विविधा बाइबल की संकीर्णता और अंग्रेज़ की आक्रामकता February 8, 2014 by डॉ. मधुसूदन | 4 Comments on बाइबल की संकीर्णता और अंग्रेज़ की आक्रामकता -डॉ. मधुसूदन- प्रवेश (अनुरोध: आलेख धीरे-धीरे आत्मसात कर के पढ़ें) **अंग्रेज़ों ने रामायण और महाभारत इतिहास नहीं, पर महाकाव्य माने। क्यों? **वेदों का भी मात्र १०००-१५०० ईसा पूर्व ही, माना। क्यों? **उपनिषदों को भी ईसा पूर्व ३००-४०० वर्ष पूर्व ही माना। क्यों **ऐसे अनेक प्रश्नों के आंशिक या पूर्ण उत्तर आप को इस आलेख […] Read more » Bible and Englishmen बाइबल की संकीर्णता और अंग्रेज़ की आक्रामकता
विविधा लो रोक लो बलात्कार… February 6, 2014 by निर्मल रानी | 4 Comments on लो रोक लो बलात्कार… -निर्मल रानी- महिलाओं का यौन शोषण अथवा बलात्कार, हालांकि हमारे देश में घटित होने वाला एक ऐसा अपराध है जो दशकों से देश के किसी न किसी भाग में होता आ रहा है। परंतु मीडिया की सक्रियता, सूचना के क्षेत्र में आई क्रांति तथा इंटरनेट ने इस बुराई को न केवल मुस्तैदी […] Read more » rapes in India लो रोक लो बलात्कार
विविधा भरत के अल्पसंख्यक वंशज February 6, 2014 / February 7, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार- पिछले दिनों हिन्दुओं की सशक्त आर्थिक भुजा (जैन समाज) को केन्द्र सरकार ने ‘अल्पसंख्यक’ घोषित किया है। इससे पूर्व भारत की ‘खड्ग भुजा’ के प्रतीक सिख और अध्यात्म व समरसता के संदेशवाहक बौद्ध भी अल्पसंख्यक घोषित हो चुके हैं। इसके लाभ-हानि को विचारे बिना एक भेड़चाल के रूप में अब जैन […] Read more » minorities in india भरत के अल्पसंख्यक वंशज भारत के अल्पसंख्यक वंशज
विविधा कह-मुकरी को काव्य की मुख्यधारा में लाना है February 5, 2014 by पियूष द्विवेदी 'भारत' | Leave a Comment ‘कह मुकरी’ काव्य की एक ऐसी विधा है जिसका अस्तित्व भारतेंदु युग की समाप्ति और द्विवेदी युग के आरम्भ के साथ ही लुप्तप्राय हो गया ! इस विधा पर अमीर खुसरो द्वारा सर्वाधिक काम किया गया! भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी कह-मुकरियों की काफी रचना की ! लेकिन भारतेंदु युग के बाद जब द्विवेदी युग आया […] Read more » Hindi Poem कह-मुकरी को काव्य की मुख्यधारा में लाना है
विविधा क्या, हमारा नामोऽनिशां मिट जाएगा February 5, 2014 by डॉ. मधुसूदन | 1 Comment on क्या, हमारा नामोऽनिशां मिट जाएगा -डॉ. मधुसूदन – कुटुम्ब संस्था की समाप्ति ही, यूनान और रोम की संस्कृतियां मिटाने का एक मूल (?) कारण माना जाता है। यदि हम भी उसी मार्ग पर चलेतो फिर हमारा नामो-निशां भी अवश्य मिट जाएगा। आज-कल भारत में, बलात्कार के समाचार कुछ अधिक पढ़ रहा हूं, इसलिए, विचारकों और हितैषियों के समक्ष अमेरिका […] Read more » indian culture and civilisation क्या हमारा नामोऽनिशां मिट जाएगा
विविधा एमपी अजब है, लोग गजब हैं February 5, 2014 / February 5, 2014 by डॉ0 शशि तिवारी | Leave a Comment एमपी वाकई में कई मामलों में अजब-गजब हैं, अजब इस मामले में कि शिवराज के करिश्माई मार्गदर्शन में किन्तु-परन्तु के बीच विपक्ष को औंधे मुंह गिरा। तीसरी बार पहले से ज्यादा सुदृढ़ होकर उभरी हैं, दूसरा विकास दर, सूचना तकनीकी, पर्यटन,लोकसेवा गारंटी, लाड़ली लक्ष्मी एवं अन्य योजनाओं में न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कई पुरस्कार भी अपनी झोली में डाले। एक बात तो निर्विवाद रूप से कटु सत्य है जो सभी को स्वीकार्य भी है कि ‘‘मध्य प्रदेश में