Home Blog Page 679

इस बार दिवाली स्वदेशी और आत्मनिर्भरता वाली

   दीपावली हमारे उत्सवों में एक ऐसा उत्सव है जिसके आने की तैयारियाँ कई दिन पूर्व से ही होने लगती हैं | घरों की सफाई पुताई अन्य तैयारियाँ  देख कर सहज जी अनुमान लगाया जा सकता है कि दिवाली आने वाली है | दीपावली अर्थात प्रकाश का पर्व, हर्ष उल्लास उमंग और माँ लक्ष्मी जी की आराधना का पर्व | इस पर्व पर हम सभी माता लक्ष्मी जी से आराधना करते हैं कि वे हमारे घर-परिवार और देश पर कृपा बरसाएँ | हमारी कथनी और करनी में यह कैसा अंतर्विरोध है कि हम लक्ष्मी माता से घर आने का आह्वाहन करते हैं किन्तु जाने-अनजाने ही हम उन्हें दूसरे  देशों की ओर भेज देते हैं | जिस चीन ने छल से हमारी हजारों वर्ग मील भूमि छीन ली वह हमसे अब हमारी धन लक्ष्मी भी छीन रहा है या कहें कि हम हीं उसे दे रहे हैं  | यह कैसी विडंबना है कि दीपावली पर माता लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियाँ तक भी हम चीन से बनी हुई ले लेते हैं, चीनी लाईट, चीनी पटाखे, चीनी खिलौने और-तो-और घर में शुभ-लाभ व बंधनवार तक चीनी लगी होती हैं | यद्यपि इस बार प्रसन्नता की बात है कि कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने पिछले चार पाँच माह पूर्व से ही चीनी माल के बहिष्कार की घोषणा कर दी है  | इसका परिणाम यह हुआ कि इसबार दीपावली से जुडी  हुई बस्तुओं का आयात लगभग चालीस हजार करोड़ घटने का अनुमान है |  देश के लगभग सात करोड़ व्यापारी “भारतीय सामान -हमारा अभिमान” अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं | यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि बड़े-बड़े शहरों के बाजारों में चीनी सामान बहुत कम या नहीं देखने को मिल रहा है | देश के नागरिकों में भी अद्भुत उत्साह है यह उत्साह ही हमारे स्वाभिमान का रक्षक है | “इस बार दिवाली स्वदेशी दिवाली “ का नारा जोर पकड़ता जा रहा है | यही अवसर है जब पूरे देश के समक्ष एक सुनहरा अवसर है जबकि हम अपने त्योहारों से चीनी घुसपैठ सदैव के लिए समाप्त कर सकते हैं | यदि दीपक,झालर, मोमबत्तियाँ, रंग-विरंगे वल्व,पूजन सामग्री, मूर्तियाँ और सजावट की बस्तुएँ सभी स्वदेशी हों तो चीन की कमर टूट जाएगी | वह भारत का विरोध करना और पकिस्तान का समर्थन करना भूल जाएगा | कोरोना महामारी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा अघात लगा है हमारे उद्योग जगत में भी निराशा आई है | यदि सभी भारतवासी एक साथ खड़े हो जाएँ तो इसी त्यौहार से इस निराशा को दूर करने का उपक्रम आरंभ हो सकता है | रक्षाबंधन और गणेश उत्सव से भी अधिक चीनी वस्तुओं की बिक्री दीपावली पर होती है | यदि इस बार पूर्ण स्वदेशी दीपावली का संकल्प  कर लिया जाए तो अगले एक वर्ष में सभी त्याहारों से चीनी वस्तुएं पूर्णतः विलोपित हो जाएँगी | कितने आश्चर्य और अपमान की बात है कि टेक्नोलोजी से लेकर मिट्टी के छोटे से दीपक के लिए भी  हम अपने  शत्रु-देश पर निर्भर हैं | हमने विदेशी कर्ज लेकर चीनी वस्तुओं का आयात किया, अपनी अर्थव्यवस्था को दुर्वल कर चीन की अर्थव्यवस्था को शक्तिशाली बनाने की भूल की | होली, दिवाली,राखी सहित सभी त्योहारों पर चीन हमें लूटने आ जाता है और हम किंकर्तव्यविमूढ़  हो कर लुटते रहते हैं | कोरोना महामारी के आरंभिक चरण में देश ने ऐसे संकट को भी प्रत्यक्ष अनुभव किया था जबकि हमारे पास कोरोना से बचने के लिए मास्क जैसी छोटी वस्तु भी स्वदेशी नहीं थी | इसके  लिए भी हम चीन पर निर्भर थे क्योंकि हमने अपने उद्योगों का गला घोंट कर सस्ती चीनी वस्तुओं के उपयोग का स्वभाव बना लिया था | सुखद आश्चर्य और गर्व की बात यह है अनलॉक होते-होते अनेक वस्तुओं पर  हमारी चीन पर निर्भरता बहुत कम हो गई | अब बिना टिक-टॉक के भी देश के नौजवान उतने  ही आनन्द में हैं जैसे पहले थे | पिछले कुछ वर्षों में हमने अपने देश के पटाखा,दीपक, बल्ब,मोमबत्ती और त्योहारी साज-सज्जा एवं पूजन सगाग्री बनाने वालों को भी निराश किया है | इस समय व्यापारी और उपभोक्ता दोनों चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के पक्ष में हैं अतः यही अवसर है जबकि हम भारतीय उद्योगों/निर्माताओं को प्रोत्साहित कर उन्हें स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण के लिए प्रेरित करें और अवसर दें ताकि वे हमें सभी प्रकार की स्वदेशी वस्तुएँ उपलब्ध करा सकें |  

त्रेता में अयोध्या में भगवान श्री राम के आगमन के समय किस प्रकार अयोध्या सजाई गई थी उसका वर्णन गोस्वामी जी ने मानस में इस प्रकार किया है “कंचन कलस बिचित्र संवारे ,सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे || बन्दनवार पताका केतू,सबन्हि बनाए मंगल हेतू || अयोध्या पुनः सजने को तैयार है किन्तु हमें स्मरण रखना होगा  कि इस बार हम अपने घर की अयोध्या में जो मंगल कलश स्थापित करें वह अपनी मिट्टी का हो और जो बन्दनवार पताका बांधे वह भी स्वदेशी हो और अपने ही देश के भाई-बहनों  द्वारा निर्मित  हो फिर  चाहे दीपक हो,मोमबत्ती हो या रंग-बिरंगी झालर जो भी हो उसमें स्वदेशी की सुगंध अवश्य हो | 

