Home Blog Page 673

ओवैसी के विधायकों ने कह दिया है कि हिंदुओ जाग जाओ

बिहार में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में सीमांचल ने ओवैसी के जिन 5 विधायकों को चुनकर भेजा था उन्होंने अपना रंग पहले दिन ही दिखा दिया , जब उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे हिंदुस्तान के संविधान के नाम पर शपथ नहीं लेंगे। इस छोटी सी घटना से उन छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों की आंखें खुल जानी चाहिए जो भाषा के नाम पर हिंदी की उपेक्षा कर उर्दू को प्राथमिकता देते हैं और अपनी तुष्टीकरण की मूर्खतापूर्ण नीतियों के कारण मुस्लिम तुष्टिकरण को अपनी धर्मनिरपेक्ष राजनीति का प्रमुख हथियार बनाकर अपनी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि में लगे रहते हैं । यह घटना दिखने में छोटी सी लगती है परंतु इसके दूरगामी परिणाम होंगे। विशेष रुप से तब जब अभी कुछ समय पहले वृहत्तर बांग्लादेश बनाने की एक गुप्त योजना का पता चला था जिसमें बिहार का कुछ क्षेत्र ,कुछ क्षेत्र उड़ीसा का और सारा बंगाल व कुछ आसाम की तरफ का क्षेत्र लेकर उस पर काम किया जा रहा है।
इस देश का हिंदू ऐसी घटनाओं को अधिक गंभीरता से नहीं लेता। यह धर्मनिरपेक्ष बना अपने राष्ट्र धर्म को त्याग देता है और कोई ना कोई जिन्नाह अलग-अलग कालखंडों में खड़ा होकर देश के टुकड़े कराने में सफल हो जाता है। अब हमारे देखते-देखते एक जिन्नाह ओवैसी के रूप में खड़ा हो रहा है और हम उसकी ओर से वैसे ही आंखें मूंदे बैठे हैं जैसे कबूतर आती हुई बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लेता है। हमारा यह कबूतरी धर्म ही सच्ची धर्मनिरपेक्षता है जो हमारे आत्मविनाश का कारण बन रही है। प्रत्येक सांप्रदायिक मुसलमान ओवैसी के साथ खड़ा है और प्रत्येक धर्मनिरपेक्ष हिंदू या तो विनाश की रखी जा रही नई नींव के प्रति उदासीन है या उसे किसी न किसी प्रकार समर्थन दे रहा है । …. हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा ?
17वीं बिहार विधानसभा में पहुंचे ओवैसी के विधायकों ने शपथ पत्र में लिखे हिंदुस्‍तान शब्‍द पर आपत्ति की और हिंदुस्‍तान की जगह भारत बोलने पर अड़े। इस पर बीजेपी विधायक ने कहा जो हिंदुस्‍तान नहीे बोल सकते उन्‍हें पाकिस्‍तान चले जाना चाहिए । विधायक अख्तरुल इमान ने उर्दू भाषा में शपथ ली और इस दौरान हिंदुस्तान के बदले भारत शब्द का इस्तेमाल किया।
अख्तरुल का नाम जैसे ही शपथ के लिए पुकारा गया, उन्होंने हिंदुस्तान शब्द पर आपत्ति जता दी। उन्हें उर्दू में शपथ लेनी थी। प्रोटेम स्पीकर जीतनराम मांझी से उन्होंने हिंदुस्तान के बदले भारत शब्द बोलने की अनुमति मांगी। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा में शपथ लेते वक्त भारत के संविधान शब्द का प्रयोग किया जाता है। मैथिली भाषा में भी यही शब्द आता है, लेकिन उर्दू में शपथ के लिए जो प्रपत्र दिया गया है, उसमें भारत के बदले हिंदुस्तान लिखा गया है। अख्तरुल ने कहा कि वह भारत के संविधान के नाम पर शपथ लेंगे, न कि हिंदुस्तान के संविधान के नाम पर। अख्तरुल की आपत्ति पर प्रोटेम स्पीकर जीतनराम मांझी ने कहा कि ऐसा पहली बार तो हो नहीं रहा है। पहले भी उर्दू भाषा में शपथ के प्रपत्र में भारत की जगह हिंदुस्तान ही लिखा रहता था। दोनों नाम में शब्दों के अलावा और कोई फर्क भी नहीं है। मांझी के आग्रह का भी अख्तरुल पर कोई असर नहीं पड़ा और वह हिंदुस्तान के बदले भारत शब्द के उच्चारण पर ही अड़े रहे।
शपथ ग्रहण के बाद पत्रकारों से बातचीत के क्रम में अख्तरउल इमाम ने कहा कि भारत शब्द के अनुवाद पर उनका विरोध था। इसके अतिरिक्त कोई और मसला नहीं था। वहीं उर्दू में शपथ की जो कॉपी दी जाती है वह बेहतर नहीं होती है। कागज और उसकी टाइपिंग भी स्तरीय नहीं होती।
यहां पर हम यदि इतिहास के झरोखों से आती हुई सांप्रदायिकता की प्रदूषित हवा की ओर ध्यान करें तो पता चलता है कि जिस प्रकार आज हम बिहार के सीमांचल से चुनकर आए ओवैसी के 5 विधायकों की इस घटना पर मौन हैं वैसे ही कभी हम ईरान में हो रहे उस परिवर्तन के खिलाफ भी मौन रहे थे जिसने धीरे-धीरे इस आर्यान प्रांत को ईरान में परिवर्तित कर इस्लाम बहुल बना दिया और फिर वहां से हिंदुत्व को बोरिया बिस्तर बांधने के लिए मजबूर किया। इसी प्रकार की उदासीनता हमने कभी अफगानिस्तान के प्रति बरती थी , जब वहां हिंदुत्व का विनाश कर इस्लाम का प्रचार प्रसार किया जा रहा था और यही हमने पाकिस्तान के बनते समय 1947 में भी गलती की थी।
हम गलतियों से शिक्षा लेने को तैयार नहीं होते । बार-बार हम बीती हुई घटनाओं को यह कहकर भूलने का प्रयास करते हैं कि अब 1947 को गुजरे इतने समय हो गए और अफगानिस्तान की घटना या ईरान की घटना को घटित हुए इतने वर्ष हो गए … समय बदल गया है, … बदले समय के साथ रहना सीखो… ऐसे उपदेशक धर्मनिरपेक्ष लेखक ,कवि और तथाकथित बुद्धिजीवी मंच पर आकर हमें फिर से कबूतरी धर्म की शिक्षा देने लगते हैं । हम अपने राष्ट्रधर्म को भूलकर फिर अपने परंपरागत कबूतरी धर्म को अपना लेते हैं, बिना इस बात का ध्यान किए कि उसने हमें अतीत में किस प्रकार खून के आंसू रुलाने के लिए बाध्य किया है?
भारत को हिंदुस्तान कहकर बोलने वाले भी मुसलमान ही थे और अब हिंदुस्तान को भारत कहकर बोलने वाले भी ये मुसलमान ही हैं । तब उन्हें यह हिंदुओं का स्थान दिखाई देता था और आज हिंदुओं का स्थान अर्थात हिंदुस्तान कहने से उन्हें इसमें हिंदू राष्ट्र की गंध आती है। जिसे वह सहन करने को तैयार नहीं हैं। यद्यपि यह पूर्णतया सत्य है कि जब तक भारतवर्ष में हिंदू बहुसंख्या में है तब तक यहां पर धर्मनिरपेक्षता का वर्तमान सिद्धांत लागू रह सकता है। जैसे ही मुस्लिम 40 % हो जाएगा तुरंत इसको इस्लामिक राष्ट्र बनाने की तैयारी जोरों से आरंभ हो जाएगी,। उस समय एक भी हिंदू चूँ तक नहीं कर पाएगा और तब उसके जो फलितार्थ हमारे सामने आएंगे वह सारे संसार से हिंदुओं के सर्वनाश के रूप में देखने को मिलेंगे। जिस कार्य को पूर्ण होने से रोकने के लिए हमारे वीर बहादुर पूर्वजों ने सदियों तक खून बहाया, उसे हम धर्म निरपेक्षता के मूर्खतापूर्ण सिद्धांत के आधार पर मात्र 100 वर्ष में ही पूर्ण होते देख सकते हैं।
आज हमें ओवैसी के 5 विधायकों की मानसिकता को पहचानना होगा । गहरी नींद को त्याग कर अपने पूर्वजों के बलिदानों को ध्यान में रखकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए जागृत होना ही हिंदू के सामने एकमात्र विकल्प है। निश्चित रूप से विकल्पविहीन संकल्प ही हमारी नैया पार कर सकता है अन्यथा सारे संसार से अपना अस्तित्व मिटते देखने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। निश्चित रूप से सावरकर जी और महर्षि दयानंद जी के पदचिन्हों पर चलने की आवश्यकता है।
छद्म धर्मनिरपेक्षता की राजनीति के चलते ओवैसी को निरंतर ऊर्जा मिलती जा रही है। वह कुछ उसी प्रकार ऊर्जावान होता जा रहा है जैसे कभी जिन्नाह को कांग्रेस की मूर्खताओं के कारण ऊर्जा मिलती रही थी। जिन्ना ने कांग्रेस की कमजोरी और घटनाक्रम से उत्साहित होकर 1940 में लाहौर में घोषणा की थी कि उपमहाद्वीप में एक नहीं अपितु दो राष्ट्र हैं। जिन्नाह ने उस समय यह भी कहा था कि आजादी को उन दोनों के सह-अस्तित्व को इस स्वरूप में समायोजित करना होगा जो उन क्षेत्रों को स्वायत्तता और सार्वभौमिकता दे जिनमें मुसलमान बहुसंख्यक हैं।
1945 में जब राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव हुए तो उस समय तक जिन्नाह की मुस्लिम लीग मुसलमानों के हृदय में पूरा स्थान बना चुकी थी। यही कारण था कि पूरे देश के 93% मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को इसलिए मत दिया था कि वह अलग पाकिस्तान बनाना चाहती थी। उस समय उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने सबसे अधिक मुस्लिम लीग का समर्थन सबसे अधिक किया था। आज भी मुसलमान जिस प्रकार ओवैसी या उसके जैसी अन्य मुस्लिमपरस्त पार्टियों के प्रति अपना ध्रुवीकरण करता जा रहा है उसके दृष्टिगत यह समझ लेना चाहिए कि खतरा 1947 से भी अधिक गहरा है। उस समय मुसलमानों ने यह नहीं देखा था कि पाकिस्तान यदि बनेगा भी तो उसका अपना क्षेत्र उस भावी पाकिस्तान में जाएगा या नहीं ? उन्होंने केवल यह देखा था कि हम एक अलग देश लेंगे और अपने उस देश में जाकर रहेंगे। यही स्थिति आज भी बनती जा रही है।
जैसे ओवैसी आज सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों को झांसा देने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है, वही स्थिति उस समय जिन्ना की थी। उसने भी कांग्रेस को झांसा देने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। जैसे कांग्रेस उस समय जिन्नाह के झांसे में आकर उसे कायदे आजम कहे जा रही थी, वही स्थिति आज के धर्मनिरपेक्ष दलों की है। वे ओवैसी के झांसे में आ रहे हैं और उसे फिर एक ‘कायदे आजम’ बनाने बनाते जा रहे हैं। जिन्नाह उस समय वास्तविक महत्व प्राप्त करने के लिए अवास्तविक मांगों को सौदेबाजी के रूप में कॉंग्रेस के सामने रख रहा था? बस ,यही वह स्थिति थी जिसे कांग्रेस समझ नहीं पा रही थी या समझ कर भी समझने का प्रयास नहीं कर रही थी।
आज भी ओवैसी अपने वास्तविक उद्देश्य को पीछे रखकर अवास्तविक मांगों को सामने लाने का प्रयास कर रहा है।
हमें यह तथ्य भी ध्यान रखना चाहिए कि महायुद्ध के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन छेडऩे के अपराध में जेल में बंद नेहरू और उनके सहयोगियों को जून में रिहा कर दिया गया और सर्दियों में प्रांतों और केंद्र के चुनाव हुए जो 1935 के मताधिकार पर ही आधारित थे। नतीजे कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी की तरह थे और होने भी चाहिए थे।
मुस्लिम लीग न सिमटी थी और न ओझल हुई थी। अपने संगठन को खड़ा करने के, उसकी सदस्यता बढ़ाने के, अपना दैनिक पत्र निकालने के और जिन प्रांतीय सरकारों से अब तक उन्हें दूर रखा गया था उनमें अपने कदम जमाने के कामों में जिन्नाह ने महायुद्ध के दौर का सदुपयोग किया था। 1936 में एक ठंडा पड़ चुका उबाल कहकर नकार दी गई मुस्लिम लीग ने 1945-46 में भारी जीत प्राप्त की। उसने केंद्र के चुनावों में हर एक मुस्लिम सीट और प्रांतीय चुनावों में 89 प्रतिशत मुस्लिम सीटें जीत लीं। मुसलमानों के बीच अब उनकी प्रतिष्ठा वैसी हो चली थी जैसी हिंदुओं में कांग्रेस की थी।
देश में नए जिन्नाह का अवतार हो चुका है और हम आज भी गांधीवाद की आरती उतारने में लगे हैं। ‘जय भीम और जय मीम’ के माध्यम से नया जिन्नाह अपना सपना साकार करता जा रहा है। उसने घोषणा कर दी है कि अब वह बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी अपना दमखम दिखाएगा। केवल 5 विधायकों के आ जाने से उसका कितना हौसला बढ़ गया है ? यह समझने की आवश्यकता है। वैसे इन पांचों विधायकों ने हिंदुस्तान शब्द न बोलकर हिंदुस्तान के हिंदुओं को यह बता दिया है कि अब समय सोने का नहीं अपितु जागने का है। इसे यदि हामिद अंसारी जैसे लोग भारत का ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ कहें तो कहते रहें, अंततः सबसे पहले देश को बचाने की चिंता करना प्रत्येक देशवासी का काम है। हामिद अंसारी भी यह समझ लें कि अब भारत किसी भी व्यक्ति को गांधीवादी दृष्टिकोण अपनाकर अपने कलेजा को खाने की अनुमति नहीं दे सकता।