विकास’’ तो हुआ है। तीसरा विपक्ष के मुंह को ऐसा सिला दिया कि विरोध के शब्द तक ठीक से नहीं फूट सकें, उलट तेजतर्रारों को अपनी ही पार्टी की सदस्यता दिला गाल पर तमाचा मारा सो अलग, रहा सवाल कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का तो उन्हें उन्हीं के सेना नायकों द्वारा कुचला जा रहा है। गजब इस मामले में कि यहां चपरासी से लेकर अधिकारियों, मंत्रियों की तो बात ही नहीं है। सभी करोड़पति हैं, बिना नाखून के लोकायुक्त की दाद देनी होगी जिसे सरकार भ्रष्टों के खिलाफ चालन की अनुमति नहीं दे रही है, फिर वह घड़ाधड़ छापामार कार्यवाही में जुटा हुआ है। यहां यक्ष प्रश्न उठता है कि कौन कहता है कि ‘‘मप्र गरीब हैं’’ दूसरा मंत्रियों एवं अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त में केस दर्ज होने के बावजूद प्रमोशनों की बंदरबांट जारी है। तीसरा ईमानदार मर रहा है। भ्रष्ट फल फूल रहा है। चौथा केन्द्र एवं राज्य की विभिन्न संचालित विभिन्न योजनाओं के भ्रष्टाचार में अधिकारी मंत्रियों के लिए दुधारू गाय नहीं बल्कि भैंस बने हुए हैं जो काली कमाई से न केवल खुद मोटे हो रहे हैं, बल्कि कई भैंसाओं को भी पाल रहे हैं। पांचवां शिक्षा के मंदिर, भ्रष्ट, निकम्मे, नाकारा कुलपतियों की वजह से कलंकित हो रहे हैं। राजनीति भी गजब से अछूति नहीं है, यहां भी कई यक्ष प्रश्न उठ खड़े होते है, जैसे जब विपक्ष में है तो सुविधाओं का विलाप क्यों? जनसेवा के लिये आये हैं या सुख भोगने के लिए? जो सुविधाएं संविधान में ही नहीं है, उन्हें मांगना कहां तक उचित? फिर बात चाहे गाड़ी, बंगला, स्टाफ या अन्य ही क्यों न हो? परिपाटी या परम्परा नजीर नहीं हो सकती और न ही इसकी दुहाई देना चाहिए।जनसेवकों को एक बात कभी नहीं भूलना चाहिए वे जनता की सेवा के लिए राजनीति के माध्यम से आये है न कि शासक या अधिकारी। बल्कि होना तो यह चाहिए कि पक्ष या विपक्ष कोई भी सुविधाएं कम से कम वे ‘‘आम आदमी’’ ही लगे विशेष नहीं। होना तो यह भी चाहिए कि इनके वेतन भत्ते जो सरकारी खजाने से पाते हैं, के लिए कर्मचारियों की तरह ‘‘वेतन भत्ता के लिए आयोग’’ होना चाहिए। सुविधाएं केवल उधार का सिन्दूर है जो जनता के पैसे का है उस पर इतराना या अधिकार जताना कहां तक उचित हैं? जीतहमेशा पुरूषार्थ करने वालों की होती है भीख मांगने से नहीं? कुछ चीजें राजा रावण से भी सीखने की है फिर बात चाहे दृढ़ निश्चय, कठोरतप, तपस्या से अर्जित शक्तियों की हो, राजनीति की हो, अपने बन्धु-बांधव, कुटुम्ब को तारने की हो, तभी तो राजा राम ने रावण केअंतकाल में लक्ष्मण को शिक्षा लेने को कहा। विगत 10 वर्षों में विपक्ष केवल अपने कबीलाईयों के युद्वों में ही मशगूल रहा, उससे ऊपर ही नहीं उठा, जिससे जनता केमुद्दे गौण हो गए, जिसके परिणाम स्वरूप जनता से चुनाव की अग्नि परीक्षा में एक सिरे से नकार दिया। भाजपा को बात-बात पर कोसने वाला विपक्ष सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में सरकार की गोद में ही जा बैठी एवं […] Read more » Madhya Pradesh MP Shivraj Singh Chauhan एमपी अजब है लोग गजब हैं
विविधा भारत की संघर्ष गाथा और मेहरानगढ़ का क़िला February 4, 2014 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | 1 Comment on भारत की संघर्ष गाथा और मेहरानगढ़ का क़िला -डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री- कुछ दिन पहले जोधपुर गया था। वहां के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के विधि संकाय में 1-2 फरवरी को एक विचार गोष्ठी थी। उसी में मुझे भाग लेना था। मेरा काम तो पहले दिन के उद्घाटन सत्र में बीज भाषण देकर समाप्त हो गया । गोष्ठी के निदेशक प्रो. सुनील […] Read more » India struggling story Mehrangarh fort भारत की संघर्ष गाथा और मेहरानगढ़ का क़िला
