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एक युग का अंत: क्रिकेट के महानायकों को सलाम

विराट कोहली और रोहित शर्मा न केवल महान बल्लेबाज़ हैं, बल्कि भारतीय क्रिकेट के दिल और धड़कन भी हैं। विराट की आक्रामकता और रोहित की क्लासिक बल्लेबाज़ी ने हमें अनगिनत यादें दी हैं। एक युग का अंत, लेकिन उनकी विरासत हमेशा दिलों में जिंदा रहेगी। सलाम चैंपियंस! विराट कोहली और रोहित शर्मा का भारतीय क्रिकेट में योगदान सिर्फ आँकड़ों तक सीमित नहीं है। यह उन पलों में है जब उन्होंने देश को जीत की गर्वित अनुभूति कराई, उन संघर्षों में है जब उन्होंने मुश्किल हालातों में टीम का नेतृत्व किया। ये दोनों खिलाड़ी उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने भारतीय क्रिकेट को ग्लोबल स्तर पर नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

-प्रियंका सौरभ

जब भी इतिहास के पन्नों में भारतीय क्रिकेट की बात होगी, कुछ नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों में दर्ज रहेंगे। यह वे नाम हैं जिन्होंने न केवल रिकॉर्ड बनाए, बल्कि खेल को एक नई पहचान दी, एक नया जुनून दिया। हाल ही में, भारतीय टेस्ट क्रिकेट के दो महानायक – विराट कोहली और रोहित शर्मा – अपने सफेद कपड़ों में आखिरी बार नज़र आए। यह न केवल एक व्यक्तिगत विदाई थी, बल्कि एक युग का अंत भी था।

भारतीय क्रिकेट का दिल और धड़कन

विराट कोहली और रोहित शर्मा का भारतीय क्रिकेट में योगदान सिर्फ आँकड़ों तक सीमित नहीं है। यह उन पलों में है जब उन्होंने देश को जीत की गर्वित अनुभूति कराई, उन संघर्षों में है जब उन्होंने मुश्किल हालातों में टीम का नेतृत्व किया। ये दोनों खिलाड़ी उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने भारतीय क्रिकेट को ग्लोबल स्तर पर नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

विराट: आक्रामकता का दूसरा नाम

जब भी बात भारतीय क्रिकेट में आक्रामकता की होती है, विराट कोहली का नाम सबसे पहले आता है। उनका जुनून, मैदान पर उनकी आक्रामकता, और बल्ले से उनके रनों की बौछार ने उन्हें आधुनिक क्रिकेट का ‘रन मशीन’ बना दिया। 100 से अधिक टेस्ट मैच, 29 शतक और कई यादगार पारियाँ उनके नाम हैं। लेकिन इससे भी बढ़कर, उन्होंने भारतीय टीम को वह आत्मविश्वास दिया जिसने हर विरोधी टीम को चुनौती देने की हिम्मत दी।

विराट का मैदान पर जोश और उत्साह हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है। उनकी बल्लेबाज़ी में न केवल शक्ति, बल्कि एक अद्भुत कला भी है। उनका हर शॉट एक बयान है, हर रन एक कहानी है। उन्होंने न केवल अपने बल्ले से, बल्कि अपनी नेतृत्व क्षमता से भी क्रिकेट की दुनिया को प्रभावित किया है। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने न केवल विदेशी धरती पर टेस्ट सीरीज़ जीती, बल्कि एक नई पहचान बनाई।

रोहित: हिटमैन की क्लास

दूसरी ओर, रोहित शर्मा का खेल एक अलग ही कला है। उनकी बल्लेबाज़ी में वह शांति और संयम है जो उन्हें एक अद्वितीय खिलाड़ी बनाती है। जहाँ विराट आक्रामकता का प्रतीक हैं, वहीं रोहित अपने क्लासिक स्ट्रोक्स से खेल की बारीकियों को दर्शाते हैं। उनका दोहरा शतक और शुरुआती ओवरों में उनका आक्रामक रुख आज भी हर क्रिकेट प्रेमी के दिलों में बसा हुआ है।

रोहित के कवर ड्राइव, पुल शॉट और लंबी पारियाँ एक अलग ही आनंद देती हैं। उन्होंने एकदिवसीय क्रिकेट में तीन दोहरे शतक लगाए हैं, जो किसी भी बल्लेबाज़ के लिए एक असाधारण उपलब्धि है। उनकी समझ, उनकी तकनीक और उनका आत्मविश्वास, उन्हें क्रिकेट की दुनिया का ‘हिटमैन’ बनाता है।

एक दौर का अंत, नए सूरज की शुरुआत

इन दोनों महान खिलाड़ियों का संन्यास भारतीय क्रिकेट के लिए एक बड़ा मोड़ है। यह एक ऐसा पल है जब हमें न केवल उनके योगदान को याद करना चाहिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करना चाहिए। यह वह वक्त है जब हमें नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना होगा, ताकि वे भी इसी तरह की विरासत छोड़ सकें।

खेल से परे की कहानियाँ

विराट और रोहित केवल मैदान के ही नायक नहीं हैं। उन्होंने अपनी निजी ज़िंदगियों में भी अनेक प्रेरणादायक कहानियाँ लिखीं हैं। विराट की फिटनेस के प्रति प्रतिबद्धता और रोहित का धैर्य, दोनों ही हमें जीवन में अनुशासन और संकल्प की महत्वपूर्ण सीख देते हैं।

विराट का संघर्ष एक मध्यम वर्गीय परिवार से उठकर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ बनने का सफर है, जबकि रोहित की कहानी उस प्रतिभा की है जिसने मुश्किल हालातों में भी अपने खेल को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। इन दोनों ने हमें सिखाया है कि सफलता का रास्ता आसान नहीं होता, लेकिन यदि आपके पास संकल्प और मेहनत है, तो कोई भी सपना असंभव नहीं।

विदाई का पल

जैसे ही वे मैदान से आखिरी बार लौटे, हर आँख नम थी, हर दिल भारी था। यह उस विरासत का अंत था जिसने करोड़ों दिलों को जोड़ा, जिसे हर भारतीय ने गर्व से देखा। लेकिन जैसा कि कहते हैं, ‘हर अंत एक नई शुरुआत है।’ इन दिग्गजों की विदाई सिर्फ एक युग का अंत नहीं, बल्कि एक नई पीढ़ी के सपनों की शुरुआत भी है।

आखिरी सलाम

तो, सलाम उन पलों को जो हमें गर्व से भरते हैं, सलाम उन कहानियों को जो हमें प्रेरित करती हैं, और सलाम उन महानायकों को जिन्होंने हमें सिखाया कि हार-जीत खेल का हिस्सा है, पर संघर्ष ही असली जीत है। विराट कोहली और रोहित शर्मा न केवल महान बल्लेबाज़ हैं, बल्कि भारतीय क्रिकेट के दिल और धड़कन भी हैं। विराट की आक्रामकता और रोहित की क्लासिक बल्लेबाज़ी ने हमें अनगिनत यादें दी हैं। एक युग का अंत, लेकिन उनकी विरासत हमेशा दिलों में जिंदा रहेगी। सलाम चैंपियंस!

धन्यवाद, चैंपियंस! आप हमेशा दिल और धड़कन बने रहेंगे।

साइबर हमलों से सावधान रहने की जरूरत !