सब जगत ब्राह्मण है

—–विनय कुमार विनायक
मनु-स्मृति है मानव पिता
मनु के आदेश से भृगुऋषि
रचित मानव आचारसंहिता!

जिसमें सब गरल नहीं,
है अमृत वाणी पुनीता,
पढ़ने, सुनने,गुनने की!

ऐसा है मनु का कहना-
शुद्र ही ब्राह्मण होता
ब्राह्मण ही शूद्र होता!
‘शूद्रो ब्राह्मणतामेति
ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्।‘
(मनु.अ.10/65)

महाभारत शांतिपर्व
का शांतिपाठ कहता–
ब्राह्मण ही शूद्र है!
शूद्र ही ब्राह्मण है!
ब्राह्मण भृगुऋषि का कहना-
पूर्व में सृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने
आत्म तेज युक्त सूर्य-अग्नि के जैसा,
ब्राह्मण-प्रजापतियों का सृजन किया!
‘असृजद् ब्राह्मणानेव
पूर्वे ब्रह्मा प्रजापतीन्।
आत्मतेजो भिनिवृर्ताने
भास्कराग्निसमप्रभान।।‘

फिर तो ब्राह्मणों से ही
ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र का
सृजन होता चला गया!
‘ब्राह्मणा: क्षत्रिया वैश्या:
शूद्राश्च द्विजसत्तम ये
चात्ये- निर्ममे'(म.शा.अ.188)

भृगु ने पुनः कहा था
ब्राह्मणों का रंग श्वेत
क्षत्रियों का रंग लाल
वैश्यजन का रंग पीला
शूद्रों का रंग है काला!
‘ब्राह्मणानां सितो वर्ण:
क्षत्रियाणां तु लोहित:।
वैश्यानां पीतको वर्ण:
शूद्राणामसितस्तथा।।‘

भरद्वाज ने प्रश्न किया था
यदि चारो वर्णों में रंग भेद है
तो सभी वर्णों में सभी रंग है
अस्तु चारो वर्णों में ही
वर्णसंकरता का खेद है!
‘चातुर्वर्ण्यस्य वर्णेन
यदि वर्णो विभिद्यते।
सर्वेषां खलु वर्णानां
दृश्यते वर्णसंकर:।।‘

भृगु ऋषि ने पुनः कहा-
वर्णों में कोई विशेषता नहीं
सब जगत ब्राह्मण ही है
पूर्व में सभी ब्रह्म से उद्भूत
फिर कर्म से हुआ वर्ण भेद!
‘न विशेषोअस्ति वर्णानां
सर्वे ब्राह्ममिदं जगत।
ब्रह्मणा पूर्व सृष्टं हि
कर्मभिर्वर्णतां गतम्।।‘

काम भोग-प्रिय,तीक्ष्ण स्वभाव
क्रोधयुक्त गुस्से में लाल होकर
जिन ब्राह्मणों ने स्वधर्म छोड़ा
वे साहस कर्मा क्षत्रिय हो गए।
‘कामभोग प्रियास्तीक्षणा:
क्रोधना: प्रियसाहसा: ।
त्यक्तस्वधर्मा रक्तांगास्ते
द्विजा क्षत्रतां गता: ।।‘

गोपालन वृत्ति,निर्मल चित्त
कृषि व्यवसाय से प्रीति
जिन ब्राह्मणों ने कर ली
वे पीतवर्णी वैश्य बन गए!
‘गोभ्यो वृत्तिं समास्थाय
पीता: कृष्युपजीविन:।
स्वधर्मान नानुतिष्ठन्ति
ते द्विजा वैश्यतां गता:।।‘

हिंसा, असत्य प्रेमी, लोभी
सभी काले कर्मों में लिप्त
ब्राह्मण ही बन गए शूद्र!
‘हिंसानृतप्रिया लुब्धा:
सर्वकर्मोपजीविन: ।
कृष्णा: शौचपरिभ्रष्टास्ते
द्विजा: शुद्रतागता:।।‘

अस्तु ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य,
शूद्र अलग वर्ण होता नहीं,
कर्म भेद से अलग होता है,
यानि जन्मत: भेद है नही,
सत्कर्म से नियति बदलती!

ऐसे हैं बहुत उदाहरण
कर्म से वर्ण जाति के
बदलने की, शक, मग
पहलव,कुषाण, हूण है
विदेशी जाति का खून
बना ये हिन्दू राजपूत!

ईरानी पारसी आर्यजन
मनुपुत्र नरिष्यंत वंशी
शक है चतुष्वर्णी मग,
मशक,मानस, मंदग ये
मगध आ भारत बसे
ढलकर चारो वर्णों में!

मग सूर्य वंशी सूर्य पूजक
जादूगरी; मैजिक मग से
निसृत,अथर्ववेदी मगों की
मगध बिहार है आदिभूमि
अथर्ववेद की प्रसवस्थली!

