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परशुराम जयंती: वे पीयें शीत तुम आतम घाम पियो रे….

आज भगवान परशुराम की जयंती जोर शोर से मनाई जा रही है। जातिवादी व्‍यवस्‍था में घिरे समाज में आज भगवान परशुराम को ब्राह्मणों ने अपना आराध्‍य माना हुआ है। एक पक्ष के तौर पर देखा जाये तो यह ठीक लग सकता है परंतु समग्रता में भगवान परशुराम न तो ब्राह्मणों के हितैषी थे और ना ही क्षत्रियों के विरोधी। वो तो आतताइयों के विरोधी थे और निर्बलों के रक्षक।
मेरा आशय सिर्फ इतना है कि मात्र मूर्ति की आराधना करके भगवान परशुराम के वास्‍तविक धर्म को नहीं जाना जा सकता। परशुराम धर्म भारत की जनता का धर्म है परशुराम भारत की जागरूक जनता के प्रतीक थे।

अब देखिए न कि राष्‍ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने तो इसी ”परशुराम धर्म” पर ही ”परशुराम की प्रतीक्षा” लिख दी, उनकी इस काव्‍यकृति से मैं ही क्‍या कोई भी आतताइयों को ललकार सकता है। आज जबकि सभी अपने-अपने स्वार्थ भाव के पोषण में लगे हैं तब आवश्यकता है एक ऐसे धर्म की जो सर्वजन हितकारी हो और लोगों के लिए हो। परशुराम धर्म वह धर्म है जो पौरुषमयी चेतना का वाहक है, अर्थात् अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए आज के युग का एकमात्र धर्म यही है।

परशुराम धर्म एक दाहक धर्म अवश्य है पर उसमें प्रासंगिक औचित्य भी है, और समय की मांग भी यही है। यह समय की आवाज को न सुनना वालों के लिए यह उनके बहरेपनन की गवाही भी है और कायरता एवं नपुंसकता का स्वीकार्य भी।

राष्‍ट्रकवि दिनकर के अनुसार इतने गूढ़ संदेशों को धारण करने वाला भगवान परशुराम का धर्म ही परशुराम धर्म कहलाया तथा इस धर्म के निर्वाहक के लिए 8 आवश्यक तत्व हैं पहला- स्वतंत्रता की कामना, दूसरा -वीर भाव , तीसरा- जागृति,चौथा- निवृत्ति मूल्क मार्ग का परित्याग,पांचवां- वर्ग वैमनस्य का विरोध,छठवां- भविष्य के प्रति सतर्क तथा आस्था मूल्क दृष्टि,सातवां – परशुराम धर्म की महत्ता और औचित्य जीवन और आठवां तत्‍व है- जीवन मानकर सिर ऊंचा कर जीवित करना।

आज अधिक न लिखते हुए मेरे साथ आप भी पढ़िये परशुराम की प्रतीक्षा के ये अंश जो कालजयी है…आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि अपने रचनाकाल में थे।

तीन खंडों में लिखी गई इस कविता -”परशुराम की प्रतीक्षा” का (शक्ति और कर्तव्य) कुछ भाग मुझे यहां उद्धृत करना अधिक प्रिय लगा- आप भी पढ़ें।

वीरता जहां पर नहीं‚ पुण्य का क्षय है‚

वीरता जहां पर नहीं‚ स्वार्थ की जय है।

तलवार पुण्य की सखी‚ धर्मपालक है‚

लालच पर अंकुश कठिन‚ लोभ–सालक है।

असि छोड़‚ भीरु बन जहां धर्म सोता है‚

पातक प्रचंडतम वहीं प्रगट होता है।

तलवारें सोतीं जहां बंद म्यानों में‚

किस्मतें वहां सड़ती हैं तहखानों में।

बलिवेदी पर बालियें–नथें चढ़ती हैं‚

सोने की ईंटें‚ मगर‚ नहीं कढ़ती हैं।

पूछो कुबेर से कब सुवर्ण वे देंगे?

यदि आज नहीं तो सुयश और कब लेंगे?

तूफान उठेगा‚ प्रलय बाण छूटेगा‚

है जहां स्वर्ण‚ बम वहीं‚ स्यात्‚ फूटेगा।

जो करें‚ किंतु‚ कंचन यह नहीं बचेगा‚

शायद‚ सुवर्ण पर ही संहार मचेगा।

हम पर अपने पापों का बोझ न डालें‚

कह दो सब से‚ अपना दायित्व संभालें।

कह दो प्रपंचकारी‚ कपटी‚ जाली से‚

आलसी‚ अकर्मठ‚ काहिल‚ हड़ताली से‚

सी लें जबान‚ चुपचाप काम पर जायें‚

हम यहां रक्त‚ वे घर पर स्वेद बहायें।

हम दे दें उस को विजय‚ हमें तुम बल दो‚

दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।

हों खड़े लोग कटिबद्ध वहां यदि घर में‚

है कौन हमें जीते जो यहां समर में?


गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?

शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?

उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,

तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;

सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,

निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;

गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,

तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं;

शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,

शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का;

सारी वसुन्धरा में गुरु-पद पाने को,

प्यासी धरती के लिए अमृत लाने को

जो सन्त लोग सीधे पाताल चले थे,

(अच्छे हैं अबः; पहले भी बहुत भले थे।)

हम उसी धर्म की लाश यहाँ ढोते हैं,

शोणित से सन्तों का कलंक धोते हैं।

  • रामधारी सिंह ‘दिनकर’

