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भारत की अर्थव्यवस्था चौथे नंबर पर लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं

संजय सिन्हा

भारत ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में एक कीर्तिमान हासिल किया है। वस्तुतः एक इतिहास रचा है भारत ने। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने बताया है कि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत ने जापान को पीछे छोड़ते हुए यह उपलब्धि हासिल की है। अब भारत की अर्थव्यवस्था चार बिलियन डॉलर की हो चुकी है। बता दें कि अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में इस समय भारत से आगे केवल अमेरिका, चीन और जर्मनी रह गए हैं। अनुमान यह भी जताया गया है कि अगले ढाई से तीन साल में भारत जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत की इस तेज रफ्तार वृद्धि के पीछे निर्माण क्षेत्र की ताकत को सबसे प्रमुख माना जा रहा है। केंद्र सरकार ने पिछले 11 वर्षों में निर्माण क्षेत्र में लगातार पैसा झोंका है। सड़क मार्ग, रेल परिवहन, पोर्ट निर्माण और आवासीय भवनों के निर्माण को केंद्र सरकार ने अपनी नीतियों के केंद्र में रखा है। इसका लाभ कोर सेक्टर के स्टील, सीमेंट, बिजली, तेल सहित औद्योगिक सेक्टर के 50 बड़े क्षेत्रों को मिला है। इससे इसके साथ जुड़े अन्य सेक्टरों में भी तेज वृद्धि देखी गई है।

केंद्र सरकार ने देश में लगातार निवेश का माहौल बेहतर बनाए रखा है। इसका असर हुआ है कि विदेशी निवेशकों ने यहां निवेश को अपनी प्राथमिकता बना रखा है। इससे देश के अनेक क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश प्राप्त हुआ है और इससे इन सेक्टरों को बढ़ाने में वित्तीय मदद मिली है। अभी जिस तरह के वैश्विक माहौल बने हैं, उसमें आगे भी भारत में निवेश की संभावनाएं बेहतर बनी रह सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने हथियारों के निर्माण को अपनी प्राथमिकता में रखा है। इसका यह असर हुआ है कि भारत आज दुनिया में हथियार आयातकों के साथ-साथ हथियारों का बड़ा निर्यातक भी बन चुका है। आज भारत के ब्रह्मोस, आकाश और अन्य आयुध निर्माण की खरीद करने वाले दर्जनों देश की सेवाएं ले रहे हैं। इससे भी भारत की धमक पूरी दुनिया में बढ़ी है। केंद्र सरकार के इस कदम ने भारत को न केवल हथियारों का निर्यातक बनाया है बल्कि इसके जरिए भारत को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी प्राप्त हुई है। 

जिस तरह भारत ने मोबाइल निर्माण के सेक्टर में अपनी ताकत दिखाई है, अब उस ने दुनिया का दूसरा सबसा बड़ा मोबाइल उत्पादक और निर्यातक देश होने  का सम्मान हासिल किया है। स्मार्ट चिप के निर्माण और सोलर पैनल के निर्माण के क्षेत्र में भी भारत लगातार अपनी बढ़त बना रहा है। आने वाले समय में भारत चिप निर्माण के क्षेत्र में भी दुनिया की चुनिंदा शक्तियों में शामिल हो जाएगा। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों के मुताबिक निर्माण को अपनी ताकत बनाने का असर साफ दिखने लगा है। भारत अब निर्माण के मामले में लगातार आगे बढ़ रहा है लेकिन अब भारत को औद्योगिक विकास के चौथे चरण के लिए तैयार होना चाहिए जहां ऑटोमेशन की सबसे बड़ी भूमिका होगी। अमेरिका, चीन, ताइवान और अन्य यूरोपीय देशों के मामले में अपने उत्पादों की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उसे सर्कुलर इकॉनमी का अगुवा भी बनना पड़ेगा। इस समय भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती ऑटोमेशन के कारण बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की होगी। इसके लिए सरकार को एक तरफ कामगर आबादी को तकनीकी दक्ष बनानी होगी, वहीं श्रम आधारित रोजगार भी बनाए रखने होंगे। यह उपलब्धि कृषि और निर्माण क्षेत्र में भारी निवेश करके ही हासिल किया जा सकता है।  सुब्रमण्यम ने नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल की मीटिंग के बाद यह बात कही। उन्होंने कहा कि भारत के लिए अभी माहौल अच्छा है। देश की आर्थिक स्थिति मजबूत है। सुब्रमण्यम ने मीडिया को बताया, ‘अभी हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हमारी अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन डॉलर की है।’

सुब्रमण्यम ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आंकड़ों का हवाला दिया। आईएमएफ के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था जापान से बड़ी हो गई है। उन्होंने आगे कहा, ‘सिर्फ अमेरिका, चीन और जर्मनी ही भारत से आगे हैं। अगर हम योजना के अनुसार काम करते रहे, तो अगले 2.5-3 सालों में हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।’

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि वे चाहते हैं कि ऐपल कंपनी आईफोन अमेरिका में ही बनाए, भारत में नहीं। इस पर सुब्रमण्यम ने कहा कि टैरिफ क्या होगा, यह कहना मुश्किल है लेकिन अभी भारत में चीजें बनाना सस्ता है। सुब्रमण्यम ने यह भी बताया कि सरकार एक बार फिर अपनी संपत्तियों को किराए पर देगी या बेचेगी। इसे एसेट मोनेटाइजेशन कहते हैं। इसका दूसरा दौर अगस्त में शुरू होगा। इससे सरकार को और पैसे मिलेंगे जिससे देश का विकास होगा।

फिच रेटिंग्स ने साल 2028 तक भारत की औसत वार्षिक वृद्धि क्षमता का अनुमान बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है। रेटिंग एजेंसी ने नवंबर 2023 में इसके 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। फिच ने पांच साल के संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुमानों को अपडेट करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2023 की रिपोर्ट के समय की हमारी अपेक्षा से अधिक मजबूती से वापसी की है। इससे वैश्विक महामारी के झटकों के कम प्रतिकूल प्रभाव के संकेत मिलते हैं।यूएन ने भी दिए अच्छे संकेत।

भारत की अर्थव्यवस्था इस समय तेजी से बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था न केवल चीन बल्कि अमेरिका और यूरोप को भी पीछे छोड़ देगी। इस के साथ अर्थव्यवस्था के मामले में भारत पहले स्थान पर होगा।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था इस साल 6.3% की दर से बढ़ेगी। यह दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा है। चीन की अर्थव्यवस्था 4.6%, अमेरिका की 1.6%, जापान की 0.7% और यूरोप की 1% की दर से बढ़ने का अनुमान है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था में तो 0.1% की गिरावट आ सकती है।

संजय सिन्हा

नये आर्थिक सूरज बनने के सुखद एवं गौरवपूर्ण पल

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– ललित गर्ग –

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने रविवार की सुबह नये उगते सूरज के साथ भारत के नये आर्थिक सूरज बनने की सुखद एवं आह्लादकारी खबर दी। उन्होंने बताया कि भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और अब अगले ढाई से तीन वर्षों में जर्मनी को हटाकर तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकडों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जीडीपी बन चुके भारत ने अनेक नवीन संभावनाओं एवं उपलब्धियों को पंख लगाये हैं। निश्चित ही भारत आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में एक महाशक्ति बन कर उभर रहा है, जो हर भारतीय के लिये गर्व एवं गौरव की बात है।
सुब्रह्मण्यम ने कहा, केवल संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और जर्मनी ही हमसे बड़े हैं और जो योजना बनाई जा रही है, अगर हम उसी पर टिके रहते हैं, अपनी योजनाओं एवं नीतियों को आगे बढ़ाते है तो भारत शीघ्र ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक अप्रैल 2025 में कहा था कि 2025 में भारत की नॉमिनल जीडीपी बढ़कर 4,187.017 अरब डॉलर हो जाएगी। वहीं, जापान की जीडीपी का आकार 4,186.431 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। आईएमएफ के अनुमानों के अनुसार, आने वाले वर्षों में भारत जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन सकता है। 2027 तक भारत की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े को पार कर सकती है और इस दौरान जीडीपी का आकार 5,069.47 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। वहीं, 2028 तक भारत की जीडीपी का आकार 5,584.476 अरब डॉलर होगा, जबकि इस दौरान जर्मनी की जीडीपी का आकार 5,251.928 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। आईएमएफ के मुताबिक, 2025 में अमेरिका 30,507.217 अरब डॉलर के आकार के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा। वहीं, चीन 19,231.705 अरब डॉलर के साथ दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा।
भारत का चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से विश्व स्तर पर कई महत्वपूर्ण प्रभावों में बढ़ोतरी होगी। भारत का अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे जी 20 और आईएमएफ में प्रभाव बढ़ेगा। भारत में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) में और वृद्धि होगी, क्योंकि ग्लोबल कंपनियां भारत को एक आकर्षक बाजार के रूप में देख रही हैं। इससे भारत और जापान के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी, जैसे चंद्रयान-5 और सैन्य सहयोग, भारत-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा। भारत इस उपलब्धि के बाद ग्लोबल इकोनॉमिक लीडरशिप की दिशा में और करीब आ गया है। भारत अगर 2028 तक जर्मनी को पीछे छोड़ देता है तो लीडरशिप और मजबूत होगी। भारत विश्वगुरु बनने एवं विश्व नेतृत्व करने में सक्षम होगा। भारत ने जापान को पछाड़ कर जो छलांग लगायी है, इसके पीछे जापान की अर्थव्यवस्था के सामने कई चुनौतियों रही है। आईएमएफ के अनुमान के अनुसार, 2025 में जापान की जीडीपी ग्रोथ रेट केवल 0.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो भारत की 6.5 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है। जापान की उम्रदराज आबादी और लो बर्थ रेट ने लेबर फोर्स को सीमित कर दिया है। अमेरिका और अन्य देशों द्वारा लगाए गए टैरिफ और व्यापार नीतियों ने जापान की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। जापान की अर्थव्यवस्था कई दशकों से स्थिरता के लिए संघर्ष कर रही है, जिसके कारण वह भारत जैसे तेजी से बढ़ते देशों से पिछड़ गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने यह भी कहा कि भारत की विकास दर 2025 में 6.2 प्रतिशत और 2026 में 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो कि बाकी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में ज्यादा है। इससे स्पष्ट है कि भारत अब सिर्फ जनसंख्या में ही नहीं, अर्थव्यवस्था के मामले में भी दुनिया में सबसे आगे निकलने की रेस में है। ग्रामीण इलाकों में खपत बढ़ने से ये विकास दर बनी रहेगी। हालांकि, ग्लोबल अनिश्चितता और ट्रेड टेंशन की वजह से इसमें थोड़ा असर पड़ सकता है।
सशक्त एवं विकसित भारत निर्मित करने, उसे दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनाने और अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर निर्मित करने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। मोदी सरकार ने देश के आर्थिक भविष्य को सुधारने पर ध्यान दिया, उनके अमृत काल का विजन तकनीक संचालित और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। मोदी सरकार की नियोजित एवं दूरगामी सोच का ही परिणाम है रिजर्व बैंक के पास सोने के भंडार में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में आर्थिक गतिविधियां नये शिखरों पर सवार है, क्योंकि भारत में डीमैट खाते 19 करोड़ के पार पहुंच चुके हैं। देश के कुल डीमैट खाते अब अन्य देशों की तुलना में नौवें स्थान पर हैं, जिसका मतलब है डीमैट खाते रूस, जापान, इथियोपिया, मैक्सिको जैसे देशों की आबादी से अधिक और बांग्लादेश की आबादी के करीब है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जिसमें 1,40,000 से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप और हर 20 दिन में एक यूनिकॉर्न उभरता है। यूनिकॉर्न उन स्टार्टअप को कहा जाता है, जिनका मूल्यांकन एक अरब डॉलर हो जाता है।
इन आर्थिक उजले आंकड़ों में जहां मोदी के विजन ‘हर हाथ को काम’ का संकल्प साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से उजागर हो रहा है। दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर भारत ने जापान को पीछे छोड़ चौथी अर्थ-व्यवस्था बन गयी है। भारत ने अनेक आर्थिक क्षेत्रों में नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। लेकिन भारत के सामने चुनौतियां भी नयी-नयी शक्लों में उभर रही है। नयी आर्थिक उपलब्धियों एवं फिजाओं के बीच धनाढ्य परिवारों का भारत से पलायन कर विदेशों में बसने का सिलसिला चिन्ताजनक है। पलायनवादी सोच के कगार पर खड़े राष्ट्र को बचाने के लिए राजनीतिज्ञों एवं नीति नियामकों को अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को त्यागना होगा। तभी समृद्ध हो या प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने ही देश में सुख, शांति, संतुलन एवं सह-जीवन का अनुभव कर सकेगा और पलायनवादी सोच से बाहर आ सकेगा। करोड़पतियों के देश छोड़कर जाने की 7500 की संख्या भले ही कुछ सुधरी है, लेकिन नये बनते, सशक्त होते एवं आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत के लिये यह चिन्तन का विषय होना ही चाहिए कि किस तरह भारत की समृद्धि एवं भारत की प्रतिभाएं भारत में ही रहे।
भारत के अति समृद्धशालियों की संख्या समूचे विश्व में सर्वाधिक है। इन समृद्धशालियों से उम्मीद यह की जाती है कि देश में रहकर समृद्धि हासिल करने वाले समय आने पर देश को लौटाएंगे भी। तभी देश आर्थिक दृष्टि से दुनिया की महाशक्ति बनने की दिशा में तीव्रता से गति कर सकेगा। सवाल यही है कि देश को लौटाने और फायदा देने का वक्त आता है तब धनाढ्यों में एकाएक विदेश में जाकर बसने की ललक कैसे और क्यों पैदा हो रही है? अपने देश के प्रति जिम्मेदारी निभाने के समय इस तरह की पलायनवादी सोच का उभरना व्यक्तिगत स्वार्थ, सुविधा एवं संकीर्णता को दर्शाता है। दुनियाभर में धन और निवेश प्रवासन के रुझान को ट्रैक करने वाली कंपनी की सालाना रिपोर्ट में अति समृद्ध भारतीयों का अपना सब-कुछ समेट कर हमेशा के लिए भारत से जुदा हो जाने का अनुमान अनेक प्रश्न खड़े करता है, सरकार को इन प्रश्नों पर गौर करने की जरूरत है।
सदियों पहले भारत एक विकसित सभ्यता एवं सोने की चिड़िया रहा है। भारत हर दृष्टि से समृद्ध देश रहा है। अंग्रेजों की बेड़ियों में जकड़ने से पहले मध्यकालीन दौर में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी रहा। विदेशी आक्रांताओं ने देश को लूटा। इतिहास में झांकें, तो लग सकता है कि मौर्य साम्राज्य की तरह एक बार फिर भारत समृद्धि के शिखर पर आरोहण करते हुए नए आर्थिक सफर एवं दुनिया की बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर होने के लिये साजो-सामान तैयार कर रहा है। मॉर्गन स्टेनली के विशेषज्ञों ने कुछ ही समय पहले कहा है कि अगले दस साल भारत के लिए कुछ वैसे ही तेज विकास का समय होगा, जैसे चीन ने 2007 से 2012 के बीच देखा। आज के भारत में राजनीतिक एकता और सैन्य सुरक्षा के साथ पूरे इलाके का एक आर्थिक तंत्र भी विकसित हो रहा है। आर्थिक समृद्धि का दौर शुरू हुआ है तो इसके बाधक तत्वों पर विचार करना ज्यादा जरूरी है। 