मांसाहार से पर्यावरण ही नहीं, अर्थ-व्यवस्था खतरे में

विश्व मांसाहार निषेध दिवस- 25 नवम्बर 2020
– ललित गर्ग-

प्रत्येक वर्ष 25 नवंबर को विश्व मांसाहार निषेध दिवस मनाया जाता है, इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि जानवरों के प्रति हिंसा के बर्ताव के प्रति संवेदनशीलता लाना और शाकाहार के प्रति लोगों को प्रेरित करना, जिससे एक सभ्य, अहिंसक और बेहतर समाज का निर्माण हो सके। विश्व इतिहास से लेकर आज तक हमेशा से अहिंसक विचारधारा पर चलने वाले महापुरुषों को बड़े ही सम्मान की नजर से देखा जाता रहा है। भगवान महावीर, महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने जहां भारत को अहिंसा के जरिए विश्व में अपनी पहचान बनाई, वही उन्होंने अहिंसा एवं शाकाहार जीवन पद्धति के प्रति लोगों को जागरूक किया। फिर क्यों आज भी देश से दुनिया तक, शहर से लेकर गांव तक हर जगह मांसाहार पर लोगों का भोजन आधारित है, जिससे करोड़ों बेजुबान निर्दोष जानवर मानव के आहार का शिकार हो जाते हैं। विज्ञान भी यह कहता है कि शाकाहार सबसे बेहतर भोजन है जिससे तमाम प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है, वही मांसाहारी भोजन ग्रहण करने से जहां मानसिक विकार पनपते हैं। कोरोना महामारी में भी शाकाहार को सबसे निरापद, उपयुक्त एवं स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन स्वीकार किया गया है।
कोरोना महासंकट के समय इंसान के खुशहाल जीवन एवं निरोगता के लिये खानपान में बदलाव की स्वर दुनियाभर में सुनाई दे रहे हैं। मांसाहार को छोड़ने वालों की संख्या भारत ही नहीं, दुनिया में बढ़ती जा रही हैं। ग्लोबल रिसर्च कंपनी इप्सोस के हाल ही में कराये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार अब 63 प्रतिशत भारतीय अपने भोजन में मांसाहार के स्थान पर शाकाहार को अपना रहे हैं। एक अन्य समाचार के अनुसार अमरीका में डेढ़ करोड़ व्यक्ति शाकाहारी हैं। दस वर्ष पूर्व नीदरलैंड की डेढ़ प्रतिशत आबादी शाकाहारी थी जबकि वर्तमान में वहाँ पांच प्रतिशत लोग शाकाहारी हैं। सुप्रसिद्ध गैलप मतगणना के अनुसार इंग्लैंड में प्रति सप्ताह तीन हजार व्यक्ति शाकाहारी बन रहे हैं। वहाँ अब पच्चीस लाख से अधिक व्यक्ति शाकाहारी हैं। बढ़ती बीमारियां के कारण जीवन की कम होती सांसों ने इंसान को शाकाहार अपनाने के लिये विवश किया है, सत्य भी यही है कि शाकाहार एक उन्नत जीवनशैली है, निरापद खानपान है।
विश्वभर के डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहारी भोजन उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। फल-फूल, सब्जी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार भोजन में कोई भी जहरीले तत्व नहीं पैदा करता। इसका प्रमुख कारण यह है कि जब कोई जानवर मारा जाता है तो वह मृत-पदार्थ बनता है। यह बात सब्जी के साथ लागू नहीं होती। यदि किसी सब्जी को आधा काट दिया जाए और आधा काटकर जमीन में गाड़ दिया जाए तो वह पुनः सब्जी के पेड़ के रूप में उत्पन्न हो जाएगी। क्यों कि वह एक जीवित पदार्थ है। लेकिन यह बात एक भेड़, मेमने या मुरगे के लिए नहीं कही जा सकती। अन्य विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह इतना भयभीत हो जाता है कि भय से उत्पन्न जहरीले तत्व उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे जहरीले तत्व मांस के रूप में उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं। हमारा शरीर उन जहरीले तत्वों को पूर्णतया निकालने में सामथ्र्यवान नहीं हैं। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुरदे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम मांसाहार का निषेध करते हुए पूर्णतया शाकाहारी रहें। प्रकृति ने मनुष्य को स्वभाव से ही शाकाहारी बनाया है। कोई भी श्रमजीवी मांसाहार नहीं करता, चाहे वह घोड़ा हो या ऊँट, बैल हो या हाथी। फिर मनुष्य ही अपने स्वभाव के विपरीत मांसाहार कर संसार भर की बीमारियां और विकृतियां क्यों मोल लेता है? केवल जिव्हा के स्वाद के लिए मांस भक्षण करना हिंसा ही नहीं अपितु परपीड़न की पराकाष्ठा भी है। सुश्रुत संहिता, में लिखा है कि भोजन पकाना यज्ञ की तरह एक पवित्र कार्य है। मांसाहार से तामसी वृतियां पैदा होती हैं जो इंसान को क्रूर और हिंसक बनाता है, उसके शरीर की रोग-निरोधक क्षमता को कम कर उसे रक्तचाप तथा हृदय रोग जैसी दुसाध्य बीमारी से ग्रस्त करता है, उसके श्वास और पसीने को दुगुर्ण युक्त बनाता है। उसके मन में काम, क्रोध और प्रमाद जैसे दुगुर्ण उत्पन्न करता है। कहा भी है जैसा खाए अन्न, वैसा होए मन।
महात्मा गांधी कहते थे कि स्वाद पदार्थ में नहीं, अपितु मनुष्य की अपनी जिव्हा में होता है। नीम की चटनी से जीभ के स्वाद पर नियंत्रण कर लेने वाले गांधी के देश में आज मांसाहार का विरोध तो दूर, उल्टे कुछ क्षेत्रों में मांसाहार को बल दिया जाना, चिन्तनीय है, अहिंसा के उपासक देश के लिए लज्जास्पद भी। मांसाहार को प्रोत्साहित करने एवं उसके प्रचार करने के लिए मांस उद्योग तरह-तरह के हथकण्डे अपनाता रहा है। भारत में भी इस तरह की कुचेष्टाएं होती रही हैं। व्यावसायिक लोगों के द्वारा अपने लाभ के लिये एवं सरकारें भी मांसाहार एवं अण्डे के प्रचार एवं प्रयोग के लिये इस तरह के तथाकथित क्रूर एवं धार्मिक आस्थाओं को कुचलने वाले उपक्रम करती रही है। हमारे यहां अण्डे को ‘शाकाहार’’ और ‘निर्जीव’’ के रूप में प्रचारित करके पौल्ट्री उद्योग ने अपना व्यावसायिक जाल फैलाने की कुटिल कोशिश की। लेकिन यह शुभ संवाद है कि अब भारत में शाकाहार को बल देने की शुरूआत हुई है, जिसको जन-जन की जीवनशैली बनाना अहिंसा के पक्षधर प्रत्येक प्रबुद्ध नागरिक का नैतिक दायित्व है तथा मुख सुख के लिए निरीह प्राणियों और अजन्मे अंकुरांे की निर्मम हत्या के विरुद्ध जनमानस तैयार करना सबका प्रथम कर्तव्य है।
भारत में शाकाहार को बल देने के प्रयत्न होते रहे हैं, न केवल भारत बल्कि संसार के महान बुद्धिजीवी, उदाहरणार्थ अरस्तू, प्लेटो, लियोनार्दो दविंची, शेक्सपीयर, डारविन, पी. एच. हक्सले, इमर्सन, आइन्सटीन, जार्ज बर्नार्ड शा, एच.जी.वेल्स, सर जूलियन हक्सले, लियो टॉलस्टॉय, शैली, रूसो आदि सभी शाकाहारी ही थे। मनुष्य की संरचना की दृष्टि से भी हम देखेंगे कि शाकाहारी भोजन हमारा स्वाभाविक भोजन है। अमरीका के विश्व विख्यात पोषण विशेषज्ञ डॉ.माइकेल क्लेपर का कहना है कि अंडे का पीला भाग विश्व में कोलस्ट्रोल एवं जमी चिकनाई का सबसे बड़ा स्रोत है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है।
आज विश्व में सबसे बड़ी समस्या है, विश्व शांति की और बढ़ती हुई हिंसा को रोकने की। चारों ओर हिंसा एवं आतंकवाद के बादल उमड़ रहे हैं। उन्हें यदि रोका जा सकता हैं तो केवल मनुष्य के स्वभाव को अहिंसा और शाकाहार की ओर प्रवृत्त करने से ही। भारतीय संविधान की धारा 51 ए (जी) के अंतर्गत भी हमारा यह कर्तव्य है कि हम सभी जीवों पर दया करें और इस बात को याद रखें कि हम किसी को जीवन प्रदान नहीं कर सकते तो उसका जीवन लेने का भी हमें कोई हक नहीं हैं।‘ प्रश्न है कि फिर हमारे यहां बूचड़खानों का विकास एवं उनको प्रोत्साहन देने के व्यापक उपक्रम क्यों होते रहे है? आखिर हम इतने असंवेदनशील क्यों हो गये हैं?
पिछले कुछ सालों में जब से नए शोधों ने यह साबित कर दिया कि शाकाहार इंसान के लिए मंासाहार से अधिक सुरक्षित और निरापद है तब से पश्चिमी देशांे में शाकाहारियों की एक बड़ी तादाद देखने में आ रही है। इतना ही नहीं लोगों को यह भी समझ में बखूबी आने लगा है कि मांसाहार महज बीमारियों की वजह नहीं है बल्कि अहिंसा, शांति, पर्यावरण, कृषि, नैतिकता और मानव-मूल्यों के विपरीत है। यह अर्थव्यवस्था के लिए भी नकारात्मक है। पश्चिम में शाकाहारी होना आधुनिकता पर्याय बन गया है। आए दिन लोग खुद को शाकाहारी घोषित कर इस नए चलन के अगुवा बताने में गर्व अनुभव करते देखे जा सकते हैं। पश्चिमी दर्शनों की विचारधारा, जो कभी मांसाहार को सबसे मुफीद मानती थी वही दर्शनों की धारा अब शाकाहार की ओर रुख करने लगी है। यह कई नजरिए से शाकाहार के हक में एक अच्छा संकेत कहा जाना चाहिए। मांसाहार कई समस्याओं का कारण है और इससे कृषि-संस्कृति को जबरदस्त नुकसान पहुंच रहा है। आयुर्वेद में मांसाहार को विपत्तियों का घर कहा गया है। कृषि-संस्कृति का ध्वजवाहक देश अहिंसा और प्रेम जैसे अनेक मूल्यों का हमेशा से संवाहक रहा है। जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकारें बूचड़खानों को बंद करके देश की जहां खाद्यान्न समस्या का हल निकाल सकती हैं वहीं पर पानी, पर्यावरण, घटते पशुधन, दूध, घी और उर्वरक की समस्या का हल भी निकाल सकते हैं। रोजगार जो करोड़ों लोगों को मिलेगा वह अलग। शाकाहार को प्रोत्साहन देने का अर्थ उत्तम स्वास्थ्य के साथ-साथ उन्नत अर्थ-व्यवस्था एवं प्रगतिशील जीवनशैली है। हम आने वाली पीढ़ियों को शाकाहार के प्रति जागरूक करते हुए उसके फायदे के बारे में लोगों को बताते हुए मांसाहार रहित भोजन ग्रहण करने की नसीहत दे सकें तो विश्व मांसाहार निषेध दिवस मनाने की सच्ची सार्थकता होगी।

ये सन्नाटा है

भीतर कोलाहल है
बाहर सन्नाटा है।
ग़म हो या हो ख़ुशी
कौन किसके घर जाता है।
आभासी आधार लिये
सबसे नाता है।
सभी बहुत एकाकी हैं,
और
इस एकाकीपन में
शाँति नहीं ,
बस सन्नाट्टा है।
हर इंनसान ज़रा सा
घबराया है,
कभी कोई भी मिल जाये तो
डर जाता है,
कहीं किसी कोविड वाले से,
क्या उसका
कोई नाता है।
काम ज़रूरी करने हो
वो करता है,
जीविका चलाने को अब
जीता या फिर मरता है।
कभी थक गया जब इस
नज़रबंदी से..
निकल पड़ा फिर किसी
राह या पगडंडी पे
शांत वहाँ भी हुआ नहीं
क्योंकि शोर में भी
सन्नाटा है….
सन्नाटा है और बस केवल
सन्नाटा है,
इच्छायें सब सन्नाटे में
राख हो गई…
राख सुलग रही है पर
रौशनी गुम है
चाँद सितारे सूरज सब ,
वैसे के वैसे है,
फिर क्यों बदल गये,
धरती पर नियम सारे।

सम्मान हेतु कृतज्ञता ज्ञापन

मनमोहन कुमार आर्य

                हम वैदिक विचारधारा के प्रचारार्थ जो लेख आदि लिखते हैं उसे अनेक पाठक एवं मित्र पसन्द करते हैं। कुछ लोग समय समय पर फोन आदि कर अपनी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद हमें प्रदान करते रहते हैं। इससे हमें कार्य करने का उत्साह उत्पन्न होता है। हिमाचल प्रदेश के पौण्टा साहब स्थान के निवासी श्रद्धेय श्री कृष्ण लाल डंग जी हमारे कार्यों व गतिविधियों से परिचित हैं। उन तक भी हमारे लेख आदि पहुंचते हैं। उनका कई महीने पहले एक बार फोन आया था जब उनसे विस्तार से वार्तालाप हुआ था। हमें तब यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई थी कि आप आर्यजगत के प्रसिद्ध विद्वान ऋषिभक्त आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी के पूज्य पिता हैं। आचार्य आशीष जी देहरादून स्थित वैदिक साधन आश्रम तपोवन में निवास करते हैं तथा यहीं रहकर देश विदेश में प्रचारार्थ आते जाते हैं। आश्रम में आपके द्वारा समय समय पर युवक व युवतियों के लिये अनेक शिविरों का भी आयोजन किया जाता है। हमें वेदिक साधन आश्रम, गुरुकुल पौंधा, आर्यसमाज देहरादून, द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल देहरादून सहित टीवी पर भी आपके व्याख्यान सुनने का गौरव प्राप्त हुआ है।