अलकनंदा सिंंह

इस्तीफे के बाद खाली सीट पर अपनी पसंद का सांसद बनाना चाहते हैं आजम

संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश की रिक्त दो महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों के लिए के लिए जुलाई में मतदान होना है. इसमें से एक सीट सपा प्रमुख अखिलेश यादव और दूसरी सीट आजम खान के लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण खाली हुई है. दोनों ने ही विधायकी का चुनाव जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. अखिलेश यादव जहां आजमगढ़ से सांसद थे वही आजम खान रामपुर से. आजमगढ़ से डिंपल यादव के चुनाव लड़ाए जाने की चर्चा है, वहीं रामपुर से आजम की जगह कौन चुनाव लड़ेगा? यह तय नहीं हो पा रहा है. वैसे उम्मीद यही थी कि आजम की जगाह उनके किसी पसंद के ही नेता को चुनाव लड़ाया जाएगा, लेकिन आजम ने जिस तरह से अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, उसको देखते हुए कोई भी विश्वास के साथ यह नहीं कह सकता है की रामपुर लोकसभा के उपचुनाव के लिए कौन अखिलेश यादव की पसंद बनेगा.राजनीति के गलियारों में चर्चा यह भी है कि आजम की अखिलेश यादव से नाराजगी की असली वजह रामपुर लोकसभा उप चुनाव ही हैं. आजम खान इस समय दबाव की राजनीति कर रहे हैं, वह जानते हैं कि समाजवादी पार्टी ही नहीं अन्य किसी दल में भी उनके कद का कोई मुस्लिम नेता नहीं है. समाजवादी पार्टी में आजम के बाद मुस्लिम चेहरे के रूप में संभल के सांसद शफीक उर रहमान बर्क और मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन ही नजर आते हैं. वह भी आजम खान के साथ नजर आ रहे हैं.संभल के सांसद बर्क भी आजम के सुर में सुर मिलाते हुए अखिलेश को लेकर सख्त बयान दे चुके हैं, जो अखिलेश की परेशानी बढ़ाने के लिए काफी है। वहीं मुरादाबाद से सांसद एस. टी. हसन भी आजम खान प्रकरण से खुश नहीं नजर आ रहे हैं। यह और बात है कि इन दोनों नेताओं का प्रभाव केवल इनके इलाके और जिले तक ही सीमित है। दिग्गज नेता अहमद हसन के निधन और आजम खान की नाराजगी के बाद समाजवादी पार्टी में मुस्लिम लीडरशिप खाली नजर आ रही है।
प्रदेश में अन्य मुस्लिम नेताओं की बात की जाए तो अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबली ही नजर आते हैं,पर योगी सरकार का बुलडोजर चलने के बाद इनकी हैसियत ना के बराबर हो गई है,हालांकि अंसारी फैमिली में अफजाल अंसारी सांसद हैं, जबकि मुख्तार के बेटे अब्बास और बड़े भाई सिगबुतल्लाह के बेटे मन्नू अंसारी इस बार विधायक चुने गए हैं। पूर्व विधायक इमरान मसूद और पीस पार्टी बनाकर सियासक कर रहे डॉक्टर अयूब के सितारे भी गर्दिश में ही नजर आ रहे हैं। वहीं कैराना विधायक नाहिद हसन जेल में हैं.
खैर, बात मुस्लिम बहुल सीटों की की जाए तो उत्तर प्रदेश विधान विधानसभा की 403 सीटों में से करीब 150 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का असर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा पश्चिमी यूपी में मुसलमान की बड़ी आबादी है। सिर्फ पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी मुसलमान हैं। पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं, जहां विधानसभा की 136 सीटें हैं। जयंत भी आजम खान के परिवार से मिलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर्स को साधना चाहते हैं। इसीलिए शिवपाल यादव से लेकर कांग्रेस और आजाद समाज पार्टी भी आजम पर डोरे डालने में लगी है। ओवैसी सपा से नाराज आजम को खुला निमंत्रण दे चुके हैं.
लब्बोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में मुसलमानों की अखिलेश-मुलायम से नाराजगी की वजह से यूपी का सियासी गणित दिलचस्प हो गया है। आजम के मीडिया सलाहकार शानू ने ईद तक आजम के बाहर आने की उम्मीद जाहिर कर दी है। लेकिन ऐसा हो ना सका. इसी के बाद आजम खान के विधायक पुत्र अब्दुल्ला ने एक ट्वीट करके अखिलेश को खूब खरी खरी सुनाई, गौरतलब हो आजम को एक मुकदमे को छोड़कर सभी में जमानत मिल चुकी है. ईद पर आजम के समर्थकों ने अखिलेश को निशाने पर लिया तो वहीं शिवपाल यादव का दर्द भी ईद की मुबारकबाद देते समय सामने आ गया. उन्होंने कहा जिसको हमने सीचा उन्होंने ही हमको रौन्द दिया. उधर,रामपुर के गलियारों में जो चर्चा है उसके अनुसार यदि अखिलेश बगावती तेवर दिखा रहे आजम खान को आश्वासन दे दें कि रामपुर लोकसभा चुनाव के लिए उनकी पसंद का प्रत्याशी मैदान में उतारा जाएगा तो आजम की नाराजगी काफी कम हो सकती है.आजम खां के इस्तीफा देने के कारण रामपुर लोकसभा सीट पर जुलाई तक उपचुनाव होना है। आजम खां इस सीट पर अपने परिवार से ही टिकट चाहते हैं। अभी तक अखिलेश ने कोई वादा नहीं किया है कि उनके परिवार से ही किसी को टिकट देंगे। जाहिर सी बात है कि आजम खां अखिलेश से पक्का वादा चाहते हैं और जब तक यह वादा मिल नहीं जाता, उनकी नाराजगी बनी रहेगी।रामपुर से दस बार के एमएलए आजम खान फिलहाल सीतापुर जेल में हैं। वह 2019 में रामपुर से सांसद चुने गए थे। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में विधायक का चुनाव लड़े। उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि सूबे से सत्ता परिवर्तन होगा और सपा सरकार आने पर आजम को रिहाई होगी। सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की आस भी थी, लेकिन आजम तो चुनाव जीते लेकिन सपा सत्ता में आने से वंचित रह गई।तब माना गया कि समाजवादी पार्टी आजम खान को विधानसभा में नेता विपक्ष बनाएगी, उसके बाद आजम के ऊपर कानूनी शिकंजा ढीला पड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने सांसद का पद भी छोड़ दिया, लेकिन अखिलेश यादव खुद नेता विपक्ष बन गए। इससे आजम समर्थकों मे नाराजगी सामने आई। उनके मीडिया प्रभारी फसाहत शानू ने बाकायदा मीडिया के सामने सपा और अखिलेश पर आजम का साथ नहीं देने का आरोप लगाया। उसके बाद जगह-जगह से आजम की रिहाई की आवाज उठने लगीं। सूबे के कई सपाइयों ने अपने पद से आजम के पक्ष में इस्तीफा दे दिया।