पाकिस्तान की ‘सांसें बंद’ धमकी और हिंदुस्तान की निर्णायक जलनीति

अशोक कुमार झा


“तुम पानी रोकोगे, हम तुम्हारी सांसें बंद कर देंगे” – यह लफ्ज़ किसी आतंकी माफिया के नहीं, बल्कि एक देश की फौज के प्रवक्ता के हैं।
21वीं सदी के लोकतांत्रिक और वैश्विक मूल्यों के दौर में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, शांति, और समावेशी विकास पर बात कर रही है, उस समय पाकिस्तान जैसे देश की सेना ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल आतंकी संगठनों की सरपरस्त है, बल्कि स्वयं आतंकी सोच की औपचारिक प्रतिनिधि भी है।


पाकिस्तान की आतंकी भाषा: जनरल या जिहादी?
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी द्वारा भारत को खुलेआम धमकी दी गई –
“अगर आप हमारा पानी रोकेंगे, तो हम आपकी सांसें बंद कर देंगे।”
यह बयान न केवल अवांछित है, बल्कि पूरी सभ्यता के मुँह पर तमाचा है। जब एक राष्ट्र की वर्दीधारी प्रतिनिधि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह लोकतंत्र या कूटनीति की नहीं, बल्कि कट्टरता, जिहाद और नफरत की भाषा में विश्वास करता है।
इस कथन के पीछे छिपी मानसिकता और रणनीति को समझना बेहद जरूरी है। यह सिर्फ भारत के खिलाफ युद्ध की धमकी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और अस्तित्व पर हमला है।


सिंधु जल संधि: संयम का प्रतीक, अब निर्णायकता का युग
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई सिंधु जल संधि आज तक एकतरफा रूप से भारत द्वारा निभाई जाती रही है। हिंदुस्तान ने अंतरराष्ट्रीय संधियों और कूटनीतिक मर्यादाओं का पालन करते हुए पाकिस्तान को वह पानी दिया, जिसकी वजह से उसकी ज़मीन, उसकी फसल और उसका अस्तित्व टिका हुआ है।
लेकिन बदले में क्या मिला?
कारगिल, पठानकोट, उड़ी, पुलवामा, और अब पहलगाम – खून, विस्फोट, और आतंक!
भारत का 23 अप्रैल 2025 का निर्णय, जिसमें सिंधु जल संधि के कुछ प्रावधानों को निलंबित किया गया, न केवल न्यायसंगत था, बल्कि एक आवश्यक रणनीतिक उत्तर भी था। पाकिस्तान की आतंकी मशीनरी को यह समझना होगा कि अब पानी बहाना, अपने ही नागरिकों की हत्या के बराबर होगा।


पहलगाम हमला: शांति की कोशिशों पर बारूद
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या – यह न केवल मानवता पर हमला था, बल्कि हिंदुस्तान की सहिष्णुता और धैर्य की परीक्षा थी। यह हमला आतंकवाद की पराकाष्ठा था, और उसी के जवाब में भारत ने अपने जल संसाधनों के प्रबंधन को राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से जोड़ा।


इस निर्णय से बौखलाए पाकिस्तान ने पहले हाफिज सईद के वीडियो वायरल करवाए और फिर सेना के प्रवक्ता की ज़ुबान से वही भाषा बुलवाई। यह प्रमाण है कि पाकिस्तानी सेना और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो चेहरे हैं।
“सांसें बंद” धमकी: यह सिर्फ शब्द नहीं, एक रणनीतिक घोषणा है
इस तरह की भाषा महज़ बयान नहीं है – यह एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के खिलाफ घोषित असममित युद्ध है। यह चेतावनी नहीं, बल्कि खुलेआम “आत्मघाती जिहाद” की घोषणा है, जो पाकिस्तान ने न केवल भारत बल्कि स्वयं के नागरिकों पर भी थोपी है।
क्या यह वही पाकिस्तान नहीं है जिसने परमाणु बम को “इस्लामी बम” कहकर प्रचारित किया था?
क्या यह वही पाकिस्तान नहीं है जिसने ओसामा बिन लादेन को अपने सैन्य अड्डे पर वर्षों तक छुपाया?
और क्या यह वही पाकिस्तान नहीं है जिसकी संसद में तालिबानी आतंकवादियों को “शहीद” कहा गया?
 भारत की रणनीति: संयम के बाद अब प्रतिशोध का युग
भारत अब सिर्फ निंदा, विरोध या डोज़ियर से बात नहीं करेगा। अब भारत की भाषा होगी – प्रभाव, परिणाम और प्रतिबंध।
भारत के पास पाँच स्पष्ट रणनीतिक कदम हैं:


1.      सिंधु जल संधि का पूर्ण पुनर्मूल्यांकन और स्थगन:
अब पाकिस्तान को एक भी अतिरिक्त बूंद पानी नहीं मिलनी चाहिए।
2.      पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व को आतंक समर्थक घोषित करना:
संयुक्त राष्ट्र और FATF में मुकम्मल डोज़ियर के साथ पाकिस्तान की सेना के प्रवक्ताओं और ISI अधिकारियों को ब्लैकलिस्ट करवाना।
3.      पारंपरिक और डिजिटल युद्धक्षेत्र में जवाब:
पाकिस्तान की झूठी कूटनीति और आतंकी नीति को ग्लोबल मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर बेनकाब करना।
4.      भारत में जल प्रबंधन का नया युग:
उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक नदी जोड़ परियोजनाओं और जल पुनर्निर्देशन कार्यों को युद्ध स्तर पर लागू करना।
5.      राष्ट्रीय जल सुरक्षा अधिनियम:
जल संसाधनों को अब केवल पर्यावरणीय या सिंचाई मुद्दा न मानकर सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा जाए।


 विश्व मंच पर दोहरा मापदंड:

मानवाधिकार कहाँ हैं जब भारत पर हमला होता है?
जब एक देश की फौज दूसरे देश की “सांसें बंद” करने की धमकी दे रही है, तो क्यों नहीं संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोप या इस्लामिक सहयोग संगठन इस पर प्रतिक्रिया दे रहे?
क्या भारत के नागरिकों की जान की कीमत नहीं?
क्या हिंदुस्तान को शांतिपूर्ण बने रहना ही उसकी कमजोरी समझा जाएगा?
 अब विकल्प नहीं, केवल संकल्प का समय है
भारत को अब इस संकट को अवसर में बदलना होगा।
जिस दिन पाकिस्तान ने हमारे पानी पर सवाल उठाया, उसी दिन हमने यह तय कर लेना चाहिए कि अब हम उनके अस्तित्व की नींव – पानी – को ही पुनर्परिभाषित करेंगे।
क्योंकि अब युद्ध केवल सरहद पर नहीं लड़ा जाएगा। यह युद्ध हमारी नदियों में लड़ा जाएगा, हमारी नीतियों में, और हमारी एकता में।
अब न पानी बहेगा, न माफ किया जाएगा
भारत अब 1960 वाला नहीं है। यह 2025 का नया भारत है – जो अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए शब्दों से नहीं, निर्णयों से जवाब देगा। पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए –
“अगर तुम हमारी सांसें बंद करने की बात करोगे, तो हम तुम्हारे प्यासे झूठ को इतिहास की कब्र में दफना देंगे।”
 यह अब सिर्फ पानी की लड़ाई नहीं रही – यह विचारधारा, भविष्य और वजूद की लड़ाई है। और हिंदुस्तान अब पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर चुका है।


 अशोक कुमार झा

सेना के शौर्य पर अप्रिय राजनीति

विजय सहगल

जब ऑपरेशन सिंदूर के दिन, प्रति-दिन की कार्यवाही की सूचना, प्रेस के माध्यम से देश और दुनियाँ को देने की ज़िम्मेदारी  कर्नल सोफिया कुरैशी और वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह को दी गयी तो सारे देश  ने सेना के अदम्य साहस को सार्वजनिक करने  के इस कार्य की भरपूर  प्रशंसा की। एक ओर  जिन पाकिस्तान परस्त, आतंकवादियों ने, धूर्तता पूर्वक, पहलगाम मे उन 26 महिलाओं के सुहाग को उजाड़ कर अपनी राक्षसी हैवानियत के माध्यम से पाकिस्तानी मे, स्त्रियों की दीन दशा पर, अपनी कुसांस्कृति और कुसंस्कारों  के स्याह पक्ष को  उजागर किया, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना और सरकार ने भारतीय वीरांगनाओं को, सेना के साहस और पराक्रम की  रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी देकर,  महिलाओं को भारतीय संस्कृति और संस्कारों के उस कथन, “यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” को चरितार्थ किया।

भारतीय राजनीति का ये दुर्भाग्य  हैं कि देश के चंद  राजनैतिक दल और उनके नेताओं ने सेना की इन बहादुर बेटियों पर अपनी संकीर्ण सोच और संकुचित मानसिकता के चलते अपनी अविवेकपूर्ण और अप्रिय टिप्पणियों  से न केवल सेना के मान सम्मान को ठेस पहुंचाई अपितु अपने दल और स्वयं अपने आप को भी संकट मे डाला दिया।  ऐसे बड़बोले नेताओं ने अपनी और अपने दल की जग हँसाई भी की।  दल और विचारधारा से परे यहाँ के राजनैतिज्ञों को हर विषय मे निरंतर बोलने की बुरी आदत हैं, फिर वे चाहे उस विषय विशेष मे प्रवीण भले ही न हों। इन असभ्य नेतागणों द्वारा  अपने राजनैतिक स्वार्थ की खातिर अपने  प्रतिद्वंद्वियों पर नैतिक-अनैतिक हमले तक तो ठीक था पर  अपने अनैतिक और घृणित टिप्पणियों  से सेना के मान सम्मान को भी ठेस पहुंचाई जो अप्रशंसनीय और भर्त्सना योग्य है।  इन अवांछित आरोप-प्रत्यारोप मे  विपक्ष के  गणमान्य  नेता ही  नहीं, अपितु सत्ता और सरकार के वे नेतागण भी शामिल हैं जिनकी नैतिक ज़िम्मेदारी थी कि सामान्य बोलचाल मे मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने राजनैतिक अनुयायियों से भी, बैसा करवा कर,  एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते।

