारे पर चलने पर मजबूर कर दिया क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के तत्काल बाद पाकिस्तानी सरकार की प्रतिक्रिया और उसके बाद पाकिस्तानी फौज की करतूत में जमीन-आसमान का अंतर नजर आ रहा है।

22 अप्रैल को पहलगाम हमले में पाकिस्तान में पले-बढ़े आतंकियों का हाथ है। उसके बाद से पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर पहले युद्धविराम का उल्लंघन शुरू किया। फिर ऑपरेशन सिंदूर के बाद वाली लगातार दो रातों 7-8 और 8-9 मई को ड्रोन और मिसाइलों से भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की नाकाम कोशिशें की हैं। भारतीय सशस्त्र सेना उसकी हर हरकतों का मुंहतोड़ जवाब दे रही है। पाकिस्तान पूरी तरह से फेल हो रहा है क्योंकि भारत के पास कहीं बेहतर हवाई सुरक्षा प्रणाली है। भारत ड्रोन बनाने का केंद्र बन रहा है जबकि पाकिस्तान के पास ऐसा कुछ नहीं है। भारत के पास पाकिस्तान से कहीं ज्यादा संसाधन हैं। चीन भी पाकिस्तान के इस लफड़े में पड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहा। इसलिए, पाकिस्तान एक हारने वाला खेल खेल रहा है। भारत को आर्थिक और सैन्य तौर पर बड़ी बढ़त हासिल है। भारत लगातार तनाव कम करने की कोशिश कर रहा है लेकिन अपनी संप्रभुता की कीमत पर हरगिज नहीं।

ऑपरेशन सिंदूर में जब भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तानी कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर  में 9 आतंकी ठिकानों पर हमले करके उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया था, तब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का पहला बयान इसी ओर इशारा कर रहा था कि वह कोई भड़काऊ जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा जबकि, पहले वाले इनके बयान काफी भड़कीले रहे थे लेकिन मुनीर की सेना अपनी सरकार की बात मानने को तैयार नहीं हुई। उन्होंने बदला लेने की कसम खाई और शहबाज शरीफ की सरकार को अपनी बात मानने के लिए मजबूर कर दिया। पाकिस्तान की यही सबसे बड़ी त्रासदी है कि सरकार के पास कोई अधिकार नहीं है और सेना जो कहती है, वही होता है।

दुनिया में भारत आज कहां खड़ा है, इसे स्वीकार करने के लिए शायद पाकिस्तान तैयार नहीं है। जब भारतीय सशस्त्र सेना लाहौर में पाकिस्तानी सैन्य ठिकानें पर उसके एयर डिफेंस सिस्टम को तबाह कर रही थी, तब इस्लामिक सहयोग संगठन के दो महत्वपूर्ण देशों के मंत्रियों की विदेश मंत्री एस जयशंकर दिल्ली में मेजबानी कर रहे थे। ये देश हैं सऊदी अरब और ईरान। जयशंकर ने ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची और सऊदी अरब के मंत्री आदिल अल-जुबेर से अलग-अलग बैठकें कीं। ईरान तो पाकिस्तान का पड़ोसी भी है। भारत ने दोनों मुस्लिम देशों के मंत्रियों को ’’ऑपरेशन सिंदूर’’ के बारे में जानकारी दी। भारत ने बताया कि ये ऑपरेशन, पाकिस्तान की ओर से पहलगाम में किए गए आतंकी हमलों के बाद किया गया। सऊदी अरब और ईरान दोनों ने पहलगाम हमले की निंदा की है। विदेश मंत्री ने अपने मेहमानों को समझाया कि भारत की प्रतिक्रिया ’’नपी-तुली, सटीक और किसी तरह से भड़काने वाली नहीं’’ थी। भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे स्थिति और बिगड़े।

पहलगाम आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है तो ऑपरेशन सिंदूर के बाद हालात बेकाबू न हो, इसकी भी जिम्मेदारी उसी की है, यानी अब जो कुछ हो रहा है, उसे रोकने की पहल पाकिस्तान को ही करनी पड़ेगी और अमेरिका भी बिना कहे, इसी ओर संकेत दे रहा है। भारत ने हमेशा सीमा पार से होने वाली हर हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया है और आगे भी देता रहेगा। पाकिस्तान को यह याद रखना जरूरी है कि तनाव की शुरुआत उसी ने की है। भारत ने सिर्फ आतंकियों और उनके आकाओं के खिलाफ एक सटीक और लक्षित कार्रवाई की; और भारत ने दुनिया भर के देशों को अपना रुख स्पष्ट रूप से बता दिया है और दुनिया भर से मिल रही प्रतिक्रियाएं भी भारत के रुख की पुष्टि कर रही हैं।

    इसके बावजूद, पाकिस्तान की फौज ने ड्रोन और मिसाइलों से भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की कोशिश करके और उकसाने की कोशिश की। हालांकि, भारत के इंटीग्रेटेड काउंटर यूएएस ग्रिड और एयर डिफेंस सिस्टम, जिसमें टॉप-ऑफ-द-लाइन एस-400 भी शामिल है, ने उन सभी को हवा में ही मार गिराया है यानी इस मामले में पाकिस्तान फिर से भारत के सामने बौना साबित हुआ है। पाकिस्तान को 8 और 9 अप्रैल की रात को भी पश्चिमी सीमाओं पर भारतीय सशस्त्र बलों से इसी तरह का करारा जवाब मिला है। दरअसल, 2019 में बालाकोट के बाद से भारत ने अत्याधुनिक हवाई रक्षा ग्रिड बनाने पर काफी पैसा खर्च किया है। चाहे वह रूस से खरीदा गया एस-400 हो या फ्रांस से मंगवाए गए अचूक राफेल लड़ाकू विमान भारत ने अपनी हवाई सुरक्षा को लगभग अभेद्य बना दिया है। यही वजह है कि पाकिस्तान ने बुधवार और गुरुवार की रात अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर कई जगहों पर भारतीय सुरक्षा को तोड़ने की कोशिश की लेकिन उसके पास भारत की बराबरी का कुछ भी नहीं है। पाकिस्तान ने सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की नाकाम कोशिश की जिसके जवाब में भारतीय सेना ने इजरायल में बने हारोप और हार्पी ड्रोन से पाकिस्तानी हवाई रक्षा प्रणालियों को भेद दिया और लाहौर में हवाई रक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया।