जाति-धर्म के नाम पर बढ़ता उन्माद देश व समाज के लिए घातक

दीपक कुमार त्यागी
आजकल देश में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी के त्यौहारों का सीजन चल रहा है, कायदे में तो अधिकांश लोगों को कम से कम इस दौर में पूजापाठ इबादत में व्यस्त होना चाहिए था, लोगों के लिए गलत कार्य करने पूर्ण रूप से वर्जित होने चाहिए थे। लेकिन इस वक्त देश की राजधानी दिल्ली से लेकर के देश के अलग-अलग शहरों में रामनवमी व हनुमान जन्मोत्सव के धार्मिक जुलूसों पर पथराव के चलते जबरदस्त ढंग से हंगामा बरपा हुआ है, देश में धर्म पर आधारित राजनीति चंद दिनों में ही अपने अधर्म के चरम पर पहुंच गयी है। हालांकि इन हंगामा बरपाने वाले देशद्रोही लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही भी शासन-प्रशासन के द्वारा लगातार चल रही है, कहीं पर दंगा फसाद में शामिल लोगों के घरों पर सिस्टम बुलडोजर चलवा रहा है, कहीं इन देशद्रोही लोगों पर  एनएसए तक लगाई जा रही है। वैसे देखा जाये तो दिलोदिमाग को बुरी तरह से झकझोर देने वाली दंगा फसाद की स्थिति देश में ना जाने क्यों अब आयेदिन बनने लग गयी है, यह स्थिति देश के नियम कायदे, कानून व तरक्की पसंद देशभक्त देशवासियों को बहुत ज्यादा चिंतित करने का कार्य कर रही है। क्योंकि यह देशभक्त लोग तो दिन-रात मेहनत करके देश के विकास को एक नयी तेज रफ्तार देने का कार्य करते हैं, वहीं देश के अंदर छिपे हुए बैठे चंद देशद्रोही अराजक तत्व कभी जाति, कभी धर्म, कभी अमीर, कभी गरीब, कभी शहर, कभी गांव, कभी मोहल्ले, कभी भाषा, कभी वेशभूषा, कभी पहाड़, कभी मैदान, कभी प्रदेश आदि के नाम पर लोगों की बीच मतभेद पैदा करके उनको आपस में लड़वा कर उन्माद फ़ैलाने का कार्य करते हैं। लेकिन सबसे बड़े अफसोस की बात तब होती है जब देश व समाज के हित में आयेदिन मंचों से सार्वजनिक रूप से बड़ी-बड़ी बातें करने वाले पक्ष विपक्ष के चंद राजनेता भी अपने एक क्षणिक राजनीतिक स्वार्थ के लिए इन देशद्रोही अराजक तत्वों को पूरा संरक्षण देने का कार्य करते हैं। आज के समय में सभ्य समाज के लोगों के सामने विचारणीय प्रश्न यह है कि देश में जिस तरह से दिन-प्रतिदिन तेजी के साथ ऐसे हालात बनते जा रहे हैं कि बिना सिर पैर की बातों को लेकर भी एक ही पल में दंगा फसाद शुरू हो जाता है, वह स्थिति देश व समाज हित के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है और उस पर तत्काल लगाम लगाने की आवश्यकता है। आज समय की मांग है कि देश के विकास की तेज गति को अनवरत बरकरार रखने के लिए देशहित में तत्काल जाति-धर्म के नाम पर होने वाले आयेदिनों के हंगामे, दंगा-फसाद, उन्माद, तुष्टिकरण व धार्मिक कट्टरवाद पर शासन व प्रशासन का सख्ती से नियंत्रण करना बेहद आवश्यक है‌। 
*”हाल के कुछ दिनों में घटित या फिर पूर्व में घटित घटनाओं के समय उत्पन्न हालात का निष्पक्ष रूप से आंकलन करें, तो देश में अब वह समय आ गया है कि जब केन्द्र व प्रत्येक राज्यों की सरकारों को अपने वोट बैंक की राजनीति को तत्काल त्याग कर लोगों को देश व समाज के हित में नियम कायदे व कानून का सख्ती से पालन करने के लिए बाध्य करना ही होगा, उनको देश में पूर्ण अनुशासित ढंग से रहना सिखाना ही होगा। वैसे भी देश में अब वह समय आ गया है जब सरकार व सिस्टम को लोगों को प्यार से व पूर्ण सख्ती के साथ जो व्यक्ति जिस भाषा में समझें उसे समझना होगा कि हमारा प्यारा देश संविधान से चलता है ना कि किसी भी  जाति या धर्म के धार्मिक ग्रंथ से चलता है, इसलिए जिस व्यक्ति को भी भारत देश में रहना है उसके लिए संविधान के द्वारा तय नियम कायदे कानून व व्यवस्था सर्वोपरि है।”*
देश में आज भी बहुत सारे ऐसे लोग जीवित हैं जिन्होंने देश की आज़ादी के बाद का वह कठिन दौर भी देखा था, जब देश में एक छोटी सूई से लेकर के पानी के विशाल जहाज़ तक के लिए हम लोगों को विदेशी देशों पर पूरी तरह से निर्भर रहना पड़ता था।  लेकिन गर्व की बात यह है कि आज हम लोग अपने पूर्वजों के ज्ञान, आविष्कार व मेहनत की बदौलत देश में अनगिनत छोटे बड़े प्रोडक्ट का उत्पादन करके देश का नाम दुनिया में रोशन करके अधिकांश में आत्मनिर्भर बन गये हैं। वैसे भी हम लोगों को यह समझना होगा कि देश अपने नीतिनिर्माताओं की बेहद कुशल कारगर रणनीति और दुनिया भर में अपार संभावनाओं से परिपूर्ण विभिन्न अवसरों को हासिल करने के चलते मेहनत के दम पर बहुत तेजी के साथ विकास के पथ पर अग्रसित हो रहा है, इसलिए इस विकास के पथ पर किसी भी प्रकार का कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं होना चाहिए, लेकिन कुछ लोग हैं जो कि दंगा फसाद व अनुशासनहीनता करके विकास के पथ पर व्यवधान उत्पन्न करके सबकी मेहनत पर पानी फेरना चाहते हैं, सरकार व सिस्टम को ऐसे देशद्रोहियों के मंसूबे को कामयाब होने से रोकना होगा, हम लोगों को भी उनके झांसे में आने से खुद को बचना होगा और देश को भी बचाना होगा। 
हम लोगों को अपने इतिहास से सबक लेना होगा कि आजादी के बाद से लेकर आज तक ना जाने कितनी बार देश में चंद लोगों के द्वारा ओछी राजनीति व क्षणिक स्वार्थ के चलते छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाकर दंगा फसाद करवाने का कार्य किया है, उनके उकसावे में आकर के चंद लोगों ने अपने ही हाथों एक दूसरे के घरों को जलाने व एक दूसरे की हत्या तक करने का दुस्साहस किया है। वास्तव में देखा जाये तो यह लोग हमारे देश व समाज के सबसे बड़े दुश्मन हैं, क्योंकि इनके द्वारा दंगा फसाद को अंजाम देकर ना सिर्फ इंसान व इंसानियत की हत्या कराने का जघन्य अपराध किया जाता हैं, बल्कि इन लोगों की दंगा-फसाद की घटनाओं ने देश के विकास में बार-बार अवरोध उत्पन्न करने का कार्य किया है, इन चंद गलत लोगों की हरकतों की वजह से पूरी दुनिया में देश की छवि खराब होने का कार्य होता है।
*”वैसे देखा जाये तो देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक में जाति-धर्म की आड़ में होने वाले आयेदिन के इन दंगा फसादों ने भारत की बहुत ही शानदार और गौरवशाली बहुलतावादी संस्कृति को बेहद गहरे जख्म देने का कार्य किया है, इन हालातों ने लोगों के बीच एक दूरी बनाकर दीवार खड़ी करने का कार्य किया है, समाज  में लोगों के बीच प्यार-मोहब्बत आपसी भाईचारे व विश्वास को बुरी तरह से छिन्न-भिन्न करने का कार्य किया है। देश में बहुत तेजी से बढ़ते धार्मिक उन्माद, धार्मिक कट्टरवाद ने आपसी प्यार-भाईचारे को कम करके लोगों के बीच एक गहरी खाई खोदने का कार्य कर दिया है, जिसको देश व समाज हित में अधिक गहरी होने से तत्काल रोकना होगा, हालात को ठीक रखने के लिए सरकार को जल्द  से जल्द जाति धर्म व वोट बैंक को देखें बिना देश में सभी लोगों को अनुशासन में रहना सिखाने के लिए तत्काल ही ठोस प्रभावी कदम धरातल पर उठाने होंगे।”*
वैसे भी हम सभी देशवासियों को समय रहते यह समझना होगा कि देश में अमीर-गरीब, जाति-धर्म, भाषा-क्षेत्र आदि जैसे बेहद संकीर्ण आधारों पर आम लोगों को बांटकर उनके बीच विवाद पैदा करने का कार्य कुछ स्वार्थी लोगों के द्वारा अपनी क्षणिक स्वार्थपूर्ति के लिए बेहद चतुराई के साथ किया जा रहा है, इसलिए देश व समाज हित में अब हम लोगों को ऐसे धूर्त लोगों के झांसे में आने से बचना होगा। वैसे देश में जाति-धर्म के नाम पर आयेदिन बहकावे में आकर दंगा फसाद करने वाले लोगों के लिए कम से कम यह जानना बेहद जरूरी है कि भारत दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जहां पर सभी जाति व सभी धर्मों को एक समान पूर्ण स्वतंत्रता मिली हुई है, लेकिन फिर भी धर्म की आड़ लेकर के कुछ संगठन व कुछ लोग आयेदिन लोगों को बरगला कर माहौल खराब करने का कार्य करते रहते हैं, जो कि सरासर ओछी राजनीति से प्रेरित है। मुझे बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि देश में जिस तरह से अपने-अपने धर्म की आड़ में एक-दूसरे के धर्म के लोगों को चिढ़ाने का कार्य पिछले कुछ वर्षों से किया जा रहा है, वह देश की एकता अखंडता के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। समाज को तोड़ने वाली ऐसी हरकत करने लोगों को यह समझना होगा कि उनकी इस हरकत के चलते धर्म के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाने वाले तथाकथित ठेकेदार व चंद स्वार्थी राजनेता देश के आम जनमानस के बीच एक बेहद जहरीली विद्धेषपूर्ण मानसिकता का विकास करने का कार्य कर रहे हैं, जो कि देश व सभ्य समाज दोनों के लिए बेहद घातक है। वैसे भी हम लोगों को समय रहते यह समझना होगा कि सच्चा धर्म हमें अनुशासन में रहकर जीवन जीना सिखाता है, ना कि धर्म के नाम पर दंगा फसाद, अनुशासनहीनता करना सिखाता है। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों धर्म के नाम पर आयेदिन देश में अधर्म होने लगा है दंगा-फसाद, लूटखसोट व निर्दोष लोगों की हत्याएं तक होने लगी हैं। जो धर्म सभी लोगों को जीवन देना सिखातें है, अफसोस आयेदिन उस धर्म की आड़़ लेकर ही धर्म के तथाकथित ठेकेदार व उनके अंधभक्त लोगों की उन्मादी भीड़ के द्वारा अज्ञानी लोगों को उकसा कर मानव व मानवता की हत्याएं बैखौफ होकर करवाने का अपराध किया जा रहा है।
वैसे देखा जाये तो पूरी दुनिया में धार्मिक उन्माद व कट्टरवाद अपने पूर्ण चरम पर है, धर्म की ओट लेकर के आयेदिन अधर्म के कार्य हो रहे हैं, तथाकथित स्वघोषित धर्म के ठेकेदार व चंद लोग इंसान व इंसानियत के दुश्मन बने हुए हैं, ऐसे लोगों की वजह से आज पूरी दुनिया के बहुत सारे देशों में जबरदस्त हंगामा बरपा हुआ है, उस हालात से अब हमारा देश भारत भी अछूता नहीं रहा है। एक तरफ तो हमारा देश भयावह कोरोना महामारी से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ मंदी का भयंकर प्रकोप है, देश में तेजी से बढ़ती मंहगाई व बेरोजगारी की समस्या की जबरदस्त मार वाला दौर चल रहा है। लेकिन अफसोस कुछ राजनेताओं व धर्म के तथाकथित ठेकेदारों के इशारों पर कुछ नादन लोगों की भीड़ को अपनी गंभीर समस्याओं, रोजीरोटी-रोजगार व बच्चों के उज्जवल भविष्य की योजनाओं पर काम करने की कोई चिंता नहीं है, इन चंद लोगों को ऐसे मुश्किल समय में भी देश में दंगा फसाद करके समस्याओं को और गंभीर करने में आनंद आ रहा है। मेरा ऐसे राजनेताओं व धर्म के तथाकथित ठेकेदारों से केवल एक सवाल है कि क्या वो भी इस नफ़रती हिंसक भीड़ का हिस्सा कभी खुद व अपने बच्चों को बनाना चाहेंगे, मुझे पूरा विश्वास है कि सभी का जवाब नहीं में होगा, तो फिर यह चंद लोग देश में दूसरों के बच्चों के लिए नफ़रत के बीज क्यों बोने का कार्य कर रहे हैं।