पाकिस्तान के आतंकियों द्वारा 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद, भारत द्वारा पाकिस्तान के 9 एवं 12 अन्य, कुल 21 आतंकी ठिकानों पर आपरेशन ‘सिंदूर’ द्वारा ताबड़तोड़ कार्रवाई करने एवं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रंप की दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) के बीच सीजफायर रोकने हेतु मध्यस्थता की बातचीत के बाद हालांकि, भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा हो चुकी है, लेकिन अभी भी दोनों देशों के बीच सीमा पर कहीं न कहीं तनाव जारी है। इसी तनाव के बीच भारत सरकार ने, पाकिस्तान द्वारा भारत पर बड़े साइबर अटैक की आशंकाओं के चलते एक एडवायजरी जारी की है और आम जनता, विभिन्न संस्थानों(सरकारी और निजी) को इससे पूरी तरह से सावधान व जागरूक रहने के लिए कहा गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में आया है कि भारत के पाकिस्तान पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद से कई महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा प्रणालियों और सरकारी वेबसाइटों पर लगातार साइबर हमले हुए हैं। वास्तव में, इन साइबर हमलों का मुख्य उद्देश्य आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं को बाधित करना और सरकारी प्लेटफार्मों की विश्वसनीयता को कम करना है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि साइबर युद्ध को आम तौर पर साइबर हमले या हमलों की श्रृंखला के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो किसी देश को निशाना बनाते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि इसमें सरकारी और नागरिक बुनियादी ढांचे पर कहर बरपाने और महत्वपूर्ण प्रणालियों को बाधित करने की क्षमता होती है, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्र को नुकसान होता है। यहां यदि हम साइबर हमलों के प्रकारों की बात करें तो इनमें क्रमशः जासूसी(संवेदनशील जानकारी को बॉटनेट या स्पीयर फ़िशिंग हमलों का इस्तेमाल करके चुराना), विभिन्न संवेदनशील जानकारी व सूचनाओं के साथ छेड़छाड़/उसे तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना, डेटा चोरी करना आदि को शामिल किया जा सकता है। इतना ही नहीं,हमलावर बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो, पावर ग्रिड पर हमले से संचार तक बाधित हो सकता है, जिससे इंस्टेंट मैसेज और इंटरचेंज जैसी सेवाएं बेकार हो सकती हैं। अचानक हमला, प्रोपेगंडा हमला, आर्थिक व्यवधान भी साइबर हमलों के ही प्रकार हैं। इतना ही नहीं,हमलावर विश्वास, भय, जिज्ञासा या तत्परता जैसी मानवीय विशेषताओं का फायदा उठाकर व्यक्तियों को धोखा देकर संवेदनशील जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, और अनधिकृत पहुंच प्रदान कर देते हैं या सुरक्षा से समझौता करने वाली अन्य गतिविधियां करते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि भारत की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT-In) ने एक स्पेशल एडवाइजरी जारी करके वित्त(फाइनेंशियल सैक्टर)और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को अपनी साइबर सुरक्षा मजबूत करने की सलाह दी है। दरअसल, भारत सरकार ने निजी व सरकारी संस्थानों, विशेष रूप से फाइनेंशियल सैक्टर को अपने साइबर मैकेनिज़्म को बेहतर बनाने के साथ ही लगातार सतर्क व सजग रहने की सलाह दी है। इस बात की पूरी आशंकाएं जताई गईं हैं, कि पाकिस्तान अनजान नंबरों और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए भारत पर कभी भी कोई साइबर अटैक कर सकता है। ऐसे में जरुरत इस बात की है, कि लोगों को अपने वाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम,एक्स जैसे सोशल मीडिया अकाउंट्स पर आने वाले किसी भी अनजान, संदिग्ध लिंक, इ-मेल या पीडीएफ,एपीके फाइल, पाकिस्तानी डोमेन लिंक, यूआरएल को ओपन नहीं करना चाहिए, क्यों कि इसके जरिए भारत पर पाकिस्तान साइबर अटैक(फिशिंग व मैलवैयर अटैक) कर खतरा पैदा कर सकता है। साइबर एक्सपर्ट बताते हैं कि, पाकिस्तानी हैकर्स ने इस मैलवेयर अटैक को ‘डांस ऑफ द हिलेरी’ नाम दिया है। मीडिया में खबरें आईं हैं कि पाकिस्तानी हैकर्स इस मैलवेयर को हैकर्स मैसेज, इ-मेल, सोशल मीडिया हैंडल्स और विभिन्न ग्रुप्स में भेज रहे हैं। ऐसे में साइबर अटैक से बचने के लिए सावधानी ही सबसे बड़ी सुरक्षा है। इसलिए, हमें अपने स्मार्टफोन और कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम और ऐप्स हमेशा अपडेट रखने की आवश्यकता है। वास्तव में, हमें यह चाहिए कि हम अपनी डिवाइसों(कंप्यूटर , लैपटॉप एंड्रॉयड मोबाइल फोन आदि) में हमेशा टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन (2एफए) को ऑन रखें तथा डिवाइस में एंटी स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर इंस्टाल करें।कोई भी अनजान एप्लिकेशन आदि को अपने एंड्रॉयड फोन और टैबलेट/लैपटॉप आदि में इंस्टॉल न करें।एंटीवायरस और फायरवॉल इंस्टॉल करें और एक्टिव रखें।कहना ग़लत नहीं होगा कि पाकिस्तान सीमा पर तनातनी के बाद किसी भी एंड्रॉयड स्मार्टफोन या पीसी को हैक कर सकता है, जो हमारे देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ा व गंभीर खतरा हो सकता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि पाकिस्तान पहले भी कई बार भारत पर साइबर हमले कर चुका है और यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि वह इस बार भी अपनी नापाक व तुच्छ हरकतों से बाज नहीं आएगा। वैसे, यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान से किसी भी साइबर हमले के खतरे को लेकर हमारे देश की सभी सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से मुस्तैद और सक्रिय हैं, लेकिन फिर भी हमें यह चाहिए कि हम अपनी तरफ से इस खतरे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार और सजग रहें। वास्तव में,साइबर हमले का सीधा असर ऑनलाइन काम करने वाले लोगों पर पड़ता है। इस तरह के हमलों में अक्सर डेटा, सूचनाएं आदि चुराने से लेकर वायरस आदि डालकर डिवाइस को करप्ट करने तक की घटनाएं होतीं हैं। हम साइबर हमले का शिकार न होने पाएं, इसके लिए हमें अपनी डिवाइस में पासवर्ड को बहुत मजबूत सेट करना चाहिए, ताकि हैकर्स किसी भी तरह से हमारे पासवर्ड के बारे में पता न लगा सकें। साइबर हमलों से बचने के लिए हमें किसी भी अनजान लिंक, टेक्स्ट मैसेज आदि की जानकारी तुरंत साइबर सैल हेल्पलाइन 1930 में देनी चाहिए।साथ ही साथ, मोबाइल फोन से ऑटो डाउनलोड का ऑप्शन भी बंद होना चाहिए, ताकि अपने आप कोई भी एप आदि डाउनलोड न हो सके। हमें यह पता होना चाहिए कि +92 कंट्री कोड वाले मैसेज, कॉल किसी भी तरह के भेजे गए लिंक पर हमें किसी भी हाल और परिस्थितियों में क्लिक नहीं करना है, क्योंकि यह नंबर पाकिस्तान का है। हमें अपने फोन या कंप्यूटर के फर्मवेयर को हमेशा अपडेट रखना चाहिए। लेटेस्ट अपडेट में वायरस और हैकिंग से प्रोटेक्शन के लिए सिक्योरिटी पैच मिलती है। इसलिए समय-समय इसके अपडेट को इंस्टॉल करना जरूरी है। पाठकों को बताता चलूं कि डिवाइस को लंबे समय तक अपडेट न रखने से उसका प्रोटेक्शन कम हो जाता है। साइबर अपराधी हमारे फोन के पुराने बग्स और सिक्योरिटी गैप का फायदा उठाकर हमारे फोन में घुस सकते हैं और विभिन्न जानकारियां आसानी से जुटा सकते हैं। अतः, हमें यह चाहिए कि हम इस बात का ध्यान रखें कि, हम किसी भी तरह की पीडीएफ फाइल और एपीके फाइल ओपन ना करें, जिस लिंक के आखिर में .pk के लिखा हो उस लिंक को कभी भी ओपन ना करें।वास्तव में आज के इस युग में साइबर लिट्रेसी बहुत आवश्यक है। सच तो यह है कि हमें देशव्यापी डिजिटल जागरूकता अभियान की जरूरत है। आज के समय में अमेरिका, ब्रिटेन और सऊदी अरब, फ्रांस , जापान, चीन जैसे देश साइबर सुरक्षा उपायों में अग्रणी होने में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज जैसे-जैसे दुनिया डिजिटल युग में आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे साइबर हमले भी दुनिया भर में तेजी से परिष्कृत और चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं। आज भारत की जनसंख्या विश्व में सर्वाधिक है और आज भारत ‘डिजिटल क्रांति’ में प्रवेश कर चुका है। इंटरनेट का व्यापक उपयोग होने के कारण, हमें विशेष रूप से सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। यह ठीक है कि आज हमारा देश अपने विनियामक ढांचे को बढ़ाने, उन्नत साइबर सुरक्षा तकनीकों को अपनाने और रणनीतिक सहयोग और पहल को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है तथा भारत की साइबर सुरक्षा यात्रा में एक उल्लेखनीय उपलब्धि अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आइटीयू) द्वारा प्रकाशित वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (जीसीआइ) 2024 में टियर 1 का दर्जा प्राप्त करना है, तथा यह वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा के लिए देश की मजबूत प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, लेकिन बावजूद इसके हमें बहुत ही सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, महाराष्ट्र साइबर सेल द्वारा यह जानकारी दी गई थी कि भारत पर 10 लाख से अधिक साइबर हमले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र साइबर ने पाया है कि इस आतंकी हमले के बाद डिजिटल हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारतीय वेबसाइटों और पोर्टलों को निशाना बनाकर किए गए ये हमले पाकिस्तान, मध्य पूर्व, इंडोनेशिया और मोरक्को से किए गए थे। यह भी सामने आया है कि कई हैकिंग समूहों ने इस्लामवादी समूह होने का भी दावा किया है‌। उल्लेखनीय है कि इन साइबर हमलों के पीछे पाकिस्तानी हैकर समूह जैसे ‘एचएओएक्स 1337’, ‘नेशनल साइबर क्रू’, और ‘पाकिस्तान साइबर फोर्स’ का नाम सामने आया है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में जिस ‘डांस ऑफ द हिलेरी’ को लेकर चेतावनी जारी की गई है, यह वायरस न केवल पर्सनल, बल्कि बैंकिंग जानकारी तक चुराता है तथा इससे डिवाइस विशेष को भी गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। गौरतलब है कि यह डांस वीडियो नहीं, बल्कि एक मैलवेयर है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आकर्षक नाम और फाइल फॉर्मेट के साथ भेजा गया यह वायरस यूजर्स को धोखा देने के लिए है। व्हाट्सऐप, फेसबुक या टेलिग्राम पर आने वाली वीडियो या दस्तावेज फाइल को खोलते ही यह डिवाइस में चुपके से इंस्टॉल हो जाता है और बैकग्राउंड में एक्टिव होकर नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। बहरहाल, यहां तक सामने आया है कि ‘पाकिस्तान साइबर फोर्स’ नाम के एक एक्स हैंडल ने मिलिट्री इंजीनियर सर्विसेज (MES) और मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (IDSA) के डाटा में सेंधमारी की है। इस साइबर हमले में रक्षा कर्मियों के लॉगिन क्रेडेंशियल्स सहित कई गोपनीय जानकारियों को हासिल करने की कोशिश की गई। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले पाकिस्तानी हैकर्स ने राजस्थान सरकार की तीन वेबसाइटों को भी निशाना बनाया था और उन पर भारत विरोधी संदेश लिख दिए थे। जानकारी के अनुसार पाकिस्तानी साइबर अपराधियों ने राज्य में कई सरकारी वेबसाइटों को निशाना बनाया, जिनमें शिक्षा विभाग के आधिकारिक पोर्टल भी शामिल थे।हैकरों ने स्थानीय स्वशासन विभाग (डीएलबी) और जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) की वेबसाइटों पर हमला किया था और उन पर पाकिस्तान समर्थक प्रचार सामग्री लगा दी थी। हालांकि, बाद में दोनों वेबसाइटों को बहाल कर दिया गया था। कुछ मामलों में, वेबसाइटों को डिफेस (विकृत) किया गया और उन पर पाकिस्तानी झंडे और अल खालिद टैंक की तस्वीरें प्रदर्शित की गईं। अंत में यही कहूंगा कि आज के डिजिटल होते युग में हमें लगातार साइबर अटैक से बचने की आवश्यकता है, क्यों कि आज जिसके पास सूचनाएं हैं,डाटा है, वह सर्वशक्तिमान है। आज हमें तकनीकी रूप से पूर्ण सजग व जागरूक रहना होगा। विशेषकर कर्मचारियों की जागरूकता बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्यों कि साइबर अपराधियों द्वारा हमारे डेटा तक पहुँच प्राप्त करने का सबसे आम तरीका हमारे कर्मचारियों के माध्यम से है। सॉफ्टवेयर और सिस्टम को पूरी तरह अद्यतन रखा जाना आज की महत्ती आवश्यकता है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मोबाइल डिवाइस, टैबलेट और लैपटॉप जो कॉर्पोरेट नेटवर्क से जुड़े होते हैं, और सुरक्षा खतरों तक पहुंच के रास्ते प्रदान करते हैं। इन रास्तों को विशिष्ट एंडपॉइंट सुरक्षा सॉफ़्टवेयर से सुरक्षित करने की आवश्यकता है।अपने नेटवर्क को फ़ायरवॉल के पीछे रखना किसी भी साइबर हमले से खुद को बचाने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है। दरअसल, फ़ायरवॉल सिस्टम हमारे नेटवर्क और/या सिस्टम पर किए गए किसी भी क्रूर हमले को किसी भी तरह के नुकसान से पहले ही रोक देता है।डेटा हानि और गंभीर वित्तीय नुकसान से बचने के लिए हमें अपने डेटा का बैकअप लेना बहुत ही जरूरी और आवश्यक है। इतना ही नहीं, सिस्टम तक पहुंच को भी नियंत्रित किया जाना आवश्यक है। कहना ग़लत नहीं होगा कि परिधि सुरक्षा प्रणाली स्थापित करना साइबर अपराध को रोकने का एक बहुत अच्छा तरीका है, साथ ही सेंधमारी को भी। अपने वाई-फाई नेटवर्क को सुरक्षित रखना और उन्हें छिपाना भी हमारे सिस्टम के लिए सबसे सुरक्षित कामों में से एक है। इसके अलावा, हर कर्मचारी को हर एप्लिकेशन और प्रोग्राम के लिए अपना खुद का लॉगिन चाहिए, जैसा कि एक ही क्रेडेंशियल के तहत कई उपयोगकर्ताओं का जुड़ना हमारे व्यवसाय को जोखिम में डाल सकता है। एडमिन अधिकारों का प्रबंधन तथा मजबूत पासवर्ड तो साइबर सुरक्षा के लिए जरूरी है ही। यदि हम इन सभी पर पर्याप्त ध्यान देंगे तो कोई दोराय नहीं कि हम हमारे स्वयं को और हमारे देश को साइबर हमलों के ख़तरों से न बचा सकें।

सुनील कुमार महला

केट विंसलेट के अभिनय की बारीकियों को उजागर करने वाली 3 फिल्में

–        कल्पना पांडे

केट विंसलेट की सिनेमाई यात्रा कलात्मक विविधता और व्यावसायिक जोखिम लेने की इच्छा का एक सुंदर उदाहरण है। 1994 की फिल्म हेवनली क्रिएचर्स से अपने करियर की शुरुआत करते हुए, उन्होंने निडर होकर चुनौतीपूर्ण फिल्मों का चयन किया। इन फिल्मों में, विंसलेट केवल अभिनय नहीं कर रही थीं, बल्कि वास्तव में पात्रों को जी रही थीं।

जेम्स कैमरून की टाइटैनिक (1997) में रोज़ डेविट बुकाटर के रूप में अपनी रोमांटिक और दुखद भूमिका के बाद, केट विंसलेट रातोंरात वैश्विक प्रसिद्धि प्राप्त कर गईं। इस फिल्म ने भारत सहित कई देशों में अपार लोकप्रियता हासिल की, जहाँ पहले अंग्रेजी फिल्मों का इतना महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ा था। भारतीय दर्शकों के लिए, वह पहली अंग्रेजी अभिनेत्री बन गईं जिन्हें वे दिल से प्यार करते थे। हालांकि, उन्होंने इस नई प्रसिद्धि का उपयोग केवल ब्लॉकबस्टर बैनर फिल्मों को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया; इसके बजाय, उन्होंने छोटी, अधिक जटिल और चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं को चुना जो उन्हें नए और जटिल पात्रों को चित्रित करने की अनुमति देती थीं। टाइटैनिक के बाद, उनका नाम भारत में टाइटैनिक की नायिका के रूप में फैल गया, और उनके भावनात्मक और ईमानदार अभिनय ने उन्हें विशेष रूप से शहरी युवाओं और सिनेमा प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। बाद में, स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और फिल्म समारोहों ने उनकी सूक्ष्म और गहन प्रदर्शनों को वैश्विक मान्यता दिलाई; इटरनल सनशाइन ऑफ द स्पॉटलेस माइंड, द रीडर, और स्टीव जॉब्स में उनकी भूमिकाओं ने उन्हें शैक्षणिक, कलात्मक और फिल्म उत्साही लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया। आज, भारत में, उनकी विरासत को केवल उनकी सुंदरता या स्टारडम के लिए नहीं, बल्कि उनकी चयनात्मक भूमिकाओं और प्रामाणिकता के लिए सम्मान के साथ याद किया जाता है। टाइटैनिक ने भारतीय स्क्रीनों पर भारी सफलता हासिल की, द रीडर जैसी फिल्में समारोहों में प्रदर्शित की गईं, और उनके साक्षात्कार और पुरस्कार समारोह के भाषण भारतीय यूट्यूब चैनलों पर व्यापक रूप से देखे जाते हैं।

श्लिंक के उपन्यास पर आधारित और स्टीफन डाल्ड्री द्वारा निर्देशित, द रीडर (2008) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के जर्मनी में स्थापित एक मार्मिक कहानी है। 15 वर्ष की आयु में, माइकल 30 वर्षीय अकेली महिला हन्ना श्मिट्ज़ (विंसलेट) से दोस्ती करता है, और वे शारीरिक रूप से करीब आ जाते हैं। वे एक-दूसरे के आदी हो जाते हैं। उनकी नियमित बैठकों के दौरान, हन्ना 15 वर्षीय माइकल को किताबें देती है और उसे उन्हें जोर से पढ़ने के लिए कहती है, एक प्रथा जो कई दिनों तक जारी रहती है जब तक कि वह अचानक गायब नहीं हो जाती, जिससे उनका रिश्ता अचानक समाप्त हो जाता है। वर्षों बाद, एक कानून के छात्र के रूप में, माइकल कोर्ट में एक युद्ध अपराध के मुकदमे में भाग लेता है और हन्ना को एक नाजी सुरक्षा गार्ड के रूप में आरोपित देखकर स्तब्ध रह जाता है, जिसने सैकड़ों कैदियों को आग में मरने दिया। फिल्म दो समयरेखाओं में उजागर होती है – 1950 के दशक का भावुक, अवैध रोमांस और 1960 के दशक की कोर्टरूम जांच; और हन्ना की अशिक्षा, जिसे उसने कठोरता से छिपाया था, माइकल (और दर्शकों) को उसकी जटिलता को समझने और अनुभव करने के लिए उसकी व्यक्तित्व को उजागर करती है। जेल में, हन्ना पढ़ना सीखती है, और माइकल उसे खुद के पढ़ने के टेप भेजता है, चुपचाप उनके रिश्ते को पुनर्जनन देता है। कहानी अपराधबोध, शर्म, और होलोकॉस्ट के पीढ़ीगत घावों से जूझती है। विंसलेट का हन्ना श्मिट्ज़ का चित्रण एक शक्तिशाली प्रदर्शन है – एक ऐसा चरित्र जो घृणित और दयनीय दोनों है। वह फिल्म में एक रहस्यमय व्यक्ति के रूप में प्रवेश करती है; उसकी कठोर मुद्रा और कठोर भाषा एक ऐसी महिला को चित्रित करती है जो सशस्त्र और दुनिया से अलग-थलग है, और जैसे-जैसे उसका माइकल के साथ संबंध गहराता है, उसकी हंसी में छिपी मानवीय संवेदनशीलता प्रकट होती है। उसका अभिनय विशेष रूप से कोर्टरूम के दृश्यों में उभरता है – जब हन्ना की अशिक्षा उजागर होती है और वह झूठी रिपोर्टों को चुनौती देने से इंकार करती है, विंसलेट का चेहरा शर्म और अवज्ञा के साथ बदल जाता है, जो शब्दों से परे एक संदेश व्यक्त करता है। बाद में, जेल में, उसकी वृद्ध उपस्थिति और माइकल द्वारा भेजे गए शांत टेप उसके अतीत के साथ उसके संघर्ष का प्रतीक हैं। विंसलेट ने हन्ना को इतनी मानवीय रूप से चित्रित किया कि उन्होंने 2009 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर जीता, जिससे नैतिक रूप से चुनौतीपूर्ण विषयों को संभालने में उनकी कुशलता साबित हुई। इस भूमिका के लिए, उन्होंने सावधानीपूर्वक तैयारी की – हन्ना की उम्र को उचित रूप से चित्रित करने के लिए बुजुर्ग महिलाओं के व्यवहार का अध्ययन किया और एक जर्मन उच्चारण में महारत हासिल की, जिससे उनके प्रदर्शन को प्रामाणिकता मिली। उन्होंने होलोकॉस्ट के गवाहों का अध्ययन करके हन्ना की मानसिकता की खोज की, ऐतिहासिक संदर्भ को व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक आयामों के साथ संतुलित किया।