डॉ.रामकिशोर उपाध्याय

चक्रव्यूह में फंसता अर्जुन का बेटा

—–विनय कुमार विनायक
तुम जलाओ विचार
दहन करो संपादक के पुतले
किन्तु मरेगी नहीं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
मालूम है रावण नहीं
राम के भी जलने लगे हैं पुतले
बड़ी भीड़ भी होगी तुम्हारे साथ
कि सदा-सदा से रावण के होते
सवा लाख नाती/सवा लाख पोते
कौरव सौ-सौ के सैशे में!
जानता हूं
नारायणी सेना भी है तुम्हारे साथ
किन्तु कूच कर गए खुदा तुम्हारे घर से
ईश्वर और खुदा को बांधकर
दो खूंटों में धर्मनिरपेक्षता
और तुष्टीकरण के बहाने
बन चुके हो तुम पूरी तरह इब्लीस के पुजारी
कि इब्लीस तुम्हारे साध्य भी/साधन भी
आराध्य भी/मोहरे भी
नारायणी सेना जब मांगी थी तुमने
जनता-जनार्दन से
अर्जुन को ज्ञात हो गई थी तुम्हारी मंशा
कि कठिन होगा समर सत्यमेव जयते का
देनी होगी बलि अभिमन्यु से
अनेक प्रतिभा सम्पन्न बेटों की
कि अब भी है तुम्हारे साथ
कुलाधिपति गुरु द्रोणाचार्य
कुलपति गुरु कृपाचार्य के हाथों
सौंपी है तुमने बहनोई जयद्रथ,
बहन दु:शल्ला,बेटा लक्ष्मण,
मित्र अश्वत्थामा जैसे नामों की
लंबी सिफारिशी फेहरिस्त
कि अधिकारी/व्याख्याता बनेगा नहीं
अर्जुन का बेटा!
मंडल-कमंडल में बंटना
स्वीकार नहीं जिसे
सामाजिक न्याय मिलेगा नहीं उसे
कि झा, सिंह, मंडल, दास
बनेगा नहीं अर्जुन का बेटा!
बंटी जाति की छद्म रक्तशुद्धता को
एकमेव करके रहेगा
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ!
जानता हूं तुम्हारे सामाजिक न्याय के
डपोरशंखी नारे से दिकभ्रमित हैं
ढेर सारे उपेक्षित कर्ण भी
कि तुम बांटते रहोगे अर्जुन के भाइयों को
कभी कुजात सुतपूत कहकर,
कभी अशर्फी लाल को अशरफी
अल्पसंख्यक पहचान बताकर!
हे लट्ठधर!
युग-युग से कर्ण को
पहले कुजात बताकर
बाद में राजपूत बनाने का
ख्वाब दिखाकर
थमाते रहे अंगदेश सा
सत्ता झुनझुना
या बांटकर सामाजिक न्याय का
कुर्सी पुरस्कार अपनाते रहे/लड़ाते रहे
भाइयों को भाइयों के खिलाफ
कि कुलाधिपति द्रोण है
उसकी प्रतिभा का हत्यारा
या उसके प्रतिद्वंदी
अर्जुन की प्रतिभा का कायल
या उसके रहनुमा के हाथ का
मात्र चाभी-खिलौना
मृत्यु पर्यंन्त कर्ण के लिए
यह रहस्य ही रह गया
कि ऊंट किस करवट बैठता
कुलाधिपति पक्षधर है किसका?
उस आर्जुनेय प्रतिभा का,
जिसका प्रतिभा सत्व
गुरु के चक्रव्यूह में फंस मरा
या उसका,जिसके एलान पर
अभिमन्युओं को
गुरु घेरे में घेरकर मारा गया!
ऐ लोकतंत्र के सर संघचालक!
मत उच्चार प्रतिभा को
जाति-धर्म के नाम पर
कि घातक हथियार बन जाएगी
ऐ सामाजिक न्याय के रहनुमा!
समाज जाति नहीं व्यक्ति से बनता
बार-बार व्यक्ति को जाति बताकर
संख्या बल दिखलाना
उसे राष्ट्र से अलगाना है
वोट के लिए चाहिए
तुम्हें देह की गिनती
भारत के बेटों को आत्मा से
भारतीय हो जाना है
तुम जलाओ विचार,
दहन करो संपादक के पुतले
उगाओ विदेशी कैक्टस!
अर्जुन के बेटों को आजाद,भगत,
असफाक,गांधी सा विचार उगाना है।
—विनय कुमार विनायक