आज हम लोगों को शांत मन से विचार करना चाहिए कि धर्म का मूल आधार अनुशासित जीवन, प्रेम व सद्भाव होता है, लेकिन आज के दौर में देखने वाली बात यह है कि इन बातों पर आखिर अमल कितने लोग व धर्म के कितने तथाकथित ठेकेदार करते हैं। हम लोगों को यह भी ध्यान रखना होगा कि सत्ता हासिल करने के लालच में देश के चंद राजनेताओं के द्वारा धर्म के कुछ तथाकथित ठेकेदारों के सहयोग से आम लोगों को बरगला कर धर्म के नाम पर नफ़रत की कभी ना टूटने वाली मजबूत दीवार खड़ी करने का कार्य किया जा रहा है, इस साजिश को हम लोगों को समय रहते समझकर देश व समाज के हित में हर हाल में नाकाम करना होगा। वैसे भी देखा जाये तो धर्म की आड़ लेकर हंगामा बरपाने वाले लोगों को क्या कभी यह महसूस होता है कि वह और उनका परिवार अब पूर्ण रूप से सुरक्षित है तो इसका जबाव भी नहीं में ही होगा, तो फिर धर्म की आड़ में बार-बार अधर्म क्यों। आज हम लोगों के सामने चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि देश में तेजी से बढ़ते हुए धार्मिक उन्माद व कट्टरवाद से किस प्रकार से जल्द निपटा जाये। किस तरह से धर्म की आड़ में अधर्म को अंजाम देकर देशद्रोही बनने पर उतारू चंद लोगों को यह बात समझाई जाये कि बेशक अपने-अपने धर्म के अनुसार सभी धर्मों में पूजा अर्चना करने का तरीका व स्थलों की बनावट अलग-अलग हैं, धार्मिक तरीकें अलग है, लेकिन जहां तक दुनिया के प्रत्येक सच्चे धर्म की बात है तो धर्म तो केवल इंसान व इंसानियत की रक्षा करते हुए अनुशासित जीवन जीने का संदेश ही देते है, लेकिन फिर भी धर्म के नाम आयेदिन इंसान व इंसानियत की जघन्य हत्याएं चंद स्वार्थी व धूर्त लोगों के चलते हो रही हैं।इसलिए समय रहते देश के सभी राजनेताओं, नीतिनिर्माताओं व सिस्टम में बैठे लोगों को अब यह समझना होगा कि अब देश व समाज हित में वह समय आ गया है, जब बिना किसी जाति-धर्म के भेदभाव के आधार के उन्मादियों व कट्टरपंथियों की भीड़ से सख्ती के साथ निपटने का कार्य करना होगा, तब ही भविष्य में हमारे प्यारे देश में अमनचैन, प्यार, मोहब्बत व आपसी भाईचारे के साथ शांति कायम रह सकती है और देश विश्व गुरु बनने के मार्ग पर तेजी के साथ अग्रसर रह सकता है।।

स्वाध्याय से लाभ और न करने से हानि होती है

-मनमोहन कुमार आर्य
मनुष्य शरीर में एकदेशी, अल्प परिमाण, सूक्ष्म व चेतन आत्मा का निवास होता है। चेतन पदार्थ का गुण-धर्म ज्ञान प्राप्ति व ज्ञानानुरूप कर्मों को करके अपनी उन्नति करना होता है। जीवात्मा व मनुष्य पर यह बात लागू होती है। संसार में जीवात्माओं से भिन्न एक परम सत्ता ईश्वर की भी है जो सत्य, चेतन और आनन्दस्वरूप है। वह ज्ञानवान् एवं सर्वशक्तिमान है। ईश्वर सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञ भी है। सर्वज्ञ होने से उसका ज्ञान नित्य व सदा रहने वाला है। उसे ज्ञान प्राप्ति व ज्ञान वृद्धि की आवश्यकता नहीं है। जीवात्मा का मुख्य कार्य ईश्वर को जानना और उसके सर्वज्ञता के ज्ञान से अपनी आत्मा की उन्नति में यथाशक्ति ज्ञान को प्राप्त करना होता है। परमात्मा ने अपना ज्ञान सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न आदि चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के रूप में दिया था। वह ज्ञान आज भी उपलब्ध एवं सुलभ है। इस वेदज्ञान की हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं में टीकायें भी हमें सुलभ है जिसका श्रेय ऋषि दयानन्द तथा आर्यसमाज को है। यदि यह दोनों न होते तो वर्तमान समय में वेदों का ज्ञान उपलब्ध होता, इसमें सन्देह है। स्वामी दयानन्द जी ने ही विलुप्त वेदों को प्राप्त कर अत्यन्त पुरुषार्थ कर वेद एवं वेदों में निहित ज्ञान को प्राप्त किया था जिसका ज्ञान उनका जीवन चरित्र पढ़कर होता है। उन्होंने वेदभाष्य भी किया है। उनका ऋग्वेद पर आंशिक तथा यजुर्वेद पर सम्पूर्ण वेदभाष्य उपलब्ध है। वेदों का ज्ञान ऐसा ज्ञान है जिससे मनुष्य की भौतिक, सामाजिक, आत्मिक तथा पारलौकिक उन्नति होती है। मनुष्य का वर्तमान जीवन भी सुखों से युक्त होता है तथा मृत्यु होने के बाद उसका पुनर्जन्म श्रेष्ठ मानव योनि में होने के साथ सुख प्राप्ति में भी वह ज्ञान व उसके कर्म सहयोगी एवं मोक्ष प्राप्ति में अग्रसर होते हैं। अतः सभी मनुष्यों को वेदों तथा वेदों पर ऋषियों द्वारा रचे गये ग्रन्थों का अध्ययन कर ईश्वरीय ज्ञान वेद से परिचित होना चाहिये और उसके अनुरूप आचरण कर अपने जीवन को शुद्ध, पवित्र और श्रेष्ठ बनाना चाहिये।

मनुष्य को वेदज्ञान सहित उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदभाष्यभूमिका, संस्कार विधि, रामायण, महाभारत एवं यथासम्भव प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिये और उनमें निहित वेदानुकूल ज्ञान को ग्रहण व धारण करना चाहिये। ऐसा करके मनुष्य की शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति होती है। स्वाध्याय करने से हमें यह ज्ञात होता है कि हम कौन व क्या हैं? हम संसार में क्यों आये हैं? हमें क्या करना है और किस लक्ष्य की प्राप्ति करनी है? हमें यहभी ज्ञात होता है कि हमें अपने अनेक पूर्वजन्मों में किये कर्मों को भोगना है और इस जन्म में वेदानुकूल व वेदोक्त कर्मों को करते हुए योग, ध्यान, साधना, यज्ञ एवं उपासना आदि से ईश्वर को प्राप्त होकर उसका साक्षात्कार करना है। ईश्वर के साक्षात्कार के बिना हमें आवागमन से अवकाश नहीं मिल सकता। आवागमन अर्थात् पुनर्जन्म होने पर हमें सुख व दुःख दोनों की प्राप्ति होती रहेगी। यह उत्तम स्थिति नहीं है। उत्तम तथा करणीय स्थिति हमें मोक्ष की प्राप्ति के लिये शास्त्रों व सत्यार्थप्रकाश के नवम् समुल्लास में बताये गये कर्मों व कर्तव्यों का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करना है। हमें ऋषि-मुनियों सहित राम, कृष्ण, चाणक्य तथा ऋषि दयानन्द जी को अपना आदर्श बनाना होगा। ऐसा करते हुए हम कल्याण पथ पर आगे बढ़ सकते हैं और भविष्य में होने वाले जन्मों में हम मोक्ष प्राप्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियों को प्राप्त हो सकते हैं। यह भी जान लें कि मोक्ष कोई काल्पनिक ध्येय व लक्ष्य नहीं है। मोक्ष को तर्क एवं युक्ति के आधार पर सिद्ध किया जाता है। जो बात वेद, शास्त्र, तर्क, युक्ति एवं आप्त प्रमाणों से सिद्ध होती है वह निःसन्देह सत्य होती है। ऐसा ही सत्य मोक्ष व उसकी प्राप्ति करना भी है। यदि हम स्वाध्याय को पर्याप्त समय देंगे तो इससे हमारे ज्ञान में निरन्त वृद्धि होती रहेगी। इससे हमारा शरीर स्वस्थ एवं आयु भी सामान्य स्थिति में जीवन जीने से कुछ अधिक हो सकती है। हम रोगों से बचे रहेंगे। अतः हमें वैदिक शिक्षाओं का पालन करते हुए स्वाध्याय से युक्त जीवन व्यतीत करने का संकल्प लेकर जीवन व्यतीत करना चाहिये। 