विविधा गीत निराला के February 4, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -भारतेन्दु मिश्र- युग बीत गया, निराला की कविता नहीं रीती। वो आज भी प्रासंगिक हैं। उनके गीत कालजयी हैं। छन्दोबद्ध कवियों को निराला से बहुत कुछ सीखना है। सन-1923 में निराला का पहला कविता संग्रह – अनामिका- प्रकाशित हुआ। अनामिका में ही अधिवास शीर्षक एक कविता है जिसमें निराला कहते हैं- मैंने मैं शैली […] Read more » Nirala's poem vasant panchmi special गीत निराला के
विविधा अबुझमाड़ में पत्रकारों की पदयात्रा नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति February 3, 2014 / February 3, 2014 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment अबुझमाड़ से लौटकर – युवा साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे अबुझमाड़ के ओरछा से बीजापुर तक 16 पत्रकारों की दल पदयात्रा कर सकुशल वापस आ गये। अबुझमाड में पत्रकारों ने जगह-जगह जनताना सरकार से मिलने की कोशिश की पर जनताना सरकार के करिंदे पत्रकारों से मिलने से बचते रहे और अबुझमाड़ में पत्रकारों के लिये […] Read more » Abujhmad naxal journalsits talk with naxals अबुझमाड़ में पत्रकारों की पदयात्रा नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति
जरूर पढ़ें महत्वपूर्ण लेख विविधा तराइन का दूसरा युद्घ और चौहान, जयचंद व गौरी का अंत February 3, 2014 / February 4, 2014 by राकेश कुमार आर्य | 7 Comments on तराइन का दूसरा युद्घ और चौहान, जयचंद व गौरी का अंत -राकेश कुमार आर्य- तराइन का युद्धक्षेत्र पुन: दो सेनाओं की भयंकर भिड़ंत का साक्षी बन रहा था। भारत के भविष्य और भाग्य के लिए यह युद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण होने जा रहा था। भारत अपने महान पराक्रमी सम्राट के नेतृत्व में धर्मयुद्ध कर रहा था, जबकि विदेशी आततायी सेना अपने सुल्तान के नेतृत्व में भारत की अस्मिता को […] Read more » Jaychand and Gori Tarain second world war जयचंद व गौरी का अंत तराइन का दूसरा युद्घ और चौहान
विविधा ‘प्राचीन काल में भारत से दूर देशों में मनुष्यों का जीवन’ February 3, 2014 / February 3, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- सत्यार्थ प्रकाश के 13वें समुल्लास का अध्ययन करते हुए हमारे मन में कई बार विचार आया कि लगभग दो हजार वर्ष पहले यरूशलम व उसके आसपास तथा योरूप आदि के लोगों का जीवन व दिनचर्या किस प्रकार की रही होगी। इसका कारण बाइबिल में जो विचार दिये गये हैं, […] Read more » ‘प्राचीन काल में भारत से दूर देशों में मनुष्यों का जीवन’ A depth literature of ved
विविधा मन के खेल निराले मेरे भैय्या ! February 3, 2014 by डा. अरविन्द कुमार सिंह | 1 Comment on मन के खेल निराले मेरे भैय्या ! -डॉ. अरविन्द कुमार सिंह- नीत्शे से किसी ने एक बार पूछा- तुम हमेशा हंसते रहते हो, प्रसन्न रहते हो। नीत्शे ने कहा- ‘‘अगर तुमने पूछ ही लिया है तो मैं असलियत भी बता दूं। मैं इसलिये हंसता रहता हूं कि कहीं रोने न लगूं। आदमी बिल्कुल वैसा नहीं है, जैसा दिखाई पड़ता है। भीतर […] Read more » Human natute soul मन के खेल निराले मेरे भैय्या !