सशक्त लोकतंत्र का आधार है बिहार में नया जनादेश

-ललित गर्ग-

बिहार विधानसभा के चुनाव परिणामों से एक बात स्पष्ट हो गयी है कि मतदाता अब जागरूक एवं समझदार हो गया है। हर घटना को वह गुण-दोष के आधार पर परखकर, समीक्षा कर अपने मत का उपयोग करता है, अब न जातिवादी और न साम्प्रदायिक राजनीति असरकार रही है न ही वंशवादी। भाजपा का विकास का मुद्दा एवं सत्तारूढ़ गठबन्धन के अनुभवी नेता मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व के मुकाबले विपक्षी महागठबन्धन के युवा नेता श्री तेजस्वी यादव का पलड़ा उतना वजनदार साबित नहीं हो सका है जिसकी अपेक्षा विभिन्न एक्जिट पोलों ने की थी। क्योंकि तेजस्वी के प्रभावी प्रदर्शन के बावजूद वंशवाद एवं अतीत के जंगलराज की राजनीति उनका पिछा करती रही, जबकि तेजस्वी ने इन दागों को धोने की सफलतम कोशिश की। जहां बिहार के चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण थे वही उसके परिणाम तो और भी अधिक चैंकाने वाले एवं लोकतंत्र को नयी ऊर्जा देने वाले रहे। बिहार के मतदाताओं के लिये ईमानदार, स्थिर एवं विकास का नेतृत्व-चयन सर्वोपरि रहा। लोग तुलनात्मक रूप से बेहतर ऐसे नेताओं की खोज में दिखाई दिये जो सबके विकास और रोजगार की राह को सशक्त कर सके।
सोचा गया था कि कोरोना काल में होने वाले इन चुनावों से कुछ नयी राजनीतिक परिभाषाएं गढ़ी जायेगी लेकिन संक्रमण के बावजूद राजनीति का जो सिलसिला इस देश में चलता रहा था, वह अभी बहुत बदला नहीं है। बिहार जैसे बड़े राज्य के विधानसभा चुनाव और कई राज्यों में हो रहे उपचुनावों को लेकर एक आशंका यह व्यक्त की गयी थी कि सरकारों को जनता के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, इसका अर्थ है कि जनता सरकार की कोरोना महामारी से संघर्ष की लड़ाई एवं विभिन्न चुनौतियों के बीच सरकार के प्रयत्नों से संतुष्ट नजर आयी। कोरोना महामारी के बीच यह पहला चुनाव है जिसमें जनता की प्रतिक्रिया का काफी महत्व है। श्री नरेन्द्र मोदी के चुनावी दौरों एवं राजनीतिक वायदों से लोगों में सत्ता विरोधी आक्रोश को कम करने में मदद मिली है मगर मध्यप्रदेश में हुए उपचुनावों में भाजपा को मिली सफलता से यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि मतदाता राज्य में राजनीतिक स्थिरता चाहते हैं। न केवल मध्यप्रदेश बल्कि बिहार, गुजरात एवं उत्तरप्रदेश में भी आमजनता ने स्थिरता एवं विकास को ही प्राथमिकता दी है।
कांग्रेस एवं राष्ट्रीय जनता दल पार्टी ने एक बार फिर वंशवादी तुरूप का पत्ता चला उसका भी असर वैसा नहीं हुआ जैसा सोचा जा रहा था। राजनीति में सत्ता कोई ऐसी सम्पत्ति नहीं जिसे रिश्तेदारों में बांट दिया जाए, वसीयत का रूप दे दिया जाए। देश के अनेक राजनेता अपने परिवार और पुत्रों की ऐसी ही भूमिका बनाने मंे लगे हंै और बिहार के चुनावों पर भी इसकी छाया रही। सत्ता में वंश परंपरा की सच्चाई को नकारने की दृष्टि से बिहार के चुनाव एक बार फिर सबक बने हैं। ‘वंश परंपरा की सत्ता’ से लड़कर मुक्त हुई जनता इतनी जल्दी उसे कैसे भूल सकती है? कुछ मायनों में यह अच्छा है कि राजनीति में वंश की परंपरा का महत्व घटता जा रहा है, अस्वीकार किया जा रहा है। इससे कुछ लोगों को दिक्कत होती है जो परिवार की भूमिका को भुनाना चाहते हैं। लेकिन लोकतंत्र की सेहत के लिए यह अच्छा नहीं है। जनता अब जान गई है कि राजा अब किसी के पेट से नहीं, ‘मतपेटी’ से निकलता है।
अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल लोगों की उम्मीदों के साये तले वंशवादी राजनीति की त्रासद सचाई पर मंथन करें। नरेन्द्र मोदी की जादूई एवं करिश्माई राजनीति का एक बड़ा कारण वंशवादी राजनीति को नकारना है। इसी कारण राजद अपना वह प्रभाव कायम रखने में सफल नहीं हो सकी है जिसकी अपेक्षा तेजस्वी बाबू का चुनाव प्रचार देख कर की जा रही थी। इसके पीछे उनकी पार्टी एवं लालू-राबड़ी राज का जंगलराज भी बड़ा कारण रहा। लेकिन इस बड़ी हकीकत को बेबाक तरीके से प्रस्तुति दी सकती है कि जिस तरह की विपक्षी महागठबन्धन लहर की अपेक्षा की जा रही थी, चुनाव परिणामों ने उसका प्रमाण नहीं दिया है, परन्तु यह सिद्ध कर दिया है कि सत्तारूढ़ गठबन्धन की तरफ से असली खिलाड़ी भाजपा निकली है।
राज्य में भाजपा के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने से यह भी सिद्ध हुआ कि मतदाताओं ने क्षेत्रीय राजनीति में राष्ट्रीय दलों की भूमिका को महत्ता देना जरूरी समझा है इसके अनेक तरह के लाभ भी है, विकास की दृष्टि से यह सोने में सुहागा की तरह है। इसके साथ ही राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस का प्रदर्शन भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए, यह उसकी गिरती हुई साख को थामने की दृष्टि से पर्याप्त भी नहीं कही जा सकती। इन चुनावों में इसका मतप्रतिशत बढ़ा है मगर जिस तरह वामपंथी दलों ने इन चुनावों में प्रदर्शन किया है उससे बहुत से राजनीतिक पर्यवेक्षक चैंके हैं। विपक्षी महागठबन्धन के साथी इन दलों को 243 में से केवल 29 सीटें ही दी गई थीं और ये आधी से अधिक सीटें जीतने में सफल रहे हैं। वामपंथी दलों का राजनीतिक पटल पर उभरना उनके लिये एक खुराक एवं राजनीतिक जीवन-ऊर्जा साबित हुआ है। वामपंथी की उपस्थिति का अहसास जिन्दा होना बिहार के पुराने राजनीतिक चरित्र को बताता है और बदले हुए समय में बदलते राजनीतिक विमर्शों की तरफ इशारा करता है। बेशक भाजपा का राष्ट्रवादी विमर्श इन चुनावों में मतदाताआंे के लिए सर्वोपरि रहा है किन्तु इसका धुर विरोधी विचार भी इन चुनावों में सतह पर आया है। जिससे पता चलता है कि चुनावों में उठे जमीनी मुद्दों की तरफ भी मतदाताओं की तरजीह रही है, किन्तु सीमांचल के इलाके में कट्टरपंथी साम्प्रदायिक पार्टी इत्तेहादुल मुसलमीन के उभार से खतरे की घंटी भी बजी है। बिहार की संस्कृति साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक मानी जाती है। श्री ओवैसी की इस पार्टी के बिहार में पैर जमाने से राज्य की धर्मनिरपेक्ष छवि पर गलत असर पड़ा है।
राज्य में भाजपा की सीटों में पिछले चुनावों की अपेक्षा जिस तरह इजाफा हुआ है और इसके सहयोगी दल जनता दल (यू) की सीटें कम हुई हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि भाजपा के प्रति लोगों का विश्वास राष्ट्रीय एकता, भारत के सशक्तीकरण एवं विकास के नजरिया को स्वीकृति देना है। यह राजनीतिक दलों को अपनी छवि, नीतियों, राजनीतिक दृष्टिकोण एवं गठजोड़ को दुरुस्त रखने की प्रेरणा का संदेश भी है। चुनावी प्रचार के दौरान जिस प्रकार मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार की छवि प्रधानमन्त्री की लोकप्रियता की छाया में कमतर हो गयी थी फिर भी उसका परिणाम बेहतर आया है और 15 साल तक लगातार शासन करने के खिलाफ उपजा सत्ता विरोधी आक्रोश कम हुआ है। बिहार के चुनाव हवाई मुद्दों पर न लड़े जाकर जमीनी मुद्दों पर लड़े गये हैं। इन चुनावों में कहीं न कहीं सुशासन का मुद्दा भी भीतर खाने काम करता रहा है और यही सुशासन का मुद्दा नयी बनने वाली सरकार की प्राथमिकता होगा। रोजगार, शिक्षा स्वास्थ्य और विकास के मुद्दों के साथ नयी बनने वाली सरकार कृषि पर निर्भर राज्य की बड़ी आबादी, मजदूरों और गरीबों के एक बड़े तबके की तकलीफों को दूर करेगी, ऐसा हुआ तो इन चुनावों का परिणाम लोकतंत्र को सशक्त करने का माध्यम बनेगा। क्योंकि इन चुनाव परिणामों का एक सकारात्मक पहलु स्पष्ट है कि इस बार बिहार के मतदाता स्थिर सरकार के साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी देने जा रहे हैं।

रस लो प्रिये इस जगत में!


रस लो प्रिये इस जगत में,
रह तटस्थित अवतरण में;
सब चल रहे मग प्रकृति में,
उस पुरुष की ही देह में!

रीते कहाँ वे हैं बसे,
वे ही लसे वे ही रसे;
उर में वे ही नर्तन किए,
वे कीर्तन लेते हिये!

वे ही परे जाते कभी,
वे ही उरे आते कभी;
चलवा वे ही हमको रहे,
जाने की वे कब कह रहे!

रह संग वे देखा किए,
जा दूर भी ढ़िंग वे रहे;
जो आज वे दे पा रहे,
पहले कहाँ थे वे दिए!

क्या करोगे जा कर वहाँ,
आगए जब फिर वो यहाँ;
सब हिय तुम्हारे में रहा,
कब दूर कोई है हुआ!

हे वत्स तुम भगवान के,
क्यों सोच हो ऐसे रहे;
उनमें रमे उनको लखे,
‘मधु’ माधुरी उनकी तके!

✍? गोपाल बघेल ‘मधु’

बिहार का हाल परिणाम के बाद

बुझ गई है लालटेन,अब बिहार में,
चिराग भी टिमटिमा रहा बिहार मै

फिर से सत्ता आ गई नीतीश के हाथ में,
लालू परिवार रो रहा है,अपने ही बिहार मे।

कैसे करें विश्वास,चुनाव सर्वो का बिहार में,
गलत निकल गए,सभी सर्वे अब बिहार में।

कोई काम नहीं है लालटेन का बिहार में,
चिराग भी बुझ चुका है अब बिहार में।

अल ई डी जलानी पड़ेगी अब बिहार में,
अगर विकास चाहते हो तुम अब बिहार में।

तेजस्वी का तेज ख़तम हुआ अब बिहार में।
नीतीश की दीवाली मनेगी जोर से बिहार में।

आर के रस्तोगी

मध्‍य प्रदेश में सत्‍ता परिवर्तन और राजनीति का धर्म

डॉ. मयंक चतुर्वेदी
मध्य प्रदेश में विधानसभा की 28 सीटों पर उपचुनाव के परिणाम साफ हो चुके हैं, भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सरकार को अल्‍पमत का कोई खतरा अब शेष नहीं ।  कांग्रेस ने सत्‍ता खोने के बाद जिस तरह से हिम्‍मत दिखाई थी और कहा था कि वह उपचुनाव में जीतकर आएगी और फिर उसकी प्रदेश में सफलतम  सरकार होगी या कांग्रेस के अन्‍य मंत्रियों ने जो कहा-भाजपा अधिक दिनों तक छल से प्राप्‍त सत्‍ता पर नहीं बनी रह सकती । वस्‍तुत: पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ से लेकर उनके सभी साथि‍यों की इस बात को जनता का कोई समर्थन नहीं मिला।

