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6-7 जून को जुटेंगे देश के प्रख्यात साहित्यकार

monoरायपुर। छत्तीसगढ़ की पहली और साहित्य, संस्कृति एवं भाषा की अंतरराष्ट्रीय मासिक वेब पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम द्वारा दिये जाने वाला प्रतिष्ठित और तृतीय सृजनगाथा सम्मान की घोषणा कर दी गई है।

सृजनगाथा अलंकरण से नवाजे जायेंगे रचनाकर्मी

मीडिया की विभिन्न विधाओं में प्रतिवर्ष दिये जाने वाला यह सम्मान इस वर्ष सर्व श्री रवि भोई, रायपुर (पत्रकारिता), श्री महावीर अग्रवील, दुर्ग (लघुपत्रिका), श्री शिवशरण पांडेय, रायगढ़ (फ़ोटोग्राफ़ी), रणवीर सिंह चौहान, दंतेवाड़ा (वेब-पत्रकारिता), मिर्जा मसूद, रायपुर (रेडियो), राजेश मिश्रा, रायपुर (इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता), अशोक सिंघई, कमलेश्वर साहू भिलाई, एवं बी. एल. पॉल, कोरिया (साहित्य) को दिया जा रहा है। सृजनगाथा के संपादक जयप्रकाश मानस ने बताया है कि यह सम्मान सृजनगाथा डॉट कॉम के तीन वर्ष पूर्ण होने पर 7 जून, 2009 को एक समारोह में प्रदान किया जायेगा।

उक्त अवसर पर संस्था द्वारा ‘नयी प्रौद्योगिकी और साहित्य की चुनौतियाँ’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के नामचीन आलोचक, कवि, संपादक सर्वश्री केदार नाथ सिंह (दिल्ली), नंदकिशोर आचार्य (जयपुर), विश्वनाथ प्रसाद तिवारी (गोरखपुर), विजय बहादुर सिंह (कोलकाता), मैनेजर पांडेय (दिल्ली), प्रो. धनंजय वर्मा (भोपाल), नंदकिशोर आचार्य (जयपुर), अरुण कमल (पटना), कर्मेन्दु शिशिर (पटना), राजेश जोशी (भोपाल), लीलाधर मंडलोई (दिल्ली), विश्वजीत सेन (पटना), प्रभात त्रिपाठी (रायगढ़), डॉ. बलदेव (रायगढ़), हेमंत शेष (जयपुर), विश्वरंजन, व अनिल विभाकर (रायपुर) आदि शिरकत करेंगे।

लघु पत्रिका ‘नई दिशाएँ’ के प्रधान संपादक एस. अहमद ने बताया कि पत्रिका के दो वर्ष पूर्ण होने पर इसी तारतम्य में समकालीन कविता के वरिष्ठ हस्ताक्षर विश्वरंजन की कविताओं पर केंद्रित संगोष्ठी 6 जून को होगी जिसमें ये सभी वरिष्ठ रचनाकार भाग लेंगे। संगोष्ठी का विषय ‘’विश्वरंजन की कविता में राजनीतिक परिप्रेक्ष्य” रखा गया है। इसके अलावा देश के ये वरिष्ठ कवि अपनी कविताओं का भी पाठ करेंगे। उक्त अवसर पर श्री विश्वरंजन की कृति के तीसरे संस्करण का विमोचन भी किया जायेगा।

-जयप्रकाश मानस/एस. अहमद

व्यंग्य/8230;..बोल मरी मछली कितना पानी!!!

उस रोज-रोटी की तलाश में वह तड़के ही निकल पड़ा था। और वे लाल बत्ती वाली कार में शिकार करने। चालक ने बस के एक्सीलेटर पर दोनों पांव पुरजोर रखे थे, क्योंकि बड़े दिनों बाद वह पत्नी के चुंगल से छूट प्रेमिका से मिलने जा रहा था, सो फुल स्पीड में था।उसने भी सोचा, चलो! अपनी तो प्रेमिका है नहीं, प्रेमिका कैसी होती है? इसी की प्रेमिका देख लेते हैं। इसलिए वह बहुत खुश था। उसकी भी प्रेमिका होती तो मत पूछो उसका क्या हाल होता?

और प्रेमिका के अंधे ने अगले मोड़ पर बस धकिया दी। और जनाब! दुर्घटना में जो अक्सर होता है, उसके साथ भी वही हुआ। अंग-अंग टूट गया।

जैसे, ‘कैसे नाक बचाई के लिए दोस्त’ रिश्तेदार इकट्ठे हुए। और वह पुलसिया देखरेख में सरकारी अस्पताल! चार दिन तक वह उस अस्पताल में पड़ रहा और पांचवे दिन मर गया। ‘चलो, लोकतंत्र से पीछा छूटा। अब कम से कम स्वर्ग में तो मौज करूंगा,’ उसने मेरे कान में फुसफुसाया। मुझे उस वक्त उससे बहुतर् ईष्या हुई। यार, इस देश में धक्के खाने को हम जैसे ही रह गए क्या?

सच कहूं, वह मेरा खास था, बहुत खास। मेरे इस वक्तव्य में संवेदना है, यह राजनीतिक स्टेटमेंट नहीं। कारण? जनता के वक्तव्य में संवेदना होती है, राजनीति नहीं।

पहला द्वार:
अब उसे नियमतन सरकारी बेड से शवगृह में शिफ्ट होना था। कर दिया गया। मैं पता नहीं क्यों बराबर उसके साथ बना रहा। शवगृह के कर्मचारी ने उसे एक कोने में डाल दिया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। जनता कर ही नहीं सकती। चाहे जिंदा हो, चाहे मरी हुई। चाहे संसद में हो, चाहे शवगृह में। समाजवाद का हिमायती एक कोने में। मुझसे उस समाजवादी का यह हाल देखा न गया, सो जेब से सौ का नोट निकाल उस कर्तव्यनिष्ठ की ओर बढ़ाया, ‘ये लो भद्रपुरूष! इस समाजवादी को कोने में मत रखो। यह पूरे देश में छाना चाहता था।’

‘तो?’

‘इसे प्लीज सम्मानित जगह दो।’ उसने मुझसे सौ का नोट मुस्कुराते हुए लिया और उसके शव को हंसते हुए कुछ आदरणीय स्थान पर रख दिया।

दूसरा द्वार:
नियमानुसार अब उसका पोस्टमार्टम होना था। वह भी दूसरे अस्पताल में। भारी मन और उसका शव लिए दूसरे अस्पताल पहुंचा तो वहां भी लंबी लाइन! लगा, लोग अपने-अपने शवों का पोस्टमार्टम करवाने नहीं, मिट्टी का तेल लेने पीपियां ले लाइन में खड़े हों।

‘कब तक पोस्टमार्टम हो जाएगा?’ मैंने शव का पसीना पोंछते हुए एक अस्पताली बंदे से सविनय पूछा।

‘क्यों? जल्दी है?’