दुःख और संताप तो तब और हुआ, जब ऑपरेशन सिंदूर के चलते इन अशिष्ट और निर्लज्ज नेताओं ने भारतीय सेना को अपनी तुच्छ और छुद्र राजनीति के चलते, जाति और धर्म के आधार पर बांटने की ढीठ और गुस्ताख़   कोशिश की। भारत की जिस एक सौ चालीस करोड़ जनता ने, सेना की वीरता और बहादुरी को नमन किया, वहीं  मध्य प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री विजय शाह ने अपने बेहूदा वक्तव्य से,  भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकी दुश्मनों के साथ उद्धृत कर, अपने अल्पज्ञान का परिचय दिया। विजय शाह के वक्तव्य की गंभीरता और विषय की नाजुकता को इस बात से आँका जा सकता हैं कि उनके इस कुत्सित टिप्पड़ी का स्वतः संज्ञान लेते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा न केवल उनके विरुद्ध पुलिस एफ़आईआर दर्ज़ करने का आदेश दिये अपितु उनके वक्तव्य की भर्त्सना भी की। वे जब मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो उन्हे वहाँ से भी बुरी तरह फटकार मिली। सुप्रीम कोर्ट ने  पुलिस प्रशासन की विजय शाह के विरुद्ध ढुलमुल एफ़आईआर पर भी नाराजगी प्रकट की। विजय शाह द्वारा दिया गया, ये गैरजिम्मेदाराना   बयान  उनकी अभिव्यक्ति नहीं, अपितु  किसी उन्मादी व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध है, जो अक्षम्य है, और जिसकी सजा अवश्य ही मिलनी चाहिये। अभी प्रकरण माननीय सुप्रीम कोर्ट मे विचाराधीन  हैं और संभावना हैं कि आने वाले दिनों मे मध्यप्रदेश के उन माननीय की मुश्किलें और भी बढ़ने वाली हैं। विजय शाह के भारतीय सेना की, कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिये  जिस वक्तव्य के लिये  माननीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लिया गया हो और उच्चतम न्यायालय द्वारा जिस पर  नाराजगी प्रकट कर, कड़ी  फटकार लगायी गयी हो, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अपने उपमुख्यमंत्री के विरुद्ध कोई कार्यवाही न करना राजनैतिक अधोपतन, अवनति और अवसाद की पराकाष्ठा  को ही दर्शाता हैं।

इसी क्रम मे समाजवादी पार्टी के सांसद प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह (जिनके नाम का सही उच्चारण तक माननीय प्रोफेसर साहब नहीं कर सके) और एयर मार्शल ए के भारती की जाति का उल्लेख कर, सारी नैतिक मर्यादाएं तार-तार कर, अपनी घृणित मानसिकता और संकुचित सोच का परिचय दिया, जिसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है।  देश और समाज की रक्षा मे रत व्यक्ति ही सच्चे मायनों मे  विरोचित कार्य करने वाला सच्चा देशभक्त है। सेना मे शामिल होने का एक मात्र आधार सैनिकों की शूरवीरता, साहस और शौर्य ही हैं। देश के सेनानायकों को जाति, धर्म और संप्रदाय मे विभक्त करना उन शूरवीरों का अपमान  है। देश के लिये समय आने पर अपने प्राणों का  आत्मोत्सर्ग ही भारतीय सेना के वीर जवानों की एक मात्र पहचान हैं, जिसके लिये  देश का सम्पूर्ण जनमानस उनके सामने नतमस्तक है।      

जिम्मेदार पदों पर विराजमान व्यक्तियों, नेताओं और गणमान्य हस्तियों द्वारा किसी भी विषय मे टिप्पणी करते समय देश, काल और पात्रों को दृष्टिगत अपने  शब्दों, वाक्यों और वाक्यांशों के क्रम का  ही नहीं अपितु विराम, पूर्ण विराम और अर्ध विराम का भी ध्यान रखना चाहिये, अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने से विवाद और तकरार की पूरी संभावना बनी रह  सकती है। मध्य प्रदेश के एक अन्य मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा भी इसी अल्पज्ञान  का शिकार हुए। उन्होने ऑपरेशन सिंदूर की प्रशंसा का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को देते हुए न केवल देश के नागरिकों अपितु सेना के जवानों को भी, उनके चरणों मे नतमस्तक होने का श्रेय भी  दे दिया। यदि उन्होने  शब्दों और वाक्यों  का चयन सही तरह से किया होता तो कदाचित ऐसी अवांछित और अप्रिय स्थिति न बनती।

पाकिस्तान के  अनेकों हवाई अड्डों को नेस्तनाबूद कर सैकड़ों आतंकवादियों, पाकिस्तान के अनेकों सैनिकों को मारने के बाद,  पाकिस्तान के डीजीएमओ के अनुनय विनय पर, भारतीय सेना के डीजीएमओ द्वारा युद्ध विराम स्वीकृत करने के निर्णय से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी  अप्रसन्नता और असहमति प्रकट की। यूं भी सरकार के हर कदम और निर्णय की मुखालफत करने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने, अमेठी मे 15 मई 2025 को अपने वक्तव्य मे युद्ध विराम की आलोचना करते हुए कहा, कि “जीत का जश्न मनाया जाता है, युद्ध विराम का नहीं”। उन्हे आतंकी अड्डों, सैकड़ों  आतंकवादियों और पाकिस्तान के हवाई अड्डों को मिट्टी मे मिलाये जाने पर, उस भारतीय सेना की जीत दिखाई नहीं दी जिसके  मुखिया,  उनके पिता, स्वयं श्री मुलायम सिंह यादव हुआ करते थे।            

आशा की जानी चाहिये कि  देश के राजनैतिक दल अपनी निजिस्वार्थ और संकीर्ण मानसिकता से उपर उठ कर, एक स्वर मे  सेना के शौर्य और साहस को नमन करेंगे, जिसकी प्रशंसा सारी दुनियाँ कर रही है।  हम सभी देशवासियों का ये नैतिक दायित्व है कि अपनी सेना के साथ एकजुटता का परिचय देते हुए उनके साहस और शौर्य को नमन करें।   

विजय सहगल

अब घुसपैठियों को लेकर कोई रियायत नहीं, सीधा ‘ऑपरेशन पुश-बैक’

रामस्वरूप रावतसरे

 भारत ने बांग्लादेशी घुसपैठियों पर कार्रवाई तेज कर दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश से कहा है कि वह अपने अवैध नागरिकों को वापस लेने में तेजी लाए। इस बीच भारत ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के लिए एक नई तरकीब निकाली है। अनाधिकारिक रूप से इसे ‘ऑपरेशन पुश-बैक’ का नाम दिया गया है।

   विदेश मंत्रालय ने 22 मई, 2025 को एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि भारत में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक मौजूद हैं, जिन्हें वापस भेजना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत ने बांग्लादेश से इन लोगों की राष्ट्रीयता की पुष्टि करने का अनुरोध किया है। उन्होंने बताया है कि वर्तमान में 2360 से अधिक ऐसे मामलों की सूची लंबित है। जायसवाल ने यह भी बताया कि इनमें से कई लोग जेल की सजा पूरी कर चुके हैं, लेकिन राष्ट्रीयता की पुष्टि की प्रक्रिया कई मामलों में 2020 से लंबित है।

भारत ने लगातार बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या को उनके देश वापस भेजने के लिए पहले से बने प्रोटोकॉल का पालन किया है, लेकिन यह प्रक्रिया काफी धीमी और जटिल रही है। अदालतों में मामले लटकने, बांग्लादेश के कई बार अपने नागरिकों को स्वीकार करने से इनकार किए जाने के कारण इसे यह प्रक्रिया तेजी से नहीं चल पाई है। इस बीच एजेंटों और दलालों की मदद से भारत-बांग्लादेश की खुली सीमा से अवैध घुसपैठ लगातार जारी है, इससे स्थिति और भी गंभीर हो गई है। इसके उलट, बांग्लादेशी घुसपैठिए बाहर नहीं निकाले जा रहे। 2016 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2 करोड़ से अधिक बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं।

      बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके से हटाने और मोहम्मद यूनुस के सत्ता में आने के बाद से यह स्थिति और भी बिगड़ गई है। युनुस सरकार के भारत-विरोधी रवैये के चलते बांग्लादेश ने निर्वासन प्रोटोकॉल को एकदम निष्प्रयोज्य बना दिया है। इन सब चुनौतियों के बीच भारत सरकार ने अब एक कड़ा कदम उठाया है, जिसे अनौपचारिक रूप से ‘ऑपरेशन पुश-बैक’ कहा जा रहा है।

‘ऑपरेशन पुश-बैक’ भारत सरकार की एक नई रणनीति है, जिसका उद्देश्य पूर्वी सीमा पर पकड़े जाने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं से त्वरित रूप से निपटना है। ये वे लोग हैं जो कई वर्षों से अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं। इस ऑपरेशन के तहत अब उस पारंपरिक प्रक्रिया जैसे पुलिस को सौंपना, एफआईआर दर्ज करना, अदालत में पेश करना, मुकदमा चलाना और फिर निर्वासन प्रोटोकॉल के तहत वापस भेजना को किनारे कर दिया गया है। अब भारतीय सुरक्षाबल घुसपैठियों को तुरंत सीमा पार बांग्लादेश की ओर धकेल रहे हैं। यह इसलिए हो रहा है ताकि समय और संसाधनों की बचत हो और अवैध घुसपैठ पर तुरंत प्रभाव डाला जा सके।

जानकारी के अनुसार ‘ऑपरेशन पुश-बैक’ अप्रैल 2025 से चल रहा है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के अनुसार ‘घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा है। हमने अब तय किया है कि हम कानूनी प्रक्रिया से नहीं गुजरेंगे। पहले, निर्णय यह था कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए और फिर उसे भारतीय कानूनी व्यवस्था में लाया जाए, पहले भी हम 1,000-1,500 विदेशियों को गिरफ्तार करते थे, उन्हें जेल भेजा जाता था और फिर उन्हें अदालत में पेश किया जाता था।‘ उन्होंने आगे कहा, ‘अब, हमने तय किया है कि हम उन्हें देश के अंदर नहीं लाएँगे, हम उन्हें धकेलेंगे। यह पुश-बैक एक नई घटना है। हर साल करीब 5,000 लोग देश में प्रवेश करते हैं और पुश-बैक की वजह से यह संख्या अब कम हो जाएगी।‘

 इस नई प्रक्रिया में बांग्लादेशी नागरिकों को भारत के दिल्ली-मुंबई या सूरत जैसे शहरों से पकड़ा जाता है। इसके बाद उन्हें पहले त्रिपुरा, असम या पश्चिम बंगाल लाया जाता है और फिर वहाँ से बांग्लादेश भेजा जाता है। इस तरह की एक कार्रवाई 4 मई 2025 को हुई। इस दिन एयर इंडिया की दो उड़ानों के ज़रिए गुजरात से 300 बांग्लादेशी नागरिकों को अगरतला लाया गया और उन्हें ज़मीनी सीमा के रास्ते वापस भेजा गया। इसी तरह, 14 मई 2025 को राजस्थान के मंत्री जोगाराम पटेल ने जानकारी दी कि जोधपुर से 148 बांग्लादेशी नागरिकों को कोलकाता भेजा गया, जहाँ उन्हें एक अस्थायी हिरासत केंद्र में रखने के बाद बांग्लादेश भेज दिया गया।

    भारत में भी कई राज्यों ने अवैध अप्रवासियों की पहचान की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है। ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने बताया कि राज्य में रह रहे अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ने के लिए एसटीएफ का गठन किया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि बिना वैध कानूनी दस्तावेजों के किसी भी विदेशी नागरिक को ओडिशा में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी। पहचान की प्रक्रिया सभी जिलों में पहले ही शुरू हो चुकी है, और राज्य सरकार ने अपने इंजीनियरिंग विभागों को ऐसे नागरिकों को काम पर न रखने का निर्देश दिया है।

वहीं त्रिपुरा पुलिस के आँकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी 2024 से 28 फरवरी 2025 के बीच राज्य में 816 बांग्लादेशी और 79 रोहिंग्या नागरिकों को अवैध रूप से भारत में प्रवेश करते समय पकड़ा गया। वहीं, 2022 से 31 अक्टूबर 2024 तक त्रिपुरा ने 1,746 बांग्लादेशी नागरिकों को निर्वासित किया है। त्रिपुरा की बांग्लादेश के साथ 856 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसके कुछ हिस्सों में अभी भी बाड़ नहीं लगी है। इन कार्रवाइयों का असर इतना स्पष्ट है कि अब कुछ बांग्लादेशी नागरिक ‘स्वेच्छा से’ भारत छोड़कर अपने देश लौटने लगे हैं।

मोहम्मद युनुस की अगुवाई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार भारत की घुसपैठियों से निपटने की नई रणनीति, और विशेष कर ‘ऑपरेशन पुश-बैक’ से चिंतित है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने 8 मई, 2025 को भारत को पत्र लिखकर देश में अवैध रूप से प्रवेश कर रहे लोगों को वापस धकेलने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने भारत से यह से आग्रह किया था कि वह पहले से स्थापित प्रक्रिया का पालन करे। इस पत्र में उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश-भारत सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए इस तरह की घुसपैठ अस्वीकार्य है और इससे बचा जाना चाहिए।

इस बीच, भारत के गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की पहचान और राष्ट्रीयता की पुष्टि के लिए 30 दिन की समय सीमा तय की है। इसके बाद उन्हें, मुख्यतः ऑपरेशन पुश-बैक के तहत निर्वासित किया जाएगा।

