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बावफ़ा है

“अक्ल को तन्कीद से फुर्सत नहीं 

इश्क पर आमाल की बुनियाद रख”

हाल ही में एक फ़िल्म आयी है चमनबहार जिसमें नायक अपनी जीतोड़ मेहनत सी की कमायी गयी अल्प पूंजी पर अपने मन के उदगार लिखते हुए लिखते हुए दस -दस के नोटों पर अपनी प्रेमिका के प्रति अपनी भड़ास निकालते हुए लिखता है कि फ़िल्म की नायिका बेवफा है ,मगर  तकादे की रुसवाई से आजिज आकर वो नोटों का बंडल तकादेदार को सौंप देता है ,बात पुलिस तक पहुंच जाती है ।नायक पिटता है ,तब नायिका को पता चलता है कि नायक सही आदमी है ,जाहिर है नायक की पिटाई से जनता को हास्य -बिनोद नहीं हुआ इसीलिये चमन बहार नहीं चली।लेकिन इधर बिनोद ने कोरोना काल में लोगों का खूब बिनोद किया,बड़ी बड़ी सोशल साइट्स और विश्वस्तरीय कम्पनियां कुछ देर के लिये बिनोद हो गयीं।ये देश ऐसा ही है जहाँ सौम्य, साधारण चीजों पर लोगबाग फिदा हो जाते हैं जैसे कुछ बरस पहले एक दिलजले ने दस रुपये के नोट पर मिस गुप्ता को बेवफा क्या मान लिया, देश के लाखों लोगों के भावनाएं उस गुमनाम दिलजले आशिक के साथ जुड़ गयीं और लोगों ने प्रार्थनाएं की उस गुमनाम ,मगर सच्चे आशिक की मिस गुप्ता से सारे गिले-शिकवे दूर हो जाएं ।ऐसे ही आशिकों के लिये किसी ने कहा है -“जल जा,जल जा इश्क़ में जल जा जले वो कुंदन होयजलती राख लगा ले माथे लगे तो चन्दन होय”सोशल मीडिया है ऐसा ,कोरोना में अपनी घटती मीडिया अटेंशन से परेशान एक फिल्मी सितारे की पीआर एजेंसी भी उसे कोरोना संक्रमित होने पर उतना फुटेज नहीं दिला पायी जितना सिर्फ बिनोद लिखकर कोई लोकप्रिय हो गया ,सुना है बिनोद शब्द ने उन्हें काफी त्रास और तनाव दिया है ,जवानी में बिनोद खन्ना ने और अब बुढापे में इतनी बड़ी मीडिया और पीआर एजेंसी की सेवाएं लेने के बाद सिर्फ तीन अक्षर बिनोद लिखकर कोई लाइमलाइट चुरा ले गया ,बेचारे बहुत परेशान हैं ।यही हाल अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का भी है ।वहाँ सरकार की पीआर एजेंसी ने उसको सलाह दे दी कि ये सही वक्त है कि इस्लामिक मुल्कों के यूनियन का सरबरा बना जाए उसके सिर पर तुर्की औऱ मलेशिया का हाथ है तो वो सऊदी अरब को चुनौती दे सकता है ।ऐसे फैंटम टाइप बयान मियां नियाजी की सरकार में शेख रसीद मिनिस्टर दिया करते रहते हैं।शेख रसीद को भी खुदा ने फुर्सत में बनाया है ।उनके बयान सुनकर तो आइंस्टीन भी की आत्मा अपनी मेधा पर अफसोस कर रही होगी।बकौल शेख रसीद पाकिस्तान ने एक ऐसा बम ईजाद किया है जो वो हिंदुस्तान पर गिराएंगे तो वो चुन चुन कर सभी को मारेगा, लेकिन एक खास धर्म के लोगों को छोड़ देगा ।भारत में ऐसे चुटकुलों पर अब कोई नहीं हँसता, हमारे पास मनोरंजन की बेहतर सूचनाएं मौजदू हैं जैसे कि एक बहुत बड़े दैनिक अखबार ने अभी खबर दी है कि महेंन्द्र सिंह धोनी पिछले वर्ष का सेमीफाइनल भारत को न जिता पाने पर बाथरूम के अंदर मुँह में कपड़ा ठूंस कर रोये थे ताकि आवाज़ बाहर ना जा सके।इस महान पत्रकारिता की न्यूज़ के बाद कुछ लोग इस तथ्य पर संविधान विशेषज्ञों से राय मशविरा कर रहे हैं कि क्या अखबार को पब्लिक निकाय माना जा सकता है और आरटीआई डालकर उस मीडिया समूह क्या निम्नलिखित प्रश्न पूछे जा सकते हैं क- क्या धोनी के मुंह में कपड़ा डालकर रोने वाले कपड़े का रंग कौन सा था ।ख-क्या वो कपड़ा जर्सी की तरह स्पॉन्सर था ,या जर्सी के साथ रोने के लिये उसी रंग का कपड़ा उपलब्ध कराया गया था।ग-क्या जिस कम्पनी का कपड़ा था भविष्य में धोनी उसका विज्ञापन करेंगे और लोगों को आश्वासन देंगे कि मैच हारने के बाद मुंह में कपड़ा डाल कर रोने के लिये ये सबसे मुफीद ब्रांड है ।घ-सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि जो कपड़ा वो मुंह में ठूंस कर रोये थे ,भविष्य में उसकी नीलामी का बेस प्राइस कितना होगा ?
 टीवी चैनल के पत्रकार जिस तरह कोरोना संकट में एडमिट हुए एक अभिनेता के बेड के नीचे अस्पताल में जाकर रिपोर्टिंग का अभ्यास कर रहा था ।उसी तरह टीवी चैनल का रिपोर्टर ड्रेसिंग रूम के किसी बाथरूम में मुंह में कपड़ा डाल डालकर रोने का प्रयास करेगा  और  लोगों को बताएगा कि इतने इंच का कपड़ा मुंह में डाल कर रोने  से बतौर खिलाड़ी आपका दुख कम हो जायेगा, क्रिकेट प्रेमी भले ही किसी के जानबूझकर घटिया खेलने पर बरसों आंसू बहाते रहें ।उम्मीद है जल्द ही  शास्त्री इस मुंह में कपड़ा डाल कर रोने के धोनी के काम को “आउटस्टैंडिंग गेम प्लान “बताते हुए भारत के क्रिकेट प्रेमियों को विश्व कप के सेमीफाइनल के एक मैच में चार विकेटकीपर खिलाने की महानतम रणनीतियों पर वक्तव्य देकर भारत के क्रिकेट प्रेमियों को लाभान्वित करेंगे ।वैसे रोने के लिये मुंह में कपड़ा ठूंसना जरूरी नहीं ,एक और सेमीफाइनल हुआ था  विश्वकप का 1996 में जिसमें  दर्शकों के हुड़दंग की वजह से टीम को न जिता पाने वाले बिनोद काम्बली भी फफक -फफक कर और बिलख -बिलख कर रोये थे ,देश के सामने ,मैदान पर ,तब उनके साथ देश के लाखों क्रिकेट प्रेमी भी साथ साथ रोये थे उस हार पर ।लेकिन तब पीआर एजेंसीज नहीं थीं जो ये तय करती थीं कि कौन सा सेलेब्रिटी कितनी देर तक ,किस लोकेशन पर कितना रोयेगा और मीडिया ब्रीफिंग में उसके रोने की सूचना सही ढंग से दी जा सके ।ये मीडिया अटेंशन बहुत बुरी चीज है ,ब्रिटेन में राजपरिवार की बहू अपना राजपाट छोड़कर केनेडा में मॉडलिंग करना चाहती हैं,बतौर क्वीन की बहू उनको उतना फुटेज नहीं मिल पाता ।सदैव मीडिया में रहने वाले नेपोटिज्म के झंडाबरदार आजकल निर्वासन में हैं और मामी से दूर हो चुके महोदय ने कुछ दिन पहले भी मीडिया में एक खबर भिजवाई थी कि कि वे एक युवा सिनेस्टार की मृत्य से बेहद आहत हैं और बार -बार ,जार -जार रोते हैं ।रोना भी एक अदा है पाकिस्तान के यू टर्न कहे जाने वाले  प्राइम मिनिस्टर की हालत भी आजकल रोनी सूरत बनाये फिरते हैं।जिस सऊदी अरब के लिये वो अपनी जान छिड़कने को आमादा हैं और समूचे पाकिस्तान को सऊदी अरब का दोस्त कहा है ,लेकिन सऊदी अरब ने साफ कर दिया है कि हम जिनको नौकरी पर रखते हैं ,उनसे दोस्ती नहीं करते ,दोस्ती बराबर के लोगों से होती है ,उनसे नहीं जो उन्हीं की खैरात पर ज़िंदा हैं ।पाकिस्तान ने हाथ फैलाया ,सऊदी ने 3 अरब डॉलर डाल दिया ,पाकिस्तान ने आंखे दिखायी तो सऊदी ने अपने एक करोड़ डॉलर तुरन्त मांग लिये।मांगे -तांगे से अपनी अर्थव्यवस्था चलाने वाले पाकिस्तान ने तुरंत एक करोड़ डॉलर चीन से मांगकर सऊदी को दे दिया,लेकिन तेल की सप्लाई रोक दी और नकद लेकर ही तेल देने को कहा है।पाकिस्तान ने अपने नए दोस्त मलेशिया की शरण ली ,मलेशिया पहले से ही रो रहा है कि भारत ने साल भर से उससे पाम आयल खरीदना बन्द कर दिया है ,महातिर मोहम्मद की ऊलजुलूल बयानबाज़ी के सबब ।94 साल के महातिर मोहम्मद मलेशिया की अर्थव्यवस्था की पनौती बने बैठे हैं।खैर नियाजी निराश नहीं हुए उन्होंने तुरंत अपने नए रिंगमास्टर तुर्की से मदद मांगी ,लेकिन भारत विरोधी बयानों के कारण तुर्की का बहिष्कार करते हुए पिछले वर्ष डेढ़ लाख भारतीयों ने अपनी तुर्की यात्रा रदद् कर दी ।तुर्की की भी हालत खस्ता है ,वो दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का ख्वाब तो देख रहे हैं लेकिन सिर्फ डेढ़ लाख भारतीयों के यात्रा बहिष्कार से वहां की अर्थव्यवस्था हिल गयी है ।डिप्लोमेसी के जानकार बताते हैं कि तुर्की ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया है कि जब भारत के लोग तुर्की की यात्रा शुरू करेंगे तब हालात सामान्य होंगे।उससे उनकी अर्थव्यवस्था सुधरेगी ,तब वो कुछ पैसे पाकिस्तान को दे देंगे ताकि वो भारत को परेशान कर सके।यही है इकोनॉमी का गोल चक्कर ।पाकिस्तान अब सऊदी अरब से गिड़गिड़ा रहा है कि हमें तेल देना बंद मत करो वरना हमारी इकोनॉमी का तेल निकल जायेगा।आप जैसा कहेंगे हम वैसा ही करेंगे।दुष्यंत साहब ने इसी हालात पर फरमाया था कि “डांट खाकर मौलवी से अहले मकतबफिर वही आयत दोहराने लगे हैं वो सलीबों के करीब आये तो हमको कायदे कानून समझाने लगे हैं”,
इसी सब के बीच तुर्की की फर्स्ट लेडी से एक   हिंदुस्तानी अभिनेता की मुलाकात पर सोशल मीडिया पर काफी हास्य -बिनोद हो रहा है । उन अभिनेता साहब की घर की एक लेडी ने बताया था कि उन्हें इस देश में डर लगने लगा था ।उम्मीद है अब वो निडर होकर कहीं भी आ जा सकते हैं ।इसी निडरता में वो नेटीजन्स के निशाने पर आ गए।एक ऐसे दौर में जब एक भारतीय फिल्म ने डिसलाइक होने का रिकॉर्ड बनाया है ,तब उनकी मुलाकात की टाइमिंग को परफेक्ट कहना शायद मुफीद नहीं होगा,जबकि उनकी फिल्म भी आने वाली है ।उनकी इस परफेक्ट मुलाकात की टाइमिंग पर कई नेटीजनों का हास्य -बिनोद हो रहा है ।इसी बीच डिस्लाइक में महारत रखने वाला एक बन्दा गा रहा है –
“यारों हंसों बना रखी है क्या ये सूरत रोनी “।कुछ उसे हिला हुआ ,प्रचार का भूखा कहती है ,लेकिन तमाम नेटीजन प्यार से कहते पाए गए हैं “बिनोद बावफ़ा है “।

