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साध्वी प्रज्ञा पर जेल में हमला

pragya_2_9445113481मालेगांव विस्फोट मामले की एक प्रमुख अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर भायखला जेल में एक कैदी ने हमला बोल दिया, जिससे उनके चेहरे और गले पर चोटें आ गई हैं। प्रज्ञा के वकील के मुताबिक उन्होंने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) की अदालत में एक आवेदन देकर इस मामले में एक निजी शिकायत दर्ज कराने की अनुमति मांगी है।

मकोका अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एम.आर.पुराणिक ने साध्वी प्रज्ञा की याचिका स्वीकार कर ली है। उनके वकील ने दावा किया कि प्रज्ञा को जेल में मुमताज शेख नामक कैदी गाली दी और उन्हें जेल से बाहर फेंकने की धमकी दी।

उसके बाद प्रज्ञा ने मुमताज के बारे में जेलर से शिकायत की थी। सोमवार को जब कैदी दोपहर का भोजन कर रहे थे, उसी समय मुमताज ने साध्वी पर कटोरे से हमला बोल दिया।

मप्र में सुषमा स्वराज समेत 198 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला कल

fe8ab416-fb23-4854-ad3b-0bbf6ea93daasushmaswarajwithshivrajsingh-350-12पंद्रहवी लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के दौरान मध्य प्रदेश में गुरुवार को केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज सहित 198 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होना है।23 अप्रैल को होने वाले मतदान में 1,71,78,538 मतदाता अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इनके भाग्य का फैसला करेंगे।

मतदान की प्रशासनिक तौर पर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और सुरक्षाबलों को तैनात कर दिया गया है। यहां की 29 में से 13 संसदीय सीटों पर मतदान होना है, जिसमें कुल 198 उम्मीदवार मैदान में हैं। सबसे अधिक 28 उम्मीदवार छिन्दवाडा संसदीय क्षेत्र में हैं।

राज्य के खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट, छिन्दवाडा, होशंगाबाद, विदिशा, भोपाल और बैतूल में मतदान होना है।
छिन्दवाडा लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के कमलनाथ और विदिशा से भाजपा की सुषमा स्वराज और सीधी से निर्दलीय वीणा सिंह चुनाव मैदान में है।

मुख्य निर्वाचन कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार 31 हजार 387 इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का मतदान में इस्तेमाल किया जाएगा। चुनाव के बाबद सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए है।

पीलीभीत की जनता देगी मेरी मां के आंसुओं का जवाब: वरुण गांधी

varunभाजपा के युवा नेता वरुण गांधी ने बुधवार को पीलीभीत में लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन-पत्र दाखिल किया। इस अवसर पर उनके साथ मां मेनका गांधी और बरेली से भाजपा के प्रत्याशी संतोष कुमार गंगवार भी उपस्थित थे। विदित हो कि वरुण गांधी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।इसके पश्‍चात यहां आयोजित एक रैली में उमडे जनसैलाब को संबोधित करते हुए वरुण ने कहा कि मैं राष्‍ट्रभक्‍तों के सम्मान और उनकी रक्षा के लिए पहले भी खड़ा था और आगे भी रहूंगा। उन्होंने कहा कि मेरा हाथ हमेशा लोगों की रक्षा व मदद के लिए उठेगा।

भावुक होते हुए वरुण ने कहा कि 29 साल के जीवन में मैंने पहली बार अपनी मां को रोते हुए देखा, जब वह मुझसे मिलने एटा जेल आई थीं। उन्‍होंने कहा कि मेरी मां के आंसुओं का जवाब पीलीभीत की जनता देगी।

गुजरात में जोर पकड रहा है भ्रष्टाचार और काला धन का मुद्दा

gujarat_map1-300x1972‘देश के बाहर गये काले धन की पाई-पाई हम वापस लेकर आयेंगे’ मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इस उद्धोषणा के आगे कांग्रेस आक्रामक होकर भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त और काले धन की पोषक पार्टी के उपमे से नवाजती है। काला धन और भ्रष्टाचार के सवाल पर राज्य में बहस तेज हो चुकी है। दोंनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर आमने-सामने खडी है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एनडीए के प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने जब दिल्ली में आयोजित प्रेस-कांफ्रेंस में विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने का मुद्दा उछला तो देश भर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई।

‘देश के बाहर गये काले धन की पाई-पाई हम वापस लेकर आयेंगे’ मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इस उद्धोषणा के आगे कांग्रेस आक्रामक होकर भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त और काले धन की पोषक पार्टी के उपमे से नवाजती है। काला धन और भ्रष्टाचार के सवाल पर राज्य में बहस तेज हो चुकी है। दोंनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर आमने-सामने खडी है।

संत बाबा रामदेव ने भी इसे पार्टी विशेष का मुद्दा के रूप में देखने के बजाये राष्ट्रीय मुद्दा मानने की अपील की। साथ ही उन्होंने कहा कि यह देशहित से जुडा मुद्दा है, और इस पर सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आवाज उठानी चाहिए। देखते-देखते काला धन का मुद्दा देश भर में जोर पकडने लगा। लेकिन गुजरात में इससे एक कदम आगे बढते हुए भाजपा ने जनमत इकट्ठा करने का काम कर डाला। इस पर व्यापक जनसमर्थन मिला। भाजपा ने सभी 26 संसदीय क्षेत्रों में करीब दो हजार से अधिक मतदान केंद्र बना कर इस बहस को जनव्यापी करने की कोशिश की। लोगों में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई और लोगों ने भाजपा के इस अभियान में साथ दिया। करीब 22 लाख लोगों ने मतदान के जरिये भाजपा की इस मुहिम को सही करार दिया। इससे भाजपा ने इस मुद्दे को राज्य में अपने सभी चुनावी भाषणों से जोड दिया। हालांकि कई पार्टियों ने इसे हल्के ढंग से लेते हुए किनारा भी किया। सर्वप्रथम लालकृष्ण आडवाणी ने राज्य में अपनी पहली जनसभा में काला धन का मुद्दा उछाला। 27 अप्रेल को कांकरिया के फुटबॉल ग्राउंड में आडवाणी ने कहा कि देश के बाहर भारत का करीब 73 लाख करोड राशि विभिन्न बैंकों में पडा है, इतनी बडी राशि यदि देश में वापस आती है तो इसका उपयोग देश की आमो-आवाम और विकास कार्यों के लिए किया जा सकेगा।

दूसरी बडी सभा उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की हुई। 30 मार्च को इसी कांकरिया फुटबॉल ग्राउंड में मायावती ने भाजपा के इस मुद्दे को आडे हाथों लेते हुए कहा कि केंद्र में जब एनडीए की सरकार थी, तो लालकृष्ण आडवाणी ने अपने मंत्रियों के काले धन वापस लाने का प्रयास क्यों नहीं किया। मायावती ने भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी बताया। मायावती ने काले धन की बात को भाजपा का चुनावी शगुफा बताते हुए मतदाताओं को भाजपा के भ्रमजाल से बचने की अपील की। दूसरी तरफ राज्य में अपने चुनावी सभाओं को तुफानी रफ्तार देते हुए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपने भाषणों का मुख्य मुद्दा बना जनता के बीच हलचल पैदा कर दी। वे सभाओं में लोगों से पूछने लगते कि बताईये-काला धन देश में वापस आना चाहिए या नहीं? हजारों की संख्या में एक साथ जवाब आता-हां। मोदी की जनसभाओं के बाद जनता के बीच यह मुख्य चुनावी मुद्दा के रूप में प्रचलित हो जाता। फिर अन्य मुद्दों का स्थान दूसरा और तीसरा नंबर पर आने लगता।

इधर कांग्रेस ने मोदी की सभाओं के बाद लोगों में प्रतिक्रिया होते देख अपने केंद्रीय नेतृत्व को मैदान में उतारा। सर्वप्रथम इस मुद्दे पर बोलने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री पी.चिदम्बरम आये। उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से सफाई देते हुए कहा कि वे सरकारी स्तर पर सभी कार्यवाही कर रहे हैं। समय आने पर सब कुछ साफ हो जायेगा। चिदम्बरम का ऐसा कहना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उन्होंने संकेत दिया कि पार्टी इस मायने में सही समय पर सही कदम उठाने से पीछे नहीं रहेगी। चिदम्बरम के बयान के बाद कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेता मैदान में आ गये। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सिध्दार्थ पटेल ने भी चिदम्बरम के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि काले धन के मुद्दे पर पार्टी कार्यवाही का समर्थन करती है, लेकिन उसे इस संबंध में भाजपा की साफ नियत होने पर शक है। इसके बाद कांगे्रेस ने अपने पूर्व नेता प्रतिपक्ष और मुख्य प्रवक्ता अर्जुन मोढवाडिया को आक्रमण तेज करने को उतारा। कांग्रेस नेता मोढवाडिया ने काला धन पर पार्टी की राय स्पष्ट करने के बजाये भाजपा और एनडीए शासन के समय हुए भ्रष्टाचार की बात कर भाजपा पर हमला बोल दिया। यानी भाजपा के इस मुद्दे को जनव्यापी होता देख कांग्रेस ने आक्रमक रहने की अपनी पूरानी रणनीति को ही हथियार बना कर भाजपा से मुकाबला करने की ठान ली। मोढवाडिया ने भाजपा पर आरोपों की बौछार करते हुए कौफिन कांड से लेकर डिस्इन्वेस्टमेंट विभाग तक की गडबडियों के मामले उठाये जो कि एनडीए शासनकाल में जनता के बीच चर्चा के विषय बने हुए थे। मोढवाडिया ने कहा कि भ्रष्टाचार और काला धन दोनों अलग-अलग नहीं अपितु एक ही है। भ्रष्टाचार से पैदा हुए काला धन को छुपाने के लिए ही भ्रष्ट व्यक्ति विदेशी बैंकों का सहारा लेता है। उन्होंने भाजपा शासन के दरम्यान कौफिन कांड, बंगारू लक्ष्मण द्वारा शस्त्र खरीदी के लिए लिया गया रिश्वत, युनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया का यूएस-54 का पांच हजार करोड का घोटाला, डिस्इन्वेस्टमेंट के नाम पर बाल्को का 5 हजार करोड का घोटाला, मुंबई की सेंट्रल होटल के सौ करोड का घोटाला, अरविंद जोहरी के लखनऊ के सायबर ट्रोन तकनीकी आईटी पार्क सहित गुजरात सरकार के सुजलाम सुफलाम के 11 सौ करोड के घोटाले संबंधी आरोप लगाये। इसके अलावा मोढवाडिया ने भाजपा के दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय से चोरी हुए 2.5 करोड रुपये को काला धन बताते हुए सवाल खडा किया कि यदि वह काला धन नहीं था, तो भाजपा ने इस संबंध में पुलिस रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज करायी। मोढवाडिया ने आडवाणी पर भी आरोप लगाते हुए कहा कि उनका भी नाम जैन हवाला की डायरी में आया था।