केट की रिवोल्यूशनरी रोड उपनगरीय निराशा को चित्रित करती है। सैम मेंडेस द्वारा निर्देशित और रिचर्ड येट्स के 1961 के उपन्यास पर आधारित, यह 1950 के दशक के जटिल शहरी वातावरण में रहने वाले एक असंतुष्ट दंपति, फ्रैंक और एप्रिल व्हीलर के जीवन पर केंद्रित है। फ्रैंक (डिकैप्रियो) एक कार्यालय की नौकरी में काम करता है, जबकि एप्रिल (विंसलेट), एक पूर्व अभिनेत्री, गृहिणी की भूमिका में फंसी हुई महसूस करती है। अधिक समृद्ध और आनंदमय जीवन का सपना देखते हुए, एप्रिल पेरिस जाने का प्रस्ताव रखती है, जिसे फ्रैंक पहले तो स्वीकार करता है लेकिन बाद में सामाजिक दबाव के कारण वापस ले लेता है। इससे उनके विवाह में विस्फोटक तर्क और अनकही क्रोध उत्पन्न होता है, जिससे पति-पत्नी के बीच दरार पैदा होती है, और एप्रिल की तीसरी गर्भावस्था को समाप्त करने का हताश प्रयास – एक निर्णय जो उसकी मृत्यु की ओर ले जाता है। फिल्म फ्रैंक के अपने खोखले भावनाओं में पीछे हटने के साथ समाप्त होती है। रिवोल्यूशनरी रोड अमेरिकी सपने की एक तीखी आलोचना है, जो मध्य-शताब्दी के आशावाद के नीचे की नाजुकता को उजागर करती है। एप्रिल व्हीलर के रूप में, विंसलेट एक अथक तीव्रता का प्रदर्शन देती हैं। शुरुआत से ही, वह एप्रिल को एक ऐसी महिला के रूप में चित्रित करती हैं जिसकी उज्ज्वल मुस्कान निराशा और असंतोष को छिपाती है। विंसलेट की शारीरिक भाषा – एप्रिल की बेचैन चाल और मुट्ठी बांधना – उसके घरेलू जेल में फंसे होने की भावना को व्यक्त करती है। फिल्म के सबसे मनोरंजक क्षण फ्रैंक के साथ तर्कों में होते हैं, जहाँ विंसलेट खुलकर क्रोध और दुःख व्यक्त करती हैं। उसके गर्भपात के निर्णय और कार्रवाई का दृश्य सुन्न कर देने वाला है। विंसलेट न्यूनतम संवाद के साथ एप्रिल की शांत दृढ़ संकल्प और बाद के दर्द को प्रस्तुत करती हैं। डिकैप्रियो के साथ उनकी केमिस्ट्री, जो टाइटैनिक में उनके पहले सहयोग की याद दिलाती है, उनके बिगड़ते रिश्ते की प्रामाणिकता को रेखांकित करती है। विंसलेट के प्रदर्शन ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए गोल्डन ग्लोब पुरस्कार दिलाया।

टाइटैनिक, द रीडर, और रिवोल्यूशनरी रोड की कथाओं की तुलना करने पर पता चलता है कि प्रत्येक कहानी मानवीय संबंधों, परिवर्तन, और सामाजिक कठिनाइयों को अलग-अलग दृष्टिकोणों से प्रतिबिंबित करती है। टाइटैनिक एक ऐतिहासिक रोमांस है जो आपदा की पृष्ठभूमि में स्थापित है; यह रोज़ के एक दमित सामाजिकता से स्वतंत्रता का अनुभव करने वाले व्यक्ति में परिवर्तन की कहानी है, जो उदासीन स्मृति के माध्यम से बताई गई है, जिसमें वर्ग, स्वतंत्रता, और सशक्तिकरण के विषय शामिल हैं। दूसरी ओर, द रीडर एक अंतरंग फिल्म है जो हन्ना और माइकल के रिश्ते के व्यक्तिगत और नैतिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करती है; इसकी गैर-रैखिक कथा अतीत के रोमांस को वर्तमान परिणामों के साथ जोड़ती है, जो अपराधबोध, साक्षरता, और होलोकॉस्ट की विरासत के विषयों द्वारा संचालित है, जो दर्शकों के लिए असुविधाजनक प्रश्न उठाती है। इस बीच, रिवोल्यूशनरी रोड एक घरेलू त्रासदी है जो एक दंपति की कहानी के उजागर होने पर आधारित है; इसकी रैखिक और क्लॉस्ट्रोफोबिक कथा फ्रैंक और एप्रिल के आशा से निराशा की ओर उतरने का पता लगाती है, जिसमें अनुरूपता, अधूरे सपने, और लिंग भूमिकाओं के विषय सामाजिक मोहभंग का सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत करते हैं। अपनी विभिन्नताओं के बावजूद, तीनों फिल्में महिलाओं की फंसी हुई स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करती हैं – जैसे टाइटैनिक में रोज़, द रीडर में हन्ना, और रिवोल्यूशनरी रोड में एप्रिल – और प्रत्येक कहानी मुक्ति के प्रयासों की खोज करती है: रोज़ जैक के माध्यम से, हन्ना साक्षरता के माध्यम से, और एप्रिल पेरिस के अपने सपने के माध्यम से। विंसलेट के पात्र पहचान, स्वायत्तता, और सामाजिक अपेक्षाओं के साथ संघर्ष करते हैं, जिससे उनका अभिनय इन कथाओं के लिए एक आदर्श माध्यम बन जाता है।

विंसलेट की अभिनय कौशल को बहुमुखी प्रतिभा में मास्टरक्लास के रूप में मान्यता प्राप्त है। उनकी भावनात्मक प्रामाणिकता उनकी पहचान है; टाइटैनिक में, रोज़ के दुःख को अत्यधिक तीव्रता के साथ व्यक्त किया गया है, द रीडर में, हन्ना की शर्म स्पष्ट है, और रिवोल्यूशनरी रोड में, एप्रिल की निराशा गहराई से महसूस की जाती है। वह नाटकीयता और अतिशयोक्ति पर पात्र की सूक्ष्मता को प्राथमिकता देती हैं, जिससे पात्रों की आंतरिक भावनाएँ स्वाभाविक रूप से उजागर होती हैं। उनकी शारीरिकता और अभिव्यक्तियाँ भी अद्वितीय हैं; शारीरिक भाषा का उनका सटीक उपयोग रोज़ की विकसित मुद्रा के माध्यम से मुक्ति को दर्शाता है, कठोरता के माध्यम से हन्ना की कमजोरी को छिपाता है, और तनाव के माध्यम से एप्रिल की बेचैनी का संकेत देता है। विंसलेट की अभिव्यक्तियों की एक विशेष विशेषता उनकी आँखें हैं, जो अक्सर शब्दों से अधिक बोलती हैं। उनकी स्वर की महारत – प्रत्येक भूमिका के लिए उपयुक्त आवाज का उपयोग करना, जैसे रोज़ के लिए उच्चभ्रू उच्चारण, हन्ना के लिए कठोर जर्मन उच्चारण, और एप्रिल के लिए तनावपूर्ण तीक्ष्णता – उनके पात्रों को अधिक विश्वसनीय और भावनात्मक बनाती है। उनकी समर्पण अत्यधिक सराहनीय है; टाइटैनिक के लिए, उन्होंने बर्फीले पानी को सहन किया, द रीडर के लिए, उन्होंने होलोकॉस्ट उत्तरजीवियों की कहानियों को समझा, और रिवोल्यूशनरी रोड के लिए, उन्होंने 1950 के दशक की लिंग गतिशीलता का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया। ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री की बात करें तो, दो फिल्मों में डिकैप्रियो के साथ और द रीडर में क्रॉस के साथ उनके प्रदर्शन उनके प्रभाव को और मजबूत करते हैं, जिससे प्रत्येक कहानी अधिक प्रमुख बन जाती है। विंसलेट के बहुमुखी करियर और दर्शकों पर उनके गहरे प्रभाव स्पष्ट हैं; सात ऑस्कर नामांकन, एक जीत, और कई अन्य पुरस्कारों के साथ, वह आलोचकों की पसंदीदा हैं। उनकी कई गुणवत्ता वाली फिल्मों में, ये तीन फिल्में उनके अभिनय कौशल से चमकती हैं, जो उन्हें अविस्मरणीय बनाती हैं।

कल्पना पांडे

मानव सभ्यता का शिखर एवं रिश्तों का स्वर्ग है परिवार

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अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस, 15 मई 2025
  ललित गर्ग