‘हां, मित्र सड़ जाएगा!’ कुछ और कहने के बदले वह मुझे किनारे ले गया। फिर हंसते हुए बोला,’ ये लंबी लाइन देख रहे हो?’

‘हां।’

‘वोट डालने वालों की तो है नहीं?’

‘नहीं, शवों की है।’

‘अब हमारे हैं तो दो ही हाथ न?’

‘हां, तो?’

‘इस व्यवस्था में हाथ अतिरिक्त उगते आए हैं, उग सकते हैं।’

‘मतलब?’

‘मंदिर जाते हो?’ मैं नास्तिक होने के बाद भी सब समझ गया।

‘कितने लगेंगे?’

‘तत्काल के दो हजार।’

‘इतने तो बचे नहीं हैं।’ हाथ जुड़ने से मुकर गए।

‘तो हजार!’ उसने मेरी जेब में झांका।

‘ठीक है।’ और सौदा पट गया। मित्र का पोस्टमार्टम आउट ऑफ वे हो गया।

तीसरा द्वार:
अब मित्र को घर लाना था। सरकारी एंबुलेंस नहीं मिली। पता चला, साहब के बच्चों को घुमाने गई है, राम जाने ,कब जैसे आए। वैसे भी,सरकारी गाड़ियां लाशों के लिए नहीं होतीं।

चौथा द्वार:
मैंने फिर दूसरे अस्पताल फोन किया। लाश मुझे देख हंसती रही, मैं लाश को देख रोता रहा। दूसरी सरकारी एंबुलेंस दूसरे अस्पताल से चली। धन्यवाद! एक, दो, तीन, चार, पांच घंटे बीते। एंबुलेंस नहीं पहुंची। अचानक एंबुलेंस चालक का फोन आया,’ मैं अस्पताल के बाहर दो घंटे से खड़ा हूं। शव नहीं मिल रहा। पत्नी घर में अकेली है, डर रहा हूं, सो वापिस जा रहा हूं। माफ कीजिएगा।’ शायद……….. उसे………..

—— हरा समंदर, गोपी चंदर, बोल मरी मछली कितना पानी!

-अशोक गौतम
गौतम निवास, अपर सेरी रोड
नजदीक वाटर टैंक,सोलन
173212 हि.प्र.

उत्तर भारत लू की चपेट में

cimg00281उत्तर भारत का मैदानी इलाका लू की चपेट में है। इन इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से नीचे आने का नाम नहीं ले रहा है। मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक फिलहाल इस गर्मी से राहत मिलने की कोई संभावना नहीं है।राजधानी में शुक्रवार को अधिकतम तापमान 44.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से पांच डिग्री अधिक था। मौसम के इस बिगड़े मिजाज के कारण लोग घरों या दफ्तरों में ही दुबके रहे।

आईएमडी के अधिकारियों ने कहा है कि गर्म हवाओं के लगातार बहने से लोगों पर इसका खासा असर पर रहा है। मौसम विज्ञानियों ने कहा है कि पूरे उत्तरी क्षेत्र में मौसम सूखा है, लिहाजा लू के लगातार बने रहने की संभावना है। दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में भी भीषण गर्मी है। हरियाणा के हिसार कस्बे में शुक्रवार को सामान्य से पांच डिग्री अधिक यानी 45 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। मौसम विभाग के अनुसार इस इलाके में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर बना रहेगा।

चंडीगढ़ में गुरुवार को सामान्य से छह डिग्री अधिक यानी 42 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। लगातार तीसरे दिन तापमान के 43 डिग्री सेल्सियस पर बने रहने के कारण उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से लू की चपेट में आ गए हैं।
मध्य प्रदेश में भी लोग गर्मी से खासे परेशान हैं। गर्म हवा के थपेड़ों ने लोगों का घऱ से निकलना मुश्किल कर दिया है। प्रदेश में गत एक सप्ताह से गर्मी का कहर जारी है। यहां दोपहर होते-होते शहर की सड़कें सूनी हो जाती हैं। इसका असर आम नाव पर भी पड़ रहा है।

चिलचिलाती धूप और गर्म हवा के चलने की वजह से राजस्थान का हाल और भी बुरा है। गुरुवार को पिलानी शहर में तापमान 47.1 डिग्री दर्ज किया गया था। इस गर्मी का असर स्टेशन शिमला में देखा जा रहा है। यहां का तापमान 29 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया है। मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले 24 घंटे के दौरान शिमला के निम्नतम तापमान में 10 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है।

भारत स्वाइन फ्लू से निपटने को तैयार

images27इन दिनों दुनिया भर में स्वाइन फ्लू का प्रकोप है। अमेरिका समेत सभी देशों की सरकार इससे चिंतित है। इधर भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि देश, स्वाइन फ्लू नामक इनफ्लुएंजा ए (एच1एन1) से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।हालांकि देश में स्वाइन फ्लू का एक भी मामला प्रकाश में नहीं आया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव विनीत चौधरी ने पत्रकारों को बताया कि दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरू, गोवा, अमृतसर, कोचीन, अहमदाबाद, त्रिची और श्रीनगर में स्थित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर स्वाइन फ्लू प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों की जांच की जा रही है। बाकी बचे अंतर्राष्टीय हवाई अड्डों पर भी यात्रियों की जांच का काम जल्द शुरू कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि अबतक 20 हजार से भी अधिक यात्रियों की जांच की जा चुकी है। लेकिन स्वाइन फ्लू का एक भी मामला प्रकाश में नहीं आया है। लेकिन हम किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

चौधरी के अनुसार 12 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर स्थापित किए गए 32 जांच काउंटरों पर कुल 96 चिकित्सकों को तैनात किया गया है।

अब तक के सभी लोकसभा चुनावों में मतदान का प्रतिशत

भारत में संसदीय लोकतंत्र है। लोकतंत्र में आम मतदाताओं का जागरूक होना जरूरी है। तभी भारत सशक्‍त लोकतांत्रिक देश बन सकता है। इसी को ध्‍यान में रखते हुए हम प्रवक्‍ता डॉट कॉम पर गम्भीर, तथ्यपूर्ण एवं तर्कपूर्ण बहस को आगे बढाने की दृष्टि से प्रमुख समाचार, विश्‍लेषण और आंकडें प्रस्‍तुत कर रहे हैं- 

आम चुनाव

 

वर्ष

 

पुरुष

 

महिला

 

कुल प्रतिशत

पहले

 

1952

 

 

 

61.22

 

दूसरे

 

1957

 

 

 

62.20

 

तीसरे

 

1962

 

63.31

 

46.63

 

55.42

 

चौथे

 

1967

 

66.73

 

55.48

 

61.33

 

पाँचवें

 

1971

 

60.90

 

49.11

 

55.29

 

छठे

 

1977

 

65.63

 

54.91

 

60.49

 

सातवें

 

1980

 

62.16

 

51.22

 

56.92

 

आठवें

 

1984

 

68.18

 

58.60

 

63.56

 

नौवें

 