गांधीनगर से आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड रही प्रसिध्द भौतिक वैज्ञानिक स्वर्गीय विक्रम साराभाई की पुत्री मल्लिका साराभाई भी अपने चुनावी कैंपेन में इस मुद्दे को खूब उठाती है। लेकिन उनका तर्क दूसरा है, वे कहती है कि देश के काले धन को क्यों नहीं वापस देश की तिजोरी में डालना चाहिए। पहले तो देश के अंदर हुए बडे घोटालों के पैसे देश के सामने लाने की पहल होनी चाहिए। देश से भ्रष्टाचार नाबूद करने की कोशिश होनी चाहिए। उन्होंने आडवाणी के इस बयान पर तिखी प्रतिक्रिया जतायी जिसमें आडवाणी ने काले धन को देश के विकास में लगाने की बात की थी। मल्लिका ने कहा कि विकास के नाम पर फिर से इन पैसों की लूट की योजना से इनकार नहीं किया जा सकता है। सुप्रसिध्द नृत्यांगना ने कहा कि देश के काले धन को पहले स्वयंसहायता समूहों और गरीब जनता के बीच देने की जरूरत है जिससे वह वास्तविक जरूरतमंदों के काम आ सकें।

-बिनोद पांडेय

(लेखक हिंदुस्‍थान समाचार, अहमदाबाद से संबद्ध हैं)

बेतिया में प्रकाश झा के ऑफिस पर छापा

untitledबिहार में पश्चिमी चंपारण लोकसभा सीट से लोकजनशक्ति पार्टी के प्रत्‍याशी प्रकाश झा के दफ्तर पर पुलिस ने छापे मारकर 10.25 लाख रुपए जब्‍त कर लिए हैं।पश्चिमी चंपारण की पुलिस अधीक्षक केएस अनुपम के मुताबिक गुप्‍त सूचना के आधार पर जिला पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के संयुक्‍त दल ने बीती रात प्रकाश झा के गेस्‍ट हाउस पर छापामारी कर उक्‍त राशि को जब्‍त किया और इसके साथ ही 53 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इस संबंध में बेतिया थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई है।

प्रकाश झा ने कहा कि उक्‍त राशि उनके द्वारा गेस्‍ट हाउस के पास ही निर्माणाधीन मौर्य चीनी मिल के मजदूरों और कर्मचारियों को देने के लिए रखी गई थी। विरोधियों पर निशाना साधते हुए उन्‍होंने कहा कि खुद को हारता देख विरोधियों ने ऐसा करवाया है।

विदित हो कि 23 अप्रैल को बेतिया में मतदान होने वाला है।

माँ झण्डेवाली देवी मंदिर (सिध्द पीठ)- शोध आलेख

jhandewaliकात्यायिनी महामाये भवानि भुवनेश्वरि॥
संसारसागरे मग्नं मामुध्दर कृपामये।
ब्रह्माविष्णुशिवाराध्ये प्रसीद जगदम्बिके॥
मनोऽभिलशितं देवि वरं नमोस्तुते।1

भारतवर्ष हमेशा से पूजनीय व वन्दनीय रहा है, क्योंकि यहाँ के कण-कण में ईश्वर का निवास माना जाता है। प्रकृति के हर रुप में हमें ईश्वर के दर्शन होते हैं। और यही दर्शन परम्परा व्यक्तिमात्र को ईश्वर से जोड़ती है। इसीलिए हमारे धर्मग्रन्थों में यह कहा गया है कि भक्ति के सम्मुख स्वयं परमपिता परमेश्वर भी अपना शीश झुकाते हैं। ऐसी समृध्दशाली परम्परा लेकर भारतवर्ष के आर्यजन अपने जीवन के सम्पूर्ण भागों को जीते हुए अन्तत: भक्ति मार्ग द्वारा मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस मोक्ष प्राप्ति के सबसे बड़े साधन मंदिर व तीर्थ होते हैं जिनमें स्वयं देवी-देवताओं का निवास मानकर भारतीय समाज उनकी प्राणप्रतिष्ठा करता है। तथा उनका पूजन करता है।

भारतवर्ष ऋषियों, महापुरुषों और देवतुल्य सन्तों की धरती है, इसीलिए स्वयं भगवान् भी समय-समय पर यहां अपना जीवन काल विभिन्न अवतारों के रूप में बिताते हैं। व्यक्ति मात्र अपनी जागृत चेतना से उस ईश्वर का दर्शन करते हैं। तथा मां जगदम्बा की कृपा से भक्ति के उच्चतम शिखर को प्राप्त करते हैं। इसकी एक बड़ी शृंखला भारतवर्ष में पायी जाती है। इसी कड़ी में एक नाम आता है मा के परम भक्त बद्रीभगत जी का, जिन्होने अपनी भक्ति चेतना से मां की अनुभूति की और भूसमाहित मां की प्रतिमा का पुन:उद्धाटन किया। और अपनी तपस्या से एक नये मंदिर का निर्माण कर भक्ति की अनन्त धारा का प्रवाह किया। जो अनवरत जारी है।

मंदिर के उद्भव का इतिहास :
झण्डेवाला देवी मंदिर का एक प्राचीन इतिहास है जिसका आरम्भ 19वीं शताब्दी के मां के परम भक्त श्री बद्रीभगत से प्रारम्भ होती है। बद्रीभगत एक प्रसिध्द कपड़ा व्यवसायी थे तथा अपार सम्पत्ति के स्वामी थे। दिल्ली में उनकी प्रचुर अचल सम्पत्ति थी। किन्तु लेश मात्र भी उनको अपनी समृध्दि व धन पर घमण्ड नहीं था वे मांँ वैष्णों देवी के अनन्य भक्त थे तथा दीन-दुखियों की सेवा व भगवत् भजन में रमे रहते थे। उनके इसी स्वभाव के कारण लोग उन्हे ‘बद्री भगत’ के नाम से पुकारने लगे।2

जिस स्थान पर वर्तमान् में मंदिर स्थित है वह स्थान तब शांत, हरा-भरा उपवन था। हरी-भरी पहाड़ियाँ, फलफूलों से लदे बगीचे और कल-कल करते झरने बहते थे। यहाँ पशु-पक्षी, मोर-पपीहों के कलरव से वातावरण किसी ऋषि के आश्रम की भाँति मनोरम था। लोग इस शांत व निस्तब्ध वातावरण में मानसिक व आत्मिक शांति के लिए आते थे। ऐसे व्यक्तियों में बद्रीभगत जी भी थे। धीरे-धीरे यह पता चला कि यहाँ के झरनों व पेड़-पौधों में स्वास्थ्य लाभ के गुण भी थे। अत: यहाँ लोग मानसिक शांति के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ के लिए भी आते थे।

बद्रीभगत जी इस पावन स्थान पर साधना और ध्यान मग्न होकर प्रार्थना किया करते थे। एक संध्या जब एक स्वास्थ्यवर्धक झरने के पास वह साधना में रत थे, तब उन्हे अनुभूति हुई कि उसी स्थान पर एक प्राचीन मंदिर दबा हुआ है। उन्होने निश्चय किया कि वह इस प्राचीन धरोहर का पुनरोध्दार अवश्य करेगें। उस दिन से बद्रीभगत जी ने अपना तन, मन, धन इस मंदिर की खोज में लगा दिया। उन्होने इस क्षेत्र की भूमि खरीदनी प्रारम्भ कर दी। अन्त में बहुत प्रयत्न के बाद स्वास्थ्यदायी झरने के पास उन्हें इस प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले, जिसमें माता की सदियों पुरानी चमत्कारी मूर्ति विराजमान थी। किन्तु खुदायी के दौरान मूर्ति के हाथ खंड़ित हो गये थे। अपने शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा-अर्चना वर्जित है। इसलिए बद्रीभगत जी ने उस मूर्ति को गुफा में ही रहने दिया और उसके ठीक ऊपर एक नये मंदिर का निर्माण करवाया। उन्हें विष्वास था कि पुरानी प्रतिमा की शक्ति नई प्रतिमा में विद्यमान होगी। मूल मूर्ति की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए नई प्रतिमा की विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गयी। मंदिर के ऊपर ध्वजारोहण करवाया गया ताकि लोगों को दूर से ही मंदिर होने का आभास हो और वह माँ के दर्शन करने आये। इस प्रकार यह मंदिर, झण्डेवाला देवी मंदिर के नाम से प्रसिध्द हो गया। शीघ्र ही लोगों को मंदिर की चमत्कारी शक्ति का आभास होने लगा। इस मंदिर की महिमा व ख्याति सारे देश में ही नही अपितु देश के बाहर भी फैलने लगी है।3

