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रेड अलर्ट पर पृथ्वी, 2021 मेक ओर ब्रेक ईयर: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की मानें तो पृथ्वी “रेड अलर्ट” पर है। वजह है दुनिया भर की सरकारों का अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने में विफल होना।उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की रिपोर्ट के बाद 2021 को “मेक या ब्रेक ईयर” के रूप में वर्णित किया। इस रिपोर्ट में नवंबर की COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले 75 देशों द्वारा प्रस्तुत अपडेटेड जलवायु कार्रवाई योजनाओं का विश्लेषण किया गया था। इसमें पाया गया कि वर्तमान नीतियां पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के करीब नहीं होंगी।एक बयान में गुटेरेस ने कहा, “यूएनएफसीसीसी की ताज़ा अंतरिम रिपोर्ट हमारे ग्रह के लिए एक रेड अलर्ट है। यह दिखाती है कि सरकारें जलवायु परिवर्तन को 1.5 डिग्री तक सीमित करने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक महत्वाकांक्षा के स्तर के करीब नहीं हैं।”साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत, तमाम देश अपने कार्बन उत्पादन को कम करने और ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम करने के लिए प्रतिबद्ध है – और यदि संभव हो तो, जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए सदी के अंत तक – 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए भी।विशेषज्ञों ने बार-बार चेतावनी दी है कि थ्रेशोल्ड से अधिक गर्मी और गर्म ग्रीष्मकाल, समुद्र के स्तर में वृद्धि, बदतर सूखे और बारिश के चरम, जंगल की आग, बाढ़ और लाखों लोगों के लिए भोजन की कमी में योगदान देगा।जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल के अनुसार, जनसंख्या को अपने 2030 CO2 उत्सर्जन को 2010 के स्तर से लगभग 45% कम करना चाहिए और 2050 तक शुद्ध शून्य तक पहुँचना सुनिश्चित करना चाहिए ताकि यह तापमान सीमा लक्ष्य तक पहुँच सके।बढ़े हुए प्रयासों के बावजूद, यूएनएफसीसीसी को सौंपी गई कार्बन कटौती की योजनायें उतनी सशक्त नहीं जितनी ज़रूरी हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देशों को पेरिस समझौते के तहत अपनी शमन प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने की आवश्यकता है।संशोधित जलवायु कार्य योजना देने वाले देश पेरिस समझौते के कुल हस्ताक्षरकर्ताओं का 40 प्रतिशत ही हैं और ये सब वैश्विक उत्सर्जन में 30 फ़ीसद की हिस्सेदारी करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2030 तक, 2010 के मुक़ाबले, ये देश सिर्फ 0.5 प्रतिशत की कटौती प्रदान कर पाएंगे।गुटेरेस ने उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को बढ़ाने और कोविड -19 महामारी से उबरने के प्रयासों को अवसर के तौर पर लेने को कहा है।वो आगे कहते हैं, “परिवर्तन के दशक को शुरू करने के लिए दीर्घकालिक कार्रवाइयों का मिलान तत्काल कार्रवाई से किया जाना चाहिए।”यूएनएफसीसीसी के कार्यकारी सचिव, पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रिपोर्ट व्यक्तिगत देश की योजनाओं की बस एक “स्नैपशॉट है, न कि एक पूर्ण तस्वीर”।UNFCCC COP26 से पहले एक दूसरी रिपोर्ट जारी करेगा, और एस्पिनोसा ने सभी शेष उत्सर्जकों को, बेहतर जलवायु की ख़ातिर, इसमें अपना योगदान देने का आग्रह किया।उन्होंने कहा, “सभी शेष दलों के लिए यह समय है कि वे जो भी करने का वादा करें उसे पूरा करें और जितनी जल्दी हो सके अपने एनडीसी जमा करें। यदि यह कार्य पहले जरूरी था, तो यह अब महत्वपूर्ण बन गया है।”

नये भारत के लिये नया इंसान कौन बनायेगा?

