कविता “संघर्ष” का समय October 5, 2014 by रोहित श्रीवास्तव | Leave a Comment “संघर्ष” का समय “ज़िन्दगी” के होने का असल “आभास” कराये! “संघर्ष” के बिना इंसान “जीवन” की कोई भी “सफलता” न पाए! “संघर्ष-समय” ही है जो व्यक्ति को “आत्म-चिंतन” से लेकर “आत्म-ज्ञान” का त्वरित पाठ पढ़ाये! “संघर्ष” शब्द ही पूर्ण करता है “मनुष्य” के जीवन की परिभाषा.. कभी-कभी इस दौर मई “मृत” हो जाती […] Read more » "संघर्ष" का समय
व्यंग्य पद, पैसा और पी.आर October 5, 2014 / October 5, 2014 by प्रवक्ता ब्यूरो | 5 Comments on पद, पैसा और पी.आर अर्चना चतुर्वेदी हमारे देश में दो चीजों की सबसे ज्यादा पूछ है यानि इज्जत है | यदि आपके पास उन दोनों में से कोई एक भी है, तो समझ लो आप राजा हैं और आपको आपके सपने पूरे करने से कोई नहीं रोक सकता | वो दो चीजें हैं पद यानि कुर्सी और पैसा | […] Read more » पद पैसा और पी.आर
दोहे राम तुम्हें वनवास मिलेगा October 2, 2014 / October 4, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment दुहराता इतिहास मिलेगा राम तुम्हें वनवास मिलेगा युग बदला पर हाल वही है लेकिन रावण खास मिलेगा मिल सकते सुग्रीव परन्तु दुश्मन का आभास मिलेगा और मिलेंगे कई विभीषण वैसा नहीं समास मिलेगा नाव बिठाये केवट शायद बदले में संत्रास मिलेगा लक्ष्मण, सीता साथ भले हों क्या वैसा एहसास मिलेगा राम अगर तुम बदल गए […] Read more » राम तुम्हें वनवास मिलेगा
कविता पीढ़ियों से जमी धूल-झाड़ कर उतार दो October 2, 2014 / October 4, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment पीढ़ियों से जमी है धूल, आज झाड़ कर उतार दो l हर परस्पर भेदभाव को, आज भूलकर बिसार दो Il हो कहीं भी दूरियां-दस्तूरियाँ, उनको अब मिटा दो चरैवेति-चरैवेति, स्वर चहुँओर- वह हमें भी सूना दो ll आज जब तुम झाड़ू लगा रहे, हमें अपनें में मिला दो l दो बातें हैं मेरें मन में, […] Read more » पीढ़ियों से जमी धूल-झाड़ कर उतार दो
आलोचना अब तो केवल विश्व नेता बनने की तमन्ना ही मोदी जी के दिल में है October 1, 2014 by श्रीराम तिवारी | 3 Comments on अब तो केवल विश्व नेता बनने की तमन्ना ही मोदी जी के दिल में है न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महा सभा को सम्बोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से जो हिमालयी चुकें हुई हैं -उनकी भरपाई उन्होंने ‘मेडिसन इस्कवॉयर ‘ के अपने अगले – सम्बोधन में दुरुस्त करने की पुरजोर कोशिश की है।लेकिन मेडिसन स्क्वॉयर के सम्बोधन में उनसे जो गंभीर भूल-चूक हुई है उसे वे कहाँ -कब […] Read more » विश्व नेता बनने की तमन्ना
व्यंग्य थप्पड़शास्त्र October 1, 2014 / October 1, 2014 by अनुज अग्रवाल | 12 Comments on थप्पड़शास्त्र आजकल थप्पड़ वाला फैशन चल रहा है | पहले जूते फेंकने का था | पर अब वो आउटडेटेड हो गया है | जूता वाला फैशन सक्सेसफुल नहीं था | कई पेंच थे उसमे सबसे बड़ा झंझट था निशाना लगाने का | अब हर कोई अभिनव बिंद्रा तो है नहीं जो 4 करोड़ खर्च कर निशाने […] Read more » थप्पड़शास्त्र
