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झूठ तुम्हारे हो गये – कितने लम्बे पैर

वीरेन्द्र सिंह परिहार

         2014 में केन्द्र की सत्ता में आने पर मोदी सरकार द्वारा क्रमशः 2016, 2019 और 2025 में सर्जिकल स्ट्राइक की गई जिसमें कई आतंकवादी मारे गये। मोदी सरकार का यह कदम अभूतपूर्व साहस से भरा था और इस बात का प्रमाण था कि देश अब सीमा-पार से आतंकवाद सहन करने वाला नहीं है। निश्चित रूप से मोदी सरकार के इन कदमों से एक ओर जहाँ देश में आतंकी गतिविधियों पर व्यापक स्तर पर विराम लगा, वही विश्व परिदृश्य में भारत की एक नई छवि उभरी इस तरह से पूर्व की तरह वह एक दब्बू राष्ट्र नहीं था वरन एक स्वाभिमान और ऊर्जा से सम्पन्न राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ने वाला राष्ट्र बन गया। एक तरह से वह इस मामले में अमेरिका और इजरायल की पक्ति में खड़ा हो गया, जो अपने दुश्मनों को घर में घुसकर मारते थे। निश्चित रूप से ऐसे साहस भरे कृत्यों का राजनीतिक लाभ तो मिलता ही है, देश का जनमानस संकीर्ण प्रवृत्तियों से मुक्त होकर एक व्यापक राष्ट्रवादी धारा में हिलोरे मारने लगता है। 6-7 अप्रैल को मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान के आतंकी अड्डो पर राफेल और सुखोई विमानों से मिसाइलों के माध्यम से हमला कर सैकड़ों आतंकवादियों को मिट्टी में मिला दिया। और तत्पश्चात पाकिस्तान के हमला करने पर उसे ऐसा मुहतोड़ जवाब दिया कि पाकिस्तान त्राहि-त्राहि कर उठा।

 देश की जनभावनाओं को मोदी सरकार के पक्ष में देखकर कांग्रेस पार्टी को ऐसा लगने लगा कि आतंकवाद के मामले पर मोदी के प्रति बढ़ते जन समर्थन के चलते वह भविष्य में राजनीतिक दृष्टि से बहुत घाटे में रहेगी। इस पर कांग्रेस पार्टी ने यह कहना शुरू कर दिया कि यूपीए सरकार के दौर में कई सर्जिकल स्ट्राईक की गई थी। यह बात और है कि हमने उन्हें प्रचारित नहीं किया। अब यह कहा जा सकता है कि भाई क्या सर्जिकल स्ट्राइक चोर जैसे होती है कि कोई जानने न पाये। भला कांग्रेस पार्टी राजनीति में इतना बीतरागी कैसे हो गई कि वह कोई उल्लेखनीय कृत्य करे और उसका श्रेय न ले। सवाल सिर्फ श्रेय लेने का नहीं. ऐसे कदमों का प्रचार-प्रसार बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए क्योंकि एक तरफ तो इससे राष्ट्र के नागरिकों का मनोबल बढ़ता है, उन्हें यह एहसास होता है कि उनकी सरकार और नेतृत्व मजबूत एवं साहसी है जो वक्त पड़ने पर खतरा उठाने से नहीं झिझकते।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि यदि यूपीए सरकार के दौर में सर्जिकल स्ट्राइक हुई तो उसका सरकार के पास को अभिलेख एवं डेटा तो होना ही चाहिए जबकि एक आरटीआई के अनुसार वर्ष 2004 से 2014 के बीच जब मनमोहन सरकार सत्ता में थी तो उस दौर का कोई डेटा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। दूसरे इस झूठ को इस तरह से समझा जा सकता है कि इस सम्बन्ध में विभिन्न नेता अलग-अलग बाते करते हैं। स्वतः राहुल गाँधी जहाँ उस दौर में 03 सर्जिकल स्ट्राइक की बात करते हैं, वहीं उस समय रक्षा मंत्री रहने वाले शरद पवार 04 सर्जिकल स्ट्राइक की बाते करते हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 15 सर्जिकल स्ट्राइक की बाते करते हैं तो तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.सी.आर. 11 सर्जिकल स्ट्राइक की बातें करते हैं। हद तो यह कि उस समय के वायुसेना चीफ बी.एस. धनौआ ने लिखा है कि वर्ष 2008 में जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद द्वारा मुम्बई में 26/11 हुआ और 250 करीब लोगो की हत्याएं हुई तो वायुसेना पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के लिये तैयार थी लेकिन तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार द्वारा उसकी अनुमति नहीं दी गई।

अब इतने बड़े मामले पर जब यूपीए सरकार ने कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की और कोई कदम नहीं उठाया तो बाकी समय में करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। इसी के चलते पाकिस्तानी हमारी सेना के जवानों के सीमा पार से सिर काट ले जाते थे। उस अवधि में पूरे देश में आये दिन कहीं-न-कहीं आतंकवादियों द्वारा बम धमाके होते रहते थे। पूरा देश एक संशय और भय के माहौल में जी रहा था। तर्क यह दिया जाता था कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम है, इसलिये कोई कदम उठाने में बड़ा खतरा है। आतंकवादियों को तबके गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने भटके हुये भाई बताया था तो राहुल गाँधी की दृष्टि में लश्करे तोयबा से ज्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खतरनाक था।

         मोदी सरकार की आतंकवाद के प्रति जीरो टालरेंस की नीति के चलते ही आतंकवादी घटनाओं पर कुछ उपवादों को छोड़कर पूरे देश में विराम लग गया। स्थिति यह है कि अब आतंकवाद कश्मीर घाटी के कुछ जिलों में छुटपुट रूप में ही और अंतिम सांसे छीन रहा है। मोदी सरकार के दौर में यदि पठानकोट, बालाकोट और पहलगाम हुआ तो उसका सौ गुना ज्यादा ताकत से जवाब दिया गया। अब जो सरकार जेहादी आतंकवाद को काउंटर करने के लिये निराधार हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी का प्रचार-प्रसार कर रही थी, वह भला आतंकवाद को लेकर सर्जिकल स्ट्राइक कैसे करती।

वीरेन्द्र सिंह परिहार

क्या पाकिस्तान 2029 से पहले “ध्वस्त” हो जाएगा?

शिवानन्द मिश्रा

क्या पाकिस्तान 2029 से पहले “ध्वस्त” हो जाएगा? संक्षिप्त उत्तर है: हाँ।

28 अप्रैल को असीम मुनीर और शाहबाज़ शरीफ़ ने क्रिप्टो फ़ंड WLF को पाकिस्तानी संपत्तियाँ बेच दी हैं।

बलूच, सिंध, पश्तून, POJK पहले से कहीं ज़्यादा गरम हो रहे हैं।

लेकिन पाकिस्तान कैसे ध्वस्त होगा?

 ध्वस्त होने का मतलब है अंदर से टूटना।

इसके कारण इस प्रकार हैं:

आर्थिक टाइम बम:

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था निरंतर संकट की स्थिति में है:

ऋण-से-जीडीपी अनुपात: 73.94%+

राजकोषीय घाटा: जीडीपी का ~7% (वित्त वर्ष 25 का पूर्वानुमान)

विदेशी मुद्रा भंडार: 3 महीने के आयात का समर्थन करने के लिए ~15 बिलियन डॉलर के आसपास है

मुद्रास्फीति: 2023 में 37%

2019 से मुद्रा में 250% की गिरावट आई है:

2018 में PKR/USD: ~120

2025 में PKR/USD: ~280-300

डिफ़ॉल्ट को केवल IMF बेलआउट के ज़रिए टाला जाता है।

वे विकास लक्ष्य से चूकने के कारण 5 बिलियन अमरीकी डॉलर का और ऋण मांग रहे हैं।

ऋण जाल कूटनीति और IMF निर्भरता:

पाकिस्तान ने 1958 से अब तक 25 से ज़्यादा IMF ऋण लिए हैं।

2023-24 में, IMF ने $3B बेलआउट को मंज़ूरी दी और मई 2025 में 1.7 बिलियन की और मंज़ूरी दी लेकिन पुनर्भुगतान बकाया है:

चीन, सऊदी अरब, UAE सहित 2026 तक $77B बकाया है।

वित्त वर्ष 25 में ऋण सेवा: संघीय राजस्व का >60%

पाकिस्तान ऋण चुकाने के लिए उधार ले रहा है = अस्थिर चक्र।

अब पाकिस्तान ने उस प्लेटफॉर्म पर अपनी संपत्तियों को टोकनाइज़ करने के लिए यूएस क्रिप्टो फंड के साथ एक डील साइन की है।

असीम मुनीर भी उस डील का हिस्सा थे। इसका क्या मतलब है?