रामस्वरूप रावतसरे

पाकिस्तान की राह पर बांग्लादेश

संजय सिन्हा

बांग्लादेश की स्थिति नाजुक बनी हुई है। हालात बदलाव की ओर इशारे कर रहा है। बांग्लादेश की सेना ने वहां के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद युनूस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है जिसकी वजह से मोहम्मद युनूस अपने पद से इस्तीफा देने का विचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि बांग्लादेश के मौजूदा हालातों में उनका काम कर पाना मुश्किल हो रहा है। बांग्लादेश में भी पाकिस्तान की तरह ही सरकार पर सेना का प्रभुत्व रहता आया है। आखिरकार बांग्लादेश पाकिस्तान का ही हिस्सा रहा है

जिसे भारत ने 1971 में पाकिस्तान से काटकर अलग देश बनवा दिया था किन्तु बांग्लादेश भी पाकिस्तान की राह पर ही चलने लगा है। इसमें हैरत वाली कोई बात नहीं है। पाकिस्तान की तरह ही बांग्लादेश में जब सेना के नेतृत्व में लोकतांत्रिक सरकार बनी और उसने बेहतर काम करके दिखाया तो अमेरिका के इशारे पर बांग्लादेश की सेना ने शेख हसीना का तख्ता पलट दिया और अमेरिका ने अपने पिटठू मोहम्म्द युनूस को बांग्लादेश की बागडोर सौंप दी जिनके नेतृत्व में बांग्लादेश में हिंसा का तांडव हुआ। अब बांग्लादेश की सेना  मोहम्मद युनूस की कार्यप्रणाली से बुरी तरह खफा हो गई है और उन्हें पद से हटाकर अब बांग्लादेश की सेना के आर्मी चीफ खुद सत्ता की बागडोर संभालने के इच्छुक बन गये हैं। बांग्लादेश की सेना वहां जल्द चुनाव कराने की मांग करती आ रही है लेकिन मोहम्मद युनूस अपनी कुर्सी पर काबिज रहने के लिए चुनाव से कतराते रहे हैं।

इसी मुद्दे को लेकर मोहम्मद युनूस और सेना के बीच मतभेद इस कदर गहरा गये हैं कि अब बांग्लादेश की सेना मोहम्मद युनूस की छुट्टी करने पर उतारू हो गई है। ऐसे में बांग्लादेश में कभी भी तख्तापलट हो सकता है और मोहम्मद युनूस बांग्लादेश छोड़कर लौट के बुद्धु घर को आये की तर्ज पर वापस अमेरिका लौट सकते हैं। आपको बता दूं कि सरकार ने उत्तर-पूर्वी राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम) के जमीनी मार्गों के जरिए बांग्लादेश से भेजे जाने वाले कई सामानों पर पाबंदी लगा दी है। ये मार्ग बांग्लादेश के लिए अहम व्यापारिक गलियारे थे। भारत ने बांग्लादेश के उन सभी सामानों पर भी प्रतिबंध लगाया है जो उत्तर-पूर्वी राज्यों के जरिए तीसरे देशों को निर्यात किए जाते थे। एक अनुमान के मुताबिक भारत के इस फैसले से बांग्लादेश को सालाना 5800 करोड़ रुपए के कारोबार से हाथ धोना पड़ सकता है। पिछले साल शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के भारत विरोधी रुख को देखते हुए यह कड़ा फैसला जरूरी था। हालांकि सरकार का कहना है कि यह कदम बांग्लादेश के व्यापार को सीमित करने और भारत के कपड़ा, प्रोसेस्ड खाद्य जैसे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने के मकसद से उठाया गया है। यह कदम आत्मनिर्भर भारत नीति के अनुरूप है। नीति का लक्ष्य आयात पर निर्भरता कम कर स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना है।

ताजा पाबंदियों से बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट उद्योग पर गहरा असर पडऩे के आसार है। यह उद्योग उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। बांग्लादेश के गारमेंट निर्यात का बड़ा हिस्सा उत्तर-पूर्वी भारत के जमीनी मार्गों के जरिए होता था। इससे लागत और समय की बचत होती थी। अब निर्यात सिर्फ समुद्री मार्गों तक सीमित होने से बांग्लादेश के निर्यातकों को अतिरिक्त लागत और समय की परेशानी झेलनी पड़ेगी। भारत का अहम व्यापारिक साझेदार रहा बांग्लादेश सत्ता बदलने के बाद हमारे हितों की अनदेखी कर चीन और पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ा रहा है। इसे देखते हुए भी उसे कड़ा संदेश देने की जरूरत थी।

बांग्लादेश भूल रहा है कि उसकी आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने के साथ भारत का उसके लोकतांत्रिक और आर्थिक विकास में भी बड़ा योगदान रहा है। वहां की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने एक तरफ कट्टरपंथियों को खुली छूट दे रखी है तो दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान के साथ मिलकर नए भू-राजनीतिक समीकरणों को हवा दे रहे हैं। बांग्लादेश में चीन निवेश भी बढ़ा रहा है और उसे सैन्य मदद भी दे रहा है। हाल ही चीनी अफसरों की एक टीम बांग्लादेश में लालमोनिरहाट में बन रहे एयरबेस का निरीक्षण करने पहुंची। यह बेस भारत की ‘चिकन नेक’ सिलीगुडी कॉरिडोर के करीब है।

पूर्वोत्तर भारत को दिल्ली से जोडऩे वाले इस कॉरिडोर पर यूनुस सरकार के बयान चिंता बढ़ाने वाले हैं। अगर बांग्लादेश के इस एयरबेस तक पाकिस्तान या चीन की वायुसेना की पहुंच होती है तो भारत के लिए यह भी चिंता की बात होगी। पाकिस्तान पहले भी बांग्लादेश के जरिए पूर्वोत्तर में अशांति की साजिश रच चुका है। भारत को पूर्वोत्तर की सीमा के पार चल रही बांग्लादेश की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखनी होगी। अपने सुरक्षा हित सुनिश्चित करने के लिए बांग्लादेश पर कूटनीतिक और रणनीतिक दबाब भी बढ़ाया जाना चाहिए।

बांग्लादेश की वर्तमान सरकार जिसे छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपदस्थ करके स्थापित किया गया था, वह अपने ही आदर्शों पर खरी उतरने में नाकाम रही है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के अधीन काम कर रही इस सरकार से अपेक्षा थी कि वह साफ-सुथरे और निष्पक्ष चुनाव कराने का माहौल तैयार करेगी परंतु उसने इस दिशा में सीमित प्रयास किए और कई अवसरों पर तो उसने विरोध प्रदर्शन के दौरान और उसके बाद समाज में उभरे विभाजन को ही बढ़ावा दिया है।कुछ सप्ताह पहले अंतरिम सरकार के प्रभावी सदस्यों ने अलग होकर एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने का निर्णय लिया और गत सप्ताह सरकार ने हसीना की अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने का निर्णय लिया। कोई भी निष्पक्ष पर्यवेक्षक इसे इस रूप में देखेगा कि नया प्रतिष्ठान चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। चूंकि हसीना की प्रमुख आलोचना यही है कि उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए लोकतांत्रिक संस्थानों को प्रभावित किया इसलिए यह समझना मुश्किल है कि नया प्रतिष्ठान वही काम करने के बाद नैतिक रूप से ऊंचे स्तर पर रहने का दावा कैसे कर सकता है? वे खुद ही चुने हुए नहीं हैं।

यूनुस की पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए थी कि देश में आर्थिक स्थिरता बहाल हो और राजनीतिक शांति का माहौल बने। बहरहाल, ऐसा नहीं हुआ। आर्थिक स्थिरता इस बात पर निर्भर करीती है कि बड़े कारोबारी साझेदारों के साथ रिश्ते किस तरह सुधारे जा सकते हैं और निवेशक समुदाय को बांग्लादेश के भविष्य के बारे में सुरक्षित कैसे महसूस कराया जा सकता है। भारत के साथ बढ़ते तनाव और देश में कानून-व्यवस्था की कमजोर हालत को देखते हुए (अवामी लीग के विरुद्ध कदम उठाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया को खुलकर धता बताया गया) यह समझ पाना मुश्किल है कि निवेशक देश की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को उदारता से कैसे देखेंगे। बांग्लादेश रेडीमेड कपड़ों के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है। ऐसे में अगले वर्ष कम विकसित अवस्था से बाहर निकलने और यूरोपीय संघ जैसे कुछ बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच खोने पर उसे कठिन ढांचागत सुधारों से गुजरना होगा। ऐसे में उसकी प्राथमिकता अन्य साझेदारियों को बढ़ावा देना होना चाहिए न कि उन्हें खत्म होने देना।

भारत ने अब बांग्लादेश के निर्यात पर कुछ कारोबारी प्रतिबंध लागू किए हैं। ऐसा तब किया गया जब यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर इलाके को लेकर कुछ गलत टिप्पणियां कीं। बहरहाल, भारत ने शायद पिछले कुछ सालों के अनुभव से सबक नहीं लिया। पहले उसने हसीना को खुलकर समर्थन दिया और इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश के नागरिकों के बीच हसीना की अलोकप्रियता ने भारत के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्तों में नकारात्मकता पैदा की।भारत समय रहते हसीना के विरोधियों के साथ पिछले रास्ते की कूटनीतिक राह निकालने में नाकाम रहा और हसीना-विरोधी आंदोलन की कामयाबी ने उसे अजीब स्थिति में डाल दिया। अब वह नए सत्ता प्रतिष्ठान के साथ संबद्धता नहीं कायम कर रहा। ऐसा रुख मौजूदा विश्व में कामयाब नहीं होगा। भारत अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा समर्थक था लेकिन अब उसे समझ में आ रहा है कि तालिबान के साथ रिश्तों को नए सिरे से आकार देना ही देश के हित में है। क्या हमारे कूटनयिक यह मानते हैं कि तालिबान से बात करना सही है लेकिन बांग्लादेश के साथ नहीं? स्पष्ट है कि इस बारे में काफी चर्चा हो सकती है।

भारत को यह बात समझनी चाहिए कि बांग्लादेश के समाज में भारत को लेकर अविश्वास का माहौल है और यह हसीना को समर्थन देने से उत्पन्न हुआ जबकि वह अधिनायकवाद की राह पर बढ़ गई थीं। ऐसे में रिश्ते बहाल करने की ओर पहला कदम भारत को बढ़ाना होगा। चाहे जो भी हो, बड़े देश को हमेशा छोटे पड़ोसी की चिंताओं को दूर करने के लिए आगे बढ़ना होता है। इस मामले में यह जरूरत दोगुनी है। पड़ोस में स्थिरता लाने के लिए बातचीत की शुरुआत की जानी चाहिए।बातचीत से मसले हल हो जाते हैं।

संजय सिन्हा

पेप्सी बाटलिंग प्लांट के बाद अब कैंपा कोला, भूगर्भ जल का दोहन

कुमार कृष्णन 

बिहार के बेगूसराय की बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डवलपमेंट आथोरिटी (बियाडा ) क्षेत्र के  आठ दस किलोमीटर के दायरे में पिछले तीन वर्षों के दौरान भूगर्भ जल का स्तर 20 से 30 फीट तक गिर गया है। ऐसा पेप्सी कंपनी के बाटलिंग प्लांट के कारण हो रहा है। भूगर्भ शास्त्री और स्थानीय नागरिकों का भी यही मानना है। यहां हर दिन 12 लाख लीटर पानी निकाला जा रहा है। इस कारण इस इलाके का जलस्तर लगातार गिर रहा है। कहते हैं प्लांट में मोटे मोटे आठ बोरिंग हुए थे जिसमें दो ने पिछले साल से ही काम करना बंद दिया है। भूजल के लगातार दोहन से जल स्तर लगातार गिर रहा है। तीन साल पहले 15 से 20 फीट पर जल स्तर था, अब यह 40 से  50 फीट है। बोरिंग ने काम करना बंद कर दिया है और चापानल से भी कम पानी आ रहा है। आस पास के एक दर्जन गांवों के तीस से चालीस हजार लोग इस फैक्टरी का विरोध कर रहे हैं। अब तो जल भी दूषित हो गया है और पानी बदबू में भी आ रहा है। लोग चाहते हैं कि प्लांट बंद हो जाए या प्लांट अपने लिए दूसरी व्यवस्था करे। लोगों का कहना है कि पानी से बदबू भी आने लगा है।

इसी बीच यह खबर है कि बेगूसराय में कैम्पा कोला की यूनिट बेगूसराय जिले के ग्रोथ सेंटर में स्थापित की जाएगी। इस परियोजना में कंपनी 1200 करोड़ रुपये का निवेश करेगी और यहां सॉफ्ट ड्रिंक्स का उत्पादन किया जाएगा। दावा यह किया जा रहा है कि बिहार में रिलायंस ग्रुप की पहली औद्योगिक यूनिट होगी जो राज्य के औद्योगीकरण में एक नई दिशा तय करेगी। लोगों का कहना है कि पेप्सी प्लांट का सोशल ऑडिट होना चाहिए कि बेगूसराय के भू जल का करोड़ो लीटर उपयोग करने के बाद इस प्लांट से बेगूसराय के कितने बच्चों को रोजगार मिल रहा है l उसमें बेगूसराय की भागीदारी निश्चित होनी चाहिए, उसके बाद ही केम्पा कोला को प्लांट लगाने की अनुमानित मिलनी चाहिए l जमीन जाए बेगूसराय की , प्रदूषण झेले बेगूसराय, रोजगार पाए सिर्फ बाहरी l

