Category: विधि-कानून

विधि-कानून विविधा

पूर्वाग्रही राजनीति की भेंट चढ़ता संविधान का अनुच्‍छेद 48

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जानवर कई बार बिकते हैं। कई हाथों से गुजरते हैं। हर खरीदार उनसे बदसलूकी करता है। जानवरों को ठीक से खाना-पानी नहीं मिलता क्योंकि हर खरीदार को पता होता है कि इसे आखिर में कत्ल ही होना है। कई बार तो जानवरों को फिटकरी वाला पानी दिया जाता है, जिससे उनके गुर्दे फेल हो जाएं। इससे उनके शरीर में पानी जमा हो जाता है। इससे जानवर हट्टे-कट्टे दिखते हैं। इससे उनकी अच्छी कीमत मिलती है। उन्हें पैदल ही एक बाजार से दूसरे बाजार ले जाया जाता है।

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बातचीत से सुलझ सकता है जाधव का मसला

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जाधव के मामले में पाकिस्तानी राजनीति में जूतम पैजार शुरु हो गई है लेकिन यह संतोष का विषय है कि भारत में पक्ष और विपक्ष एकजुट हैं। भारत सरकार, खासतौर से हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बधाई की पात्र हैं, जिन्होंने जाधव के मामले में इतनी दृढ़ता और कर्मण्यता दिखाई लेकिन अभी खुशी से फूलकर कुप्पा हो जाना ठीक नहीं है। पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखना जरुरी है। सभी दक्षेस देशों, इस्लामी राष्ट्रों और महाशक्तियों से फोन करवाए जाएं और संयुक्त राष्ट्र के नए महासचिव अंतानियो गुतरस भी मध्यस्थता करें तो बेहतर हो।

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अलविदा-तीन तलाक

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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अब तीन तलाक की वर्तमान में जारी प्रक्रिया को सुधारने की दिशा में मौलवियों और काजियों को दिशा-निर्देश जारी करेगा। इन दिशा-निर्देशों को पूर्णत: लोकतांत्रिक और एक उदार सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप बनाने व ढालने का प्रयास किया जाएगा। अब विवाद होने पर पति पत्नी पारस्परिक सहमति से हल निकालेंगे। यदि उनकी पारस्परिक सहमति से हल नहीं निकलता है तो कुछ समय के लिए वे अस्थायी रूप से अलग हो जाएंगे जिससे कि परिस्थितियों की उत्तेजना शांत हो सके और दोनों को एक दूसरे को समझते हुए अपनी गलती का अहसास करने का अवसर मिल सके।

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न्यायपालिका में भ्रष्टाचार या अवहेलना न्यायालय की ??

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ऐसा नहीं है कि न्यायपालिका के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप पहली बार लगे हैं | इसके पहले भी कई जजों को स्टिंग ऑपरेशन में रंगे हाथों पकड़ा गया है | सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश तथा प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रह चुके जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कई बार सार्वजनिक रूप से न्यायपालिका में हो रहे भ्रष्टाचार पर चिंता जताई है | कितनी ही बार पूर्व न्यायाधीशों ने कोर्ट में हो रहे भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त की है | न्यायपालिका में चल रहे भ्रष्टाचार पर जस्टिस काटजू ने भी कहा था कि “मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के ज्यादातर मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने से परहेज करते रहे हैं, शायद इसलिए कि इससे न्यायपालिका की बदनामी होगी |”

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जल्दी आए लोकपाल

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स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार का सुरसामुख लगातार फैलता रहा है। उसने सरकारी विभागों से लेकर सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सभी संस्थाओं को अपनी चपेट में ले लिया है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मानवीय मूल्यों से जुड़ी संस्थाएं भी अछूती नहीं रहीं। नौकरशाही को तो छोड़िए, देश व लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था संसद की संवैधानिक गरिमा बनाए रखने वाले संासद भी सवाल पूछने और चिट्ठी लिखने के ऐवज में रिश्वत लेने से नहीं हिचकिचाते। जाहिर है, भ्रष्टाचार लोकसेवकों के जीवन का एक तथ्य मात्र नहीं, बल्कि शिष्टाचार के मिथक में बदल गया है। जनतंत्र में भ्रष्टाचार की मिथकीय प्रतिष्ठा उसकी हकीकत में उपस्थिति से कहीं ज्यादा घातक इसलिए है, क्योंकि मिथ हमारे लोक-व्यवहार में आदर्श स्थिति के नायक-प्रतिनायक बन जाते हैं। राजनीतिक व प्रशासनिक संस्कृति का ऐसा क्षरण राष्ट्र को पतन की ओर ही ले जाएगा ? इसीलिए साफ दिखाई दे रहा है कि सत्ता पक्ष की गड़बड़ियों पर सवाल उठाना, संसदीय विपक्ष के बूते से बाहर होता जा रहा है। विडंबना यह है कि जनहित से जुड़े सरोकारों के मुद्रदों को सामने लाने का काम न्यायपालिका को करना पड़ रहा है।

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