कविता मैं हूँ अराजक September 28, 2014 by कुलदीप प्रजापति | 1 Comment on मैं हूँ अराजक रोज यही बस खबर दिख रही टी .वी .और अखबारों में, मेरे देश की बेटी लुटती आश्रम और गलियारों में | कुछ लोग मुझे कहते हैं अराजक जब आवाज उठाता हूँ उनकी भाषा में दिया जवाब सत्ता का लोभी कहलाता हूँ| पहले राजा अँधा था अब गूंगा बहरा आया हैं, हर बहन बेटी […] Read more » मैं हूँ अराजक
कविता कुक्कुरमुत्तों की कविता September 28, 2014 by डॉ. मधुसूदन | Leave a Comment डॉ. मधुसूदन सूचना: यह व्यंग्यात्मक रचनाहै। मनोरंजन के लिए।इसी अर्थ में उसका स्वीकार करें। १ टेढी पूँछ,एक कुक्कुरवो, ऊंची पिछली टाँग कियो; मसरुमवा सिंचित हुआ सारा, सो कुक्कुरमुत्ता कहलाया। २ दीक्सित हुयी सारी सैना, सीतल सिंचित धारासै। कुक्कुरमुत्ते बहर आयै हैं, टोपी झाडू सज धज कै। ३ अक्रमण्यता अदिकार, इनको किस्ना गीता में बोल्ल्यो है। […] Read more » कुक्कुरमुत्तों की कविता
कविता प्रेम September 28, 2014 by बीनू भटनागर | 1 Comment on प्रेम प्रेम इतना भी न करो किसी से, कि दम उसका ही घुटने लगे, फ़ासले तो हों कभी, जो मन मिलन को मचलने लगे। भले ही उपहार न दो, प्रेम को बंधन भी न दो, एक खुला आकाश दे दो, ऊंची उड़ान भरने का, सौभाग्य दे दो….. लौट के आयेगा तुम्हारे पास ही, ये तुम […] Read more » प्रेम
व्यंग्य ‘केजरी-बवाल’ देश के प्रधानमंत्री होते तो ? September 27, 2014 / September 28, 2014 by रोहित श्रीवास्तव | 6 Comments on ‘केजरी-बवाल’ देश के प्रधानमंत्री होते तो ? रोहित श्रीवास्तव देश के सबसे ईमानदार, कर्मठ एवं युग पुरुष धरने वाले बाबा भारत के प्रधानमंत्री होते तो शायद देश के हालात कुछ इस तरह होते। * देश मे पहली बार ‘धरने’ वाली सरकार होती। * देश के प्रधानमंत्री का स्वतन्त्रता दिवस पर लाल किले से भाषण कुछ ऐसा होता “हम अपने दुश्मनों से […] Read more » 'केजरी-बवाल' देश के प्रधानमंत्री होते तो
गजल इंतज़ार September 26, 2014 by अश्वनी कुमार | Leave a Comment इंतज़ार… इंतज़ार इंतज़ार बाक़ी है. तुझे मिलने की ललक और खुमार बाक़ी है. यूँ तो बीती हैं सदियाँ तेरी झलक पाए हुए. जो होने को था वो ही करार बाक़ी है. खाने को दौड़ रहा है जमाना आज हमें. *1यहाँ पे एक नहीं कितने ही जबार बाक़ी है. वोही दुश्मन है, […] Read more » इंतज़ार
दोहे रामचरित September 26, 2014 by अरुण तिवारी | Leave a Comment धरियो, रामचरित मन धरियो तजियो, जग की तृष्णा तजियो परहित सरिस धर्म मन धरियो।। मरियो, मर्यादा पर मरियो धरियो, रामचरित…. भाई बने तो स्वारथ तजियो संगिनी बन दुख-सुख सम धरियोे। मात बने तो धीरज धरियो पुत्र बने तो पालन करियो।। धरियो, रामचरित… सेवक सखा समझ मन भजियो शरणागत की रक्षा करियो। शत्रु संग मत धोखा […] Read more » रामचरित