मंदिर का क्रमिक विकास :
बद्रीभगत की चार पीढ़ियों ने निरन्तर इस मंदिर की उत्कृष्ट परम्परा का निर्वाह किया है। और अब पांचवी पीढ़ी भी इस मंदिर के क्रमिक विकास में लगी हुई है। यह बद्रीभगत के भक्ति का ही प्रताप है कि आने वाली उनकी पीढ़ियों ने भी इसको जारी रखा। क्रमश: बद्रीभगत-भगतराम जी दास-भगत श्यामसुन्दर जी-प्रेम कपूर जी व और अब श्री नवीन कपूर जी मंदिर के आधार से लेकर वर्तमान तक के वाहक रहे हैं। जैसा कि वर्णित है माता की मूर्ति खुदायी के दौरान खण्डित हो जाने पर उसी स्वरुप में नई मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गयी। भगत श्यामसुन्दर जी के समय में मां की मूर्ति में कुछ त्रुटि होने के कारण पुन: भगत श्यामसुन्दर जी व उनकी धर्मपत्नी धनदेवी नें नई मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तथा मंदिर को और नवीन रुप प्रदान किया तबसे माता की वही मूर्ति वर्तमान में भी पूजनीय रुप में विद्यमान है। मंदिर का विकास आज भी निरन्तर जारी है।4 यह इन पीढ़ियों व लोगों की भक्ति का ही प्रमाण है कि मां की मौलिक मूर्ति के स्थान पर उनकी रुपित मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गयी मां की पूर्ण शक्ति इन मूर्तियों में विद्यमान रही। और यह मां का ही प्रताप है कि आज लाखों की संख्या में भक्त इस मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और मां के दर्शन मात्र से ही उनके चित्त को शान्ति मिल जाती है।

मंदिर का स्वरुप :
झण्डेवाला देवी मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है। इसका शीर्ष कमल के फलकों के आकार का बना है। सबसे नीचे गुफा में माता की प्राचीन मूर्ति है। तथा ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदायी में प्राप्त हुई थी, चूंकि माता की मूर्ति खुदायी के समय खण्डित हो गयी थी अत: इसे उसी प्रकार छोड़ दिया गया जिससे कि इसकी और क्षति न हो। मूर्ति के नीचे का कुछ भाग आज भी उसी अवस्था में है। ठीक इसी प्रकार शिवलिंग को भी कोई क्षति न हो इसी कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे के भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया। गुफा में शिवलिंग के दक्षिण सुन्दर नक्षत्रों का चित्रण है। इसके बारे में जानकारी करने पर पता चला कि प्रारम्भ में यहां एक नक्षत्रशाला भी थी। जहां वर्ष में एक बार ज्योतिषियों का सम्मेलन भी होता था। मंदिर के ऊपरी तल पर ठीक प्राचीन मूर्ति के सीध में मां झण्डेवाली की मूर्ति प्रतिष्ठापित है जो अत्यन्त ही सुन्दर है जिसका वर्णन, देखकर स्वयं की अनुभूति से ही प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा में शीतला माता, संतोषी माता, वैष्णो माता, गणेश जी, लक्ष्मी जी तथा हनुमान जी आदि की मूर्तियां स्थापित हैं, ठीक इनके पीछे एक बड़ा हॉल है जहाँ निरन्तर सांस्कृतिक कार्यक्रम, माता की चौकी आदि का आयोजन होता रहता है। मंदिर प्रांगण में उत्तर-पूर्व दिशा में एक मनोरम उद्यान है। तथा उत्तर की ओर मण्डपों से होता हुआ विशाल द्वार है, जो सुरक्षा कारणों से (नवरात्रि छोड़कर) बन्द रहता है। वैसे तो मंदिर में प्रवेश के 6 द्वार हैं किन्तु मुख्य रुप से पूर्व का द्वार ही मंदिर दर्शन के लिए खुलता है। तथा दक्षिण (6 नं0)का द्वार जो सीधे मंदिर के कार्यक्रम स्थल को जाता है, वह विभिन्न आयोजनों के निमित्त खोला जाता है। नवरात्रों में मंदिर के सभी द्वार व्यवस्था की दृष्टि से खोल दिये जाते हैं। मंदिर के शीर्ष पर कमलदल से होते हुए प्राचीर पर भगवा ध्वज (मंदिर का पुरातन प्रतीक झण्डा) लहरता है जो माता के दर्शन का दूर से ही आभास कराता है।

प्रमुख त्यौहार व सांस्कृतिक कार्यक्रम :
सामान्यत: सभी शक्तिपीठों व सिध्दपीठों में नवरात्रि के समय मंदिरों में विशेष भीड़ इकट्ठा होती है तथा मां के दर्शनों के लिए भक्तों का आगमन वृहत् रूप में होता है। किन्तु मां झण्डेवाली की यह महिमा ही है कि यहां वर्ष पर्यन्त उत्सव सा माहौल होता है तथा प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्र के समय में मां के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्त प्रतिदिन आते हैं तथा मंदिर की तरफ से उन श्रध्दालुओं के दर्शन की पूरी व्यवस्था रहती है तथा उनको किसी प्रकार की असुविधा न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। नवरात्रि में यहां मेला लगता है तथा साथ ही साथ बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी एक विशाल भण्डारे का आयोजन भी करती है जिसे प्रत्येक भक्त मां के प्रसाद के रूप में ग्रहण कर अपने को धन्य समझता है। सर्वविदित है कि नवरात्रि में देवी जगदम्बा के नौ विभिन्न रुपों की पूजा होती है।

झण्डेवाला मंदिर में नवरात्रों में माँ की पूजा का निराला प्रकार है :
•1 से 3 दिनों में : नवरात्रि के प्रथम दिन पूजागृह में मिट्टी की एक छोटी सी चौकी बनाई जाती है और जौ रोपित किया जाता है। जो 10वें दिन 3-5 इंच तक बढ़ जाता है तथा पूजा के उपरान्त इन बीजों को भक्तों को मां के प्रसाद के रुप में दिया जाता है। इन तीन दिनों में मां के तीन रुपों की पूजा होती है : प्रथम दिन कुमारी, द्वितीय दिन पार्वती और तृतीय दिन काली जी की, ये नारी के तीनों बाल, यौवन, व सम्पूर्ण विकसित रुपों की पूजा होती है।

•4 से 6 दिनों में : चौथे दिन माँ लक्ष्मी की पूजा होती है, पांचवे दिन ललिता पंचमी का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन दीपक जलाकर, पाठय व लेखन सामग्रियों की पूजा कर शिक्षा व कला की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। और छठे दिन मां कात्यायिनी की पूजा होती है।

•7-8 दिनों में :इन दोनों दिनों में सरस्वती की आराधना के साथ-साथ 8वें दिन महागौरी की पूजा होती है।

•महानवमी : इस दिन कन्या पूजन होता है, जिसमें नौ कुँवारी कन्याओं का देवी के विभिन्न नौ रुप मानकर उनका पूजन किया जाता है। यह पूजन लगभग भारतवर्ष में सभी स्थानों पर मनाया जाता है।5

नवरात्रों के अलावा भी मंदिर में प्रतिदिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम व माँ की चौकी का आयोजन भक्तों द्वारा होता है। जन्माष्टमी का एक विशेष कार्यक्रम मंदिर में मनाया जाता है।

मंदिर से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण बातें :
वर्ष 1944 में बद्रीभगत के पौत्र श्री श्याम सुन्दर जी द्वारा बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी स्थापित की गयी। जो आज भी मंदिर की सारी व्यवस्था व अन्य सभी कार्य इसी बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी द्वारा ही किये जाते हैं। यह मां का ही आशीर्वाद है कि उनके भक्तों द्वारा अपर्ण किया हुआ धन का एक बड़ा भाग समाज की उन्नति के लिए बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी द्वारा खर्च की जाती है। ऐसी ही कुछ रोचक बातें मंदिर के सम्बन्ध में अग्रवत हैं:

•मंदिर के स्थापना के साथ ही संस्कृत के प्रसार के लिए संस्कृत पाठशाला की नींव भी रखी गयी जो आज वर्तमान में मंडोली में ‘बद्रीभगत संस्कृत वेद विद्यालय’ के रुप में विद्यमान है। जिसका पूरा खर्च बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी वहन करती है।

•बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी द्वारा आयुर्वेद, होमियोपैथिक और पाष्चात्य चिकित्सा प्रणाली के नि:शुल्क औषधालय स्थापित किये गये हैं।

•प्राकृतिक आपदाओं में जिसमें हजारों व्यक्ति प्रभावित होते हैं, बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी उनके पुनर्वास के लिए यथासम्भव व्यवस्था करती है।

•अन्य शिक्षण कार्यों तथा भारतीय संस्कृति के लिए भी बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी हर सम्भव प्रयत्न करती है।6