1989

 

66.13

 

57.32

 

61.95

 

दसवें

 

1991

 

61.58

 

51.35

 

56.93

 

ग्यारहवें

 

1996

 

62.06

 

53.41

 

57.94

 

बारहवें

 

1998

 

65.72

 

57.88

 

61.97

 

तेरहवें

 

1999

 

63.97

 

55.64

 

59.99

 

चौदहवें

 

2004

 

61.66

 

53.30

 

57.65

 

 

अमीरों का लोकतंत्र – हिमांशु शेखर

sonia-and-rahul-wave1इस बार के आम चुनाव में कई करोड़पति लोग जनता की नुमाइंदगी करने के मकसद से मैदान में उतर रहे हैं। करोड़पति उम्मीदवारों के मामले कोई भी दल और कोई भी राज्य पीछे नहीं है। हालांकि, इस बार कई उम्मीदवार तो अरबपति भी हैं। बहरहाल, इसके अलावा इस चुनाव में एक रोचक और चिंताजनक बात यह दिख रही है कि कई नेताओं की संपत्ति 2004 के मुकाबले 2009 में काफी बढ़ गई है। संपत्ति में इस बढ़ोतरी से कई सवाल उभरकर सामने आते हैं। वैसे इस मामले में भी कोई दल पीछे नहीं है। एक नेता की संपत्ति में तो तीन हजार फीसद की बढ़ोतरी हो गई है।

विजयवाड़ा से कांग्रेसी उम्मीदवार लगदापति राजगोपाल ने जब 2004 में पर्चा भरा था तो उस वक्त उन्होंने चुनाव आयोग को ये जानकारी दी थी कि उनके पास कुल 9.6 करोड़ रुपए की संपत्ति है। पर इस दफा उन्होंने अपने हलफनामे में बताया है कि उनकी संपत्ति बढ़कर 299 करोड़ रुपए हो गई है। यानी इन पांच साल के दौरान उनकी संपत्ति में तीन हजार फीसद की बढ़ोतरी हुई।
इस बाबत राहुल गांधी का भी उदाहरण लिया जा सकता है। 2004 में चुनाव आयोग के समक्ष राहुल ने जो हलफनामा दायर किया था, उसमें उन्होंने अपने पास पचीस लाख रुपए की संपत्ति होने की बात स्वीकारी थी। पर इस मर्तबा जो हलफनामा इस कांग्रेसी युवराज ने दाखिल किया है उसमें उनकी संपत्ति बढ़कर तकरीबन दो करोड़ बत्तीस लाख रुपए की हो गई है। कुछ ऐसा ही उनकी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ भी हुआ है। उनके पास 2004 में 85 लाख रुपए की संपत्ति थी। जो 2009 में 53 लाख रुपए बढ़कर 1.38 करोड़ रुपए हो गई। दिल्ली के चांदनी चौक से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के ही कपिल सिब्बल की संपत्ति इनन पांच सालों में बढ़कर 23.91 करोड़ रुपये हो गई। जबकि मौजूदा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सिब्बल ने 2004 में उन्होंने निर्वाचन आयोग को बताया था कि उनके पास 16.13 करोड़ रुपए की संपत्ति है। जबकि इसी दरम्यान प्रिया दत्त की संपत्ति सवा चार करोड़ रुपए से बढ़कर 34.74 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। वहीं मिलिंद देवड़ा की संपत्ति इस दौरान साढे चार करोड़ से बढ़कर 17.7 करोड़ रुपए पर पहुंच गई।

संपत्ति बढ़ने के मामले में भाजपा के नेता भी पीछे नहीं है। एनडीए सरकार में वित्त मंत्री और विदेश मंत्री रहने वाले यशवंत सिन्हा झारखंड के हजारीबाग से चुनाव लड़ते हैं। उनके पास 2004 में कुल संपत्ति एक करोड़ से भी कम की थी। जबकि इस बार जो हलफनामा उन्होंने दाखिल किया है उसके मुताबिक उनकी संपत्ति सवा छह करोड़ की हो गई है। भाजपा के ही दूसरे नेता हैं किरीट सोमैया। 2004 में उनके पास कुल संपत्ति एक करोड़ की थी। जबकि 2009 में यह बढ़कर 5.36 करोड़ हो गई। दलितों की नुमाइंदगी के नाम पर अपनी सियासत चमकाने वाले रामविलास पासवान की संपत्ति भी इस दौरान बढ़ी है लेकिन इजाफा अपेक्षाकृत कम हुआ है। 2004 में जहां उनकी कुल संपत्ति 83 लाख की थी। वहीं इस साल यह बढ़कर 1.15 करोड़ हो गई है। ये तो महज कुछ उदाहरण हैं। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है। अभी तो देश के कई बड़े नेताओं ने नामांकन दाखिल भी नहीं किया है। जैसे-जैसे यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, नेताओं की बढ़ती अमीरी को प्रदर्षित करने वाले आंकड़े सामने आते जाएंगे और राजनीति के चरित्र में आ रहे बदलाव को समझने में मदद करेंगे।

नेताओं की संपत्ति में हुए बढ़ोतरी से कई सवाल स्वाभाविक तौर पर उभरकर सामने आते हैं। पहली बात तो यह कि आखिर ऐसा हुआ कैसे? इस बाबत कुछ नेता तर्क दे रहे हैं कि इस दौरान रियल स्टेट और सोना की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है इसलिए उनकी सपत्ति में भी इजाफा हो गया। पर यह तर्क बहुत सतही मालूम पड़ता है। दरअसल, यहां चर्चा सिर्फ घोशित संपत्ति की हो रही है। इस बात से तो देश के लोग वाकिफ ही हैं कि घोशित और अघोशित के बीच की खाई कितनी चौड़ी होती है। अगर मसला नेताओं से जुड़ा हुआ हो तो उनकी ईमानदारी को लेकर पर्याप्त संदेह तो बना ही रहता है।

नेताओं की संपत्ति में हुई बढ़ोतरी को व्यवस्था में व्याप्त खामियों से जोड़कर देखा जाना चाहिए। इसे अर्थव्यवस्था की उस खामी से जोड़कर देखा जाना चाहिए जो काले धन को सफेद बनाने की सुविधा उपलब्ध कराती है। क्योंकि इन पांच सालों में तो विकास के मामले में आंकड़ों की बाजीगरी भी असफल हो चुकी है। जिस शेयर बाजार, विदेषी मुद्रा भंडार और जीडीपी के दम पर विकास और खुशहाली का कोरा ख्वाब दिखाया जाता था, वह भी आज बदहाल अवस्था में है। मंदी की मार ने उद्योगपतियों को भी बेहाल कर दिया है और उनकी संपत्ति काफी घट गई है। ये बात सही है कि उनकी संपत्ति काफी हद तक शेयर बाजार पर निर्भर करती है। इस तरह उनकी संपत्ति घटने के लिए वाजिब वजह तो समझ में आता है लेकिन नेताओं की संपत्ति में हुई इस वृध्दि की कोई वाजिब वजह नहीं दिखती।