-ललित गर्ग-
”अणुव्रत-मिशन“ की 72 वर्षों की एक ‘युग यात्रा’ नैतिक प्रतिष्ठा का एक अभियान है। परिवर्तन जीवन का शाश्वत नियम है, प्रगति एवं विकास का यह सशक्त माध्यम है। जीवन का यही आनन्द है, यह जीवन की प्रक्रिया है, नहीं तो जीवन, जीवन नहीं है। टूटना और बनना परिवर्तन की चैखट पर शुरू हो जाता है। नये विचार उगते हैं। नई व्यवस्थाएं जन्म लेती हैं एवं नई शैलियां, नई अपेक्षाएं पैदा हो जाती हैं। अब जब भारत नया बनने के लिए, स्वर्णिम बनने के लिए और अनूठा बनने के लिए तत्पर है, तब एक बड़ा सवाल भी खड़ा है कि हमें नया भारत कैसा बनाना है? ऐसा करते हुए हमें यह भी देखना है कि हम इंसान कितने बने हैं? हममें इंसानियत कितनी आई है? हमारी जीवनशैली में मूल्यों की क्या अहमियत है? यह एक बड़ा सवाल है। बेशक हम नये शहर बनाने, नई सड़कें बनाने, नये कल-कारखानें खोलने, नई तकनीक लाने, नई शासन-व्यवस्था बनाने के लिए तत्पर हैं लेकिन मूल प्रश्न है नया इंसान कौन बनायेगा?
अणुव्रत आंदोलन अपनी स्थापना से लेकर अब तक इसी प्रयास में रहा कि इंसान इंसान बने, विकास के साथ-साथ हम विवेक को कायम रखें, नैतिक मूल्यों को जीवन का आधार बनाएं। जिस प्रकार गांधीजी ने ‘मेरे सपनों का भारत’ पुस्तक लिखी, वैसे ही अणुव्रत आन्दोलन के संस्थापक आचार्य तुलसी ने मेरे सपनों का हिन्दुस्तान एक प्रारूप प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने गरीबी, धार्मिक संघर्ष,राजनीतिक अपराधीकरण, अस्पृश्यता, नशे की प्रवृत्ति, मिलावट, रिश्वतखोरी, शोषण, दहेज और वोटों की खरीद-फरोख्त को विकास के नाम विध्वंस का कारण माना। उन्होंने स्टैंडर्ड आॅफ लाइफ के नाम पर भौतिकवाद, सुविधावाद और अपसंस्कारों का जो समावेश हिन्दुस्तानी जीवनशैली में हुआ है उसे उन्होंने हिमालयी भूल के रूप में व्यक्त किया है। आचार्य श्री महाश्रमण इसी भूल को सुधारने के लिए व्यापक प्रयत्न कर रहे हैं। अणुव्रत का स्थापना दिवस – 1 मार्च, 2021 एक नई एवं आदर्श जीवनशैली को लेकर प्रस्तुत हो रहा है, कोरोना महामारी से अस्त-व्यस्त हुए जीवन में हर व्यक्ति अपने जीवन की विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को लेकर आत्ममंथन कर रहा है, कोरोना की त्रासदी ने इंसान को अपने जीवन मूल्यों और जीवनशैली पर पुनर्चिंतन करने को मजबूर किया है। इसी बदलाव की चैखट पर अणुव्रत आन्दोलन एक ऐसी जीवनशैली की स्थापना के लिये तत्पर है, जिसे अपनाकर मानवमात्र स्व-कल्याण से लेकर विश्व कल्याण की भावना को चरितार्थ करने में सक्षम हो सकेगा।
जीवन के त्रासदियों एवं कमियों के परिमार्जित करने का एक सफल एवं सार्थक उपक्रम है अणुव्रत। यह नये भारत को बनाने के हमारे संकल्प-सपने क्या-क्या हो, इसकी एक बानगी प्रस्तुत करता है। कहते है कि सपने पूरे करने के लिये उन्हें देखना जरूरी है। अणुव्रत आन्दोलन आदर्श जीवन का एक संकल्प है, एक संरचना है, एक सपना है। जिसे आधार बनाकर स्वर्णिम भारत बनाना है। लेकिन हम भारतीयों का यह दुर्भाग्य है कि हमने सपने देखना छोड़ दिया है, हमारे संकल्प बौने होते जा रहे हैं। हम आत्मकेन्द्रित होते जा रहे हैं। ‘जितना है उसी में संतुष्ट’ की सोच अब वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हमें पीछे छोड़ रही है। 72 साल पहले देश ने एकजुट होकर एक सपना देखा, वो पूरा भी हुआ। तभी हम आजाद है। लेकिन हम आजादी के नशे में जरूरी मूल्यों को भूल गये। परिणाम सामने है, हम आजाद होकर भी हमारे बाद आजाद हुए राष्ट्रों की तुलना में पीछे है, समस्याग्रस्त है, अपसंस्कृति के शिकार है, आलसी है, अनैतिक है, भ्रष्ट है। फिर वक्त सपने देखने का आ चुका है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों से ‘नये भारत-सशक्त भारत- आत्मनिर्भर भारत, सपनों का भारत’ के निर्माण का आह्वान कर रहे हैं, वहीं अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ‘मूल्यों का भारत -स्वर्णिम भारत’ निर्मित करने के लिये पांव-पांव चलकर नैतिक शक्तियों को बल दे रहे हैं। एक स्वर्णिम भारत के लिए नैतिक मूल्य बुनियादी आवश्यकता है।
बहत्तर वर्षों पूर्व दिल्ली के चांदनी चैक में अणुव्रत का एक ऐतिहासिक अधिवेशन हुआ, तब अणुव्रत अचरज की चीज थी। अणुव्रत अनुशास्ता से राष्ट्र का नया परिचय था। आज उस रूप में अणुव्रत बुजुर्ग है। अणुव्रत अनुशास्ता नैतिक जगत के शिखर पुरुष हैं। उस समय के विषय थे- काला बाजार, मिलावट….। आज के विषय हैं काला धन, भ्रष्टाचार, लोकतंत्र शुद्धि, चुनाव शुद्धि, शिक्षा में सुधार…..। बुराइयां रूप बदल-बदल कर नये मुखौटे लगाकर आती हैं, जिन्हें शांति व अहिंसा प्रिय नागरिकों को भुगतना पड़ता है। जूझना पड़ता है। सत्ता के स्तर पर गन्दी राजनीति और व्यवस्था के स्तर पर भ्रष्टाचार एवं पक्षपात ने हमारे राष्ट्रीय जीवन के नैतिक मूल्यों को ध्वस्त कर दिया है। राष्ट्रीय विकास के केन्द्र में व्यक्ति नहीं होगा तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा। अणुव्रत का दर्शन है कि लोक सुधरेगा तो तंत्र सुधरेगा। व्यक्ति का रूपांतरण होगा तो समाज का रूपांतरण होगा।
अणुव्रत आंदोलन विचार क्रांति के साथ-साथ राष्ट्र क्रांति का मंच है। जब भी राष्ट्र में नैतिक मूल्य धुंधलाने लगे, अणुव्रत आन्दोलन ने एक दीप जलाया। यह दीप मानव संस्कृति का आधार है और दीप का आधार है नैतिक मूल्य, अन्धकार से प्रकाश की यात्रा, असत्य पर सत्य की स्थापना, निराशाओं में आशाओं का संचार। अणुव्रत ऐसी ही सार्थक यात्रा है और इस यात्रा के दौरान ही मनुष्य अपने ‘स्व’, ‘पर’ और प्रकृति को गंभीरता से ले पाता है। इस चेतना के बाद ही वह समझ सकता है कि मनुष्य की वैयक्तिकता और सामाजिकता एक ही सिक्के के दो पहलु है। तभी वह सही अर्थो में इंसान हो पाता है। वह इंसान जिसके बारे में गालिब ने बड़ी कसक के साथ कहा था, ‘आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना।’
भारत एक बड़ी पुरानी सभ्यता रहा है और उसकी अपनी समृद्ध संस्कृति है। हमारे विकास का माॅडल उसी बिन्दु से शुरू करना चाहिए, लेकिन हम अपनी जड़ों से कटकर, अपने संस्कारों से विलग होकर, इतिहास के शून्य में खडे़ होते रहे हैं। अब स्वर्णिम भारत को आकार देते हुए हमें इस पर विचार करना चाहिए कि वे कौनसी दरारें थी जो हमारे सामाजिक ढांचे को खोखला बनाती रही, जीवनबोध में वह कैसा ठहराव था कि हम, जिन्हें संसार में सर्वोपरि होना था, सबसे पीछे रह गये। हमारा जीवन जिन नैतिक आधारों के आसपास बसता है, उन्हें ठीक से समझना और ठीक से बरतना ही जीवन में वास्तविक रूपान्तरण पैदा कर सकता है-व्यक्ति के भी और राष्ट्र के भी। यहीं स्वर्णिमता के नये अर्थ खुलते हैं, यहीं संस्कृति के जीवंत अध्यायों की पुनर्रचना की संभावना पैदा होती है। यहीं मानव जीवन की गरिमा का वास्तविक आधार बनता है। और यहीं कही एक सूर्योदय है। वरना हांकने को तो कुछ भी हांका जा सकता है, और नैतिकता को हांकना तो बहुत आसान है, पर यह आत्मक्षय का ही मार्ग प्रशस्त करता है।
अणुव्रत स्थापना दिवस शाश्वत से साक्षात् और सामयिक सत्य को देखने, अनुभव करने का एक विनम्र प्रयास है। आत्म-प्रेरित नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा का संयुक्त अभियान है। महानता की दिशा में गति का प्रस्थान है। सपने एवं संकल्प सदैव आशावादी होते हैं। पर वर्तमान से कोई कभी सन्तुष्ट नहीं होता। इतिहास कभी भी अपने आप को समग्रता से नहीं दोहराता। अपने जीवित अतीत और मृत वर्तमान के अन्तर का ज्ञान जिस दिन देशवासियों को हो जाएगा, उसी दिन हमें मालूम होगा कि महानता क्या है। हम स्वर्ग को जमीन पर नहीं उतार सकते, पर बुराइयों से तो लड़ अवश्य सकते हैं, इस लोकभावना जगाना होगा, यही अणुव्रत का मिशन है। महानता की लोरियाँ गाने से किसी राष्ट्र का भाग्य नहीं बदलता, बल्कि तंद्रा आती है। इसे तो जगाना होगा, भैरवी गाकर। महानता को सिर्फ छूने का प्रयास जिसने किया वह स्वयं बौना हो गया और जिसने संकल्पित होकर स्वयं को ऊंचा उठाया, महानता उसके लिए स्वयं झुकी है।
हमें गुलाम बनाने वाले सदैव विदेशी नहीं होते। अपने ही समाज का एक वर्ग दूसरे को गुलाम बनाता है- शोषण करता है, भ्रष्ट बनाता है। उस राष्ट्र की कल्पना करें, जहां कोई नागरिक इतना अमीर नहीं हो कि वह किसी गरीब को खरीद सके अथवा कोई इतना निर्धन नहीं हो कि स्वयं को बिकने के लिए बाध्य होना पड़े। मैं न खाऊंगा और न खाने दूंगा- यही हो सकता है स्वर्णिम राष्ट्र का आधार।
आज जिन माध्यमों, महापुरुषों, मंचों से नैतिकता मुखर हो रही है, वे बहुत सीमित हैं। अणुव्रत ने इन शक्तियों को खड़ा किया है। आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ की परम्परा को आचार्य श्री महाश्रमण आगे बढ़ा रहे हैं। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने अणुव्रत को बहुत बल दिया है। अगर हम ऊपर उठकर देखें तो दुनिया में अच्छाई और बुराई अलग-अलग दिखाई देगी। भ्रष्टाचार के भयानक विस्तार में भी नैतिकता स्पष्ट अलग दिखाई देगी। आवश्यकता है कि नैतिकता की धवलता अपना प्रभाव उत्पन्न करे और उसे कोई दूषित न कर पाये। इस आवाज को उठाने के लिए ”अणुव्रत“ सदा ही माध्यम बना है। नैतिकता का प्रबल पक्षधर बना है।

किसान आंदोलन :: बंजर हो चुकी राजनैतिक जमीन पर सत्ता की फसल उगाने के लिए अर्थहीन व स्वार्थ की लडाई लड रहे है वांमपंथी व राजनैतिक दल

भगवत कौशिक – पंजाब से निकलकर दिल्ली की सीमाओं तक पहुंचा किसान आंदोलन अब केवल किसान आंदोलन ना होकर राजनैतिक आंदोलन बन गया है।एक तरफ सरकार ने जहां अंतिम वार्ता के दौरान पेश किए समझोते पर ही दोबारा बातचीत करने का फैसला कर कृषि कानूनों को वापस ना लेने का अपना फैसला जता दिया है,वही दुसरी ओर किसान आंदोलन को चला रहे लोग किसी भी सुरत मे पीछे हटने को तैयार नहीं है।ऐसे मे आंदोलन लंबा खींच रहा है और आम जनता के लिए परेशानी का सबक बन गया है।

किसान आंदोलन की विश्वसनीयता पर सवाल शुरू से ही उठते रहे है कि ये किसान आंदोलन ना होकर राजनैतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए वांमपंथी व विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस पार्टी का सरकार के विरूद्ध एक अघोषित युद्ध है जिसके माध्यम से वांमपंथी व कांग्रेस जैसे दल अपनी बंजर पड चुकी राजनैतिक जमीन पर फिर से सत्ता के बीज अंकुरित कर सके।इसके साथ साथ नागरिकता संशोधन बिल के विरोध मे दिल्ली को बंधक बनाए रखने वाले लोगों को भी किसान आंदोलन के नाम की संजीवनी बूटी हाथ लग गई ।इस अवसर को ये लोग स्वार्थ सिद्धि के रूप मे भूनाना चाहते है ताकी इनकी राजनैतिक फसल पकती रहे।

आंदोलन मे आए दिन नए नए रूप बदलते देखे जा सकते है।कभी राकेश टिकैत आंसू बहाते है तो कभी फसल जलाने का आहवान करते है।अब तो आंदोलन को चलाने के लिए महात्मा गांधी के चरखे को भी मैदान मे उतारकर टिकैत दवारा सूत काता जा रहा है,लेकिन बापू के चरखे पर सूत कातकर कोई गांधी नहीं बन जाता। एक बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि गांधी का सम्मान और गांधी को याद करना तो कतई नहीं क्योंकि अगर राकेश टिकैत को गांधी जी के कर्म जरा भी याद होते तो लाल किला कांड उनकी दंगा ब्रिगेड ने नहीं किया होता और जब देश को शर्मसार करने वाली दंगा ब्रिगेड को दबोचने पुलिस पहुंचने लगी तो टिकैत के दंगा गैंग ने पुलिस वालों को ही बंधक बनाने की साजिश रची।

टिकैत के साथी गुरूनाम सिंह चढूनी ने किसानों को भड़काते हुए कहा कि जब पुलिस वाले गिरफ्तारी के लिए गांव में घुसे तो उन्हें बंधक बना लें। लेकिन टिकैत के गाजीपुर वाले अड्डे में जिस तरह से चरखा चला और ढपली गैंग की एंट्री हुई उससे 2013 का अन्ना आंदोलन की यादें ताजा हो गईं।रामलीला मैदान में 8 साल पहले भी गांधी दर्शन की खूब डींगे मारी जाती थीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब टिकैत भी उसी आंदोलनजीवी गैंग के इशारे पर फिर 2013 को दोहराना चाहते हैं।