नहीं रुक रहा महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध

शालू अग्रवाल,

मेरठ

कोरोना के आपदा काल में जब समूचा विश्व महामारी से बचाव के लिए जीवनोपयोगी वैक्सीन बनाने की कवायद में जुटा है, जब पूरी दुनिया इस आफत से मानव सभ्यता को बचाने में चिंतित है ऐसी मुश्किल घड़ी में भी महिलाओं की सुरक्षा एक अहम प्रश्न बनी हुई है, क्योंकि संकट की इस घड़ी में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है। अनलॉक प्रक्रिया में जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सभी स्वरूपों में वृद्धि हुई है, वहीं लॉक डाउन के दौरान भी महिलाएं हर पल अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए समाज से खामोश जंग लड़ती दिखाई दी हैं। लॉक डाउन ने समाज के हर वर्ग के जीवन को बदला और किसी न किसी रूप में प्रभावित किया, मगर भारतीय स्त्रियों के लिए परिस्थितियाँ जस की तस रहीं। लॉक डाउन से पूर्व महिलाएं दहेज हत्या, विवाद, गृह कलह के जिस शिकंजे में जकड़ी थीं, वही दलदल उन्हें लॉक डाउन में भी नसीब हुआ।

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा कहती हैं कि लॉक डाउन में हर प्रकार के अपराध में गिरावट आई मगर बदकिस्मती से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में कोई खास बदलाव नहीं लाया। शहर हो या गांव हर जगह महिलाएं अपराध के लगभग सभी स्वरूपों का शिकार हुईं हैं। हालांकि लॉक डाउन में इस अपराध के खिलाफ हिंसा की अपेक्षा रिपोर्ट कम दर्ज कराई गई, क्योंकि लॉक डाउन से पहले महिलाओं के खिलाफ होने वाली अधिकांश घटनाएं थानों, चौकियों में दर्ज हो जाती थीं। लेकिन लॉक डाउन में बाहर निकलने पर सख्ती होने से औरतों की यह सिसकियां घरों की चार दिवारी में दफ़न होकर रह गईं।

दरअसल लॉक डाउन में जब सब बंद है ऐसे में वाहन चोरी, चैन स्नेचिंग, हत्या, जमीन विवाद, लूट और चोरी जैसे हर प्रकार के अपराध में भारी गिरावट आई है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। यहां तक कि महिलाओं को इस बंदी में शारीरिक के साथ साथ मानसिक यातनाओं को भी सहना पड़ा था। इस संबंध में परिवार परामर्श केंद्र की सलाहकार निर्मल बख्शी कहती हैं कि लॉक डाउन में सब बंद था, 24 घंटे पति पत्नी एक छत के नीचे रह रहे थे, काम धंधा बंद होने से मानसिक रूप से परेशान पति अपना गुस्सा पत्नी पर ही निकालने लगा। ऐसे में घरेलू हिंसा के केसों का बढ़ना स्वाभाविक था। यही कारण है कि मार्च से मई तक के महीनों में आपराधिक आंकड़ों में कमी आई लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में खास अंतर नहीं आया। मेडिकल कॉलेज की मनोविज्ञानी और सलाहकार डॉ पूनम देवदत्त कहती हैं कि भारतीय महिलाओं को अपराध सहने की आदत बचपन से ही डाल दी जाती है। इसे उनका मुकद्दर बता दिया जाता है।

कोविड 19 के काल में अपराध की शिकार कोई खास वर्ग, जाति या समाज की महिलाएं हुई हैं, या उन पर संकट बढ़ा है, कहना गलत होगा। समाजशास्त्री प्रोफेसर डॉ लता कुमार के अनुसार इस महामारी में शिक्षित, नौकरीपेशा, शहरी, अनपढ़, कामगार और घरेलू सभी महिलाओं को अपमान के घूंट पीने पड़े हैं। शहरी और नौकरीपेशा महिलाओं पर लॉक डाउन में घर के कामों का बोझ बढ़ा। परिवार के सभी सदस्य घर पर हैं ऐसे में हर सदस्य की जरूरत व इच्छाओं का ख्याल रखने की बढ़ी जिम्मेदारी महिलाओं पर आ गई। परिवार की फ़रमाइशों को पूरा करने के बीच नौकरीपेशा महिलाओं को वर्क फ्रॉम होम को भी बखूबी पूरा करना एक चैलेंज था। महिला मुद्दों की जानकर अतुल शर्मा कहती हैं कि शिक्षा जगत में 80 फीसदी महिलाएं हैं, विशेषकर देश भर में फैले प्राइवेट स्कूलों में महिला शिक्षकों की बड़ी संख्या है। ऐसे में उन्हें घर पर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करानी है। निजी कंपनियों व अन्य सेक्टर की नौकरीपेशा महिलाओं को भी वर्क फ्रॉम होम मिल गया। महिलाओं के दफ्तर के काम मे कोई कटौती नही हुई लेकिन घर पर रहने से परिवार की ज़िम्मेदारी भी बढ़ गई। आम दिनों में घर के कामों में हाथ बंटाने वाली आया की भी कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण छुट्टी करनी पड़ी।

घर, परिवार और दफ्तर का दोहरा बोझ अकेले महिलाओं के कंधों पर पड़ गया। वहीं परिवार का कोई सदस्य इन कामों में उसका सहयोग करने को तैयार नहीं था। ऑफिस से मिले टारगेट को समय पर पूरे न होने पर नौकरी जाने का भय भी महिलाओं को था। दिन भर पति के घर पर रहने से छोटी, छोटी बातों पर तनाव, गृहकलेश का कड़वा घूंट भी महिलाओं को ही पीना पड़ा है। ग्रामीण इलाकों में भी स्थितियां बदतर हैं। घर के अंदर जहाँ छोटी छोटी बातों पर पति का ज़ुल्म सहना पड़ता था, वहीं खेतों पर जाने वाली महिलाओं के साथ छेड़खानी, दुराचार जैसी घटनाएं होने का खतरा बना रहता था। पलायन करने वाले कामगारों में भी महिला श्रमिकों के साथ छेड़खानी की कई घटनाएं हुईं, जिन्हें कहीं दर्ज नहीं किया गया।

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल कहती हैं कि जिस समय पूरा देश कोरोना के खिलाफ एकजुट होकर लड़ रहा था, दुःख की बात यह है कि उस समय भी रेप, साइबर क्राइम, घरेलू हिंसा के मामले सामने आ रहे थे। लॉक डाउन के दौरान जहां देश की राजधानी दिल्ली में अपराधों की संख्या घटी थी, वहीं बलात्कार, घरेलू हिंसा, पॉक्सो और साइबर अपराध के मामलों में कोई कमी नहीं आई थी। आयोग की हेल्पलाइन 181 को औसतन रोज़ाना 1500-1800 कॉल मिलती थी। लॉक डाउन के दौरान महिला अपराध की सर्वाधिक शिकायतें उत्तर प्रदेश से आईं। यूपी पुलिस के मुताबिक प्रदेश मे लॉक डाउन के दौरान हत्या, अपहरण, वाहन चोरी और छिनैती की वारदातों में पचास प्रतिशत की कमी आई थी। बावजूद इसके, महिलाओं के साथ गैंगरेप जैसी घिनौनी वारदातों में किसी प्रकार कमी नहीं हुई थी। शर्म की बात यह है कि राजस्थान के सवाई माधोपुर में लॉकडाउन की वजह से क्वारंटीन में रुकी एक महिला से सरकारी स्कूल परिसर में ही सामूहिक दुष्कर्म हुआ था।

लॉक डाउन के दौरान केवल भारत में ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि दर्ज नहीं हुई है बल्कि ब्रिटेन जैसे विकसित और उच्च शिक्षित कहे जाने वाले यूरोपीय देश में भी आंकड़ा बढ़ा है। यह इस बात का सबूत है कि महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटना समाज के विकसित होने से नहीं बल्कि उसकी मानसिकता से जुड़ा है। किसी भी सभ्य समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कोई जगह नहीं हो सकती है, परंतु इसके लिए ज़रूरी है समाज का मानसिक रूप से विकसित होना। जहां तक भारत का प्रश्न है तो सदियों से भारतीय समाज महिला को देवी के रूप में पूजता रहा है, लेकिन इसके बावजूद भारतीय समाज में महिलाओं को बराबरी का स्थान पाने के लिए आज भी संघर्ष करनी पड़ रही है। समय आ गया है इस बात पर गंभीरता से विचार करने का, कि आखिर देश, समाज, घर और परिवार के लिए अपना सबकुछ निछावर करने के बावजूद महिलाओं के खिलाफ हिंसा क्यों नहीं रुक रही है?