इस बात से देश का हर नागरीक वाकिफ है कि कोई व्यक्ति अगर नेतागीरी करने लगता है तो उसकी अमीरी बढ़ते देर नहीं लगती। हालांकि, नेता भी जनहित और देशहित की दुहाई देते नहीं थकते हैं। पर नेताओं के इस खोखले दावे की पोल खोलने वाले आंकडे सामने आ रहे हैं। नेताओं के अमीर होने के लेकर आवाम में कोई संदेह तो नहीं होता लेकिन आम धारणा यह है कि जिस राज्य की आर्थिक हालत जैसी होगी उसी के मुताबिक उसके नुमाइंदे की आर्थिक हैसियत भी होगी। पर अध्ययन में यह बात कई जगह गलत साबित हुई है। देश में महाराश्ट्र की प्रति व्यक्ति आय सबसे ज्यादा है। यहां से चुने जाने वाले सांसदों के हलफनामे को खंगालने के बाद यह पता चला है कि इस राज्य के सांसदों ने चुनाव आयोग के समक्ष 2004 में औसतन 110 लाख रुपए संपत्ति होने की बात स्वीकारी थी। इसमें सबसे कम का आंकड़ा षिव सेना का है लेकिन यह भी 64 लाख रुपए है। वहीं कांग्रेसी सांसदों की औसत संपत्ति 191 लाख रुपए की थी। जबकि उसी साल हुए वहां विधान सभा चुनाव में दायर हलफनामे से यह बात सामने आई कि षिव सेना के विधायकों की औसत संपत्ति 65 लाख रुपए की है। जबकि कांग्रेसी विधायकों के मामले में यह आंकड़ा 133 लाख रुपए का है।

महाराश्ट्र के मुकाबले में आंध्र प्रदेश की औसत प्रति व्यक्ति आय तीस फीसदी कम है। पर आष्चर्यजनक बात यह है कि यहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र के सांसदों के मुकाबले साढ़े चार सौ फीसदी ज्यादा है। आंध्र प्रदेश के सांसदों के पास औसतन 490 लाख रुपए की संपत्ति है। यानी आय के मामले में भले ही आंध्र प्रदेश महाराश्ट्र से पीछे हो लेकिन नेताओं की अमीरी के मामले में वह कई कदम आगे है। ऐसा ही मामला पंजाब का भी है। पंजाब के सांसद देश भर के सांसदों के दिल में जलन पैदा कर सकते हैं या फिर उन्हें ज्यादा से ज्यादा संपत्ति अर्जित करने की प्रेरणा दे सकते हैं। क्योंकि पंजाब के सांसद देश के सबसे अमीर सांसद हैं। वहां के एक सांसद के पास औसतन 672 लाख रुपए की संपत्ति है। महाराश्ट्र के मुकाबले यह छह गुनी है। जबकि यहां का औसत प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र से दस फीसद कम है।

अगर बात गुजरात की हो तो वहां का औसत प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र के मुकाबले आठ फीसद कम है। जबकि वहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र की सांसदों की तुलना में 40 फीसद कम है। बिहार मं प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र से 80 फीसद कम है। पर आष्चर्य की बात यह है कि यहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र के सांसदों के बराबर ही है। बिहार के सांसदों के पास औसतन 110 लाख रुपए की संपत्ति है। यहां के विधायकों की संपत्ति जरूर राज्य की आर्थिक सेहत को प्रदर्षित करता है। बिहार के विधायकों के पास औसतन बीस लाख रुपए की संपत्ति है।
मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र के मुकाबले चालीस फीसद कम है। पर आष्चर्यजनक यह है कि यहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र के सांसदों के मुकाबले औसतन महज चौदह फीसद ही कम है। मध्य प्रदेश के बारे में रोचक बात यह है कि 2003 के विधान सभा चुनावों के वक्त यह बात सामने आई थी कि यहां के विधायकों की औसत संपत्ति महाराश्ट्र के विधायकों की औसत संपत्ति से कम है। पर 2008 के विधान सभा चुनाव के वक्त दायर हलफनामे से यह बात सामने आई कि यहां के विधायक महाराश्ट्र के विधायकों से अमीर हो गए हैं। 2003 में भाजपा के एक विधायक के पास औसतन 21 लाख रुपए की संपत्ति थी। 2008 में यह बढ़कर 104 लाख रुपए हो गई। जबकि इसी दौरान कांग्रेसी विधायकों की संपत्ति 28 लाख रुपए बढ़कर 207 लाख रुपए हो गई। भाजपा विधायकों की बाबत तो यह बात समझ में आती है कि राज्य में भाजपा सत्ता में थी और इसका फायदा पार्टी के विधायकों को मिला होगा। पर कांग्रेसी विधायकों की संपत्ति बढ़ने का गणित पकड़ना आसान नहीं मालूम पड़ रहा है।

कर्नाटक में भी विधायकों की अमीरी काफी तेजी से बढ़ी है। राज्य में 2004 में विधान सभा चुनाव हुए थे। राजनीतिक अस्थिरता की वजह से वहां 2008 में दुबारा चुनाव हुए। 2004 के चुनाव के वक्त दायर हलफनामे के अध्ययन से यह बात सामने आई कि वहां के भाजपा विधायकों के पास औसतन 133 लाख रुपए की संपत्ति थी। जबकि 2008 में भाजपा विधायकों की अमीरी तकरीबन साढे तीन सौ फीसद बढ़ गई और उनके पास औसतन 457 लाख रुपए की संपत्ति होने की बात सामने आई। इसी दौरान एचडी देवगौड़ा की जनता दल-एस के विधायकों की औसत संपत्ति 145 लाख रुपए से बढ़कर 425 लाख रुपए हो गई। इस मामले में सबसे तेज कांग्रेसी विधायकों को कहा जा सकता है। क्याेंकि इस पार्टी के विधायकों के पास 2004 में औसतन 196 लाख रुपए की संपति थी। जो 2008 में बढ़कर 1065 लाख रुपए यानी 10.65 करोड़ हो गई। वहीं राजस्थान की में 2003 के मुकाबले 2008 में वहां के भाजपा विधायकों की औसत संपत्ति में 5.6 गुना की बढ़ोतरी हुई। जबकि कांग्रेसी विधायक अपनी संपत्ति दुगनी ही कर पाए।