ड्रोन भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत पाकिस्तान से बहुत आगे है। भारत ड्रोन बनाने का केंद्र बनने की ओर बढ़ रहा है जबकि इस्लामाबाद के पास ऐसा कोई औद्योगिक आधार नहीं है और वह शायद सिर्फ तुर्की और चीन के ड्रोन पर ही निर्भर रह सकता है। इन सब बातों को देखते हुए, इस्लामाबाद के लिए नई दिल्ली के साथ लंबी लड़ाई लड़ना मुश्किल होगा। उसके पास इतने संसाधन नहीं हैं। अगर वह तनाव बढ़ाता है, तो उसके पास गोला-बारूद भी खत्म हो सकता है। भारत के पास गोला-बारूद का मजबूत भंडार है, इसलिए उसे ऐसी कोई चिंता नहीं है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि पाकिस्तान का ’’आयरन-ब्रदर’’ चीन भी आतंकवाद के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा है, जो पाकिस्तान को बिना कुछ कहे सब कुछ बता रहा है।

इसलिए, पाकिस्तान एक हारने वाला खेल खेल रहा है। भारत की आर्थिक शक्ति, संघर्ष के प्रभाव को झेलने की क्षमता और कहीं ज्यादा मजबूत सैन्य ताकत उसे स्पष्ट बढ़त दिलाती है। भारत लगातार तनाव कम करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के जनरलों को अब यह समझ जाना चाहिए और पीछे हट जाना चाहिए। उन्हें आत्महत्या का रास्ता छोड़ देना चाहिए।

  पहलगाम में 26 निर्दाष जिंदगियों को निगलने वाले आतंकी हमले के बाद भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि वह आतंकवाद के खिलाफ कितना सख्त और बुलंद है। ’’ऑपरेशन सिंदूर’’ के जरिए भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया, बल्कि वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति भी तेज कर दी। विदेश मंत्री एस जयशंकर और एनएसए अजीत डोभाल दुनियाभर के नेताओं से बातचीत कर रहे हैं, ताकि पाकिस्तान में पल रहे आतंक के सच को हर देश तक पहुंचाया जाए। यूएनएससी के सदस्य देशों से लेकर बड़े मुल्कों के शीर्ष अधिकारियों तक, भारत ने सभी को इस ऑपरेशन की जानकारी दी है।

बताया जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद, विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल एक विशेष कूटनीतिक मिशन में जुट गए। डोभाल ने अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, सऊदी अरब, यूएई, जापान और फ्रांस के शीर्ष नेताओं व सुरक्षा अधिकारियों से संपर्क कर ऑपरेशन की कार्रवाई को स्पष्ट किया जिसमें केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, न कि पाकिस्तानी नागरिक या सैन्य प्रतिष्ठानों को। दूसरी ओर, जयशंकर ने वैश्विक मंच पर भारत की शून्य सहिष्णुता की नीति को रेखांकित करते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत के दृष्टिकोण से अवगत कराया। यह समन्वित प्रयास भारत की स्थिति को मजबूत करने, क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन जुटाने के लिए था।

सुबह के सन्नाटे में, जब दुनिया सो रही थी, भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना ने ’’ऑपरेशन सिंदूर’’ को अंजाम दिया। 1.05 बजे से 1.30 बजे तक, सिर्फ 25 मिनट में, नौ आतंकी ठिकानों को पूरी तरह तबाह कर दिया गया। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे खूंखार संगठनों के 90 से ज्यादा आतंकी इस कार्रवाई में ढेर हो गए। यह ऑपरेशन इतना सटीक था कि मानो भारत ने आतंक की रीढ़ ही तोड़ दी! विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इसे ’’बढ़ावा नहीं, बल्कि जवाब’’ करार दिया। उन्होंने साफ कहा, ’’हमने विश्वसनीय खुफिया जानकारी के आधार पर यह कार्रवाई की, जिसका एकमात्र मकसद था,  आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना।’’

दिल्ली में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने 13 विदेशी राजदूतों के साथ एक हाई-प्रोफाइल ब्रीफिंग की। इस दौरान उन्होंने ऑपरेशन की पूरी कहानी बयां की। ब्रिटेन के एक सवाल पर कि क्या भारत ने मस्जिदों को निशाना बनाया, मिस्री ने दो टूक जवाब दिया, ’’हमने एक ऐसे परिसर को निशाना बनाया, जहां आतंकी कैंप चल रहा था।’’ यह जवाब न सिर्फ भारत की पारदर्शिता दिखाता है, बल्कि उसकी सटीकता भी दिखाता है।

पाकिस्तान ने दावा किया कि भारत के हमलों में आम नागरिक मारे गए, लेकिन भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। मिस्री ने कहा, ’’हमने ठिकानों को इतनी सावधानी से चुना कि कोई नागरिक या गैर-सैन्य ढांचा प्रभावित न हो।’’ विंग कमांडर सिंह और कर्नल कुरैशी ने भी यही भरोसा दिलाया कि ऑपरेशन में नागरिकों को कोई नुकसान नहीं हुआ। यह भारत की सैन्य ताकत के साथ-साथ उसकी नैतिकता को भी दर्शाता है।

ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने पाकिस्तान को साफ चेतावनी दी है – आतंकवाद को पनाह देना अब महंगा सौदा साबित होगा। भारत ने बार-बार कहा है कि वह अपनी जमीन पर आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। इस कार्रवाई ने न सिर्फ भारत की सैन्य ताकत का लोहा मनवाया, बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंक के खिलाफ उसकी अग्रणी भूमिका को भी मजबूत किया।

भारत अब इस ऑपरेशन को वैश्विक मंच पर ले जाकर पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा कर रहा है। विदेश मंत्रालय और एनएसए की गहन कूटनीतिक कोशिशों से भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ बना हुआ है। यूएनएससी के सदस्यों और बड़े देशों के साथ भारत की बातचीत इस बात का सबूत है कि वह आतंक के खिलाफ वैश्विक सहमति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा।

ऑपरेशन सिंदूर न सिर्फ भारत की आतंकवाद के खिलाफ जंग में एक मील का पत्थर है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अगर पाकिस्तान ने आतंक को समर्थन जारी रखा तो भारत और सख्त कदम उठाने से नहीं हिचकेगा।