                श्रद्धेय श्री कृष्ण लाल डंग जी हमारे लेखन कार्य एवं उसमें निहित भावना को अनुभव कर हमारा अर्थ प्रदान कर सम्मान करना चाहते थे। हमें जब जब सम्मान करने का प्रस्ताव मिला है तो हम अपने कार्यों पर विचार करते हैं। हम जो कर रहे हैं वह हमारा कर्तव्य है। इसकी प्रेरणा हमें ऋषि दयानन्द और उनके प्रमुख शिष्यों के जीवन चरित्र पढ़कर तथा दूसरे मत के लोगों द्वारा अपने मत के प्रचार कार्य को देखकर हुई है। वैदिक धर्म का अधिक से अधिक प्रचार हो, हम से जो हो सकता है हमें भी करना चाहिये, इस भावना से ही हमने आर्यसमाज में रहकर लेखन द्वारा कुछ सेवा करने का प्रयास किया है। सम्मान की बात सुनकर हमें आत्मालोचन कर इसे प्राप्त करने में सदैव संकोच हुआ है। हम कार्य तो करते हैं परन्तु उसके लिये हमें आर्थिक सहयोग व अनुदान मिले और हम उसे स्वीकार करें, हमें उचित नहीं लगता। मित्रों से समय समय पर चर्चा करने पर अधिकांश मित्रों ने सम्मान को स्वीकार करने की ही प्रेरणा व परामर्श दिया है। अतः हमें अनेक संस्थाओं व व्यक्तिगत सम्मानों को स्वीकार करना पड़ा है।

                आज हमें श्रद्धेय श्री कृष्ण लाल डंग जी ने प्रसिद्ध ऋषिभक्त विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी के द्वारा सम्मानित किया है। उन्होंने हमें प्रचुर मात्रा में धन भी दिया है। इस सम्मान व सहयोग तथा दाता की भावना को अनुभव कर हम कृतज्ञता का अनुभव करते हैं। हमें नहीं पता कि हमने लो लेखन कार्य किया है उसके लिये हमें सम्मानित किया जाना भी चाहिये। हमने श्री कृष्ण लाल जी की भावनाओं को समझते हुए यह सम्मान एवं सहयोग सादर, सप्रेम, विनीत एवं कृतज्ञ भाव से स्वीकार किया है। हम उनका हृदय से धन्यवाद करते हैं और परमात्मा से उनके लिये स्वस्थ व सुखी जीवन एवं धन ऐश्वर्य की प्राप्ति सहित यश तथा कीर्ति की कामना करते हैं। ईश्वर उन्हें शतायु करें। श्री कृष्ण लाल डंग जी वैदिक धर्मानुसार साधनामय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वह ध्यान व यज्ञ सहित स्वाध्याय में विशेष रुचि रखते रखते हैं। हम ईश्वर से उनकी साधना की सफलता की भी कामना करते हैं। उन्होंने हमारा जो सम्मान किया है उसके लिये हम आजीवन व उसके बाद भी आभारी रहेंगे।

                श्री कृष्ण लाल डंग जी जीवन के 89 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं। उनका स्वास्थ्य ठीक व अच्छा कहा जा सकता है। वह अपनी जीवनचर्या को सुख व स्वाधीनता पूर्वक सम्पन्न करते हैं। श्री कृष्ण लाल जी अपने जीवन में वेटनरी डाक्टर रहे हैं। वह मध्य प्रदेश के चिकित्सा विभाग से संयुक्त निदेशक, वेटेनरी विभाग से सेवानिवृत हैं और वैदिक मान्यताओं एवं परम्पराओं के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं। आपकी सहधर्मणी माता जी आर्यसमाजी परिवार की निष्ठावान अनुयायी रही हैं। वह दन्त चिकित्सक रही हैं। उन्हीं के प्रभाव से श्री कृष्ण लाल जी का जीवन वैदिक धर्म के सिद्धान्तों के पालन में प्रवृत्त हुआ। उन्होंने माता जी के प्रभाव से वैदिक धर्म को मन, वचन व कर्म से अपनाया और अपने सुपुत्र यशस्वी आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी को वैदिक मिशन के प्रचारार्थ समर्पित किया है। आर्यसमाज उनके इस कार्य के लिये सदैव उनका ऋणी रहेगा।                 श्री कृष्ण लाल जी अपने सेवाकाल में एक अनुशासित एवं सत्यनिष्ठ अधिकारी रहे हैं। आपके जीवन में विभागीय सेवा करते हुए वह सभी गुण विद्यमान रहे हैं जो एक आर्य पुरुष में होने चाहिये। निर्भीकता भी आपका एक गुण रहा है। अनुशासित जीवन सहित आपने अपने सिद्धान्तों का पालन भी अपने सेवाकाल में किया है। आपने जीवन में दो या तीन आर्यसमाजों की स्थापनायें भी की हैं तथा समाज के पदाधिकारी भी रहे हैं। हम पुनः श्री कृष्ण लाल डंग जी के प्रति हमें सम्मानित करने के लिए हृदय से कृतज्ञता एवं आभार व्यक्त करते हैं और उनका धन्यवाद करते हैं।

बेशर्मी के लिए नशा बहुत जरूरी है जनाब…

सुशील कुमार ‘नवीन’

आप भी सोच रहे होंगे कि भला ये भी कोई बात है कि बेशर्मी के लिए नशा बहुत जरूरी है। क्या इसके बिना बेशर्म नहीं हुआ जा सकता। इसके बिना भी तो पता नहीं हम कितनी बार बेशर्म हो हुए हैं। हमारे सामने न जाने कितनी बार अबला से छेड़छाड़ हुई है और हम उसे न रोककर तमाशबीन बन देखते रहे। न जाने कितने राहगीर घायल अवस्था में बीच सड़क पर तड़पते मिले और हम ग्राउंड जीरो से रिपोर्टर बन उसकी एक-एक तड़प का फिल्मांकन करते रहे। क्या ये बेशर्मी का उदाहरण नहीं है। और छोड़िए, किसी मजबूर लाचार की मदद न कर उसका उपहास उड़ाकर हमने कौनसा साहसिक कार्य किया।

 जनाब हम जन्मजात बेशर्म है। कुछ कम तो कुछ जरूरत से ज्यादा। हमारी हर वो हरकत बेशर्मी है। जो हमें सुख की अनुभूति कराती रही और दूसरे को पीड़ा। ये नशा ही तो है जो हमें बेशर्म बनाता है। नशा पद, प्रतिष्ठा, सत्ता का ही सकता है। नशा समृद्धि-कारोबार का हो सकता है। नशा हमारी मूर्खता भरी  विद्वता का भी हो सकता है। नशा हमारे भले और दूसरे के बुरे वक्त का भी हो सकता है। सिर्फ खाने-पीने का ही नशा नहीं होता। नशा हर वो चीज है जो हमे राह से भटकाता है।

   अब इसका दूसरा पहलू लीजिए। हम बेशर्म हीं क्यों बनें। क्या इसके बिना काम नहीं चल सकता। इसका जवाब होगा कतई नहीं। जब तक आप होश में होंगे कोई भी ऐसी हरकत नहीं करेंगे जिस पर आपका मजाक बन सकता है। शर्म-झिझक के चलते जिससे आप आंख नहीं मिला सकते। मन की बात कह नहीं सकते। एक पैग अंदर जाते ही वही डरावनी आंखें ‘ समुंद्र’ बन जाती है और आप तैरना न जान भी उसमें डूबने को तैयार हो जाते हैं। इस दौरान आप न जाने, क्या चांद, क्या सितारे सबकुछ जमीं पर लाने का दावा कर जाते हैं। ये तो भलीमानसी होती है सामने वाली की, की वो आपसे सूरज की डिमांड नहीं करती। अन्यथा आप तो उसका भी वादा कर आते। 

   अब आप हमारे सितारों को ही लीजिए। पुरुष होकर नारी वेश धारण कर आपका भरपूर मनोरंजन करते हैं। कभी दादी कभी,नानी बन मेहमानों से फ्लर्ट करते हैं तो कभी गुत्थी बन ‘हमार तो जिंदगी खराब हो गई’ डायलॉग मार विरह वेदना का प्रस्तुतिकरण करते हैं। कभी सपना बन मसाज के मेन्यू कार्ड की चर्चा करते हैं तो कभी पलक बन अपने संवादों से हमें लुभाते हैं। आपके सामने वो सब हरकतें करतें हैं जिसे सपरिवार देखने की हमारी हिम्मत नहीं होती। फिर भी हम उनकी सारी बेशर्मी को दरकिनार कर उन्हें ललचाई नजरों से न केवल देखते हैं अपितु ठहाके भी लगाते हैं । क्योंकि हम भी तो बेशर्म हैं। स्वाद का नशा हम पर हावी रहता है। 

  अब वो थोड़ा नशा गांजा, कोकीन,सुल्फा आदि का कर भी लें तो कोई गुनाह थोड़े ही है। अपनी बेइज्जती करवाकर आपको हंसाना कोई सहज काम थोड़े ही है। ये तो वही काम है कि भरे बाजार मे पेटीकोट-ब्लाऊज पहना कोई आपको दौड़ने को कह दे। विवाह शादी में पत्नी की चुन्नी ओढ़ कर ठुमके तभी लगा पाते हो जब दो पैग गटके हुए हो। नागिन डांस में जमीन पर भी ऐसे लोटमलोट नहीं हो सकते। अब बेचारा कपिल हवाई उड़ान में किसी से लड़ पड़े या भारती के पास गांजा मिल जाये तो हवा में न उड़िये। नशे में हम सब हैं। क्योंकि बिना नशे के हम बेशर्म हो ही नहीं सकते। नशा न होता तो हम सबको अच्छे-बुरे सब कर्मों की फिक्र होती जो वर्तमान में हमें नहीं है। तो सबसे पहले अपने नशे की खुमारी उतारिये फिर दूसरों के नशे पर चर्चा करें।

नोट: लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसका किसी के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं है। 

