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राजनीति

बिहार से यूपी तक और मोदी से योगी तक

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एक लम्बे समय तक साम्प्रदायिक शब्द भारतीय राजनीत का प्यारा शब्द रहा है। समयानुसार यह शब्द अपने अर्थ तब्दील करता रहा, राजनीतिज्ञों की जुबानी। कभी अटल बिहारी बाजपेयी असाम्प्रदायिक थे और आडवाणी साम्प्रदायिक। समय बदला आडवाणी हो गये असाम्प्रदायिक और मोदी हो गये साम्प्रदायिक। आज के दौर में एक बार पुनः इस शब्द की व्याख्या हो रही है, व्यक्ति के सन्दर्भ में । कहा ये जा रहा है कि अब मोदी असाम्प्रदायिक है और आदित्यनाथ योगी साम्प्रदायिक। सुविधा की राजनीत इसे ही कहते है।

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राजनीति

‘न्यू इंडिया’ के लिए राष्ट्रपति कौन… ये, वो या फिर कोई और ?

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राष्ट्रपति पद के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में से देखें, तो वित्त मंत्री अरुण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, नगर विकास मंत्री वेंकैया नायडू समेत लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जैसे भी कुछेक जानदार नाम हैं। पार्टी में देखे, तो लालकृष्ण आडवाणी भी सबसे प्रबल स्वरूप में सामने हैं। मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार, केशूभाई पटेल और यशवंत सिन्हा भी उम्मीद पाले हुए हैं। लेकिन इन सब में जेटली और आडवाणी को छोड़कर बाकी सभी को तो उपराष्ट्रपति पद से भी संतुष्ट किया जा सकता है।

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राजनीति

कौन हैं मुसलमानों को योगी का डर दिखाने वाले लोग?

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कुछेक बयानों को आधार बनाकर यह लोग योगी आदित्यनाथ को बदनाम कर रहे हैं। निश्चित तौर पर उनके कुछ बयान कड़े हैं, लेकिन समूचा देश यह भी जानता है कि वे बयान अकारण नहीं आए थे। उन बयानों के पीछे एक पीडि़त,आहत और व्यथित मन था। योगी की कट्टर छवि गढऩे वाले मीडिया और कम्युनिस्टों को आज से 10 साल पहले वर्ष2007 में संसद में दिए गए गोरखपुर के सांसद आदित्यनाथ का आँसुओं से तरबतर पूरा भाषण सुनना चाहिए। प्रोपोगंडा फैलाने में माहिर और हिटलर के सूचना मंत्री गोएबल्स के वंशज यह लोग क्या इस बात का जवाब दे सकते हैं कि संसद में एक संत क्यों फफक-फफक कर रोया था?

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विविधा

जन्मभूमि का नजराना देकर नजीर पेश करे मुस्लिम समाज

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भारतीय मुस्लिमों के समक्ष भी उच्चतम न्यायालय के समझौते के आग्रह के बाद एक बड़ा महत्वपूर्ण व एतिहासिक अवसर बनकर आया है. भारतीय मुस्लिमों को यह बात विस्मृत नहीं करना चाहिए कि बाबर (जिसके नाम पर वह बदनुमा दाग रुपी बाबरी मस्जिद थी) महज एक विदेशी आक्रमणकारी व लूटेरा था. भारतीय मुस्लिमों की रगों में बाबर का खून नहीं बल्कि उनके भारतीय (पूर्व हिन्दू) पुरखों का रक्त बहता है.

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विविधा

नदियों के नागरिक अधिकार

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कायापलट के बाद साबरमती की तुलना अब लंदन की टेम्स और सिंगापुर की सिंगापुर नदी से की जाने लगी है। ये दोनों नदियां कभी नालें में तब्दील हो चुकी थीं, लेकिन अब नदियों का ही रूप ग्रहण कर लिया है। साबरमाती की सफाई मुहिम के नतीजतन इसका जो कायापलट हुआ है, उसकी मिसाल विकसित देशों की सफल परियोजनाओं के बरक्ष पेश की जाने लगी है। 1152 करोड़ के रिवर फ्रंट योजना की बदौलत यह परिवर्तन संभव हुआ अब अहमदाबाद के बीचोंबीच करीब 10.5 किमी की लंबाई में बहने वाली इस नदी में साफ पानी लबालब भरा रहता है।

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विविधा

खुशियों के देश !