उपचुनाव के आए यह परिणाम साफ बता रहे हैं कि पूर्व में 2018 में कांग्रेस को सत्‍ता देना उसकी सबसे बड़ी भूल थी, जिसे सुधारने का उसे अवसर दिया गया और उसने इस बार बिना गलती किए अपनी पूर्व गलती को सुधार लिया है। प्रदेश में भाजपा की सत्ता को स्‍थ‍िर करनेवाले   इस उपचुनाव के नतीजों ने यह भी साफ कर दिया कि उसे न तो कमलनाथ सरकार की कर्जमाफी आकर्षित कर सकी और न ही कांग्रेस नेताओं के भाजपा पर लगाए गए सौदेबाजी, बिकाऊ-टिकाऊ, गद्दारी के रेट कार्ड जारी करने वाले आरोप उसे पसंद आए हैं । यही कारण है कि अधिकांश सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार पूर्व चुनाव की तुलना में  पहले से कई गुना अधिक अंतर से विजयी हुए।

वस्‍तुत: जिस तरह से कांग्रेस ने सत्‍ता आते ही तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री बने कमलनाथ ने भाजपा की शिवराज सरकार द्वारा शुरू की गई जनहितैषी योजनाओं को रोका था, सही मायनों में यह उन योजनाओं के रोके जाने का भी विरोध प्रदर्शन है, जिसे वोट की ताकत के माध्‍यम से अभिव्‍यक्‍त किया गया है। सरकार के बहुमत में आते ही आज जो बयान मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह का आया है, उस पर भी गौर किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा, ”यह भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा की जीत है, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के आशीर्वाद की जीत है। भाजपा मध्‍य प्रदेश में विकास और जनकल्याण के काम करेगी, यह इस विश्वास की जीत है”

यहां आप उनके कहे इन शब्‍दों पर गहराई से गौर कीजिए ”यह विचारधारा की जीत है” वास्‍तव में ही यह विचारधारा की जीत है, यह उस विचारधारा की जीत है, जो कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी तक भारत को माता के रूप में पूजती है और श्‍यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्‍याय, नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक तमाम लोगों को समाज और देशकार्य के लिए पूर्णत: समर्पित कर देती है।

यह एक वास्‍तविकता भी है कि लोकतंत्र में सत्‍ता सर्वोपरि है, जिसकी सत्‍ता उसका सर्वोच्‍च अधिकार, यह बात सर्वप्रथम राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ को उस समय समझ आ गई थी, जब उसका नाम महात्‍मा गांधी की हत्‍या में घसीटा गया न केवल घसीटा गया था, बल्‍कि कई स्‍वयंसेवकों को बुरी तरह से तत्‍कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा प्रताड़ि‍त तक किया गया । तभी संघ को यह समझ आ गया था कि भारत माता के पूर्ण समर्पण से काम नहीं चलने वाला है, इसके साथ ही पूरा वन्‍देमातरम् अपने मूल के साथ स्‍वरबद्ध-लयबद्ध बोलने वालों का समर्थन राजनीतिक स्‍तर पर भी चाहिए । नहीं तो अभी स्‍वतंत्र भारत में प्रताड़ना की शुरूआत है, भविष्‍य कितना भयावह होगा, सोचा नहीं जा सकता। यही वह कारण रहा, जिसने श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ पं. दीनदयाल उपाध्‍याय और बलराज मधोक जैसे संघ प्रचारकों को जोड़ दिया और जनसंघ का उदय हो उठा। उसके बाद जनता पार्टी से भाजपा तक कि यात्रा हम सभी को  विदित है।

वस्‍तुत: हर हाल में राजनीतिक पार्टी का धर्म है कि वह सत्‍ता प्राप्‍त करे। चाणक्‍य से लेकर विचारधारा के स्‍तर पर कोई भी क्‍यों न हो दक्षिण पंथी या वामपंथी मार्क्‍स-लेनिन जैसे विचारक, सभी की राजनीतिक शिक्षा यही कहती है कि साम, दाम, दण्‍ड, भेद, किसी भी माध्‍यम से या संयुक्‍त माध्‍यम से ही सही सर्वप्रथम सत्‍ता प्राप्‍त करना किसी भी राजनीतिक दल का लक्ष्‍य होना चाहिए, क्‍योंकि सत्‍ता रहते ही आप अपने विचारों को व्‍यवहार में बदल सकते हैं। मध्‍य प्रदेश में 2018 विधानसभा चुनाव के बाद से  15 माह के लिए सत्‍ता में रही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को इस सब दृष्‍टि से जोड़कर देखें तो स्‍थ‍िति स्‍पष्‍ट हो जाती है।  

प्रदेश में सत्‍ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आते ही मीसाबंदी पेंशन योजना, मुख्यमंत्री जन कल्याण योजना (संबल योजना), गरीबों के लिए सस्‍ते भोजन की दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना, राष्ट्रगीत की परंपरा जिसमें राज्‍य सचिवालय में राष्‍ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ गाने की परंपरा शुरू की गई थी, कमलनाथ ने यह कहकर बंद कर दी थी कि ‘वंदे मातरम’ गाना किसी की राष्‍ट्रभक्ति का परिचय नहीं हो सकता । दीनदयाल वनांचल सेवा योजना जिसे भाजपा सरकार ने ग्रामीण इलाकों में रहने वालों को वन विभाग के सहयोग से शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागृति लाने के लिए शुरू किया गया था । पढ़ाई में अव्वल स्टूडेंट को लैपटॉप साइकिल और स्मार्टफोन देने जैसी तमाम योजनाओं और ध्‍येय निष्‍ठ पत्रकारिता के लिए दिया जानेवाला मामा माणिकचंद वाजपेयी पुरस्‍कार तक को बंद कर दिया गया था । सिर्फ इसीलिए कि इन सभी में कांग्रेस के नेताओं के नाम उद्घाटित नहीं होते थे।

सत्‍ता होने का सीधा असर क्‍या हो सकता है, यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। जब भाजपा दीनदयाल उपाध्‍याय के एकात्‍म मानवतावाद को लेकर चलती है, जिसमें विकास से दूर अंतिम छोर पर खड़े व्‍यक्‍ति को मुख्‍य धारा में लाने का संकल्‍प है, तब निश्‍चित ही इस लक्ष्‍य की प्राप्‍ती के लिए उसे सत्‍ता पर आरुढ़ होना अति आवश्‍यक है। सत्‍ता रहेगी तो विचार सहज सुलभ आगे बढ़ता रहेगा।  सन् 1975 की तरह मीसा का दंश नहीं झेलना होगा और ना ही भारत माता की दिन-रात आराधना करनेवालों को गांधी वध की तरह झूठे आरोप में जेल यातनाएं सहनी होंगी । वह तो भला हो भारतीय न्‍याय प्रणाली का कि उसने सत्‍य को उद्घाटित कर दिया, अन्‍यथा आज इतिहास संघ के स्‍वयंसेवकों को लेकर कुछ ओर ही बयां कर रहा होता।

वस्‍तुत: इसलिए सत्‍ता परिवर्तन और स्‍थायी सत्‍ता भाजपा के लिए आवश्‍यक है और उसका राजनीतिक धर्म भी यही कहता है कि पहले वह अपने उच्‍च उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए सत्‍ता प्राप्‍त करे, जो उसने यहां इस उपचुनाव में जीत हासिल करने के साथ ही कर दिखाया है। कहा जा सकता है कि अपने राजनीतिक धर्म के हिसाब से भाजपा ने सही राजनीतिक धर्म का परिचय यहां दिया है। अन्‍य राज्‍यों में भी यह धर्म सत्‍ता का आधार बने तो कुछ बुरा नहीं होगा।

सायकिल से डर नहीं लगता साहब, ट्रैफिक से लगता है!