पाकिस्तान की सभी सरकारी संपत्तियाँ उस प्लेटफॉर्म पर बिक्री के लिए हैं।

पाकिस्तान इसका इस्तेमाल बेलआउट के लिए पैसे पाने के लिए करेगा क्योंकि IMF ने 11 प्रतिबंधों के साथ उस पर शिकंजा कसा है।

जैसे-जैसे यह क्रिप्टो डील वास्तविक होती जाएगी, पाकिस्तान का पूरा वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होगा और इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर अशांति और अस्थिरता पैदा होगी।

चीन इस डील से खुश नहीं है क्योंकि इससे कई चीनी पाकिस्तानी इंफ्रा प्रोजेक्ट प्रभावित हो सकते हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि चीन असीम मुनीर को अपने पक्ष में न कर ले, उन्हें हार के बाद भी फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया है।

पाकिस्तान ने यह डील क्यों की? क्योंकि एक और टाइम बम: बलूच, सिंधी, पश्तूनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अशांति पैदा कर दी है।

ऑपरेशन सिंदूर के साथ, पाकिस्तान सशस्त्र बल पूरी तरह से विघटित अवस्था में हैं।

बलूच पहले की तुलना में अधिक आक्रामक तरीके से अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं।

एक बार जब वे स्वतंत्र हो जाएंगे तो चीन पाकिस्तान को छोड़ देगा और बलूचिस्तान के साथ अपनी परियोजनाओं, दुर्लभ पृथ्वी खनिजों और अरब सागर में समुद्री पहुँच के लिए काम करेगा।

खैबर पख्तूनवा क्षेत्र में भी भारी अशांति है…

नागरिक अधिकारों और उपेक्षा सहित कई क्षेत्रों के लिए तालिबान से समर्थन।

तालिबान ने पिछले एक साल में विवादित पाकिस्तान अफगान सीमा पर पाकिस्तानी सेना से कई बार मुठभेड़ की और उन्हें मार गिराया।

पश्तूनों को स्वतंत्रता की लड़ाई में तालिबान से हर तरह का समर्थन मिल रहा है।

तालिबान सरकार काबुल नदी के पाकिस्तान में प्रवाह को रोकने के लिए बांध बना रही है।

इसलिए पाकिस्तान की बर्बाद अर्थव्यवस्था… सिंधु संधि निरस्तीकरण और अब अफगानिस्तान द्वारा बांध बनाने से और भी अधिक कमजोर हो गई है।

ये दोनों मिलकर पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद के 25% और पाकिस्तान के रोजगार के 40% को प्रभावित कर सकते हैं।

सिंध, पीओके भी बड़े पैमाने पर नागरिक अशांति का सामना कर रहे हैं जो अपनी स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं, हालांकि अभी तक यह उतना मजबूत नहीं है।

पाकिस्तान की कमज़ोर सेना के कारण ये अशांति बहुत जल्द ही बलूचिस्तान जैसे आंदोलन में तब्दील होने जा रही है। पाकिस्तान दुनिया का तीसरा सबसे ज़्यादा पानी की कमी वाला देश है। सिंधु संधि रद्द होने के बाद यह नंबर एक बन जाएगा। आने वाले महीनों में बड़े पैमाने पर नागरिक अशांति की आशंका है और आने वाले साल में यह और भी ज़्यादा बढ़ जाएगी।

और चीन… पाकिस्तान के अमेरिका के साथ सौदे और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के बंकरों में अमेरिकी परमाणु हथियारों के उजागर होने से नाराज़ है। चीन ने पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री को बुलाया और उनका स्वागत एक निचले दर्जे के कर्मचारी की तरह किया गया। चीन को पाकिस्तान में अपने निवेश पर जोखिम और ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के खराब प्रदर्शन को देख रहा है, जहाँ चीनी रक्षा प्रणाली उजागर हो गई और दुनिया भर में अनुबंध रद्द हो रहे हैं। 

भारत को क्या करना चाहिए? भारत को पाकिस्तान को गर्त में धकेलने के लिए पिछले 7-8 सालों से जो किया है, उसे करने की ज़रूरत है। हमें पीओजेके के लिए जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान खुद ही हमें थाली में परोस देगा।

नोटबंदी ने 2016 से उनकी वित्तीय स्थिति को बिगाड़ दिया है। ऑपरेशन सिंदूर ने आंतरिक स्वतंत्रता आंदोलनों और अपने सहयोगी चीन के साथ बाहरी दरार को हवा दी है और ..

इसे अमेरिका द्वारा उपनिवेश बनाने के लिए मजबूर किया है।

सिंधु घाटी संधि निरस्तीकरण ने इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ यानी कृषि को बड़े जोखिम में डाल दिया है।

भारत को पीओजेके के लिए पाकिस्तान के साथ लंबे युद्ध में समय और पैसा बर्बाद करने और चीन को नाराज़ करने की ज़रूरत नहीं है।

पीओजेके, बलूचिस्तान, केएफपी और सिंध बहुत जल्द पैदा होंगे।

बलूचिस्तान सांस्कृतिक रूप से भारत के साथ जुड़ा हुआ है, 1947 को छोड़कर अनंत काल से भारत का हिस्सा रहा है। भारत को यह देखना चाहिए कि वह आर्थिक लाभ के लिए बलूचिस्तान का भागीदार है और चीन को बलूचिस्तान से कोई भी संबंध रखने से रोकता है। हमें समझदारी से और समय रहते कदम उठाने होंगे।

शिवानन्द मिश्रा

मेघना गुलजार की फिल्‍म ‘दायरा’ में करीना कपूर

सुभाष शिरढोनकर

एक्ट्रेस करीना कपूर अपनी एक्टिंग से हर बार फैंस का दिल जीत लेती हैं। उनकी फिल्मों का फैंस को बेसब्री से इंतजार रहता है हालांकि शादी और फिर दो बच्‍चों की मां बन जाने के बाद करीना आज पहले की तरह सक्रिय  नहीं हैं।

हाल ही में करीना कपूर ने अपने करियर के 25 साल पूरे किए लेकिन फैंस के दिलो दिमाग में उनका चार्म आज भी पहले की तरह कायम है।

करीना के नए प्रोजेक्ट की अनाउंसमेंट का फैंस लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। हाल ही में खबर आई कि  करीना कपूर, मेघना गुलजार की अपराध, सजा और न्याय के बीच के संघर्ष को पर्दे पर उजागर करती अपकमिंग फिल्म ‘दायरा’ में मेन लीड में नजर आएंगी। इस फिल्‍म में उनके अपोजिट साउथ के फेमस एक्टर पृथ्वीराज सुकुमारन होंगे।   

‘तलवार’ से लेकर ‘राजी’ तक फिल्‍म इंडस्‍ट्री को एक से बढकर एक कई फिल्‍में देने वाली निर्देशक मेघना गुलजार की  ‘सैम बहादुर’ (2023) की सफलता के बाद यह अगली निर्देशित फिल्म होने वाली है। इस फिल्‍म की कहानी हर किसी को उस समाज और उसकी संस्थाओं के बारे में सोचने पर मजबूर करती है, जिसमें हम सभी रहते हैं।

करीना कपूर की पहली फिल्म 2000 में रिलीज ‘रिफ्यूजी’ थी जिसमें वह अभिषेक बच्‍चन के अपोजिट नजर आई थीं। इस फिल्‍म से करीना की धीमी शुरुआत हुई।

फिल्म ‘रिफ्यूजी’ (2000) से करीना को कोई बड़ा बूस्ट नहीं मिला लेकिन इसके बाद करीना ने एक से बढ़कर एक अनेक अच्छी फिल्में करते हुए खूबसूरती और टेलेंट की जबर्दस्‍त धाक जमा ली।

करण जौहर की फिल्म ‘कभी खुशी, कभी कम’ (2001) में करीना कपूर ने मॉर्डन गर्ल पू का रोल प्ले किया जिसे काफी पसंद किया गया। इस रोल से उन्हें असल पहचान मिली। इसके बाद करीना का क्रेज लगातार बढता ही गया।  

‘चमेली’ (2004), ‘ओमकारा’ (2006), ‘जब वी मेट’ (2007) और ‘उड़ता पंजाब’ (2016) जैसी फिल्मों में करीना ने अपनी एक्टिंग की जबर्दस्‍त रेंज दिखाई। 

’वीरे द वैडिंग’ (2018) के बाद ‘गुड न्‍यूज’ (2019)  और ‘अग्रेजी मीडियम’ (2020) में भी करीना को काफी पसंद किया गया। ’फिदा’ (2004) के बाद ‘हीरोइन’ (2012) जैसी फिल्‍मों के नेगेटिव शेड वाले केरेक्टर में भी करीना कपूर का दमखम देखने लायक था। 

करीना और शाहिद कपूर ने एक साथ कई फिल्मों में काम किया जिनमें ‘फिदा’ (2004), ’36 चाइन टाउन’ (2006) ‘चुप चुपके’ (2006), ‘जब वी मेट’ (2007), ‘मिलेंगे मिलेंगे’ (2010) और ‘उड़ता पंजाब’ (2016) शामिल हैं।

इन फिल्‍मों में काम करते हुए करीना कपूर और शाहिद कपूर के अफेयर के खूब चर्चे हुए थे। दोनों ने लगभग 5 साल तक एक-दूसरे को डेट भी किया लेकिन उसके बाद उनका ब्रेकअप हो गया।

करीना कपूर ’कभी खुशी कभी गम’ (2001) ’अशोका’ (2001) ’डॉन: द चैस बिगेन्‍स अगेन’ (2006) ’रा वन’ (2011) और ‘चैन्‍नई एक्‍सप्रेस’ (2013) जैसी फिल्मों में शाहरूख के साथ काम कर चुकी हैं।  

करीना कपूर और सलमान खान के साथ वाली फिल्‍मों का बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड रहा है।  दोनों ही ‘क्‍योंकि मैं झूठ नहीं बोलता’ (2001) ‘मैं और मिसेज खन्‍ना’ (2009), ‘बॉडीगार्ड’ (2011) ‘बजरंगी भाईजान’ (2015) और ‘भारत’ (2019) जैसी कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों में साथ काम कर चुके हैं।

अक्षय कुमार के साथ भी करीना कपूर की जोड़ी को सिल्‍वर स्‍क्रीन पर काफी पसंद किया गया। दोनों ‘एतराज’ (2004), ‘तलाश’ (2008), ‘कम्‍बख्‍त इश्‍क’ (2009), ‘पटियाला हाउस’ (2011), ‘गब्‍बर इज बैक’ (2015) और ‘गुड न्‍यूज’ (2019) जैसी फिल्‍मों में साथ नजर आए।