खेल के लिए ईमानदार नीति की जरुरत

अरविंद जयतिलक

किसी भी राष्ट्र की प्रतिभा खेलों में उसकी उत्कृष्टता से बहुत कुछ जुड़ी होती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में अच्छा प्रदर्शन केवल पदक जीतने तक सीमित नहीं होता बल्कि राष्ट्र के स्वास्थ्य, मानसिक अवस्था एवं लक्ष्य के प्रति सतर्कता व जागरुकता को भी निरुपित करता है। साथ ही मानव के समग्र विकास में भी खेलों की अहम भूमिका होती है। खेल मनोरंजन के साधन और शारीरिक दक्षता पाने के एक माध्यम के साथ-साथ लोगों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित करने और उनके बीच के संबंधों को बेहतर बनाने में भी सहायता करता है। दो राय नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्ध्यिों ने हमेशा ही देश को गौरान्वित किया है। लेकिन सच्चाई यह है कि सवा अरब की आबादी वाले देश में उत्कृष्ट खिलाड़ियों, अकादमियों और प्रशिक्षकों की भारी कमी है और उसका नतीजा यह है कि देश खेल के क्षेत्र में अभी भी बहुत पीछे है। एक आंकड़े के मुताबिक देश में सिर्फ पंद्रह प्रतिशत लोग ही खेलों में अभिरुचि रखते हैं। गौर करें तो इसके लिए समाज का नजरिया और सरकार की नीतियां दोनों जिम्मेदार हैं। समाज में अभी भी वहीं पुरानी धारणा स्थापित है कि खेल के बजाए पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। दरअसल समाज को लगता है कि खेलकूद के जरिए नौकरी या रोजी-रोजगार हासिल नहीं किया जा सकता। यह सच्चाई भी है। गौर करें तो सरकार का ध्यान भी खेलों के आधारभूत ढांचे में परिवर्तन और उससे रोजगार को जोड़ने के प्रति नहीं है। उसका पूरा ध्यान इस बात पर होता है कि राष्ट्रीय खेल अकादमियों को अध्यक्ष व सदस्य कौन होगा। देखा भी जाता है कि जब भी सरकारें बदलती हैं तो खेल में खेल होना शुरु हो जाता है। यहां तक कि मामला न्यायालय की चैखट तक पहुंच जाता है और उसे दखल देना पड़ता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह कि खेल संगठनों के नियंता भी ऐसे लोग हैं जिन्हें खेल का एबीसीडी भी मालूम नहीं लेकिन उन्हीं के हाथों में खेल का भविष्य है। भला ऐसे माहौल में खेल का विकास कैसे होगा। खेलों के विकास के लिए जरुरी है कि सरकार स्पष्ट नीति के साथ स्कूलों, काॅलेजों, विश्वविद्यालयों व खेल अकादमियों में धनराशि बढ़ाकर बुनियादी ढांचे के विकास की गति तेज करे ताकि खेल की क्षमता बढ़ सके। उचित होगा कि सरकारें स्कूल स्तर से ही खेल को बढ़ावा देने का काम शुरु करें। स्कूलों में बच्चों की प्रतिभा एवं विभिन्न खेलों में उनकी अभिरुचित का ध्यान रखकर उन्हें विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इसके बाद उन्हें उचित प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध होना चाहिए। लेकिन सच्चाई है कि स्कूलों में खेल के प्रति उदासीनता है और उसका मूल कारण खेल संबंधी संसाधनों की भारी कमी और खेल से जुड़े योग्य अध्यापकों का अभाव है। कमोवेश स्कूलों जैसे ही हालात माध्यमिक विद्यालयों की भी है। यहां खेल का केवल औपचारिकता निभाया जाता है। दूसरी ओर काॅलेजों और विश्वविद्यालयों की बात करें तो यहां संसाधन तो हैं लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में खेलों के प्रति छात्रों की अनासक्ति बनी हुई है। उचित होगा कि केंद्र व राज्य सरकारें खेलों में सुधार के लिए पटियाला में स्थापित खेल संस्थान की तरह देश के अन्य स्थानों पर भी संस्थान खोलें। ऐसा इसलिए कि उचित प्रशिक्षण के जरिए देश में खेलों का स्तर ऊंचा उठाया जा सकता है। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि जब तक खेलों को रोजगार से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक देश में खेलों की दशा सुधरने वाली नहीं है। अगर खेलों में नौजवानों को अपना भविष्य सुनिश्चित नजर आएगा तभी वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। खेलों में भविष्य सुरक्षित न होने के कारण ही नौजवानों में उदासीनता है और खेल के क्षेत्र में देश की गिनती फिसड्डी देशों में होती है। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि खेल में स्थिति न सुधरने का एकमात्र कारण सरकार की उदासीनता भर नहीं है। बल्कि खेल से विमुखता के लिए काफी हद तक समाज का नजरिया भी जिम्मेदार है। आज भी देश में एक कहावत खूब प्रचलित है कि ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब’। देखा जाता है कि अकसर माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें खींच आती हैं जब उनका बच्चा आवश्यकता से कुछ ज्यादा खेलने लगता है। उन्हें डर सताने लगता है कि उनका बच्चा खेलेगा तो पढ़ेगा ही नहीं। स्कूलों में भी गुरुजनों द्वारा बच्चों को डांटते हुए सुना जाता है कि दिन भर खेलोगे तो पढ़ोगे कब। अगर सरकार की नीतियों में खेल से रोजगार का जुड़ाव हो तो फिर माता-पिता के मन में बच्चे के भविष्य को लेकर किसी तरह की चिंता नहीं होगी। सच तो यह है कि देश में खेल के प्रति उत्साहजनक वातावरण निर्मित नहीं हो पा रहा है और उसी का नतीजा है कि आज देश अंतर्राष्ट्रीय खेलपदकों से महरुम रह जाता है। हां, यह सही है कि अब पहले के मुकाबले ओलंपिक और एशियाड खेलों में भारत के खिलाड़ी उत्तम प्रदर्शन कर रहे हैं और वे पदक जीतकर देश का मान बढ़ा रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि देश में खेल का मतलब क्रिकेट बनकर रह गया है और बाकी खेलों को दरकिनार कर दिया गया है। फुटबाल, कबड्डी, तीरंदाजी, जिमनास्टिक जैसे खेल के खिलाड़ियों को उस तरह का सम्मान नहीं मिलता जितना कि क्रिकेटरों को। यहां तक कि विज्ञापनों में भी क्रिकेटर ही छाए रहते हैं। यहीं वजह है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भारत की दशा चिंतनीय और शोचनीय है। खेल प्रदर्शनों पर गौर करें तो ब्राजील के रियो ओलंपिक 2016 में भारत का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक व लचर रहा। रियो में 119 खिलाड़ियों का दल भेजा गया था लेकिन भारत को सिर्फ दो मेडल मिले। रियो में सिर्फ पीवी सिंधु (सिल्वर) और साक्षी मलिक (कांस्य) ही मेडल जीत पायी। किसी भी भारतीय पुरुष को मेडल नहीं मिला। दो मेडल के साथ भारत को मेडल लिस्ट में 67 वां स्थान मिला। इस दयनीय स्थिति से समझा जा सकता है कि भारत में खेलों की क्या स्थिति है। यह सच्चाई है कि दुनिया के दूसरे सर्वाधिक जनसंख्या वाले हमारे देश में खेलों का जो स्तर होना चाहिए वह नहीं है। भारत को अपने पड़ोसी देश चीन से सीखना चाहिए कि 1949 में आजाद होने के बाद 1952 के ओलंपिक में एक भी पदक नहीं जीता लेकिन 32 वर्ष बाद 1984 के ओलंपिक में 15 स्वर्ण पदक झटक लिया। आज चीन हर ओलंपिक खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर दुनिया को अचंभित कर रहा है। उसके ओलंपिक पदकधारकों में महिलाओं की तादाद भी अच्छी होती है। अच्छी बात यह है कि अब भारत में भी महिला खिलाड़ी कीर्तिमान रच रही हैं। दरअसल चीन ने खेल को प्राथमिकता में शामिल कर अपनी नीतियों को उसी अनुरुप ढाला है जिसके अपेक्षित परिणाम सामने आ रहे हैं। अगर भारत भी नई प्र्रतिभाओं को खेल के प्रति आकर्षित करना चाहता है तो उसे गांवों से लेकर नगरों तक के खेल की बुनियादी ढांचे में आमुलचूल परिवर्तन करना होगा। उसे खेल प्रशिक्षण की आधुनिक अकादमियों की स्थापना के साथ-साथ समुचित प्रशिक्षण, खेल धनराशि में वृद्धि तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन करना होगा। उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों एवं प्रशिक्षकों को सम्मानित करना होगा। यही नहीं मेजर ध्यानचंद जैसे अन्य महान खिलाड़ी को भी भारत रत्न की उपाधि से विभुषित करना होगा। गौरतलब है कि आज भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मन पद्मभूषण से सम्मानित मेजर ध्यानचंद  का जन्मदिन है। खेल में उनके महत्वपूर्ण योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन को भारत में खेल दिवस के रुप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद विश्व हाॅकी में शुमार महानतम खिलाड़ियों में से एक अद्भुत खिलाड़ी रहे हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा व लगन से देश का मस्तक गौरान्वित किया। दो राय नहीं कि अब खेलों के प्रति बदलते नजरिए से भारत खेल के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है लेकिन सच तो यही है कि अभी भी चुनौती जस की तस बरकरार है। यहां समझना होगा कि जब तक खेल के विकास के लिए ईमानदार नीतियों को आकार नहीं दिया जाएगा और खेल को रोजगार से जोड़ा नहीं जाएगा तब तक भारत में खेल के विकास की गति धीमी ही रहेगी।

क्योंकि शौक अपनी इज्जत लुटवाने का है !

-निरंजन परिहार

अब रिया चक्रवर्ती, और उससे पहले सचिन पायलट। ‘आज तक’ धर्मात्मा बनने के लिए इनसे पहले भी, जाने कितने आए होंगे! तीम सलप्ताह में दो इंटरव्यू, जी हां, रिया और पायलट के इंटरव्यू देख देश को लगा जैसे कोई न्यूज चैनल नहीं, लिखी लिखाई पटकथा की प्रस्तुति का पराक्रमी मंच हो। रिया और पायलट को सवालों में संत साबित करने के दुखद दृश्यों में दर्शक अपने भरोसे की हत्या देखने को मजबूर था। क्योंकि देश का दिल तो सच पूछना चाहता था! मगर, एंकर तो आरोपी को धर्मात्मा साबित करने की कला में प्रचंड प्रतिभाशाली था, सो सीधे कलंकित पात्र के प्रति सद्भावना जगाने की जुगत जगाता दिखा। अपने आप ही सबसे तेज होने का तमगा पहनना बहुत आसान है, और उससे भी तेजी से बेशर्मियां करना भी उतना ही आसान है।  इसलिए, कहना मुश्किल है कि आने वाला इतिहास इसे खुद ही अपनी इज्जत लुटवानेवाले सबसे तेज चैनल के रूप में याद करेगा या अपनी चालाकियों के चमत्कार दिखानेवाले मदारी की बिसात के तौर पर। गनीमत है कि यह कोई देश का आखिरी न्यूज चैनल नहीं है, और फिलहाल इतिहास ऐसे किसी चैनल की बरबादी अपने पन्नों पर लिखने को बाध्य भी नहीं है। लेकिन जब भी लिखा जाएगा, तो कई ‘राज’ भी खुलेंगे और ‘दीप’ भी बुझेंगे। इसलिए एक बढ़िया चैनल की मट्टी पलीद होते देख माथा मत पीटिए।  क्योंकि बरबादी की खबरें अभी और भी हैं, देखते रहिए आज तक। और अमेरिका में पिटने के बावजूद, ये सुधरेंगे कब, इसका इंतजार कीजिए अनंत तक।  