बात गाड़ियों के धुंए से पर्यावरण बचाने की हो तो सबसे पहला ख्याल साईकिल का आता है। लेकिन साईकिल चलायें भी तो भला कैसे? एक तरफ तेज़ रफ्तार गाड़ियों की चपेट में आने का डर तो दूसरी तरफ गड्ढों और नालियों में गिर कर चोटिल होने की आशंका – कुल मिलाकर भारत में हालत कतई मुफ़ीद नहीं सायकलिंग के लिए। ऐसा मानना है भारत की जनता का, अगर एक ताज़ा सर्वे की मानें तो।

दरअसल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ITDP) द्वारा आवास और शहरी वायु मंत्रालय (Mo-HUA) द्वारा इस सर्वेक्षण का आयोजन India Cycles4Change चैलेंज के हिस्से के रूप में किया गया। पचास शहरों में किए गए इस सर्वेक्षण में पाया गया कि ट्रैफिक की चपेट में आने या ख़राब सड़क की भेंट चढ़ने के साथ 20 प्रतिशत महिलाएं इस वजह से सायकिल नहीं चलाती क्योंकि उन्हें किसी प्रकार की छेड़खानी की आशंका सताती है।

सर्वे में लगभग 50,000 लोगों को सम्पर्क किया गया यह जानने के लिए कि आखिर वो क्या वजहें हैं जो किसी को सायकिल चलाने से रोकती हैं और इस सब के बीच जो लोग सायकिल चला रहे हैं वो किन वजहों से चला रहे हैं। और जवाब में अधिकांश उत्तरदाताओं ने कहा कि अगर साइकिल चलाना सुरक्षित और सुविधाजनक हो जाता है तो उन्हें काम, शिक्षा, और मनोरंजन के लिए साइकिल चलाने से कोई ऐतराज़ नहीं।

उत्तरदाताओं ने साइकिल पार्किंग की कमी, सड़क पर गाड़ियों की बेतरतीब पार्किंग, और खराब स्ट्रीट-लाइटिंग जैसे मुद्दों को भी इंगित किया। लगभग 52% पुरुषों और 49% महिलाओं ने मुख्य सड़कों पर साइकिल चलाना असुरक्षित पाया, जबकि 36% पुरुषों और 34% महिलाओं ने चौराहों पर साइकिल चलाने में डर की बात की।

सर्वे के नतीजों के मुताबिक़ जो लोग साइकिल चलाना जानते हैं, उनमें से केवल एक चौथाई लोग ही इसे रोज़ाना चलाते हैं और लगभग आधे हफ्ते में कुछ दिन साइकिल चलाते हैं।

सर्वे पर प्रतिक्रिया देते हुए कोहिमा स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड में प्रौद्योगिकी अधिकारी अटूबा लांगकुमेर, कहते हैं, “हम वो सब कर रहे हैं जिससे कोहिमा के लोग सायकिल चलाने को प्रेरित हों। हमें अच्छे नतीजे भी मिल रहे हैं। अब हमें उम्मीद है कि कोहिमा इस दिशा में एक मिसाल बन कर उभरेगा।”

सर्वेक्षण के ज़रिये 28 शहरों के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर साइकिल चलाने में आने वाली बाधाओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त किया गया। इस क्रम में पूरे देश में 340 किमी से अधिक लम्बाई के सायकलिंग गलियारे (कॉरिडोर) और 210 वर्ग किलोमीटर के आस पड़ोस(नेबरहुड) के क्षेत्रों को चुना गया हैं। भागीदारी के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए, राजकोट, कोहिमा, और मंगलुरु सहित 28 शहरों ने जमीनी स्तर पर बाधाओं का आकलन करने के लिए एक ‘हैंडलबार सर्वेक्षण’ किया और अब पायलट प्रोजेक्ट के लिए डिजाइन समाधान शुरू कर दिए गए हैं।

इंडिया साइकल्स4चेंज चैलेंज एक राष्ट्रीय पहल है जिसका उद्देश्य साइकिल के अनुकूल शहरों का निर्माण करना है और इसमें सर्वेक्षण नागरिक-नेतृत्व वाले दृष्टिकोण को सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख घटकों में से एक है। शहरों ने तमिल, मराठी और कन्नड़ जैसी स्थानीय भाषाओं के साथ अंग्रेजी और हिंदी में सर्वेक्षण किया।

भारत सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में सचिव, कुनाल कुमार इस सर्वे का महत्व और प्रासंगिकता समझाते हुए कहते हैं , इंडिया साइकल्स4चेंज चैलेंज यह सुनिश्चित कर रहा है कि लोग योजना प्रक्रिया के केंद्र में हों। मैं नागरिकों से इसमें भाग लेने, समर्थन दिखाने और अपनी प्रतिक्रिया साझा करने के लिए आग्रह करता हूं।”

अनलॉक को यस, यूनिवर्सिटी होंगी गुलजार

श्याम सुंदर भाटिया 

कोविड- 19 के चलते सात माह से सूने पड़े देशभर के विश्वविद्यालय अब चहकेंगे और महकेंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग- यूजीसी ने यूनिवर्सिटीज अनलॉक करने की हरी झंडी दे दी है, लेकिन सशर्त सूबों की यूनिवर्सिटी खोलने से पूर्व राज्य सरकार की सहमति जबकि केंद्रीय यूनिवर्सिटीज खोलने का दरोमदार उनके कुलपतियों के विवेक पर छोड़ा गया है। अब उच्च शिक्षण संस्थानों में स्टडी के लिए ऑनलाइन, ऑफलाइन और ऑन/ऑफलाइन के तीनों विकल्पों को अपनाया जा सकता है। ऑफलाइन स्टडी में 50 प्रतिशत स्टुडेंट्स ही यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी कैंपस, कॉलेजों या उच्च शिक्षण संस्थानों में आ सकेंगे, लेकिन इससे पूर्व यूनिवर्सिटी के आला प्रबंधन को अप्रूवल लेना होगा। इसके मुताबिक ही रोस्टर बनाना होगा। कोविड-19 के मद्देनजर हॉस्टल खोलने की भी कठोर शर्त रखी गई हैं। एक रुम में एक ही स्टुडेंट प्रवास कर पाएगा। चूँकि विश्वविद्यालय लम्बे वक्त के बाद रि-ओपन हो रहे हैं, सो छह दिन क्लासेज चलेंगी। कोर्स जल्द से जल्द कराने के लिए प्रति लेक्चर की अवधि भी बढ़ाई जा सकती है। यूजीसी ने जारी नई गाइडलाइन्स में यूनिवर्सिटीज और कॉलेजेस को स्पष्ट निर्देश दिए है, वे चरणबद्ध तरीके से क्लासेज का संचालन प्रारम्भ करें। सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क अनिवार्य होगा। आपस में 6 फिट की दूरी बनाए रखनी होगी। सिर्फ वही संस्थान खोले जा सकते हैं, जो कंटेनमेंट जोन बाहर होंगे। कैंपस में आइसोलेशन सेन्टर बनाना होगा। कैंपस में एंट्री से पहले सभी छात्रों, फैकल्टीज और नॉन -टीचिंग स्टाफ की स्क्रीनिंग जरुरी है। लक्षण पाए जाने पर मेडिकल जाँच के बाद ही उन्हें कैंपस में प्रवेश की अनुमति मिलेगी। कैंपस में क्वारंटीन की सहूलियत भी होनी चाहिए। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक मानते हैं, हमारा मंत्रालय कोविड-19 की चुनौतियों का डटकर मुकाबला कर रहा है। यूजीसी के बेहतर संकल्प और तमाम विकल्पों के मद्देनजर अपने परिसरों को फिर से खोलने के लिए नए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। इस नई गाइडलाइन्स को स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय ने भी अप्रूव कर दिया है। 