गांव वाले लगातार गिरते भू-जल स्तर की शिकायत लेकर स्थानीय सांसद गिरिराज सिंह के पास पहुंच रहे हैं । इसके बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, ‘देखिए यहां के जनमानस, यहां के किसान, यहां के निवासी, चार साल हुआ है, पेप्सी का प्लांट जब से खुला है, अभी यहां गांव के किसान लोग हस्ताक्षर अभियान करा रहे हैं। पेप्सी के प्लांट के कारण जो भूजल स्तर गिरा है इससे सभी को कठिनाई हो रही है। पानी पीने में कठिनाई हो रही है, साथ ही किसान को भी पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी पेप्सी के प्लांट को लेकर अपना विरोध जताया है, उनका कहना है कि ‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस प्लांट का उद्घाटन करने आए थे तो उन्होंने कहा था कि पेप्सी गंगा से जल लेकर अपना उत्पादन करेगा और पानी हार्वेस्ट किया जाएगा लेकिन न तो वो गंगा से जल ले रहे हैं और न ही हार्वेस्ट कर रहे हैं। प्लांट बंद करना होगा।’ ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार ने 15 अप्रैल 2022 को इस प्लांट का उद्घाटन किया था। लोगों को लगा था कि बेगूसराय का विकास होगा लेकिन उद्घाटन के 3 साल बाद ही लोग चाह रहे कि प्लांट बंद हो जाए। जल स्तर में यह कमी सिर्फ पेप्सी के बॉटलिंग प्लांट वरुण बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड के आसपास ही नहीं, बल्कि असुरारी, बथौली, मालती, पपरौर, हवासपुर, बीहट से लेकर पकठौल तक के गांव में हो गई है।

लोग परेशान हैं, लेकिन इनकी कोई सुन नहीं रहा है। पिछले डेढ़ साल से आंदोलन जारी है। जब स्थानीय लोगों की बात किसी ने नहीं सुनी तो व्यापक पैमाने पर हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया है। बेगूसराय स्थित बियाडा बरौनी की 55 एकड़ की जमीन पर है यह प्लांट।

आंदोलन का नेतृत्व कर रहे प्रियम रंजन ने बताया कि 2022 में यहां पेप्सी प्लांट लगा। जब से प्लांट लगा है, जल संकट शुरू हो गया है। सिंचाई तक आफत हो गई है। जिस प्लांट को दक्षिण भारत, यूपी के हरदोई, बिहार के हाजीपुर से भगाया गया, हाजीपुर में अभी भी पानी की समस्या बरकरार है, उस प्लांट को हमारे माथे पर थोप दिया गया। हम लोग ऐसे ही पानी से जूझ रहे हैं।

बेगूसराय वाले पहले ही दुनिया के  प्रदूषित शहरों में है। एक पानी बचा था, उसकी भी स्थिति गड़बड़ा रही है। पानी में आयरन सहित ऐसे कई केमिकल मिल रहे हैं जो शरीर, त्वचा और जीवन के लिए हानिकारक हैं।  पेप्सी से रोजगार तो मिला नहीं, ऊपर से हम लोग जल संकट झेल रहे हैं। तालाब सूखा है, हमारा पानी ही निकाल कर पूरी दुनिया को पहुंचाया जा रहा है। यह उत्तर भारत का सबसे अधिक क्षमता का बॉटलिंग प्लांट है। 

बीहट निवासी रंजना सिंह का कहना है  कि पहले जलस्तर अच्छा था। हम लोग पानी से धनी थे, लेकिन जब से पेप्सी प्लांट लगा है, तब से पानी का दोहन हो रहा है। 10 फीट तक अगल-अलग इलाके में लेवल नीचे जा रहा है। हमारी आने वाली पीढ़ी को काफी परेशानी होगी।

ये समस्या बहुत आगे तक जाएगी। पेप्सी तो प्लांट बंदकर चला जाएगा, लेकिन हमारा परिवार-समाज पानी की समस्या से जूझता रहेगा। पेप्सी को भूगर्भीय जल नहीं निकालना चाहिए। बगल में गंगा जी हैं. वहां से पानी ले ले या फिर कोई अन्य व्यवस्था करे। भूगर्भीय जल हम गरीब लोगों के लिए है। असुरारी निवासी खिरण सिंह बताते हैं कि अब 100 फीट पाइप डलवाने पर पानी निकलता है। जब से पेप्सी आया है, तब से यही हाल है। इसका तो सिर्फ पानी का ही कारोबार है। 100 गाड़ी पानी रोज बाहर भेजा जाता है। पानी कहां से मिलेगा। पहले 40 फीट पर बोरिंग में काम चल जाता था, अब 100 फीट करवाना पड़ता है, तब पानी मिलता है।

पपरौर निवासी रेखा देवी ने बताया कि पानी की बहुत समस्या है। पहले वैशाख में भी पानी की समस्या नहीं होती थी। अब चापाकल पानी ही नहीं देता है, जब से पेप्सी प्लांट खुला, यह हाल हो गया है। 10-20 हैंडल में थोड़ा सा पानी निकलता है, पानी बहुत बदबू देता है।उषा देवी ने बताया कि जब से पेप्सी प्लांट खुला है, काफी परेशानी है। पहले 10 बार चापाकल का हैंडल चलाने पर बाल्टी भर जाती थी, अब 25-30 हैंडल में भी बाल्टी नहीं भरती है। वह शुगर पेशेंट हैं लिहाजा चापाकल चलाने में बड़ी परेशानी होती है, स्नान करना मुश्किल हो जाता है। हम गरीब लोग किसको क्या कहें। मनोज कुमार पाठक का कहना है कि चापाकल का स्तर दिनों-दिन नीचे गिरता जा रहा है। पेप्सी खुलने के कुछ दिन बाद ही परेशानी शुरू हो गई। दिनों दिन जलस्तर नीचे ही जा रहा है, आने वाले समय में हम लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ने वाला है। पानी खरीदना पड़ेगा । राजकुमार राय ने बताया कि पेप्सी का प्लांट लगने से पानी का लेयर काफी नीचे चला गया है। कभी-कभी स्नान करने के लिए सोचना पड़ता है। कई बार बगैर स्नान किए ही ऑफिस जाना पड़ता है। पानी की बहुत गंभीर समस्या है, समस्या को लेकर लगातार पेप्सी और अधिकारियों को आवेदन दे रहे हैं, लेकिन इस पर किसी प्रकार का कोई संज्ञान लिया जाता है।

पानी की स्थिति यही रही तो मरना पड़ेगा. और कोई विकल्प नहीं है। वातावरण दूषित हो गया है, जलस्तर नीचे जा रहा है, लोग करें भी तो क्या करें, मरने के सिवा कोई विकल्प नहीं है। हवासपुर, पपरौर, असुरारी, बीहट, बथौली सहित पूरे क्षेत्र में पानी की जटिल समस्या है।

चापाकल बोरिंग मिस्त्री सुधीर पासवान का कहना है कि पहले 15 से 20 फीट पर पानी मिल जाता था। अभी 35 से 40 फीट पर पानी मिलता है, गर्मी के समय में तो अब काफी तेजी से जलस्तर भाग रहा है। पूरे इलाके में यह समस्या हो रही है। पेप्सी प्लांट खुलने के बाद से और जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है।

लोगों ने जब आवाज उठाई तो पेप्सी ने कहा कि हमने वाटर रिसाइक्लिंग के लिए दो तालाब बनाकर रखे हैं, 27000 पौधे लगाएं हैं। सवाल उठता है कि बियाडा ने केवल 55 एकड़ जमीन दी है, जिसमें प्लांट है, तालाब है। 27000 पेड़ लगाने के लिए कम से कम 263 एकड़ भूमि चाहिए।

पेप्सी वाले कहते हैं कि हम वाटर रिसाइक्लिंग करते हैं तो जलस्तर ऊपर आ रहा है। पेप्सी झूठा आंकड़ा पेश कर रहा है। 

भूगर्भ शास्त्री और जीडी कॉलेज में भूगोल के विभागाध्यक्ष डॉ. रविकांत आनंद कहते हैं कि बिहार मैदानी क्षेत्र में आता है। नदियों के मामले में बिहार बहुत समृद्ध है। भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा बिहार के बीचो-बीच से गुजरती है और गंगा के बगल में बेगूसराय है। यहां बहुत सारे उद्योग लग रहे हैं और उसके लिए पानी की आवश्यकता होती है।

हमारा बिहार मानसून पर निर्भर करता है। तीन- चार महीना मानसून होता है, उसी में हमारा भूगर्भ जल रिचार्ज होता है, लेकिन 3-4 महीने में जितना भूगर्भ जल रिचार्ज नहीं होता है। उससे अधिक भूगर्भ जल निकाला जा रहा है।

इसके कारण वाटर लेवल धीरे-धीरे नीचे की ओर जा रहा है। यदि ऐसा चलता रहा तो आगे भविष्य में सरकार, हमें और सब को यह सोचना होगा कि भूगर्भ जल को कैसे बचाया जा सके। इसका एक ही उपाय है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग करें, लेकिन सिर्फ रेनवाटर हार्वेस्टिंग से नहीं होगा।

इंडस्ट्री जो बड़े पैमाने में पानी निकाल रही है, उसको नीति बनानी होगी जिससे कि वहां के आसपास के लोगों को दिक्कत नहीं हो, खेती करने में दिक्कत नहीं हो और उनका भी काम हो। हम लोग चाहते हैं कि अंडरग्राउंड वाटर को लेकर जल्द से जल्द ऐसी नीति बने की भूगर्भ जल कैसे बचे।

विधायक रहे राजेन्द्र राजन का कहना है कि बेगूसराय इंडस्ट्रियल ग्रोथ सेंटर  में पेप्सी का प्लांट लगा और अब लगेगा कैम्पा कोला प्लांट। बेगूसराय जिला का जलस्तर  पाताल मुखी है। यानी यहां की धरती पानी देने की क्षमता तेजी से खो रही है। साधारण बोरिंग कराने पर वर्षों से पानी नहीं निकलता है ।अब समरसेबल बोरिंग भी फेल होने लगी हैं। भयानक खतरा सुरसा की तरह विकराल मुंह खोले लीलने को तैयार है। कारखाने विकास के लिए जरूरी हैं ,रोजगार और तरक्की के रास्ते यहां से खुलते हैं । यही कारण है कि कारखाने की जरूरत पर बल देना जरूरी है लेकिन जो आम जन की जिंदगी के लिए संकट लेकर आए , उसका विरोध जरूरी है। ये दो कारखाने जीवन नहीं, मौत के पैगाम लेकर आए  हैं।

रोजगार नहीं मिले , उत्पादित माल उपयोगी नहीं हो  तो फिर इसका स्वागत क्यों ? सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए खोले जाने वाले कारखानों की हमें जरूरत नहीं है।

तीव्रतम विरोध, जन प्रतिरोध खड़ा कर हमें चट्टानी एकता के बलपर इसे भगाना ही होगा।

पहले से जलसंकट की समस्या यहां है। इन दोनों प्लांट के कारण खतरा सन्निकट है कि निकट भविष्य में बेगूसराय पानी विहीन क्षेत्र हो जाएगा।गंगा का पेट गाद से भरता चला जा रहा है। खतरा है ,सरस्वती की तरह  संभव है , कहीं यह भी सूख न जाय,विलुप्त न हो जाय।  यह सच है , इन दोनों प्लांटों के आधुनिकतम संयत्रों  द्वारा बेहिसाब पानी दोहन होगा ।

जलदोहन के लिए अत्याधुनिक संयत्र यहां लग रहे हैं। वे कहते हैं कि 1990 से 2005  तक,  जब वे मटिहानी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहा था , ग्रोथ सेंटर की साढे चार सौ एकड़ जमीन अवैध कब्जे में थी। बिहार सरकार और प्रशासन को जानकारी भी नहीं थी कि यहां कितनी जमीन रोजगारपरक उद्योगों के लिए वर्षों  पहले से  अर्जित है।

तब देवना स्थित लघु औद्योगिक क्षेत्र मुर्दा बना हुआ था। बिजली आपूर्ति शून्य थी।

ये सभी औद्योगिक भूमि मटिहानी क्षेत्र के अंतर्गत ही थे।काफी जद्दोजहद के बाद देवना विद्युत सब स्टेशन को जिन्दा कराया और अपने हाथों स्वीच ऑन कर उद्घाटन किया। फलस्वरूप यहां के अधिकांश कारखाने चालू हुए। रोजगार के अवसर मिले।

फिर बरौनी ग्रोथ सेंटर के जमीन की खोज शुरू कराने में द्रविड प्राणायाम शुरू किया। अवैध कब्जे से मुक्त कराया जाना आसान न था लेकिन हुआ। सरकार मजबूर हुई और प्रशासन मुस्तैद हुआ।