वैदिक धर्म सत्य सिद्धान्तों से युक्त तथा अन्धविश्वासों से मुक्त है

-मनमोहन कुमार आर्य
वैदिक धर्म ही मनुष्य का सत्य व यथार्थ धर्म है। इसका कारण वैदिक धर्म का ईश्वरीय ज्ञान वेदों पर आधारित होना है। वेदों को हमारे ऋषि मुनियों ने सब सत्य विद्याओं का पुस्तक बताया है। वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक इसलिये है कि वेदों का प्रादुर्भाव सृष्टिकर्ता ईश्वर से हुआ है। संसार में तीन सत्ताओं ईश्वर, जीव व प्रकृति में पूर्ण ज्ञान से युक्त केवल एक ही सत्ता है जिसे ईश्वर कहते हैं। ईश्वर का सर्वज्ञ वा सर्वज्ञानमय होना नित्य व अनादि है। इसे ईश्वर का स्वाभाविक गुण भी कह सकते हैं। हम मनुष्य हैं तथा हमारा जीवन हमारे शरीर में निहित जीवात्मा के द्वारा चलता है। जीवात्मा अत्यन्त सूक्ष्म, एकदेशीय, ससीम एवं एक अल्पज्ञ जन्म-मरण धर्मा सत्ता है। हमने मनुष्य जन्म लिया तब हम रोने व दुग्धाहार आदि करने के अतिरिक्त कुछ जानते नहीं थे। हमारे माता पिता ने हमें बोलना व समझना सिखाया। हमारी भाषा वही होती है जिसे हमारी मातायें बोलती हैं। हमें ज्ञान भी उसी मात्रा में प्राप्त होता है जितना हमें हमारे माता-पिता तथा विद्यालयों में हमारे आचार्य हमें कराते हैं। इसके अतिरिक्त भी हम विद्वानों के ग्रन्थों को पढ़कर अपनी जानकारी व ज्ञान को बढ़ाते हैं।

वेद व वैदिक साहित्य भी पुस्तकों में सुलभ होता है। वर्तमान समय में वेदों व वैदिक साहित्य के हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं में अनेक भाष्य, टीकायें व अनुवाद हमें प्राप्त होते हैं। इन्हें पढ़कर भी हम वेद व समस्त वैदिक साहित्य से परिचित हो सकते हैं। वेदों मे जो ज्ञान प्राप्त होता है वह ज्ञान संसार के किसी वेद परम्परा के विपरीत परम्परा वाले ग्रन्थ से प्राप्त नहीं होता। वेद संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। इसे विश्व के सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। अतः वेदों की सभी सत्य बातें ही संसार की सभी परम्पराओं, संस्कृतियों, मत व सम्प्रदायों जिन्हें धर्म भी कहा जाता है, वेदों से ही उनमें पहुंची हैं। मनुष्य की अल्पज्ञता के कारण बहुत सी सत्य बातों का लोप भी विगत दीर्घकाल में हुआ है। इसलिये वेदों का अध्ययन किये जाने की महती आवश्यकता है। वेदों का अध्ययन छूटने से ही हम अविद्या व अज्ञान सहित अन्धविश्वासों, पाखण्डों, मिथ्या दूषित परम्पराओं व कुरीतियो को प्राप्त हुए हैं। वर्तमान में भी मत-मतान्तरों में अनेक कुरीतियां व अन्धविश्वास देखे जाते हैं। इनके विद्यमान होने से संसार के सभी मनुष्य सुख व शान्ति से जीवन व्यतीत नहीं कर पाते। अतः वेदों पर आधारित ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति व सृष्टि, मनुष्य के कर्तव्य व अकर्तव्यों सहित ईश्वर की एक समान उपासना पद्धति जो मनुष्य को ईश्वर के सभी सत्य गुणों, कर्मों व स्वभाव से परिचित करा कर उसका साक्षात्कार करा सके, आवश्यकता है। ऐसा होने पर ही मनुष्य सत्य ज्ञान व मान्यताओं से युक्त होकर परस्पर प्रेम व सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए जीवन के चार पुरुषार्थ व फलों धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त हो सकते हैं। यही संसार के सभी मनुष्यों के लिए अभीष्ट हैं। 

हमारा यह संसार ईश्वर से बना है। उसी ने इसको धारण किया हुआ है। वही इस संसार को गति देता व इसके चलाने के साथ इसे सम्भाले हुए हैं। हमारे ग्रह व उपग्रह अपनी अपनी नियत कक्षाओं में चलते हैं। कोई अपने मार्ग का अतिक्रमण व उल्लघंन नही करता है। इसका कारण इनका ईश्वर के द्वारा संचालित होना है। ईश्वर एक सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, सर्वज्ञ, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र सत्ता है। ईश्वर ही सृष्टिकर्ता है। वही सब जीवों का माता, पिता व आचार्य भी है। ईश्वर ही अल्पज्ञ जीवों को उनके पूर्वजन्मों के कर्मों का फल देने के लिये इस सृष्टि को बनाते व इसे संचालित करते हैं तथा प्रत्येक जीव को उसके कर्मों का सुख व दुःख रूपी फल देते हैं। ईश्वर पूर्ण ज्ञानी है। उसे सब विषयों का ज्ञान है। वह सर्वशक्तिमान है। वह सृष्टि को बनाने व उसे संचालित करने में किसी अन्य जीव आदि की सहायता नहीं लेता। उसके समान कोई अन्य चेतन सत्ता है भी नहीं है। जीव अल्पज्ञ एवं अल्प बल वाले होते हैं। वह ईश्वर के कार्यों में किसी प्रकार से भी सहायक नहीं हो सकते।

 सभी चेतन अनादि, अमर, नाशरहित जीव सत्तायें ईश्वर से ही जन्म, ज्ञान, शक्ति तथा सुख आदि प्राप्त करते हैं। ईश्वर ने ही सब मनुष्यों को जन्म व उनके जन्म के अनुसार शरीर आदि पदार्थ प्रदान किये हैं। सृष्टि के आरम्भ काल में ही उसने मनुष्यों को श्रेष्ठतम निर्दोष भाषा संस्कृत भाषा दी थी। इसी भाषा में परमात्मा ने मनुष्यों को ज्ञान युक्त करने के लिए चार ऋषियों के माध्यम से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान दिया था। यह ज्ञान सब सत्य विद्याओं से युक्त है। वेदों का अध्ययन कर ही मनुष्य पूर्ण ज्ञानी बनते हैं। पूर्ण ज्ञानी का अर्थ होता है कि मनुष्य की बुद्धि जितना ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम है, वह समस्त ज्ञान उसे वेदों का अध्ययन व उसका प्रयोगों व अनुभवों द्वारा विस्तार करने पर प्राप्त हो जाता है। संसार में विद्याओं का विस्तार भी वेदों से प्राप्त शिक्षा के आधार पर ही भाषा व ज्ञान से परिचित लोगों ने किया है। यह भी सत्य है कि मनुष्य को संस्कृत भाषा की शुद्धता को पूर्णरूपेण सुरक्षित रखने में सफलता नहीं मिली। उनमें उच्चारण के अनेक दोष उत्पन्न होने से नई नई अनेक भाषायें देश देशान्तर में उत्पन्न हुईं। उन्हीं भाषाओं की सहायता से लोगों ने परस्पर सहयोग एवं समन्वय से ज्ञान व विज्ञान की उन्नति की है। एक विषय में ज्ञान व उसके निष्कर्ष एक ही होते है। इस कारण विश्व में ज्ञान व विज्ञान की विषय वस्तु तथा निष्कर्षों में एकता व समानता तथा विश्व के सभी विद्वान एक विषय में एक मत को स्वीकार करने वाले देखे जाते हैं। वेदों का ज्ञान भी परमात्मा के अनुभवों से सिद्ध ज्ञान है। अतः वेदों की सभी बातें स्वतः प्रमाण मानी जाती हैं। वेदों की किसी बात को यथार्थरूप में जानकर उसे यथावत् माना जा सकता है। इसी से कल्याण होता है। हमें वेदों की मान्यताओं एवं सिद्धान्तों का चिन्तन, मनन व ध्यान करते रहना चाहिये और उसका सदुपयोग अपने जीवन में आचरण द्वारा करना चाहिये। इससे हमें धर्म पालन सहित सुख व कल्याण का लाभ प्राप्त होता है। ऐसा ही हमारे पूर्वज व पूर्ण विद्वान ऋषि मुनि सृष्टि के आरम्भ से करते आये हैं। यही हमें भी करना योग्य है। ऐसा करने से हम सदाचारी बनते व ईश्वर की कृपा व सहाय के पात्र बनते हैं। 

ऋषि दयानन्द वेदों के सच्चे मर्मज्ञ ऋषि थे। उन्होंने वेदों की प्रत्येक बात व सिद्धान्त की तर्क व युक्ति पूर्वक एवं ज्ञान व विज्ञान पर आधारित परीक्षा की थी। उन्होंने वेदों की सभी बातों व कथनों को सत्य पाया था। इसीलिये उन्होंने वेद स्वतः प्रमाण है, इस सिद्धान्त को स्वीकार किया व इसका प्रचार किया था। इस सिद्धान्त को सत्य सिद्ध करने के लिये उन्होंने सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय, पंचमहायज्ञविधि, आर्योद्देश्यरत्नमाला, व्यवहारभानु आदि अनेक ग्रन्थ लिखे। इन ग्रन्थों व उनके वेदभाष्य से मनुष्य को अपने सम्पूर्ण जीवन में सद्शिक्षा, मार्गदर्शन व प्रेरणायें प्राप्त होती है। मनुष्य वेद मार्ग पर चल कर सत्य से युक्त होकर ईश्वर का साक्षात्कार तक कर सकता है और जीवनमुक्त होकर मुक्ति वा मोक्षानन्द को प्राप्त कर सकता है। यही संसार के सभी मनुष्यों का जीवन लक्ष्य होता है। हमारे प्राचीन सभी ऋषि, मुनि व विद्वान भी वेदों का अध्ययन व आचरण किया करते थे। इसी से उनको यश प्राप्त हुआ था तथा वह मोक्ष को प्राप्त हुए थे। हमारे महापुरुष राम व कृष्ण ने भी वेदों का ही अध्ययन व आचरण किया था। आज लाखों वर्ष बाद भी उनका यश विद्यमान है। 

