Tag: जीएसटी

राजनीति

हिमालय जैसे विराट व्यक्तिगत के धनी हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

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नरेंद्र मोदी ऐसी शख्सियत का नाम है जो कभी भी आलोचनाओं से घबराता नहीं है। बल्कि अपनी आलोचनाओं का आत्म मूल्यांकन कर अपनी कमियों को सुधारने की कोशिश करता है। यही खूबी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरे राजनीतिज्ञों से अलग बनाती है। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की बात की जाए तो आज के […]

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आर्थिकी विविधा

एक देश: एक टैक्स जीएसटी

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वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने से केन्द्र और राज्यों के स्तर पर लगने वाले एक दर्जन से अधिक कर समाप्त हो जायेंगे और उनके स्थान में केवल जीएसटी लगेगा। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस कार्यक्रम से दूर रही। कांग्रेस ने जीएसटी की शुरुआत के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम को तमाशा करार दिया। कांग्रेस के इसी बहिष्कार के चलते पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस कार्यक्रम से दूर रहे। तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, डीएमके और वामपंथी दलों ने कार्यक्रम का बहिष्कार किया। जीएसटी से देश की 2,000 अरब की अर्थव्यवस्था और 1.3 अरब लोग सभी एक साथ जुड़ जायेंगे और पूरा देश एक साझा बाजार बन जायेगा।

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आर्थिकी चुनाव राजनीति

राजनीतिक चंदे के लिए निर्वाचन बाॅन्ड का औचित्य

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एक मोटे अनुमान के अनुसार देश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं। इस खर्च में बड़ी धनराशि कालाधन और आवारा पूंजी होती है। जो औद्योगिक घरानों और बड़े व्यापारियों से ली जाती है। आर्थिक उदारवाद के बाद यह बीमारी सभी दलों में पनपी है। इस कारण दलों में जनभागीदारी निरंतर घट रही है। अब किसी भी दल के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को पार्टी का सदस्य नहीं बनाती हैं। मसलन काॅरपोरेट फंडिंग ने ग्रास रूट फंडिंग का काम खत्म कर दिया है। इस कारण अब तक सभी दलों की कोशिश रही है कि चंदे में अपारदर्शिता बनी रहे।

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आर्थिकी

जीएसटी-मोदी सरकार के तीन वर्षो की बड़ी कामयाबी

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बात जीएसटी की आवश्यकता क्यों पड़ी ? इसकी की जाये तो विभिन्न राज्यों के बीच जिस तरह टैक्स में असंतुलन आ गया था, उससे निपटने के लिए जीएसटी आवश्यक हो गया था। इसके लागू होने से उत्पाद शुल्क, सेवा कर, राज्य वैट, मनोरंजन कर, प्रवेश शुल्क, लग्जरी टैक्स जैसे तमाम टैक्स समाप्त हो जाएंगे। इस समय देश में केंद्र और राज्यों के आठ से दस अप्रत्यक्ष कर सेस है, जीएसटी लागू होने के बाद ये खत्म हो जाएंगे और इसका मतलब है कि दोहरे कराधान से सबको निताज मिल जायेगी। इ

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राजनीति

अखाड़ा न बने संसद

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इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने कालाधन, भ्रश्टाचार एवं आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए हजार-पांच सौ के नोट बंद करके जो निर्णायक पहल की है, वह स्वागत योग्य है। लेकिन नेक फैसले पर अमल की जो तमाम मुश्किलें पैदा हो रही हैं, उनका प्रबंध नोटबंदी लागू करने से पहले कर लिया गया होता तो शायद न तो देश में इतनी छुट्टे व नए नोटों के लिए मारी-मारी हो रही होती और न ही विपक्ष को जनता से सीधा जुड़ा इतना बड़ा मुद्दा मिला होता। इसलिए इस मुद्दे पर हंगामा खड़ा होना कोई हैरानी की बात नहीं है। फिर हमारे सांसदों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे सांसदों की है, जो खुद नोटबंदी से आफत अनुभव कर रहे होंगे ? यह नोटबंदी ठीक उस वक्त की गई है, जब उत्तरप्रदेश व पंजाब समेत पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। ऐसे में इस नोटबंदी ने संभावित प्रत्याशि और दल-प्रमुखों की नींद हराम कर दी है।

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