लेकिन खुशी जरूर थी कि मेहनत के फल अब सभी चखेंगे । रोजगार के अवसर मिलेंगे और समुन्नत विकास संभव होगा।

यह नहीं सोचा था कि इसके चलते ऐसा समय आ जाएगा कि ऐसे खतरनाक उद्योग यहां लगेंगे कि संपूर्ण जिला ही पलायन केलिए विवश हो जाएगा। उन्होंने 

इस विशेष परिस्थिति में सभी सामाजिक और राजनीतिक संगठनों से अपील है ,एक साथ मिल -बैठ  इस पेचीदे और खतरनाक सवाल पर  विचार कर  एक राय  बनाएं । पानी नहीं तो जीवन नहीं , इसलिए जीवन बचाने की लड़ाई शुरू हो और इन अमानवीय पूंजीपतियों को यहां  गिद्ध का पड़ाव  डालने से रोक दें । जनता जगेगी, तभी निदान मिलेगा।

कुमार कृष्णन

पसमांदा मुसलमानों के लिए भी बेहतर अवसर उपलब्ध करवाएगी जातिगत जनगणना 


      पिछड़े और दलित हिन्दुओं के लिए ही नहीं, पसमांदा मुसलमानों के लिए भी बेहतर अवसर उपलब्ध करवाएगी जातिगत जनगणना 

गौतम चौधरी 

आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत विवरण शामिल करने का केन्द्र सरकार का निर्णय, सामाजिक डेटा संग्रहण के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। दरअसल, वर्ष 1931 के बाद यह पहली व्यापक जातिगत गणना होने वाली है। यह कदम पसमांदा मुसलमानों के लिए विशेष महत्व रखता है जिसमें पिछड़े, दलित और आदिवासी मुस्लिम समुदाय शामिल हैं – जिन्हें सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर रखा गया है और जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में कम प्रतिनिधित्व का सामना करना पड़ रहा है।

तेलंगाना जाति सर्वेक्षण से यह पता चला है कि राज्य की लगभग 80% मुस्लिम आबादी पसमांदा समूहों से संबंधित है। इस तरह के समावेशी आंकड़ों की आवश्यकता को और अधिक रेखांकित किया जाना है। सभी समुदायों की विस्तृत जातिगत जानकारी एकत्र करके, राष्ट्रीय जनगणना अधिक लक्षित सकारात्मक कार्रवाइयों और सामाजिक न्याय के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। साथ ही हाशिए पर पड़े समूहों द्वारा सामना की जाने वाली असमानताओं का समाधान भी सहजता से निकाला जा सकता है। 

भारत में मुस्लिम पहचान के एकरूपीकरण के कारण पसमांदा मुसलमानों के संघर्षों को अक्सर हाशिए पर रखा जाता रहा है जहां समुदाय को अक्सर एक अखंड समूह के रूप में चित्रित किया जाता है लेकिन वास्तविकता बिल्कुल भिन्न है। इससे मुस्लिम समाज में मौजूद आंतरिक पदानुक्रम और जाति-आधारित असमानताएँ मिटती हुई-सी प्रतीत होती है। नतीजतन, मुस्लिम हाशिए पर पड़े लोगों को संबोधित करने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियाँ और कथन अक्सर पसमांदाओं द्वारा सामना किए जाने वाले असमान बहिष्कार और गरीबी को ध्यान में रखने में विफल हो जाते हैं। इसका परिणाम, उनकी विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों और मांगों को दरकिनार कर दिया जाता है, जिससे सार्वजनिक चर्चा और राज्य कल्याण कार्यक्रमों दोनों में उनकी अदृश्यता और अधिक बढ़ जाती है। राष्ट्रीय जाति जनगणना का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के भीतर जातिगत असमानताओं को पहचानना है तथा अंततः पसमांदा मुसलमानों के विशिष्ट संघर्ष को मान्यता प्रदान करना है।

सच्चर समिति (2006) ने मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को उजागर किया जिसमें कहा गया कि कई पसमांदा उप-समूहों की स्थिति साक्षरता, रोजगार और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच जैसे क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों से भी बदतर है। मुस्लिम समुदाय के भीतर विस्तृत जातिगत आंकड़े एकत्र करके, जनगणना न्यायसंगत नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए आधार तैयार कर सकती है, जो पसमांदाओं के स्तरीकृत हाशिएकरण की समस्या के समाधान में बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

ऐतिहासिक रूप से, पसमांदा मुसलमानों को औपनिवेशिक अभिलेखों में स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई थी जहां ब्रिटिश प्रशासन ने मुसलमानों के बीच जातिगत विभाजन को सावधानीपूर्वक प्रलेखित किया था जैसा कि उन्होंने हिंदुओं के बीच किया था। 1901 और 1931 की जनगणना जैसी रिपोर्टों ने मुस्लिम जातियों को अशरफ, अजलाफ और अरज़ल श्रेणियों में वर्गीकृत किया, जिससे समुदाय के भीतर पदानुक्रम और अस्पृश्यता के अस्तित्व को स्वीकार किया गया। हालाँकि, आज़ादी के बाद भारत के नीति निर्धारकों ने मुसलमानों को एक ही अल्पसंख्यक के रूप में देखा और नीति और सार्वजनिक चर्चा से आंतरिक जातिगत स्तरीकरण को मिटा दिया। वर्ष 1950 में दलित मुसलमानों के लिए अनुसूचित जाति का आरक्षण छीन लिया गया। इस बदलाव ने न केवल कल्याणकारी योजनाओं और सकारात्मक कार्रवाई में पसमांदाओं को अदृश्य बना दिया, बल्कि प्रभावशाली कुलीन मुसलमानों को हाशिए पर पड़े लोगों के प्रतिनिधित्व और लाभों पर एकाधिकार करने का मौका भी दे दिया। 

जाति जनगणना पूरी पारदर्शिता के साथ की जानी चाहिए ताकि प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने में इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सके। जातिगत आंकड़ों को कम करके दिखाने या छिपाने का कोई भी प्रयास – विशेष रूप से सामाजिक कलंक या राजनीतिक दबाव के कारण – इस अभ्यास के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देगा जिसका उद्देश्य पसमांदा मुसलमानों सहित हाशिए पर पड़े समुदायों की वास्तविक सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को उजागर करना है। निष्पक्ष नीतियां बनाने, संसाधनों और अवसरों का समान आवंटन करने तथा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सटीक और ईमानदार आंकड़े आवश्यक हैं। मुस्लिम समुदाय के भीतर जातिगत आंकड़ों को अलग-अलग करके, जाति जनगणना लक्षित नीतियों के लिए तथ्यात्मक आधार प्रदान कर सकती है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पसमांदाओं को अब एक बड़ी धार्मिक पहचान के समरूप हिस्से के रूप में नहीं बल्कि सकारात्मक कार्रवाई और न्याय के वैध दावों के साथ एक सामाजिक रूप से अलग समूह के रूप में माना जाएगा।

गौतम चौधरी 

देश के खिलाफ भ्रामक जानकारी फैलाकर पहुंचा रहे हैं राष्ट्रीय हितों को नुकसान

संदीप सृजन

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला इस बात को साबित करता है कि कैसे बाहरी ताकतें और आंतरिक सहयोगी मिलकर देश को अस्थिर करने की साजिश रच रहे हैं। यह भारत के इतिहास में सबसे घातक आतंकी हमलों में से एक माना जा रहा है। इस हमले में शामिल दगाबाजों की भूमिका और उन यूट्यूबर्स या सोशल मीडिया प्रभावकों की गतिविधियाँ महत्वपूर्ण रहीं जो देश के खिलाफ प्रचार या भ्रामक जानकारी फैलाकर राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

आधुनिक युग में सूचना युद्ध (इंफॉर्मेशन वॉर) एक नया आयाम बन चुका है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, विशेष रूप से यूट्यूब, ट्विटर (एक्स), और फेसबुक, ने विचारों और प्रचार को तेजी से फैलाने का माध्यम प्रदान किया है। दुर्भाग्यवश, कुछ यूट्यूबर्स और प्रभावक (इन्फ्लुएंसर्स) इसका दुरुपयोग कर देश के खिलाफ भ्रामक प्रचार करते हैं। पहलगाम हमले के बाद कुछ यूट्यूबर्स और सोशल मीडिया प्रभावकों पर आरोप लगे कि उन्होंने हमले के लिए भारत सरकार, सुरक्षा बलों, या स्थानीय लोगों को दोषी ठहराकर भ्रामक नैरेटिव बनाया।

यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा का मामला सामने आया जिनके बारे में दावा किया गया कि वह हमले से पहले पाकिस्तान गई थीं और वहां के अधिकारियों से उनके संबंध थे। उनके वीडियो में भारत सरकार और सुरक्षा बलों को दोषी ठहराने की कोशिश की गई जबकि पाकिस्तान या उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का जिक्र तक नहीं किया गया। यह एक सुनियोजित प्रचार का हिस्सा प्रतीत होता है जिसका उद्देश्य जनता में भ्रम पैदा करना और देश की एकता को कमजोर करना था।

सोशल मीडिया पर ऐसी गतिविधियां केवल व्यक्तिगत राय तक सीमित नहीं होतीं; ये अक्सर विदेशी ताकतों या आतंकी संगठनों के इशारे पर होती हैं। भारत सरकार ने इस तरह के प्रचार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। पहलगाम हमले के बाद 16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल और फेसबुक अकाउंट्स को बंद किया गया जो हमले को लेकर झूठी जानकारी फैला रहे थे। साथ ही, बीबीसी को भी चेतावनी दी गई कि वह आतंकियों को “उग्रवादी” कहना बंद करे क्योंकि यह शब्दावली हमले की गंभीरता को कम करती है।

पहलगाम हमला 2017 के अमरनाथ यात्रा हमले के बाद सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है। सैन्य सूत्रों के अनुसार इस हमले की योजना लंबे समय से बनाई जा रही थी। आतंकियों ने घाटी की भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाया जो घने जंगलों और ऊबड़-खाबड़ इलाकों से घिरी हुई है। बैसरन मेडो तक पहुंचने का रास्ता कठिन है जहां वाहन नहीं जा सकते और यह आतंकियों के लिए छिपने और भागने के लिए एक सुरक्षित गलियारा प्रदान करता है। सूत्रों का यह भी कहना है कि आतंकियों ने हमले से पहले पर्यटन स्थलों और होटलों की रेकी की थी जिसमें स्थानीय सहयोगियों की मदद ली गई। पहलगाम हमले में दो स्थानीय आतंकियों, आदिल हुसैन ठोकर और आसिफ शेख की संलिप्तता सामने आई है।

भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि कई बार देश को आंतरिक विश्वासघात या “घर के भेदियों” के कारण नुकसान उठाना पड़ा है। चाहे वह मध्यकालीन युग में राजाओं के बीच विश्वासघात हो या आधुनिक समय में जासूसी और आतंकी गतिविधियों में आंतरिक सहयोग, यह समस्या बार-बार सामने आती रही है। मध्यकाल में कई युद्धों में स्थानीय शासकों या विश्वासपात्रों ने विदेशी आक्रमणकारियों के साथ मिलकर अपने ही लोगों को धोखा दिया। इसका एक उदाहरण 1556 में पानीपत की दूसरी लड़ाई है जहां हेमू के कुछ सहयोगियों ने विश्वासघात किया जिसके परिणामस्वरूप उनकी हार हुई थी।
  
स्वतंत्रता के बाद भारत ने कई बार आंतरिक विश्वासघात का सामना किया। 1962 के भारत-चीन युद्ध में खुफिया जानकारी के अभाव और कुछ नीतिगत कमियों ने भारत को कमजोर किया। इसी तरह 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों को स्थानीय स्तर पर कुछ सहायता मिलने की बात सामने आई थी। 2008 के मुंबई हमले में भी स्थानीय सहयोगियों की भूमिका की जांच हुई थी जहां आतंकियों को रसद और सूचना प्रदान करने में कुछ लोगों की संलिप्तता पाई गई थी। पहलगाम हमला भी इस बात का उदाहरण है कि कैसे स्थानीय लोग, चाहे जानबूझकर या मजबूरी में, आतंकी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। सरकार ने मीडिया और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ सख्ती दिखाई। कई लोगों को विवादित पोस्ट के लिए हिरासत में लिया गया और मीडिया चैनलों को सैन्य अभियानों की रियल-टाइम कवरेज से बचने की सलाह दी गई।

पहलगाम हमला भारत के सामने कई चुनौतियों को उजागर करता है। आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना होगा। सूचना युद्ध से निपटना होगा। यूट्यूबर्स और सोशल मीडिया प्रभावकों के माध्यम से फैलाया जा रहा प्रचार देश की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए सरकार को साइबर सुरक्षा और डिजिटल निगरानी को और मजबूत करने की जरूरत है। स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना होगा। पहलगाम हमले के बाद पर्यटन उद्योग पर गहरा असर पड़ा, और स्थानीय लोग, जिनकी आजीविका पर्यटन पर निर्भर है, मुश्किल में हैं। सरकार को इन लोगों के लिए आर्थिक सहायता और सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।

पहलगाम हमला भारत के लिए एक चेतावनी है कि आतंकवाद और आंतरिक विश्वासघात के खिलाफ सतर्कता और एकजुटता की आवश्यकता है। “घर के भेदी” चाहे स्थानीय सहयोगी हों या भ्रामक प्रचार करने वाले यूट्यूबर्स, देश की सुरक्षा और एकता के लिए खतरा हैं। भारत को इस चुनौती से निपटने के लिए सैन्य, कूटनीतिक, और सूचना युद्ध के क्षेत्र में एक साथ काम करना होगा। साथ ही, जनता को जागरूक करना और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम होंगे। केवल एकजुट और सतर्क भारत ही इन दगाबाजों और बाहरी ताकतों को मात दे सकता है।

संदीप सृजन

क्यों जनता भ्रष्टाचार का अनचाहा भार ढ़ोये?