वेदों का अध्ययन करने पर विदित होता है कि वेद ज्ञान से युक्त तथा अज्ञान से मुक्त हैं। यही कारण है कि वेदाध्ययन करने से मनुष्य ज्ञानी, विद्वान, मनीषी, ऋषि, मुनि व योगी बनते हैं। वह सत्य धर्म व आचरणों से युक्त होते हैं। उनके जीवन में किंचित कोई अन्धविश्वास व पाखण्ड नहीं होता। उनके जीवन में किसी प्रकार की कोई मिथ्या व असत्य परम्परा व कुरीति नहीं होती। वह स्वयं वेद पढ़ते व सभी स्त्री व पुरुषों को बिना किसी आग्रह व भेदभाव के वेदों को पढ़ाते व वेदों का प्रचार करते हैं। ऋषि दयानन्द ने भी वेदों से प्रेरणा ग्रहण कर वेद प्रचार किया था। उन्होंने सबको वेदाध्ययन का अधिकार दिया। स्त्री व शूद्र वर्ण के बन्धुओं को भी विद्या का अधिकार दिया जिससे हमारी मातायें, बहिनें तथा हमारे शूद्र बन्धु हमारे पुरोहित व विद्वान बनें और सब मिलकर यज्ञ करते हुए यज्ञ के पुरोहित व ब्रह्मा भी बनते हैं। इससे सिद्ध हो जाता है कि वेद में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। सबको विद्या अध्ययन करने तथा सभी प्रकार के मर्यादोचित कार्य करने की स्वतन्त्रता है। इन व ऐसे ही कारणों से वेदों का सर्वोपरि महत्व है। संसार के सभी लोगों को ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों का अध्ययन कर आर्यसमाज वा वैदिक धर्म की शरण में आना चाहिये। इसी से मनुष्य जाति व संसार का सुधार व कल्याण होगा तथा सभी मनुष्य सुखी होंगे। महाराज मनु ने कहा है कि ‘वेदऽखिलो धर्म मूलम्’ अर्थात् चारों वेद ही धर्म का मूल व आदि स्रोत हैं। हमें मूल को ही पकड़ना चाहिये, उसे सुरक्षित रखना चाहिये तथा उसी का सेवन करना चाहिये। मूल के विपरीत व उसके विकृत स्वरूपों का सेवन नहीं करना चाहिये जो हमें मत-मतान्तर आदि से प्राप्त होते हैं। हमें इस रहस्य को जानकर वेदों की ही अपना धर्मग्रन्थ व जीवन में आचरण का आधार बनाना चाहिये। इससे हम आत्मा व शरीर की उन्नति को प्राप्त होकर मोक्षगामी हो सकते हैं। ओ३म् शम्। 

लव बनाम जिहाद,सियासत की नई बुनियाद!

देश की सियासत के लिए कुछ भी कहना असंभव है। इसका मुख्य कारण यह है कि सियासत का कोई भी पैरामीटर निर्धारित नहीं है। इसलिए सियासत का ऊँट कब किस करवट बैठ जाए कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि राजनीति प्रत्येक दिन नया से नया पैंतरा अपनाती है जिसमें देश की तमाम राजनीतिक पार्टियोँ का दो धड़ों में बँटना तय होता है। जिसमें एक खेमा पक्ष की भूमिका में होगा तो दूसरा खेमा विपक्ष की भूमिका में होगा। फिर रस्साकसी आरंभ होना भी तय है। जिसमें बात तो देश की जनता के सरोकार के नाम पर होगी लेकिन आश्चर्य की बात यह होगी कि धरातल पर उस शून्य स्तर पर खड़े पंक्ति के अंतिम व्यक्ति से कोई भी पूछने वाला नहीं है कि तंग गलियों में उसकी जरूरी एवं अति आवश्यक समस्याएं क्या हैं। जिसका अबतक उपचार नहीं हो सका। जिससे आम जनमानस पूरी तरह पीड़ित है। लेकिन राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से जिस मुद्दे को चाहती हैं उसे गढ़कर तैयार कर देती हैं। और फिर क्या देखते ही देखते जनता के सिर पर लाकर पटक देती हैं। फिर क्या सियासी गलियारों में तेजी के साथ मुद्दे को गर्म भी किया जाता है। और फिर उस मुद्दे रूपी पुतले में सियासी जान फूँकना आरंभ होना शुरू हो जाता है। जिसका जिन्न बोतल से बाहर निकलकर टीवी चैनलों के माध्यम से उछल-उछलकर और कूद-कूदकर सामने आने लगता है। जिससे कि पूरे देश में एक नया राजनीतिक माहौल गढ़ने का प्रयास बखूबी किया जाता है। फिर गढ़े हुए सियासी माहौल को राजनीति के ढ़ांचे में तराश कर बड़ी ही खूबसूरती के साथ जनता के सामने परोस दिया जाता है। उसके बाद सियासत दानो के द्वारा उसी गढ़े हुए ढ़ाँचे में खूब सियासी हवाएं दी जानी शुरु हो जाती हैं। और फिर देश की जनता दर्शक बनकर निहारती रहती है। देश के मंझे हुए खिलाड़ी राजनेता अपनी-अपनी सियासी रोटियों को लेकर बैठ जाते हैं और फिर सियासी रोटियों को गढे हुए मुद्दे की आग पर सेंकने का करतब दिखाना शुरू कर देते हैं।
आज पूरे देश यही हो रहा है लव-जिहाद का मामला बडी तेजी के साथ तूल पकड़ रहा है। जिसमें कई राज्यों ने इसके खिलाफ सख्तर कानून बनाने की तरफ अपने कदमों को भी बढ़ा दिया है तो कुछ इस राह पर आगे चल रहे हैं। हरियाणा, मध्या प्रदेश और उत्तबर प्रदेश में इसको लेकर जबरदस्तु पहल की गई है। कुछ ही दिन पहले हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने कहा था कि इस तरह के कानून का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। मध्य प्रदेश की सरकार ने नियम के ढ़ांचे की आकृति उकेरकर न्याय विभाग को भेज दिया तो उत्तर प्रदेश में भी बड़े पैमाने पर सियासी माहौल गर्म है। उत्तर में इसकी शुरुआत मुख्सपमंत्री योगी आदित्यानाथ ने की जिन्होंने सख्त लहजे में संदेश देते हुए कहा कि बहन, बेटियों की इज्जतत से खेलने वालों का अब अंत हो जाएगा। केवल शादी करने के लिए धर्म को बदलना किसी भी सूरत से स्वीीकार नहीं किया जा सकता है। न ही इस तरह के कृत्यों को मान्यवता दी जाएगी। हरियाणा एवं मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में बनाए जाने वाले इस प्रस्तालवित कानून में 5 वर्ष तक की सजा का प्रावधान होने की खबरें आ रही हैं। हरियाणा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की ही तरह दूसरे भाजपा शासित राज्यों में भी इस तरह की कवायद तेज होती दिखाई दे रही है। इसमें असम और कर्नाटक का नाम भी शामिल है। मध्ये प्रदेश के मुख्य।मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो वहां हुए विधानसभा उपचुनाव से एक दिन पहले ही इसका एलान किया था। इस कानून के तहत गैर जमानती धाराओं में कार्रवाई की जा सकेगी। इस कानून के तहत धर्म परिवर्तन करवाने वाले और जबरन शादी करवाने वाले आएंगे। इसके अलावा गलत जानकारी देकर, बहला-फुसलाकर और धोखे से शादी करने वाले भी इसकी जद में आएंगे। दोषी पाए जाने पर शादी को अमान्य करार दिया जाएगा। इस कानून की खास बात यह है कि कार्यवाही की दृष्टि से इस तरह के अपराध के पीडि़त व्याक्ति या उसके अभिभावक शिकायत दर्ज करवा सकेंगे। मामला दर्ज होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी संभव हो सकेगी। इस मामलों में आरोपी के सहयोगियों पर भी समान धाराओं में मुकदमा चलाया जा सकेगा।
विभिन्नम राज्योंद द्वारा इस ओर की जा रही कवायद पर कानूनी जानकार मानते हैं कि जब तक कोई कानून पूर्ण रूप से सामने नहीं आ जाता है तब तक उसके बारे में बात करना मुश्किल होगा। हालांकि राज्योंी के एक्टत बनाने में वह इसके तहत फैमिली कोर्ट को लाते हैं या नहीं, या इस कोर्ट को कितने अधिकार देते हैं यह राज्योंे पर ही निर्भर करेगा। जोकि राज्य सरकारों के अपने-अपने नियम के अनुसार निर्भर करेगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उपचुनाव में चुनावी जनसभाओं को संबोधित करते हुए लव जिहाद करने वालों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा था कि लव जिहाद करने वाले अगर नहीं सुधरे तो अब राम नाम सत्य की यात्रा पर निकलने वाले हैं। जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए कहा था कि शादी-व्याह के लिए धर्म परिवर्तन करना मान्य नहीं है। इसलिए सरकार भी निर्णय ले रही है कि हम लव जिहाद को शख्ती से रोकने का काम करेंगे। इसके लिए एक प्रभावी कानून बनाएंगे। मुख्यमंत्री ने आगे कहा हम लोग मिशन शक्ति को इसीलिए चला रहे हैं। इस मिशन शक्ति के माध्यम से ही हम बेटी और बहन को सुरक्षा की गारंटी देंगे। लेकिन उन सब के बावजूद अगर किसी ने दुस्साहस किया तो ऑपरेशन शक्ति अब तैयार है। ऑपरेशन शक्ति का उदेश्य है कि हम हर हाल में बहन-बेटियों की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा करेंगे। इसी दृष्टि से ऑपरेशन शक्ति को आगे बढ़ाने के साथ अब हम चल रहे हैं। न्यायालय के आदेश का भी पालन होगा और बहन-बेटियों का भी सम्मान होगा।
लेकिन एक सवाल यह भी है कि देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई बार कह कि शादी करने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 में मिले जीवन के अधिकार के तहत आता है इस अधिकार को कोई नहीं छीन सकता। न्यायालय के अनुसार अगर लड़की और लड़का संविधान के नियमानुसार अपनी उम्र पूरी कर ली है तो वह शादी कर सकते हैं उनकी शादी में जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा जैसी चीजें बाधा नहीं बनती हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट और अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। अगर नवदंपति को अपने परिजनों से जान-माल का खतरा है तो वह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से सुरक्षा की मांग भी कर सकते हैं। किसी भी लड़के या लड़की को शादी करने के लिए किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है शादी के लिए शर्त सिर्फ इतनी है कि लड़का या लड़की की दिमागी स्थिति ठीक होनी चाहिए ताकि वह शादी के लिए अपनी सहमति दे सकें। नियम के अनुसार शादी के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट, इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट और फॉरेन मैरिज एक्ट समेत कई एक्ट बनाए गए हैं इनके तहत शादी लड़की और लड़के की मर्जी से होती है इसके लिए किसी से इजाजत की जरूरत नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट यहां तक कह चुका है कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने के अधिकार में गरिमा के साथ जिंदगी जीना भी आता है इसके लिए व्यक्ति को अपनी मर्जी से जीवन साथी चुनने और शादी करने का अधिकार है।
लेकिन मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के अनुसार भविष्य में सियासी ऊँट किस करवट बैठता है कुछ भी अभी से नहीं कहा जा सकता। क्योंकि जिस प्रकार से देश की सियासी हवा गर्म हो चली है उससे तो यह सत्य है कि हर गली और हर चौराहे पर चर्चों का बाजार गर्म होना तय है। एक बात तो तय है कि इस मुद्दे को जनसमर्थन मिलना भी तय है उसका कारण यह कि देश 99 प्रतिशत नागरिक यह नहीं चाहता कि उसकी संताने उसकी इच्छा के विपरीत जाकर विवाह करें परन्तु कहीं न कहीं माता-पिता अपनी संतानों के आगे विवश एवं असहाय हो जाते हैं और कानून एवं न्यायालय के दुहाई देकर शांत हो जाते हैं। लेकिन जब से इस प्रकार का कानून अपने मूल ढ़ांचे में आ जाएगा उससे माता-पिता की चिंता समाप्त होना स्वाभाविक है। क्योंकि आज हमारे समाज में प्रत्येक स्थानों पर बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है वह यह कि कालेज और स्कूल से लेकर नौकरी के क्षेत्रों तक जिस प्रकार से आज की जनरेशन अपने तर्कों के आधार पर अपने निजी जीवन का फैसला करती है उस पर निश्चित ही पूर्णविराम लगेगा। जिससे कि सामाज में एक बड़ा संदेश जाएगा। क्योंकि प्रत्येक नौजवानों के साथ उनके माता पिता की आशाएं एवं आकाक्षाएं जुड़ी हुई होती हैं। जोकि संतानो के द्वारा इस प्रकार से स्वयं के द्वारा लिए गए फैसलों के सामने कमजोर हो जाती हैं। अतः इस कानून से समाज के उन अभिभावकों को बल मिलना तय है जोकि अबतक इस दिशा में बढ़ते हुए युवाओं के प्रति चिंतित थे। यह अलग बात है कि तमाम राजनेता इस कानून को अपने-अपने अनुसार गढ़कर तैयार करेंगें। जिससे की सियासत की नयी ज़मीन तैयार होना भी स्वाभाविक है। जिसका लाभ लेने के लिए सियासी पार्टियां अपने-अपने अनुसार बखूबी गढ़ने का प्रयास भी करेंगी।