मैत्री एवं क्षमा के बीज बोएं, खुशियों को पाएं

मैत्री दिवस (1 सितम्बर 2020) पर प्रकाशनार्थ
 – ललित गर्ग –

जैनधर्म की अहिंसा, मैत्री, क्षमा, त्यागप्रधान संस्कृति में पर्युषण एवं दसलक्षण पर्व के सर्वोत्कर्ष अवसर मैत्री दिवस का अपना अपूर्व एवं विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व है। यह मानवीय एकता, आपसी सौहार्द, भाईचारा एवं आपसी मित्रता का प्रतीक दिवस है। आत्मशुद्धि एवं आत्म उन्नयन के दसलक्षण पर्व का हृदय है-‘मैत्री दिवस’। यह दसलक्षण पर्व की दस दिवसीय साधना के बाद ग्यारहवें दिन आयोजित किया जाता है। दिगंबर जैन धर्मावलंबी दस दिन तक उत्तम क्षमा, उत्तम मार्जव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन, उत्तम ब्रह्मचर्य की साधना, आराधना, पूजन आत्म शुद्धि की भावना के साथ करते हैं। आत्मकल्याण के पर्व पर श्रावक अपनी शक्ति के अनुसार व्रत व संयम धारण कर अहिंसा मार्ग पर चलते हैं। पर्यूषण जैन धर्म का मुख्य पर्व है। जैन धर्म के श्वेतांबर इस पर्व को 8 दिन और दिगंबर संप्रदाय में 10 दिन तक मनाया जाता है।
अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन मंदिर एवं घरों में सभी लोग, भक्त-जन एक साथ प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल मे किये गए पाप और कटु वचन से किसी के दिल को जाने-अनजाने ठेस पहुंची हो, तो उसके लिए एक-दूसरे को क्षमा करते हैं और एक-दूसरे से क्षमा माँगते है और हाथ जोड़कर गले मिलकर मिच्छामी दूक्कडम कहते हैं। इस दिन अपनी भूलों या गलतियों के लिए क्षमा मांगना एवं दूसरों की भूलों को भूलना, माफ करना, यही इस दिवस को मनाने की सार्थकता सिद्ध करता है। यदि कोई व्यक्ति इस दिन भी दिल में उलझी गांठ को नहीं खोलता है, तो वह अपने सम्यग्दर्शन की विशुद्धि में प्रश्नचिन्ह खड़ा कर लेता है। मैत्री की अभिव्यक्ति करना, मात्र वाचिक जाल बिछाना नहीं है। परंतु सम्पूर्ण मानवता के साथ मित्रता करना अपने अंतर को प्रसन्नता से भरना है। बिछुड़े हुए दिलों को मिलाना है, सद्भावना एवं करुणा की स्रोतस्विनी बहाना है। वर्ष भर के बाद इस प्रकार यह मैत्री पर्व मनाना, जैनधर्म की दुर्लभ विशेषताओं में से एक है। इसे ग्रंथि विमोचन का पर्व भी कहते है क्योंकि यह पर्व ग्रंथियों को खोलने की सीख देता है। कोरोना महाव्याधि के संक्रमण दौर में क्षमा एवं मैत्री दिवस की अधिक प्रासंगिकता एवं उपयोेगिता इसलिये है कि यह आत्मज्योति को प्रज्ज्वलित करने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता जगाने का सशक्त माध्यम है।
आचार्य ज्ञानसागरजी कहा करते थे कि मैत्री पर्व का दर्शन बहुत गहरा है। मैत्री तक पहुंचने के लिए क्षमायाचना की तैयारी जरूरी है। क्षमा लेना और क्षमा देना मन परिष्कार की स्वस्थ परम्परा है। क्षमा मांगने वाला अपनी कृत भूलों को स्वीकृति देता है और भविष्य में पुनः न दुहराने का संकल्प लेता है जबकि क्षमा देने वाला आग्रह मुक्त होकर अपने ऊपर हुए आघात या हमलों को बिना किसी पूर्वाग्रह या निमित्तों को सह लेता है। क्षमा एवं मैत्री ऐसा विलक्षण आधार है जो किसी को मिटाता नहीं, सुधरने का मौका देता है। मैत्री घने अंधेरो के बीच जुगनू की तरह चमकता प्रेरक एवं मूल्यवान जीवनमूल्य हैं।
मानवीय व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण घटना तत्व है मैत्री। मैत्री दर्शन व्यक्तित्व को गरिमा प्रदान करती है, उसे गहराई और ऊंचाई देती है। क्षमा एवं मैत्री के अभाव में मनुज दानव बन जाता है। मैत्री धर्म की प्रतिष्ठा है। आपसी मतभेद होते हुए भी सब धर्मों और संप्रदायों ने क्षमा एवं मैत्री की महत्ता एक मत से स्वीकार की है। आचार्य विद्यासागरजी के अनुसार भी ‘क्षमा’ वीरों का आभूषण है। हर धर्म में क्षमा का महत्व है। वैदिक ग्रंथों में भी क्षमा की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है। यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्मों में क्षमा एवं मैत्री को ऊंचा स्थान प्राप्त है। ईसाइयत के बुनियादी तत्वों में इसकी गणना होती है। ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह की क्षमा भावना सुविख्यात है। जिन लोगों ने उन्हें शूली पर चढ़ाया, उनके लिए भी उन्होंने कहा-‘‘परमात्मा! उनको माफ कर दो, क्योंकि वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं।’’ इस्लाम में भी माफी की ताकत एवं मैत्री के दर्शन को खुदाई ताकत के रूप में स्वीकार किया गया है। पारसी धर्म के प्रवर्तक जरथुस्त्र तो उस धर्म को धर्म मानने के लिए भी तैयार नहीं थे, जिसमें क्षमा एवं मैत्री को स्थान न हो।
भगवान महावीर ने कहा-‘अहो ते खंति उत्तमा’-क्षांति उत्तम धर्म है। ‘तितिक्खं परमं नच्चा’-तितिक्षा ही जीवन का परम तत्व है, यह जानकर क्षमाशील बनो। तथागत बुद्ध ने कहा-क्षमा ही परमशक्ति है। क्षमा ही परम तप है। क्षमा धर्म का मूल है। क्षमा के समकक्ष दूसरा कोई भी तत्व हितकर नहीं है। क्योंकि प्रेम, करुणा और मैत्री के फूल सहिष्णुता और क्षमा की धरती पर ही खिलते हैं। मैत्री शब्द बहुत मीठा है। मित्र सबको अच्छा लगता है, शत्रु अच्छा नहीं लगता। मनुष्य इस प्रयास के साथ जीता है कि मेरे अधिक से अधिक मित्र बनें। राग और द्वेष-इन दोनों से परे है मैत्री।
‘सबके साथ मैत्री करो’ यह कथन बहुत महत्त्वपूर्ण है किंतु जब तक मैत्री की प्रक्रिया और मैत्री का दर्शन स्पष्ट नहीं होता, तब तक ‘मैत्री करो’ की बहुत सार्थकता और सफलता नहीं होती। यह मैत्री का विराट् दर्शन है। हम वर्तमान संबंधों को बहुत सीमित बना लेते हैं। दर्द सबका एक जैसा होता है, पर हम चेहरों को देखकर अपना-अपना अन्दाज लगाते हैं। यह स्वार्थपरक व्याख्या हमें प्रेम से जोड़ सकती है मगर करुणा से नहीं। प्रेम में स्वार्थ है, राग-द्वेष के संस्कार है, जबकि करुणा परमार्थ का पर्याय बनती है। कहा जाता है-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ वसुधा कुटुम्ब है, परिवार है। यह प्रत्यक्ष दर्शन की बात है। किंतु अतीत में जाएँ तो इसका अर्थ होगा-इस जगत् में जो प्राणी है, वह कभी न कभी तुम्हारे कुटुम्ब या परिवार का सदस्य रहा है। महावीर ने कहा-‘हाँ, यह जीव सब जीवों के माता-पिता, भाई-बहन आदि संबंधों के रूप में एक बार नहीं, अनेक बार पैदा हुआ है।’
‘मित्ती में सव्व भूएसु वेरं मज्झ न केणई’- यह सार्वभौम अहिंसा एवं सौहार्द का ऐसा संकल्प है जहां वैर की परम्परा का अंत होता है। क्रूरता करुणा में बदलती है, हिंसा से जन्मे भय और असुरक्षा के भाव समाप्त होते हैं। मनुष्य-मनुष्य के बीच सहअस्तित्व जागता है। क्षमा एवं मैत्री हमारी संस्कृति है। संपूर्ण मानवीय संबंधों की व्याख्या है। मैत्री को हम एक शब्द भर न समझे, यह एक संपूर्ण जीवन शैली है। आज के स्वार्थी युग में मैत्री की बात को केवल तर्क की तुला पर तौलेंगे तो संभवतः सही परिणाम नहीं आ पायेंगे। क्योंकि मैत्री स्वार्थ से नहीं, हृदय से आती है। इसीलिए मैत्री की जमीं जहां भी कमजोर पड़ती है, बुनियाद के खोखले हो जाने का भय भी जीवन के इर्द-गिर्द नए खतरे खड़े कर देता है। आज मानवीय संबंधों में दरारें पड़ रही हैं, संवेदनाओं का उत्स सूख रहा है, निजी स्वार्थों की पूर्ति में हम औरों के अस्तित्व को नकार रहे हैं, मन के प्रतिकूल कभी किसी को एक क्षण के लिए भी नहीं सहते। सत्ता, शक्ति, अधिकार और न्याय का उचित उपयोग नहीं करते।
प्रश्न उभरता है, आज मनुष्य-मनुष्य के बीच मैत्री-भाव का इतना अभाव क्यों? क्यों है इतना पारस्परिक दुराव? क्यों है वैचारिक वैमनस्य? क्यों मतभेद के साथ जनमता मनभेद? ज्ञानी, विवेकी, समझदार होने के बाद भी आए दिन मनुष्य लड़ता झगड़ता है। विवादों के बीच उलझा हुआ तनावग्रस्त खड़ा रहता है। न वह विवेक की आंख से देखता है, न तटस्थता और संतुलन के साथ सुनता है, न सापेक्षता से सोचता और निर्णय लेता है। यही वजह है कि वैयक्तिक रचनात्मकता समाप्त हो रही है। पारिवारिक सहयोगिता और सहभागिता की भावनाएं टूट रही हैं। सामाजिक बिखराव सामने आ रहा है। धार्मिक आस्थाएं कमजोर पड़ने लगी हैं। आदमी स्वकृत धारणाओं को पकड़े हुए शब्दों की कैद में स्वार्थों की जंजीरों की कड़ियां गिनता रह गया है। ऐसे समय में मैत्री दिवस व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं मानवीय रिश्तों में नयी ऊर्जा का संचार करता है। मैत्री एवं क्षमा का भाव हमारे आत्म-विकास का सुरक्षा कवच है। आचार्य श्री तुलसी ने इसके लिए सात सूत्रों का निर्देश किया। मैत्री के लिए चाहिए-विश्वास, स्वार्थ-त्याग, अनासक्ति, सहिष्णुता, क्षमा, अभय, समन्वय। यह सप्तपदी साधना जीवन की सार्थकता एवं सफलता की पृष्ठभूमि है। विकास का दिशा-सूचक यंत्र है।
कोरोना महाव्याधि एवं कहर के दौरान हर इंसान सुख, स्वास्थ्य, जीवन-सुरक्षा और शांति की खोज में हैं और पता लगाना चाहता है कि सुखी, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शांति है कहां? इसका सरल जबाव है कि क्षमा एवं मैत्री दर्शन में ही यह निहित है। वार्तमानिक परिवेश में जबकि मानवीय संवदेनाओं एवं आपसी रिश्तों की जमीं सूखती जा रही है ऐसे समय में एक दूसरे से जुड़े रहकर जीवन को खुशहाल बनाने और दिल में जादुई संवेदनाओं को जगाने का सशक्त माध्यम है मैत्री दिवस। एक मात्र जैन धर्म ही ऐसा है, जिसने मैत्री को पर्व का रूप देकर जीवन-व्यवहार के साथ जोड़ा है। जरूरत है हम सभी मैत्री पर्व व्यापक रूप में मनाये ताकि हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में सौहार्द स्थापित हो सके। यही क्षण जीवन को सार्थकता दे पायेगा। 