•श्री सुरेन्द्र कपूर जी (श्री प्रेम कपूर जी के अनुज) ने बताया कि यहां एक कुआं था जिसका पानी इतना मीठा पवित्र माना जाता था कि 1940 के बाद तक भी आस-पास के लोग, यहाँ तक कि चांदनी चौक से भी आकर लोग कलश में पानी भर कर ले जाते थे।

•उनके अनुसार पुराने समय में विशेष आयोजनों पर पहनने वाले मंदिर के चौकीदार का चपड़ास आज भी सुरक्षित अवस्था में संरक्षित है।7

झण्डेवाला देवी मंदिर वर्तमान में दिल्ली ही नहीं बल्कि देश का ऐसा सिध्दपीठ माँ का मंदिर है जहाँ हजारों की संख्या में लोग प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं। भक्तों की संख्या नवरात्रों व विशेष त्यौहारों पर लाखों की संख्या में पहुँच जाती है। नवरात्रि में लगभग 10 लाख लोग माता के दर्शन करनें के लिए दूर-दूर से आते हैं।

पुरातात्तिवक दृष्टि से देखा जाय तो अभी तक खुदायी में प्राप्त माता की मूर्ति व शिवलिंग की विवेचना किसी ने नहीं की है तथा यह शोध का विषय है कि 19वीं शताब्दी में बद्रीभगत द्वारा उद्धाटित यह मंदिर कितना पुराना होगा। यह सर्वविदित है कि दिल्ली का इतिहास प्रामाणिक रूप से महाभारत काल से सम्बन्धित है, और यह मूर्ति अरावली की पहाड़ी पर स्थित है अत: खुदायी से प्राप्त इस मूर्ति की प्राचीनता का पता लगाया जाय तो सम्भवत: इसका काल महाभारत काल तक जा सकता है। किन्तु यह शोध का विषय है अत: निश्चित तौर पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। किन्तु इतना अवश्य है कि यह माता का सिध्द मंदिर लाखों करोड़ो भक्तों के आस्था का केन्द्र है, और यहाँ जितनी संख्या में बड़े-बूढ़े दर्शन करने आते हैं यह प्रसन्नता की बात है कि दिल्ली जैसे भाग-दौड़ भरे जीवन में नौजवान पीढ़ी भी माँ के दर्शनों के लिए उतनी ही संख्या में और भक्तिभाव से आती है। और झण्डेवाली देवी अपने भक्तों को निराश नहीं करती है।

-रत्नेश कुमार त्रिपाठी
(शोधछात्र)
अ. भारतीय इतिहास संकलन योजना
संदर्भ सूची

1कल्याण, पृ0. 513, फरवरी 09, गीताप्रेस, गोरखपुर
2मंदिर विवरणिका, बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसायटी, नई दिल्ली-55
3वही।
4मंदिर में शिलापट्ट द्वारा।
5इन्टरनेट पर मंदिर की वेव साइट www.jhandewalimata.com/templedetails.htm
6मंदिर विवरणिका, बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसायिटी, नई दिल्ली-55
7साक्षात्कार से :- श्री नवीन कपूर जी व उनके चाचा श्री सुरेन्द्र कपूर जी।

घाघ नेताओं के जमघट में बेबस आयोग – सरिता अरगरे

india-electionsचुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के बीच ” तू डाल – डाल मैं पात- पात” का खेल दिन ब दिन तेज़ होता जा रहा है । राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर चुनाव आयोग कड़ी निगाह रख रहा है ताकि आचार संहिता का उल्लंघन रोका जा सके । दूसरी तरफ़ पार्टियाँ कानूनी दाँव-पेंच की पतली गलियों से बच निकलने की जुगत में लगी हुई हैं । आयोग के हाथ कानून से बँधे हैं । वैसे भी ठोस सबूतों के अभाव में आयोग के पास कहने- करने को कुछ नहीं रह जाता । पुख्ता सबूतों के अभाव में लोकसभा चुनाव के दौरान जो कुछ भी देखने सुनने मिल रहा है वो हैरान करने वाला है ।

ढ़ीठ नेताओं से निपटने में टी एन शेषन ने जिस तरह की दबंगई दिखाई , उससे बड़े- बड़े सूरमाओं के होश फ़ाख्ता हो गये थे । एम एस गिल ने भी शेषन की तरह तो नहीं मगर नेताओं की नकेल कसने में काफ़ी हद तक कामयाबी पाई । आज चुनाव आयोग के हाथ में आचार संहिता का हथियार तो है लेकिन बिना धार का यह औजार “नककटे की नाक” काट पाने के लायक भी नहीं है । रोतले और नकचढ़े शिकायती बच्चों की तरह राजनीतिक दल हर रोज़ एक दूसरे के खिलाफ़ सैकड़ों शिकायतें लेकर आयोग के पास पहुँच रहे हैं । लेकिन “आगे से नहीं करना ” ” ध्यान रखना ” जैसी समझाइश देकर बात आई-गई कर देने से आचार संहिता मखौल बन कर रह गई है ।

मध्य प्रदेश में हर मोर्चे पर भाजपा से पिछड़ी काँग्रेस ने आखिर चुनाव आयोग के पास शिकायतों का पुलिंदा पहुँचाने में बढ़त बना ही ली । अब तक शिकायतों का अर्धशतक ठोक चुकी काँग्रेस चुनाव मैदान की बजाय काग़ज़ी लड़ाई से ही दिल बहला रही है । गुटबाज़ी और आपसी खींचतान से परेशान काँग्रेसी ज़्यादातर संसदीय क्षेत्रों में मुकाबले से बाहर होने की आशंका के चलते आचार संहिता उल्लंघन का मुद्दा उछाल कर समाचारपत्रों में थोड़ी बहुत जगह कबाड़ने की कोशिश में मगन हैं ।

लगता है चुनाव आयोग की सलाहों को नेताओं ने हवा में उडा़ने की कसम खा रखी है । बदज़ुबानी में एक दूसरे से बाज़ी मार लेने की होड़ में लगे नेता आचार संहिता को हवा में उड़ाने के मामले में एकमत हैं । ऎसे कई मामले हैं जो इस बात की तस्दीक करते हैं कि नेता आयोग को खूब छका रहे हैं । आयोग की सलाह के बाद भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बेबस आयोग मामले पर विचार की बात कह रहा है । कुछ दिन पहले गृहमंत्री चिदंबरम ने जब प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी तब भी आयोग ने आपत्ति जताई थी । आचार संहिता तोड़ने के मामलों की शिकायत मिलने पर आयोग चेतावनी देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर लेता है और नेता अपनी राह पकड़ लेते हैं ।

आचार संहिता उल्लंघन के मामले में फँसे शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे, राजद प्रमुख लालूप्रसाद यादव और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के जवाब से चुनाव आयोग संतुष्ट नहीं हैं। इन नेताओं के जवाब पर आयोग ने आपत्ति और अप्रसन्नता जाहिर की है। उप चुनाव आयुक्त आर. बालाकृष्णन ने बताया कि प्रधानमंत्री के बारे में आपत्तिजनक तथा अशोभनीय बयान पर उद्धव के जवाब से असंतुष्ट आयोग ने पार्टी को भी नोटिस जारी किया है । अब महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को उद्धव की रैलियों के भाषणों की वीडियोग्राफी कराने और उनकी गतिविधियों पर नजर रखने को कहा गया है ।

वरुण गाँधी और लालू यादव के मामले में दोहरा मानदंड अपनाने के आरोप को खारिज करते हुए आयोग ने दोनों मामलों को अलग माना है । आयोग ने वरुण की टिप्पणी को एक समुदाय और लालू की टिप्पणी को एक व्यक्ति के खिलाफ माना है । लेकिन हाल ही में साइकल पर सवार हुए ” मुन्ना भाई” के भाषणों को किस श्रेणी में रखा जाएगा , इस पर आयोग मौन है । वरुण पर रासुका लग सकती है , तो समाजवादी पार्टी के पपेटियर अमरसिंह के इशारे पर अनर्गल प्रलाप करने वाले संजय दत्त के प्रति आयोग के रवैये में नर्मी क्यों ? कहीं ऎसा तो नहीं कि “पहले मारे सो मीर” की तर्ज़ पर संजय दत्त बात को अब इतनी आगे तक ले जा चुके हैं कि उन पर होने वाली कार्रवाई को एक खास नज़रिये से देखा जाएगा । संजय दत्त का पुलिस प्रताड़ना का आरोप और मुसलमान माँ की संतान होने की सज़ा भुगतने का भड़काऊ बयान क्या संकेत देता है ?