हम जब स्वाध्याय की बात करते हैं तो हमें गुरुकुलीय शिक्षा पर भी विचार करना चाहिये। गुरुकुलीय शिक्षा मनुष्य को वेद एवं शास्त्रों के निकट ले जाती है। गुरुकुलीय शिक्षा में दीक्षित होकर हम संस्कृत भाषा व उसके व्याकरण से परिचित हो जाते हैं। ऐसा करके हम वेद, उपनिषद, दर्शन आदि ग्रन्थों को बिना टीका व भाष्यों की सहायता से अध्ययन कर सकते हैं। संस्कृत भाषा का अध्ययन कर मनुष्य को अन्य भाषाओं के ज्ञान की तुलना में सर्वाधिक सुख की प्राप्ति होती है। अतः हमें गुरुकुलीय शिक्षा अथवा जीवन में अन्य कार्यों को करते हुए संस्कृत भाषा के अध्ययन पर भी ध्यान देना चाहिये। यदि हम ऐसा करेंगे तो हमें निश्चय ही लाभ होगा। समाज में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि जो बिना गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण किये ही आर्यसमाज के बड़े विद्वान बने हैं। हम जब वेद मनीषी पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी के जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने डी.ए.वी, कालेज, लाहौर में भौतिक विद्याओं का अध्ययन किया था। वह एम.ए. फिजिक्स उत्तीर्ण थे। वह पूरे पंजाब में सर्वप्रथम आये थे। आर्यसमाज के सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने अपने प्रयत्नों से संस्कृत का अध्ययन किया था। वह ऐसे विद्वान बने जिन्होंने ‘टर्मिनोलोजी आफ वेदाज्’ अर्थात् वैदिक संज्ञा विज्ञान ग्रन्थ लिखा था जिसे आक्सफोर्ड के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया था। उन्होंने विदेशी विद्वानों की वेद विषयक मान्यताओं की समीक्षा भी की और उनकी मान्यताओं में न्यूनताओं व त्रुटियों पर प्रकाश डाला था। स्वाध्याय की प्रवृत्ति के कारण ही वह मात्र 26 वर्ष की आयु में देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गये थे। आज भी उनके ग्रन्थों, लेखों व उनके जीवन चरित को स्वाध्यायशील पाठक रुचि से पढ़ते हैं। जब हम ऋषि दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द तथा पं. लेखराम जी आदि महापुरुषों के जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो हम पाते हैं इन सबके जीवन में वेद-स्वाध्याय, इतर शास्त्रीय ग्रन्थों के स्वाध्याय व अध्ययन सहित महान पुरुषों की संगति व सत्संग का विशेष योगदान था। स्वाध्याय करते हुए मनुष्य के जीवन से पुरुषार्थ जुड़ ही जाता है। शास्त्रों में स्वाध्याय की महिमा बताते हुए कहा गया है कि स्वाध्याय करने वाले मनुष्य को वह सुख प्राप्त होता है जो पूरी पृथिवी को स्वर्ण आदि मूल्यवान रत्नों से ढक कर दान करने वाले मनुष्य को प्राप्त होता है। इससे स्वाध्याय की महिमा को जाना जा सकता है। 

हमने इस संक्षिप्त लेख में स्वाध्याय की महिमा व उससे होने वाले लाभों पर विचार किया है। हम आशा करते हैं कि हमारे बन्धु स्वाध्याय को अपने जीवन का नियमित अंग बनायें। सत्यार्थप्रकाश तथा ऋषि दयानन्द जी के सभी ग्रन्थों का अध्ययन कर उपनिषद, दर्शनों आदि वैदिक वांग्मय का अध्ययन करते हुए वेदों का अध्ययन करेंगे। वैदिक विद्वान स्वामी विद्यानन्द सरस्वती, आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार, पं. शिवशंकर शर्मा काव्यतीर्थ, स्वामी वेदानन्द सरस्वती जी आदि वैदिक विद्वानों के वेदानुकूल ग्रन्थों का अध्ययन करने के साथ यौगिक आचरण करेंगे और अपने जीवन की सर्वांगीण उन्नति करेंगे।

बैडरूम में सौतन और संतानोत्पति में बाधक बनते मोबाइल और लैपटॉप

-प्रियंका ‘सौरभ’

बैडरूम में देर रात तक मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप पर कार्य करने से पति-पत्नी के बीच विवाद बढ़ रहें है. आधुनिक युग के दम्पति साइको सेक्स डिसऑर्डर के शिकार हो रहें है. शरीर में डाई हाइड्रोक्सी इथाइल अमाइन नामक रसायन का स्तर तेजी से घट रहा है. जिसकी वजह से पुरुष व महिला का हॉर्मोन साइकिल प्रभावित हो रहा है. जो अब बच्चे पैदा करने में मुश्किल खड़ी कर रहा है, संतानोत्पति में बाधक बन रहा है.

इंडियन मेडिकल एजुकेशन के रिसर्च के अनुसार कुदरत ने लड़कियों को एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन एवं लड़को को टेस्टोस्ट्रोन हॉर्मोन तोहफे में दिया है ताकि वो अपनी वंश बेल को आगे बढ़ा सके. मगर बदलती दिनचर्या और आधुनिक उपकरणों की लत के कारण इन होर्मोनेस का स्तर गड़बड़ा रहा है. जिस से आधुनिक दम्पति बाँझपन की समस्या से लड़ रहें है. इस से बचने के लिए हमें मोबाइल और लैपटॉप से दूरी बनानी होगी, लगातार शाम को पैदल चलने की आदत बनानी होगी. ऐसा करने से हॉर्मोन स्तर सही रहेगा और दांपत्य में खुशियाँ आएगी.

आंकड़े बताते है कि तलाक के मामलों में युवा पीढ़ी आगे है. इसके पीछे मुख्य कारण पति-पत्नी के बीच संबंधों में प्रगाढ़ता का न होना है. पोर्न साइट्स दाम्पत्य जीवन में खलल डाल रही है. तलाक के मामलों में नव दम्पति अधिक है. इंटरनेशनल फेडरेशन के अनुसार विवाह के लिए बेहतर उम्र युवती के लिए 22 और युवक के लिए 25 वर्ष होनी चाहिए. विलम्ब से विवाह विवाद का कारण बनते है. ऐसे में सन्तानोपत्ति की तरफ ध्यान ही नहीं जाता.

पिछले एक दशक में मोबाइल फोन के उपयोग में जबरदस्त वृद्धि हुई है और मानव स्वास्थ्य पर इन उपकरणों द्वारा उत्सर्जित रेडियो-फ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के संभावित खतरनाक प्रभावों के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं. प्रारंभिक अध्ययन सेल फोन के उपयोग और बांझपन के बीच एक संभावित लिंक का सुझाव देते हैं. हाल के एक अध्ययन में पाया गया कि सेल फोन का उपयोग शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता, व्यवहार्यता और आकारिकी को कम करके वीर्य की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.