ये आंकड़े उस दौर के हैं जब देश के विकास दर में कमी आई। ये वही दौर है जब देश में किसानों की आत्महत्या थामे नहीं थम रही है। ये वही दौर है जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की मार झेल रही है। पर देश के नेताओं पर इन बातों का कोई असर नहीं होता है। अभी आंकड़े भले ही कुछ राज्यों के ही उपलब्ध हैं लेकिन पूरे देश की स्थिति में बहुत ज्यादा फर्क की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इस बात की पुश्टि लोकसभा में पहुंचने के लिए चुनावी मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार भी कर रहे हैं। इस पूरी बातचीत में इस बात को नहीं भूला जाना चाहिए कि ये उसी देश के नेता हैं जहां के 84 करोड़ लोग रोजाना बीस रुपए से कम पर भी जीवन बसर करने को अभिशप्त हैं। ये उसी देश के नेता हैं जहां की एक बड़ी आबादी को अभी भी दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाती है। ये उसी देश के नेता हैं जहां पांच से कम उम्र के तकरीबन आधे बच्चे कुपोशण की मार झेल रहे हैं। इससे समझा जा सकता है कि नेताओं की संपत्ति में बढ़ोतरी आखिर किस कीमत पर हुई है।

हिमांशु शेखर
09891323387

गुजरात: 11 सीटों पर मतदान घटा तो 12 सीटों पर रही तेजी

advani3मतदाताओं ने गुरुवार के मतदान से राज्य की तमाम पार्टियों को अचंभित कर दिया है। कहीं अधिक तो कहीं फीका मतदान कर उसने साफ संकेत दिया है कि राज्य में एक-तरफा वोटिंग नहीं हुई है। इससे दोनों प्रमुख पार्टी भाजपा और कांग्रेस के लिए नतीजों की प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है। वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव गर्मी के भीषण प्रकोप के लिए भी जाना जायेगा।राज्य में 40 डिग्री के आसपास पारा रहा। कहीं-कहीं तो यह 45 से 46 डिग्री के बीच भी रहा। लेकिन मतदाताओं को जहां अधिक वोटिंग करनी थी, वहां गर्मी की प्रचंडता उन्हें रोक नहीं पायी। और लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया। 26 सीटों पर गुजरात में तीन सीटों का नामकरण इस बार बदल गया है। मांडल की जगह बारडोली और धंधूका की जगह अहमदाबाद पश्चिम के रूप में दो नये सीट बने हैं। दक्षिण गुजरात में एक नया सीट नवसारी बना है। वहीं कपडगंज नामक सीट उत्तर गुजरात से समाप्त हो गया है, जहां से पिछली दफा केंद्रीय कपडा मंत्री शंकरसिंह वाघेला चुनाव लडे थे। इस बार वे पंचमहाल से चुनाव लड रहे हैं।

बहरहाल वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में वोटों के परसेंटेज को देखे तो इस बार औसत मतदान पूरे राज्य भर में लगभग 1 फीसदी अधिक रहा। वर्ष 2004 में 1 से 5 फीसदी के मतों से जीत हारवाली सीटों की संख्या 8 रहीं, जिसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास ही चार-चार सीटे कब्जा में थी। इसके अलावा एक सीट धंघुका भी रही जो कि अब अहमदाबाद पश्चिम के रूप में अस्तित्व में आयी है। यह सीट पिछली बार भाजपा के रतिलाल वर्मा ने जीती थी। वहीं 6 से 10 फीसदी के मतों से जीत-हार वाली सीटों की संख्या भी 8 थी। यहां भी दोनों ही प्रमुख पार्टी को 4-4 सीट प्राप्त हुए थे। 11 से 15 फीसदी के मतों से जीत-हार वाली सीटों की संख्या 7 थी। यहां नये सीमांकन से अस्तित्वविहीन हुई मांडवी और कपडगंज की दो सीटों पर भी इसी अंतर से जीत हार हुए थे। यहां भाजपा को 5 और कांग्रेस को 4 सीटें झोली में गयी थी। इस बार का मतदान प्रतिशत भी बराबरी का मुकाबलें से संबंधित संकेत देता है। जहां-जहां पिछली दफा 1 से 5 फीसदी के मतों से जीत-हार का फैसला हुआ वहां दो सीट जामनगर और बारडोली में मतदान में वृध्दि दर्ज की गयी, बाकी पोरबंदर, अमरेली, मेहसाणा, पाटण, बनासकांठा ओर दाहोद में मतदान कम हुआ।

दूसरी तरफ जिन सीटों में वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत-हार का फासला 6 से 10 फीसदी का रहा वहां 9 में से 7 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से बढा हुआ देख गया। कच्छ (2004 में बीजेपी जीती), सुरेंद्रनगर (2004 में बीजेपी जीती) पर मतदान कम रहा। वहीं जूनागढ, साबरकांठा, पंचमहाल, छोटा उदयपुर, सूरत और बलसाड में मतदान तेज रहा। इनमें बलसाड, छोटाउदयपुर, साबरकांठा और जूनागढ कांग्रेस के पास थी, जबकि सूरत और पंचमहाल की सीट बीजेपी ने अपने कब्जे में रखा था। 11 से 15 फीसदी के मतों से जीत-हार वाले सीटों पर भी तीन सीट भरूच, आंणद, और राजकोट में मतदान कम रहा, जबकि भावनगर, अहमदाबाद, गांधीनगर और खेडा में मतदान अधिक रहा। वर्ष 2004 में राजकोट, अहमदाबाद, भावनगर, गांधीनगर और भरूच भाजपा के पास थी, जबकि खेडा और आणंद की सीट कांग्रेस के पास थी। यानी जिस 11 सीटों पर इस बार वोटिंग घटा उसमें से 6 भाजपा के पास थी और 5 कांग्रेस के पास थी वहीं जिस 12 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत बढा उसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के पास छह-छह सीटें थी।

आंकडे और मतों का प्रतिशत इस बार यह संकेत दे रहा है कि मतदाताओं ने बिना किसी लहर की परवाह कर वहीं निर्णय दिया है जो कि वह बेहतर समझता है। मतदाताओं के संकेतों को यदि समझने की कोशिश की जाये तो यह भी सामने आता है कि उसने तराजू पर भाजपा और कांग्रेस को अलग-अलग पलडों पर रखकर तौलने की कोशिश की है। अब देखना यह है कि 16 मई के दिन पलडा किस ओर झुकता है।

-बिनोद पांडेय
(लेखक हिंदुस्‍थान समाचार, गुजरात से संबंद्ध हैं)

अधीर क्यों हैं राहुल और सोनिया?

rahul1ज्यों ज्यों चुनाव परिणाम आने का वक्त नजदीक आता जा रहा है, त्यों-त्यों कांग्रेस और भाजपा नेताओं की पेशानी पर बल पड़ता जा रहा है। चुनाव की घोषणा होने से पहले तक क्षेत्रीय दलों और वामपंथी दलों के तीसरे मोर्चे को हवा में उड़ाने वाले तथाकथित दोनों बड़े दल अब परेशान हैं और ताज्जुब की बात यह है, कि जैसे-जैसे 16 मई नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे सोनिया और आडवाणी जी की सुर लहरी एक सी हो रही है और दोनों के हमले अब तीसरे मोर्वे पर ही हो रहे हैं।हाल ही में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक सभा में कहा कि उन्हें अभी प्रधानमंत्री न बनाया जाए, वह तो अभी संगठन में काम करना चाहते हैं। सुनने में राहुल का बयान बहुत अच्छा है और उनकी मां की तरह ही त्याग भरा वक्तव्य है। लेकिन सवाल यह है कि राहुल जी आपको प्रधानमंत्री बनाने कौन जा रहा है, जरा यह भी तो बताते? प्रधानमंत्री बनने के लिए 272 का जादुई आंकड़ा कांग्रेस कहां से ला रही है? फिर आपको बनाया जाए या न बनाया जाए, आपके इस वक्तव्य का क्या अर्थ है?