वैसे आयोग की एक टिप्पणी काबिले गौर है , जिसमें चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि आदर्श आचार संहिता कोई कानून नहीं है। यह एक तरह से नैतिक संहिता है, जिसका मकसद चुनाव में उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना है। उप चुनाव आयुक्त बालाकृष्णन का कहना है कि आयोग का काम आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को देखना है पर आदर्श आचार संहिता कोई कानून नहीं है। इसके माध्यम से केवल उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि अगर कोई उम्मीदवार आचार संहिता का उल्लंघन करता है और अगर वह संज्ञेय या असंज्ञेय अपराध है तो इस संबंध में भारतीय दंड संहिता या जन प्रतिनिधित्व कानून १९५१ के तहत कार्रवाई होना चाहिए ।

आयोग को सर्वशक्तिमान बनाने की जो मुहिम शेषन ने छेड़ी थी , क्या वह ऎसी लाचारगी भरी बातों से प्रभावित नहीं होंगी ? इस तरह तो चुनाव आयोग को काग़ज़ी शेर कहना भी अतिरंजना ही माना जाएगा , क्योंकि काग़ज़ के शेर के भी दाँत और नाखून होते हैं । चुनाव आयोग की बेबसी खूँखार वन्यजीवों की भीड़ में खड़ी बकरी सी दिखाई देती है ।

राजनैतिक गीत इस मोड़ से जाते हैं – ब्रजेश कुमार झा

caah41461दुनिया को मालूम है कि हिन्दुस्तानी फिल्म में गीतों को जितना तवज्जह मिला उतना संसार के किसी भी दूसरे फिल्मीद्योग में नहीं मिला है। यहां तो फिल्में आती हैं, चली जाती हैं। सितारे भी पीछे छूट जाते हैं। लेकिन, जुबान पर रह जाते हैं तो कुछ अच्छे-भले गीत। फिल्मी गीतों के इन्हीं लम्बे सफर में जिंदगी के हर वाकये पर गीत लिखे गए। इसमें एक खाम किस्म का गीत है- राजनैतिक गीत।
दरअसल, शासन के सामयिक प्रश्नों समस्याओं से जुड़े गीत ही ठेठ राजनैतिक गीत कहलाए। ऐसे में आजादी के दशक भर बाद लिखे गए प्यासा(1957) फिल्म के गीत अचानक याद आते हैं- जरा हिन्द के रहनुमा को बुलाओ / ये गलियां ये कूचे उनको दिखाओ।इस फिल्म के गीतकार साहिर लुध्यानवी असल में एक तरक्की पसंद साहित्यकार थे। लेकिन, इसके साथ-साथ उन्होंने फिल्मी दुनिया से बतौर गीतकार एक रिश्ता कायम कर लिया था। क्योंकि, केवल सपने बेचना उन्हें मंजूर नहीं था। तभी तो उन्होंने नाच घर(1959) फिल्म में खूब कहा- कितना सच है कितना झूठ / कितना हक है कितनी लूट
ढोल का ये पोल सिर्फ देख ले / ऐ दिल जबां न खोल सिर्फ देख ले।
सहिर के साथ-साथ शैलेन्द्र, कैफी आजमी जैसे कई अन्य गीतकारों ने भी ऐसे गीत लिखे। एक के बाद एक(1960) फिल्म में कैफी ने लिखा- उजालों को तेरे सियाही ने घेरा / निगल जाएगा रोशनी को अंधेरा।

सन् 1968 में आई इज्जत में तो साहिर ने साफ- साफ लिख-

देखें इन नकली चेहरों की कब तक जय-जयकार चले
उजले कपड़ों की तह में कब तक काला बाजार चले।

 

इससे पहले राजनेताओं के दोरंगे चेहरे पर ऐसे धारदार गीत लिखे हुए नहीं के बराबर मिलते हैं। वैसे भी, कई गीतकार फिल्मी गीतों के माध्यम से ऐसी बातें कहने में हिचकिचाहट महसूस कर रहे थे। लेकिन, कैफी आजमी ने संकल्प(1974) फिल्म में वोट की खरीद- फरोक पर कुछ ऐसे गीत लिखे-

हाथों में कुछ नोट लो,फिर चाहे जितने वोट लो
खोटे से खोटा काम करो,बापू को नीलाम करो।

यह गीत इंतहा है उजड़ रहे ख्वाबों से जन्मी करूणा और क्रोध की। इसके साथ-साथ यह गाना एक बारीक जिक्र है-परिवर्तन का। जो जनतांत्रिक व्यवस्था के फलस्वरूप आया है। इस समय तक लोग देश में पांच आम चुनाव देख चुके थे। कटु अनुभव उनके पास था। ऐसे में इन गीतों की हवा चली तो रुकती कैसे? मन में जो बातें थीं, वह सामने आने लगी। इस सफर में अब तक कई लोग अपना बेहतरीन योगदान देकर दुनिया से रुखसत हो गए थे। कई नए आ चुके थे। और वो भी हवा के रुख को महसूस कर रहे थे।
ऐसे में गीतों का थोड़े अंतराल पर लगातार आना जारी रहा।
गुलजार ने अपने ही अंदाज में आंधी के गीतों के माध्यम से बड़ा ही तीखा व्यंग्य किया-
सलाम कीजिए / आलीजनाब आए हैं
यह पांच साल का देने हिसाब आए हैं।

क्या यह कोई भूल सकता है कि आंधी में रिश्तों के रेशे ही नहीं हैं, बल्कि राजनेताओं के हालात पर बड़ी सख्त टिप्पणी भी है। अब यह गीत सर चढ़कर बोलता है। आगे भी इसी रफ्तार से राजनैतिक गीत का कदमताल जारी रहा। तब से अब तक कई जमाने पुराने हो गए हैं। कई चीजें पीछे छूट गई हैं। मगर आंधी फिल्म की ये कव्वाली नई ताजगी और तेवर के साथ सफेद पोशाकी पर फिट बैठती है। आगे कुछ और भी गीत आए। जैसे- काला बाजार(1989) के गीत-
ये पैसा बोलता है/ मिलता है उसी को वोट
दिखाये जो वोटर को नोट/ ये पैसा बोलता है

 

आगे के राजनैतिक माहौल पर हू-तू-तू फिल्म में लिखे गुलजार के गीत स्थितियों को साफ कर देते हैं।जरा गौर करें- हमारा हुक्मरां अरे कमबख्त है/ बंदोबस्त, जबरदस्त है।

इसी फिल्म का दूसरा गीत- घपला है भई/ घपला है
जीप में घपला,टैंक में घपला।

दरअसल, ये गीत वर्तमान राजनैतिक स्थितियों का बखान करते हैं। वैसे तो ऐसे गीत औसतन कम ही लिखे गए हैं। पर ऐसा मालूम पड़ता है कि सिनेमा में आए ये राजनैतिक गीत भारतीय राजनीति का आईना है। यहां एक और बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सिनेमाई गीतकार हुक्मरानों की मसनवी न लिखकर आम लोगों, मजदूरों के करीब खड़ा रहा है। कई गीतकार तो ताउम्र खड़े रहे। और गीत लिखते गए। साफ और सीधी भाषा में।

नौकरशाहों सियासत में बढ़ता दखल – सरिता अरगरे

dr bhagirath prasadनौकरशाही का सफ़र तय करते हुए राजनीति की डगर पर बढ़ने वालों की फ़ेहरिस्त में डॉक्टर भागीरथ प्रसाद का नाम भी जुड़ गया है । इंदौर के देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय के कुलपति रहे डॉ. भागीरथ प्रसाद चंबल घाटी के भिंड संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं । पार्टी से हरी झंडी मिलते ही उन्होंने फौरन अपने पद से इस्तीफा दे दिया था । संभवत: यह पहला मौका होगा जब मध्यप्रदेश में किसी कुलपति ने यूनिवर्सिटी का कैंपस छोड़कर चुनावी मैदान में खम ठोका हो । वे 32 साल की नौकरशाही के बाद आईएएस से इस्तीफा देकर डीएवीवी के कुलपति बने और अब उन्होंने कुलपति पद से इस्तीफा देकर सियासत की डगर पकड़ ली है। मूलत: भिंड जिले से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस उम्मीदवार का मुकाबला मुरैना से चार बार से सांसद अशोक अर्गल से होना है। यह एक नेता और अफसर के प्रबंधकीय कौशल की परख वाला चुनाव होगा।
देखा जाए तो अफसरों की राजनीतिक प्रतिबद्घता कोई नई बात नहीं है। लेकिन अब यह खुले रूप में सामने आने लगी है । बरसों सरकारी नौकरी में रहकर नेताओं को अपनी कलम की ताकत के बूते फ़ाइलों में उलझाने वाले नौकरशाह अब सियासी दाँव-पेंच आज़माने में दिलचस्पी दिखाने लगे हैं । बढ़ती महत्वाकांक्षाओं और राजनीतिक मजबूरियों ने नेताओं और अफ़सरों को नज़दीक ला खड़ा किया है । जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण को साधने के लिए राजनीतिक दलों को इन अफ़सरों की ज़रुरत है और सुविधाभोगी नौकरशाहों को सियासी गलियारों में प्रवेश करने की चाहत । एक दूसरे के पूरक बन चुके ये दोनों तबके एक ही धुन पर कदमताल कर रहे हैं ।
वैसे मध्यप्रदेश में अफसरों और राजनेताओं की जुगलबंदी काफी पुरानी है। ज्यादातर अफसर परदे के पीछे रहकर पार्टियों और उनके नेताओं के मददगार बने रहे । लेकिन कुछ अफ़सरों पर बड़े नेताओं से गठजोड़ का ठप्पा भी लगा । प्रदेश में लंबे समय तक काँग्रेस का राज रहने के कारण काँग्रेस समर्थक अफसरों की तादाद ज्यादा होना स्वाभाविक है , लेकिन अब हालात बदल रहे हैं । पिछले कुछ सालों से अफ़सरों को भगवा रंग भी खूब लुभा रहा है । आरक्षित वर्ग के अधिकारियों का रुझान मायावती की बीएसपी की तरफ़ बढ़ रहा है । बहरहाल ज्यादातर अफसर काँग्रेस और भाजपा के टिकट पर ही चुनावी समर में उतरे हैं ।