आमिर खान के साथ भी करीना कपूर ने ‘‍थ्री ईडियट्स’ (2009) जैसी हिट फिल्‍म में काम किया है। हालांकि आमिर खान के अपोजिट वाली उनकी फिल्‍म ‘तलाश’ (2012) और ‘लाल सिंह चड्ढा’ (2022) नहीं चली।  

सुभाष शिरढोनकर

कृषक की गाथा — मिट्टी से मन तक

मिट्टी की महक से है उसकी आराधना,
खेत-खलिहान में वो करता नित नमन।
धूप-छाँव में जो तपे, जो झूके न कभी,
कृषक है धरती का सबसे बड़ा सजन।

खून-पसीने से लिखी उसकी यह कहानी,
संघर्ष की लौ में जलती है आह्वान।
फसलें बोए, सपने रोपे, मन के वीर,
हरियाली से भर दे वह वीरान मैदान।

बूंद-बूंद में समेटे अमृत सावन के,
हवा की मादक छुअन में बसी है जान।
वर्षा की थाप से गूँज उठे खेतों की रागिनी,
जिसमें हर बीज फूले, फलें आन-बान।

पर अब आए संकट, जुल्म और परेशानियाँ,
खतरा मंडरा रहा मिट्टी के इस मान।
कीटनाशक, प्रदूषण ने मारा तन-मन,
बूंद-बूंद में घुला विष, हो गया विस्तार।

पर किसान न हार मानता, ना झुकता कभी,
रखे जोश अटल, अडिग, सीना तान।
धरती माँ की पुकार सुने, नई राह चुने,
प्रकृति संग करे संवाद, ले जीवन ज्ञान।

परिवार का भार, ऋण का दंश, सब झेले,
फिर भी मुस्कुराए, आशा की ज्योति जलाए।
साझा करे सपनों को, बाँटे सुख-दुख,
कृषक के मन में नव युग के संदेश गूंजे।

चलो उठो किसान, नयी किरणों को पकड़ो,
सुरक्षित जीवन, स्वच्छ धरती का सपना सजा लो।
मिट्टी के इस मर्म को हम सब समझें आज,
धरती पर फिर से बसाएं, अमृत के झरने।

ऐसा किसान जो मिट्टी का हो सच्चा सखा,
वही बदल सकता है विश्व का भाग्य सारा।
मेहनत, प्रेम, समर्पण हो उसका हथियार,
तो होगा जीवन पुष्पित, होगा सारा संसार।

— प्रियंका सौरभ

क्लीन डवलपमेंट मेकनिज़्म और संयुक्त क्रियान्वयन से दूर होगी ग्लोबल वार्मिंग

अभी जून के महीने की शुरुआत ही हुई है और मार्च से ही लगातार ताबड़तोड़ गर्मी पड़ रही है। आज भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का लगातार सामना कर रहा है। आज संपूर्ण विश्व में सबसे बड़ी चिंताएं या तो पर्यावरण प्रदूषण को लेकर हैं अथवा ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन को लेकर। ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की है।रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि 80 प्रतिशत संभावना है कि साल 2025 और 2029 के बीच के साल 2024 से ज्यादा गर्म होंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो 

अगले पांच वर्षों में कम से कम एक साल 2024 से अधिक गर्म होने की संभावना है, जिसे अब तक का सबसे गर्म वर्ष माना गया है। जानकारी के अनुसार 1850-1900 के औसत तापमान की तुलना में सतही तापमान 1.2 डिग्री से 1.9 डिग्री सेल्सियस तक रह सकता है।यह बहुत ही चिंताजनक है कि साल 1880 से जब से तापमान के बारे में रिकार्ड रखना शुरू किया गया, उनमें से पिछले 11 साल, लगातार अब तक के रिकॉर्ड में सबसे गर्म रहे हैं। पाठकों को बताता चलूं कि रिपोर्ट में डब्लूएमओ ग्लोबल एनुअल टू डेकाडल क्लाइमेट अपडेट (2025-2029) ने यह भी अनुमान लगाया है कि 70 प्रतिशत संभावना है कि 2025-2029 के लिए पांच साल का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा, जिससे धरती पर लगातार और गंभीर हीटवेव, सूखा जैसे हालात होंगे।यह पिछले साल की साल 2024-2028 के लिए डब्लूएमओ रिपोर्ट में बताई गई 47 प्रतिशत संभावना और साल 2023-2027 के लिए 2023 रिपोर्ट में बताई गई 32 प्रतिशत संभावना से ज्यादा है। वास्तव में, यह सीमा अहम और महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि, यह पेरिस समझौते के लक्ष्यों में से एक है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में दो डिग्री सेल्सियस से नीचे और यदि संभव हो तो 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया था। आज हम कोयला, तेल और गैस का औद्योगिक पैमाने पर इस्तेमाल लगातार कर रहे हैं और वैज्ञानिक यह बात मानते हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य लगभग असंभव हो गया है, क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन अभी भी धरती पर बहुत तेजी से बढ़ रहा है। बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि जब भी धरती का तापमान बढ़ता है तो इसके बहुत ही दूरगामी और व्यापक असर पड़ते हैं। मसलन, इससे संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्थाओं, हमारे दैनिक जीवन, हमारी पारिस्थितिकी प्रणालियों, वनस्पतियों , जीवों या यूं कहें कि हमारे पूरे नीले ग्रह पर इसका नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इससे (ग्लोबल वार्मिंग से) कहीं न कहीं सतत् विकास का जोखिम बढ़ता है। बहरहाल,रिपोर्ट के अनुसार, तापमान वृद्धि से चरम मौसमी घटनाएं और गंभीर होंगी, जैसे: अधिक गर्मी और भारी बारिश। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है तो इससे सूखा, बर्फ का पिघलना, और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि जैसी घटनाएं घटित होतीं हैं तथा समुद्र का तापमान भी बढ़ता है और इससे समुद्री जीवन प्रभावित होता है।ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, भारत, चीन और घाना में बाढ़, कनाडा में जंगल की आग ग्लोबल वार्मिंग के उदाहरण कहे जा सकते हैं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि यूके मौसम विभाग(यूके मेट आफिस) ने भी 2025 के लिए एक जलवायु पूर्वानुमान रिपोर्ट जारी की है, जिसमें 2025 को अब तक के तीन सबसे गर्म वर्षों में से एक होने की संभावना व्यक्त की गई है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2025 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है। यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन और यूके मेट आफिस दुनिया की दो सबसे शीर्षस्थ एजेंसियां हैं जो कि जलवायु पूर्वानुमान रिपोर्ट जारी करतीं हैं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि मानवीय ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन का आज एक मुख्य कारण है । ग्लोबल वार्मिंग पर इनके प्रभाव विनाशकारी हैं और यह अधिकाधिक आवश्यक होता जा रहा है कि इन उत्सर्जनों को कम किया जाए, ताकि मानव को ग्रह पर इतना दबाव डालने से रोका जा सके। स्थिति इतनी गंभीर है कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ( आईईए ) ने अनुमान लगाया है कि यदि हम इसी तरह जारी रखेंगे तो 2050 तक उत्सर्जन में 130% की वृद्धि होगी । यह विडंबना ही कही जा सकती है कि क्योटो प्रोटोकॉल जैसे समझौतों के बावजूद, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि जारी है। वैसे कमोबेश विश्व के लगभग सभी देश वैश्विक प्रदूषण के उच्च स्तर के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार चीन (30 प्रतिशत), संयुक्त राज्य अमेरिका (15 प्रतिशत), भारत (7 प्रतिशत), रूस(5 प्रतिशत) और जापान (4 प्रतिशत) वैश्विक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार देश हैं। इनमें भी चीन का निर्यात बाजार बहुत बड़ा है जो किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है। यहां यदि हम भारत की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। देश में वायु गुणवत्ता की सुरक्षा के लिए 1981 से ही कानून लागू है, लेकिन जीवाश्म ईंधनों के जलने की दर में काफी वृद्धि हुई है और इसके परिणामस्वरूप भारत विश्व में सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले देशों की रैंकिंग में तीसरे स्थान पर है। वहीं पर रूस तेल, कोयला, गैस और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के कारण बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करता है। यदि हम यहां पर जापान की बात करें तो जापान विश्व में जीवाश्म ईंधन का सबसे बड़ा उपभोक्ता और ग्रीनहाउस गैसों का पांचवा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। बहरहाल, यह दुर्भाग्य की बात है कि दुनिया के बड़े और विकसित देश आज कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं दिख रहे हैं। इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि दुनिया के समृद्ध देश आज कार्बन उत्सर्जन कम करने को अपना दायित्व नहीं मानते और न ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार अधिक धन देने के लिए ही तैयार नजर आते हैं। हालांकि इसी बीच अच्छी बात यह भी है कि भारत ने 2070 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य निर्धारित किया है, और यूरोपीय संघ ने 2050 तक ‘शुद्ध-शून्य’ उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। कई अन्य देशों ने भी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उत्सर्जन में कमी करने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जैसे कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा पर स्विच करना। पाठकों को बताता चलूं कि भारत ने उत्सर्जन तीव्रता में कमी लाने के लिए ‘कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम, 2023’ को अधिसूचित किया है। इतना ही नहीं,भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा पर स्विच करने और ऊर्जा दक्षता में सुधार करने के लिए कई योजनाएं और नीतियां बनाई हैं, जैसे कि सौर ऊर्जा का उपयोग करना आदि। अंत में यही कहूंगा कि ग्लोबल वार्मिंग आज किसी देश विशेष की समस्या नहीं है, अपितु यह हम सभी की एक सामूहिक समस्या है और इसके लिए हमें एक दूसरे के सहयोग के साथ आगे आना होगा और पूर्ण प्रतिबद्ध और कृतसंकल्पित होकर काम करना होगा। वास्तव में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल  द्वारा  विकसित देशों को जो तीन विकल्प क्रमशः अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार,क्लीन डवलपमेंट मेकनिज़्म और संयुक्त क्रियान्वयन पर मुस्तैदी और पूरी तन्मयता से काम करना होगा तभी हम इस गहराती समस्या से निपट सकेंगे।