राहुल अभी सीधे हैं और नौसिखिया हैं, इसलिए सच बोलने में परहेज कम ही करते हैं। उन्होंने अपने मन में पल रही इच्छा को दबाने का प्रयास नहीं किया। ऐसे में जब उनकी मां दहाड़ रही थीं कि तीसरा मोर्चा सत्ताा की बंदरबांट के लिए बना है, राहुल ने बड़ी ईमानदारी से कुबूल कर लिया कि प्रधानमंत्री बनने के लिए उनके मन में भी लड्डू फूट रहे हैं। राहुल ने साफगोई से कहा कि ‘अभी’ उन्हें प्रधानमंत्री न बनाया जाए। इस ‘अभी’ का मतलब साफ है, कि उन्हें प्रधानमंत्री तो बनाया जाए लेकिन अभी नहीं। राहुल समझदार हैं, और न भी हों, तो केंद्र सरकार के गार्जियन होने के नाते आईबी और अन्य गुप्तचर ब्यूरो की रिपोर्ट उन्हें मिल ही गई होंगी और उन्हेें मालूम हो गया होगा, कि कांग्रेस इस बार कुल जमा 135 सीटें ला रही है। ऐसे में वह कहां से प्रधानमंत्री बन जाएंगे, यह वह अच्छी तरह जानते हैं। राहुल जानते हैं, कि कांग्रेस की भद्द पिटनी है, तो क्यों वह हार का ठीकरा अपने सिर फोड़ें, इसके लिए तो मनमोहन ही बेहतर रहेंगे।

राहुल के बयान से कई प्रश्न खड़े हो गए हैं। राहुल को शायद याद न हो, क्योंकि वह उस समय बच्चे रहे होंगे और उनके पिता भी उस समय राजनीति में नहीं आए थे, जब उनकी दादी स्व. इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में जारी ‘एक व्यक्ति-एक पद’ के सिध्दान्त को तोड़कर कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री दोनों पद अपने पास रखने की शुरूआत की थी, जिसे बाद में राहुल के पिता स्व. राजीव गांधी ने आगे बढ़ाया और स्व. पी.वी. नरसिंहाराव ने भी उस पर अमल जारी रखा। स्वयं सोनिया गांधी जिस समय प्रधानमंत्री बनने का दावा करने राष्ट्रपति के पास गई थीं, उस समय भी वह कंाग्रेस अध्यक्ष थीं और अगर दुर्भाग्य से वह प्रधनमंत्री बन जातीं, तो जो त्याग उन्होंने प्रधानमंत्री न बनकर दिखाया, वैसा त्याग वह कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छोड़कर नहीं दिखा सकती थीं।

राहुल गांधी अगर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं, तो बुरी बात नहीं हैं, लोकतंत्र में यह ख्वाब देखने का हक किसी भी व्यक्ति को है। लेकिन ख्वाब देखने और देश चलाने में बड़ा अन्तर है। देश चलाने के लिए केवल खूबसूरत गांधी होने से ही काम नहीं चलता। उसके लिए अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, विदेश नीति का अच्छा ज्ञान होना भी आवष्यक है। लगता नहीं कि राहुल ने यह शब्द कभी सुने भी होंगे। देश का नेतृत्व करने के लिए विजन चाहिए, फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा, लेकिन क्या राहुल के पास कलावती और फूलवती के नाटक के अलावा कोई विजन है? यह अलग बात है कि कोई स्व. राजीव गांधी की नीतियों से सहमत हो या न हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजीव जी के पास एक देश के लिए एक विजन था। लेकिन राहुल के पास क्या है। राहुल अभी तक अटक-अटक कर दूसरों का लिखा भाषण पढ़ते हैं, जबकि उनसे ज्यादा तो उनकी मां की भाषा पर पकड़ है।

सवाल यह है कि जब प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी, सुशील कुमार शिंदे, दिग्विजय सिंह जैसे सीनियर नेताओं को धता बताकर कल ही राजनीति में आया एक नया लड़का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख सकता है, तो सोनिया जी को मायावती, देवेगौड़ा, जयललिता, लालू, मुलायम या तीसरे मोर्चे के किसी अन्य नेता के प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब पर इतना अधिक गुस्सा क्यों आता है, कि वह आडवाणी जी की भाषा बोलने लगती हैं। आडवाणी जी कह रहे थे कि तीसरे मोर्चे के पास प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं है, सोनिया जी भी यही बोलने लगीं। लेकिन आडवाणी जी तो ठीक है, कि नागपुरी जमात से हैं, उनका और लोकतंत्र का 36 का आंकड़ा है, लेकिन सोनिया जी को यह क्या बीमारी लग गई?

सोनिया जी से सवाल पूछा जा सकता है कि क्या 2004 में कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ा था? नहीं न? 2004 के चुनाव में तो सोनिया उम्मीदवार थीं। फिर मनमोहन क्यों बन गए? क्या इस बात से यह मान लिया जाए कि कांग्रेस ने जनता के साथ इस मुद्दे पर धोखा किया? इसी तरह 1991 में पी.वी. नररिंहाराव को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया था।

अभी बमुश्किल छह माह नहीं हुए होंगे जब मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए थे। तब भी भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए थे, लेकिन आज मनमोहन को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने वाली कांग्रेस ने तब तर्क दिया था कि लोकतंत्र में मुख्यमंत्री तय करना विधायकों का अधिकार है और चुनाव के बाद संसदीय दल नेता तय करेगा। आखिर छह माह में ही वह कौन सी परिस्थितियां बन गईं, कि सोनिया जी अब मनमोहन को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके तीसरे मोर्चे पर नाहक गुस्सा हो रही हैं, कि उसने अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। सोनिया जी आडवाणी की चाल में फंस चुकी हैं।

-अमलेन्दु उपाध्याय
द्वारा एस सी टी लिमिटेड
सी-15, मेरठ रोड इंडस्ट्रियल एरिया
गाजियाबाद

(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और पाक्षिक पत्रिका ‘प्रथम प्रवक्ता’ के संपादकीय विभाग में कार्यरत हैं।)