हकीकत यह है, पूरे देश में विश्वविद्यालयों/कॉलेजों/उच्च शिक्षण संस्थानों में अनलॉकिंग कोविड-19 के तेवरों पर निर्भर है। देश में करीब 1,000 केंद्रीय/डीम्ड /राज्य/प्राइवेट यूनिवर्सिटीज हैं। देश के ज्यादातर सूबे चरणबद्ध तरीके से अपने यहां विश्वविद्यालय/कॉलेज की अनलॉकिंग को लेकर संजीदा हैं। पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु ने दीपावली पर्व के बाद 16 नवंबर से शिक्षण संस्थानों को फिर से खोलने का ऐलान किया है। हरियाणा सरकार ने तो जारी नोटिफिकेशन में कहा है, यदि किसी छात्र को अपनी शंकाओं को दूर करने की आवश्यकता तो वह कॉलेज का दौरा कर सकता है, लेकिन छात्रों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा जबकि राजस्थान सरकार ने कहा, दीपावली के बाद हालात का जायजा लेकर कॉलेजों को खोलने का फिर से फैसला लेगी, जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी का कहना है, दीयों के पर्व के बाद यूनिवर्सिटीज को अनलॉक किया जा सकता है। बिहार में चुनावी माहौल है, हालाँकि जेएनयू के साथ -साथ असम और बिहार में भी 02 नवंबर से यूनिवर्सिटी खुल चुकी हैं। यूपी में निजी विश्वविद्यालय- तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी भी अनलॉक हो चुकी है। यूजी और पीजी के न्यू स्टुडेंट्स की ऑनलाइन पढ़ाई 02 नवंबर से चल रही है जबकि ओल्ड स्टुडेंट्स की ऑनलाइन क्लासेज 24 अगस्त से प्रारम्भ हैं। टीएमयू के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन कहते हैं, ऑफलाइन कक्षाओं के लिए अभिभावकों की सहमति का इंतजार है। यूजीसी की गाइडलाइन्स के मुताबिक 50 प्रतिशत छात्रों को ही प्रवेश की अनुमति देंगे। कोविड-19 को लेकर टीएमयू बेहद सतर्क और संजीदा है। कोरोना के दौरान यूजीसी की ओर से जारी हर दिशा-निर्देश का हम पहले दिन से सख्ती से पालन कर रहे हैं। कर्नाटक में 17 नवंबर से यूनिवर्सिटीज अनलॉक होंगी। गोवा के मुख्यमंत्री श्री प्रमोद सावंत ने कहा, वह अनलॉक के सम्बन्ध में जल्द ही निर्णय ले लेंगे। झारखंड में भी जल्द अनलॉकिंग का फैसला ले लिया जाएगा, ओडिशा सरकार ने तीस नवंबर तक उच्च शिक्षण संस्थानों को बंद करने का फैसला लिया है। नोटिफिकेशन के मुताबिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों या केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त संस्थानों के खुलने का फैसला वाइस चांसलरों / संस्थानों प्रमुखों पर छोड़ दिया गया है जबकि राज्य विश्वविद्यालयों/ शैक्षिक संस्थानों को रि-ओपन करने के बारे में वहां की सूबे की सरकारों को फैसला लेना होगा, कॉलेज/यूनिवर्सिटीज कब से खोली जाएं ? 

कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के खतरे को देखते हुए लक्षण दिखने पर छात्रों और शिक्षक की जाँच के बाद ही प्रवेश देने की सलाह दी गई है। बाकी छात्र और स्टाफ को भी थर्मल स्क्रीनिंग के साथ ही प्रवेश दिया जाएगा। यूजीसी की गाइडलाइन्स के अनुसार, छात्रों/शिक्षकों में कोरोना के लक्षण दिखाई देने पर कैंपस में ही क्वारंटीन की ही सहूलियत करनी होगी। साथ ही संक्रमितों के लिए आइसोलेशन सुविधा होनी चाहिए। इसके लिए यूनिवर्सिटीज /कॉलेज/संस्थान चाहें तो सरकारी हॉस्पिटलों के साथ गठबंधन भी कर सकते हैं। कॉलेजों को अनलॉक करने से पहले वहां सुरक्षा, स्वास्थ्य, भोजन और पेयजल के भी पुख्ता बंदोबस्त करने होंगे। यूजीसी से स्पष्ट किया है गाइडलाइन्स का स्टुडेंट्स, शिक्षकों और नॉन-टीचिंग स्टाफ को सख्ती से फॉलो करना होगा। यूनिवर्सिटीज और कॉलेज चरणबद्ध तरीके से कक्षाओं का संचालन सुनिश्चित करें। कन्टेनमेंट जोन से बाहर के ही संस्थान खोले जा सकते हैं। कन्टेनमेंट जोन्स में रहने वाले स्टुडेंट्स और स्टाफ्स को भी कैंपस में एंट्री की अनुमति नहीं होगी। न ही बाहर के विधार्थी और स्टाफ कन्टेनमेंट जोन में जा सकते हैं। छात्रावास ही जरुरत के मुताबिक खोले ज सकते हैं, लेकिन सख्त देखरेख, स्वास्थ्य और सुरक्षा के मानकों का ख्याल रखना होगा। हालाँकि किसी भी छात्रावास में फिलहाल कमरे की शेयरिंग की अनुमति होगी यानी एक कमरे में एक ही स्टुडेंट्स रह सकता है। कॉलेज रि-ओपनिंग गाइडलाइन्स -2020 के मुताबिक, यदि किसी छात्र में कोविड -19 के लक्षण पाए जाते हैं तो उसे किसी भी परिस्थिति में हॉस्टल में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उल्लेखनीय है, कोविड -19 महामारी के कारण देश में उच्च शिक्षण संस्थान भी 16 मार्च,2020 से बंद हैं। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषण कर दी गई थी। 

यूनिवर्सिटीज को कॉलेज के शिक्षकों, नॉन-टीचिंग और स्टुडेंट्स को आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अनलॉक की इस प्लानिंग में प्रशासनिक, कार्यालय, अनुसंधान प्रयोगशालाएं और पुस्तकालयों को भी शामिल किया जा सकता है। शिक्षा का रोजगार से सीधा संबध है। ऐसे में अंतिम वर्ष के छात्रों को भी शैक्षणिक कार्यों और प्लेसमेंट के लिए भी अनुमति दी जा सकती है। यूनिवर्सिटी के पास अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए भी एक योजना तैयार होनी चाहिए, जो छात्र अंतर्राष्ट्रीय यात्रा प्रतिबन्ध या वीजा को लेकर कोर्स में शामिल नहीं हो सके हैं। सभी रिसर्च और साइंस टेक्नोलॉजी कोर्सेज पीजी स्टुडेंटन्स को पहले यूनिवर्सिटीज/कॉलेज बुलाया जा सकता है, क्योंकि इनकी संख्या दीगर कोर्स  के छात्रों से कम होती है। प्रमुख के निर्देशानुसार अकादमिक की दृष्टि से फाइनल ईयर से स्टुडेंटन्स को भी बुलाया जा सकता है, लेकिन 50 प्रतिशत से अधिक की उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। यदि छात्र चाहें तो  भौतिक रुप से हाजिर न होकर घर से ही ऑनलाइन अध्ययन कर सकते हैं। शैक्षणिक संस्थानों को खोलने के लिए यूजीसी के दिशा-निर्देशों का शत -प्रतिशत अनुपालन करना होगा।                     