राष्ट्रीय खेल नीति से बढा खेल के प्रति रूझान

भगवत कौशिक

– “पढोंगे लिखोगे बनोंगे नवाब ,खेलोंगे कूदोगे होंगे खराब”अक्सर घर मे बडे बुजुर्गों से इस वाक्य को आपने कई बार सुना होगा क्योंकि पुराने समय में एक धारणा थी  कि पढ़ाई करने से बच्चे का भविष्य सुधरता है, लेकिन खेल कूदने से बच्चा कहीं का नहीं रहता है। इसी कारण माता-पिता अपने बच्चों को खेल कूद से दूर रखते थे। अब जमाना बदल चुका है। अब खेलोंगे कूदोगे बनोंगे नवाब का जमाना आ चुका है।पढाई के साथ साथ हमारे शरीर को फीट एवं तरोताजा रखने के लिए खेल भी हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज खेलो के क्षेत्र मे हमारे खिलाड़ी नए- नए किर्तिमान स्थापित कर रहे है।आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी मे किसी के पास भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने का समय नहीं है ,जिसके कारण लोगों का स्वास्थ्य ढांचा बिगडता जा रहा है।ऐसे मे खेल आज हमारे जीवन के लिए अंत्यत आवश्यक हो गए है।राष्ट्रीय खेल नीति पदक लाओ,ईनाम पाओ व खेलो के उत्थान के लिए केंद्र व राज्य सरकारों के प्रयास के चलते अब खिलाड़ियों के साथ साथ पदकों की संख्या मे भी ईजाफा हुआ है जिसकी बदौलत अब खेल को कैरियर के रूप मे चुनकर देश की युवा पीढी अपनी जिंदगी को सुधार रहे है।आज राष्ट्रीय खेल दिवस है। खेल दिवस के उपर विस्तृत जानकारी –
■ राष्ट्रीय खेल दिवस का इतिहास – राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त को हॉकी के महान् खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के दिन मनाया जाता है। राष्ट्रीय खेल दिवस की शुरुआत वर्ष 2012 मे हुई।दुनिया भर में ‘हॉकी के जादूगर’ के नाम से प्रसिद्ध भारत के महान् व कालजयी हॉकी खिलाड़ी ‘मेजर ध्यानचंद सिंह’ जिन्होंने भारत को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाया, उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
■ मेजर ध्यानचंद का जन्म –
 ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 में उत्तरप्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ। इस दिग्गज ने 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारत ने तीनों ही बार गोल्ड मेडल जीता ।
■ मेजर ध्यानचंद के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं-
 ◆महज 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती होने वाले ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था। ध्यानचंद के छोटे भाई रूप सिंह भी अच्छे हॉकी खिलाड़ी थे जिन्होने ओलंपिक में कई गोल दागे थे।
◆ सेना में काम करने के कारण उन्हें अभ्यास का मौका कम मिलता था. इस कारण वे चांद की रौशनी में प्रैक्टिस करने लगे।
◆ ध्यान सिंह को चांद की रोशनी में प्रैक्टिस करता देख दोस्तों ने उनके नाम साथ ‘चांद’ जोड़ दिया, जो बाद में ‘चंद’ हो गया
◆ ध्यानचंद एम्सटर्डम में 1928 में हुए ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे थे. यहां उन्होंने कुल 14 गोल कर टीम को गोल्ड मेडल दिलवाया था। उनका खेल देख एक स्थानीय पत्रकार ने कहा था, जिस तरह से ध्यानचंद खेलते हैं वो जादू है, वे हॉकी के ‘जादूगर हैं।
◆ ध्यानचंद का खेल पर इतना नियंत्रण था कि गेंद उनकी स्टिक से लगभग चिपकी रहती थी. उनकी इस प्रतिभा पर नीदरलैंड्स को शक हुआ और ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर इस बात की तसल्ली की गई, कहीं वह चुंबक लगाकर तो नहीं खेलते हैं।
◆ मेजर की टीम ने साल 1935 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का दौरा किया था। यहां उन्होंने 48 मैच खेले और 201 गोल किए। क्रिकेट के महानतम बल्लेबाज डॉन ब्रैडमैन भी उनके कायल हो गए। उन्होंने कहा, वो (ध्यानचंद) हॉकी में ऐसे गोल करते हैं, जैसे हम क्रिकेट में रन बनाते हैं।
◆ वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि वे कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे।
■ मेजर ध्यानचंद की उपल्बधियां -मेजर ध्यानचंद के नेतृत्व मे हॉकी के क्षेत्र में वर्ष 1928, 1932 और 1936 में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते। मेजर ध्यानचंद को उनके शानदार स्टिक-वर्क और बॉल कंट्रोल की वजह से हॉकी का ‘जादूगर’ भी कहा जाता था। उन्होंने अपना अंतिम अंतर्राष्ट्रीय मैच 1948 में खेला। उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान 400 से अधिक गोल किए। भारत सरकार ने ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया
■ ठुकरा दिया था हिटलर का प्रस्ताव -भारत की आजादी से पूर्व हुए ओलंपिक खेल में सर्वश्रेष्ठ हॉकी टीम जर्मनी को 8-1 से हराने के बाद जर्मन तानाशाह हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को अपनी सेना में उच्च पद पर आसीन होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराकर भारत और भारतीयों का सीना सदा-सदा के लिए चौड़ा कर दिया था। 
■ खेल दिवस पर राष्ट्रपति करते है पुरस्कृत –
खेल दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति देश की प्रमुख खेल हस्तियों को खेलों के सबसे बड़े अवॉर्ड खेल रत्न, अर्जुन अवॉर्ड, द्रोणाचार्य अवॉर्ड और ध्यानचंद अवॉर्ड से सम्मानित करते हैं।कोविड-19 महामारी के कारण पहली बार राष्ट्रीय खेल पुरस्कार वितरण समारोह 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस पर वर्चुअल आयोजित किया जाएगा। जहां चयनित एथलीट, कोच और अन्य विजेता राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण (साई) केंद्र में इकट्ठे होने के बाद राष्ट्रपति भवन से लाइव जुड़ेंगे। खेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘नीला (खेल रत्न के लिए) और लाल (अर्जुन पुरस्कार के लिए) ब्लेजर उनके पदकों के साथ (खेल रत्न विजेताओं के लिए) और कांस्य मूर्तियों (अर्जुन पुरस्कार विजेताओं के लिए) को समारोह से पहले दे दी जाएंगी।
■ इन खिलाड़ियों को मिलेंगे पुरस्कार –
◆राजीव गांधी खेल रत्न : रोहित शर्मा (क्रिकेट), मरियप्पन थंगावेलु (पैरा एथलीट), मनिका बत्रा (टेबल टेनिस), विनेश फोगाट (कुश्ती), रानी रामपाल (हॉकी)
◆द्रोणाचार्य पुरस्कार (लाइफटाइम कैटेगरी)  : 
धर्मेंद्र तिवारी (तीरंदाजी), पुरुषोत्तम राय (एथलेटिक्स), शिव सिंह (बॉक्सिंग), रोमेश पठानिया (हॉकी), कृष्ण कुमार हुड्डा (कबड्डी), विजय भालचंद्र मुनिश्वर (पैरा लिफ्टर), नरेश कुमार (टेनिस), ओमप्रकाश दहिया (कुश्ती)
◆द्रोणाचार्य पुरस्कार (रेगुलर कैटेगरी) : जूड फेलिक्स (हॉकी), योगेश मालवीय, (मलखंब), जसपाल राणा (निशानेबाजी), कुलदीप कुमार हंडू (वुशु), गौरव खन्ना (पैरा बैडमिंटन)
◆अर्जुन पुरस्कार : अतानु दास (तीरंदाजी), दुती चंद (एथलेटिक्स), सात्विकसाईराज रेंकीरेड्डी, चिराग शेट्टी, (बैडमिंटन), विशेष भृगुवंशी (बास्केटबॉल), मनीष कौशिक, लवलीना बोरगोहेन (मुक्केबाजी) इशांत शर्मा, दीप्ति शर्मा (क्रिकेट), अजय आनंत सावंत (घुड़सवारी), संदेश झिंगन (फुटबॉल), अदिति अशोक (गोल्फ), आकाशदीप सिंह, दीपिका (हॉकी), दीपक (कबड्डी) सरिका सुधाकर काले (खो खो), दत्तू बबन भोकानल (रोइंग), मनु भाकर, सौरभ चौधरी (निशानेबाजी), मधुरिका सुहास पाटकर (टेबल टेनिस) दिविज शरण (टेनिस), शिवा केशवन (ल्यूज), दिव्या काकरान, राहुल अवारे (कुश्ती), सुयश नारायण जाधव (पैरा तैराकी), संदीप (पैरा एथलीट), मनीष नरवाल (पैरा निशानेबाजी)
◆ध्यानचंद पुरस्कार : कुलदीप सिंह भुल्लर, जिंसी फिलिप्स (एथलेटिक्स), प्रदीप गंधे, तृप्ति मुरगुंडे (बैडमिंटन), एन उषा, लक्खा सिंह (मुक्केबाजी), सुखविंदर सिंह संधू (फुटबॉल), अजीत सिंह (हॉकी), मनप्रीत सिंह (कबड्डी), जे रंजीत कुमार (पैरा एथलीट), सत्यप्रकाश तिवारी (पैरा बैडमिंटन), मंजीत सिंह (रोइंग), सचिन नाग (तैराकी), नंदन पाल (टेनिस), नेत्रपाल हुड्डा (कुश्ती) 

■आज भी नहीं मिला वो सम्मान-भारत को ओलंपिक में 3 स्वर्ण पदक दिलवाने वाले ध्यानचंद को आज तक भारत रत्न से नहीं नवाजा गया है। जबकि हमेशा से उन्हें भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिए जाने की मांग उठती रही है। हालांकि पहले खेल जगत की उपलब्धियों के आधार पर भारत रत्न दिए जाने का प्रावधान नहीं था। लेकिन सचिन तेंदुलकर को इस सम्मान से नवाजे जाने के लिए इस प्रावधान में संशोधन किया गया था। लेकिन उसके बाद भी आज तक ध्यानचंद को यह सम्मान नहीं दिया गया है।
■अपनी मौत से दो महीने पहले कहा था –
‘जब मैं मरूँगा, पूरी दुनिया रोएगी लेकिन भारत के लोग मेरे लिए एक आंसू नहीं बहाएंगे, मुझे पूरा भरोसा है’।
लगातार तीन बार भारत को ओलंपिक गोल्ड मेडल्स दिलाने वाले मेजर ध्यानचंद, वही ध्यानचंद जिन्हें आज़ादी से पहले बच्चा-बच्चा जानता था। लेकिन बाद के दिनों में जिन्हें हर किसी ने भुला दिया।

भारत जैसे विशाल देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। हमें बस प्रतिभा की पहचान करनी है। खेल स्वस्थ और बीमारी मुक्त लंबी आयु का जीवन जीने का एक तरीका है और राष्ट्रीय खेल दिवस कई प्लेटफार्मों में से एक है जो पूरे देश में इस संदेश को फैलाने में मदद करता है। खेल युवाओं के बीच मित्रता की भावना पैदा करते हैं और उनमें एकता की भावना विकसित होती है। यह न केवल व्यक्ति के दिमाग को तेज़ बनाता है बल्कि मन को मजबूत और सक्रिय भी बनाता है और हमारे देश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यह भी कहती है कि जो लोग खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं वे न केवल खेल में बल्कि जीवन में भी अपना मूल्य साबित करते हैं।खेल जगत में तमाम सफल खिलाड़ियों के होने के बावजूद, भारतीय मां-बाप आज भी खेल में बच्चों की रूचि को सीरियसली नहीं लेते हैं क्योंकि किसी ना किसी मोड़ पर खिलाड़ी को अपने खेल को अलविदा कहना ही होगा।
इसके साथ ही खेलो मे बढता राजनैतिक हस्तक्षेप खेलों के विकास के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है।आजकल खेलो के नाम पर अनेकों यूनियन बन गई है जो एक दूसरे की टांग खिचाई मे देश के भविष्य के साथ साथ खेलो के भविष्य से भी खिलवाड़ कर रहे है।

पुलवामा के दोषियों को मिले रूह कंपा देने वाली सजा

योगेश कुमार गोयल

            14 फरवरी 2019 को पुलवामा आतंकी हमले को लेकर करीब डेढ़ साल बाद एनआईए द्वारा आखिरकार जम्मू की विशेष अदालत में 13500 पन्नों की चार्जशीट दाखिल करने के बाद साफ हो गया है कि पुलवामा हमले की साजिश कितनी गहरी थी। विस्फोटक से भरी एक गाड़ी से सीआरपीएफ के काफिले पर टक्कर मारकर किए गए उस हमले में हमारे 40 से अधिक जवान शहीद हो गए थे। चार्जशीट में आतंकी हमले के बारे में विस्तार से बताया गया है कि उस हमले को कैसे अंजाम दिया गया। डेढ़ साल लंबी बाद जांच के बाद एनआईए द्वारा 19 आतंकियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किए गए हैं, जिन्होंने साजिश रची, साजिश रचने में मदद की या साजिश को पुलवामा में अंजाम दिया। इनमें आत्मघाती हमलावर आबिद अहमद डार के अलावा सात कथित जैश संचालकों शाकिर बशीर मगरे, मोहम्मद अब्बास राथर, मोहम्मद इकबाल राथर, वाज-उल-इस्लाम, इंशा जान, तारिक अहमद शाह और बिलाल अहमद कुचे के नाम हैं, जिन्हें पिछले एक साल में हमलावरों को सहायता देने के आरोप में कश्मीर से गिरफ्तार किया गया। भले ही चार्जशीट में पाकिस्तान सरकार या उसके किसी संस्थान का नाम नहीं है लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि यह सारा खूनी खेल उसी की धरती से उसी द्वारा पाले पोसे जा रहे आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद द्वारा रचा गया था। एनआईए द्वारा जैश प्रमुख मसूद अजहर, उसके भाई मुफ्ती अब्दुल रऊफ असगर तथा मारूफ असगर को मुख्य साजिशकर्ता करार दिया गया है।

            एनआईए ने अपनी चार्जशीट में स्पष्ट कहा है कि कैसे पाकिस्तान के बहावलपुर से जैश सरगना मसूद अजहर पुलवामा हमले को अंजाम देने वाले आतंकी उमर फारूख को लगातार वॉयस संदेश भेजकर निर्देश दे रहा था। जम्मू की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के उस पार शकरगढ़ लांच पैड से जैश के आतंकियों की घुसपैठ कराई गई और इसके लिए आतंकियों ने टनल का इस्तेमाल किया। हमले के लिए जैश आतंकी उमर फारूख कई बैच में 35-40 किलो आरडीएक्स लेकर आया था, जिसका इस्तेमाल कर कश्मीर में मौजूद आतंकियों ने अमोनियम नाइट्रेट, जिलेटिन की छड़ तथा एल्यूमिनियम पाउडर का इस्तेमाल कर विस्फोटक बनाया। एनआईए ने चार्जशीट में यह सनसनीखेज खुलासा भी किया है कि जैश आतंकी पुलवामा के बाद घाटी में ऐसा ही एक और हमला करना चाहते थे लेकिन पुलवामा के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण जैश सरगनाओं ने उसे रोक दिया था।

            पुलवामा हमले को लेकर जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, एनआईए के खुलासों के बाद अब कोशिश होनी चाहिए कि प्राथमिकता के आधार पर अदालती प्रक्रिया में विशेष तेजी लाकर उन्हें ऐसी कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाए, जो दूसरे आतंकियों की रूह कंपा देने वाली हो और आतंकी सरगनाओं के सरपरस्त बने पाकिस्तान को भी हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बेनकाब किया जाए। अगर पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर पर लगे तमाम आरोपों को अदालत में सच साबित किया जा सका तो इससे न केवल एनआईए की विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाएगी, इससे जैश सहित पाकिस्तान पर भी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में और ज्यादा दबाव बनाने में भी सफलता मिलेगी। पाकिस्तानी अवाम भले ही आज दाने-दाने को मोहताज है लेकिन यह ऐसा निकम्मा देश है, जो अपने अंदरूनी हालात सुधारने के बजाय भारत में आतंकी वारदातें करने में ही अपनी सारी ऊर्जा खर्च करता रहा है। हालांकि जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बल आतंकियों की हर हरकत का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं, इसी साल अब तक सैंकड़ों आतंकियों को जमींदोज किया जा चुका है लेकिन जिस प्रकार पिछले कुछ समय में कई कट्टरपंथियों की गिरफ्तारियां हुई हैं और सीमावर्ती इलाकों में कई ड्रोन बरामद हुए हैं, उससे स्पष्ट है कि आतंकी वहां लगातार सक्रिय हैं और पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं है। उसके आतंकियों के पकड़े जाने पर उनकी तमाम स्वीकारोक्तियों के बाद भी वह हर बार झूठ का सहारा लेकर उन्हें अपना मानने से ही इन्कार कर देता है। अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को लेकर भी पाकिस्तान का बड़ा झूठ बेनकाब हुआ है। उसने पहली बार माना था कि भारत का मोस्ट वांटेड आतंकी दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में ही है लेकिन बाद में वह अपनी ही बात से मुकर गया और उसने दाऊद के वहां होने की बात से इन्कार कर दिया।