फोटो- प्रदीप मेनन

पर्यावरण के प्रश्‍न पर सभी दल खामोश

427963632_95bd5f52d3_mमौसम में बढ़ती गर्मी, सूखते बादल और हवाओं का बदलता रूख….हर तरफ धूल-धक्कड़ और चलती लू के थपेड़े…और फिर प्रतिद्वंद्वियों की चुनौतियों के बीच चुनाव की बढ़ती सरगर्मी और चिलचिलाती धूप….मौसम की इस बेरुखी ने नेता व जनता दोनों को बेहाल कर रखा है।जी! चुनाव के इस मौसम में सूरज की तपिश अपने उफान पर है। इसने कई जगह चुनावी गर्मी को ठंडा करने की कोशिश भी की है। चुनाव का द्वितीय चरण भी सूरज की तपिश के कारण फीका ही रहा। अब अगले चरण में दिल्ली की बारी है। जहां चुनावी गर्मी से एक ओर नेता परेशान हैं, तो वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक गर्मी ने आम लोगों का जीना दुभर कर दिया है।

ज़रा सोचिए! यह तो अप्रैल का ही महीना है, और पारा 40-42 के पार जा चुकी है। मई-जून की गर्मी तो अभी बाकी ही है। आगे हमारा क्या हाल होगा, यह उपर वाला ही जानता है।

आखिर यह गर्मी हो क्यों ना…? पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जो जारी है। यदि आंकड़ों की बात करें तो दिल्ली में विभिन्न विकास कार्यो के नाम पर पिछले 5 सालों में लगभग 50 हज़ार पेड़ काट डाले गए। खैर यह आंकड़े तो सरकारी आंकड़े हैं, जिसे सूचना के अधिकार के तहत लेखक को दिल्ली सरकार के वन एवं वन्यप्राणी विभाग ने उपलब्ध कराया है। अवैध रुप से कटने वाले पेड़ों की संख्या तो लाखों में होगी। लेखक ने स्वयं महरौली के आर्कियोलॉजिकल पार्क में हो रही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को देखा है। जंगल के जंगल साफ कर दिए गए हैं। लेकिन इसकी खबर प्रशासन को नहीं है।

सूचना के अधिकार के माध्यम से मिले आंकड़ों के मुतबिक वर्ष 2004-05 में 16,552 पेड़, वर्ष 2005-06 में 10,692 पेड़, वर्ष 2006-07 में 5,627 पेड़, वर्ष 2007-08 में 10,460 पेड़ और वर्ष 2008-09 में 17 अप्रैल तक 2,321 पेड़ काटे गए हैं। यही नहीं, कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर जनवरी 2008 से मार्च 2009 तक 2986 पेड़ काटे गए। वहीं दिल्ली मेट्रो के नाम पर 387 पेड़ों की बलि चढ़ाई गई।

हालांकि विभाग के मुताबिक इन पेड़ों को काटने के बाद पेड़ लगाए भी गए हैं। लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है, ये किसी से छिपा नहीं है। बहरहाल, विभाग के मुताबिक वर्ष 2004-05 में 93,755 पेड़, वर्ष 2005-06 में 3,815 पेड़, वर्ष 2006-07 में 22,723 पेड़ और वर्ष 2007-08 में 10,722 पेड़ लगाए गए हैं। इन में से 12889 पौधे दिल्ली मेट्रो कॉरपोरेशन के शामिल हैं, जिसे ग़ाज़ीपूर- हिंडन कट में लगाया गया है। और दिल्ली मेट्रो ने इस कार्य हेतु 14,92,068 रुपये (चौदह लाख बानवे हज़ार अड़सठ रुपये) खर्च किए। बाकी के पेड़ों को लगाने में कितना खर्च हुआ है, इसका ब्यौरा विभाग के पास मौजूद नहीं है।

बात यहीं खत्म नहीं होती। जहां दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागें विज्ञापन के नाम पर करोड़ों खर्च कर देती हैं, वहीं दिल्ली सरकार के इस विभाग ने लोगों को पर्यावरण के संबंध में जागरुक करने हेतु पिछले 5 सालों में कोई विज्ञापन जारी नहीं किया है।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मसले पर तमाम राजनीतिक दल खामोश हैं। हालांकि इस बार कुछ राजनैतिक विचारधाराओं ने पहली बार जलवायु परिवर्तन के संकट को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया है। भाजपा ने जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण को समुचित महत्व देने का वायदा किया है, लेकिन हिन्दुत्व के शोर में यह मुद्दा भी नदारद हो गया है। दुखद बात तो यह है कि जो विचार और वायदे कांग्रेस, भाजपा, वामपंथी सहित कुछ दलों ने अपने घोषणा पत्रों में दर्ज किए हैं उन्हें मतदाता तक पहुंचाने की कोई जद्दोजहद नजर नहीं आई।

जबकि यह घोर चिंता का विषय है कि मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए पर्यावरण के बारे में राजनीतिक दलों को जितनी गंभीरता से सोचना चाहिए, उतनी गंभीरता से नहीं सोचा जा रहा है। शायद राजनीतिक दल यह भूल रहे हैं कि जब मानव का अस्तित्व बचेगा, तभी राजनीति भी हो सकती है अन्यथा वह भी संभव नहीं है।

-अफ़रोज़ आलम साहिल
H-77/14, चतुर्थ तल, शहाब मस्जिद रोड,
बटला हाउस, ओखला, नई दिल्ली-25.

टोल टैक्स का गोरख-धंधा

250px-1381344038_ebc012ea47_o1परिवहन मंत्रालय टोल टैक्स (चुंगी वसुली) के माध्यम से निजी क्षेत्र की निर्माण कंपनियों को बेहिसाब फायदा पहुंचाने में जुटी है। दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस हाईवे पर रोजाना टोल टैक्स के रूप में होने वाली लाखों रुपए की उगाही की जानकारी मिलने पर यह खुलासा हुआ।

 

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने निजी क्षेत्र की भागीदारी से बीओटी यानी निर्माण, संचालन और स्थानांतरण के तहत दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस हाईवे का निर्माण किया है। इस परियोजना को पूरा होने में 702 करोड़ रुपए की लागत आई थी। इन रुपए की उगाही के लिए उक्त परियोजना से जुड़ी निजी कंपनी को सन् 2022 तक चुंगी उगाही का अधिकार दिया गया है।

 

प्रतिवर्ष गाड़ियों की बढ़ती संख्या और वहां से गुरजने वाली प्रत्येक गाड़ी पर टोल टैक्स में वृद्धि होने से सन् 2022 तक 24,000 करोड़ रुपये की उगाही का अनुमान है। इससे साफ मालूम पड़ता है कि यहां जनता की जरूरतों को नजरअंदाज कर परियोजना से जुड़ी निर्माण कंपनी को 702 करोड़ रुपए के बदले अरबों रुपए का फायदा पहुंचाने की जुगत लगाई गई है। इस बाबत अधिवक्ता विवेक गर्ग ने एनएचएआई के भ्रष्ट अधिकारियों और परिवहन मंत्रालय व इससे जुड़े अन्य संबंधित विभाग के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) के निदेशक अश्वनि कुमार के समक्ष शिकायत दर्ज की है।

 