2013 में रामलीला मैदान में भी वामपंथी ढपलीबाज खूब क्रांति के तराने सुनाते थे और अब राकेश टिकैत के गाजीपुर अड्डे पर भी ढपली गैंग किसानों को राग सुना रहा है जिस पर टिकैत झूम रहे हैं। हालांकि इसकी पटकथा दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर उसी दिन लिख दी गई थी जिस दिन टिकैत ने घड़ियाली आंसू बहाए थे और मनीष सिसोदिया उनके आंसू पोंछने पानी के टैंकर लेकर पहुंचे थे।सियासत में सत्ता का संकट झेल रहे तमाम किसान नेता टिकैत के ट्रैक्टर की सवारी करने को आतुर हैं।इनमें कांग्रेस की प्रियंका गांधी से लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तक हैं। इससे एक बात बिल्कुल साफ है कि टिकैत के अड्डे पर लंगर से लेकर डीजल तक का इंतजाम भी सियासी पार्टियों की फंडिंग से हो रहा है।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेट टिकैत खुद को किसानों का नेता कहते हैं। उन किसानों के हक की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं। लेकिन किसानों की औसत कमाई कि बात करे तो एक महीने की कमाई सिर्फ 6400 रुपये है वहीं खुद को किसान नेता कहने का दावा करने वाले राकेश टिकैत की कमाई करीब 80 करोड़ है।उनकी संपत्ति 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और महाराष्ट्र मे फैली हुई है। एक आंकड़े और अनुमान के मुताबिक राकेश टिकैत की देश के 13 शहरों में संपत्ति है, जिनमें मुजफ्फरनगर, ललितपुर, झांसी, लखीमपुर खीरी, बिजनौर, बदायूं, दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, देहरादून, रूड़की, हरिद्वार और मुंबई शामिल हैं। वही राकेश टिकैत व गुरूनाम सिंह चढुनी चुनाव मैदान मे भी किस्मत आजमा चुके है लेकिन जनता ने इनको नकार दिया।अब ये किसान आंदोलन के नाम पर अपनी राजनैतिक जमीन तलाश कर रहै है और आने वाले समय मे किसी राजनैतिक दल या स्वयं की कोई पार्टी बना कर फिर से चुनाव मैदान मे दिख जाए तो कोई ताजूब नहीं होगा।

घोटालों के बादल और चुनावी हिंसा

पश्चिम बंगाल में चुनावों की औपचारिक घोषणा के साथ ही राजनैतिक पारा भी उफान पर पहुँच गया है। देखा जाए तो चुनाव किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होते हैं सैद्धांतिक रूप से तो चुनावों को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है।और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की नींव को मजबूती प्रदान करते हैं।

लेकिन जब इन्हीं चुनावों के दौरान हिंसक घटनाएं सामने आती हैं जिनमें लोगों की जान तक दांव पर लग जाती हो तो प्रश्न केवल कानून व्यवस्था पर ही नहीं लगता बल्कि लोकतंत्र भी घायल होता है।

वैसे तो पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा का इतिहास काफी पुराना है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात को तथ्यात्मक तरीके से प्रमाणित भी करते हैं। इनके अनुसार 2016 में बंगाल में राजनैतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुईं जिसमें 206 लोग इसके शिकार हुए। इससे पहले 2015 में राजनैतिक हिंसा की 131 घटनाएं दर्ज की गई जिनके शिकार 184 लोग हुए थे। वहीं गृहमंत्रालय के ताजा आंकड़ों की बात करें तो 2017 में बंगाल में 509 राजनैतिक हिंसा की घटनाएं हुईं थीं और 2018 में यह आंकड़ा 1035 तक पहुंच गया था।

इससे पहले 1997 में वामदल की सरकार के गृहमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने बाकायदा विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनैतिक हिंसा में मारे गए थे। निसंदेह यह आंकड़े पश्चिम बंगाल की राजनीति का कुत्सित चेहरा प्रस्तुत करते हैं।

पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल का रक्तरंजित इतिहास उसकी “शोनार बंगला” की छवि जो कि रबिन्द्रनाथ टैगोर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसी महान विभूतियों की देन है उसे भी धूमिल कर रहा है।

बंगाल की राजनीति वर्तमान में शायद अपने इतिहास के सबसे दयनीय दौर से गुज़र रही है जहाँ वामदलों की रक्तरंजित राजनीति को उखाड़ कर एक स्वच्छ राजनीति की शुरुआत के नाम पर जो तृणमूल सत्ता में आई थी आज सत्ता बचाने के लिए खुद उस पर रक्तपिपासु राजनीति करने के आरोप लग रहे हैं।

हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही राज्य में हिंसा के ये आंकड़े भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। चाहे वो भजपा के विभिन्न रोड़ शो के दौरान हिंसा की घटनाएं हों या उनकी परिवर्तन यात्रा को रोकने की कोशिश हो या फिर जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव हो।

यही कारण है कि चुनाव आयुक्त को कहना पड़ा कि बंगाल में जो परिस्थितियां बन रही हैं उससे यहाँ पर शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव करना चुनाव आयोग के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव आयोग इस बार 2019 के लोकसभा चुनावों की अपेक्षा 25 फीसदी अधिक सुरक्षा कर्मियों की तैनाती करने पर विचार कर रहा है।

लेकिन इस चुनावी मौसम में बंगाल के राजनैतिक परिदृश्य पर घोटालों के बादल भी उभरने लगे हैं जो कितना बरसेंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन वर्तमान में उनकी गर्जना तो देश भर में सुनाई दे रही है।

दरअसल केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने राज्य में कोयला चोरी और अवैध खनन के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी संसद अभिषेक बैनर्जी की पत्नी रुजीरा बैनर्जी और उनकी साली को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है।

इससे कुछ दिन पहले शारदा चिटफंड घोटाला जिसमें देश के पूर्व वित्तमंत्री चिदम्बरम और खुद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर आरोप लगे थे, इस मामले में सीबीआई ने दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की थी। इसके अनुसार बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी को नियमित रूप से 23 महीने तक भुगतान किया गया। कथित तौर पर यह राशि मीडिया कर्मियों के वेतन के भुगतान के लिए दी गई।

गौरतलब है कि जांच के दौरान तारा टीवी के शारदा ग्रुप ऑफ कम्पनीज का हिस्सा होने की बात सामने आई थी। सीबीआई का कहना है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी कर्मचारी कल्याण संघ को कुल 6.21 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। इससे कुछ समय पहले या यूँ कहा जाए कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भी इसी शारदा घोटाले की जाँच को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार आमने सामने थीं।

वैसे भारत जैसे देश में घोटाले होना कोई नई बात नहीं हैं और ना ही चुनावी मौसम में घोटालों के पिटारे खुलना। ऐसे संयोग इस देश के आम आदमी ने पहले भी देखे हैं। चाहे वो रोबर्ट वाड्रा के जमीन और मनी लॉन्ड्रिंग घोटाले हों या फिर सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं के नेशनल हेराल्ड जैसे केस हों या यूपी में अवैध खनन के मामले में अखिलेश यादव और या फिर स्मारक घोटाले में मायावती पर ईडी की कार्यवाही। अधिकाँश संयोग कुछ ऐसा ही बना कि चुनावी मौसम में ही ये सामने आते हैं और फिर पाँच साल के लिए लुप्त हो जाते हैं।

देश की राजनीति अब उस दौर से गुज़र रही है जब देश के आम आदमी को यह महसूस होने लगा है कि हिंसा और घोटाले चुनावी हथियार बनकर रह गए हैं और उसके पास इनमें से किसी का भी मुकाबला करने का सामर्थ्य नहीं है। क्योंकि जब तक तय समय सीमा के भीतर निष्पक्ष जांच के द्वारा इन घोटालों के बादलों पर से पर्दा नहीं उठाता, वो केवल चुनावों के दौरान विपक्षी दल की हिंसा के प्रतिउत्तर में गरजने के लिए सामने आते रहेंगे, बंगाल हो या बिहार या फिर कोई अन्य राज्य।

अगर बंगाल की ही बात करें तो एक तरफ चुनावों के पहले सामने आने वाले घोटालों से राज्य की मुख्यमंत्री और उनका कुनबा सवालों के घेरे में है। वहीं दूसरी तरफ जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वहाँ सत्तारूढ़ दल द्वारा सत्ता बचाने और भाजपा द्वारा सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से दोनों दलों के बीच होने वाली राजनैतिक हिंसा के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं।

लेकिन सत्ता बचाने और हासिल करने की इस उठापटक के बीच राजनैतिक दलों को यह समझ लेना चाहिए कि आज का वोटर इतना नासमझ भी नहीं है जो इन घोटालों और हिंसा के बीच की रेखाओं को ना पढ़ सके। खास तौर पर तब जब इन परिस्थितियों में चुनावों के दौरान बोले जाने वाले “आर नोई अन्याय” (और नहीं अन्याय) या फिर “कृष्ण कृष्ण हरे हरे, पद्म (कमल) फूल खिले घरे घरे”, या बांग्ला “निजेर मेयकेई चाए” ( बंगाल अपनी बेटी को चाहता है) जैसे शब्द कभी “नारों” की दहलीज पार करके यथार्थ में परिवर्तित नहीं होते। इसलिए “लोकतंत्र” तो सही मायनों में तभी मजबूत होगा जब चुनावी मौसम में घोटाले सिर्फ सामने ही नहीं आएंगे बल्कि उसके असली दोषी सज़ा भी पाएंगे।

चीन ने फिर किया हैरान, ऑफशोर विंड एनर्जी के मामले में 2020 को किया अपने नाम

चीन दुनिया को हैरान करने से नहीं पीछे हटता। जब हम और आप कोविड से डरे सहमे लॉक डाउन में अपने और अपने प्रियजनों की कुशलता और स्वास्थ्य के लिए आशंकित थे, चीन के ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति रची जा रही थी।