सुनील कुमार महला

आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक जरूरी

सुरेश हिंदुस्तानी

आतंकवाद को आश्रय देने वाले देश पाकिस्तान की असलियत को उजागर करने के लिए भारत ने बहुत बड़े रणनीतिक स्तर पर कार्य किया है। एक तरफ जहां पाकिस्तान केवल तीन ऐसे मुस्लिम देशों का समर्थन प्राप्त करने में सफल रहा है, जो उसे पहले से ही समर्थन कर रहे थे। वहीं भारत ने इससे आगे बढ़कर वैश्विक समुदाय के समक्ष पाकिस्तान को आतंकियों को संरक्षण देने वाला देश बताने में कोई संकोच नहीं किया। भारत ने विश्व के तमाम देशों में अपने प्रतिनिधि मंडल भेजकर भारत का पक्ष रखकर यह बताने का प्रयास किया है कि आतंकी हमला पाकिस्तान की ओर से किया गया। इसके विपरीत भारत की ओर से केवल जवाबी कार्यवाही ही की गई है, जिसका भारत को पूरा अधिकार है। भारत के प्रतिनिधि मंडलों की ओर से इस सच को दुनिया को बताने का प्रयास किया जा रहा है कि भारत की ओर से पाकिस्तान पर हमला नहीं किया गया, बल्कि आतंकवाद पर प्रहार किया गया। इसी बात पर भारत को विश्व समुदाय का समर्थन भी मिल रहा है। सबसे ख़ास बात यह है पाकिस्तान में जहां अपनी ही सरकार विपक्ष के निशाने पर है, वहीं भारत सरकार ने अपनी कूटनीतिक चाल चलते हुए इन प्रतिनिधि मण्डलों में सत्ता पक्ष के नेताओं के साथ ही विपक्ष के कई प्रभावी नेताओं को शामिल किया है। यही नेता विश्व के देशों में भारत का पक्ष मजबूती से रख रहे हैं। इससे स्वाभाविक रूप से विश्व बिरादरी से पाकिस्तान पर अलग थलग होने का गंभीर खतरा भी उत्पन्न हो गया है। यह बात सही है कि पाकिस्तान में आश्रय और संरक्षण प्राप्त करने वाले आतंकी आकाओं को आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए वित्त पोषण प्राप्त होता रहा है। इसका आशय स्पष्ट है कि पाकिस्तान आतंक को समाप्त करने के लिए तैयार नहीं है। क्योंकि आतंकवादियों को जब तक वित्त पोषित कया जाता रहेगा, तब तक पाकिस्तान की ओर से आतंक फैलाने वालों पर अंकुश लगाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सबसे पहले उसके वित्त पोषण पर रोक लगाना बहुत जरूरी है।

यहां यह कहना बहुत आवश्यक है कि पाकिस्तान गिड़गिड़ाकर समर्थन पाने का प्रयास कर रहा है, वहीं भारत की ओर से पाकिस्तान को अलग थलग करने का ठोस प्रयास भी किया जा रहा है। जिसमें भारत का बहुत हद तक सफलता भी मिल रही है। आज के समय में पाकिस्तान इस बात को नकारने का साहस नहीं कर सकता कि उसके देश में आतंकवादी संगठन सक्रिय नहीं हैं। क्योंकि यह तथ्य विश्व के सामने उजागर हो चुका है। आज भी पाकिस्तान में लश्कर ए तैयबा, लश्कर ए ओमर, जैश ए मोहम्मद, हरकतुल मुजाहिद्दीन, सिपाह ए सहाबा, हिज़्बुल मुजाहिदीन आदि पाकिस्तान में रहकर अपनी आतंकी गतिविधियाँ चलाते हैं। कई मामलों में आईएसआई से इन्हें सक्रिय प्रशिक्षण एवं अन्य सहयोग भी मिलते हैं। इतना ही नहीं कई बार सेना और सरकार का भी खुला संरक्षण भी इनको मिलता रहा है। पाकिस्तान सरकार की मानें तो उसके यहां 20 से अधिक आतंकी संगठन सक्रिय हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस संख्या को 150 से अधिक तक बताता है। वहीं, अमेरिकी स्टेट डिमार्टमेंट के मुताबिक यह संख्या 70 से अधिक है। वैश्विक समुदाय के दबाव में पाकिस्तान कई बार आतंकी समूहों के विरोध में कार्यवाही करने की बात करता है, लेकिन वहीं दूसरी ओर सेना और राज्य सरकारों की ओर से आतंकी संगठनों को खाद पानी प्राप्त होता रहता है। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान में आतंकवाद की जड़ें बहुत ही गहरी हैं।

वैश्विक समुदाय को पाकिस्तान की वास्तविकता बताने के लिए भारत की ओर से ठोस रणनीति बनाकर कार्यवाही को अंजाम दिया जा रहा है। जहां पाकिस्तान सरकार को अपने ही देश के विपक्षी दलों के कोप का सामना करना पड़ रहा है, वहीं भारत सरकार के साथ विपक्ष के सांसदों ने पाकिस्तान की पोल खोलने के लिए सामूहिक वैश्विक अभियान चलाया है। इससे पाकिस्तान को यह डर सता रहा है कि कहीं पाकिस्तान एक बार फिर से ग्रे सूची में नहीं आ जाए। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि पाकिस्तान की तसवीर यही चित्र प्रदर्शित कर रही है। आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे पाकिस्तान में अब इतना साहस नहीं है कि वह विश्व के आर्थिक प्रतिबंधों को झेल सके। इसमें पाकिस्तान में आतंरिक विरोधाभास आग में घी डालने का कार्य कर रहा है। ब्लूचिस्तान में पाकिस्तान से अलग होने के लिए चल रहे आंदोलन में और तेजी आई है। इतना ही नहीं बीएलए ने तो कई कदम आगे बढ़कर अपने आपको स्वतंत्र देश घोषित कर दिया है। ब्लूचिस्तान का यह कदम पाकिस्तान को बहुत कमजोर करने वाला है।

पाकिस्तान के बारे में यह आम धारणा निर्मित हो चुकी है कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देता है। इसके अलावा यहां पर आतंकवादी संगठनों को वित्त पोषित भी किया जाता है। विश्व के कई देश आतंकवाद को समाप्त करने के लिए आवाज उठा रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब तक आतंकवाद को वित्त पोषित किया जाता रहेगा, तब तक उसे समाप्त करना कठिन है। इसलिए सबसे पहले आतंकवादी संगठनों के वित्त पोषण पर लगाम लगाने की आवश्यकता है।

सुरेश हिंदुस्तानी

दोस्ती या मौत की सैर: युवाओं की असमय विदाई का बढ़ता सिलसिला

“जब यार ही यमराज बन जाएं, तो मां-बाप किस पर भरोसा करें?”

– डॉ सत्यवान सौरभ

हरियाणा में इन दिनों एक डरावना चलन पनपता दिख रहा है। हर हफ्ते कहीं न कहीं से यह खबर आती है कि कोई युवा दोस्तों के साथ घूमने गया और लौट कर अर्थी में आया। ये घटनाएं केवल अखबार की सुर्खियां नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक ताने-बाने और व्यवस्था की खामियों की वीभत्स तस्वीर हैं। ‘दोस्ती’ अब ‘दुर्घटना’ का पर्याय बनती जा रही है।

घटनाएं जो झकझोर देती हैं

पिछले कुछ हफ्तों में ही हरियाणा में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं:

हिसार में दो युवकों की झील में डूबकर मौत, जहां वे अपने दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गए थे। परिजनों का आरोप है कि साथी दोस्त वीडियो बनाते रहे, मदद नहीं की।

सोनीपत में एक लड़के की दोस्तों ने गला दबाकर हत्या कर दी, फिर शव को नहर में फेंक दिया।

रेवाड़ी में एक छात्र का शव जंगल में मिला, जो आखिरी बार अपने दोस्तों के साथ देखा गया था।

इन घटनाओं में कुछ समानताएं हैं: (1) युवा अपने भरोसेमंद दोस्तों के साथ थे,

(2) परिवार को जानकारी नहीं थी कि असल में कहां गए हैं,

(3) मौत के बाद दोस्तों की भूमिका संदिग्ध रही।

दोस्ती के पीछे छिपता अपराध

माना जाता है कि दोस्ती सबसे मजबूत रिश्ता होता है, खून से भी गाढ़ा। पर हरियाणा में यह धारणा दरक रही है। अब दोस्ती की आड़ में जलन, प्रतिस्पर्धा, चालबाज़ी और यहां तक कि हत्या तक के मामले सामने आ रहे हैं। कई बार ये दोस्त ड्रग्स, जुए, बाइक रेसिंग जैसे खतरनाक कामों में एक-दूसरे को फंसा देते हैं।