रामस्वरूप रावतसरे

साइबर अटैक भारत के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है

संदीप सृजन

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच, हाल के समाचारों और सोशल मीडिया पर प्रसारित चेतावनियों ने एक नए खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया है। पाकिस्तान द्वारा संभावित साइबर अटैक। यह खतरा न केवल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती है बल्कि आम नागरिकों, सरकारी संस्थानों और निजी क्षेत्र के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करता है। हाल के वर्षों में साइबर युद्ध ने वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य को नया आकार दिया है। परंपरागत युद्ध के साथ-साथ, देश अब डिजिटल क्षेत्र में भी अपनी ताकत और रणनीति का प्रदर्शन कर रहे हैं।

साइबर हमले कोई नई घटना नहीं हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच डिजिटल युद्ध का इतिहास कई वर्षों पुराना है। विशेष रूप से हाल के वर्षों में, जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों के बाद, पाकिस्तानी हैकर समूहों ने भारतीय वेबसाइटों और डिजिटल बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया है। उदाहरण के लिए, 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, महाराष्ट्र साइबर सेल ने बताया कि भारत पर 10 लाख से अधिक साइबर हमले दर्ज किए गए। इन हमलों के पीछे पाकिस्तानी हैकर समूह जैसे ‘HOAX1337’, ‘नेशनल साइबर क्रू’, और ‘पाकिस्तान साइबर फोर्स’ का नाम सामने आया।

पाकिस्तानी हैकर्स ने भारतीय सैन्य इंजीनियरिंग सेवा, मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान और आर्मर्ड व्हीकल निगम लिमिटेड जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं की वेबसाइटों को निशाना बनाया। इन हमलों में संवेदनशील डेटा, जैसे रक्षा कर्मियों की व्यक्तिगत जानकारी और लॉगिन क्रेडेंशियल्स, चुराने की कोशिश की गई। कुछ मामलों में, वेबसाइटों को डिफेस (विकृत) किया गया, और उन पर पाकिस्तानी झंडे और अल खालिद टैंक की तस्वीरें प्रदर्शित की गईं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कई उपयोगकर्ताओं ने चेतावनी दी कि पाकिस्तान भारत पर बड़े पैमाने पर साइबर हमले की योजना बना रहा है। इन पोस्ट्स में नागरिकों से अनजान लिंक्स पर क्लिक न करने, संदिग्ध ईमेल्स या मैसेजेस को अनदेखा करने, और किसी भी अनजान ऐप को इंस्टॉल न करने की सलाह दी गई। ये चेतावनियाँ उस समय आईं जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। इन पोस्ट्स ने न केवल आम जनता में जागरूकता बढ़ाई, बल्कि साइबर युद्ध के खतरे को भी रेखांकित किया। इन चेतावनियों ने भारत में साइबर सुरक्षा के प्रति गंभीर चर्चा को जन्म दिया है। यह संभावना कि पाकिस्तान साइबर हमलों के माध्यम से भारत की डिजिटल और राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने की कोशिश कर सकता है, एक ऐसी स्थिति की ओर इशारा करती है जिसके लिए तत्काल और व्यापक तैयारी की आवश्यकता है।

पाकिस्तान से संभावित साइबर हमले विभिन्न रूपों में हो सकते हैं। हैकर्स फर्जी ईमेल्स, व्हाट्सएप संदेश, या सोशल मीडिया लिंक्स के माध्यम से उपयोगकर्ताओं को धोखा दे सकते हैं। ये लिंक्स मैलवेयर डाउनलोड कर सकते हैं या संवेदनशील जानकारी, जैसे पासवर्ड और बैंक विवरण, चुरा सकते हैं। पहलगाम हमले के बाद, पाकिस्तानी हैकर्स ने फर्जी ईमेल्स के जरिए भारतीय सेना की गतिविधियों की जानकारी हासिल करने की कोशिश की थी।

वेबसाइट डिफेसमेंट एक सामान्य रणनीति है जिसमें हैकर्स किसी वेबसाइट के होमपेज को बदल देते हैं और उस पर प्रचार सामग्री, जैसे पाकिस्तानी झंडे या भड़काऊ संदेश, प्रदर्शित करते हैं। आर्मर्ड व्हीकल निगम लिमिटेड की वेबसाइट को डिफेस करने का हालिया मामला इसका उदाहरण है। डेटा चोरी करना,संवेदनशील जानकारी, जैसे रक्षा कर्मियों के लॉगिन क्रेडेंशियल्स या राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित दस्तावेज, चुराने की कोशिशें हो सकती हैं। ‘पाकिस्तान साइबर फोर्स’ ने दावा किया कि उसने MP-IDSA और सैन्य इंजीनियरिंग सेवा के डेटा तक पहुंच बनाई है। डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल ऑफ सर्विस, इन हमलों में हैकर्स किसी वेबसाइट या सर्वर को अनगिनत अनुरोधों के साथ ओवरलोड कर देते हैं जिससे वह डाउन हो जाता है। रैनसमवेयर, यह एक ऐसा हमला है जिसमें हैकर्स डेटा को एन्क्रिप्ट कर देते हैं और उसे अनलॉक करने के लिए फिरौती मांगते हैं। वैश्विक स्तर पर रैनसमवेयर हमलों ने अरबों डॉलर का नुकसान किया है। इन हमलों के प्रभाव व्यापक हो सकते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता होने के अलावा, साइबर हमले आर्थिक नुकसान, सार्वजनिक विश्वास में कमी, और सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि बैंकिंग सिस्टम या सरकारी पोर्टल्स को निशाना बनाया जाता है, तो आम नागरिकों को तत्काल नुकसान हो सकता है।

भारत की साइबर सुरक्षा की स्थिति पर गौर करे तो भारत ने हाल के वर्षों में अपनी साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। भारतीय साइबर सुरक्षा एजेंसियां, जैसे इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वय केंद्र सक्रिय रूप से साइबर खतरों की निगरानी करती हैं। पहलगाम हमले के बाद, भारतीय एजेंसियों ने कई साइबर हमलों को समय रहते निष्क्रिय किया। हालांकि, भारत की साइबर सुरक्षा व्यवस्था अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रही है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 4% कंपनियां साइबर खतरों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। इसके अलावा, आम जनता में साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता की कमी एक बड़ी समस्या है। कई नागरिक फिशिंग हमलों का शिकार हो जाते हैं क्योंकि वे संदिग्ध लिंक्स या ईमेल्स को पहचान नहीं पाते।