वैश्विक परिवार दिवस दुनिया भर के लोगों में प्यार, सद्भाव, एकता को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित विश्व उत्सव है। संयुक्त राष्ट्र ने परिवारों के महत्व और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन की स्थापना की। परिवार हमें एकसूत्रता में बांधता है, रिश्तों की अहमियत को गहराई से समझाता है, सभी पारिवारिकजनों में प्यार बढ़ाता है। हमें एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने और हमारे भावनात्मक संबंधों को मजबूत करते हुए बेहतर इंसान बनाने में करता है। संयुक्त राष्ट्र ने माना कि बदलती आर्थिक और सामाजिक संरचनाएं दुनियाभर में पारिवारिक इकाइयों को प्रभावित कर रही हैं, इसलिए, 1993 में इसने आधिकारिक तौर पर 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में घोषित किया। जैसाकि दुनिया दोहा, कतर में 4-6 नवंबर 2025 में सामाजिक विकास के लिए दूसरे विश्व शिखर सम्मेलन की तैयारी कर रही है, तब अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस सतत विकास को आगे बढ़ाने में परिवार-उन्मुख नीतियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालेगा, जो गरीबी उन्मूलन, सभ्य कार्य और सामाजिक समावेशन के प्रति प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होगा। ‘सतत विकास के लिए परिवार-उन्मुख नीतियांः सामाजिक विकास के लिए दूसरे विश्व शिखर सम्मेलन की ओर’ थीम के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पहलों से महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि को उजागर किया जाएगा, जिसमें सतत विकास के लिए प्रौद्योगिकीय परिवर्तन, जनसांख्यिकीय बदलाव, शहरीकरण, प्रवासन और जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी प्रवृत्तियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय विकास एजेंडा में परिवार-केंद्रित नीतियों को एकीकृत करने के महत्व पर जोर दिया जाएगा। परिवार में रिश्तों की एक मज़बूत डोर होती है, सहयोग के अटूट बंधन होते हैं, एक-दूसरे की सुरक्षा के वादे और इरादे होते हैं। हमारा यह फ़र्ज़ है कि इस रिश्ते की गरिमा को बनाए रखें। हमारी संस्कृति एवं परंपरा में पारिवारिक एकता पर हमेशा से बल दिया जाता रहा है। प्राणी जगत एवं सामाजिक संगठन में परिवार सबसे छोटी इकाई है। परिवार के अभाव में मानव समाज के संचालन की कल्पना भी दुष्कर है, प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य होकर ही अपनी जीवन यात्रा को सुखद, समृद्ध, विकासोन्मुख बना पाता है। उससे अलग होकर उसके अस्तित्व को सोचा नहीं जा सकता है। हमारी संस्कृति और सभ्यता अनेक परिवर्तनों से गुजर कर अपने को परिष्कृत करती रही है, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में पल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि एवं जीवन की परिपूर्णता-सार्थकता अनुभव करते हैं। परिवार का महत्व न केवल भारत में बल्कि दुनिया में सर्वत्र है।
आधुनिक समाज में परिवार का विघटन आम बात हो चुकी है। ऐसे में परिवार न टूटे इस मिशन एवं विजन के साथ अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। परिवार के बीच में रहने से आप तनावमुक्त व प्रसन्नचित्त रहते हैं, साथ ही आप अकेलेपन या डिप्रेशन के शिकार भी नहीं होते, यही नहीं परिवार के साथ रहने से आप कई सामाजिक बुराइयों से अछूते भी रहते हैं। परिवार दो प्रकार के होते हैं- एक एकल परिवार और दूसरा संयुक्त परिवार। एकल परिवार में पापा-मम्मी और बच्चे रहते हैं। संयुक्त परिवार में पापा-मम्मी, बच्चे, दादा दादी, चाचा, चाची, बड़े पापा, बड़ी मम्मी, बुआ इत्यादि रहते हैं। संयुक्त परिवार टूटने एवं बिखरने की त्रासदी को भोग रहे लोगों के लिये यह दिवस बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तव में मानव सभ्यता की अनूठी पहचान है संयुक्त परिवार और वह जहां है वहीं स्वर्ग है। रिश्तों और प्यार की अहमियत को छिन्न-भिन्न करने वाले पारिवारिक सदस्यों की हरकतों एवं तथाकथित आधुनिकतावादी सोच से जहां बुढ़ापा कांप उठता है, वहीं बच्चों की दुनिया को भी बहुत सारे आयोजनों से बेदखल कर दिया है। दुख सहने और कष्ट झेलने की शक्ति जो संयुक्त परिवारों में देखी जाती है वह एकल रूप से रहने वालो में दूर-दूर तक नहीं होती है। आज के अत्याधुनिक युग में बढ़ती महंगाई और बढ़ती जरूरतों को देखते हुए संयुक्त परिवार समय की मांग कहे जा सकते हैं।
भारत गांवों का देश है, परिवारों का देश है, शायद यही कारण है कि न चाहते हुए भी आज हम विश्व के सबसे बड़े जनसंख्या वाले राष्ट्र के रूप में उभर चुके हैं और शायद यही कारण है कि आज तक जनसंख्या दबाव से उपजी चुनौतियों के बावजूद, एक ‘परिवार’ के रूप में, जनसंख्या नीति बनाये जाने की जरूरत महसूस नहीं की। ईंट, पत्थर, चूने से बनी दीवारों से घिरा जमीं का एक हिस्सा घर-परिवार कहलाता है जिसके साथ ‘मैं’ और ‘मेरापन’ जुड़ा है। संस्कारों से प्रतिबद्ध संबंधों की संगठनात्मक इकाई उस घर-परिवार का एक-एक सदस्य है। हर सदस्य का सुख-दुख एक-दूसरे के मन को छूता है। प्रियता-अप्रियता के भावों से मन प्रभावित होता है। घर-परिवार जहां हर सुबह रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा की समुचित व्यवस्था की जुगाड़ में धूप चढ़ती है और आधी-अधूरी चिंताओं का बोझ ढोती हुई हर शाम घर-परिवार आकर ठहरती है। कभी लाभ, कभी हानि, कभी सुख, कभी दुख, कभी संयोग, कभी वियोग, इन द्वंद्वात्मक परिस्थितियों के बीच जिंदगी का कालचक्र गति करता है। आदमी की हर कोशिश ‘घर-परिवार’ बनाने की रहती है। सही अर्थों में घर-परिवार वह जगह है जहां स्नेह, सौहार्द, सहयोग, संगठन सुख-दुख की साझेदारी, सबमें सबक होने की स्वीकृति जैसे जीवन-मूल्यों को जीया जाता है। जहां सबको सहने और समझने का पूरा अवकाश है। अनुशासन के साथ रचनात्मक स्वतंत्रता है। निष्ठा के साथ निर्णय का अधिकार है। जहां बचपन सत्संस्कारों में पलता है। युवकत्व सापेक्ष जीवनशैली से जीता है। वृद्धत्व जीए गए अनुभवों को सबके बीच बांटता हुआ सहिष्णु और संतुलित रहता है। ऐसा घर-परिवार निश्चित रूप से पूजा का मंदिर बनता है।
परिवार एक संसाधन की तरह होता है। फिर क्या कारण है कि आज किसी भी घर-परिवार के वातायन से झांककर देख लें-दुख, चिंता, कलह, ईर्ष्या, घृणा, पक्षपात, विवाद, विरोध, विद्रोह के साये चलते हुए दीखेंगे। अपनों के बीच भी परायेपन का अहसास पसरा हुआ होगा। विचारभेद मनभेद तक पहुंचा देगा। विश्वास संदेह में उतर आएगा। ऐसी अनकही तनावों की भीड़ में आदमी सुख के एक पल को पाने के लिए तड़प जाता है। कोई किसी के सहने/समझने की कोशिश नहीं करता। क्योंकि उस घर-परिवार में उसके ही अस्तित्व के दायरे में उद्देश्य, आदर्श, उम्मीदें, आस्था, विश्वास की बदलती परिधियां केंद्र को ओझल कर भटक जाती हैं। विघटन शुरू हो जाता है। भारतीय परिवार में परिवार की मर्यादा और आदर्श परंपरागत है। विश्व के किसी अन्य समाज़ में गृहस्थ जीवन की इतनी पवित्रता, स्थायीपन, और पिता-पुत्र, भाई-भाई और पति-पत्नी के इतने अधिक व स्थायी संबंधों का उदाहरण प्राप्त नहीं होता। विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों, जातियों में सम्पत्ति के अधिकार, विवाह और विवाह विच्छेद आदि की प्रथा की दृष्टि से अनेक भेद पाए जाते हैं, किंतु फिर भी ‘संयुक्त परिवार’ का आदर्श सर्वमान्य है। अधिकतर परिवार में तीन पीढ़ियों और कभी कभी इससे भी अधिक पीढ़ियों के व्यक्ति एक ही घर में, अनुशासन में और एक ही रसोईघर से संबंध रखते हुए सम्मिलित संपत्ति का उपभोग करते हैं और एक साथ ही परिवार के धार्मिक कृत्यों तथा संस्कारों में भाग लेते हैं। मुसलमानों और ईसाइयों में संपत्ति के नियम भिन्न हैं, फिर भी संयुक्त परिवार के आदर्श, परंपराएं और प्रतिष्ठा के कारण इनका सम्पत्ति के अधिकारों का व्यावहारिक पक्ष परिवार के संयुक्त रूप के अनुकूल ही होता है। संयुक्त परिवार का कारण भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त प्राचीन परंपराओं तथा आदर्श में निहित है। रामायण और महाभारत की गाथाओं द्वारा यह आदर्श जन-जन में संप्रेषित है। इंसानी रिश्तों एवं पारिवारिक परम्परा के नाम पर उठा जिन्दगी का यही कदम एवं संकल्प कल की अगवानी में परिवार के नाम एक नायाब तोहफा होगा।

मोदी-उद्बोधन जागृत राष्ट्र के हौसलों की उड़ान

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  ललित गर्ग 

ऑपरेशन सिंदूर, पाकिस्तान के जवाबी हमले तथा युद्ध विराम के बाद राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कड़े एवं स्पष्ट शब्दों में न केवल पाकिस्तान को चेताया बल्कि उसको उसकी जमीन भी दिखायी। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ़ भारत की प्रखर एवं प्रभावी नीति को पूरी दुनिया के सामने बड़ी स्पष्टता और दृढ़ता के साथ रखा। उनका संबोधन न केवल भारत की भावना की अभिव्यक्ति है, बल्कि यह हमारे देश के सैन्य, कूटनीतिक, नैतिक बल की प्रस्तुति एवं दो सौ अस्सी करोड़ तनी हुई मुट्ठियों की चेतावनी भी है। यह कोरा उद्बोधन नहीं, बल्कि एक जागृत राष्ट्र के साहस एवं हौसलों की उड़ान है। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में नई लकीर खींची और नये पैमाने तय किये। पाकिस्तान की समझौते की गुहार को भी सुना, एक बड़े मकसद और व्यापक हित में भारत ने शांति की राह चुनी। पहले से ही युद्धों में उलझे विश्व के लिए भारत का यह कदम आशा एवं उम्मीद की बहुत बड़ी किरण है। लेकिन पाकिस्तान पर एक्शन सिर्फ स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं। 22 मिनट का यह संबोधन पाकिस्तान के लिये एक सीख भी है और सबक भी। साथ ही यह एक विशाल एवं विराट इतिहास को समेटे हुए नये भारत के नये संकल्पों की सार्थक प्रस्तुति है।  
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी साफ़ कर दिया है कि भविष्य में अगर पाकिस्तान से कभी बात होगी तो केवल आतंकवाद और पीओके पर ही बात होगी। उन्होंने कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि टेरर और टॉक, टेरर और ट्रेड एक साथ नहीं हो सकते। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेनाओं के शौर्य और पराक्रम की भी उन्होंने खुल कर सराहना की एवं वीरगाथा सुनाई है। भारतीय सेनाओं पर जहां पूरे देश को नाज है, वहीं प्रधानमंत्री के सशक्त नेतृत्व पर समूचे देश को भरोसा है और आज हमारा देश समृद्धशाली और शक्तिशाली होने के साथ ही विकसित भारत के रूप में तेजी से उभर रहा है। प्रत्येक भारतीय की सुरक्षा हमारी सर्वाेच्च प्राथमिकता है। आतंकवाद के समूल नाश के लिए हमारी सरकार कटिबद्ध है। सिंदूर पोंछने का अंजाम अब हर आतंकी को पता चल गया है। मोदी ने साफ किया कि अब वो दौर चला गया जब भारत परमाणु हमले के नाम पर ब्लैकमेल होता था। अब अगर फिर से हमला हुआ तो पाकिस्तान व आतंकवादियों को अलग-अलग नहीं देखा जाएगा। आतंक की जड़ों पर फिर से प्रहार किया जाएगा और इस बार का प्रहार विनाशकारी एवं विध्वंसक होगा।
पाकिस्तान द्वारा पोषित एवं पल्लवित आतंकवाद उसी के सर्वनाश का कारण बनेगा। पाक को बचना है तो उसे आतंकी ढांचे नष्ट करने होंगे। उन्होंने कहा कि हमारी मिसाइले एवं ड्रोन ने पाक में न सिर्फ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया बल्कि इसके साथ सौ से अधिक खुंखार आतंकियों को भी मार गिराया। पाक में आतंकवादियों के लिये जो जगह एवं संवेदनाएं हैं, उसको दुनिया ने भी देखा। भारत की सर्जिकल स्ट्राइक में मरे दुर्दांत आतंकवादियों को अंतिम विदाई देने को पाक सेना के बड़े अधिकारी उतावले थे। पिछले तीस में पाकिस्तान ने आतंकवाद की फसल को सींचने के लिये जो संरचना अपने देश में तैयार की है, उससे निकले आतंकवादियों ने भारत को ही बार-बार लहूलुहान नहीं किया बल्कि ब्रिटेन तथा अमेरिका के 9/11 जैसे हमलों को दुनिया के दूसरे हिस्सों में अंजाम दिया है। मोदी ने स्पष्ट किया कि पहलगाम आतंकी हमले में धर्म पूछकर निर्दाेष पर्यटकों की हत्या करने वाले आतंकवादी भारतीय समाज के साम्प्रदायिक सौहार्द एवं समरसता को नुकसान पहुंचाने में पूरी तरह विफल रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने साहस एवं निर्भीकता से पाक की आतंकी मानसिकता को दुनिया के सामने उजागर किया। आतंक की सरपरस्त सरकार और आतंक के आकाओं को अलग-अलग नहीं देखा जाएगा। बुद्ध पूर्णिमा के दिन देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने साफ किया है कि यह युग युद्ध का नहीं है, लेकिन आतंकवाद का भी नहीं है। भारत सदियों से बुद्ध की संस्कृति व विचारों का पक्षधर रहा है। लेकिन शांति का रास्ता शक्ति के रास्ते से ही होकर जाता है और भारत ने अपनी शक्ति को दिखाते हुए न केवल पाकिस्तान को पस्त किया बल्कि दुनिया को चौंकाया भी है। बिना लाग-लपेट के प्रधानमंत्री ने साफ किया कि भारतीय शांति की नीति को कमजोरी न माना जाए, वक्त आने पर हम शक्ति दिखाने से भी नहीं चूकेंगे। अंधेरों को चीर कर उजाला की ओर बढ़ते भारत की महान यात्रा के लिये सबके जागने, संकल्पित होने एवं आजादी के अमृतकाल काल को अमृतमय बनाने के लिये दृढ़ मनोबली एवं सकारात्मक होने का आह्वान है।
मोदी ने भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा को सराहते हुए कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक ने बता दिया है कि भारत आधुनिक तकनीक से युद्ध के लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम है। भारत ने स्वदेशी प्रयासों व आत्मनिर्भरता के संकल्प के साथ देश को सुरक्षा कवच देने में कामयाबी हासिल की है। ये तकनीकें इक्कीसवीं सदी की सामरिक चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हैं। पाक द्वारा विश्व शक्तियों से हासिल मिसाइलों व ड्रोन को भारतीय वायु प्रतिरक्षा तंत्र ने जिस तरह नाकाम किया, उसने भारत के रक्षा उत्पादों की विश्वसनीयता पर मोहर लगाई है। हम न्यू इरा के वारफेयर मानकों की कसौटी पर खरे उतरे हैं। जो मेड इन इंडिया हथियारों की विश्वसनीयता को वैश्विक स्तर पर स्थापित करेगा। हमें आने वाले कल के लिए संघर्ष करना है। हमें विश्व की ओर ताकने की आदत छोड़नी होगी, राजनीतिक संकीर्णता से भी ऊपर उठना होगा, जिन्हें भारत पर विश्वास है, अपनी संस्कृति, अपनी बुद्धि और विवेक पर अभिमान है, उन्हें कहीं अंतर में अपनी शक्ति का भान है, वे जानते हैं कि भारत आज पीछे पीछे चलने की मानसिकता से मुक्ति की ओर कदम बढ़ा चुका है और ये स्थितियां हमने पाक के खिलाफ एक्शन में देख ली है।
मोदी ने भारतीय समाज में एकजुटता को अपरिहार्य बताया और कहा कि जब हमारी संप्रभुता और नागरिकों के जीवन पर संकट आएगा तो मुंहतोड़ जवाब जरूर दिया जाएगा। उन्होंने देश के लोगों को भरोसा दिलाया कि भारतीय सेना और सुरक्षा बल किसी भी चुनौती के मुकाबले के लिये तैयार हैं। तब तक तैयार रहेंगे जब तक आतंक के अड्डे खंडहरों में तब्दील नहीं हो जाते। सीमाओं पर शांति इस बात पर निर्भर करेगी कि पाक आतंकवाद को लेकर क्या रवैया अपनाता है। उन्होंने देश की माता-बहनों और बेटियों को आश्वस्त किया कि सरकार का ऑपरेशन सिंदूर उनकी अस्मिता व सुरक्षा के लिये समर्पित था। उस पर किसी कीमत पर आंच नहीं आने दी जाएगी। यह उद्बोधन भारत की भावी सुरक्षित एवं सशक्त दशा-दिशा रेखांकित करते हुए उसे विश्व की महाताकत बनाने का आह्वान है। यह शांति का उजाला, समृद्धि का राजपथ, उजाले का भरोसा एवं महाशक्ति बनने का संकल्प है।
मोदी ने अपने इस संबोधन से अनेक निशाने साधे हैं। उनके अनुसार 2047 तक विकसित मुल्क बनाने के लिए पूरी जी-जान लगाकर दौड़ना होगा। पाक एवं क्षेत्रीय अस्थिरता इसमें बड़ी बाधा है, और भारत ने फिलहाल इसका इलाज कर दिया है। पाकिस्तान तक सख्त संदेश पहुंच चुका है। इस टकराव के आगे न बढ़ने और भारत के फिर से अपने लक्ष्य की ओर चलने से विश्व राजनीति एवं आर्थिक विकास में नई आशा का संचार हुआ है। मोदी के पाक के खिलाफ एक्शन को स्थगित करने की खुशखबरी के साथ दुनिया में दो बड़ी सकारात्मक खबरे भी आशा की किरण बनी। एक आशा की किरण है अमेरिका और चीन के बीच जारी टैरिफ वॉर का टल जाना, दूसरी किरण तीन साल से ज्यादा समय से युद्ध में उलझे रूस और यूक्रेन में सुलह के लिये दोनों देशों के बीच पहली बार सीधी बातचीत होना। यूक्रेन युद्ध, टैरिफ वॉर और भारत-पाक तनाव ने दुनिया को गंभीर संकट में डाल दिया था। तीनों मोर्चों पर आई सकारात्मक खबरों का असर भारत सहित दुनिया के शेयर बाजारों में आया उछाल है। इनके चलते भारत में नीतिगत स्थिरता, बेहतर समन्वय और ईज आफ डूइंग बिजनेस की स्थिति भी पुनः रफ्तार पकडेगी। ताजा घटनाक्रम से भारत एक आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर एवं सशक्त राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है।