हमें उजाले बाहर ही नहीं, भीतर भी करने होंगे

दीपावली- 14 नवम्बर 2020 पर विशेष
-ललित गर्ग-

दीपावली एक लौकिक पर्व ही नहीं, आध्यात्मिक पर्व है। यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी है। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह, माया, लोक और मूच्र्छा के अंधकार को दूर करे, मन को मांजें एवं आत्मा को उजाले तभी दीपावली मनाने की वास्तविक सार्थकता सिद्ध होगी। दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आँगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर साफ किया जाए, उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्ज्वलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है। तभी कोरोना रूपी महामारी के घावांे को भर सकेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना महामारी को परास्त करने के लिये दीये जलवाये थे, इस बार की दीपावली समूची दुनिया से कोरोनारूपी अंधकार को मिटाने का माध्यम बनेगी।
हम हर वर्ष दीपावली मनाते हैं। हर घर, हर आंगन, हर बस्ती, हर गाँव में सबकुछ रोशनी से जगमगा जाया करता है। आदमी मिट्टी के दीए में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है, क्योंकि दीया भले मिट्टी का हो मगर वह हमारे जीने का आदर्श है, हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है। दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है जब भीतर का अंधकार दूर हो। भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। क्योंकि यह सन्देश मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाला है। तथागत बुद्ध की अमृत वाणी ‘अप्पदीवो भव’ अर्थात ‘आत्मा के लिए स्वयं दीपक बन’ वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की ज्योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्युलोक में अवतरित हुए वह दिन भी दीपावली का ही दिन था।
यह बात सच है कि मनुष्य का रूझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा न कभी माँगा। ‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’ भक्त की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन-सा दीप है जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करें, सार्थक नहीं हुआ करती। आचरण से पहले ज्ञान को, चारित्र पालन से पूर्व सम्यक्त्व को आवश्यक माना है। ज्ञान जीवन में प्रकाश करने वाला होता है। शास्त्र में भी कहा गया-‘नाणं पयासयरं’ अर्थात ज्ञान प्रकाशकर है।
हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है। वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वतः समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूच्र्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई कोरोना महामारी, पर्यावरण प्रदूषण, युद्ध एवं आतंकवाद की स्थितियों और अनैतिकता जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है। युद्ध, आतंकवाद, भय, हिंसा, प्रदूषण, कोरोना महाव्याधि, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, ओजोन का नष्ट होना आदि समस्याएँ इक्कीसवीं सदी के मनुष्य के सामने चुनौती बनकर खड़ी है। आखिर इन समस्याओं का जनक भी मनुष्य ही तो है। क्योंकि किसी पशु अथवा जानवर के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। अनावश्यक हिंसा का जघन्य कृत्य भी मनुष्य के सिवाय दूसरा कौन कर सकता है? युद्ध एवं आतंकवाद की समस्या का हल तब तक नहीं हो सकता जब तक मनुष्य अनावश्यक हिंसा को छोड़ने का प्रण नहीं करता।
मोह का अंधकार भगाने के लिए धर्म का दीप जलाना ही होगा। जहाँ धर्म का सूर्य उदित हो गया, वहाँ का अंधकार टिक नहीं सकता। एक बार अंधकार ने ब्रह्माजी से शिकायत की कि सूरज मेरा पीछा करता है। वह मुझे मिटा देना चाहता है। ब्रह्माजी ने इस बारे में सूरज को बोला तो सूरज ने कहा-मैं अंधकार को जानता तक नहीं, मिटाने की बात तो दूर, आप पहले उसे मेरे सामने उपस्थित करें। मैं उसकी शक्ल-सूरत देखना चाहता हूँ। ब्रह्माजी ने उसे सूरज के सामने आने के लिए कहा तो अंधकार बोला-मैं उसके पास कैसे आ सकता हूँ? अगर आ गया तो मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
जीवन का वास्तविक उजाला लिबास नहीं है, बल्कि नैतिक एवं चारित्रिक गुण हैं। वास्तविक उजाला तो मनुष्य में व्याप्त उसके आत्मिक गुणों के माध्यम से ही प्रकट हो सकता है। जीवन की सार्थकता और उसके उजालों का मूल आधार व्यक्ति के वे गुण हैं जो उसे मानवीय बनाते हैं, जिन्हें संवेदना और करुणा के रूप में, दया, सेवा-भावना, परोपकार के रूप में हम देखते हैं। असल मंे यही गुणवत्ता उजालों की  बुनियाद है, नींव हैं जिस पर खड़े होकर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाता है। जिनमें इन गुणों की उपस्थिति होती है उनकी गरिमा चिरंजीवी रहती है। समाज में उजाला फैलाने के लिये इंसान के अंदर इंसानियत होना जरूरी है। जिस तरह दीप से दीप जलता है, वैसे ही प्यार देने से प्यार बढ़ता है और समाज में प्यार और इंसानियत रूपी उजालों की आज बहुत जरूरत है।
जीवन के हृास और विकास के संवादी सूत्र हैं- अंधकार और प्रकाश। अंधकार स्वभाव नहीं, विभाव है। वह प्रतीक है हमारी वैयक्तिक दुर्बलताओं का, अपाहिज सपनों और संकल्पों का। निराश, निष्क्रिय, निरुद्देश्य जीवन शैली का। स्वीकृत अर्थशून्य सोच का। जीवन मूल्यों के प्रति टूटती निष्ठा का। विधायक चिन्तन, कर्म और आचरण के अभाव का। अब तक उजालों ने ही मनुष्य को अंधेरों से मुक्ति दी है, इन्हीं उजालों के बल पर उसने ज्ञान को अनुभूत किया अर्थात सिद्धांत को व्यावहारिक जीवन में उतारा। यही कारण है कि उसकी वजूद आजतक नहीं मिटा। उसकी दृष्टि में गुण कोरा ज्ञान नहीं है, गुण कोरा आचरण नहीं है, दोनों का समन्वय है। जिसकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता वही समाज मंे आदर के योग्य बनता है।
हम उजालों की वास्तविक पहचान करें, अपने आप को टटोलें, अपने भीतर के काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि कषायों को दूर करंे और उसी मार्ग पर चलें जो मानवता का मार्ग है। हमंे समझ लेना चाहिए कि मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है, वह बार-बार नहीं मिलता। समाज उसी को पूजता है जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है। इसी से गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है-‘परहित सरिस धरम नहीं भाई’। स्मरण रहे कि यही उजालों को नमन है और यही उजाला हमारी जीवन की सार्थकता है। जो सच है, जो सही है उसे सिर्फ आंख मूंदकर मान नहीं लेना चाहिए। खुली आंखों से देखना परखना भी चाहिए। प्रमाद टूटता है तब व्यक्ति में प्रतिरोधात्मक शक्ति जागती है। वह बुराइयों को विराम देता है। इस पर्व के साथ जुड़े मर्यादा पुरुषोत्तम राम, भगवान महावीर, दयानंद सरस्वती, आचार्य तुलसी आदि महापुरुषों की आज्ञा का पालन करके ही दीपावली पर्व का वास्तविक लाभ और लुफ्त उठा सकते हैं। संसार का प्रत्येक मनुष्य उनके अखंड ज्योति प्रकट करने वाले संदेश को अपने भीतर स्थापित करने का प्रयास करें, तो संपूर्ण विश्व में, निरोगिता, अमन, अयुद्ध, शांति और मैत्री की स्थापना करने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती है तथा सर्वत्र खुशहाली देखी जा सकती है और वैयक्तिक जीवन को प्रसन्नता और आनंद के साथ बीताया जा सकता है।
दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिए। क्योंकि दीया कहीं भी जले उजाला देता है। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएँ जीवन की सार्थक दिशाएँ खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊँचाइयों के सपने देखते हैं। जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है।

ठाडे कै सब यार, बोदे सदा ए खावैं मार

सुशील कुमार ‘नवीन’

प्रकृति का नियम है हर बड़ी मछली छोटी को खा जाती है। जंगल में वही शेर राजा कहलाएगा,जिसके आने भर की आहट से दूसरे शेर रास्ता बदल लेते हों। गली में वही कुत्ते सरदार होते हैं जो दूसरे कुत्तों के मुंह से रोटी छीनने का मादा रखते हों । और तो और गांव में भी वही सांड रह पाता है जिसके सींगों में दूसरे सांड को उठा फैंकने का साहस होता है। पूंछ दबा पीछे हटते कुत्तों, लड़ना छोड़ भागने वाले सांड सदा मार ही खाते हैं। रणक्षेत्र में वही वीर टिकते हैं जिनमें लड़ने के साहस के साथ मौत से दो हाथ करने का जज्बा हो। कायरता किसी के खून में नहीं होती, कायरता मन में उमड़े कमजोरी के भावों से होती है। कहते हैं ना, जो डर गया समझो मर गया। 