दरअसल चीन ने अकेले साल 2020 में दुनिया की कुल अपतटीय पवन ऊर्जा, या ऑफ शोर विंड एनर्जी, की आधी क्षमता स्थापित कर ली। और ऐसा नहीं कि चीन ने अचानक ऐसा किया हो। लगातार तीसरे साल चीन ने ऑफ शोर विंड एनर्जी क्षमता स्थापना के मामले में दुनिया का नेतृत्व किया है।

इस बात का ख़ुलासा होता है ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (GWEC) मार्केट इंटेलिजेंस द्वारा जारी किए गए नवीनतम आंकड़ों से। इनके अनुसार, कोविड-19 के प्रभावों के बावजूद वैश्विक अपतटीय पवन उद्योग ने 2020 में अपना दूसरा सर्वश्रेष्ठ वर्ष देखा और 6 गीगावॉट की नई क्षमता स्थापित की। इस वृद्धि का नेतृत्व चीन द्वारा लगातार तीसरे साल किया गया, और उसने पिछले साल वैश्विक स्तर पर नई अपतटीय पवन क्षमता के आधे से अधिक हिस्से को स्थापित किया।

बाकी क्षमता में योगदान के लिए यूरोप में स्थिर विकास को श्रेय जाता है। यूरोप में नीदरलैंड ने 2020 में लगभग 1.5 गीगावॉट की नई अपतटीय पवन स्थापना की और इसके साथ वो चीन के बाद 2020 में नई क्षमता के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया।

अन्य यूरोपीय अपतटीय पवन बाजारों ने भी पिछले साल नियमित वृद्धि का अनुभव किया, बेल्जियम (706 मेगावाट), यूके (483 मेगावाट), और जर्मनी (237 मेगावाट), सभी 2020 में नई क्षमता स्थापित कर रहे हैं।

पिछले साल यूरोप में ही एकमात्र नई फ्लोटिंग अपतटीय पवन क्षमता स्थापित हुई। इसका सेहरा बंधा पुर्तगाल में 17 मेगावाट की क्षमता को।

चीन और यूरोप के बाहर जिन दो अन्य देशों ने 2020 में नई अपतटीय पवन क्षमता दर्ज की वो थे दक्षिण कोरिया (60 मेगावाट) और अमेरिका (12 मेगावाट)।

कुल मिलाकर, वैश्विक अपतटीय पवन क्षमता अब 35 गीगावॉट से अधिक है- जो कि पिछले 5 वर्षों में 106 प्रतिशत की वृद्धि है। चीन अब संचयी प्रतिष्ठानों के मामले में जर्मनी से आगे निकल गया है, जो शीर्ष स्थान पर यूके के बने रहने के साथ वैश्विक स्तर पर दूसरी सबसे बड़ी अपतटीय पवन बन गया है।

पूरे घटनाक्रम पर GWEC में मार्केट इंटेलिजेंस एंड स्ट्रेटजी के प्रमुख फेंग ज़ाओ कहते हैं, “महामारी के दौरान दुनिया भर में अपतटीय पवन उद्योग की निरंतर वृद्धि इस तेजी से बढ़ते उद्योग के लचीलेपन का सबूत है। हालांकि चीन को सबसे पहले कोविड-19 संकट का सामना करना पड़ा था, अपतटीय वायु क्षेत्र पर प्रभाव न्यूनतम रहे सुर मार्च 2020 तक ही सामान्य काम फिर शुरू हो गया। चीन की रिकॉर्ड-ब्रेकिंग वृद्धि 2021 में जारी रहने की उम्मीद है, क्योंकि इस वर्ष के अंत तक चीन पर अपनी फीड-इन-टैरिफ की समय सीमा को पूरा करने का दबाव है।”

उन्होंने यह भी कहा कि, “जबकि यूरोप वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा अपतटीय पवन बाजार बना हुआ है, एशिया पैसिफिक तेजी से महत्वपूर्ण उद्योग विकास की भूमिका निभाएगा क्योंकि जापान और दक्षिण कोरिया जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने हाल ही में महत्वाकांक्षी अपतटीय पवन लक्ष्य स्थापित किए हैं। अमेरिका भी अपतटीय पवन के लिए तेजी से महत्वपूर्ण बाजार बन जाएगा, क्योंकि नए प्रशासन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस महत्वपूर्ण उद्योग के विकास में तेजी लाने के लिए काम कर रहे हैं।”

इसी क्रम में GWEC में ग्लोबल ऑफशोर विंड टास्क फोर्स के चेयर, एलेस्टेयर डटन, ने कहा, “अपतटीय पवन हमारी ऊर्जा प्रणाली को विघटित करने और नेट शून्य हासिल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में से एक के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है। वर्तमान वैश्विक अपतटीय पवन क्षमता ने हमारे समाज को 62.5 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन से बचने में मदद की है – जो सड़क से 20 मिलियन से अधिक कारें हटाने के बराबर है। अपतटीय पवन के सामाजिक आर्थिक लाभ पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि देश ग्रीन (हरित) आर्थिक सुधार के लिए अपनी रणनीतियों को विकसित कर रहे हैं, साथ ही वर्तमान अपतटीय पवन क्षमता पहले से ही परियोजनाओं के जीवनकाल में वैश्विक स्तर पर लगभग 700,000 नौकरियां प्रदान करती हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि, “फिर भी, जब यह अपतटीय पवन की विशाल क्षमता की बात करते हैं तो हमने अभी सिर्फ हिमशैल की नोक को देखा है। विश्व बैंक समूह की रिपोर्ट है कि वर्तमान प्रौद्योगिकी के साथ वैश्विक स्तर पर अपतटीय पवन क्षमता के 71,000 गीगावॉट से अधिक है, और इस संसाधन का दोहन, महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ पैदा करते हुए, 1.5 डिग्री सेल्सियस पूर्व-औद्योगिक स्तरों से नीचे ग्लोबल वार्मिंग को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होगा। इस क्षमता का अनुभव करने के लिए, उद्योग की वृद्धि के लिए दीर्घकालिक क्षितिज प्रदान करने के लिए स्थिर नीतियों के साथ उद्योग और सरकार का सहयोग महत्वपूर्ण होगा। इस दशक में फ्लोटिंग ऑफशोर विंड के व्यावसायीकरण में तेजी लाना इस क्षेत्र के लिए नए अवसर खोलने के लिए और अकल्पनीय संभव पवन संसाधन पर कब्जा करने के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।”

कुल मिलाकर चीन से आ रही ये खबर जलवायु के लिए ये काफ़ी सुखद है।

2020 में नई अपतटीय पवन क्षमता

  1. चीन – 3,060 मेगावाट
  2. नीदरलैंड – 1,493 मेगावाट
  3. बेल्जियम – 703 मेगावाट
  4. यूके – 483 मेगावाट
  5. जर्मनी – 237 मेगावाट
  6. दक्षिण कोरिया – 60 मेगावाट
  7. पुर्तगाल – 17 मेगावाट (फ्लोटिंग)
  8. अमेरिका -12MW

संचयी क्षमता के लिए शीर्ष 5 अपतटीय पवन बाजार

  1. यूके – 10,206 मेगावाट
  2. चीन – 9,898 मेगावाट
  3. जर्मनी – 7,730 मेगावाट
  4. नीदरलैंड – 2,611 मेगावाट
  5. बेल्जियम – 2,259 मेगावाट

वेदों की प्रमुख देन ईश्वर, जीव तथा प्रकृति विषयक त्रैतवाद का सिद्धान्त

-मनमोहन कुमार आर्य
वेद संसार के सबसे पुराने ज्ञान व विज्ञान के ग्रन्थ है। वेदों का आविर्भाव सृष्टि के आरम्भ में इस सृष्टि रचयिता व पालक ईश्वर से हुआ है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अनादि तथा नित्य सत्ता है। वह निर्विकार, अविनाशी तथा अनन्त है। सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान होने से वह पूर्ण ज्ञानवान तथा सृष्टि की रचना व पालन करने आदि शक्तियों से युक्त है। जिस प्रकार ईश्वर ने अपनी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता तथा सर्वशक्तिमत्ता से इस संसार को बनाया है उसी प्रकार से उसने सृष्टि के आरम्भ में चार महान-आत्मा-ऋषियों को चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान भी दिया है। ईश्वर यदि अमैथुनी सृष्टि के मनुष्यों को वेद के द्वारा ज्ञान देने का कार्य न करता तो मनुष्य ज्ञान से युक्त कैसे होते? अर्थात् नहीं हो सकते थे। जिस प्रकार कोई मनुष्य बिना माता, पिता और आचार्यों की शिक्षा के ज्ञानवान व भाषा बोलने योग्य नहीं होते इसी प्रकार से सृष्टि के आरम्भ में ही मनुष्यों के माता, पिता तथा आचार्य की भूमिका को निभाते हुए अपने अन्तर्यामी व जीवस्थ स्वरूप से परमात्मा चार ऋषियों को वेदों की संस्कृत भाषा सहित अपनी सभी सत्य विद्याओं का ज्ञान देते हैं। इस ज्ञान को प्राप्त होकर ही मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति होती है। बिना वेद ज्ञान के मनुष्य ईश्वर, जीवात्मा तथा प्रकृति सहित अपने कर्तव्यों, व्यवहारों तथा जीवन की उन्नति के साधनों को नहीं जान पाता है। आज भी वेदों का ज्ञान अपने आदि व शुद्ध स्वरूप में सुरक्षित एवं उपलब्ध है। वेदों के अध्ययन से आज भी मनुष्यों को ईश्वर व जीवात्मा आदि पदार्थों का सत्यस्वरूप प्राप्त होता है। वेद मनुष्यों को ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना का प्रयोजन व विधि भी बताते हैं जिसके आधार पर ही ऋषियों ने नाना प्रकार के कर्तव्यों सहित सन्ध्या व देवयज्ञ आदि के विधान किये हैं। वेदों से संसार में अनादि काल से विद्यमान ईश्वर, जीव व प्रकृति नामी सत्ताओं के अस्तित्व का बोध होता है। वेदाध्ययन से ज्ञात होता है कि ईश्वर ही इस सृष्टि का निमित्त कारण है जो ज्ञान व अपनी शक्तियों से अनादि उपादान कारण प्रकृति से इस सृष्टि की रचना कर इसे प्रकाशित करते हैं। ईश्वर इस सृष्टि की रचना व निर्माण अपनी अनन्त संख्या वाली चेतन जीवों की प्रजा व सन्तानों के लिए करते हैं। यह जीव रूपी प्रजा ही अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का भोग करने तथा अपवर्ग की प्राप्ति के लिए आत्मा की उन्नति कर आनन्द से युक्त मोक्ष को प्राप्त करने के लिए संसार में जन्म लेती हैं और मोक्ष प्राप्ति तक आवागमन वा जन्म-मरण के चक्र में फंसी व बंधी रहती हैं।