‘गोपनीय जानकारी’ बनी सीजफायर का आधार

गाजियाबाद (ब्यूरो डेस्क ) जब हम केंद्र की मोदी सरकार की कथित युद्धविराम पर सहमति की बात कर रहे हैं तो कई बातों को स्मृति में रखना आवश्यक है। कथित युद्धविराम को भारत के लिए निराशा के रूप में परोसने से पहले हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान से जो देश के प्रधानमंत्री ने कहा था कि "भीतर घुस के मारेंगे " और उसे जिस प्रकार हमारी सेना ने करके दिखाया है, उससे एक बहुत बड़ा संदेश पाकिस्तान के लिए गया है कि भारत भीतर घुस के मारता है। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव है, जिसे पाकिस्तान गहराई से अनुभव कर गया है। उसे पता चल गया है कि यदि तुम भारत के सिंदूर के साथ खिलवाड़ करोगे तो भारत तुम्हारा क्या हाल कर सकता है ? इसी संदर्भ में हमें यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि भारत इस समय पाकिस्तान के एक आतंकवादी जनरल असीम मुनीर के निशाने पर था। जो स्वयं में एक जिहादी है। उसने भारत पर आक्रमण करने से पहले नमाज अदा की थी और कुरआन की उन आयतों का पाठ किया था, जिनमें काफिर और कुफ्र को मिटाने वालों पर अल्लाह के मेहरबान होने का उल्लेख है। इस प्रकार वहां के आतंकवादी जनरल ने भारत के साथ जो कुछ भी किया था, वह जिहाद की भावना से प्रेरित होकर किया था। असीम मुनीर के इस प्रकार के आचरण की निंदा अब पाकिस्तान में ही टीवी चैनलों पर की जा रही है। ऐसे सेना अध्यक्षों के नेतृत्व में कोई भी देश लफंगा और आतंकवादी देश ही बन सकता है, इसके तरीके कुछ भी नहीं। इसलिए पाकिस्तान अपने आचरण और व्यवहार में पूर्ण रूपेण लफंगा बन चुका था। जिसे अब भारत की सरकार और  सेना ने सोचने पर विवश किया है।

कई लोग थे जो प्रधानमंत्री श्री मोदी के साथ राजनीतिक तौर पर इस युद्ध से पहले साथ नहीं थे। उन्होंने देश की राजनीतिक परिस्थितियों के दृष्टिगत ‘मजबूरी’ में यह निर्णय लिया कि वह देश की केंद्र सरकार के साथ खड़े होकर इस बात का समर्थन करते हैं कि सरकार और सेना पाकिस्तान के विरुद्ध जो कुछ भी करेगी, हम उस पर अपनी पूर्ण सहमति प्रदान करते हैं। अब यह सरकार पर निर्भर था कि वह पाकिस्तान के साथ कड़ाई से पेश आए। जब प्रधानमंत्री मोदी इस विषय पर निर्णय लेने में थोड़ा सा विलंब कर रहे थे, तभी भारत के विपक्षी दलों में से कई ने यह कहना आरंभ कर दिया था कि जब हम सब साथ हैं तो प्रधानमंत्री त्वरित निर्णय क्यों नहीं ले रहे हैं ? उस समय देश के कई राजनीतिक दल प्रधानमंत्री द्वारा निर्णय लेने में हो रहे कथित विलंब पर आलोचना कर रहे थे और जब निर्णय ले लिया गया तो फिर कई राजनीतिक मनीषी इस बात को लेकर चर्चा करते दिखाई दिए कि भारत को हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए। कई स्थानों पर इस बात को लेकर झंडा लहराए गए कि हम युद्ध नहीं चाहते। अब ‘युद्ध’ रुक गया है तो ‘यही युद्ध न चाहने वाले’ इस बात को लेकर विरोध करेंगे कि युद्ध किया क्यों नहीं गया ? पाकिस्तान से पूरा हिसाब होना चाहिए था। ऐसी सोच को आप क्या कहेंगे ?
केंद्र की मोदी सरकार ने अचानक कथित युद्धविराम पर अपनी सहमति प्रदान कर कितना सही किया और कितना गलत किया या ऐसा करने के लिए वह क्यों मजबूर हुई ? – इस पर कोई टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी होगी। अभी बहुत कुछ स्पष्ट होना शेष हैं। लोगों के मन मस्तिष्क में कुछ प्रश्न इस समय कुलबुला रहे हैं । जैसे कि सिंधु जल संधि की स्थिति इस युद्धविराम के बाद क्या होगी ? इस पर भारत सरकार ने कह दिया है कि इस संधि को उस समय तक स्थगित रखा जाएगा जब तक पाक अधिकृत कश्मीर भारत को नहीं मिल जाता है, साथ ही पाकिस्तान उन आतंकवादियों को भारत को नहीं सौंप देता है जो भारत की क्षेत्रीय एकता और अखण्डता के लिए खतरे पैदा करते रहे हैं या आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित रहकर भारत को अस्थिर करने का प्रयास करते रहे हैं।
इसी प्रकार का दूसरा प्रश्न है कि पाक अधिकृत कश्मीर में सक्रिय आंदोलन को हम किस प्रकार अपने पक्ष में ला सकते हैं ? तीसरा प्रश्न है कि ‘बलूच लिबरेशन आर्मी’ के आंदोलन से हम अपने राष्ट्रीय हितों को साधते हुए किस प्रकार का लाभ उठा सकते हैं ? वास्तव में इन दोनों प्रश्नों पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।यह सब अभी देखने की बातें हैं। यदि आज किसी ‘ बड़े और अप्रत्याशित विनाश’ से बचने के लिए सरकार ने इस युद्ध विराम पर अपनी सहमति प्रदान कर कल को पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने और पाकिस्तान में बलूचिस्तान को अलग करवाने में सफलता प्राप्त कर ली तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। महाभयंकर विनाश की अपेक्षा बहुत सधे हुए दृष्टिकोण से देश और दक्षिण एशिया को बचाने के लिए तब इस युद्ध विराम के समझौते को ‘ विवेकपूर्ण ‘ कहा जा सकेगा।
इस युद्धविराम के संदर्भ में हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि पाकिस्तान एक युद्धोन्मादी देश है । उसका वर्तमान नेतृत्व नपुंसक है और सेना उसके पीछे खड़ी हुई उसे भयभीत कर रही है। वह भारत से भी डर रहा था और अपनी सेना से भी डर रहा था। पाकिस्तान का वही ‘ मुगलिया स्टाइल’ वाला इतिहास है जो हिंसाग्रस्त राजनीति का शिकार रहा है। इस देश में शासक बनने के बाद लोग अधिक भयभीत होते हैं, जबकि भारत में शासक बनने पर लोग सुरक्षित हो जाते हैं।
इसका अर्थ है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों का बोलबाला रहता है। इसलिए कोई भी प्रधानमंत्री न्यायसंगत बात नहीं कह पाता। वहां का वर्तमान नेतृत्व अपनी सीमाओं को जानता है। वह यह भी भली प्रकार जानता है कि यदि उसने थोड़ा सा भी भारत के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया तो उसका अंजाम क्या होगा ? उससे यह भी अपेक्षा की जा सकती है कि वह भारत के विरुद्ध परमाणु बम के प्रयोग तक की बात ना सोचे, परन्तु जिहादियों के साथ मिलकर सरकार के पीछे खड़ी सेना वहां की सरकारों को ऐसा कभी करने या सोचने देगी, इसमें संदेह है। जिहादियों, आतंकवादियों और पाकिस्तान की सेना के लिए भारत काफिरों का देश है। पाकिस्तान में राजनीति के पीछे सदा सक्रिय रहे इस अवैधानिक, अनैतिक और दानवीय गठबंधन की मान्यता है कि यदि काफिरों के विरुद्ध जिहाद के नाम पर परमाणु बम का भी प्रयोग किया जा सके तो कर लेना चाहिए।
इस पर प्रधानमंत्री मोदी के आलोचक कह सकते हैं कि यदि पाक हमारे देश के विरुद्ध परमाणु बम का प्रयोग करता है तो हमारे पास भी तो परमाणु बम है । हम भी उसे निपटा सकते थे । माना कि हमारा भारी विनाश होता, परन्तु हम तो उसे सदा के लिए ही समाप्त कर देते । यह तर्क सुनने और देने में अच्छा लगता है पर इसकी अपनी सीमाएं हैं। यदि पाकिस्तान हमारे देश के किसी भी शांत क्षेत्र में परमाणु बम गिराकर करोड़ों लोगों को मार डालता और उसके पश्चात हम पाकिस्तान को मिटाने के लिए आगे बढ़ते तो हमारे गुजरात, राजस्थान, पंजाब, जम्मू क्षेत्र सहित उन सारे सीमावर्ती क्षेत्रों में भी महाभयंकर तबाही मचती जो भारत के भाग हैं। इस प्रकार भारत पड़ोसी शत्रु देश को निपटाते समय अपने लोगों का भी ‘ हत्यारा’ बन सकता था। दूसरी बात जब पाकिस्तान में हम परमाणु बम गिराएंगे तो हिमालय पर्वत के हिम ग्लेशियरों का पिघलना भी निश्चित है। जिससे उत्तर भारत में महाभयंकर बाढ़ आनी निश्चित है। जिससे सारे उत्तर भारत के लिए गंभीर संकट खड़ा हो सकता है । इस प्रकार जहां दक्षिण भारत में परमाणु बम से तांडव मचता , वहीं उत्तर भारत में महाभयंकर प्रलय की स्थिति अत्यंत विकट होनी निश्चित थी। इसलिए स्थिति को बिगाड़ते बिगाड़ते वहां तक ले जाना उचित नहीं है, जहां हम लगभग प्रलय की सी अवस्था में पहुंच जाएं । विश्व के अधिकांश देश यही चाहते हैं कि भारत अप्रत्याशित घटनाओं का शिकार होकर समाप्त हो जाए, परंतु क्या कोई जिम्मेदार सरकार भी यह चाहेगी कि मेरा देश इस प्रकार की विषमताओं और संकटों से जूझते-जूझते विनाश के कगार पर पहुंच जाए ?
अमेरिकी राष्ट्रपति जेड वेंस ने भारत के प्रधानमंत्री को ‘ अत्यंत गोपनीय जानकारी’ देकर युद्ध विराम के लिए तैयार किया। यद्यपि वह ‘ अत्यंत गोपनीय जानकारी’ अभी स्पष्ट नहीं की गई है, परंतु उसका संकेत पाकिस्तान द्वारा युद्ध को परमाणु युद्ध में बदलने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। इसके अतिरिक्त ओआईसी देश भी भारत-पाकिस्तान के बढ़ते तनाव को गंभीरता से देख रहे थे, उनका निर्णय किधर को आएगा , यह स्पष्ट नहीं था। इस संगठन ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत के लगाए गये आरोपों को “निराधार” बताते हुए कह दिया था कि इससे दक्षिण एशिया में तनाव बढ़ रहा है। इसने अपनी हदों को पार करते हुए यह भी कहा कि “कश्मीर को आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित किया जा रहा है, जिसकी गारंटी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों में दी गई है।” इस प्रकार के धमकी भरे प्रस्तावों ने स्पष्ट कर दिया था कि इस संगठन का भारत-पाक के तनाव के संदर्भ में क्या दृष्टिकोण हो सकता है ?
प्रधानमंत्री मोदी अपने मूल स्वभाव में युद्धप्रेमी तो हैं, परंतु युद्धोन्मादी नहीं हैं। हर वह चाहते हैं कि इतिहास उन्हें एक विकास पुरुष के रूप में स्मरण करे,न कि युद्धोन्मादी विनाश पुरुष के रूप में। इसी संकोच के कारण वह जीतते जीतते पीछे लौट आए। कदाचित यही ‘सदगुण’ भारत के इतिहास की वह परंपरागत विकृति है जो हमें कई बार जीतने के बाद भी वार्ता की मेज पर हरा देती है। आपके पास इसका तोड़ क्या है ?
फिलहाल हमें अपने देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी को उनके साहसिक निर्णय और अपनी शास्त्री सेनाओं के पराक्रम की बधाई उन्हें देनी चाहिए।

डॉ राकेश कुमार आर्य

आत्मविश्वास से भरा मोदी का भारत

भारत और पाकिस्तान के बीच चला अघोषित युद्ध अचानक रोक किया गया ।  कई लोगों को इस बात ने बहुत अधिक निराश किया है कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आई हुई जीत को हार में परिवर्तित करके जिस प्रकार स्वीकार किया है, उसे राष्ट्रीय दृष्टिकोण से किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। भारत के राजनीतिक बुद्धिजीवियों के द्वारा अक्सर यह चर्चा चलती रहती है कि भारत युद्ध के मैदान में जीत कर वार्ता की मेजों पर हारता आया है। हमने पाकिस्तान के साथ 1948 में युद्ध किया तो हम वार्ता की मेज पर हार कर उसे पाक अधिकृत कश्मीर दे गए। उस समय के नेतृत्व ने कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र संघ के हवाले कर दिया और इसी में अपनी पीठ थपथपा ली कि हमने बहुत बड़ा काम कर दिया है ?  1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ तो हमने उस समय भी युद्ध के मैदान में जितने पाकिस्तानी भूभाग को जीता था, उसे ' ताशकंद समझौते' में गंवा दिया। इसी प्रकार 1971 में भी पाकिस्तान की 93000 सेना को गिरफ्तार करने के उपरांत भी हम पाक अधिकृत कश्मीर को वापस नहीं ले पाए । यही अब 2025 में भी हमने कर दिखाया है। जब सारा कुछ अपने अनुकूल था , तब हमने अचानक सीजफायर पर सहमति व्यक्त कर दी। 