आप भी सोच रहे होंगे कि आज ये भगवत ज्ञान कैसे मुखरित हो रहा है। तो सुनिए, ज्ञान भी तभी मुखरित होता है जब उस ज्ञान को आत्मसात किया हुआ हो। हमारे एक मित्र वैचारिक रूप से बड़े ज्ञानी है। नाम है अनोखे लाल। नाम की तरह वे अपने विचारों से भी अनोखे हैं। बोलते समय सामने वाले को ऐसा सम्मोहित कर देते हैं कि उनके कहे को अस्वीकारना असंभव हो जाता है। लास्ट में आप ही सही,कहकर उठना पड़ता है।

तो अनोखे लाल जी आज सुबह पार्क में गुनगुनी धूप का आनन्द ले रहे थे। इसी दौरान हमारा भी वहां जाना हो गया। राम रमी के बाद चर्चा चलते-चलते अमेरिका के नए राजनीतिक घटनाक्रम पर चल पड़ी। मैंने भी जिज्ञासावश उनके आगे एक प्रश्न छोड़ दिया कि भारत-अमेरिका सम्बन्धों पर क्या इससे फर्क पड़ेगा। आदतन पहले गांभीर्यता को अपने अंदर धारण किया फिर बोले-शर्मा जी! आपने कभी सांड लड़ते देखे हैं। मैंने कहा-ये संयोग तो होता ही रहता है।

    बोले-सांडों की लड़ाई का परिणाम क्या होता है, ये भी आप जानते ही है। सांडों का कुछ बिगड़ता नहीं, उसका खामियाजा दूसरे भुगतते हैं। बाजार में लड़े तो रेहड़ीवाले, सड़क पर लड़े तो बाइक सवार, गली में लड़े तो लोहे के दरवाजे, खुले में लड़े तो झाड़-बोझड़े इसके शिकार बनते हैं। मैंने कहा-ये उदाहरण तो समझ से परे है। बोले-अमेरिका में कोई राष्ट्रपति बने, भारत पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हमारे लिए ट्रम्प जितना सहयोगी रहा है उतना ही बाइडेन को रहना होगा। हमारा साथ उन्हें भी जरूरी है।

  मैंने कहा-राजा बदलने से सम्बन्धों पर क्या कोई असर नहीं पड़ता है।बोले-चेहरा बदलने से सारा स्वरूप थोड़े ही बदल जाता है। गीदड़ शेर का मुखौटा धारण कर शेर नहीं बन सकता। वो चेहरा तो बदल सकता है पर शेर जैसी हिम्मत और ताकत मुखौटा धारण करने से नहीं आ सकती। मैंने फिर टोका कि बात अभी भी समझ नहीं आई। वो फिर बोले-भाई, दुनिया की फितरत है। साथ हमेशा मजबूत लोगों का दिया और लिया जाता है। कमजोर का न कोई साथ लेता है और न उसका साथ देता है। कोई साथ देता भी तो उसकी अपनी गर्ज होती है। चीन का साथ पाकर नेपाल की बदली जुबान हम देख ही चुके हैं। हम मजबूत हैं तभी हमसे दोस्ती करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है। हम मजबूत रहेंगे तो ट्रम्प-बाइडेन ज्यों साथ मिलता रहेगा। हम कमजोर पड़ते दिखे तो ओली जैसे नेता मुखर होते साफ दिख जाएंगे। बोले-बावले भाई, दो टूक की यही बात है। ठाडे कै सब यार, बोदे(कमजोर) सदा ए खावैं मार।

उनके बेबाक सम्बोधन को विराम देना सहज नहीं है। औरों की तरह लास्ट में मुझे भी यही कहकर चर्चा खत्म करनी पड़ी कि आपकी बात बिल्कुल सही है। सोचा जाए तो अनोखेलाल जी की बात गलत भी नहीं है। आप भी जरा इस पर विचार करें।

अब अमेरिकी प्रतिष्ठा लौटेगी

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कल मैंने लिखा था कि डोनाल्ड ट्रंप- जैसे आदमी को साढ़े चौदह करोड़ वोटों में से लगभग सात करोड़ वोट कैसे मिल गए। अब पता चल रहा है कि जोसेफ बाइडन को ट्रंप के मुकाबले अभी तक सिर्फ पचास-साठ लाख वोट ही ज्यादा मिले हैं। बाइडन की जीत पर अमेरिका और भारत की जनता तो खुश है ही, दुनिया के ज्यादातर देश भी खुश होंगे। सबसे ज्यादा खुश चीन होगा, क्योंकि पहले तो ट्रंप ने अमेरिका के व्यापारिक शोषण के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया और फिर उसे सारी दुनिया में कोविड-19 या कोरोना फैलाने के लिए बदनाम किया। कोरोना के प्रति लापरवाही दिखानेवाले ट्रंप खुद कोरोना की चपेट में आ गये। दुनिया की सबसे शक्तिशाली अर्थ-व्यवस्था लंगड़ाने लगी। लगभग 2 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। बेरोजगारों को पटाने के लिए ट्रंप ने बहुत-सा द्राविड़-प्राणायाम किया लेकिन वह भी उनको जिता नहीं पाया।
अब बाइडन के कंधों पर यह बोझ आन पड़ा है कि वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में जान फूंकें। उन्होंने अभी से इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। उनकी सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि चुनाव-नतीजों के आने पर न तो उन्होंने ट्रंप के खिलाफ एक भी शब्द बोला और न ही चुनाव-प्रक्रिया के खिलाफ। उन्होंने अपनी गरिमा बनाए रखी लेकिन ट्रंप का घमंडीपन देखिए कि उन्होंने अपने बयानों से संपूर्ण अमरीकी लोकतंत्र को ही कलंकित कर दिया। उनके अनर्गल प्रलाप करने की आदत को किस-किसने नहीं भुगता है?
अमेरिकी राजनीति के इतिहास में उनका नाम सबसे घटिया राष्ट्रपतियों में लिखा जाएगा। जब वे नए-नए राष्ट्रपति बने तो उनपर बलात्कार और व्यभिचार के कितने आरोप लगे। उनके मंत्रियों, साथियों और अधिकारियों ने उनसे तंग आकर जितने इस्तीफे दिए, शायद किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के काल में इतने इस्तीफे नहीं हुए। लेकिन अमेरिका भी अजीब देश है, जिसने ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति बना दिया और चार साल तक उसे अपनी छाती पर सवार रखा। अमेरिकी जनता हिलैरी क्लिंटन की हार की भरपाई तभी करेगी, जब वह 2024 में कमला हैरिस को राष्ट्रपति बनाएगी। मुझे विश्वास है कि बाइडन और कमला मिलकर अगले चार वर्षों में अमेरिकी लोकतंत्र की खोई प्रतिष्ठा का पुनरोद्धार करेंगे।

हुए शत्रु के मित्र !!


दुनिया मतलब की हुई,
रहा नहीं संकोच !
हो कैसे बस फायदा,
यही लगी है सोच !!


मतलब हो तो प्यार से,
पूछ रहे वो हाल !
लेकिन बातें काम की,
झट से जाते टाल !!

रिश्तों के सच जानकर,
सब संशय है शांत !
खुद से खुद की बात से,
मिला आज एकांत !

झूठे रिश्ते वो सभी,
है झूठी सौगंध !
तेरे आंसूं देख जो,
कर ले आंखें बंद !!

बस छोटी -सी बात पर,
उनका दिखा चरित्र !
रिश्तें -नाते तोड़ कर,
हुए शत्रु के मित्र !!