संसार में तीन मूल, अनादि, नित्य, अविनाशी, अनन्त सत्ताओं में ईश्वर का मुख्य व प्रथम स्थान है। ईश्वर ही अपनी अनादि प्रजा जीवों के सुख व कल्याण, जिसे भोग व अपवर्ग कहते हैं, के लिए उपादान कारण प्रकृति से इस सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, ग्रह, उपग्रह, नक्षत्रादि रूपी विशाल ब्रह्माण्ड की रचना करते व इसका पालन करते हैं। वेदाध्ययन से ईश्वर, जीव व प्रकृति के सत्य स्वरूप का यथार्थ ज्ञान प्राप्त होता है। वेदों पर आधारित आर्ष व्याकरण अष्टाध्यायी-महाभाष्य पद्धति  का अध्ययन सहित उपनिषद तथा 6 दर्शन ग्रन्थों का अध्ययन कर भी मनुष्य इन तीनों सत्ताओं के ज्ञान में निर्भ्रांत होता है। ऋषि दयानन्द ने ईश्वर के सत्यस्वरूप का दिग्दर्शन आर्यसमाज के दूसरे नियम में कराया है। ईश्वर कैसा है, इस पर प्रकाश डालते हुए ऋषि दयानन्द ने बताया है कि ‘ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करनी योग्य है।’ इस नियम के आधार पर ईश्वर का सत्यस्वरूप ज्ञात होता है। यही एकमात्र ईश्वर का सत्यस्वरूप है। अन्य जो बातें इस स्वरूप से अविरुद्ध हैं वह सत्य व जो इसके विपरीत होती हैं, वह असत्य होती हैं। निराकार एवं सर्वव्यापक होने के कारण से ईश्वर की मूर्ति नहीं बन सकती। इसी कारण ऋषि दयानन्द की मान्यता है कि मूर्तिपूजा ईश्वर की उपासना का पर्याय नहीं है। ईश्वर की उपासना तो उसके गुणों, कर्मों व स्वभाव को जानकर उनकी स्तुति करने से ही हो सकती है। उपासना में ईश्वर के गुणों व उपकारों का ध्यान किया जाता है। ऐसा करने से मनुष्य के दुर्गुण छूटते हैं तथा ईश्वर के गुणों के समान मनुष्य के गुण, कर्म व स्वभाव बनने आरम्भ हो जाते हैं। हमारे ऋषि मुनियों का जीवन व गुण ईश्वर के समान व अनुकूल ही होते थे। ईश्वर का ध्यान करते हुए अपने गुणों को ईश्वर के समान बनाना तथा दूसरों के हित, कल्याण, परोपकार आदि के कार्य करना ही उपासना व साधना होती है। ऐसा करते हुए ही उपासक, साधक व भक्त को ईश्वर के सत्यस्वरूप का प्रत्यक्ष व साक्षात्कार होता है। ईश्वर का साक्षात्कार होने से मनुष्य ईश्वर के सत्यस्वरूप के विषय में निर्भ्रांत हो जाता है। उपासना में आत्मा का ईश्वर से सीधा सम्पर्क होने से आत्मा के दुर्गुण, दुःख व दुर्व्यसन भी दूर हो जातें हैं और श्रेष्ठ गुण, कर्म व स्वभाव की प्राप्ति होती है। ऐसा वेद में ईश्वर ने बताया है। इस लाभ व उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए ही ईश्वर को जानना व उसकी उपासना करनी होती है। इसी से जीवात्मा व मनुष्य को आत्मा की श्रेष्ठतम गति मोक्ष जो कि सदा आनन्दमय होता है, प्राप्त होती है। इसी को प्राप्त करने के लिए योगी, महात्मा, तपस्वी, उपासक व साधक उपासना, साधना, वेदाध्ययन व वेदाचरण रूपी तप करते हैं। 

ईश्वर से इतर संसार में जीव तथा प्रकृति अन्य दो मौलिक, अनादि, नित्य व अविनाशी पदार्थ हैं। इन पदार्थों को ईश्वर ने नहीं बनाया और न ही यह पदार्थ किसी अन्य कारण से बने हैं। जीव मनुष्य ज्ञान में संख्या में अनन्त सत्ता हैं। यह जीव चेतन व अल्पज्ञ हैं जो सूक्ष्म, एकदेशी, ससीम, जन्म व मरण धर्मा, पाप व पुण्य कर्मों को करने वाली व ईश्वर की व्यवस्था से उन कर्मों का फल भोगने वाली सत्ता हैं। वेदज्ञान से आत्मा को ईश्वर, आत्मा तथा प्रकृति के सत्यस्वरूप का बोध होता है तथा सत्कर्म उपासना व परोपकार आदि करने की प्रेरणा मिलती है। उपासना व परोपकार करने से ही आत्मा दुःखों, बन्धनों तथा अवागमन आदि से छूट कर मुक्त होती है और मोक्षावधि 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्षों तक मोक्ष में रहकर अवागमन के दुःखों से मुक्त तथा मोक्ष के सुख व आनन्द से युक्त रहती है। संसार की तीसरा मौलिक अनादि पदार्थ प्रकृति है जो कि एक जड़ पदार्थ है। यह त्रिगुणों सत्व, रज व तम गुणों वाली होती है। प्रलयावस्था में यह इन्हीं तीनों गुणों वाली प्रकृति आकाश में सर्वत्र फैली रहती है। प्रलयावस्था में सूर्य आदि प्रकाश देने वाले ग्रहों का अस्तित्व न होने से सर्वत्र अन्धकार होता है। प्रकृति की इस अवस्था में सर्वव्यापक परमेश्वर आकाश में सर्वत्र व्याप्त इस प्रकृति में ईक्षण व प्रेरणा कर सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया को आरम्भ करते हैं। हमारी यह स्थूल व जड़ सृष्टि इस प्रकृति में विकार होकर ही अस्तित्व में आयी है। सांख्य दर्शन में इसका वर्णन हुआ है। उसके अनुसार प्रकृति, सत्व=शुद्ध, रजः=मध्य, तमः=जाडय अर्थात् जड़ता तीन वस्तु मिलकर जो एक संघात है उस का नाम प्रकृति है। उस प्रकृति से महत्तत्व बुद्धि, उस से अहंकार, उस से पांच तन्मात्रा सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्राओं से पृथिव्यादि पांच भूत ये चैबीस और पच्चीसवां पुरुष अर्थात् जीव और परमेश्वर है। इनमें से प्रकृति अविकारिणी और महत्तत्व, अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य और यह ज्ञान व कर्म इन्द्रियों, मन तथा स्थूल भूतों का कारण हैं। पुरुष अर्थात् आत्मा व ईश्वर न किसी की प्रकृति, उपादान कारण और न किसी का कार्य है। इस प्रकार ईश्वर सृष्टि के उपादान कारण प्रकृति से अपनी सर्वज्ञता, सर्वव्यापकता तथा अपने सर्वशक्तिमान स्वरूप से सृष्टि का निर्माण करते हैं। अतः ईश्वर ही इस जगत के एकमात्र निमित्त कारण, जगत को बनाने वाले तथा इसके स्वामी सिद्ध होते हैं।

इन तीन ईश्वर, जीव तथा प्रकृति सत्ताओं के अतिरिक्त संसार में अन्य किसी चेतन व भौतिक सत्ता का अस्तित्व नहीं है। इन तीनों सत्ताओं का सत्यस्वरूप हमें वेदों व वैदिक साहित्य से ही विदित हुआ व होता है। अतः हमें श्रद्धपूर्वक वेद, उपनिषद, दर्शन आदि ग्रन्थों सहित ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश तथा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिये। इससे हमारे सत्य ज्ञान में वृद्धि होगी और हम निशंक होकर अपने जीवन को भोग एवं अपवर्ग की प्राप्ति के अनुरूप ढालकर इन्हें प्राप्त होकर अपना कल्याण कर सकते हैं। हमने लेख में संसार की तीन अनादि व नित्य सत्ताओं का वर्णन किया है। इसे सभी मनुष्यों को जानना चाहिये और वेदविहित अपने कर्तव्य कर्मों को करना चाहिये। इसी से हमारा कल्याण होगा। 

मोह में विरक्ति

श्रीमति सुधा मूर्ति के इंगलिश लेख Detachment in attachment का हिंदी अनुवाद करने का प्रयास किया है। यहाँ आये दिन उपदेशात्मक लहजे मे रोज़ लोग माता पिता और बच्चों के रिश्तों में आई दरारों के कारण युवाओं को कोसते रहते है ,इस लिहाज़ से सुधा जी के इस लेख ने मुझे बहुत प्रभावित किया। प्रस्तुत है हिंदी अनुवाद-