जो लोग इस प्रकार के प्रश्न उठा रहे हैं, उनके लिए उचित रूप से यह कहा जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान में इस समय कोई घोषित युद्ध नहीं हो रहा था। भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को लक्ष्य बनाकर अपनी सेना से ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ कराया। जिसमें हमारे देश की सेना पूर्ण रूपेण सफल हुई। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने पहलगाम की घटना के बाद कहा था कि “पाकिस्तान को इसके अकल्पनीय परिणाम भुगतने होंगे।” तब उन्होंने यह भी कहा था कि “पाकिस्तान को मिट्टी में मिला दिया जाएगा”।… और अब हमारी सेना ने अपने पराक्रम से वही कर दिखाया है जो देश के प्रधानमंत्री ने संकल्प लिया था। इस प्रकार ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ को सफल कर देना ही इस समय हमारा लक्ष्य था, इससे आगे सरकार या सेना का कोई अन्य लक्ष्य नहीं था। पाकिस्तान के आतंकवादियों के अनेक अड्डे समाप्त करने के साथ-साथ पाकिस्तान की सेना को भी भारत की पराक्रमी सेना ने इतने अच्छे ढंग से ठोका है कि वह दीर्घकाल तक अपनी ठुकाई को याद रखेगी। पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम को ध्वस्त कर भारत ने एक प्रकार से पाकिस्तान की कमर तोड़ दी है। पाकिस्तान की जमकर हुई धुनाई की पुष्टि पाकिस्तान के पत्रकार और वहां के टीवी चैनल भी कर रहे हैं। उन सब पर यह चर्चा सुनने को मिल रही है कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा था वह सच साबित करके दिखा दिया। उनके भीतर भारत के प्रधानमंत्री का भय व्याप्त हो गया है। कई पत्रकार कह रहे हैं कि 2034 तक मोदी को भारत की राजनीति या प्रधानमंत्री के पद से कोई नहीं हटाने वाला। उन्होंने मजबूती से अपनी सेना को खड़ा किया है और पूरी तैयारी करके पाकिस्तान की ठुकाई की है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान के टीवी चैनलों पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उभरते भारत को विश्व शक्ति के रूप में भी स्वीकृति प्रदान की जा रही है। जब शत्रु देश में इस प्रकार की चर्चा चल रही हो, तब अपने ही देश में अपने ही लोगों के द्वारा अपने ही प्रधानमंत्री को कम करके आंकना क्या माना जाएगा ?
पाकिस्तान के टीवी चैनलों और वहां के समाचार पत्रों में यह चर्चा भी आम है कि यदि इस समय अमेरिका जैसे देश मध्यस्थता के लिए नहीं आते तो पाकिस्तान का बचना असंभव था। पाकिस्तान के लोग यहां तक कि पाकिस्तान की सेना भी इस बात के लिए खुदा का शुक्रिया अदा कर रही है कि मोदी की भारतीय सेना को शीघ्र ही समझा लिया गया अन्यथा खंडहरों पर बैठकर रोने के अतिरिक्त पाकिस्तान और पाकिस्तान की सेना के पास कोई और विकल्प नहीं होता।
अब आते हैं देश की अंदरूनी राजनीति पर। कांग्रेस इस बात को मुद्दा बनाती जा रही है कि युद्ध विराम की सूचना देश को अमेरिका के राष्ट्रपति से प्राप्त हुई । जबकि यह कार्य प्रधानमंत्री श्री मोदी को करना चाहिए था। इसके लिए कांग्रेस ने संसद का विशेष सत्र आहूत करने की मांग भी की है। यदि इस प्रकार की राजनीति पर विचार किया जाए तो यह कांग्रेस ही थी जिसने पाकिस्तान को भारत से अधिक शक्तिशाली देश बनाने की दिशा में उसे छूट प्रदान की। देश की सेना की सैन्य आवश्यकताओं की पूर्ति कांग्रेस ने जानबूझकर नहीं की। आज जिस एस – 400 ने देश की रक्षा की है, इसकी मांग भारतीय सेना के द्वारा 2012 में कांग्रेस की मनमोहन सरकार से भी की गई थी। परन्तु पैसा आवंटित नहीं किया गया था। इस प्रकार देश की सीमाओं को असुरक्षित छोड़ें रखना कांग्रेस की सरकारों की कार्य प्रणाली का एक अंग रहा। यही कारण था कि पाकिस्तान जैसा देश भी भारत को आंख दिखाने की स्थिति में आ गया था। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने देश की सुरक्षा को प्राथमिकता पर लिया और पिछले 11 वर्षों में उन्होंने देश की सीमाओं की किलेबंदी कर उसे मजबूती प्रदान की। उसी का परिणाम है कि आज भारत पाकिस्तान में भारी विध्वंस मचाने के उपरांत भी अपने विध्वंस से बच गया।
भारत के मुसलमानों की वोट पाने के लिए पाकिस्तान के प्रति उदारता दिखाना कांग्रेस की सरकारों की कार्य प्रणाली का एक आवश्यक अंग रहा। जिसके चलते यह देश आगे बढ़ता गया। इतना ही नहीं वह भारतीय मुसलमानों का नेता भी बनने लगा। कई मुस्लिम कट्टरपंथी शक्तियां और संगठन भारत में ऐसे भी रहे, जिन्होंने पाकिस्तान को भारतीय मुसलमानों का नेता मानना आरंभ कर दिया। पाकिस्तान की ठुकाई के पश्चात ऐसे मुस्लिम संगठनों को झटका लगा है।
जहां तक पाक अधिकृत कश्मीर को लेने की बात है तो उस पर भी प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कड़े शब्दों में यह स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान के साथ अब बात होगी तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर को लेने के बारे में ही होगी । इसके अतिरिक्त उससे कोई बात नहीं होगी। इतना ही नहीं , उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि हम किसी तीसरी शक्ति को इस विषय में मध्यस्थता के लिए अवसर नहीं देंगे। कुल मिलाकर देश की शक्ति का परिचय श्री मोदी ने दिया है और सारे विश्व को यह आभास करा दिया है कि आज का भारत शक्ति संपन्न और आत्मविश्वास से भरा हुआ भारत है। जिसे अपने संकल्प से कोई डिगा नहीं सकता।

डॉ राकेश कुमार आर्य

समाज के लिए नर्सों के योगदान को नमन

अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (12 मई) पर विशेष
– योगेश कुमार गोयल

दया और सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिंग की जन्मदाता माना जाता हैं, जिनकी आज हम 205वीं जयंती मना रहे हैं। प्रतिवर्ष उन्हीं की जयंती को ही 12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस विशेष अवसर पर स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत नर्सिंग कर्मियों के योगदान को नमन करना बेहद जरूरी है। ‘लेडी विद द लैंप’ के नाम से विख्यात नाइटिंगेल का जन्म 203 वर्ष पहले 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1973 में नर्सों द्वारा किए गए अनुकरणीय कार्यों को सम्मानित करने के लिए उन्हीं के नाम से ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ की स्थापना की गई थी, जो प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर प्रदान किए जाते हैं।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक बेहद खूबसूरत, पढ़ी-लिखी और समझदार युवती थी। उन्होंने अंग्रेजी, इटेलियन, लैटिन, जर्मनी, फ्रैंच, इतिहास और दर्शन शास्त्र सीखा था तथा अपनी बहन और माता-पिता के साथ कई देशों की यात्रा की थी। मात्र 16 वर्ष की आयु में ही उन्हें अहसास हो गया था कि उनका जन्म सेवा कार्यों के लिए ही हुआ है। हालांकि उस दौर में नर्सिंग को एक सम्मानित व्यवसाय भी नहीं माना जाता था, इसलिए उनके माता-पिता का मानना था कि धनी परिवार की लड़की के लिए वह पेशा सही नहीं है। दरअसल वह ऐसा समय था, जब अस्पताल बेहद गंदी जगह पर होते थे और वहां बीमार लोगों की मौत के बाद काफी भयावह माहौल हो जाता था। 1850 में फ्लोरेंस ने जर्मनी में प्रोटेस्टेंट डेकोनेसिस संस्थान में दो सप्ताह की अवधि में एक नर्स के रूप में अपना प्रारम्भिक प्रशिक्षण पूरा किया। मरीजों, गरीबों और पीडि़तों के प्रति उनके सेवाभाव को देखते हुए आखिरकार उनके माता-पिता द्वारा वर्ष 1851 में उन्हें नर्सिंग की आगे की पढ़ाई के लिए अनुमति दे दी गई, जिसके बाद उन्होंने जर्मनी में महिलाओं के लिए एक क्रिश्चियन स्कूल में नर्सिंग की पढ़ाई शुरू की, जहां उन्होंने मरीजों की देखभाल के तरीकों और अस्पतालों को साफ रखने के महत्व के बारे में जाना।
फ्लोरेंस का नर्सिंग के क्षेत्र में पहली बार अहम योगदान 1854 में क्रीमिया युद्ध के दौरान देखा गया। उस समय ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की की रूस से लड़ाई चल रही थी और सैनिकों को रूस के क्रीमिया में लड़ने के लिए भेजा गया था। युद्ध के दौरान सैनिकों के जख्मी होने, ठंड, भूख तथा बीमारी से मरने की खबरें आई। युद्ध के समय वहां उनकी देखभाल के लिए कोई उपलब्ध नहीं है। ऐसे में ब्रिटिश सरकार द्वारा फ्लोरेंस के नेतृत्व में अक्तूबर 1854 में 38 नर्सों का एक दल घायल सैनिकों की सेवा के लिए तुर्की भेजा गया। फ्लोरेंस ने वहां पहुंचकर देखा कि किस प्रकार वहां अस्पताल घायल सैनिकों से खचाखच भरे हुए थे, जहां गंदगी, दुर्गंध, दवाओं तथा उपकरणों की कमी, दूषित पेयजल इत्यादि के कारण असुविधाओं के बीच संक्रमण से सैनिकों की बड़ी संख्या में मौतें हो रही थी। फ्लोरेंस ने अस्पताल की हालत सुधारने के अलावा घायल और बीमार सैनिकों की देखभाल में दिन-रात एक कर दिया, जिससे सैनिकों की स्थिति में काफी सुधार हुआ। उनकी अथक मेहनत के परिणामस्वरूप ही अस्पताल में सैनिकों की मृत्यु दर में बहुत ज्यादा कमी आई। उस समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए ही सभी सैनिक उन्हें आदर और प्यार से ‘लेडी विद द लैंप’ कहने लगे थे। दरअसल जब चिकित्सक अपनी ड्यूटी पूरी करके चले जाते, तब भी वह रात के गहन अंधेरे में हाथ में लालटेन लेकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित रहती थी
1856 में युद्ध की समाप्ति के बाद जब वह वापस लौटी, तब स्वयं महारानी विक्टोरिया ने पत्र लिखकर उनका धन्यवाद किया। उसके कुछ ही माह बाद रानी विक्टोरिया से उनकी मुलाकात हुई और उनके सुझावों के आधार पर ही वहां सैन्य चिकित्सा प्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधार संभव हुआ और वर्ष 1858 में रॉयल कमीशन की स्थापना हुई। उसके बाद ही अस्पतालों की सफाई व्यवस्था पर ध्यान देना, सैनिकों को बेहतर खाना, कपड़े और देखभाल की सुविधा मुहैया कराना तथा सेना द्वारा डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने जैसे कार्यों की शुरूआत हुई। सेवाभाव से किए गए फ्लोरेंस नाइटिंगेल के कार्यों ने नर्सिंग व्यवसाय का चेहरा ही बदल दिया था, जिसके लिए उन्हें रेडक्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति द्वारा सम्मानित किया गया। मरीजों, गरीबों और पीडि़तों के प्रति फ्लोरेंस की सेवा भावना को देखते हुए ही नर्सिंग को उसके बाद महिलाओं के लिए सम्मानजनक पेशा माना जाने लगा और उनकी प्रेरणा से ही नर्सिंग क्षेत्र में महिलाओं को आने की प्रेरणा मिली। फ्लोरेंस के अथक प्रयासों के कारण ही रोगियों की देखभाल तथा अस्पताल में स्वच्छता के मानकों में अपेक्षित सुधार हुआ। 90 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1910 को फ्लोरेंस नाइटिंगेल का निधन हो गया, जिनकी कब्र सेंट मार्गरेट गिरजाघर के प्रांगण में है। उनके सम्मान में ही उनके जन्मदिवस 12 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ के रूप में मनाए जाने की शुरूआत की गई।

युद्ध से युद्धविराम तक

रक्त से लथपथ इतिहास,
धधकते ग़ुस्से की ज्वाला,
सरहदों पर टकराती हैं चीखें,
जिन्हें सुनता कौन भला?