पाकिस्तान से संभावित साइबर हमले से निपटने के लिए भारत को बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। सबसे पहले जागरूकता अभियान चलाया जाए। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर आम जनता के लिए साइबर सुरक्षा जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। नागरिकों को अनजान लिंक्स पर क्लिक न करने, मजबूत पासवर्ड बनाने, और नियमित रूप से सॉफ्टवेयर अपडेट करने की सलाह दी जानी चाहिए।

सरकारी और निजी संस्थानों को अपने डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना चाहिए। इसमें फायरवॉल, एंटीवायरस सॉफ्टवेयर, और नियमित साइबर ऑडिट शामिल हैं। साइबर सुरक्षा एजेंसियों को रियल-टाइम में साइबर खतरों की निगरानी करनी चाहिए। पहलगाम हमले के बाद, भारतीय एजेंसियों ने कई हैकिंग प्रयासों को समय रहते रोका।

साइबर हमले सीमाओं को पार करते हैं, इसलिए भारत को अन्य देशों, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, और इज़राइल, के साथ साइबर सुरक्षा सहयोग बढ़ाना चाहिए। ‘फाइव आईज’ जैसे गठबंधन साइबर खतरों से निपटने में उपयोगी हो सकते हैं। साइबर अपराधियों को दंडित करने के लिए मजबूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता है। भारत को अपने साइबर क्राइम कानूनों को और सख्त करना चाहिए ताकि अपराधियों को तुरंत सजा दी जा सके।

पाकिस्तान से संभावित साइबर अटैक भारत के लिए एक गंभीर और तत्कालिक खतरा है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़े तनाव और सोशल मीडिया पर प्रसारित चेतावनियों ने इस खतरे को और स्पष्ट किया है। हालांकि, भारत की साइबर सुरक्षा एजेंसियों ने कई हमलों को निष्क्रिय करने में सफलता हासिल की है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आम जनता, सरकार, और निजी क्षेत्र को मिलकर इस खतरे से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।

साइबर युद्ध का यह दौर न केवल तकनीकी तैयारी की मांग करता है बल्कि सामाजिक जागरूकता और राष्ट्रीय एकता की भी आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक को सतर्क रहना होगा और संदिग्ध डिजिटल गतिविधियों से बचना होगा। यदि भारत अपनी साइबर सुरक्षा को और मजबूत करता है, तो वह न केवल पाकिस्तान के संभावित हमलों को विफल कर सकता है बल्कि वैश्विक साइबर युद्ध के क्षेत्र में एक मजबूत शक्ति के रूप में उभर सकता है। 

संदीप सृजन

पाकिस्तान को पाकिस्तानी ही अब बचा सकते हैं

पंकज गांधी जायसवाल


“बकौल जिन्ना, स्टेनोग्राफर के टाइपराइटर से बना पाकिस्तान अकेले जिन्ना ने गढ़ा था।” यह कथन इस बात का प्रतीक है कि जिस राष्ट्र का जन्म एक अधकचरे, आत्म-केंद्रित और अहंकारपूर्ण दृष्टिकोण से हुआ हो, उसकी नियति लंबे समय तक स्थिर और समृद्ध नहीं रह सकती। द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की नींव में जिन्ना का वहम, कुंठा और असुरक्षा बसी थी जो उन्हें गांधी, नेहरू, और मौलाना आज़ाद जैसे नेताओं के समक्ष स्वयं को ‘कमतर’ मानने की मानसिकता से उपजी थी। एक ऐसा राष्ट्र जिसका निर्माण विभाजनकारी सोच और असत्य सिद्धांतों पर हुआ हो, वह राष्ट्र एक दिन भीतर से दरक जाएगा, यह तय था।.

वो अपने सपने के पाकिस्तान को टाइपराइटर से उतार कर संविधान के रूप में बांच ही नहीं पाए थे कि बंटवारें के तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद से ही पाकिस्तान एक भ्रमित राष्ट्र हो गया जिसको दो दो बार संविधान बनाना पड़ा. आज पाकिस्तान भ्रम के इस मुहाने पर खड़ा है कि वह तय नहीं कर पा रहा है कि पाकिस्तान को उसके कायदे आजम के सपने का पाकिस्तान बनाना है या जिया उल हक़ के सपने का. जिन्ना की मृत्यु के बाद सत्ता की कुर्सी की लड़ाई ऐसी छिड़ी कि पकिस्तान आज खंड खंड पाकिस्तान के मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है. जिस जिन्ना ने द्विराष्ट्र जैसे फेल कार्ड को यूज किया, वही द्विराष्ट्र का सिद्धांत आज उसके गले का हड्डी बना हुआ है.

भारत ने तो 1947 से लगातार सिद्ध किया कि जिन्ना  कैसे पाकिस्तानियों को अँधेरे में रख 25 करोड़ पाकिस्तानियों को अंधेरी सुरंग में डाल खुद निकल लिए जबकि बंटवारे की जिद्द करते वक़्त जिन्ना को अपनी बीमारी और अपनी बची उम्र के बारे में पता था. मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी जैसे वकीलों के बीच जिन्ना वकील की कुंठा ने आज २५ करोड़ पाकिस्तानियों के भविष्य को अन्धकार में डाल दिया है.

अपने जन्म के समय से ही पाकिस्तान एक अपंग राष्ट्र के रूप में सदा ही अस्थिर रहा. जिन्ना की मृत्यु (1948) और लियाकत अली खां की हत्या (1951) के बाद नेतृत्व संकट आज तक संभल नहीं पाया। 1956 में पाकिस्तान ने अपना पहला संविधान अपनाया, खुद को “इस्लामी गणराज्य” घोषित किया तो 1958 में पहली बार जनरल अयूब खान के नेतृत्व में सेना ने तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा किया। 1969 में अयूब खान को हटाकर याह्या खान सत्ता में आया तो अपनी गलतियों और अहम् और वहम की वजह से बांग्लादेश को खोया. 1971 में भुट्टो प्रधानमंत्री बने और नये सिरे से राष्ट्रनिर्माण की कोशिशें की. 1973 में नया संविधान लागू हुआ तो 1974 में पाकिस्तान ने अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया. 1977 में फिर सैन्य तख्ता पलट जनरल जिया उल हक़ के नेतृत्व में हुआ और भुट्टो को फांसी दे दी गई। ज़िया का कट्टर इस्लामीकरण अभियान शुरू हुआ. शरीयत कानून, मदरसों का विस्तार होने लगा। जाहिलियत का विस्तार होने लगा और 1988 में ज़िया की भी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. 1988 से 1999 के बीच बेनज़ीर भुट्टो और नवाज शरीफ के बीच सत्ता का अदल-बदल होता रहा लेकिन पाकिस्तान के शासन में जो एक बार सेना का दखल बन गया था ,उस कारण भ्रष्टाचार, सेना और ISI का प्रभाव जारी रहा।

