वर्त-त्यौहार समाज ईद इंसानियत का पैगाम देता है June 19, 2017 by ललित गर्ग | Leave a Comment रोजा वास्तव में अपने गुनाहों से मुक्त होने, उससे तौबा करने, उससे डरने और मन व हृदय को शांति एवं पवित्रता देने वाला है। रोजा रखने से उसके अंदर संयम पैदा होता है, पवित्रता का अवतरण होता है और मनोकामनाओं पर काबू पाने की शक्ति पैदा होती है। एक तरह से त्याग एवं संयममय जीवन की राह पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इस लिहाज से यह रहमतों और बरकतों का महीना है। Read more » Featured आपसी सद्भावना ईद भारत साम्प्रदायिक सौहार्द
समाज योग से आती है मनुष्य में सकारात्मकता June 19, 2017 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment 27 सितंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने पहले संबोधन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की जोरदार पैरवी की थी। इस प्रस्ताव में उन्होंने 21 जून को ‘‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’’ के रूप में मान्यता दिए जाने की बात कही थी। मोदी की इस पहल का 177 देशों ने समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में इस आशय के प्रस्ताव को लगभग सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। और 11 दिसम्बर 2014 को को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को ‘‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’’ को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। Read more » Featured अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ योग दिवस
समाज योग परम्परा की ओर लौटता समाज June 18, 2017 by मनोज कुमार | Leave a Comment उल्लेखनीय है कि तीन बरस पहले देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अथक प्रयासों से पूरी दुनिया में भारत ने योग का परचम फहराया. संयुक्त राष्ट्रसंघ के कैलेंडर पर 21 जून भारतीय योग विद्या के लिए चिंहाकित किया गया. मोदी की पहल पर यह वह तारीख है जिस दिन भारत की प्राचीन योग परम्परा को संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीकार किया और 21 जून की तारीख को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी. Read more » Featured yog diwas अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ योग परम्परा योग परम्परा की ओर लौटता समाज
समाज युवापीढ़ी की निराशा बहुत घातक हो सकती है June 15, 2017 by ललित गर्ग | Leave a Comment देश-विदेश में तमाम संकटों से जूझ रही भारतीय आईटी कंपनियों को लग रहा है कि ऊबर का तरीका अगर वे सॉफ्टवेयर इंजिनियरों को लेकर अपना लें - उन्हें नियमित नौकरी पर रखने के बजाय प्रॉजेक्ट की जरूरतों के अनुरूप ही उनकी सेवाएं लें - तो न सिर्फ उनके स्थायी खर्चे बचेंगे, बल्कि कर्मचारियों से जुड़ी हर तरह की जिम्मेदारी से भी वे मुक्त हो जाएंगी। Read more » fatal Featured the depression of young generation the depression of young generation is very fatal युवापीढ़ी युवापीढ़ी की निराशा रोज़गार
समाज शराबबंदी से बदलता महिलाओं का जीवन June 14, 2017 / June 14, 2017 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment जगीना जांगड़े बिहार की ही तर्ज पर कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य में शराबबंदी लागु करने का निश्चय किया गया। इसका असर छत्तीसगढ़ के कई गांवो में दिखने लगा है। जिला जांजगीर चांपा का कोसिर गांव इन्ही गांव में से एक है। जहां कुछ समय पहले तक कई परिवार शराब बंदी के कारण […] Read more » Featured liquor ban शराबबंदी
समाज बारिश और बचपन June 14, 2017 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment बचपन में बारिश हो और हम जैसे बच्चे घर में बैठे रहें, नामुमकिन था. किसी न किसी बहाने बाहर जाना था, बारिश की ठंडी फुहारों का आनन्द लेते हुए न जाने क्या-क्या करना था. हां, पहले से बना कर रक्खे विभिन्न साइज के कागज़ के नाव को बारिश के बहते पानी में चलाना और पानी में छप-छपाक करना सभी बच्चों का पसंदीदा शगल था. Read more » Featured बचपन बारिश