मोह है में विरक्ति

जब मेरी दो बेटियों में से बड़ी की शादी हुई और वह घर छोड़कर अपना घर बसाने गई तो मुझे लगा मेरा एक हिस्सा मुझसे अलग हो गया है। जब वह किशोरावस्था में थी तो वह मुझे अपने शरीर का विस्तार सी ही लगती थी, इसलिये विवाह के बाद जब वह अपना घर बसाने गई तो मुझे लगा मैंने अपना एक हाथ ही खो दिया है।

अगली बार जब वह हमसे मिलने आई तो मुझे हैरानी हुई कि उसकी प्राथमिकतायें अब बदल गईं थी। शायद इस प्रकार का झटका कभी हमने अपने माता पिता को भी दिया होगा।उसने अपनी सास के लिये अम्मा कहा तो मैं चौंकी।वो अपने घर जाने की जल्दी में रहती थी।

तब मुझे पहली बार लगा कि मुझे इस मोह के साथ विरक्ति का अभ्यास करना चाहिये।

मेरी बेटी की शादी के दो साल बाद मेरा बेटा उच्च शिक्षा प्राप्त करने अमरीका चला गया।एक बच्चे के घर से जाने के अनुभव के कारण मेेेरी दूसरे बच्चे को बाहर भेजने के लिये मानसिक रूप से तैयारी बेहतर थी।

मैने शहर में होने वाली कई कक्षाओं मे जैसे इकेबाना योग वगैरह में दाखिला ले लिया। मैं अधिकतर घर से बाहर रहने लगी क्योंकि मेरे पति २४ घंटे सातों दिन अपने काम में व्यस्त रहते थे।

मेरा बेटा अमरीका से लिखता था कि उसे घर की बहुत याद आती है ख़ासकर मेरे बनाये हुए खाने की।कुछ साल बाद वह वापिस आगया तब हमने उसकी शादी करदी। उसने भी अपना घर अलग बसा लिया।

अमरीका में उसे मेेेरे हाथ के बनाये खाने की याद आती थी पर अब जब कभी मैं उससे कहती हूँ आज खाना इधर खा लेना तो वह कहता है अम्मा आज कहीं और जाने का प्लान है ग़लत मत समझना किसी और दिन आजायेंगे।

मैं समझ गई थी कि अब प्राथमिकतायें पूरी तरह बदल चुकी हैं।

हम इतना बोलते है दूसरों को इतनी सलाह देते है पर बात जब अपने बच्चों की हो तो यह परिवर्तन स्वीकार करना मुश्किल लगता है।

यही समय था जब मैने अपनी जीवन शैली और गतिविधियों को बदला।मैं अब मानसिरूप से परिपक्व हूँ। मेरे बच्चें से मेरा संपूर्ण स्नेह है, फिर भी इसमें विरक्ति है। मेरे प्यार के बदले मुझे उतना प्यार मिले ऐसी उम्मीद मैं नहीं रखती।मैं दख़लअदाज़ी नहीं करती न हीआलोचना करती हूँ।मेरी विरक्ति का यह अर्थ नहीं है कि मैं उनका ध्यान नहीं रखती या स्नेह कम हो गया है। जिन्हे आप प्यार करते हैं उन्हे जाने दीजिये वो लौट कर आयेंगे। ये सौंदर्य है मोह और विरक्ति का! जो जैसे रहना चाहे उसे स्वीकार कर सहनशीलता का परिचय दें। इससे शाँति और संपूर्णता का अनुभव मिलता है।

बच्चे जब माता पिता का घर छोड़ कर जाते हैं तो जीवन में एक ख़ालीपन आता है इस समय अपने शौक पूरे करें चाहें वे आपको फालतू के काम लगें।अपने व्यक्तित्व का विस्तार करें।

हमारी अगला क़दम होना चाहिये कि हम उन्हे पूर्णत: अबाधित छोड़ दें। मेरे इस फैसले से मुझमेंं सहनशीलता आई है जिससे आसपास के माहौल में भी बेहतर संतुलन बना है।

मेरे दो बच्चे चेन्नई में ही हैं और मैं भावनात्मक रूप से समृद्ध हूँ। बच्चों के घर से जाने के बाद खालीपन से जूझना हमेशा से रहा है।

मैं ये पोस्ट ख़ासकर उन मित्रों के लिये लिख रहीं हूँ जो भावनात्मकरूप से पूरी तरब बच्चों पर निर्भर हैं। अपने शौकों को समय और विस्तार दीजिये चाहें वो कितने ही बेमक़सद या फ़ालतू लगें। जो करें वो प्यार से करें न कि जिसे प्यार करते हैं वही करें।

यही मोह में विरक्ति।

मोदी सरकार का साहसिक फैसला है सोशल मीडिया-ओटीटी प्लेटफार्म को कानून के दायरे में लाना

संजय सक्सेना

अच्छा ही हुआ जो मोदी सरकार ने सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए गाइडलाइंस जारी कर दी की। पिछले कुछ वर्षो में जिस तरह से सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफाॅर्म का अराजक तत्वांे द्वारा देश को तोड़ने, जनता को आपस में लड़ाने, झूठी खबरें फैला कर देश में दंगा फंसाद, अश्लीलता फैलाने आदि के लिए दुरूपयोग किया जा रहा था, उसको देखते हुए सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म पर कानून बनाकर नियंत्रण करना बेहद जरूरी हो गया था,हो सकता है कि मोदी विरोधी खेमा इस पर हो-हल्ला मचाए और इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात बता कर धरना-प्रदर्शन करें। मगर सच्चाई यही है कि देशहित में लगातार अनियंत्रित होते जा रहे सोशल मीडिया पर लगाम लगाया जाना बेहद जरूरी हो गया था। यह बात मोदी सरकार ही नहीं सुप्रीम कोर्ट भी समझ रही थी,जिसकी पहल पर ही उक्त कानून साकार रूप ले पाया।
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और रविशंकर प्रसाद ने नये कानून की वकालत करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का व्यापार करने के लिए स्वागत है। सरकार आलोचना के लिए तैयार है, लेकिन सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल पर भी शिकायत का भी फोरम मिलना चाहिए। इसका दुरुपयोग रोकना जरूरी है। रविशंकर प्रसाद का कहना था कि भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, फेसबुक के 40 करोड़ से अधिक और ट्विटर पर एक करोड़ से अधिक यूजर्स हैं। भारत में इनका काफी इस्तेमाल होता है, लेकिन जो चिंताएं हैं उसे लेकर काम करना जरूरी है।
गौरतलब हो, ओटीटी प्लेटफॉर्म की सीरीज में बेवजह गालियां ठूंसी जा रही हैं। संवादों में संबोधन और विशेषण के लिए गालियों का चलन हो गया है। लॉकडाउन में मनोरंजन के प्लेटफॉर्म के तौर पर ओटीटी का चलन बढ़ा था तो इसमे व्याप्त खामियां भी सामने आई। पिछले कुछ सालों से भारत में सक्रिय विदेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म ऑरिजिनल सीरीज लाकर भारतीय हिंदी दर्शकों के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें बड़ी कामयाबी अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में आई ‘सेक्रेड गेम्स’ से मिली। इस वेब सीरीज के प्रसारण के समय से ही यह सवाल सुगबुगाने लगा था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म को स्वच्छंद छोड़ना ठीक है क्या? इस वेब सीरीज में प्रदर्शित हिंसा, सेक्स और गाली-गलौज पर काफी दर्शकों ने आपत्ति भी जताई थी। दर्शकों की राय के बाद ही वेब सीरीज पर अंकुश लगाना जरूरी माना जा रहा था।

कोयल तुम बोलती हो अपनी बोली

—विनय कुमार विनायक
कोयल तुम बोलती हो अपनी बोली,
इसलिए तू आजाद हो नीलगगन में!

कोयल तुम्हारी कूक अपने दिल की,
इसलिए तुम बसी हो सबके मन में!

कोयल तुम नहीं कूकती पराई वाणी,
इसलिए तू कैद नहीं किसी बंधन में!

कोयल तुम्हारी भाषा नहीं नकल की,
इसलिए तू रहती हो अपने चमन में!

कोयल तू तोते सा नहीं हो नकलची,
इसलिए तुम नहीं, किसी जकड़न में!

आजादी की परिभाषा स्वअभिव्यक्ति,
तू सदियों सिखा रही अपने वतन में!

किन्तु कोयल सी स्वभाषा व जुबानी,
अबतक गूंजी नहीं भारत जनगण में!

तोते सा निज जुबां को रखके गिरवी,
कबतक भजन करेंगे, पराई जुबान में!

अस्तु कोयल तू छोड़ना नही कुहुकना,
हमारे छत पे बरगद-पीपल-आम्रवन में!

हे कोयल तुम बंद करो नहीं अलापना,
हम जबतक बंधे विदेशी तोतलेपन में!

कोयल तू काली, मगर लगती हो भोली,
जब गाती गीत पंचमसुर व स्वधुन में!

कोयल तुम पलती हो कौए के संग में,
मगर भूली नही स्वभाषा अंतःकरण में!

कोयल तुम काक के साथ में रहके भी,
ग्रहण नहीं करती काक भाषा जेहन में!

हम मानव संगति से प्रभावित होते रहे,
सच देर से,झूठ ग्रहण करते तत्क्षण में!

हम वर्षों तोते सा गुलाम रहे पिंजरे में,
हम गाते नहीं सामगान घर आंगन में!