            पुलवामा हमला हो या भारत में अब तक हुए दूसरे बड़े आतंकी हमले, लगभग सभी हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़े पाए गए लेकिन उसने हमेशा इन आरोपों को नकारा और अपनी धरती पर पल रहे आतंकी सरगनाओं पर नकेल कसने की कभी कोशिश नहीं की। 2008 के मुम्बई हमले में अजमल कसाब को जिंदा पकड़े जाने के बाद पूरी दुनिया के समक्ष खुलासा हुआ था कि उस हमले का मास्टरमाइंड भी पाकिस्तान का चहेता जैश मुखिया मसूद अजहर ही था लेकिन शुरूआत में पाकिस्तान यह स्वीकारने से इन्कार करता रहा लेकिन जब उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो उसने दिखावे की कार्रवाई करते हुए उस पर केस दर्ज किया किन्तु मसूद अजहर का कुछ नहीं बिगड़ा। हालांकि पुलवामा हमले के बाद भारत के प्रयासों से पिछले साल संयुक्त राष्ट्र द्वारा मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया गया लेकिन यह जगजाहिर है कि वह आज भी इमरान सरकार के संरक्षण में ही वहीं से भारत विरोधी आतंकी गतिविधियां संचालित कर रहा है। पाकिस्तान की ऐसी ही गतिविधयों के कारण अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ द्वारा उसे ‘ग्रे सूची’ में डाला जा चुका है, जिससे बाहर निकलने के लिए वह हर हथकंडा अपना रहा है लेकिन पुलवामा हमले को लेकर एनआईए द्वारा दाखिल की गई हजारों पन्नों की चार्टशीट में किए गए खुुलासों के बाद भारत के पास पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में बेनकाब करने का बेहतरीन अवसर है लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है कि अदालत में एनआईए के आरोपों को जल्द से जल्द साबित किया जाए। हालांकि एनआईए की चार्टशीट के बाद मांग उठने लगी है कि पाकिस्तान भारत के गुनाहगार मसूद अजहर को उसे सौंप दे लेकिन पाकिस्तान जैसे धूर्त और आतंकी देश से ऐसी उम्मीद करना ही बेमानी है। भारत की धरती को निर्दोषों के लहू से लाल करता रहा पाकिस्तान कितना धूर्त देश है, यह उसके हाल के इस हास्यास्पद दावे से ही समझा जा सकता है कि भारत ने उसके खिलाफ भाड़े के आतंकी रखे हैं।

            पुलवामा हमले के बाद आर्थिक रूप से पाकिस्तान की कमर तोड़ने के लिए उससे ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा वापस लिया गया था, उसके बाद उसी की सीमा में 80 किलोमीटर भीतर घुसकर ‘एयर स्ट्राइक’ भी की गई थी। वैसे भारत पहले भी पाकिस्तान के भीतर घुसकर ऐसी ही कार्रवाई कर चुका है। 2016 के उरी हमले के बाद पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी लेकिन उस समय वायुसेना के बजाय पैराट्रूपर्स ने पीओके में आतंकी कैंपों को तबाह किया था लेकिन किसी आतंकी संगठन के खिलाफ भारत ने बालाकोट में पहली बड़ी सर्जिकल एयर स्ट्राइक की थी।

            बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र में गला फाड़ते रहने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान अलग-थलग सा पड़ा है। ले-देकर वह सिर्फ चीन की ओर ही देख सकता है लेकिन चीन का भी अपना खुद का एजेंडा है। पाकिस्तान में पहले ही गृहयुद्ध जैसे हालात बने हैं और उसी के पाले-पोसे आतंकी कई बार उसी के लिए भस्मासुर साबित होते रहे हैं। अब तक 70 हजार से भी ज्यादा आम नागरिक पाकिस्तान में ही आतंकी हिंसा में मारे जा चुके हैं। भले ही यह देश आज तबाही के कगार पर खड़ा है लेकिन उसकी फितरत ऐसी है कि बदलने का नाम ही नहीं ले रही। बहरहाल, पाकिस्तान में सरेआम सीना तानकर घूम रहे मसूद अजहर जैसे तमाम दुर्दान्त आतंकियों की नाक में नकेल डालने के लिए पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमर तोड़ने के लिए हरसंभव प्रयास करने होंगे।

मै भी हूं तन्हा,तुम भी हो तन्हा


मैं भी हूं तन्हा,तुम भी हो तन्हा।
चले उस जगह,जहा दोनों हो तन्हा।।

सूरज भी है तन्हा,चांद भी है तन्हा।
करते है सफर आसमां में वे तन्हा।।

चलो तन्हाई को रुकसत करे हम दोनों।
घर बसाए कहीं चलकर हम दोनों तन्हा।।

मेरी जान भी तन्हा,तेरा जहां भी तन्हा।
छोड़ कर चल देंगे,इस जहां को तन्हा।।

लेकर न जाएंगे कुछ भी इस जहां से हम।
बस सो जाएंगे दो गज जमीं पर हम तन्हा।।

मेरी औकात है तन्हा,तेरी बिसात है तन्हा।
इस मुकद्दर में लिखा है,हम रहेगें सदा तन्हा।।

कल थे हम तन्हा,आज भी है दोनों तन्हा।
कब तक चलेगा ये सिलसिला होने का तन्हा।।

आर के रस्तोगी

परीक्षाओं का विरोधः शुद्ध नौटंकी

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कांग्रेस-अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने संकट से उबरने के बाद जो यह पहला कदम उठाया है, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। उन्होंने सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बात की और कहा कि ‘जी’ और ‘नीट’ की परीक्षाएं स्थगित की जाएं। इन दोनों प्रवेश-परीक्षाओं में लगभग 25 लाख छात्र बैठते हैं। इन सात मुख्यमंत्रियों में से चार कांग्रेस के हैं। दो मुख्यमंत्री कांग्रेस की मदद से अपनी कुर्सी पर हैं। सातवीं मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी हैं। ये सातों सोनियाजी की हां में हां मिलाएं, यह स्वाभाविक है। दिल्ली की ‘आप’ सरकार और तमिलनाडु की भाजपा समर्थित सरकार भी इन परीक्षाओं के पक्ष में नहीं हैं। इन सरकारों का मुख्य तर्क यह है कि कोरोना की महामारी के दौरान ये परीक्षाएं देश में बड़े पैमाने पर रोग फैला सकती हैं। इन प्रांतीय सरकारों की यह चिंता स्वाभाविक है लेकिन इनसे कोई पूछे कि यह चिंता क्या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या शिक्षा मंत्रालय या सरकार को नहीं होगी ? उन्हें तो विपक्षियों से भी ज्यादा होगी। इसीलिए उन्होंने परीक्षा के लिए बेहतरीन इंतजाम किए हैं। ‘जी’ की परीक्षाएं 660 और ‘नीट’ की परीक्षाएं 3842 केंद्रों पर होंगी। इन केंद्रों पर परीक्षार्थियों के लिए शारीरिक दूरी रखने, मुखपट्टी लगाने, जांच आदि का कड़ा इंतजाम होगा। 99 प्रतिशत छात्रों के लिए वे ही परीक्षा-स्थल तय किए गए हैं, जो उन्होंने पसंद किए हैं। जिन्हें दूर-दराज के केंद्रों में जाना है, उनके केंद्र बदलने की प्रक्रिया भी जारी है। इसके अलावा छात्रों की यात्रा और रात्रि-विश्राम की व्यवस्था भी कुछ राज्य सरकारें कर रही हैं। ऐसी स्थिति में इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग कहां तक जायज है ? यदि ये परीक्षाएं स्थगित हो गईं तो लाखों छात्रों का पूरा एक वर्ष बर्बाद हो जाएगा। जो फीस उन्होंने भरी है, वह राशि बेकार हो जाएगी। जब देश में रेलें और बसें चल रही हैं, मेट्रो खुलनेवाली हैं, मंडियां और बड़े बाजार खुल रहे हैं तो परीक्षाएं क्यों न हो ? यह बात एक याचिका पर बहस के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने भी पूछी है। अब यदि ये सातों राज्य फिर से अदालत की शरण में जाएंगे तो वह शुद्ध नौटंकी ही होगी। उसका नतीजा क्या होगा, यह उनको पता है। विपक्षी मुख्यमंत्रियों और कांग्रेस-नेताओं का यह कदम उन्हें लाखों छात्रों और उनके अभिभावकों से अलग करेगा। विपक्ष अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रहा है ?

आर्यसमाज एक अद्वितीय धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय संगठन है

-मनमोहन कुमार आर्य

                संसार में किसी विषय पर सत्य मान्यता एक व परस्पर पूरक हुआ करती हैं जबकि एक ही विषय में असत्य मान्यतायें अनेक होती व हो सकती हैं। संसार में ईश्वर व धर्म विषयक मान्यतायें भी एक समान व परस्पर एक दूसरे की पूर्वक होती हैं। इसी कारण से संसार में ईश्वर एक ही है यद्यपि उसके अनेकानेक गुण, कर्म व स्वभावों के कारण उसके अनेक नाम हैं। ईश्वर का मुख्य नाम ‘‘ओ३म्” है और उसके अन्य सब नाम गौणिक, उसके कर्मों तथा उससे हमारे सम्बन्धों के सूचक हैं। श्रेष्ठ कर्मों के समुच्चय व क्रियाओं को धर्म की संज्ञा दी जाती है। अग्नि का गुण दाह, प्रकाश वा रूप आदि होता है। यही अग्नि का धर्म है। इसी प्रकार वायु का गुण स्पर्श है। वायु का हम श्वास लेने में उपयोग करते हैं। अतः प्राणियों को श्वास लेने में सहयोगी पदार्थ को वायु कहा जाता है। वायु का धर्म है कि वह प्राणियों को श्वास लेने में सहायता दे। इसका यह गुण ही उसका धर्म है। इसी प्रकार से मनुष्य का धर्म भी सत्य ज्ञान व उस पर आधारित क्रियायें वा कर्म होते हैं जिससे मनुष्य का अपना तथा दूसरे मनुष्यों व प्राणियों का कल्याण होता है। धर्म का शब्दार्थ है, मनुष्य द्वारा धारण करने योग्य गुण, कर्म व स्वभाव। सब मनुष्यों को सत्य अर्थात् सत्य गुणों व कर्मों को धारण करना चाहिये। इसी से मनुष्य का कल्याण होता है। अतः सत्य गुणों को धारण करना ही मनुष्य का धर्म होता है। मत-मतान्तर तो अनेक हो सकते हैं व हैं भी, परन्तु धर्म सभी मनुष्यों का एक ही होता है।

                ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, सर्वव्यापक, अनादि, नित्य व सृष्टिकर्ता है। यह विचार व मान्यता सत्य है, इस कारण इसका प्रत्येक मनुष्य को मानना धर्म है। जो ऐसा नहीं करता व नहीं मानता वह धार्मिक कदापि नहीं कहा जा सकता। सत्य व सत्यधर्म को न मानने वाला मनुष्य आकृति मात्र से ही मनुष्य होता है परन्तु गुण, कर्म व स्वभाव की दृष्टि से उसे सदाचार व सज्जन मनुष्य नहीं कहा जा सकता। जो मनुष्य व संगठन सत्य को स्वीकार न करें, उसका अस्तित्व देश व समाज के लाभ के लिये न होकर उनके लिये हानि करने वाला सिद्ध होता व हो सकता है। अतः मनुष्य व समाज को अपने सभी कार्यों में सत्य को सर्वोपरि स्वीकार करना चाहिये। आर्यसमाज ऐसा ही संसार का एकमात्र संगठन है जो मनुष्य व समाज में प्रत्येक विचार व मान्यता की परीक्षा कर सत्य का स्वीकार व असत्य का त्याग करता व कराता है। इस कारण से संसार में कोई संगठन आर्यसमाज के समान महान उद्देश्यों से युक्त दृष्टिगोचर नहीं होता। आर्यसमाज में आकर मनुष्य की बुद्धि का अधिकतम वा पूर्ण विकास होता हो सकता है और वह देश समाज के लिये लाभदायक एवं हितकर मनुष्य सिद्ध होता है। सत्य को मानने व आचरण में लाने के कारण संसार के रचयिता व पालनकर्ता ईश्वर का प्रेम, स्नेह, आशीष तथा कृपा भी सच्चे मनुष्य वा आर्यसमाज के निष्ठावान अनुयायी को प्राप्त होती है। उसका शारीरिक, आत्मिक तथा सामाजिक विकास होता है। आत्मिक विकास केवल और केवल सत्य को मानने व उसके अनुसार आचरण करने वालों का ही होता है अन्यों का नहीं, ऐसा हमें वैदिक साहित्य को पढ़कर व समाज में लोगों का जीवन देखकर अनुभव होता है।