नवाज शरीफ भारत से प्यार की पींगे बढ़ा ही रहे थे कि फिर एक सैनिक सत्ता ने परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में भारत और शरीफ दोनों के पीठ में छुरा घोंप कारगिल युद्ध छेड़ दिया. कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर मुशर्रफ सत्ता में आए। फिर बेनजीर भुट्टो की भी हत्या हो गई. नवाज शरीफ परवेज मुशर्रफ के बीच लुका छिपी का खेल जारी रहा. कभी ये विदेश भागे तो कभी वो विदेश भागे. इसी बीच सेना के दुलारे बने इमरान को सेना 2018 में सत्ता में ले आई पर बाद में इसी इमरान खान से सेना का मोह भंग हो गया और सेना ने साजिशन इमरान खान पूर्व प्रधानमंत्री को जेल में डाल दिया और कठपुतली प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को गद्दी पर बैठा दिया.

इन सब चीजों के बीच सेना और न्यायपालिका का लगातार हस्तक्षेप जारी रहा. पाकिस्तान में आटे से लेकर हर चीज महँगी होती गई. आर्थिक संकट गहराता गया. वह IMF से बेलआउट की गुहार लगाता रहा. पाकिस्तान की जनता इन विफलताओं के कारण सड़क पर ना उतर पाए, इसलिए पाकिस्तान की सेना  हमेशा भारत को एक दुश्मन के रूप में अवाम के सामने प्रोजेक्ट करती रही . बिना सैन्य और सुरक्षा खतरे के सेना को अपने शासन के वजूद का आधार नहीं मिल पाता. इसके लिए भारत के साथ दुश्मनी और इसके लिए कश्मीर का इस्तेमाल उनकी स्थायी नीति बन गई जिसके कारण आज पाकिस्तान की जनता पिस रही है. पाकिस्तान की भारत-विरोध रणनीति और “सुरक्षा राज्य” की मानसिकता ने उसके संसाधनों को सैन्य खर्च और आतंकियों को समर्थन में झोंक दिया न कि सामाजिक विकास में। इस कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था IMF, अमेरिकी अनुदान .चीन और खाड़ी देशों के कर्ज पर आधारित रही. अब सच्चाई ये है कि पाकिस्तान की सेना ने पाकिस्तान को फंसा दिया है. पाकिस्तान आज चारो  तरफ भारत, अफगानिस्तान, ईरान और बलूचिस्तान से घिर गया है और यह कभी भी कोलैप्स हो सकता है.

पाकिस्तान की सेना उन्हें भारत के डर का अफीम पिलाती रहती है और अपने वजूद को बचाये रखती है. चूंकि भारत से उलट पाकिस्तान में सेना ब्यूरोक्रेसी की तरह नागरिक प्रशासन में घुसी हुई है, इसलिए नागरिक सरकार भी उन्हें  डोमिनेट नहीं कर पाती क्यूंकि ऐसा करने से पाकिस्तान की व्यवस्था कुछ समय के लिए कोलैप्स हो जाएगी और इसी का फायदा वहां की सेना उठाती रहती है.

इस तरह का अपंग राष्ट्र हैंग सत्ता की स्थिति आ जाए तो सम्पूर्ण क्रांति ही इसका समाधान है जिसमें अंतरिम अवधि के लिए एक अंतरिम सरकार या सलाहकार का गठन हो, नए संविधान और सिस्टम की रचना हो और फिर से पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया जाय. मौजूदा पाकिस्तान की बेवकूफी पाकिस्तान में सम्पूर्ण क्रांति का आधार पैदा कर रही है. भारत को बस सधे क़दमों से बढ़ते हुए पाकिस्तानियों को ही इस पाकिस्तान का भविष्य खाने वाले सेना और नेताओं को खिलाफ खड़ा करना चाहिए. भारत को पाकिस्तान के अवाम के साथ मिलकर एक तरफ तो खुद आतंक के अड्डों को ख़त्म करना चाहिए तो दूसरी तरफ पाकिस्तान की इस दूसरी मुक्ति वाहिनी को लोकतान्त्रिक तरीके से लड़ने के लिए नैतिक और रसद समर्थन दे. उन्हें उनके भविष्य निर्माण के लिए खुद से तैयार करना चाहिए. अब पाकिस्तान को सिर्फ पाकिस्तानी ही बचा सकते हैं, और कोई नहीं.

पंकज गांधी जायसवाल

अपने कर्मों का फल चखता पाकिस्तान

आतंकवाद नाम के जिस जिन्न को अमेरिका सहित विश्व की कई शक्तियां अपने लिए एक रक्षाकवच मानकर या अपने शत्रुओं को आतंकवाद के माध्यम से नष्ट करने की कुत्सित भावना के वशीभूत होकर पाल रही थीं , अब उनके लिए ही आतंकवाद स्वयं एक समस्या बन गया है। प्रकृति का यह एक स्वाभाविक नियम भी है कि आप जो कुछ कर रहे हैं, उसका परिणाम आपको ही भोगना पड़ेगा। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है :-

“यादृशं कुरुते कर्म तादृशं फलमाप्नुयात् ।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।।”