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– ललित गर्ग-

विभिन्न राजनीतिक दलों, विभिन्न प्रांतों की सरकारों, विभिन्न गरीब कल्याण की योजनाओं, न्यायिक क्षेत्र एवं उच्च जांच एजेंसियों में भ्रष्टाचार की बढ़ती स्थितियां गंभीर चिन्ता का विषय है। ऐसा लगता है आज हम जीवन नहीं, राजनीतिक, न्यायिक एवं प्रशासनिक मजबूरियां जी रहे हैं। ऐसा भी लगता है न्याय, राजनीति एवं प्रशासन की सार्थकता एवं साफ-सुथरा उद्देश्य नहीं रहा, स्वार्थपूर्ति का जरिया बन गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वारा एक असामान्य घटनाक्रम के तहत भ्रष्टाचार के एक मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के तीन अधिकारियों को उसी सीबीआई की हिरासत में भेज देना न केवल चिन्ताजनक एवं शर्मनाक है बल्कि विडम्बनापूर्ण है। भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ केन्द्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का बुगल बजाय हुए है, जिससे राजनीति में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का नया सूरज उदित होता हुआ दिखाई दे रहा है, लेकिन सीबीआई जैसी जांच एजेन्सी में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होना इस सूरज को उदित होने से पहले ही अंधेरा की ओट में ले रहा है। इससे भी बड़ी त्रासद एवं निराशाजनक है गुजरात में 71 करोड़ रुपये के मनरेगा घोटाले में मंत्री बच्चू भाई खाबड़ के दो बेटों का गिरफ्तार होना। राजनीति एवं कार्यपालिका के साथ न्याय पालिका के क्षेत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में कथित तौर पर नकदी मिलना भ्रष्टाचार के सर्वत्र व्याप्त होने को दर्शा रहा है। जनता कब तक भ्रष्टाचार का अनचाहा भार ढ़ोती रहेगी। कैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचारमुक्त आदर्श राष्ट्र-निर्माण के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे? कैसे आजादी के अमृत काल में ईमानदार राष्ट्र बना पायेंगे?  
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने 25 अप्रैल को सीबीआई के तीन अधिकारियों के भ्रष्टता पर अपने आदेश में कहा कि यह सीबीआई, ईडी और ऐसे अन्य विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार का अनूठा मामला है, जिसने हमारी कार्यपालिका और जांच तंत्र की पूरी संरचना को हिलाकर रख दिया है। इन एजेंसियों का प्राथमिक कर्तव्य अपराध की जांच करना और भ्रष्टाचार के दोषियों को सजा दिलाना है। लेकिन इन उच्च जांच एजेन्सियों के आला अधिकारी ही भ्रष्ट हो तो दूसरों के भ्रष्टाचार मामलों में निष्पक्ष एवं तीक्ष्ण जांच की उम्मीद कैसे संभव है? सीबीआई-भ्रष्टाचार एकमात्र मामला नहीं है, बल्कि यह विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बीच एक ‘बड़ी साजिश’ को दर्शाता है, जो अनुचित लाभ या प्रभाव डालने समेत इन विभागों के कामकाज में हस्तक्षेप करने के लिए रिश्वत के मामले को दर्शाता है। अब सर्वोच्च न्यायालय के जज भी ऐसे मामलों में लिप्त हो तो समस्या की गंभीरता को सहज ही समझा जा सकता है। निश्चित ही भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में जस्टिस वर्मा केस एक दुर्लभ एवं संवेदनशील मौका है। अब इसकी वजह से न्यायपालिका की गरिमा को ठेस न पहुंचे और जनता का भरोसा बना रहे, इसके लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मामले से जुड़ी जानकारियों को देश से साझा किया। साथ ही, उनकी पहल पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा भी सार्वजनिक किया। जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर किया गया और जांच कमिटी बनाकर उसकी रिपोर्ट सरकार व राष्ट्रपति के पास भेजकर महाभियोग की सिफारिश कर दी गई है। यहां से अब गेंद सरकार और संसद के पाले में है। महाभियोग ही एकमात्र तरीका है, जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के मौजूदा जजों को हटाया जा सकता है। लेकिन, आजाद भारत के इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हुआ। इसके पहले, भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चला था, लेकिन लोकसभा में वोटिंग से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया यानी वहां भी प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई थी। अब अगर जस्टिस वर्मा का यह मामला महाभियोग तक पहुंचता है, तो वहां भी एक लंबी प्रक्रिया चलेगी। लेकिन विचार करने वाली बात यह है कि क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखते हुए प्रक्रिया की जटिलता को कम किया जा सकता है? ताकि जजों के भ्रष्टाचार की उचित सजा उनको मिल सके, ऐसी प्रक्रिया से ही न्यायपालिका बिना किसी डर, दबाव या लालच के अपना कर्तव्य भी निभा सके।
भ्रष्टाचार की परतें अपराधियों एवं भ्रष्ट लोगों को बचाने तक ही सीमित नहीं है, अब तो यह गरीबों का निवाला भी छीन रही है। सरकार गरीबों के लिये अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाती हैं, लेकिन बड़ा स्थापित तथ्य है कि अधिकतर सरकारी योजनाएं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पातीं, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। इस योजना की शुरुआत इस मकसद से की गई थी कि गरीब परिवारों को साल में कम से कम सौ दिन रोजगार मिल सकेगा और वे अपना भरण-पोषण कर सकंेगे मगर शुरुआती वर्षों में ही इसमें भ्रष्टाचार उजागर होने लगे थे। फर्जी नाम दर्ज कर काम देने की बड़ी चालबाजियां सामने आई थीं। सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का ताना-बाना संबंधित महकमों में ही बुना जाता है। इसी का त्रासद उदाहरण गुजरात में मनरेगा के तहत फर्जी तरीके से कार्य निष्पादन के दस्तावेज तैयार कर करोड़ों की रकम भुना लेने का है। पुलिस ने इस मामले में अब तक ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया है, जिन्हें सड़क, बांध, पुलिया आदि निर्माण के लिए सामग्री मुहैया कराने का ठेका दिया गया था। इस घोटाले ने इसलिए तूल पकड़ा और राजनीतिक रंग ले लिया है कि इसमें वहां के पंचायत और कृषि राज्यमंत्री के दो बेटों को भी गिरफ्तार किया गया है।
गुजरात ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों में भी मनरेगा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के किस्से उजागर हो रहे हैं। मुजफ्फरपुर में भी मनरेगा भ्रष्टाचार का शिकार हो गया है। जिले के कई ब्लॉक में मनरेगा में भ्रष्टाचार हो रहा है। फर्जी हाजिरी और फोटो घोटाले से हर दिन लाखों रुपये की लूट हो रही है। एक ही फोटो को बार-बार इस्तेमाल करके लाखों रुपये निकाले जा रहे हैं। गुजरात में मंत्री के बेटों के द्वारा मनरेगा लूट एवं भ्रष्टाचार अधिक परेशान करने वाला एवं चिन्ता में डालने वाला है। नेता, मंत्री एवं प्रशासनिक अधिकारी अच्छे-बुरे, उपयोगी-अनुपयोगी का फर्क नहीं कर पा रहे हैं। मार्गदर्शक यानि नेता शब्द कितना पवित्र व अर्थपूर्ण था पर अब नेता खलनायक बन गया है। नेतृत्व व्यवसायी एवं भ्रष्टाचारी बन गया। आज नेता शब्द एक गाली है। जबकि नेता तो पिता का पर्याय था। उसे पिता का किरदार निभाना चाहिए था। पिता केवल वही नहीं होता जो जन्म का हेतु बनता है अपितु वह भी होता है, जो अनुशासन सिखाता है, ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है, विकास की राह दिखाता है। आगे बढ़ने का मार्गदर्शक बनता है।
अब तक आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल आदि राजनीतिक दलों में ही भ्रष्टाचार के किस्से सामने आ रहे थे, अब भाजपा नेताओं एवं मंत्रियों पर भी ऐसे आरोप लगना ज्यादा चिन्ताजनक है। प्रश्न भाजपा का ही नहीं है, भ्रष्टाचार जहां भी हो, उसके खिलाफ बिना किसी पक्षपात के कार्रवाई की जानी चाहिए। भाजपा एक राष्ट्रवादी पार्टी है, नया भारत एवं सशक्त भारत को निर्मित करने के लिये तत्पर है तो उसकी पार्टी के भीतर भी यदि भ्रष्टाचार है तो उसकी सफाई ज्यादा जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी दल के नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का बुगल बजाय हुए हैं तो यह नये भारत, सशक्त भारत, ईमानदार भारत बनाने की सार्थक पहल है। राजनीतिज्ञों, जजों, प्रशासनिक अधिकारियों की साख गिरेगी, तो राष्ट्र की साख बचाना भी आसान नहीं होगा। चहुंओर पसरे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से विकास के दावों का विद्रूप रूप ही सामने आता है। हमारे पास कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं राजनीति ही समाज की बेहतरी का भरोसेमंद रास्ता है और इसकी साख गिराने वाले कारणों में अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के बाद तीसरा नंबर कीचड़ उछाल राजनीति का भी है, जिसमें गलत को गलत नहीं माना जाता। ये तीनों ही ऐसेे औजार है, जो देश को तबाही की ओर ले जाते हैं। अपराधीकरण और भ्रष्टाचार का मसला काफी गहरा है और इससे खिलाफ आरपार की लड़ाई के लिए काफी कठोरता, निष्पक्षता, वक्त और ऊर्जा की जरूरत है, सख्त कदम उठाने की अपेक्षा है। ऐसी ही उम्मीदभरी एवं भ्रष्टाचार-निरोधक कार्रवाई से भारत का लोकतंत्र समृद्ध हो सकेगा।

सुमित्रानंदन पंत : प्रकृति का सुकुमार कवि, छायावादी युग का स्तंभ

महान साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत की जयंती 20 मई पर विशेष…

साहित्य सृजन से लेकर स्वाधीनता आंदोलन के सेनानी, मानवतावादी दृष्टिकोण लोगों के लिए है प्रेरणा पुंज

-प्रदीप कुमार वर्मा

सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के श्रेष्ठ कवि थे। सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के उपासक और प्रकृति की सुंदरता का वर्णन करने वाले कवि के रूप में भी जाना जाता है। पंत को ऐसी कविताएँ लिखने की प्रेरणा उनकी अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड से ही मिली। जन्म के छह-सात घंटे बाद ही माँ से बिछुड़ जाने के दुख ने पंत को प्रकृति के करीब ला दिया था। पंत ने सात वर्ष की अल्प आयु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में प्रकृति का सौन्दर्य चित्रण के साथ-साथ नारी चेतना और ग्रामीण जीवन की विसंगतियों का मार्मिक चित्रण देखने को मिलता हैं। यही वजह है कि सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में भी जाना जाता है। यही नहीं पंत जी का साहित्य सज्जन आज भी प्रासंगिक और अनुकरणीय माना जाता है।

        सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड राज्य बागेश्वर ज़िले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। सुमित्रानंदन पंत के पिता कानाम गंगादत्त पंत और माता का नाम सरस्वती देवी था।  यह विधाता की करनी ही थी कि पंत के जन्म के कुछ घंटो बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। जिसके बाद उनका लालन-पोषण उनकी दादी ने किया। बचपन में उनका नाम गुसाईं दत्त था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव से ही शुरू की। लेकिन हाई स्कूल के समय रामकथा के किरदार लक्ष्मण के व्यक्तित्व एवं लक्ष्मण के चरित्र से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।   हाई स्कूल के बाद वह वाराणसी आ गए और वहां के जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त की। 

          इसके बाद सुमित्रानंदन पंत वर्ष 1918 में इलाहबाद चले गए और ‘म्योर कॉलेज’ में बाहवीं कक्षा में दाखिला लिया। उस समय पूरे भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। इलाहाबाद में पंत गांधी जी के संपर्क में आए। वर्ष 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने म्योर कॉलेज को छोड़ दिया और आंदोलन में सक्रिय हो गए। इसके बाद वह घर पर रहकर स्वयंपाठी के रूप में हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करने लगे। इसके साथ ही सुमित्रानंदन पंत अपने जीवन में कई दार्शनिकों-चिंतकों के संपर्क में आए।  गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और श्रीअरविंद के प्रति उनकी अगाध आस्था थी। वह अपने समकालीन कवियों सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और हरिवंशराय बच्चन से भी प्रभावित हुए। 