पुरुष प्रजनन क्षमता पर मोबाइल फोन के हानिकारक प्रभाव के साक्ष्य अभी भी समान हैं क्योंकि अध्ययनों ने संभावित प्रभावों के एक व्यापक स्पेक्ट्रम का खुलासा किया है, जो मामूली प्रभावों से लेकर वृषण क्षति की परिवर्तनशील डिग्री तक है. हालांकि पिछले अध्ययनों ने पुरुष बांझपन में सेल फोन के उपयोग की भूमिका का सुझाव दिया था, पुरुष प्रजनन प्रणाली पर सेल फोन से उत्सर्जित ईएमडब्ल्यू की क्रिया का तरीका अभी भी स्पष्ट नहीं है. रेडियो-फ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स एक विशिष्ट प्रभाव, थर्मल आणविक प्रभाव या दोनों के संयोजन के माध्यम से प्रजनन प्रणाली को प्रभावित कर सकता है.

मानव कामुकता स्वस्थ जीवनशैली का महत्वपूर्ण घटक है लेकिन जब मोबाइल और लैपटॉप बेडरूम में रहेंगे तो इनका नशा दम्पतियों के वैवाहिक जीवन पर असर डालने लगते हैं. नयी टेक्नॉलजी के साथ विवादों की घटनाएं लगातार जन्म ले रही हैं. आपत्तिजनक साइटें दाम्पत्य जीवन में खलल पैदा करने लगीं हैं. साइको सेक्स डिस्आर्डर पैदा हो रहे हैं. डिस्आर्डर से ग्रसित दम्पतियों के विवादों के कारण हर महीने तलाक हो रहे हैं. यह तलाक नवविवाहित जोड़ों में ज्यादा हैं लेकिन 40 पार दम्पतियों में भी हो रहे हैं.

दिन में करीब 4 घंटे तक सेल फोन को सामने की जेब में रखने से भी अपरिपक्व शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि होती है. यह पुरुषों में उनकी प्रजनन क्षमता को कम करने वाले डीएनए को भी नुकसान पहुंचा सकता है. ओहियो (अमेरिका) के क्लीवलैंड क्लिनिक फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, सेल फोन के इस्तेमाल से शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता, व्यवहार्यता और सामान्य आकारिकी को कम करके वीर्य की गुणवत्ता कम हो जाती है. इसके अलावा, कई शोधकर्ताओं द्वारा यह पाया गया है कि उच्च और मध्यम आय वर्ग के 14 प्रतिशत जोड़ों को गर्भधारण करते समय समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

दरअसल, गर्भ धारण करने की कोशिश कर रही महिलाओं के लिए सेल फोन रेडिएशन का लगातार संपर्क बहुत हानिकारक माना जाता है. लंबे समय तक संपर्क और सेलुलर विकिरण से निकटता महिलाओं में बांझपन की ओर ले जाती है क्योंकि यह अंडाशय की सामान्य गतिविधि को प्रभावित करती है. डॉक्टर और विशेषज्ञ गर्भवती महिलाओं को स्वस्थ बच्चा पैदा करने के लिए अपने दैनिक सेल फोन के उपयोग की आदतों को बंद करने की सलाह देते हैं. सेल फोन द्वारा उत्पन्न विकिरण और विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को भ्रूण के विकास को प्रभावित करने के लिए भी जाना जाता है.

बेडरूम में मोबाइल-लैपटॉप सौतन बन गए हैं और सेक्स लाइफ को बिगाड़ रहे हैं. नए परिदृश्य में इसे साइबर विडो भी कहा जा रहा है. मोबाइल-लैपटॉप दम्पतियों के बीच विवाद के कारण बनते जा रहे हैं और तेजी से तलाक की वजह बन गए हैं. पति-पत्नी के बीच के विवाद धीरे-धीरे साइको सेक्स डिस्आर्डर के रूप में पनप रहे हैं जिसमें मारपीट तक की नौबत आ रही है. ऐसे में इन विवादों के बढ़ने से पहले ही दम्पतियों को नीम-हकीमों के पास नहीं जाना है. उन्हें मनोचिकित्सकों के पास जाकर अपनी समस्या का निदान कराना होगा.

इस बात में कोई दो राय नहीं कि तकनीक ने हमें पहले से कहीं ज्यादा काम करने के सक्षम बनाया है. वहीं दूसरी तरफ इसने लोगों को सकरात्मक और रचनात्मक सोच में भी बाधा पैदा करने का काम किया है. दुर्भाग्य की बात ये है कि बहुत से लोग शारीरिक रूप से भी तकनीक के लती हो गए हैं, जो सीधे तौर पर मानसिक और शारीरिक रूप से आपके स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है.

बहुत से लोगों ने टाइम पास करने के लिए फेसबुक और इंस्टाग्राम को अपना पसंदीदा ऐप बना लिया है, जिससे परिवार से उनका ध्यान बंट गया है. सोशल मीडिया पर बेवजह स्क्रॉल करने में समय बर्बाद करने के बजाय आप एक नया शौक आजमाएं जैसे कि किताब पढ़ना या फिर क्राफ्ट बनाना. इससे आपके ज्ञान चक्षु भी खुलेंगे औरआपकी समस्या का निदान होगा.

बुढ़ापे का दर्द


आज अपने ही घर से,बे घर हो गए।
जो कभी अपने थे,वे पराए हो गए।।

अपना घर होते हुए,वृद्धाश्रम चले गए।
कोई नही पूछता,वे वृद्ध कहां चले गए।।

जो जिगर के टुकड़े थे,वे दुश्मन हो गए।
पता नही वे आज ऐसे क्यों हो गए।।

हम मजबूत थे,आज मजबूर हो गए।
कभी असरदार थे,आज बेअसर हो गए।।

सुनता नही कोई हमारी सब बहरे हो गए।
जुबान होते हुए हमारे,पर हम गूंगे हो गए।।

हवा ऐसी कौन सी चली,सब बेदर्द हो गए।
जिनके हम हमदर्द थे,आज वे बेदर्द हो गए।।

ये सबकी बीती नही,अपनी बीती लिख गए।
भावना में बहकर,रस्तोगी सच्चाई लिख गए।।

आर के रस्तोगी

आप तो गुलाब है,कभी बबूल न बनिए।

आप तो गुलाब है,कभी बबूल न बनिए।
दुनिया में आप,कभी बे असूल न बनिए।।

अच्छा रास्ता,सभी को दिखाओ तुम।
किसी के रास्ते का,तुम सूल न बनिए।।

निमटा लो हर बात को ,तुम ख़ुद ही।
किसी बात के लिए,तुम तूल न बनिए।।

रक्खे याद तुम्हे,ये दुनिया अब सारी।
किसी के लिए भी,तुम भूल न बनिए।।

रोको किसी को मत,जो कही भी जा रहे।
करो उनकी मदद तुम,उनकी धूल न बनिए।।

कांटो के साथ कांटे बनो,उन्हे उखड़ दो।
रस्तोगी कहता है,उनके लिए फूल न बनिए।।

आर के रस्तोगी

सच में खुदा का सौवां नाम है नेक इंसान

—विनय कुमार विनायक
नहीं हिन्दू बनो ना हीं मुसलमान बनो,
ना किसी अनदेखे परखे को खुदा कहो!

न राम को खोजो मंदिर के भगवान में,
तुमसे अच्छा कोई राम हो सकता नहीं!

खुदा अगर कोई है, तो खुद तुम ही हो,
तुमसे अच्छा कोई खुदा हो सकता नहीं!

अगर कोई राम हो सकता है तो बंधुओं,
तुमसे अच्छा राम बन सकता कोई नहीं!

क्यों पचड़े में हो राम के होने न होने पे,
तुम्हीं चुनौती स्वीकारो राम बन जाने के!

खुदा की खासियत है ऐसी जो होता नहीं,
हुआ नहीं है कभी कोई खुदा जैसी हस्ती!

शख्सियत में कोई खुदा हुआ नहीं कभी,
खुदा का बनना पूरी तरह से बांकी अभी!

तुम खुदा बनकर पूराकर खुदा की कमी,
कि खुदा का अस्तित्व पूर्णतः आसमानी!

खुदा को देखने वाला अबतक हुआ नहीं,
खुदा को खोजो खुदा कहां बाहर खुद से!

बाहरी खुदा खुदगर्ज,खुशामद पसंद होते,
एक नेक खुदा तुम्हारे सिवा कौन होंगे?

सच में एक सौ नाम रखे गए खुदा के,
उसमें निन्यानबे नाम है सिर्फ नाम के!

सौवां नाम खुदा का खोजना संभव नहीं,
सौवां नाम खुदा का अबतक मिला नहीं!

खोजना है तो खोजकर देखो सौवां नाम,
एंजिल, बाइबल, कुरान, हदीस में खुदा के!