पुराने पावर प्लांट्स की हो वैज्ञानिक तरीके से डीकमिशनिंग: एनजीटी

फ़िलहाल थर्मल पावर प्लांट को वैज्ञानिक तरीके से डीकमिशन, या चलन से बाहर, करने के कोई प्रभावी दिशानिर्देश मौजूद नहीं। बना हुआ है हानिकारक तत्वों के सही निस्तारण न होने का खतरा।

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की चेन्नई स्थित दक्षिणी जोन की बेंच ने तमिलनाडु में राज्य सरकार के स्वामित्व वाले एक थर्मल पावर प्लांट को चलन से बाहर घोषित करने के दौरान उनमें मौजूद रहे खतरनाक तत्वों के समुचित निस्तारण के आदेश देने के आग्रह वाली एक याचिका पर नोटिस जारी किए हैं। इस पीठ में न्यायाधीश राम कृष्ण और एक्सपर्ट मेंबर साइबिल दासगुप्ता शामिल हैं।

यह नोटिस केंद्र सरकार, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य सरकार के स्वामित्व वाली नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन इंडिया को 12 फरवरी 2021 को हुई सुनवाई के बाद जारी किए गए हैं। यह मामला तमिलनाडु के नेवेली में स्थित पावर प्लांट से जुड़ा है। इस प्लांट का संचालन वर्ष 1962 से किया जा रहा है।

याचिकाकर्ता धर्मेश शाह का कहना है कि थर्मल पावर प्लांट को वैज्ञानिक तरीके से चलन से बाहर घोषित किए जाने के लिए कोई प्रभावी दिशानिर्देश मौजूद नहीं हैं। इसकी वजह से ऐसे पावर प्लांट्स में इस्तेमाल होती आई फ्लाई ऐश तथा बचे हुए अन्य खतरनाक तत्वों का निस्तारण नहीं होने का खतरा है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि ऐसे हालात में परियोजना के मालिकान आमतौर पर पर्यावरण से ज्यादा आर्थिक पहलुओं को तरजीह देते हैं, नतीजतन ऐसे पावर प्लांट पर्यावरण के लिहाज से असुरक्षित हो जाते हैं।

उन्होंने केंद्र सरकार या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से यह सुनिश्चित करने की मांग की है कि अप्रचलित हो चले कोयला आधारित बिजली घरों को चलन से बाहर किए जाने की प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माननीय वैज्ञानिक तरीकों से की जाए, ताकि पानी हवा और मिट्टी को दूषित होने से रोका जा सके। याचिकाकर्ता ने यह भी अपील की है कि अदालत सभी पक्षकारों को डीकमीशनिंग प्रक्रिया को रिकॉर्ड पर रखने के निर्देश दे।

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है ‘‘हम इस बात से सहमत हैं कि पर्यावरण को लेकर कुछ ऐसे सवाल उठ रहे हैं, जिनका संबंधित अधिकारियों से सलाह मशवरे के बाद वैज्ञानिक तरीके से समाधान किए जाने की जरूरत है। ऐसे कुछ दिशानिर्देशों का होना जरूरी है जिनका चलन से बाहर होने के इच्छुक थर्मल पावर प्लांट्स के प्रबंधन पालन करें।’’

कोर्ट ने सभी पक्षों को 23 मार्च 2021 तक अपने जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।

परिसंकटमय और अन्य अवशिष्ट (प्रबंध और सीमापार संचलन) नियम-2016 के तहत नुकसानदेह तत्वों के निस्तारण के लिए संबंधित संयंत्र का स्वामी जिम्मेदार होता है, लेकिन इसके लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है। इसके अलावा डीकमीशनिंग टेंडर संबंधी दिशानिर्देशों यह प्लांट ऑपरेटर द्वारा जारी उत्तरदायित्व संबंधी नियमों में नुकसानदेह तत्वों के प्रबंधन के सिलसिले में कोई जिक्र नहीं किया गया है।

कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की गई है कि ऊर्जा संयंत्रों में रखें हानिकारक तत्वों के समुचित निस्तारण और संबंधित स्थल के उपचारात्मक खर्च को ‘पोल्यूटर्स पे’ सिद्धांत के मुताबिक एनएलसी इंडिया उठाएगा।

वर्ष 2020 में हेल्थ एनर्जी इनीशिएटिव इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह पाया गया है कि भारत में चलन से बाहर होने वाले पावर प्लांट्स स्थलों में रखे गए नुकसानदेह तत्व के निस्तारण के दौरान कोई भी उपचारात्मक या एहतियाती प्रोटोकॉल नहीं अपनाए जाते। रिपोर्ट में भटिंडा के गुरु नानक देव थर्मल पावर प्लांट से जुड़े मामले का जिक्र किया गया है, जिसके कबाड़ की नीलामी संबंधी प्रस्ताव में सिर्फ वित्तीय पहलुओं को ही शामिल किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ई-नीलामी के अनेक दस्तावेज भी ऐसी ही कहानी कहते हैं।

विषैले रसायन जैसे कि एस्बेस्टस, आर्सेनिक, लेड और पाली क्लोरिनेटेड बिसफिनाइल्स का इस्तेमाल थर्मल पावर प्लांट में आमतौर पर होता है। इनकी वजह से घातक बीमारियां होती हैं। कोयला जलाने से उत्पन्न होने वाली रात एक अन्य जहरीला उप-उत्पाद है, जिसकी वजह से पानी और मिट्टी दूषित होती है और मानव स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचता है।

समय का पहिया

मानो तो मोती ,अनमोल है समय
नहीं तो मिट्टी के मोल है समय
कभी पाषाण सी कठोरता सा है समय
कभी एकान्त नीरसता सा है समय
समय किसी को नहीं छोड़ता
किसी के आंसुओं से नहीं पिघलता
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
स्वर्ण महल में रहने वाले
तेरा मरघट से नाता है
सारे ठौर ठिकाने तजकर
मानव इसी ठिकाने आता है ||
भूले से ऐसा ना करना
अपनी नजर में गिर जाए पड़ना
ये जग सारा बंदी खाना
जीव यहाँ आता जाता है
विषय ,विलास ,भोग वैभव सब देकर
खूब वो छला जाता है
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
जग के खेल खिलाने वाले को
मूरख तू खेल दिखाता है ||
कर्म बिना सफल जनम नहीं है
रौंदे इंसा को वो धरम नहीं है
दिलों को नहीं है पढ़ने वाले
जटिलताओं का अब दलदल है
भाग दौड़ में जीवन काटा
जोड़ा कितना नाता है
अन्तिम साथ चिता जलने को
कोई नहीं आता है
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
मानवता को तज कर मानव
खोटे सिक्कों में बिक जाता है ||
नाम : प्रभात पाण्डेय

ईश्वर अनादि, जगत का कर्ता एवं जड़-चेतन जगत का स्वामी है

-मनमोहन कुमार आर्य
ऋषि दयानन्द जी ने सत्यार्थप्रकाश के सप्तम समुल्लास के आरम्भ में ऋग्वेद के 4 और यजुर्वेद के एक मन्त्र को प्रस्तुत कर उनके अर्थों सहित ईश्वर के सत्यस्वरूप तथा गुण, कर्म व स्वभाव का प्रकाश किया है। इन मन्त्रों में तीसरा मन्त्र ऋग्वेद के दशवे मण्डल के सूक्त 48 का प्रथम मन्त्र है। मन्त्र है ‘अहम्भुवं वसुनः पूर्व्यस्पतिरहं धनानि सं जयामि शश्वतः। मां हवन्ते पितरं न जन्तवोऽहं दाशुषे विभजामि भोजनम्।।‘ इस मन्त्र का अर्थ करते हुए ऋषि ने बताया है ‘ईश्वर सब को उपदेश करता है कि हे मनुष्यो! मैं ईश्वर सब के पूर्व विद्यमान सब जगत् का पति हूं। मैं सनातन जगत्कारण और सब धनों का विजय करनेवाला और दाता हूं। मुझ ही को सब जीव जैसे पिता को सन्तान पुकारते हैं वैसे पुकारें। मैं सब को सुख देनेहारे जगत् के लिये नाना प्रकार के भोजनों का विभाग पालन के लिये करता हूं।’ इस मन्त्र के अर्थ में ऋषि दयानन्द ने ईश्वर के स्वरूप तथा उसके कुछ गुणों का प्रकाश किया है। यह स्वरूप वा गुण ईश्वर के सत्य गुण हैं। यदि ईश्वर में यह गुण व कर्म न होते तो इस जगत् की उत्पत्ति वा पालन होना सम्भव नहीं था। ईश्वर ने स्वयं बताया है कि वह इस जगत् में सबसे पूर्व से वर्तमान है। इसका अभिप्राय यह है कि ईश्वर तीन अनादि पदार्थों ईश्वर, जीव व प्रकृति के समान ही अनादि व नित्य पदार्थ है। ऐसा नहीं है कि ईश्वर से पहले कुछ रहा हो और ईश्वर उसके बाद उत्पन्न हुआ हो वा अस्तित्व में आया है। विचार करने पर यही ज्ञात होता है कि ईश्वर, जीव व प्रकृति इस संसार में तीन अनादि व नित्य सत्तायें व पदार्थ हैं। तीनों अविनाशी व अनन्त काल तक रहने वाले हैं। इनका कभी अभाव नहीं होगा। यह सृष्टि बनने से पहले भी थे और सृष्टि की प्रलय के बाद भी बने रहेंगे। प्रलय होने के बाद सृष्टि का पुनः सृजन ईश्वर करता है। इस सृष्टि का पालन व प्रलय एकमात्र ईश्वर के द्वारा ही होती है। अनादि काल से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन व प्रलय का क्रम चल रहा है और अनन्त काल तक चलता रहेगा। अनन्त काल में भी कभी ऐसा कोई समय नहीं आयेगा कि जब ईश्वर, जीव व सृष्टि में से किसी एक पदार्थ का अस्तित्व अभाव को प्राप्त हो।