वो शहादतें, वो बारूदी हवाएँ,
टूटते काफिले, बिखरते सपने,
दिल्ली से कराची तक,
हर घर में गूँजती कराहें।

मटमैली लहरों में घुला लाल,
सिंधु का मौन, झेलम की पुकार,
दूर कहीं बंकरों में सुलगते हैं रिश्ते,
धरती माँ की बिंधी मांग की तरह।

लेकिन फिर भी,
आसमान में फड़फड़ाती शांति की सफेद पंखुड़ियाँ,
सियासी चक्रव्यूहों को चीरती,
मौत की चुप्पी को तोड़ती,
एक दिन जरूर आएगी वह सुबह,
जब सरहदें सिर्फ नक्शों में रहेंगी।

नफरत की दीवारें पिघलेंगी,
पुकारेंगी हवाएँ, “बस बहुत हुआ!”
और उस दिन,
युद्ध से युद्धविराम तक की यह तस्वीर,
एक नई इबारत लिखेगी,
रिश्तों की उगती नई कोपलें।

  • डॉ सत्यवान सौरभ

लगे हाथ एक गणना इनकी भी हो जाए…

सुशील कुमार ‘नवीन’

पहलगाम हादसे के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच अघोषित युद्ध की शुरुआत हो चुकी है। इसका परिणाम क्या रहेगा? यह अभी भविष्य के गर्भ में है। इस गंभीर माहौल की जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक चिंतन हो रहा है वहीं कुछ कुचक्रिय तत्व अभी भी सक्रिय है। जातीय जनगणना तो जब होगी सो होगी, इससे पहले ऐसे लोगों की गणना बहुत जरूरी है। जो भारत में रहते हैं और भारतीय नहीं है। जो इसी मिट्टी में जन्मे हैं और इसी के विखंडन का स्वप्न देखते हैं। जो यही कमाते हैं और इसका प्रयोग इसी के खिलाफ करते हैं। युद्ध अपने तरीके से चलता रहेगा, युद्ध के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे लोगों की पहचान आज इस घड़ी में करना बेहद जरूरी है। जयचंदों की फौज जिस तरह से बढ़ रही है वो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। चाणक्य नीति में साफ लिखा गया है कि –

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भ पयोमुखम्॥

इसका सीधा सा भाव है कि पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाले और सामने मीठा बोलने वालों को उसी प्रकार त्याग देना चाहिए, जिस प्रकार  मुख पर दूध तथा भीतर विष से भरे घड़े को त्याग दिया जाता है।

   एक सच्चे देशभक्त का इस समय कर्तव्य बनता है कि आपदा आने के समय वो आपसी गिले शिकवे भूल एकमत से राष्ट्रहित में ली गई प्रत्येक कार्रवाई का समर्थन करे। उसमें यथोचित सहयोग करें, उसका संबल बनें। किसी तरफ की छींटाकशी,मीनमेख निकाल दूसरे पक्ष के लिए उदाहरण बनना राष्ट्रविरोधी से कमतर नहीं है। देश आज जिस संकट से गुजर रहा है वह हमारे द्वारा पैदा नहीं किया गया है। गीता का प्रसिद्ध श्लोक यहां सार्थक सिद्ध है। इसके अनुसार कहा गया है –

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

युद्ध से इनकार किए जाने पर श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना है। कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। इसलिए तुम केवल निरन्तर कर्म करो। कर्म के फल पर मनन मत करो और अकर्मण्य भी मत बनो।

     संसार का कोई भी ऐसा देश नहीं है। जहां राष्ट्र विरोधी ताकतें मुंह बाए न खड़ी हो। दुश्मन राष्ट्र से ज्यादा खतरा राष्ट्र के अंदर छिपी पड़ी इन कुचक्रियों से होता है। वक्त बेवक्त इनका सिर्फ एक उद्देश्य होता है कि किसी भी तरह से अपनी विचारधारा को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित किया जाए। इन्हें इस बात से मतलब नहीं कि देश किस स्थिति से गुजर रहा है। उन्हें सिर्फ अपनी विचारधारा को अग्रसर रखना होता है, चाहे वो विचारधारा राष्ट्रविरोधी ही क्यों न हो।

   आज के समय को ही ले लीजिए। पक्ष-विपक्ष आज सरकार के साथ खड़ा है। फिर भी कुछ लोगों की जुबान नहीं रुक रही है। इसी का फायदा सोशल मीडिया के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा उठाया गया है  हमारे ही लोगों द्वारा की गई बयानबाजी का प्रयोग हमारे ही खिलाफ उनके द्वारा खूब किया गया है। कन्हैयालाल मिस्र का एक निबंध मै और मेरा देश पढ़ा हो तो उसकी एक पंक्ति आज के समय में अपनी सार्थकता को पूर्ण सिद्ध करती है कि युद्ध में जय बोलने वालों का बड़ा महत्व है। भाव यह है कि युद्ध करना हर किसी के सामर्थ्य में नहीं है। लेकिन अपने साथियों का उत्साह बढ़ाना तो हमारे हाथ में है। लेकिन हम है कि अभी भी बाज नहीं आ रहे। आलोचना या समीक्षा का अभी वक्त थोड़े ही है। अभी तो जो हो रहा है उसे होने दें। वो चाहे अच्छा है या बुरा। हमारा पहला फर्ज बनता है कि उसमें सहयोग करें। लोकतंत्र में सबको बोलने का अधिकार है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। एक छोटी सी चिनगारी की उपेक्षा से दावानल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

  प्राचीन भारत के महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक आचार्य चाणक्य के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए जीवन सिद्धांत और रणनीतियां न केवल राजनीति, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी सफलता प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने का कार्य करते हैं। उनके द्वारा बताये गए नियमों में जीवन की कठिनाइयों का सामना करने और सही दिशा में आगे बढ़ने के उपाय दिए गए हैं। ये न केवल आत्मनिर्भर बनाते हैं, बल्कि जीवन में बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।

  आचार्य चाणक्य के अनुसार यदि आपका कोई शत्रु है तो कमजोरियों का पता लगाकर कमजोर करो। शत्रु को नष्ट करने से पहले उसे हराना बहुत जरूरी है। चाणक्य का कहना था कि सच्चाई अक्सर कड़वी होती है, लेकिन यह हमेशा सही होती है, यदि हम सच्चाई को अपनाते हैं, तो जीवन में हमें कोई पछतावा नहीं होगा।  आचार्य चाणक्य राष्ट्र शब्द को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि राष्ट्र केवल किसी भूखंड मात्र नहीं होता। राष्ट्र संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, भाषा, इतिहास इन पांचों विषयों का बोध होता है। उनके अनुसार देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है। अपने नीति सूत्रों के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने तत्कालीन सुप्त जनमानस के पटल पर राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं आत्मगौरव की भावना को जाग्रत किया। देश के आत्मगौरव और आत्मस्वाभिमान को सुदृढ़ एवं अखंड रखने के लिए अनिवार्य है राष्ट्र की एकता एवं संगठन। चाणक्य का विचार था कि ‘राष्ट्रीय एकता राष्ट्र रूपी शरीर में आत्मा के समान है। जिस प्रकार आत्मा से हीन शरीर प्रयोजनहीन हो जाता है, उसी प्रकार राष्ट्र भी एकता एवं संगठन के अभाव में टूट जाता है।

ऐसे में आज हम सब का भी दायित्व बनता है कि समाज एवं राष्ट्र स्तर पर कहीं भी कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो राष्ट्रहित में नहीं है तो एक सजग भारतीय की तरह उस पर मुखर हो। गलत देखकर चुप रह जाना भी किसी अपराध से कम नहीं होता। राष्ट्र-विरोध की स्थितियों से संघर्ष करना समय की जरूरत है। उनसे पलायन करने से राष्ट्रीयता सशक्त मजबूत नहीं हो सकती। महाभारत के शान्तिपर्व में लिखा गया है –

दुर्जनः परिहर्तव्यः विध्ययालंकृतोऽपि सन् 

मणिना भूषितः सर्पः किमसो  भयंकरः॥

दुर्जन व्यक्ति यदि विद्या से भी अलंकृत हो फ़िर भी उसका छोड़ देना चाहिए। मणि से भूषित सांप क्या भयंकर नही होते?

लेखक;

सुशील कुमार ‘नवीन‘

जारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है, स्वयं पर विजय प्राप्त करना

