दोहे तब हर पल होली कहलाता है। March 6, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment जब घुप्प अमावस के द्वारे कुछ किरणें दस्तक देती हैं, सब संग मिल लोहा लेती हैं, कुछ शब्द, सूरज बन जाते हैं, तब नई सुबह हो जाती है, नन्ही कलियां मुसकाती हैं, हर पल नूतन हो जाता है, हर पल उत्कर्ष मनाता है, तब मेरे मन की कुंज गलिन में इक भौंरा रसिया गाता है, […] Read more » होली
कहानी मकान मालिक March 6, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment क़ैस जौनपुरी खिद्दीर अंकल के मां-बाप बचपन में ही खतम हो गए थे. बहराइच में उनके चाचा ने उन्हें पाला-पोसा, बड़ा किया. ये अगूंठा छाप थे. और पन्द्रह साल की उमर से ही रोजी-रोटी की कोशिश में लग गए थे. अपना पेट खुद पालते थे. मजदूरी की. ठेला चलाया. सब्जी बेची. पैसे के लिए […] Read more » मकान मालिक
व्यंग्य आर्ट आफ र्टार्चिंग March 6, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बाजारवाद के मौजूदा दौर में आए तो मानसिक अत्याचार अथवा उत्पीड़न यानी र्टार्चिंग या फिर थोड़े ठेठ अंदाज में कहें तो किसी का खून पीना… भी एक कला का रूप ले चुकी है। आम – अादमी के जीवन में इस कला में पारंगत कलाकार कदम – कदम पर खड़े नजर आते हैं। […] Read more » आर्ट आफ र्टार्चिंग
दोहे फागुन रंग बहार March 5, 2015 / March 6, 2015 by हिमकर श्याम | 1 Comment on फागुन रंग बहार हँस कर कोयल ने कहा, आया रे मधुमास। दिशा-दिशा में चढ़ गया, फागुन का उल्लास।। झूमे सरसों खेत में, बौराये हैं आम। दहके फूल पलास के, हुई सिंदूरी शाम।। दिन फागुन के आ गए, सूना गोकुल धाम। मन राधा का पूछता, कब आयेंगे श्याम।। टूटी कड़ियाँ फिर जुड़ीं, जुड़े दिलों के तार। […] Read more » फागुन रंग बहार
आलोचना प्रदेश में प्रशासन पस्त लेकिन समाजवादी मस्त February 27, 2015 by मृत्युंजय दीक्षित | 1 Comment on प्रदेश में प्रशासन पस्त लेकिन समाजवादी मस्त मृत्युंजय दीक्षित एक ओर जहां आजकल प्रदेश का कामकाज बेहद सुस्त हो गया है हर विभाग में अफसरों की लापरवाही के परिणाम सामने आ रहे हैं तथा समाजवादी सरकार की लोकलुभावन योजनाएं एक के बाद एक फेल होती जा रही हैं उस समय सैफई में जिस प्रकार से सपा मुखिया मुलायम के पोते तेज प्रताप […] Read more » प्रदेश में प्रशासन पस्त समाजवादी मस्त
आलोचना राहुल की छुट्टी या कर्तव्य से पलायन February 27, 2015 by सुरेश हिन्दुस्थानी | 2 Comments on राहुल की छुट्टी या कर्तव्य से पलायन सुरेश हिन्दुस्थानी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का हमेशा से ही राष्ट्रीय गतिविधियों से अलग रहने का स्वभाव रहा है। जब भी देश में कोई बड़ी घटना होती है, राहुल की तलाश की जाती है, लेकिन हमारे यह महाशय तलाश करने के बाद भी कहीं दिखाई नहीं देते हैं। बाद में कुछ सूत्र अवश्य इस बात […] Read more » कर्तव्य से पलायन राहुल की छुट्टी
व्यंग्य मैया मोरी , मैं नहीं संसद जायौ! February 26, 2015 by अशोक गौतम | 2 Comments on मैया मोरी , मैं नहीं संसद जायौ! हांतो रसिको! आज आपको ससंद पुराण कीआगे की कथा सुनाता हूं। संसद पुराण अनंत है। इसकी कथाएं अनंत हैं। मेरी इतनी हिम्मत कहां जो इन सात दिनों में आपके सामने पूरे संसद पुराण की कथा बांच सकूं। उसे सुनने के लिए तो ……. पिछले चार दिनों से आपने ससंद पुराण की कथा जिस लगन से […] Read more » मैं नहीं संसद जायौ
व्यंग्य समय से पहुंचने वाली ट्रेनें ही दे दीजिए February 25, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment हे रेलवे के नीति – नियंताओं ! हमें मंजिल पर समय से पहुंचने वाली ट्रेनें ही दे दीजिए …!! तारकेश कुमार ओझा चाचा , यह एलपी कितने बजे तक आएगी। पता नहीं बेटा, आने का राइट टेम तो 10 बजे का है, लेकिन आए तब ना…। शादी – ब्याह के मौसम में बसों की कमी के […] Read more » समय से पहुंचने वाली ट्रेनें ही दे दीजिए
व्यंग्य छुट्टी का हक तो बनता ही है.. February 25, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी बहुत दिन से घूमने नहीं आ रहे थे। न सुबह, न शाम। बाकी मित्र तो ज्यादा चिन्ता नहीं करते; पर मेरा मन उनके बिना नहीं लगता। बहुत दिन हो जाएं, तो बेचैनी होने लगती है। सो मैं उनके घर चला जाता हूं। मिलना का मिलना, और साथ में भाभी जी के हाथ के […] Read more »
कहानी मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस February 25, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | 6 Comments on मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस ||| सुबह 8:30 ||| मैंने टैक्सी ड्राईवर से पुछा- “और कितनी देर लगेंगी।” उसने कहा – “साहब बस 30 मिनट में पहुंचा देता हूँ।” मैंने घडी देखी 8:40 हो रहे थे। मैंने कहा – “यार 9 बजे की गाडी है।” थोडा जल्दी करो यार। उसने स्पीड बढ़ा दी. मैं नासिक की सडको को देखने लगा। मैं अपनी कंपनी के काम से आया हुआ था. […] Read more » मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस
आलोचना सैफई का समाजवाद : अंडर द कार्पेट February 23, 2015 / February 23, 2015 by अलकनंदा सिंह | 4 Comments on सैफई का समाजवाद : अंडर द कार्पेट देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया जिनमें से एक थे राममनोहर लोहिया। राजनीतिक अधिकारों के पक्षधर रहे डॉ. लोहिया ऐसी समाजवादी व्यवस्था चाहते थे जिसमें सभी की बराबर हिस्सेदारी रहे। लोहिया कहते थे कि सार्वजनिक धन […] Read more » सैफई का समाजवाद
व्यंग्य व्यंग्य बाण : वी.वी.आई.पी. खांसी February 21, 2015 / February 23, 2015 by विजय कुमार | 2 Comments on व्यंग्य बाण : वी.वी.आई.पी. खांसी मुझे फिल्म देखने का कभी शौक नहीं रहा। हां, अच्छे गीत सुनने से मन-मस्तिष्क को आराम जरूर मिलता है। बालगीत भी बहुत अच्छे लगते हैं। ऐसे कुछ गीत और कविताएं मैंने भी लिखी हैं। कई बड़े अभिनेताओं ने बालगीत गाये हैं, यद्यपि वे स्थापित गायक नहीं है। इनमें अशोक कुमार द्वारा फिल्म ‘आशीर्वाद’ में गाया […] Read more » वी.वी.आई.पी. खांसी