अर्थात “जैसे कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा। किए गए शुभ या अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है।”
अब इस बात को सारा संसार जान चुका है कि आतंकवाद के माध्यम से सारे संसार को नष्ट करने की योजनाओं में अग्रणी भूमिका निभाने वाला पाकिस्तान आतंकवाद का जनक, पोषक , प्रचारक और विस्तारक बना। आज प्राकृतिक न्याय का शिकार होते हुए या समझो कि अपने किए हुए कर्म के फल के मुहाने पर पहुंचकर पाकिस्तान किस प्रकार बिलबिला रहा है ? – यह देखकर स्पष्ट हो जाता है कि जब अपने दुष्कर्मों का परिणाम आता है तो प्रत्येक राक्षस इसी प्रकार बिलबिलाता है। अब वहां के आतंकवादियों को यह पता चला है कि जब दूसरे लोगों को मारा जाता है या उनका खून बहाया जाता है तो उनके खून में और जब अपने परिजनों का खून बहता हुआ देखा जाता है तो उनके खून में कितना अंतर होता है ?
अपने कर्मों का फल चखता हुआ पाकिस्तान आज समझ रहा है कि निर्दोष लोगों के खून का मोल क्या होता है ? कभी अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को दूसरों को उत्पीड़ित कराने के दृष्टिकोण से पालापोसा था। अब यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि एक समय आने पर वही ओसामा बिन लादेन अमेरिका के लिए किस प्रकार की समस्या बन गया था ? परिणाम यह हुआ कि आतंक के उस भस्मासुर का अंत भी अमेरिका को ही करना पड़ा।
ईश्वरीय व्यवस्था की इस प्रक्रिया को तनिक देखिए तो सही कि जो अमेरिका कभी पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाते हुए भारत से कहा करता था कि आपके यहां हुई अमुक आतंकी घटना में पाकिस्तान का हाथ है तो इसके प्रमाण दीजिए और फिर उन प्रमाणों को रद्दी की टोकरी में फेंककर अमेरिका , पाकिस्तान और उनके मित्र न्याय का गला घोंटकर जिस प्रकार राक्षसी हंसी हंसा करते थे, आज वही अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध लड़ रहे भारत की ईमानदार लड़ाई में पाकिस्तान के साथ खड़ा न होकर भारत के साथ खड़ा है।
जहां यह ईश्वरीय व्यवस्था की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, वहीं यह हमारी आज की कूटनीतिक और रणनीतिक सफलता का परिणाम है। हमारी विदेश नीति की स्पष्टता का भी परिणाम है। हमारे तेजस्वी नेतृत्व की सफल नीतियों का भी परिणाम है।
इस दृष्टिकोण से देखेंगे तो प्रधानमंत्री श्री मोदी, गृहमंत्री श्री अमित शाह, एनएसए श्री अजीत डोभाल, विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर आदि वे प्रमुख चेहरे हैं जो इस समय राष्ट्रीय शक्ति, संप्रभुता और स्वाभिमान का प्रतीक बन चुके हैं। ये सब भी हमें ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत मिले हैं । अन्यथा अबसे पहले इन पदों पर बैठने वाले कई लोग आए और चले गए। उन्होंने कभी चुनौतियों को स्वीकार नहीं किया। चुनौतियों को अनदेखी करते हुए वह आराम की जिंदगी जीकर पदों से मुक्त हो गए। परंतु सुखद संयोग है कि आज इन पदों पर बैठने वाले सभी लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह चुनौतियों को स्वीकार करते हुए कर रहे हैं। यह मानकर कर रहे हैं कि ‘ यदि अभी नहीं तो कभी नहीं।’ जब राष्ट्रीय नेतृत्व चुनौतियों से बचकर निकलता है तो राष्ट्र यथास्थितिवाद में जीता है और जब चुनौतियों को चुनौती देते हुए आगे बढ़ने का संकल्प लेता है तो वह तेजी से आगे बढ़ता है। उसका सम्मान बढ़ता है, उसकी जिजीविषा और जीवंतता का प्रमाण लोगों को मिलता है। लोग उसकी ऊर्जा का, उसके शक्ति स्रोतों का, उसकी आत्म शक्ति का और सामर्थ्य का लोहा मानते हैं।
जब लोग आपसे पूछकर अपने निर्णयों को अंतिम रूप देने लगें , तब समझिए कि आपके व्यक्तित्व का विकास हो रहा है, लोगों में आपकी विश्वसनीयता बढ़ रही है। आपकी गंभीरता समझदारी और निर्णय लेने की क्षमता पर लोगों को विश्वास है कि आप जो कुछ बोलेंगे, वह उचित होगा। आज विश्व मंचों पर भारत की यही स्थिति बन चुकी है। पिछले एक दशक में भारत ने यही कमाया है। इसी कमाई का परिणाम है कि जहां 1971 में पाकिस्तान को घेरने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और जनरल मानेकशॉ को 7 महीने का समय लगा था, वहीं आज भारत ने पाकिस्तान को घेरने के लिए मात्र 12 दिन का समय लिया है। माना कि उस समय हमारी सैन्य क्षमताएं आज की बराबर बहुत कम थीं, परन्तु एक बात यह भी सत्य है कि उस समय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का आज के जैसा सम्मान भी नहीं था। आज आपको अमेरिका से यह पूछना नहीं पड़ा है कि हम पाकिस्तान को मारेंगे तो आप क्या करेंगे ? आज अमेरिका स्वयं आपके साथ मिलकर ‘आतंकिस्थान’ को कूटने में साथ दे रहा है। कभी अमेरिका स्वयं यह अपेक्षा किया करता था कि मुझसे बिना पूछे कुछ न किया जाए, आज बिना पूछे अमेरिका आपके साथ आ रहा है।
सारा यूरोप और अमेरिका सहित संसार के अधिकांश देश इस बात को बहुत गहराई अनुभव करने लगे हैं कि यदि आतंक पर हमने विजय प्राप्त नहीं की तो यह सारे संसार के लिए भस्मासुर बन जाएगा । सारे यूरोप में जिस प्रकार इस्लामिक आतंक की घटनाएं बढ़ी हैं ,उसके दृष्टिगत अधिकांश यूरोपीय देश इस्लाम के जिहादी स्वरूप से मुक्ति चाहते हैं। इसके अतिरिक्त पिछले इतिहास पर यदि हम दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों की विभीषिका यूरोप की धरती ने अपनी छाती पर झेली है। अब तीसरे विश्व युद्ध की यदि स्थिति बनती है तो अधिकांश यूरोपियन देशों की सोच रहेगी कि इस बार की विभीषिका यूरोप की धरती पर कहर न बरपाकर संसार के किसी दूसरे क्षेत्र में अपना काम करे तो अच्छा रहेगा। इसलिए भी यूरोप इस बार अमेरिका के साथ मिलकर भारत के साथ खड़ा हुआ दिखाई दे रहा है।
अब यूरोप और अमेरिका जिस प्रकार तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाओं से अपने आप को भयभीत से दिखाते हैं, इसका एक कारण यह भी है कि आतंकवाद के जिस जिन्न को उन्होंने पाला था, वह अब उनके नियंत्रण से बाहर हो गया है। अब ये देश मन से चाह रहे हैं कि इस जिन्न को काबू में रखा जाए। वास्तव में यही वह समय है जब कई देश ईमानदारी से आतंकवाद को कुचलने के लिए मनोयोग से काम कर रहे हैं।
इस स्थिति को उत्पन्न करने में प्रधानमंत्री श्री मोदी के व्यक्तित्व को भी कुछ श्रेय जाता है। जिन्होंने विभिन्न वैश्विक मंचों पर भारत के मानवतावादी विचारों से संसार को अवगत कराया है और बताया है कि भारत ही उस चिंतन और दर्शन का अधिष्ठाता देश हो सकता है , जो आतंकवाद को कुचलने में ईमानदारी से विश्वास रखता है।
भारत को इस समय समझना चाहिए कि वह महाभारत के युद्ध में खड़ा है और अदृश्य रूप से श्री कृष्ण जी उसका आवाहन कर रहे हैं कि राक्षसों के संहार में किसी प्रकार का प्रमाद नहीं होना चाहिए ? क्योंकि आर्यों का जीवन संसार से सभी राक्षसी शक्तियों के विनाश के लिए होता है । भारत फलकामी मूर्खों का देश नहीं है अपितु यह आर्य पुत्र / पुत्रियों , ईश्वर पुत्र / पुत्रियों का देश है। इसलिए संपूर्ण भूमंडल पर राज्य करने का अधिकार केवल आर्यों को है । आर्यों को अपने लिए अपने आप रास्ता बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ना होगा। इसलिए आतंकिस्थान को मिटाकर ही दम लेना है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

