Category: समाज

समाज

‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ के साथ ‘मैकाले’ से भी हो दो-दो हाथ

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विष-वृक्ष को काट-पीट कर उसका सफाया कर देना पर्याप्त नहीं होता, जब तक उसे खाद-पानी देते रहने वाली उसकी जड-मूल को नष्ट न कर दिया जाय । ऐसे में जरूरत है कि ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ अभियान के साथ-साथ मैकाले से भी दो-दो हाथ कर उसकी षडयंत्रकारी अभारतीय शिक्षा-पद्धति को उखाड कर भारतीय जीवन-दर्शन की शिक्षा-पद्धति स्थापित की जाए , तभी सही अर्थों में स्थायी तौर पर ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का निर्माण हो सकेगा ,

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समाज

सर्वसमावेशी है हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा

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हमनें सदा से विदेशियों को प्रश्रय व उनकें विचारों को सम्मान दिया है ऐसा करके हम हमारें नेसर्गिक “वसुधेव कुटुम्बकम” के मूल विचार को आगे ही बढ़ा रहे थे किंतु भारत भूमि पर बलात आने वाले मुस्लिम व ईसाई शासकों ने हमारी इस दयालुता, सहिष्णुता व भोलेपन का गलत लाभ उठाया है. इनके अतिरिक्त हमें कम्युनिस्टों से भी बड़ी हानि झेलनी पड़ी है जिन्होनें अंग्रेजों के बाद हमारा समूचा इतिहास गड्डमगड्ड कर डाला व हमारें “धर्मप्राण राष्ट्र” में “धर्म को अफीम” कहना प्रारंभ किया.

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समाज

हिन्दुओं को मिले तीन विकल्प-इस्लाम, मृत्यु, कश्मीर छोड़ो

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‘भारत में मूत्र्ति पूजा’ का लेखक हमें बताता है-‘‘मुसलमान फकीर हिंदू वेष में मंदिरों में रहकर वहां की आंतरिक दशा का अध्ययन करते थे और उसकी सूचना अपने प्रचारकों तथा मुस्लिम शासकों को देते रहते थे। जो उस समय उनसे पूरा लाभ उठाते थे। इब्नबतूता का कहना है कि चंदापुर के निकट एक मंदिर में उसकी भेंट एक ऐसे जोगी से हुई जो वास्तव में एक मुसलमान सूफी था और केवल संकेत से बातचीत करता था। फारसी का प्रसिद्घ कवि शेख सादी सोमनाथ के मंदिर में कुछ समय हिंदू साधु बनकर रह गया था।

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समाज

कलियुग, मानव और व्यवस्था

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ऐसा नही है कि समाज में व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य ही ऐसा होता है। आज की सारी व्यवस्था ही इसमें लिप्त है। जब धर्म को खुलेआम सडक़ों पर बेचा जा रहा हो, तब न्याय की अपेक्षा व्यवस्था से नही की जा सकती। अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र और राज्य सरकारों को फटकार लगायी है कि केन्द्र और प्रांतों की सरकारें समय पर सरकारी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण करने वालों पर कठोर कार्यवाही नही करातीं। जबकि बहुत से धार्मिक स्थलों को लोग जानबूझकर सार्वजनिक मार्गों में बना लेते हैं।

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समाज

एक मुस्लिम नास्तिक की हत्या

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वे अपने मजहब की तौहीन इस प्रकार करते हैं कि वे उसमें अंधविश्वास करने की वकालत करते हैं। वे तर्क नहीं करना चाहते। वे वाद-विवाद से डरते हैं। क्या उनका धर्म या मजहब इतना पोंगापंथी है कि उस पर कोई बहस ही नहीं हो सकती? भारत में तो शास्त्रार्थ की परंपरा बहुत प्राचीन है। शंकराचार्य से लेकर महर्षि दयानंद तक धार्मिक मान्यताओं की बखिया उधेड़ते रहे हैं। भारत में नास्तिक मतों को भी पलने-पालने की बड़ी परंपरा है।

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समाज

स्वस्थ बहस

| 3 Comments on स्वस्थ बहस

एक अनोखा उदाहरण स्मरण हो रहा है; हमारी सत्यान्वेषी परम्परा का। उस के ऐतिहासिक अंशपर संदेह हो ही नहीं सकता। उसके काल के विषय में दो मत हैं; पर ऐतिहासिकता पर संदेह नहीं है। आदि शंकर और मण्डन मिश्र के बीच बहस हुयी थी जो २१ दिन चली थी; जिसे स्वस्थ बहस कहना ही उचित होगा। और अचरज! मिश्रजी की पत्‍नी इस बहस की निर्णेता थीं। जी हाँ; बहस में मण्डन मिश्र की हार और शंकर की जीत का निर्णय देनेवाली निर्णेता मण्डन मिश्र की पत्‍नी उभय भारती थीं।आचार्य शंकर से मण्डन मिश्र काफी बडे भी थे। बडा हारा, छोटा शंकर जीता। और बडे की पत्‍नी थी, निर्णेता?

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समाज

बदलते भारत में बदलती शिक्षा

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उच्च शिक्षा के संबध में लोगो की राय जानने के लिए दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन चरखा ने कुछ छात्रों से बात की। इस संबध में जम्मू विश्वविद्यालय के छात्र जफर कहते हैं कि "विश्वविद्यालय में एडमिशन के बारे पिछड़े क्षेत्रों में जागरूकता की कमी है। उनके पास जानकारी नहीं है कि कब प्रवेश परीक्षा आयोजित की जा रही है। हालांकि सरकार कई योजनाएं लाती है, लेकिन छात्रों को इन योजनाओं के बारे में सूचित करने का कोई रास्ता नहीं है। जम्मू जैसे क्षेत्र में कभी कभी सूचना इतनी देर से पहुंचती है कि छात्र उसके लाभ से वंचित रह जाते है”।

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राजनीति समाज

मैकाले-पद्धति को शीर्षासन कराता महर्षि अरविन्द का शिक्षा-दर्शन

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“ वास्तविक शिक्षण का प्रथम सिद्धान्त है- ‘कुछ भी न पढ़ाना’ , अर्थात् शिक्षार्थी के मस्तिष्क पर बाहर से कोई ज्ञान थोपा न जाये । शिक्षण प्रक्रिया द्वारा शिक्षार्थी के मस्तिष्क की क्रिया को सिर्फ सही दिशा देते रहने से उसकी मेधा-प्रतिभा ही नहीं, चेतना भी विकसित हो सकती है, जबकि बाहर से ज्ञान की घुट्टी पिलाने पर उसका आत्मिक विकास बाधित हो जाता है ।”

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समाज

महिला यात्रियों की सुविधाओं की अनदेखी क्यों ?

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"आपको पता होना चाहिए कि हमारे जिले की अधिकांश आबादी पहाड़ी गांव में बस्ती हैं जहां आने के लिए किसी क्षेत्र में रोड है तो कार नहीं और कार है तो किराया देने के पैसे नही। कई किलोमीटर दूर से महिलाएं पुंछ शहर आती हैं परंतु बस स्टैंड में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। सीमा क्षेत्र होने के कारण अधिकतर विकलांग हैं। ऐसे रोगियों में महिलाएं भी होती हैं और उन्हें जब जम्मू ले जाया जाता है तो उनके लिए रास्ते में शौच का प्रबंध नहीं होता। क्या यह एक राष्ट्रीय समस्या नहीं है?, क्या इस ओर तत्काल ध्यान देने की जरूरत नहीं है?

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