खुदा का असली नाम जो अबतक किसी
धर्मग्रंथ आसमानी किताब में दिखा नहीं!

उस खुदा के लिए फसाद कहां तक सही?
खुदा का असली नाम खाली है शून्य ही!

चाहे कहो राम या कि अल्लाह हू अकबर,
खुदा की सेहत पे पड़ता नहीं कोई असर!

खुदा के नाम के पीछे नाहक क्यों पड़े हो?
खुदा को छोड़ दो खुद की जगह इंसान हो!

सच में खुदा का सौवां नाम है नेक इंसान,
जो लिखे वेद की हर ऋचा आयत कुरान में!
—विनय कुमार विनायक

सांप्रदायिकता एक राजनीतिक हथियार बनी हुई है।

जोधपुर दंगा विशेष

-सत्यवान ‘सौरभ’

रोजमर्रा की भाषा में, ‘सांप्रदायिकता’ शब्द धार्मिक पहचान की रूढ़िवादिता को दर्शाता है। ये अपने आप में एक ऐसा रवैया है जो अपने ही समूह को एकमात्र वैध या योग्य समूह के रूप में देखता है, अन्य समूहों को निम्न, नाजायज और विरोध के रूप में देखता है। इस प्रकार सांप्रदायिकता धर्म से जुड़ी एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है। सांप्रदायिकता भारत में एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि यह तनाव और हिंसा का एक स्रोत रहा है। सांप्रदायिकता एक ऐसी राजनीति को संदर्भित करती है जो एक समुदाय को दूसरे समुदाय के शत्रुतापूर्ण विरोध में एक धार्मिक पहचान के इर्द-गिर्द एकजुट करने का प्रयास करती है। भारत में स्वतंत्रता पूर्व के समय से सांप्रदायिक दंगों का इतिहास रहा है, अक्सर औपनिवेशिक शासकों द्वारा अपनाई गई फूट डालो और राज करो की नीति के परिणामस्वरूप। लेकिन उपनिवेशवाद ने अंतर-सामुदायिक संघर्षों का आविष्कार नहीं किया और निश्चित रूप से इसे स्वतंत्रता के बाद के दंगों और हत्याओं के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

भारत में सांप्रदायिकता एक राजनीतिक हथियार बनी हुई है; राजनेताओं ने भारत में गंभीर सांप्रदायिक स्थिति पैदा करने में खलनायक की भूमिका निभाई है। 1947 में एक विशेष धार्मिक ‘समुदाय’ के नाम पर भारत के दर्दनाक विभाजन की जड़ में राजनीति थी। लेकिन विभाजन के रूप में भारी कीमत चुकाने के बाद भी, उसके बाद हुए कई दंगों में, हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, राजनीतिक दलों या उनके समर्थकों की भागीदारी पा सकते हैं। इसके साथ ही वोट बैंक के लिए तुष्टीकरण की नीति, समुदाय, संप्रदाय, उप-पंथ और जाति के आधार पर उम्मीदवारों का चयन और चुनाव के समय धार्मिक भावनाओं को भड़काने से सांप्रदायिकता का उदय हुआ। समुदाय को एकजुट करने के लिए, सांप्रदायिकता समुदाय के भीतर के भेदों को दबाती है और अन्य समुदायों के खिलाफ समुदाय की आवश्यक एकता पर जोर देती है।

आज सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि विकास की ताकतों ने भारत में सांप्रदायिक कारकों पर काबू क्यों नहीं पाया? भले ही भारत की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ हो लेकिन फिर भी भारतीय समाज के सामने कई चुनौतियाँ हैं, जो इसकी विविधता के लिए खतरा बनती जा रही हैं। जनसंख्या, गरीबी, निरक्षरता और बेरोजगारी बहुत सारी मजबूरियां पैदा करती है, खासकर युवा पीढ़ी के सामने। युवा पीढ़ी के कई लोग जो बेरोजगार हैं और गरीबी की स्थिति में हैं, सांप्रदायिकता जैसी बुराई में शामिल हो जाते हैं। साम्प्रदायिकता की समस्या को और गंभीर बनाने में बाहरी तत्वों (गैर-सरकारी तत्वों सहित) की भी भूमिका होती है। सोशल मीडिया ने ब्रेक-नेक गति से फर्जी खबरों को प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि हिंसा, घृणास्पद संदेशों के प्रचुर ऑडियो-विजुअल दस्तावेज लगभग तुरंत जनता तक पहुंचाए जाते हैं। हालांकि, अमानवीयता के इन ग्राफिक चित्रणों ने पछतावा नहीं किया है या मन नहीं बदला है; बल्कि, उन्होंने पक्षपात और कठोर रुख को गहरा किया है। मीडिया नैतिकता और तटस्थता का पालन करने के बजाय, अधिकांश मीडिया घराने विशेष राजनीतिक विचारधारा के प्रति झुकाव दिखाते हैं, जो बदले में सामाजिक दरार को चौड़ा करता है।

लोग अपने लिए सोचने के लिए सुसज्जित नहीं हैं और इससे वे स्वयं बुरे से अच्छे को अलग करने में सक्षम होने के बजाय आँख बंद करके ‘प्रवृत्तियों’ का अनुसरण करते हैं। बहुसंख्यक समूह अक्सर यह मानता है कि देश की प्रगति में उसका एकमात्र अधिकार है। यह हिंसा के कृत्यों की ओर जाता है जब छोटे समूह प्रगति के बहुसंख्यकवादी विचारों का विरोध करते हैं। इसके विपरीत, अल्पसंख्यक समूह जब भी अपने जीवन के तरीके को उल्लंघन से बचाने की कोशिश करते हैं, तो वे अक्सर खुद को ‘राष्ट्र-विरोधी’ होने के लिए दोषी पाते हैं। यह अक्सर समाज में हिंसा पैदा करता है। हमारे पास धार्मिक, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय या जातीय संघर्ष के उदाहरण है जो हमारे इतिहास के लगभग हर चरण में पाए जा सकते हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे पास धार्मिक बहुलवाद की एक लंबी परंपरा भी है, जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से लेकर वास्तविक अंतर-मिश्रण या समन्वयवाद तक है। यह समन्वित विरासत भक्ति और सूफी आंदोलन के भक्ति गीतों और कविताओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है सांप्रदायिक हिंसा वैचारिक रूप से गठबंधन राजनीतिक दलों के वोट बैंक को मजबूत करती है और समाज में एकजुटता को और बाधित करती है। यह लंबे समय तक सांप्रदायिक सद्भाव को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। इससे दुनिया के सामने बहुलवादी समाज के रूप में देश की छवि भी धूमिल होती है। सांप्रदायिक हिंसा धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व जैसे संवैधानिक मूल्यों को कम करती है।

सांप्रदायिक हिंसा पर लगाम लगाने के लिए पुलिस को पूरी तरह से तैयार होने की जरूरत है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए स्थानीय खुफिया नेटवर्क को मजबूत किया जा सकता है। शांति समितियों का गठन किया जा सकता है जिसमें विभिन्न धार्मिक समुदायों के व्यक्ति एक साथ मिलकर सद्भावना और साथी भावना फैलाने और दंगा प्रभावित क्षेत्रों में भय और घृणा की भावनाओं को दूर करने के लिए काम कर सकते हैं। यह न केवल सांप्रदायिक तनाव को दूर करने में बल्कि दंगों को फैलने से रोकने में भी कारगर होगा। शिक्षा के माध्यम से सभी स्तरों पर लोगों को डी-कम्युनिकेट करने की प्रक्रिया शुरू करने की आवश्यकता है। मूल्य-आधारित शिक्षा करुणा और सहानुभूति पैदा कर सकती है जो लोगों पर किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रभाव की संभावनाओं को कम कर सकती है। भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष से देखी गई बहुलवाद और एकता पर बल दिया जा सकता है। सांप्रदायिक विचारों और विचारधाराओं वाले नेता सरकार पर इस तरह से कार्य करने के लिए दबाव डालते हैं जो हमेशा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ होता है। यहीं पर बुद्धिजीवी और स्वयंसेवी संगठन सबसे प्रभावी हो सकते हैं। साइबर सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को घृणित सामग्री को विनियमित करने और अफवाहों और सांप्रदायिक तनाव को भड़काने वाली किसी भी तरह की सामग्री के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कहा जाना चाहिए।