वैशाख पूर्णिमा इस बार 12 मई 2025 को है।इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध का जन्मोत्सव मनाया जाता है।इसे ‘बुद्ध पूर्णिमा’, ‘पीपल पूर्णिमा’ और ‘बुद्ध जयंती’ के नाम से भी जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि इस दिन का संबंध न केवल भगवान बुद्ध से है, बल्कि यह दिन भगवान विष्णु को भी समर्पित है और पुराणों के अनुसार महात्मा बुद्ध, भगवान विष्णु के नौवें अवतार माने गए हैं। स्कन्द पुराण में वर्णन मिलता है कि ब्रह्मा जी ने वैशाख मास को समस्त मासों में श्रेष्ठ बताया है, इसलिए यह मास विष्णु भगवान को अत्यंत प्रिय है। दूसरे शब्दों में कहें तो, इस दिन(वैशाख पूर्णिमा के दिन) भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की पूजा की जाती है। यहां यह गौरतलब है कि पद्म पुराण, मत्स्य पुराण में वैशाख मास में किए गए दान को श्रेष्ठ कहा गया है। इस संबंध में इन ग्रंथों में लिखा है कि – ‘वैशाखे मासि स्नानं च, दानं च विशेषतः।’ दूसरे शब्दों में कहें तो, इस माह में हजारों श्रद्धालु पवित्र तीर्थों पर स्नान, दान-पुण्य आदि कर्म करके मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि वैशाख शुक्ल त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक आने वाली तिथियों को’पुष्करणी तिथियाँ’ कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी को अमृत प्रकट हुआ था, द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की, त्रयोदशी को देवताओं ने सुधा पान किया, चतुर्दशी को दैत्यों(राक्षसों) का संहार हुआ और पूर्णिमा को देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हुआ। हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख पूर्णिमा की शुरुआत 11 मई को शाम 06 बजकर 55 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 12 मई को शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा। कहते हैं कि इस दिन (वैशाख पूर्णिमा के दिन) मृत्यु के देवता(यम) धर्मराज की कृपा प्राप्त करने हेतु व्रत रखने और दान-पुण्य(शक्कर ,तिल, पंखे, जूते, चप्पल,घड़ा, दूध-खीर का दान, अन्न-वस्त्र का दान आदि) करने का भी विधान है।पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव को अर्घ्य देना भी अत्यंत शुभ माना गया है।इस दिन धन की देवी(मां लक्ष्मी जी) की पूजा करने से घर में सुख-सौभाग्य और समृद्धि बनी रहती है। मां लक्ष्मी को इस दिन बताशा,खीर, मिठाई, नारियल,कमल का फूल आदि अर्पित करना चाहिए। भगवान राम और हनुमान जी की पूजा-अर्चना भी इस दिन की जाती है और हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पितरों के निमित्त पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि गौतम बुद्ध को ‘एशिया का प्रकाश’ (लाइट ऑफ एशिया) कहा गया है। उनका जन्म नेपाल के कपिलवस्तु के लुम्बिनी वन में वैशाख पूर्णिमा के दिन 563 ई.पूर्व हुआ था। उनके जन्मदिन को ‘बुद्ध पूर्णिमा’ के रूप में मनाया जाता है। उनके पिता शाक्यवंश के राजा शुद्धोधन थे और माता का नाम महामाया था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था तथा उनका पालन-पोषण एक राजकुमार के रूप में हुआ।आज के सन्दर्भ में कहें तो गौतम बुद्ध का जन्म भले ही नेपाल में हुआ हो पर उनकी कर्मभूमि भारत ही रही। यहीं उन्हें बोधित्व की प्राप्ति हुई और यहीं से उन्होंने पूरे विश्व को अपना सन्देश दिया। आज भी जापान, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, चीन, वियतनाम, ताइवान, तिब्बत, भूटान, कम्बोडिया, हांगकांग, मंगोलिया, थाईलैंड, मकाऊ, वर्मा, लागोस और श्रीलंका की गिनती बुद्धिस्ट देशों में होती है। महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में हमेशा लोगों को अहिंसा, शांति और करुणा, मैत्री,बंधुत्व की शिक्षा दी थी।बुद्ध के अनुसार, इंसान जैसा सोचता है, उसकी सोच जैसी होती है वह वैसा ही बन जाता है।वहीं यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों(सद्विचारों) के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे जीवन में खुशियां ही मिलती हैं। कष्ट उसके सामने कभी भी आ ही नहीं सकते हैं। खुशियां उसकी परछाई की तरह उसका साथ कभी नहीं छोड़ती है। बुरी सोच कष्ट ही लाती है। गौतम बुद्ध के अनमोल विचार हम सभी को जीवन में हमेशा सफल बनने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।गौतम बुद्ध सत्य के पक्षधर थे और उनका यह मानना था कि जीवन में तीन चीजें कभी भी छुपाकर नहीं रखा जा सकता है। वो है- सूर्य, चंद्रमा और सत्य। गौतम बुद्ध का मानना था कि जिस तरह से एक जलता हुआ दिया हजारों लोगों को रौशनी देता है, ठीक वैसे ही खुशियां बांटने से आपस में प्यार बढ़ता है। वास्तव में, एक​ दीपक से हजारों दीपक जल सकते हैं, फिर भी दीपक की रोशनी कभी भी कम नहीं होती। इस तरह किसी की बुराई से मनुष्य की अच्छाई कम नहीं हो सकती है।बुद्ध के अनुसार, खुशियां बांटने से हमेशा बढ़ती हैं, बांटने से खुशियां कभी भी कम नहीं होती हैं। इसलिए मनुष्य को हमेशा जीवन में खुश रहना चाहिए और दूसरों को भी सदैव खुशियां देने का प्रयास करना चाहिए। उनका मानना था कि व्यक्ति को अपने वर्तमान में जीना चाहिए, भूतकाल और भविष्य के समय को याद करके दुखी होने का कोई अर्थ या मतलब नहीं है। आदमी अपने वर्तमान में ही खुश रह सकता है। बुराई से कभी भी बुराई को खत्म नहीं किया जा सकता है, प्रेम से दुनिया की हरेक चीज को जीता जा सकता है। उनका यह मानना था कि यदि व्यक्ति ने स्वयं पर विजय प्राप्त कर ली तो दुनिया की हरेक चीज पर विजय प्राप्त कर ली। क्रोध मनुष्य का दुश्मन है। मनुष्य को कभी भी क्रोध की सजा नहीं मिलती बल्कि क्रोध से सजा मिलती है। उनका मानना था कि-‘जीवन में आप चाहें जितनी अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ लो, कितने भी अच्छे शब्द सुनो, लेकिन जब तक आप उनको अपने जीवन में नहीं अपनाते तब तक उसका कोई फायदा नहीं होगा।’ वास्तव में, आज विश्व को शांति, करूणा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने की जरूरत है। भारत हो या कोई भी देश सांप्रदायिक, जातीय टकराव किसी भी हाल में ठीक नहीं कहा जा सकता है। याद रखें हिंसा किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। जानकारी देना चाहूंगा कि गौतम बुद्ध ने युद्ध का हर संभव विरोध किया है। उन्होंने बार-बार कहा कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं होता, क्योंकि हर युद्ध में जन-धन की अपार हानि होती है। कोई भी युद्ध उचित या न्याय के लिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि हर युद्ध के अपने पीछे बर्बादी और तबाही ही छोड़कर जाता है।हिंसा हमेशा क्षरण ही करती है। विश्व में जहाँ देखो वहाँ अशांति है, आतंकवाद है, नक्सलवाद है, अनैतिकता की भावना है। ऐसे में भगवान गौतम का जीवन दर्शन हमें आध्यात्मिकता के मार्ग पर प्रशस्त कर हमें समाधान का मार्ग सुझा सकता है। अहिंसा, प्रेम,भाईचारा(बंधुत्व की भावना), धैर्य, संतोष ही मानव जीवन के असली सूत्र है, जिनके सहारे मानव हमेशा आगे बढ़ सकता है, उन्नति के मार्ग पर स्वयं को और दूसरों को प्रशस्त कर सकता है। वास्तव में गौतम बुद्ध का पंचशील सिद्धांत मनुष्य के जीवन को सार्थक बना सकता है। जानकारी देना चाहूंगा कि गौतम बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों में क्रमशः चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना, नशा न करना आदि शामिल है। कहना गलत नहीं होगा कि बुद्ध के संदेश आज के जीवन में भी उतने ही प्रासांगिक हैं, जितने कि पहले थे और इन्हें अपनाकर जीवन में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। बुद्ध ने मानवता की मदद, समानता का संदेश इस देश-दुनिया को दिया था। आत्मबल हमें शांति की राह दिखाता है। सच तो यह है कि बुद्ध की शिक्षाएं हमारी आत्मिक उन्नति करती हैं। वास्तव में, वह मानव को मानवता का संदेश देते हैं। उनका धर्म विज्ञान पर आधारित है तथा वैज्ञानिक सोच पैदा करता है। यह अंधविश्वास के विरुद्ध है। गौतम बुद्ध ने समाज को अंधविश्वास से हमेशा दूर करने का संदेश दिया था। आज समाज को उनके आदर्शों पर चलने की जरूरत अत्यंत महत्ती है।अगर दुनिया भगवान बुद्ध के आदर्शों, सिद्धांतों पर चले तो किसी भी समाज में भेदभाव, ऊंच- नीच की भावना, द्वेष, ईर्ष्या नहीं रहेगी। समाज में दंगा फसाद नहीं होंगे। हजारों साल पहले भगवान बुद्ध ने मानवजाति को ‘अहिंसा का पाठ’ पढ़ाया था। आज आदमी, आदमी से लड़ रहा है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारत के जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हमले की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान के खिलाफ शुरू किए गए ऑपरेशन ‘सिंदूर’ को विराम देने की पाकिस्तानी अपील के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध विराम हुआ और चार घंटे बाद ही यह टूट भी गया। पाकिस्तान ने युद्ध विराम का उल्लंघन करते हुए जम्मू से लेकर पूरे सीमाई क्षेत्रों में भीषण बमबारी और गोलाबारी शुरू कर दी। 10 मई की रात नौ बजे पाकिस्तान ने संघर्ष विराम का उल्लंघन किया और जम्मू-कश्मीर में एलओसी पर फायरिंग शुरू कर दी। श्रीनगर में देर रात तक धमाके सुने जाते रहे और उधमपुर में पाकिस्तानी ड्रोन नजर आए। पाकिस्तान ने जम्मू के आरएस पुरा क्षेत्र में भी भारी गोलाबारी की। आज रूस-यूक्रेन संघर्ष हो रहा है। पाकिस्तान और श्रीलंका गृह युद्ध के शिकार हैं। इजरायल-हमास संघर्ष भी चल रहा है लेकिन मनुष्य को यह याद रखना चाहिए कि कोई भी युद्ध दुखद, दर्दनाक होते हैं, जिनमें जान-माल दोनों का ही नुकसान अपरिहार्य होता है। यह युद्ध का युग नहीं है, यह मानव को समझने की जरूरत है। आज मनुष्य बारूद के ढ़ेर पर, हथियारों के ढ़ेर पर खड़ा है लेकिन आज मनुष्य को हथियारों की आवश्यकता नहीं है, आज मनुष्य को जरूरत है तो प्यार की, प्रेम की, अपनत्व, मानवता की भावना की। इस दुनिया को हथियार नहीं, हथियारों के स्थान पर प्रेम ही प्रेम चाहिए, नफरत की भावना नहीं, प्यार की भावना चाहिए। युद्ध की नहीं आज संसार को बुद्ध की आवश्यकता है। गौतम बुद्ध ने ‘आष्टांगिक मार्ग’ यानी माध्यम मार्ग दिए। ये हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाते हैं। ये क्रमशः हैं- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। उन्होंने बताया था कि मानव जीवन की मूल समस्या है राग, द्वेष, मोह, घृणा, लालच और भय के विकारों से कैसे छुटकारा पाया जाए। यही विकार आपसी लड़ाई, एक दूसरे के साथ युद्ध, आर्थिक विषमता, शोषण, अत्याचार, अन्याय, भेदभाव, हिंसा व आतंकवाद को जन्म देते हैं। आज पूरी दुनिया में हिंसा, डर, आतंक व भ्रष्टाचार का माहौल है, जीवन में हर तरफ तनाव और अवसाद है, समस्याएं हैं, समाज में व देशों के बीच लगातार तनाव, आपसी कटुता, वैमनस्यता की भावना बढ़ रही है, मानव जाति विनाश के कगार पर(बारूद के ढ़ेर पर) खड़ी है। समाज में आर्थिक विषमता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। आज हमारे समाज में धर्म के नाम पर घोर अन्धविश्वास, धार्मिक कट्टरता, कर्मकांड व आडम्बर/आपसी दिखावे का बोलबाला लगातार बढ़ता चला जा रहा है, संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, एकल परिवार जन्म ले रहे हैं। गरीबों, शोषितों व वंचितों के प्रति उपेक्षा लगातार बढ़ रही है। ऐसे समय में भगवान् बुद्ध की शिक्षाएं पहले से और ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं। बुद्ध ने महिला सशक्तिकरण में भी अहम् योगदान दिया था। वे सामाजिक समानता के घोर समर्थक थे।बुद्ध ने कहा है कि –’मेरे शब्दों को प्रमाण न मानो। तुम्हारी बुद्धि अथवा अनुभव से जो बात जंचती हो उसे ही सत्य मानो। इस विश्व में अंतिम और अपरिवर्तनीय कुछ भी नहीं है। परिवर्तन और सतत परिवर्तन ही सत्य है।’ अंत में, यही कहना चाहूंगा कि बुद्ध ने संपूर्ण विश्व में शांति, सद्भावना, भाईचारा का संदेश दिया। सभी जीवों से प्रेम करने और दीन-दुखियों की मदद करने के लिए प्रेरित किया।आज के समय में यदि विश्व में शांति, बंधुत्व की स्थापना करनी है तो हमें भगवान बुद्ध के विचारों को अपने जीवन में उतारना होगा, उनके बताए हुए मार्ग का अनुशरण करना होगा। बुद्ध का संदेश है कि घृणा(बुराई) को घृणा से नहीं जीता जा सकता। घृणा को प्रेम से जीता जा सकता है। बुद्ध का ‘धम्म’ तर्क संगत है। बुद्ध मार्ग दाता हैं, मोक्ष दाता नहीं। बुराइयों को दूर करने के लिए अपने मन में अच्छाइयों का विकास करना आवश्यक है।आज दुनिया जिस युद्ध और अशांति, तनाव, अवसाद से पीडि़त है, उसका समाधान कहीं न कहीं बुद्ध के उपदेशों में है। हमें विश्व को सुखी बनाना है, तो हमें अपने स्व से निकलकर संसार, संकुचित सोच को त्यागकर, समग्रता पर जोर देना होगा, यह बुद्ध मंत्र ही एकमात्र रास्ता है। गौतम बुद्ध के उपदेश,संदेश और विचार मनुष्यों को नैतिक मूल्‍यों और संतोष पर आधारित सादा जीवन,उच्च विचार जीवन जीने की दिशा में प्रयास करने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका मानना था कि स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है। संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है। उन्होंने कहा था कि-‘क्रोध में हजारों शब्दों को गलत बोलने से अच्छा, मौन वह एक शब्द है, जो जीवन में शांति लाता है।’

युद्ध से युद्धविराम तक: भारत-पाक रिश्तों की बदलती तस्वीर

10 मई 2025 को, भारत और पाकिस्तान ने एक पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमति व्यक्त की, जो हाल के वर्षों में सबसे गंभीर संघर्ष के बाद हुआ। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद सैन्य तनाव बढ़ा था। अमेरिकी राष्ट्रपति की मध्यस्थता में हुई वार्ता के बाद, दोनों देशों ने इस संघर्ष को समाप्त करने का निर्णय लिया। हालांकि, सीमा पर स्थायी शांति अभी भी एक बड़ी चुनौती है। सच्ची शांति तब तक संभव नहीं है जब तक कि दोनों देश आपसी विश्वास, संवाद और सहयोग को प्राथमिकता न दें। युद्धविराम केवल एक कदम है, पर स्थायी शांति की दिशा में कई और कदम बढ़ाने की जरूरत है।

– प्रियंका सौरभ

भारत और पाकिस्तान के बीच के संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के बीच की सीमाएं न केवल भौगोलिक हैं, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक विभाजन भी हैं, जो 1947 में विभाजन के समय से आज तक खिंची हुई हैं। इस तनाव का सबसे बड़ा कारण जम्मू-कश्मीर का मुद्दा रहा है, जो आज भी विवाद का मुख्य बिंदु है। 

1947-48: पहला युद्ध और पहला युद्धविराम

भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध 1947-48 में हुआ, जिसे कश्मीर युद्ध के नाम से जाना जाता है। यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाकों ने कश्मीर पर हमला किया। भारतीय सेना ने महाराजा हरि सिंह की सहायता के लिए कश्मीर में प्रवेश किया, जिसके बाद संघर्ष बढ़ता गया। इस युद्ध का अंत 1 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद हुआ, जिसने युद्धविराम की घोषणा की और दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) स्थापित की। यह युद्धविराम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 47 के तहत हुआ था, जिसमें कश्मीर में जनमत संग्रह की बात कही गई थी, जो आज तक पूरा नहीं हो पाया। 

1965 का युद्ध और ताशकंद समझौता

1965 में, कश्मीर मुद्दे पर फिर से संघर्ष भड़क उठा। इस बार पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ शुरू किया, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में घुसपैठ की। भारत ने इसका कड़ा जवाब दिया और युद्ध पंजाब, राजस्थान और कश्मीर में फैल गया। इस युद्ध का अंत 23 सितंबर 1965 को हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र और सोवियत संघ के मध्यस्थता के बाद ताशकंद समझौता हुआ। इस समझौते पर 10 जनवरी 1966 को भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए। 

1971 का युद्ध और शिमला समझौता

1971 का युद्ध मुख्य रूप से बांग्लादेश की स्वतंत्रता के मुद्दे पर हुआ था। पाकिस्तान में पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों के बीच तनाव बढ़ता गया और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में स्वतंत्रता की मांग ने युद्ध का रूप ले लिया। भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान को निर्णायक हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध के बाद 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने सभी विवाद शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का वादा किया और नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना की गई। 

1999 का कारगिल युद्ध

कारगिल युद्ध 1999 में हुआ, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल-ड्रास सेक्टर में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की। इस संघर्ष में दोनों देशों के बीच भीषण लड़ाई हुई और कई सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। यह युद्धविराम 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ, जब भारत ने अपने क्षेत्र को पुनः प्राप्त कर लिया। 

2003 का स्थायी युद्धविराम

नवंबर 2003 में, दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर स्थायी युद्धविराम की घोषणा की, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। इस पहल ने सीमा पर हिंसा में कमी लाई और कश्मीर में सामान्य जनजीवन को स्थिर किया। हालांकि, इस युद्धविराम का पालन समय-समय पर उल्लंघन का शिकार होता रहा है। 

हालिया प्रयास और चुनौतियाँ

2021 में, भारत और पाकिस्तान ने फिर से युद्धविराम का पालन करने की सहमति जताई, जिसे 2003 के समझौते का नवीनीकरण कहा जा सकता है। यह निर्णय दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई एक गुप्त वार्ता का नतीजा था। 

हालांकि, सीमा पर होने वाली घटनाएं और कश्मीर में बढ़ता तनाव इन प्रयासों को कमजोर करते हैं। दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और आतंकवाद के मुद्दे पर मतभेद इन समझौतों को पूरी तरह से सफल नहीं होने देते। 

2025: नवीनतम युद्धविराम और वर्तमान स्थिति

10 मई 2025 को, भारत और पाकिस्तान ने एक पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमति व्यक्त की, जो हाल के वर्षों में सबसे गंभीर संघर्ष के बाद हुआ। यह संघर्ष 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकवादी हमले के बाद शुरू हुआ, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। इस हमले के बाद दोनों देशों के बीच सैन्य कार्रवाई तेज हो गई, जिसमें मिसाइल और ड्रोन हमले शामिल थे। 

संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में हुई वार्ता के बाद, दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति जताई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते की घोषणा करते हुए दोनों देशों की सराहना की।  

हालांकि, इस युद्धविराम के बावजूद, भारत और पाकिस्तान के बीच कई मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं, जैसे कि सिंधु जल संधि का निलंबन और सीमा पर तनाव। दोनों देशों ने आगे की वार्ता के लिए सहमति जताई है, लेकिन विश्वास की कमी और पिछले अनुभवों के कारण स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई है। 

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की यह यात्रा संघर्ष, रक्तपात और राजनैतिक बदलावों से भरी रही है। आज, इन दोनों परमाणु संपन्न देशों के बीच स्थायी शांति स्थापित करना न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्थायी समाधान के बिना, युद्धविराम केवल एक अस्थायी राहत बना रहेगा।  सच्ची शांति तब तक संभव नहीं है जब तक कि दोनों देश आपसी विश्वास, संवाद और सहयोग को प्राथमिकता न दें। युद्धविराम केवल एक कदम है, पर स्थायी शांति की दिशा में कई और कदम बढ़ाने की जरूरत है।