                आर्यसमाज से जुड़कर हम सीधे परमात्मा उसके सब सत्य विद्याओं से युक्त ज्ञान ‘‘चार वेदोंसे जुड़ जाते हैं। परमात्मा से तो संसार के बहुत से लोग जुड़े हैं परन्तु सबमें यह विशेषता नहीं है कि वह ईश्वर के जिस स्वरूप गुण, कर्म स्वभावों को मानते हैं उनकी सत्यता की परीक्षा कर सकें उनके आचार्यों द्वारा ऐसा किया गया किया जाता हो। ईश्वर के सत्यस्वरूप गुण, कर्म स्वभावों की परीक्षा आर्यसमाज के साथ जुड़कर करने का अवसर मिलता है तथा ईश्वर के सत्यस्वरूप को जानकर उसके अनुसार ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना उपासना करने का अवसर भी सुलभ होता है। ईश्वर के सत्यस्वरूप को जानने व उसकी उपासना करने से अनेक लाभ होते हैं। ईश्वर एक अनादि व नित्य सत्ता है जो संसार में अनादि काल से है और अनन्त काल तक रहेगी। हम जीव हैं और हम भी अनादि व नित्य सत्ता हैं। हमारी न तो उत्पत्ति हुई है न कभी नाश होगा। ईश्वर व जीव अर्थात् मैं और मेरा परमात्मा दोनों सनातन व नित्य होने के कारण अनादिकाल से एक दूसरे के मित्र व संखा हैं। ईश्वर से हमारा व्याप्य-व्यापक, उपास्य-उपासक, स्वामी-सेवक तथा पिता-पुत्र आदि का सम्बन्ध है। ईश्वर अजन्मा है तथा जीव जन्म-मरण धर्मा है। जीवात्मा का जन्म व मृत्यु होती रहती है। हमें हमारा जन्म हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार मिलता है। हमारे कर्मानुसार हमें मनुष्य व देव तथा पशु-पक्षी आदि योनियों में भी जन्म मिल सकते हैं। मनुष्य योनि में सुख अधिक तथा दुःख कम होते हैं। अन्य योनियों में मनुष्य योनि से अधिक दुःख व कष्ट होते हैं। मनुष्य योनि इससे पूर्व की मनुष्य योनि में अधिक पुण्य व शुभ कर्म करने से मिलती है।

                ईश्वरोपासना तथा अग्निहोत्र यज्ञ आदि श्रेष्ठ कर्मों को करने से मनुष्य योनि में देवों का शरीर मिलना सम्भव होता है। यह लाभ हम आर्यसमाज से जुड़कर तथा वेदाचरण कर अपने परजन्मों में प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिये हमें ईश्वरीय कर्मफल विधान का ज्ञान होना चाहिये और हमें ईश्वर द्वारा वेदों में मनुष्य के विहित कर्मों को जानकर उनका सेवन करना चािहयें। आर्यसमाज से जुड़ने इसका सक्रिय सदस्य बनने पर वैदिक साहित्य का अध्ययन वा स्वाध्याय करने का अवसर मिलता है। इससे मनुष्य की आत्मिक उन्नति होने से वह ईश्वरीय ज्ञान वेद व मनुष्य जीवन के अनेकानेक व सभी रहस्यों से परिचित हो जाता है। इससे यह लाभ होता है कि मनुष्य सुख देने वाले कर्मों को ही करता है और जिन कर्मों का परिणाम दुःख होता है, उन्हें जानकर उनको करना छोड़ देता है। वेदानुयायी मनुष्य यह जानता है कि राग व द्वेष दोनों मनुष्यों के लिये हानिकर होते हैं। इनके वशीभूत जो कर्म होते हैं वह परिणाम में दुःख देते हैं। अतः वह राग व द्वेष को जानकर उनके स्थान पर वैराग्य के विचारों तथा द्वेष मुक्त होकर सब प्राणियों को अपनी आत्मा के समान जानकर अपनी और सबकी उन्नति के लिये पुरुषार्थ करता है। ऋषि दयानन्द और अन्य वैदिक महापुरुषों स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, पं. लेखराम, पं. गुरुदत्त विद्यार्थी आदि के जीवन में हम साक्षात ऐसा होता हुआ देखते हैं।

                आर्यसमाज से जुड़कर हमें वेदों का महत्व बताने वाला तथा प्रायः सभी वैदिक मान्यताओं से परिचित कराने वाला और साथ ही सत्य असत्य का स्वरूप प्रस्तुत करने वाला ग्रन्थ ‘‘सत्यार्थप्रकाशग्रन्थ पढ़ने को मिलता है। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में मनुष्य के जीवन के लिये उपयोगी सभी विषयों का वेद प्रमाणों से युक्त तर्क एवं युक्ति संगत ज्ञान प्रस्तुत किया है। इससे मनुष्य की सभी भ्रान्तियां एवं आशंकायें दूर हो जाती है। वह ईश्वर जीवात्मा विषयों सहित संसार एवं अपने जीवन सबंधी विषयों को यथार्थरूप से जानने में समर्थ होता है। उसे यह भी विदित होता है वेद मत से इतर सभी मतों में अविद्या विद्यमान है। इसका दिग्दर्शन सत्यार्थप्रकाश के ग्रन्थकार ऋषि दयानन्द जी ने इस ग्रन्थ के उत्तरार्ध के चार समुल्लास लिखकर कराया है। इनसे यह लाभ होता है कि हम सभी मत-मतान्तरों की अविद्या से परिचित हो जाते हैं और उसे छोड़कर जीवन में होने वाली अनेक हानियों से बच जाते हैं। इनसे हमारा समय भी बचता व हम उनका सत्कर्मों में सदुपयोग करते हैं। उस समय को हम ईश्वर की उपासना, अग्निहोत्र व देश तथा समाज के हित के कार्यों में कर सकते हैं।

                आर्यसमाज का महत्व आर्यसमाज का सक्रिय सदस्य बनकर तथा आर्यसमाज तथा समस्त वैदिक साहित्य का अध्ययन कर ही विदित होता है। हम यहां बानगी के तौर पर आर्यसमाज के 10 नियमों को प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे स्वर्णिम नियम हमें किसी मत संगठन में दृष्टिगोचर नहीं होते। अतः अपने मनुष्य जीवन की उन्नति करने का उद्देश्य लिये हुए बन्धुओं को आर्यसमाज की शरण में आकर अपने जीवन की उन्नति करनी चाहिये और अपने परजन्म को भी सुरक्षित सफल बनाने का प्रयत्न करना चाहिये। आर्यसमाज के दस नियमों में प्रथम नियम है 1- सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जते हैं, उन सब का आदि मूल परमेश्वर है। दूसरा नियम है ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करनी योग्य है। तीसरा नियम है वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़नापढ़ाना और सुननासुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। आर्यसमाज का चौथा नियम है सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये। अन्य नियम हैं 5- सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य का विचार करके करने चाहियें। 6- संसार का उपकार करना इस (आर्य)समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना। 7- सब से प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिये। 8- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये। 9- प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से सन्तुष्ट न रहना चाहिये, किन्तु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये। अन्तिम दसवां नियम है सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिए ओर प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें। इन नियमों की दृष्टि से भी आर्यसमाज एक सार्वभौमिक संगठन व आन्दोलन सिद्ध होता है जिसका उद्देश्य मनुष्य, समाज व विश्व का उपकार करना है। आर्यसमाज सत्य का ग्रहण कराता और असत्य को छुड़वाता है। इसके साथ ही आर्यसमाज अविद्या के नाश और विद्या की वृद्धि के प्रयत्न करता है। इन सभी कार्यों व अपने स्वर्णिम इतिहास के कारण आर्यसमाज विश्व का सर्वोत्म संगठन है जो वैदिक सत्य धर्म का प्रचार व प्रसार तथा संवर्धन करता है। सभी मनुष्यों को आर्यसमाज वा वैदिक धर्म की शरण में आकर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त होना चाहिये। इससे बढ़कर कुछ प्राप्तव्य नहीं है। ओ३म् शम्।

भारत को अब कोयले में नये निवेश करने की ज़रूरत नहीं : संयुक्त राष्ट्र

भारत में अगस्त महीने का यह आख़िरी हफ़्ता जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ छिड़ी जंग की दशा और दिशा निर्धारित करने की नज़र से बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हो रहा है।

जहाँ आज, 28 अगस्त, को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और टाटा, महिंद्रा, फ्लिपकार्ट, और बीपीसीएल जैसी 20 और कम्पनियों के सीईओ ने प्रधानमंत्री से कोयले की फंडिंग में कटौती करने और बढ़ते जलवायु परिवर्तन के  प्रभावों पर ध्यान देने के लिए अपील की है, वहीँ दूसरी ओर भारतीय रिज़र्व बैंक ने तीन दिन पहले, 25 अगस्त को, अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करते हुए अपने वार्षिक दृष्टिकोण में बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों को व्यापक रूप से एक खतरनाक जोखिम के रूप में स्वीकार किया है। 

आज, 28 अगस्त को  संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंटोनियो गुटेरेस ने “द राइज़ ऑफ़ रिन्यूएबल्स: शाइनिंग ए लाइट ऑन अ सस्टेनेबल फ्यूचर” शीर्षक से उन्नीसवें दरबारी सेठ मेमोरियल भाषण में नो न्यू कोल की बात करते हुए कहा कि भारत को अब कोयले में नये निवेश करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि भारत में  एक कमोडिटी के रूप में  कोयले की आवश्यकता 2022 तक 50% ख़त्म हो जायेगी, और 2025 तक 85% ख़त्म हो जायेगी। उन्होंने कोयला और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी के उच्च स्तर पर सरकार के निवेश को एक “खराब अर्थशास्त्र” का फ़ैसला बताते हुए चेतावनी दी और कहा कि ऐसा करने से भारत के नागरिक  प्रदूषित  हवा से मरने को मजबूर होंगे। ग़ौरतलब है कि ऐसे में उसे बढ़ावा देने की जगह कोयले की फंडिंग में कटौती करने की ज़रूरत है।  उनका कहना है कि सरकार जीवाश्म ईंधन के समर्थन में कटौती और पवन, सौर और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ”।

ज्ञात हो कि भारत, चीन और अमेरिका के बाद, दुनिया का तीसरा ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है , लेकिन फिर भी अब तक उसने 2021 नवंबर में ग्लासगो, यूके  में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए कोई एक नया कठिन जलवायु परिवर्तन रोकने का लक्ष्य नहीं रखा है।

वहीं भारत के अक्षय ऊर्जा मंत्री ने हाल ही में घोषणा की है कि 2030 तक देश की स्थापित ऊर्जा क्षमता का अंदाज़न कम से कम 60% हिस्सा रिन्यूएबिल एनर्जी से बनेगा। विश्लेषकों का कहना है कि देश 2030 तक नवीकरण की एक बड़ी हिस्सेदारी को बिना किसी अतिरिक्त लागत के एकीकृत कर सकता है। पिछले कुछ महीनों में, एक स्पष्ट संकेत मिला है कि देश के बड़े हिस्से में गैर जीवाश्म ऊर्जा का हिस्सा कुल उत्पादन का 45-50% जितना होगा।