समाज किसान-आंदोलन: कुछ अच्छी पहल June 13, 2017 / June 13, 2017 by डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Leave a Comment कर्ज माफी का एक नुकसान यह भी है कि कहीं यह किसानों की एक लत ही न बन जाए लेकिन फिर भी कम से कम एक बार तो किसानों को यह तात्कालिक राहत मिलनी ही चाहिए। किसानों को स्थायी राहत मिले, इस दिशा में मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने कुछ अच्छे कदमों की घोषणा की है। जैसे हर गांव और शहर में किसान बाजार बनाए जाएंगे, जहां किसान सीधे स्वयं अपनी चीजें बेच सकेंगे। अगर बिचौलिए नहीं होंगे तो जो प्याज़ उसे 5 रु. किलो बेचनी पड़ती है, उसके उसे 15 से 20 रु. किलो तक मिलेंगे। Read more » Featured किसान आंदोलन
समाज परपीड़क पुरुष समाज और नारीवादी विमर्श June 13, 2017 by राजू पाण्डेय | Leave a Comment अमेज़न का यह प्रोडक्ट गहरे दार्शनिक प्रश्नों को छेड़ता है- क्या नारी की मुक्ति जेंडर इक्वलिटी में निहित है? क्या नर और नारी एक समान का नारा सही है? क्या यूनिसेक्स वस्त्र पहनकर, न्यूडिस्ट क्लब ज्वाइन कर अनेक पुरुषों को अपनी मर्जी के अनुसार सेक्स करने के हेतु बाध्य कर नारी अपनी मुक्ति पा सकती है? क्या यह पुरुषवादी पितृसत्तात्मक समाज द्वारा फैलाया गया भ्रम है कि नारी शारीरिक रूप से पुरुष से कमजोर होती है, Read more » Featured नारीवादी नारीवादी विमर्श परपीड़क पुरुष समाज
पर्यावरण समाज लद्दाख के वातावरण को बचाने का अनोखा प्रयास June 12, 2017 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment स्थानीय लोगो के माल मवेशी पर हिंसक हमलों के कारण लोगो का तेंदुए पर गुस्सा बहुत अधिक था, ऐसे में क्षेत्र में विभिन्न पशुओं के नस्लों की रक्षा करना महत्वपूर्ण था। रात के समय पशुओं को रखने की जगह चारो ओर से तो सुरक्षित थी परंतु उपर से खुली होती थी। कारणवश स्नो लेपर्ड रात के समय में जानवरों पर हमला कर देता था और लोगो औरस्नोलेपर्ड के बीच संघर्ष का एक वातारण निरंतर रुप से बढ़ता ही जा रहा था। Read more » लद्दाख स्नो लेपर्ड
समाज बाल श्रम रोकने के लिये सरकार और समाज को करना होगा सामूहिक प्रयास June 11, 2017 by ब्रह्मानंद राजपूत | 1 Comment on बाल श्रम रोकने के लिये सरकार और समाज को करना होगा सामूहिक प्रयास बाल-श्रम की समस्या भारत में ही नहीं दुनिया कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है। जिसका समाधान खोजना जरूरी है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। Read more » Featured बाल श्रम विश्व बालश्रम निषेध दिवस
समाज लोगों की मौत और हिंसक प्रदर्शन से आगे क्या ? June 9, 2017 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment जरा सोचिये, समाज में अशांति फैलाने के लिए पेड उपद्रवियों (यानि पैसे के लिए कुछ भी करेगा टाइप उपद्रवी) और उनके पीछे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से खड़े कतिपय राजनीतिक नेताओं को छोड़ कर ऐसा असामाजिक कृत्य कोई कैसे कर सकता है. फिर सोचने वाली बात यह भी है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने से आम कर दाताओं का ही जेब ढीला होता है. ट्रक, बस आदि जलाने से बीमा कंपनियों द्वारा क्षति का भुगतान करना पड़ता है, जो प्रकारांतर से हमें और देश को आर्थिक नुकसान पहुंचाता है. ऐसे भी, कुछ लोगों के गैरकानूनी हरकतों के कारण हजारों–लाखों लोग आए दिन बेवजह मुसीबत झेलें. Read more » Featured mandsaur farmer death लोगों की मौत हिंसक प्रदर्शन
समाज क्यों न फिर से निर्भर हो जाए June 8, 2017 / June 9, 2017 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment जरा एक पल रुक कर सोचिए तो सही कि यह भौतिकवादी संस्कृति हमें कहाँ लेकर जा रही है? क्यों हमारे समाज में जहाँ समाज और परिवार एक दूसरे के पूरक थे आज उन दोनों के बिखराव को झूलाघरों एवं वृद्धाश्रमों द्वारा पूरा किया जा रहा है? शायद इन सभी सवालों के जबाव इन सवालों में ही है। Read more » become dependent on kids again for need dependent on kids Featured grand parents dependent on kids for needs निर्भर भौतिकवादी संस्कृति