मन्त्र में ईश्वर ने स्वयं को जगत का पति वा स्वामी बताया है। जिस चेतन सत्ता से कोई भौतिक पदार्थ अस्तित्व में आता है वह उसका पति वा स्वामी होता है। चेतन जीव भी एक अल्पज्ञ, चेतन व अल्पशक्ति से युक्त एकदेशी व ससीम सत्ता है। जड़ जगत को उत्पन्न करना व इसकी रचना कर इसका संचालन करना ईश्वर का ही कार्य है। ईश्वर के समान दूसरा व तीसरा कोई ईश्वर नहीं है, वह केवल एक व अपने जैसा अकेला परमात्मा है। अतः एक ईश्वर स्वयंभू सत्ता है। प्रकृति जड़ होने से स्वयं में स्वतन्त्र होकर भी कार्य सृष्टि में परिणत होने के लिए ईश्वर अपेक्षा रखती है। बिना ईश्वर द्वारा सृष्टि को उत्पन्न किए प्रकृति का अपना कोई मूल्य नहीं होता। कार्य सृष्टि वा जगत बनने पर प्रकृति जीवों के सुख व अपवर्ग मोक्ष का साधन बन जाती है और इसका गुणवर्धन परमात्मा द्वारा होता है। परमात्मा सब जीवों व चेतन प्राणियों का भी पिता व स्वामी है। सभी जीवों को नाना योनियों में जन्म परमात्मा के द्वारा ही मिलता है। परमात्मा ही जीवों को माता के गर्भ में प्रविष्ट कराता व वहां पर उनके कार्य करने योग्य शरीरों का निर्माण करता है। जीवों का जन्म व योनि का निर्धारण जीवों के ही पूर्वजन्म के कर्मों वा प्रारब्ध के आधार पर होता है। जीव जन्म से लेकर मरण पर्यन्त संसार में रहता है। स्वस्थ शरीर से संसार में उपलब्ध सुख की सामग्री का भोग करता है। उसकी प्राणों की क्रिया चलती रहती है। यह सब परमात्मा की व्यवस्था से ही सम्भव होता है। अतः सब जीवों व जन्मधारी प्राणियों का पिता व स्वामी जिसे पति भी कहते हैं, एकमात्र परमात्मा ही है। इसी बात को परमात्मा ने वेद के मन्त्र द्वारा बताया है। परमात्मा हम सब जीवों व प्राणियों सहित इस सृष्टि का स्वामी है, इसका ज्ञान हमें वेदों ने ही सृष्टि के आरम्भ में कराया था। यदि ईश्वर ऐसा न करता तो हमारे आदि काल के पूर्वज वेदों में दिए गये ज्ञान को न जानने से अज्ञानी रहते और उनका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत नहीं हो सकता था। अतः ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान देकर मानव जाति व जीवों का महानतम उपकार किया है। 

वेदमन्त्र में ईश्वर ने यह भी बताया है कि ईश्वर सनातन जगत्कारण और सब धनों का विजय करनेवाला और दाता है। ईश्वर जगत का सनातन कारण है इसका अभिप्राय है कि ईश्वर इस जगत का अनादि काल से निमित्त कारण है। ईश्वर अपनी सर्वज्ञता से अपने पूर्ण ज्ञान तथा सर्वशक्तियों से इस जगत के उपादान कारण प्रकृति से जगत् को बनाते हैं। संाख्य दर्शन में सृष्टि की रचना का वर्णन हुआ है। परमात्मा अनादि कारण प्रकृति से इस सृष्टि को बनाते हैं। प्रकृति, सत्व=शुद्ध, रजः=मध्य, तमः=जाडय अर्थात् जड़ता तीन वस्तु मिलकर जो एक संघात है उस का नाम प्रकृति है। उस प्रकृति से महत्तत्व बुद्धि, उस से अहंकार, उस से पांच तन्मात्रा सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्राओं से पृथिव्यादि पांच भूत ये चैबीस और पच्चीसवां पुरुष अर्थात् जीव और परमेश्वर है। इनमें से प्रकृति अविकारिणी और महत्तत्व अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य और इन्द्रिया, मन तथा स्थूल भूतों का कारण है। पुरुष अर्थात् आत्मा व ईश्वर न किसी की प्रकृति, उपादान कारण और न किसी का कार्य है। इस प्रकार ईश्वर सृष्टि के उपादान कारण प्रकृति से इस जगत जिसमें सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, अपनी सर्वज्ञता, सर्वव्यापकता तथा अपने सर्वशक्तिमान स्वरूप से सृष्टि का निर्माण करते हैं। अतः ईश्वर ही इस जगत के एकमात्र निमित्त कारण, जगत को बनाने वाले तथा इसके स्वामी सिद्ध होते हैं। ईश्वर संसार के सभी धनों का विजय करनेवाला और दाता भी है। वेद की यह बात भी सर्वथा सत्य है। सृष्टि के जिन पदार्थों को हम धन मानते हैं वह सब परमात्मा के बनाये पदार्थ हैं। परमात्मा ही मनुष्यों व सब प्राणियों को शरीर व इन्द्रियां आदि प्रदान कर उन धनों व पदार्थों को प्राप्त करने योग्य बनाते है। अतः जीव जिन पदार्थों को प्राप्त करने में सफल व विजयी होते हैं वह सब ईश्वर प्रदत्त शक्तियों, ज्ञान व प्रेरणा से ही सम्भव होते हंै। जीव का धनों को प्राप्त करने में अपना निजी पुरुषार्थ अवश्य होता है। इस पुरुषार्थ के कारण जीवों को धन प्राप्त करने का श्रेय प्राप्त होता है। यह भी हमें ज्ञात होना चाहिये कि हम जिन धनों की प्राप्ति में सफल व विजयी होते हैं उन्हें प्राप्त करने की शक्ति व सामर्थ्य हमें परमात्मा से ही प्राप्त हुई है। अतः परमात्मा ही सृष्टि के सब धनों का विजय करनेवाला तथा मनुष्य आदि प्राणियों को धनों व पदार्थों का दाता है। 

ऋग्वेद के इस मन्त्र में परमात्मा ने बड़े सरल शब्दों में मनुष्यों के लिए ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करने का उपदेश व निर्देश भी किया है। ईश्वर ने कहा है कि मुझ ईश्वर ही को सब जीव जैसे पिता को सन्तान पुकारते हैं वैसे पुकारें। सन्तान माता पिता को नमस्ते करते व चरण स्पर्श कर आदर व सम्मान देते हैं। माता पिता की सर्वत्र प्रशंसा करते हैं। माता पिता की आज्ञाओं का पालन करते हैं। माता पिता से ज्ञान प्राप्त करते व उनसे अभिलषित पदार्थ देने के लिए कहते हैं व माता पिता वह सब उन्हें देते हैं जो सन्तानों के लिए आवश्यक होता है। सन्तान का जीवन माता पिता के उपकारों की ही देन होता है। जैसा सन्तान माता पिता के प्रति व्यवहार करते व उन्हें अपनी आवश्यकताओं के लिए पुकारते हैं इसी प्रकार से हमें भी परमात्मा को आदर व सम्मान के साथ उसके उपकारों के लिए कृतज्ञता की भावना करके पुकारना चाहिये। उसकी प्रशंसा करनी चाहिये और उससे अपनी आवश्यकता के पदार्थों सहित उपासना तथा ज्ञान प्राप्ति का वरदान मांगना चाहिये। ऐसा करने से ही हमारा मनुष्य जीवन सफल होता है। 

मन्त्र में अन्तिम बात कही गई है कि ईश्वर सब प्राणियों वा मनुष्यों को सुख देनेहारे जगत् के लिये नाना प्रकार के भोजनों का विभग पालन के लिये करता है। इसका अर्थ यह प्रतीत होता है कि संसार में मनुष्य आदि प्राणियों को जितने व जो-जो भी भोजन के पदार्थ उपलब्ध हैं वह सब परमात्मा ने ही जीवों व मनुष्य आदि प्राणियों के लिए बनाये है। यदि वह न बनाता तो हम भोजन प्राप्त करने में असमर्थ रहते। हमें यह जानना चाहिये कि हम जो भोजन करते हैं तथा जिस भोजन से हमें ऊर्जा व शक्ति प्राप्त होती है, भोजन व स्वस्थ शरीर से हम सुखों का अनुभव करते हैं वह सब हमें परमात्मा की कृपा से ही प्राप्त हो रहे हैं। सभी भोजनों को बनाने व प्रदान कराने वाला परमात्मा ही है। यह सब बातें जानकर मनुष्य व जीवात्मा का स्वयं को परमात्मा को समर्पित करना ही कर्तव्य विदित होता है। परमात्मा के जीवों पर अनन्त उपकार है। परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में हमें वेदों का ज्ञान देकर हम पर महान उपकार किया है। हम उसके ऋणी है। उसका ऋण हम कभी नहीं चुका सकते। हमें ईश्वर के उपकारों के लिए उसके वेदज्ञान को पढ़ना व पढ़ाना है। वेदज्ञान को विद्वानों व ऋषियों के ग्रन्थों को पढ़कर सुनना व सुनाना है जिससे हमारा व अन्यों का भी कल्याण हो। हम ईश्वर के प्रति कृतज्ञ बने रहें और दूसरों को भी उनके कर्तव्य पालन कराने में सहायक हों। ईश्वर हमें शक्ति दे कि हम वेदों का स्वाध्याय करते हुए वेदमार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल करें। ऋषि दयानन्द का सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय, पंचमहायज्ञविधि, व्यवहारभानु तथा गोकरुणानिधि तथा ऋग्वेद-यजुर्वेद भाष्य आदि  ग्रन्थों के लेखन एवं प्रकाशन के लिए कोटिशः धन्यवाद है। यदि वह यह ग्रन्थ न लिखते, वेद प्रचार न करते, आर्यसमाज की स्थापना न करते तथा अन्धविश्वासों तथा मिथ्या परम्पराओं का खण्डन न करते तो हमारा जीवन अन्धकार व दुःखों से युक्त होता। देश आजाद न होता और ज्ञान विज्ञान की उन्नति न होती। ईश्वर व ऋषि दयानन्द के हम आभारी व ऋणी हैं और उनका कृतज्ञतापूर्वक धन्यवाद करने सहित उनको सादर नमन करते हैं।