गुटेरेस का लंबे समय से प्रतीक्षित हस्तक्षेप उसी दिन आया जब जब  20 से ज्यादा प्रमुख भारतीय कंपनियों के  सीईओ एक “कॉल टू एक्शन” करके सरकार से अपील कर रहे हैं कि वह कोयले से निवेश में कमी लाये और बिजली की गतिशीलता को बढ़ावा दे  और अग्रणी “ग्रीन औद्योगिकीकरण” का समर्थन करें।

इस अपील के हस्ताक्षरकर्ताओं में भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र जैसे टाटा स्टील, टाटा पावर, डालमिया सीमेंट, महिंद्रा और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के बीस से अधिक बड़े और महत्वपूर्ण खिलाड़ी शामिल हैं।

इन भारतीय सीईओस ने ग्रीन डवलपमेंट की मांग के लिए कार्रवाई पर हस्ताक्षर किया और उन नीतियों की मांग की जो एक लचीला भारत बनाती हैं। व्यावसायिक गति विधि को फिर से उद्देश्य करके इस्तेमाल करने के लिए 8 प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का एक सेट जिसमे शामिल- बिजली क्षेत्र के संक्रमण और विद्युत गतिशीलता को अपनाने में तेजी लाना, हरित औद्योगीकरण का नेतृत्व और प्रक्षेपण करना, भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करना, और स्वच्छ तकनीक, स्वच्छ वित्त और लचीला सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे में निवेश करना, बेहतर निर्माण की अनिवार्यता के रूप में हाई लाइट किए गए हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं में भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र के बड़े और महत्वपूर्ण खिलाड़ी शामिल हैं जैसे टाटा स्टील, टाटा पावर, डालमिया सीमेंट, महिंद्रा, फ्लिपकार्ट, यहां तक कि भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड जैसी पारंपरिक कंपनियां भी। यह स्पष्ट है कि भारत के भविष्य के विकास के लिए एक तत्काल आवश्यकता के रूप में कम उत्सर्जन मार्गों पर संक्रमण के लिए एक आर्थिक मामला है।

वहीँ RBI वार्षिक  रिपोर्ट के अनुसार भारत जिन चरम मौसम की घटनाओं के साथ जूझता है, उनसे लगातार आर्थिक और मानवीय नुकसान होता आ रहा है और निस्संदेह अब भारत के वित्तीय और कॉर्पोरेट निकायों के बीच बढ़ती सहमति है कि जलवायु जोखिमों से बचा नहीं जा सकता है। इसी क्रम में बीती 25 अगस्त 2020 को जारी 2019-20 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने दावा किया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भारत में सबसे गंभीर होंगे और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न वित्तीय जोखिमों के प्रबंधन के लिए एक उपयुक्त ढांचे की आवश्यकता होगी। RBI ने  जलवायु परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय कमजोरियों का सामना करने के लिए दीर्घकालिक स्थिरता का पता लगाने के लिए व्यवसायों द्वारा अपनाई जाने वाली पर्यावरणीय सामाजिक और शासन नीति (ESG) के दिशा निर्देशों पर भी ज़ोर दिया। RBI ने चेतावनी दी कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले भौतिक और संक्रमण जोखिमों का एहसास करने में विफल रहने वाले व्यवसायों के लिए नतीजा उधारकर्ताओं की संपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट, प्राकृतिक आपदाओं के कारण बढ़े हुए दावे, व्यापार मॉडल पर प्रभाव और दीर्घकालिक तरलता (लिक्विडिटी) प्रभाव शामिल हो सकते हैं।

अच्छी बात फ़िलहाल यह है कि इस दिशा में विकास के संकेत भी मिल रहे हैं। भारत में रिन्युबल एनर्जी के मंत्री ने घोषणा की है कि साल 2030 तक भारत का लगभग 60 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादन रिन्युबल स्रोतों से होगा और एनालिस्ट्स की मानें तो 2030 तक मौजूदा ऊर्जा उत्पादन व्यवस्था में बड़े आराम से रेन्युब्ल्स को जोड़ा जा सकता है। बीते कुछ महीनों में साफ़ संकेत मिले हैं कि देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में ग़ैर जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा का योगदान 45-50 प्रतिशत तक हो जायेगा।

गुणवत्तायुक्त आत्मनिर्भरता


                                           ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और में उसको लेकर रहूँगा’ –ऐसा कहने वाले लोकमान्य तिलक ‘आत्मनिर्भरता’ के  प्रबल पक्षधर तो थे ही , लेकिन ‘गुणवत्ता’  के साथ कोई समझोता हो ये भी उन्हें स्वीकार नहीं था. अपने जीवन में आगे क्या पढ़ना है, क्या करना है इसका उल्लेख करते हुए जब उनके लड़के नें उन्हें एक पत्र लिखा, तो उसका उत्तर उन्होंने बड़े प्रेरक रूप में दिया. उन्होंने लिखा कि जीवन में क्या करना है ये तुम विचार करो. तुम अगर कहते हो मै जूता सिलनें का व्यवसाय करूँगा, तो तुम करो. लेकिन ध्यान रखो, तुम्हारा सिला हुआ जूता इतना उत्कृष्ट होना चाहिए कि पूना शहर का हर आदमी कहे कि जूता खरीदना है तो तिलक जी के बेटे से खरीदना है.
         देश में गुणवक्ता से युक्त आत्मनिर्भरता के मामले में देश में अनेक व्यावसायिक- प्रतिष्ठानों नें एक से बढ़कर एक मिसाल कायम की है. इनमें से एक हैं पवन उर्जा के क्षेत्र में अपनी धाक रखने वाले सुजलान कम्पनी के स्वामी तुलसी  तांती. भारत में पवन उर्जा से प्राप्त कुल विद्युत क्षमता १९००० मेघावाट है, जिसमे अकेले गुजरात का हिस्सा ३,१४७ मेघावाट है. इसका बड़ा श्रेय जाता कच्छ के समुद्री किनारों से लगे लगभग १६०० की.मी. पट्टी पर स्थापित सेकड़ों पवन उर्जा चक्कीयाँ. यही वो क्षेत्र है जहां सन २०१४ में दुनिया की सबसे ऊंची १२० मी. पवन चक्की सुजलोन कंपनी द्वारा स्थापित की गयी थी.  पूना के श्री तुलसी तांती का किस्सा बड़ा रोचक है. उन्होंने अपने छोटे से पारिवारिक वस्त्र व्यवसाय के लिए एक पवन उर्जा सयंत्र बनवाया. अपनी इस पहल से प्राप्त सुखद अनुभव से इन्होनें  अपने अन्य परिचितों को प्रेरित कर उनके लिए भी ऐसे सयंत्र बनवाना प्रारंभ कर दिए. धीरे-धीरे इस कार्य का विस्तार होता चला गया और आज २५००० करोड़ की बिक्री वाली कंपनी के रूप में सुजलोन हमारे सामने है. इसका आज २० देशों में कारोबार है, और विश्व में अग्रणी पवन उर्जा कंपनी के रूप में जानी जाती है.[‘अजय राष्ट्र’-डॉ. भगवती प्रकाश शर्मा]

                ‘भारत में बहुत अधिक क्षमता है. यहां की दवा और वैक्सीन कंपनियां पूरी दुनिया के लिए विशाल आपूर्तिकर्ता हैं. आप जानते हैंभारत में सबसे अधिक टीके बनाए जाते हैं. मैं उत्साहित हूं कि यहाँ  का दवा उद्योग न केवल भारत के लिएबल्कि पूरी दुनिया के लिए (वैक्सीन का) उत्पादन कर सकेगा.’- ये बात कुछ दिनों पहले माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स नें कही थी. सच तो ये है कि भारत को  ये प्रतिष्ठा अन्य कारणों से ज्यादा उसके द्वारा विश्व में उत्कृष्टता के साथ-साथ तुलनात्मक रूप से दुनिया में अत्यधिक सस्ती दरों में दवाइयों को उपलब्ध कराने से अर्जित हुई है. जर्मनी की कंपनी बायर ए.जी. गुर्दे व यकृत  कैंसर की जो दवा का इंजेक्शन ‘नेक्सावर’ २,८८,००० में बेचता था, भारतीय कंपनी नाटको नें
 पेटेंट से जुडी जरूरी कानूनी प्रक्रिया पूर्ण कर उसी इंजेक्शन को तैयार कर मात्र ८८०० रूपए में बाजार में उपलब्ध करा दिया. एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में डायबिटीज़ और  केंसर  जैसी बीमारी बड़ी तेजी से फैल रही हैं, इस कारण से वहां के  बाज़ार में भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनियां  तेजी से अपना स्थान बना रही है.
            गुणवत्तायुक्त आत्मनिर्भरता को पाने के लिए(विकल्प ना होने की दशा में) विदेशी निवेश की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. और सरकार ने भी इसको अर्जित करने के लिए अब कमर कस ली है. हाल ही में पारित पीएलआई[प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव]योजना इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है. इसके अंतर्गत देश में ही इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स व सेमी-कंडक्टर्स के उत्पादन शामिल है. ये योजना ४१ हज़ार करोड़ की है. वर्तमान में आये प्रस्तावों में अन्य घरेलू व विदेशी कम्पनीयों सहित विशेषकर एपल के लिए ठेके पर उत्पादनकर्ता[contract-manufacturer]  फाक्सकान, विस्ट्रान, पेगट्रान और साथ ही सेमसंग, लावा, डिक्सन भी शामिल हैं. ये ज्यादातर वो कम्पनीयां है जो चीन से अपना व्यवसाय  अब अन्य देशों में ले जाना चाहती हैं.  इन कंपनीयों नें १५हजार और उससे अधिक  कीमत वाले स्मार्टफ़ोन के उत्पादन के लिय आवेदन किया है. जबकि भारतीय कम्पनीयों के हितों को ध्यान में रखते हुए उनके लिए कोई मूल्य सीमा निर्धारित नहीं की गयी है.  इस योजना से अगले पांच सालों में देश में लगभग १२ लाख लोगों को रोजगार मिलेगा; ७ लाख करोड़ रूपए के मोबाइल निर्यात होना शुरू हो जायेंगे.
         इसी प्रकार समग्र रूप से घरेलु आर्थिक गतिवीधी को बढ़ावा देने के लिए जरूरी एफडीआई [विदेशी निवेश] के नियमों को और अधिक सरल बनाने की दिशा में भी कार्य कर रही है. वाणिज्य और माइनिंग, बैंकिंग,पूँजी बाजार के क्षेत्र में भी सुधार को लेकर  एक बड़ी घोषणा हो सकती है . जहां स्थानीय उत्पादकों को सरंक्षण देने की बात है, जहाँ जरूरी है  वहां सरकार नें कोई कमी  भी नहीं रखी है. जिससे कि सस्ते आयात को रोका  जा सके सरकार नें सौर सेल पर सेफ गार्ड ड्यूटी साल भर के लिए बढ़ा दी है. पिछले साल इस कारण से आयात में कमी आयी थी और घरेलु उत्पादकों को संभलनें का मौका मिला था. पेट्रोल-डीज़ल के लिए आवश्यक कच्चे ईधन तेल का दो तिहाई हिस्सा हमें विदेशों से आयात के रूप में प्राप्त होता है.     आत्मनिर्भरता की दृष्टि से इससे निपटने के दो तरीके हैं-एक, तेल का अपना उत्पादन बढ़ाएं; या ईधन  के अन्य विकल्पों  को सुलभ बनानें की दिशा में  आगे बढ़ा जाए. इसको देखते हुए सौर  और पवन आधारित नवकरणीय उर्जा के क्षेत्र में मोदी सरकार नें अभूतपूर्व कार्य कियें है. जहां सौर उर्जा उपकरणों, मशीनरी और कलपुर्जों में उत्पाद शुल्क में छूट दी है, वहीँ सोलर बैटरी और पैनल बनाने में प्रयुक्त होने वाले सोलर टेम्पर्ड गिलास को सीमा शुल्क में भी बड़ी राहत दी है. इसके आलावा  नवकरणीय स्वच्छ उर्जा फण्ड के वित्त-पोषण के लिए कोयला उत्पादन पर उपकर बढ़ाकर१०० रूपए प्रति टन कर दिया गया है. यह फण्ड स्वच्छ उर्जा प्रोद्धोगिकी में शोध और विकास को मदद देने के लिए स्थापित किया गया है. साथ ही इसी क्रम में विधुत चालित वाहनों और हाई ब्रिड वाहनों पर लागू रियायती सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क की समय सीमा जहाँ तक संभव हो उसे बढ़ाते रहने में कोई कसर नहीं छोड़ी.