दम है तो तो फिर कहना—”मोदी को बता देना।”

आता हमें हर शत्रु को जड़ से मिटा देना,
दम है तो तो फिर कहना—”मोदी को बता देना।”
कलमा पढ़कर बना मुल्क, बलमा बना मुनीर,
घर में घुसकर हुआ हलाला, चाहते है कश्मीर।

बाल न बांका कर सके, रच कितने दुष्चक्र,
हिंद के रक्षक जब बने, हरी-सुदर्शनचक्र।
शांति लगे जब दाव पर, हम भी करते युद्ध,
कृष्ण बने अब सारथी, नहीं अकेले बुद्ध।

हर बात को नज़रअंदाज किया, पर हम नहीं रुकते,
हमारे संघर्ष की कहानी में, इतिहास भी हैं झुकते।
बिना डरे, बिना थके, हम अपनी राह तय करेंगे,
दुश्मनों को चेतावनी, हम फिर लाहौर फतह करेंगे।

आता हमें हर शत्रु को जड़ से मिटा देना,
दम है तो तो फिर कहना—”मोदी को बता देना।”
भारत की धरती में शक्ति का संदेश दुनिया को बता दे,
हमारे कदमों में वो शक्ति बसी है, जो हर किले को गिरा दे।

  • डॉ सत्यवान सौरभ

पाकिस्तान को अपने नागरिकों के हित में अपनी भारत विरोधी नीति को छोड़ना ही होगा

पाकिस्तान के जन्म के साथ ही वहां के राष्ट्रीय दलों एवं नेताओं ने भारत विरोध को अपनी अधिकारिक नीति बना लिया था। पाकिस्तान के आर्थिक विकास पर ध्यान नहीं देते हुए, किसी भी प्रकार भारत के हितों को क्षति पहुंचाई जाए, इस बात पर अधिक ध्यान दिया गया। भारत को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से पाकिस्तान द्वारा कई आतंकवादी संगठन खड़े किए जाते रहे एवं इन संगठनों के आतंकवादी सदस्यों को भारत भेजा जाता रहा। भारत, हालांकि पाकिस्तान द्वारा भारत में भेजे गए इन आतंकवादीयों को मौत के घाट उतारने में लगातार सफल होता रहा, परंतु, कुछ अवसरों पर इन आतंकवादीयों को भी भारत में अप्रिय घटनाओं को अंजाम देने में सफलता हासिल होती रही। वैश्विक मंचों पर भी पाकिस्तान भारत पर निराधार आरोप लगाकर भारत को बदनाम करने के लगातार प्रयास करता रहा है। भारत के इस अंधे विरोध के चलते पाकिस्तान की आर्थिक प्रगति पूर्णत: बाधित हुई है। भारत और पाकिस्तान वर्ष 1947 में एक साथ राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करते हुए आगे बढ़े थे। परंतु, आज पूरे विश्व में भारत एक महाशक्ति बन गया है जबकि पाकिस्तान लगातार केवल आतंकवादी संगठनों की स्थापना करते हुए आज विश्व में आतंकवादी पैदा करने की सबसे बड़ी फैक्टरी बन गया है तथा आर्थिक प्रगति के मामले में तो एकदम पिछड़ गया है।     

आज भारत का सकल घरेलू उत्पाद 4.19 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है और भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है जबकि पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद केवल 37,900 करोड़ रुपए का ही है। भारत में प्रति व्यक्ति आय 11,110 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है जबकि पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति आय 6,720 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है, अर्थात भारत की तुलना में लगभग आधी, जबकि भारत की जनसंख्या 140 करोड़ से अधिक है तो वहीं पाकिस्तान की जनसंख्या केवल लगभग 25 करोड़ ही है। इसी प्रकार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 68,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है, जो कि संभवत: इस वर्ष एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर को भी पार कर सकता है। वहीं, पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 1,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही है। पाकिस्तान पूरे विश्व में विभिन्न वित्तीय संस्थानों एवं देशों से सबसे अधिक बार ऋण लाने वाले एवं आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाले देशों की सूची में प्रथम स्थान पर काबिज है। अभी भी, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मोनेटरी फंड से 700 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लेने का प्रयास कर रहा है। जबकि भारत अन्य देशों को ऋण प्रदान करने की स्थिति में पहुंच गया है। 

वित्तीय वर्ष 2022 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 9.7 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2023 में 7.6 प्रतिशत, वित्तीय वर्ष 2024 में 9.2 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025 में 6.5 प्रतिशत की रही है। इसके विपरीत पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर वित्तीय वर्ष 2022 में 6.2 प्रतिशत, वित्तीय वर्ष 2023 में ऋणात्मक 0.2 प्रतिशत, वित्तीय वर्ष 2024 में 2.5 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025 में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है। जबकि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद के आकार का 11 गुणा से भी अधिक है। भारत के बड़े आकार के सकल घरेलू उत्पाद पर वृद्धि दर भी अधिक है और पाकिस्तान के छोटे आकार के सकल घरेलू उत्पाद पर वृद्धि दर भी कम है। इससे तो भविष्य में पाकिस्तान, भारत की तुलना में और अधिक पिछड़ता जाएगा।  