नौकरशाह से सफ़ल नेता बनने की फ़ेहरिस्त में सबसे ऊपर अजीत जोगी और उनके बाद सुशीलचंन्द्र वर्मा का नाम आता है । इंदौर के कलेक्टर रहे अजीत जोगी के लिये काँग्रेस की राजनीति में एक मुकाम बनाने में अर्जुनसिंह की नज़दीकी खासी मददगार साबित हुई । अजीत जोगी राज्यसभा सदस्य रहे और १९९८ में बेहद कड़े मुकाबले में वे रायगढ़ से लोकसभा चुनाव महज़ चार हजार वोटों के अंतर से जीते । अगले साल ही शहडोल से लोकसभा चुनाव हारने वाले जोगी मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने । उन्होंने मरवाही विधानसभा सीट से रिकार्ड मतों से जीत हासिल की। २००४ के लोकसभा चुनाव में जोगी ही छत्तीसगढ़ के एकमात्र नेता थे जिन्होंने लोकसभा चुनाव में विद्याचरण शुक्ल सरीखे दिग्गज नेता को शिकस्त दी थी ।

इसी तरह प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़कर भोपाल सीट काँग्रेस के हाथों से छीनी थी । वे लगातार चार मर्तबा सांसद चुने गये । कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क रखने वाले सादगी पसंद श्री वर्मा ने वर्ष १९८९ से १९९८ तक भोपाल का प्रतिनिधित्व किया। पोस्टकार्ड के जरिए लोगों से जीवंत संपर्क रखने की खूबी उनकी सफलता की खास वजह रही ।

कुशल प्रशासक के तौर पर पहचान बनाने वाले आईएएस अफसर महेश नीलकंठ बुच वर्ष १९८४ में बैतूल संसदीय क्षेत्र से भाग्य आज़मा चुके हैं । हालांकि निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे श्री बुच को हार का सामना करना पड़ा , लेकिन उन्होंने काँग्रेस प्रत्याशी असलम शेर खान को कड़ी टक्कर देते हुए जीत का फ़ासला ४० हजार मतों पर समेट दिया।भाजपा ने २००३ के विधानसभा चुनावों में दो भारतीय पुलिस सेवा अफसरों को चुनावी दंगल में उतारा । रूस्तम सिंह ने तो बाकायदा नौकरी छोड़कर मुरैना सीट से चुनाव लड़ा और सीधे केबिनेट मंत्री की कुर्सी सम्हाली । गुर्जर समुदाय को अपनी तरफ खींचने के इरादे से बीजेपी ने रूस्तम सिंह पर दाँव खेला था। लेकिन बीजेपी को भी फ़ायदा नहीं हुआ और शिवराज लहर के बावजूद श्री सिंह को करारी हार झेलना पड़ी । पार्टी ने २००३ में ही आईपीएस पन्नालाल को सोनकच्छ से चुनाव लड़ाया लेकिन सख्त पुलिस अफ़सर की छबि वाले पन्नालाल मतदाताओं को रिझाने में नाकाम रहे। काँग्रेस ने पिछले आमचुनाव में न्यायमूर्ति शंभूसिंह को राजगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़ाया लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।

जागो हे! मतदाता – आशीष कुमार ‘अंशु’

indiaelection‘अक्सर देखा जाता है कि बहुसंख्यक लोग मतदान को बड़े हल्के ढंग से लेते हैं। लोग बड़े अनमने ढंग से वोट देने चले जाते हैं। उन्हें ना प्रत्याशियों के बारे में अधिक पता होता है और ना वोट देते समय वे प्रत्याशियों के नामों पर विचार करने के लिए कुछ समय लेते हैं। ऐसे लोगों की संख्या भी कम नही है जो सगे संबंधियों और इष्ट मित्रों से पूछकर वोट देते हैं। मेरा ऐसे लोगों से अनुरोध है कि वोट आपका है, इसका मौका पांच साल में एक बार मिलता है (अगर उपचुनाव ना हुए तो)। इसका उपयोग बहूत सुझबूझ के साथ करें।’

आगामी लोक सभा चुनाव में मतदाताओं को जागरुक करने के उद्देश्य से प्रख्यात साहित्यकार-सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी  ,द्वारा लिखे गए एक लेख का यह संक्षिप्त अंश है। इस लेख में उन्होंने मतदाताओं से मतदान करने से पहले पूरी तरह सोच-विचार करने का अनुरोध किया है। क्योंकि सही प्रत्याशी ही स्वस्थ लोकतंत्र को बहाल करने में मददगार हो सकता है। इस लिए अपने मत का सही प्रयोग करना, एक प्रकार की राष्ट्रभक्ति ही है।

जिस प्रकार आमिर खान अपनी लगान, तारे जमीन पर सरीखी अलग हटकर बनाई गई फिल्मों के लिए रील लाइफ में चर्चित रहे हैं। उसी प्रकार वे अपने रीयल लाइफ में भी ‘नेशनल इलेक्शन वाच’ नामक एक गैर सरकारी संस्था के साथ मिलकर इस चुनाव में ईमानदार प्रत्याशी को मत देने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इस विज्ञापन में आमिर खान टेलीविजन चैनल पर आते हैं और मतदाताओं से इस चुनाव में अपना मत ना बेचने का अनुरोध करते हैं। वे कहते हैं- इस वक्त आप एक बार अपना वोट बेचेंगे और उसके बाद पांच साल तक ये नेता आपको बेचेंगे। वोट इस देश में बिकता है, इस में किसी को कोई संदेह नहीं लेकिन इसकी वजह क्या है? इसके पीछे बड़ी वजह है गरीबी। जिसकी वजह से लोग चंद रुपयों,या फिर कुछ इसी तरह के छोटे-मोटे प्रलोभनों के हाथों अपना मत बेच देते हैं। दूसरी बड़ी वजह है, अशिक्षा और अज्ञानता जिसकी वजह से गरीब लोग नहीं समझ पाते कि वे मत नहीं अपना भविष्य चंद रुपयों में गिरवी रख रहे हैं।  इस बार आचार संहिता लागू होने के बाद नोट बांटते की वजह से जसवंत सिंह, वरुण गांधी, अभिनेता से राजनेता बने गोविन्दा सरीखे लोगों पर चुनाव आयोग अपने स्तर पर कार्यवाही कर रही है। लेकिन इस तरह की कार्यवाहियों से कुछ खास लाभ नहीं दिखता। ये कार्यवाही आम तौर पर सिर्फ खानापूर्ति के लिए की जा रही प्रतित होती हैं।

खैर, बात इस चुनाव की करें तो इसमें कई सारे ऐसे गैर सरकारी प्रयास देश भर में छोटे-बड़े स्तर पर चलाए जा रहे हैं जो सीधे-सीधे मतदाताओं को जागरुक करने के लिए हैं। उन्हें उनके अधिकारों से परिचित कराने के लिए हैं। इस बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, फिल्म स्टार, मीडिया मतदाताओं को जगाने का अभियान चला रहे हैं।

इस बार देश भर में अलग-अलग जगहों पर एक तरफ बड़े-छोटे नेता चुनाव प्रचार में लगे हैं, वहीं दूसरी तरफ गैर सरकारी संस्थाएं इस प्रयास में लगी हैं कि अधिक से अधिक मतदान हो और मत सही आदमी को मिले। इसके लिए गैर सरकारी संस्था ‘जागोरे’ का देशव्यापी अभियान काबिले गौर ही नहीं, काबिले तारिफ भी है। संस्था के कार्यकर्ता दफ्तर, घर, कॉलेज हर जगह जा रहे हैं और मतदान के महत्व को समझा रहे हैं। उम्मीद है, इस तरह के प्रयासों से निश्चित तौर पर फर्क आएगा। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दू कॉलेज के प्राध्यापक रतनलाल अपनी संस्था ईएफजी के बैनर के नीचे नुक्कड़-नाटकों और सेमिनारों के माध्यम से एक-एक मत का महत्व समझा रहे हैं। इससे पहले विधान सभा के चुनावों में नगर पालिका चुनावों के मुकाबले पड़े कैम्पस में लगभग 30 प्रतिशत से अधिक वोट इस बात की तरफ साफ संकेत करते हैं कि श्री लाल के अभियान में दम है। उनकी बातों का असर कॉलेज में पढ़ने और पढ़ाने वालों पर गहरा हो रहा है।

उत्तार प्रदेश के डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक चार्टर एकांउटेंट और व्यावसायियों ने मिलकर मतदाताओं को उनके अधिकारों के संबंध में जागरूक करने के लिए डा. पीके गुप्ता के नेतृत्व में एक फोरम का निर्माण किया है। फोरम का मानना है कि गलत लोगों को संसद से बाहर करने के लिए समझदार लोगों को मतदान बुथ तक आना होगा। जो आम तौर पर होता नहीं है। जो पढ़े लिखे लोग हैं, वे आमतौर पर चुनाव की तारीख को पिकनिक मनाने के लिए निकल जाते हैं। जबकि ऐसे लोगों को मतदान स्थल तक जरुर आना चाहिए। कहते हैं ना कि आपका एक वोट किसी की जिन्दगी बदल सकता है। किसी के हार-जीत का फैसला कर सकता है। इसलिए अच्छे लोग संसद तक जाएं इसके लिए पहले जरुरत इस बात की है कि आप मतदान स्थल तक पहुंचे।लखनऊ की ‘सामाजिक सरोकार मंच’ नामक संस्था आम नागरिकों को एसएमएस, ई-मेल और सभाओं के जरिए जागरूक करने का काम कर रही है।