ताकि बचा रहे सबका मन मंदिर

—–विनय कुमार विनायक
निठल्ला नारद ही हमेशा
नारायण-नारायण कहता,
नारद के हाथों जब थमा दी जाती
तेल की कटोरी या आटे-दाल की बोरी
तो तुलाधार बनिया या
सधना कसाई की तरह
रामो जी राम एकबार भी नहीं कहता!

सर्वविदित है हर धर्म के साथ जुड़ी होती
धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की कामना!
वैसा भी धर्म क्या जिससे हो अर्थ की हानि,
कर्म में व्यवधान,मोक्ष प्राप्ति के बजाय
असमय मरकर स्वीकारनी पड़े प्रेत योनि!

एक मंदिर या मस्जिद बनाने के पहले
जहां ढह जाते हजारों मन-मंदिर
वहां बेईमानी है कहना
कि मंदिर-मस्जिद वहीं बनाएंगे!
किसी ईश्वर ने नहीं कहा
कि हम रहते हैं मंदिर या मस्जिद में
किसी अवतार-पैगम्बर-देवदूत ने नहीं कहा
कि हम रहेंगे किसी मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर में!

अवतार-मसीहा-पैगम्बर युगानुसार जन्म लेते
पैदा करते हैं एक युगधर्म
जो परिस्थिति के बदलते ही उलट-पलट जाता!
फिर बदली परिस्थिति में कितना तर्क संगत है
पूर्व के बाह्याचरण को पालना?

राम ने मारा था रावण को या नबी के
वलीअहद ने छेड़ा जिहाद अपने युगधर्मानुसार
जो आज जायज नहीं किसी के लिए
राम बनकर रावण को मारना
या जेहादी बनकर विधर्मी का गला उतारना!

राम या अवतार-पैगम्बर एक राजधर्मसत्ता थे
और आज संख्या गणित की सत्ता है
यह युग है एक से गिनती गिनने का
हर एक जीवन को बचाने का
मनुज को मनुज बनाने का!

यह युग नहीं उलटी गिनती गिनने का,
यह समय नहीं परशुराम बन जाने का
इक्कीसबार जाति संहार का कसम खाने का!
अस्तु; एक मंदिर बनाने के पहले बेहतर है
अनेक मन मंदिर को बचाना!

मंदिर जो मिला है हर एक को ईश्वर से
मंदिर जो नंगा है उनकी वजह से
जिनकी योग्यता है एकमात्र पोशाक
खादी का कुर्ता/सफेद लिबास!

लिबास जो मिटा देता है
अनपढ़ और पढ़े-लिखे का अंतर
पोशाक जो साजिश करता
आत्मा को नंगा करने का
निठल्ले नारद को आठोयाम पुजारी बनाने का
ईश्वर को मुट्ठी में कैद करने-कराने का
जरुरत है उनको बेनकाब करना,
ताकि बचा रहे सबका अपना-अपना मंदिर!

लॉक डाउन से बस प्रदूषण हुआ कम, ग्रीनहाउस गैसें अब भी लहरा रहीं परचम

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) की आज जारी रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के कारण हुई औद्योगिक मंदी ने ग्रीनहाउस गैसों के रिकॉर्ड स्तर पर कोई अंकुश नहीं लगाया है। ये गैसें, जो वातावरण में गर्मी को बढ़ा रहीं हैं, अधिक चरम मौसम, बर्फ के पिघलने, समुद्र के स्तर में वृद्धि और महासागरीय अम्लीकरण के संचालन के लिए ज़िम्मेदार हैं।
लॉकडाउन ने कार्बन डाइऑक्साइड जैसे कई प्रदूषकों के उत्सर्जन में तो कटौती की, लेकिन CO2 सांद्रता पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। डब्लूएमओ ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में 2019 में तो वृद्धि बनी ही रही, वो वृद्धि 2020 में भी जारी है।
2019 में CO2 की वृद्धि वार्षिक वैश्विक औसत 410 अंश प्रति मिलियन की महत्वपूर्ण सीमा को पार कर गयी। 1990 के बाद से, कुल रेडिएटिव फोर्सिंग में 45% की वृद्धि हुई है।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए डब्लूएमओ महासचिव प्रोफेसर पेट्ट्री तालास ने कहा, “कार्बन डाइऑक्साइड सदियों के लिए वायुमंडल और समुद्र में बस जाता है। पिछली बार पृथ्वी को CO2 की तुलनात्मक एकाग्रता का अनुभव 3-5 मिलियन साल पहले हुआ था, जब तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था और समुद्र का स्तर अब से 10-20 मीटर अधिक था। लेकिन तब धरती पर 7.7 बिलियन लोग नहीं थे।”
वो आगे कहते हैं, “हमने 2015 में 400 अंश प्रति मिलियन की वैश्विक सीमा का उल्लंघन किया। और सिर्फ चार साल बाद, हमने 410 ppm (पीपीएम) को पार कर लिया। इस तरह का वृद्धि दर हमारे रिकॉर्ड के इतिहास में कभी नहीं देखा गया है। लॉकडाउन से उत्सर्जन में आयी गिरावट बस एक छोटी सी चमक भर थी। इसे हमें मेंटेन करना है।”
पर्यावरण या  जलवायु को कोविड-19 महामारी के प्रभावों से किसी तरह का कोई समाधान नहीं मिल रहा है। लेकिन हाँ, यह हमारे औद्योगिक, ऊर्जा और परिवहन प्रणालियों के पूर्ण रूप से पुनरावलोकन और एक महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के लिए एक मंच ज़रूर प्रदान करता है।
प्रोफेसर पेट्ट्री तालास आगे कहते हैं, “कई देशों और कंपनियों ने खुद को कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए प्रतिबद्ध किया है और यह स्वागत योग्य कदम है। वैसे भी अब खोने के लिए कोई समय नहीं है।”
ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट ने अनुमान लगाया कि शटडाउन की सबसे तीव्र अवधि के दौरान, दुनिया भर में दैनिक CO2 उत्सर्जन आबादी के कारावास की वजह से 17% तक कम हुआ है। क्योंकि लॉकडाउन की अवधि और गंभीरता अस्पष्ट हैं, इसलिए 2020 में कुल वार्षिक उत्सर्जन में कमी की भविष्यवाणी बहुत अनिश्चित है।
यह ताज़ा रिपोर्ट ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच और पार्टनर नेटवर्क से टिप्पणियों और मापों पर आधारित है,  जिसमें दूरस्थ ध्रुवीय (पोलर) क्षेत्रों, ऊंचे पहाड़ों और उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) द्वीपों में वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन शामिल हैं।
अब इन गैसों के बारे में अलग अलग बात कर ली जाए। सबसे पहले बात कार्बन डाइऑक्साइड की करें मानव गतिविधियों से संबंधित वायुमंडल में एकल सबसे महत्वपूर्ण लंबे समय तक रहने वाली ग्रीनहाउस गैस है, जो दो तिहाई रेडिएटिवे फोर्सिंग के लिए ज़िम्मेदार है।
दूसरी महत्वपूर्ण गैस है मीथेन, जो लगभग एक दशक के लिए वायुमंडल में बसी रहती है। मीथेन लंबे समय तक रहने वाले ग्रीनहाउस गैसों द्वारा रेडिएटिव फोर्सिंग के लगभग 16% का योगदान देता है। लगभग 40% मीथेन प्राकृतिक स्रोतों (जैसे, आर्द्रभूमि और दीमक) द्वारा वातावरण में उत्सर्जित होती है, और लगभग 60% मानवजनित स्रोतों से आती है (जैसे, जुगाली, चावल की कृषि, जीवाश्म ईंधन का दोहन, लैंडफिल और बायोमास जलाना)। अब बात नाइट्रस ऑक्साइड की करें तो, ये एक ग्रीनहाउस गैस और ओजोन क्षयकारी रसायन, दोनों है।
इन सभी गैसों की सांद्रता में फ़िलहाल कोई कमी नहीं आयी है और अंततः इस पूरी रिपोर्ट से हमें पता चलता है कि सब उतना अच्छा नहीं जितना प्रतीत होता है। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अभी करने को बहुत है।