परिवारों की असहायता और गूंगी चीखें

इन घटनाओं में सबसे ज़्यादा पीड़ित वे माता-पिता हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को घर से हँसते हुए विदा किया और फिर लाशों में बदलकर पाया। वे न समझ पा रहे हैं कि गलती उनकी थी या सिस्टम की या फिर उस ‘दोस्ती’ की, जिस पर उन्होंने आँख मूँदकर विश्वास किया था।

कई बार परिवार को यह भी नहीं पता होता कि बच्चा किसके साथ गया है। सोशल मीडिया और मोबाइल की दुनिया ने एक झूठी पारदर्शिता बनाई है, जिसमें हर चीज़ दिखती है, पर सच्चाई कहीं छिप जाती है।

सिस्टम की नाकामी

प्रशासन और पुलिस का रवैया भी इन मामलों में बेहद सुस्त रहा है। अधिकतर मामलों में पुलिस तब हरकत में आती है जब मीडिया दबाव डालता है या परिजन सड़क पर उतर आते हैं। शुरुआती रिपोर्ट में अकसर दुर्घटना कहकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है।

बच्चों की लोकेशन ट्रेसिंग, उनके घूमने की सूचना, पार्क और पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा बंदोबस्त—इन सभी में भारी कमी दिखाई देती है।

शिक्षा और संवाद की कमी

एक और बड़ा कारण है युवाओं के साथ संवादहीनता। परिवार, शिक्षक और समाज युवाओं को केवल ‘कैरियर’ या ‘शादी’ के चश्मे से देखते हैं। दोस्त कौन हैं? जीवन में क्या तनाव है? किस दिशा में सोच रहे हैं?—इन सवालों पर कोई ध्यान नहीं देता।

जब संवाद की जगह सन्नाटा ले लेता है, तो दोस्ती ही सबसे बड़ा प्रभाव बन जाती है—फिर चाहे वह सकारात्मक हो या घातक।

क्या हर सैर मौत की मंज़िल बनेगी?

क्या अब हर माता-पिता को डरना होगा जब उनका बच्चा कहेगा, “दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूँ”? क्या अब युवाओं को बाहर जाने के लिए पुलिस वेरिफिकेशन कराना होगा? ये सवाल जितने बेतुके लगते हैं, आज के संदर्भ में उतने ही वास्तविक हैं।

अगर समाज ने अभी चेतावनी नहीं ली, तो वह दिन दूर नहीं जब ‘दोस्ती’ शब्द से ही डर लगेगा।

समाधान की राह

इन घटनाओं को रोकने के लिए महज शोक या गुस्से से काम नहीं चलेगा, हमें ठोस कदम उठाने होंगे:

1. युवा सुरक्षा नीति: हरियाणा सरकार को युवाओं की सुरक्षा को लेकर अलग नीति बनानी चाहिए, जिसमें घूमने वाले समूहों की जानकारी, पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा, और आपातकालीन हेल्पलाइन जैसी व्यवस्थाएं हों।

2. माता-पिता से संवाद: स्कूलों और कॉलेजों में माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम होने चाहिए।

3. मनोवैज्ञानिक परामर्श: युवाओं को काउंसलिंग और मेंटल हेल्थ सपोर्ट मिलना चाहिए, ताकि वे सही और गलत दोस्ती के बीच फर्क समझ सकें।

4. सोशल मीडिया निगरानी: कई बार लड़ाई-झगड़े या जलन की जड़ें इंस्टाग्राम, Snapchat या WhatsApp जैसे प्लेटफॉर्म से उपजती हैं। अभिभावकों को डिजिटल व्यवहार पर भी सतर्क रहना होगा।

5. सख्त कानूनी कार्रवाई: जिन मामलों में दोस्त ही अपराधी पाए जाते हैं, वहां त्वरित और सख्त कार्रवाई की जाए ताकि एक स्पष्ट संदेश जाए।

6. युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना: शिक्षा व्यवस्था में ऐसी सामग्री और संवाद जोड़े जाएं जो युवाओं को जीवन मूल्यों, संबंधों की समझ और संवेदनशीलता सिखा सकें।

 दोस्ती के मायने फिर से गढ़ने होंगे

हरियाणा के युवाओं को एक ऐसे समाज की जरूरत है जहां दोस्ती भरोसे का पर्याय बने, भय का नहीं। और माता-पिता को भी एक ऐसे माहौल की दरकार है जहां वे अपने बच्चों को मुस्कुराकर विदा कर सकें—बिना इस डर के कि लौटेंगे या नहीं।

हमें मिलकर यह तय करना होगा कि दोस्ती की राह मौत की मंज़िल न बने। वरना वो दिन दूर नहीं जब “मैं दोस्तों के साथ जा रहा हूँ” सुनते ही हर माता-पिता का कलेजा कांप उठेगा।

स्त्रियाँ जो द्रौपदी नहीं बनना चाहतीं

वे स्त्रियाँ
अब चीरहरण नहीं चाहतीं,
ना सभा की नपुंसक दृष्टि,
ना कृष्ण का चमत्कारी वस्त्र-प्रदर्शन।
वे अब प्रश्न नहीं करतीं —
“सभागृह में धर्म कहाँ है?”
वे खुद ही धर्म बन चुकी हैं।
वे स्त्रियाँ
न तो द्रौपदी हैं,
ना सीता,
ना कुंती,
वे अपना नाम खुद रखती हैं —
कभी विद्रोह,
कभी प्रेम,
कभी ‘ना’।
वे अब अग्निपरीक्षा नहीं देतीं,
क्योंकि वे जान चुकी हैं —
आग से नहीं,
सवालों से जलाया जाता है।
वे अब चौखट पर दीपक नहीं जलातीं
बल्कि आंधियों से पूछती हैं —
“तुम्हारा साहस कितना है, मुझे बुझाने का?”
वे स्त्रियाँ
अपने भीतर
एक कोमल क्रांति पालती हैं —
जो फूलों से नहीं,
संवेदना की चुप्पियों से खिलती है।
वे अब खुद को
‘स्त्री’ कहने से पहले
‘मनुष्य’ कहती हैं —
क्योंकि उन्हें अब
देह से पहले, चेतना चाहिए।

प्रियंका सौरभ

तपती धरती, पिघलते ग्लेशियर: चिंता का सबब !

सुनील कुमार महला

धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। वास्तव में धरती का तापमान का लगातार बढ़ना कहीं न कहीं गंभीर ख़तरों का संकेत दे रहा है। आज मानव की जीवनशैली लगातार बदलती चली जा रही है और मानवीय गतिविधियों के कारण, अंधाधुंध विकास, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण, औधोगिकीकरण के कारण ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को लगातार बढ़ावा मिल रहा है जिससे नीले ग्रह पर खतरा मंडराने लगा है। एक जानकारी के अनुसार मानवीय जीवनशैली के कारण इस सदी के अंत तक धरती का औसत तापमान 2.7°C बढ़ जाएगा। वास्तव में धरती के तापमान के इतना बढ़ने का सीधा सा मतलब यह है कि इस सदी के अंत तक धरती के ग्लेशियरों की बस एक चौथाई बर्फ़ ही बची रहेगी तथा बाकी तीन चौथाई बर्फ़ ख़त्म हो जाएगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि ग्लेशियर अब किताबों का ही हिस्सा बनकर रह जाएंगे।

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के कारण  दुनिया के कई तटीय शहर डूब जाएंगे। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो भारत में मुंबई, चेन्नई, विशाखापट्टम जैसे कई तटीय शहरों का बड़ा इलाका क़रीब दो फुट तक पानी में डूब जाएगा। दरअसल यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में छपी एक ताज़ा रिसर्च में किया गया है। इस संदर्भ में ताज़ा उदाहरण स्विट्जरलैंड का है, जहां ऊंचे पहाड़ों से टूटे एक ग्लेशियर ने निचले इलाके में तबाही मचा दी। नीचे घाटी में बसे ब्लैटन गांव (नब्बे फीसदी गांव को) बर्च नाम के ग्लेशियर ने बर्बाद कर दिया।दरअसल,ग्लेशियरों के इस तरह टूटने के पीछे सबसे बड़ी वजह है धरती के औसत तापमान का बढ़ना। कहना ग़लत नहीं होगा कि तापमान में बढ़ोत्तरी भारी बारिश(अतिवृष्टि), तो कहीं सूखा(अनावृष्टि), कभी ग्लेशियरों की झीलों के फटने तो कभी बड़े तूफ़ानों जैसे अतिमौसमी बदलावों की शक्ल में हमारे सामने आ रहा है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में छपी रिसर्च के मुताबिक दुनिया के ग्लेशियर मौजूदा अनुमान से कहीं ज़्यादा तेज़ी से पिघल रहे हैं और इस सदी के अंत तक अगर धरती का औसत तापमान अगर 2.7°C और बढ़ा तो दुनिया में मौजूद ग्लेशियरों में सिर्फ़ 24% बर्फ़ ही बची रह जाएगी, जो कि एक बड़ा और गंभीर खतरा है। जानकारी के अनुसार ग्लेशियरों की 76% बर्फ़ पिघल चुकी होगी।