दुधी (स्वर्णभद्र) में मिले महिषानन्द जी। वे ‘ग्राम स्वराज’ के नाम से आदिवासियों के बीच जल-जंगल-जमीन के मुद्दे पर अभियान चला रहे हैं। वे आदिवासियों के हक की बात करते हैं। आदिवासियों के बीच उनकी संस्था उत्तार प्रदेश की  कुछ साथी संस्थाओं के साथ मिलकर मत का महत्व समझाने का काम कर रही है। महिषानन्द कहते हैं- ‘आदिवासी समाज के लोगों के बीच हम मतदान को लेकर अभियान चला रहे हैं। हम चाहते हैं, वे मतदान स्थल तक भारी संख्या में आए और उस उम्मीदवार को मत दें, जो उनके हक की बात करता है। उन्हें किसी प्रकार के भूलावे में नहीं रखता।’

बांदा (बुंदेलखंड) के कृषि एवं पर्यावरण विकास संस्थान के सुरेश रायकवार अपने साथियों के साथ बांदा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में जा रहे हैं और मतदाताओं को समझा रहे हैं कि जो नेता पानी उपलब्ध कराने की बात नहीं करता उससे बात भी मत करों। इस बार बुंदेलखंड में पानी का मुद्दा महत्वपूर्ण है। जो नेता पानी की बात करेगा, वह ही इस बार बुंदेलखंड पर राज करेगा। पानी का मुद्दा बिहार के कोसी क्षेत्र में भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है लेकिन बुंदेलखंड में जहां बात सूखे को लेकर हो रही है, वहीं बिहार का कोसी क्षेत्र बाढ़ से परेशान है। बिहार के ‘कोसी मुक्ति संघर्ष समिति’ के सचिव सुशील कुमार यादव कहते हैं- ‘इस बार जो वोट मांगने आएंगे उन्हें पहले क्षेत्र में बार-बार आने वाली बाढ़ के निदान के संबंध में बात करनी होगी। कोसी की जनता बार-बार ठगी जाती रही है। इस बार हम ठगे नहीं जाएंगे।’ इस बार कोसी क्षेत्र की एक बड़ी पीड़ित आबादी विरोध करने का भी मन बना रही है। उनका मानना है कि केन्द्र राज्य की सरकार और तमाम गैर सरकारी संगठन बाढ़ के स्थायी निदान पर चर्चा ना करके हर साल आने वाली बाढ़ में रीलीफ बांटकर उन्हें खैरात पर जीने की आदि बनाने की साजिश कर रही है।
इस देश भर में जनता और नेता दोनों तैयार हैं, चुनाव के लिए एक-दूसरे से सामना करने के लिए। पूरे देश में जिस तरह की हवा है, उसे देखकर यही लगता है कि इस बार देश की जनता को मूर्ख बनाना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि यह पब्लिक अब सब जान चुकी है।


आशीष कुमार ‘अंशु’
संपर्क: इंडिया फाउंडेशन फॉर रुरल डेवलपमेन्ट स्टडि्ज
406, 49/50, रेड रोज बिल्डिंग, नेहरु प्लेस, न.दि.- 110019
09868419453

लोकसभा तथा विधानसभा के कार्यकाल स्थायी हों: आडवाणी

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने बृहस्पतिवार को लोकसभा तथा विधानसभाओं का स्थाई कार्यकाल निर्धारित किए जाने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मतदान सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य बनाया जाए और चुनाव फरवरी के महीने में करवाएं जाएं।आडवाणी ने अहमदाबाद में मतदान के बाद कहा, ‘मेरा सुझाव है कि राजनीतिक दलों तथा निर्वाचन आयोग को इस पर सोचना चाहिए कि क्या हम लोकसभा तथा विधानसभाओं के स्थाई कार्यकाल के लिए संविधान में परिवर्तन कर सकते हैं।’ उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘हम ब्रिटिश पद्धति का अनुसरण कर रहे हैं जो हमारे अनुकूल नहीं है और हमें इसमें बदलाव करना चाहिए।’

आडवाणी के सुझाव के अनुसार, यदि कोई सरकार लोकसभा में बहुमत खो देती है तो सदन को भंग नहीं किया जाना चाहिए और नई सरकार को पदभार संभालना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई यूरोपीय संसदीय लोकतांत्रिक देश हैं जहां सांसद का स्थायी कार्यकाल होता है।

गर्मियों के महीने में आ रही दिक्कतों की ओर इशारा करते हुए आडवाणी ने कहा, ‘गर्मी के मौसम में मतदान का प्रतिशत गिर जाता है और चुनाव फरवरी में होने चाहिए।’ वह गांधीनगर से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता ने यह भी कहा कि मतदान को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मतदान को अनिवार्य बनाने के लिए राजनीतिक दलों तथा निर्वाचन आयोग को विचार विमर्श करना चाहिए।’

राजनीतिक पार्टियां के चंदे का फंडा – अफरोज आलम ‘साहिल’

fistful-moneyहमारे देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं, उन्हें अपना जनसेवा और राजनीति का कारोबार चलाने के लिए पैसा चाहिए। और पैसा भी खूब चाहिए। जलसा, सम्मेलन, चुनाव और प्रचार में उड़ते विमान-हेलीकॉप्टर, धरना, प्रदर्शन, रैली हर चीज़ पैसे से ही चलती है। इसके लिए ये पैसा चाहे जहां से मिले, बस मिले। यह कहां से आता है। कौन देता है। इससे पार्टी को कोई मतलब नहीं। और वैसे भी पैसे की न कोई पार्टी होती है न विचारधारा। पैसे के मामले में किसी को किसी से कोई भेदभाव, परहेज़ नहीं। पार्टियां हाथ फैलाए खड़ी हैं और देने वाला खुशी-खुशी दिए जा रहा है।

आखिर ये देने वाला दानी कौन है। इस बात से जनता वाकिफ नहीं है। पर सूचना क्रांति के इस युग में वर्तमान भारत सरकार ने शायद गलती से ही सही जनता के हाथों में सूचना के अधिकार के रूप में एक ऐसा हथियार मुहैया करा दिया जो बही-खातों और फाइलों के बीच के घपलों को जनता के बीच लाकर इन तथाकथित जन-सेवकों की असलियत जनता के सामने रखने लगी है। इसने अब तथाकथित जनसेवकों के चेहरों का नकाब उतारना शुरू कर दिया है। सूचना के अधिकार के माध्यम से राजनीतिक पार्टियों का जो सच सामने आया है, वह चौंकाने वाला है।
भारत निर्वाचन आयोग के जानकारी के मुताबिक इस देश में 7 नेशनल पार्टी, 41 स्टेट पार्टी और 949 रजिस्टर्ड अन-रिकोगनाईज्ड पार्टियां हैं। जिनमें से सिर्फ 18 पार्टियों ने वर्ष 2007-08 में फॉर्म 24-ए भरा है। जबकि वर्ष 2004 से लेकर 2007 तक फॉर्म 24-ए भरने वालों की संख्या 16 रही है। फॉर्म 24-ए नहीं भरने वालों में रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, करुणानिधि के नेतृत्ववाली डीएमके, शिबू सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, आरएसपी, तृणमूल कांग्रेस, पीडीपी, नेशनल कांफ़्रेंस और फ़ॉरवर्ड ब्लॉक जैसी पार्टियां शामिल हैं।

यही नहीं जिन पार्टियों ने फॉर्म 24-ए भरा है, उनके दानदाताओं की सूची भी काफी चौंकाने वाली है। कई माईनिंग कंपनियां, प्रापर्टी-रियल एस्टेट कंपनियां, ट्रस्ट, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस, निर्यातक व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ-साथ शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले प्राइवेट स्कूल व शैक्षणिक संस्थान भी दानदाताओं की सूची में शामिल हैं।

राजनीतिक पार्टियों के दानदाताओं की सूची न सिर्फ विचलित करने वाली है, बल्कि कई संवेदनशील सवाल भी खड़े करती हैं। इस सूची में देखा गया कि कई औद्योगिक घराने और व्यापारिक प्रतिष्ठान व समूह जैसे आदित्य बिड़ला समूह से संबंधित जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड, गोवा की डेम्पो इंडस्ट्रीज वीएस डेम्पो, डेम्पो माइनिंग, सेसा गोवा, वीएम सालगांवकर एंड ब्रदर्स आदि ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को चंदा दिया है।

पार्टियों को मिले चंदे पर नज़र डालें तो कुछ पार्टी तो करोड़ों रूपए लेकर काम करती नज़र आती हैं लेकिन कुछ दल ऐसे हैं जिनको मिले चंदे की ओर नज़र डालें और फिर उनके खर्चों पर तो लगता है कि मामला आमदनी अठन्नी, खर्चा रूपइया जैसा है।

मसलन, समाजवादी पार्टी को वर्ष 2007-08 के दौरान केवल 11 लाख रूपए मिले, इन्हें चंदा देने वाले केवल तीन लोग हैं जिनमें से दो संस्थाएं हैं। एआईएडीएमके को इस वित्तीय वर्ष में केवल 1.08 लाख रूपए चंदा मिला है। जनता दल (यूनाईटेड) भी सिर्फ एक ही व्यक्ति की कृपा पर चल रही है। इस वित्तीय वर्ष में पार्टी को सिर्फ 21 लाख रुपये मिले हैं और यह दान वसंतकुंज, नई दिल्ली के श्री रवेन्द्रण एम.नायर ने दिया है। शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी भी 3 लोगों के रहमो-करम पर चल रही है। वीडियोकॉन ने पार्टी को एक करोड़ दिया है, तो श्री गिरीष गांधी ने 2 लाख तथा शार्पमाइंड मार्केटिंग प्राईवेट लिमिटेड ने 25 हज़ार।