भारत जैसे विविधता वाले देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना और बहुलवाद का सम्मान करना एक चुनौती हो है। हालांकि, बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता जैसे संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए देश के लोगों की सामूहिक अंतरात्मा को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। जहां एक ओर यह लोगों की असुरक्षा को ध्यान में रख सकता है, वहीं दूसरी ओर, यह राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। एक मजबूत राष्ट्र, जो अपनी समृद्धि के लिए एक साथ काम करने वाले समुदायों के योगदान से बना है, वैश्विक शांति और सद्भाव के रखरखाव में और योगदान दे सकता है।

— सत्यवान ‘सौरभ’,

ईद का चांद तो तुम्हे दिखाना ही पड़ेगा।

ईद का चांद तो तुम्हे दिखाना ही पड़ेगा।
आस्मां को ज़मीं पर तो झुकाना पड़ेगा।।

कब तक रखोगे तुम दो दिलो को अलग।
कभी न कभी तो उनको मिलाना पड़ेगा।।

कब तक रखोगे खूबसूरत चेहरा छिपाकर।
कभी न कभी तो उसको दिखाना पड़ेगा।।

ईद आई है तो उसे गले लगाना ही होगा।
कुछ न कुछ तो उसे हमे दिलाना पड़ेगा।।

जुदा कर दिया है इस कोरोना ने हमको।
एक दिन तो उसको हमे मिलाना पड़ेगा।।

बहुत देख ली हमने तुम्हारी हरकतों को।
कभी न कभी तुम्हे सबक सिखाना पड़ेगा।।

उम्मीद रखो सुबह को उजाला तो होगा।
रस्तोगी कहता है अंधेरे को जाना पड़ेगा।।

आर के रस्तोगी

अन्याय का संहार कर न्याय का राज सृजन करने वाले हैं ‘भगवान परशुराम’

मोहित त्यागी

शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत भगवान विष्णु के छठवें अवतार महर्षि भगवान परशुराम का जन्म
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की तृतीया तिथि यानी कि अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। देश-दुनिया में सनातन धर्म के अनुयायियों के द्वारा इस पावन दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान परशुराम का जन्म प्रसिद्ध महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के यहां हुआ था। सनातन धर्म के विभिन्न धर्म ग्रंथों के आधार पर व हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को दुनिया के सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक माना जाता है, उनके बारे में कहा जाता है कि कलयुग में आज के समय में भी भगवान परशुराम पृथ्वी पर मौजूद हैं, वह चिरंजीवी है। भगवान परशुराम को अन्याय का संहार करके पृथ्वी पर न्याय का सृजन करने वाले न्याय के देवता के रूप में सनातन धर्म के अनुयायियों के द्वारा पूजा जाता है। विभिन्न हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलने वाली कथाओं के अनुसार, धरती पर जब अन्याय, अधर्म और पापकर्म अपने चरम पर पहुंचा तो उस समय दुष्टों का विनाश करने के लिए ईश्वर ने स्वयं बारंबार अवतार लिया है, भगवान विष्णु ने भी स्वयं भगवान परशुराम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर दुष्टों का संहार किया था।

भगवान परशुराम को रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने गुजरात से लेकर केरल तक बाण चलाकर विशाल समुद्र को पीछे हटाकर पृथ्वी पर एक बहुत बड़ी नव भूमि निर्माण करने का कार्य किया था। मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भारत के अधिकांश ग्रामों को भगवान परशुराम ने ही बसाया था, इस वजह से वह भार्गव कहलाए।
हैहयवंशी राजा सहस्रबाहु अर्जुन का भगवान परशुराम के समय जनता के बीच भय और आतंक था, जनता उसके अत्याचारों से बेहद त्रस्त थी, अहंकार के मद में चूर यह राजा भार्गव आश्रमों के ऋषियों तक को आयेदिन सताया करता था, भगवान परशुराम ने उसके समूल वंश को समाप्त करने का कार्य किया था। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और संपूर्ण पृथ्वी को महर्षि कश्यप को दान कर दिया था। भगवान परशुराम ने सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए हर युग में अपनी सार्थकता सिद्ध की है। उन्होंने त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को मिथिलापुरी पहुंच कर अपने संशय के निवारण उपरांत उन्हें वैष्णव धनुष प्रदान किया था। उन्होंने उज्जैन में सांदीपनी ऋषि के आश्रम पधार कर वहां शिक्षा ग्रहण कर रहे साक्षात भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था।

सनातन धर्म के प्रकांड विद्वानों के अनुसार कलियुग में होने वाले भगवान विष्णु के दसवें कल्कि अवतार में भी भगवान कल्कि को भी भगवान परशुराम के द्वारा ही शिक्षा प्रदान की जाएगी। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम के निर्देशानुसार भगवान कल्कि भगवान शिव की तपस्या करके उनसे दिव्य अस्त्रों को प्राप्त करेंगे और पृथ्वी पर उत्पन्न सभी दुष्टों का संहार करेंगे। भगवान परशुराम इतने न्यायप्रिय थे कि उनके आगमन मात्र से ही समस्त प्रजा निर्भय हो जाती थी। भगवान परशुराम को पृथ्वी पर सामाजिक समानता, मानव कल्याण का प्रबल पक्षधर माना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जब-जब पृथ्वी पर दुष्टों ने अपनी ताकतों का ग़लत इस्तेमाल किया, तब-तब भगवान ने स्वयं अवतार लेकर धर्मपूर्वक उन अधर्मियों का विनाश करके मानवता की रक्षा करने का कार्य किय था। भगवान परशुराम इसके सबसे बड़े प्रतीक हैं, उन्होंने सदैव यह प्रयास किया कि शस्त्र एवं शास्त्र के ज्ञान को सुपात्र व्यक्ति को प्रदान करके मानवता की रक्षा की जाये। भगवान परशुराम ने शस्त्र एवं शास्त्र ज्ञान प्रदान करने के जो उच्च मापदंड स्थापित किए, वह बेहद अनुकरणीय हैं और मानव के कल्याण, मानवता की रक्षा के लिए, धर्म की रक्षा के लिए व न्याय के लिए प्राचीन काल में व आज के आधुनिक काल में भी बेहद प्रमाणिक हैं। मैं सर्वशक्तिमान भगवान परशुराम को कोटि कोटि नमन वंदन करता हूं।

भारत की गुलामी का कारण क्षत्रिय के सिवा सभी थे रणछोड़

—विनय कुमार विनायक
भारत में वर्ण व्यवस्था बंद घेरा,
बंद घेरे से निकल पाने में फेरा!
वर्ण और वर्ग में बहुत हीं अंतर,
वर्ग में वर्ग परिवर्तन के अवसर!

आज का गरीब कल होता अमीर
अमीरी गरीबी में बदलाव निरंतर!
प्रयत्न कर्म सश्रम के बलबूते पर,
वर्ग बदलना,नहीं भाग्य पे निर्भर!

वर्ण में कोई बदलाव चुनाव नहीं,
वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय,
वैश्य, शूद्र जैसे चार बंद घेरे बने
एक घर से दूजे में जाना मनाही!

शूद्र को बताए गए तुम शूद्र हो
पिछले जन्म के पापकर्म से ही,
तुम ब्राह्मण में जन्म ले सकते
इस जन्म में पुण्य कर्म कर के!

भंगी का भाग्य भंग हो गया है,
शूद्र को शुद्ध कर दिया गया है,
भंगी भाग नहीं सकते भाग्य से
शूद्र मिल नहीं सकते द्विज से!

भारत में भाग्यवाद का चलन है,
भारत में जातिवाद का जलन है,
भंगी को भांग पिला दिया गया,
शूद्र के मन में जहर भरा गया!

तुम पूर्व जन्म के पाप कर्म से,
तुम पापयोनि में जन्म लिए हो
कर्म करो अच्छा, इस जन्म में
अगले जन्म में ब्राह्मण बनोगे!

भारत में ब्राह्मण बनने की होड़,
बांकी तीन वर्णो में नहीं गठजोड़,
भारत की गुलामी का कारण था,
क्षत्रिय के सिवा सभी थे रणछोड़!

ब्राह्मण विराट पुरुष के सिर थे
धड़ से अलग थलग दूर पड़े थे,
क्षत्रिय सीमा पर अकेले लड़े थे
पचहत्तर प्रतिशत बेदम खड़े थे!
—विनय कुमार विनायक