भारत में केंद्र सरकार का वित्तीय बजट प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख करोड़ रुपए से अधिक का रहता है जबकि पाकिस्तान का वित्तीय बजट केवल 5.65 लाख करोड़ भारतीय रुपए (पाकिस्तानी रुपए में 18.9 लाख करोड़ रुपए) का ही रहता है। भारत का वार्षिक वित्तीय बजट पाकिस्तान के वार्षिक वित्तीय बजट से लगभग 10 गुणा है। पाकिस्तान के वार्षिक बजट के आकार से अधिक आकार का बजट तो भारत में अकेले उत्तर प्रदेश राज्य का ही है। भारत में केंद्र सरकार के उपक्रम एवं अन्य उपक्रम केंद्र सरकार को लाखों करोड़ रुपए की राशि डिवीडेंड के रूप में उपलब्ध करा रहे हैं। इस वर्ष, अकेले भारतीय रिजर्व बैंक ही 2.5 से 3 लाख करोड़ रुपए की राशि का लाभांश केंद्र सरकार को उपलब्ध कराने जा रहा है। अकेले वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण ही लगभग 2.25 लाख करोड़ रुपए से अधिक प्रति माह के स्तर पर पहुंच गया है। भारत में अप्रेल 2025 माह में 2.37 लाख करोड़ रुपए का वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण हुआ है।

रक्षा के क्षेत्र में भी भारत आज पूरे विश्व में एक सक्षम एवं अनुशासित महाशक्ति बन चुका है। अतः पाकिस्तान को भारत से लड़ाई करने का विचार ही अपने मन से निकाल देना चाहिए, इसी में पाकिस्तान के आम नागरिकों की भी भलाई है। कुछ समाचारों के अनुसार, दिनांक 8 मई 2025 की रात्रि में पाकिस्तान ने लगभग 200 मिसाईल एवं ड्रोन भारत के विभिन्न शहरों पर दागे थे, परंतु इनमें से शायद एक भी ड्रोन पाकिस्तान द्वारा तय किए गए अपने ठिकाने पर नहीं पहुंच सका और भारतीय सेना ने इन मिसाईल एवं ड्रोन को हवा में ही मार गिराया। जबकि, भारत ने जितने भी मिसाईल एवं ड्रोन पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के अड्डों पर दागे, इन लगभग सभी ने ही अपने निशाने पर सटीक रूप से पहुंच कर उन ठिकानों को तबाह किया है। अतः पाकिस्तान के नागरिकों को भी अब इस बात पर विचार करना चाहिए कि पड़ौसियों के साथ मित्रवत होकर रहने में ही दोनों देशों की भलाई है। पाकिस्तान यदि भारत से युद्ध करेगा तो उसे निश्चित ही मुंह की खानी पड़ेगी, जैसा कि अभी की परिस्थितियों की बीच होता हुआ दिखाई भी दे रहा है।  

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने पाकिस्तान को भारत के साथ युद्ध से बचने की सलाह दी है क्योंकि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पहिले से ही जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है एवं पाकिस्तान पर आज कर्ज का भारी भरकम बोझ इतना अधिक है कि भारत के साथ युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान एक हफ्ता भर भी भारत के सामने युद्ध में नहीं टिक पाएगा। वैश्विक आर्थिक आंकड़ों के अनुसार, दिसम्बर 2024 माह तक पाकिस्तान पर 13,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बाहरी संस्थानों एवं अन्य देशों का ऋण है। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच पाकिस्तान सरकार को अपने बजट में रक्षा खर्च को 18 प्रतिशत बढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए के स्तर पर लाना पड़ा है। यह निश्चित ही पाकिस्तानी नागरिकों के साथ अन्याय है क्योंकि अन्यथा यह भारी भरकम राशि उनके जीवन स्तर को सुधारने पर खर्च की जा सकती थी। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध छेड़े गए युद्ध के बाद भारत ने 23 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान के खिलाफ कई निर्णय लिए हैं, जिनमें सिंधु जल संधि को निलम्बित करना, अटारी बॉर्डर को बंद करना, राजनयिक संबंधों को कम करना, पाकिस्तानी विमानों को भारतीय सीमा के ऊपर उड़ने की अनुमति रद्द करना एवं तीसरे देशों के माध्यम से होने वाले व्यापार समेत पाकिस्तान के साथ सभी प्रकार का व्यापार निलंबित करना आदि कदम शामिल है। इन सभी निर्णयों का प्रभाव निश्चित ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को और अधिक विपरीत रूप से प्रभावित करेगा एवं पाकिस्तान के नागरिकों के लिए और अधिक समस्याएं खड़ी करेगा। 

भारत में उत्पन्न विभिन्न धर्मों के अनुयाई नागरिक सामान्यतः अत्यधिक शांतिपूर्ण तरीके से रहते आए हैं। भारत के अति प्राचीन काल के इतिहास से लेकर आज तक इस तरह की घटनाओं का वर्णन बिलकुल नहीं मिलता है कि भारत ने कभी भी विस्तरवादी नीति के तहत किसी अन्य राष्ट्र पर आक्रमण किया हो। इसके ठीक विपरीत पाकिस्तान ने अपने जन्म से ही आक्रामक नीति अपनाते हुए भारत विरोध को अपनी राष्ट्रीय नीति के रूप में चुना इससे पाकिस्तान के राजनैतिक दलों एवं नेताओं ने पाकिस्तान के आम नागरिकों के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करने के बजाय भारत को परेशान करने के उद्देश्य से अधिक से अधिक आतंकवादी पैदा करने की नीति का अनुसरण किया। परंतु, आज समय आ गया है कि पाकिस्तानी नागरिकों को जागरूक होकर वहां के राजनैतिक दलों एवं नेताओं पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वे उनके हितों को ध्यान में रखते हुए देश की आर्थिक प्रगति की ओर विशेष ध्यान दें। जिससे, पाकिस्तान के आम नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार कर उसे ऊपर लाया जा सके।   

प्रहलाद सबनानी