शिकायत में कहा गया है कि दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस हाईवे पर इंदिरा गांधी एयर पोर्ट (14 किमी), गुड़गांव दिल्ली बोर्डर (24 किमी) और खिड़कीदौला (42 किमी) के निकट राहगीरों से चुंगी वसूली जाती है। एनएचएआई की ओर से मुहैया कराए गए आंकड़ों के अनुसार इंदिरा गांधी एयर पोर्ट और खिड़कीदौला के निकट चुंगी के रूप में प्रत्येक महिने 10 करोड़ यानी वर्ष में करीब 130 करोड़ रुपए तक की उगाही होती है। जबकि, गुड़गांव दिल्ली बोर्डर पर होने वाली उगाही की कोई जानकारी नहीं दी गई है। अनुमान है कि यहां से होने वाली उगाही उक्त दोनों स्थानों से दोगुनी है।

 

ऐसी स्थिति में इस एक्सप्रेस हाईवे पर प्रतिवर्ष 260 करोड़ रुपए की उगाही का अनुमान

है। गर्ग ने बताया कि सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमान करने पर एनएचएआई ने इस बात की जानकारी दी कि प्रत्येक वर्ष पहली अप्रैल को चुंगी की दर में संशोधन करने का प्रावधान है। अप्रैल 2008 में इस राशि में कुल 13 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। इससे गत वर्ष 293.8 करोड़ रुपये की वसूली का अनुमान है।

 

शिकायक पत्र में इस बात की ओर भी इशारा किया गया है कि प्रतिवर्ष गाड़ियों की बढ़ती संख्या की वजह से चुंगी की उगाही में और भी इजाफा होगा। ऐसे में इस परियोजना में लगी राशि की उगाही वर्ष 2010 तक ब्याज सहित कर ली जाएगी। साथ ही मूलधन के रूप में कम से कम 116.55 करोड़ रुपये का फायदा होगा। इसके बावजूद वर्ष 2022 तक चुंगी वसूलने का अधिकार दिए जाने का औचित्य समझ से परे है।

 

गर्ग ने बताया कि आरटीआई कानून के तहत देश भर में बीओटी के माध्यम से तैयार हुई परियोजनाओं से टोल टैक्स संबंधित जानकारी मागने पर संबंधित विभाग टालमटोल कर रहा है। इससे पता चलता है कि इसमें बड़े पैमाने पर हेराफेरी हो रही है।

 

तीसरा चरण का मतदान भीषण गर्मी की चपेट चढ़ा, 50 प्रतिशत मतदान हुआ

y20vote2020091भीषण गर्मी की वजह से 15वीं लोकसभा चुनाव का जुनून अब हांफने लगा है। इसका असर गुरुवार आम चुनाव के तीसरे चरण के मतदान के दौरान आम लोगों पर साफ नजर आया।

नौ राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों की 107 लोकसभा सीटों पर संपन्न हुए मतदान में औसतन 50 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। इसकी वजह चिलचिलाती धूप मानी जा रही है।

निर्वाचन आयोग की ओर से मतदान के बाबत जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार बिहार में 48 फीसदी वोट डाले गए, जबकि गुजरात में करीब 49 प्रतिशत। इसके अलावा दादरा एवं नगर हवेली में 60, दमन एवं दीव में 60, कर्नाटक में 57, मध्य प्रदेश में 44, महाराष्ट्र में 43 से 45, सिक्किम में 65, उत्तर प्रदेश में 45 और पश्चिम बंगाल में 64 प्रतिशत मतदान हुआ। जम्मू एवं कश्मीर में 25 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

गुरुवार को हुए मतदान में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, जनता दल (युनाइटेड) के नेता शरद यादव सहित 1567 उम्मीदवारों के किस्मत का फैसला वोटिंग मशीनों में बंद हो गया।

मतदान के दौरान पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश के कुछ स्थानों से चुनावी हिंसा की खबरें भी आई हैं। कई मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की ओर से चुनाव बहिष्कार का भी मामला सामने आया है। हालांकि, तीसरे चरण का मतदान संपन्न होने के साथ ही लोकसभा की 543 सीटों में से 372 सीटों पर मतदान संपन्न हो गया है।

तीसरे चरण के तहत महाराष्ट्र की 10, बिहार और कर्नाटक की 11-11, पश्चिम बंगाल की 14, उत्तर प्रदेश की 15, गुजरात की 26, जम्मू और कश्मीर की एक, मध्य प्रदेश की 16, सिक्किम की एक, दादरा तथा नगर हवेली व दमन एवं दीव की एक-एक संसदीय सीट के लिए मतदान हुआ। सिक्किम में लोकसभा के साथ विधानसभा की 32 सीटों के लिए भी वोट डाले गए।

मतदान के दौरान पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के बलरामपुर इलाके में बारुदी सुरंग में विस्फोट होने से एक जवान घायल हो गया।

दान देकर कानूनी मुसीबत में उलझ सकते हैं अमर सिंह

amar-singh11समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह क्लिंटन फाउंडेशन को कथित 43 करोड़ रुपये (86 लाख डॉलर) का दान देने के मामले में कानूनी मुसीबत में उलझ सकते हैं।भारतीय रिजर्व बैंक ने अमर सिंह के कथित दान के मामले में देश के वित्तीय कानूनों के उल्लंघन की जांच की सलाह दी है। क्योंकि इस संबंध में सिंह ने रिजर्व बैंक से मंजूरी नहीं मांगी थी। रिजर्व बैंक ने इस बाबत प्रवर्तन निदेशालय को जांच की सलाह दी है। हालांकि, दान के संबंध में किसी जानकारी से इंकार किया है।

रिजर्व बैंक का सुझाव सर्वोच्च न्यायालय के वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी की निर्वाचन आयोग को की गई शिकायत के जवाब के संदर्भ में आया है। हालांकि, अमर सिंह ने न तो धन देने की बात स्वीकार किया है और न ही इससे इंकार किया है।

शिकायतकर्ता ने निर्वाचन आयोग से आग्रह किया कि राज्यसभा चुनाव 2008 में नामांकन के समय अपनी संपत्ति की घोषणा में इस दान को शामिल नहीं करने के कारण अमर सिंह को अयोग्य घोषित कर दिया जाए।

उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि यह रकम हवाला के माध्यम से अवैध रूप से देश से बाहर ले जाई गई होगी। शिकायत की एक प्रति चतुर्वेदी ने रिजर्व बैंक को भी भेजी थी।

बैंक ने चतुर्वेदी को भेजे जवाब में कहा कि उसके रिकार्ड में दान की कोई अनुमति नहीं दी गई। हवाला के संबंध में आपको प्रवर्तन निदेशालय में शिकायत दर्ज करानी चाहिए।

चतुर्वेदी ने क्लिंटन फाउंडेशन की वेबसाइट पर उपलब्ध दानदाताओं की सूची के आधार पर निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने कहा कि अमर सिंह ने अपने शपथ पत्र में 37 करोड़ रुपये की संपत्ति का खुलासा किया है। इसके बाद भी वे कैसे इतनी बड़ी रकम दान में दे सकते हैं।