आयुर्वेद और एलोपेथी का मिलन

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत सरकार ने देश की चिकित्सा-पद्धति में अब एक एतिहासिक पहल की है। इस एतिहासिक पहल का एलोपेथिक डाॅक्टर कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि देश के वैद्यों को शल्य-चिकित्सा करने का बाकायदा अधिकार दे दिया गया तो देश में इलाज की अराजकता फैल जाएगी। वैसे तो देश के लाखों वैद्य छोटी-मोटी चीर-फाड़ बरसों से करते रहे हैं लेकिन अब आयुर्वेद के स्नातकोत्तर छात्रों को बकायदा सिखाया जाएगा कि वे मुखमंडल और पेट में होनेवाले रोगों की शल्य-चिकित्सा कैसे करें। जैसे मेडिकल के डाक्टरों को सर्जरी का प्रशिक्षण दिया जाता है, वैसे ही वैद्य बननेवाले छात्रों को दिया जाएगा। मैं तो कहता हूं कि उनको कैंसर, दिमाग और दिल की शल्य-चिकित्सा भी सिखाई जानी चाहिए। भारत में शल्य-चिकित्सा का इतिहास लागभग पांच हजार साल पुराना है। सुश्रुत-संहिता में 132 शल्य-उपकरणों का उल्लेख है। इनमें से कई उपकरण आज भी- वाराणसी, बेंगलुरु, जामनगर और जयपुर के आयुर्वेद संस्थानों में काम में लाए जाते हैं। जो एलोपेथी के डाक्टर आयुर्वेदिक सर्जरी का विरोध कर रहे हैं, क्या उन्हें पता है कि अब से सौ साल पहले तक यूरोप के डाॅक्टर यह नहीं जानते थे कि सर्जरी करते वक्त मरीज को बेहोश कैसे किया जाए। जबकि भारत में इसकी कई विधियां सदियों से जारी रही हैं। भारत में आयुर्वेद की प्रगति इसलिए ठप्प हो गई कि लगभग डेढ़ हजार साल तक यहां विदेशी धूर्तों और मूर्खों का शासन रहा। आजादी के बाद भी हमारे नेताओं ने हर क्षेत्र में पश्चिम का अंधानुकरण किया। अब भी हमारे डाॅक्टर उसी गुलाम मानसिकता के शिकार हैं। उनकी यह चिंता तो सराहनीय है कि रोगियों का किसी प्रकार का नुकसान नहीं होना चाहिए लेकिन क्या वे यह नहीं जानते कि आयुर्वेद, हकीमी, होमियोपेथी, तिब्बती आदि चिकित्सा-पद्धतियां पश्चिमी दवा कंपनियों के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं ? उनकी करोड़ों-अरबों की आमदनी पर उन्हें पानी फिरने का डर सता रहा है। हमारे डाॅक्टरों की सेवा, योग्यता और उनके योगदान से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति यदि उन्नत हो गई तो इलाज में जो जादू-टोना पिछले 80-90 साल से चला आ रहा है और मरीजों के साथ जो लूट-पाट मचती है, वह खत्म हो जाएगी। मैंने तो हमारे स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्द्धन और आयुष मंत्री श्रीपद नाइक से कहा है कि वे डाक्टरी का ऐसा संयुक्त पाठ्यक्रम बनवाएं, जिसमें आयुर्वेद और एलोपेथी, दोनों की खूबियों का सम्मिलन हो जाए। जैसे दर्शन और राजनीति के छात्रों को पश्चिमी और भारतीय, दोनों पक्ष पढ़ाए जाते हैं, वैसे ही हमारे डाक्टरों को आयुर्वेद और वैद्यों को एलोपेथी साथ-साथ क्यों न पढ़ाई जाए ? इन पद्धतियों के अंतर्विरोधों में वे खुद ही समन्वय बिठा लेंगे।

हाफिज सईद की सजा कोरा दिखावा है या सच?

-ललित गर्ग

लगता है पाकिस्तान ने ठान ली है कि वो नहीं सुधरेगा। अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेगा। भारत ने दो-दो बार पाकिस्तान को घर में घुसकर सबक सिखाया लेकिन पाकिस्तान सीधी राह पर आने को तैयार नहीं। पाकिस्तान की अर्थ-व्यवस्था चैपट है, जनजीवन त्राहि-त्राहि कर रहा है, अस्त-व्यस्त है, फिर भी वह अपनी आन्तरिक स्थितियों को सुधारने की बजाय वह आतंकवाद को बल देता है, दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए आतंकवाद के विरोधी होने ढोंग करता है। आखिर कब उसे सद्बुद्धि मिलेगी? लश्करे तैयबा के संस्थापक और वैश्विक आतंकी हाफिज सईद को पाकिस्तान की एक अदालत ने जो दस साल की कैद की सजा सुनाई है, वह उसके ढ़ोग एवं पाखण्डी होने को ही दर्शा रहा है। भले ही दुनिया को पाकिस्तानी न्यायपालिका के इस फैसले से पहली नजर में यही संदेश गया है कि आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान सरकार के रूख में सख्ती आयी है और वह आतंकी सरगनाओं के खिलाफ कार्रवाई में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या पाकिस्तान की आतंकवाद को पोषण देने एवं पल्लवित करने की मानसिकता में बदलाव आया है? आतंकियों, उनके संगठनों और साम्राज्य को लेकर पाकिस्तान सरकार ने क्या सही में कड़ा रूख अपना लिया है? ऐसा लगता नहीं है, यह सब कोरा दिखावा है, अन्तर्राष्ट्रीय दबावों का परिणाम है।
दुनिया के खूंखार आतंकवादियों में शुमार हाफिज सईद को आतंकी वित्तपोषण (टेरर फंडिंग) के दो मामलों में पाकिस्तान की एक अदालत ने भले ही सजा सुनाई हो, उसकी संपत्ति जब्त करने का निर्देश भी दिया हो और 1.1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया हो, यदि यह सच है तो दुनिया का बड़ा आश्चर्य है। क्योंकि हाफिज सईद को सजा, उसे जेल में बंद रखने और उसके संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की खबरें हैरानी इसलिए पैदा करती हैं क्योंकि यह पाकिस्तान का झूठ और पाखंड है। सईद को सजा पहले भी होती रही है और ऐसी कार्रवाइयां कर पाकिस्तान दुनिया की आंखों में धूल झोंकता रहा है, गुमराह करता रहा है। सवाल यह है कि अगर सईद और उसके संगठन के खिलाफ पाकिस्तान सरकार इतनी सख्त है तो फिर कैसे सईद जेल से आतंकी अभियानों को अंजाम देने में लगा है? तीन-चार दिन पहले जम्मू कश्मीर में नगरोटा में बड़ा हमला करने वाले आतंकी लश्कर के ही थे।
हाफिज सईद के आतंकवाद एवं आतंकवादी घटनाओं का लम्बा, घिनौना एवं अमानवीय चेहरा रहा है। वह भारत सहित दुनिया में आतंकवाद को पनपाने वाला मुखर आतंकवादी है। उल्लेखनीय है कि भारत को पिछले काफी सालों से हाफिज सईद की तलाश है। सईद साल 2008 में मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों का मास्टरमाइंड है। इस हमले में छह अमेरिकियों सहित 164 लोगों की मौत हो गई थी। अमेरिका ने सईद के सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है। वह आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक है। पाकिस्तान में वो जमात-उद-दावा नामक संगठन चलाता है। अमेरिकी सरकार की वेबसाइट रिवार्ड्स फॉर द जस्टिस में भी हाफिज सईद को जमात-उद-दावा, अहले हदीद और लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक बताया गया है। अहले हदीद एक ऐसा इस्लामिक संगठन है जिसकी स्थापना भारत में इस्लामिक शासन लागू करने के लिए की गई है, जो लगातार भारत में आतंकवादी हमले करता रहा है।
वर्ष 2006 में मुंबई ट्रेन धमाकों में भी हाफिज सईद का हाथ रहा। 2001 में भारतीय संसद तक को सईद ने निशाना बनाया। वो एनआइए की मोस्ट वांटेड सूची में शामिल है। मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से उसे सौंपने को कहा था। सभी हमलों में उसके आतंकी संगठनों की भूमिका के अकाट्य प्रमाण भी पाकिस्तान को दिये जा चुके हैं। लेकिन पाकिस्तान तो इस बात से ही इंकार करता रहा है कि हमलों के असली साजिशकर्ता उसके यहां मौजूद हैं। बल्कि पाकिस्तान तो लगातार सईद को आतंकी मानने से भी इनकार करता रहा है। भारत समेत अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, रूस और ऑस्ट्रेलिया ने इसके दोनों संगठनों को प्रतिबंधित कर रखा है।
हाफिज सईद एवं उसे संरक्षण देने वाला पाकिस्तान दुनिया में किसी अच्छे या नेक काम के लिए नहीं, बल्कि आतंकवाद फैलानेवाले देश के रूप में जाना जाता है। उसे यह तमगा दशकों तक उसके करीबी मददगार रहे अमेरिका ने ही दिया है। आतंकवाद के खात्मे के लिए अमेरिका से पािकस्तान को जो पैसा मिलता रहा है, वह उसे आतंकवाद फैलाने में इस्तेमाल करता रहा। खुद अमेरिका की एजेंसियां इस बात का खुलासा कर चुकी है। अमेरिका पर सबसे बड़े आतंकी हमले के असली सूत्रधार अलकायदा सरगना उसामा बिन लादेन को पाकिस्तान ने अपने यहां छिपाए रखा था। दरअसल आतंकवाद पाकिस्तान की सरकारी नीति का हिस्सा है। यह बात भी दुनिया से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आइएसआइ ही आतंकी सगंठनों के पैसे, हथियार और प्रशिक्षण मुहैया कराती है। इन कटू सच्चाइयों एवं खौफनाक स्थितियों के चलते ही अमेरिका के वित्त विभाग ने सईद को विशेष रूप से चिह्नित वैश्विक आतंकवादी घोषित किया है।
दिसंबर 2008 में उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 के तहत आतंकवादी घोषित किया गया था। एफएटीएफ की ‘ग्रे’ सूची में बने रहने से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक (एडीबी) और यूरोपीय संघ से वित्तीय मदद मिलना मुश्किल हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से आर्थिक मदद मिलने में उसे जिस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है उससे छुटकारा पाने के लिए एवं लगातार नकदी संकट से जूझ रहे देश के लिए और दिक्कतें बढ़ेंगी, इन्हीं स्थितियों को देखते हुए पाकिस्तान अब मजबूरन हाफिद सईद जैसों के खिलाफ दिखावे के तौर पर कुछ कदम उठा रहा है। पुलवामा हमले की बात तो खुद पाकिस्तान सरकार के मंत्री ने हाल में संसद में स्वीकार की। इस बात के भी प्रमाण सामने आ चुके हैं कि मुंबई बम कांड का सरगना दाउद इब्राहिम पाकिस्तान में सेना और आइएसआइ की पनाह में रह रहा है, लेकिन पाकिस्तान इस हकीकत को भी झुठलाता रहा है और दाऊद को अब तक भारत को नहीं सौंपा है। वास्तव में पाकिस्तान यदि आतंकवाद के खिलाफ हुआ है तो हाफिद सईद जैसे आतंकी को वह भारत को सौंपे। उस जैसे आतंकियों की असली सजा तो यही भारत उन्हें सजा दे। इसके लिये पाकिस्तान पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनना चाहिए।
भारत ही नहीं, विश्व के जन-जीवन आतंकमुक्त बनाने के लिये पाकिस्तान की आतंकवादी स्थितियों पर कड़ा कदम उठाना एवं दबाव बनाना जरूरी है, इसी से अनेक बड़ी समस्याओं का समाधान संभव है, इसी से पाकिस्तान की बदतर होती स्थितियों में भी सुधार होगा। इसी से दुनिया से आतंकवाद एवं युद्ध जैसी ज्वलंत समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। विश्व की सभ्यता और संस्कृति को अहिंसा एवं आतंकमुक्ति की ओर अग्रसर करने के लिये पाकिस्तान को सुधरना ही होगा, इसी से उनके भी बिगड़ते हालातों पर अंकुश लग सकेगा।