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राजनीति

वजूद के संकट में मायावती

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मायावती ने मूर्तियों के माध्यम से दैवीय प्रतीक गढ़ने की जो कवायद की, हकीकत में ऐसी कोशिशें ही आज तक हरिजन, आदिवासी और दलितों को कमजोर बनाए रखती चली आई हैं। उद्यानों पर खर्च की गई धन राशि को यदि बंुदेलखण्ड की गरीबी दूर करने अथवा दलितों के लिए ही उत्कृष्ठ विद्यालय व अस्पताल खोलने में खर्च की गई होती तो एक तरफ खेती-किसानी की माली हालत निखरती और दूसरी तरफ वंचितों को निशुल्क शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं मिलती। किंतु मायावती की अब तक की कार्य संस्कृति में मानक व आदर्श उपायों और नई दृष्टि का सर्वथा अभाव रहा।

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विविधा

ऋषि-द्वय कह गए दुनिया से,युग-परिवर्तन नियति की नीयत है

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दोनों उच्च कोटि के पत्रकार-सम्पादक थे । अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अरविन्द अंग्रेजी में ‘वन्देमातरम’ निकालते थे , तो श्रीराम हिन्दी में ‘सैनिक’ । किन्तु बाद में किसी दिव्यात्मा के सम्पर्क से दोनों योग-साधना के बदौलत चेतना के उच्च शिखर पर पहुंच कर दैवीय योजना के तहत अपनी-अपनी भूमिका को तदनुसार नियोजित कर राष्ट्रीय चेतना जगाने-उभारने के आध्यात्मिक उपचार में संलग्न हो गए ।

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राजनीति

गलती कांग्रेस की, ठीकरा राज्यपाल पर

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भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि देश को अब कांग्रेस की आवश्यकता नहीं है। इसलिए कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों पर नजर डाली जाए तो यही परिलक्षित होता दिखाई देता है कि देश की जनता ने महात्मा गांधी की बात पर अमल करना प्रारंभ कर दिया है। क्योंकि इन पांच राज्यों में से चार राज्यों में भाजपा की सरकार बन चुकी है या बनने वाली है। वर्तमान में पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के सपने को साकार करने के लिए अपने कदम बढ़ाता हुआ दिखाई दे रहा है।

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विविधा सार्थक पहल

बिहार की ग्राम कचहरी का एक प्रत्यक्ष अनुभव

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बिहार के सन्दर्भ में ग्राम कचहरी में अब तक जो विवाद दाखिल हुए है और जिन पर कार्यवाही हुई है उनके सम्बन्ध में अब तक हुए अध्ययनों से जो तथ्य निकलते है उसमें जमींन सम्बन्धी विवाद 58% तथा घरेलु विवाद 20% है | इसमें से 85% विवाद दलित एवं पिछड़े वर्ग से सम्बंधित है | बिहार में ग्राम कचहरी में आये हुए इन विवादों का 90% हिस्सा समझौते के द्वारा तय हुआ है | अन्य 10% में 100 से 1000 रूपये तक का जुर्माना लगाया गया है | ज्यादातर मामलों में दोषी ने सहज रूप से जुर्माना भरा है | लगभग 03% विवाद ही ऊपर की अदालतों में अपील हेतु गए है |

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राजनीति

बिगड़ैल आज़म खान की सरकारी अकड़

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वैसे उनकी मानसिकता को समझने के लिए 8 फरवरी 2012 को पिछले चुनावों की गोरखपुर में हुई एक सभा में मुसलमानों को भड़काते हुए उन्होंने जो कहा था वह पर्याप्त है कि "बदलाव लाओ और सपा सरकार के गुजरे उस कार्यकाल (2002 से 2007) को याद करो जब थाने के लोग "दाढ़ी" पर हाथ धरने से डरते थे"।( दैनिक जागरण 08.02.2012)। आज़म खान प्रदेश में दादागिरी दिखाते हुए मुसलमानों को भी दबंग बने रहने के लिए कहते थे। वे अधिकारियों के लिए उनसे कहते थे कि "अधिकारी न आपके रिश्तेदार है और न मेरे, आप चाबुक हाथ मे रखिये वह सब सुनेंगे "।( दैनिक जागरण 31.01.2013) ।

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