          पंत जी के साहित्य में प्रकृति का प्रमुखता से चित्रण मिलता है। इस संदर्भ में पता चलता है कि उनकी मां के स्वर्गवास के बाद प्रकृति की रमणीयता ने पंत जी के जीवन में माँ की कमी को न केवल पूरा किया, बल्कि अपनी ममता भरी छाँह में पंत जी के व्यक्तित्व का विकास किया। इसी कारण सुमित्रानंदन पंत जीवन-भर प्रकृति के विविध रूपों को प्रकृति के अनेक आयामों को अपनी कविताओं में उतारते रहे। यहां यह भी बताना उचित रहेगा की सत्य, शांति, अहिंसा, दया, क्षमा और करुणा जैसे मानवीय गुणों की चर्चा बौद्ध धर्म-दर्शन में प्रमुख रूप से होती है। इन मानवीय गुणों को पंत जी की कविताओं में भी देखा जा सकता है। 

     प्रकृति के प्रति प्रेम और मानवीय गुणों के प्रति झुकाव के चलते उनका लेखन इतना शशक्त और प्रभावशाली हो गया था कि वर्ष 1918 में महज 18 वर्ष की आयु में ही उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली थी।  उनका रचनाकाल वर्ष 1916 से 1977 तक लगभग 60 वर्षों तक रहा। इस दौरान उनकी काव्य यात्रा के तीन प्रमुख चरण देखने को मिलते हैं। इसमें प्रथम छायावाद, दूसरा प्रगतिवाद और तीसरा श्रीअरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवाद रहा हैं। 

सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में ही बीता। इस दौरान सुमित्रानंदन पंत द्वारा अनेक कालजयी रचनाओं का सृजन किया गया। इनमें ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि शामिल हैं। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। 

            हिंदी साहित्य की समग्र एवं समर्पित सेवा के लिए उन्हें वर्ष 1961 में पद्मभूषण,वर्ष 1968 में ज्ञानपीठ पुरष्कार के साथ-साथ साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से सम्मानित किया गया।  पंत जी के हिंदी साहित्य सृजन की इस लंबी यात्रा में 28 दिसंबर 1977 को 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। इसी के साथ छायावाद के एक युग का अंत हो गया। छायावादी कवि एवं साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके साहित्य सृजन के दीप संपूर्ण मानवता के पथ को आलोकित कर रहे हैं। जीवन की नश्वरता पर लिखी गई उनकी कविता लहरों का गीत

” चिर जन्म-मरण को हँस हँस कर

हम आलिंगन करती पल पल,

फिर फिर असीम से उठ उठ कर

फिर फिर उसमें हो हो ओझल”

आज भी जीवन की नश्वरता और संघर्षों के बाद फिर उठ खड़े होने के जज्बे को मानवता के लिए एक प्रेरणा पुंज के रूप में दिखाई पड़ती है।

भारत का पक्ष रखने की सराहनीय पहल एवं बेतुका विवाद

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– ललित गर्ग

पहलगाम की क्रूर एवं बर्बर आतंकी घटना एवं उसके बाद भारत के सिंदूर ऑपरेशन में पाकिस्तान को करारी मात देने की घटना से निश्चित ही भारत की ताकत को दुनिया ने देखा। लेकिन इसके बाद पाक दुनिया से सहानुभूति बटोरने के लिये जहां विश्व समुदाय में अनेक भ्रम, भ्रांतिया एवं भारत की छवि को छिछालेदार करने में जुटा है, वहीं भारत का डर दिखा-दिखा कर ही पाक अनेक देशों से आर्थिक मदद मांग रहा है। इन्हीं स्थितियों को देखते हुए दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार ने जिस तरह से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है, यह फैसला जितना सराहनीय है, उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण है इसका राजनीतिक विवादों में घिर जाना। यह राजनीति से ऊपर, मतभेदों से परे राष्ट्रीय एकता का एक शक्तिशाली प्रतिबिंब बनना चाहिए। देश की सुरक्षा, सैन्य उपक्रम, राष्ट्रीय एकता-अखण्डता एवं विदेश नीति से जुड़े विषय पर राजनीति होना, देश के हित में नहीं है।
पहलगाम हमले के बाद यह अफसोस की बात है कि पाकिस्तान का बचाव करने या उसके साथ मुखरता से खड़े होने वाले देशों या विश्व संगठनों के साथ-साथ भारतीय राजनीतिक दलों में विवाद का बढ़ना चिन्ताजनक है।। भारत के राजनीतिक दल प्रारंभ में एकजुट दिखें लेकिन राजनीतिक स्वार्थों के चलते अब उनमें कहीं-कहीं वैचारिक मतभेद उभर रहे हैं। पाकिस्तान दोषी होने के बावजूद पीड़ित होने का स्वांग रचकर सहानुभूति जुटाता रहा है। दुनिया के अनेक देश उसके झांसे में आ भी जाते हैं। ऐसे में, दुनिया के महत्वपूर्ण देशों में भारत का पक्ष रखने का मोदी सरकार का यह प्रयास बहुत जरूरी एवं दूरगामी सोच से जुड़स है। इस प्रयास को एक बड़े अभियान के रूप में लेना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ भारत की शून्य सहिष्णुता और ऑपरेशन सिंदूर का संदेश दुनिया तक पहुंचना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सभी दलों ने सरकार और सेना के प्रति समर्थन जताया था। सरकार ने भी उसी भावना का सम्मान करते हुए सभी दलों के सांसदों को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया है। कांग्रेस ने थरूर का नाम नहीं भेजा था, सरकार ने उन्हें अपनी तरफ से शामिल कर लिया। जिनके नाम कांग्रेस ने दिए थे, उनमें से सिर्फ आनंद शर्मा चुने गए।
शशि थरुर विदेश नीति के जानकार है। थरूर पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ में काम कर चुके हैं, विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं। उनके अनुभव का फायदा निश्चित रूप से प्रतिनिधिमण्डल को मिलेगा, दुनिया में भारत का पक्ष सही परिप्रेक्ष्य में रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हालांकि कांग्रेस को लगता है कि उसके सांसद को चुनने से पहले उससे पूछा जाना चाहिए था, इस अपेक्षा को गलत भी नहीं कहा जा सकता। मगर वर्तमान संवेदनशील हालातों में इसे विवाद का मुद्दा बनाने से बचा जा सकता था। लेकिन कांग्रेस के सदस्यों, खासकर सांसद शशि थरूर को लेकर हो रहा विवाद बिल्कुल अनचाहा एवं अनुचित है। इससे एक अच्छा एवं प्रासंगिक मकसद नकारात्मक खबरों में घिर गया है। भले ही शशि थरूर और कांग्रेस के रिश्ते पिछले कुछ समय से ठीक नहीं रहे हैं। लेकिन यह एक सांसद और उसकी पार्टी के बीच का मसला है। यहां जो मुद्दा सामने है, वह देश से जुड़ा है। इसमें सभी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए।
युद्ध एवं आतंक जैसे हालातों में भारत ने अपना पक्ष रखने के लिए पहले भी समय-समय पर विपक्ष के शीर्ष नेताओं को आगे किया है और उसी परिपाटी को मोदी सरकार ने आगे बढ़ाकर देश की राजनीति व राजनय को मजबूती दी है। सात सदस्यीय बैजयंत जय पांडा, रविशंकर प्रसाद, शशि थरूर, संजय झा, श्रीकांत शिंदे, कनिमोझी करुणानिधि और सुप्रिया सुले के नेतृत्व में हमारे देश के नेता 32 देशों का दौरा करेंगे। यह विपक्ष के नेताओं के लिए भी स्वर्णिम अवसर है कि वह अपनी काबिलियत एवं देशहित को देश के सामने साबित करें। क्योंकि राष्ट्र एवं राष्ट्रीय एकता सबसे ऊपर है। बांटने वाली राजनीति से अलग जब हम देशहित के पक्ष में खड़े होंगे, तभी आतंकवाद से लड़ने में सहूलियत एवं सफलता मिलेगी। क्या दुनिया ने भारत के सीमित सैन्य अभियान के महत्व, संयम और समझदारी को ठीक से समझा है? क्या भारत आतंकवाद के खिलाफ संपूर्ण युद्ध नहीं छेड़ सकता था? अगर भारत ने युद्ध को नहीं बढ़ाया, तो इसका अर्थ कतई यह नहीं कि भारत का पक्ष कमजोर है। भारत चाहता तो पाक को हर मोर्चे पर नेस्तनाबूद कर सकता है, लेकिन भारत का लक्ष्य आतंकवाद को समाप्त करना है।
भारत ने पाकिस्तान और पीओके में बसे 9 आतंकी ठिकानों को रात के अंधेरे में तबाह कर दिया। इसके बाद भारत ने ठान लिया कि पूरी दुनिया के सामने आतंकवाद परस्त पाकिस्तान का चेहरा बेनकाब करना है, जिसकी जिम्मेदारी अनुभवी एवं विशेषज्ञ सात सांसदों को सौंप कर सरकार ने सूझबूझ एवं परिपक्व नेतृत्व का परिचय दिया है। सांसदों के सात प्रतिनिधिमंडल दुनियाभर के देशों में जाकर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का पक्ष रखेंगे। हर एक प्रतिनिधिमंडल में 6-7 सांसद और कई राजनयिक शामिल होंगे। भारत की शांति, अहिंसा, विकास एवं विश्व बंधुत्व का संदेश सात प्रतिनिधिमंडलों के जरिये दुनिया तक पहुंचना इसलिए भी जरूरी है कि भारत को तेज विकास करना है और अब वह पहलगाम जैसे किसी आतंकी हमले को बर्दाश्त नहीं कर सकता। गौर करने की बात है कि सात प्रतिनिधिमंडलों में 59 सदस्य शामिल किए गए हैं, जिनमें सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 31 नेता और अन्य दलों के 20 नेता शामिल हैं। इस तरह सर्वदलीय सांसदों की टीमों को अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मिशन पर भेजने से भारत का पक्ष मजबूत होगा, दुनिया में आतंक के विरुद्ध सकारात्मक वातावरण बनेगा। ये दौरे न सिर्फ आतंकवाद पर भारत की नीतियों को साफ करेंगे, बल्कि पाक की हरकतों को भी दुनिया के सामने बेनकाब करेंगे।
सात प्रतिनिधिमंडल में जिन नेताओं को नेतृत्व दिया गया है, उसमें भी अन्य दलों को प्राथमिकता देकर एक संतुलन एवं सूझबूझ का परिचय दिया गया  है। आइडिया ऑफ इंडिया के साथ सुगठित इस टीम इंडिया के कंधे पर बड़ी एवं महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। दुनिया के निर्णायक नेताओं से मिलकर यह बताना जरूरी है कि आइडिया ऑफ पाकिस्तान और आइडिया ऑफ इंडिया के बीच कितनी चौड़ी खाई है, यह खाई संबंधित देशों ही नहीं, दुनिया को प्रभावित करने वाली है। दूसरे शब्दों में कहें, तो पाकिस्तान आतंकवादी मानसिकता से ग्रस्त है एवं आतंक को पोषित एवं पल्लवित करने वाला देश है। उसके आतंकवाद ने भारत ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों को भारी नुकसान पहुंचाया है। एक देश, जो आतंक की बुनियाद पर खड़ा है, न उसे शर्म है, न पछतावा। वहां ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकियों व उनके परिजन को जैसा राजकीय सम्मान दिया गया है, जैसे पाक फौज आतंकी सरगनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी देखी गई है, उस तरफ से मुंह मोड़कर अगर दुनिया खड़ी होगी, तो यकीन मानिए, फिर इंसानियत का खून होगा और आतंकवाद को बल मिलेगा।
ऑपरेशन सिन्दूर भारत की बदलती रणनीति का हिस्सा बना है। भारत अब पहले की तरह केवल कूटनीतिक जवाब तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह सैन्य कार्रवाई के जरिए आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश भी देना जानता है। पाक सेना आतंकी संगठनों का इस्तेमाल करती है, लेकिन उसकी यह नीति न केवल भारत के लिए खतरा है, बल्कि पाक के आंतरिक स्थायित्व को भी कमजोर करती है। जब तक पाक सेना अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करती तब तक इस तरह के आतंकी तनाव बार-बार सामने आएंगे। पाक भविष्य में फिर से भारत के खिलाफ आतंकी हमले कर सकता है क्योंकि यह उसकी रणनीति का हिस्सा है। पाक सेना की आतंकवाद समर्थक नीतियां और भारत की आक्रामक जवाबी रणनीति इस क्षेत्र में स्थायी शांति की राह में बड़ी बाधाएं हैं। स्पष्ट होता है कि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच का विवाद नहीं है बल्कि इसमें पूरी दुनिया से जुड़े गहरे ऐतिहासिक, वैचारिक और रणनीतिक आयाम हैं। इसलिये दुनिया के बड़े राष्ट्र पाक की आतंकी सोच से परिचित हो, इसी सोच से दुनिया को परिचित कराना सात सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल का मिशन है।