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धर्म में रूढ़ि और आडंबर को प्रचारित किया जा रहा है। जबकि खासतौर से सनातन धर्म अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत समन्वय है, जिसे आधुनिक वैज्ञानिक संदर्भों में कम ही परिभाषित किया जा रहा है। मानव-शरीर सरंचना के परिप्रेक्ष्य में विज्ञान की पहुंच केवल अस्थि-मज्जा के जोड़ और जैविक रसायनों के घोल तक सीमित है। जबकि मानव शरीर महज जैविक रसायनों का संगठन भर नहीं है, बल्कि उसकी अपनी मनोवैज्ञानिक एवं उससे भी इतर आध्यात्मिक सत्ता भी है, जो मानसिक स्तर पर मानवीय चेतना एवं व्यक्तित्व विकास का प्रमुख आधार तत्व है।

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विविधा

नदी जीवंतता को मिला अदालती आधार

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योगेन्द्र नाथ नसकर बनाम आयकर आयुक्त कोलकोता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि हिदुओं की देव प्रतिमायें न्यायाधिकार धारण करने की क्षमता रखने वाली सत्ता हैं। इसलिए समाज की आस्था और उसकी मान्यता की रक्षा करने के लिए गंगा और यमुना को जीवित व्यक्ति या न्यायाधिकार प्राप्त व्यक्ति के रूप मेें घोषित करने की ज़रूरत है। नदियों की जीवंतता को संवैधानिक दर्जा दिलाने के विचार और मांग की पूर्ति का संकल्प पहली बार तब सार्वजनिक हुआ, जब वर्ष 2013 के इलाहाबाद कुंभ के दौरान ’गंगा संसंद आयोजित की गई।

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विविधा

गंगा-यमुना मैया को जीवित मानव जैसा अधिकार मिला

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न्यायालय ने आठ सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को गंगा मैनेजमेंट बोर्ड बनाने का आदेश भी दिया है। यह महत्वपूर्ण एवं दूरगामी आदेश हरिद्वार निवासी मोहम्मद सलीम नामक व्यक्ति की एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति श्री राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति श्री आलोक सिंह की संयुक्त खंडपीठ ने जारी किया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि पूर्व सुनवाई में केंद्र सरकार को पांच दिसंबर तक गंगा मैनेजमेंट बोर्ड बनाए जाने के निर्देश दिए गए थे। पिछले साल पांच दिसंबर को कोर्ट ने तीन माह के भीतर गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने व परिसंपत्तियों का बंटवारा करने के आदेश पारित किए थे। अभी तक इस आदेश का पालन नहीं किया गया है।

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राजनीति

मनुवाद का उग्र व रक्तरंजित विरोध पर मायावती को सोचना होगा

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प्रमाणित और निर्णायक तौर पर मायावती न तो काशी राम हैं और न ही भीमराव अबेडकर हैं। काशी राम और भीम राव अंबेडकर को दौलत नहीं चाहिए थे, संपत्ति से इन्हें कोई मोह नहीं था। इनकी केवल इच्छा दलितों की उन्नति और उत्थान था, जिनके लिए ये लडे। काशी राम पार्टी और संगठन में आये पैसे कार्यकर्ताओं के बीच वितरित करते थे। इसलिए काशी राम के प्रति दलितों का सम्मान जारी है। अबेडकर कहा करते थे कि सिर्फ उफान पैदा करने से और गाली देने से मात्र से दलितों का उत्थान नहीं होगा, उन्नति नहीं होगी।

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पर्यावरण विविधा सार्थक पहल

यमुना का प्रदूषण और उमा भारती के प्रयास

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उमा भारती के अनुसार उन्होंने यमुना के लिए जो प्लान किया है उसमे दिल्ली से गंदा पानी अब मथुरा में नहीं आ पायेगा। नमामि गंगे प्रोजेक्ट में दिल्ली से आने वाला गंदा पानी ट्रीट होकर मथुरा की यमुना नदी में शुद्ध होकर आयेगा। जिसके लिए दिल्ली में भी कई प्रोजेक्ट्स को पहले ही लांच किया जा चुका है। इसके अलावा उमा भारती ने दिल्ली में यमुना को हाइब्रिड एन्यूटी पर ले जाकर पूरी की पूरी यमुना और उसके घाटों को ठीक करने की बात कही है। अगले चरण में आगरा की यमुना नदी को भी इस योजना का हिस्सा बनाने की बात की गयी है।’’ अब आगे देखने वाली बात होगी कि केंद्रीय मंत्री उमा भारती यमुना का कितना जीर्णोद्धार या कायाकल्प कर पाती हैं।

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