वीरेन्द्र सिंह परिहार
2014 में केन्द्र की सत्ता में आने पर मोदी सरकार द्वारा क्रमशः 2016, 2019 और 2025 में सर्जिकल स्ट्राइक की गई जिसमें कई आतंकवादी मारे गये। मोदी सरकार का यह कदम अभूतपूर्व साहस से भरा था और इस बात का प्रमाण था कि देश अब सीमा-पार से आतंकवाद सहन करने वाला नहीं है। निश्चित रूप से मोदी सरकार के इन कदमों से एक ओर जहाँ देश में आतंकी गतिविधियों पर व्यापक स्तर पर विराम लगा, वही विश्व परिदृश्य में भारत की एक नई छवि उभरी इस तरह से पूर्व की तरह वह एक दब्बू राष्ट्र नहीं था वरन एक स्वाभिमान और ऊर्जा से सम्पन्न राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ने वाला राष्ट्र बन गया। एक तरह से वह इस मामले में अमेरिका और इजरायल की पक्ति में खड़ा हो गया, जो अपने दुश्मनों को घर में घुसकर मारते थे। निश्चित रूप से ऐसे साहस भरे कृत्यों का राजनीतिक लाभ तो मिलता ही है, देश का जनमानस संकीर्ण प्रवृत्तियों से मुक्त होकर एक व्यापक राष्ट्रवादी धारा में हिलोरे मारने लगता है। 6-7 अप्रैल को मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान के आतंकी अड्डो पर राफेल और सुखोई विमानों से मिसाइलों के माध्यम से हमला कर सैकड़ों आतंकवादियों को मिट्टी में मिला दिया। और तत्पश्चात पाकिस्तान के हमला करने पर उसे ऐसा मुहतोड़ जवाब दिया कि पाकिस्तान त्राहि-त्राहि कर उठा।
देश की जनभावनाओं को मोदी सरकार के पक्ष में देखकर कांग्रेस पार्टी को ऐसा लगने लगा कि आतंकवाद के मामले पर मोदी के प्रति बढ़ते जन समर्थन के चलते वह भविष्य में राजनीतिक दृष्टि से बहुत घाटे में रहेगी। इस पर कांग्रेस पार्टी ने यह कहना शुरू कर दिया कि यूपीए सरकार के दौर में कई सर्जिकल स्ट्राईक की गई थी। यह बात और है कि हमने उन्हें प्रचारित नहीं किया। अब यह कहा जा सकता है कि भाई क्या सर्जिकल स्ट्राइक चोर जैसे होती है कि कोई जानने न पाये। भला कांग्रेस पार्टी राजनीति में इतना बीतरागी कैसे हो गई कि वह कोई उल्लेखनीय कृत्य करे और उसका श्रेय न ले। सवाल सिर्फ श्रेय लेने का नहीं. ऐसे कदमों का प्रचार-प्रसार बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए क्योंकि एक तरफ तो इससे राष्ट्र के नागरिकों का मनोबल बढ़ता है, उन्हें यह एहसास होता है कि उनकी सरकार और नेतृत्व मजबूत एवं साहसी है जो वक्त पड़ने पर खतरा उठाने से नहीं झिझकते।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि यदि यूपीए सरकार के दौर में सर्जिकल स्ट्राइक हुई तो उसका सरकार के पास को अभिलेख एवं डेटा तो होना ही चाहिए जबकि एक आरटीआई के अनुसार वर्ष 2004 से 2014 के बीच जब मनमोहन सरकार सत्ता में थी तो उस दौर का कोई डेटा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। दूसरे इस झूठ को इस तरह से समझा जा सकता है कि इस सम्बन्ध में विभिन्न नेता अलग-अलग बाते करते हैं। स्वतः राहुल गाँधी जहाँ उस दौर में 03 सर्जिकल स्ट्राइक की बात करते हैं, वहीं उस समय रक्षा मंत्री रहने वाले शरद पवार 04 सर्जिकल स्ट्राइक की बाते करते हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 15 सर्जिकल स्ट्राइक की बाते करते हैं तो तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.सी.आर. 11 सर्जिकल स्ट्राइक की बातें करते हैं। हद तो यह कि उस समय के वायुसेना चीफ बी.एस. धनौआ ने लिखा है कि वर्ष 2008 में जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद द्वारा मुम्बई में 26/11 हुआ और 250 करीब लोगो की हत्याएं हुई तो वायुसेना पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के लिये तैयार थी लेकिन तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार द्वारा उसकी अनुमति नहीं दी गई।
अब इतने बड़े मामले पर जब यूपीए सरकार ने कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की और कोई कदम नहीं उठाया तो बाकी समय में करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। इसी के चलते पाकिस्तानी हमारी सेना के जवानों के सीमा पार से सिर काट ले जाते थे। उस अवधि में पूरे देश में आये दिन कहीं-न-कहीं आतंकवादियों द्वारा बम धमाके होते रहते थे। पूरा देश एक संशय और भय के माहौल में जी रहा था। तर्क यह दिया जाता था कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम है, इसलिये कोई कदम उठाने में बड़ा खतरा है। आतंकवादियों को तबके गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने भटके हुये भाई बताया था तो राहुल गाँधी की दृष्टि में लश्करे तोयबा से ज्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खतरनाक था।
मोदी सरकार की आतंकवाद के प्रति जीरो टालरेंस की नीति के चलते ही आतंकवादी घटनाओं पर कुछ उपवादों को छोड़कर पूरे देश में विराम लग गया। स्थिति यह है कि अब आतंकवाद कश्मीर घाटी के कुछ जिलों में छुटपुट रूप में ही और अंतिम सांसे छीन रहा है। मोदी सरकार के दौर में यदि पठानकोट, बालाकोट और पहलगाम हुआ तो उसका सौ गुना ज्यादा ताकत से जवाब दिया गया। अब जो सरकार जेहादी आतंकवाद को काउंटर करने के लिये निराधार हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी का प्रचार-प्रसार कर रही थी, वह भला आतंकवाद को लेकर सर्जिकल स्ट्राइक कैसे करती।
वीरेन्द्र सिंह परिहार