पाठकों को बताता चलूं कि पेरिस समझौते में ये तय हुआ था, कि दुनिया के तापमान को पूर्व औद्योगिक तापमान से 1.5°C से ज़्यादा नहीं बढ़ने देना है, लेकिन आज विकसित देश ही कार्बन उत्सर्जन के अधिक जिम्मेदार हैं और कोई भी ग्लोबल वार्मिंग को कम करने को लेकर जिम्मेदार नजर नहीं आते। साइंस पत्रिका में छपी रिसर्च के मुताबिक अगर दुनिया का औसत तापमान 1.5°C तक ही बढ़ा तो भी ग्लेशियरों की 46% बर्फ़ पिघल जाएगी, सिर्फ़ 54% बर्फ़ ही बची रहेगी, यह बहुत ही चिंताजनक है, क्योंकि ग्लेशियर पानी के बड़े स्रोत  होते हैं और जल ही जीवन है। शोध में सामने आया है कि अगर औसत तापमान बढ़ना बंद हो जाए और उतना ही रहे, जितना कि आज है, तो भी दुनिया के ग्लेशियरों की बर्फ़ 2020 के स्तर से 39% कम हो जाएगी। मतलब यह है कि आज भी तापमान कुछ कम नहीं है और यह नीले ग्रह को काफी नुकसान पहुंचा रहा है।

 शोध में पाया गया है कि यदि  दुनिया का औसत तापमान 2°C बढ़ा तो स्कैंडिनेवियन देशों यानी नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क के ग्लेशियरों की सारी बर्फ़ पिघल जाएगी। इतना ही नहीं, उत्तर अमेरिका की रॉकी पहाड़ियों, यूरोप के आल्प्स और आइसलैंड के ग्लेशियरों की क़रीब 90% बर्फ़ पिघल जाएगी।औसत तापमान में 2°C की बढ़ोतरी का भारी असर दक्षिण एशिया में हिंदूकुश हिमालय पर भी पड़ने की संभावनाएं जताई गईं हैं। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि हिंदू कुश हिमालय का ग्लेशियर दो अरब लोगों का भरण-पोषण करने वाली नदियों को पानी देता है, लेकिन सदी के अंत तक ये अपनी 75 प्रतिशत बर्फ खो सकता है, जिससे नदियों का पानी भी सूख सकता है। यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि अगर दुनिया के देश तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक पाते हैं (जैसा कि पेरिस समझौते में तय हुआ था), तो हिमालय और कॉकेशस पर्वत में ग्लेशियर की 40-45 प्रतिशत बर्फ बचाई जा सकती है। यानी अब भी कुछ किया जाए, तो हालात बहुत हद तक सुधर सकते हैं। वाकई यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि साल 2020 के मुक़ाबले हिंदूकुश हिमालय के ग्लेशियरों में महज़ 25% बर्फ़ ही रह जाएगी।

 वास्तव में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदूकुश हिमालय से निकलने वाली नदियां जो गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र की घाटियों में बहती हैं वो क़रीब दो अरब आबादी के लिए अनाज, मनुष्य की आजीविका और पानी की गारंटी हैं। वास्तव में आज धरती का लगातार बढ़ता हुआ तापमान न केवल मनुष्य के लिए अपितु धरती के सभी जीवों, वनस्पतियों, हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए संकट का सबब बनता चला जा रहा है। अंत में यही कहूंगा कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए हमें सामूहिक रूप से कदम उठाने होंगे और पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमें अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझना होगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारे नीले ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना ही ग्लेशियरों के पिघलने की गति को धीमा करने का सबसे प्रभावी तरीका है। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि धरती के तापमान में मामूली वृद्धि भी कहीं न कहीं मायने रखती है। मानव को समझने की जरूरत है कि विकास के नाम पर हमें प्रकृति से छेड़छाड़ और खिलवाड़ को बंद करना होगा। पर्यावरण के साथ संबंध स्थापित करते हुए भी विकास किया ही जा सकता है।एक जानकारी के अनुसार दुनिया में क़रीब पौने तीन लाख ग्लेशियर हैं। पाठकों को बताता चलूं कि पृथ्वी पर, 99% ग्लेशियल बर्फ ध्रुवीय क्षेत्रों में विशाल बर्फ की चादरों (जिन्हें “महाद्वीपीय ग्लेशियर” भी कहा जाता है) के भीतर समाहित है।

 एक जानकारी के अनुसार ग्लेशियल बर्फ पृथ्वी पर ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है, जो बर्फ की चादरों के साथ दुनिया के ताजे पानी का लगभग 69 प्रतिशत रखता है।पृथ्वी के कुल जल का लगभग 2% भाग ग्लेशियरों में संग्रहीत है। इतना ही नहीं,ग्लेशियर अतीत की जलवायु के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। ये ग्लेशियर ही हैं, जिनसे कृषि, जल विद्युत एवं पेयजल हेतु जल मिलता है। समुद्र जल स्तर में ग्लेशियरों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अंत में यही कहूंगा कि हमें ग्लेशियरों को संरक्षित करना होगा और जल प्रबंधन को बढ़ावा देना होगा, ताकि भविष्य में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

पर्यावरण के लिए बेहद घातक हैं प्लास्टिक

डॉ. बालमुकुंद पांडेय 

प्लास्टिक मानव समाज के लिए आवश्यक आवश्यकता हो चुका हैं। प्लास्टिक मनुष्यों के दिनचर्या के लिए उपयोगी हो चुका हैं । मानवीय समाज के लिए इसकी उपादेयता  के साथ इसके हानिकारक प्रभाव भी हैं। भू – वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के अनुसार ,प्लास्टिक बैग्स पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आते हैं तो उनसे ग्रीनहाउस गैस(GHG)निकलती है ,जो अत्यधिक मात्रा में हानिकारक एवं  अस्वास्थ्यप्रद हैं । प्लास्टिक एवं पॉलीथिन पालतू जानवरों, वन्यजीवों एवं समुद्रीजीवों के लिए अति खतरनाक एवं अत्यधिक हानिकारक हैं। प्लास्टिक बैग्स एवं प्लास्टिक खाने से प्रत्येक वर्ष लाखों जीव जंतुओं की मृत्यु हो जाती है. इन जानवरों में गाय, भैंस ,एवं दुधारू पशु हैं। प्लास्टिक समुद्री जीवों एवं जंतुओं के लिए भी हानिकारक होता है, इनके कारण बड़ी संख्या में व्हेल ,डॉल्फिन एवं कछुओं की मृत्यु होती है जो खाद्य पदार्थ  के साथ प्लास्टिक के बैग्स खा जाते हैं जिससे उनकी अकाल मृत्यु हो जाती है।

 वैज्ञानिकों द्वारा अन्वेषित प्लास्टिक ने नागरिक समाज, नागरिक जीवन एवं पृथ्वी पर उपस्थित संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव डाला है। प्लास्टिक को विज्ञान ने हमारी आवश्यकताओं एवं सुविधाओं के लिए तैयार किया था लेकिन यह पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के शत्रु के रूप में उपादेयता प्रदान कर रहा हैं । भू – तल  से लेकर समुद्र तक ,गांव से लेकर कस्बा तक एवं मैदान से लेकर पहाड़ तक प्लास्टिक का व्यापक प्रदूषण प्रभाव हैं। प्लास्टिक का दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। पेयजल एवं खाद्य पदार्थों में प्लास्टिक का प्रभाव है जिससे मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक एवं प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

लोग यात्रा एवं अन्य प्रयोजनों  में पॉलिथीन से बने लिफाफों एवं  पन्नियों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं। यह प्रक्रिया मानव स्वास्थ्य एवं प्रकृति के लिए नुकसानदायक हैं । प्लास्टिक एक ऐसा अवशिष्ट है जो अविनाशी हैं। इसके इसी विशिष्टता के कारण यह प्रत्येक जगह अनंत समय तक  बेतरतीब पड़ा रहता है एवं नष्ट नहीं होता हैं । यह  मिट्टी एवं जल में विघटित नहीं होता है एवं जलने पर पर्यावरण को अत्यधिक प्रदूषण का प्रसार करते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण में बहुत हानिकारक तत्व हैं । प्लास्टिक की थैलियां एवं प्लास्टिक बैग्स पानी में बहकर  चले जाते हैं जिससे जलीय जीवों  एवं जंतुओं को संक्रमित करते हैं एवं समुद्री जीव जंतुओं के जीवन पर खतरा खतरा मंडरा रहा हैं। इससे संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में आ गया हैं । पारिस्थितिकी तंत्र में हुए इस खतरे से पर्यावरण को अत्यधिक खतरा हैं जिससे समुद्री वातावरण में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।

प्लास्टिक मनुष्य के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा हैं । इसका चिंताजनक दुष्प्रभाव हैं कि यह मानव स्वास्थ्य पर निरंतर गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा हैं ।

मनुष्य पेयजल में भी प्लास्टिक मिश्रण वाला पानी पी रहे हैं, नमक में भी प्लास्टिक का मिश्रण खा रहे हैं। वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के अध्ययन से यह  स्पष्ट हो रहा है कि हृदय रोग से होने वाली मृत्यु  के लिए प्लास्टिक में मौजूद ‘ थैलेटस ‘ के संपर्क में आने के कारण वर्ष 2020 में हृदय रोग से 7 लाख से अधिक मृत्यु हुआ था। इस मृत्यु से होने वालों की अवस्था क्रमशः 55 से 64 वर्ष के बीच थी। 7 लाख लोगों में लगभग तीन – चौथाई दक्षिण एशिया ,पश्चिम एशिया, पूर्वी एशिया, एवं उत्तरी अमेरिका में हुई थी । न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों एकेडमिक  विशेषज्ञों एवं शोधार्थियों के दल ने लगभग 201 देश एवं महाद्वीपीय क्षेत्रों  में ‘ थैलेटस ‘ के नकारात्मक प्रभाव के मूल्यांकन के लिए जनसंख्या सर्वेक्षणों से मनुष्य के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया। इस अध्ययन में खास प्रकार के  थैलेट्स पर गौर किया गया जिसका उपयोग खाद्य पदार्थों के कंटेनर जैसी वस्तुओं में प्लास्टिक को नरम बनाने के लिए किया जाता हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य को वृहद स्तर पर नुकसान एवं कठिनाई का सामना करना पड़ पड़ा था।  थैलेट्स मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके कार्बन मोनोऑक्साइड का निर्माण करके रक्तपरिशंचरण तंत्र  को दूषित कर देता है एवं मनुष्य के स्वास्थ्य को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है।