कांग्रेस, सीपीएम, भाजपा, सपा जैसे बड़े बड़े दलों को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों से नाममात्र चंदा मिला है जबकि कांग्रेस और भाजपा को गोवा जैसे छोटे से राज्य से पर्याप्त पैसा मिला है।
और तो और, गोवा के अधिकतर दानदाता ऐसे हैं जो दोनों ही दलों को मोटा चंदा देते रहे हैं। ये दानदाता बिल्डिंग, कंस्ट्रक्शन और खनन से जुड़ी हुई संस्थाएं हैं। शिवसेना को भी चंदा देने वाले अधिकतर लोग बिल्डर या बड़े व्यावसायिक उपक्रम चलाने वाले लोग हैं।

माया की मोह में किसी व्यक्ति का रमना और फंसना कोई नई बात नहीं है। लेकिन किसी विचारधारा की पार्टी का माया के जाल में गोता लगाना हमें विचलित जरूर करता है। भारतीय जनता पार्टी ‘पार्टी विथ द डिप्रफेंस’ का नारा देती रही है। लेकिन जब ‘सूचना के अधिकार अधिनियम-2005′ के माध्यम से राजनैतिक पार्टियों के दानदाताओं की सूची से राज खुला तो ‘पार्टी विथ द डिप्रफेंस’ की भी पोल खुल कर रह गई। विचारधारा, दृष्टिकोण और नीतियों की पार्टी अर्थात भारतीय जनता पार्टी कभी भोपाल गैस कांड के दोषी कम्पनी की घोर विरोधी थी, पर लगता है अब विरोध खत्म हो चुका है। इसलिए उसने यूनियन कार्बाइड के नए मालिक ‘डाओ केमिकल्स’ से भी वर्ष 2006-07 में एक लाख रुपया चंदा लेने में कोई परहेज नहीं किया।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस दूध की धुली है। सच्चाई तो यह है कि ‘हमाम’ में सभी नंगे हैं, क्या कांग्रेस और क्या भाजपा?

बात अगर कांग्रेस की करें तो पार्टी से जुड़े लोग दिल खोल कर चंदा देते हैं और खूब देते हैं। खुद सोनिया गांधी ने दो वर्षो में 67467 रुपये और डा. मनमोहन सिंह ने 50 हजार रुपये चंदा दिए हैं। इसके अलावा पिछले वर्ष इनके दानदाताओं में पब्लिक स्कूलों की भी अच्छी खासी तादाद है। वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा वर्ष 2007-08 में 2 करोड़ और पिछले वर्ष एक ही दिन 50-50 लाख के 6 अलग-अलग चेक देना, आदित्य बिड़ला समूह का वर्ष 2007-08 में 25 लाख एवं पिछले वर्ष 10 करोड़ तथा वीडियोकॉन द्वारा वर्ष 2007-08 में भारतीय जनता पार्टी को 2 करोड़ 50 लाख का चंदा दिया जाना कुछ सवाल तो खड़े करता ही है।

उद्योगपति, व्यवसायी व बिल्डर माफिया तो इन राजनैतिक पार्टियों को परंपरा के मुताबिक हमेशा से चंदा देते आए हैं, पर अब अकीक एजुकेशन सेन्टर का सच हमारे सामने है, जहां न कोई शिक्षा है और न ही शिक्षा देने वाला कोई शिक्षक और न ही उसकी हालत चंदा देने लायक है। ये तो एक साधारण सा घर है। पर इसने भाजपा को एक ही बार में नौ चेकों की मदद से 75 लाख रुपये दे डाले। इसके पिछले वर्ष भी यह 66 लाख रुपये चंदा भाजपा को दे चुकी है।

दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के नियमित दानदाता बहुत कम हैं। अर्थात जो एक बार दे दिया दुबारा देना मुनासिब नहीं समझता। पार्टी के अपने लोग भी चंदा देने में पीछे ही हैं। पार्टी ज्यादातर अपना चंदा देश भर के बिल्डर और उससे जुड़े उद्योगों, व्यापारियों और एजुकेशन सेन्टर से ही प्राप्त करती है। यदि कभी सच सामने आ सके तो यह जानना दिलचस्प होगा कि जिस-जिस साल में जो बड़ा व्यापारी चंदा देता है, वह उस साल क्या फायदा हासिल करता है..?

ये ऐसे सवाल है। जिनका जवाब शायद अभी न मिले, लेकिन जनता के बीच यह आंकड़े पहुंचा देना ही सूचना के अधिकार की सबसे बड़ी जीत है। बात यहीं खत्म नहीं होती, क्योंकि इनके अलावा भी अंदरूनी तौर पर न जाने कितने चंदे हासिल किए जाते होंगे, जिसका अंदाजा लगाना हमारे व आपके बस की बात नहीं।

फॉर्म 24-ए क्या है?
रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ़ पीपुल्स एक्ट (1951) में वर्ष 2003 में एक संशोधन के तहत यह नियम बनाया गया था कि सभी राजनीतिक दलों को धारा 29 (सी) की उपधारा-(1) के तहत फ़ार्म 24(ए) के माध्यम से चुनाव आयोग को यह जानकारी देनी होगी कि उन्हें हर वित्तीय वर्ष के दौरान किन-किन व्यक्तियों और संस्थानों से कुल कितना चंदा मिला.
हालांकि राजनीतिक दलों को इस नियम के तहत 20 हज़ार से ऊपर के चंदों की ही जानकारी देनी होती है.

वर्तमान लोकसभा में पहुँचनेवाले उन दलों की सूची जिन्होंने अभी तक चुनाव आयोग को अपने चंदों का ब्यौरा नहीं सौंपा है:-
राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, शिरोमणि अकाली दल, पक्कलि मक्कल काटची, झारखंड मुक्ति मोर्चा, डीएमके, लोक जनशक्ति पार्टी, ऑल इंडिया फ़ॉरवर्ड ब्लॉक, जनता दल (सेक्यूलर), राष्ट्रीय लोकदल, आरएसपी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस, केरल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय नवशक्ति पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, मिज़ो नेशनल फ़्रंट, मुस्लिम लीग केरल स्टेट कमेटी, नगालैंड पीपुल्स फ़्रंट, नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया, सिक्किम डेमोक्रेटिक पार्टी.

अबतक ब्यौरा सौंपने वाले दल:
• भारतीय जनता पार्टी
• भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
• मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
• इंडियन नेशनल कांग्रेस
• नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
• एडीएमके
• समाजवादी पार्टी
• जनता दल (युनाइटेड)
• तेलगू देशम
• एमडीएमके
• शिवसेना
• असम युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट
• मातृभक्त पार्टी
• राष्ट्रीय विकास पार्टी
• भारतीय विकास पार्टी
• मानव जागृति मंच
• भारतीय महाशक्ति मोर्चा
• समाजवादी युवा दल
• सत्य विजय पार्टी
• थर्ड व्यु पार्टी
• जनमंगल पक्ष
• लोकसत्ता पार्टी

फॉर्म 24-ए भरने वाले पार्टियों का विवरण:-

क्र.सं.

राजनीतिक दल

2004-05

2005-06

2006-07

2007-08

1.

भारतीय जनता पार्टी

34,15,46,289

3,61,56,111

2,95,70,672

24,96,23,653

2.

कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया

6,30,000

40,33,690

12,69,000

41,25,800

3.

कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (Marxist)

8,96,355

5,50,000

11,24,719

72,26,116

4.

इंडियन नेशनल कांग्रेस

32,05,55,643

5,96,63,692

12,07,73,413

7,89,74,701

5.

ए.आई.ए.डी.एम.के.

6,25,000

5,50,000

10,00,000

1,08,000

6.

समाजवादी पार्टी

1,12,94,044

3,01,001

6,57,000

11,00,000

7.

जनता दल (यूनाईटेड)

31,70,890

4,70,000

50,000

21,00,000

8.

तेलगू देसम

1,53,47,692

6,75,005

18,25,004

61,89,121

9.

एम.डी.एम.के.

4,10,000

———-

4,25,000

———-

10.

शिव सेना

4,09,40,000

5,95,000

2,07,000

43,35,000

11.

असम यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट

———-

1,05,000

60,000

21,73,000

12.

मात्र भक्ता पार्टी

45,50,000

1,10,99,000

3,01,000

———-

13.

राष्ट्रीय विकास पार्टी

3,89,60,602

2,10,85,502

———-

3,00,000

14.

भारतीय विकास पार्टी

1,07,000

———-

———-

———-

15.

मानव जागृति मंच

1,70,000

———-

———-

———-

16.

भारतीय महाशक्ति मोर्चा

14,520

30,120

28,340

———-

17.

समाजवादी युवा दल

60,000

2,76,000

———-

———-

18.

सत्य विजय पार्टी

———-

33,24,000

53,58,355

50,55,500

19.

थर्ड व्यू पार्टी

———-

1,00,000

———-

3,00,000

20.

जनमंगल पक्ष

———-

———-

9,95,965

———-

21.

लोक सत्ता पार्टी

———-

———-

80,40,001

3,42,56,000

22.

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी

———-

———-

———-

1,02,25,000

23.

जागो पार्टी

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———-

———-

23,20,000

24.

ए.डी.एस.एम.के.

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———-

———-

1,16,300

25.

हरियाणा स्वतंत्र पार्टी

———-

———-

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42,000

 – अफरोज आलम ‘साहिल’