प्लास्टिक बैग्स को बनाने के लिए जिन तत्वों की प्रधानता होती हैं ,वह उच्च स्तरीय रसायन होता हैं ,जो खाद्य सामग्री को बहुत शीघ्र सड़ा देता हैं। प्लास्टिक के कारण कृषिभूमि की उर्वरता का क्षरण हो रहा हैं ,जिससे  भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है। इसके कारण भू – जल स्रोत एवं जल स्रोत भी अत्यधिक मात्रा में दूषित हो रहे हैं जिससे  जल संक्रमित होता जा रहा हैं । प्लास्टिक गांव,  कस्बों,नगरों एवं महानगरों की जल निस्तारण प्रणाली को भी अवरुद्ध कर रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान प्लास्टिक के संपर्क में आने पर नवजात शिशु के स्वास्थ्य में जटिलताएं उत्पन्न हो जाते हैं जिससे वह मानसिक स्तर पर मंद एवं शारीरिक विषमताओं से जकड़ जाते हैं । प्लास्टिक के कारण  पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर एवं नपुंसकता  हो रही है।

 कई वैज्ञानिक अध्ययनों एवं पर्यावरण विशेषज्ञों के अध्ययन के प्रतिवेदन से ज्ञात हुआ है कि खाद्य पदार्थों के पैकेजिंग में इस्तेमाल प्लास्टिक के प्रयोग से कैंसर, प्रजनन क्षमता में ह्रास,अस्थमा, त्वचा रोगों एवं हृदय रोगों का खतरा बढ़ता जा रहा हैं । यह नागरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ हमारे धरती की सेहत को भी अत्यधिक क्षति पहुंचा रहा हैं। प्लास्टिक से निर्मितपदार्थों  से पैदा हुए कचरे का निपटारा करना अत्यंत कठिन काम होता  हैं। हमारे पृथ्वी पर प्रदूषण के प्रसार के लिए प्लास्टिक भी उत्तरदाई हैं।विगत 40 वर्षों में प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर अति तीव्र गति से बड़ा हैं जो मानवीय समुदाय  के लिए एक गंभीर समस्या बन चुका है।

 प्रदूषण के लिए पॉलिथीन ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि प्लास्टिक बैग्स एवं प्लास्टिक के फर्नीचर भी जिम्मेदार हैं । वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक से निर्मित वस्तुएं प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। प्लास्टिक एवं प्लास्टिक से निर्मित वस्तुएं नागरिक समाज के स्वास्थ्य, पेयजल एवं स्वच्छ वातावरण के लिए जिम्मेदार हैं.  यह सभी वातावरण के लिए एक गंभीर समस्या एवं संकट हो चुके हैं। यह मानव जाति, मानवीय संस्कृति एवं मानव समुदाय के जीवन को क्षीण कर रहे हैं क्योंकि प्रदूषण मनुष्य के आयु को क्षीण कर रहा हैं । मानवीय संस्कृति के अमरता एवं प्रासंगिकता के लिए प्लास्टिक पर प्रतिबंध आवश्यक हैं । प्लास्टिक नियंत्रण की दिशा में नागरिक समाज की पहल से प्रदूषण के नकारात्मक प्रभाव को न्यून  किया जा सकता है।

1. नागरिक समाज को प्लास्टिक के बजाय अन्य विकल्प को अपनाना चाहिए; 

2. प्लास्टिक के नकारात्मक प्रभाव के विषय में जागरूकता की आवश्यकता है; 

3. हानिकारक प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग को रोककर ही इसके भयावह समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है;

4. सरकार को प्लास्टिक ,प्लास्टिक बैग्स एवं पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए; एवं 

5. संगोष्ठियों, जनसभाओं  एवं नागरिक समाज के पहल से समाज में संचेतना एवं जन जागरूकता की आवश्यकता है।

डॉ. बालमुकुंद पांडेय 

विकसित भारत : संकल्प का प्रथम कदम

डॉ. नीरज भारद्वाज

इतिहास के कुछ पन्ने हमें यह भी बताते हैं कि जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ तो पाश्चात्य  देश यह कहते थे कि भारतवर्ष स्वतंत्रता को ज्यादा दिन तक संभाल नहीं पाएगा। इस देश का विकास होना संभव नहीं है। माना कि यह बात उस समय और परिस्थिति के आधार पर कुछ समीक्षकों और बुद्धिजीवियों ने की हो लेकिन आज वास्तविकता उससे बहुत परे है।

हमारे देश ने आजादी के बाद कई उतार-चढ़ावों को देखा। पड़ोसी देशों ने हम पर समय-समय पर आक्रमण किए। इन आक्रमणों से हमें आर्थिक, सामाजिक, जन हानि आदि को झेलना पड़ा। पड़ोसी देश पाकिस्तान आज भी हमारी विकास गति को पचा नहीं पाता  और वह स्वयं से या किसी अन्य देश के कहने से भारतवर्ष में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता रहता है। उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी है. इस बार ऑपरेशन सिंदूर के चलते उसके घर में ही घुसकर हमने उसके आतंकी ठिकानों को मिट्टी में मिलने का काम किया है।

देश के विकास के लिए देश में शांति और भाईचारा बना रहना चाहिए। इसके साथ ही सबसे बड़ी बात कि देश को मजबूत राजनीतिक सत्ता अर्थात स्थिर सरकार का होना भी होता है। पिछले 11 वर्षों से देश में यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की मजबूत और कारगर सरकार काम कर रही है। इससे पहले की सरकारों ने भी देश के लिए कार्य किया है, इसे भी नहीं भूलना चाहिए। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि अब जो सरकार काम कर रही है, वह वास्तव में देश-दुनिया को दिखाई दे रहा है।

भारतवर्ष ने हर एक क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत किया है। नए संकल्प के साथ भारतवर्ष में नई ऊंचाइयों को छुआ है। देश के विकास में हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, पीली क्रांति, नीली क्रांति, गुलाबी क्रांति, रजत क्रांति, सुनहरी क्रांति आदि सभी का सहयोग बराबार रहा है। हमारे विज्ञान और तकनीक ने भी विश्व को नए आयाम दिए हैं। आज भारतवर्ष दुनिया का सबसे घनी आबादी का देश है, तो साथ ही अर्थव्यवस्था की दृष्टि से चौथे स्थान पर आ गया है। वह दिन भी दूर नहीं जब भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होगा।

देश के लिए, देश के हर एक नागरिक के लिए यह अच्छी बात है कि हमारे श्रमबल, उद्योग, तकनीक आदि सभी ने मिलकर आज भारतवर्ष को चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अमेरिका, चीन और जर्मनी ही भारत से आगे हैं। रिपोर्ट और आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि विकास की गति ऐसे ही आगे बढ़ती रही तो भारत अर्थव्यवस्था की दृष्टि से तीन वर्षों में ही जर्मनी को पीछे छोड़ देगा और तीसरे स्थान पर आ जाएगा।

भारत ने अर्थव्यवस्था में चौथा स्थान जापान को पीछे छोड़कर प्राप्त किया है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि जापान की उम्र दराज आबादी और कम जन्म दर उसके लिए चुनौती बनकर उभरी है। दूसरी ओर ध्यान दें तो आज भारत विश्व का सबसे युवा शक्ति का देश बनकर उभरा है। आरबीआई ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2025-26 में दुनिया में सबसे तेज गति से आर्थिक विकास दर हासिल करने वाला प्रमुख देश भारतवर्ष बना रहेगा। भारत की विकास दर तेजी से आगे बढ़ रही है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि 2024- 25 में दुनिया में सबसे ज्यादा विकास दर 6.5% भारत की रहेगी। भारत धीरे-धीरे महाशक्ति बनता जा रहा है, आर्थिक रूप से भी भारत मजबूत होता जा रहा है।

भारतवर्ष के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 2047 तक विकसित भारत की बात कही है। देश के युवाओं को इसी ओर अग्रसर भी कर रहें हैं। विचार करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था, तकनीक, विज्ञान आदि सभी कुछ इसी ओर अग्रसर भी दिखाई दे रहे हैं। भारत अपने संकल्प को जल्द ही पूरा करेगा। सही मायने में संकल्प से ही सिद्धि प्राप्त होती है।

भारतीय राजनीति का सकारात्मक पक्ष सामने आया

राजेश कुमार पासी

राजनीति में सिर्फ नकारात्मकता ही बची है ऐसा लगता है लेकिन सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने दिखाया है कि भारतीय राजनीति का एक सकारात्मक पहलू यह है कि जब भारत का नेता विदेश में जाता है तो वो सिर्फ भारतीय रह जाता है और उसके लिए अपनी दलगत राजनीति पीछे छूट जाती है । यह बात सभी के लिए नहीं कही जा सकती लेकिन इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में गए हुए विपक्षी नेताओं के लिए जरूर  कही जा सकती है । राजनीति में नकारात्मकता के पीछे भागने वाले समाज और मीडिया के लिए ये अंचभा है कि विपक्षी नेता विदेशी धरती से मोदी की भाषा बोल रहे हैं । सोशल मीडिया के लिए तो यह  ज्यादा परेशानी की बात है क्योंकि सोशल मीडिया में सिर्फ नकारात्मकता ही बची हुई है । वहां हर आदमी को अपने नेता और पार्टी के अलावा सब कुछ बुरा ही दिखाई देता है । सोशल मीडिया में कोई सच न तो देखता है और न ही समझता है । तर्क और तथ्य की बात सोशल मीडिया में करना बेमानी होता जा रहा है ।

 ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तान की ऐसी बुरी गत बना दी थी कि न तो वो अपनी रक्षा करने के काबिल रहा और न ही उसके पास भारत पर आक्रमण करने की क्षमता बची । इसके बावजूद आज भी सोशल मीडिया में ज्यादातर वामपंथी, सेकुलर और मुस्लिम बुद्धिजीवी भारत को पाकिस्तान का डर दिखा रहे हैं । जब विदेशी मीडिया और विदेशी रक्षा विशेषज्ञ भी मान चुके हैं कि इस युद्ध में भारत की एकतरफा जीत हुई है तो ये लोग सोशल मीडिया में बता रहे हैं कि चीन के युद्धक विमानों से पाकिस्तान ने भारत के कई राफेल मार गिराए हैं । ये लोग आज भी भारत को पाकिस्तान को मिले चीनी हथियारों का डर दिखा रहे हैं । चीन ने पाकिस्तान को अपने स्टेल्थ विमान देने की बात कही है, इससे यह लोग इतना डरे हुए हैं कि अगर यह विमान पाकिस्तान में आ जाते हैं तो भारत को तबाह कर देंगे । भारत ने पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली समाप्त कर दी थी और इसके बाद भारत का हर विमान स्टेल्थ हो गया था । जब आप किसी के आकाश पर कब्जा कर लेते हैं तो आपका हर विमान स्टेल्थ बन जाता है और भारत ने ऐसा ही किया था ।

               जहां भारत में भारत-पाक युद्ध को लेकर अलग ही राग अलापा जा रहा है, वही दूसरी तरफ सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में विपक्षी नेताओं ने पूरी दुनिया में भारत का पक्ष इस मुखरता और निष्पक्षता के साथ रखा है कि दुनिया को सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं में अंतर समझना मुश्किल हो रहा है ।  ऐसा लगता है कि ये भूल गए हैं कि विपक्षी नेता हैं और उनकी पार्टी देश मे कुछ और ही लाइन पर चल रही है । विशेष तौर पर कांग्रेस के नेताओं के बारे में तो ऐसा कहा ही जा सकता है कि विदेशी धरती पर ये नेता अलग भाषा बोल रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस देश में अलग लाइन पर चल रही है ।  इन नेताओं को इससे कोई मतलब नहीं है कि देश में उनकी पार्टी किस लाइन पर चल रही है । उनके बयानों से ऐसा लगता है कि वो अपने मन की बात बोल रहे हैं । ये अजीब है कि जब यही नेता भारत में बोलते हैं तो लगता है कि ये कुछ देखना नहीं चाहते, समझना नहीं चाहते या इन्हें समझ नहीं आ रहा है । विदेशी धरती पर इनके भाषणों को सुनकर महसूस होता है कि उनकी राजनीतिक समझ कहीं से भी कम नहीं है लेकिन घरेलू राजनीति इनकी वास्तविक समझ का बाहर नहीं आने देती, पार्टी के अनुशासन के कारण उन्हें वही बोलना होता है जो इन्हें पार्टी ने कहा होता है । 

मेरा मानना है कि बहुत मुश्किल हो रहा होगा इन नेताओं के लिए कि विदेशी धरती पर उन्हें अपनी पार्टी लाइन से विपरीत जाकर अपने देश की बात को रखना पड़ रहा है । ऐसी मुश्किल भाजपा और एनडीए के दूसरे नेताओं की नहीं है क्योंकि उन्हें वही बोलना पड़ रहा है जो उनकी पार्टी की लाइन है । यही कारण है कि विपक्षी नेताओं के बयानों की मीडिया में बहुत ज्यादा चर्चा हो रही है लेकिन भाजपा नेताओं की कोई बात भी नहीं कर रहा है । भाजपा नेता जब  वापिस आयेंगे तो उन्हें कोई समस्या नहीं आने वाली है लेकिन विपक्षी नेताओं को भारत आकर दोबारा अपनी बात से अलग हटकर बोलना मुश्किल होने वाला है । सवाल यह है कि क्या ये नेता यह नहीं जानते होंगे कि जो कुछ वो यहां बोल रहे हैं उन्हें इसके विपरीत जाकर देश में बोलना मुश्किल होगा । वास्तव में यह नेता जानते हैं कि विदेश में वो अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और उनके कंधों पर देश ने बड़ी जिम्मेदारी डाली हुई है । ये नेता अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए वही कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए । 

            ये विदेशी मीडिया और जनता के लिए बड़ा अजीब है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के स्वर में कहीं भी विभिन्नता दिखाई नहीं दे रही है, सभी एक स्वर में अपनी बात रख रहे हैं। विदेशियों के लिए ये फर्क करना मुश्किल हो रहा है कि कौन सत्ता पक्ष से है और कौन विपक्ष से आया है । जहां भारत में मोदी सरकार की विदेश नीति को असफल करार दिया जा रहा है, वहीं ये नेता भारत की विदेश नीति को सफल बनाने का काम कर रहे हैं ।  देखा जाए तो ये नेता देश के लिए भी बड़ा मुश्किल काम कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान को भारत पर हुए आतंकवादी हमलों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराना इतना आसान काम नहीं है। जो लोग भारत की विदेश नीति को असफल करार दे रहे हैं उन्हें अहसास नहीं है कि अपने ही देश के आतंकियों द्वारा हमला करने पर किसी दूसरे देश की संप्रभुता को दरकिनार करके उसके इलाकों पर हमला किया गया है। जो लोग कहते हैं कि दुनिया भारत के साथ नहीं खड़ी हुई उन्हें यह दिखाई नहीं दे रहा है कि पाकिस्तान पर हमला करने के बावजूद दुनिया भारत के खिलाफ खड़ी नहीं हुई है । यही भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी सफलता है लेकिन कोई यह समझने को तैयार नहीं है । सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल इसी काम को बेहतर तरीके से करने गया है कि भारत ने पाकिस्तान पर हमला नहीं किया है उसने सिर्फ उन आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया है जहां से भारत  पर वर्षों पर हमला किया जा रहा है । भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो सैन्य कार्यवाही की है वो पाकिस्तानी हमले के जवाब में की गई है ।  जहां तक चीन, तुर्की और अजरबाइजान का सवाल है कि वो पाकिस्तान के साथ खड़े हैं तो भारत भी चीन के दुश्मन देशों के साथ पिछले कई वर्षों से खड़ा हुआ है और दूसरी तरफ भारत तुर्की और अजरबाइजान के विरोध में  आर्मेनिया के साथ खड़ा हुआ है। भारत पर तो यहां तक आरोप लगाया जा  रहा है कि भारत ही आर्मेनिया की रक्षा रणनीतियां बना रहा है और उसी के अनुसार हथियारों की सप्लाई कर रहा है जिसके कारण तुर्की और अजरबाइजान हताश हैं । 

              इसके अलावा भारत में भी कई विपक्षी नेताओं ने भारत की कार्यवाही का समर्थन किया है । फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने पाकिस्तान का जैसा विरोध पहलगाम हमले के बाद किया है और ऑपरेशन सिंदूर का जैसा समर्थन किया है, वो उनकी अब तक की राजनीति से बिल्कुल अलग दिखाई दे रहा है । महबूबा मुफ्ती के बयानों का विरोध करते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वो पाकिस्तान के लिए बात कर रही है लेकिन ये ऐसा वक्त है जब हमें देश के साथ खड़े होना है । असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान के खिलाफ जो मुहिम चलाई है उससे पाकिस्तान में सबसे ज्यादा चर्चा उन्हीं की हो रही है । पाकिस्तान में मोदी के बाद सबसे ज्यादा आलोचना ओवैसी की ही हो रही है । कांग्रेस नेता शशि थरूर ने मोदी सरकार के लिए वो काम किया है जो भाजपा के दूसरा नेता भी नहीं कर पाए हैं । थरूर का कहना है कि देश जिस दौर से गुजर रहा है उसमें देश के साथ खड़े होने के अलावा कोई रास्ता नहीं है । वो अपने आपको खुशकिस्मत मानते हैं कि उन्हें इस समय देश की सेवा करने का अवसर मिला है और इससे वो खुद को सम्मानित महसूस करते हैं ।

कांग्रेस ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी को देश का पक्ष रखने के लिए विदेशी धरती पर भेजा था लेकिन मोदी जी ने तो एक नहीं बल्कि कई विपक्षी नेताओं को यह मौका दिया है । बड़ी बात यह है कि इन नेताओं ने न तो मोदी जी को निराश किया और न ही देश को निराश किया बल्कि पूरी दुनिया को यह संदेश चला गया कि संकट के समय पूरा भारत एक है । दुनिया ने यह भी देखा कि भारत का लोकतंत्र कितना मजबूत है, जहां सत्ताधारी दल विपक्षी नेताओं को देश का पक्ष रखने के लिए भेज देता है और विपक्षी नेता घरेलू राजनीति को दरकिनार करके सरकार की बात बेहतर तरीके से दुनिया के सामने रखते हैं ।  जो काम भारत के लिए असदुद्दीन औवेसी, शशि थरूर, प्रियंका चतुर्वेदी, सलमान खुर्शीद, कनिमोझी, सुप्रिया फूले जैसे कई विपक्षी नेताओं ने किया है उसके कारण पूरी दुनिया को पता चल गया है कि दुश्मन के खिलाफ भारत एक है ।